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astrologerchandan · 1 year
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नवरात्रि में वरदान बनेगा इन मंत्रों का जाप! मनोकामनाएं होंगी पूरी, अयोध्या के ज्योतिष से जानें सब
नवरात्रि के 9 दिनों तक माता रानी को प्रसन्न करने के लिए जातक सुबह और शाम माता रानी की आरती करते हैं. उनके मंत्रों का जाप करते हैं, कहा जाता है की ऐसा करने से माता रानी जल्द प्रसन्न होती है और सभी मनोकामना पूरी करती है. नवरात्रि में कुछ ऐसे चमत्कारी मंत्र है जिसका जाप करने से जीवन में कई तरह ही सफलता भी मिलती है.
अगर आप अपने जीवन में शक्तिशाली बनाना चाहते हैं तो नवरात्रि में इस मंत्र का जाप करना होगा. सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोह्यस्तु ते।।
Astrologer Chandan Ji Call : - +91-8290769959 #topastrologer#astronews#astroworld#Astrology#lovemarriage#astrologers#astrologymemes#marriage#loveback#love#carrerproblemsolution#unemploymentproblems#grahdosh#businessproblemsolution#dealyinmarriage#loveproblemsolution#familyproblemsolution#relationshipproblems#navratri#navratri2023#NavratriSecondDay#maabhramcharani#bhramcharani
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नवरात्रि के नौवें दिन ऐसे करें मां सिद्धिदात्री की पूजा, जानें-विधि और महत्व
चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की भक्ति-उपासना करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके लिए साधक श्रद्धा और भक्ति भाव से मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। साथ ही माता के निमित्त व्रत उपवास भी करते हैं। इस दिन पूजा संपन्न होने के पश्चात कन्या पूजन का भी विधान है।
मां का स्वरूप
मां सिद्धिदात्री चार भुजा धारी हैं। एक हाथ में कमल पुष्प, तो दूजे में गदा धारण की हैं। वहीं, तीसरे में चक्र, तो चौथे में शंख धारण की हैं। सिंह उनकी सवारी है। मां सिद्धिदात्री समस्त संसार का कल्याण करती हैं। इसके लिए उन्हें जगत जननी भी कहते हैं।
महत्व
वेदों, पुराणों एवं शास्त्रों में मां की महिमा का वर्णन निहित है। मार्कण्डेय पुराण में मां की महिमा का गुणगान विशेषकर है। मार्कण्डेय पुराण में मां को अष्ट सिद्धि भी कहा गया ह���। इसका अर्थ यह है कि मां अणिमा, महिमा, प्राकाम्य गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, ईशित्व और वशित्व अष्ट सिद्धि का संपूर्ण स्वरूपा हैं।
पूजा विधि
इस दिन सुबह ब्रह्म बेला में उठकर सबसे पहले आदिशक्ति और जगत जननी मां दुर्गा को प्रणाम करें। इसके पश्चात, घर की साफ-सफाई कर नित्य कर्मों से निवृत हो जाएं। अब गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें और आमचन कर नवीन वस्त्र धारण करें। इसके तत्पश्चात, मां सिद्धिदात्री की स्तुति निम्न मंत्र से करें-
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
अब मां सिद्धिदात्री की पूजा फल, फूल, धूप, दीप, कुमकुम, तिल, जौ, चावल आदि से करें। मां को प्रसाद में हलवा-पूरी भेंट करें। अंत में आरती अर्चना कर जीवन में तरक्की, उन्नति, सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें। दिनभर उपवास रखें। संध्याकाल में आरती कर फलाहार करें। अगले दिन स्नान ध्यान कर सामान्य दिनों की तरह पूजा करें। इसके पश्चात, ब्राह्मणों को दान देकर व्रत खोलें।
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swayaminfotech · 3 years
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Brahmacharini is worshipped on the second day of Navratri
The day 2 of Navratri, which is also known as 'Nauratri' or 'Nauratan', is dedicated to Maa Brahmacharini, one of the nine forms of Goddess Durga. Maa Brahmacharini is also known as 'Tapascharini', 'Aparna' and 'Uma' and endowment of peace and prosperity. The colour for day 2 of Navratri is blue which depicts tranquility yet strong energy.
