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Accounting की परिभाषाएँ
Definitions of Accounting
किसी व्यवसाय के वित्तीय लेनदेन का लेखा-जोखा रखने, उसका सारांश प्रस्तुत करने, रिपोर्टिंग तथा विश्लेषण करने की कला को ही अकाउंटिंग कहा जाता है। अकाउंटिंग का कार्यभार संभालने वाले व्यक्ति को अकाउंटेंट के रूप में जाना जाता है तथा अकाउंटेंट की भूमिका किसी रिकॉर्ड-कीपर के समान ही होती है। हालांकि, अकाउंटिंग को अब प्रबंधन का एक ऐसा उपकरण माना जाता है जो संगठन के भविष्य के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी देता है।
1. 1941 में अमेरिकन इंस्टीट्रयूट आँफ सर्टिफाइड पब्लिक अकाउंटेंट्स (संक्षिप्त में AICPA) ने अकाउंटिंग को निम्नानुसार परिभाषित किया था।
अकाउंटिंग वस्तुतः लेखा,जोखा, वर्गीकरण और संक्षिप्तिकरण कोे महत्वपूर्ण तरीके से तथा धन, लेनदेन एवं ऐसी घटनाओं के मामले में जो कम से कम किसी वित्तीय स्वरूप और तत्संबंधित परिणामों की व्याख्या का ही भाग होती है, को प्रस्तुत किए जाने को कला होती है।
2. 1966 में अमेरिकन अकाउंटिग एसोसिएशन (संक्षिप्त में AAA) ने अकाउंटिंग को निम्नानुसार परिभाषित किया था
अकाउंटिग सूचना को उपयोगकर्ताओं द्वारा निर्णय लेने तथा फैसलों को सूचित करने की अनुमति प्रदान किए जाने हेतु आर्थिक जानकारी की पहचान, मूल्यांकन और संवाद किए जाने की प्रकिया होती है।
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कंप्यूटर क्या हैं ?
What are computers?
Computer एक ऐसा Electronic Device है जो User द्वारा Input किये गए Data में प्रक्रिया करके सूचनाओ को Result के रूप में प्रदान करता हैं, अर्थात् Computer एक Electronic Machine है जो User द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करती हैं|
“कंप्यूटर User द्वारा Input किये गए डाटा को Process करके परिणाम को Output के रूप में प्रदान करता हैं ”
“The Data Input Process by Computer User by Output results are provided as “
Computer शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी के “COMPUTE” शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है “गणना करना” |अत: यह स्पष्ट होता है की Computer का सीधा संबंध गणना करने वाले यंत्र से है वर्तमान में इसका क्षेत्र केवल गणना करने तक सीमित न रहकर अत्यंत व्यापक हो चुका हैं| कम्प्यूटर अपनी उच्च संग्रह क्षमता (High Storage Capacity), गति (Speed), स्वचालन (Automation), क्षमता (Capacity), शुद्धता (Accuracy), सार्वभोमिकता (Versatility), विश्वसनीयता (Realiability), याद रखने की शक्ति के कारण हमारे जीवन के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण होता जा रहा है| Computer द्वारा अधिक सूक्ष्म समय में अधिक तीव्र गति से गणनाएं की जा सकती है कम्प्यूटर द्वारा दिये गये परिणाम अधिक शुद्ध होते है|
आजकल विश्व के हर क्षेत्र में Computer का प्रयोग हो रहा हैं जैसे – अंतरिक्ष, फिल्म निर्माण, यातायात, उद्योग व्यापर, रेलवे स्टेशन, स्कूल, कॉलेज, एरपोर्ट, आदि | Computer द्वारा जहाँ एक तरफ वायुयान, रेल्वे तथा होटलों में सीटों का आरक्षण होता है वही दूसरी तरफ बैंको में Computer की वजह से कामकाज सटीकता तथा तेजी से हो रहा हैं|
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Types of Computer
कंप्यूटर के प्रकार
Computer को तीन आधारों पर वर्गीकृत किया गया हैं|
कार्यप्रणाली के आधार पर (Based on Mechanism)
उद्देश्य के आधार पर (Based on Purpose)
आकार के आधार पर (Based on Size)
Based on Mechanism
कार्यप्रणाली के आधार पर इन्हें तीन भागो Analog, Digital, and Hybrid में वर्गीकृत किया गया हैं|
Analog Computer
Analog Computer वे Computer होते है जो भौतिक मात्राओ, जैसे- दाब (Pressure), तापमान (Tempressure), लम्बाई (Length), ऊचाई (Height) आदि को मापकर उनके परिमाप अंको में व्यक्त करते है ये Computer किसी राशि का परिमाप तुलना के आधार पर करते है जैसे- थर्मामीटर |
Analog Computer मुख्य रूप से विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रयोग किये जाते है क्योकि इन क्षेत्रो में मात्राओ का अधिक उपयोग होता हैं| उदाहरणार्थ, एक पट्रोल पम्प में लगा Analog Computer, पम्प से निकले पट्रोल कि मात्रा को मापता है और लीटर में दिखाता है तथा उसके मूल्य कि गणना करके Screen पर दिखाता हैं|
Digital Computer
Digit का अर्थ होता है अंक | अर्थात Digital Computer वह Computer होता है जो अंको कि गणना करता है Digital Computer वे Computer है जो व्यापार को चलाते है, घर का वजट तैयार करते है औ प्रकार के Computer किसी भी चीज कि गणना करके “How Many” (मात्रा में कितना) के आधार पर प्रश्न का उत्तर देता हैं|
Hybrid Computer
Hybrid Computer का अर्थ है अनेक गुण धर्मो वाला होना | अत: वे Computer जिनमे Analog Computer or Digital Computer दोनों के गुण हो Hybrid Computer कहलाते है जैसे- पेट्रोल पम्प की मशीन भी एक Hybrid Computer हैं|
Based on Purpose
Computer को उद्देश्य के आधार पर दो भागो में Special Purpose और General Purpose के आधार पर वर्गीकृत किया गया हैं|
Special Purpose
Special Purpose Computer ऐसे Computer है जिन्हें किसी विशेष कार्य के लिये तैयार किया जाता है इनके C.P.U. की क्षमता उस कार्य के अनुरूप होती है जिसके लिये इन्हें तैयार किया जाता हैं|जैसे- अन्तरिक्ष विज्ञान, मौसम विज्ञान, उपग्रह संचालन, अनुसंधान एवं शोध, यातायात नियंत्रण, कृषि विज्ञान, चिकित्सा आदि |
General Purpose
General Purpose Computer ऐसे Computer है जिन्हें सामान्य उद्देश्य के लिये तैयार किया गया है इन Computer में अनेक प्रकार के कार्य करने कि क्षमता होती है इनमे उपस्थित C.P.U. की क्षमता तथा कीमत कम होती हैं| इन Computers का प्रयोग सामान्य कार्य हेतु जैसे- पत्र (Letter) तैयार करना, दस्तावेज (Document) तैयार करना, Document को प्रिंट करना आदि के लिए किया जाता हैं|
Based on Size
Computer को आकार के आधार पर हम निम्न श्रेणियों में बाँट सकते है –
Super Computer
ये सबसे अधिक गति वाले Computer व अधिक क्षमता वाले Computer हैं| इनमे एक से अधिक C.P.U. लगाये जा सकते है व एक से अधिक व्यक्ति एक साथ कार्य कर सकते हैं| ये Computer सबसे महँगे होते है व आकार में बहुत बड़े होते हैं|
Mini Computer
Micro Computer से कुछ अधिक गति व मेमोरी वाले Computer Mini Computer कहलाते है इनमे एक से अधिक C.P.U. हो सकते है व ये Micro Computer से महँगे होते हैं|मिनी Computer का उपयोग यातायात में यात्रियों के लिये आरक्षण-प्रणाली का संचालन और बैंको के बैंकिंग कार्यों के लिये होता हैं|
Main Frame Computer
