वेद बचाओ अभियान जारी रहेगा
मित्रो! अनेक विरोध व बाधाओं के चलते हुए परमेश्वर की असीम कृपा व आप सब सहयोगी जनों के सहयोग व सद्भावना से मैं ऐतरेय ब्राह्मण का वैज्ञानिक भाष्य कर सका, जो वेदविज्ञान-आलोक: नामक 2800 पृष्ठीय विशालकाय ग्रन्थ के रूप में जून 2018 में ही प्रकाशित हो गया। यह ग्रन्थ अब तक विश्व के 18 से अधिक देशों में पहुँच चुका है। इसके पश्चात् मैंने निरुक्त का भाष्य प्रारम्भ किया, जिसके सम्बंध में अनेक भ्रान्तियाँ व बाधाएँ खड़ी की गईं। वह भी ईश्वकृपया व आप सबके सम्बल के कारण पूर्ण हो गया। मेरे मानस-पुत्र प्रिय विशाल आर्य व उनकी धर्मपत्नी मधुलिका आर्या द्वारा इसका ईक्ष्यवाचन का कार्य चल रहा है। यह ग्रन्थ भी विश्व का एक अद्भुत ग्रन्थ होगा।
अभी-अभी मैं वैदिक संध्या के मन्त्रों का त्रिविध भाष्य (आधिभौतिक, आध्यात्मिक व आधिदैविक) करके निवृत्त हुआ हूँ। इसमें विशेषता यह है कि तीनों प्रकार के भाष्यों में पारस्परिक क्या संगति है और उसका उपासना व व्यवहार में क्या उपयोग है, यह स्पष्ट हो सकेगा। इससे परमात्मा का महान् विज्ञान भी हर साधक को अनुभव में आ सकेगा और उसकी परमात्मा पर विशेष श्रद्धा बढ़ेगी। मुझे विश्वास है कि संध्या पर यह पुस्तक सबके लिए आश्चर्यजनक ही होगी। इसका टंकण (टाइपिंग) का कार्य चल रहा है।
मेरे सुहृज्जजनो! आप सब के सहयोग व परमेश्वर की कृपा मुझ पर निरन्तर बनी रहेगी ऐसा, मेरा विश्वास है। मैं अपना जीवन वेद के लिए समर्पित कर चुका हूँ। अन्य मेरा कोई प्रयोजन नहीं है। मेरे साथ मेरे प्रिय विशाल आर्य व मधुलिका आर्या का भी जीवन केवल वेद व राष्ट्रहित समर्पित है। ये प्रत्येक कदम मेरे साथ चल रहे हैं।
कोई कितनी बार, कोई कितनी ही बाधाएँ और भ्रान्तियाँ हमारे मार्ग में खड़ी करे, हमारा यह काम ईश्वर कृपा से निरन्तर जारी रहेगा। जो कोई हमारा विरोध कर रहे हैं, वास्तव में वे ऐसा करके हमारा परोक्ष प्रचार ही कर रहे हैं। यह हमारे लिए परीक्षा की घड़ी है, क्योंकि-
वह पथ क्या पथिक-कुशलता क्या, जिस राह में बिखरे शूल न हों।
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या, जब धाराएँ ही प्रतिकूल न हों॥
✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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1. परिचय वैदिक भौतिकी
2. Introduction to Vaidic Physics
3. वेदविज्ञान-आलोक:
Available on :
The Ved Science Publication
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वैदिक इतिहास का आरम्भ सृष्टि के आरम्भ से होता है अर्थात् 01,96,08,53,124 (लगभग 02 अरब वर्ष) वर्ष पूर्व से होता है । वैदिक संस्कृति सभी संस्कृति की जननी है । 🍁🙏
