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#अल्मोड़ा-नैनीताल जनपद
uttarakhandlatestnews · 10 months
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उत्तराखंड के 75 पुल नहीं है सुरक्षित सेफ्टी ऑडिट में हुआ खुलासा देखिए किस जनपद में कितने पुल है असुरक्षित
  देहरादून- उत्तराखंड के 75 पुल नहीं है सुरक्षित सेफ्टी ऑडिट में हुआ खुलासा इनमे कुछ पुलों की स्थिति है ज्यादा खराब सरकार ने ज्यादा खतरनाक पुलों पर तत्काल यातायात रोकने के दिए निर्देश कोटद्वार की मालन नदी पर बना पुल टूटने के बाद प्रदेश सरकार ने सभी पुलों का कराया सेफ्टी ऑडिट देहरादून 13 चमोली 09 टिहरी 07 उत्तरकाशी 06 हरिद्वार 06 यूएसनगर 05 अल्मोड़ा 04 पिथौरागढ़ 03 नैनीताल 02 रुद्रप्रयाग…
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swarajtv · 2 years
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उत्तराखंड में अत्यधिक भारी बारिश का रेड अलर्ट, इन जिलों में स्कूल बंद के आदेश..
उत्तराखंड में अत्यधिक भारी बारिश का रेड अलर्ट, इन जिलों में स्कूल बंद के आदेश..
देहरादून: उत्तराखंड के कई हिस्सों में मौसम विभाग ने दो दिनों तक बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है। मौसम विभाग के हाई अलर्ट के बाद रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा और नैनीताल जनपद के समस्त आंगनबाड़ी केन्द्र और एक से 12 तक के विद्यालय दो दिनों तक बंद किया गया है। वहीं शनिवार के लिए टिहरी में भी अवकाश घोषित किया गया है। मौसम विभाग ने अनुसार, 16 और 17 सितंबर को रेड अलर्ट जारी किया गया है। इन दो दिनों में बारिश की…
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dainikuk · 2 years
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उत्तराखंड में अत्यधिक भारी बारिश का रेड अलर्ट, इन जिलों में स्कूल बंद के आदेश..
उत्तराखंड में अत्यधिक भारी बारिश का रेड अलर्ट, इन जिलों में स्कूल बंद के आदेश..
देहरादून: उत्तराखंड के कई हिस्सों में मौसम विभाग ने दो दिनों तक बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है। मौसम विभाग के हाई अलर्ट के बाद रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा और नैनीताल जनपद के समस्त आंगनबाड़ी केन्द्र और एक से 12 तक के विद्यालय दो दिनों तक बंद किया गया है। वहीं शनिवार के लिए टिहरी में भी अवकाश घोषित किया गया है। मौसम विभाग ने अनुसार, 16 और 17 सितंबर को रेड अलर्ट जारी किया गया है। इन दो दिनों में बारिश की…
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tazacoverage · 2 years
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उत्तराखंड में अत्यधिक भारी बारिश का रेड अलर्ट, इन जिलों में स्कूल बंद के आदेश..
उत्तराखंड में अत्यधिक भारी बारिश का रेड अलर्ट, इन जिलों में स्कूल बंद के आदेश..
