मुख्यमंत्री की बड़ी कार्यवाही , धान खरीद में लापरवाही करने वाले पांच केंद्र प्रभारी निलंबित
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में चल रही धान खरीद की लगातार मिल रही शिकायतों के चलते प्रदेश के मुखिया ने बड़ा एक्शन लिया है बता दें कि योगी सरकार ने धान खरीद में लापरवाही करने वाले अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इतना ही नहीं 199 केंद्र प्रभारियों पर धान खरीद में लापरवाही करने पर विभागीय कार्रवाई की गई है। सीएम ने सभी जिले के डीएम को सख्त निर्देश दिए हैं कि लापरवाही और भ्रष्ट अधिकारियों को जेल भेजें।
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सीएम योगी आदित्यनाथ ने आदेश दिए हैं कि धान खरीद में जो भी करे गड़बड़ी उसे गिरफ्तार करके भेज भेजा जाए। सीएम ने बताया कि धान खरीद में लापरवाही करने वाले आठ केंद्र प्रभारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी है। सख्त निर्देश हैं कि जो भी लापरवाही करे या भ्रष्टाचार करे उसके खिलाफ ऐसे ही गंभीर धाराओं में केस दर्ज करके जेल भेजा जाए।
दरअसल बात यह है कि धान खरीद की सबसे ज्यादा शिकायतें सीतापुर,बाराबंकी,हरदोई ,लखीमपुर से आ रही थी जिसके बाद मुख्यमंत्री ने इस पर कड़ी कार्यवाही की |
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‘किसानों की लागत का मिले डेढ़ गुना’
सीएम ने कहा कि हर जिले के डीएम यह सुनिश्चित करें कि हर एक किसान को उसक फसल के सही दाम मिलें। प्रदेश में किसी भी किसान का शोषण न हो। उन्हें लागत का डेढ़ गुना दाम मिले यह सरकार की प्राथमिकता है।
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सीएम का फरमान ,DM दिलाएं किसानों के धान का पूरा समर्थन मूल्य
लखनऊ : प्रदेश में चल रही किसानों की धान खरीद की धांधली को लेकर सख्त हुए योगी आदित्यनाथ ने अब किसानों को धान के सही दाम और तौल को लेकर सभी जिलों के जिलाधिकारियों के सर पर ठीकरा फोड़ दिया है | बता दें की धान खरीद को लेकर आ रही लगातार शिकायतों को चलते योगी ने बड़ा कदम लिया है जिसमे सीएम योगी ने कहा है कि यूपी में धान क्रय में किसानों को उचित समर्थन मूल्य दिलाने के लिए अब डीएम भी जिम्मेदार होंगे | सीएम योगी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग कर प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को ये निर्देश दिए | उन्होंने कहा कि किसानों के धान की समय से खरीद और पूरा समर्थन मूल्य मिले ये जिलाधिकारी की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी | किसी भी जनपद/ मण्डल में कोई भी अधिकारी यदि इसमें ढिलाई बरतता है अथवा लापरवाही करता है तो उसके खिलाफ प्रभावी कार्यवाही के निर्देश सीएम योगी ने दिए हैं |
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पिछले साल का अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा
इस दौरान योगी सरकार ने धान खरीद को लेकर अब तक आंकड़ा भी जारी किया है | आंकड़ों के अनुसार यूपी में अब तक 1 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान खरीद की प्रक्रिया पूरी हो गई है | पिछले साल इस समय तक 10 हजार मीट्रिक टन ही धान खरीद हो सकी थी | इस साल यूपी सरकार ने अपना ही बनाया रिकॉर्ड बड़े अंतर से तोड़ दिया है |
बता दें पिछले दिनों योगी सरकार ने कैबिनेट मीटिंग में धान खरीद को लेकर अहम प्रस्ताव पास कराए थे. योगी सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने बताया कि नई धान खरीद नीति में किसानों को मिलने वाली धुलाई, छंटाई आदि में 20 रुपये की छूट के साथ ही मिलों को 30 दिन के अंदर चावल तैयार करने पर प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी |
