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amazingsubahu · 5 years ago
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क्या बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये जीवन व्यतीत करना संभव है?
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क्या बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये जीवन व्यतीत करना संभव है?
क्या बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये जीवन व्यतीत करना संभव है? यह सवाल मुझसे एक Quora मित्र ने पूछा है। हाँ, बिल्कुल संभव है, यह नेक काम मैं कर रहा हूँ, इतने वर्षों से, प्रकृति ने हमें प्रजनन की शक्ति प्रदान की है, इसके लिए अंग और शारीरिक व्यवस्था प्रदान की है, यह क्षमता और प्रवृत्ति हम मे और सभी जीवधारियों में एक समान है। सभी अन्य जीव और अधिकांश मनुष्य इसे अपनी प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति के आधीन यंत्रवत कार्य करते हैं, उनका इस पर कोई भी जोर नहीं है, एक उम्र और समय विशेष में उनके अंदर कामवासना का संचार होता है और वो अपने नर या मादा साथी के साथ शारीरिक रूप से संयुक्त होते हैं और प्रजनन करते हैं, यह एक अनिवार्य घ���क के रूप में सभी जीवधारियों में संपन्न किया जाता है, अपनी प्रजाति को निरंतर बनाये रखने और इसमें वृद्धि करने के लिए यह प्रकृति प्रदत्त विधान है और मनुष्य सहित सभी जीवधारी इसके आधीन है। मनुष्यों और अन्य जीवधारियों में एक बुनियादी भेद हैं इस सम्बन्ध में, मनुष्य इस प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति के आधीन रहने को बाध्य नहीं है वह विशिष्ट साधनाओं और योगिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके इस शारीरिक बाध्यता/आवश्यकता से परे जा सकता है इससे मुक्त हो सकता है, लेकिन यह सभी के लिए साधारण रूप से साध्य नहीं है, उनकी कमज़ोर इच्छा शक्ति और विशिष्ट मार्ग पर चलने के प्रति अनिच्छा के कारण, लेकिन यह हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता है।
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विवाह और गहरी आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध  प्रश्नकर्ता के प्रश्न का उत्तर यह है की मनुष्यों द्वारा इसे साधने या इससे मुक्त होने के दो ही तरीके हैं - पहला जो लगभग सभी लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, विवाह, एक उम्र के बाद जब आप के अंदर काम वासना प्रबल हो जाये और आप इसके वेग सम्हालने में समर्थ न हो पायें आप एक प्रेमपूर्ण बंधन में विवाह में संयुक्त हो जाइये और इस उर्जा का वैधानिक और युक्तियुक्त तरीके के नियोजन, नियमन और विसर्जन कर लें, अब आप कहेंगे इसमें तो बंधन और शारीरिक सम्बन्ध दोनों से गुजरना पड़ेगा। विवाह संस्था का अविष्कार मनुष्य की इसी आवश्यकता के नियमन और और उसे एक व्यवस्थित और विधायक रूप प्रदान करने के लिए ही किया गया था, जो आज भी सबसे बेह���र व्यवस्था और उपाय है, प्रकृति प्रदत्त बाध्यता और शक्ति के नियमन, नियोजन और व्यस्थापन का, यह सार्वभोमिक और सर्व स्वीकृत व्यवस्था है पूरे विश्व में और स��ी संस्कृतियों में। निश्चित ही आपको इससे गुजरना पड़ेगा, लेकिन यदि आप अपने साथी के साथ एक बेहद मित्रतापूर्ण और आत्मीय सम्बन्ध निर्मित कर लें तो यह काम के विसर्जन में बेहद सहायक हो सकता है स्त्री और पुरुष दोनों के लिए, वो इसे एक दुसरे के प्रति बेहद आदर और प्रेम के साथ एक गहरी मित्रता में रूपांतरित कर सकते हैं जहाँ काम का प्रभाव और प्रबलता न्तयूनम हो जायेगी। इस तरह एक समय के पश्चात् शारीरिक सम्बन्धों के प्रति बहुत आकर्षण और प्रबलता नहीं रहेगी, यदि उनके मध्य गहरे आत्मीय और भावनात्मक प्रगाढ़ता विकसित हो जाये ,और वो एक दुसरे को महज लिंग के आधार पर नहीं एक व्यक्ति के रूप में प्रेम और मित्रता पूर्ण सम्बन्ध विकसित कर सकने में सफल हो जाएँ, यह बेहद आसान और सबसे सुविधाजनक तरीका है, इस धरती पर बहुसंख्यक लोगों के लिए, संतान की प्राप्ति और उनके पालन पोषण की व्यस्तता भी उनके अंदर कामवासना की प्रबलता को क्षीण कर देती है। बहुत सारे दम्पत्तियों में संतान के जन्म के पश्चात् जब वो माता और पिता बन जाते हैं, काम में रस और उसकी प्रबलता क्षीण हो जाते हैं, और यदि पुरुष स्त्री में मातृत्व को गहराई से देखने लगे तो उसकी काम में रूचि विलीन हो जाती है और वह स्त्री मात्र में माँ को देखता है, अपनी पत्नी और सभी स्त्रियों में, यह संभव है यदि आप आत्मीय, भावनात्मक और वैचारिक रूप से परिपक्व और गहरे हो जाएँ तो यह सहजता से घटित होता है। चुनौतियाँ और उपाय  यह बहुत लोगों का सवाल और समस्या है, लेकिन शरीर का अपना नियम है, वह पुनरुत्पादन करना चाहता है, प्रकृति अपना काम करती है,  शरीर के हॉर्मोन तो जोर मारते ही रहेंगे और आपको उसके लिए प्रेरित और बाध्य करते रहेंगे, काम सर्वाधिक शक्तिशाली ऊर्जा है और इसका वेग अनियंत्रित और असाधारण होता है, इसका दमन उचित नहीं है। काम को दबाना संभव नहीं है और यह स्वस्थ बात भी नहीं है, और ऐसा करने पर यह 24 घंटे आप पर हावी होकर आपसे कोई भी अनर्थ करवा सकता है, पुरुषों के लिए यह बेहद मुश्किल है, क्योंकि उनका काम आक्रामक होता है, वह हिंसा, क्रोध, और अन्य ज्यादा बुरे तरीकों से अभिव्यक्ति और विसर्जन के मार्ग खोजेगा। स्त्रियों के लिए ये आसान होता है, पुरुषों के लिए बहुत मुश्किल होता है, बेहतर है आप किसी के साथ स्वस्थ, प्रेमपूर्ण संबंध और एक संतुलित और वैधानिक रिश्ते में हों, तो इसका नियमन बेहद सरल और सुविधा जनक हो सकता है। अधिकांश लोगों के लिए साथ या विवाह करना ज्यादा आसान होता है, क्योंकि यह विपरीत ऊर्जाओं के मध्य संतुलन स्थापित करने में और विसर्जन करने एवं उचित नियोजन में सहयोगी होता है। यदि आप इसे देख , स��झ और नियमित कर सकते हैं तो अच्छा है वरना यह आपको मानसिक , शारीरिक रूप से विकृत, कुंठित और बीमार बना सकता है। हमारी संस्कृति में इसके लिए विवाह का विधान कर रखा है, आप विवाह और आत्मीय प्रेम संबंधों द्वारा इसे बेहद सरलता और सहजता से नियमित कर सकते हैं। विवाह और स्त्रियों का स्नेह और प्रेम इसमें मददगार है  यह समस्या पुरुषों के साथ ज्यादा होती है, क्यूंकि स्त्रियाँ आसानी से जीवन भर बिना शारीरक सम्बन्ध बनाये रह सकती हैं, बिना कुंठा और विकार के, उनकी प्रकृति ग्राहक है और पुरुषों की आक्रामक, अतः यह उनके लिए ही सबसे बड़ी समस्या है या उन स्त्रियों में जिनके पास शरीर तो स्त्रियों का है लेकिन वो पुरुषों की तरह आक्रामक और बेहद महत्वकांक्षी हैं, दुसरे अर्थों में पुरुष प्रधान प्रवृत्तियों के आधीन हैं और शासन करने की प्रवृत्ति रखती हैं। पुरुषों के लिए इस सम्बन्ध में स्त्रियों का प्रेमपूर्ण और स्नेहपूर्ण साथ भी आपको अपनी काम उर्जा को नियमित और संतुलित रखने में सर्वाधिक उपयोगी होता है, मुझे काम कभी भी नहीं सताता जब मैं स्त्रियों के मध्य होता हूँ या उनके संपर्क में रहता हूँ, स्त्रियों का साथ और स्नेह आपकी उर्जा के वर्तुल को पूर्ण कर देता है और आप शांत और स्थिर महसूस करते हैं। मेरी ढेरों बहने, बेटियां और महिलाएं मित्र है, जिन्हें मैं अपने परिवार की सदस्य की तरह प्रेम और स्नेह पाता और प्रदान करता हूँ, यह भी इसमें बेहद मददगार है, उनका पवित्र स्नेह आपके सभी विकारों को नियमित और संतुलित करने में सहयोगी है। स्त्रियां प्रेम और आत्मीय संबंध ज्यादा पसंद करती हैं, बनिस्पत शारीरिक संबंधों के, जब तक उन्हें संतानोत्पत्ति की चाहत या अपने से जुड़े पुरुष को खुश और सन्तुष्ट करने की बाध्यता और आवश्यकता न हो, उनका प्रेम और सहयोग पाते रहने के लिए। अतः मेरा अनुभव यह है की उनका साथ और उनके प्रति स्नेहपूर्ण और पवित्र सोच ही आपके लिए इसे बेहद आसान बना देती है, उनके लिए कामवासना कभी भी प्राथमिक बात नहीं होती, वे मित्रतापूर्ण दुलार, देखभाल, सुरक्षा और आत्मीयता की तलाश में होती हैं, इसमें, प्रेम और पवित्रता ही सब कुछ संभव कर सकते हैं। विवाह एक अच्छा तरीका है इसे नियमित और संयोजित करने का, कोई भी गहरा प्रेमपूर्ण सम्बन्ध व्यक्तियों या सम्पूर्ण अस्तित्व से आपको इसमें मददगार हो सकता है।
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प्रेम और गहन आत्मिक प्रेम सबसे शक्तिशाली उपाय है इस सम्बन्ध में  सिर्फ गहन प्रेम ही आपको काम से मुक्त कर सकता है, और कोई भी तरीका नहीं है, अब यह प्रेम किसी व्यक्ति से हो अपनी कला, या काम से या सम्पूर्ण जगत के पालनहार के प्रति, प्रेम सबसे बड़ी कीमिया है, आत्मरूपान्तरण के लिए। गौर कीजिए , आप अपनी मां, बहन और बेटी, यहाँ तक कि जब आप अपनी पत्नी के भी मातृ स्वरूप को उसके स्त्री शरीर होने से ज्यादा मूल्य देने लगते हैं, तब आप की कामुकता विलीन हो जाती है, यही सभी स्त्रियों के लिए काम करता है, आपको सिर्फ अपनी अप्रोच और दृष्टि बदलनी है। उनके साथ यह सवाल क्यों खड़ा नहीं होता, क्योंकि आपका उनसे जुड़ाव बेहद भावनात्मक और हार्दिक है, वह शरीर के तल पर नहीं है, आप उन्हें गले भी लगाते हैं, उनका माथा भी चूमते हैं, उन्हें अपनी गोदी में भी बिठाते हैं, उनकी सेवा करते हैं, क्या यह सब किसी तरह बाधक है, आपके जीवन में और काममुक्त जीवन जीने में? गहरी आत्मीयता और प्रेम आपको उदात्त बना���ा है और विकार मुक्त करता है, फिर आपकी बायोलॉजी आपके दिल, दिमाग और शरीर का संचालन नहीं कर पाती है, आपके लिए अपने आपको सम्हालना बहुत आसान हो जाता है। क्योंकि आपकी भावना उनके प्रति कामना मुक्त है, आप उन्हें विपरीत लिंग के होने के बावजूद उनकी मौजूदगी में उनके साथ बिना विकार के रहते हैं, यह आप समस्त स्त्री, पुरुषों के लिए विकसित कर सकते हैं, फिर कोई भी समस्या नहीं रहेगी, न आपको न उन्हें। प्रेम और आत्मीयता से भरे व्यक्ति में काम का वेग, करुणा और प्रेम के रूप में रूपांतरित होता रहता है, बहुत रचनात्मक कार्यों में लगे व्यक्तियों की काम ऊर्जा भी उनके रचनात्मक कार्यों के माध्यम से विसर्जित हो जाती है। सभी को ऐसा एक द्वार निर्मित करना ही होगा, जिससे वो बिना किसी को हानि पहुंचाए गुणात्मक प्रभाव उत्पन्न करने का जरिया बन जाये, इसके लिए आपको उसे समझना और रूपांतरित करना सीखना होगा, उसका सही नियोजन सीखना होगा। हमारी समस्त ऊर्जा काम की ऊर्जा ही है, इससे जो चाहे उत्पन्न करवा लो, बच्चे या इस दुनिया के श्रेष्ठतम रचनाएं, कला, अविष्कार, उपलब्धियां सब कुछ काम ऊर्जा का ही सकारात्मक और रचनात्मक प्रतिफलन और नियोजन है।
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काम और आध्यात्मिक प्रक्रियायें, साधनाएं, योग और ध्यान  आध्यात्मिक साधनाएं आपको इसे नियमित और संतुलित करने में सहयोगी हो सकती है, इसके अलावा आपको पर्याप्त शारीरिक श्रम, खेल आदि का सहयोग लेना होगा अपनी ऊर्जा को दिशा देने के लिए, वरना दमित काम आपको विकृत और नष्ट कर देगा। योग साधनाएं इसमें बेहद सहयोगी हैं, प्राणायाम और स्वांस संबंधी योगिक क्रियाएं ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन में सहयोगी होती है, काम सबसे निचले तल पर कार्य करता है, और प्रेम और करुणा ऊंचे तलों पर, बस इसे नीचे से ऊपर ले जाना है। योग्य गुरु के सहयोग से इसे सीखा जा सकता है, और काम ऊर्जा के उपद्रवों को नियमित किया जा सकता है, उसके सर्वाधिक कल्याणकारी उपयोग के लिए। इससे आप एक आंतरिक स्वतंत्रता और विजय अपने मनोशारीरिक सिस्टम पर पा लेते हैं, और वहां फिर सबकुछ आपकी मर्जी से संचालित होता है, आपके मन और शरीर आपके निर्देशों का पालन करते है, आप उनके द्वारा उत्पन्न उद्वेगों और आवेगों का अनुकरण करने के लिए बाध्य नहीं होते हैं, आप उनके प्रभाव से मुक्त होते हैं। काम उर्जा के दमन के दुष्परिणाम  काम की निंदा और दमन के कारण सारे तथाकथित महात्मा, मौलवी, पादरी और सामान्य जन इसके कारण पथभ्रष्ट, व्यभिचारी हो जाते हैं और अपनी अनियंत्रित कामुकता के कारण अमानवीय एवं नृशंसतम आपराधिक कार्यों को करने के लिए बाध्य होते हैं। आप सभी रोज़ अखबार और टीवी में समाचार सुनते और देखते होंगे बलात्कार, छेड़छाड़, यौन  हिंसा से सम्बंधित ख़बरों की, यह सब काम के दमन और उसके उचित तरीके से विसर्जन और नियोजन की शक्ति न होने का परिणाम है। आज हजारों तरीके से लोगों की उत्तेजना और कामुकता को भड़काने वाली बातें, चित्र, किताबें, चलचित्र और तमाम किस्म के उपाय सभी संचार और सूचना माध्यमों पर उपलब्ध हैं , इसलिए लोगों के लिए बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये या बिना सेक्स में उतर�� स्वस्थ और शांत रहना संभव नहीं हो पाता है।  आप सभी तो जानते ही होंगे हमारे महात्मा गांधी ने इसे साधने के लिए क्या क्या उपाय किये और बेहद निंदा के पात्र बने, यह इसमें कितने सफल हुए यह तो उनको ही पता होगा और ऐसा हमारे सभी तथाकथित महात्माओं, मौलवियों और पादरियों के साथ हो रहा है। इन्द्रियां और शरीर के हार्मोन किसी भी प्रवचन या धार्मिक किताब की नहीं सुनते वो बस अपना काम करते हैं, यदि आपने स्वयं को अपनी पशु प्रवृत्तियों से ऊपर उठाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया है तो यह आपसे अनर्थ करवा के रहेंगी या फिर आप इससे बेहद पीड़ित और प्रताड़ित रहेंगे, इसके अप्राकृतिक दमन के कारण। काम का दमन आपको कुंठित, विकृत और व्यभिचारी और परवर्ट बना देगी, इसका नियमन सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है और प्रेम पूर्ण संबंध निर्मित करना इसका सबसे आसान रास्ता है।
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अंतिम सुझाव  यदि आप पुरुष हैं तो समस्त स्त्रियों में मातृत्व और मातृ शक्तियों को देखिए, उनके साथ मित्रतापूर्ण संबंध निर्मित कीजिये, खुद को और उनको सिर्फ यौन की दृष्टि से मत देखिए और सोचिए। अपना आहार विहार और दिनचर्या ऐसी रखिये जो उत्तेजना पैदा करनेवाली वस्तुओं, भोजन और व्यक्तियों और अन्य सूचना और सामग्री से मुक्त हो, और आपको अपने शरीर और मन के परे के आयामों की खोज में प्रवृत करनेवाले हों। हम सभी सिर्फ हमारे यौनांग नहीं है, हम इससे परे एक बृहत्तर आयाम और अस्तित्व हैं, इसकी खोज और अनुभूति की दिशा में कार्य कीजिये, नियमित, प्राणायाम और शारीरिक श्रम कीजिये, बच्चों के साथ खेलिए और अपने मन और शरीर को निर्दोष रखिये। देखिये आपके लिए क्या सुविधाजनक और सहयोगी हो सकता है, काम का उचित नियमन और नियोजन संभव है, दमन नहीं, यह आपको बेहद मुश्किलों में डाल देगा, सिर्फ गहरे आत्मीय और भावनात्मक संबंध निर्मित करके आप, बिना शारीरिक संबंध बनाए स्व��्थ और प्रसन्न जीवन जी सकते हैं। धन्यवाद Quora पर 133000 से अधिक बार पढ़ा गया एवं 1000 से अधिक अपवोट प्राप्त किये हैं ----यह जारी है  Read the full article
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amazingsubahu · 5 years ago
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क्या बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये जीवन व्यतीत करना संभव है?
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क्या बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये जीवन व्यतीत करना संभव है?
क्या बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये जीवन व्यतीत करना संभव है? यह सवाल मुझसे एक Quora मित्र ने पूछा है। हाँ, बिल्कुल संभव है, यह नेक काम मैं कर रहा हूँ, इतने वर्षों से, प्रकृति ने हमें प्रजनन की शक्ति प्रदान की है, इसके लिए अंग और शारीरिक व्यवस्था प्रदान की है, यह क्षमता और प्रवृत्ति हम मे और सभी जीवधारियों में एक समान है। सभी अन्य जीव और अधिकांश मनुष्य इसे अपनी प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति के आधीन यंत्रवत कार्य करते हैं, उनका इस पर कोई भी जोर नहीं है, एक उम्र और समय विशेष में उनके अंदर कामवासना का संचार होता है और वो अपने नर या मादा साथी के साथ शारीरिक रूप से संयुक्त होते हैं और प्रजनन करते हैं, यह एक अनिवार्य घटक के रूप में सभी जीवधारियों में संपन्न किया जाता है, अपनी प्रजाति को निरंतर बनाये रखने और इसमें वृद्धि करने के लिए यह प्रकृति प्रदत्त विधान है और मनुष्य सहित सभी जीवधारी इसके आधीन है। मनुष्यों और अन्य जीवधारियों में एक बुनियादी भेद हैं इस सम्बन्ध में, मनुष्य इस प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति के आधीन रहने को बाध्य नहीं है वह विशिष्ट साधनाओं और योगिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके इस शारीरिक बाध्यता/आवश्यकता से परे जा सकता है इससे मुक्त हो सकता है, लेकिन यह सभी के लिए साधारण रूप से साध्य नहीं है, उनकी कमज़ोर इच्छा शक्ति और विशिष्ट मार्ग पर चलने के प्रति अनिच्छा के कारण, लेकिन यह हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता है।
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विवाह और गहरी आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध  प्रश्नकर्ता के प्रश्न का उत्तर यह है की मनुष्यों द्वारा इसे साधने या इससे मुक्त होने के दो ही तरीके हैं - पहला जो लगभग सभी लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, विवाह, एक उम्र के बाद जब आप के अंदर काम वासना प्रबल हो जाये और आप इसके वेग सम्हालने में समर्थ न हो पायें आप एक प्रेमपूर्ण बंधन में विवाह में संयुक्त हो जाइये और इस उर्जा का वैधानिक और युक्तियुक्त तरीके के नियोजन, नियमन और विसर्जन कर लें, अब आप कहेंगे इसमें तो बंधन और शारीरिक सम्बन्ध दोनों से गुजरना पड़ेगा। विवाह संस्था का अविष्कार मनुष्य की इसी आवश्यकता के नियमन और और उसे एक व्यवस्थित और विधायक रूप प्रदान करने के लिए ही किया गया था, जो आज भी सबसे बेहतर व्यवस्था और उपाय है, प्रकृति प्रदत्त बाध्यता और शक्ति के नियमन, नियोजन और व्यस्थापन का, यह सार्वभोमिक और सर्व स्वीकृत व्यवस्था है पूरे विश्व में और सभी संस्कृतियों में। निश्चित ही आपको इससे गुजरना पड़ेगा, लेकिन यदि आप अपने साथी के साथ एक बेहद मित्रतापूर्ण और आत्मीय सम्बन्ध निर्मित कर लें तो यह काम के विसर्जन में बेहद सहायक हो सकता है स्त्री और पुरुष दोनों के लिए, वो इसे एक दुसरे के प्रति बेहद आदर और प्रेम के साथ एक गहरी मित्रता में रूपांतरित कर सकते हैं जहाँ काम का प्रभाव और प्रबलता न्तयूनम हो जाये���ी। इस तरह एक समय के पश्चात् शारीरिक सम्बन्धों के प्रति बहुत आकर्षण और प्रबलता नहीं रहेगी, यदि उनके मध्य गहरे आत्मीय और भावनात्मक प्रगाढ़ता विकसित हो जाये ,और वो एक दुसरे को महज लिंग के आधार पर नहीं एक व्यक्ति के रूप में प्रेम और मित्रता पूर्ण सम्बन्ध विकसित कर सकने में सफल हो जाएँ, यह बेहद आसान और सबसे सुविधाजनक तरीका है, इस धरती पर बहुसंख्यक लोगों के लिए, संतान की प्राप्ति और उनके पालन पोषण की व्यस्तता भी उनके अंदर कामवासना की प्रबलता को क्षीण कर देती है। बहुत सारे दम्पत्तियों में संतान के जन्म के पश्चात् जब वो माता और पिता बन जाते हैं, काम में रस और उसकी प्रबलता क्षीण हो जाते हैं, और यदि पुरुष स्त्री में मातृत्व को गहराई से देखने लगे तो उसकी काम में रूचि विलीन हो जाती है और वह स्त्री मात्र में माँ को देखता है, अपनी पत्नी और सभी स्त्रियों में, यह संभव है यदि आप आत्मीय, भावनात्मक और वैचारिक रूप से परिपक्व और गहरे हो जाएँ तो यह सहजता से घटित होता है। चुनौतियाँ और उपाय  यह बहुत लोगों का सवाल और समस्या है, लेकिन शरीर का अपना नियम है, वह पुनरुत्पादन करना चाहता है, प्रकृति अपना काम करती है,  शरीर के हॉर्मोन तो जोर मारते ही रहेंगे और आपको उसके लिए प्रेरित और बाध्य करते रहेंगे, काम सर्वाधिक शक्तिशाली ऊर्जा है और इसका वेग अनियंत्रित और असाधारण होता है, इसका दमन उचित नहीं है। काम को दबाना संभव नहीं है और यह स्वस्थ बात भी नहीं है, और ऐसा करने पर यह 24 घंटे आप पर हावी होकर आपसे कोई भी अनर्थ करवा सकता है, पुरुषों के लिए यह बेहद मुश्किल है, क्योंकि उनका काम आक्रामक होता है, वह हिंसा, क्रोध, और अन्य ज्यादा बुरे तरीकों से अभिव्यक्ति और विसर्जन के मार्ग खोजेगा। स्त्रियों के लिए ये आसान होता है, पुरुषों के लिए बहुत मुश्किल होता है, बेहतर है आप किसी के साथ स्वस्थ, प्रेमपूर्ण संबंध और एक संतुलित और वैधानिक रिश्ते में हों, तो इसका नियमन बेहद सरल और सुविधा जनक हो सकता है। अधिकांश लोगों के लिए साथ या विवाह करना ज्यादा आसान होता है, क्योंकि यह विपरीत ऊर्जाओं के मध्य संतुलन स्थापित करने में और विसर्जन करने एवं उचित नियोजन में सहयोगी होता है। यदि आप इसे देख , समझ और नियमित कर सकते हैं तो अच्छा है वरना यह आपको मानसिक , शारीरिक रूप से विकृत, कुंठित और बीमार बना सकता है। हमारी संस्कृति में इसके लिए विवाह का विधान कर रखा है, आप विवाह और आत्मीय प्रेम संबंधों द्वारा इसे बेहद सरलता और सहजता से नियमित कर सकते हैं। विवाह और स्त्रियों का स्नेह और प्रेम इसमें मददगार है  यह समस्या पुरुषों के साथ ज्यादा होती है, क्यूंकि स्त्रियाँ आसानी से जीवन भर बिना शारीरक सम्बन्ध बनाये रह सकती हैं, बिना कुंठा और विकार के, उनकी प्रकृति ग्राहक है और पुरुषों की आक्रामक, अतः यह उनके लिए ही सबसे बड़ी समस्या है या उन स्त्रियों में जिनके पास शरीर तो स्त्रियों का है लेकिन वो पुरुषों की तरह आक्रामक और बेहद महत्वकांक्षी हैं, दुसरे अर्थों में पुरुष प्रधान प्रवृत्तियों के आधीन हैं और शासन करने की प्रवृत्ति रखती हैं। पुरुषों के लिए इस सम्बन्ध में स्त्रियों का प्रेमपूर्ण और स्नेहपूर्ण साथ भी आपको अपनी काम उर्जा को नियमित और संतुलित रखने में सर्वाधिक उपयोगी होता है, मुझे काम कभी भी नहीं सताता जब मैं स्त्रियों के मध्य होता हूँ या उनके संपर्क में रहता हूँ, स्त्रियों का साथ और स्नेह आपकी उर्जा के वर्तुल को पूर्ण कर देता है और आप शांत और स्थिर महसूस करते हैं। मेरी ढेरों बहने, बेटियां और महिलाएं मित्र है, जिन्हें मैं अपने परिवार की सदस्य की तरह प्रेम और स्नेह पाता और प्रदान करता हूँ, यह भी इसमें बेहद मददगार है, उनका पवित्र स्नेह आपके सभी विकारों को नियमित और संतुलित करने में सहयोगी है। स्त्रियां प्रेम और आत्मीय संबंध ज्यादा पसंद करती हैं, बनिस्पत शारीरिक संबंधों के, जब तक उन्हें संतानोत्पत्ति की चाहत या अपने से जुड़े पुरुष को खुश और सन्तुष्ट करने की बाध्यता और आवश्यकता न हो, उनका प्रेम और सहयोग पाते रहने के लिए। अतः मेरा अनुभव यह है की उनका साथ और उनके प्रति स्नेहपूर्ण और पवित्र सोच ही आपके लिए इसे बेहद आसान बना देती है, उनके लिए कामवासना कभी भी प्राथमिक बात नहीं होती, वे मित्रतापूर्ण दुलार, देखभाल, सुरक्षा और आत्मीयता की तलाश में होती हैं, इसमें, प्रेम और पवित्रता ही सब कुछ संभव कर सकते हैं। विवाह एक अच्छा तरीका है इसे नियमित और संयोजित करने का, कोई भी गहरा प्रेमपूर्ण सम्बन्ध व्यक्तियों या सम्पूर्ण अस्तित्व से आपको इसमें मददगार हो सकता है।
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प्रेम और गहन आत्मिक प्रेम सबसे शक्तिशाली उपाय है इस सम्बन्ध में  सिर्फ गहन प्रेम ही आपको काम से मुक्त कर सकता है, और कोई भी तरीका नहीं है, अब यह प्रेम किसी व्यक्ति से हो अपनी कला, या काम से या सम्पूर्ण जगत के पालनहार के प्रति, प्रेम सबसे बड़ी कीमिया है, आत्मरूपान्तरण के लिए। गौर कीजिए , आप अपनी मां, बहन और बेटी, यहाँ तक कि जब आप अपनी पत्नी के भी मातृ स्वरूप को उसके स्त्री शरीर होने से ज्यादा मूल्य देने लगते हैं, तब आप की कामुकता विलीन हो जाती है, यही सभी स्त्रियों के लिए काम करता है, आपको सिर्फ अपनी अप्रोच और दृष्टि बदलनी है। उनके साथ यह सवाल क्यों खड़ा नहीं होता, क्योंकि आपका उनसे जुड़ाव बेहद भावनात्मक और हार्दिक है, वह शरीर के तल पर नहीं है, आप उन्हें गले भी लगाते हैं, उनका माथा भी चूमते हैं, उन्हें अपनी गोदी में भी बिठाते हैं, उनकी सेवा करते हैं, क्या यह सब किसी तरह बाधक है, आपके जीवन में और काममुक्त जीवन जीने में? गहरी आत्मीयता और प्रेम आपको उदात्त बनाता है और विकार मुक्त करता है, फिर आपकी बायोलॉजी आपके दिल, दिमाग और शरीर का संचालन नहीं कर पाती है, आपके लिए अपने आपको सम्हालना बहुत आसान हो जाता है। क्योंकि आपकी भावना उनके प्रति कामना मुक्त है, आप उन्हें विपरीत लिंग के होने के बावजूद उनकी मौजूदगी में उनके साथ बिना विकार के रहते हैं, यह आप समस्त स्त्री, पुरुषों के लिए विकसित कर सकते हैं, फिर कोई भी समस्या नहीं रहेगी, न आपको न उन्हें। प्रेम और आत्मीयता से भरे व्यक्ति में काम का वेग, करुणा और प्रेम के रूप में रूपांतरित होता रहता है, बहुत रचनात्मक कार्यों में लगे व्यक्तियों की काम ऊर्जा भी उनके रचनात्मक कार्यों के माध्यम से विसर्जित हो जाती है। सभी को ऐसा एक द्वार निर्मित करना ही होगा, जिससे वो बिना किसी को हानि पहुंचाए गुणात्मक प्रभाव उत्पन्न करने का जरिया बन जाये, इसके लिए आपको उसे समझना और रूपांतरित करना सीखना होगा, उसका सही नियोजन सीखना होगा। हमारी समस्त ऊर्जा काम की ऊर्जा ही है, इससे जो चाहे उत्पन्न करवा लो, बच्चे या इस दुनिया के श्रेष्ठतम रचनाएं, कला, अविष्कार, उपलब्धियां सब कुछ काम ऊर्जा का ही सकारात्मक और रचनात्मक प्रतिफलन और नियोजन है।
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काम और आध्यात्मिक प्रक्रियायें, साधनाएं, योग और ध्यान  आध्यात्मिक साधनाएं आपको इसे नियमित और संतुलित करने में सहयोगी हो सकती है, इसके अलावा आपको पर्याप्त शारीरिक श्रम, खेल आदि का सहयोग लेना होगा अपनी ऊर्जा को दिशा देने के लिए, वरना दमित काम आपको विकृत और नष्ट कर देगा। योग साधनाएं इसमें बेहद सहयोगी हैं, प्राणायाम और स्वांस संबंधी योगिक क्रियाएं ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन में सहयोगी होती है, काम सबसे निचले तल पर कार्य करता है, और प्रेम और करुणा ऊंचे तलों पर, बस इसे नीचे से ऊपर ले जाना है। योग्य गुरु के सहयोग से इसे सीखा जा सकता है, और काम ऊर्जा के उपद्रवों को नियमित किया जा सकता है, उसके सर्वाधिक कल्याणकारी उपयोग के लिए। इससे आप एक आंतरिक स्वतंत्रता और विजय अपने मनोशारीरिक सिस्टम पर पा लेते हैं, और वहां फिर सबकुछ आपकी मर्जी से संचालित होता है, आपके मन और शरीर आपके निर्देशों का पालन करते है, आप उनके द्वारा उत्पन्न उद्वेगों और आवेगों का अनुकरण करने के लिए बाध्य नहीं होते हैं, आप उनके प्रभाव से मुक्त होते हैं। काम उर्जा के दमन के दुष्परिणाम  काम की निंदा और दमन के कारण सारे तथाकथित महात्मा, मौलवी, पादरी और सामान्य जन इसके कारण पथभ्रष्ट, व्यभिचारी हो जाते हैं और अपनी अनियंत्रित कामुकता के कारण अमानवीय एवं नृशंसतम आपराधिक कार्यों को करने के लिए बाध्य होते हैं। आप सभी रोज़ अखबार और टीवी में समाचार सुनते और देखते होंगे बलात्कार, छेड़छाड़, यौन  हिंसा से सम्बंधित ख़बरों की, यह सब काम के दमन और उसके उचित तरीके से विसर्जन और नियोजन की शक्ति न होने का परिणाम है। आज हजारों तरीके से लोगों की उत्तेजना और कामुकता को भड़काने वाली बातें, चित्र, किताबें, चलचित्र और तमाम किस्म के उपाय सभी संचार और सूचना माध्यमों पर उपलब्ध हैं , इसलिए लोगों के लिए बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाये या बिना सेक्स में उतरे स्वस्थ और शांत रहना संभव नहीं हो पाता है।  आप सभी तो जानते ही होंगे हमारे महात्मा गांधी ने इसे साधने के लिए क्या क्या उपाय किये और बेहद निंदा के पात्र बने, यह इसमें कितने सफल हुए यह तो उनको ही पता होगा और ऐसा हमारे सभी तथाकथित महात्माओं, मौलवियों और पादरियों के साथ हो रहा है। इन्द्रियां और शरीर के हार्मोन किसी भी प्रवचन या धार्मिक किताब की नहीं सुनते वो बस अपना काम करते हैं, यदि आपने स्वयं को अपनी पशु प्रवृत्तियों से ऊपर उठाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया है तो यह आपसे अनर्थ करवा के रहेंगी या फिर आप इससे बेहद पीड़ित और प्रताड़ित रहेंगे, इसके अप्राकृतिक दमन के कारण। काम का दमन आपको कुंठित, विकृत और व्यभिचारी और परवर्ट बना देगी, इसका नियमन सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है और प्रेम पूर्ण संबंध निर्मित करना इसका सबसे आसान रास्ता है।
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अंतिम सुझाव  यदि आप पुरुष हैं तो समस्त स्त्रियों में मातृत्व और मातृ शक्तियों को देखिए, उनके साथ मित्रतापूर्ण संबंध निर्मित कीजिये, खुद को और उनको सिर्फ यौन की दृष्टि से मत देखिए और सोचिए। अपना आहार विहार और दिनचर्या ऐसी रखिये जो उत्तेजना पैदा करनेवाली वस्तुओं, भोजन और व्यक्तियों और अन्य सूचना और सामग्री से मुक्त हो, और आपको अपने शरीर और मन के परे के आयामों की खोज में प्रवृत करनेवाले हों। हम सभी सिर्फ हमारे यौनांग नहीं है, हम इससे परे एक बृहत्तर आयाम और अस्तित्व हैं, इसकी खोज और अनुभूति की दिशा में कार्य कीजिये, नियमित, प्राणायाम और शारीरिक श्रम कीजिये, बच्चों के साथ खेलिए और अपने मन और शरीर को निर्दोष रखिये। देखिये आपके लिए क्या सुविधाजनक और सहयोगी हो सकता है, काम का उचित नियमन और नियोजन संभव है, दमन नहीं, यह आपको बेहद मुश्किलों में डाल देगा, सिर्फ गहरे आत्मीय और भावनात्मक संबंध निर्मित करके आप, बिना शारीरिक संबंध बनाए स्वस्थ और प्रसन्न जीवन जी सकते हैं। धन्यवाद Quora पर 133000 से अधिक बार पढ़ा गया एवं 1000 से अधिक अपवोट प्राप्त किये हैं ----यह जारी है  Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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धर्म गुरूओं के संबंध में आपकी क्या राय है?
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धर्म गुरूओं के संबंध आपकी क्या राय है?