देहरादून: उत्तराखंड के कई हिस्सों में मौसम विभाग ने दो दिनों तक बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है। मौसम विभाग के हाई अलर्ट के बाद रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा और नैनीताल जनपद के समस्त आंगनबाड़ी केन्द्र और एक से 12 तक के विद्यालय दो दिनों तक बंद किया गया है। वहीं शनिवार के लिए टिहरी में भी अवकाश घोषित किया गया है। मौसम विभाग ने अनुसार, 16 और 17 सितंबर को रेड अलर्ट जारी किया गया है। इन दो दिनों में बारिश की…
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lokkesari · 3 years
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आपदा की इस संकट की घड़ी में सरकार पूरी तरह से पीड़ितों के साथ खड़ी है - पुष्कर धामी
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आपदा की इस संकट की घड़ी में सरकार पूरी तरह से पीड़ितों के साथ खड़ी है - पुष्कर धामी
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने आज आपदा प्रभावित जनपद चम्पावत में हालात का जायजा लिया। उन्होंने तेलवाड़ा चम्पावत में आपदा में मृतकों के परिजनों से मिलकर उनके प्रति संवेदना व्यक्ति करते हुए दिवंगतों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि सरकार इस मुश्किल घड़ी में पीड़ितों एवं आम जनमानस के साथ खड़ी है। पीड़ितों को हर संभव मदद दी जाएगी। उन्होंने जिला प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि आपदा प्रभावितों को जल्द से जल्द मुआवजे देने की कार्रवाई पूरी की जाए।
इसके बाद मुख्यमंत्री ने सर्किट हाउस में समस्त जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक लेते हुए निर्देश दिए कि राहत एवं बचाव कार्यों में लापरवाही ना बरती जाए। उन्होंने आपदा प्रभावित इलाकों में राशन समेत मूलभूत आवश्यकताओं की व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए ।
उन्होंने जिलाधिकारी को निर्देश दिए कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों का भू सर्वेक्षण किया जाए, जिसमें एडीएम को नोडल अधिकारी बनाया जाए। उन्होंने जनपद में संचार, सड़क, बिजली तथा पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को जल्द से जल्द दुरुस्त करने के निर्देश दिए।
पिथौरागढ़ जनपद की सीमांत तहसील धारचूला के आपदा प्रभावित गांवों में पंहुचकर विगत दिनों हुई भारी वर्षा से हुए नुकसान का जायजा लिया। आपदा प्रभावितों से मिलकर उनका हाल जाना, उन्हें ढाढस बंधाया और सहायता राशि के चेक वितरित किए।
इस दौरान गांवों में चलाए जा रहे राहत कार्यों को भी देखा। संकट की घड़ी में सरकार पूरी तरह से पीड़ितों के साथ खड़ी है।
मुख्यमंत्री धामी आज चम्पावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल जिलों के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जारी राहत और निर्माण के कार्यों का स्थलीय निरीक्षण हेतु दौरे पर है।
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doonitedin · 3 years
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नैनीताल: मंडलायुक्त ने सड़कों को लेकर ली समीक्षा बैठक
नैनीताल: मंडलायुक्त ने सड़कों को लेकर ली समीक्षा बैठक
प्रथम चरण के 347 कार्य एंव द्वितीय चरण के 321 कार्य किये जा रहे है नैनीताल: आयुक्त कुमाऊॅ मण्डल सुशील कुमार की अध्यक्षता में मण्डल के लोक निर्माण, प्रधानमंत्री सड़क योजना व राष्ट्रीय राजमार्ग विभागों के कार्याे की समीक्षा एलडीए सभागार में आयोजित हुई। उन्होने दौरान अधीक्षण अभियंता, लोक निर्माण अल्मोड़ा द्वारा अवगत कराया गया कि जनपद अल्मोड़ा मे प्रथम चरण के 347 कार्य एंव द्वितीय चरण के 321 कार्य…