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उन्होंने बताया कि सरकार ने धान खरीदने की पारदर्शी व्यवस्था के लिए ऑनलाइन पंजीकरण व्यवस्था को फुल प्रूफ बनाने के लिए आधार कार्ड और जमीन के कागजात से जोड़ा गया है | इसके साथ ही किसानों को अब आरटीजीएस के माध्यम से भुगतान किया जाएगा | चेक से भुगतान और बिचौलियों की भूमिका को समाप्त कर दिया गया है |
कैबिनेट मंत्री ने बताया कि खरीफ विपणन वर्ष 2018-19 में मूल्य संवर्धन योजना के अंतर्गत धान क्रय नीति का संशोधन करते हुए धान का समर्थन मूल्य 1750 प्रति कुंटल निर्धारित किया गया है | धान क्रय का लक्ष्य 50 लाख मिट्रिक टन रखा गया है | इसे पिछली बार की तुलना में इस बार बढ़ा दिया गया है |
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मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र का 3 दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कल से
नई दिल्ली :आज के समय में मशरूम की खेती करना बहुत मुनाफ़े का सौदा है इसलिए भारतीय बाजार में पिछले कुछ वर्षों से मशरूम की मांग तेजी से बढ़ी है, जिस हिसाब से बाजार में मशरूम की मांग बड़ी है उस लिहाज से उसका उत्पादन भारत में किसानों के द्वारा नहीं हो पा रहा है | ऐसे में किसान मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। मशरूम की खेती कर किसान दोगुनी नहीं बल्कि चार गुना फसल की कीमत का फ़ायदा ले सकते है | पिछले कई वर्षों से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दे रहे कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी व मशरूम विशेषज्ञ डॉ. आई.के कुशवाहा ने बताया कि भारत में “तीन तरह के मशरूम का उत्पादन होता है |
देखने में आया है कि कई सालों से बाजार में मशरूम की मांग लगातार बढ़ती जा रही है | मगर जितनी मांग बढ़ रही है, उतना उत्पादन नहीं हो पा रहा है, इसलिए किसानों को मशरूम की खेती अच्छा मुनाफा कमाने का मौका दे रही है | अगर आप भी मशरूम की खेती करके मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं, तो हम आपके लिए एक बहुच अच्छा मौका लेकर आए हैं | जी हां, आप मशरूम की खेती के लिए घर बैठे ऑनलाइन प्रशिक्षण ले सकते हैं | दरअसल, गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, का मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र 3 दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है | इसमें जिसमें मशरूम की खेती संबंधी पूरी जानकारी दी जाएगी |
तीन दिवसीय चलेगा ऑनलाइन प्रशिक्षण
आपको बता दें कि गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र 09 से 11 सितम्बर को 3 दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेगा | केंद्र का मानना है कि कोरोना महामारी की वजह से ऑनलाइन ट्रेनिंग देने का फैसला किया है | इस तरह जो किसान हर साल नहीं पहुंच पाते थे, वे भी ऑनलाइन प्रशिक्षण से जुड़ पाएंगे | यह प्रशिक्षण सितम्बर में 3 दिन के लिए है |
इन 3 प्रकार के मशरूम की खेती की मिलेगी ट्रेनिंग
#बटन दुधिया
#ढिगरी पुआल मशरूम (ऑयस्टर मशरुम)
#दूधिया मशरूम (मिल्की)
ढिंगरी मशरूम – इसकी खेती सबसे सस्ती और आसान होती है | इसमें दूसरे मशरूम की तुलना में औषधीय गुण भी अधिक होते हैं | इसकी अधिकतर मांग दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता जैसे शहरों में बनी रहती है |
बटन मशरूम– इसकी खेती कम तापमान वाले क्षेत्रों और सर्दियों में की जाती है, लेकिन आप सालभर ग्रीन हाउस तकनीक से इसको हर जगह उगा सकते हैं | इसकी खेती के लिए सरकार बी प्रचार-प्रसार कर प्रोत्साहित कर रही है |
दूधिया मशरूम– गर्मी के मौसम में दूधिया मशरूम की खेती की जाती है | दूधिया मशरूम के कवक जाल फैलाव के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस और नमी 80 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए |
ऑनलाइन प्रशिक्षण के लिए आवेदन…..