मेरे पाठकों में से कुछ ने पूछा है की धर्म गुरूओं के संबंध में आपकी क्या राय है? मेरी रुचि किसी भी किस्म के धर्मगुरुओं में नहीं है, मै बुद्ध पुरुषों, रहस्यवादियों और सत्य के खोजियों और उद्घोषकों में रुचि रखता हूं, यही हमारी संस्कृति और आध्यात्मिक शिक्षा का सार है, मानो नहीं जानो, जो स्वयं की खोज में उतरने और उसमे विकसित होने में सहयोगी हो वही गुरु बाकी सब दुकानदार, और कुछ ना कुछ बेचने वाले लोग। दुनिया के तमाम तथाकथित धर्मगुरुओं का सत्य 
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सभी तथाकथित धर्मगुरु, मौलवी अपनी मान्यताओं, तौर तरीकों और मनमानी बातों को लोगों की छाती पर थोपनेवाले, उनका शोषण करने वाले,  बिना अनुभव और वास्तविक ज्ञान युक्त और कोरे पंडित होते है, जिन्हे वास्तविक धर्म का मर्म और सत्य नहीं ज्ञात होता, और ना उनकी इसमें रुचि होती, उन्हें उनकी दुकान चलाने के लिए अंधभक्तों और अंधविश्वासियों की भीड़ चाहिए होती है। जो उनका गुणगान करे, उनका कारोबार चलाने में मददगार हो, उनकी स्वार्थपूर्ति और महिमा मंडन में सहयोगी हो ऐसे तथाकथित गुरुओं के अपने एजेंडा और स्वार्थ होते है, उनका सत्य और धर्म से कोई लेना देना नहीं होता, उन्हें धर्मगुरु कहना अपराध है वो सांप्रदायिक नेता या किताबी पंडित, मौलवी से ज्यादा नहीं है।  इनकी सारी विद्वता का आधार धर्मग्रंथ होते है, जिनके मनमाने अर्थ यह निकाल कर लोगों को दिग्भ्रमित कर उनकी मूर्खता और अंधविश्वासों का शोषण करते है, यह दुनिया में सभी रोगों के निर्माता, प्रचारक और प्रसारक है, और दुष्ट और खतरनाक राजनीतिज्ञ इनके सबसे घनिष्�� मित्र होते है, और इन दोनों की जुगलबंदी से पूरा विश्व पीड़ित रहा है प्रारंभ से और आज भी है और सदा रहेगा। क्यूंकि अंधे लोग इन सांप्रदायिक नेताओं के द्वारा रचे हुए जाल और अपनी मूर्खता और अंधी दृष्टि की वजह सदैव इनके द्वारा फैलाए गए कपट जाल में फंसकर अपना और दूसरों का विनाश करते रहते है और सच्चे और वास्तविक लोगों को सूली, अपमान और जहर देते है।
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कौन है वास्तविक धर्म गुरु  वास्तविक गुरु वो होता है जो आपको, आपके सत्य की और उन्मुख होने में सहयोगी और मार्गदर्शक होता है, यही धर्म और धार्मिक होने का वास्तविक अर्थ है सच्चे गुरु दुर्लभ होते हैं और अपने और इस जगत के सत्य को जान चुके होते हैं, अर्थात वो अपने स्वधर्म अपने सत्य को जान चुके होते हैं और उसमें प्रतिष्ठित हो चुके हैं। एक आँख वाला ही अंधों को रास्ता दिखा सकता है,  लेकिन दुनिया में अंधे ही अंधों को रास्ता दिखने का प्रयत्न कर रहे हैं वो भी बड़े आत्मविश्वास और आडम्बरों के साथ, वास्तविक गुरु कोई दावा नहीं करत�� वो सिर्फ आपकी सम्भावना को सच होने में सहयोगी होते हैं, वो इशारे देते हैं, वास्तविक विधियाँ देते हैं ताकि आप अपने आत्म स्वरुप को जान सकें, वो कोई बंधी हुई धारणाएं आपको नहीं देते, वो आपको स्वयं अनुभव में उतरने के लिए सक्षम बनने में सहयोगी होते हैं। वास्तविक गुरु आपकी बैसाखी नहीं बनते  वो आपको आत्मनिर्भर बनाते हैं, वो आपको स्वयं जानने और खोजने और अनुभव को उपलब्ध होने की दिशा में सहयोगी होते हैं, वो एक उत्प्रेरक की तरह होते हैं जो आपकी आतंरिक सम्भावना को प्रकट करने में उपयोगी होते हैं, वो एक मार्गदर्शक हैं, दिशा सूचक की तरह होते हैं ताकि आप सही मार्ग की और गति कर सकें और आतंरिक विकास को उपलब्ध हो सकें, वो आपको कोई धारणा और ज्ञान नहीं देंगे वो आपको शून्य और खाली होने में मददगार होंगे, ताकि आपका सत्य आपके सामने प्रकट हो सके, यही आत्मोपलब्धि धर्म है, वास्तविकता है और ऐसे व्यक्ति ही वास्तविक गुरु होते हैं। एक बात जान लीजिये धर्म का अर्थ ��्वयं के सत्य को और खोजना होता है,  कुछ भी पहले से मानना नहीं, तथाकथित संगठित संप्रदाय, जो धर्म का अर्थ भी नहीं जानते इस सम्बन्ध में बड़ी बड़ी बातें करते है और मूढ़, अंधे और सिरफिरे पागलों का बहुत बड़ा समूह हैं, जो किन्ही कपोल कल्पित मान्यताओं के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। वो अपनी मूढ़ और असत्य और अमानवीय मान्यताओं के सम्बन्ध में कोई तर्क पूर्ण बात और सत्य सुनने समझने को तैयार नहीं होते, यह लोग कभी भी धर्म को उपलब्ध नहीं हो सकते जो भी मानने पर जोर देते हैं, और बिना किसी भी बात की वास्तविकता, अर्थवत्ता और सत्य को जाने बिना स्वीकार कर लेते हैं और दुस्स्रों को भी इस मुर्खता को स्वीकार करने के लिए अमानवीय तरीके इस्तेमाल करते हैं, यह धरती पर सबसे खतरनाक लोग हैं। मै सिर्फ बुद्ध पुरुषों को गुरु के रूप में स्वीकार करता हूं जैसे राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, आदि शंकर, चैतन्य महाप्रभु, मीरा, नानक, कबीर, दादू, पलटू, रैदास, रामकृष्ण परमहंस, महर्षि रमण, ओशो, और वर्तमान में सदगुरु जग्गी वासुदेव जैसे हजारों लोग जो इस महान धरा पर अवतरित हुए है हजारों सालों से यहां इस पुण्य सलिला भारत भूमि पर। यह सभी किसी धर्म, समाज, जाती विशेष से संबंधित नहीं है यह सब प्रेम, योग, ध्यान और भक्ति इन सभी मार्गों के विशिष्ट साधक और खोजी रहे है और इन्होंने अपने जीवन में परम सत्य को उपलब्ध किया है। इन सभी परम चेतना को उपलब्ध मनीषियों और सिद्ध पुरुषों के अलावा बाकी सभी लोग सांप्रदायिक प्रचारक है, उनमें से कोई भी धर्म से संबंधित नहीं है ना ही गुरु कहलाने लायक। वो सिर्फ कथावाचक और शास्त्री है, मुल्ले, पादरी और मौलवी हैं,  उनकी समझ और पहुंच किताबों ने लिखे से आगे और ज्यादा नहीं है, और धर्म यानी आंतरिक जगत के संबंध में इनका कोई भी व्यक्तिगत अनुभव और उपलब्धि नहीं है। मेरी नजर में ना इनसे ज्यादा ना उनका कोई मूल्य है ना महत्व, धर्म अंदरुनी बात है इसका बाहयोपचरों, पाखंडों और आडंबरों, रूढ़ मृत मान्यताओं और मुर्दा सिद्धांतों से कोई भी लेना देना नहीं है। धर्म जीवंत अग्नि है जिसे भगवान शिव ने जगत को दिया ध्यान और योग के रूप में , ताकि मनुष्य अपने जीवन के परम लक्ष्य की ओर गति कर सके और अपने वास्तविक स्वरूप को जान सके और संसार के चक्र से मुक्त होकर आत्मोपलब्धि की ओर अग्रसर हो सके। सदगुरु ही सच्चे गुरु होते हैं, सांप्रदायिक नेता या किसी पंथ को मानने वाले, उनका प्रचार करनेवाले नहीं, इस धरती पर वास्तविक धर्म गुरु बिरले हैं बाकि सब अपने सम्प्रदायों और मूढ़ मान्यताओं के प्रचारक, इनका काम अपने मत या ��ंप्रदाय का झंडा ऊँचा करना और बाकि सभी की निंदा और उन्मूलन और परिवर्तन अपने मत या संप्रदाय में हर निकृष्ट तरीके से, कुछ मानने वालों  की संख्या में बड़े संप्रदाय इसी तरह विकसित हुए हैं पिछले 1500 साल में। यह पूरी दुनिया में अशांति और विग्रह के जन्मदाता हैं और सबसे बड़े आतंकवादी और मनुष्यता के शत्रु हैं, इनसे सावधान रहना और इनके दूषित प्रभाव से मुक्त रहना ही उत्तम है, इन सभी सांप्कारदायिक प्रचारकों का जो छद्म रूप से अपने को धर्मगुरु कहलाने का  धंधा करते हैं, इनका सारा धंधा चलता है लोगों के अज्ञान और और उनकी अचेतन बुद्धि और भय और लालच पर, स्वर्ग नरक का धंधा और परलोक की मनघडंत कहानियों और प्रलोभनों पर। धन्यवाद। Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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धर्म गुरूओं के संबंध में आपकी क्या राय है?
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धर्म गुरूओं के संबंध आपकी क्या राय है?
मेरे पाठकों में से क��छ ने पूछा है की धर्म गुरूओं के संबंध में आपकी क्या राय है? मेरी रुचि किसी भी किस्म के धर्मगुरुओं में नहीं है, मै बुद्ध पुरुषों, रहस्यवादियों और सत्य के खोजियों और उद्घोषकों में रुचि रखता हूं, यही हमारी संस्कृति और आध्यात्मिक शिक्षा का सार है, मानो नहीं जानो, जो स्वयं की खोज में उतरने और उसमे विकसित होने में सहयोगी हो वही गुरु बाकी सब दुकानदार, और कुछ ना कुछ बेचने वाले लोग। दुनिया के तमाम तथाकथित धर्मगुरुओं का सत्य 
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सभी तथाकथित धर्मगुरु, मौलवी अपनी मान्यताओं, तौर तरीकों और मनमानी बातों को लोगों की छाती पर थोपनेवाले, उनका शोषण करने वाले,  बिना अनुभव और वास्तविक ज्ञान युक्त और कोरे पंडित होते है, जिन्हे वास्तविक धर्म का मर्म और सत्य नहीं ज्ञात होता, और ना उनकी इसमें रुचि होती, उन्हें उनकी दुकान चलाने के लिए अंधभक्तों और अंधविश्वासियों की भीड़ चाहिए होती है। जो उनका गुणगान करे, उनका कारोबार चलाने में मददगार हो, उनकी स्वार्थपूर्ति और महिमा मंडन में सहयोगी हो ऐसे तथाकथित गुरुओं के अपने एजेंडा और स्वार्थ होते है, उनका सत्य और धर्म से कोई लेना देना नहीं होता, उन्हें धर्मगुरु कहना अपराध है वो सांप्रदायिक नेता या किताबी पंडित, मौलवी से ज्यादा नहीं है।  इनकी सारी विद्वता का आधार धर्मग्रंथ होते है, जिनके मनमाने अर्थ यह निकाल कर लोगों को दिग्भ्रमित कर उनकी मूर्खता और अंधविश्वासों का शोषण करते है, यह दुनिया में सभी रोगों के निर्माता, प्रचारक और प्रसारक है, और दुष्ट और खतरनाक राजनीतिज्ञ इनके सबसे घनिष्ठ मित्र होते है, और इन दोनों की जुगलबंदी से पूरा विश्व पीड़ित रहा है प्रारंभ से और आज भी है और सदा रहेगा। क्यूंकि अंधे लोग इन सांप्रदायिक नेताओं के द्वारा रचे हुए जाल और अपनी मूर्खता और अंधी दृष्टि की वजह सदैव इनके द्वारा फैलाए गए कपट जाल में फंसकर अपना और दूसरों का विनाश करते रहते है और सच्चे और वास्तविक लोगों को सूली, अपमान और जहर देते है।
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कौन है वास्तविक धर्म गुरु  वास्तविक गुरु वो होता है जो आपको, आपके सत्य की और उन्मुख होने में सहयोगी और मार्गदर्शक होता है, यही धर्म और धार्मिक होने का वास्तविक अर्थ है सच्चे गुरु दुर्लभ होते हैं और अपने और इस जगत के सत्य को जान चुके होते हैं, अर्थात वो अपने स्वधर्म अपने सत्य को जान चुके होते हैं और उसमें प्रतिष्ठित हो चुके हैं। एक आँख वाला ही अंधों को रास्ता दिखा सकता है,  लेकिन दुनिया में अंधे ही अंधों को रास्ता दिखने का प्रयत्न कर रहे हैं वो भी बड़े आत्मविश्वास और आडम्बरों के साथ, वास्तविक गुरु कोई दावा नहीं करते वो सिर्फ आपकी सम्भावना को सच होने में सहयोगी होते हैं, वो इशारे देते हैं, वास्तविक विधियाँ देते हैं ताकि आप अपने आत्म स्वरुप को जान सकें, वो कोई बंधी हुई धारणाएं आपको नहीं देते, वो आपको स्वयं अनुभव में उतरने के लिए सक्षम बनने में सहयोगी होते हैं। वास्तविक गुरु आपकी बैसाखी नहीं बनते  वो आपको आत्मनिर्भर बनाते हैं, वो आपको स्वयं जानने और खोजने और अनुभव को उपलब्ध होने की दिशा में सहयोगी होते हैं, वो एक उत्प्रेरक की तरह होते हैं जो आपकी आतंरिक सम्भावना को प्रकट करने में उपयोगी होते हैं, वो एक मार्गदर्शक हैं, दिशा सूचक की तरह होते हैं ताकि आप सही मार्ग की और गति कर सकें और आतंरिक विकास को उपलब्ध हो सकें, वो आपको कोई धारणा और ज्ञान नहीं देंगे वो आपको शून्य और खाली होने में मददगार होंगे, ताकि आपका सत्य आपके सामने प्रकट हो सके, यही आत्मोपलब्धि धर्म है, वास्तविकता है और ऐसे व्यक्ति ही वास्तविक गुरु होते हैं। एक बात जान लीजिये धर्म का अर्थ स्वयं के सत्य को और खोजना होता है,  कुछ भी पहले से मानना नहीं, तथाकथित संगठित संप्रदाय, जो धर्म का अर्थ भी नहीं जानते इस सम्बन्ध में बड़ी बड़ी बातें करते है और मूढ़, अंधे और सिरफिरे पागलों का बहुत बड़ा समूह हैं, जो किन्ही कपोल कल्पित मान्यताओं के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। वो अपनी मूढ़ और असत्य और अमानवीय मान्यताओं के सम्बन्ध में कोई तर्क पूर्ण बात और सत्य सुनने समझने को तैयार नहीं होते, यह लोग कभी भी धर्म को उपलब्ध नहीं हो सकते जो भी मानने पर जोर देते हैं, और बिना किसी भी बात की वास्तविकता, अर्थवत्ता और सत्य को जाने बिना स्वीकार कर लेते हैं और दुस्स्रों को भी इस मुर्खता को स्वीकार करने के लिए अमानवीय तरीके इस्तेमाल करते हैं, यह धरती पर सबसे खतरनाक लोग हैं। मै सिर्फ बुद्ध पुरुषों को गुरु के रूप में स्वीकार करता हूं जैसे राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, आदि शंकर, चैतन्य महाप्रभु, मीरा, नानक, कबीर, दादू, पलटू, रैदास, रामकृष्ण परमहंस, महर्षि रमण, ओशो, और वर्तमान में सदगुरु जग्गी वासुदेव जैसे हजारों लोग जो इस महान धरा पर अवतरित हुए है हजारों सालों से यहां इस पुण्य सलिला भारत भूमि पर। यह सभी किसी धर्म, समाज, जाती विशेष से संबंधित नहीं है यह सब प्रेम, योग, ध्यान और भक्ति इन सभी मार्गों के विशिष्ट साधक और खोजी रहे है और इन्होंने अपने जीवन में परम सत्य को उपलब्ध किया है। इन सभी परम चेतना को उपलब्ध मनीषियों और सिद्ध पुरुषों के अलावा बाकी सभी लोग सांप्रदायिक प्रचारक है, उनमें से कोई भी धर्म से संबंधित नहीं है ना ही गुरु कहलाने ला��क। वो सिर्फ कथावाचक और शास्त्री है, मुल्ले, पादरी और मौलवी हैं,  उनकी समझ और पहुंच किताबों ने लिखे से आगे और ज्यादा नहीं है, और धर्म यानी आंतरिक जगत के संबंध में इनका कोई भी व्यक्तिगत अनुभव और उपलब्धि नहीं है। मेरी नजर में ना इनसे ज्यादा ना उनका कोई मूल्य है ना महत्व, धर्म अंदरुनी बात है इसका बाहयोपचरों, पाखंडों और आडंबरों, रूढ़ मृत मान्यताओं और मुर्दा सिद्धांतों से कोई भी लेना देना नहीं है। धर्म जीवंत अग्नि है जिसे भगवान शिव ने जगत को दिया ध्यान और योग के रूप में , ताकि मनुष्य अपने जीवन के परम लक्ष्य की ओर गति कर सके और अपने वास्तविक स्वरूप को जान सके और संसार के चक्र से मुक्त होकर आत्मोपलब्धि की ओर अग्रसर हो सके। सदगुरु ही सच्चे गुरु होते हैं, सांप्रदायिक नेता या किसी पंथ को मानने वाले, उनका प्रचार करनेवाले नहीं, इस धरती पर वास्तविक धर्म गुरु बिरले हैं बाकि सब अपने सम्प्रदायों और मूढ़ मान्यताओं के प्रचारक, इनका काम अपने मत या संप्रदाय का झंडा ऊँचा करना और बाकि सभी की निंदा और उन्मूलन और परिवर्तन अपने मत या संप्रदाय में हर निकृष्ट तरीके से, कुछ मानने वालों  की संख्या में बड़े संप्रदाय इसी तरह विकसित हुए हैं पिछले 1500 साल में। यह पूरी दुनिया में अशांति और विग्रह के जन्मदाता हैं और सबसे बड़े आतंकवादी और मनुष्यता के शत्रु हैं, इनसे सावधान रहना और इनके दूषित प्रभाव से मुक्त रहना ही उत्तम है, इन सभी सांप्कारदायिक प्रचारकों का जो छद्म रूप से अपने को धर्मगुरु कहलाने का  धंधा करते हैं, इनका सारा धंधा चलता है लोगों के अज्ञान और और उनकी अचेतन बुद्धि और भय और लालच पर, स्वर्ग नरक का धंधा और परलोक की मनघडंत कहानियों और प्रलोभनों पर। धन्यवाद। Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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सदगुरु जग्गी वासुदेव कौन हैं, किन लोगों को उनसे समस्या है?
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सदगुरु जग्गी वासुदेव कौन हैं, किन लोगों को उनसे समस्या है?
मेरे एक प्रिय Quora लेखक मित्र ने प्रश्न किया है सद्गुरु जग्गी वासुदेव कौन हैं, किन लोगों को उनसे समस्या है? सदगुरु जग्गी वासुदेव, एक योगी, रहस्यदर्शी और बुद्ध पुरुष हैं, और बुद्ध पुरुषों से बुद्धुओं को, मूढो, दुष्टों को, षडयंत्रकारियों, कुटिल लोगों को सदैव समस्या रही है। ऐसा सदा से हुआ है चाहे वो राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, जीसस, कबीर, नानक, ओशो या सदगुरु ही क्यों ना हो, इन सभी ने अपने समय में यहाँ तक की सेकड़ों, हज़ारों वर्ष बाद आज भी इन दुर्बुद्धि लोगों की मुर्खता और दुष्टता का सामना करना पड़ रहा है,  कुछ मूर्ख और दुर्बुद्धि लोग इन महामानवों, अवतारों, और सिद्ध पुरुषों की अवमानना और अपमान करने का दुर्भाग्यपूर्ण निंदित कृत्य करने में प्रवृत्त रहते हैं, उनके अस्तित्व और प्रामाणिकता ��र प्रश्न करते हैं, क्या ऐसे बीमारों का कोई इलाज संभव है? चमगादड़ और अंधेरे में रहने और जीने वाले सभी जीवों को सूर्य और रोशनी से समस्या रहती है, ऐसा ही इन बंदबुद्धि लिबरल, सेक्युलर और  वामपंथी लोगों की भी समस्या है, यह लोग भी उन्हीं में से हैं जो सत्य देखना, सुनना और प्रतिष्ठित होते देखना बर्दाश्त नहीं कर सकते, क्यूंकि, इससे इनके नीच स्वार्थों और दूषित उद्देश्य उजागर होने का भय रहता है, यह लोग सदैव प्रबुद्ध और जागृत लोगों से और लोगों के अज्ञान और अचेतना को तोड़ने वाले महामानवों से भयभीत होते हैं।
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sadhguru -a realized yogi, mystic, an enlightened master कुटिल और दुष्ट सत्ताधारी और राजनितिक शक्तियाँ और तथाकथित बुद्धिजीवी, लोभी, लालची पत्रकार अपने सत्ताधारी आकाओं और प्रायोजकों की दया पर और उनकी चापलूसी करके जीवन जीते हैं, ऐसे लोग और इनके आका और प्रायोजक सदगुरु जैसे व्यक्तियों की बातों को बिल्कुल पसंद और बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। यह सभी सदा से सदगुरु जैसे महिमावान सम्बुद्ध व्यक्तियों के विरोधी हैं और रहेंगे, जो  भी व्यक्ति जनमानस को सत्य और बोध की ओर ले जाते हों, जो उनकी मूढ़ता, जड़ता और अंधेपने के प्रति उन्हें जागरुक करें और उनपर चोट करें, उनसे यह लोग भयभीत रहते हैं, क्यूंकि इनकी स्वार्थ सिद्धि तभी संभव है जब लोग अज्ञानी, अच���त और अंधे हों, और सदगुरु जैसे लोग इनके लिए मुसीबत सिद्ध होते हैं, क्यूंकि उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य लोगों को चेतन और जागृत करना और सत्य को जानने और अनुभव करने में सक्षम बनाना होता है।  जो लोग सदगुरु जैसे बुद्ध पुरुषों के खिलाफ झूठे आरोपों और मिथ्या प्रचार का जाल बुनने की कोशिश करते हैं वो इस धरती पर उन  लोगों में से हैं जिन्हें सत्य सुनने, देखने और समझने से परहेज है सदा से और रहेगा सदा, क्योंकि वो खुद जीवन के मूल अर्थ और उद्देश्यों को भूलकर उसकी अर्थी उठाने वाले बन चुके हैं, साथ ही यह सभी अपनी ही सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों से कटे मूर्ख और परजीवी हैं, जिन्हें बुद्धिजीवी और विद्वान होने का भ्रम है। यह बिना रीढ़ और चेतना वाले लोग सदगुरु जैसे महामानवों की वास्तविकता और अर्थ���त्ता और उनके कल्याणकारी कार्यों और उद्देश्यों पर प्रश्न करते हैं, उनकी गरिमा को भंग करने का ओछा और असफल प्रयास करते रहते हैं,  क्यूंकि इनकी इतनी हैसियत नहीं जो परम शिव की महिमा को जान देख और समझ सकें, इनकी बुद्धि और मूर्खता हास्यापद है। यहाँ भी यह सभी लोग इस देश के लोगों का ब्रेनवाश करने, उन्हें उनकी आध्यात्मिक विरासत और हज़ारों साल पुरानी संस्कृति से काटने, भ्रमित करने, हमारे गौरवशाली अतीत और इतिहास को मलिन, विकृत और दूषित करने का जघन्य अपराध करते रहे है पिछले 70 वर्षों से और आज भी इसे पूरे जतन से संपादित कर रहे हैं।
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Adiyogi - 112 feet tall Lord Shiva Bust at Isha Yoga Center सदगुरु, इस राष्ट्र के लोगों को उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान की परंपरा से जोड़ने का महान उपक्रम कर रहे हैं, वो हज़ार वर्षों से कुंठित, दिग्भ्रमित, मलिन और दूषित मानवीय चेतना को जागृत करने का दुर्धर्ष कार्य कर रहे हैं। सदगुरु, भारत की सोई हुई चेतना को जगा रहे हैं, पूरे विश्व में भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक ज्ञान और चेतना के बीज बो रहे हैं, वो इस राष्ट्र की वास्तविक आत्मा से लोगों का परिचय करा रहे हैं। सदगुरु, भारत के प्राचीन गौरव और ज्ञान की पुनर्स्थापना का महानतम कार्य कर रहे हैं, इन सबसे उपर वो लाखों लोगों को उनके जीवन में क्रांतिकारी आत्म रूपांतरण की तकनीक सिखा रहे हैं, साथ ही लाखों असहाय, बेसहारा लोगों को स्वस्थ, शिक्षित और सक्षम बनाने का कार्य उनके फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है। वो सत्य को पूरी स्पष्टता और निर्भीकता पूर्वक प्रस्तुत करते हैं, राष्ट्र विरोधी ताकतों से कठोरता से निपटने का सुझाव देते हैं, वो भारतीय सेना के शौर्य और साहस की बेहद प्रशंसा करते हैं, उनके बलिदान और जज्बे को नमन करते हैं। वो जो जैसा है उसे वैसा ही देखने, समझने और स्वीकार करने पर बल देते हैं, वास्तविकता आधारित तथ्य और सत्य प्रस्तुत करते हैं, जीवन और जगत के संबन्ध में सभी आयामों और घटनाओं के संबन्ध में और जो भी इस ग्रह और यहाँ के जीवन की बेहतरी के लिए जरुरी  है। वो भारत की एकता और अखंडता के घनघोर पक्षधर हैं, वो पूरे राष्ट्र की नदियों के पुनर्जीवन के लिए प्रयासरत हैं, करोड़ो वृक्षों का रोपण करवा रहे हैं, वो भारत के वर्तमान नेतृत्व की रचनात्मक और राष्ट्र को सशक्त और बेहतर बनाने के कार्यों, परियोजनाओं के प्रशंषक और सलाहकार हैं। वो नये भारत के निर्माताओं में से एक हैं, वो युवाओं को सत्य के अवगाहन के लिए प्रेरित करते हैं, उन्हें जीवन और जगत के प्रति वास्तविक और वैज्ञानिक दृष्टि और दिशा देते हैं, वो सभी को अपना और जीवन का सत्य जानने और खोजने के लिए प्रेरित करते हैं। सदगुरु, योग के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक स्वरूप को सीखने और जानने तथा भारत की महान आध्यात्मिक विरासत को जन जन में और संपूर्ण विश्व में प्रतिष्ठित करने और  वास्तविक प्रशिक्षण उपलब्ध कराने का सार्थक उपक्रम कर रहे हैं, पूरे विश्व में उनके साधक और साधना केंद्र लाखों लोगों के जीवन को रूपांतरित करने का महान कार्य कर रहे हैं। सदगुरू,  वर्तमान में भारत की वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा के वास्तविक उदगाता और प्रतिष्ठापक हैं, वो जीवंत जागृत बुद्ध पुरुष हैं, वो ऐसा सबकुछ कर रहे हैं, जो इन तथाकथित वामपंथियो, लिबरल और विशिष्ट एजेंडे वाले तथाकथित सेक्युलर की झूठी, मक्कारी भरी, शोषण और असत्य पर आधारित अस्तित्व और अलगावकारी विनाशकारी राष्ट्रद्रोही व्यवस्था के बिल्कुल पक्ष और समर्थन में नहीं है। सदगुरु योग के वैज्ञानिक स्वरुप, आतंरिक और बाह्य स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के सभी आयामों के सम्बन्ध में जागरूकता और चेतना विकसित करने के लिए पूरे विश्व में भ्रमण कर रहे हैं, सभी शक्तिशाली वैश्विक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संगठनों और नेताओं और प्रमुख व्यक्तियों के साथ विचार विमर्श करते हुए और उनके साथ मिलकर विश्व कल्याण और मानवीय चेतना को ऊपर उठाने के कार्यक्रमों और आवश्यकता के प्रति जागरूकता और प्रशिक्षण का आयोजन कर रहे हैं। वे भारत स्थित  ईशा योग केंद्र और पूरे विश्व के विभिन्न भागों में स्थापित और क्रियाशील केन्द्रों के माध्यम से लाखों लोगों तक वास्तविक योग और ज्ञान की ज्योति पहुंचा रहे हैं,  उनके समस्त कार्य का सञ्चालन भारत और पूरे विश्व में उनके स्वयं सेवकों द्वारा संचालित किया जाता है, जो बेहद प्रतिभावान और शिक्षित और अपने जीवन और कार्य क्षेत्र में बेहद सक्षम स्थिति को प्राप्त व्यक्ति हैं, जो सदगुरु के पवित्र उद्देश्यों के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं, बिना किसी व्यक्तिगत आर्थिक लाभ की कामना या प्राप्ति के।
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Dhyanlinga - A door to the divine वो भारत के अक्षुण्ण और सार्थक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की प्रतिष्ठा कर रहे हैं, वो भारत को और सम्पूर्ण विश्व को भारत की अद्भुत ��ध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रति चेतन जागरुक और दीक्षित और प्रश��क्षित कर रहे हैं। उन्होंने ध्यान साधना के लिए पूर्व काल में असाध्य एवं असंभव,  एक अद्भुत रचना निर्मित की है, जो पिछले हजारों सालों से योगियों और दिव्यदर्शियों का स्वप्न रहा है,  वो है ध्यानलिंग - मुक्ति का द्वार  सदगुरु के अनेक जन्मों की साधना और उनके गुरु के स्वप्न का जीवंत जागृत सातों चक्रों तक चरम रूप से प्रतिष्ठित शिव स्वरुप है ध्यानलिंग के स्वरुप में। वो इस राष्ट्र और संपूर्ण विश्व में चैतन्य योगियों, साधकों और प्रशिक्षक और प्रशिक्षुओं की एक विराट श्रृंखला निर्मित कर रहे हैं, जो पूरे विश्व में स्वयं को और सभी को मनुष्य होने की असीम संभावना और गौरव के प्रति जागरुक और परिचित होने में सक्षम बना रहे हैं, ईशा योग केंद्र द्वारा संचालित  आत्म रूपांतरण के कार्यक्रम। वो एक ऐसी मनुष्यता और मनुष्य निर्मित करने की संभावना पर कार्य कर रहे हैं, जो किसी भी जाति, धर्म, विचार पद्धति या भौगोलिक स्थिति और सामाजिक स्थिति, राजनितिक विचार से परे एक चेतनावान आत्म बोधयुक्त मुक्त मनुष्य के रूप में विकसित होने में समर्थ बन सके। राजनेता और राजनैतिक शक्तियाँ सदैव जनता को दिग्भ्रमित करने, सत्य से विमुख रखने, झूठे प्रोपेगंडा फैलाने और उन्हें वास्तविक मुद्दों से विमुख रखने और इन्हीं सभी बातों का जाल बुनने और लोगों को व्यस्त रखने का कारोबार करते रहते है। इस तरह वो अपने उद्देश्यों की पूर्ति करते रहते हैं और लोगों को मूर्ख बनाए रखने, उलझाए रखने, बाँटे रखने में व्यस्त रहते हैं, ताकि उनकी कमजोरियों, भयों, अज्ञानता और भ्रमों का शोषण करते हुए उन्हें गुलाम, असंगठित और विभाजित रखा जा सके। सदगुरु जैसी विभूतियाँ लोगों के भ्रमों, असत्यों और अज्ञान को नष्ट कर उन्हें जीवन, जगत और व्यवस्थाओं के सत्य के प्रति जागरुकता और बोध से भरते हैं, वो व्यक्ति को उसकी वास्तविकता से परिचित कराते हैं और उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता की ओर अग्रसर होने में सक्षम बनाते हैं। चेतना विकास की इन सभी प्रक्रियाओं में लोगों की रुचि बढ़ने और उनके इसमें  शामिल होने से सभी असामाजिक और अराजक राजनीतिक, आर्थिक शक्तियों और व्यक्तियों  को असुरक्षा महसूस होती है, क्योंकि लोगों की चेतना और बोध का जागृत होना, उनके फैलाये गये झूठ और भ्रमों की मृत्यु के द्वार खोलती है। इसलिए सदा से कुटिल राजनैतिक शक्तियाँ, व्यवस्था और पदाधिकारी सदगुरु जैसे वास्तविक ज्ञानी, सत्य उदघोषक और वास्तविकता से साक्षात्कार कराने वाले बुद्ध पुरुषों से भयभीत रहते हैं, और उनकी छवि, महिमा, प्रतिभा और सत्य को मलिन और नष्ट करने मे संलग्न रहते हैं। आप सदगुरु के बारे में, उनके कार्यों, शिक्षाओं और ज्ञान के मुक्तकों के लिए उनके संस्थान की वेबसाइट Homepage पर जा सकते है, और उनके संबंध में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आप सदगुरु द्वारा निर्देशित योग और ध्यान की विधियों और आत्म रूपांतरण की क्रियाओं और योग अभ्यासों के लिए विभिन्न एप्प डाउनलोड कर सकते हैं और उनका लाभ ले सकते हैं एंड्राइड app के लिए एवं iphone app के लिए, इसके अलावा भी अन्य एप्प आपके मोबाइल डिवाइसेस के लिए उपलब्ध हैं, जिनका आप लाभ ले सकते हैं। Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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सदगुरु जग्गी वासुदेव कौन हैं, किन लोगों को उनसे समस्या है?
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सदगुरु जग्गी वासुदेव कौन हैं, किन लोगों को उनसे समस्या है?