May Goddess Durga provide you with the strength to overcome all obstacles in life.
Happy Navratri!
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नवरात्रि के आठवें दिन अन्नपूर्णा महागौरी की उपासना, जानिए पूजन विधि, पूजा से लाभ
मां दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है और नवरात्रि के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर है, इसलिए इन्हें महागौरी कहा जाता है।
मां महागौरी की पूजन विधि -
अष्टमी तिथि के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात कलश पूजन कर मां की विधि-विधान से पूजा करें। इस दिन मां को सफेद पुष्प अर्पित करें, मां की वंदना मंत्र का उच्चारण करें। आज के दिन मां की हलुआ, पूरी, सब्जी, काले चने और नारियल का भोग लगाएं। माता रानी को चुनरी अर्पित करें। अगर आपके घर अष्टमी पूजी जाती है तो आप पूजा के बाद कन्याओं को भोजन भी करा सकते हैं ये शुभ फल देने वाला माना गया है।
पूजा से लाभ -
मां महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी है। मनुष्य को सदैव इनका ध्यान करना चाहिए, इनकी कृपा से आलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये भक्तों के कष्ट जल्दी ही दूर कर देती हैं एवं इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। ये मनुष्य की वृतियों को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं। भक्तों के लिए यह देवी अन्नपूर्णा का स्वरूप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। ये धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।
स्तुति मंत्र -
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
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नवरात्रि के सातवें दिन की देवी हैं मां कालरात्रि, जानें इनकी पूजा विधि, व्रत कथा, मंत्र और भोग
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि का पूजा होती है। मान्यता के अनुसार मां के इस स्वरूप की पूजा करने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और बुरी शक्तियों का प्रभाव भी कम होने लगता है।
मां कालरात्रि की कथा -
जब शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज जैसे राक्षसों ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, तब सभी देवता इससे चिंतित होकर शिवजी के शरण में गए और उनसे सृष्टि की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने माता पार्वती को भक्तों की रक्षा के लिए दैत्य का वध करने को कहा। शिवजी की बात मानकर माता ने दुर्गा का रूप धारण कर शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। जब मां दुर्गा ने रक्तबीज दानव को मौत के घाट उतारा, तो दैत्य के शरीर से निकले रक्त से लाखों की संख्या में रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। यह देख मां दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। फिर, मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही माता ने अपने मुख में भर लिया। इस तरह मां दुर्गा ने दैत्यराज के सभी रूपों का गला काटते हुए वध कर दिया।
मां कालरात्रि की पूजा विधि -
शास्त्रों के अनुसार, मां कालरात्रि की दो तरह से पूजा की जाती है। एक तंत्र-मंत्र और दूसरा शास्त्रीय पूजन के तरीके से। कहते हैं, मां कालरात्रि की पूजा गृहस्थ लोगों को शास्त्रीय विधि के अनुसार करनी चाहिए। तो चलिए इसकी पूरी विधि को जान लेते हैं।इसके लिए सबसे सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर लें। फिर अपने पूजा घर की साफ सफाई करने के बाद गंगाजल का छिड़काव कर लें। माता को नीला रंग अति प्रिय है। इसलिए उनकी पूजा के लिए नीले रंग का इस्तेमाल करना जरूरी है। मां कालरात्रि को गुड़ का भोग जरूर लगाएं। देवी के पूजन में घी का दीपक जलाएं। फिर, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। पूजा के बाद कथा करके देवी की आरती अवश्य करें।
मां कालरात्रि के पूजा मंत्र -
-क्लीं ऐं श्रीं कालिकायै नम:।
ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।
-एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा। वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
मां कालरात्रि प्रिय भोग -
मां कालरात्रि का प्रिय भोग शहद माना गया है। ऐसे में नवरात्रि के सातवें दिन की देवी को शहद का भोग अवश्य लगाएं। इससे मां की प्रसन्नता जल्दी हासिल होती है।
