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भारत के वैदिक धर्म गर्न्थो में आशीर्वाद ओर श्राप शब्दो का बहुतायत से प्रयोग किया गया है । अमुक ऋषी के आशीर्वाद से यह घटित हुआ । अमुक ऋषि के श्राप से यह हो गया । आज के वैज्ञानिक युग मे व्यक्ति इसको कोई महत्व नही देते । क्योकि वैज्ञानिक चिंतन केवल भोतिक शरीर तक सीमित है। जन्म म्रत्यु भोग बस मानव चितन यहां तक सीमित होकर रह गया है । किंतु वैदिक चितन भोतिक शरीर को साधन मानकर जीवन का सार्थक चितन करता था । ब्रह्मांड में क्या है कोंन कोन से ग्रह हैं सूर्य चन्द्रमा उनकी दूरी ओर व्यवस्था मानव जीवन आत्मा परमात्मा सभी का प्रगटीकरण वैदिक ग्रथो में किया गया ।
वैदिक ऋषियोँ द्वारा ब्रह्मांड की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारियां बिना किसी यंत्र के केवल भोतिक शरीर द्वारा अर्जित की गई । आखिर इस भोतिक शरीर मे ऐसा क्या वास्तव में इस भोतिक शरीर मे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सूचनाएं संग्रहित है किंतु उनको प्राप्त करने के लिए सबसे बड़ा यंत्र है सत्य मन वाणी कर्म में पूर्ण ��त्य , । सत्य से आत्मबल ,आत्मबल से तपस्या , तपस्या से सिद्धि , सिद्धि से उपलब्धि ।
सत्य धारण किये आध्यत्मिक व्यक्ति का एक शब्द आशीर्वाद मानव को शिखर तक पहुचां देगा एक शब्द श्राप भोतिक शरीर को समाप्त कर देगा किन्तु आज के युग मे इस प्रकार के ऋषि योगी सन्तों के दर्शन दुर्लभ है ।
आशीर्वाद ओर श्राप एक रहस्य ।
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यदि नथुनों से वायु का प्रवाह कुछ सेकेण्डों के लिए रोक दिया जाए तो इस भोतिक शरीर मे चेतना की कल्पना नही की जा सकती है तातपर्य भोतिक शरीर मे जीवन हमारे नही किसी दूसरे के अधीन है । जब जीवन दूसरे के अधीन तब निश्चित हम किसी सर्व शक्तिमान के नियंत्रण में कार्य कर रहे हैं भोतिक शरीर और चेतना दोनों अलग अलग है यह चेतना ही जीवन है यही आत्मा है भोतिक शरीर केवल उसका निवास जिस प्रकार घर से हमारा जुड़ाव है ठीक इसी प्रकार जीवन का शरीर से, कर्म ही चेतना के पथ निर्देशक हैं । भोतिक शरीर के इन्द्रिय कर्म ही जीवन को मुक्ति मार्ग पर ले जा सकते हैं । इसलिए कर्म जीवन के लिए ,भोतिक शरीर को पंच तत्व में विलीन होकर यही रहना है जीवन अपनी यात्रा पर है उसे सत्कर्मो की शक्ति चाहिए , वह भोतिक जगत से बाहर ,अनंत अनंत दूर तक जाना चाहता है ।
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आध्यत्मिक संरचनाओं में जीवन का संदेश
सूर्य उगता है डूबता है ��िर उगता है फिर डूबता है यह क्रम निरतंर । ठीक इसी प्रकार जन्म फिर मृत्यु फिर जन्म फिर मृत्यु यह क्रम भी निरन्तर । पुनर्जन्म नित्य है , कर्म नित्य ,कर्मफल नित्य । यदि किसी ने सरसो का बीज नही देखा तो वह कंकड़ समझेगा , सरसो के बीज से पुष्प आछदित सुंदर पोधे की कल्पना भी नही कर सकता । यह जीवन का क्रम नित्य ओर निरतंर है ।
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जीवन ऊर्जा आत्मा --जीवन और भौतिक शरीर पृथक पृथक --भौतिक शरीर को छोडकर जीवन अपनी अनन्त यात्रा पर ---–------------------------///--------------------------------