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भगवान् शिव की दृष्टि में धर्म
ओ३म्
आप सभी को नमस्ते
जैसा कि आप सभी को विदित है कि हमने (यशपाल आर्य) गुरुदेव आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी के भगवान् शिव जी के उपदेशों पर दिए गए प्रवचनों को संकलित करने को संकलित किया है, जो भगवान् शिव की दृष्टि में धर्म नाम से प्रकाशित हुआ तथा जिसका विमोचन वैदिक एवं आधुनिक विज्ञान महोत्सव में हुआ। एक तरह तो पौराणिक बंधुओं ने भगवान् शिव का बहुत विकृत रूप संसार के समक्ष प्रस्तुत किया तो वहीं आर्य समाजी बंधुओं ने उन्हें उपेक्षित मान लिया, जबकि ऋषिवर दयानन्द जी ने पूना प्रवचन में भगवान् शिव के इतिहास को थोड़ा बताया है, जिसका वर्णन हमें उपदेश मंजरी में प्राप्त होता है। भगवान् शिव के उपदेश हमें महाभारत में प्राप्त होते हैं। इन्हीं पर आचार्य जी ने एक लंबी श्रृंखला में व्याख्यान दिया था, जिसको हमने लिपिबद्ध किया। धर्म को समझने के लिए सभी सज्जन महानुभावों को इस पुस्तक से अच्छी सहायता प्राप्त होगी। इस पुस्तक को पढ़ कर धर्म के स्वरूप को समझें तथा उनके बताए धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास कर के भगवान् शिव के सच्चे भक्त बनने का प्रयास करें।
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✍️यशपाल आर्य
(संकलनकर्ता - भगवान् शिव की दृष्टि में धर्म)
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मोदी जी की मातृभक्ति तो श्लाघनीय है, परन्तु…
माननीय मोदी जी की ये भावनाएँ बहुत सुखद हैं। आपकी माँ के प्रति श्रद्धा वर्तमान तथाकथित प्रगतिशीलों के लिए अनुकरणीय है। मेरे देश की युवा पीढ़ी! इन चित्रों को देखकर अपने माता-पिता आदि वयोवृद्धों का सम्मान करना सीख ले।
हे मान्यवर मोदी जी! इसी कोमल हृदय से सम्पूर्ण आर्य्यावर्त्त (भारतवर्ष) की दयनीय अवस्था पर विचार करें। यह भारत भले ही कितना ही विकास करता प्रतीत हो रहा हो, भले ही न्यू वर्ल्ड ऑर्डर में आप इसे कोई महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाने का प्रयास कर रहे हैं, परन्तु क्या आज भारत में भारतीयता बची है? मुझे भय है कि सम्पूर्ण भारत कहीं अमेरिकन वा यूरोपियन कुसंस्कारों के कारण यूरोप वा अमेरिका ही न बन जाए और भारत निष्प्राण हो जाए। मेरा निश्चित मत है कि न्यू वर्ल्ड ऑर्डर सम्पूर्ण विश्व को उन्हीं का दास बनाने के लिए आ रहा है, जिन्होंने संसार को सैकड़ों वर्ष तक लूटा व प्रताड़ित किया। भारत की लाखों वीर-वीरांगनाओं के रक्त से यह मिट्टी आज भी सनी हुई है, उन वीर-वीरांगनाओं की चिता की राख अभी भी गर्म है। आज कैसे गौरे हमारे हितैषी हो गए?