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नवरात्रि के छठे दिन की देवी हैं मां कात्यायनी, जानें इनकी पूजा विधि, व्रत कथा, मंत्र और भोग
असुरों का नाश करने वाली मां कात्यायनी देवी भगवती का छठा स्वरूप हैं। माता का यह स्वरूप अत्यंत फलदायी है। मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान माता की विधिवत आराधना करने से भक्तों का हर कार्य आसान हो जाता है। समस्त कष्टों का नाश होता है। मां कात्यायनी बृज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। चार भुजाओं वाली माता का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला और अत्यंत दिव्य है। उनकी भुजाओं में अस्त्र, शस्त्र और कमल का फूल विराजमान है। शास्त्रों के मुताबिक, कात्यायनी माता की पूजा करने से विवाह का शीघ्र योग बनता है और मनचाहा वर मिलता है। आइए जानते हैं मां कात्यायनी की पूजा विधि, मंत्र, आरती और पौराणिक कथा।
मां कात्यायनी पूजा विधि -
• इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें।
• इसके बाद कलश की पूजा करके माता को पंचामृत से स्नान कराएं।
• स्नान के बाद माता का श्रंगार कर उन्हें फल, फूल, सिंदूर, रोली, अक्षत, नारियल, पान, सुपारी, कुमकुम और चुन्नी अर्पित करें।
• अब दीप प्रज्वलित करके माता के मंत्रों का जाप करें और व्रत कथा का पाठ करें।
• पूजा के बाद मां कात्यायनी को शहद और मिठाई का भोग लगाएं।
• अंत में आरती करके प्रसाद बांटें।
मां कात्यायनी व्रत कथा –
पौराणिक कथानुसार, एक वनमीकथ नामक महर्षि थे। उनका एक पुत्र कात्य था। इसके बाद कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया, उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने मां भगवती को अपनी पुत्री के रूप में पाने के लिए कठोर तप की थी। मां भगवती ने महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें साक्षात दर्शन दिए।तब कात्यायन ऋषि ने माता को अपनी मनसा बताई। इसपर देवी भगवती ने वचन दिया कि वह उनके घर में पुत्री के रूप में अवश्य जन्म लेंगी।
फिर, एक बार तीनों लोकों पर महिषासुर नामक दैत्य का अत्याचार बढ़ गया। देवी और देवता उसके कृत्य से परेशान हो गए। उसी समय ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव के प्रभाव से माता का महर्षि कात्यायन के घर जन्म हुआ। इसलिए मां के इस स्वरूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है।कात्यायन ऋषि ने माता के जन्म के बाद सप्तमी, अष्टमी और नवमी तीन दिनों तक माता की पूजा की। तत्पश्चात दशमी के दिन मां कात्यायनी ने महिषासुर नामक दैत्य का वध कर तीनों लोकों को उसके अत्याचार से बचा लिया।
मां कात्यायनी के विशेष मंत्र -
1. कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
2. ॐ देवी कात्यायन्यै नमः
3. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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मां दुर्गा का पांचवा स्वरुप है मां स्कंदमाता, जानिए मां का स्वरूप, पूजा विधि , मंत्र और सब कुछ
मां स्कंदमाता का स्वरुप - स्कंदमाता का स्वरुप मन को मोह लेने वाला है। इनकी चार भुजाएं हैं, जिससे वो दो हाथों में कमल का फूल थामे दिखती हैं। एक हाथ में स्कंदजी बालरूप में बैठे हैं और दूसरे से माता तीर को संभाले हैं। मां स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना देवी के नाम से भी जाना जाता है। मां का वाहन सिंह है। शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं।
कैसे पड़ा मां स्कंदमाता नाम - स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम दिया गया है। यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। पुष्कल महत्व शास्त्रों में इसका पुष्कल महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है।
पूजा विधि • सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। • अब घर के मंदिर या पूजा स्थान में चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। • गंगाजल से शुद्धिकरण करें फिर एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्के डालें और उसे चौकी पर रखें। • अब पूजा का संकल्प लें। • इसके बाद स्कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें। • अब धूप-दीपक से मां की आरती उतारें और आरती के बाद घर के सभी लोगों को प्रसाद बांटें और आप भी ग्रहण करें। स्कंद माता को सफेद रंग पसंद है इसलिए आप सफेद रंग के कपड़े पहनकर मां को केले का भोग लगाएं। • मान्यता है कि ऐसा करने से मां निरोगी रहने का आशीर्वाद देती हैं।