मेरे एक प्रिय Quora लेखक मित्र ने प्रश्न किया है सद्गुरु जग्गी वासुदेव कौन हैं, किन लोगों को उनसे समस्या है? सदगुरु जग्गी वासुदेव, एक योगी, रहस्यदर्शी और बुद्ध पुरुष हैं, और बुद्ध पुरुषों से बुद्धुओं को, मूढो, दुष्टों को, षडयंत्रकारियों, कुटिल लोगों को सदैव समस्या रही है। ऐसा सदा से हुआ है चाहे वो राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, जीसस, कबीर, नानक, ओशो या सदगुरु ही क्यों ना हो, इन सभी ने अपने समय में यहाँ तक की सेकड़ों, हज़ारों वर्ष बाद आज भी इन दुर्बुद्धि लोगों की मुर्खता और दुष्टता का सामना करना पड़ रहा है,  कुछ मूर्ख और दुर्बुद्धि लोग इन महामानवों, अवतारों, और सिद्ध पुरुषों की अवमानना और अपमान करने का दुर्भाग्यपूर्ण निंदित कृत्य करने में प्रवृत्त रहते हैं, उनके अस्तित्व और प्रामाणिकता पर प्रश्न करते हैं, क्या ऐसे बीमारों का कोई इलाज संभव है? चमगादड़ और अंधेरे में रहने और जीने वाले सभी जीवों को सूर्य और रोशनी से समस्या रहती है, ऐसा ही इन बंदबुद्धि लिबरल, सेक्युलर और  वामपंथी लोगों की भी समस्या है, यह लोग भी उन्हीं में से हैं जो सत्य देखना, सुनना और प्रतिष्ठित होते देखना बर्दाश्त नहीं कर सकते, क्यूंकि, इससे इनके नीच स्वार्थों और दूषित उद्देश्य उजागर होने का भय रहता है, यह लोग सदैव प्रबुद्ध और जागृत लोगों से और लोगों के अज्ञान और अचेतना को तोड़ने वाले महामानवों से भयभीत होते हैं।
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sadhguru -a realized yogi, mystic, an enlightened master कुटिल और दुष्ट सत्ताधारी और राजनितिक शक्तियाँ और तथाकथित बुद्धिजीवी, लोभी, लालची पत्रकार अपने सत्ताधारी आकाओं और प्रायोजकों की दया पर और उनकी चापलूसी करके जीवन जीते हैं, ऐसे लोग और इनके आका और प्रायोजक सदगुरु जैसे व्यक्तियों की बातों को बिल्कुल पसंद और बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। यह सभी सदा से सदगुरु जैसे महिमावान सम्बुद्ध व्यक्तियों के विरोधी हैं और रहेंगे, जो  भी व्यक्ति जनमानस को सत्य और बोध की ओर ले जाते हों, जो उनकी मूढ़ता, जड़ता और अंधेपने के प्रति उन्हें जागरुक करें और उनपर चोट करें, उनसे यह लोग भयभीत रहते हैं, क्यूंकि इनकी स्वार्थ सिद्धि तभी संभव है जब लोग अज्ञानी, अचेत और अंधे हों, और सदगुरु जैसे लोग इनके लिए मुसीबत सिद्ध होते हैं, क्यूंकि उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य लोगों को चेतन और जागृत करना और सत्य को जानने और अनुभव करने में सक्षम बनाना होता है।  जो लोग सदगुरु जैसे बुद्ध पुरुषों के खिलाफ झूठे आरोपों और मिथ्या प्रचार का जाल बुनने की कोशिश करते हैं वो इस धरती पर उन  लोगों में से हैं जिन्हें सत्य सुनने, देखने और समझने से परहेज है सदा से और रहेगा सदा, क्योंकि वो खुद जीवन के मूल अर्थ और उद्देश्यों को भूलकर उसकी अर्थी उठाने वाले बन चुके हैं, साथ ही यह सभी अपनी ही सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों से कटे मूर्ख और परजीवी हैं, जिन्हें बुद्धिजीवी और विद्वान होने का भ्रम है। यह बिना रीढ़ और चेतना वाले लोग सदगुरु जैसे महामानवों की वास्तविकता और अर्थवत्ता और उनके कल्याणकारी कार्यों और उद्देश्यों पर प्रश्न करते हैं, उनकी गरिमा को भंग करने का ओछा और असफल प्रयास करते रहते हैं,  क्यूंकि इनकी इतनी हैसियत नहीं जो परम शिव की महिमा को जान देख और समझ सकें, इनकी बुद्धि और मूर्खता हास्यापद है। यहाँ भी यह सभी लोग इस देश के लोगों का ब्रेनवाश करने, उन्हें उनकी आध्यात्मिक विरासत और हज़ारों साल पुरानी संस्कृति से काटने, भ्रमित करने, हमारे गौरवशाली अतीत और इतिहास को मलिन, विकृत और दूषित करने का जघन्य अपराध करते रहे है पिछले 70 वर्षों से और आज भी इसे पूरे जतन से संपादित कर रहे हैं।
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Adiyogi - 112 feet tall Lord Shiva Bust at Isha Yoga Center सदगुरु, इस राष्ट्र के लोगों को उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान की परंपरा से जोड़ने का महान उपक्रम कर रहे हैं, वो हज़ार वर्षों से कुंठित, दिग्भ्रमित, मलिन और दूषित मानवीय चेतना को जागृत करने का दुर्धर्ष कार्य कर रहे हैं। सदगुरु, भारत की सोई हुई चेतना को जगा रहे हैं, पूरे विश्व में भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक ज्ञान और चेतना के बीज बो रहे हैं, वो इस राष्ट्र की वास्तविक आत्मा से लोगों का परिचय करा रहे हैं। सदगुरु, भारत के प्राचीन गौरव और ज्ञान की पुनर्स्थापना का महानतम कार्य कर रहे हैं, इन सबसे उपर वो लाखों लोगों को उनके जीवन में क्रांतिकारी आत्म रूपांतरण की तकनीक सिखा रहे हैं, साथ ही लाखों असहाय, बेसहारा लोगों को स्वस्थ, शिक्षित और सक्षम बनाने का कार्य उनके फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है। वो सत्य को पूरी स्पष्टता और निर्भीकता पूर्वक प्रस्तुत करते हैं, राष्ट्र विरोधी ताकतों से कठोरता से निपटने का सुझाव देते हैं, वो भारतीय सेना के शौर्य और साहस की बेहद प्रशंसा करते हैं, उनके बलिदान और जज्बे को नमन करते हैं। वो जो जैसा है उसे वैसा ही देखने, समझने और स्वीकार करने पर बल देते हैं, वास्तविकता आधारित तथ्य और सत्य प्रस्तुत करते हैं, जीवन और जगत के संबन्ध में सभी आयामों और घटनाओं के संबन्ध में और जो भी इस ग्रह और यहाँ के जीवन की बेहतरी के लिए जरुरी  है। वो भारत की एकता और अखंडता के घनघोर पक्षधर हैं, वो पूरे राष्ट्र की नदियों के पुनर्जीवन के लिए प्रयासरत हैं, करोड़ो वृक्षों का रोपण करवा रहे हैं, वो भारत के वर्तमान नेतृत्व की रचनात्मक और राष्ट्र को सशक्त और बेहतर बनाने के कार्यों, परियोजनाओं के प्रशंषक और सलाहकार हैं। वो नये भारत के निर्माताओं में से एक हैं, वो युवाओं को सत्य के अवगाहन के लिए प्रेरित करते हैं, उन्हें जीवन और जगत के प्रति वास्तविक और वैज्ञानिक दृष्टि और दिशा देते हैं, वो सभी को अपना और जीवन का सत्य जानने और खोजने के लिए प्रेरित करते हैं। सदगुरु, योग के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक स्वरूप को सीखने और जानने तथा भारत की महान आध्यात्मिक विरासत को जन जन में और संपूर्ण विश्व में प्रतिष्ठित करने और  वास्तविक प्रशिक्षण उपलब्ध कराने का सार्थक उपक्रम कर रहे हैं, पूरे विश्व में उनके साधक और साधना केंद्र लाखों लोगों के जीवन को रूपांतरित करने का महान कार्य कर रहे हैं। सदगुरू,  वर्तमान में भारत की वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा के वास्तविक उदगाता और प्रतिष्ठापक हैं, वो जीवंत जागृत बुद्ध पुरुष हैं, वो ऐसा सबकुछ कर रहे हैं, जो इन तथाकथित वामपंथियो, लिबरल और विशिष्ट एजेंडे वाले तथाकथित सेक्युलर की झूठी, मक्कारी भरी, शोषण और असत्य पर आधारित अस्तित्व और अलगावकारी विनाशकारी राष्ट्रद्रोही व्यवस्था के बिल्कुल पक्ष और समर्थन में नहीं है। सदगुरु योग के वैज्ञानिक स्वरुप, आतंरिक और बाह्य स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के सभी आयामों के सम्बन्ध में जागरूकता और चेतना विकसित करने के लिए पूरे विश्व में भ्रमण कर रहे हैं, सभी शक्तिशाली वैश्विक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संगठनों और नेताओं और प्रमुख व्यक्तियों के साथ विचार विमर्श करते हुए और उनके साथ मिलकर विश्व कल्याण और मानवीय चेतना को ऊपर उठाने के कार्यक्रमों और आवश्यकता के प्रति जागरूकता और प्रशिक्षण का आयोजन कर रहे हैं। वे भारत स्थित  ईशा योग केंद्र और पूरे विश्व के विभिन्न भागों में स्थापित और क्रियाशील केन्द्रों के माध्यम से लाखों लोगों तक वास्तविक योग और ज्ञान की ज्योति पहुंचा रहे हैं,  उनके समस्त कार्य का सञ्चालन भारत और पूरे विश्व में उनके स्वयं सेवकों द्वारा संचालित किया जाता है, जो बेहद प्रतिभावान और शिक्षित और अपने जीवन और कार्य क्षेत्र में बेहद सक्षम स्थिति को प्राप्त व्यक्ति हैं, जो सदगुरु के पवित्र उद्देश्यों के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं, बिना किसी व्यक्तिगत आर्थिक लाभ की कामना या प्राप्ति के।
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Dhyanlinga - A door to the divine वो भारत के अक्षुण्ण और सार्थक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की प्रतिष्ठा कर रहे हैं, वो भारत को और सम्पूर्ण विश्व को भारत की अद्भुत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रति चेतन जागरुक और दीक्षित और प्रशिक्षित कर रहे हैं। उन्होंने ध्यान साधना के लिए पूर्व काल में असाध्य एवं असंभव,  एक अद्भुत रचना निर्मित की है, जो पिछले हजारों सालों से योगियों और दिव्यदर्शियों का स्वप्न रहा है,  वो है ध्यानलिंग - मुक्ति का द्वार  सदगुरु के अनेक जन्मों की साधना और उनके गुरु के स्वप्न का जीवंत जागृत सातों चक्रों तक चरम रूप से प्रतिष्ठित शिव स्वरुप है ध्यानलिंग के स्वरुप में। वो इस राष्ट्र और संपूर्ण विश्व में चैतन्य योगियों, साधकों और प्रशिक्षक और प्रशिक्षुओं की एक विराट श्रृंखला निर्मित कर रहे हैं, जो पूरे विश्व में स्वयं को और सभी को मनुष्य होने की असीम संभावना और गौरव के प्रति जागरुक और परिचित होने में सक्षम बना रहे हैं, ईशा योग केंद्र द्वारा संचालित  आत्म रूपांतरण के कार्यक्रम। वो एक ऐसी मनुष्यता और मनुष्य निर्मित करने की संभावना पर कार्य कर रहे हैं, जो किसी भी जाति, धर्म, विचार पद्धति या भौगोलिक स्थिति और सामाजिक स्थिति, राजनितिक विचार से परे एक चेतनावान आत्म बोधयुक्त मुक्त मनुष्य के रूप में विकसित होने में समर्थ बन सके। राजनेता और राजनैतिक शक्तियाँ सदैव जनता को दिग्भ्रमित करने, सत्य से विमुख रखने, झूठे प्रोपेगंडा फैलाने और उन्हें वास्तविक मुद्दों से विमुख रखने और इन्हीं सभी बातों का जाल बुनने और लोगों को व्यस्त रखने का कारोबार करते रहते है। इस तरह वो अपने उद्देश्यों की पूर्ति करते रहते हैं और लोगों को मूर्ख बनाए रखने, उलझाए रखने, बाँटे रखने में व्यस्त रहते हैं, ताकि उनकी कमजोरियों, भयों, अज्ञानता और भ्रमों का शोषण करते हुए उन्हें गुलाम, असंगठित और विभाजित रखा जा सके। सदगुरु जैसी विभूतियाँ लोगों के भ्रमों, असत्यों और अज्ञान को नष्ट कर उन्हें जीवन, जगत और व्यवस्थाओं के सत्य के प्रति जागरुकता और बोध से भरते हैं, वो व्यक्ति को उसकी वास्तविकता से परिचित कराते हैं और उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता की ओर अग्रसर होने में सक्षम बनाते हैं। चेतना विकास की इन सभी प्रक्रियाओं में लोगों की रुचि बढ़ने और उनके इसमें  शामिल होने से सभी असामाजिक और अराजक राजनीतिक, आर्थिक शक्तियों और व्यक्तियों  को असुरक्षा महसूस होती है, क्योंकि लोगों की चेतना और बोध का जागृत होना, उनके फैलाये गये झूठ और भ्रमों की मृत्यु के द्वार खोलती है। इसलिए सदा से कुटिल राजनैतिक शक्तियाँ, व्यवस्था और पदाधिकारी सदगुरु जैसे वास्तविक ज्ञानी, सत्य उदघोषक और वास्तविकता से साक्षात्कार कराने वाले बुद्ध पुरुषों से भयभीत रहते हैं, और उनकी छवि, महिमा, प्रतिभा और सत्य को मलिन और नष्ट करने मे संलग्न रहते हैं। आप सदगुरु के बारे में, उनके कार्यों, शिक्षाओं और ज्ञान के मुक्तकों के लिए उनके संस्थान की वेबसाइट Homepage पर जा सकते है, और उनके संबंध में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आप सदगुरु द्वारा निर्देशित योग और ध्यान की विधियों और आत्म रूपांतरण की क्रियाओं और योग अभ्यासों के लिए विभिन्न एप्प डाउनलोड कर सकते हैं और उनका लाभ ले सकते हैं एंड्राइड app के लिए एवं iphone app के लिए, इसके अलावा भी अन्य एप्प आपके मोबाइल डिवाइसेस के लिए उपलब्ध हैं, जिनका आप लाभ ले सकते हैं। Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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आध्यात्मिक साधकों द्वारा केश रखने और न रखने का क्या कारण है?
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आध्यात्मिक साधकों द्वारा केश रखने और न रखने का क्या कारण है?
मेरे कुछ पाठकों ने प्रश्न किया है की आध्यात्मिक साधना पथ पर अग्रसर  कुछ साधक अपने सिर और चेहरे के बाल क्यों निकाल देते हैं हैं, जबकि अन्य उन्हें बड़ा करते हैं? आध्यात्मिक साधकों द्वारा केश रखने और न रखने का क्या कारण है? दरअसल विभिन्न आध्यात्मिक पथों पर चलनेवाले साधक विभिन्न चिन्हों को धारण करते है जो उन विभिन्न साधना पद्धितियों में उपयोगी होती है, केश रखना या उनका त्याग करना या निकाल देना उनकी साधना और संन्यास की प्रक्रिया का अंग होते हैं। बुद्ध और जैन धर्म और विश्व के अन्य कई सम्प्रदायों के उपासक और साधक अपने चेहरे और सिर के बाल निकाल लिया करते हैं, क्यूंकि वो अपना समय और श्रम उन्हें सजाने संवारने में व्यर्थ नहीं करना चाहते इस के अलावा साफ सफाई और हाइजिनिक कारणों से भी वो ऐसा करते हैं। इसके अलावा वो बाहयोपचार और साजसज्जा के प्रति उदासीन रहना चाहते है ताकि वो अपनी ऊर्जा और दृष्टि अंतर्मुखी कर सके, उनके लिए बाह्व शारीरिक और भौतिक सौंदर्य से ज्यादा मूल्यवान उनका अपने आंतरिक सत्य और वास्तव और परम सौंदर्य की खोज होता है, और यह इसमें सहयोगी उपकरण है। उनकी इस विशिष्ट अवस्था और स्वरूप को धारण करने का उद्देश्य बाहरी जगत और बातों से स्वयं को उदासीन और विमुख रखना होता है और यह उनकी आंतरिक दृष्टि के विकास और साधना मे सहायक होता है। ऐसा ही सिर और चेहरे के बालों को लम्बा रखने वाले साधकों और उपासकों के संबंध में सत्य है, इसके अलावा खास तौर से यह उपाय व्यक्ति की चेतना के विकास और इन्ट्यूशन के विकास और पूरी तरह क्रियाशील होने के संबंध में आवश्यक न्यूरोलॉजिकल उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है की हमारे शरीर के बाल हमारे न्यूरो ट्रांसमीटर्स का एक्सटेंशन है, आज से 250–300 वर्ष पूर्व विश्व के सभी भागों में पुरुषों द्वारा लंबे बाल और दाढ़ी रखने का चलन था, यह सामान्य जीवन और सभ्यता का लक्षण था। आप किसी भी पुरानी कथा, ऐतिहासिक कहानी, चलचित्र या टीवी ड्रामा में यह देख सकते हैं की आज से 300 वर्ष पूर्व के समय में विश्व के किसी भी भाग में पुरुषों के द्वारा लम्बे बाल और दाढ़ी रखने का चलन था, चाहे वो सामान्य नागरिक हों या आध्यात्मिक साधक। यह तो  18 वी शताब्दी की क्रांति और नवजागरण काल के बाद यूरोपीय अमेरिकी सभ्यता संस्कृति के अंधानुकरण, दासता और प्रभाव के चलते पुरुषों में छोटे बाल रखने और दाढ़ी मूंछ सफाचट करने का चलन शुरू हुआ है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था इसके वैज्ञानिक और गुह्य कारण थे।
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Markus Koljonen (Dilaudid) [CC BY-SA 3.0 सिर मूंडना और लंबे दाढ़ी बाल रखना विशिष्ट कार्यों को करने, एकाग्रता और ध्यान विकसित करने, परा शक्तियों से संदेश और संवाद करने, और अदृश्य प्राकृतिक शक्तियों से संबंधित होने में बेहद उपयोगी उपकरण है। इसके प्रमाण हैं, आप किसी भी धार्मिक या आध्यात्मिक परंपरा के परम पुरुषों को परा शक्तियों से युक्त व्यक्तियों को इन लक्षणों से युक्त देख सकते है।  इस संबंध मै बहुत सारे प्रयोग किए गए हैं एक का उल्लेख कर रहा हूं जिससे आपको यह बात समझने में मदद मिलेगी - आप में से बहुत सारे लोग अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियंस के बारे में जानते होंगे, वे बेहद लंबे बाल रखते थे और परा शक्तियों और छठी इन्द्रिय या इन्ट्यूशन में बेहद विकसित व प्रवीण थे। अपने मुक्त प्राकृतिक परिवेश और खुले लंबे बालों की वजह से वे आसानी से खतरों को भांप सकते थे, वो शुद्ध प्रकृति की संतान थे, खुले वन प्रदेशों में रहना और मुक्त जीवन जीना ही उनका जीवन का तरीका था। कुछ विदेशियों को उनकी इस विशिष्ट क्षमता और प्रतिभा का पता चला तो वो इनकी इस क्षमता का उपयोग सामरिक और गुप्तचर कार्यों के लिए करने के लिए कुछ लोगो को अपने साथ ले गए, उन्होंने इनकी क्षमताओं की जांच भी की उन्होंने पाया की वे लोग अद्भुत रूप से खतरों कों भांपने और उसकी सूचना प्राप्त करने में सक्षम थे। उन्होंने उन्हें अपनी टुकड़ी में शामिल किया और उनके सैनिक नियमों के अनुसार उनके लंबे संवेदनशील बालों को काट दिया उन्होंने पाया कि, बाल काटने के बाद वो बिलकुल प्रभावहीन और निरूपयोगी साबित हुए, उनके लंबे बाल ही उनके लिए ट्रांस रिसीवर की तरह बाह्य जगत में अदृश्य सूक्ष्म तरंगों को ग्रहण करने का उपकरण थे। इसी तरह विभिन्न आध्यात्मिक पथों पर साधना रत साधकों और उपासकों को बाह्य जगत से विमुख और अन्तर्जगत के प्रति और अदृश्य आयामों और शक्तियों से जुड़ने की साधना में केंद्रित और प्रबल होने के लिए यह उपक्रम किया जाता रहा है, मनुष्य की चेतना के विकास के प्रारंभ से। विश्व में विभिन्न साधना पद्धतियों और साधकों द्वारा यह विशिष्ट चिन्ह विशिष्ट उद्देश्यों और शक्तियों के जागरण और विकास के लिए प्रतिष्ठित किए गए हैं, जिनके ज्ञात और अज्ञात वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण और व्यवस्थाएं है। उम्मीद है यह जानकारी इस संबंध में आपको अपनी समझ बढ़ाने में उपयोगी होगी।
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मै आपको अपना स्वयं का अनुभव बताता हूं, पिछले तीन वर्षों तक मैंने अपनी दाढ़ी के बाल काफी लंबे समय तक बढ़ाए रखे और मैंने इसे महसूस किया कि इससे बाहरी लोगों की आपके प्रति धारणा के संबंध में उदासीनता ���र आंतरिक स्थिरता और मिठास में अभूतपूर्व वृद्धि होती है, यह आंतरिक रूप से केंद्रित और स्थिर होने में सहयोगी है, यदि आप खुद से जुड़ना पसंद करते हों और इस दिशा में क्रियाशील हों तो यह निश्चित रूप से मददगार है। और तभी से मैं लगातार इसे रखता हूं, जबकि मेरी मां को बिल्कुल भी पसंद नहीं वो कहती है हमारे साथ रहना है तो इसे साफ करो वरना बाबागिरी में लग जाओ और हिमालय चले जाओ हा हा हा इतिहास गवाह है किसी की भी मां और पत्नी को अपने परिवार के किसी पुरुष का सन्यासी होना या गहरी आध्यात्मिक रूचि रखना पसंद नहीं आया है कभी भी और ना होगा कभी, क्यूंकि उन्हें भय लगता है की कहीं वो अपने किसी प्रिय को खो न दें, इसलिए जब घर पर होता हूँ तो सफाचट रहना जरुरी हो जाता है :p  वास्तविकता तो यह है, गहरी आध्यात्मिक रूचि मनुष्य को अपने जीवन और सभी रिश्तों को अधिक सार्थकता और गहराई से और सही स्वरुप में जीने और निभाने में परम सहयोगी है, वह जीवन और रिश्तों के मध्य की व्यर्थता के प्रति सचेत और जागरूक रखती है, रिश्ते अपने सर्वाधिक शुद्ध और प्रमाणिक स्वरुप और प्रभाव में विकसित होते हैं और जीवन को बेहतर बनाए रखने में अत्यंत सहयोगी होते हैं। गहरी आध्यात्मिक समझ का व्यक्ति जीवन और जगत की सार्थकता और व्यर्थता को बेहतर रूप से जानने और समझने में सक्षम होता है और दूसरों को भी इसमें सहयोग करता है। मै स्वयं आध्यात्मिक अनुभव और इन्ट्यूशन की वृद्धि में रुचि रखता हूं, बेहद संवेदनशील हूं और इसमें और वृद्धि करना चाहता हूं और यह विशिष्ट चिन्ह और उपयोगी उपकरण है, क्यूंकि यह आपकी ग्रहणशीलता को तीव्र और गहरा करने में बेहद सहयोगी है। यह स्वयं से जुड़ने में सहयोगी है, और बाह्य आचार और लोगों की धारणा के अनुरूप ढलने की प्रवृत्ति से विमुख करती है, यह आपको अपने मूल स्वभाव की और केन्द्रित होने में सहयोगी है, यही इसका सार्थक उपयोग है, और इसके अन्य वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ तो हैं ही। इसका यह मतलब नहीं कि सब सिर घुटे और दाढ़ी बाल युक्त लोग साधु या सिद्ध है, यह सिर्फ वास्तविक लोगों के लिए उनकी साधना में उपयोगी है और ढोंगियों और ठगों की उनके प्रपंच और ढोंग को धारण करने और लोगों को मूर्ख बनाने मे। इसलिए सावधान, हर चमकती हुई चीज़ सोना नहीं होती और हर किस्म के प्रभावी ��िन्ह, वेश और स्वरुप धारण करने वाले सभी लोग सही नहीं होते, ठग और धोखेबाज़ भी इनका सबसे ज्यादा फायदा उठाते हैं, जागरूक और चैतन्य रहें, बस यही काम आता है।   धन्यवाद। Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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आध्यात्मिक साधकों द्वारा केश रखने और न रखने का क्या कारण है?
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आध्यात्मिक साधकों द्वारा केश रखने और न रखने का क्या कारण है?
मेरे कुछ पाठकों ने प्रश्न किया है की आध्यात्मिक साधना पथ पर अग्रसर  कुछ साधक अपने सिर और चेहरे के बाल क्यों निकाल देते हैं हैं, जबकि अन्य उन्हें बड़ा करते हैं? आध्यात्मिक साधकों द्वारा केश रखने और न रखने का क्या कारण है? दरअसल विभिन्न आध्यात्मिक पथों पर चलनेवाले साधक विभिन्न चिन्हों को धारण करते है जो उन विभिन्न साधना पद्धितियों में उपयोगी होती है, केश रखना या उनका त्याग करना या निकाल देना उनकी साधना और संन्यास की प्रक्रिया का अंग होते हैं। बुद्ध और जैन धर्म और विश्व के अन्य कई सम्प्रदायों के उपासक और साधक अपने चेहरे और सिर के बाल निकाल लिया करते हैं, क्यूंकि वो अपना समय और श्रम उन्हें सजाने संवारने में व्यर्थ नहीं करना चाहते इस के अलावा साफ सफाई और हाइजिनिक कारणों से भी वो ऐसा करते हैं। इसके अलावा वो बाहयोपचार और साजसज्जा के प्रति उदासीन रहना चाहते है ताकि वो अपनी ऊर्जा और दृष्टि अंतर्मुखी कर सके, उनके लिए बाह्व शारीरिक और भौतिक सौंदर्य से ज्यादा मूल्यवान उनका अपने आंतरिक सत्य और वास्तव और परम सौंदर्य की खोज होता है, और यह इसमें सहयोगी उपकरण है। उनकी इस विशिष्ट अवस्था और स्वरूप को धारण करने का उद्देश्य बाहरी जगत और बातों से स्वयं को उदासीन और विमुख रखना होता है और यह उनकी आंतरिक दृष्टि के विकास और साधना मे सहायक होता है। ऐसा ही सिर और चेहरे के बालों को लम्बा रखने वाले साधकों और उपासकों के संबंध में सत्य है, इसके अलावा खास तौर से यह उपाय व्यक्ति की चेतना के विकास और इन्ट्यूशन के विकास और पूरी तरह क्रियाशील होने के संबंध में आवश्यक न्यूरोलॉजिकल उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है की हमारे शरीर के बाल हमारे न्यूरो ट्रांसमीटर्स का एक्सटेंशन है, आज से 250–300 वर्ष पूर्व विश्व के सभी भागों में पुरुषों द्वारा लंबे बाल और दाढ़ी रखने का चलन था, यह सामान्य जीवन और सभ्यता का लक्षण था। आप किसी भी पुरानी कथा, ऐतिहासिक कहानी, चलचित्र या टीवी ड्रामा में यह देख सकते हैं की आज से 300 वर्ष पूर्व के समय में विश्व के किसी भी भाग में पुरुषों के द्वारा लम्बे बाल और दाढ़ी रखने का चलन था, चाहे वो सामान्य नागरिक हों या आध्यात्मिक साधक। यह तो  18 वी शताब्दी की क्रांति और नवजागरण काल के बाद यूरोपीय अमेरिकी सभ्यता संस्कृति के अंधानुकरण, दासता और प्रभाव के चलते पुरुषों में छोटे बाल रखने और दाढ़ी मूंछ सफाचट करने का चलन शुरू हुआ है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था इसके वैज्ञानिक और गुह्य कारण थे।
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Markus Koljonen (Dilaudid) [CC BY-SA 3.0 सिर मूंडना और लंबे दाढ़ी बाल रखना विशिष्ट कार्यों को करने, एकाग्रता और ध्यान विकसित करने, परा शक्तियों से संदेश और संवाद करने, और अदृश्य प्राकृतिक शक्तियों से संबंधित होने में बेहद उपयोगी उपकरण है। इसके प्रमाण हैं, आप किसी भी धार्मिक या आध्यात्मिक परंपरा के परम पुरुषों को परा शक्तियों से युक्त व्यक्तियों को इन लक्षणों से युक्त देख सकते है।  इस संबंध मै बहुत सारे प्रयोग किए गए हैं एक का उल्लेख कर रहा हूं जिससे आपको यह बात समझने में मदद मिलेगी - आप में से बहुत सारे लोग अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियंस के बारे में जानते होंगे, वे बेहद लंबे बाल रखते थे और परा शक्तियों और छठी इन्द्रिय या इन्ट्यूशन में बेहद विकसित व प्रवीण थे। अपने मुक्त प्राकृतिक परिवेश और खुले लंबे बालों की वजह से वे आसानी से खतरों को भांप सकते थे, वो शुद्ध प्रकृति की संतान थे, खुले वन प्रदेशों में रहना और मुक्त जीवन जीना ही उनका जीवन का तरीका था। कुछ विदेशियों को उनकी इस विशिष्ट क्षमता और प्रतिभा का पता चला तो वो इनकी इस क्षमता का उपयोग सामरिक और गुप्तचर कार्यों के लिए करने के लिए कुछ लोगो को अपने साथ ले गए, उन्होंने इनकी क्षमताओं की जांच भी की उन्होंने पाया की वे लोग अद्भुत रूप से खतरों कों भांपने और उसकी सूचना प्राप्त करने में सक्षम थे। उन्होंने उन्हें अपनी टुकड़ी में शामिल किया और उनके सैनिक नियमों के अनुसार उनके लंबे संवेदनशील बालों को काट दिया उन्होंने पाया कि, बाल काटने के बाद वो बिलकुल प्रभावहीन और निरूपयोगी साबित हुए, उनके लंबे बाल ही उनके लिए ट्रांस रिसीवर की तरह बाह्य जगत में अदृश्य सूक्ष्म तरंगों को ग्रहण करने का उपकरण थे। इसी तरह विभिन्न आध्यात्मिक पथों पर साधना रत साधकों और उपासकों को बाह्य जगत से विमुख और अन्तर्जगत के प्रति और अदृश्य आयामों और शक्तियों से जुड़ने की साधना में केंद्रित और प्रबल होने के लिए यह उपक्रम किया जाता रहा है, मनुष्य की चेतना के विकास के प्रारंभ से। विश्व में विभिन्न साधना पद्धतियों और साधकों द्वारा यह विशिष्ट चिन्ह विशिष्ट उद्देश्यों और शक्तियों के जागरण और विकास के लिए प्रतिष्ठित किए गए हैं, जिनके ज्ञात और अज्ञात वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण और व्यवस्थाएं है। उम्मीद है यह जानकारी इस संबंध में आपको अपनी समझ बढ़ाने में उपयोगी होगी।
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मै आपको अपना स्वयं का अनुभव बताता हूं, पिछले तीन वर्षों तक मैंने अपनी दाढ़ी के बाल काफी लंबे समय तक बढ़ाए रखे और मैंने इसे महसूस किया कि इससे बाहरी लोगों की आपके प्रति धारणा के संबंध में उदासीनता और आंतरिक स्थिरता और मिठास में अभूतपूर्व वृद्धि होती है, यह आंतरिक रूप से केंद्रित और स्थिर होने में सहयोगी है, यदि आप खुद से जुड़ना पसंद करते हों और इस दिशा में क्रियाशील हों तो यह निश्चित रूप से मददगार है। और तभी से मैं लगातार इसे रखता हूं, जबकि मेरी मां को बिल्कुल भी पसंद नहीं वो कहती है हमारे साथ रहना है तो इसे साफ करो वरना बाबागिरी में लग जाओ और हिमालय चले जाओ हा हा हा इतिहास गवाह है किसी की भी मां और पत्नी को अपने परिवार के किसी पुरुष का सन्यासी होना या गहरी आध्यात्मिक रूचि रखना पसंद नहीं आया है कभी भी और ना होगा कभी, क्यूंकि उन्हें भय लगता है की कहीं वो अपने किसी प्रिय को खो न दें, इसलिए जब घर पर होता हूँ तो सफाचट रहना जरुरी हो जाता है :p  वास्तविकता तो यह है, गहरी आध्यात्मिक रूचि मनुष्य को अपने जीवन और सभी रिश्तों को अधिक सार्थकता और गहराई से और सही स्वरुप में जीने और निभाने में परम सहयोगी है, वह जीवन और रिश्तों के मध्य की व्यर्थता के प्रति सचेत और जागरूक रखती है, रिश्ते अपने सर्वाधिक शुद्ध और प्रमाणिक स्वरुप और प्रभाव में विकसित होते हैं और जीवन को बेहतर बनाए रखने में अत्यंत सहयोगी होते हैं। गहरी आध्यात्मिक समझ का व्यक्ति जीवन और जगत की सार्थकता और व्यर्थता को बेहतर रूप से जानने और समझने में सक्षम होता है और दूसरों को भी इसमें सहयोग करता है। मै स्वयं आध्यात्मिक अनुभव और इन्ट्यूशन की वृद्धि में रुचि रखता हूं, बेहद संवेदनशील हूं और इसमें और वृद्धि करना चाहता हूं और यह विशिष्ट चिन्ह और उपयोगी उपकरण है, क्यूंकि यह आपकी ग्रहणशीलता को तीव्र और गहरा करने में बेहद सहयोगी है। यह स्वयं से जुड़ने में सहयोगी है, और बाह्य आचार और लोगों की धारणा के अनुरूप ढलने की प्रवृत्ति से विमुख करती है, यह आपको अपने मूल स्वभाव की और केन्द्रित होने में सहयोगी है, यही इसका सार्थक उपयोग है, और इसके अन्य वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ तो हैं ही। इसका यह मतलब नहीं कि सब सिर घुटे और दाढ़ी बाल युक्त लोग साधु या सिद्ध है, यह सिर्फ वास्तविक लोगों के लिए उनकी साधना में उपयोगी है और ढोंगियों और ठगों की उनके प्रपंच और ढोंग को धारण करने और लोगों को मूर्ख बनाने मे। इसलिए सावधान, हर चमकती हुई चीज़ सोना नहीं होती और हर किस्म के प्रभावी चिन्ह, वेश और स्वरुप धारण करने वाले सभी लोग सही नहीं होते, ठग और धोखेबाज़ भी इनका सबसे ज्यादा फायदा उठाते हैं, जागरूक और चैतन्य रहें, बस यही काम आता है।   धन्यवाद। Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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Gandhi Revisited - The other side of coin
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Gandhi Revisited - The other side of the coin
The truth about Gandhi - Endorser of appeasement politics and dynasty rule in India after Independence, this is the truth about the most abused leader of India, So here are some facts about  the great man of India, read and learn more about the Mahatma in this profound article Gandhi Revisited - the other side of the coin. So this article is about revisiting and rediscovering the untold story and truth about Gandhi. We have been so much intoxicated with the propaganda of his mahatma hood and his sacrifices and image of a man of principle and truth etcetera by Congress and other mediums in the last 85 years. Congress leaders and other dynast politicians have made fortunes and enjoyed the power and all the fruits of being a ruler of this great nation criminally and in most corrupt ways. They used the name of Gandhi and his aura in most cunning ways and they have fooled the whole nation and the world for the last 75 years.
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And it has started and happened due to the lust of Gandhi to make Nehru the first Prime Minister of Independent India, he did it by all means, by destroying all the norms and he sidelined everyone and everything to fulfill his will and wish. He always forced people to accept and admit his will and do according to what he wanted to do. He was the ugliest cunning politician and greatest blackmailer of all times in disguise of a Mahatma. But it is not all about him, he has a dark side and that was more important and influential on our life and nation than the propaganda and belief about him among the citizens of India and of the whole world. In our country people have the tendency of hero worshipping and following and trusting upon them blindly, it leads to unfortunate situations and conditions and it had happened here many times in thousands of years of our history. When you have been lead by the impractical and unscientific idea and leader you bound to suffer immensely, and it has happened to us. Gandhi was a most unscientific thinker and policymaker, he was proven a disaster for our nation during and after independence.  People of this nation and of the world believed him as a great leader and freedom fighter for Indian independence, who fought with British rulers and compelled them to leave India and liberated India to exist as a free, a sovereign state, a free democratic country, yes he has played a big role to happen this.  The other side of Gandhi -  It is true that Gandhi was a great man, there is no doubt about it, what was utterly wrong with him that he insanely, cunningly blackmailed and imposed his impractical and sick, outdated ideologies, ideas and thinking upon poor masses of this country in the name of Satyagraha and Non-Violence and other hopeless, impractical and highly unscientific ideologies he prescribed for the people of this nation. 
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People unnecessarily suffered immensely, millions of people died in brutal riots and agitations conducted by him against the British; it was observed and calculated that if we were really fought with British, we would not suffer that much loss of honor, dignity, lives of people and everything valuable for us as a nation.  Osho told once if we had fought with British in an open battle, all the anguish, hatred,  frustration and pain we accumulated in us under British rule, may be released by fighting with them and they would be left our nation earlier.  One of the British diplomats told that when we came to India and started our work here, we were only 3000 if people over there, took a stone and thrown at us we have left India at that moment, but they didn't oppose and fought with us.  If Gandhi did not force and stopped people not to fight with British, Hindu and Muslims would be fought unitedly with British and compelled them to leave the country. But it has not happened,  due to his appeasement of British Rulers and the sick imposition of nonviolence on troubled, helpless citizens of this nation. This has given the chance to rise of Jinnah, Nehru and it resulted in ugliest partition and genocide of thousands of innocent people and families. Hindus and Muslims compelled and moved to fight with each other by igniting the hatred between them in name of Hindustan and Pakistan by British, Gandhi, Jinnah, and Nehru, they turned them in biggest enemies who lived with each other in harmony and peace for hundreds of years.   They all were succeeded in their ambitions and conspiracy against this great nation and its innocent highly troubled people, they all caused the ugliest partition in the history of mankind, but they have achieved what they want on the cost of the division of an integrated nation.
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It has happened on the cost of the suffering of its innocent citizens by being brutally raped, murdered, and killed thousands of innocent women, children, and people of all ages in riots and unrest generated during partition.    The sick theory of nonviolence imposed by Gandhi, crippled Indian peoples soul, and character, they lived with that pain and anguish and hatred for British. And due to the conspiracy of British, as they intended to divide our motherland into pieces, they have succeeded in that, they have done it brilliantly with the help and support of Gandhi, Jinnah, and Nehru. The pain and anguish and hatred people accumulated in more than last100 years of British rule have been exploded in the form of riots, rapes and murders happened during partition among its own inhabitants. They didn't get the chance to fight with their suppressor, due to Gandhi's nonviolence imposition on them,  so it burst out and exploded on their own fellow citizens, with whom they have shared everything in this lifetime and for generations.  This was the reason for hatred and differences increased among people of integrated India into divided India, Our ancestors were fought for our freedom, nobody identified anyone there as Hindu, Muslim or any other thing before independence, its seeds were sown by cunning British diplomats and nourished and supported by Gandhi, Jinnah, and Nehru before and after independence.  They have cultivated and spread it for their own sick interests, ambitions and ugly motives, they cursed our nation and played an instrumental role in making the British conspiracy successful, to tear off this country in pieces and divide its people in an ugly way and ignite never-ending hatred among them.