Main Frame Computer, Mini Computer से कुछ अधिक गति व क्षमता वाले Computer Main Frame Computer कहलाते हैं|ये Computer आकार में बहुत बड़े होते है इनमे अत्यधिक मात्रा के Data पर तीव्रता से Process करने कि क्षमता होती है इसीलिए इनका उपयोग बड़ी कंपनियों, बैंको, रेल्वे आरक्षण, सरकारी विभाग द्वारा किया जाता हैं|
Micro Computer
इस Computer को Micro Computer दो कारणों से कहा जाता है पहला इस Computer में Micro Processor का प्रयोग किया जाता है दूसरा यह Computer दूसरे Computer कि अपेक्षा आकार में छोटा होता है Micro Computer आकार में इतना छोटा होता है कि इसको एक Study Table अथवा एक Briefcase में रखा जाता सकता हैं| यह Computer सामान्यतःसभी प्रकार के कार्य कर सकता है इसकी कार्य प्रणाली तो लगभग बड़े कंप्यूटर्स के सामान ही होती है परन्तु इसका आकार उनकी तुलना में कम होता हैं| इस Computer पर सामान्यतः एक ही व्यक्ति कार्य कर सकता हैं|
Desktop Computer
Desktop Computer एक ऐसा Computer है जिसे Desk पर सेट किया जाता है इसमें एक C.P.U., मोनिटर (Monitor), कि-बोर्ड (keyboard), तथा माउस (Mouse) होते हैं| इन्हें हम अलग अलग देख सकते हैं| Desktop Computer की कीमत कम होती है परन्तु इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मुश्किल होता हैं|
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Input Device of Computer
Input Device of Computer
Input Device
Input Device वे Device होते है जिनके द्वारा हम अपने डाटा या निर्देशों को Computer में Input करा सकते हैं| इनपुट डिवाइस कंप्यूटर तथा मानव के मध्य संपर्क की सुविधा प्रदान करते हैं| Computer में कई Input Device होते है ये Devices Computer के मस्तिष्क को निर्देशित करती है की वह क्या करे? Input Device कई रूप में उपलब्ध है तथा सभी के विशिष्ट उद्देश्य है टाइपिंग के लिये हमारे पास Keyboard होते है, जो हमारे निर्देशों को Type करते हैं|
“Input Device वे Device है जो हमारे निर्देशों या आदेशों को Computer के मष्तिष्क, सी.पी.यू. (C.P.U.) तक पहुचाते हैं|”
Input Device कई प्रकार के होते है जो निम्न प्रकार है –
Keyboard
Mouse
Joystick
Trackball
Light pen
Touch screen
Digital Camera
Scanner
Digitizer Tablet
Bar Code Reader
OMR
OCR
IMCR
ATM
Keyboard
की-बोर्ड कंप्यूटर का एक पेरिफेरल है जो आंशिक रूप से टाइपराइटर के की-बोर्ड की भांति होता हैं| की-बोर्ड को टेक्स्ट तथा कैरेक्टर इनपुट करने के लिये डिजाइन किया गया हैं| भौतिक रूप से, कंप्यूटर का की-बोर्ड आयताकार होता हैं| इसमें लगभग 108 Keys होती हैं| की-बोर्ड में कई प्रकार की कुंजियाँ (Keys) होती है जैसे- अक्षर (Alphabet), नंबर (Number), चिन्ह (Symbol), फंक्शन की (Function Key), एर्रो की (Arrow Key) व कुछ विशेष प्रकार की Keys भी होती हैं|
हम की-बोर्ड की संरचना के आधार पर इसकी कुंजियो को छ: भागो में बाँट सकते है-
एल्फानुमेरिक कुंजियाँ (Alphanumeric Keys)
न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keypad)
फंक्शन की (Function Keys)
विशिष्ट उददेशीय कुंजियाँ (Special Purpose Keys)
मॉडिफायर कुंजियाँ (Modifier Keys)
कर्सर कुंजियाँ (Curser Keys)
Alphanumeric Keys
Alphanumeric Keys की-बोर्ड के केन्द्र में स्थित होती हैं| Alphanumeric Keys में Alphabets (A-Z), Number (0-9), Symbol (@, #, $, %, ^, *, &, +, !, = ), होते हैं| इस खंड में अंको, चिन्हों, तथा वर्णमाला के अतिरिक्त चार कुंजियाँ Tab, Caps, Backspace तथा Enter कुछ विशिष्ट कार्यों के लिये होती हैं|
Numeric Keypad
न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keypad) में लगभग 17 कुंजियाँ होती हैं| जिनमे 0-9 तक के अंक, गणितीय ऑपरेटर (Mathematics operators) जैसे- +, -. *, / तथा Enter key होती हैं |
Function Keys
की-बोर्ड के सबसे ऊपर संभवतः ये 12 फंक्शन कुंजियाँ होती हैं| जो F1, F2……..F12 तक होती हैं| ये कुंजियाँ निर्देशों को शॉट-कट के रूप में प्रयोग करने में सहायक होती हैं| इन Keys के कार्य सॉफ्टवेयर के अनुरूप बदलते रहते हैं|
Special Purpose Keys
ये कुंजियाँ कुछ विशेष कार्यों को करने के लिये प्रयोग की जाती है| जैसे- Sleep, Power, Volume, Start, Shortcut, Esc, Tab, Insert, Home, End, Delete, इत्यादि| ये कुंजियाँ नये ऑपरेटिंग सिस्टम के कुछ विशेष कार्यों के अनुरूप होती हैं|
Modifier Keys
इसमें तीन कुंजियाँ होती हैं, जिनके नाम SHIFT, ALT, CTRL हैं| इनको अकेला दबाने पर कोई खास प्रयोग नहीं होता हैं, परन्तु जब अन्य किसी कुंजी के साथ इनका प्रयोग होता हैं तो ये उन कुंजियो के इनपुट को बदल देती हैं| इसलिए ये मॉडिफायर कुंजी कहलाती हैं|
Cursor Keys
ये चार प्रकार की Keys होती हैं UP, DOWN, LEFT तथा RIGHT | इनका प्रयोग कर्सर को स्क्रीन पर मूव कराने के लिए किया जाता है|
Keyboard के प्रकार
साधारण कीबोर्ड (Normal Keyboard)
तार रहित की-बोर्ड (Wireless Keyboard)
अरगानोमिक की-बोर्ड (Ergonomic Keyboard)
साधारण कीबोर्ड
साधारण कीबोर्ड वे कीबोर्ड होते हैं, जो सामान्य रूप से प्रयोग (Use) किये जाते हैं, जिसे User अपने PC में प्रयोग करता हैं | इसका आकार आयताकार होता है, इसमें लगभग 108 Keys होती हैं एवं इसे Computer से Connect करने के लिए एक Cable होती हैं जिसे CPU से जोडा जाता हैं|
तार रहित की-बोर्ड
तार रहित की-बोर्ड (Wireless Keyboard) प्रयोक्ता (User) को की- बोर्ड में तार के प्रयोग से छुटकारा दिलाता है | कुछ कंपनियों ने तार रहित की-बोर्ड का बाजार में प्रवेश कराया है| यह की-बोर्ड सीमित दूरी तक कार्य करता है| यह तार रहित की-बोर्ड थोडा महँगा होता है तथा इसमें थोड़ी तकनीकी जटिलता होती है| इसमें तकनीकी जटिलता होने के कारण इसका प्रचलन बहुत अधिक नहीं हो पाया है|
अरगानोमिक की-बोर्ड
बहुत सारी कंपनियों ने एक खास प्रकार के की-बोर्ड का निर्माण किया है, जो प्रयोक्ता (User) को टाइपिंग करने में दूसरे की-बोर्ड की अपेक्षा आराम देता है| ऐसे की-बोर्ड अरगानोमिक की-बोर्ड (Ergonomic Keyboard) कहलाते है ऐसे की-बोर्ड विशेष तौर पर प्रयोक्ता (User) की कार्य क्षमता बढाने के साथ साथ लगातार टाइपिंग करने के कारण उत्पन्न होने वाले कलाई (Wrist) के दर्द क�� कम करने में सहायता देता है |
Mouse
वर्तमान समय में माउस सर्वाधिक प्रचलित Pointer Device है, जिसका प्रयोग चित्र या ग्राफिक्स (Graphics) बनाने के साथ साथ किसी बटन (Button) या मेन्यू (Menu) पर क्लिक करने के लिये किया जाता है | इसकी सहायता से हम की-बोर्ड का प्रयोग किये बिना अपने पी.सी. को नियंत्रित कर सकता है |
माउस में दो या तीन बटन होते है जिनकी सहायता से कंप्यूटर को निर्देश दिये जाते है| माउस को हिलाने पर स्क्रीन पर Pointer Move करता है| माउस के नीचे की ओर रबर की गेंद (Boll) होती है| समतल सतह पर माउस को हिलाने पर यह गेंद घुमती है|