अगर आप मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण में शामिल होना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको 500 रुपए की रजिस्ट्रेशन फीस जमा करनी होगी |
इसके लिए आपको 5 रुपए का पंजीकरण शुल्क भारतीय स्टेट बैंक खाता संख्या 300811736247, आईएफएससी कोड SBIN0001133 में जमा करना होगा |
इसके बाद ट्रांजेक्शन डिटेल की कॉपी ईमेल
[email protected] और व्हाट्सएप नंबर 9389017092 पर भेजना होगा |
प्रशिक्षण का आयोजन गूगल मीट पर होगा |
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क्या था किसान सभा आंदोलन?
1857 के विद्रोह के बाद, अवध के तालुकेदारों को अपनी भूमि वापस मिल गई थी। इसने प्रांत के कृषि समाज पर तालुकदारों या बड़े जमींदारों की पकड़ को मजबूत किया। अधिकांश कृषक उच्च रेंट, सारांश बेदखली (बेदखली), अवैध उत्तोलन, नवीकरण शुल्क या नजाराना के अधीन थे। विश्व युद्ध-एक ने भोजन और अन्य आवश्यकताओं की कीमतों में बढ़ोतरी की थी। इससे यूपी के किसानों की हालत खराब हो गई। मुख्य रूप से होम रूल कार्यकर्ताओं के प्रयासों के कारण, यूपी में किसान सभाओं का आयोजन किया गया। यूपी किसान सभा की स्थापना फरवरी 1918 में गौरी शंकर मिश्रा और इंद्र नारायण द्विवेदी ने की थी। मदन मोहन मालवीय ने उनके प्रयासों का समर्थन किया। जून 1919 तक, यूपी किसान सभा की 450 शाखाएँ थीं। अन्य प्रमुख नेता झिंगुरी सिंह, दुर्गापाल सिंह और बाबा रामचंद्र थे। जून 1920 में, बाबा रामचंद्र ने नेहरू से इन गांवों का दौरा करने का आग्रह किया। इन यात्राओं के दौरान, नेहरू ने ग्रामीणों के साथ निकट संपर्क विकसित किया। अक्टूबर 1920 में, अवध किसान सभा राष्ट्रवादी रैंकों के मतभेदों के कारण अस्तित्व में आई। अवध किसान सभा ने किसानों से कहा कि वे बेदखली की ज़मीन देने से इनकार करें, हरि और भिखारी (अवैतनिक श्रम के रूप) की पेशकश न करें, उन लोगों का बहिष्कार करें जिन्होंने इन शर्तों को स्वीकार नहीं किया और पंचायतों के साथ अपने विवादों को हल करने के लिए। जनवरी 1921 में जनसभाओं और लामबंदी के पुराने रूपों से लेकर बाज़ारों, घरों, अन्न भंडार और पुलिस के साथ झड़पों की गतिविधि में तेज़ी से बदलाव आया। गतिविधि के केंद्र मुख्य रूप से राय बरेली, फैजाबाद और सुल्तानपुर जिले थे। सरकार के दमन के कारण और आंशिक रूप से अवध रेंट (संशोधन) अधिनियम के पारित होने के कारण आंदोलन में जल्द ही गिरावट आई।
यह भी पढ़ें:नील विद्रोह ; किसानो द्वारा पहला आंदोलन
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राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत योजनाएं :
1.वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (आरएडी)
2.मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM)
3.एग्रो फॉरेस्ट्री (एसएमएएफ) पर सब मिशन
4.परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY)
5.मिट्टी और भूमि उपयोग सर्वेक्षण (एसएलयूएसआई)
6.राष्ट्रीय वर्षा क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए)
7.उत्तर पूर्वी क्षेत्र में मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCDNER)
8.नेशनल सेंटर ऑफ ऑर्गेनिक फार्मिंग (NCOF)
9.केंद्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान (सीएफक्यूसी और टीआई)