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Now our nation is burning with that communal fire and divisive sickness,  before and after independence and Gandhi and Nehru played the key role to happened this to our nation and to our people minds.  We have seen and suffered partition, it has to lead our nation to become broke in three parts, he was very selective in his decisions and choices, he was biggest appeasers of Muslims, he started the appeasement politics in India, we are suffering immensely due to this. His ideologies and experiments may be good for himself at a personal level, he has every right to conduct his life the way he wanted, but he has imposed it criminally on the innocent and poor people of this nation, who have given him the utmost respect and trusted him blindly. What he has given to them, partition, riots, and undue promotion of a greedy, sick and unjust community in name of minority and underprivileged, they are sucking our lives in innumerable ways from that time to now, we have a great load of illegal parasites on our resources, economy, and land. They were converted by the invaders of this nation, they have done great damages to our cultural and spiritual heritage, and he tried to glorify and appease them on cost of poor Hindu community and the majority of this nation who has been butchered, raped and tortured for hundreds of years by so-called ancestors of these ugly monsters and bastards. Gandhi  - An utterly The self-centered man  I am against the ideology of Gandhi that was criminally imposed on the greater population of this nation; he marginalized their existence to appease breed of monsters and invaders of this land. If you want to know the real face of this so-called Mahatma, and what impact his influence and policies have done to our nation, read and listen all the discourses of the most profound and wonderful mystic and enlightened master Osho, related to Gandhi. He openly opposed and condemned the policies and conducts of Gandhi from his childhood, Gandhi cursed India with his partial policies, by imposing his impractical ideologies and experiments on masses. He crippled and handicapped India by forcing our people by his nonviolence and gratification of highly impractical, obsolete and unscientific charkha based system to rule, establish and govern our nation. As per one most profound spiritual master of all times, Gandhi was the most cunning politician in the history of India; he sacrificed millions of innocent’s life for the sake of his Mahatma Hood and impractical and ugly ideologies. Gandhiwaad Ek Aur Sameeksha - I Gandhiwaad Ek Aur Sameeksha - II Gandhiwaad Ek Aur Sameeksha - III Listen carefully the most justified and to the point criticism and valuation of Gandhian thought and its disastrous impact on our nation before and after independence. Learn how obsolete, impractical and hopeless his way of working was, and he imposed it on 33 crores Indian. Listen to the true evaluation of Gandhi from the worlds most profound and intelligent enlightened master Osho. He was responsible for death and murder of millions of freedom fighters and innocent citizens of this land to establish his pseudo and pathetic theory of non-violence, he was the reason of partition, and he sanctioned it with all his will and efforts. He was solely responsible for mass migration, murders, and rapes of innocent women, child, and people of all ages. Millions of people suffered during partitions, its wounds not healed till date, and people and family disturbed and parted at that time not settled even after more than 7 decades of it. It was the ugliest planned genocide in the name of making nations and getting independence. Gandhi appeased British and Muslims on the cost of life and honor of Hindus and our brave freedom fighters and nationalist and true patriots of this nation. He will be praised always for his leadership and ability to collect and move people in one direction to create a lasting impact on suppressors. On the other hand, he will be hated and disliked and condemned for centuries for his impractical and ugly impositions on innocent citizens of this nation to satisfy his ego and nasty ideas and experiments. He used the people of this nation for his experiments and activity to save and establish his mahatma hood, he treated them as laboratory animals, and he was a most brutal and ugly dictator and self-centered man in the history of mankind. He wanted to take back our nation towards Stone Age by depriving it of modern technology and disallowing and applying science and technology in our lives and practices and to build the economy and infrastructure of the nation with help and support of science and technology and modern inventions in every walk of life.  His love and ambition for Nehru have cursed this nation, he opposed and sidelined all the great politicians and leaders and freedom fighters of India, like Subhash Chandra Bose, Sardar Patel, Bhagat Singh, Azad and many more just to support and appoint Nehru as his political successor, to rule India. He has worked as a dictator and humiliated and blackmailed all great people around him, who supported and obeyed him unconditionally. He was a sick man, highly self-centered, and cunning. He was the reason for partition and promotion of dynasty politics in India, he cursed India by the stubborn imposition of his will and desires on the whole country, he was not a foresighted man; he did not see the reality of the world and what our country really needed at that time to grow and develop from its rotten, tired and troubled state. He worked as an agent of the British government, he was biased in his own principles and ideologies, he was the greatest failure in his own ideology, he has taken advantage of the wave of 100 years old movement for independence, where millions of people of all age and genders sacrificed their life to free our nation from grip of British rule. Why Godse assassinated Gandhi? Godse definitely freed him to stop making more nonsense and ugly crimes, he saved him to betray and destroy the trust of the whole population of this nation who has given him unconditional support and love and suffered immensely by following and worshiping him. Gandhi was very disappointed with Congress and its conduct during and after the independence, he was in grief due to indiscipline and cheap and corrupt attitude of Congress party and its workers. He prayed and wished to put an end to the Congress because the purpose of creating it has accomplished.  People closed to him said that he prayed to God that he did not want to live more, in independent India, he didn’t want to see what was started happening there, his lust for appeasing Muslims and empowering and establishing Nehru as first Prime Minister of India cost India a very heavy price. He told and desired deeply to shut down Congress party, he has seen the downfall and corruption started in Congress, he told that Congress party has completed its job, for it has been formed earlier. But nobody in Congress wanted to listen and obey him, he was an undesirable thing for Congress workers and leaders, they were busy in using and tapping opportunities to become in power and enjoy the goodies of being in power in independent India. Honestly, he was very disappointed and frustrated after India got independence, Godse fulfilled his last wish and prevented this so-called Mahatma to made more disasters to our great nation. After independence Gandhi lost his mind, he utterly confused and biased in his last days, he did not figure out what he was going to do. His ugly and disastrous intentions to support and fulfill every ugly and unjustified demand by Muslim league and Pakistan, taking him to be killed by a real and honest nationalist and true patriot Mr. Nathuram Godse. He freed Gandhi from all bullshit and saved us also from his sick and pathetic ideologies and its forceful unjustified imposition on this nation innocent and troubled people. So Gandhi was a great man, undoubtedly, but in his individual strength and character, as an imposition and a leader to follow was the biggest disaster. And I definitely thank Nathuram to speak his truth, and blunders Gandhi created by his appeasement policy of Muslims and what he was planning to do in coming days at that time. Nathuram surrendered after shooting him, he never defended and escaped, he never hurt anybody before and after, he may sound strange and criminal to most of the people, but what he had done was absolutely important for our nation and to save Gandhi too from his own blunders. So no regret for it, it was needed and Nathuram accepted this curse for him to be hated for centuries by people of the world and penalized his own family to suffer for many generations with a blot on their forehead as the murderer of Mahatma, it is not easy to hold that for generations. He has made a great sacrifice for all of us, he must not be dishonored and we never forget what he has done to save all of us and our great nation if he did not kill Gandhi, India has seen more partition and we were not a majority in our own country. We are still a victim of being and become the majority in our own country, by the slaves, converts, and outcome of invasions, we are not allowed to say and do what is valuable for us, we are left on mercy and will of our suppressors and bloody criminals of highest grades. 
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What we should do now?  We must change this scenario and we must dare to see behind the greatness of so-called Mahatma and all leaders before and after independence, we must free ourselves to see things with others point of views and their undue sick influence on our mind and our lives. We need to see and face the ugliest reality of our national leaders and so-called patriots who sunk our nation in unending problems and conflicts and sown the seed of hatred and division among its own inhabitants. We never forgive them for this and never forget what happened to us due to their prejudice, blindness, partiality and the unjust imposition of their impractical ideas, ideologies and utterly wrong decisions on all of us, it’s time to free ourselves and our nation from the filth and dust they have poured on us. It’s time to get freedom again from the ugly dynast rule and slave mentality of British and corrupt congress, ugly communists, we had enough of it for a very long time. Everyone can see, read and watch videos online, a ton of content is there on what had happened to India by Nehru dynasty and Great Gandhi, and why Nathuram killed and freed us from his ugly influence. Now we need to restructure and reconstruct our nation, free from Congress and ugly, obsolete Gandhian philosophy and influence.  Vande Matram                                              Jai Maa Bharti                                                 Jai Bharatvarsh          Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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सफलता क्या है, और कौन सफल है?
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सफलता क्या है, और कौन सफल है?
सबसे पहले ये जान लेते हैं, सफलता किस चिड़िया का नाम है? सफलता क्या है, और कौन सफल है? सफलता से आपका क्या तात्पर्य है? इस दुनिया में हर व्यक्ति के लिए सफलता का अलग पैमाना होता है, और देखनेवालों की दृष्टि भी अलग अलग होती है। सफलता क्या है?  यहाँ सभी लोग अपने सपने और लक्ष्य का या उस बात का पीछा कर रहे हैं जो उन्हें लगता है उनके लिए जरुरी है, या जिसके मिल जाने से उनके जीवन में कुछ बहुत बेहतर हो जायेगा, उन्हें, संतुष्टि, परितृप्ति या सफलता या सार्थकता महसूस होगी, इसे पा लेना ही उनके लिए सफलता का पैमाना है, यह मानव स्वभाव है, और हम सभी इससे बंधे हुए जीते हैं। हम जिस दुनिया में जीते हैं वहां कुछ बातें प्रचलित हैं, घर परिवार से लेकर सामाजिक व्यवस्था तक, यहाँ कुछ मानक और प्रतिमान निश्चित कर दिए गए हैं प्रत्येक व्यक्ति के लिए की उसे क्या करना चाहिए, क्यूँ करना चाहिए, उसकी सार्थकता क्या है वगैरह वगैरह। जैसे पढाई करना, नौकरी या व्यापार पा लेना, शादी कर लेना, घर बना लेना, कार, बैंक बैलेंस, सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के यह उपाय हैं, लोग इन स्थितियों को पाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते हैं, अब इनमें से कुछ इस दुनिया में जीने और कार्य करने के लिए निश्चित ही बेहद जरुरी हैं, इनके बगैर आप एक सुखद और सम्मानपूर्वक जीवन नहीं जी सकेंगे।
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��िर इसमें भी प्रतिस्पर्धा और महत्वाकांक्षा है, बहुत अच्छे स्कूल और कॉलेज में पढना, बहुत अच्छी नौकरी और व्यवसाय करना, बहुत बड़े घर और कार खरीद लेना, बहुत सारा धन सम्पत्ति एकत्रित कर लेना, और बहुत कुछ है। अब जिसकी जैसी क्षमता और कामना और  पागलपन वैसे इनका विस्तार, इसमें कोई भी बुराई नहीं यदि यह लोगों को अस्वस्थ, बीमार, उन्मादी और अपराधी नहीं बनाती। यहाँ किसी को धन चाहिए, किसी को अपने प्रेमी या प्रेमिका चाहिए, किसी को धन वैभव और पद चाहिए, किसी को किसी और लक्ष्य के मिल जाने की आस है। इस तरह सभी अपनी स्थिति से एक दुसरे बिंदु या स्थिति की ओर गति कर रहे हैं, और अपना जीवन, शक्ति, उर्जा और साधन, समय इसमें लगा रहे हैं, और जब वो अपने लक्ष्य पा लेते हैं तो उन्हें और दुसरे लोगों को लगता है वो सफल हैं, यही इस दुनिया में प्रचलित है। इस तरह इस दुनिया में यह सफलता का चक्कर चल रहा है और लोग इसकी ओर दौड़ रहे हैं और जब वो अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं तो उन्हें और उन जैसे लक्ष्य और कामना रखने वाले सभी लोग समझते हैं की वो व्यक्ति सफल है क्यूंकि उसने उनके निर्धारित लक्ष्य, वस्तु, स्थिति, परिणाम को प्राप्त कर लिया है, लेकिन क्या यह यहीं समाप्त हो जाता है? तो सामान्य तौर पर यह सब हासिल कर लेना सफलता है इसके अलावा कुछ लोग किसी कार्य विशेष क्षेत्र विशेष, कला या हुनर में पारंगत होने को सफलता समझते है, किसी खास पद या पुरुष्कार की प्राप्ति को सफलता समझते हैं और इस दिशा में कार्यरत रहते हैं जैसे खिलाडी, संगीत, नृत्य, चित्रकारी और अन्य विविध कलाओं और रचनात्मक गतिविधियों में संलग्न व्यक्ति और संस्थाएं। इस तरह सारा जीवन और जगत जो है उससे कुछ और बेहतर  होने के लिए प्रयासरत है, गतिमान है, सभी की आकांक्षा विस्तार और अधिक पा लेने की है, सब लोग कुछ जोड़ना चाहते हैं, अपने आप के साथ, ताकि स्वयं को अधिक विकसित, विस्तृत और शक्तिशाली अनुभव कर सकें, यह हर जीव की आतंरिक आकांक्षा है, और सभी अपनी बुद्धि, शक्ति और सामर्थ्य से इस दिशा में अग्रसर हैं। कौन सफल है?  अब यहाँ कुछ लोग अपने उद्देश्यों में सफल हो जाते हैं और कुछ वांछित परिणाम प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तो एक को सफल और दुसरे को असफल होने का लेबल लगा दिया जाता है। क्या वास्तव में ऐसा सत्य है, और जो लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं क्या वो सदा इससे खुश संतुष्ट और तृप्त रहते हैं? क्या इसके बाद उनके जीवन में कुछ और हासिल करने की चाहत या वासना शेष नहीं रह जाती है?  जब व्यक्ति एक लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है तो, उसी समय वह उसके लिए व्यर्थ हो जाता है, क्यूंकि उसे उससे ��गे की बात दिखाई पड़ने लगती है, जैसे एक व्यक्ति बेरोजगारी और निर्धनता की स्थिति से 25000 रूपये प्रति माह कमाने लग जाये, कुछ समय में तो उसने एक लक्ष्य अर्जित कर लिया, लेकिन इस अवस्था को प्राप्त करते ही उसे लगने लगता है की यह तो कुछ भी नहीं है, उसे 50000 रूपये कमाना चाहिए। इस तरह यह अंतहीन सिलसिला चलता रहता है, क्यूंकि मनुष्य न चाहते हुए भी जो कुछ भी उसने इस जगत से पा लिया है उससे संतुष्ट नहीं रह पाता, जितना वो यहाँ पाता है उतनी उसकी प्यास बढ़ते जाती है और एक खालीपन और सूनापन उसके जीवन में सदा भरा हुआ रहता है।
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जीवन का स्वभाव है विस्तार और फैलाव, मनुष्य की सारी गति, प्रगति का लक्ष्य अनंत विस्तार को उपलब्ध करना है, इतना की फिर कुछ भी पाने को शेष नहीं रह जाये, यही प्यास सभी के अंदर है, एक छोटे से कीड़े से लेकर सबसे शक्तिशाली व्यक्ति तक,  इसलिए मनुष्य एक स्थिति से दूसरी स्थिति और अनुभव की ओर गति करता रहता है और एक दिन समाप्त हो जाता है। कुछ लोगों के लिए धन, दौलत, शोहरत पाना सफलता होती है, कुछ लोगों के लिए स्वयं को और अपने भीतर परम को पाना, इस जगत में सभी प्राणी और मनुष्य चेतना और समझ के विभिन्न तल पर जी रहे हैं और अपने जाने अनजाने, सही गलत, स्पष्ट और धुंधले लक्ष्य��ं का पीछा कर रहे हैं, यह जाने बगैर की इससे उन्हें सचमुच ख़ुशी या जिसे वो सफलता कहते हैं मिल जाएगी?  सत्य तो यह है कि सभी लोग अपने विकास के विभिन्न चरणों में है, कोई सीख रहा है, कोई  बेहतर हो चुका है और उसकी भव्य रूप में अभिव्यक्ति में समर्थ हो गया है। यहाँ सभी की एक ही आकांक्षा है की उसे वो मिल जाये जिसके बाद उसे किसी चीज़ की जरुरत न रहे। अब सवाल यह है की क्या इस दुनिया में कोई भी पदार्थ, सम्पति, पद, सम्मान, रिश्ता, या कुछ भी ऐसा है जो मनुष्य की इस अंतहीन प्यास और खोज को तृप्त या पूरा कर सके? और क्या यह सब मिल जाने के पश्चात् भी मनुष्य की प्यास और खोज ख़त्म हो जाती है, इसे जाने बिना और पाए बिना कोई भी बात, कोई भी दुनियावी उपलब्धि आपको सफल नहीं बना सकती है, आपकी खोज और प्यास मिट नहीं सकती है। आज दुनिया में यही सभी किस्म की उपलब्धियों, सफलता और समृद्धि पाकर भी लोग अत्यंत बीमार, हताश, और दुखी हैं, निश्चित ही यह सभी उपलब्धियां, सामान, सुख भोग,  पद, प्रतिष्ठा उन्हें समस्याओं और दुखों से मुक्त नहीं कर पा रहे है, बल्कि इन सभी चीजों से उसमें वृद्धि हो रही है, तो फिर हम इसे सफ़लता कैसे कह सकत�� हैं?  आज अमरीका और अन्य बेहद समृद्ध और विकसित देशों में मनोरोगियों की संख्या सबसे अधिक है, उनकी 60 से 70% आबादी जिनमें 14 वर्ष की उम्र के बच्चे भी शामिल हैं मनोरोग से ग्रस्त हैं, बिना दवा लिए वो सो नहीं सकते और न ही सामान्य व्यव्हार कर सकते हैं, क्या यह सफलता है, हमारे देश में 40% आबादी को दोनों वक़्त का भोजन उपलब्ध नहीं है, क्या यह हमारे समाज और समुदाय की सफलता है?  इस सवाल का जवाब मिल जाना ही वास्तविक सफलता है, जिसे हमारी संस्कृति ने सबसे अधिक मूल्य दिया है, यह सबसे बड़ा सवाल है, जिसका जवाब हमे खोजना है, इसकी प्राप्ति ही हर किस्म की बेचैनी, भय, दौड़ और संघर्ष से मुक्ति है, और सवाल यह है की हमारा वास्तविक स्वरुप क्या है, और हम कैसे इसे जान सकते हैं और इसे प्रकट कर सकते हैं। कोई संत, महात्मा हो, या अत्यंत साधारण मनुष्य हो या शक्ति, पद और अहंकार के नशे में चूर, कोई अत्याचारी, सभी को एक ऐसी चीज़ की तलाश है जिसे पाने के बाद उनकी कोई चाह न रह जाये, वो सारे, दुःख, अभावों और भयों से मुक्त हो जाएँ, जब तक यह न हो जाये तब तक सफलता का कोई भी अर्थ नहीं है। इसी एक चाहत को पूरा करने के लिए इस पूरी पृथ्वी पर लोग हर किस्म के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं, बिना इस बात को समझे की वो क्या चाहते हैं और वो उन्हें कैसे मिलेगा, बस सभी पर एक पागलपन सवार है, और लोग दौड़े चले जा रहे हैं, यह जाने समझे बगैर की यह उन्हें उनके गंतव्य तक ले जायेगा या नहीं। एक की चाहत कुछ भी करके उन चीज़ों को हासिल करना होता है जिन्हें वो अपनी चाहत बना लेता है, वो बस सब इकठ्ठा करते हुए, उसके लिए लड़ते हुए, सबसे दोस्ती दुश्मनी करते हुए, उसकी फिक्र करते हुए मर जाता है,  कुछ लोगों के लिए सब कुछ खोकर, खुद को पाना सबसे बड़ा लक्ष्य होता है, वो इसमें ही मसरूफ रहते हैं अब आप कैसे तय करेंगे कि कौन सफल है और कौन असफल? जो दुनिया और दुनियादारी में मसरूफ है, उसके लिए यहां की सब बातें कीमती है, जो इस दुनिया से बेज़ार है उसके लिए यह सब मिट्टी है। एक कि नजर में दूसरा असफल है, बेवकूफ है, आप क्या कहेंगे इसके लिए, और कुछ लोग इसी मृग मरीचिका में फंसकर नष्ट हो जाते है। तो यह तो स्पष्ट है की सब किसी एक चीज़ की तलाश में है, जिसे पाकर उनके सारे भाव, इच्छाएं और भटकन समाप्त हो जाये, तो वो क्या है, उसकी प्राप्ति ही वास्तविक सफलता है, और वही मानव जीवन का परम लक्ष्य है। मेरी नजर में असफल वो है, जिसे खुद की पहचान नहीं है, जो यह नहीं जानता कि उसके जीने का मकसद क्या है, बाकी सब चीजें होना ना होना कोई मायने नहीं रखता। यह  बहुत अर्थ नहीं रखता की लोग आपको क्या समझते और कहते हैं, यह अर्थ रखता है की आप अपने बारे में वास्तविक रूप से क्या जानते और समझते हैं, और क्या आप उस दिशा में गतिशील हैं जो आपको अपने आप से जोड़ दे और स्वयं के वास्तविक स्वरुप से साक्षात्कार करने में सहयोगी हो सके?  कुछ सवाल खुद से कीजिये  - क्या आप एक चेतना पूर्ण ढंग से जीवन जी रहे है? क्या आपका जीवन आपके लिए और आपके आसपास सभी लोगों के लिए आनंद और बोध की सृष्टि कर रहा है? क्या आप जो कर रहे हैं वो आपको ज्यादा, आनंदित, मुक्त और स्वस्थ और गुणवान बना रहा है? यदि हां तो इसमें और वृद्धि कीजिये और नहीं,  तो रुकिए,  सही दिशा और मार्गदर्शन प्राप्त कीजिये। कहानी का सार  समस्त बुद्ध पुरुषों ने कहा है - बोध पूर्वक जीना और सबके लिए महत्तम कल्याण की सृष्टि करना सबसे बड़ी सफलता है, बेहोशी में जीना और अपने लिए और सभी के लिए दुःख, अपमान, कष्ट और संकट उत्पन्न करना असफलता है। बोधपूर्वक जीना ही जीवन की सार्थकता है, और बेहोशी और अचेतनता में जीना व्यर्थ है,  मृत्यु है,  यही वास्तविक सफलता और असफलता है,  देखिये आप किस बात के अधिकारी हैं या होना चाहते हैं।
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मैंने जीवन भर बहुत सपन्न, तथाकथित सफल लोगों को सबसे ज्यादा दुख और तकलीफ पाते देखा है, और अपने नाम, दौलत और समृद्धि के हाथो बेमौत मरते देखा है, और बेनाम, बेदाम के लोगों को बेहद जिंदादिल और मस्त, अब बताइए सफल किसको कहेंगे? इसका यह अर्थ नहीं है की धन, संपत्ति और उपलब्धियों का कोई मूल्य नहीं है, आप इन सभी के लिए क्या मूल्य चूका रहे हैं और यह आपको और दूसरों को क्या सन्देश और प्रेरणा प्रदान कर रहा है, यह सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए मेरे दोस्त सफलता, असफलता के गणित में पड़ने से कोई मतलब नहीं यहां हर एक की अपनी परिभाषा है इस संबंध में। वास्तविक बात यह है की जो कुछ भी आप कर रहे हैं क्या वो आपके जीवन में गुणवत्ता, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, प्रेम और उल्लास में वृद्धि करने वाला है या नहीं, आप धन कमा रहे हैं या नहीं, आप प्रतिष्टित या प्रसिद्द है या नहीं ये इतना महत्वपूर्ण नहीं है। जो अपनी काबिलियत और क्षमता को ना पहचाने और इसका पूरा इस्तेमाल अपने और सभी के कल्याण के लिए ना कर पाए तो वो असफल है, चाहे वो कुबेर हो या सड़क का भिखारी, हमें इस दिशा में ही कार्य करने की आवश्यकता है, यही असली सफलता है। इस हिसाब से धरती पर 99% लोग पूरी तरह असफल है, क्यूंकि जिनके पास सबकुछ है वो भी दुखी है और खुद के और दूसरों के जीवन को बेवकूफियों और पागलपन में नष्ट कर रहे है। और जिनके पास कुछ नहीं है वो अपनी क्षमता को भू��कर दूसरों की दया और दान पर जीने को अपना नसीब समझते है? अब बताइए, किसको सफल बोले, यहां? मेरी नजर में सफल वो है जो आज अभी हर पल का आनंद लेे रहा है, जिसके यहां होने से उसके और दूसरों के चेहरे पे मुस्कान है और दिल में रोशनी है, बाकी सब व्यर्थ और बकवास है। अब बताओ इसको क्या कहेंगे, मै अपने आसपास सुबह से शाम तक गधे और बैलों की तरह नौकरी और धंधे में फंसे लोगों को बेहद दुखी असंतुष्ट और परेशान देखता हूं, वो न चाहते हुए भी ऐसा कर रहे हैं, क्यूंकि उन्हें पता ही नहीं वो ऐसा क्यूँ कर रहे हैं?  सदगुर�� कहते हैं, वास्तविक सफलता क्या है और हम इसे कैसे अर्जित कर सकते हैं -  यदि ऐसा नहीं हुआ तो कोई भी सफल नहीं है, मुक्ति पथ पर अग्रसर होना और उसे प्राप्त करना ही वास्तविक और प्रथम और अंतिम सफलता है धन्यवाद। अमेजिंग सुबाहू क्यों कुछ लोग कभी सफल नहीं होते? यह प्रश्न Quora पर मेरे एक प्रबुद्ध पाठक ने पूछा था। Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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सफलता क्या है, और कौन सफल है?
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सफलता क्या है, और कौन सफल है?
सबसे पहले ये जान लेते हैं, सफलता किस चिड़िया का नाम है? सफलता क्या है, और कौन सफल है? सफलता से आपका क्या तात्पर्य है? इस दुनिया में हर व्यक्ति के लिए सफलता का अलग पैमाना होता है, और देखनेवालों की दृष्टि भी अलग अलग होती है। सफलता क्या है?  यहाँ सभी लोग अपने सपने और लक्ष्य का या उस बात का पीछा कर रहे हैं जो उन्हें लगता है उनके लिए जरुरी है, या जिसके मिल जाने से उनके जीवन में कुछ बहुत बेहतर हो जायेगा, उन्हें, संतुष्टि, परितृप्ति या सफलता या सार्थकता महसूस होगी, इसे पा लेना ही उनके लिए सफलता का पैमाना है, यह मानव स्वभाव है, और हम सभी इससे बंधे हुए जीते हैं। हम जिस दुनिया में जीते हैं वहां कुछ बातें प्रचलित हैं, घर परिवार से लेकर सामाजिक व्यवस्था तक, यहाँ कुछ मानक और प्रतिमान निश्चित कर दिए गए हैं प्रत्येक व्यक्ति के लिए की उसे क्या करना चाहिए, क्यूँ करना चाहिए, उसकी सार्थकता क्या है वगैरह वगैरह। जैसे पढाई करना, नौकरी या व्यापार पा लेना, शादी कर लेना, घर बना लेना, कार, बैंक बैलेंस, सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के यह उपाय हैं, लोग इन स्थितियों को पाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते हैं, अब इनमें से कुछ इस दुनिया में जीने और कार्य करने के लिए निश्चित ही बेहद जरुरी हैं, इनके बगैर आप एक सुखद और सम्मानपूर्वक जीवन नहीं जी सकेंगे।
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फिर इसमें भी प्रतिस्पर्धा और महत्वाकांक्षा है, बहुत अच्छे स्कूल और कॉलेज में पढना, बहुत अच्छी नौकरी और व्यवसाय करना, बहुत बड़े घर और कार खरीद लेना, बहुत सारा धन सम्पत्ति एकत्रित कर लेना, और बहुत कुछ है। अब जिसकी जैसी क्षमता और कामना और  पागलपन वैसे इनका विस्तार, इसमें कोई भी बुराई नहीं यदि यह लोगों को अस्वस्थ, बीमार, उन्मादी और अपराधी नहीं बनाती। यहाँ किसी को धन चाहिए, किसी को अपने प्रेमी या प्रेमिका चाहिए, किसी को धन वैभव और पद चाहिए, किसी को किसी और लक्ष्य के मिल जाने की आस है। इस तरह सभी अपनी स्थिति से एक दुसरे बिंदु या स्थिति की ओर गति कर रहे हैं, और अपना जीवन, शक्ति, उर्जा और साधन, समय इसमें लगा रहे हैं, और जब वो अपने लक्ष्य पा लेते हैं तो उन्हें और दुसरे लोगों को लगता है वो सफल हैं, यही इस दुनिया में प्रचलित है। इस तरह इस दुनिया में यह सफलता का चक्कर चल रहा है और लोग इसकी ओर दौड़ रहे हैं और जब वो अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं तो उन्हें और उन जैसे लक्ष्य और कामना रखने वाले सभी लोग समझते हैं की वो व्यक्ति सफल है क्यूंकि उसने उनके निर्धारित लक्ष्य, वस्तु, स्थिति, परिणाम को प्राप्त कर लिया है, लेकिन क्या यह यहीं समाप्त हो जाता है? तो सामान्य तौर पर यह सब हासिल कर लेना सफलता है इसके अलावा कुछ लोग किसी कार्य विशेष क्षेत्र विशेष, कला या हुनर में पारंगत होने को सफलता समझते है, किसी खास पद या पुरुष्कार की प्राप्ति को सफलता समझते हैं और इस दिशा में कार्यरत रहते हैं जैसे खिलाडी, संगीत, नृत्य, चित्रकारी और अन्य विविध कलाओं और रचनात्मक गतिविधियों में संलग्न व्यक्ति और संस्थाएं। इस तरह सारा जीवन और जगत जो है उससे कुछ और बेहतर  होने के लिए प्रयासरत है, गतिमान है, सभी की आकांक्षा विस्तार और अधिक पा लेने की है, सब लोग कुछ जोड़ना चाहते हैं, अपने आप के साथ, ताकि स्वयं को अधिक विकसित, विस्तृत और शक्तिशाली अनुभव कर सकें, यह हर जीव की आतंरिक आकांक्षा है, और सभी अपनी बुद्धि, शक्ति और सामर्थ्य से इस दिशा में अग्रसर हैं। कौन सफल है?  अब यहाँ कुछ लोग अपने उद्देश्यों में सफल हो जाते हैं और कुछ वांछित परिणाम प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तो एक को सफल और दुसरे को असफल होने का लेबल लगा दिया जाता है। क्या वास्तव में ऐसा सत्य है, और जो लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं क्या वो सदा इससे खुश संतुष्ट और तृप्त रहते हैं? क्या इसके बाद उनके जीवन में कुछ और हासिल करने की चाहत या वासना शेष नहीं रह जाती है?  जब व्यक्ति एक लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है तो, उसी समय वह उसके लिए व्यर्थ हो जाता है, क्यूंकि उसे उससे आगे की बात दिखाई पड़ने लगती है, जैसे एक व्यक्ति बेरोजगारी और निर्धनता की स्थिति से 25000 रूपये प्रति माह कमाने लग जाये, कुछ समय में तो उसने एक लक्ष्य अर्जित कर लिया, लेकिन इस अवस्था को प्राप्त करते ही उसे लगने लगता है की यह तो कुछ भी नहीं है, उसे 50000 रूपये कमाना चाहिए। इस तरह यह अंतहीन सिलसिला चलता रहता है, क्यूंकि मनुष्य न चाहते हुए भी जो कुछ भी उसने इस जगत से पा लिया है उससे संतुष्ट नहीं रह पाता, जितना वो यहाँ पाता है उतनी उसकी प्यास बढ़ते जाती है और एक खालीपन और सूनापन उसके जीवन में सदा भरा हुआ रहता है।
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जीवन का स्वभाव है विस्तार और फैलाव, मनुष्य की सारी गति, प्रगति का लक्ष्य अनंत विस्तार को उपलब्ध करना है, इतना की फिर कुछ भी पाने को शेष नहीं रह जाये, यही प्यास सभी के अंदर है, एक छोटे से कीड़े से लेकर सबसे शक्तिशाली व्यक्ति तक,  इसलिए मनुष्य एक स्थिति से दूसरी स्थिति और अनुभव की ओर गति करता रहता है और एक दिन समाप्त हो जाता है। कुछ लोगों के लिए धन, दौलत, शोहरत पाना सफलता होती है, कुछ लोगों के लिए स्वयं को और अपने भीतर परम को पाना, इस जगत में सभी प्राणी और मनुष्य चेतना और समझ के विभिन्न तल पर जी रहे हैं और अपने जाने अनजाने, सही गलत, स्पष्ट और धुंधले लक्ष्यों का पीछा कर रहे हैं, यह जाने बगैर की इससे उन्हें सचमुच ख़ुशी या जिसे वो सफलता कहते हैं मिल जाएगी?  सत्य तो यह है कि सभी लोग अपने विकास के विभिन्न चरणों में है, कोई सीख रहा है, कोई  बेहतर हो चुका है और उसकी भव्य रूप में अभिव्यक्ति में समर्थ हो गया है। यहाँ सभी की एक ही आकांक्षा है की उसे वो मिल जाये जिसके बाद उसे किसी चीज़ की जरुरत न रहे। अब सवाल यह है की क्या इस दुनिया में कोई भी पदार्थ, सम्पति, पद, सम्मान, रिश्ता, या कुछ भी ऐसा है जो मनुष्य की इस अंतहीन प्यास और खोज को तृप्त या पूरा कर सके? और क्या यह सब मिल जाने के पश्चात् भी मनुष्य की प्यास और खोज ख़त्म हो जाती है, इसे जाने बिना और पाए बिना कोई भी बात, कोई भी दुनियावी उपलब्धि आपको सफल नहीं बना सकती है, आपकी खोज और प्यास मिट नहीं सकती है। आज दुनिया में यही सभी किस्म की उपलब्धियों, सफलता और समृद्धि पाकर भी लोग अत्यंत बीमार, हताश, और दुखी हैं, निश्चित ही यह सभी उपलब्धियां, सामान, सुख भोग,  पद, प्रतिष्ठा उन्हें समस्याओं और दुखों से मुक्त नहीं कर पा रहे है, बल्कि इन सभी चीजों से उसमें वृद्धि हो रही है, तो फिर हम इसे सफ़लता कैसे कह सकते हैं?  आज अमरीका और अन्य बेहद समृद्ध और विकसित देशों में मनोरोगियों की संख्या सबसे अधिक है, उनकी 60 से 70% आबादी जिनमें 14 वर्ष की उम्र के बच्चे भी शामिल हैं मनोरोग से ग्रस्त हैं, बिना दवा लिए वो सो नहीं सकते और न ही सामान्य व्यव्हार कर सकते हैं, क्या यह सफलता है, हमारे देश में 40% आबादी को दोनों वक़्त का भोजन उपलब्ध नहीं है, क्या यह हमारे समाज और समुदाय की सफलता है?  इस सवाल का जवाब मिल जाना ही वास्तविक सफलता है, जिसे हमारी संस्कृति ने सबसे अधिक मूल्य दिया है, यह सबसे बड़ा सवाल है, जिसका जवाब हमे खोजना है, इसकी प्राप्ति ही हर किस्म की बेचैनी, भय, दौड़ और संघर्ष से मुक्ति है, और सवाल यह है की हमारा वास्तविक स्वरुप क्या है, और हम कैसे इसे जान सकते हैं और इसे प्रकट कर सकते हैं। कोई संत, महात्मा हो, या अत्यंत साधारण मनुष्य हो या शक्ति, पद और अहंकार के नशे में चूर, कोई अत्याचारी, सभी को एक ऐसी चीज़ की तलाश है जिसे पाने के बाद उनकी कोई चाह न रह जाये, वो सारे, दुःख, अभावों और भयों से मुक्त हो जाएँ, जब तक यह न हो जाये तब तक सफलता का कोई भी अर्थ नहीं है। इसी एक चाहत को पूरा करने के लिए इस पूरी पृथ्वी पर लोग हर किस्म के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं, बिना इस बात को समझे की वो क्या चाहते हैं और वो उन्हें कैसे मिलेगा, बस सभी पर एक पागलपन सवार है, और लोग दौड़े चले जा रहे हैं, यह जाने समझे बगैर की यह उन्हें उनके गंतव्य तक ले जायेगा या नहीं। एक की चाहत कुछ भी करके उन चीज़ों को हासिल करना होता है जिन्हें वो अपनी चाहत बना लेता है, वो बस सब इकठ्ठा करते हुए, उसके लिए लड़ते हुए, सबसे दोस्ती दुश्मनी करते हुए, उसकी फिक्र करते हुए मर जाता है,  कुछ लोगों के लिए सब कुछ खोकर, खुद को पाना सबसे बड़ा लक्ष्य होता है, वो इसमें ही मसरूफ रहते हैं अब आप कैसे तय करेंगे कि कौन सफल है और कौन असफल? जो दुनिया और दुनियादारी में मसरूफ है, उसके लिए यहां की सब बातें कीमती है, जो इस दुनिया से बेज़ार है उसके लिए यह सब मिट्टी है। एक कि नजर में दूसरा असफल है, बेवकूफ है, आप क्या कहेंगे इसके लिए, और कुछ लोग इसी मृग मरीचिका में फंसकर नष्ट हो जाते है। तो यह तो स्पष्ट है की सब किसी एक चीज़ की तलाश में है, जिसे पाकर उनके सारे भाव, इच्छाएं और भटकन समाप्त हो जाये, तो वो क्या है, उसकी प्राप्ति ही वास्तविक सफलता है, और वही मानव जीवन का परम लक्ष्य है। मेरी नजर में असफल वो है, जिसे खुद की पहचान नहीं है, जो यह नहीं जानता कि उसके जीने का मकसद क्या है, बाकी सब चीजें होना ना होना कोई मायने नहीं रखता। यह  बहुत अर्थ नहीं रखता की लोग आपको क्या समझते और कहते हैं, यह अर्थ रखता है की आप अपने बारे में वास्तविक रूप से क्या जानते और समझते हैं, और क्या आप उस दिशा में गतिशील हैं जो आपको अपने आप से जोड़ दे और स्वयं के वास्तविक स्वरुप से साक्षात्कार करने में सहयोगी हो सके?  कुछ सवाल खुद से कीजिये  - क्या आप एक चेतना पूर्ण ढंग से जीवन जी रहे है? क्या आपका जीवन आपके लिए और आपके आसपास सभी लोगों के लिए आनंद और बोध की सृष्टि कर रहा है? क्या आप जो कर रहे हैं वो आपको ज्यादा, आनंदित, मुक्त और स्वस्थ और गुणवान बना रहा है? यदि हां तो इसमें और वृद्धि कीजिये और नहीं,  तो रुकिए,  सही दिशा और मार्गदर्शन प्राप्त कीजिये। कहानी का सार  समस्त बुद्ध पुरुषों ने कहा है - बोध पूर्वक जीना और सबके लिए महत्तम कल्याण की सृष्टि करना सबसे बड़ी सफलता है, बेहोशी में जीना और अपने लिए और सभी के लिए दुःख, अपमान, कष्ट और संकट उत्पन्न करना असफलता है। बोधपूर्वक जीना ही जीवन की सार्थकता है, और बेहोशी और अचेतनता में जीना व्यर्थ है,  मृत्यु है,  यही वास्तविक सफलता और असफलता है,  देखिये आप किस बात के अधिकारी हैं या होना चाहते हैं।
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मैंने जीवन भर बहुत सपन्न, तथा��थित सफल लोगों को सबसे ज्यादा दुख और तकलीफ पाते देखा है, और अपने नाम, दौलत और समृद्धि के हाथो बेमौत मरते देखा है, और बेनाम, बेदाम के लोगों को बेहद जिंदादिल और मस्त, अब बताइए सफल किसको कहेंगे? इसका यह अर्थ नहीं है की धन, संपत्ति और उपलब्धियों का कोई मूल्य नहीं है, आप इन सभी के लिए क्या मूल्य चूका रहे हैं और यह आपको और दूसरों को क्या सन्देश और प्रेरणा प्रदान कर रहा है, यह सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए मेरे दोस्त सफलता, असफलता के गणित में पड़ने से कोई मतलब नहीं यहां हर एक की अपनी परिभाषा है इस संबंध में। वास्तविक बात यह है की जो कुछ भी आप कर रहे हैं क्या वो आपके जीवन में गुणवत्ता, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, प्रेम और उल्लास में वृद्धि करने वाला है या नहीं, आप धन कमा रहे हैं या नहीं, आप प्रतिष्टित या प्रसिद्द है या नहीं ये इतना महत्वपूर्ण नहीं है। जो अपनी काबिलियत और क्षमता को ना पहचाने और इसका पूरा इस्तेमाल अपने और सभी के कल्याण के लिए ना कर पाए तो वो असफल है, चाहे वो कुबेर हो या सड़क का भिखारी, हमें इस दिशा में ही कार्य करने की आवश्यकता है, यही असली सफलता है। इस हिसाब से धरती पर 99% लोग पूरी तरह असफल है, क्यूंकि जिनके पास सबकुछ है वो भी दुखी है और खुद के और दूसरों के जीवन को बेवकूफियों और पागलपन में नष्ट कर रहे है। और जिनके पास कुछ नहीं है वो अपनी क्षमता को भूलकर दूसरों की दया और दान पर जीने को अपना नसीब समझते है? अब बताइए, किसको सफल बोले, यहां? मेरी नजर में सफल वो है जो आज अभी हर पल का आनंद लेे रहा है, जिसके यहां होने से उसके और दूसरों के चेहरे पे मुस्कान है और दिल में रोशनी है, बाकी सब व्यर्थ और बकवास है। अब बताओ इसको क्या कहेंगे, मै अपने आसपास सुबह से शाम तक गधे और बैलों की तरह नौकरी और धंधे में फंसे लोगों को बेहद दुखी असंतुष्ट और परेशान देखता हूं, वो न चाहते हुए भी ऐसा कर रहे हैं, क्यूंकि उन्हें पता ही नहीं वो ऐसा क्यूँ कर रहे हैं?  सदगुरु कहते हैं, वास्तविक सफलता क्या है और हम इसे कैसे अर्जित कर सकते हैं -  यदि ऐसा नहीं हुआ तो कोई भी सफल नहीं है, मुक्ति पथ पर अग्रसर होना और उसे प्राप्त करना ही वास्तविक और प्रथम और अंतिम सफलता है धन्यवाद। अमेजिंग सुबाहू क्यों कुछ लोग कभी सफल नहीं होते? यह प्रश्न Quora पर मेरे एक प्रबुद्ध पाठक ने पूछा था। Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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भारत की समस्याएं और इसके समाधान क्या हैं?
