( #Muktibodh_part163 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part164
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 315-316
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 726-792 :-
फिर गणिका कै संग चले, शीशी भरी शराब।
गरीबदास उस पुरी में, जुलहा भया खराब।।726।।
तारी बाजी पुरी में, भिष्ट जुलहदी नीच। गरीबदास गनिका सजी, दहूं संतौं कै बीच।।727।।
गावत बैंन बिलासपद, गंगाजल पीवंत। गरीबदास विह्नल भये, मतवाले घूमंत।।728।।
भडु.वा भडु.वा सब कहैं, कोई न जानैं खोज।
दास गरीब कबीर करम, बांट��� शिरका बोझ।।729।।
देखो गनिका संगि लई, कहते कौंम छतीस।
गरीबदास इस जुलहदी का, दर्शन आन हदीस।।730।।
शाह सिकंदर कूं सुनी, भिष्ट हुये दो संत।
गरीबदास च्यारों वरण, उठि लागे सब पंथ।।731।।
च्यारि वरण षट आश्रम, दोनौं दीन खुशाल।
गरीबदास हिंदू तुरक, पड्या शहर गलि जाल।।732।।
शाह सिकंदरकै गये, सुनि कबले अरदास।
गरीबदास तलबां हुई, पकरे दोनौं दास।।733।।
कहौ कबीर यौह क्या किया, गनिका लिन्हीं संग।
गरीबदास भूले भक्ति, पर्या भजन में भंग।।734।।
सुनौं सिकंदर बादशाह, हमरी अरज अवाज।
गरीबदास वह राखिसी, जिन यौह साज्या साज।।735।।
जडि़यां तौंक जंजीर गल, शाह सिकंदर आप।
गरीबदास पद लीन है, तारी अजपा जाप।।736।।
हाथौं जड़ी हथकड़ी, पग बेड़ी पहिराय। गरीबदास बीच गंग में, तहां दीन्हा छिटकाय।।737।।
झडि गये तौंक जंजीर सब, लगै किनारै आय।
गरीबदास देखै खलक, स्यौं काजी बादशाह।।738।।
नीचै नीचै गंगाजल, ऊपर आसन थीर। गरीबदास बूडै़ नहीं, बैठे अधर कबीर।।739।।
योह अचरज कैसा भया, देखैं दोनौं दीन।
गरीबदास काजी कहैं, बांधि दिया जल सीन।।740।।
गल में फांसी डारि करि, बांधौ शिला सुधारि।
गरीबदास यौह जुलहदी, जब बूडै़ गंगधार।।741।।
शिला धरी जब नाव में, बांधी गलै कबीर।
गरीबदास फंद टूटि कै, ना डूबै जलनीर।।742।।
शिला चली शाह और कौं, देखत काशी ख्याल।
गरीबदास कबीर का आसन अधर हमाल।।743।।
तीर बाण गोली चलैं, तोप रहकल्यौं शोर।
गरीबदास उस जुलहदीकै, गई एक नहीं ओर।।744।।
अधर धार गोले बहैं, जलकै बीच गभाक।
गरीबदास उस जुलहदी पर, शस्त्रा छूटैं लाख।।745।।
तोप रहकले सब चलैं, तीर बाण कमान।
गरीबदास वह जुलहदी, जल पर रहै अमान।।746।।
अधरि धार अपार गति, जल परि लगी समाधि।
गरीबदास निज ब्रह्मपद, खेलैं आदि अनादि।।747।।
जुलम हुआ बूडै़ नहीं, शस्त्रा लगै न बाण।
गरीबदास इब कौंन गति, कैसैं लीजै प्राण।।748।।
लगी समाधी अगाध में, बिचरै काशी गंग।
गरीबदास किलोल सर, छूहैं चरण तरंग।।749।।
च्यारि पहर गोले बगे, धमी मुलक मैदान।
गरीबदास पोखर सुखैं, रहे कबीर अमान।।750।।
अपनी करनी सब करी, थाके दोनौं दीन।
गरीबदास अब जुलहदी, पैठि गये जलमीन।।751।।
डूब्या डूब्या सब कहैं, हो गये गारत गोर।
गरीबदास कबले धनी, तुम आगै क्या जोर।।752।।
आनंद मंगल होत है, बटैं बधाई बेग। गरीबदास उस जुलहदी पर फिर गई रेती रेघ।।753।।
हस्ती घोडे़ चढत हैं, पान मिठाई चीर। गरीबदास काशी खुसी, बूडे़ गंग कबीर।।754।।
जावो घरि रैदासकै, हिलकारे हजूर। गरीबदास खुसिया कहौ, कहियो नहीं कसूर।।755।।
झालरि ढोलक बजत हैं, गावैं शब्द कबीर।
गरीबदास रैदास संगि, दोनौं एकही तीर।।756।।
काजी पंडित सब गये, शाह सिकंदर उठ।
गरीबदास रैदासकै, भेष गये जटजूट।।757।।
कोठी कुठले सब झके, बासन टींडर गोलि।
गरीबदास रहदास सुनौं, कहां गये वह बोल।।758।।