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uttarakhandgovtjob · 3 years
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सरकारी जॉब की तैयारी करने वाले स्टूडेंट के लिए लेटेस्ट उत्तराखंड का सामान्य ज्ञान
उत्तराखण्ड का संक्षिप्त परिचय
   उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 को हुआ जिसकी राजधानी देहरादून है। उत्तराखंड को पहले उत्तराँचल के नाम से जाना जाता था लेकिन सन् 2007 में “उत्तराँचल” का नाम बदलकर “उत्तराखंड” रख दिया गया। उत्तराखंड को “देवभूमि” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां धार्मिक स्थल स्थित हैं। उत्तराखंड में चार धामों (1. केदारनाथ, 2. बद्रीनाथ, 3. गंगोत्री, 4. यमुनोत्री) का विशेष महत्त्व है। यहां भारत के हर कोने से लोग अपनी श्रद्धा से पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। पर्यटन की दृष्टि से उत्तराखण्ड में लोग अलग अलग जगहों में घूमने के लिए आते हैं। उत्तराखंड में कुल 13 जिले हैं जो इस प्रकार हैं: चमोली, रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल, देहरादून, पौड़ी गढ़वाल, हरिद्वार, अल्मोड़ा, पिथोरागढ़, चम्पावत, बागेश्वर, नैनीताल, उधम सिंह नगर।
राज्य चिन्ह : उत्तराखंड राज्य चिन्ह में तीन पर्वतों के ऊपर अशोक स्तम्भ स्थित है तथा नीचे की ओर गंगा नदी की लहरें परिकल्पित की गयी हैं। यहां अशोक की ललाट के नीचे “सत्यमेव जयते” लिखा गया है। राज्य पशु: कस्तूरी मृग कस्तूरी मृग का वैज्ञानिक नाम “मास्कस क्राइसोगास्टर” (Moschus Chrysogaster) है। इसको (हिमालयन मस्क डियर) के नाम से भी जाना जाता है। ये 2000-5000 मीटर की ऊंचाई तक पाए जाते हैं। इनका रंग भूरा होता है जिन पर काले और पीले धब्बे होते हैं। राज्य पक्षी: मोनाल उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल 2300-5000 मीटर की ऊंचाई पर घने वनों में पाया जाता है। नर मोनाल का रंग नीला-भूरा और मादा मोनाल का रंग भूरा होता है। मोनाल का वैज्ञानिक नाम “लोफोफोरस इमपीजेनस” (Lophophorus impejanus) है। स्थानीय भाषा में इसे “मन्याल” या “मुनाल” भी कहा जाता है।
राज्य पुष्प: ब्रह्मकमल उत्तराखंड के राज्य पुष्प ब्रह्मकमल का वैज्ञानिक नाम “सोसूरिया अबवेलेटा” (Saussurea Obvallata) है। यह वनस्पति बारहमासी है। ब्रह्मकमल 3600-4500 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। स्थानीय भाषा में इसे “कौंल पदम” भी कहा जाता है। राज्य वृक्ष: बुरांस उत्तराखंड के राज्य वृक्ष बुरांस का वानस्पतिक नाम “रोडोडेन्ड्रोन अरबोरियम” (Rhododendron Arboreum) है। यह 5000 फुट की ऊंचाई तक पाया जाता है। बुरांस का मुख्य आकर्षण लाल रंग के फूल हैं। जबकि 11000 फुट की ऊंचाई पर सफ़ेद रंग के बुरांस पाए जाते हैं। चार धाम 1. केदारनाथ : केदारनाथ धाम रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। केदारनाथ धाम लगभग 3581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 2. बद्रीनाथ: बद्रीनाथ धाम चमोली जिले में स्थित है। यह पंच बद्रियों में सबसे महत्वपूर्ण है। बद्रीनाथ धाम के कपाट मई के महीने में खुलते हैं और नवम्बर के अंत तक बंद हो जाते हैं। यहाँ पर गर्म पानी का श्रोत है जिसे “तप्त कुंड” कहा जाता है। इसकी समुद्री तल से ऊंचाई 3133 मीटर है। 