achitatrip
achitatrip
Random thoughts
86 posts
Don't wanna be here? Send us removal request.
achitatrip · 4 months ago
Text
Random
रोज़ एक ‘काश’ के साथ शुरू करते हैं और ‘शायद’ पर आके खत्म कुछ मिजाज़ तुम्हारा भी अलग था कुछ बातें मेरी भी अलग थी कभी तुमने चाहा कि मैं समझ जाऊं कभी मैंने सोचा कि सिर्फ मैं ही क्यों सोचूं कभी यार कि तरह मनाया तुमने कभी बच्चों कि तरह रूठी मैं कभी तुम कुछ ना बोले औरकभी तुम सब समझ गए मेरे कुछ बिना बोले कभी मैंने तुम्हें थामा और कभी तुमने मुझे संभाला और ऐसे ही ये साल हमारा बीत गया…
0 notes
achitatrip · 1 year ago
Text
मेरे आसमान का रंग कभी नीला नही थाउसमे रोशनी थी सफेदी थीथोड़ी सी लाली थी और बहुत से बादल थेरुई के फाहे से काले सफेद केसरकहीं कहीं सितारे भी छिटके थेऔर ध्यान से देखने पर जुगनू भी दिख जाते थेलोगो ने बताया आसमान नीला ही है तुम्हारा भीलोगों के कहने पर मान लियाएक आंख बंद करके देखने की कोशिश कीपलक कई बार झपका के भी देखापर नीला कहां से है ये न दिखासब बोलते आस पास के देखो कितना नीला है येपर मुझे दिखता तो…
0 notes
achitatrip · 1 year ago
Text
विदाई
धीरे धीरे सब ठीक हो ही जाता हैहिचकोले खाता पानी भी आगे चलकर शांत हो जाता हैसब पूछते हैं सारा सामान आ गया ना?मैं जवाब में हां पता नहीं क्यों दे ही नही पाती  कैसे बताऊं सब सामान नहीं आ रहामेरे कमरे कि गर्माहट जो वापस आते ही मुझे महसूस होती थी उसे कहां रखूं जो इतने सालों से इखट्टा की थी किताबें वो कैसे एक साथ ले जाऊंउन किताबों में जो कहानियां पढ़ी थी वो कैसे एक साथ रख लूंवापस आकर जो मेरे बिस्तर की…
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 2 years ago
Text
तुम्हारे लिए
कोई लंबा सा उपन्यास नहींछोटी छोटी सी कहानियां हो तुमबड़ी गंभीर सी बातें नहींहल्के फुल्के से किस्से हो तुम��र्मी से भरा हुआ दिन नहीठंडी सी शाम हो तुमथकान से भरी हुई नींद नहीगुदगुदा सा सपना हो तुम मेरी सोमवार सी ज़िंदगी मेंइतवार से हो तुम…. अचिता
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 3 years ago
Text
तुम्हारे लिए पहली कविता
हूं तो मै अब भी वैसी जैसी पहले थीबस…अब रंग देखते वक्त ये सोचती हूं कि तुम पर कौन सा रंग सबसे ज़्यादा फबेगाभीड़ में खड़े-खड़े जब तुम ध्यान आते हो तो मैं यूं ही हंसने लगती हूंआजकल अपनी शाम कि चाय तुम्हारे साथ पीना ज़्यादा पसन्द करती हूंकभी कभी जब अपने बाल अपने कान के पीछे करती हूं तो जाने क्यों अपने आप तुम्हारी उंगलियों याद आ जाती हैंतुम्हारा नाम लेता कोई और है और पलट मैं जाती हूंतुम्हारी नर्म…
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 3 years ago
Text
तुम्हारे जाने के बाद कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ाबस मैंने हर शक्स में तुमको ढूंढना अब शुरु कर दिया है….
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 3 years ago
Text
मुझे कभी वो लोग समझ नही आते जिनको एक मोड़ पे आके अपना रास्ता मिल जाता हैं… या वो जो भटकते हुए मंज़िल तक पहुँच जाते हैंकैसे ये दूसरा हिस्सा ढूँढ लेते हैं अपनी पहेली का? कैसे इनका खांचा दूसरे में फिट बैठ जाता हैं?मुझसे तो आजतक इनमें से कुछ भी नही हो पाया…एक रास्ता पकड़ती हूँ तो लगता है अरे ��ूसरा वाला ज़्यादा अच्छा था। इसमें तो छाया भी नही, बकवास करने के लिए कोई इनसान भी नही…आधे रास्ते पहुँच के लगता है…
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 3 years ago
Text
तुम
तुमएक बेकल सा ख़्याल होमेरी हंसी के बीच जो अचानक याद आ जाता हैऔर मैं यूं ही भीड़ के बीच खो जाती हूंतुममेरा एक अधूरा अफसाना होजिसे मैं अक्सर अकेले में गुनगुनाती हूंऔर हंसते हंसते अंत में रो देती हूं तुममेरी वो अधूरी राह होजिस पर मैं चली तो बहुत उत्साह से थीपर चलते चलते एक अलग ही मोड़ पर मुड़ कर खो गई तुममेरा वो सुबह का अधूरा सपना होजिसका अंत मैं रोज़ रात नया लिखना शुरू करती हूं पर सुबह होते होते…
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 3 years ago
Text
बदलाव
