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डॉ विवेक बिंद्रा 11 विश्व रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं और उन्होंने अनेकों कंपनियों और बिज़नेस को आगे बढ़ने में मदद की है। इस मुफ़्त वेबिनार के लिए रजिस्टर कर के डॉ विवेक बिंद्रा से सीखें Sales के Super Secrets.
एक ट्रैवल इन्फ्लुएंसर, चाउ सुरेंग राजकुंवर ने विशेष कस्टमाइज्ड मोटरसाइकिल पर दिल्ली से लद्दाख की यात्रा की। ख़ास बात यह है कि उन्होंने अपने पालतू कुत्ते को भी इसका हिस्सा बनाया और इंस्टाग्राम पर अपनी यात्रा एक वीडियो भी शेयर किया। यात्रा के लिए, राजकुंवर ने अपनी बाइक पर बेला नामक अपने कुत्ते के लिए एक स्पेशल सीट भी लगायी। उन्होंने अपने कुत्ते को भी अधिक समय तक बैठने के लिए ट्रेनिंग दी और अपना सामान पैक कर रख लिया। उनके इस सफर का वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो रहा है।
वीडियो के साथ, राजकुंवर ने लिखा, "45 सेकंड में हमारी ज़ांस्कर और लद्दाख की कहानी।" वीडियो की शुरुआत में वे अपने पालतू कुत्ते के साथ दुनिया की सबसे ऊंची मोटर योग्य सड़क पर लद्दाख की यात्रा कर रहे हैं। वीडियो में, राजकुंवर कहते हैं कि दिल्ली से लद्दाख तक एक कुत्ते के साथ सवारी करना एक आसान निर्णय नहीं था, इसमें बेला के लिए बाइक को तैयार करना शामिल था।
45-सेकंड की क्लिप में पालतू कुत्ते और बाइकर की जोड़ी को बर्फ से ढके हिमालय पर्वतमाला पर सवारी करते हुए और ज़ांस्कर और लद्दाख सर्किट को पूरा करने के लिए सुन्दर व स्वच्छ नदियों को पार करते हुए देखा जा सकता है। वीडियो के अंत में, इस जोड़ी को दुनिया की सबसे ऊंची मोटर योग्य सड़क उमलिंग ला पर भारतीय ध्वज के साथ देखा जा सकता है।
बेंगलुरु का एक जूस बार हमेशा चर्चा में रहता है। इस जूस बार का नाम 'Eat Raja' है। यह बार इसलिए अलग है क्योंकि इसे बिना प्लास्टिक या पेपर कप, स्ट्रॉ और बोतलों के उपयोग के चलाया जाता है। इसके बजाय, यहां लोग फलों के छिलकों से बने कपों में ताजा जूस पीते हैं। इस इनोवेटिव कॉन्सेप्ट के पीछे IITian या कोई कमर्शियल एक्सपर्ट नहीं, बल्कि 72-वर्षीय सरोजा वेलन का दिमाग है। वे कहती हैं कि जब उन्होनें एक बिज़नेस शुरू करने का सोचा, तो उन्हें बिज़नेस के बारे में बिल्कुल जानकारी नहीं थी क्योंकि सितंबर 2017 तक वह हमेशा एक गृहिणी रही। उस वक़्त उन्होंने अपने पति को खो दिया। उनके पति एक रूढ़िवादी व्यक्ति थे, उन्होंने 50 साल तक जूस की दुकान चलाई और वे कभी नहीं चाहते थे कि सरोजा उनके व्यवसाय में शामिल हों। पिता की मौत के बाद सरोजा के बेटे आनंद राज बीएसएन अपनी माँ का समर्थन करने के लिए पूरी तरह से तैयार रहे। अपने नए बिज़नेस में अपनी मां का समर्थन करने से पहले उन्होंने एक रेडियो डीजे के रूप में 13 साल तक काम किया था। Eat Raja की यात्रा व सफलता इस बात का प्रमाण है कि कैसे युवा और बुजुर्ग एक साथ काम करके नए, पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से कार्यों को पूरा कर सकते हैं
