लंका फतह करने में बाधा बन रहे समुद्र के आगे असहाय हुए दशरथ पुत्र राम से भिन्न वह आदिराम/आदिपुरुष परमात्मा कौन है, जो त्रेतायुग में मुनींद्र ऋषि के रूप में उपस्थित थे एवं जिनकी कृपा से नल नील के हाथों समुद्र पर रखे गए पत्थर तैर पाए थे।
इस आध्यात्मिक रहस्य को जानने के लिए अवश्य देखें साधना चैनल शाम 7:30 बजे।
600 वर्ष पूर्व कबीर साहेब जी सतलोक से चलकर आते हैं। जिनका प्रमाण अपने सभी सद ग्रंथों दिया हुआ है।ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 है इसमें स्पष्ट है कि (सोम) अमर परमात्मा जब शिशु रूप में प्रकट होता है तो उसकी परवरिश की लीला कुंवारी गायों (अभि अध्न्या धेनुवः) द्वारा होती है।
600 वर्ष पूर्व कबीर साहेब जी सतलोक से चलकर आते हैं। जिनका प्रमाण अपने सभी सद ग्रंथों दिया हुआ है।ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 है इसमें स्पष्ट है कि (सोम) अमर परमात्मा जब शिशु रूप में प्रकट होता है तो उसकी परवरिश की लीला कुंवारी गायों (अभि अध्न्या धेनुवः) द्वारा होती है।
600 वर्ष पूर्व कबीर साहेब जी सतलोक से चलकर आते हैं। जिनका प्रमाण अपने सभी सद ग्रंथों दिया हुआ है।ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्�� 9 है इसमें स्पष्ट है कि (सोम) अमर परमात्मा जब शिशु रूप में प्रकट होता है तो उसकी परवरिश की लीला कुंवारी गायों (अभि अध्न्या धेनुवः) द्वारा होती है।
नानकदेव जी को कबीर साहेब सुल्तानपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में बेई नदी पर जिंदा महात्मा के वेश में आकर मिले थे। उन्हें सचखंड यानी सत्यलोक के दर्शन कराए थे उन्होंने कबीर साहेब की महिमा गाते हुए कहा है :-
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।
(गुरु ग्रन्थ साहिब राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29)