माउस के कार्य
क्लिकिंग (Clicking)
डबल क्लिकिंग (Double Clicking)
दायाँ क्लिकिंग (Right Clicking)
ड्रैगिंग (Dragging)
स्क्रोलिंग (Scrolling)
माउस के प्रकार
माउस प्रायः तीन प्रकार के होते है |
मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse)
प्रकाशीय माउस (Optical Mouse)
तार रहित माउस (Cordless Mouse)
Mechanical Mouse
मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse) वे माउस होते है| जिनके निचले भाग में एक रबर की गेंद लगी होती है जब माउस को सतह पर घुमाते है तो वह उस खोल के अंदर घुमती है माउस के अंदर गेंद के घूमने से उसके अंदर के सेन्सर्स (Censors) कंप्यूटर को संकेत (Signal) देते है|
Optical Mouse
प्रकाशीय माउस (Optical Mouse) एक नये प्रकार का नॉन मैकेनिकल (non-mechanical) माउस है | इसमें प्रकाश की एक पुंज (किरण) इसके नीचे की सतह से उत्सर्जित होती है जिसके परिवर्तन के आधार पर यह ऑब्जेक्ट (Object) की दूरी, तथा गति तय करता है |
Cordless Mouse
तार रहित माउस (Cordless Mouse) वे माउस है जो आपको तार के झंझट से मुक्ति देता है| यह रेडियो फ्रीक्वेंसी (Radio frequency) तकनीक की सहायता से आपके कंप्यूटर को सूचना कम्युनिकेट (Communicate) करता हैं| इसमें दो मुख्य कम्पोनेंट्स ट्रांसमीटर तथा रिसीवर होते है ट्रांसमीटर माउस में होता है जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक (Electromagnetic) सिग्नल (Signal) के रूप में माउस की गति तथा इसके क्लिक किये जाने की सूचना भेजता है रिसीवर जो आपके कंप्यूटर से जुड़ा होता है उस सिग्नल को प्राप्त करता है |
Joystick
यह डिवाइस (Device) वीडियो गेम्स खेलने के काम आने वाला इनपुट डिवाइस (Input Device) है इसका प्रयोग बच्चो द्वारा प्रायः कंप्यूटर पर खेल खेलने के लिये किया जाता है| क्योकि यह बच्चो को कंप्यूटर सिखाने का आसान तरीका है| वैसे तो कंप्यूटर के सारे खेल की-बोर्ड द्वारा खेले जा सकते है परन्तु कुछ खेल तेज गति से खेले जाते है उन खेलो में बच्चे अपने आप को सुबिधाजनक महसूस नहीं करते है इसलिए जॉयस्टिक का प्रयोग किया जाता है |
Trackball
ट्रैक बोंल एक Pointing input Device है| जो म���उस (Mouse) की तरह ही कार्य करती है | इसमें एक उभरी हुई गेंद होती है तथा कुछ बटन होते है| सामान्यतः पकड़ते समय गेंद पर आपका अंगूठा होता है तथा आपकी उंगलियों उसके बटन पर होती है| स्क्रीन पर पॉइंटर (Pointer) को घुमाने के लिये अंगूठा से उस गेंद को घुमाते है ट्रैकबोंल (Trackball) को माउस की तरह घुमाने की आवश्यकता नहीं होती इसलिये यह अपेक्षाकृत कम जगह घेरता है | इसका प्रयोग Laptop, Mobile तथा Remold में किया जाता हैं |
Light Pen
लाइट पेन (Light Pen) का प्रयोग कंप्यूटर स्क्रीन पर कोई चित्र या ग्राफिक्स बनाने में किया जाता है लाइट पेन में एक प्रकाश संवेदनशील कलम की तरह एक युक्ति होती है| अतः लाइट पेन का प्रयोग ऑब्जेक्ट के चयन के लिये होता है| लाइट पेन की सहायता से बनाया गया कोई भी ग्राफिक्स कंप्यूटर पर संग्रहित किया जा सकता है तथा आवश्यकतानुसार इसमें सुधार किया जा सकता है |
Touch Screen
टच स्क्रीन (Touch Screen) एक Input Device है| इसमें एक प्रकार की Display होती है| जिसकी सहायता से User किसी Pointing Device की वजह अपनी अंगुलियों को स्थित कर स्क्रीन पर मेन्यू या किसी ऑब्जेक्ट का चयन करता है| किसी User को कंप्यूटर की बहुत अधिक जानकारी न हो तो भी इसे सरलता से प्रयोग किया जा सकता है | टच स्क्रीन (Touch Screen) का प्रयोग आजकल रेलवेस्टेशन, एअरपोर्ट, अस्पताल, शोपिंग मॉल, ए.टी.ऍम. इत्यादि में होने लगा है |
Bar code reader
बार-कोड रीडर (Bar code reader) का प्रयोग Product के ऊपर छपे हुए बार कोड को पढ़ने के लिये किया जाता है किसी Product के ऊपर जो Bar Code बार-कोड रीडर (Bar code reader) के द्वारा उत्पाद की कीमत तथा उससे सम्बंधित दूसरी सूचनाओ को प्राप्त किया जा सकता हैं|
Scanner
स्केनर (Scanner) एक Input Device है ये कंप्यूटर में किसी Page पर बनी आकृति या लिखित सूचना को सीधे Computer में Input करता है इसका मुख्य लाभ यह है कि User को सूचना टाइप नहीं करनी पड़ती हैं|
OMR
ओ.एम.आर. (OMR) या ऑप्टिकल मार्क रीडर (Optical Mark Reader) एक ऐसा डिवाइस है जो किसी कागज पर पेन्सिल या पेन के चिन्ह की उपस्थिति और अनुपस्थिति को जांचता है इसमें चिन्हित कागज पर प्रकाश डाला जाता है और परावर्तित प्रकाश को जांचा जाता है| जहाँ चिन्ह उपस्थित होगा कागज के उस भाग से परावर्तित प्रकाश की तीव्रता कम होगी | ओ.एम.आर. (OMR) किसी परीक्षा की उत्तरपुस्तिका को जाँचने के लिये प्रयोग की जाती है| इन परीक्षाओं के प्रश्नपत्र में वैकल्पिक प्रश्न होते हैं |
OCR
ऑप्टिकल कैरेक्टर रेकोग्निशन (Optical Character Recognition) अथवा ओ.सी.आर.(OCR) एक ऐसी तकनीक है | जिसका प्रयोग किसी विशेष प्रकार के चिन्ह, अक्षर, या नंबर को पढ़ने के लिये किया जाता है इन कैरेक्टर को प्रकाश स्त्रोत के द्वारा पढ़ा जा सकता हैं| ओ.सी.आर (OCR) उपकरण टाइपराइटर से छपे हुए कैरेक्टर्स, कैश रजिस्टर के कैरक्टर और क्रेडिट कार्ड के कैरेक्टर को पढ़ लेता हैं| ओ.सी.आर (OCR) के फॉण्ट कंप्यूटर में ��ंग्रहित रहते है | जिन्हें ओ.सी.आर. (OCR) स्टैंडर्ड कहते हैं|
ATM
स्वचालित मुद्रा यंत्र या ए.टी.एम. (Automatic Teller Machine) ऐसा यंत्र है जो हमे प्रायः बैंक में, शॉपिंग मौल में, रेलवे स्टेशन पर, हवाई अड्डों पर, बस स्टैंड पर, तथा अन्य महत्वपूर्ण बाजारों तथा सार्वजनिक स्थानों पर मिल जाता हैं| ए.टी.एम. की सहायता से आप पैसे जमा भी कर सकते है, निकाल भी सकते है, और बैलेंस भी चेक कर सकते है| ए.टी.एम. की सुबिधा 24 घंटे उपलब्ध रहती है|
MICR
मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकोग्निशन (Magnetic Ink Character Recognition) व्यापक रूप से बैंकिंग में प्रयोग होता है, जहाँ लोगो को चेकों की बड़ी संख्या के साथ काम करना होता हैं| इसे संक्षेप में एम.आई.सी.आर.(MICR) कहाँ जाता हैं| एम.आई.सी.आर (MICR) का प्रयोग चुम्बकीय स्याही (Megnatic Ink) से छपे कैरेक्टर को पढ़ने के लिये किया जाता हैं| यह मशीन तेज व स्वचलित होतीहैं साथ ही इसमें गलतियां होने के अवसर बिल्कुल न के बराबर होते हैं|
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Output Device of Computer
Output Device of Computer
Output Device
आउटपुट डिवाइस (Output Device) हार्डवेयर (Hardware) का एक अवयव अथवा कंप्यूटर का मुख्य भौतिक भाग है जिसे छुआ जा सकता है, यह सूचना के किसी भी भाग तथा सूचना के किसी भी प्रकार जैसे ध्वनि (Sound), डाटा (Data), मेमोरी (Memory), आकृतियाँ (Layout) इत्यादि को प्रदर्शित कर सकता हैं आउटपुट डिवाइसो (Output Devices) में सामान्यतः मोनिटर (Monitor) प्रिंटर(Printer) इयरफोन(Earphone) तथा प्रोजेक्टर(Projector) सम्मिलित है