बाड़मेर में बायतु की बेटी मूली चौधरी ने नेपाल मे आयोजित अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता में 10 किमी की दौड़ में प्रथम स्थान और एथेलेटिक्स में दो स्वर्ण पदक जीत कर देश, प्रदेश एवं क्षेत्र का नाम रोशन किया है।
तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद होनहार बिटिया द्वारा हासिल यह शानदार उपलब्धि निश्चित रूप से क्षेत्र की अन्य बेटियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी। मेरी ओर से बहिन को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए उसके उज्जवल भविष्य की कामना 🙏।।
किराने की एक दुकान में एक ग्राहक आया और दुकानदार से बोला - भईया, मुझे 10 किलो बादाम दे दीजिए।
दुकानदार 10 किलो तौलने लगा।
तभी एक कीमती कार उसकी दुकान के सामने रुकी और उससे उतर कर एक सूटेड बूटेड आदमी दुकान पर आया,और बोला - भाई 1 किलो बादाम तौल दीजिये।
दुकानदार ने पहले ग्राहक को 10 किलो बादाम दी,,फिर दूसरे ग्राहक को 1 किलो दी..।
जब 10 किलो वाला ग्राहक चला गया तब कार सवार ग्राहक ने कौतूहलवश दुकानदार से पूंछा - ये जो ग्राहक अभी गये है यह कोई बड़े आदमी है या इनके ��र में कोई कार्यक्रम है क्योंकि ये 10 किलो लेकर गए हैं।
दुकानदार ने मुस्कुराते हुए कहा - अरे नहीं भइया, ये एक सरकारी विभाग में चपरासी हैं लेकिन पिछले साल जब से इन्होंने एक विधवा से शादी की है जिसका पति लाखों रुपये उसके लिए छोड़ गया था, तब से उसी के पैसे को खर्च कर रहे हैं.. ये महाशय 10 किलो हर माह ले जाते हैं। "
इतना सुनकर दूसरे ग्राहक ने भी 1 की बजाय 10 किलो बादाम ले ली।
10 किलो बादाम लेकर जब घर पहुँचे तो उसकी बीवी चौंक कर बोली - ये किसी और का सामान उठा लाये क्या? 10 किलो की क्या जरूरत अपने घर में..?
भैय्या जी ने उत्तर दिया - पगली मेरे मरने के बाद कोई चपरासी मेरे ही पैसे से 10 किलो बादाम खाए.. तो जीते जी, मैं क्यों 1 किलो खाऊं..।"
🤣😂😀
निष्कर्ष: अपनी कमाई को बैंक में जमा करते रहने के बजाय अपने ऊपर भी खर्च करते रहना चाहिए। क्या पता आपके बाद आपकी गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग ही हो।
इन्जॉय करिये जीवन के हर पल को।
मौज करो, रोज करो, नहीं मिले तो ख़ोज करो और अंत में हँसते रहो #fun #maststory #motivation #Enjoy #tumblr #joke
95 साल की हरभजन कौर का जोश और जज्बा युवाओं को पीछे छोड़ देता है। चंडीगढ़ की हरभजन कौर के हाथों की बनी बेसन की बर्फी की चर्चा देश में हर जगह है। जिस उम्र में लोग रिटायर होकर अपनी दुनिया सीमित करने लगते हैं उस उम्र में इन्होंने बिज़नेस की शुरुआत की। 5 साल पहले 90 साल की उम्र में इन्होंने ‘हरभजन कौर- बेसन की बर्फी’ नाम के स्टार्टअप की शुरुआत की। हरभजन कौर अपने इस स्टार्टअप के जरिए कई तरह के अचार, चटनी, पंजीरी समेत कई चीजें बना रही हैं।