वे प्रगट पूरण पुरूष हैं, अबिनाशी अलख अल्लाह।
गरीबदास रैहदास कहैं, सुनौं सिकंदर शाह।।759।।
सूरजमुखी सुभांन सर, खिले फूल गुलजार।
गरीबदास काजी पंडित करता शाह पुकार।।760।।
शाह सिकंदर फिर गये, उस गंगा कै तीर।
दास गरीब कबीर हरी, बैठे ऊपर नीर।।761।।
बैठि मलाह जिहाज में, गये धार कै बीच।
गरीबदास हरि हरि करैं, प्रेम फुहारे सीच।।762।।
करी अरज मलाह तहां, दीन दुनी बादशाह।
गरीबदास आसन उधर, लगी समाधि जुलाह।।763।।
भंवर फिरत हैं गंग जल, फूल उगानें कोटि।
गरीबदास तहां बंदगी, हरिजन हरि की ओट।।764।।
संकल सीढी लाय करि, उतरे तहां मलाह।
गरीबदास हम बंदगी, याद किये बादशाह।।765।।
बैठ कबीर जहाज में, आये गंगा घाट। गरीबदास काशी थकी, हांडे बौह बिधि बाट।।766।।
खूनी हाथी मस्त है, पग बंधे जंजीर। गरीबदास जहां डारिया, मसक बांधि कबीर।।767।।
सिंह रूप साहिब धर्या, भागे उलटे फील।
गरीबदास नहीं समझती, याह दुनिया खलील।।768।।
बने केहरी सिंह जित, चौंर शिखर असमांन।
गरीबदास हस्ती लख्या, दीखै नहीं जिहांन।।769।।
कूटै शीश महावतं, अंकुश शीर गरगाप।
गरीबदास उलटा भगै, तारी दीजैं थाप।।770।।
भाले कोखौं मारिये, चरखी छूटैं पाख। गरीबदास नहीं निकट जाय, किलकी देवैं लाख।।771।।
जैसी भक्ति कबीर की, ऐसी करै न कोय।
गरीबदास कुंजर थके, उलटे भागे रोय।।772।।
दुंम गोवैं मूंडी धुनैं, सैंन न समझै एक। गरीबदास दीखै नहीं, आगै खड़ा अलेख।।773।।
पीलवान देख्या तबै, खड़ा केहरी सिंघ। गरीबदास आये तहां, धरि मौला बहु रंग।।774।।
उतरे मौला अरस तैं, भाव भक्ति कै हेत।
गरीबदास तब शाह लखे, कबीर पुरूष सहेत।।775।।
लीला की कबीर ने, दो रूप में रहे दीस।
दासगरीब कबीर कै, पास खडे़ जगदीश।।776।।
जंभाई अंगडाईयां, लंबे भये दयाल। गरीबदास उस शाह कूं, मानौं दर्श्या काल।।777।।
कोटि चन्द्र शशि भान मुख, गिरद कुंड दुम लील।
गरीबदास तहां ना टिके, भागि गये रनफील।।778।।
नयन लाल भौंह पीत हैं, डूंगर नक पहार।
गरीबदास उस शाह कूं, सिंह रूप दीदार।।779।।
मस्तक शिखर स्वर्ग लग, दीरघ देह बिलंद।
गरीबदास हरि ऊतरे, काटन जम के फंद।।780।
गिरद नाभि निरभै कला, दुदकारै नहीं कोय।
गरीबदास त्रिलोकि में, गाज तास की होय।।781।।
ज्यूं नरसिंह प्रहलादकै, यूं वह नरसिंह एक।
गरीबदास हरि आईया, राखन जनकी टेक।।782।।
बार-बार सताय कर, मस्तक लीना भार।
गरीबदास शाह यौं कहै, बकसौ इबकी बार।।783।।
तहां सिंह ल्यौलीन हुआ, परचा इबकी बार।
गरीबदास शाह यौं कहै, अल्लह दिया दीदार।।784।।
सुन काशी के पण्डितौ, काजी मुल्लां पीर।
गरीबदास इसके चरण ल्यौह, अलह अलेख कबीर।।785।।
यौह कबीर अल्लाह है, उतरे काशी धाम।
गरीबदास शाह यौं कहैं, झगर मूंये बे काम।।786।।
काजी पंडित रूठिया, हम त्याग्या योह देश।
गरीबदास षटदल कहैं, जादू सिहर हमेश।।787।।
इन जादू जंतर किया, हस्ती दिया भगाय।
गरीबदास इत ना रहैं, काशी बिडरी जाय।।788।।
काशी बिडरी चहौं दिशा, थांभन हारा एक।
गरीबदास कैसे थंभै, बिडरे बौहत अनेक।।789।।
क्यूं बिडरी गडरी दुनीं, कथा कबीर समूल।
गरीबदास उस वृक्षकै, अनंत कोटि रंग फूल।।790।।
बिडरे भेष बिवेक तजि, छाडि चले सब सौंज।
गरीबदास दिली आगरै, कोई दगरै सीरौंज।।791।।
कोई अजुध्याकूं चले, कोई वृन्दावन सेव।
गरीबदास सुरति तकी, कोई रामेश्वर देव।।792।।
क्रमशः______________
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