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🔹त्रेतायुग में कबीर परमात्मा ऋषि मुनीन्द्र के नाम से प्रकट हुये थे। त्रेता युग में कबीर परमात्मा लंका में रहने वाले चंद्रविजय और उनकी पत्नी कर्मवती को भी मिले थे। और उस समय के राजा रावण की पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण को भी ज्ञान समझा कर अपनी शरण में लिया। यही कारण था कि रावण के राज्य में भी रहते हुए उन्होंने धर्म का पालन किया।

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🔹कबीर परमात्मा जी द्वारा नल और नील के असाध्य रोग को ठीक करना
जब त्रेतायुग में परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) मुनींद्र ऋषि रूप में नल और नील के असाध्य रोग को अपने आशीर्वाद से ठीक किया तथा नल और नील को दिए आशीर्वाद से ही रामसेतु पुल की स्थापना हुई थी।

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🔹द्वापर युग में कबीर परमेश्वर की दया से ही पांडवों का अश्वमेध यज्ञ संपन्न हुआ था। पांडवों के अश्वमेघ यज्ञ में अनेक ऋषि महर्षि मंडलेश्वर उपस्थित थे। यहां तक की भगवान कृष्ण भी उपस्थित थे। फिर भी उनका शंख नहीं बजा। कबीर परमेश्वर ने सुपच सुदर्शन वाल्मीकि के रुप में शंख बजाया और पांडवों का यज्ञ संपन्न किया था।

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🔹परमेश्वर कबीर जी करुणामय नाम से जब द्वापरयुग में प्रकट थे तब काशी में रह रहे थे। सुदर्शन नाम का एक युवक उनकी वाणी से प्रभावित होकर उनका शिष्य बन गया। एक दिन सुदर्शन ने करुणामय जी से पूछा कि आप जो ज्ञान देते हैं उसका कोई ऋषि-मुनि समर्थन नहीं करता है, तो कैसे विश्वास करें? उन्होंने सुदर्शन की आत्मा को सत्यलोक का दर्शन करवाया। सुदर्शन का पंच भौतिक शरीर अचेत हो गया। उसके माता-पिता रोते हुए परमेश्वर करूणामय के घर आए और उन पर जादू-टोना करने का आरोप लगाया।
तीसरे दिन सुदर्शन होश में आया और कबीर जी को देखकर रोने लगा। उसने सबको बताया कि परमेश्वर करूणामय (कबीर साहेब जी) पूर्ण परमात्मा हैं और सृष्टि के रचनहार हैं।

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🔹द्वापरयुग में एक राजा चन्द्रविजय था। उसकी पत्नी इन्द्रमति धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
द्वापर युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे।करूणामय साहेब ने रानी से कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म-मृत्यु के कष्ट से नहीं बचा सकती। आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी। न तेरा गुरु, न नकली साधना बचा सकेगी। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। सर्प बनकर काल ने रानी को डस लिया। करूणामय (कबीर) साहेब वहाँ प्रकट हुए। दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया।

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♦️7 वर्षीय संत घीसा दास जी गाँव खेखड़ा (जिला मेरठ, उत्तरप्रदेश) को सन् 1813 में संत दादू जी, संत गरीबदास जी की तरह कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के रूप में मिले व उन्हें सतलोक दिखाया।

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♦️आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज को सन् 1727 में 10 वर्ष की आयु में गांव छुड़ानी के नला नामक स्थान पर कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। तत्वज्ञान से परिचित कराकर सतलोक दर्शन करवाकर साक्षी बनाया।
अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरु आन।
झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सिरजन हार।।

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♦️600 साल पहले कबीर परमात्मा विक्रमी संवत् 1455 (1398 ई.) ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी के दिन काशी शहर में लहरतारा तालाब में अवतरित हुये। और काशी के नीरू नीमा नामक नि:सन्तान दंपती को मिले।

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♦️द्वापरयुग में परमेश्वर कबीर जी करुणामय नाम से प्रकट हुए थे। उस समय राजा चंद्रविजय और उनकी पत्नी रानी इन्द्रमती को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी सतलोक से आकर मिले थे।

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Under the guidance of Sant Rampal Ji Maharaj Ji, on the Bodh Diwas of Sant Garibdas Ji, a huge Bhandara is being organized in all Satlok Ashrams on 19-21 March 2024 in which the whole world is invited.
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Bodh Diwas
On the occasion of Bodh Diwas of Sant Garibdas ji, divine Bhandara will be organised at all Satlok Ashrams of Sant Rampal Ji Maharaj from March 19-21,2024..
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🎈 विश्व के सभी महान भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों के अनुसार भारत का एक महापुरुष विश्व को मानवता के सूत्र में बांध देगा व हिंसा, दुराचार, कपट संसार से सदा के लिए मिटा देगा वह महापुरुष कोई और नहीं बल्कि जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं जिनका 17 फरवरी को बोध दिवस है। इस उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में चार दिवसीय निःशुल्क विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है।
इस भंडारे में देसी घी से निर्मित भोजन, गरीबदास जी महाराज की अमर वाणी का चार दिवसीय खुला पाठ, दहेज मुक्त शादियाँ व रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

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