हे मान्यवर! आपको विश्व में मिल रहा सम्मान प्रत्येक भारतवासी को गर्व का अनुभव कराता है, परन्तु कहीं यह सम्मान हमें मूर्ख बनाकर फिर से उसी प्रकार दास बनाने के लिए नहीं किया जा रहा, जिस प्रकार पूर्व में अंग्रेज भारत के प्रसिद्ध व्यक्तियों व राजाओं को 'सर' आदि शब्दों से सम्मानित करके अपना साम्राज्य स्थापित करते वा बढ़ाते रहे थे।
इसलिए हे मान्यवर! न्यू वर्ल्ड ऑर्डर से सावधान हो जाएँ। आज पूर्व की अपेक्षा अधिक विकट स्थिति है, क्योंकि अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत के निवासी विचारों, संस्कारों व शिक्षा से विशुद्ध भारतीय थे, परन्तु आज सब कुछ अंग्रेजों का ही परोसा हुआ अथवा उनका उच्छिष्ट मात्र है। आज भारतीय अपने पूर्वजों पर शर्म करने वाले हैं, गर्व करने का तो चिह्न भी नहीं है। सम्पूर्ण भारत बौद्धिक दासता के जाल में जकड़ा हुआ है, इस कारण यदि भारत न्यू वर्ल्ड ऑर्डर की ओर बढ़ा, तो सम्पूर्ण दासता अवश्यम्भावी है।
इस कारण आप से विनती है कि इस दासता की आहट को यहीं समाप्त करके इस भारत को बचा लें, अन्यथा सब समाप्त हो जाएगा। मैं जानता हूँ कि आलोचना करना व परामर्श देना सरल कार्य है, जबकि देश को चलाना अति दुष्कर है। एक परिवार चलाना भी अति दुष्कर होता है, तब देश चलाना तो बहुत बड़ी बात है। पुनरपि सम्यक् एवं निष्पक्ष आलोचना व उचित परामर्श देने वाले भी संसार में कम ही होते हैं और उनकी उपेक्षा करना देशहित में कदापि उचित नहीं है। फिर कोई परामर्श भी समर्थ व्यक्ति को ही दिया जाता है। यदि आप जैसा समर्थ व्यक्ति भी यदि इस न्यू वर्ल्ड ऑर्डर से देश को नहीं बचा सका, तो दूसरे ग्रह से कोई हमें बचाने नहीं आएगा।
इसलिए मान्यवर! कृपया आत्मनिरीक्षण करके अपने सामर्थ्य का समुचित उपयोग करके देश बचा लीजिए, अपने सलाहकारों पर ही निर्भर न रहें।
✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
(वैदिक एवं आधुनिक भौतिकी शोध संस्थान)
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संसार को मेरी चेतावनी?
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पुस्तक का विमोचन
आप सभी को यह जान कर बहुत हर्ष होगा कि ईश्वर की कृपा से हमने (यशपाल आर्य) गुरुदेव आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी के "भगवान् शिव की दृष्टि में धर्म का स्वरूप" पर दिए प्रवचनों को संकलित किया, जो "भगवान् शिव की दृष्टि में धर्म" नाम की पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। इसका विमोचन कार्य वैदिक एवं आधुनिक विज्ञान महोत्सव 2022 में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
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पूंजीपतियों का तोता...
जब वित्तीय संस्थाएँ, उद्योगपति एवं सूचना प्रौद्योगिकी की कम्पनियों के स्वामी रोगों की भविष्यवाणी करने लगें, तब समझना चाहिए कि अब नास्तिक वैज्ञानिक पूंजीपतियों के पालतू तोते बन गए हैं, जो पिंजरे में बैठकर वही बोलते हैं, जो उनके स्वामी उन से बुलवाते हैं। तब वैज्ञानिक योग्यता व सदाचार से दूर राजनेताओं का इन पूंजीपतियों के संकेतों पर नाचना और अपने अवैज्ञानिक प्रावधानों से जनता को प्रताड़ित करना और उसकी स्वतंत्रता को ही छीन लेना स्वाभाविक ही है।