यह भी पढ़े :जानिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) के बारे में
4 मुख्य योजनाए :
1.वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (RAD)
कृषि प्रणालियों के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के विकास और संरक्षण के लिए एक क्षेत्र-आधारित दृष्टिकोण विकसित करता है। यह कृषि के विभिन्न पहलुओं जैसे फसलों, मत्स्य, पशुधन, बागवानी, वानिकी और कृषि आधारित
अन्य गतिविधियों का एक संयोजन है जो राजस्व पैदा करने के स्रोत के रूप में कार्य करेगा।
उन प्रथाओं को लागू करें जो मृदा स्वास्थ्य कार्ड, कृषि भूमि के विकास के आधार पर मिट्टी के पोषक तत्वों को विनियमित करेंगे।
100 हेक्टेयर या अधिक के क्षेत्र के साथ एक क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण का उपयोग करना।
नए संपत्ति संसाधन विकसित करें जो अनाज, चारा, बायोमास के लिए श्रेडर, संयुक्त विपणन पहल के लिए बैंक की तरह सामान्य होंगे।
2.ऑन-फार्म जल प्रबंधन (OFWM)
प्राथमिक ध्यान खेत के जल संरक्षण उपकरण और प्रौद्योगिकियों को उन्नत करके पानी का इष्टतम उपयोग है।
वर्षा जल के कुशल कटाई और प्रबंधन पर जोर देना।
मनरेगा मिशन से धन का उपयोग करके खेत तालाबों की खुदाई करके खेत पर जल संरक्षण।
3.मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन
टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देना जो एक विशिष्ट स्थान पर आधारित मिट्टी के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हैं और उन स्थानों पर उगाए जा सकने वाले फसलों जैसे कि अवशेषों के प्रबंधन, जैविक खेती जैसे विभिन्न तकनीकों की मदद से मिट्टी की उर्वरता के विवरण के साथ नए नक्शे बनाते हैं उन्हें स्थूल प्रबंधन और पोषक तत्वों के माइक्रोनमेंटेशन,
इष्टतम भूमि उपयोग, उर्वरकों के सही उपयोग और मिट्टी के क्षरण और क्षरण को कम करने के साथ जोड़ना।
भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) तकनीक और वैज्ञानिक सर्वेक्षणों की मदद से मिट्टी और जमीन पर बनाए गए डेटाबेस की मदद से उत्पन्न विषयगत मानचित्रों का उपयोग।
राज्य सरकार, मृदा और भूमि उपयोग सर्वेक्षण (एसएलयूएसआई), नेशनल सेंटर ऑफ ऑर्गे���िक फार्मिंग (एनसीओएफ), केंद्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान (सीएफक्यूसी और टीआई)।
4.जलवायु परिवर्तन और सतत कृषि: निगरानी, मॉडलिंग और नेटवर्किंग (CCSAMMN)
जलवायु परिवर्तन पर ज्ञान और अद्यतन जानकारी बनाएं और प्रसारित करें।
रेनफेड प्रौद्योगिकियों को फैलाने के लिए पायलट ब्लॉक का समर्थन करें और अन्य योजनाओं या मिशन जैसे MGNREGS, NFSM, RKVY, IWMP, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP), NMAET के साथ समन्वय करें।
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नील विद्रोह ; किसानो द्वारा पहला आंदोलन
कई बार देखने में आता है की भारत का वो हिस्सा जिस पर सारे देश के पालन और पोषण का ज़िम्मा है हम उन लोगो को हाशिये पर रख देते हैं। भारत की आज़ादी की लड़ाई में जितनी भूमिका नेताओ और आम नागरिको ने निभाई है वही किसानो ने भी इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है।
क्यों पड़ी किसानो को आंदोलन की ज़रूरत ?