एक दिन उनकी बेटी ने उनसे उनकी इच्छा पूछी और जवाब में हरभजन ने कहा,उन्हें इस बात का मलाल है कि उन्होंने जीवनभर कुछ नहीं कमाया। यहीं से स्टार्टअप शुरू करने का ख्याल आया। वह ख़ास मौकों पर सालों से घर के लोगों के लिए बर्फी बनाती आ रही हैं, इसलिए इसे ही बिज़नेस का रूप दे दिया। दिग्गज कारोबारी आनंद महिंद्रा के ट्विटर पर इनकी कहानी साझा करने के बाद इनकी लोकप्रियता बढ़ी। इतना ही नहीं, उन्हें अनिल कपूर की पत्नी सुनीता कपूर, धर्मा प्रोडक्शन और कोलकाता की एक शादी के लिए ऑर्डर्स मिले। इनकी कहानी हमें सन्देश देती है कि ख्वाहिशों को किसी भी उम्र में पूरा किया जा सकता है, जीवन के किसी भी पड़ाव पर हार नहीं माननी चाहिए
ऐसे समय में जब निजी संस्थानों के कई मेडिकल छात्र अपना कोर्स पूरा करने के बाद अधिक से अधिक तनख्वाह पाने या विदेश में पोस्ट-ग्रेजुएट डिग्री हासिल करने का लक्ष्य रखते हैं, आंध्र प्रदेश कि इस डॉक्टर ने एक मिसाल कायम की है। कडपा जिले की 28-वर्षीय डॉक्टर नूरी परवीन आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों का मात्र 10 रुपये में इलाज करती हैं। मरीज़ों से कम फीस लेने के अलावा, डॉक्टर अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों के लिए केवल ₹50 प्रति बेड फीस लेती हैं। डॉ परवीन विजयवाड़ा की रहने वाली हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली नूरी ने फातिमा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में एमबीबीएस सीट हासिल करने के लिए प्रतियोगी परीक्षा पास की थी। मेडिकल कॉलेज से पास होने के बाद, उन्होंने अपने राज्य में चिकित्सा सुविधाओं में सुधार करने का फैसला किया। नूरी परवीन एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती हैं जहां उनके मम्मी-पापा ने तीन अनाथ बच्चों को गोद लेकर उनकी परवरिश की। इन बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्चा भी उन्होंने ही उठाया। नूरी को प्यार से लोग कडपा की मदर टेरेसा कहते हैं।
चार साल पहले जब अनिका पुरी अपने परिवार के साथ भारत आई थीं, तो वह मुंबई में हाथीदांत के आभूषणों और मूर्तियों से भरे बाजार को देखकर चौंक गईं थीं। पूरे विस्वा में हाथी दांत का व्यापार 30 से अधिक वर्षों से अवैध है, और 1970 के दशक से भारत में हाथी के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। एक वन्यजीव प्रेमी, अनिका, प्रजातियों की रक्षा में मदद करने के लिए कुछ करना चाहती थीं और अवैध शिकार को खत्म करना चाहती थीं। दो वर्षों में, पुरी ने ElSa (Short form of Elephant Saviour) बनाया, यह एक ऐसा सॉफ़्टवेयर है जो मनुष्यों और हाथियों के थर्मल इन्फ्रारेड पैटर्न का वीडियो के रूप में विश्लेषण करता है।
अनिका का कहना है कि यह सॉफ्टवेयर मौजूदा तरीकों की तुलना में चार गुना अधिक सटीक है। यह महंगे उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले थर्मल कैमरों की आवश्यकता को भी समाप्त कर देता है, जिसकी कीमत हजारों में हो सकती है।
पश्चिम बंगाल के नदिया के शांतिपुर की रहने वाली पियाशा महलदार की हाइट भले ही महज़ 3 फिट है, लेकिन उनका जज़्बा बेहद ऊंचा है। बचपन से ही दिव्यांगता के बावजूद, यूजीसी-नेट परीक्षा-2022 में उन्होंने 99.31 प्रतिशत अंक हासिल कर कमाल कर दिखाया है। बचपन से कई तरह ��ी परेशानियां झेलने के बाद भी, पियाशा ने बिना निराश हुए कड़ी मेहनत की।
