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(Artist Kishore Ghosh) - Environment Sketches, Digital Speed Paint, light study, Concept Art



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देवबंद में नाना-नानी का दो मंजिला मकान काफी जगह में फैला था। बचपन में गर्मियों की छुट्टियों में इतने cousins और रिश्तेदार आ जाते थे, लेकिन जाने कैसे उस घर में सबके लिए भरपूर जगह निकल ही आती थी। जैसे उस घर में कोई जादू हो कि वो कभी छोटा नहीं पड़ता। पहले के बड़े मकान या हवेलियाँ इतनी खुली जगह में बनती थीं कि आजकल के architects भी सोच में पड़ जाएँ कि इतनी जगह क्यों waste कर दी।
घर के बाहर का रंग भी अलग ही था। शायद गुलाबी करवाया था, जो धूप पड़ते-पड़ते नारंगी और गुलाबी का एक अनोखा मेल बन गया था। हर किसी को अपनी उम्र के हिसाब से साथी मिल जाते थे और कुछ हफ्तों का एक routine सा बन जाता था। सुबह नाश्ता, फिर आंगन या पास की खाली जगह में खेलना। कभी-कभी मामा जी बच्चों को बाग में ले जाते थे। वहाँ मामा जी किसी guide की तरह हमें पेड़ों और कुछ वन्य जीवों के बारे में जानकारी देते थे, जो भूले-भटके वहाँ आ जाते थे।
दोपहर होते ही बड़े भाई-बहनों से कॉमिक्स-पत्रिकाओं की फरमाइश शुरू हो जाती। तभी दूर से कुल्फी वाले के भोंपू से पहले उसके जर्जर ठेले की bottles की आवाज़ सुनते ही बच्चों का गिरोह दौड़ पड़ता। पैसे कहाँ से आएँगे, कौन देगा, इसकी चिंता किये बिना ही ढेरों ऑर्डर दे दिए जाते। जब धूप का असर कम होता तो पास के बाज़ार में घूमने निकल जाते। वहाँ इतनी दुकानें थीं कि हर बार कुछ नया देखने ��ो मिलता। कभी कंचे वाला soda लुभाता, तो कभी उस समय की नई सी लगने वाली wafer chocolates। कोशिश ये रहती कि झुंड के साथ एक-दो बड़े लोग रहें, ताकि खाना-पीना चलता रहे।
शाम को कभी cartoons देख लेते। रात में light आती तो ठीक, लेकिन अगर ज्यादा देर के लिए चली जाती, तो सबके बिस्तर छत पर लग जाते। अब इतनी भीड़ में आसानी से नींद आ जाए, ये कैसे हो सकता था। कोई Disney hour पर बहस कर रहा होता, कोई मामा जी की चीते से लड़ने की कहानी सुन रहा होता, कहीं भूत-चुड़ैल के address verify किए जा रहे होते, तो कहीं इस पर चर्चा होती कि India Champions Trophy में कैसे qualify करेगी। ऐसे में अगर नीचे जाकर पानी, चादर आदि लाने को हम छोटे बच्चों को कहा जाता, तो अँधेरे जीने में जाना सबसे बड़ा challenge लगता।
उस दिन छोटे मामा जी के देहांत पर जब देवबंद पहुँचा तो मेरे भीतर का बच्चा अपने जाने-पहचाने spots को ढूँढ रहा था। आस-पास सबने अपने घर तुड़वाकर नए तरीके से बनवा लिए थे। ननिहाल के घर की थोड़ी मरम्मत ज़रूर हुई थी, लेकिन वो अब भी पुरानी यादों जैसा ही था। बाहर के गुलाबी रंग की quality बेहतर हो गई थी, जिसका मुझे अफ़सोस था, क्योंकि मेरे मन में तो वही पुराना गुलाबी-नारंगी रंग देखने की इच्छा थी। पहले के बने जरोखे, न जाने paint के कितने coats से ढक गए थे, और मज़बूत दरवाज़े अब भी वही थे। Read More (Link in this post)
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