सभी जीवधरयो के भौतिक शरीर मे जीवन ऊर्जा है जो जन्म से मरण तक भौतिक शरीर को गतिशील बनाये रखती है । इस जीवन ऊर्जा को सामान्य रूप से चेतना कहते हैं ।यह जीवन ऊर्जा एक सत्य कणों का पुंज है । मानव शरीर मे जीवन का प्रवेश स्त्री पुरुष के संयुग्मन से नही बाह्य रूप से होता है । स्त्री पुरुष का संयुग्मन केवल भौतिक भ्रूण संरचना तक ही सीमित है यानी भौतिक शरीरों के संयुग्मन से केवल भौतिक शरीर का ही निर्माण होता है । इस भौतिक भ्रूण में जीवन का प्रवेश उसके विकाश क्रम पर निर्भर करता है । भ्रूण में जीवन का प्रवेश 2से 3 माह के अंदर बाह्य रूप स्त्री शरीर के बाह्य रन्ध्रों द्वारा होता है । इस प्रकार भौतिक शरीर और जीवन दोनों पृथक पृथक है । शुक्रणु का अंडे में प्रवेश ओर भ्रूण का निर्माण भौतिक शरीर मे माता पिता के गुणों का प्रवाह है । भौतिक शरीर की संरचना गुण आदि अनुवांशिक होते हैं । यह सब भौतिक शरीर तक सीमित है । जीवन जिसे मेने जीवन ऊर्जा कहा उस पर आनुवंशिकता का कोई प्रभाव नही होता । जीवन पूर्णतःस्वतंत्र रूप से भौतिक शरीर रूपी घर मे निवास करता है भौतिक शरीर मे चेतना जीवन ऊर्जा या कहें जीवन है । हमारे आदि ग्रथो में आत्मा शब्द वास्तव में जीवन ऊर्जा है । इस ऊर्जा के भौतिक शरीर से बाह्य जगत में जाने पर भौतिक शरीर मृत हो जाता है । विज्ञान या जैव वैज्ञानिक भौतिक शरीर का निर्माण कर पाने में सक्षम है किंतु जीवन का प्रवेश उस शरीर मे बाहय रूप से ही होगा । किसी भी भौतिक शरीर मे अनंत काल तक रोके रहने में वैज्ञानिक सछम नही है । भौतिक शरीर की आयु निर्धारित नही यह इस बात पर निर्भर है कि जीवन किस समय तक इस भौतिक शरीर मे रहना चाहता है । इस प्रकार जीवन के भौतिक शरीर मे रहने की अवधि ही उस शरीर की आयु है ।हम पढ़ते हैं सुनते हैं देखते हैं कि फलां सन्त एक हजार वर्ष तक जीवित रहे यह अतिश्योक्ति नही यह मिथ्या भी नही क्योकि यह भौतिक शरीर नही जीवन यानी जीवन ऊर्जा पर निर्भर करता है । आज भी कई लोग 150 वर्ष तक जीवित रहते हैं कुछ जन्म लेते ही समाप्त कुछ थोड़ी अवधि कुछ 50 से 60 कुछ 70 से 90 यानी अभी भी 200 वर्ष तक के बारे में प्रमाण मिलते हैं जबकि धरा प्रकृति का संतुलन असन्तुलित होता जा रहा है । कोलाहल ओर अमर्यादित भौतिक शरीर अशांत होकर विचरण कर रहे हैं । भौतिक शरीरो की पोषण प्रणाली संकरित हो चुकी है । जब भौतिक शरीर के लिए शुद्ध वायु प्राकृतिक पोषण शांत वातावरण था उस समय जीवन का एक हजार वर्ष तक भौतिक शरीर मे निवास करना कोई अतिशयोक्ति नही यह सत्य विज्ञान और अध्यात्म संबत है ।
यहाँ में जीवन ऊर्जा के बारे में लिख रहा हूँ । यह मेरी पुस्तक science of balance and Discovery of life energy का एक छोटा अंस है । मेरा प्रयास विश्व गुरु भारत की दिशा में एक कदम है । विश्व गुरु भारत आज हमारी लायब्रेरी में अलमारियों की शोभा बढ़ा रहा है । हमारे वेद उपनिषद पुराण गीता रामायण परिष्कृत वेज्ञानिक ग्रन्थ है । यह ग्रन्थ भौतिक शरीर नही जीवन के रहस्य को उजागर करते हैं । ब्रह्मांड के रहस्यों से परिपूर्ण इन गर्न्थो में ही विश्व गुरु बैठा है । इन ग्रथो में पूरी दुनियां बदल देने की ताकत है । मेरा प्रयास उसी दिशा में एक कदम है । आगामी लेख में आध्यत्मिक पक्ष को रखते हुए physical energy , working energy, external energy के बारे में विस्तार से लेख प्रकाशित होगा ।
कृष्ण नारायण शुक्ल
आध्यात्मिक ग्रन्थ लेखक एवं
विचारक
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