स्कंदमाता का मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
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नवरात्रि के चौथे दिन करें मां कूष्मांडा की पूजा, जानिए संपूर्ण विधि और मंत्र
चैत्र नवरात्रि 2023 चौथे दिन का मुहूर्त -
• शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि आरंभ- 24 मार्च को शाम 5 बजे से शुरू
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त- 25 मार्च को शाम 4 बजकर 23 मिनट से शुरूत्रि
मां कूष्मांडा की पूजा विधि -
• नवरात्रि के चौथे दिन प्रातः स्नान आदि के बाद माता कूष्मांडा को नमन करें।
• मां कूष्मांडा को जल पुष्प अर्पित कर मां का ध्यान करें।
• पूजा के दौरान देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं।
• इस दिन पूजा के बाद मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं।
• आखिर में अपने से बड़ों को प्रणाम कर प्रसाद वितरित करें और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।
माता का मंत्र -
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।
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नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा, जानिए संपूर्ण विधि और मंत्र
साधक में आ जाते हैं ये गुण -
मां चंद्रघंटा के भक्त और उपासक जहां भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शांति का अनुभव करते हैं। ऐसे साधक के शरीर से दिव्य प्रकाश युक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता है। यह दिव्य क्रिया साधारण चक्षुओं से दिखायी नहीं देती,किन्तु साधक व उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव करते हैं। इनकी आराधना से प्राप्त होने वाला एक बहुत बड़ा सद्गुण यह भी है कि साधक में वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का भी विकास होता हैं। उसके मुख, नेत्र तथा सम्पूर्ण काया में कांति वृद्धि होती है एवं स्वर में दिव्य-अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है।
उपासना से मिलता है ये फल -
इनकी आराधना से साधकों को चिरायु,आरोग्य,सुखी और संपन्न होने का वरदान प्राप्त होता हैं। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं नष्ट हो जाती हैं । इनका वाहन सिंह है अतः इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है।
ऐसे लोगों को करनी चाहिए मां आराधना -
विशेष रूप से ऐसे लोग जिनको बहुत क्रोध आता हो या फिर छोटी-छोटी बातों से विचलित हो जाने और तनाव लेने वाले तथा पित्त प्रकृति के लोग मां चंद्रघंटा की भक्ति करें।
पूजाविधि -
मां को शुद्ध जल और पंचामृत से स्नान कराएं। अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर,अर्पित करें। केसर-दूध से बनी मिठाइयों या खीर का भोग लगाएं। मां को सफेद कमल,लाल गुडहल और गुलाब की माला अर्पण करें और प्रार्थना करते हुए मंत्र जप करें।
स्तुति मंत्र-
"या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।"
पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।
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नवरात्रि का दूसरा दिन, मां ब्रह्माचारिणी की पूजा की जानें विधि, मुहूर्त, मंत्र और उपाय
चैत्र नवरात्रि 2023 दूसरे दिन का मुहूर्त -
चैत्र शुक्ल द्वितीया तिथि शुरू - 22 मार्च 2023, रात 08.20
चैत्र शुक्ल द्वितीया तिथि समाप्त - 23 मार्च 2023, रात 06.20
शुभ (उत्तम मुहूर्त) - सुबह 06.22 - सुबह 0754
लाभ (उन्नति मुहूर्त) - दोपहर 12.28 - दोपहर 01.59
चैत्र नवरात्रि 2023 दूसरे दिन के शुभ योग -
इंद्र योग - 23 मार्च, सुबह 06.16 - 24 मार्च, सुबह 03.43
सर्वार्थ सिद्धि योग - पूरे दिन
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि -
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन पीले या सफेद वस्त्र पहनकर देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए. चूंकी ये तपस्या की देवी है और तपस्वी अधिकतर सफेद या पीला वस्त्र धारण करते हैं. वैसे माता रानी का प्रिय रंग लाल है लेकिन इस दिन देवी को सफेद वस्तुएं अर्पित करने से भाग्य चमक उठता है. माता को शक्कर या पंचामृत का भोग लगाएं और ऊं ऐं नम: मंत्र का 108 बार जाप करें. ध्यान रहे मां ब्रह्मचारिणी की पूजा निराहर रहकर की जाती है तभी पूजा का फल मिलता है. कहते हैं नवरात्रि के दूसरे दिन इस विधि से पूजा करने पर जीवन के कठिन संघर्षों में भी व्यक्ति अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता और सफलता प्राप्त करता है.