“वे उपकरण जिनके द्वारा कंप्यूटर से प्राप्त परिणामों को प्राप्त किया जाता है आउटपुट डिवाइसेज कहलाते हैं ”
आउटपुट डिवाइस कई प्रकार के होते है |
मॉनीटर (Monitor)
प्रिंटर (Printer)
प्लोटर (Plotter)
प्रोजेक्टर (Projector)
साउंड कार्ड (Sound Card)
इअर फोन (Ear phone)
Monitor
मॉनीटर(Monitor) एक ऐसा आउटपुट संयंत्र (Output Device) है जो टी.वी. जैसे स्क्रीन पर आउटपुट को प्रदर्शित करता है इसे विजुअल डिस्प्ले यूनिट (Visual Display Unit) भी कहते है मॉनीटर (Monitor) को सामान्यतः उनके द्वारा प्रदर्शित रंगों के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
Monochrome
यह शब्द दो शब्दों मोनो (Mono) अर्थात एकल (Single) तथा क्रोम (Chrome) अर्थात रंग (Color) से मिलकर बना है इसलिये इसे Single Color Display कहते हैतथा यह मॉनीटर आउटपुट को Black & White रूप में प्रदर्शित (Display) करता है|
Gray-Scale
यह मॉनीटर मोनोक्रोम जैसे ही होते हैं लेकिन यह किसी भी तरह के Display को ग्रे शेडस (Gray Shades) में प्रदर्शित (Show) करता हैं इस प्रकार के मॉनीटर अधिकतर हैंडी कंप्यूटर जैसे लैप टॉप (Laptop) में प्रयोग किये जाते हैं
Color Monitors
ऐसा मॉनीटर RGB (Red-Green-Blue) विकिरणों के समायोजन के रूप में आउटपुट को प्रदर्शित करता है सिद्धांत के कारण ऐसे मॉनीटर उच्च रेजोलुशन (Resolution) में ग्राफिक्स (Graphics) को प्रदर्शित करने में सक्षम होते हैं कंप्यूटर मेमोरी की क्षमतानुसार ऐसे मॉनीटर 16 से लेकर 16 लाख तक के रंगों में आउटपुट प्रदर्शित करने की क्षमता रखते हैं|
Printer
प्रिंटर एक ऑनलाइन आउटपुट डिवाइस (Online Output Device) है जो कंप्यूटर से प्राप्त जानकारी को कागज पर छापता है कागज पर आउटपुट (Output) की यह प्रतिलिपि हार्ड कॉपी (Hard Copy) कहलाती है कंप्यूटर से जानकारी का आउटपुट (Output) बहुत तेजी से मिलता है और प्रिंटर (Printer) इतनी तेजी से कार्य नहीं कर पाता इसलिये यह आवश्यकता महसूस की गयी कि जानकारियों को प्रिंटर (Printer) में ही स्टोर (Store) किया जा सके इसलिये प्रिंटर (Printer) में भी एक मेमोरी (Memory) होती है जहाँ से यह परिणामों को धीरे-धीरे प्रिंट करता हैं
“��्रिंटर (Printer) एक ऐसा आउटपुट डिवाइस (Output Device) है जो सॉफ्ट कॉपी (Soft Copy) को हार्ड कॉपी (Hard Copy) में परिवर्तित (Convert) करता हैं”
Plotter
Plotter एक आउटपुट डिवाइस हैं इससे चित्र (Drawing), चार्ट (Chart), ग्राफ (Graph) आदि को प्रिंट किया जा सकता हैं यह 3 D Printing भी कर सकते हैं इसके द्वारा बैनर पोस्टर आदि को प्रिंट किया जा सकता हैं
“Plotter एक ऐसा आउटपुट डिवाइस हैं जो चार्ट (chart), ग्राफ (Graph), चित्र (Drawing), रेखाचित्र (Map) आदि को हार्ड कॉपी पर प्रिंट करता हैं ”
यह दो प्रकार के होते हैं
Drum pen Plotter
Flat bed Plotter
Sound Card & Speaker
साउंड कार्ड एक विस्तारक (Expansion) बोर्ड होता है जिसका प्रयोग साउंड को सम्पादित (Transacted) करने तथा Output देने के लिए किया जाता है कंप्यूटर में गाने सुनने फिल्म देखने या गेम खेलने के लिए इसका प्रयोग किया जाना आवश्यक होता है आजकल यह Sound Card मदर बोर्ड में पूर्व निर्मित (in built) होता हैं साउंड कार्ड तथा स्पीकर एक दूसरे के पूरक होते हैं साउंड कार्ड की सहायता से ही स्पीकर ध्वनि उत्पन्न करता हैं प्राय: सभी साउंड कार्ड MIDI (Musical Instrument Digital Interface) Support करते हैं मीडी संगीत को इलेक्ट्रोनिक रूप में व्यक्त करने का एक मानक हैं साउंड कार्ड दो तरीको से डिजिटल डाटा को एनालॉग सिग्नल में बदलता हैं|
Projector
प्रोजेक्टर भी एक आउटपुट डिवाइस हैं प्रोजेक्टर का प्रयोग चित्र या वीडियो को एक प्रोजेक्शन स्क्रीन पर प्रदर्शित करके श्रोताओ को दिखाने के लिए किया जाता हैं|
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History of Virus
History of Virus
वायरस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कैलिफोर्निया विश्वविधालय के एक विधार्थी फ्रेड कोहेन (Fred Cohen) ने अपने शोध पत्र में किया था | उस विधार्थी ने अपने शोधपत्र में यह दर्शाया था की कैसे कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखा जाये जो कम्प्यूटर में घुसकर उस की प्रणाली पर आक्रमण करे, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार वायरस हमारे शारीर में घुसकर इसे सक्रमित करता है| सर्वप्रथम कम्प्यूटर वायरस को ढूँढना अत्यंत ही कठिन था| इसके बारे में लोगो को 1980 के दशक तक पता नही था तथा लोग इस बात को भी अस्वीकार करते थे कि इस तरह का कोई प्रोग्राम होता है जो कम्प्यूटर को बाधा पहूँचा सकता हैं |
आधुनिक वायरस में C Brain नाम का पहला वायरस माना जाता है जो पूरे विश्व में बड़े स्तर पर फैला था | इस वायरस को एक समाचार का रूप मिला था क्योकि इस वायरस में वायरस बनाने वाले का नाम, पता तथा इसका विशेषाधिकार वर्ष (1986) मौजूद था | उस प्रोग्राम में दो पाकिस्तानी भाइयो बासित तथा अमजद का नाम उनके कम्पनी का नाम तथा पूर्ण पता उपलब्ध था| उस समय वायरस बिल्कुल नया था अत: लोगो ने इसके बारे में बहुत गंभीरता से नही सोचा |
सन 1988 के प्रारम्भ में मैकिन्टोश शांति वायरस उभरा | यह वायरस एक पत्रिका मैकमैग (MacMag) के प्रकाशक रिचर्ड ब्रेनड्रा (Richard Brando) की ओर से था | इस वायरस को मैकिन्टोश आपरेटिंग सिस्टम को बाधित करने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया था तथा 2 मार्च 1988 को निम्नलिखित सन्देश स्क्रीन पर आया –
“रिचर्ड ब्रेनडा, मैकमैग के प्रकाशक तथा इसके कर्मचारी दुनिया के लिए समस्त मैकिन्टोश प्रयोक्ताओ को विश्व शांति का सन्देश देना चाहते है|”
वायरस दिन प्रतिदिन समय के अनुसार आते गए तथा इससे बचने के लिए प्रयोक्ता ने इस समस्या का हल भी ढूँढना शुरू किया और तब वायरस विरोधी सॉफ्टवेयर का अविष्कार हुआ जो आज अपने आप में एक सम्पूर्ण उधोग है | परन्तु जैसे जैसे वायरस विरोधी सॉफ्टवेयर बनते गए, उसी गति से नये-नये वायरस भी बनाये जाने लगे | जब वायरस विरोधी सॉफ्टवेयर उधोग ने समझ लिया की अब उन्होंने इस पर नियंत्रण कर लिया है तभी मैक्रो वायरस का उदय हुआ | सामान्य वायरस क्रियान्वित योग्य फ़ाइलो तथा सिस्टम क्षेत्र को संक्रमित करते थे जबकि मैक्रो वायरस ने मइक्रो साफ्टवेयर वर्ड के फ़ाइलो को संक्रमिक करना शुरू किया |
इसके बाद कई वायरस का निमार्ण किया गया । जो अलग अलग प्रकार से कार्य करते है।
लक्षण :-
कम्पुटर में उपयोगी सूचनाये नष्ट होना |
डायरेक्ट्री में बदलाव करना |
हार्ड डिस्क व फ्लापी डिस्क को फार्मेट करना |
कम्प्यूटर की गति को कम करना |
की-बोर्ड की कुंजियो का कार्य बदल देना |
प्रोग्राम तथा अन्य फइलो का डाटा बदल देना |
फइलो को क्रियान्वित होने से रोक देना |