किसान अंग्रेज़ो की शोषक नीतियो से बहुत ही ज़्यादा तंग आ चुके थे।भारत की औपनिवेशिक नीतियों ने भारत के कृषि क्षेत्र को पूरी तरह से बदल दिया।अंग्रेज़ों द्वारा अपनाई गई भूमि राजस्व नीति के चलते किसानो को अधिक किराया देना पड़ता था।ज़मींदारो को पूर्ण रूप से शक्ति दे दी गई थी और साहूकारो का भी दख़ल हो चला था। जब किसान समय पर सरकार को पैसा नहीं दे पाते थे तो वह पैसा ब्याज पर लेने साहूकारों के पास जाते थे और किसानो की मजबूरी का नाजायज़ फायदा उठाते हुए साहूकार भी उनसे दुगना ब्याज वसूल करते थे। किसान पैसे ना चुका पाने के कारण बेरोज़गार होते गए और ज़मीन से हाथ धोते गए। इस ही कारण किसान केवल एक मज़दूर बन कर रह गए और यही कारण था की किसानो द्वारा भारत के अलग- अलग राज्यों में आंदोलन होने लगे।
नील विद्रोह :
नील विद्रोह किसानो द्वारा पहला आंदोलन था जो की 1859 में बंगाल के नादिया ज़िले में दिगंबर बिस्वास और बिष्नु बिस्वास के नेतृत्व में हुआ।
कारण :
1777 में बंगाल में नील की खेती शुरू हुई।
नीलदुनिया भर में उच्च मांग में थी। यूरोप में नीली डाई की मांग के कारण नील में व्यापार आकर्षक था।
यूरोपीय प्लांटर्स ने इंडिगो पर एकाधिकार का आनंद लिया और उन्होंने भारतीय किसानों को उनके साथ धोखाधड़ी वाले सौदों पर हस्ताक्षर करके नील उगाने के लिए मजबूर किया।
खेती करने वालों को खाद्य फसलों के स्थान पर नील उगाने के लिए मजबूर किया गया था।
वे इस उद्देश्य के लिए उन्नत ऋण थे। एक बार जब किसानों ने ऋण लिया, तो वे ब्याज की उच्च दरों के कारण इसे कभी नहीं चुका सकते थे।
कर की दरें भी बहुत कम थीं।
किसानों को बेरहमी से प्रताड़ित किया जाता था यदि वे किराया नहीं दे सकते थे या प्लांटर्स के कहने पर करने से मना कर देते थे।
उन्हें गैर-लाभदायक दरों पर नील बेचने के लिए मजबूर किया गया ताकि यूरोपीय बागान मालिकों के मुनाफे को अधिकतम किया जा सके।
यदि किसी किसान ने नील उगाने से इनकार कर दिया और उसके बदले धान लगाया, तो बागवानों ने किसान को नील
उगाने के लिए अवैध साधन का सहारा लिया जैसे कि लूट और फसल जलाना, किसान के परिवार के सदस्यों का अपहरण करना आदि।
सरकार ने हमेशा बागवानों का समर्थन किया जिन्होंने कई विशेषाधिकार और न्यायिक प्रतिरक्षा का आनंद लिया
विद्रोह से जुडी अहम् बातें :
किसानों ने बंगाल के नादिया जिले में नील उगाने से इनकार कर दिया। उन्होंने हस्तक्षेप करने वाले पुलिसकर्मियों पर हमला किया। बागान मालिकों ने इसके जवाब में, किराए में वृद्धि की और किसानों को बेदखल कर दिया, जिसके कारण अधिक आंदोलन हुए।अप्रैल 1860 में, नादिया और पाबना जिलों के बारासात डिवीजन में सभी किसान हड़ताल पर चले गए और जिगो बढ़ने से इनकार कर दिया।देखते ही देखते यह हड़ताल बंगाल के अन्य हिस्सों में फैल गई।