जन्म से ही दुर्लभ फिजिकल कंडिशन की वजह से पियाशा की लंबाई महज़ 3 फीट है, वह अपने आप ज्यादा चल- फिर भी नहीं पाती हैं। यहां तक कि उन्हें UGC नेट परीक्षा भी लेटे-लेटे ही कंप्यूटर पर देनी पड़ी। लेकिन बचपन से ही कई तरह की शारीरिक परेशानियों से जूझ रहीं 25 साल की पियाशा ने न सिर्फ पूरी तैयारी के साथ परीक्षा दी, बल्कि बेहद अच्छे अंकों के साथ सफलता भी हासिल की। पियाशा की मेहनत इस बात की मिसाल हैं कि यदि हम कुछ करने की ठान ले तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं है।
पश्चिम बंगाल के नदिया के शांतिपुर की रहने वाली पियाशा महलदार की हाइट भले ही महज़ 3 फिट है, लेकिन उनका जज़्बा बेहद ऊंचा है। बचपन से ही दिव्यांगता के बावजूद, यूजीसी-नेट परीक्षा-2022 में उन्होंने 99.31 प्रतिशत अंक हासिल कर कमाल कर दिखाया है। बचपन से कई तरह की परेशानियां झेलने के बाद भी, पियाशा ने बिना निराश हुए कड़ी मेहनत की।
जन्म से ही दुर्लभ फिजिकल कंडिशन की वजह से पियाशा की लंबाई महज़ 3 फीट है, वह अपने आप ज्यादा चल- फिर भी नहीं पाती हैं। यहां तक कि उन्हें UGC नेट परीक्षा भी लेटे-लेटे ही कंप्यूटर पर देनी पड़ी। लेकिन बचपन से ही कई तरह की शारीरिक परेशानियों से जूझ रहीं 25 साल की पियाशा ने न सिर्फ पूरी तैयारी के साथ परीक्षा दी, बल्कि बेहद अच्छे अंकों के साथ सफलता भी हासिल की। पियाशा की मेहनत इस बात की मिसाल हैं कि यदि हम कुछ करने की ठान ले तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं है।
हमारे देश में डॉक्टरों को दूसरा भगवान कहा जाता है। लेकिन इस भरोसे को कुछ डॉक्टर ही कायम रख पाते हैं। बिहार के एक ऐसे ही डॉक्टर हैं, जिन्होंने लोगों के इसी भरोसे को जीता और इलाके के लोग उन्हें मसीहा मानते हैं।
शेखपुरा जिले के बरबीघा के रहने वाले डॉ. रामनंदन सिंह बीते 35 से अधिक वर्षों से लोगों का न सिर्फ मामूली फीस पर इलाज कर रहे हैं, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर आर्थिक मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते हैं। जिस उम्र में लोग अपने काम से रिटायरमेंट ले लेते हैं, उस उम्र में डॉक्टर साहब हर रो�� 16 से 18 घंटे काम करते हैं। यही नहीं, ये अपने मरीजों के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं। ज़रूरत पड़ने पर ये रातभर जाग कर अपने मरीजों की सेवा करते हैं। वह शुरुआती समय में मात्र ₹5 फीस लेते थे और लोगों का इलाज करते थे। हालांकि आज भी वह मात्र ₹50 ही फीस के तौर पर लेते हैं। वो कहते हैं कि वह ₹50 फीस इसलिए लेते हैं क्योंकि उन्होनें अपने साथ 15 से 20 स्टाफ काम पर रखे हैं और उन्हें तनख्वाह देने के लिए वह ₹50 फीस लेते हैं। वह अपने परिवार को चलाने के लिए पूरी तरह से आज भी खेती पर निर्भर हैं। अपने मरीजों के पार्टी ऐसा समर्पण उन्हें समाज के लिए एक प्रेरणा बनाता है।
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