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भारत की समस्याएं और इसके समाधान क्या हैं?
भारत एक विकासशील राष्ट्र है और पिछले 70 वर्षों में यहाँ लोगों ने मिली हुई आज़ादी का सर्वाधिक दुरूपयोग किया है, क्यूंकि 1000 वर्षों की गुलामी ने, यहाँ के लोगों को इतना आत्महीन, पथभ्रष्ट  और पंगु बना दिया की वो भूल ही गए की वो कभी विश्व में सिरमौर थे विश्व पटल पर, विश्व के सभी राष्ट्रों और संस्कृतियों के लिए आकर्षण और प्रेरणा का केंद्र भारत क्यूँ और कैसे अंतहीन समस्याओं का गढ़ बन गया है? आखिर भारत की समस्याएं और इसके समाधान क्या हैं? भारत की सबसे बड़ी समस्या यह है की यह देश अपनी  15000 वर्षों से अधिक प्राचीन और गौरवमयी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत से पूरी तरह कट चूका है, यहाँ का जन मानस से चेतना और आत्म गौरव से रिक्त लोगों का देश बन चुका है, लोग आत्महीन, और दूषित प्रभावों के आधीन हो गए हैं पिछले 1000 साल की गुलामी ने इन्हें आत्मिक और आध्यात्मिक रूप से पंगु और दीन हीन बना दिया है।  इस देश के लोग अपने प्राचीन आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक खोजों, ऋषियों, वैज्ञानिकों और उनकी विश्व को दी गयी देन के प्रति पूर्णतया अनभिज्ञ हैं, कांग्रेस और कम्युनिस्ट नेताओं, बुद्धिजीवियों, मुगलों और अंग्रेजों के गुलामों, चाटुकारों और सेवकों ने इस राष्ट्र के जन मानस के दिल दिमाग को अपने अतीत के महान  वैभव, श्रेष्ठतम खोजों, अविष्कारों और महानतम जीवन मूल्यों के सृष्टा और उद्घोषकों के सम्बन्ध में पूर्णतया अनभिज्ञ और अँधा बनाये रखा है। उन्हें गलत जानकारी, विद्रूपित इतिहास और तथ्य उपलब्ध कराये गयी है और उसे उनके दिल दिमाग पर थोप दिया गया है, उन्हें इतना बीमार और भ्रमित कर दिया है की वो अपने ही पूर्वजों और उनके गरिमामयी कार्यों को, अद्भुत उपलब्धियों को स्वीकार करने को राजी नहीं, उन्हें संदेह और घृणा की दृष्टि से देखते है, यह है गुलामी से हुए पतन और बेहद कुटिलतापूर्वक आयोजित सामूहिक ब्रेनवाश का भयानकतम परिणाम।  यहाँ के लोगों के अवचेतन में यह घर कर गया है की इस देश को जो कुछ मिला है विदेश हमलावरों और पाश्चात्य जगत से मिला है, यहाँ के लोग अपनी विराट सांस्कृतिक और एतिहासिक और आद्यात्मिक विरासत के प्रति बिलकुल भी जागरूक और संज्ञान में नहीं है, यही इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की वजह है। जो राष्ट्र और उसके नागरिक अपनी संस्कृति और अतीत के गर्व के प्रति सम्मान और चेतना का भाव खो देते हैं वो हमारे राष्ट्र की तरह दुर्गति को प्राप्त होते हैं, वो अपने ऊपर हमला करने वालों उन्हें लूटने और पद दलित और भ्रष्ट करनेवालों को अपने से श्रेष्ट और श्रेयस मानने लगते हैं, यह उनके पतन और आत्महीनता की पराकाष्ठा होती है, और हमारा राष्ट्र इसी प्रोपेगंडा और षड़यंत्र का पिछले 1000 वर्षों से शिकार है और अपनी रुग्णता के चरम से मुक्त होने की दिशा में अग्रसर हो रहा है। यहाँ लोगों ने संपत्ति, पद और सुविधाएँ तो प्राप्त कर ली हैं, लेकिन अपना आत्मगौरव और आत्मसम्मान गिरवी रख दिया है, देश के गद्दारों, शत्रुओं और दलालों के हाथों, और अपनी ही मातृभूमि को दूषित, कलंकित और अपमानित करने के घृणित षड़यंत्र में जी जान से भागीदारी कर रहे हैं, यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य और समस्या है। यहाँ के लोगों से आज़ादी सम्हाली नहीं गयी, और जो भी नेता मिले वो बेहद अदूरदर्शी, अव्यवहारिक, अनुभव विहीन, आत्मकेंद्रित और सत्ता सुन्दरी पर मुग्ध अपने ही लाभ और गौरव की प्रतिष्ठा में लीन रहे, उन्हें 1000 वर्षों की गुलामी, उत्पीडन और सांस्कृतिक रूप से मृत, समस्याग्रस्त कुपोषित, त्रस्त और लुटे हुआ राष्ट्र, इसकी सुरक्षा की कोई भी फिक्र नहीं की,  उनके लिए करोड़ों देशवासियों के जीवन, भविष्य और प्रगति उनका मुख्य लक्ष्य नहीं रहे। परिणाम यह हुआ जैसा राजा और नेता वैसी ही जनता हो गयी, वो भी अपने ही राष्ट्र को लूटने, नोचने खसोटने और भ्रष्ट करने में जी जान से लग गयी और पिछले 70 सालों में यही भाव प्रधान रहा है। यह बेहद शर्मनाक है की लूट और भ्रष्टाचार इस देश में शिष्टाचार और लोगों के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, गुलामी और आत्महीनता से कितना पतन हो सकता है किसी देश के लोगों का इसकी मिसाल है हमारा देश।
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भारत की सबसे बड़ी समस्या सत्ता में परिवारवाद और अंग्रेजियत की गुलामी, जिसके यह प्रणेता और पोषक हैं,इनसे मुक्ति देश के हित में है इस देश में नेताओं ने भी और जनता ने भी, इस बात को अनदेखा करते हुए की वो अपने ही घर में आग लगाकर तमाशा देख रहे हैं और शत्रुओं और लूटेरों और षड्यंत्रकारियों के मंसूबों को पूरा करने का सामान बने हुए हैं, इतनी भीषण बर्बादी भी इन्हें नहीं जगा पाई, इससे बड़ा दुर्भाग्य और नपुंसकता किसी राष्ट्र के नागरिकों और नेताओं लिए क्या हो सकती है। इस देश का विनाश इस देश के नेता और जनता दोनों ने मिलकर कर रखा है और वो आज भी नशे में है, उनकी मूर्छा और नींद बहुत गहरी है, इसे तोडना बेहद जरुरी है, वर्ना यह राष्ट्र ��पन गौरव और अस्मिता खोकर नष्ट हो रहा है, यह हमारा देश है, इसकी रक्षा, गौरव और समृद्धि की जिम्मेदारी हमारी है, किसी सरकार और हमारी सेना की नहीं, यह हमारा देश है, यह हमारी जिम्मेदारी है सबसे पहले।  आज़ादी के पश्चात हमारे नेताओं और यहाँ की मूर्छित, लोभी लालची, पथभ्रष्ट जनता का मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक संपत्ति का अर्जन और अपने महिमामंडन में ही रहा है। इस देश के 3 प्रधानमंत्री जो एक ही परिवार से आये हैं, उन्होंने अपने जीते जी ही स्वयं को भारत रत्न  प्रदान कर दिया, उनके नाम से हजारों संस्थान, सड़कें, स्मारक निर्मित हैं, आज़ादी के बाद सर्वाधिक समय तक देश की सत्ता इन्हीं ने सम्हाली है, और देश गंभीर रूप से बीमार और समस्या ग्रस्त और भ्रष्ट हुआ है, इनके शासनकाल में इस देश के सबसे बड़े घोटाले और लूट और आतंकवादी घटनाएँ और युद्ध हुए हैं।  इनका एक ही लक्ष्य रहा साम, दाम, दंड भेद से सत्ता में बने रहना और स्वयं को प्रतिष्ठित और लाभन्वित करना, उन्होंने अपने आसपास सिर्फ चाटुकारों, भ्रष्ट और घटिया लोगों को जिन पर वो आसानी से दवाब बनाकर शासन कर सके को एकत्रित होने दिया, इस राष्ट्र को जातिवाद, साम्प्रदायिकता के न भरनेवाला जख्म दिया, इस देश के 3 टुकड़े कर दिए (पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश), शत्रुओं को बढ़ावा और अनाधिकार लाभों को लूटने और हमारे अधिकार के क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने दिया (तिब्बत, पाक अधिकृत काश्मीर)। इन्होने राष्ट्र की सेना और संसाधनों को व्यवस्थित और सशक्त करने के लिए कोई कार्य नहीं किया, बल्कि सत्ता में बने रहने और अपने गौरव गान के लिए हर राष्ट्रीय संस्ठा, संविधान और संवैधानिक मूल्य की हत्या और विरूपण किया, इस देश में जाति और धर्म के आधार पर वोट बैंक की राजनीति की शुरुआत की, जो आज नासूर बनकर इस देश को खोखला कर रही है।  आज भी इस देश का बहुत बड़ा वर्ग, कुंठित और पथभ्रष्ट बिकाऊ, बुद्धिजीवी और मीडिया इनके तलवे चाटने और इनके महिमामंडन में लगा हुआ है। लोकतंत्र के स्तम्भ इसकी कब्र बनाने पर तुले हुए है चाहे वो संसद हो, न्यायपालिका हो, मीडिया हो या इस देश की जनता, सभी इस देश की और तथाकथित लोकतंत्र की अर्थी तैयार करने में लगे हुए हैं। अराजकता और बुद्धिहीनता और चारित्रिक दिवालियेपन की ऐसी पराकाष्ठ कभी देखने नहीं मिली, इस देश में, यह कहाँ आ गए हैं हम, हमे इसे बदलना होगा। हमें इन सड़े गले संस्थानों और इनके सिरमौर बने लोगों को बहिष्कृत और विस्थापित करना होगा, नए स्वस्थ विधान, मूल्यों और इसकी प्रतिष्ठा करने वाली शक्तियों और व्यक्तियों को पुनः स्थापित करना होगा। हमारा राष्ट्र पुनर्निर्माण के एक बहुत बड़े दौर से गुजर रहा है , हमे जागरूकता पूर्वक अपना कर्त्तव्य और निष्ठां इसके प्रति निभानी होगी, वर्ना हम आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेहद अंधकारर पूर्ण भविष्य और विरासत निर्मित कर रहे हैं, हमे इस दुर्भाग्य से बचना होगा और जो सार्थक और जरुरी है हर हाल में करना होगा। यह देश राजशाही और विदेशी दासता से मुक्त नहीं हो पाया, आज़ादी मिलने 75 वर्षों के पश्चात् भी, आज भी मुग़ल और अंग्रेजी गुलामी और हीनता यहाँ के लोगों के दिल और दिमाग से गयी नहीं है, वो आज भी उन्ही की गुलामी और उनके द्वारा इनके गलों में पहनाये गए गुलामी के पट्टे को अपनी विचारधारा, कर्म और अभिव्यक्ति से जी और ढो रहे हैं और इस देश को अंतहीन गुलामी की तरफ ले जाने की अंधी और विनाशकारी असफल कोशिश कर रहे है। आज भी इस देश के बहुत सारे लोग, एक परिवार विशेष की अंध भक्ति और मूर्खों, अयोग्य और सर्वाधिक भ्रष्ट और अनिष्टकारी समूह और दल की चापलूसी और गुलामी में व्यस्त हैं, इस देश के लोगों ने सच देखना, सुनना और स्वीकारना बहुत समय पहले से बंद कर दिया है, इसलिए वो इन्सान होने के बावजूद भेड़ों की तरह व्यव्हार कर रहें है और पतन की और अग्रसर हो रहे हैं, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस देश के लोगों को अपने देश और इसकी संस्कृति की पहचान और मूल्य नहीं है। लम्बे समय की गुलामी, ब्रेनवाश और आत्महीनता और देशी और विदेशी दुश्मनों के षड्यंत्रों ने इस देश के जन मानस को कुंठित और विषाक्त कर दिया है, अपनी स्वयं की संस्कृति और महान मूल्यों के प्रति हीनता, अविश्वास और घृणा से भर दिया है।  हमारे देश के लोग यह भूल गए हैं की हमारे राष्ट्र की सभी खूबियां, ज्ञान, ���ुणवत्ता, आध्यात्मिक वैभव और अतुलनीय संपत्ति और समृद्धि दुनिया के तमाम लूटेरों, ठगों, लालची और विस्तार और वैभव के आकांक्षियों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है और इसी ने इन तमाम दुर्दांत ठगों, लूटेरों, उपनिवेशवादियों और हमलावरों को इस धरती पर आक्रमण करने और इसे अपना निशाना बनाने के लिए प्रेरित किया था। और ऐसा होने में हमारे ही देश के गद्दारों और नीच लोगों ने इस लूट और बर्बादी में सहयोग किया है और आज भी यही कर रहे हैं, क्यूंकि इस देश के लोगों को न तब समझ में आया ना आज समझ में आ रहा है। मेरी नज़र में कुछ बेहद महत्वपूर्ण कारक है जो समस्या की तरह मौजूद हैं, यदि इन सभी कारकों पर जागरूकता पूर्ण तरीके से जरुरी कार्य किया जाये तो हमारा राष्ट्र कुछ ही समय में विश्व के सर्वाधिक प्रभावशील और समृद्ध राष्टों में से एक होगा। सच तो यह है की हम उस दिशा की और अग्रसर हो चुके हैं, कई दशको के बेहद घटिया और नपुंसक शासन के बाद एक सार्थक और बेहद प्रभावी नेतृत्व में हमारा राष्ट्र एक नयी दिशा और ऊंचाई की और कदम बढ़ा रहा है, हमे इसमें अपना पूर्ण और जिम्मेदार योगदान देना होगा -   भारत की मुख्य समस्याएँ  - (वर्तमान परिप्रेक्ष्य में)  इस देश के लोगों में अपनी धरती के लिए प्रेम और निष्ठा का बेहद अभाव है, इतने गद्दार और देशद्रोही कहीं और नहीं होंगे जितने इस देश में हर काल में हुए और आज भी हैं, और देश को कमजोर और खोखला करने मै लगे हैं। इस देश के लोगों को अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति से ऊपर कोई भी चीज नहीं है, सब अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे हैं। इस देश के लोग जाति, धर्म और वर्ग में बंटे हुए है, और इस आधार पर लाभ लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, राजनेता उनकी इस कमजोरी का पिछले 75 सालों से दोहन कर रहे हैं, और यह मुर्ख इसमें सहयोग कर रहे हैं। यहां अयोग्य और अपराधी लोग हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं, और लोग उन्हें स्वीकार और सहयोग प्रदान करते है। यहां गुण की कीमत नहीं है, लोगों की गुणवान और श्रेष्ठ होने में कोई रुचि नहीं है, बिना किसी योग्यता और गुण के लोग हर किस्म का लाभ और सुख सुविधा चाहते है, गुणवान, प्रतिभावान इस देश से बहार जाने के लिए मजबूर हें। लोगों में देश के लिए कुछ भी करने का जज्बा नहीं लेकिन उन्हें देश और सरकार से सब कुछ चाहिए, यहाँ सब बिना कोई तकलीफ उठाये हर सुविधा और आराम चाहते हैं। यहां लोग, कायर, भ्रष्ट और कामचोर हैं, लेकिन फिर भी उन्हें घमंड है, अपनी नीचता और घटियापन के लिए कोई भी स्वीकार और शर्म नहीं है, लोगों का आत्मसम्मान और चेतना निम्नतम स्तर पर है। लोग अपने कर्तव्यों के प्रति बिल्कुल भी जागरूक और जिम्मेदार नहीं है और उन्हें सभी अधिकार चाहिए। राष्ट्र के संसाधनों और संपत्तियों का दुरुपयोग, और उन्हें बिना किसी वजह से नष्ट करना। जनसंख्या नियंत्रण की ओर बिल्कुल भी जिम्मेदार रवैया नहीं, 75 वर्षों में 30 से 130 करोड़ हो गए, यही है इनकी उत्पादकता और रचनात्मकता, और कोई भी रचनात्मक कार्य इस देश के लोगों को नही आता। देश में अशांति बढानेवाली और विघटनकारी ताकतों का समर्थन, राष्ट्र द्रोहियों की वकालत और महिमा मंडन। पाश्चात्य सभ्यता और मूल्यों का अंधानुकरण और हमारी प्राचीन विरासत और मूल्यों का अवमूल्यन और अपमान। गंदगी, अराजकता और अव्यवस्था को बढ़ावा, व्यावहारिक और संवेदनशील सोच और कर्म का अभाव। विवेकपूर्ण जीवनशैली और जागरूकता का पूर्ण अभाव,भाग्य वादी और अंधविश्वासी लोग। अनुशासनहीन जीवन और बेहद लापरवाह रवैया, जीवन की सभी महत्वपूर्ण बातों के संबंध में। झूठ, पाखंड और भ्रष्टाचार में अव्वल नंबर, और फिर भी दूसरे श्रेष्ठ और कर्मठ लोगों के कार्य और नीयत में दोष निकालना, थोड़े से लाभ के लिए अपने राष्ट्र से गद्दारी और शत्रुओं के सहयोग के लिए तैयार। बहुसंख्यक लोगों के हितों और भावनाओं की उपेक्षा और झूठे, मक्कार और राष्ट्र विरोधी समुदाय और शक्तियों की प्रतिष्ठा और चापलूसी, खुशामद की राजनीति। भारत की मूल संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत का अपमान, अवमूल्यन और विद्रूपिकरण। हमारे वास्तविक इतिहास का विद्रूपिकरण और हिंसक और नीच हमलावरो, आतताईयों और हत्यारों का महिमामंडन। हमारे राष्ट्र के गौरव, वीर सपूतों, क्रांतिकारियों और श्रेष्ठ महामानवों की उपेक्षा और इतिहास से विलोपन। राजनीति का अपराधीकरण, तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति, राष्ट्र हितों की और सुरक्षा की उपेक्षा और राष्ट्र द्रोहियों की प्रतिष्ठा और महिमामांडन। फिल्मी भांडों और बिकाऊ और भ्रष्ट क्रिकेट खिलाड़ियों के प्रति अंधी दीवानगी, जिन्होंने इस देश के दुश्मनों के आगे धन और शोहरत के लिए खुद को बेच दिया है। शर्मनाक और घटिया बुद्धिजीवी और कम्युनिस्ट नेता जो इस देश की आत्मा और मूल प्रकृति को नष्ट करने का षडयंत्र पिछले 70 वर्षों से कर रहे हैं, का महिमा मंडन। दुष्ट और भ्रष्ट कांग्रेसी इटालियन माफिया और उसके मंद बुद्धि परम अयोग्य मूर्ख संतान की गुलामी और चापलूसी और उनका मूर्खतापूर्ण अव्यवहारिक और शर्मनाक महिमामंडन। अंग्रेजों द्वारा निर्मित शिक्षा और कानून व्यवस्था का आज तक हमारी छाती पर लदा हुआ होना जो सिर्फ हमारा सत्यानाश और शोषण करने के लिए बनाया गया था। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला स्तंभ मीडिया, पक्षपाती, बिकाऊ और हद से ज्यादा भ्रष्ट है, और इस देश में सभी बेहूदी बातों और लोगों के प्रचार प्रसार में लगा है और जनता और सरकार दोनों मूक दर्शक की तरह ऐसा होने दे रहे हैं। हमारी पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार ने हमारी सेना को आतंकियों और दुश्मन राष्ट्र की गतिविधियों के खिलाफ सही कदम उठाने से रोक रखा है, वो कोई भी कदम हमारे सैनिकों के सम्मान और रक्षा के लिए नहीं उठा पाते है, जो किया जा रहा है वो काफी नहीं है। यह सिर्फ कुछ बातें है, इसके अलावा, सामाजिक, पारिवारिक और अन्य पहलुओं में भी ढेर सारी विडम्बनाएं है, जो इस महान राष्ट्र को समस्याग्रस्त और पतित बना रही है। समय की मांग है की इस देश में एक सशक्त और राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखने वाले नेतृत्व और कार्यकारी संस्थान अपनी पूरी क्षमता और रचनात्मकता के साथ कम से कम आगामी एक दशक तक कार्य करे,  जिसकी नींव रखी जा चुकी है, वर्तमान नेतृत्व एक सक्षम और प्रभावी नेतृत्व है, जिसने इतने वर्षो की गलतियों और दुष्प्रभावों, कुशासन और भ्रष्टाचार की दलदल और बिमारियों से बाहर निकालने और उसे स्वच्छ करने की दिशा में कार्य प्रारंभ कर दिया है, हमें इसे और मज़बूत और जवाबदेह बना होगा, ताकि इतने लम्बे समय से रुके हुए विकास और पुनर्निर्माण और नवनिर्माण के कार्यों को बिना रुके जल्द से जल्द पूरा किया जा सके। आज भी हमारे सामने नयी नयी चुनौतिया और समस्याएं इस देश के भ्रष्ट राजनेता, सांप्रदायिक ताकतें और वोट बैंक की राजनीति करने वाले और राष्ट्र के दुश्मनों से सांठ गाँठ रखनेवाले और उनके नीच और कुत्सित इरादों और षड्यंत्रों को पूरा करने में सहयोगी हैं, और  राष्ट्र की अखंडता और एकता को नष्ट करने वाली विचारधारा, प्रोपेगंडा और भ्रामक बातों का प्रचार, प्रसार और महिमा मंडन करने में लगे हुए हैं, हमें इन्हें समूल नष्ट करना होगा, इनकी जड़ों को पूरी तरह से काटना होगा।  वर्तमान नेतृत्व ने अपनी कर्मठता और कुशलता में नए कीर्तिमान स्थापित किये हैं जो सराहनीय हैं, लेकिन यह सिर्फ एक छोटी सी शुरुआत है हमें इसे बहुत बेहतर और सशक्त बनाए की जरुरत है, ताकि हमारा महान देश अपने पैरों पर पुनः खड़ा हो सके और अपने अतीत के गौरव और संस्कृति को पुनः प्रतिष्ठित कर सके, इसके लिए कुछ बेहद जरुर ���ातों का संपन्न किया जाना बेहद जरुरी है जो इस प्रकार हैं - भारत की समस्याओं के समाधान - (तात्कालिक)   इस राष्ट्र के सभी वैध और संवैधानिक रूप से स्वीकृत नागरिकों के लिए सिर्फ एक ही पहचान की वो भारतीय हैं, कोई भी जाति, धर्म, केटेगरी और अन्य लेबल मानी और स्वीकृत नहीं होगा, इस देश का प्रत्येक वैध नागरिक सिर्फ भारतीय होगा, न कोइ हिन्दू, न मुस्लमान, न अल्पसंख्यक न बहुसंख्यक, न अनुसूचित, सूचित और अन्य कोई भी लेबल, सिर्फ भारतीय और कुछ नहीं, किसी भी वजह से नही। इस देश के सभी नागरिकों के लिए एक ही संविधान और एक ही कानून, कोई भी विशेषाधिकार किसी भी आधार पर किसी को नहीं दिया जायेगा, और न किसी भी प्रान्त और क्षेत्र के व्यक्तियों को कोई विशिष्ट सुविधा या अधिकार दिए जायेंगे, किसी भी कारण से। एक से अधिक बच्चे को जन्म देना कानून अपराध होगा और इसका उल्लंघन करने वाले की को अधिकाधिक कर, दंड और अन्य व्यक्तिगत और सार्वजनिक सुविधाओं और लाभों से वंचित कर दिया जायेगा। देश के खिलाफ बयानबाजी, प्रदर्शन और देश के शत्रुओं की पैरवी करने और उनका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग और समर्थन करने पर सिर्फ आजीवन कारावास या मृत्यु दंड का विधान। अभिव्यक्ति की आज़ादी की उचित विवेचना और सीमा निर्धारण, अनर्गल और सांप्रदायिक और राष्ट्र विरोधी प्रदर्शन और वक्तव्य देने वालों को तुरंत प्रभाव से बंदी बनाना और उन पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा चलाकर आजीवन कारावास और अन्य कठोर दंड प्रदान करना,  धर्म और संप्रदाय के आधार पर किसी भी किस्म की विशेष सुविधा और आज़ादी नहीं प्रदान की जानी चाहिए। नागरिकों को मुफ्त की सुविधाएँ और बेहद कम मूल्य में राशन का वितरण बंद किया जाना चाहिए, क्यूंकि वो इन सभी सुविधाओं का दुरूपयोग कर रहे हैं, व्यक्तिगत आधार पर ही निरिक्षण कर उचित सहयोग उर लाभ वितरित करना। किसानों और खेतिहरों के लिए विशेष प्रशिक्षण और प्रोत्साहन और किसान बाज़ार (Farmers Market)को प्रोत्साहन। स्त्रियों के लिए शिक्षा और स्वास्थय और सुरक्षा की बेहतर व्यवस्थाएं, उनकी कुशलता और उधामिता को विकसित करने की योजनायें और कार्यशालों की ग्रामीण इलाकों में व्यवस्था। सरकारी कर्मचारियों के कार्य मूल्याङ्कन और जन पारदर्शिता की व्यवस्था करना, भ्रष्टाचार और अनियमितता के खिलाफ त्वरित और ठोस कार्यवाही और कठोर दंड विधान। करों की दरों को लोगों को इस तरह बनाना जिससे छोटे और बड़े सभी आय समूह के लोग कर भुगतान में रूचि लें, उन्हें कर भुगतान करने पर विशिष्ट लाभ और छूट प्रदान की जाये, और लोगों को और अधिक व्यवसाय और कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाये, अधिक धन कमाना, संपत्ति अर्जित करना एक अपराध नहीं होना चाइये, इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, इसके लिए बेहतर कराधान प्रणाली का निर्धारण और क्रियान्वयन होना चाहिए। राजनैतिक दलों द्वारा प्राप्त की जाने वाली धनराशी के सम्बन्ध में पारदर्शिता और जवाबदेही की नीति, जाती, धर्म और वोट बैंक की राजीनीति करनेवाले दलों पर पूर्ण प्रतिबन्ध और उन्हें चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने से बहिस्कृत किया जाना चाहिए, तुष्टिकरण की राजनीति और व्यवस्था को नष्ट करना। राज्यों के अधिकारों की पुनः विवेचना होनी चाहिए ताकि कश्मीर और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के उग्रवादी, आतंकी और देशद्रोही नेताओं और असामाजिक, अराजक तत्वों की गतिविधियों और मनमानी व्यवस्था पर जरुरत पड़ने पर अंकुश लगाकर, निर्दोष जनता और संपत्ति की रक्षा की जा सके। अवैध निवासियों, रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान और उन्हें राष्ट्र से बाहर करने की समर्थ और शक्तिशाली व्यवस्था और उन्हें गैर कानूनी तरीके से देश में आने और निवास करने, पहचान पत्र प्राप्त करने में मदद करनेवाले लोगों और सरकारी मशीनरी पर लगाम और दोषियों को राष्ट्रद्रोह के जुर्म में दंड की व्यवस्था। लोगों को कृषि आधारित और अन्य उद्योगों को लगाने और उनके लिए बाज़ार उपलब्ध करने की व्यवस्था पर एक सशक्त और व्यवहारिक योजना और क्रियान्वयन। कृषि के विकास और वितरण की उचित व्यवस्था, हमारा देश विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के साथ गरीबी और भुखमरी में सबसे ऊपर है, हमारी 40% आबादी को आज भी दोनों वक़्त का भोजन उपलब्ध नहीं है, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।  इस तरह की बहुत सारी बातों और कार्यों की आवश्यकता है, समस्याएं विकास प्रक्रिया का एक अनिवार्य अंग हैं, लेकिन हमे सार्थक और रचनात्मक समस्याएं को हल करने में ही अपनी उर्जा और शक्ति लगानी होगी ताकि देश अपने सर्वांगीण और समुचित विकास के लक्ष्य की और अग्रसर होता रहे। आज भारत विश्व की चौथी महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। हमें एक बात अच्छी तरह समझ लेना चाहिए की हम कितना भी विकास कर लें और कितना भी जीडीपी बढ़ा लें, यह तब तक कोई मूल्य नहीं रखता जब इतनी बड़ी तादाद में हमारे देश के लोग भूख और गरीबी से जूझ रहे हों, हमारी प्राथमिकता इसे ख़त्म करने की और होनी चाहिए। असली भारत इन्ही ग्रामों और कस्बों में निवास करता है, हमे इनके सशक्तिकरण और विकास के लिए सर्वाधिक कार्य करने की आवश्यकता है। आने वाले 10 वर्षों में भारत विश्व के प्रथम तीन सबसे शक्तिशाली और विकसित राष्ट्रों में से एक होगा, हम सभी भारतवासियों को इस दिशा में कार्य करने की जरुरत है, हमें अपने समस्त भेदों और मत विभिन्नता से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र के लिए सोचना और कार्य करना होगा, तभी हमारा राष्ट्र हमारे और पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा और शक्ति का स्रोत बनकर उभरेगा और अपने प्राचीन गौरव और प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर सकेगा।  समय है, हे भारत के वासियों अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य और दायित्वों का निर्वाह करो इसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राजनैतिक और सांस्कृतिक गुलामी और दुष्प्रभावों, गद्दारों, लूटेरों और इसे बांटने और तोड़ने वालों से मुक्त करो। 🙏🌹🙏 जय भारत    🙏🌹🙏        जय माँ भारती      🙏🌹🙏   वन्दे मातरम Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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भारत की समस्याएं और इसके समाधान क्या हैं?
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भारत की समस्याएं और इसके समाधान क्या हैं?