किसानों का नेतृत्व नादिया के बिस्वास बंधुओं, मालदा के रफीक मोंडल और पाबना के कादर मोल्ला ने किया। विद्रोह को कई जमींदारों से विशेष रूप से नारेल के रामरतन मुल्लिक का समर्थन मिला।विद्रोह को दबा दिया गया था और कई किसानों की सरकार और कुछ जमींदारों द्वारा हत्या कर दी ग�� थी।विद्रोह बंगाली बुद्धिजीवियों, मुसलमानों और मिशनरियों द्वारा समर्थित था।पूरे ग्रामीण आबादी ने विद्रोह का समर्थन किया।प्रेस ने भी विद्रोह का समर्थन किया और किसानों की दुर्दशा को चित्रित करने और उनके कारण के लिए लड़ने में अपनी भूमिका निभाई।
ब्रिटिश शासकों पर प्रभाव :
विद्रोह काफी हद तक अहिंसक था और इसने बाद के वर्षों में गांधीजी के अहिंसक सत्याग्रह के अग्रदूत के रूप में काम किया।विद्रोह सहज नहीं था। यह बागान और सरकार के हाथों किसानों के उत्पीड़न और पीड़ा के वर्षों में बनाया गया था।इस विद्रोह में उनके उत्पीड़न के खिलाफ हिंदू और मुसलमानों ने हाथ मिलाया। इसने कई जमींदारों और किसानों ko साथ आते भी देखा।सरकार द्वारा क्रूर बर्बरता के बावजूद विद्रोह एक सफलता थी।विद्रोह के जवाब में, सरकार ने 1860 में इंडिगो आयोग की नियुक्ति की। एक रिपोर्ट में, एक बयान में पढ़ा गया, ‘मानव रक्त से सना हुआ बिना इंडिगो की छाती इंग्लैंड नहीं पहुंची।’एक अधिसूचना भी जारी की गई थी जिसमें कहा गया था कि किसानों को नील उगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।1860 के अंत तक, नील की खेती सचमुच बंगाल से दूर धो दी गई थी क्योंकि प्लांटर्स ने अपने कारखानों को बंद कर दिया और अच्छे के लिए छोड़ दिया।
नील विद्रोह से जुड़ा साहित्य :
दीनबंधु मित्र द्वारा 1858 – 59 में लिखे गए नील दरपन (द मिरर ऑफ इंडिगो) के नाटक ने किसानों की स्थिति को सटीक रूप से चित्रित किया। यह दिखाया गया है कि कैसे किसानों को पर्याप्त भुगतान के बिना नील रोपण करने के लिए मजबूर किया गया था। यह नाटक एक चर्चा का विषय बन गया और इसने बंगाली बुद्धिजीवियों से नील विद्रोह को समर्थन देने का आग्रह किया। रेवरेंड जेम्स लॉन्ग ने बंगाल के गवर्नर के सचिव डब्ल्यू डब्ल्यू सेटन-कर के अधिकार पर नाटक का अंग्रेजी में अनुवाद किया। प्लांटर्स, जिन्हें नाटक में खलनायक के रूप में माना जाता था, ने रेव लॉन्ग फॉर लिबेल पर मुकदमा दायर किया। रेव लांग को दोषी ठहराया गया था और उन्हें मुआवजे के रूप में 1000 रुपये का भुगतान किया गया था और एक महीने तक जेल में रहना पड़ा था।विद्रोह को नाटक नील दरपन में इसके चित्रण और गद्य और कविता के कई अन्य कार्यों में भी काफी लोकप्रिय बनाया गया था। इसने बंगाल की राजनीतिक चेतना में विद्रोह को केंद्र में ले लिया और बाद में बंगाल में कई आंदोलनों को प्रभावित किया।
लेखक : लुबना हाश्मी
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राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना (eNAM),किसानों के लिए वरदान
क्या है राष्ट्रीय कृषि बाज़ार?