स्क्रीन पर बेकार की सूचना देना |
बूट सेक्टर में प्रविष्ट होकर कम्प्यूटर को कार्य न करने देना |
फइलो के आकार को परिवर्तित कर देना |
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Computer Antivirus Program
Computer Antivirus Program
हमारे कंप्यूटर में वायरस को खोजकर उसे नष्ट करने के लिए बनाये गए प्रोग्राम का एंटीवायरस (ANTI VIRUS) है। एंटी वायरस एक प्रोग्राम है जो की हमारे कंप्यूटर में वायरस को खोजता है और उन्हें नष्ट करता है। कंप्यूटर के लिए एंटी वायरस बहुत जरुरी होता है। एंटीवायरस किसी वायरस के सक्रीय होने पर आपको सूचित करता है। एंटी वायरस के द्वारा समय समय पर कंप्यूटर को स्कैन भी किया जा सकता है। आज के समय में कई एंटीवायरस बाजार में और इंटरनेट पर उपलब्ध है। कुछ मुख्य एंटीवायरस इस प्रकार हैं-नॉर्टन (NORTAN) , अवीरा (AVIRA), मकैफ़ी (Mcafee) , अवास्ट (AVAST) आदि।
इनका ऑटो प्रोडक्ट इस्तेमाल से पहले प्रोग्राम और ईमेल का जाँच करके उसे वायरस मुक्त बनाता है। यदि आपके कंप्यूटर में कोई वायरस सक्रीय हो रहा है या हो गया है तो आपको ये सूचित करता है। अब बात आती है की एंटीवायरस के प्रयोग द्वारा कंप्यूटर को कैसे सुरक्षित रखा जाय-
1. अपने कंप्यूटर को वायरस मुक्त रखने के लिए समय समय पर एंटी वायरस द्वारा स्कैन किया जाना चाहिए।
2. जब भी आप अपने कंप्यूटर में अलग से मेमोरी लगाएं तो उसे एंटीवायरस द्वारा जरूर स्कैन करें।
3.कंप्यूटर में सीडी लगाते समय ये देख ले की सीडी पर कोई स्क्रेच तो नहीं है। सीडी लगाने के बाद उसे स्कैन जरूर करें।
4.अगर आपको एंटीवायरस द्वारा स्कैन करने पर कोई वायरस मिलता है तो उसे नस्ट कर दे।
5. गेम को कंप्यूटर में रन करने से पहले स्कैन जरूर कर लें।
6. आप कभी भी फ्री एंटीवायरस का प्रयोग अपने कंप्यूटर में न करें। कुछ एंटीवायरस आपको फ्री ट्रॉयल देती है कुछ समय यूज़ करने के लिए आप उसका प्रयोग करके देख सकते हैं की आपके कंप्यूटर में कौन सा एंटीवायरस सही काम कर रहा है।
7. जो एंटीवायरस आपके कंप्यूटर में सही काम करे उसे ही अपने कंप्यूटर में रखें।
8. एंटीवायरस को समय-समय पर अपडेट जरूर करें।
9. आप अपने कंप्यूटर के लिए अच्छा एंटीवायरस ही खरीदें मुफ़्त एंटीवायरस पर ध्यान न दे।
10.एक बार में एक ही एंटीवायरस रखेँ अपने कंप्यूटर पर इससे आपके कंप्यूटर की स्पीड अच्छी रहेगी।
वायरस को खोजने तथा उन्हें समाप्त करने के लिए कई उपाय (Tools) है जिनके विवरण निम्नलिखित है–
प्रिवेंटर तथा चेक समर (Preventers And Check Summers):- प्रिवेंटर एंटी वायरस यधपि निरोधक प्रोग्रामो के लाभ बहुत है, प��न्तु यह अपने लिए मेमोरी में स्थान घेरते है तथा कम्प्यूटर सिस्टम की गति को भी कम करते है तथा नये वायरसों को पकड़ पाने में भी बहुत अधिक सक्षम नही होते | किन्तु, इस प्रकार की निति कम समय के उपचार के लिए तथा द्रढ़ वायरस संक्रमण से छुटकारा पाने के लिए उपयोगी है | अधिकतर एंटी-वायरस पैकेज नि��ोधक प्रोग्राम के साथ आते है जो सिस्टम को वायरस संक्रमित होने से पहले वायरस को ढूढ़ने में सहायक होते है |चेक समर (Check Summers) का प्रयोग क्रियान्वित योग्य फ़ाइलो के सामग्री में वृद्धी की सुचना देते है | जब कोई वायरस कम्प्यूटर के अन्दर प्रवेश करता है तो वह आवश्यक रूप से क्रियान्वयन फ़ाइलो (Executable files) में बदलाव लता है | इस अवस्था में चेक समर पत्येक क्रियान्वयन योग्य फ़ाइलो से जुडी हुई चेक सम (Check Sum) अथवा सायकालिक रिडन्नसी चेक (Cyclic Redundancy Check) से सम्बंधित सुचना को रखता है तथा कोई भी बदलाव होने पर प्रयोक्ता को सूचित करता है| चेक समर प्रयोक्ता को केवल बदलाव के संबंधन में सूचित कर सकता है परन्तु यह किसी भी प्रकार के वायरस संक्रमण से कम्प्यूटर की सुरक्षानही कर सकता | गुप्त वायरस (Stealth Viruses) के प्रवेश को चेक समर जानने में सक्षम नही होते है | अधिकतर निरोधक प्रोग्राम में चेक समर की सुविधा होती है |
Scanners:- स्कैनर प्रोग्राम मेमोरी में तथा प्रोग्राम फाइलों में उपस्थित वायरस के बारे में प्रयोक्ता (User) को बताते है तथा यह भी निश्चित करते है कि कप्यूटर संक्रमित है अथवा नही | अधिकतर स्कैनर मेमोरी तथा फाइल दोनों की जाँच करते है | स्कैनर केवल संक्रमण (Virus) की सुचना देते है, वह संक्रमण (Virus) को समाप्त नही कर सकते |
Removers:- जब कोई कम्प्यूटर वायरस से ग्रस्त हो जाता है तो इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ विशेष कम्पुटर प्रोग्राम होते है जो पहले पूरे सिस्टम (system) में वायरस की जाँच करते है तथा बाद में वायरस को समाप्त कर इसे ठीक करते है | इस प्रकार के प्रोग्राम को वायरस विरोधी प्रोग्राम (Anti Virus Program) कहते है|
NORTAN Anti virus:- NORTAN Anti Virus सबसे शक्तिशाली एंटीवायरस है जिसके द्वारा Virus को पकड़ा जा सकता है यह ई-मेल के द्वारा आये हुए वायरसो को भी आसानी से पकड़ सकता हैं | NORTAN Anti Virus का प्रमुख कार्य वायरस को पकड़ कर उसे हार्डडिस्क या फ्लॉपी डिस्क से हटाना है| यह एक ऐसा एंटीवायरस है जो न केवल Virus को हटाता है बल्कि बाद में आने वाले Virus को भी आने से रोकता है |
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Computer Hardware और उसके तत्व
Computer Hardware and its components
हार्डवेयर क्या हैं?
कम्प्यूटर के अन्दर एक प्रोसेसर होता हैं जिससे बाकी डिवाइसेज (devices) जुड़े होते हैं। इन सभी डिवाइस को और स्वयं कम्प्यूटर को हार्डवेयर कहा जाता हैं इस तरह कम्प्यूटर से जुड़ी सभी इनपुट, आउटपुट डिवाइसेज या अन्य भागों को हार्डवेयर कहा जाता हैं। कम्प्यूटर हार्डवेयर के कुछ भाग कम्प्यूटर चलाये जाने के लिए आवश्यक होते हैं जैसेकि ‘की-बोर्ड’, मॉनिटर, माउस, फ्लॉपी डिस्क या हार्ड डिस्क ड्राइव। इन्हें कम्प्यूटर की मानक युक्तियां कहते हैं।
इन डिवाइस के अलावा जो भाग सीधे कम्प्यूटर से जोड़े जाएं उन्हें Peripheral devices कहते हैं, जैसे – टेप, टेप ड्राइव, प्रिन्टर, प्लाटर, जॉयस्टिक, माउस, लाइट पेन, ग्राफिक टेबलेट, कैसेट, कैसेट-प्लेयर, मोडेम, टर्मिनल आदि।
Hardware Components
वर्तमान समय में इस्तेमाल होने वाले पर्सनल कम्प्यूटर में साधारण और जटिल दोनों तरह के कंपोनेंट होते हैं। साधारण इन्हें इस तरह से कहा जा सकता हैं कि कई दशकों के विकास की वजह से बहुत से कंपोनेंट मिलकर एक इंटीग्रेटेड का निर्माण करते हैं जिसकी वजह से कम्प्यूटर के एक पार्ट का निर्माण होता हैं। इसे जटिल इस तरह से कहा जाता हैं कि मॉडेम सिस्टम के अंतर्गत ऐसे बहुत से फंक्शन जुड़ते जा रहे हैं जो कि पुराने सिस्टम में नहीं थे। वर्तमान समय में एक पर्सनल कम्प्यूटर को एसेंबल करने जिन कंपोनेंट की जरूरत होती हैं वह निम्न हैं-
मदरबोर्ड :- कम्प्यूटर का सबसे ज्यादा सर्किट इसी कंपोनेंट में होता हैं। इसमें ही रैम से लेकर हार्ड डिस्क जैसे सभी भाग जोड़े जाते हैं।