वस्तुतः असत्य और अवैज्ञानिकता ने पूंजीवाद की गोद में बैठ कर सत्य एवं यथार्थ विज्ञान को धमका कर गला घोट दिया है। भय उनका मुख्य अस्त्र है और धन की लूट उनका मुख्य उद्देश्य। इस प्रकार लोभ व भय ने आज संसार से मानवता व विज्ञान जैसे पावन गुणों को निगल लिया है। आज हमारे लोकतंत्र पर पशु-पक्षी भी हंस रहे हैं। वस्तुतः वे कितने सुखी, स्वतंत्र व विवेकी हैं और इधर अपनी बुद्धिमत्ता के लिए अहंकार करने वाला मानव मूर्खता व भय के कारण करोड़ों मूक प्राणियों के प्राण लेकर अपने प्राण बचाने का दिवा स्वप्न देख रहा है तथा मीडिया के झूठे ताण्डव में उसे सत्य का कभी आभास ही नहीं होता।
आज सत्य कहने वाले वीर पुरुष विरले हैं परन्तु उस सत्य को सुनने व मानने वाले सम्भवत: इस लोक को छोड़कर कहीं और लोक में चले गए हैं।
मानवतावादियो एवं सत्य व विज्ञान में विश्वास करने वालो! अब तुम भी समझ लो कि अब यह धरती सद्गुणियों से सूनी हो गई है। यहाँ तो लोभ व भय पर आधारित पढ़ी-लिखी अराजकता का क्रूर ताण्डव तब तक चलता रहेगा, जब तक मानव सभ्यता पूर्णत नष्ट न हो जाए और पूंजीपति इस पृथ्वी का नाश करके मंगल वा चन्द्रमा पर अपने ठिकाने ना बना लें।
ये पूंजीपति रोग भी फैलायेंगे, दवा भी बनायेंगे अनेक अनावश्यक चिकित्सीय उपकरण भी बनायेंगे और अन्यों के व्यापार व उद्योगों को ठप कराकर करोड़ों लोगों को बेरोजगार बनाकर मारेंगे भी और स्वयं धनकुबेर बनते रहेंगे। इनके विरुद्ध कोई भी न तो बोल पाएगा और न ही कुछ कर पाएगा। इनके कारनामों से आज बड़े-बड़े धर्म परायण लोगों का धर्म से विश्वास उठ गया है, बड़े-बड़े अहिंसावादियों की जड़ें हिलने लग गई हैं, ईश्वरीय व्यवस्था पर सबका विश्वास डगमगा गया है और सब ओर अनिश्चितता एवं नास्तिकता का साम्राज्य हो गया है।
✍️ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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वर्तमान संक्रामक रोग में एक प्रसिद्ध आयुर्वेद चिकित्सक का परामर्श
वर्तमान संक्रामण से बचाव व उपचार के विषय में मेरी सर्वपल्ली राधाकृष्णन् आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय, जोधपुर के प्रोफेसर डॉ. महेश जी शर्मा से व्यापक वार्ता हुई। मैं उन्हें पिछले लगभग 7-8 वर्ष से जानता हूँ। वे उस विश्वविद्यालय से योग्यतम, कर्मठ व ईमानदार चिकित्सक हैं, ऐसा मेरा मत है। उन्होंने मुझे वर्तमान संक्रामक रोग के विषय में चर्चा में बताया कि आयुर्वेद में चिकित्सा रोगी की प्रकृति तथा ऋतु के अनुसार की जाती है। रोगी की प्रकृति रोगी को देखकर ही जानी जाती है। ग्रीष्म ऋतु में गर्म औषधियों का सेवन उचित नहीं है। साधारण रूप से ग्रीष्म ऋतु में निम्नानुसार चिकित्सा करनी चाहिए-
🔘 बचाव के लिए
सितोपलादि चूर्ण - 1.5 ग्राम
गोदन्ती भस्म - 250 मिली ग्राम
शुभ्रा (फिटकरी) भस्म - 30 मिली ग्राम
गिलोय चूर्ण - 500 मिली ग्राम
मुलैठी चूर्ण - 500 मिली ग्राम