राष्ट्रीय कृषि बाज़ार या eNAM भारत में कृषि वस्तुओं के लिए एक ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है। यह बाज़ारकिसानों, व्यापारियों और खरीदारों को वस्तुओं में ऑनलाइन ट्रेडिंग की सुविधा प्रदान करता है।यह बाज़ार बेहतर कीमत की खोज में मदद कर रहा है और उनकी उपज के सुचारू विपणन के लिए सुविधाएं प्रदान कर रहा है।जनवरी 2018 तक बाज़ार लेनदेन, 36,200 करोड़ रहा, जो ज्यादातर इंट्रा-मार्केट था। स्टेपल खाद्यान्न, सब्जियों और फलों सहित 90 से अधिक वस्तुओं को वर्तमान में व्यापार के लिए उपलब्ध वस्तुओं की सूची में सूचीबद्ध किया गया है।ईएनएएम बाज़ार लोकप्रिय साबित हो रहे हैं क्योंकि फसलों को तुरंत तौला जाता है और उसी दिन स्टॉक उठा लिया जाता है और भुगतान ऑनलाइन किया जाता है।फरवरी 2018 में, एमआईएस डैशबोर्ड, बीएचआईएम और अन्य मोबाइल भुगतानों जैसे कुछ आकर्षक सुविधाओं, मोबाइल ऐप पर बढ़ी हुई विशेषताएं जैसे गेट प्रवेश और मोबाइल फोन और किसान डेटाबेस के माध्यम से भुगतान अपनाने में और भी अधिक मदद कर रहा है। वर्तमान व्यापार ज्यादातर इंट्रा-मार्केट के लिए किया जाता है, लेकिन चरणों में, इसे अंतर-बाज़ार, अंतर-राज्य में व्यापार करने के लिए रोल आउट किया जाएगा, जिससे कृषि वस्तुओं के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार का निर्माण होगा।
लक्ष्य
एकीकृत बाजारों में प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके, खरीदारों और विक्रेताओं के बीच सूचना की विषमता को दूर करके और वास्तविक मांग और आपूर्ति के आधार पर वास्तविक समय मूल्य की खोज को बढ़ावा देकर कृषि विपणन में एकरूपता को बढ़ावा देना।
मिशन
कृषि वस्तुओं में अखिल भारतीय व्यापार की सुविधा के लिए एक आम ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म के माध्यम से देश भर में एपीएमसी का एकीकरण, समय पर ऑनलाइन भुगतान के साथ-साथ उपज की गुणवत्ता के आधार पर पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से बेहतर कीमत की खोज प्रदान करता है।
इतिहास
इसे भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था। भारत के इलेक्ट्रॉनिक बाजार पायलट को 14 अप्रैल 2016 को भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉन्च किया गया था। यह पोर्टल लघु किसानों के कृषि व्यवसाय कंसोर्टियम (एस.एफ.ए.सी) द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जो एनएफसीएल के आईकैन डिवीजन के प्रौद्योगिकी प्रदाता के साथ है। यू.पी.ए के कार्यकाल के दौरान कर्नाटक राज्य में कांग्रेस सरकार द्वारा इसी तरह की परियोजना शुरू की गई थी और उसे बड़ी सफलता मिली थी। एनडीए सरकार ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया है।
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खुशखबरी ! नारियल किसानों को मोदी सरकार का तोहफा,घोषित की प्रति क्विंटल 2700 MSP
नई दिल्ली : मोदी सरकार ने2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए हर तरह से दर्जन संकल्पित है | जिसके बीच आज एक बार फिर मोदी सरकार ने नारियल किसानों को खुशखबरी दी है | बता दें कि पके और छिले नारियल के लिए 2020 सीजन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 199 रुपये की वृद्धि कर 2,700 रुपये प्रति क्विंटल घोषित कर दिया |
गौरतलब है कि पिछले वर्ष की तुलना इस बार पके व कच्चे नारियल के एमएसपी में 5.02 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है | इस बढ़ोतरी से लाखों किसानों को लाभ मिलेगा | केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि केंद्र सरकार ने देश भर में सभी उपज के किसानों के हितों को सर्वोपरि रखा है |