प्रोसेसर :- प्रोसेसिंग के सभी कार्य प्रोसेसर के द्वारा ��ी सम्पन्न होते हैं। हम पेंटियम शब्द को अक्सर सुनते हैं वह वास्तव में एक प्रोसेसर का ही नाम हैं। इसे मदरबोर्ड मे लगाया जाता हैं।
रैम (रैंडम एक्सेस मेमोरी) :- इसे हम कम्प्यूटर का दिमाग कह सकते हैं। इसे मदरबोर्ड में बनी मेमोरी स्लॉट में लगाया जाता हैं। इस समय कई तरह की रैम प्रयोग होती हैं। लेकिन सबकी सामान्य रूपरेखा एक जैसी ही हैं।
कैबिनेट :- कैबिनेट में ही मदरबोर्ड, हार्डडिस्क, फ्लॉपी डिस्क, सीडी रोम इत्यादि को असेम्बल किया जाता हैं। पॉवर सप्लाई भी मदबोर्ड के द्वारा ही होती हैं।
पॉवर सप्लाई :- यह कम्पोनेंट कैबिनेट में जुड़ा होता हैं। इसके द्वारा समूचे कम्प्यूटर में विद्युत आपूर्ति होती हैं। इसकी क्षमता 200 वाट से लेकर 250 वाट तक हो सकती हैं।
फ्लॉपी डिस्क ड्राइव :- इसके जरिए आप फ्लॉपी में स्टोर डेटा कम्प्यूटर में इनपुट कर सकते हैं और कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क में स्टोर डेटा फ्लॉपी में कॉपी कर सकते हैं। प्रारंभ में 8 inch आकार की फ्लॉपी डिस्क ड्राइव का इस्तेमाल होता था।
इसके बाद यह आकार कम होकर 5.2 हो गया और इसके बाद 3.5 की फ्लॉपी डिस्क ड्राइव का इस्तेमाल होने लगा | इसकी डेटा स्टोर करने की क्षमता 1.4 मेगाबाइट से लेकर 2.88 मेगाबाइट तक हो सकती हैं।
हार्ड डिस्क :- इसका इस्तेमाल कम्प्यूटर में सेकेंड्री मेमोरी के तौर पर होता हैं और यह कम्प्यूटर का सबसे भरोसेमंद स्टोरेज माध्यम हैं। वर्तमान समय में इसकी क्षमता गेगाबाइट से भी आगे निकल गई हैं।
तकनीक की वजह से इसका आकार कम होता जा रहा हैं और डेटा स्टोर करने की क्षमता बढ़ती जा रही हैं। इसे कम्प्यूटर के मदरबोर्ड में लगी आईडीई या स्कैजी पोर्ट से जोड़ते हैं।
सीडी ड्राइव :- सीडी ड्राइव का इस्तेमाल मल्टीमीडिया कम्���्यूटर की वजह से चलन में आया था। लेकिन आज इसका इस्तेमाल डेटा का बैकअप लेने के लिए मुख्य डिवाइस के रूप में किया जा रहा हैं। पहले इसे सीडी-रोम कहते हैं जिसका मतलब होता था रीड ओनली मेमोरी। इस तकनीक के तहत यह ड्राइव केवल सीडी में लिखें डेटा को पढ़ सकती थी। लेकिन आजकल यह तकनीक बदलकर आरडब्ल्यू हो गई हैं। जिसका अर्थ होता हैं रीड और राइट।
अब आप इसमें फ्लॉपी डिस्क की तरह से सीडी में डेटा स्टोर भी कर सकते हैं, और पहले से स्टोर भी कर सकते हैं, और पहले से स्टोर डेटा को पढ़ भी सकते हैं। इस समय 52X तक की सीडी ड्राइव को इस्तेमाल किया जाता हैं।
डीवीडी ड्राइव :- यह सीडी ड्राइव को एडवांस संस्करण हैं। इसका पूरा नाम होता हैं डिजिटल वर्शेटाइल डिस्क। इसका आकार सीडी जितना ही होता हैं लेकिन इसकी क्षमता कई सीडी के बराबर होती हैं। यह सीडी से कीमत में ज्यादा होती हैं। आजकल सीडी ड्राइव की जगह लोग इसे भी इस्तेमाल करते हैं। देखने में यह बिलकुल सीडी ड्राइव की तरह से होती हैं।
की-बोर्ड :- यह प्राइमरी इनपुट डिवाइस हैं। इसके द्वारा आप अंको और अक्षरों के रूप में कम्प्यूटर में डेटा इनपुट कर सकते हैं। इस समय 104 Keys वाले मल्टीमीडिया की-बोर्ड का प्रयोग किया जा रहा हैं। इसे कम्प्यूटर में लगे मदरबोर्ड से जोड़ते हैं।
माउस :- यह आजकल इस्तेमाल होने वाले कम्प्यूटरों की मुख्य प्वांइंटिंग डिवाइस हैं। इसके द्वारा ग्राफिक यूजर इंटरफेस वाले ऑपरेटिंग सिस्टम में निर्देश देने का काम किया जाता हैं। इसके अतिरिक्त डिजाइनिंग वाले प्रोग्रामों में आकृतियों का निर्माण भी किया जाता हैं।
इस समय दो तरह के माउस इस्तेमाल किए जा रहे हैं। माउस में नीचे की और एक छोटी सी बॉल लगी रहती हैं जो घूमती हैं जिससे प्वाइंटर स्क्रीन पर मूव होता हैं। जबकि दूसरे में ऑप्टिकल तकनीक का इस्तेमाल होता हैं। इसमें प्रकाश के रिप्लेक्शन से माउस प्वांइटर मूव होता हैं।
वीडियो कार्ड :- इस कार्ड के जरिए ही हम मॉनीटर को कम्प्यूटर से जोड़ते हैं। मॉनीटर पर हमें जो भी दिखाई देता हैं उसका कारण विडियो कार्ड हैं। इस समय AGP वीडियो कार्ड प्रयोग किए जा रहे हैं। कई मदरबोर्ड में यह पहले से ही इनबिल्ट होते हैं।
मॉनीटर :- यह कम्प्यूटर की मुख्य आउटपुट डिवाइस हैं। वर्तमान समय में Color VGA मॉनीटरों का प्रयोग हो रहा हैं। लेकिन LCD तकनीक के सस्ते होने की वजह से अब इनका चलन भी बढ़ रहा हैं। सामान्य मॉनीटरों में कांच से बनी CRT का प्रयोग होता हैं। जिसका पूरा नाम हैं कैथोड रे ट्यूब। जिसकी वजह से मॉनीटर का आकार, मोटाई बहुत ज्यादा होती हैं। जबकि LCD तकनीक में Liquid crystal display होता हैं जिसकी वजह से इसकी मोटाई एक इंच से भी कम होती हैं।
साउंड कार्ड :- इस कार्ड की वजह से आप स्पीकर और माइक को कम्प्यूटर के साथ इस्तेमाल कर पाते हैं। यह मल्टीमीडिया उपकरण हैं, बहुत से मदरबोर्ड में साउंड कार्ड का सर्किट इनबिल्ट होता हैं जबकि ज्यादातर यह एक कार्ड के रूप में होता हैं।
स्पीकर :- कम्प्यूटर में आवाज के रूप में आउटपुट स्पीकरों के द्वारा ही सुनाई देता हैं। इसे कम्प्यूटरों में लगे साउंड कार्ड से जोड़ा जाता हैं।
माइक :- इस उपकरण का इस्तेमाल कम्प्यूटर में आवाज को इनपुट करने के लिए किया जाता हैं। इसे साउटं कार्ड से बने माइक के स्थान पर जोड़ते हैं।
मॉडेम :- इंटरनेट से जोड़ने में इसकी भूमिका सबसे अहम हैं। आजकल दो तरह के मॉडेम इस्तेमाल होते हैं इनमे एक को इंटर्नल मॉडेम और दूसरे को एक्सटर्नल मॉडेम कहते हैं।
इंटर्नल मॉडेम कम्प्यूटर के अंदर होता हैं जबकि एक्सटर्नल मॉडेम को बाहर रखकर कम्प्यूटर के सीरियल या यूएसबी पोर्ट से जोड़ते हैं। केबल हो या टेलीफोन लाइन सबका कनेक्शन मॉडेम से ही दिया जाता हैं। यह सभी कंपोनेंट आपस में जुड़कर वर्तमान समय मे इस्तेमाल होने वाले पर्सनल कम्प्यूटर का निर्माण करते हैं।
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System Processing की विधियाँ
System Processing की विधियाँ
कम्प्यूटर पर कार्य करने की कई विधियां हैं:-
बैच प्रोसेसिंग (Batch Processing)
टाइम शेयरिंग (Time Sharing)
मल्टी प्रोग्रामिंग (Multi Programming)
मल्टी प्रोसेसिंग (Multi Processing)
Batch Processing
फ्लॉपी डिस्क के प्रचलन से पहले, जब मेनफ्रेम कम्प्यूटर ही उपलब्ध थे, यह विधि आम थी। इसमें सारे कम्प्यूटर प्रोग्रामों को पंच (छिद्रित) कर एक साथ एक बैच में कम्प्यूटर में डाला जाता हैं। पहले इन कार्डों पर पंच हुए प्रोग्रामों को छोटे कम्प्यूटरों जिन्हें Front End Processor कहा जाता था की सहायता से मैग्नेटिक डिस्क पर उतार लिया जाता था और फिर डिस्क को मुख्य कम्प्यूटर पर लोड करके प्रोग्रामों को Execute कर लिया जाता था और संबंधित उपभोक्ताओं को परिणाम प्रिन्ट या पंच करके दे दिये जाते थे। उपभोक्ता अपने-अपने प्रोग्राम की त्रुटियां निकालकर प्रोग्रामों को ऑपरेटर को दे देते थे जो उन्हें पुन:निष्पादित करके वापिस करता था। इस विधि द्वारा परिणाम प्राप्त करने के लिए उपभोक्ताओं को लगभग 4 से 8 घंटे इंतजार करना होता था।