नवरात्रि के दूसरे दिन करें ये उपाय -
चैत्र नवरात्रि के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन माता को चांदी की वस्तु अर्पित करें. साथ ही इस दिन शिक्षा और ज्ञान की प्राप्ति के लिए मां सरस्वती की उपासना करें. मान्यता है इससे बौद्धिक विकास होता है और करियर में किसी तरह की बाधाएं नहीं आती. इनकी कृपा से भक्तों को सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है.
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र -
• ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
• या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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chaitanyabharatnews · 5 years
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आज है स्कंदमाता की उपासना का दिन, मैनेजमेंट, वाणिज्य और बैंकिंग से जुड़े लोग इस विधि से करें पूजा
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चैतन्य भारत न्यूज आज गुप्त नवरात्रि का पांचवां दिन है और इस दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं स्कंदमाता की पूजा का महत्व और पूजन-विधि। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); स्कंदमाता की पूजा का महत्व स्कंदमाता को मोक्ष का द्वार खोलने वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। स्कंदमाता भगवान कार्त‍िकेय यानी स्‍कंद जी की मां हैं और इसलिए उनका नाम स्कंदमाता रखा गया है। स्कंदमाता की उपासना करने से अज्ञानी भी ज्ञानी हो जाता है। स्‍कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनमें से दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से वह अपने पुत्र स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं तथा नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। इसके अलावा देवी की बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। मैनेजमेंट, वाणिज्य, बैंकिंग अथवा व्यापार से जुड़े लोगों के लिए स्‍कंदमाता की पूजा करना अच्छा रहता है। स्कंदमाता की पूजा-विधि सबसे पहले चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर लगाए और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। देवी के साथ ही उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी) की स्थापना भी करें। स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ समय दिन का दूसरा प्रहर है। देवी को चंपा के फूल, कांच की हरी चूड़ियां व मूंग से बने मिष्ठान प्रिय है। देवी की उपसाना करते समय सफेद रंग के वस्‍त्र धारण करें। स्कंदमाता को भोग में केला चढ़ाए और फिर यह प्रसाद ब्राह्मण को दे दीजिए। पूजा के दौरान करें इस मंत्र का जाप सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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भक्तों के सभी रोग हर लेती हैं 'कूष्मांडा देवी', समृद्धि प्राप्ति के लिए आज करें इस मंत्र का जाप
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चैतन्य भारत न्यूज आज गुप्त नवरात्रि का चौथा दिन है और इस दिन मां कूष्मांडा की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व और पूजन-विधि। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व कहा जाता है कि, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब देवी कूष्मांडा ने इसकी रचना करने में सहायता की थी। इसलिए उन्हें आदि-स्वरूपा व आदिशक्ति भी कहा जाता है। कूष्मांडा माता की आठ भुजायें हैं और इस वजह से उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी पुकारा जाता है। देवी के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है तथा उनके आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। देवी कूष्मांडा सिंह की सवारी करती हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने से भक्तों के जीवन से सभी रोगों और शोकों का नाश हो जाता है साथ ही समृद्धि की प्राप्ति होती है। मां कूष्मांडा की पूजा-विधि मां कूष्मांडा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा कर नमन करें। मां कूष्मांडा की पूजा करते समय हरे रंग के वस्त्र धारण करें। मां कूष्मांडा की पूजा करते हुए देवी को जल और पुष्प अर्पित करें और साथ ही ये कहे कि उनके आशीर्वाद से आपका और आपके परिवार का स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहे। पूजा के दौरान मां कूष्मांडा को हरी इलाइची, सौंफ आदि अर्पित करें। मां कूष्मांडा की पूजा करते समय ''ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः'' का जाप करें। मां कूष्मांडा को भोग में मालपुए चढ़ाएं। मां कूष्मांडा का उपासना का