तोमर ने कहा कि छोटे नारियल किसानों की फसल होने के नाते किसानों के स्तर पर एकत्रीकरण और खोपरा बनाने के लिए व्यवस्था करना आम बात नहीं है | खोपरा का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2020 फसल सीजन के लिए प्रति क्विंटल 9,960 रुपये है | फिर भी छिले नारियल के लिए उच्चतर न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा से ऐसे छोटे किसानों को तुरंत नकद मिलना सुनिश्चित हो जाता है, जो उत्पाद को अपने पास रखने में असमर्थ होते हैं |
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समर्थन मूल्य से कम दाम में मक्का बेचने को मजबूर किसान
नई दिल्ली : देश के किसानों की हालत दिन पे दिन बदत्तर होती जा रही है | जिसके चलते केंद्र सरकार ने किसानों को बढ़ावा देने के लिए 2022 तह उनकी आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है | बता दें कि केंद्र सरकार के साथ साथ देश कि सभी राज्य सरकारें भी कंधे से कन्धा मिलकर काम कर रही हैं | गौरतलब यह हैं कि किसानों कि फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होने के बाद भी सरकारें उसको अमल करने में नाकाम रही हैं | इतना ही नहीं अब सरकारों के सामने इसे खरीदने का संकट आ खड़ा हुआ हैं | मक्का की फसल तैयार हो जाने के बाद किसान समर्थन मूल्य से 700 से 750 रुपये प्रति क्विंटल नीचे दाम पर मक्का बेचने को मजबूर किसानों की मुकिश्लें कम नहीं हो रही हैं। मक्का की दैनिक आवक आगे उत्पादक मंडियों में और बढ़ेगी, जबकि पोल्ट्री उद्योग की मांग सामान्य के मुकाबले 25 से 30 फीसदी ही आ रही है। ऐसे में खरीफ सीजन में भी मक्का की कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है।
मक्का कारोबारी ने बताया कि मंडियों में मक्का के भाव 1,100 से 1,150 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि चालू खरीफ विपणन सीजन 2020-21 के लिए केंद्र सरकार ने मक्का का दाम 1,850 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस के कारण पोल्ट्री उत्पादों की मांग में भारी कमी आई है, जिस कारण पोल्ट्री फीड निर्माताओं की मक्का में मांग घटी गई है। उन्होंने बताया कि इस समय सामान्य के मुकाबले मक्का में 25 से 30 फीसदी का ही व्यापार हो रहा है। उन्होंने बतायाा कि उत्तर प्रदेश, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में साठी मक्का की आवक हो रही है, जबकि आगे खरीफ मक्का की आवक बढ़ेगी, इसलिए मक्का की कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है।
जनवरी से अभी तक 650 से 700 रुपये का आ चुका है मंदा
मक्का कारोबारी पूनमचंद गुप्ता ने बताया कि मक्का में स्टार्च मिलों के साथ ही पोल्ट्री उद्योग की मांग भी कमजोर है जबकि सितंबर में खरीफ मक्का की आवक बनेगी। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में मानसूनी बारिश सामान्य होने का अनुमान है इसलिए मक्का का उत्पादन भी बढ़ेगा। अत: आगे मक्का की कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। उन्होंने बताया कि जनवरी से अभी तक मक्का की कीमतों में 650 से 700 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आ चुका है।जनवरी में मक्का के भाव 1,950 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल थे, जबकि इस समय भाव 1,300 से 1,350 रुपये प्रति क्विंटल हैं।
मक्का की शुरूआती बुआई बढ़ी
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू सीजन में मक्का की शुरूआती बुआई बढ़कर 10.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 5.25 लाख हेक्टेयर में ही मक्का की बुआई हो पाई थी। खरीफ सीजन में सामान्यत: 74.68 लाख हेक्टेयर में मक्का की बुआई होती है। मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2019-20 में मक्का का उत्पादन 289.8 लाख टन होने का अनुमान है।
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