3. गंगोत्री: गंगोत्री धाम उत्तरकाशी जिले में स्थित है। यह लगभग 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 4. यमुनोत्री: यमुनोत्री धाम उत्तरकाशी से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह 3293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। उत्तराखंड के राष्ट्रीय उद्यान (National Park)   1- जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (Jim Corbett National Park)  नैनीताल (पौड़ी गढ़वाल) जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, नैनीताल (पौड़ी गढ़वाल) की स्थापना सन् 1936 में सर हेली द्वारा की गई थी। इसका कुल क्षेत्रफल 520.82 वर्ग किलोमीटर है। कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत का ही नहीं बल्कि एशिया का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है। पूर्व में इसका नाम रामगंगा नेशनल पार्क रखा गया। लेकिन वर्ष 1957 में प्रकृति प्रेमी जिम कॉर्बेट की स्मृति में इसका नाम एक बार पुनः बदलकर कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया। इस पार्क में प्रवेश के लिए नैनीताल जनपद के ढीकाला में प्रवेश द्वार बनाया गया है जो कि नैनीताल जिला मुख्यालय से 144 किलोमीटर दूर हैए यह क्षेत्र नगर पालिका रामनगर से काफी निकट है। 1 नवंबर 1973 को इसे भारत का पहला बाघ संरक्षण पार्क घोषित किया गया। 2- गोविंद राष्ट्रीय उद्यान (Govind National Park)  उत्तरकाशी जिले में स्थित है। इसकी स्थापना सन् 1980 में की गई है। इसका क्षेत्रफल 472 वर्ग किलोमीटर है। 3- नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान (Nanda Devi National Park), चमोली जिले में स्थित है। इसका मुख्यालय जोशीमठ में है। इसकी स्थापना सन् 1982 में की गई है। इसका क्षेत्रफल 624 वर्ग किलोमीटर है। यह उद्यान  हिमालयन भालू, स्नैलैपईस,  मस्क डियर, मोनाल, कस्तूरी मृग, भरल आदि पशु-पक्षियों के लिए प्रख्यात है। 4- फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Valley of Flowers National Park) की स्थापना 1982 में की गई है। इसकी खोज 1931 में फ्रेंक स्माइथ ने की थी। यह उद्यान चमोली जनपद में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 87.5 वर्ग किलोमीटर है। यह उद्यान समुद्र तल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर नर और गंध मादन पर्वतों के बीच स्थित है । इसका मुख्यालय जोशीमठ है। 5- राजाजी राष्ट्रीय उद्यान (Rajaji National Park) इसकी स्थापना सन् 1983 में की गई। यह देहरादून, हरिद्वार एवं पौड़ी गढ़वाल तक फैला हुआ है। इसका क्षेत्रफल 820.42 वर्ग किलोमीटर है। यह पार्क हाथियों के लिए विख्यात है। इसका मुख्यालय देहरादून में स्थित है। 6- गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान (Gangotri National Park) इसकी स्थापना सन् 1989 में की गई। यह उत्तरकाशी जनपद में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 2390 वर्ग किलोमीटर है। गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान में मुख्य वन्यजीवों में हिम तेंदुआ, हिमालयन भालू, कस्तूरी मृग, भरल और प्रमुख पक्षियों में मोनाल कोकलास, ट्रेगोपान आदि है।
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uttranews · 3 years
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उत्तराखण्ड सेना भर्ती: कोरोना (Corona) टेस्ट के लिए उमड़ी युवाओं की भीड़
उत्तराखण्ड सेना भर्ती: कोरोना (Corona) टेस्ट के लिए उमड़ी युवाओं की भीड़
नैनीताल, 1 मार्च 2021 हिमानी बोहरा नैनीताल। 4 मार्च को अल्मोड़ा जनपद के रानीखेत में होने वाली सेना भर्ती के लिए अभ्यर्थियों को कोविड (Corona) टेस्ट रिपोर्ट लाना अनिवार्य है। जिसके लिए सोमवार को राजकीय चिकित्सालय बीडी पांडे में कोविड टेस्ट कराने के लिए जनपद के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों से सैकड़ों की संख्या में युवा पहुँचे हुए हैं। इस दौरान अस्पताल में पर्ची काउंटर से बाहर तक लंबी कतार लगी रही।…
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khabaruttarakhandki · 4 years