मंत्र- कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम: वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥ ये भी पढ़े... आज गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन, इस विधि से करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा गुप्त नवरात्रि का तीसरा दिन आज, भय से मुक्ति पाने के लिए इस विधि से करें मां चंद्रघंटा की पूजा गुप्त नवरात्रि : आज करें मां कात्यायनी की पूजा, विवाह संबंधी परेशानियां हो जाएंगी दूर Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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आज गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन, इस विधि से करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
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चैतन्य भारत न्यूज आज गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन है और इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व और पूजन-विधि। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व ब्रह्मचारिणी देवी के हाथों मे अक्षमाला और कमंडल होता है। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी और इसलिए वह तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा करना विद्यार्थियों और तपस्वियों के लिए बेहद शुभ और फलदायी होती है। कहा जाता है कि, जिस भी व्यक्ति का चंद्रमा कमजोर हो, उन्हें मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करना चाहिए। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-विधि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय हमेशा पीले या सफेद वस्त्र धारण करें। मां ब्रह्मचारिणी को सफेद रंग के फूल अथवा वस्तुएं जैसे- मिश्री, शक्कर या पंचामृत अर्पित करें। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करते समय ज्ञान और वैराग्य के मंत्र का जाप करें। मां ब्रह्मचारिणी के लिए सबसे उत्तम जाप "ॐ ऐं नमः" माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते वक्त हाथों में एक सफेद रंग का फूल लेकर देवी का ध्यान करें और फिर इस मंत्र का उच्चारण करें- ध्यान मंत्र वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्। जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥ गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम। धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥ परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन। पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥ ये भी पढ़े... आज से शुरू हुई गुप्त नवरात्रि, 9 की बजाय 10 देवियों की होती है साधना, जानिए महत्व और पूजन-विधि शुक्रवार की शाम इस तरह करें माता लक्ष्मी की पूजा, दूर होगी धन से जुड़ी समस्या 2020 में आने वाले हैं ये प्रमुख तीज त्योहार, यहां देखें पूरे साल की लिस्ट Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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नवरात्रि के दुसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, विद्यार्थी जरुर करें इस मंत्र का जाप
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टीम चैतन्य भारत नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है। ब्रह्मचारिणी देवी के हाथों मे अक्षमाला और कमंडल होता है। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी और इसलिए वह तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा करना विद्यार्थियों और तपस्वियों के लिए बेहद शुभ और फलदायी होती है। कहा जाता है कि, जिस भी व्यक्ति का चन्द्रमा कमजोर हो, उन्हें मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि?  मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय हमेशा पीले या सफेद वस्त्र धारण करें। मां ब्रह्मचारिणी को सफेद रंग के फूल अथवा वस्तुएं जैसे- मिश्री, शक्कर या पंचामृत अर्पित करें। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करते समय ज्ञान और वैराग्य के मंत्र का जाप करें। मां ब्रह्मचारिणी के लिए सबसे उत्तम जाप "ॐ ऐं नमः" माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते वक्त हाथों में एक सफेद रंग का फूल लेकर देवी का ध्यान करें और फिर इस मंत्र का उच्चारण करें- ध्यान मंत्र वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्। जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥ गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम। धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥ परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन। पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥ ये भी पढ़े...  6 अप्रैल से होगी चैत्र नवरात्र की शुरुआत, ये है घट स्थापना का शुभ मुहूर्त Navratri 2019 : अगर नहीं कर पा रहे हैं व्रत तो जरूर करें इन मंत्रों का जाप, मां भर देंगी आपकी झोली Read the full article