हम सोच भी नहीं पातेऔर एक दिन अचानक बदलाव हमारे बगल से होते हुए निकल जाता हैहम बस अनुमान लगाते रह जाते हैऔर वो सब कुछ होता चला जाता है जो हमने बस अभी तक सोचा ही थाअपने नए दिनों में बैठ कर पुराने दिनों को सोचते हैंवर्तमान में चलते हुए अपने भविष्य कि आहट सुनने लगते हैं‘हम’ से हटकर ‘मैं’ पर ध्यान देने लगते हैंअपने अतीत कि कहानियाँ दोहराते हुए माफ़ी मांगने कि तमाम कोशिशें करते हैंकई बार बिना वज़ह…
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 4 years ago
Text
कई बार होगाकई दफा होगाजब आपको लगेगा आपने क्यूं किया येक्यूं ना बोल पाए जो बोलना था जब वक़्त थाक्यूं सब जानते हुए भी हम चुप रहे और होने दिया जो हो रहा थाक्यूं हमने ज़ज्बातों कि खिल्ली उड़वायीक्यूं हम सोचते रहे और उलझन पर उलझन बढ़ाते रहेबेवजह बेमतलब बातें इतनी बढ़ाते रहे पर जब ये होगा ठीक ��सी वक़्तहम खोए होंगे और एक फूल खिल चुका होगा उस पौधे में जो तुम लगभग भूल चुके होगेतुम्हारी अधूरी कविता जो एक…
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 4 years ago
Text
कई बार होगाकई दफा होगाजब आपको लगेगा आपने क्यूं किया येक्यूं ना बोल पाए जो बोलना था जब वक़्त थाक्यूं सब जानते हुए भी हम चुप रहे और होने दिया जो हो रहा थाक्यूं हमने ज़ज्बातों कि खिल्ली उड़वायीक्यूं हम सोचते रहे और उलझन पर उलझन बढ़ाते रहेपर जब ये होगा ठीक उसी वक़्तएक फूल खिल चुका होगा उस पौधे में जो तुम लगभग भूल गए होगेया एक अधूरी कविता अचानक से पूरी हो जाएगीवो बचपन में पढ़ी हुई कहानी फिर एक रात…
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 4 years ago
Text
दिसम्बर
हर बार कि तरह इस बार भी ये लगाअब तक मेरे हाथ में थापर फिर भी ये साल मेरे हाथ से फिसलता जाता हैधीरे-धीरे ठीक जैसे रेत के दानेधीमी रफ़्तार से उँगलियों के बीच सेबस गिरता जा रहा हैइस बार भी बहुत कोशिश किबीता हुआ साल बचा के रखने कीकुछ हिस्सा हर महीने का अपने पास रखने कीमुट्टी बंद कर भीचने कीजितना कस कर बंद करूं उतनी ही तेज़ी से भागताऔर ऐसे ही सारे महीने एक एक करके गिर जातेहर बार कि तरह इस बार भी सिर्फ़…
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 4 years ago
Text
एक दिन का किस्सा नहीं है वैसे तुम्हें जाननापर ये किस्सा आजकल मैं रोज दोहराती हूंतुमको समझने चले थेखुद को समझना सीख लियातुमसे बातों का वक़्त चुना थाना जाने वो वक़्त कब मेरा हो गयाख्वाब तुम्हारे देखे थेहकीकत मेरी बन गएरात तुम्हारे लिए लिखी थीमेरी सुबह कि किताब वो बन गईहर बात तुमसे शुरू कि थीना जाने कैसे वो मेरी तरफ मुड़ गईतुमसे तुमको जानना चाहा थाऔर एक दिन यूं ही मैंने खुद को जान लिया
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 4 years ago
Text
कुछ खास नहीं था मान करहमने खुद को मना लियाये फिजूल कि बातें हैं कह करहमने दिल को बहला लियाकिसी तरह समझा बुझा केकहानियों से मन हटा लियादुनिया को आखिर दिखा दियाहाँ, हमने आगे बढ़ना सीख लियापर एक सवाल हैना हमने खुद से पूछाना किसी ने हमें सुझायाये बे-फिजूल बातों करकेखास वक़्त ज़या करकेजो हमने सब इकठ्ठा कियाना चाहते हुए भी महसूस कियाअपने लिये रखे वक़्त में भीउनके बारे में ही सोचाऔर कभी कभी तो लंबा…
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 4 years ago
Text
दुबारा
किताब पढ़ते वक़्त कुछ पन्नों में निशान लगा देते हैं ताकी पलट कर दुबारा देख सकें।आगे पहुँच जाते है फिर भी पीछे मुड़ के उन पन्नों को पढ़ने का मन करता रहता है। फिर बहुत समय बाद कस के हँसी आती है जब एहसास होता है कि असल में हमें पन्ने-वन्ने में कोई दिलचस्पी नही है हमारी तो आदत ही है ‘आगे बढ़ के पीछे मुड़ना…’
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 4 years ago
Text
आज बस और हैकल रात कि दुनिया फिर से नयी बनेगीऔर हमारा पुराना सब कुछ एक नई चादर ओढ़ेहमारा बेसब्री से सुबह में इंतजार कर रहा होगा….
View On WordPress
0 notes
achitatrip · 4 years ago
Text
आदत
एक आदत सी बन गई हैऔर आदतें कभी नहीं छूटतीशायद इसीलिए आज भी मै जाने कैसे तुम्हारे दरवाज़े पर आ के रुक जाती हूँमुझे पता है खुलेगा नही….जंग लगे दरीचे जल्दी खुलते कहांऔर अन्दर से कब से बंद भी हैफिर भी खटखटाती हूंक्यूँ आयी थी मैं…इसका जवाब तो अभी सोचा भी नहीपर कौन से मोड़ से घर तुम्हारा नज़दीक ��ड़ेगा ये अभी भी याद हैऔऱ वो बड़ा सा पेड़ जिसके नीचे मैने पहले जाने कितने बहाने रटे थेजैसे…‘कैसे हो?’‘क्या मुझे…
View On WordPress
0 notes