यह वयस्क व्यक्ति के लिए खुराक है - खाली पेट गुनगुने पानी अथवा शहद से दिन में दो बार लें।
🔘 नमक, हल्दी गर्म पानी के साथ प्रतिदिन गरारे करें।
🔘 नाक में प्रतिदिन 4-4 बूंद पंचगव्य घृत अथवा देशी गाय का घृत अथवा सरसों वा नारियल तेल दोनों नथुनों में डालें। मुख में आने पर थूकते रहें, कफ निकल जायेगा। इन्हें डालने के पश्चात् एक से डेढ़ घण्टे जल न पीयें। यदि प्यास हो, तो गर्म जल लें।
🔘 फल व शाक बाजार में उपलद्ब्रध के अनुसार नहीं, बल्कि ऋतु के अनुसार ताजा ही प्रयोग करें। कोई भी फल बाजार में आते ही खरीदने से बचें।
🔘 प्रतिदिन व्यायाम, प्राणायाम (खुली हवा में) अवश्य करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
🔘 घर में प्रतिदिन गोघृत से हवन करें अथवा गोघृत, तमालपत्र, लहसुन, गुग्गुल, अजवाईन व कपूर का धूप करें। (यह धूप का योग विराल देसाई, बड़ोदरा के अनुसार है।)
🔘 पानी भरपूर पीयें। फ्रिज का पानी नहीं पीयें। थोड़े भी लक्षण दिखने पर मटके का पानी भी नहीं लें। दही नहीं लें। स्वस्थ व्यञ्चित काला नमक व भूना हुआ जीरा व पुदीना डालकर गाय की ताजा छाछ ले सकते हैं।
🔘 चिकित्सा के लिए
1.
सितोपलादि चूर्ण - 1.5 ग्रा.
गोदन्ती भस्म - 250 मि.ग्रा.
मुक्ता भस्म - 30 मि.ग्रा.
अकीक पिष्टी - 250 मि.ग्रा.
महालक्ष्मी विलास रस - 30 मि.ग्रा.
गिलोय सत्व - 250 मि.ग्रा.
2. अगस्त्य हरितकी 1-2 चम्मच गर्म पानी के साथ, दिन में दो बार।
यह मात्रा व्यस्क के लिए एक खुराक है। शुरुआती दिनों में सांस की तकलीफ, गले में खराश। शरीर में दर्द और कमजोरी महसूस होती है, तो सांस की तकलीफ और हृदय संबंधी गड़बड़ी होती है। स्वाद की असामान्यता
🔘 आक्रामक लक्षण और संकेत
योगेन्द्र रस - 60 मिली ग्राम। उपर्युञ्चत दवाओं के साथ जोड़ा जा सकता है। यह बहुत उपयोगी और प्रभावी है।
🔘 ज्वर की स्थिति में
संजीवनी वटी - 250 मिलीग्राम। हल्के गर्म पानी के साथ (2 तुलसी पत्र और 1 लीटर पानी में 1 लीटर उबला हुआ पानी जब 250 मिलीलीटर बन जाता है) और महा सुदर्शन घन वटी 2 हल्के गर्म दूध के साथ दिन में दो बार। शाम को ज्वर बढने की स्थिति में 14 दिनों के लिए। उपर्युक्त योगों के साथ।
तीव्र ज्वर की स्थिति और अन्य गम्भीर लक्षणों में योग्य आयुर्वेद चिकित्सक का परामर्श तुरन्त लें। मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड का परीक्षण भी उनके परामर्श पर करा सकते हैं।
उपर्युक्त चिकित्सा काल में कम से कम 3 से 4 लीटर पानी का सेवन बहुत आवश्यक है। तरल आहार और सन्तुलित भोजन करें। अधिक तेल, मसालेदार, मिर्च, अचार, दही, छाछ और इससे बने हुए पदार्थ, बेसन, प्रोसेस्ड फूड, टोमेटो फूलगोभी, भिन्डी, फलियाँ का प्रयोग नहीं करें।
नोट: आप यह चिकित्सा किसी सुयोग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में करें, तभी अच्छा रहेगा, ऐसा मेरा आपको परामर्श है। हाँ, बचाव हेतु उपाय आप स्वयं कर सकते हैं।
-आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
#vaidicphysics #AcharyaAgnivrat
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