“We are blessed to have a personality like Rabindranath Tagore in our lives to guide us, motivate us, and lead us towards success…. Happy Rabindranath Tagore Jayanti.”https://perfectpincode.com/
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✅"Faith is the bird that feels the light when the dawn is still dark." - Smart Learning Destination👌
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#HappyBirthday
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Remembering the great scholar and novelist Remembering One of India's Finest Thinkers, National Poet, Author and Visionary Gurudev RabindranathTagore On His Birth Anniversary...!!
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जयंती विशेष: 8 साल की उम्र में लिखी पहली कविता, दो देशों को दिए राष्ट्रगान, जानें नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर से जुडी खास बातें
चैतन्य भारत न्यूज
कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार रवींद्रनाथ टैगोर जी की आज पुण्यतिथि है। रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था। वह अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। बचपन में उन्हें प्यार से ‘रबी’ बुलाया जाता था। रवींद्रनाथ साहित्य को देश से लेकर अंतराराष्ट्रीय स्तर तक नई पहचान दिलाने वाले शख्स हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें-
बिना डिग्री लिए लंदन से वापस आए टैगोर
रवींद्रनाथ टैगोर की स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया। उन्होंने लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए।
8 वर्ष की उम्र में लिखी पहली कविता
रवींद्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कविताएं और कहानियां लिखने का शौक था। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था। वह गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय थे। लंदन से वापस आकर गुरुदेव ने फिर से लिखने का काम शुरू किया। उन्हें 20वीं शताब्दी के शुरुआती भारत के उत्कृष्ट रचनात्मक कलाकार के रूप में भी माना जाता है।
शांतिनिकेतन में प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना
1901 में टैगोर ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की। जहां उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ को मिलाने का प्रयास किया। वह विद्यालय में ही स्थायी रूप से रहने लगे और 1921 में यह विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया। शांतिनिकेतन में टैगोर ने अपनी कई साहित्यिक कृतियां लिखीं थीं और यहां मौजूद उनका घर ऐतिहासिक महत्व का है।
नोबेल पुरस्कार से हुए सम्मानित
विश्वविख्यात महाकाव्य गीतांजलि की रचना के लिये उन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाले वे अकेले भारतीय हैं। रवींद्रनाथ टैगोर एक ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया। बता दें कि बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रचियता भी टैगोर ही हैं। टैगोर ने राष्ट्रगान 'जन गण मन' को पहले बंगाली भाषा में लिखा। हिंदी भाषा में इसका पहली बार अनुवाद आबिद अली ने 1911 में किया जिसे बाद में 24 जनवरी, 1950 को औपचारिक रूप से भारत का राष्ट्रगान अंगीकृत किया गया।
गांधीजी की दी महात्मा की उपाधि
रवींद्रनाथ टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से ऊंचे स्थान पर रखते थे। गुरुदेव ने कहा था, 'जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।' टैगोर गांधी जी का बहुत सम्मान करते थे। लेकिन वे उनसे राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सांस्कृतिक विचारों की अदला बदली, तर्कशक्ति जैसे विषयों पर अलग राय रखते थे। हर विषय में टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज्यादा हुआ करता था, जिसका संबंध विश्व कल्याण से होता था। टैगोर ने ही गांधीजी को महात्मा की उपाधि दी थी।
राजनीति में भी थे सक्रिय
रवींद्रनाथ टैगोर राजनीति में सक्रिय थे। वह भारतीय राष्ट्रवादियों के पूर्ण समर्थन में थे। इसके अलावा, वह ब्रिटिश शासन के विरोध में थे। उनके काम मैनास्ट में उनके राजनीतिक विचार शामिल हैं। उन्होंने कई देशभक्ति गीत भी लिखे। रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए प्रेरणा बढ़ाई। उन्होंने देशभक्ति के लिए कुछ काम लिखे। इस तरह के कार्यों के लिए जनता के बीच बहुत प्यार था। यहां तक कि महात्मा गांधी ने भी इन कार्यों के लिए अपना पक्ष रखा।