Time Sharing
इस विधि में प्रत्येक उपभोक्ता के पास मुख्य कम्प्यूटर के केबिलों से जुड़ा एक एक सिरा (टर्मिनल) होता हैं (यह कम्प्यूटर कम से कम मिनी कम्प्यूटर अवश्य होना चाहिए)।
हर कम्प्यूटर जब चाहे अपने टर्मिनल के द्वारा कम्प्यूटर को प्रयोग कर सकता हैं। कम्प्यूटर क��� टर्मिनलों से भेजे प्रोग्रामों को एक साथ संपन्न न करके उन्हें एक-एक करके ही लेता हैं। परंतु हर प्रोग्राम में इतना कम समय लगता हैं कि हर उपभोक्ता को यह लगता हैं कि कम्प्यूटर अपना पूरा समय उसी को दे रहा हैं। इस प्रकार कम्प्यूटर अपना एक-एक माइक्रो सेकंड सभी टर्मिनल एक साथ कार्य कर सकते हैं। बैच प्रोसेसिंग की तुलना में टाइम शेयरिंग संसाधन के कई लाभ हैं।
समय और पैसे की बचत
टर्न एराउंड समय की ��चत क्योंकि उपभोक्ता अपना प्रोग्राम एक साथ ही ठीक कर सकता हैं।
उपभोक्ता स्वंय ऑपरेट करते हैं इसलिए इस काम के लिए अलग से आपॅरेटर नही रखना पड़ता।
Multi Programming
इस विधि में मेमोरी कई भागों में बांट कर एक-एक भागीदार को दे दी जाती हैं जिसके बाद प्रोसेसर में एक साथ ही हमारे काम टाइम शेयरिंग की तरह कर लिये जाते हैं। इस विधि में कई उपभोक्ता एक साथ कम्प्यूटर का उपयोग कर सकते हैं यद्यपि इस विधि में बहुत अधिक आंतरिक स्मृति की जरूरत पड़ती हैं।
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Primary and secondary memory मे अंतर
Difference between Primary and secondary memory
Primary Memory
1. यह मेमोरी सूचनाओं को अस्थाई रूप से संग्रहित करके रखती हैं अर्थात करंट के बंद होते की सूचनाएं नष्ट हो जाती हैं|2. यह मेमोरी सेकेंडरी मेमोरी की अपेक्षा महंगी होती है|3. इसके कार्य करने की गति तीव्र होती है|4. यह सिस्टम में स्थाई रूप से लगी रहती है|5. इसमें संग्रहित सूचनाएं एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जा सकते हैं |6. कंप्यूटर के एक्सेस टाइम को प्राइमरी मेमोरी प्रभावित करती है|7. यह मेमोरी IC इंटीग्रेटेड सर्किट के रूप में होती है|8. यह दो प्रकार की मेमोरी होती हैं रैम और रोम|9. कंप्यूटर की मुख्य मेमोरी होने के कारण ऐसे प्राइमरी मेमोरी कहां जाता है|10. यह इनबिल्ट मेमोरी होती हैं अर्थात यह मेमोरी कंप्यूटर में पहले से ही लगी होती है|
Secondary Memory
1. यह मेमोरी सूचनाओं को स्थाई रूप से संग्रहित करके रखती हैं अर्थात करंट के बंद हो जाने के बाद भी इसमें सूचनाएं यथावत बनी रहती हैं|2. यह मेमोरी प्राइमरी मेमोरी के अपेक्षा काफी सस्ती होती हैं|3. इसके कार्य करने की विधि प्राइमरी मेमोरी से कम होती है|4. यह मेमोरी कंप्यूटर में स्थाई रूप से नहीं लगी रहती हैं|5. इसमें संग्रहित सूचनाओं को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर पर आसानी से ट्रांसफर किया जा सकता है|6. यह मेमोरी कंप्यूटर की एक्सेस टाइम को प्रभावित नहीं करती हैं|7. यह फ्लॉपी हार्ड डिस्क, CD, dvd, पेन ड्राइव आदि के रूप में होती हैं|8. यह कई प्रकार की होती हैं जैसे फ्लॉपी डिस्क, हार्ड डिस्क, ऑप्टिकल डिस्क, पेन ड्राइव, CD, DVD आदि|9. इन्हें उपयोग करने के लिए कंप्यूटर में अलग से लगाया जाता है इसलिए सेकेंडरी मेमोरी कहां जाता है|10. यह इनबिल्ड मेमोरी नहीं होती है इनका प्रयोग करने के लिए इन्हे कंप्यूटर में अलग से लगाया जाता है|
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Cache memory
Cache memory
यह एक विशेष प्रकार की तीव्र गति की मेमोरी होती है जो कि कंप्यूटर की प्रोसेसिंग की गति को बढ़ा देती है| C.P.U. की गति अधिक होती है लेकिन RAM की गति कम होने के कारण CPU व RAM के मध्य डेटा स्थानांतरण की गति कम हो जाती है कैश मेमोरी की गति अधिक होती है यह CPU को अधिक तेज गति से डाटा उपलब्ध करा देती है उसी प्रकार CPU से प्रोसेस के डाटा को तीव्र गति से ग्रहण भी कर लेती है इससे पूरे कंप्यूटर का एक्सेस टाइम कम हो जाता है अर्थात कंप्यूटर की गति बढ़ जाती है|
कैश मेमोरी (Cache Memory) आकार में बहुत छोटी लेकिन कंप्यूटर की मुख्य मेमोरी से बहुत ज्यादा तेज होती है, इसे सीपीयू की मैमोरी भी कहा जाता है जिन प्रोग्राम और निर्देशों का बार-बार इस्तेमाल किया जाता है उनको कैश मेमोरी अपने अंदर सुरक्षित कर लेती है, प्रोसेसर कोई भी डाटा प्रोसेस करने से पहले कैश मेमोरी को चैक करता है और अगर वह फाइल उसे वहां नहीं मिलती है तो उसके बाद वह रैम यानि प्राइमरी मेमरी को चैक करता है |
Memory Access time
मेमोरी की एक लोकेशन को पढ़ने या लिखने में जो समय लगता है Memory Access time कहलाता है एक्सेस टाइम जितना कम होता है कंप्यूटर की गति इतनी अधिक होती है|
Memory cycle time
दो स्वतंत्र कार्यों को शुरू करने के मध्य का समय Memory cycle time कहलाता है
मेमोरी साइकल टाइम मेमोरी एक्सेस टाइम से थोड़ा अधिक होता है क्योंकि दो कार्यों के मध्य टाइम डिले (पहले कार्य के खत्म होने व दूसरे कार्य को शुरू करने के मध्य का समय) भी शामिल होता है
memory cycle time = memory access time + time delay
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Windows10 में Lock Screen को कैसे Disable करें !
Windows10 में Lock Screen को कैसे Disable करें !
सबसे पहले Ctrl के साथ R बटन दबायें और RUN Dialog Box आपके सामने खुलेगा. इसमें gpedit.msc लिखे और Enter बटन दबायें.. आपके सामने Group Policy Editor खुलेगा.. इसमें Computer Configuration > Administrative Templates > Control Panel > Personalization पर Double Click करें अब Do not display the lock screen पर Double Click करें...आपके सामने निम्न Window खुलेगा इसमें Disable Option को चुने और OK बटन दबायें....
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Shortcut Virus को कैसे निकालें
Remove Shortcut Virus Form Pendrive
सबसे पहले अपनी Pendrive को Computer से जोड़े !उसके बाद अपने KeyBoard में से Win+R keys को दबाये और आपके सामने Run box खुलेगा !
इस Box में CMD Type करे और Ok Button को दबाये अब आपके सामने Command Box खुलेगा.
इसमें निम्न Command को Type करे ( attrib –h –r –s /s /d h:\*.* ) ( याद रहे Command में h को अपनी Pendrive Location बदले जैसे :- My Computer में C, D, E, होती है ! वरना यह काम नहीं करेगा ) और Enter Button को दबाये ! यह कुछ समय लेगा जैसे ही यह पूरा हो जाए इसको बंद कर दे और अपनी pendrive को खोले ! यहां Shortcut अलग और आपकी Files और Folder अलग-अलग हो जायेंगे अब आप shortcut को delete कर दे !
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MS Office से Document पर पासवर्ड लगाकर सुरक्षित कैसे करें
MS Office से Document पर पासवर्ड लगाकर सुरक्षित कैसे करें
Ms Office से Document पर Password ऐसे सेट करें.
