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जैतून के पेड़ों की खेती से क्या लाभ होता है? इसे जानने के लिए उत्पादन तकनीक और वर्तमान बाजार का मूल्यांकन करें
राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में, जहाँ जलवायु की कठिनाइयों के कारण पारंपरिक फसलों की खेती मुश्किल होती है, वहाँ जैतून की खेती किसानों के लिए एक बड़ी संभावना बन रही है। इसका कारण है कि यह फसल बंजर भूमि में भी अच्छी पैदावार कर रही है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है।

जैतून, जिसे अंग्रेजी में ऑलिव कहा जाता है, राजस्थान के किसानों के लिए एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। यह फल विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में उपयोग किया जाता है, लेकिन जैतून का प्रमुख उपयोग तेल के रूप में होता है। इससे कुकिंग ऑयल और शिशुओं की मालिश के तेल के अलावा, यह ब्यूटी उत्पादों और दवाइयों में भी उपयोग होता है। इसलिए, इसकी बाजार में हमेशा मांग रहती है। जैतून का तेल महंगा होता है, इसलिए किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं जब वे इसे महंगे दर पर बेचते हैं।

जैतून की खेती को बढ़ावा
जैतून की खेती से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार संभव है। इसलिए सरकार ने जैतून की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को केवल प्रेरित ही नहीं किया जा रहा है, बल्कि पौधों की देखभाल और रखरखाव के लिए सब्सिडी भी प्रदान की जा रही है। हमारे देश में सबसे ज़्यादा जैतून राजस्थान में ही उगाया जाता है, क्योंकि यहां की जलवायु इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। राजस्थान के बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू और जैसलमेर जिलों में इसकी खेती की जा रही है। जैतून का पौधा 3-10 मीटर या इससे अधिक ऊंचा भी हो सकता है।

जैतून की खेती के लिए किस तरह की मिट्टी चाहिए?
जैतून की खेती के लिए वहाँ किसी ऐसी ज़मीन का चयन करें जहाँ पानी की निकासी अच्छी हो। यदि खेत पथरीला या छोटे-छोटे कंकड़ वाला हो, तो यह और भी अच्छा होगा। खेत की गहराई में कम से कम एक मीटर ऊंची चट्टान होनी चाहिए। इसकी खेती के लिए नरम और मजबूत मिट्टी का चयन करें। पौधों को रोपाई करते समय, 2 फीट ऊँचे और 2 फीट चौड़े मेड़ बनाएं।
मेड़ बनाने के लिए ट्रैक्टर की मदद ले सकते हैं। पौधों को रोपाई करने से पहले, एक गड्ढा खोदकर उसमें गोबर की खाद और दीमकरोधी दवा डालें और 3-4 दिनों के लिए छोड़ दें। इसके बाद, सवा फुट का एक और गड्ढा खोदें और उसमें जैतून का पौधा लगाएं। रोपाई के बाद, तुरंत सिंचाई करें और फिर खेत को ड्रिप आईरिगेशन सिस्टम से जोड़ें ताकि पौधों को नियमित जल प्राप्त हो सके। पौधों के बीच की दूरी को 4 मीटर और पंक्ति के बीच की दूरी को 7 मीटर रखें।
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चिकनी तोरई की खेती: तोरई की ये उन्नत किस्में बढ़ाएगी पैदावार, जानिए कितनी होगी उपज

तोरई की खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो किसानों को एक उत्तम उत्पादन मिल सकता है। यह खेती पूरे भारत में प्रचलित है, और इस बेल की सब्जी की मांग छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों तक है। गर्मियों में, बाजार में इसकी मांग बहुत होती है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है। चिकनी तोरई का सेंटर में होने से इसे बहुत ही स्वादिष्ट बनाने का सुझाव दिया जाता है। इसमें विटामिन सी, आयरन, मैग्नीशियम, थियामिन, रिबोफ्लेविन और जिंक शामिल होता है। इसके अलावा, इसमें फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जिससे सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। किसानों के लिए यह एक लाभकारी फसल है क्योंकि इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है। खासकर गर्मियों में, लोग इसकी ताजगी और स्वाद के लिए पसंद करते हैं। इससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं और अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं। किसान अगर तोरई की उन्नत किस्मों की बुवाई करते हैं तो उन्हें बेहतर उत्पादन की संभावना होती है। इससे वह स्वस्थ और बढ़ते हुए बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। तोरई की खेती न केवल खाद्य सुरक्षा को बनाए रखती है, बल्कि किसानों को भी सुरक्षित और सुस्त उत्पादन का संभावना देती है। इससे न केवल किसानों को बल्कि समृद्धि में भी सुधार हो सकता है, जिससे गाँवों की आर्थिक स्थिति में वृद्धि हो सकती है।
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