कैंसर से थे पीड़ित
रवींद्रनाथ टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रविंद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी ज्यादातर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। प्रोस्टेट कैंसर के कारण 7 अगस्त, 1941 को टैगोर का निधन हुआ था। टैगोर का लोगों के बीच इतना ज्यादा सम्मान था कि लोग उनकी मौत के बारे में बात नहीं करना चाहते थे।
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पुण्यतिथि विशेष: 8 साल की उम्र में लिखी पहली कविता, दो देशों को दिए राष्ट्रगान, जानें नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर से जुडी खास बातें
चैतन्य भारत न्यूज
कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार रवींद्रनाथ टैगोर जी की आज पुण्यतिथि है। रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था। वह अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। बचपन में उन्हें प्यार से ‘रबी’ बुलाया जाता था। रवींद्रनाथ साहित्य को देश से लेकर अंतराराष्ट्रीय स्तर तक नई पहचान दिलाने वाले शख्स हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें-
बिना डिग्री लिए लंदन से वापस आए टैगोर
रवींद्रनाथ टैगोर की स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया। उन्होंने लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए।
8 वर्ष की उम्र में लिखी पहली कविता
रवींद्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कविताएं और कहानियां लिखने का शौक था। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था। वह गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय थे। लंदन से वापस आकर गुरुदेव ने फिर से लिखने का काम शुरू किया। उन्हें 20वीं शताब्दी के शुरुआती भारत के उत्कृष्ट रचनात्मक कलाकार के रूप में भी माना जाता है।
शांतिनिकेतन में प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना
1901 में टैगोर ने पश्चिम बंग��ल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की। जहां उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ को मिलाने का प्रयास किया। वह विद्यालय में ही स्थायी रूप से रहने लगे और 1921 में यह विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया। शांतिनिकेतन में टैगोर ने अपनी कई साहित्यिक कृतियां लिखीं थीं और यहां मौजूद उनका घर ऐतिहासिक महत्व का है।
नोबेल पुरस्कार से हुए सम्मानित
विश्वविख्यात महाकाव्य गीतांजलि की रचना के लिये उन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाले वे अकेले भारतीय हैं। रवींद्रनाथ टैगोर एक ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया। बता दें कि बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रचियता भी टैगोर ही हैं। टैगोर ने राष्ट्रगान 'जन गण मन' को पहले बंगाली भाषा में लिखा। हिंदी भाषा में इसका पहली बार अनुवाद आबिद अली ने 1911 में किया जिसे बाद में 24 जनवरी, 1950 को औपचारिक रूप से भारत का राष्ट्रगान अंगीकृत किया गया।
गांधीजी की दी महात्मा की उपाधि
रवींद्रनाथ टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से ऊंचे स्थान पर रखते थे। गुरुदेव ने कहा था, 'जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।' टैगोर गांधी जी का बहुत सम्मान करते थे। लेकिन वे उनसे राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सांस्कृतिक विचारों की अदला बदली, तर्कशक्ति जैसे विषयों पर अलग राय रखते थे। हर विषय में टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज्यादा हुआ करता था, जिसका संबंध विश्व कल्याण से होता था। टैगोर ने ही गांधीजी को महात्मा की उपाधि दी थी।
राजनीति में भी थे सक्रिय
रवींद्रनाथ टैगोर राजनीति में सक्रिय थे। वह भारतीय राष्ट्रवादियों के पूर्ण समर्थन में थे। इसके अलावा, वह ब्रिटिश शासन के विरोध में थे। उनके काम मैनास्ट में उनके राजनीतिक विचार शामिल हैं। उन्होंने कई देशभक्ति गीत भी लिखे। रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए प्रेरणा बढ़ाई। उन्होंने देशभक्ति के लिए कुछ काम लिखे। इस तरह के कार्यों के लिए जनता के बीच बहुत प्यार था। यहां तक कि महात्मा गांधी ने भी इन कार्यों के लिए अपना पक्ष रखा।
कैंसर से थे पीड़ित