आम तौर पर माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस से बनाये गए डॉक्यूमेंट पर कोई पासवर्ड नहीं होता, इसका मतलब यह है कि कोई भी उस डॉक्यूमेंट को पढ़ सकता है और उसमे परिवर्तन कर सकता है|
यदि आपके डॉक्यूमेंट में कुछ संवेदनशील जानकारियां और सूचनाएं है जिनको आप पासवर्ड लगाकर सुरक्षित करना चाहते है, तो माइक्रोसॉफ्ट ऑफ़िस पर आप निम्न प्रकार से कर सकते है:
Document को पूरी तरह से पासवर्ड से सुरक्षित करें
यदि आप अपने डॉक्यूमेंट को पूरी तरह से पासवर्ड से सुरक्षित करना चाहते है, जिससे कोई भी बिना पासवर्ड के आपके डॉक्यूमेंट को न तो खोल सके न ही उसमे कोई बदलाव कर सके तो इसके लिए:
ऑफिस डॉक्यूमेंट के टॉप-लेफ्ट मेनू में File > Info पास जाएँ और "Protect Document" पर क्लिक करें| Excel, Powerpoin इत्यादि में में आपको ऐसा ही बटन मिल जाएगा|
यहाँ "Encrypt with Password" पर क्लिक करें|
फिर आपसे वही पासवर्ड फिर से डालने (Confirm Password) के लिए कहा जाएगा, उसी पासवर्ड को फिर से डाल कर "पासवर्ड कन्फर्म" करें
इसके बाद आपका डॉक्यूमेंट "पासवर्ड से सुरक्षित" हो जायेगा, कभी भी इस डॉक्यूमेंट को खोलने के लिए पहले पासवर्ड पूछा जाएगा और सही पासवर्ड देने पर ही डॉक्यूमेंट खुलेगा
चेतावनी : ध्यान रखें, की आप पासवर्ड को याद रखें या फिर कहीं नोट कर लें, क्यों कि वर्तमान में ऑफिस की पासवर्ड सिक्यूरिटी एडवांस्ड है, इसलिए यदि आप पासवर्ड भूल गए तो फिर डॉक्यूमेंट को नहीं खोल पाओगे|
Docoment को सिर्फ एडिट होने से बचाने के लिए पासवर्ड
यदि आप चाहते है, की बिना पासवर्ड लोग आपके डॉक्यूमेंट को पढ़ सके लेकिन कोई एडिट नहीं कर सके, तो आप एडिट करने के लिए पासवर्ड सेट कर सकते है:इसके लिए उपरोक्त ऑफिस विकल्प में जाकर "Restrict Editing" पर जाएँ|
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html कैसे सीखे
What is Html
Html क्या है …?
html एक markup language है, जिसका use web page बनाने के लिए किया जाता है | html का full form hyper text markup language होता है |आइये निचे में इनका नाम का मतलब जान लेते है
Hypertext – यहाँ hypertext means जब आप किसी text (linking another page) पर click करते है तो आपके सामने उससे related page open होती है .means आप एक page से दुसरे page पर jump कर जाते है |
Markup – markup means tag को use करके document का formatting करना होता है |
example के तौर पर अगर आप text को bold करना चाहते है , तो <b> tag,क्योकि आप particular text को format कर रहे है
language – यहाँ पर language का मतलब programming language से है, menas ऐसे set of instruction जो आपके काम को आसन कर दे Programming language कहलाते है.
इन सभी कारणों से ही html एक markup language है |
अब आपको अपने question का answer सही तरीके से मिल गया होगा की html क्या है , अब देखते है html सीखना क्यों जरुरी है.
Html सीखना क्यों जरुरी है…?
Html web page बनाने का एक primary language माना जाता है | अगर आप web developing में interested है तो आपको html से ही start करना चाहिए,नहीं तो आपको बाकि language’s जो web development से related है उसे सिखने में परेशानी आ सकती है |
साथ ही साथ html एक structure के रूप में कार्य करती है , जो text की basic formatting होती है , वो html के through ही होती है ,जैसे किसी text को bold करना या फिर paragraph use करना etc.
अगर आप किसी भी famous platform के through अपना blog create करते है , जैसे blogger या wordpress, तो भी थोड़ी बहुत html की knowledge होना चाहिए,जिससे आपको editing में आसानी हो,अगर आपसे editing भी नहीं हो पाती,तो कोई बात नहीं, At least आप इतना जरुर समझ जायंगे,की आपके blog पर क्या किया जा रहा है, developer द्वारा.
Html के Editors
html की coding plain text होती है, जिन्हें ASCII(American standard code for information interchange ) के रूप में भी जाना जाता है |html की coding किसी भी text editor के साथ आसानी के साथ की जा सकती है | वैसे तो market में बहुत से आपको text editor मिल जायंगे , लेकिन notepad एक ऐसा editor है , जो windows operating system के साथ free में मिलता है |
अगर आप mac user है , तो अपने system का free text editor use कर सकते है,साथ ही साथ अगर आप linux operating system use कर रहे है , तो vi editor का use कर सकते है , जो linux में terminal के साथ Include रहती है .
इस html editor के साथ बस इस बात की ध्यान रखनी पढ़ती है , की file save करते समय file का extension change कर दे , text file में by default file का extension (.txt) होता है उस extension को change करके (.htm या .html ) कर दे |अब आप अपना coding का output अपने मन पसंद browser पर देख सकते है |
Web Browsers
Market में काफी सारे web browser(google chrome , Mozilla firefox , safari , internet explorer)availableहै , आप अपने पसंद का जो आपको suitable लगे use कर सकते है | html programming में केवल browser का use output देखने के लिए किया जाता है .
? याद रखे की web browser tag को display नहीं करते , बल्कि वो tag से related effect को browser पर दिखाता है
Html में programming करने के लिए कुछ खास tips:-
Html बाकि programming language की तरह case sensitive नहीं होता | means html में <b>और <B> का मतलब एक ही होगा |
File save करते समय file का extension (.htm या .html ) करना आनिवार्य है|
आप html program को run/execute कराने के लिए ऐसे browser का use करे जो सभी प्रकार के tag का support करता हो |
अपने browser window में image को प्रदर्शित करने के लिए सही प्रकार के image file select करे , flash image file को browser window में display कराने में दिक्कत आ सकती है
अगर आप html में coding में किसी तरह की गलती करते है तो browser window पर बाकि programming language की तरह error show नहीं होगा बल्कि वहा पर आपके content में उस तरह का effect नहीं आयगा जिस तरह से आप चाहते थे |
अगर आप coding करते समय अपने content में space देते है , या फिर थोडा सा content type करने के पश्चात आप new line पर चले जाते है तो browser पर आपके इस new line and space का कोई भी effect नहीं दिखेयागा , browser इन्हें ignore कर देता है | हलाकि आप tag’s का use करके new line and space create कर सकते है |
html elements को tag के through represent किया जाता है .
कोई भी browser किसी भी तरह के tags को show नहीं करता.
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Html Versions explanation
Html Versions explanation
समय – समय पर html versions आये , और चले गए , लेकिन जो feature most of the people use में ला रहे थे , उन्हें new feature के साथ Update किया गया.
सभी versions में कुछ न कुछ खामिया और खुभी थी , जो कमी थी उसे अगले version में नए version के through remove किया गया , और जो अच्छे feature होते थे , उसे अगले version में update किया जाता थ��., इन version के में हम थोड़ी बाते जान लेते है.
Version
year
Specification
Html1991ये HTML का पहला version था। उस समय बहुत कम लोग इस language के बारे में जानते थे. Html 2.01995इस version में html 1 के सभी feature include थे,साथ ही साथ इसमें new feature add किये गए,क्योकि उस time तक html एक standard language बन चुकी थी , website बनाने के लिए . Html 3.21997यह html version उतना popular नहीं हो पाया,क्योकि यह most of the browser के साथ compatible नहीं था , और इसे बंद करना पड़ा. Html 4.011999इस version में काफी change हुई.इस version में browser specific tag add किये गए.जो सभी website को browser standardize बनाते थे , ताकि सभी website browser पर सही तरह से open हो.साथ ही साथ इसमें css को भी introduce किया गया , जो website को काफी attractive दिखाती थी XHtml2000Xhtml,xml और html का mix रूप है , xhtml का full form EXtensible HyperText Markup Language होता है . xhtml में html को redesign किया जाता है , xml के form में.यह version html 4.01 के बाद आया. Html 52014यह 2014 में आया , और इसमें काफी new features add किये गए like new form elements , new input types , new attribute syntax , media element etc,जिसके बारे में हम बाद में चर्चा करते है.
? अभी html का latest version html 5 चल रहा है , market में जिसे 2014 में launch किया गया था.
Html 5 के features
काफी सारे new element को introduce किया गया.
html 5 में graphics को काफी आगे लाया गया , canvas और svg tag के through.
media content को web में enhance करने के लिए काफी सारे काफी सारे new tag लाये गए <audio> , <video> etc.
local storage और session storage दो methods implement किये गए , data storing के लिए.
कुछ new formats add किये गए like date, time, calendar, email, url etc.
users friendly API introduce किया गया.
Geo Location add किया गया.
canvas element introduce किया गया for बेहतर design and painting के लिए.
html 5 कुछ इस तरह design किया गया , की external plugin या फिर extension पर कम पढ़े
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