भारत एक विकासशील राष्ट्र है और पिछले 70 वर्षों में यहाँ लोगों ने मिली हुई आज़ादी का सर्वाधिक दुरूपयोग किया है, क्यूंकि 1000 वर्षों की गुलामी ने, यहाँ के लोगों को इतना आत्महीन, पथभ्रष्ट  और पंगु बना दिया की वो भूल ही गए की वो कभी विश्व में सिरमौर थे विश्व पटल पर, विश्व के सभी राष्ट्रों और संस्कृतियों के लिए आकर्षण और प्रेरणा का केंद्र भारत क्यूँ और कैसे अंतहीन समस्याओं का गढ़ बन गया है? आखिर भारत की समस्याएं और इसके समाधान क्या हैं? भारत की सबसे बड़ी समस्या यह है की यह देश अपनी  15000 वर्षों से अधिक प्राचीन और गौरवमयी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत से पूरी तरह कट चूका है, यहाँ का जन मानस से चेतना और आत्म गौरव से रिक्त लोगों का देश बन चुका है, लोग आत्महीन, और दूषित प्रभावों के आधीन हो गए हैं पिछले 1000 साल की गुलामी ने इन्हें आत्मिक और आध्यात्मिक रूप से पंगु और दीन हीन बना दिया है।  इस देश के लोग अपने प्राचीन आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक खोजों, ऋषियों, वैज्ञानिकों और उनकी विश्व को दी गयी देन के प्रति पूर्णतया अनभिज्ञ हैं, कांग्रेस और कम्युनिस्ट नेताओं, बुद्धिजीवियों, मुगलों और अंग्रेजों के गुलामों, चाटुकारों और सेवकों ने इस राष्ट्र के जन मानस के दिल दिमाग को अपने अतीत के महान  वैभव, श्रेष्ठतम खोजों, अविष्कारों और महानतम जीवन मूल्यों के सृष्टा और उद्घोषकों के सम्बन्ध में पूर्णतया अनभिज्ञ और अँधा बनाये रखा है। उन्हें गलत जानकारी, विद्रूपित इतिहास और तथ्य उपलब्ध कराये गयी है और उसे उनके दिल दिमाग पर थोप दिया गया है, उन्हें इतना बीमार और भ्रमित कर दिया है की वो अपने ही पूर्वजों और उनके गरिमामयी कार्यों को, अद्भुत उपलब्धियों को स्वीकार करने को राजी नहीं, उन्हें संदेह और घृणा की दृष्टि से देखते है, यह है गुलामी से हुए पतन और बेहद कुटिलतापूर्वक आयोजित सामूहिक ब्रेनवाश का भयानकतम परिणाम।  यहाँ के लोगों के अवचेतन में यह घर कर गया है की इस देश को जो कुछ मिला है विदेश हमलावरों और पाश्चात्य जगत से मिला है, यहाँ के लोग अपनी विराट सांस्कृतिक और एतिहासिक और आद्यात्मिक विरासत के प्रति बिलकुल भी जागरूक और संज्ञान में नहीं है, यही इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की वजह है। जो राष्ट्र और उसके नागरिक अपनी संस्कृति और अतीत के गर्व के प्रति सम्मान और चेतना का भाव खो देते हैं वो हमारे राष्ट्र की तरह दुर्गति को प्राप्त होते हैं, वो अपने ऊपर हमला करने वालों उन्हें लूटने और पद दलित और भ्रष्ट करनेवालों को अपने से श्रेष्ट और श्रेयस मानने लगते हैं, यह उनके पतन और आत्महीनता की पराकाष्ठा होती है, और हमारा राष्ट्र इसी प्रोपेगंडा और षड़यंत्र का पिछले 1000 वर्षों से शिकार है और अपनी रुग्णता के चरम से मुक्त होने की दिशा में अग्रसर हो रहा है। यहाँ लोगों ने संपत्ति, पद और सुविधाएँ तो प्राप्त कर ली हैं, लेकिन अपना आत्मगौरव और आत्मसम्मान गिरवी रख दिया है, देश के गद्दारों, शत्रुओं और दलालों के हाथों, और अपनी ही मातृभूमि को दूषित, कलंकित और अपमानित करने के घृणित षड़यंत्र में जी जान से भागीदारी कर रहे हैं, यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य और समस्या है। यहाँ के लोगों से आज़ादी सम्हाली नहीं गयी, और जो भी नेता मिले वो बेहद अदूरदर्शी, अव्यवहारिक, अनुभव विहीन, आत्मकेंद्रित और सत्ता सुन्दरी पर मुग्ध अपने ही लाभ और गौरव की प्रतिष्ठा में लीन रहे, उन्हें 1000 वर्षों की गुलामी, उत्पीडन और सांस्कृतिक रूप से मृत, समस्याग्रस्त कुपोषित, त्रस्त और लुटे हुआ राष्ट्र, इसकी सुरक्षा की कोई भी फिक्र नहीं की,  उनके लिए करोड़ों देशवासियों के जीवन, भविष्य और प्रगति उनका मुख्य लक्ष्य नहीं रहे। परिणाम यह हुआ जैसा राजा और नेता वैसी ही जनता हो गयी, वो भी अपने ही राष्ट्र को लूटने, नोचने खसोटने और भ्रष्ट करने में जी जान से लग गयी और पिछले 70 सालों में यही भाव प्रधान रहा है। यह बेहद शर्मनाक है की लूट और भ्रष्टाचार इस देश में शिष्टाचार और लोगों के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, गुलामी और आत्महीनता से कितना पतन हो सकता है किसी देश के लोगों का इसकी मिसाल है हमारा देश।
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भारत की सबसे बड़ी समस्या सत्ता में परिवारवाद और अंग्रेजियत की गुलामी, जिसके यह प्रणेता और पोषक हैं,इनसे मुक्ति देश के हित में है इस देश में नेताओं ने भी और जनता ने भी, इस बात को अनदेखा करते हुए की वो अपने ही घर में आग लगाकर तमाशा देख रहे हैं और शत्रुओं और लूटेरों और षड्यंत्रकारियों के मंसूबों को पूरा करने का सामान बने हुए हैं, इतनी भीषण बर्बादी भी इन्हें नहीं जगा पाई, इससे बड़ा दुर्भाग्य और नपुंसकता किसी राष्ट्र के नागरिकों और नेताओं लिए क्या हो सकती है। इस देश का विनाश इस देश के नेता और जनता दोनों ने मिलकर कर रखा है और वो आज भी नशे में है, उनकी मूर्छा और नींद बहुत गहरी है, इसे तोडना बेहद जरुरी है, वर्ना यह राष्ट्र अपन गौरव और अस्मिता खोकर नष्ट हो रहा है, यह हमारा देश है, इसकी रक्षा, गौरव और समृद्धि की जिम्मेदारी हमारी है, किसी सरकार और हमारी सेना की नहीं, यह हमारा देश है, यह हमारी जिम्मेदारी है सबसे पहले।  आज़ादी के पश्चात हमारे नेताओं और यहाँ की मूर्छित, लोभी लालची, पथभ्रष्ट जनता का मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक संपत्ति का अर्जन और अपने महिमामंडन में ही रहा है। इस देश के 3 प्रधानमंत्री जो एक ही परिवार से आये हैं, उन्होंने अपने जीते जी ही स्वयं को भारत रत्न  प्रदान कर दिया, उनके नाम से हजारों संस्थान, सड़कें, स्मारक निर्मित हैं, आज़ादी के बाद सर्वाधिक समय तक देश की सत्ता इन्हीं ने सम्हाली है, और देश गंभीर रूप से ब���मार और समस्या ग्रस्त और भ्रष्ट हुआ है, इनके शासनकाल में इस देश के सबसे बड़े घोटाले और लूट और आतंकवादी घटनाएँ और युद्ध हुए हैं।  इनका एक ही लक्ष्य रहा साम, दाम, दंड भेद से सत्ता में बने रहना और स्वयं को प्रतिष्ठित और लाभन्वित करना, उन्होंने अपने आसपास सिर्फ चाटुकारों, भ्रष्ट और घटिया लोगों को जिन पर वो आसानी से दवाब बनाकर शासन कर सके को एकत्रित होने दिया, इस राष्ट्र को जातिवाद, साम्प्रदायिकता के न भरनेवाला जख्म दिया, इस देश के 3 टुकड़े कर दिए (पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश), शत्रुओं को बढ़ावा और अनाधिकार लाभों को लूटने और हमारे अधिकार के क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने दिया (तिब्बत, पाक अधिकृत काश्मीर)। इन्होने राष्ट्र की सेना और संसाधनों को व्यवस्थित और सशक्त करने के लिए कोई कार्य नहीं किया, बल्कि सत्ता में बने रहने और अपने गौरव गान के लिए हर राष्ट्रीय संस्ठा, संविधान और संवैधानिक मूल्य की हत्या और विरूपण किया, इस देश में जाति और धर्म के आधार पर वोट बैंक की राजनीति की शुरुआत की, जो आज नासूर बनकर इस देश को खोखला कर रही है।  आज भी इस देश का बहुत बड़ा वर्ग, कुंठित और पथभ्रष्ट बिकाऊ, बुद्धिजीवी और मीडिया इनके तलवे चाटने और इनके महिमामंडन में लगा हुआ है। लोकतंत्र के स्तम्भ इसकी कब्र बनाने पर तुले हुए है चाहे वो संसद हो, न्यायपालिका हो, मीडिया हो या इस देश की जनता, सभी इस देश की और तथाकथित लोकतंत्र की अर्थी तैयार करने में लगे हुए हैं। अराजकता और बुद्धिहीनता और चारित्रिक दिवालियेपन की ऐसी पराकाष्ठ कभी देखने नहीं मिली, इस देश में, यह कहाँ आ गए हैं हम, हमे इसे बदलना होगा। हमें इन सड़े गले संस्थानों और इनके सिरमौर बने लोगों को बहिष्कृत और विस्थापित करना होगा, नए स्वस्थ विधान, मूल्यों और इसकी प्रतिष्ठा करने वाली शक्तियों और व्यक्तियों को पुनः स्थापित करना होगा। हमारा राष्ट्र पुनर्निर्माण के एक बहुत बड़े दौर से गुजर रहा है , हमे जागरूकता पूर्वक अपना कर्त्तव्य और निष्ठां इसके प्रति निभानी होगी, वर्ना हम आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेहद अंधकारर पूर्ण भविष्य और विरासत निर्मित कर रहे हैं, हमे इस दुर्भाग्य से बचना होगा और जो सार्थक और जरुरी है हर हाल में करना होगा। यह देश राजशाही और विदेशी दासता से मुक्त नहीं हो पाया, आज़ादी मिलने 75 वर्षों के पश्चात् भी, आज भी मुग़ल और अंग्रेजी गुलामी और हीनता यहाँ के लोगों के दिल और दिमाग से गयी नहीं है, वो आज भी उन्ही की गुलामी और उनके द्वारा इनके गलों में पहनाये गए गुलामी के पट्टे को अपनी विचारधारा, कर्म और अभिव्यक्ति से जी और ढो रहे हैं और इस देश को अंतहीन गुलामी की तरफ ले जाने की अंधी और विनाशकारी असफल कोशिश कर रहे है। आज भी इस देश के बहुत सारे लोग, एक परिवार विशेष की अंध भक्ति और मूर्खों, अयोग्य और सर्वाधिक भ्रष्ट और अनिष्टकारी समूह और दल की चापलूसी और गुलामी में व्यस्त हैं, इस देश के लोगों ने सच देखना, सुनना और स्वीकारना बहुत समय पहले से बंद कर दिया है, इसलिए वो इन्सान होने के बावजूद भेड़ों की तरह व्यव्हार कर रहें है और पतन की और अग्रसर हो रहे हैं, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस देश के लोगों को अपने देश और इसकी संस्कृति की पहचान और मूल्य नहीं है। लम्बे समय की गुलामी, ब्रेनवाश और आत्महीनता और देशी और विदेशी दुश्मनों के षड्यंत्रों ने इस देश के जन मानस को कुंठित और विषाक्त कर दिया है, अपनी स्वयं की संस्कृति और महान मूल्यों के प्रति हीनता, अविश्वास और घृणा से भर दिया है।  हमारे देश के लोग यह भूल गए हैं की हमारे राष्ट्र की सभी खूबियां, ज्ञान, गुणवत्ता, आध्यात्मिक वैभव और अतुलनीय संपत्ति और समृद्धि दुनिया के तमाम लूटेरों, ठगों, लालची और विस्तार और वैभव के आकांक्षियों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है और इसी ने इन तमाम दुर्दांत ठगों, लूटेरों, उपनिवेशवादियों और हमलावरों को इस धरती पर आक्रमण करने और इसे अपना निशाना बनाने के लिए प्रेरित किया था। और ऐसा होने में हमारे ही देश के गद्दारों और नीच लोगों ने इस लूट और बर्बादी में सहयोग किया है और आज भी यही कर रहे हैं, क्यूंकि इस देश के लोगों को न तब समझ में आया ना आज समझ में आ रहा है। मेरी नज़र में कुछ बेहद महत्वपूर्ण कारक है जो समस्या की तरह मौजूद हैं, यदि इन सभी कारकों पर जागरूकता पूर्ण तरीके से जरुरी कार्य किया जाये तो हमारा राष्ट्र कुछ ही समय में विश्व के सर्वाधिक प्रभावशील और समृद्ध राष्टों में से एक होगा। सच तो यह है की हम उस दिशा की और अग्रसर हो चुके हैं, कई दशको के बेहद घटिया और नपुंसक शासन के बाद एक सार्थक और बेहद प्रभावी नेतृत्व में हमारा राष्ट्र एक नयी दिशा और ऊंचाई की और कदम बढ़ा रहा है, हमे इसमें अपना पूर्ण और जिम्मेदार योगदान देना होगा -   भारत की मुख्य समस्याएँ  - (वर्तमान परिप्रेक्ष्य में)  इस देश के लोगों में अपनी धरती के लिए प्रेम और निष्ठा का बेहद अभाव है, इतने गद्दार और देशद्रोही कहीं और नहीं होंगे जितने इस देश में हर काल में हुए और आज भी हैं, और देश को कमजोर और खोखला करने मै लगे हैं। इस देश के लोगों को अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति से ऊपर कोई भी चीज नहीं है, सब अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे हैं। इस देश के लोग जाति, धर्म और वर्ग में बंटे हुए है, और इस आधार पर लाभ लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, राजनेता उनकी इस कमजोरी का पिछले 75 सालों से दोहन कर रहे हैं, और यह मुर्ख इसमें सहयोग कर रहे हैं। यहां अयोग्य और अपराधी लोग हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं, और लोग उन्हें स्वीकार और सहयोग प्रदान करते है। यहां गुण की कीमत नहीं है, लोगों की गुणवान और श्रेष्ठ होने में कोई रुचि नहीं है, बिना किसी योग्यता और गुण के लोग हर किस्म का लाभ और सुख सुविधा चाहते है, गुणवान, प्रतिभावान इस देश से बहार जाने के लिए मजबूर हें। लोगों में देश के लिए कुछ भी करने का जज्बा नहीं लेकिन उन्हें देश और सरकार से सब कुछ चाहिए, यहाँ सब बिना कोई तकलीफ उठाये हर सुविधा और आराम चाहते हैं। यहां लोग, कायर, भ्रष्ट और कामचोर हैं, लेकिन फिर भी उन्हें घमंड है, अपनी नीचता और घटियापन के लिए कोई भी स्वीकार और शर्म नहीं है, लोगों का आत्मसम्मान और चेतना निम्नतम स्तर पर है। लोग अपने कर्तव्यों के प्रति बिल्कुल भी जागरूक और जिम्मेदार नहीं है और उन्हें सभी अधिकार चाहिए। राष्ट्र के संसाधनों और संपत्तियों का दुरुपयोग, और उन्हें बिना किसी वजह से नष्ट करना। जनसंख्या नियंत्रण की ओर बिल्कुल भी जिम्मेदार रवैया नहीं, 75 वर्षों में 30 से 130 करोड़ हो गए, यही है इनकी उत्पादकता और रचनात्मकता, और कोई भी रचनात्मक कार्य इस देश के लोगों को नही आता। देश में अशांति बढानेवाली और विघटनकारी ताकतों का समर्थन, राष्ट्र द्रोहियों की वकालत और महिमा मंडन। पाश्चात्य सभ्यता और मूल्यों का अंधानुकरण और हमारी प्राचीन विरासत और मूल्यों का अवमूल्यन और अपमान। गंदगी, अराजकता और अव्यवस्था को बढ़ावा, व्यावहारिक और संवेदनशील सोच और कर्म का अभाव। विवेकपूर्ण जीवनशैली और जागरूकता का पूर्ण अभाव,भाग्य वादी और अंधविश्वासी लोग। अनुशासनहीन जीवन और बेहद लापरवाह रवैया, जीवन की सभी महत्वपूर्ण बातों के संबंध में। झूठ, पाखंड और भ्रष्टाचार में अव्वल नंबर, और फिर भी दूसरे श्रेष्ठ और कर्मठ लोगों के कार्य और नीयत में दोष निकालना, थोड़े से लाभ के लिए अपने राष्ट्र से गद्दारी और शत्रुओं के सहयोग के लिए तैयार। बहुसंख्यक लोगों के हितों और भावनाओं की उपेक्षा और झूठे, मक्कार और राष्ट्र विरोधी समुदाय और शक्तियों की प्रतिष्ठा और चापलूसी, खुशामद की र���जनीति। भारत की मूल संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत का अपमान, अवमूल्यन और विद्रूपिकरण। हमारे वास्तविक इतिहास का विद्रूपिकरण और हिंसक और नीच हमलावरो, आतताईयों और हत्यारों का महिमामंडन। हमारे राष्ट्र के गौरव, वीर सपूतों, क्रांतिकारियों और श्रेष्ठ महामानवों की उपेक्षा और इतिहास से विलोपन। राजनीति का अपराधीकरण, तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति, राष्ट्र हितों की और सुरक्षा की उपेक्षा और राष्ट्र द्रोहियों की प्रतिष्ठा और महिमामांडन। फिल्मी भांडों और बिकाऊ और भ्रष्ट क्रिकेट खिलाड़ियों के प्रति अंधी दीवानगी, जिन्होंने इस देश के दुश्मनों के आगे धन और शोहरत के लिए खुद को बेच दिया है। शर्मनाक और घटिया बुद्धिजीवी और कम्युनिस्ट नेता जो इस देश की आत्मा और मूल प्रकृति को नष्ट करने का षडयंत्र पिछले 70 वर्षों से कर रहे हैं, का महिमा मंडन। दुष्ट और भ्रष्ट कांग्रेसी इटालियन माफिया और उसके मंद बुद्धि परम अयोग्य मूर्ख संतान की गुलामी और चापलूसी और उनका मूर्खतापूर्ण अव्यवहारिक और शर्मनाक महिमामंडन। अंग्रेजों द्वारा निर्मित शिक्षा और कानून व्यवस्था का आज तक हमारी छाती पर लदा हुआ होना जो सिर्फ हमारा सत्यानाश और शोषण करने के लिए बनाया गया था। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला स्तंभ मीडिया, पक्षपाती, बिकाऊ और हद से ज्यादा भ्रष्ट है, और इस देश में सभी बेहूदी बातों और लोगों के प्रचार प्रसार में लगा है और जनता और सरकार दोनों मूक दर्शक की तरह ऐसा होने दे रहे हैं। हमारी पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार ने हमारी सेना को आतंकियों और दुश्मन राष्ट्र की गतिविधियों के खिलाफ सही कदम उठाने से रोक रखा है, वो कोई भी कदम हमारे सैनिकों के सम्मान और रक्षा के लिए नहीं उठा पाते है, जो किया जा रहा है वो काफी नहीं है। यह सिर्फ कुछ बातें है, इसके अलावा, सामाजिक, पारिवारिक और अन्य पहलुओं में भी ढेर सारी विडम्बनाएं है, जो इस महान राष्ट्र को समस्याग्रस्त और पतित बना रही है। समय की मांग है की इस देश में एक सशक्त और राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखने वाले नेतृत्व और कार्यकारी संस्थान अपनी पूरी क्षमता और रचनात्मकता के साथ कम से कम आगामी एक दशक तक कार्य करे,  जिसकी नींव रखी जा चुकी है, वर्तमान नेतृत्व एक सक्षम और प्रभावी नेतृत्व है, जिसने इतने वर्षो की गलतियों और दुष्प्रभावों, कुशासन और भ्रष्टाचार की दलदल और बिमारियों से बाहर निकालने और उसे स्वच्छ करने की दिशा में कार्य प्रारंभ कर दिया है, हमें इसे और मज़बूत और जवाबदेह बना होगा, ताकि इतने लम्बे समय से रुके हुए विकास और पुनर्निर्माण और नवनिर्माण के कार्यों को बिना रुके जल्द से जल्द पूरा किया जा सके। आज भी हमारे सामने नयी नयी चुनौतिया और समस्याएं इस देश के भ्रष्ट राजनेता, सांप्रदायिक ताकतें और वोट बैंक की राजनीति करने वाले और राष्ट्र के दुश्मनों से सांठ गाँठ रखनेवाले और उनके नीच और कुत्सित इरादों और षड्यंत्रों को पूरा करने में सहयोगी हैं, और  राष्ट्र की अखंडता और एकता को नष्ट करने वाली विचारधारा, प्रोपेगंडा और भ्रामक बातों का प्रचार, प्रसार और महिमा मंडन करने में लगे हुए हैं, हमें इन्हें समूल नष्ट करना होगा, इनकी जड़ों को पूरी तरह से काटना होगा।  वर्तमान नेतृत्व ने अपनी कर्मठता और कुशलता में नए कीर्तिमान स्थापित किये हैं जो सराहनीय हैं, लेकिन यह सिर्फ एक छोटी सी शुरुआत है हमें इसे बहुत बेहतर और सशक्त बनाए की जरुरत है, ताकि हमारा महान देश अपने पैरों पर पुनः खड़ा हो सके और अपने अतीत के गौरव और संस्कृति को पुनः प्रतिष्ठित कर सके, इसके लिए कुछ बेहद जरुर बातों का संपन्न किया जाना बेहद जरुरी है जो इस प्रकार हैं - भारत की समस्याओं के समाधान - (तात्कालिक)   इस राष्ट्र के सभी वैध और संवैधानिक रूप से स्वीकृत नागरिकों के लिए सिर्फ एक ही पहचान की वो भारतीय हैं, कोई भी जाति, धर्म, केटेगरी और अन्य लेबल मानी और स्वीकृत नहीं होगा, इस देश का प्रत्येक वैध नागरिक सिर्फ भारतीय होगा, न कोइ हिन्दू, न मुस्लमान, न अल्पसंख्यक न बहुसंख्यक, न अनुसूचित, सूचित और अन्य कोई भी लेबल, सिर्फ भारतीय और कुछ नहीं, किसी भी वजह से नही। इस देश के सभी नागरिकों के लिए एक ही संविधान और एक ही कानून, कोई भी विशेषाधिकार किसी भी आधार पर किसी को नहीं दिया जायेगा, और न किसी भी प्रान्त और क्षेत्र के व्यक्तियों को कोई विशिष्ट सुविधा या अधिकार दिए जायेंगे, किसी भी कारण से। एक से अधिक बच्चे को जन्म देना कानून अपराध होगा और इसका उल्लंघन करने वाले की को अधिकाधिक कर, दंड और अन्य व्यक्तिगत और सार्वजनिक सुविधाओं और लाभों से वंचित कर दिया जायेगा। देश के खिलाफ बयानबाजी, प्रदर्शन और देश के शत्रुओं की पैरवी करने और उनका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग और समर्थन करने पर सिर्फ आजीवन कारावास या मृत्यु दंड का विधान। अभिव्यक्ति की आज़ादी की उचित विवेचना और सीमा निर्धारण, अनर्गल और सांप्रदायिक और राष्ट्र विरोधी प्रदर्शन और वक्तव्य देने वालों को तुरंत प्रभाव से बंदी बनाना और उन पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा चलाकर आजीवन कारावास और अन्य कठोर दंड प्रदान करना,  धर्म और संप्रदाय के आधार पर किसी भी किस्म की विशेष सुविधा और आज़ादी नहीं प्रदान की जानी चाहिए। नागरिकों को मुफ्त की सुविधाएँ और बेहद कम मूल्य में राशन का वितरण बंद किया जाना चाहिए, क्यूंकि वो इन सभी सुविधाओं का दुरूपयोग कर रहे हैं, व्यक्तिगत आधार पर ही निरिक्षण कर उचित सहयोग उर लाभ वितरित करना। किसानों और खेतिहरों के लिए विशेष प्रशिक्षण और प्रोत्साहन और किसान बाज़ार (Farmers Market)को प्रोत्साहन। स्त्रियों के लिए शिक्षा और स्वास्थय और सुरक्षा की बेहतर व्यवस्थाएं, उनकी कुशलता और उधामिता को विकसित करने की योजनायें और कार्यशालों की ग्रामीण इलाकों में व्यवस्था। सरकारी कर्मचारियों के कार्य मूल्याङ्कन और जन पारदर्शिता की व्यवस्था करना, भ्रष्टाचार और अनियमितता के खिलाफ त्वरित और ठोस कार्यवाही और कठोर दंड विधान। करों की दरों को लोगों को इस तरह बनाना जिससे छोटे और बड़े सभी आय समूह के लोग कर भुगतान में रूचि लें, उन्हें कर भुगतान करने पर विशिष्ट लाभ और छूट प्रदान की जाये, और लोगों को और अधिक व्यवसाय और कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाये, अधिक धन कमाना, संपत्ति अर्जित करना एक अपराध नहीं होना चाइये, इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, इसके लिए बेहतर कराधान प्रणाली का निर्धारण और क्रियान्वयन होना चाहिए। राजनैतिक दलों द्वारा प्राप्त की जाने वाली धनराशी के सम्बन्ध में पारदर्शिता और जवाबदेही की नीति, जाती, धर्म और वोट बैंक की राजीनीति करनेवाले दलों पर पूर्ण प्रतिबन्ध और उन्हें चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने से बहिस्कृत किया जाना चाहिए, तुष्टिकरण की राजनीति और व्यवस्था को नष्ट करना। राज्यों के अधिकारों की पुनः विवेचना होनी चाहिए ताकि कश्मीर और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के उग्रवादी, आतंकी और देशद्रोही नेताओं और असामाजिक, अराजक तत्वों की गतिविधियों और मनमानी व्यवस्था पर जरुरत पड़ने पर अंकुश लगाकर, निर्दोष जनता और संपत्ति की रक्षा की जा सके। अवैध निवासियों, रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान और उन्हें राष्ट्र से बाहर करने की समर्थ और शक्तिशाली व्यवस्था और उन्हें गैर कानूनी तरीके से देश में आने और निवास करने, पहचान पत्र प्राप्त करने में मदद करनेवाले लोगों और सरकारी मशीनरी पर लगाम और दोषियों को राष्ट्रद्रोह के जुर्म में दंड की व्यवस्था। लोगों को कृषि आधारित और अन्य उद्योगों को लगाने और उनके लिए बाज़���र उपलब्ध करने की व्यवस्था पर एक सशक्त और व्यवहारिक योजना और क्रियान्वयन। कृषि के विकास और वितरण की उचित व्यवस्था, हमारा देश विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के साथ गरीबी और भुखमरी में सबसे ऊपर है, हमारी 40% आबादी को आज भी दोनों वक़्त का भोजन उपलब्ध नहीं है, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।  इस तरह की बहुत सारी बातों और कार्यों की आवश्यकता है, समस्याएं विकास प्रक्रिया का एक अनिवार्य अंग हैं, लेकिन हमे सार्थक और रचनात्मक समस्याएं को हल करने में ही अपनी उर्जा और शक्ति लगानी होगी ताकि देश अपने सर्वांगीण और समुचित विकास के लक्ष्य की और अग्रसर होता रहे। आज भारत विश्व की चौथी महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। हमें एक बात अच्छी तरह समझ लेना चाहिए की हम कितना भी विकास कर लें और कितना भी जीडीपी बढ़ा लें, यह तब तक कोई मूल्य नहीं रखता जब इतनी बड़ी तादाद में हमारे देश के लोग भूख और गरीबी से जूझ रहे हों, हमारी प्राथमिकता इसे ख़त्म करने की और होनी चाहिए। असली भारत इन्ही ग्रामों और कस्बों में निवास करता है, हमे इनके सशक्तिकरण और विकास के लिए सर्वाधिक कार्य करने की आवश्यकता है। आने वाले 10 वर्षों में भारत विश्व के प्रथम तीन सबसे शक्तिशाली और विकसित राष्ट्रों में से एक होगा, हम सभी भारतवासियों को इस दिशा में कार्य करने की जरुरत है, हमें अपने समस्त भेदों और मत विभिन्नता से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र के लिए सोचना और कार्य करना होगा, तभी हमारा राष्ट्र हमारे और पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा और शक्ति का स्रोत बनकर उभरेगा और अपने प्राचीन गौरव और प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर सकेगा।  समय है, हे भारत के वासियों अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य और दायित्वों का निर्वाह करो इसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राजनैतिक और सांस्कृतिक गुलामी और दुष्प्रभावों, गद्दारों, लूटेरों और इसे बांटने और तोड़ने वालों से मुक्त करो। 🙏🌹🙏 जय भारत    🙏🌹🙏        जय माँ भारती      🙏🌹🙏   वन्दे मातरम Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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Isha Yoga Center - The Door to the divine
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Isha Yoga Center - The Door to the divine
Isha Yoga Center - The Door to the divine, The wonderful sacred place created by a Yogi, Mystic, and realized Master Sadhguru Jaggi Vasudev at foothills of Velliangiri Mountains, Coimbatore, Tamil Nadu. Velliangiri Mountains are the oldest mountain range in Southern part of India and known as Kailash of South. Sadhguru says - Hundreds of realized masters, yogis, and spiritual seekers stayed and did their sadhana here for thousands of years. It is said that Adiyogi Lord Shiva stayed here for some time on these hills, so it is as divine and filled with grace as The great Kailash Mountains, known as the abode of Lord Shiva for thousands of Years. 
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The Kailash of South, Velliangiri Mountains, a sacred place for yogis, mystics, and seeker of life's mystery. Sadhguru speaks about the Velliangiri Mountains, the Kailash of the South and of the reverberance that these peaks have absorbed from the innumerable sages and seers including the Adiyogi himself, who walked these hills. My visit to IYC - this is the new beginning and a totally new phase of my life This is the place I was searching, my whole life, I finally found my refuge. I wish I will stay here for as long as possible, I can stay here forever, I recently visited this sacred place, due to a deep longing in me,  it has taken me here on March 15, 2019. I stayed here at Coimbatore city,  due to my desired accommodation at Center was not available for that period. I visited and stayed here the whole day, all 7 days, from morning to evening and went back to my hotel room daily. I was deeply connected with the Sadhguru and this place last year through attending the Maha Shivratri Festival 2018 online web stream. This grand magnificent festival is organized by the Isha Foundation every year for many decades. It starts at the evening of Mahashivratri at 6 PM and lasts till the next morning to 6 AM. You must stay awake here during the whole festival and can attend the program in person by visiting the place or can watch it at your home on your Smartphone or PC/Laptop, you need to register to attend it physically or virtually. ISHA YOGA CENTER - The Door to the Divine First of all, It is a place for people, who want to transform themselves, It is not a tourist destination, it is a place for seekers, explorers, Yogi's and devotees and ordinary simple human beings who want to pour and surrender their heart and soul at the feet of the divine, The Sadhguru, The Adi Yogi, and Adi Shakti.
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The beautiful Entrance of Isha Yoga Center, Coimbatore. It is a sacred place highly energized and consecrated, one of the most powerful alive places in current times for transforming human beings, it is a great gift to humanity and people who want to receive the touch and taste of divinity in real, it is made for all of us by Sadhguru and Isha Foundation. Things to remember Do not go there with keeping your messy mind and all crap it has, keep it aside as you enter into any sacred place by removing your shoes. Do the same with your mind, when you are here. Go there with full of love, curiosity, and gratitude, you will find something you have experienced ever anywhere in your entire life. Do not trust my words, just do as I mentioned above and try to stay there as much time you can, at all sacred places inside the campus. Isha Foundation is established by a realized mystic, spiritual guide, enlightened master and yogi Sadhguru Jaggi Vasudev and it is run, administer and served entirely by its devoted volunteers, it has many centers around the globe. Gratitude Thanks, Sadhguru for giving us the gift of graceful and highly empowered consecrated life transforming spaces. If you visited and stayed there, surrendering yourself at the feet of ADIYOGI and ADISHAKTI, you will find that something has happened to you and your life. Here something is magical and miraculous, you will feel more stable, quiet and balanced after staying here and even returning to your own place.
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A Yogi, Mystic, Realized Master - Sadhguru Jaggi Vasudev, founder of Isha Foundation, India & many parts of the globe. I have achieved a great sense of balance and fulfillment, just staying at all the consecrated places here, you will feel that you are healed and energized. You will feel something undefinable healed and nourished your being and you feel connected with higher dimensions of life and you feel better and centered towards yourself, aligned and more stable. A deep urge to rise, to awake emerges in you. If you are open and receptive enough to absorb the energies available here, you will be no more what you were before entering here.  Now, I feel enabled and capable to handle situations and people more pleasantly, patiently, I am feeling less disturbed by outer influences, and people now, even when I have not done any sadhna or anything special, I just visited this sacred place, stayed there and it happened to me. Here you may pray and make offerings in name of your loved ones and for yourself to receive the grace and blessings of Shiva and Shakti. You will find a great amount of change in everything after staying and absorbing grace.  It is my personal experience being a visitor and staying here. just fall at the feet of the divine, everything will be taken care. You need to live consciously, awakened and meditatively to feel and absorb the grace and energy available here. You must be enough ready and equipped to receive grace, and it needs purity in your heart, surrender to the divine and prompt committed attitude towards what is required to do in the right direction, in the right way and at the right time. My next step after staying here - I am planning and preparing myself for more deeper and profound experiences and total transformation at the level of body-mind and spiritual wellbeing. Now I am feeling more inner centered and planning to participate in Sadhnapada, the 7 months residential life-changing program organized by Isha Foundation for individuals to learn and practice intense Sadhna, Hatha yoga and other spiritual processes under the guidance of trained masters here at Isha Yoga Center. It is a great and rarest opportunity and chance to transform totally into something you can not imagine ever, I wish I will be there, I have applied for it, to take part in it.
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The 7 months program for total transformation at IYC I am hopeful that I will be there attending this program starting from July 2019 to the day of Mahashivratri Festival next year in 2020. I have booked my visit to participate in the Inner Engineering Total program (Inner Engineering with Shambhavi Mahamudra) next month at IYC. I want to learn many things here, one of my dreams is to become a Hatha yoga Teacher, and practitioner of other inner disciplines performed and taught here. Inner Engineering Total program is a minimum qualification to enter into Sadhnapada 2019 Program along with your commitment and dedication towards totally involving yourself to get best out of this amazing and rare, precious opportunity and a blessing from Sadhguru. Do you want to become a volunteer at IYC? - If you want to join as a volunteer at IYC to experience the culture and life here, you must attend the Inner Engineering program available at many major cities in India and abroad. You can find all the schedules and places it is available, with fees and duration. If you didn’t attend Inner Engineering Total program or any higher level program, you will not be illegible to take part in any of the residential activities, or as an Isha Volunteer., as I learned and observed from other visitors and participants. After attending Inner Engineering and other higher programs, you can apply for volunteering at IYC, you can find an online form to apply for it, they will respond as per the vacancy and requirements they have. Different Places and their significance at Isha Yoga Center The Beautiful Entrance – Great design and symbolism The wonderful entrance gate to the center is magical and spectacular, when you enter here, you will get mesmerized by the beauty of the place, long coconut trees beside the walking passage. A beautiful hut/information counter, to get information about, programs, and the different activities, different locations in and around the center.
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The beautiful Pathway to enter into IYC campus When you entered the IYC main entrance, you will pass through a beautiful pathway, it leads you towards the counter of depositing your footwear and valuables like mobiles, camera, and other stuff. Please remember, Photography and wearing shoes are not allowed into the shrine areas inside the campus, there are places you can off your footwear and enter and visit different places inside the campus. Photography and mobile are prohibited inside the campus for visitors. So keep it in mind and submit your footwear, mobile, and camera to the counters and get a token so you can collect all that you have deposited there during your visit. Please follow the instructions and obey the norms as guided and instructed by loving volunteers and attendants at all the places here. To learn more about IYC The Teerthakunds – The alchemic healing through charged water pond Sadhguru says - Essentially, Suryakund and Chandrakund are energy pools that melt away karmic blocks, and that allows you to experience Dhyanalinga. These are two wonderful places created at IYC for all the devotees and seekers of life, Suryakund is made for Men and The Chandrakund made for Women.
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The Suryakund at IYC, Consecrated energized water bodies for wellbeing. As per Sadguru - Taking a dip in these energized water bodies straightens out pranic imbalances, enhancing physiological and psychological wellbeing as well as heightening spiritual receptivity. So one must take a dip here before visiting Dhyanlinga and Devi Temple to become more purified,  receptive and ready to receive the vibes and energies available here to absorb. I have taken daily a dip all 7 days during my visit to IYC, it is a very calm and pleasant experience to take a dip into energized pleasant cold water, it gives a boost and freshness to receive the grace to the highly energized Dhanlingam and Devi Temple. After taking a dip at Suryakund, you must take aarti at Naga Shrine created just above the lower steps of Surykund at the center. (You can see it in the above picture, red cloth wrapped to the Naga Shrine)  You can move inside the campus after taking a dip at Suryakund or Chandrakund as they are made for men and women as per the nature and qualities of masculine and feminine energies, you can visit Dhyanlingam and Devi Temple, they are at the back side of these Teerthkunds. The Dhyanlinga Temple – Tool to take you inwards The Dhyanlinga is the gateway to liberation, the sacred meditation space created by great mystic and realized master Sadhguru, according to him this is the place that was the dream of many enlightened masters happened in past many hundred years.
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Dhyanlingam, The most powerful DhyanLinga in the world at IYC Just sitting silently for a few minutes within the sphere of Dhyanalinga is enough to make even those unaware of meditation experience a state of deep meditativeness. – Sadhguru Sadhguru says it was the dream of his Guru, and yogis and siddhas of this land for the last 2000 years, many people tried to create it before, but not succeeded. It is wonderfully designed and created consecrated place, it is unique, and maintained by trained volunteers man and woman both in a cycle, this is the first time in the history of mankind that man and woman both involved and allowed in it by Sadhguru. The architecture and design of the whole campus are phenomenal, it is done with great precision and ancient wisdom and built according to architectural science of creating consecrated places in Bharat for thousands of years.
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Dhyanlingam, one of its kind in the whole world, highly energized and consecrated. Sadhguru says by the grace of divine and blessings of his guru, it has accomplished through him, it is the only one of its kind in the world, it has consecrated and energized all 7chakras at the peak, it is alive and capable to last for many thousands of years. I have visited daily during my stay here and meditated into this wonderful space, it is magical and unparallel. I do not know anything about spirituality and meditation, but sitting here eyes closed, keep you calm and relaxed. It was a great experience, being here, I need more physical and spiritual alignment and cleansing at the level of body and mind to align me with it and receive the higher and deeper vibrations and energies it holds, to unfold the real essence of mine.  I am preparing myself towards it so I can make best out of it, to embrace its essence and evolve and expand my access towards my inner space and ability to get deeper experiences. If someone is performing yogic practices and attended some of the programs run by Isha foundation and Isha Yoga Center may be capable to experience a deeper meditative state. I have booked my space to attend inner engineering program scheduled in the next month and to experience deeper experience here. One who is looking for real inner experiences must learn from these people and must visit and stay at least one week here to feel the grace and deep energy this place holds and touch you deeply. This is a genuine and authentic place for exploring and knowing about your own reality and truth and enhance your way of living and perception. You must book and confirm the accommodations before coming here from Isha Website if you want to stay inside the campus and experience the vibes and magnetic effect of this wonderful sacred space during your stay here. You can learn more about this magnificent sacred space Dhyanlinga The Linga Bhairvi Devi Temple – Dedicated to Mother Goddess The Devi temple known as Linga Bhairvi Devi Temple, Devi is representing the divine feminine aspect of existence and cosmic energy. In India, devi is known as the supreme entity who governs, performs and control all the activities happening in-universe. 
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Maa Linga Bhairavi Temple, IYC It is created and consecrated by Sadhguru with special spiritual processes and prana pratishtha, it is the most vibrant and alive energy form of the divine feminine in the world now. Sadguru says it has consecrated and energized 3.5 chakras of divine energies in Linga shape. “Those who earn the Grace of Bhairavi neither have to live in concern or fear of life or death, of poverty or of failure. All that human beings consider as wellbeing will be theirs, if only they earn the Grace of Bhairavi. – Sadhguru” You can learn more about this magnificent sacred space Maa Linga Bhairvi Temple I have visited daily to Maa Ling Bhairvi Temple during my stay here, it is so magical and very powerful, it is created in very specific design and shape, you can learn the whole story of its creation and consecration by Sadguru. One must stay here and sit in front of the mother goddess, you can offer flowers and Deepa Jyoti to her, you also can offer and collect prasadam from here as blessings of Mother goddess, the divine feminine. This sacred place is solely maintained and governed by the team of female bramhacharinis of the ashram, it is precisely designed in a specific order and in alignment and sync of other consecrated spaces here. Sadguru says - all these sacred spaces are connected with each other and designed in such a way that they enhancing the energies and vibes of each other in tremendously powerful ways. You can feel it if you are open to receive and staying and spending some time here. 112 Feet Adi Yogi Statue – The magnificent Adiyogi  Adiyogi is here to liberate you from disease, discomfort, and poverty – above all, from the very process of life and death. – Sadhguru It is the most magnificent statue of Lord Shiva bust, it is so beautiful and amazing. The grace and divinity it holds are beyond expression.