रवींद्रनाथ टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रविंद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी ज्यादातर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। प्रोस्टेट कैंसर के कारण 7 अगस्त, 1941 को टैगोर का निधन हुआ था। टैगोर का लोगों के बीच इतना ज्यादा सम्मान था कि लोग उनकी मौत के बारे में बात नहीं करना चाहते थे।
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जयंती विशेष: 8 साल की उम्र में लिखी पहली कविता, दो देशों को दिए राष्ट्रगान, जानें नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर से जुडी खास बातें
चैतन्य भारत न्यूज
कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार रवींद्रनाथ टैगोर जी की आज जयंती है। रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था। वह अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। बचपन में उन्हें प्यार से ‘रबी’ बुलाया जाता था। रवींद्रनाथ साहित्य को देश से लेकर अंतराराष्ट्रीय स्तर तक नई पहचान दिलाने वाले शख्स हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें-
बिना डिग्री लिए लंदन से वापस आए टैगोर
रवींद्रनाथ टैगोर की स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया। उन्होंने लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए।
8 वर्ष की उम्र में लिखी पहली कविता
रवींद्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कविताएं और कहानियां लिखने का शौक था। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था। वह गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय थे। लंदन से वापस आकर गुरुदेव ने फिर से लिखने का काम शुरू किया। उन्हें 20वीं शताब्दी के शुरुआती भारत के उत्कृष्ट रचनात्मक कलाकार के रूप में भी माना जाता है।
शांतिनिकेतन में प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना
1901 में टैगोर ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की। जहां उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ को मिलाने का प्रयास किया। वह विद्यालय में ही स्थायी रूप से रहने लगे और 1921 में यह विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया। शांतिनिकेतन में टैगोर ने अपनी कई साहित्यिक कृतियां लिखीं थीं और यहां मौजूद उनका घर ऐतिहासिक महत्व का है।
नोबेल पुरस्कार से हुए सम्मानित
विश्वविख्यात महाकाव्य गीतांजलि की रचना के लिये उन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाले वे अकेले भारतीय हैं। रवींद्रनाथ टैगोर एक ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया। बता दें कि बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रचियता भी टैगोर ही हैं। टैगोर ने राष्ट्रगान 'जन गण मन' को पहले बंगाली भाषा में लिखा। हिंदी भाषा में इसका पहली बार अनुवाद आबिद अली ने 1911 में किया जिसे बाद में 24 जनवरी, 1950 को औपचारिक रूप से भारत का राष्ट्रगान अंगीकृत किया गया।
गांधीजी की दी महात्मा की उपाधि
रवींद्रनाथ टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से ऊंचे स्थान पर रखते थे। गुरुदेव ने कहा था, 'जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।' टैगोर गांधी जी का बहुत सम्मान करते थे। लेकिन वे उनसे राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सांस्कृतिक विचारों की अदला बदली, तर्कशक्ति जैसे विषयों पर अलग राय रखते थे। हर विषय में टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज्यादा हुआ करता था, जिसका संबंध विश्व कल्याण से होता था। टैगोर ने ही गांधीजी को महात्मा की उपाधि दी थी।
राजनीति में भी थे सक्रिय
रवींद्रनाथ टैगोर राजनीति में सक्रिय थे। वह भारतीय राष्ट्रवादियों के पूर्ण समर्थन में थे। इसके अलावा, वह ब्रिटिश शासन के विरोध में थे। उनके काम मैनास्ट में उनके राजनीतिक विचार शामिल हैं। उन्होंने कई देशभक्ति गीत भी लिखे। रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए प्रेरणा बढ़ाई। उन्होंने देशभक्ति के लिए कुछ काम लिखे। इस तरह के कार्यों के लिए जनता के बीच बहुत प्यार था। यहां तक कि महात्मा गांधी ने भी इन कार्यों के लिए अपना पक्ष रखा।
कैंसर से थे पीड़ित
रवींद्रनाथ टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रविंद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी ज्यादातर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। प्रोस्टेट कैंसर के कारण 7 अगस्त, 1941 को टैगोर का निधन हुआ था। टैगोर का लोगों के बीच इतना ज्यादा सम्मान था कि लोग उनकी मौत के बारे में बात नहीं करना चाहते थे।
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