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chaitanyabharatnews · 4 years
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आज है स्कंदमाता की उपासना का दिन, मैनेजमेंट, वाणिज्य और बैंकिंग से जुड़े लोग इस विधि से करें पूजा
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चैतन्य भारत न्यूज आज चैत्र नवरात्रि का पांचवां दिन है और इस दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं स्कंदमाता की पूजा का महत्व और पूजन-विधि। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); स्कंदमाता की पूजा का महत्व स्कंदमाता को मोक्ष का द्वार खोलने वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। स्कंदमाता भगवान कार्त‍िकेय यानी स्‍कंद जी की मां हैं और इसलिए उनका नाम स्कंदमाता रखा गया है। स्कंदमाता की उपासना करने से अज्ञानी भी ज्ञानी हो जाता है। स्‍कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनमें से दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से वह अपने पुत्र स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं तथा नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। इसके अलावा देवी की बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। मैनेजमेंट, वाणिज्य, बैंकिंग अथवा व्यापार से जुड़े लोगों के लिए स्‍कंदमाता की पूजा करना अच्छा रहता है। स्कंदमाता की पूजा-विधि सबसे पहले चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर लगाए और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। देवी के साथ ही उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी) की स्थापना भी करें। स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ समय दिन का दूसरा प्रहर है। देवी को चंपा के फूल, कांच की हरी चूड़ियां व मूंग से बने मिष्ठान प्रिय है। देवी की उपसाना करते समय सफेद रंग के वस्‍त्र धारण करें। स्कंदमाता को भोग में केला चढ़ाए और फिर यह प्रसाद ब्राह्मण को दे दीजिए। पूजा के दौरान करें इस मंत्र का जाप सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ Read the full article
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chaitanyabharatnews · 4 years
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आज है स्कंदमाता की उपासना का दिन, मैनेजमेंट, वाणिज्य और बैंकिंग से जुड़े लोग इस विधि से करें पूजा
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चैतन्य भारत न्यूज आज चैत्र नवरात्रि का पांचवां दिन है और इस दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं स्कंदमाता की पूजा का महत्व और पूजन-विधि। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); स्कंदमाता की पूजा का महत्व स्कंदमाता को मोक्ष का द्वार खोलने वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। स्कंदमाता भगवान कार्त‍िकेय यानी स्‍कंद जी की मां हैं और इसलिए उनका नाम स्कंदमाता रखा गया है। स्कंदमाता की उपासना करने से अज्ञानी भी ज्ञानी हो जाता है। स्‍कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनमें से दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से वह अपने पुत्र स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं तथा नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। इसके अलावा देवी की बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। मैनेजमेंट, वाणिज्य, बैंकिंग अथवा व्यापार से जुड़े लोगों के लिए स्‍कंदमाता की पूजा करना अच्छा रहता है। स्कंदमाता की पूजा-विधि सबसे पहले चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर लगाए और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। देवी के साथ ही उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी) की स्थापना भी करें। स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ समय दिन का दूसरा प्रहर है। देवी को चंपा के फूल, कांच की हरी चूड़ियां व मूंग से बने मिष्ठान प्रिय है। देवी की उपसाना करते समय सफेद रंग के वस्‍त्र धारण करें। स्कंदमाता को भोग में केला चढ़ाए और फिर यह प्रसाद ब्राह्मण को दे दीजिए। पूजा के दौरान करें इस मंत्र का जाप सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ Read the full article
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