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112 feet Adiyogi statue, at IYC, magnificent, majestic. The saptarishi mandap created at the bottom of it is amazing, Saptarishis (Seven Sages) are the first disciples of Adiyogi, Adiyogi taught them and initiated them into yogic practices, and they learned, practiced and have sown its seeds across the globe. Here at bottom of Adiyogi Statue, you can make offerings at consecrated shivling established here. The whole place has very magnetic and divine vibrations and it is a beautiful opportunity and experience to stay here, it is so magical in the mornings and the evening time. I have attended the recitation of Shiva strotas by young and very talented Isha school students at saptarishi mandap at the adiyogi statue is phenomenal, it takes you to the ancient times, at the times of Vedic culture where spiritual practices are done by sages and seers.  The whole Isha yoga center is created with the wisdom of our spiritual masters, and the science of creating consecrated places in ancient India, as per the Agam Shastra. It holds the divinity of our ancient spiritual wisdom and cultural essence, it is a blessing to visit and stay at this place, the mornings and evenings are wonderful here,  you must stay at these times and take part in the activities done here.  You can learn more about this magnificent sacred space Adiyogi 112 feet statue  Other Consecrated spaces at IYC – The above mentioned consecrated spaces can be visited by anyone visiting IYC, there are many more sacred spaces here.  But people enrolled in specific programs run at IYC, can visit or stay there during their sadhna and yoga practices. They are –
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Spanda Hall, the architectural marvel, Meditation Hall at IYC Spanda Hall – As you go into higher levels of meditation, you come to a state of Spanda – intense, unmanifest energy – before you literally recreate yourself. – Sadhguru This hall is created for residential Isha Yoga Programs and celebrations happening at IYC.
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Adiyogi Aalyam - A consecrated space for Hathyoga Training and other residential Programs at IYC Adiyogi Aalyam - The Adiyogi Alayam is specially consecrated to allow one to experience Hatha Yoga and other yogic practices in their full depth and dimension. – Sadhguru Final Words Just stay there as an empty vessel, you will return with greatly touched and healed by the grace and transformational energy and effect of this sacred place. I feel very blessed and fortunate that I planned and visited this divine place and stayed here for a short time. I am going to stay here for a very long time, as a part of the residential program and as a volunteer for different projects and activities run at IYC.  I wish I will be here for a longer period,  it is something very extraordinary in nature and experience, my wish may fulfill with the blessings and grace of Sadhguru, Adiyogi and Maa Lingha Bhairvi. The beauty of this place is its simplicity and indefinable grace it has. I wholeheartedly thanks to Sadhguru for creating such an amazing sacred space for inner transformation and healing. AUM SADHGURUVE NAMAH 🙏🌹🙏 All the links related to various websites and activities of IYC Along with these consecrated spaces, there is Isha shoppee, here you can buy wonderful things for health, the happiness of body, mind and spiritual wellbeing, these shops are located inside the campus, as one besides the shoes and mobile submission counter at the entrance of the campus and another besides the pepper vine eatery inside the campus. You can buy artifacts, herbal yogic medicines, organic clothing, yoga mats, organic healthy foods, Rudraksha Mala, Adiyogi Miniature statues, Sadhguru Books, audio, video DVD’s, consecrated devices for well being, prosperity and overall growth, you can also buy all these merchandises online at Isha shoppee. (They prefer cash transactions instead of paying through cards or other electronic means) The food at Isha Yoga Center One most important mention is the eatery inside the campus, you can get very delicious and healthy food at a very reasonable price, it is tasty, healthy and affordable for everyone at Pepper vine Eatery.
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Pepper Vine Eatery - a part of Isha Campus, wholesome food, delicious snacks, juices, cakes. The Pepper Vine Eatery is situated inside the campus, it opens from 8:30 am to 7:30 pm every day. You can get fresh fruit juices, milk, tea, coffee, and snacks during its working hours. You can eat eggless cakes and other great delicious and healthy foods here. You can find another eatery at the entrance of Isha Yoga Center, just at the starting of the pathway to Adiyogi Statue, at the opposite side of the Entrance gate of IYC. It is also a good place to eat delicious foods, juices at a reasonable price and of good quality. There is an ATM available along with this Eatery,  here they accept cash only,  you cannot pay for anything by cards or electronic payments.  You can get useful information if you are planning to visit the Center Visitors Information You can learn about the Isha Yoga Center. 🙏 🙏 🙏 🌹 🌹 🌹 🙏 🙏 🙏 *Note - For more information call or mail to IYC, and visit IYC website links, thanks  Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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भारत के वास्तविक शत्रु कौन हैं?
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भारत के वास्तविक शत्रु कौन हैं?
भारत के वास्तविक शत्रु कौन हैं? इस देश में रहने वाले तथाकथित ब्रेनवाश किये हुए लिबरल हिन्दू और तथाकथित सेक्युलर लोग, मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत  की दासता के फलस्वरूप उत्पन्न कनवर्टेड और प्रोग्राम्ड मुस्लिम और इसाई, जिन्हें अपनी जड़ों का भान नहीं है, जो षड़यंत्रकारियों और देशी विदेशी दुश्मनों के हाथ की कठपुतलियां बनकर अपने ही राष्ट्र को खोखला और खंडित करने के लिए जी जान से प्रयासरत हैं। ये सभी 1000 वर्षों की दासता और पिछले 75 वर्षों की कांग्रेस और कम्युनिस्ट अलगाववादियों और भारत की संप्रभुता और विराट गौरवमयी और प्राचीन संस्कृति को समूल नष्ट करने की इच्छा रखने वाले, दोगले, गद्दार और निकृष्टतम मनुष्य रुपी पिशाच हैं। इनके लिए इनके व्यक्तिगत छुद्र स्वार्थ, शत्रुओं के द्वारा फेंकी गयी बोटियाँ और प्रलोभन सबकुछ है, यह अपना जमीर और आत्मा गिरवी रख चुके हैं उनके क़दमों में और इस महान राष्ट्र को पददलित और नष्ट करने में लगे हुए हैं। यह सभी लोग, सदा से ही इस देश और इस महान संस्कृति को नष्ट करनेवाले, इसे पददलित और कुरूप करने वाले, इस राष्ट्र और इसकी समृद्धि और श्रेष्ठता से घृणा करनेवाले और इसे लूटने और बर्बाद करने की चाह रखनेवाले सभी आंतरिक और बाहरी लूटेरों,  विदेशी आक्रान्ताओं,  हमलावरों, और इस राष्ट्र की अखंडता और एकता को भंग करने के नीच इरादे रखनेवाले लोगों की हाथ की कठपुतली रहे हैं। पिछले 1000 वर्षों से, आज यह सभी लोग, इसाई और इस्लामिक राष्ट्रों और आतंकवादी संगठनों के हाथों की कठपुतलियां बनकर अपनी ही मातृभूमि और इसकी परम पूजनीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को मलिन और कुरूप करने में मुख्य उपकरण बने हुए हैं। इस देश का दुर्भाग्य है की इसने अवतारों, श्रेष्ठतम मानवों और देशभक्त वीरों के साथ साथ बेहद शर्मनाक और नीच लोगों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने लाभ के लिए अपनी मातृभूमि का सौदा लुटेरों और वहशी जानवरों के साथ किया है और आज भी कर रहे हैं। आज यह महान देश अलगाववादियों, जाति, धर्म और वोट बैंक की राजनीति करके सत्ता में बने रहने की लिप्सा में हर जघन्य अपराध करनेवाले और राष्ट्र को खोखला करनेवाले  भ्रष्ट और निकृष्ट राजनीतिज्ञों और उनके दलालों और गुलामों से सबसे ज्यादा त्रस्त है। यह दीमक की तरह इस देश की सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक मूल्यों और विरासत को नष्ट करने के भयानक षड़यंत्र में लगे हुए हैं। यह देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है, इस देश को बाहरी दुश्मनों से ही नहीं इन आस्तीन के साँपों और गद्दारों से सबसे ज्यादा खतरा है, सबसे पहले इनका उपचार करना और राष्ट्र को इनकी गद्दारी और दुष्टता के पंजे से मुक्त करना सबसे प्राथमिक कार्य है।
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यह सभी लोग ईसाइयत और इस्लामिक प्रभुत्व की आकांक्षा रखने वाले लोगों के गुलाम और तलवे चाटने वाले जीव बन गये हैं और उनके नीच और दूषित उद्देश्यों और इस राष्ट्र को संकट ग्रस्त रखने और इसे तोड़ने के दुर्भाग्य पूर्ण षड़यंत्र में सहयोगी हैं, सिर्फ व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए। जी हां, इस्लाम, ईसाइयत और कम्युनिज्म की बुनियाद में ही यह है, ऐसा इस्लाम और ईसाइयत के प्रवर्तकों की वजह से नहीं उनके माननेवाले लोगों के पागलपन, राजनैतिक महत्वकांक्षा, सत्ता और शक्ति के उन्माद की वजह से। हजारों साल के हमारे इतिहास में हमारे राष्ट्र  ने कभी भी किसी भी मुल्क पर अपनी सत्ता और प्रभुत्व स्थापित करने के लिए हमला नहीं किया है, हमारी संस्कृति और सनातन परंपरा ने कभी भी किसी भी कौम और संप्रदाय के लोगों को हमारी संस्कृति, और मूल्यों को अपनाने के लिए किसी भी किस्म का कोई भी प्रयास बलपूर्वक, छल पूर्वक और षड्यंत्रपूर्वक नहीं किया है, यह हमारे खून और संस्कार में नहीं रहा कभी भी। यह अलग बात है की आज असंख्य लोग विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के प्रबुद्ध निवासी भारत और भारतीय संस्कृति और इसकी आध्यात्मिक विरासत को अपनाने और इसका अनुसरण करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। तमाम विकसित राष्ट्रों में लाखों लोग सनातन परंपरा में दीक्षित होकर धर्मप्राण जीवन जीने की और अग्रसर हो रहें हैं, हमारी संस्कृति और परंपरा के उद्दात और परम मानवीय गुण सदा से पूरे विश्व में आदरणीय और अनुकरणीय रहे हैं, यह अपने प्रारंभ से लोगों के ह्रदय और आत्मा को प्रभावित करते रहे हैं, आज भी कर रहे हैं, आप स्वयं देख सकते हैं hindu russia  world wide hindu temples सभी लोग स्वेच्छा से भारतीय आध्यात्मिक विरासत को अंगीकार करके जीवन के उच्चतम मूल्यों और रहस्यों का साक्षात्कार कर अपना जीवन धन्य कर रहे हैं, प्रेम और करुणा के वशीभूत होकर, बिना किसी प्रलोभन, लालच या विवशता के, स्वेच्छा से लोग योग, ध्यान, तंत्र साधना पद्धतियों और उपासना के मार्गों पर चल रहे हैं। यह है प्रेम और श्रेष्ठता का प्रभाव, यदि आपमें कुछ भी बेहतर है तो वह लोगों के ह्रदय और आत्मा को स्वतः ही छुएगा और लोग उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे, आपको किसी पर कुछ भी आरोपित करने की जरुरत नहीं है, लेकिन यह बात इस देश के बाहर जन्म लिए सम्प्रदायों और उनके प्रभाव में जीने वाले गुलाम लोग कभी भी नहीं समझ पाए हैं और न समझ सकेंगे कभी भी। प्रेम ही जीवन का केंद्र है और सभी की आंतरिक आकांक्षा प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है,  स्वयं के सत्य को जानने के अलावा कुछ भी मनुष्य को समस्त दुखों और बंधनों से मुक्त नहीं कर सकता है, यही हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी खोज और देन है विश्व को, हमने सारे विश्व को जीवन जीने की कला और जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करने की विधियाँ और साधन उपलब्ध कराएँ हैं। मनुष्यता के इतिहास में इतने महिमामयी आध्यात्मिक पुरुष, योगी और मुक्त पुरुष धरती पर कहीं जन्म नहीं लिए हैं, संपूर्ण विश्व में सभी धर्म और सम्प्रदायों के जनक और प्रवर्तकों ने धर्म की प्रेरणा हमारे मुक्त पुरुषों और हमारी पुन्य सलिला धरती से ग्रहण की है, जीसस अपने प्रकटीकरण और सूली लगने के उपरांत भारत में कश्मीर में ही अपना जीवन व्यतीत किये हैं मृत्यु पर्यंत, उनकी समाधी आज भी वहां म��जूद है। मुहम्मद साहब ने भी हमारे योगियों और साधकों से प्रेरणा ग्रहण की थी, उनके धर्म स्थल मक्का मदीना पर तीर्थयात्रियों द्वारा किये जाने वाले सारे संस्कार और क्रियायें हमारी संस्कृति से प्रेरित हैं, परिक्रमा से लेकर बिना सिले वस्त्र पहनने की परंपरा आदि सब यहाँ से ही लिया गया है, इस्लाम से पहले पूरा  यूरोप और अरबिया प्रकृति पूजक था, स्वयं मुहम्मद एक प्रकृति पूजक परिवार से थे इस्लाम के उद्भव के पूर्व 360 मूर्तियों और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करने वाले लोगों में से थे।
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दूसरों पर शासन करने और उन्हें अपना गुलाम बनाने या उनकी संस्कृति और जीवन मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने की भावना, इच्छा और उद्देश्य हमारे यहाँ कभी भी नहीं रहा है। हम सदा से ज्ञान, विज्ञान, आध्यात्म और धन, धान्य  और समृद्धि से भरपूर रहें हैं, हमें कभी ऐसा करने की जरुरत नहीं पड़ी है, यही हमारी संस्कृति और राष्ट्र की विशेषता है जो इसे विश्व में सबसे मूल्यवान और अनूठा बनाता है और दूसरों के लिए इर्ष्या और नफरत की वजह, लोग क्यूँ खुद को इतना विकसित नहीं करना चाहते? भारत को कोई कभी नहीं मिटा पाया और न कभी भी मिटा पायेगा, यह विश्व की आध्यात्मिक राजधानी थी, है और सर्वदा रहेगी , जब तक इस धरती पर जीवन है। लेकिन हमारी यही सभी खूबियां, गुणवत्ता और अतुलनीय संपत्ति और समृद्धि दुनिया के तमाम लूटेरों, ठगों, लालची और विस्तार और वैभव के आकांक्षियों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है और इसी ने इन तमाम दुर्दांत ठगों, लूटेरों, उपनिवेशवादियों और हमलावरों को इस धरती पर आक्रमण करने और इसे अपना निशाना बनाने के लिए प्रेरित किया है, और हमारे ही देश के गद्दारों और नीच लोगों ने इस लूट और बर्बादी में सहयोग किया है और आज भी यही कर रहे हैं ईसाइयत और इस्लाम, यह दोनों सम्प्रदाय पूरी दुनिया में अपनी बर्बरता, क्रूरता और अमानवीय सोच और कारनामों की वजह से पनपे हैं इनका उद्देश्य अपना प्रचार और प्रसार और बाकी सब का विनाश है, जो इनकी तरह नहीं है, या इन जैसे वहशी, पागल दरिन्दे, अंधे और अज्ञानी और मूढ़ बनने को राजी नहीं हैं। इन दोनों सम्प्रदायों के लोग धार्मिक नहीं है, वे राजनैतिक महत्वकांक्षा से भरे हैं और सारी दुनिया को अपनी वहशत और दहशत के रंग में रंगना चाहते है, और काफी हद तक कामयाब भी हैं। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इस्लाम और ईसाइयत के माननेवाले अपने ही पैगंबरों के खिलाफ रहे है उनके जीवन भर, एक को सूली दे दी, और दूसरे को उम्र भर खत्म करने का षडयंत्र रचते रहे और उनकी मृत्यु के बाद उनके सारे परिवार की हत्या कर दी। इनके माननेवालों ने जब अपने प्रवर्तकों के साथ ही ऐसा किया तो बाकी लोगों के साथ क्या कर सकते थे, इस्लाम हत्या, लूट, बलात्कार के बल पर फैला है और इसाइयों का तरीका पहले यही था अब बदल गए है अब वो दान, कुटिलता, अभावग्रस्त और उपेक्षित लोगों के शोषण और उनपर दया दिखाने  के नाटक को, अपने संप्रदाय में कन्वर्जन के लिए इस्तेमाल करके लोगो को अपने संप्रदाय का हिस्सा बनाने का और लोगों को अपनी ही जड़ों से नफरत करने और उनकी सोच और दृष्टि को विकृत करने का नीच और दुष्टता भरा कार्य कर रहे है। इन दोनों संप्रदाय के मानने वालों ने पिछले 2000 वर्षों में करोड़ों निर्दोष और मासूम लोगों की हत्या की है और लोगों को बलपूर्वक अपने संप्रदाय में शामिल किया है, इन्होंने दूसरी सभ्यता और संस्कृतियों को समूल नष्ट कर दिया अपनी सत्ता और विस्तार की हवस को पूरा करने के लिए। इनका पूरा इतिहास खून खराबे, लूट, हत्या, खूनी जिहाद और बलात्कार से भरा है, सिर्फ अपनी संख्या बढ़ाने और अपने उन्माद और पागलपन से लोगों का जीवन और संस्कृति नष्ट करते हुए, यह आज भी कायम है, यह भयानक हत्यारी सोच है और बेहद घृणास्पद और अमानवीय है। दूसरों की तो छोड़िए यह अपनी ही कौम के लोगो की हत्या और बलात्कार में संलग्न है, सीरिया, यमन, इराक़, ईरान, अफ्रीका, अरब और अन्य इस्लामिक देशों में यह अपने ही कौम के लोगों की हत्या कर रहे है, पूरी धरती पर सबसे विकृत और पाशविक कौम है यह, और ऊपर से बदगुमान और झूठा प्रचार की यह शांतिप्रिय लोग हैं। यह दोनों संप्रदाय धरती को नरक बनाए हुए है, पिछले 2000 सालों से, हमारी संस्कृति को भी नष्ट करने के लिए और यहां के मूल निवासियों को आतंक, लालच, और अन्य अमानवीय तरीके से परिवर्तित करके अपने सम्प्रदायों के विस्तार में लगे हुए है, यह बेहद घृणित और शर्मनाक है, हत्या, बलात्कार, आबादी का विस्फोट, कन्वर्शन, जिहाद, आतंकवाद इनके उपकरण है इनके विस्तार और सत्ता के लिए। इसाई, मिशनरी और चर्च के माध्यम से और इस्लामी लोग अपने धार्मिक उन्माद, लव जेहाद, जनसंख्या विस्फोट, और गैर कानूनी कब्जा करके राष्ट्र के राष्ट्र लील गए है। एक कबीले से शुरू हुआ था इस्लाम और आज धरती पर 57 देश इस्लामिक है, सब के सब जोर जबरदस्ती, लूट, हत्या और बलात्कार के दम पर, यही इनकी हकीकत और तरीका है विस्तार का। इसी सब की बदौलत ईसाइयत और इस्लाम मानने वालों की आबादी इस धरती पर सबसे अधिक है। इनका काम ही है विश्व की श्रेष्ठ और महान संस्कृतियों की हत्या और विलोपन और इनकी बर्बर और असभ्य पशुवत कबीले वाली मानसिकता और जीवन व्यवहार का विस्तार। इन हिंसक, बर्बर और हमलावर और हत्यारी कौमों के बाद सनातन परंपरा के लोग इस धरती पर सबसे अधिक संख्या में है, साथ ही यह धरती पर सबसे शांतिप्रिय और सुसंस्कृत सभ्यता और विचार रखने वाले लोग है, जो इन कुत्सित मानसिकता के लोगों को खटकते हैं।
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हमारी संस्कृति हजारों वर्ष पुरानी है, जब इन सभी का अस्तित्व था ही नहीं, यह सभी हमारी संस्कृति  के ज्ञान और विकास के सामने, सभी हमलावर कौमें आज भी आदिम बर्बर युग की मानसिकता में जी रहे है, लेकिन अब यह सबसे आधुनिक युद्ध तकनीक और हमले के गुप्त और ज्यादा भयानक हथियारों से हमारी संस्कृति और विरासत को नष्ट करने में संलग्न है, इन्हे रोकना और अपनी देव संस्कृति और मूल्यों की रक्षा हमारा परम धर्म है। भारतवर्ष पर पहले भी हमले हुए हैं और आज भी हमारी संस्कृति के विद्रूपण और विलोपन की सारी कोशिशें इन्ही लोगो द्वारा या इनके दलालों और गुलामों द्वारा की जा रही हैं, यह पहले भी असफल हुए और हमेशा रहेंगे, लेकिन पूरा विश्व इनकी शैतानियत और हैवानियत से पीड़ित और त्रस्त है। हमे इनके नीच इरादों और षडयन्त्रों को नष्ट करना होगा, यही पूरी मानवता के हित में है, वर्ना यह पूरे विश्व को अपनी बिमारियों से ग्रस्त और त्रस्त कर रहे हैं, यह बेहद उन्माद ग्रस्त और विक्षिप्त लोग हैं, इनके नीच इरादों में इन्हें सफल नहीं होने देना ही सम्पूर्ण मानव जाति के हित में है। आज इस्लाम, हमारे अलावा इसाईं देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि सभी को अपनी जहालत और जिहाद का शिकार बना रहा है, सारी दुनिया आज इस्लामिक जिहाद और आतंकवाद से बुरी तरह त्रस्त है, यह लोग जहाँ भी जाते है, हत्या, लूट, बलात्कार, जनसँख्या विस्फोट आदि हथियारों का इस्तेमाल करके वहां के मूल निवासियों का जीना दूभर कर रहे हैं। यह  लोग, इन सभी देशों में शरणार्थी की हैसियत से आये थे, उन तमाम देशों से, जहाँ इस्लाम और शरिया का प्रभुत्व है से भागकर अपनी जान बचाकर, जहाँ मुसलमान ही मुसलमान की हत्या और बलात्कार कर रहे हैं, सीरिया, यमन, ईरान, इराक, पाकिस्तान, अफ्रीका, और सभी इस्लामिक देश वहां वो एक दुसरे का ही खून बहा रहे हैं और भागकर दुसरे देशों में शरण की भीख मांगते हैं। दुसरे राष्ट्रों द्वारा इन्हें शरण देने पर ही,  कुछ समय के अंदर यह वहां की सरकार कानून और व्यवस्था को मिटाकर अपना कानून और व्यवस्था बनाने की मांग करने लगते हैं, इसी वजह से कुछ देशों ने इस्लाम को और मुसलमानों को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। दुनिया के सबसे ताक़तवर मुल्कों में से चीन और जापान में मुसलमानों को स्थायी नागरिकता नहीं दी जाती है, और न ही उन्हें कोई विशेषाधिकार दिए जाते हैं, ऐसा, अमेरिका और रूस में भी किया जा रह��� है। आज सारे विश्व में इसाई और इस्लामिक देशों के बीच खूनी संघर्ष कई दशकों से चल रहा है, और वजह है, सत्ता और संसाधनों पर आधिपत्य और अपने संप्रदाय का प्रभुत्व कायम करने की महत्वाकांक्षा,  दूसरे संप्रदाय के लोगों को कन्वर्ट करके या हत्या करके अपने संप्रदाय में करना। यह लोग बेहद क्रूर और हेवानियत भरे कारनामे अंजाम देने में सैकड़ों वर्षों से लगे हुए हैं और यह आज भी जारी है, और पता नहीं यह हैवानियत का खेल कब रुकेगा और कब इन दुराग्रही, लालची, दुष्ट, अंधे और मूर्ख लोगों की आँखें खुलेगी। दुनिया के बहुत सारे देश इनकी असलियत पहचान कर इनसे अपने राष्ट्र और जनता को सुरक्षित करने के लिए इनका बहिष्कार और देश ���िकाला कर दिया है, यहाँ तक की पूरी तरह मुसलमान अरब मुल्कों से भी पाकिस्तान और अन्य मुल्कों के संदिग्ध मुसलमानों को देश से बाहर कर दिया जा रहा है। अभी हाल ही मे श्रीलंका में इस्लामिक आतंकवादियों ने करीब 350 लोगों को बम विस्फोट से उड़ा दिया, आज श्रीलंका में इस्लाम को माननेवालों के खिलाफ बेहद गुस्सा और नफरत है, वहां की मस्जिदों को बंद कर दिया गया है और वहां बाहर से आये हुए सभी मुसलमानों को उनके मूल स्थान, जैसे पाकिस्तान और अन्य इस्लामिक देशों की और जाने के लिए बाध्य किया जा रहा है, बाहर भेजा जा रहा है। ऐसा म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ किया गया और ऐसा संपूर्ण विश्व में हो रहा है, कोई भी इनके साथ रहम, प्रेम और मानवता दिखने की भयानक कीमत चुकाने के लिए तैयार नहीं है, यह लोग बेहद कृतघ्न और अमानवीय सिद्ध हो रहे हैं। धरती को इनके दुष्ट और आतयायी पंजे से बचाना पूरी मानवता के हित में है, और हमे इसके लिए जागरूक और समर्थ होना पड़ेगा और इनके शैतानी इरादों को नष्ट करना होगा, आज यह सिर्फ भारत की नहीं पूरी विश्व की समस्या है, और इसे हम सबको मिलकर निर्मूल करना है, तभी यह विश्व एक परिवार की तरह, सारी विविधताओं और संस्कृतियों का महान आयोजन और समारोह बन पायेगा। आज सनातन परंपरा विश्व के सभी शांतिप्रिय और जीवन के उच्चतर आयामों को जीने की अभिलाषा रखने वाले और जीवन के परम सत्य की खोज करने वाले सभी जिज्ञासुओं, भक्तों और साधकों के लिए सबसे प्रथम और अंतिम गंतव्य बन चुका है। आज विश्व में सभी विकसित और विकासशील राष्ट्र, रूस, अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस और अफ्रीका में अनगिनत लोग सनातन परंपरा को अंगीकार करके जीवन की मधुरता और आंतरिक सत्य को प्राप्ति की दिशा में गतिमान हो रहे हैं, बिना किसी प्रचार, प्रलोभन या बल प्रयोग के, यही हमारी सनातन परंपरा और भारतीय संस्कृति का प्रभाव है, यह सभी के ह्रदय और आत्मा को छूती है और उन्हें आंतरिक रूपंतार्ण में सहयोगी होकर जीवन के परम सत्य को उपलब्ध करने में सहयोगी बनती है जो मनुष्य जीवन धारण करने के परम उद्देश्य और लक्ष्य है। आइये अपनी 15000 वर्षों से अधिक प्राचीन और सर्वोत्तम मानवीय संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत को इन दुराग्रही, आततायी और दुष्ट और जाहिल बर्बर लोगों से सुरक्षित करें और जो पिछले हज़ार साल में इस देश और पूरे विश्व में हुआ है उसकी पुनरावृत्ति होने की संभावना और आशंका को निर्मूल करें और पुनः सनातन धर्म और परंपरा को पुष्ट और पुनर्स्थापित करें इसके सम्पूर्ण गौरव और वैभव में।
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हमारी संस्कृति एक वैश्विक संस्कृति है जिसने "वसुधैव कुटुम्बकम" का उपदेश और सन्देश दिया, हमारी संस्कृति सभी के कल्याण और उत्थान की प्रेरणा और संकल्प से युक्त है, यही इसे विश्व की सभी सभ्यताओं और संस्कृतियों से महान बनाती है, आओ इसके गौरव की  पुनः प्रतिष्ठा करें। हमारा देश भारत आज विश्व में पुनः प्रतिष्ठा पा रहा है, एक सुदृढ़ और प्रभावी नेतृत्व में और हमें इसे पुनः इसके प्राचीन गौरव और महिमा के साथ पुनः स्थापित करने से कोई भी नहीं रोक सकता है, हमें यह संकल्प करना होगा की हमारे राष्ट्र की गरिमा और गौरव और अखंडता अक्षुण्ण बनी रहे। हमारी भावना और प्रार्थना समस्त विश्व के कल्याण और उत्थान के लिए - ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा- कश्चिद्दुः- खभाग्भवेत्- । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ (उपनिषद् से साभार, संस्कृत भाषा में) Meaning  in Hindi (हिंदी अर्थ)  - ॐ सब सुखी हों  सब स्वस्थ हों । सब शुभ को पहचान सकें  कोई प्राणी दुःखी ना हो ।। हमारे जीवन की प्रभावना और उद्देश्य -  असतो मा सदगमय ॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥ हे परम,  हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो । मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥ जय माँ भारती, जय भारत भूमि, जय भारतवर्ष, जय हिन्द Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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भारत के वास्तविक शत्रु कौन हैं?
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भारत के वास्तविक शत्रु कौन हैं?
भारत के वास्तविक शत्रु कौन हैं? इस देश में रहने वाले तथाकथित ब्रेनवाश किये हुए लिबरल हिन्दू और तथाकथित सेक्युलर लोग, मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत  की दासता के फलस्वरूप उत्पन्न कनवर्टेड और प्रोग्राम्ड मुस्लिम और इसाई, जिन्हें अपनी जड़ों का भान नहीं है, जो षड़यंत्रकारियों और देशी विदेशी दुश्मनों के हाथ की कठपुतलियां बनकर अपने ही राष्ट्र को खोखला और खंडित करने के लिए जी जान से प्रयासरत हैं। ये सभी 1000 वर्षों की दासता और पिछले 75 वर्षों की कांग्रेस और कम्युनिस्ट अलगाववादियों और भारत की संप्रभुता और विराट गौरवमयी और प्राचीन संस्कृति को समूल नष्ट करने की इच्छा रखने वाले, दोगले, गद्दार और निकृष्टतम मनुष्य रुपी पिशाच हैं। इनके लिए इनके व्यक्तिगत छुद्र स्वार्थ, शत्रुओं के द्वारा फेंकी गयी बोटियाँ और प्रलोभन सबकुछ है, यह अपना जमीर और आत्मा गिरवी रख चुके हैं उनके क़दमों में और इस महान राष्ट्र को पददलित और नष्ट करने में लगे हुए हैं। यह सभी लोग, सदा से ही इस देश और इस महान संस्कृति को नष्ट करनेवाले, इसे पददलित और कुरूप करने वाले, इस राष्ट्र और इसकी समृद्धि और श्रेष्ठता से घृणा करनेवाले और इसे लूटने और बर्बाद करने की चाह रखनेवाले सभी आंतरिक और बाहरी लूटेरों,  विदेशी आक्रान्ताओं,  हमलावरों, और इस राष्ट्र की अखंडता और एकता को भंग करने के नीच इरादे रखनेवाले लोगों की हाथ की कठपुतली रहे हैं। पिछले 1000 वर्षों से, आज यह सभी लोग, इसाई और इस्लामिक राष्ट्रों और आतंकवादी संगठनों के हाथों की कठपुतलियां बनकर अपनी ही मातृभूमि और इसकी परम पूजनीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को मलिन और कुरूप करने में मुख्य उपकरण बने हुए हैं। इस देश का दुर्भाग्य है की इसने अवतारों, श्रेष्ठतम मानवों और देशभक्त वीरों के साथ साथ बेहद शर्मनाक और नीच लोगों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने लाभ के लिए अपनी मातृभूमि का सौदा लुटेरों और वहशी जानवरों के साथ किया है और आज भी कर रहे हैं। आज यह महान देश अलगाववादियों, जाति, धर्म और वोट बैंक की राजनीति करके सत्ता में बने रहने की लिप्सा में हर जघन्य अपराध करनेवाले और राष्ट्र को खोखला करनेवाले  भ्रष्ट और निकृष्ट राजनीतिज्ञों और उनके दलालों और गुलामों से सबसे ज्यादा त्रस्त है। यह दीमक की तरह इस देश की सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक मूल्यों और विरासत को नष्ट करने के भयानक षड़यंत्र में लगे हुए हैं। यह देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है, इस देश को बाहरी दुश्मनों से ही नहीं इन आस्तीन के साँपों और गद्दारों से सबसे ज्यादा खतरा है, सबसे पहले इनका उपचार करना और राष्ट्र को इनकी गद्दारी और दुष्टता के पंजे से मुक्त करना सबसे प्राथमिक कार्य है।
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यह सभी लोग ईसाइयत और इस्लामिक प्रभुत्व की आकांक्षा रखने वाले लोगों के गुलाम और तलवे चाटने वाले जीव बन गये हैं और उनके नीच और दूषित उद्देश्यों और इस राष्ट्र को संकट ग्रस्त रखने और इसे तोड़ने के दुर्भाग्य पूर्ण षड़यंत्र में सहयोगी हैं, सिर्फ व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए। जी हां, इस्लाम, ईसाइयत और कम्युनिज्म की बुनियाद में ही यह है, ऐसा इस्लाम और ईसाइयत के प्रवर्तकों की वजह से नहीं उनके माननेवाले लोगों के पागलपन, राजनैतिक महत्वकांक्षा, सत्ता और शक्ति के उन्माद की वजह से। हजारों साल के हमारे इतिहास में हमारे राष्ट्र  ने कभी भी किसी भी मुल्क पर अपनी सत्ता और प्रभुत्व स्थापित करने के लिए हमला नहीं किया है, हमारी संस्कृति और सनातन परंपरा ने कभी भी किसी भी कौम और संप्रदाय के लोगों को हमारी संस्कृति, और मूल्यों को अपनाने के लिए किसी भी किस्म का कोई भी प्रयास बलपूर्वक, छल पूर्वक और षड्यंत्रपूर्वक नहीं किया है, यह हमारे खून और संस्कार में नहीं रहा कभी भी। यह अलग बात है की आज असंख्य लोग विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के प्रबुद्ध निवासी भारत और भारतीय संस्कृति और इसकी आध्यात्मिक विरासत को अपनाने और इसका अनुसरण करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। तमाम विकसित राष्ट्रों में लाखों लोग सनातन परंपरा में दीक्षित होकर धर्मप्राण जीवन जीने की और अग्रसर हो रहें हैं, हमारी संस्कृति और परंपरा के उद्दात और परम मानवीय गुण सदा से पूरे विश्व में आदरणीय और अनुकरणीय रहे हैं, यह अपने प्रारंभ से लोगों के ह्रदय और आत्मा को प्रभावित करते रहे हैं, आज भी कर रहे हैं, आप स्वयं देख सकते हैं hindu russia  world wide hindu temples सभी लोग स्वेच्छा से भारतीय आध्यात्मिक विरासत को अंगीकार करके जीवन के उच्चतम मूल्यों और रहस्यों का साक्षात्कार कर अपना जीवन धन्य कर रहे हैं, प्रेम और करुणा के वशीभूत होकर, बिना किसी प्रलोभन, लालच या विवशता के, स्वेच्छा से लोग योग, ध्यान, तंत्र साधना पद्धतियों और उपासना के मार्गों पर चल रहे हैं। यह है प्रेम और श्रेष्ठता का प्रभाव, यदि आपमें कुछ भी बेहतर है तो वह लोगों के ह्रदय और आत्मा को स्वतः ही छुएगा और लोग उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे, आपको किसी पर कुछ भी आरोपित करने की जरुरत नहीं है, लेकिन यह बात इस देश के बाहर जन्म लिए सम्प्रदायों और उनके प्रभाव में जीने वाले गुलाम लोग कभी भी नहीं समझ पाए हैं और न समझ सकेंगे कभी भी। प्रेम ही जीवन का केंद्र है और सभी की आंतरिक आकांक्षा प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है,  स्वयं के सत्य को जानने के अलावा कुछ भी मनुष्य को समस्त दुखों और बंधनों से मुक्त नहीं कर सकता है, यही हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी खोज और देन है विश्व को, हमने सारे विश्व को जीवन जीने की कला और जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करने की विधियाँ और साधन उपलब्ध कराएँ हैं। मनुष्यता के इतिहास में इतने महिमामयी आध्यात्मिक पुरुष, योगी और मुक्त पुरुष धरती पर कहीं जन्म नहीं लिए हैं, संपूर्ण विश्व में सभी धर्म और सम्प्रदायों के जनक और प्रवर्तकों ने धर्म की प्रेरणा हमारे मुक्त पुरुषों और हमारी पुन्य सलिला धरती से ग्रहण की है, जीसस अपने प्रकटीकरण और सूली लगने के उपरांत भारत में कश्मीर में ही अपना जीवन व्यतीत किये हैं मृत्यु पर्यंत, उनकी समाधी आज भी वहां मौजूद है। मुहम्मद साहब ने भी हमारे योगियों और साधकों से प्रेरणा ग्रहण की थी, उनके धर्म स्थल मक्का मदीना पर तीर्थयात्रियों द्वारा किये जाने वाले सारे संस्कार और क्रियायें हमारी संस्कृति से प्रेरित हैं, परिक्रमा से लेकर बिना सिले वस्त्र पहनने की परंपरा आदि सब यहाँ से ही लिया गया है, इस्लाम से पहले पूरा  यूरोप और अरबिया प्रकृति पूजक था, स्वयं मुहम्मद एक प्रकृति पूजक परिवार से थे इस्लाम के उद्भव के पूर्व 360 मूर्तियों और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करने वाले लोगों में से थे।
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दूसरों पर शासन करने और उन्हें अपना गुलाम बनाने या उनकी संस्कृति और जीवन मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने की भावना, इच्छा और उद्देश्य हमारे यहाँ कभी भी नहीं रहा है। हम सदा से ज्ञान, विज्ञान, आध्यात्म और धन, धान्य  और समृद्धि से भरपूर रहें हैं, हमें कभी ऐसा करने की जरुरत नहीं पड़ी है, यही हमारी संस्कृति और राष्ट्र की विशेषता है जो इसे विश्व में सबसे मूल्यवान और अनूठा बनाता है और दूसरों के लिए इर्ष्या और नफरत की वजह, लोग क्यूँ खुद को इतना विकसित नहीं करना चाहते? भारत को कोई कभी नहीं मिटा पाया और न कभी भी मिटा पायेगा, यह विश्व की आध्यात्मिक राजधानी थी, है और सर्वदा रहेगी , जब तक इस धरती पर जीवन है। लेकिन हमारी यही सभी खूबियां, गुणवत्ता और अतुलनीय संपत्ति और समृद्धि दुनिया के तमाम लूटेरों, ठगों, लालची और विस्तार और वैभव के आकांक्षियों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है और इसी ने इन तमाम दुर्दांत ठगों, लूटेरों, उपनिवेशवादियों और हमलावरों को इस धरती पर आक्रमण करने और इसे अपना निशाना बनाने के लिए प्रेरित किया है, और हमारे ही देश के गद्दारों और नीच लोगों ने इस लूट और बर्बादी में सहयोग किया है और आज भी यही कर रहे हैं ईसाइयत और इस्लाम, यह दोनों सम्प्रदाय पूरी दुनिया में अपनी बर्बरता, क्रूरता और अमानवीय सोच और कारनामों की वजह से पनपे हैं इनका उद्देश्य अपना प्रचार और प्रसार और बाकी सब का विनाश है, जो इनकी तरह नहीं है, या इन जैसे वहशी, पागल दरिन्दे, अंधे और अज्ञानी और मूढ़ बनने को राजी नहीं हैं। इन दोनों सम्प्रदायों के लोग धार्मिक नहीं है, वे राजनैतिक महत्वकांक्षा से भरे हैं और सारी दुनिया को अपनी वहशत और दहशत के रंग में रंगना चाहते है, और काफी हद तक कामयाब भी हैं। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इस्लाम और ईसाइयत के माननेवाले अपने ही पैगंबरों के खिलाफ रहे है उनके जीवन भर, एक को सूली दे दी, और दूसरे को उम्र भर खत्म करने का षडयंत्र रचते रहे और उनकी मृत्यु के बाद उनके सारे परिवार की हत्या कर दी। इनके माननेवालों ने जब अपने प्रवर्तकों के साथ ही ऐसा किया तो बाकी लोगों के साथ क्या कर सकते थे, इस्लाम हत्या, लूट, बलात्कार के बल पर फैला है और इसाइयों का तरीका पहले यही था अब बदल गए है अब वो दान, कुटिलता, अभावग्रस्त और उपेक्षित लोगों के शोषण और उनपर दया दिखाने  के नाटक को, अपने संप्रदाय में कन्वर्जन के लिए इस्तेमाल करके लोगो को अपने संप्रदाय का हिस्सा बनाने का और लोगों को अपनी ही जड़ों से नफरत करने और उनकी सोच और दृष्टि को विकृत करने का नीच और दुष्टता भरा कार्य कर रहे है। इन दोनों संप्रदाय के मानने वालों ने पिछले 2000 वर्षों में करोड़ों निर्दोष और मासूम लोगों की हत्या की है और लोगों को बलपूर्वक अपने संप्रदाय में शामिल किया है, इन्होंने दूसरी सभ्यता और संस्कृतियों को समूल नष्ट कर दिया अपनी सत्ता और विस्तार की हवस को पूरा करने के लिए। इनका पूरा इतिहास खून खराबे, लूट, हत्या, खूनी जिहाद और बलात्कार से भरा है, सिर्फ अपनी संख्या बढ़ाने और अपने उन्माद और पागलपन से लोगों का जीवन और संस्कृति नष्ट करते हुए, यह आज भी कायम है, यह भयानक हत्यारी सोच है और बेहद घृणास्पद और अमानवीय है। दूसरों की तो छोड़िए यह अपनी ही कौम के लोगो की हत्या और बलात्कार में संलग्न है, सीरिया, यमन, इराक़, ईरान, अफ्रीका, अरब और अन्य इस्लामिक देशों में यह अपने ही कौम के लोगों की हत्या कर रहे है, पूरी धरती पर सबसे विकृत और पाशविक कौम है यह, और ऊपर से बदगुमान और झूठा प्रचार की यह शांतिप्रिय लोग हैं। यह दोनों संप्रदाय धरती को नरक बनाए हुए है, पिछले 2000 सालों से, हमारी संस्कृति को भी नष्ट करने के लिए और यहां के मूल निवासियों को आतंक, लालच, और अन्य अमानवीय तरीके से परिवर्तित करके अपने सम्प्रदायों के विस्तार में लगे हुए है, यह बेहद घृणित और शर्मनाक है, हत्या, बलात्कार, आबादी का विस्फोट, कन्वर्शन, जिहाद, आतंकवाद इनके उपकरण है इनके विस्तार और सत्ता के लिए। इसाई, मिशनरी और चर्च के माध्यम से और इस्लामी लोग अपने धार्मिक उन्माद, लव जेहाद, जनसंख्या विस्फोट, और गैर कानूनी कब्जा करके राष्ट्र के राष्ट्र लील गए है। एक कबीले से शुरू हुआ था इस्लाम और आज धरती पर 57 देश इस्लामिक है, सब के सब जोर जबरदस्ती, लूट, हत्या और बलात्कार के दम पर, यही इनकी हकीकत और तरीका है विस्तार का। इसी सब की बदौलत ईसाइयत और इस्लाम मानने वालों की आबादी इस धरती पर सबसे अधिक है। इनका काम ही है विश्व की श्रेष्ठ और महान संस्कृतियों की हत्या और विलोपन और इनकी बर्बर और असभ्य पशुवत कबीले वाली मानसिकता और जीवन व्यवहार का विस्तार। इन हिंसक, बर्बर और हमलावर और हत्यारी कौमों के बाद सनातन परंपरा के लोग इस धरती पर सबसे अधिक संख्या में है, साथ ही यह धरती पर सबसे शांतिप्रिय और सुसंस्कृत सभ्यता और विचार रखने वाले लोग है, जो इन कुत्सित मानसिकता के लोगों को खटकते हैं।
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हमारी संस्कृति हजारों वर्ष पुरानी है, जब इन सभी का अस्तित्व था ही नहीं, यह सभी हमारी संस्कृति  के ज्ञान और विकास के सामने, सभी हमलावर कौमें आज भी आदिम बर्बर युग की मानसिकता में जी रहे है, लेकिन अब यह सबसे आधुनिक युद्ध तकनीक और हमले के गुप्त और ज्यादा भयानक हथियारों से हमारी संस्कृति और विरासत को नष्ट करने में संलग्न है, इन्हे रोकना और अपनी देव संस्कृति और मूल्यों की रक्षा हमारा परम धर्म है। भारतवर्ष पर पहले भी हमले हुए हैं और आज भी हमारी संस्कृति के विद्रूपण और विलोपन की सारी कोशिशें इन्ही लोगो द्वारा या इनके दलालों और गुलामों द्वारा की जा रही हैं, यह पहले भी असफल हुए और हमेशा रहेंगे, लेकिन पूरा विश्व इनकी शैतानियत और हैवानियत से पीड़ित और त्रस्त है। हमे इनके नीच इरादों और षडयन्त्रों को नष्ट करना होगा, यही पूरी मानवता के हित में है, वर्ना यह पूरे विश्व को अपनी बिमारियों से ग्रस्त और त्रस्त कर रहे हैं, यह बेहद उन्माद ग्रस्त और विक्षिप्त लोग हैं, इनके नीच इरादों में इन्हें सफल नहीं होने देना ही सम्पूर्ण मानव जाति के हित में है। आज इस्लाम, हमारे अलावा इसाईं देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि सभी को अपनी जहालत और जिहाद का शिकार बना रहा है, सारी दुनिया आज इस्लामिक जिहाद और आतंकवाद से बुरी तरह त्रस्त है, यह लोग जहाँ भी ज���ते है, हत्या, लूट, बलात्कार, जनसँख्या विस्फोट आदि हथियारों का इस्तेमाल करके वहां के मूल निवासियों का जीना दूभर कर रहे हैं। यह  लोग, इन सभी देशों में शरणार्थी की हैसियत से आये थे, उन तमाम देशों से, जहाँ इस्लाम और शरिया का प्रभुत्व है से भागकर अपनी जान बचाकर, जहाँ मुसलमान ही मुसलमान की हत्या और बलात्कार कर रहे हैं, सीरिया, यमन, ईरान, इराक, पाकिस्तान, अफ्रीका, और सभी इस्लामिक देश वहां वो एक दुसरे का ही खून बहा रहे हैं और भागकर दुसरे देशों में शरण की भीख मांगते हैं। दुसरे राष्ट्रों द्वारा इन्हें शरण देने पर ही,  कुछ समय के अंदर यह वहां की सरकार कानून और व्यवस्था को मिटाकर अपना कानून और व्यवस्था बनाने की मांग करने लगते हैं, इसी वजह से कुछ देशों ने इस्लाम को और मुसलमानों को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। दुनिया के सबसे ताक़तवर मुल्कों में से चीन और जापान में मुसलमानों को स्थायी नागरिकता नहीं दी जाती है, और न ही उन्हें कोई विशेषाधिकार दिए जाते हैं, ऐसा, अमेरिका और रूस में भी किया जा रहा है। आज सारे विश्व में इसाई और इस्लामिक देशों के बीच खूनी संघर्ष कई दशकों से चल रहा है, और वजह है, सत्ता और संसाधनों पर आधिपत्य और अपने संप्रदाय का प्रभुत्व कायम करने की महत्वाकांक्षा,  दूसरे संप्रदाय के लोगों को कन्वर्ट करके या हत्या करके अपने संप्रदाय में करना। यह लोग बेहद क्रूर और हेवानियत भरे कारनामे अंजाम देने में सैकड़ों वर्षों से लगे हुए हैं और यह आज भी जारी है, और पता नहीं यह हैवानियत का खेल कब रुकेगा और कब इन दुराग्रही, लालची, दुष्ट, अंधे और मूर्ख लोगों की आँखें खुलेगी। दुनिया के बहुत सारे देश इनकी असलियत पहचान कर इनसे अपने राष्ट्र और जनता को सुरक्षित करने के लिए इनका बहिष्कार और देश निकाला कर दिया है, यहाँ तक की पूरी तरह मुसलमान अरब मुल्कों से भी पाकिस्तान और अन्य मुल्कों के संदिग्ध मुसलमानों को देश से बाहर कर दिया जा रहा है। अभी हाल ही मे श्रीलंका में इस्लामिक आतंकवादियों ने करीब 350 लोगों को बम विस्फोट से उड़ा दिया, आज श्रीलंका में इस्लाम को माननेवालों के खिलाफ बेहद गुस्सा और नफरत है, वहां की मस्जिदों को बंद कर दिया गया है और वहां बाहर से आये हुए सभी मुसलमानों को उनके मूल स्थान, जैसे पाकिस्तान और अन्य इस्लामिक देशों की और जाने के लिए बाध्य किया जा रहा है, बाहर भेजा जा रहा है। ऐसा म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ किया गया और ऐसा संपूर्ण विश्व में हो रहा है, कोई भी इनके साथ रहम, प्रेम और मानवता दिखने की भयानक कीमत चुकाने के लिए तैयार नहीं है, यह लोग बेहद कृतघ्न और अमानवीय सिद्ध हो रहे हैं। धरती को इनके दुष्ट और आतयायी पंजे से बचाना पूरी मानवता के हित में है, और हमे इसके लिए जागरूक और समर्थ होना पड़ेगा और इनके शैतानी इरादों को नष्ट करना होगा, आज यह सिर्फ भारत की नहीं पूरी विश्व की समस्या है, और इसे हम सबको मिलकर निर्मूल करना है, तभी यह विश्व एक परिवार की तरह, सारी विविधताओं और संस्कृतियों का महान आयोजन और समारोह बन पायेगा। आज सनातन परंपरा विश्व के सभी शांतिप्रिय और जीवन के उच्चतर आयामों को जीने की अभिलाषा रखने वाले और जीवन के परम सत्य की खोज करने वाले सभी जिज्ञासुओं, भक्तों और साधकों के लिए सबसे प्रथम और अंतिम गंतव्य बन चुका है। आज विश्व में सभी विकसित और विकासशील राष्ट्र, रूस, अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस और अफ्रीका में अनगिनत लोग सनातन परंपरा को अंगीकार करके जीवन की मधुरता और आंतरिक सत्य को प्राप्ति की दिशा में गतिमान हो रहे हैं, बिना किसी प्रचार, प्रलोभन या बल प्रयोग के, यही हमारी सनातन परंपरा और भारतीय संस्कृति का प्रभाव है, यह सभी के ह्रदय और आत्मा को छूती है और उन्हें आंतरिक रूपंतार्ण में सहयोगी होकर जीवन के परम सत्य को उपलब्ध करने में सहयोगी बनती है जो मनुष्य जीवन धारण करने के परम उद्देश्य और लक्ष्य है। आइये अपनी 15000 वर्षों से अधिक प्राचीन और सर्वोत्तम मानवीय संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत को इन दुराग्रही, आततायी और दुष्ट और जाहिल बर्बर लोगों से सुरक्षित करें और जो पिछले हज़ार साल में इस देश और पूरे विश्व में हुआ है उसकी पुनरावृत्ति होने की संभावना और आशंका को निर्मूल करें और पुनः सनातन धर्म और परंपरा को पुष्ट और पुनर्स्थापित करें इसके सम्पूर्ण गौरव और वैभव में।
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हमारी संस्कृति एक वैश्विक संस्कृति है जिसने "वसुधैव कुटुम्बकम" का उपदेश और सन्देश दिया, हमारी संस्कृति सभी के कल्याण और उत्थान की प्रेरणा और संकल्प से युक्त है, यही इसे विश्व की सभी सभ्यताओं और संस्कृतियों से महान बनाती है, आओ इसके गौरव की  पुनः प्रतिष्ठा करें। हमारा देश भारत आज विश्व में पुनः प्रतिष्ठा पा रहा है, एक सुदृढ़ और प्रभावी नेतृत्व में और हमें इसे पुनः इसके प्राचीन गौरव और महिमा के साथ पुनः स्थापित करने से कोई भी नहीं रोक सकता है, हमें यह संकल्प करना होगा की हमारे राष्ट्र की गरिमा और गौरव और अखंडता अक्षुण्ण बनी रहे। हमारी भावना और प्रार्थना समस्त विश्व के कल्याण और उत्थान के लिए - ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा- कश्चिद्दुः- खभाग्भवेत्- । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ (उपनिषद् से साभार, संस्कृत भाषा में) Meaning  in Hindi (हिंदी अर्थ)  - ॐ सब सुखी हों  सब स्वस्थ हों । सब शुभ को पहचान सकें  कोई प्राणी दुःखी ना हो ।। हमारे जीवन की प्रभावना और उद्देश्य -  असतो मा सदगमय ॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥ हे परम,  हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो । मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥ जय माँ भारती, जय भारत भूमि, जय भारतवर्ष, जय हिन्द Read the full article
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amazingsubahu · 6 years ago
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भारत के वास्तविक शत्रु कौन हैं?
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भारत के वास्तविक शत्रु कौन हैं?
भारत के वास्तविक शत्रु कौन हैं? इस देश में रहने वाले तथाकथित ब्रेनवाश किये हुए लिबरल हिन्दू और तथाकथित सेक्युलर लोग, मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत  की दासता के फलस्वरूप उत्पन्न कनवर्टेड और प्रोग्राम्ड मुस्लिम और इसाई, जिन्हें अपनी जड़ों का भान नहीं है, जो षड़यंत्रकारियों और देशी विदेशी दुश्मनों के हाथ की कठपुतलियां बनकर अपने ही राष्ट्र को खोखला और खंडित करने के लिए जी जान से प्रयासरत हैं। ये सभी 1000 वर्षों की दासता और पिछले 75 वर्षों की कांग्रेस और कम्युनिस्ट अलगाववादियों और भारत की संप्रभुता और विराट गौरवमयी और प्राचीन संस्कृति को समूल नष्ट करने की इच्छा रखने वाले, दोगले, गद्दार और निकृष्टतम मनुष्य रुपी पिशाच हैं, इनके लिए इनके व्यक्तिगत छुद्र स्वार्थ, शत्रुओं के द्वारा फेंकी गयी बोटियाँ और प्रलोभन सबकुछ है, यह अपना जमीर और आत्मा गिरवी रख चुके हैं उनके क़दमों में और इस महान राष्ट्र को पददलित और नष्ट करने में लगे हुए हैं। यह सभी लोग, सदा से ही इस देश और इस महान संस्कृति को नष्ट करनेवाले, इसे पददलित और कुरूप करने वाले, इस राष्ट्र और इसकी समृद्धि और श्रेष्ठता से घृणा करनेवाले और इसे लूटने और बर्बाद करने की चाह रखनेवाले सभी आंतरिक और बाहरी लूटेरों,  विदेशी आक्रान्ताओं,  हमलावरों, और इस राष्ट्र की अखंडता  और एकता को भंग करने के नीच इरादे रखनेवाले लोगों की हाथ की कठपुतली रहे हैं। पिछले 1000 वर्षों से, आज यह सभी लोग, इसाई और इस्लामिक राष्ट्रों और आतंकवादी संगठनों के हाथों की कठपुतलियां बनकर अपनी ही मातृभूमि और इसकी परम पूजनीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को मलिन और कुरूप करने में मुख्य उपकरण बने हुए हैं। इस देश का दुर्भाग्य है की इसने अवतारों, श्रेष्ठतम मानवों और देशभक्त वीरों के साथ साथ बेहद शर्मनाक और नीच लोगों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने लाभ के लिए अपनी मातृभूमि का सौदा लूटेरों और वहशी जानवरों के साथ किया है और आज भी कर रहे हैं। आज यह महान देश अलगाववादियों, जाति, धर्म और वोट बैंक की राजनीति करके सत्ता में बने रहने की लिप्सा में हर जघन्य अपराध करनेवाले और राष्ट्र को खोखला करनेवाले  भ्रष्ट और निकृष्ट राजनीतिज्ञों और उनके दलालों और गुलामों से सबसे ज्यादा त्रस्त है, यह दीमक की तरह इस देश की सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक मूल्यों और विरासत को नष्ट करने के भयानक षड़यंत्र में लगे हुए हैं। यह देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है, इस देश को बाहरी दुश्मनों से ही नहीं इन आस्तीन के साँपों और गद्दारों से सबसे ज्यादा खतरा है, सबसे पहले इनका उपचार करना और राष्ट्र को इनकी गद्दारी और दुष्टता के पंजे से मुक्त करना सबसे प्राथमिक कार्य है।
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यह सभी लोग ईसाइयत और इस्लामिक प्रभुत्व की आकांक्षा रखने वाले लोगों के गुलाम और तलवे चाटने वाले जीव बन गये हैं और उनके नीच और दूषित उद्देश्यों और इस राष्ट्र को संकट ग्रस्त रखने और इसे तोड़ने के दुर्भाग्य पूर्ण षड़यंत्र में सहयोगी हैं, सिर्फ व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए। जी हां, इस्लाम, ईसाइयत और कम्युनिज्म की बुनियाद में ही यह है, ऐसा इस्लाम और ईसाइयत के प्रवर्तकों की वजह से नहीं उनके माननेवाले लोगों के पागलपन, राजनैतिक महत्वकांक्षा, सत्ता और शक्ति के उन्माद की वजह से। हजारों साल के हमारे इतिहास में हमारे राष्ट्र  ने कभी भी किसी भी मुल्क पर अपनी सत्ता और प्रभुत्व स्थापित करने के लिए हमला नहीं किया, हमारी संस्कृति और सनातन परंपरा ने कभी भी किसी भी कौम और संप्रदाय के लोगों को हमारी संस्कृति, और मूल्यों को अपनाने के लिए किसी भी किस्म का कोई भी प्रयास बलपूर्वक, छल पूर्वक और षड्यंत्रपूर्वक नहीं किया है, यह हमारे खून और संस्कार में नहीं रहा कभी भी। यह अलग बात है की आज सारे विश्व में भारत और भारतीय संस्कृति और इसकी आध्यात्मिक विरासत को अपनाने और इसका अनुसरण करने की ओर अग्रसर हुई है, तमाम विकसित राष्ट्रों में लाखों लोग सनातन परंपरा में दीक्षित होकर धर्मप्राण जीवन जीने की और अग्रसर हो रहें हैं, हमारी संस्कृति और परंपरा के उद्दात और परम मानवीय गुण सदा से पुरे विश्व में आदरणीय और अनुकरणीय रहे हैं, यह अपने प्रारंभ से लोगों के ह्रदय और आत्मा को प्रभावित करते रहे हैं, आज भी कर रहे हैं, आप स्वयं देख सकते हैं hindu russia  world wide hindu temples सभी लोग स्वेच्छा से भारतीय आध्यात्मिक विरासत को अंगीकार करके जीवन के उच्चतम मूल्यों और रहस्यों का साक्षात्कार कर अपना जीवन धन्य कर रहे हैं, प्रेम और करुणा के वशीभूत होकर, बिना किसी प्रलोभन, लालच या विवशता के, स्वेच्छा से लोग योग, साधना पद्धतियों और उपासना के मार्गों पर चल रहे हैं। यह है प्रेम और श्रेष्ठता का प्रभाव, यदि आपमें कुछ भी बेहतर है तो वह लोगों के ह्रदय और आत्मा को स्वतः ही छुएगा और लोग उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे, आपको किसी पर कुछ भी आरोपित करने की जरुरत नहीं है, लेकिन यह बात इस देश के बाहर जन्म लिए सम्प्रदायों  और उनके प्रभाव में जीने वाले गुलाम लोग कभी भी नहीं समझ पाए हैं और न समझ सकेंगे कभी भी। प्रेम ही जीवन का केंद्र है और सभी की आंतरिक आकांक्षा प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है,  स्वयं के सत्य को जानने के अलावा कुछ भी मनुष्य को समस्त दुखों और बंधनों से मुक्त नहीं कर सकता है, यही हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी खोज और देन है विश्व को, हमने सारे विश्व को जीवन जीने की कला और जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करने की विधियाँ और साधन उपलब्ध कराएँ हैं। मनुष्यता के इतिहास में इतने महिमामयी आध्यात्मिक पुरुष, योगी और मुक्त पुरुष धरती पर कहीं जन्म नहीं लिए हैं, संपूर्ण विश्व में सभी धर्म और सम्प्रदायों के जनक और प्रवर्तकों ने धर्म की प्रेरणा हमारे मुक्त पुरुषों और हमारी पुन्य सलिला धरती से ग्रहण की है, जीसस अपने प्रकटीकरण और सूली लगने के उपरांत भारत में कश्मीर में ही अपना जीवन व्यतीत किये हैं मृत्यु पर्यंत, उनकी समाधी आज भी वहां मौजूद है। मुहम्मद साहब ने भी हमारे योगियों और साधकों से प्रेरणा ग्रहण की थी, उनके धर्म स्थल मक्का मदीना पर तीर्थयात्रियों द्वारा किये जाने वाले सारे संस्कार और क्रियायें हमारी संस्कृति से प्रेरित हैं, परिकृमा से लेकर बिना सिले वस्त्र पहनने की परंपरा आदि सब यहाँ से ही लिया गया है, इस्लाम से पहले पूरा  यूरोप और अरबिया प्रकृति पूजक था, स्वयं मुहम्मद एक प्रकृति पूजक परिवार से थे इस्लाम के उद्भव के पूर्व 360 मूर्तियों और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करने वाले लोगों में से थे।
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दूसरों पर शासन करने और उन्हें अपना गुलाम बनाने या उनकी संस्कृति और जीवन मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने की भावना, इच्छा और उद्देश्य हमारे यहाँ कभी भी नहीं रहा है, हम सदा से ज्ञान, विज्ञान, आध्यात्म और धन, धान्य  और समृद्धि से भरपूर रहें हैं, हमें कभी ऐसा करने की जरुरत नहीं पड़ी है, यही हमारी संस्कृति और राष्ट्र की विशेषता है जो इसे विश्व में सबसे मूल्यवान और अनूठा बनाता है और दूसरों के लिए इर्ष्या और नफरत की वजह, लोग क्यूँ खुद को इतना विकसित नहीं करना चाहते? भारत को कोई कभी नहीं मिटा पाया और न कभी भी मिटा पायेगा, यह विश्व की आध्यात्मिक राजधानी थी, है और सर्वदा रहेगी , जब तक इस धरती पर जीवन है। लेकिन हमारी यही सभी खूबियां, गुणवत्ता और अतुलनीय संपत्ति और समृद्धि दुनिया के तमाम लूटेरों, ठगों, लालची और विस्तार और वैभव के आकांक्षियों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है और इसी ने इन तमाम दुर्दांत ठगों, लूटेरों, उपनिवेशवादियों और हमलावरों को इस धरती पर आक्रमण करने और इसे अपना निशाना बनाने के लिए प्रेरित किया है, और हमारे ही देश के गद्दारों और नीच लोगों ने इस लूट और बर्बादी में सहयोग किया है और आज भी यही कर रहे हैं यह दोनों सम्प्रदाय पूरी दुनिया में अपनी बर्बरता, क्रूरता और अमानवीय सोच और कारनामों की वजह से पनपे हैं इनका उद्देश्य अपना प्रचार और प्रसार और बाकी सब का विनाश है जो इनकी तरह नहीं है, या इन जैसे वहशी, पागल दरिन्दे, अंधे और अज्ञानी और मूढ़ बनने को राजी नहीं हैं। इन दोनों सम्प्रदायों के लोग धार्मिक नहीं है, वे राजनैतिक महत्वकांक्षा से भरे हैं और सारी दुनिया को अपनी वहशत और दहशत के रंग में रंगना चाहते है, और काफी हद तक कामयाब भी हैं। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इस्लाम और ईसाइयत के माननेवाले अपने ही पैगंबरों के खिलाफ रहे है उनके जीवन भर, एक को सूली दे दी, और दूसरे को उम्र भर खत्म करने का षडयंत्र रचते रहे और उनकी मृत्यु के बाद उनके सारे परिवार की हत्या कर दी। इनके माननेवालों ने जब अपने प्रवर्तकों के साथ ही ऐसा किया तो बाकी लोगों के साथ क्या कर सकते थे, इस्लाम हत्या, लूट, बलात्कार के बल पर फैला है और इसाइयों का तरीका पहले यही था अब बदल गए है अब वो दान, कुटिलता, अभावग्रस्त और उपेक्षित लोगों के शोषण और उनपर दया दिखाने  के नाटक को, अपने संप्रदाय में कन्वर्जन के लिए इस्तेमाल करके लोगो को अपने संप्रदाय का हिस्सा बनाने का और लोगों को अपनी ही जड़ों से नफरत करने और उनकी सोच और दृष्टि को विकृत करने का नीच और दुष्टता भरा कार्य कर रहे है। इन दोनों संप्रदाय के मानने वालों ने पिछले 2000 वर्षों में करोड़ों निर्दोष और मासूम लोगों की हत्या की है और लोगों को बलपूर्वक अपने संप्रदाय में शामिल किया है, इन्होंने दूसरी सभ्यता और संस्कृतियों को समूल नष्ट कर दिया अपनी सत्ता और विस्तार की हवस को पूरा करने के लिए। इनका पूरा इतिहास खून खराबे, लूट, हत्या, खूनी जिहाद और बलात्कार से भरा है, सिर्फ अपनी संख्या बढ़ाने और अपने उन्माद और पागलपन से लोगों का जीवन और संस्कृति नष्ट करते हुए, यह आज भी कायम है, यह भयानक हत्यारी सोच है और बेहद घृणास्पद और अमानवीय है। दूसरों की तो छोड़िए यह अपनी ही कौम के लोगो की हत्या और बलात्कार में संलग्न है, सीरिया, यमन, इराक़, ईरान, अफ्रीका, अरब और अन्य इस्लामिक देशों में यह अपने ही कौम के लोगों की हत्या कर रहे है, पूरी धरती पर सबसे विकृत और पाशविक कौम है यह, और ऊपर से बदगुमान और झूठा प्रचार की यह शांतिप्रिय लोग हैं। यह दोनों संप्रदाय धरती को नरक बनाए हुए है, पिछले 2000 सालों से, हमारी संस्कृति को भी नष्ट करने के लिए और यहां के मूल निवासियों को आतंक, लालच, और अन्य अमानवीय तरीके से अपने सम्प्रदायों के विस्तार में लगे हुए है, यह बेहद घृणित और शर्मनाक है, हत्या, बलात्कार, आबादी का विस्फोट, कन्वर्शन, जिहाद, आतंकवाद इनके उपकरण है इनके विस्तार और सत्ता के लिए। इसाई, मिशनरी और चर्च के माध्यम से और इस्लामी लोग अपने धार्मिक उन्माद, लव जेहाद, जनसंख्या विस्फोट, और गैर कानूनी कब्जा करके राष्ट्र के राष्ट्र लील गए है। एक कबीले से शुरू हुआ था इस्लाम और आज धरती पर 57 देश इस्लामिक है, सब के सब जोर जबरदस्ती, लूट, हत्या और बलात्कार के दम पर, यही इनकी हकीकत और तरीका है विस्तार का। इसी सब की बदौलत ईसाइयत और इस्लाम मानने वालों की आबादी इस धरती पर सबसे अधिक है। इनका काम ही है विश्व की श्रेष्ठ और महान संस्कृतियों की हत्या और विलोपन और इनकी बर्बर और असभ्य पशुवत कबीले वाली मानसिकता और जीवन व्यवहार का विस्तार। इन हिंसक, बर्बर और हमलावर और हत्यारी कौमों के बाद सनातन परंपरा के लोग इस धरती पर सबसे अधिक संख्या में है, साथ ही यह धरती पर सबसे शांतिप्रिय और सुसंस्कृत सभ्यता और विचार रखने वाले लोग है, जो इन कुत्सित मानसिकता के लोगों को खटकते हैं।
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हमारी संस्कृति हजारों वर्ष पुरानी है, जब इन सभी का अस्तित्व था ही नहीं, यह सभी हमारी संस्कृति  के ज्ञान और विकास के सामने, सभी हमलावर कौमें आज भी पाषाण युग में जी रहे है, लेकिन अब यह सबसे आधुनिक युद्ध तकनीक और हमले के गुप्त और ज्यादा भयानक हथियारों से हमारी संस्कृति और विरासत को नष्ट करने में संलग्न है, इन्हे रोकना और अपनी देव संस्कृति और मूल्यों की रक्षा हमारा परम धर्म है। भारतवर्ष पर पहले हुए हमले और आज भी हमारी संस्कृति के विद्रूपण और विलोपन की सारी कोशिशें इन्ही लोगो द्वारा या इनके दलालों और गुलामों द्वारा की जा रही हैं, यह पहले भी असफल हुए और हमेशा रहेंगे, लेकिन पूरा विश्व इनकी शैतानियत और हैवानियत से पीड़ित और त्रस्त है, हमे इनके नीच इरादों और षडयन्त्रों को नष्ट करना होगा, यही पूरी मानवता के हित में है, वर्ना यहपूरे विश्व को अपनी बिमारियों से ग्रस्त और त्रस्त कर रहे हैं, यह बेहद उन्माद ग्रस्त और विक्षिप्त लोग हैं, इनके नीच इरादों में इन्हें सफल नहीं होने देना ही सम्पूर्ण मानव जाति के हित में है। आज इस्लाम, हमारे अलावा इसाईं देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि सभी को अपनी जहालत और जिहाद का शिकार बना रहा है, सारी दुनिया आज इस्लामिक जिहाद और आतंकवाद से बुरी तरह त्रस्त है, यह लोग जहाँ भी जाते है, हत्या, लूट, बलात्कार, जनसँख्या विस्फोट आदि हथियारों का इस्तेमाल करके वहां के मूल निवासियों का जीना दूभर कर रहे हैं। यह  लोग, इन सभी देशों में शरणार्थी की हैसियत से आये थे, उन तमाम देशों से, जहाँ इस्लाम और शरिया का प्रभुत्व है से भागकर अपनी जान बचाकर, जहाँ मुसलमान ही मुसलमान की हत्या और बलात्कार कर रहे हैं, सीरिया, यमन, ईरान, इराक, पाकिस्तान, अफ्रीका, और सभी इस्लामिक देश वहां वो एक दुसरे का ही खून बहा रहे हैं और भागकर दुसरे देशों में शरण की भीख मांगते हैं। दुसरे राष्ट्रों द्वारा इन्हें शरण देने पर ही,  कुछ समय के अंदर यह वहां की सरकार कानून और व्यवस्था को मिटाकर अपना कानून और व्यवस्था बनाने की मांग करने लगते हैं, इसी वजह से कुछ देशों ने इस्लाम को और मुसलमानों को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है, दुनिया के सबसे ताक़तवर मुल्कों में से चीन और जापान में मुसलमानों को स्थायी नागरिकता नहीं दी जाती है, और न ही उन्हें कोई विशेषाधिकार दिए जाते हैं, ऐसा, अमेरिका और रूस में भी किया जा रहा है। आज सारे विश्व में इसाई और इस्लामिक देशों के बीच खूनी संघर्ष कई दशकों से चल रहा है, और वजह है, सत्ता और संसाधनों पर आधिपत्य और अपने संप्रदाय का प्रभुत्व कायम करने की महत्वाकांक्षा,  दुसरे संप्रदाय के लोगों को कन्वर्ट करके या हत्या करके अपने संप्रदाय में करना, यह लोग बेहद क्रूर और हेवानियत भरे कारनामे अंजाम देने में सैकड़ों वर्षों से लगे हुए हैं और यह आज भी जारी है, और पता नहीं यह हैवानियत का खेल कब रुकेगा और कब इन दुराग्रही, लालची, दुष्ट, अंधे और मूर्ख लोगों की आँखें खुलेगी। दुनिया के बहुत सारे देश इनकी असलियत पहचान कर इनसे अपने राष्ट्र और जनता को सुरक्षित करने के लिए इनका बहिष्कार और देश निकाला कर दिया है, यहाँ तक की पूरी तरह मुसलमान अरब मुल्कों से भी पाकिस्तान और अन्य मुल्कों के संदिग्ध मुसलमानों को देश से बाहर कर दिया जा रहा है।  धरती को इनके दुष्ट और आतयायी पंजे से बचाना पूरी मानवता के हित में है, और हमे इसके लिए जागरूक और समर्थ होना पड़ेगा और इनके शैतानी इरादों को नष्ट करना होगा, आज यह सिर्फ भारत की नहीं पूरी विश्व की समस्या है, और इसे हम सबको मिलकर निर्मूल करना है, तभी यह विश्व एक परिवार की तरह, सारी विविधताओं और संस्कृतियों का महान आयोजन और समारोह बन पायेगा। आज सनातन परंपरा विश्व के सभी शांतिप्रिय और जीवन के उच्चतर आयामों को जीने की अभिलाषा रखने वाले और जीवन के परम सत्य की खोज करने वाले सभी जिज्ञासुओं, भक्तों और साधकों के लिए सबसे प्रथम और अंतिम गंतव्य बन चुका है। आज विश्व में सभी विकसित और विकासशील राष्ट्र, रूस, अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस और अफ्रीका में अनगिनत लोग सनातन परंपरा को अंगीकार करके जीवन की मधुरता और आंतरिक सत्य को प्राप्ति की दिशा में गतिमान हो रहे हैं, बिना किसी प्रचार, प्रलोभन या बल प्रयोग के, यही हमारी सनातन परंपरा और भारतीय संस्कृति का प्रभाव है, यह सभी के ह्रदय और आत्मा को छूती है और उन्हें आंतरिक रूपंतार्ण में सहयोगी होकर जीवन के परम सत्य को उपलब्ध करने में सहयोगी बनती है जो मनुष्य जीवन धारण करने के परम उद्देश्य और लक्ष्य है। आइये अपनी 15000 वर्षों से अधिक प्राचीन और सर्वोत्तम मानवीय संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत को इन दुराग्रही, आततायी और दुष्ट और जाहिल बर्बर लोगों से सुरक्षित करें और जो पिछले हज़ार साल में इस देश और पुरे विश्व में हुआ है उसकी पुनरावृत्ति होने की संभावना और आशंका को निर्मूल करें और पुनः सनातन धर्म और परंपरा को पुष्ट और पुनर्स्थापित करें इसके सम्पूर्ण गौरव और वैभव में।
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यह एक वैश्विक संस्कृति है जिसने "वसुधैव कुटुम्बकम" का उपदेश और सन्देश दिया, हमारी संस्कृति सभी के कल्याण और उत्थान की प्रेरणा और संकल्प से युक्त है, येही इसे विश्व की सभी सभ्यताओं और संस्कृतियों से महान बनाती है, आओ इसके गौरव की  पुनः प्रतिष्ठा करें। हमारा देश भारत आज विश्व में पुनः प्रतिष्ठा पा रहा है, एक सुदृढ़ और प्रभावी नेतृत्व में और हमें इसे पुनः इसके प्राचीन गौरव और महिमा के साथ पुनः स्थापित करने से कोई भी नहीं रोक सकता है, हमें यह संकल्प करना होगा की हमारे राष्ट्र की गरिमा और गौरव और अखंडता अक्षुण्ण बनी रहे। हमारी भावना और प्रार्थना समस्त विश्व के कल्याण और उत्थान के लिए - ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा- कश्चिद्दुः- खभाग्भवेत्- । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ (उपनिषद् से साभार, संस्कृत भाषा में) Meaning  in Hindi (हिंदी अर्थ)  - ॐ सब सुखी हों  सब स्वस्थ हों । सब शुभ को पहचान सकें  कोई प्राणी दुःखी ना हो ।। हमारे जीवन की प्रभावना और उद्देश्य -  असतो मा सदगमय ॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥ हे परम,  हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो । मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥ जय माँ भारती, जय भारत भूमि, जय भारतवर्ष, जय हिन्द Read the full article
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