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Uttarakhand Weather : देहरादून सहित अधिकतर इलाकों में आज भी मौसम खराब, कहीं-कहीं हो रही बारिश
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मंगलवार को उत्तराखंड में मानसून के दस्तक देने के बाद आज बुधवार को भी अधिकतर इलाकों में मौसम खराब बना हुआ है। राजधानी देहरादून सहित ज्यादातर क्षेत्रों में बादल छाए हुए हैं तो कहीं-कहीं रात से रुक-रुक कर बारिश जारी है। बागेश्वर, काशीपुर, रामनगर, पिथौरागढ़, लोहाघाट, अल्मोड़ा में तड़के से रुक-रुक कर बारिश हो रही है। 
उत्तराखंड: दो दिन की देरी से पहुंचा मानसून, अगले 48 घंटों में कई जगह भारी बारिश होने का अनुमान
मौसम केंद्र निदेशक बिक्रम सिंह ने बताया कि अगले 48 घंटों के दौरान पूरे पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में मानसून पहुंच जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके चलते आज देहरादून, टिहरी, नैनीताल, चंपावत और पिथौरागढ़ जिलों में कुछ स्थानों पर भारी बारिश हो सकती है। 
26 जून तक ज्यादातर क्षेत्रों में भारी बारिश हो सकती है। 25 जून को नैनीताल, पिथौरागढ़ और देहरादून में कहीं-कहीं भारी से बहुत भारी बारिश हो सकती है। टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, ऊधमसिंह नगर, चंपावत और बागेश्वर में चुनिंदा स्थानों पर भारी बारिश हो सकती है। बागेश्वर में हुई बारिश से जल भराव हो गया। यहां घरों में पानी घुस गया। बागेश्वर में सरयू नदी उफान पर है। यहां पुलिस नदी के समीप न जाने की अपील कर रही है।
कालाढूंगी-हल्द्वानी मार्ग भाखड़ा जंगल में मुख्य हाईवे में विशाल पेड़ गिर गया। एक कार पेड़ की चपेट में आ गई। उसमें सवार शिक्षक बाल-बाल बचे। आवाजाही बंद होने से दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतार लग गई है।
यमुनोत्री हाईवे अवरुद्ध
वहीं उत्तरकाशी के बड़कोट में यमुनोत्री घाटी में मंगलवार की रात हुई बारिश से एक बार फिर यमुनोत्री हाईवे अवरुद्ध हो गया।  हाईवे डबरकोट में अवरुद्ध हो गया है। यहां हाईवे जगह-जगह दलदल में तब्दील हो गया है।
भारी बारिश के कारण आए मलबे से चीन सीमा को जोड़ने वाली लिपूलेख सड़क दो घंटे से अधिक समय तक बंद रही। इससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। इधर बारिश के कारण सात से अधिक आंतरिक सड़कें भी बंद हुईं, जिसमें चार से अधिक सड़कों को खोल दिया गया है। 
सीमांत पिथौरागढ़ जनपद में बेरीनाग में सर्वाधिक 10एमएम बारिश हुई। वहीं डीडीहाट में 5.0, धारचूला में 0.6 और मुनस्यारी में 2.0 एमएम बारिश रिकार्ड की गई। भारी बारिश के कारण थल- हरड़िया के पास कुछ देर बंद रही, जिसे लोनिवि ने समय रहते खोल दिया।
बारिश के कारण नाचनी-बांसबगड़, कोटा सामा- तेजम, सोसा-सिर्खा, तवाघाट-सोबला, मदकोट- दारमा, पौड़ी घटकूना सड़क बंद हो गई, जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। लगातार हो रही बारिश के कारसा पिथौरागढ़ नगर की आंतरिक सड़कों में जगह-जगह गड्ढे होने से जल भराव हो रहा है। जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष मुकेश पंत ने नगर की आंतरिक सड़कों में बने गड्ढों को भरने की मांग की है। 
खतरे के निशान से एक मीटर नीचे बह रही काली   
पिथौरागढ़ जिले के विभिन्न हिस्सों मे हो रही बारिश के कारण नदियों का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है। काली नदी खतरे के निशान से एक मीटर नीचे 888.05 मीटर पर बह रही है। इसका खतरे का निशान 890 मीटर है। गोरी नदी जौलजीबी खतरे के निशान से दो मीटर नीचे बह रही है। इसका जल स्तर 606.80 क्यूसेक नापा गया। सरयू नदी 445.50 और गोरी नदी मदकोट 1211.48 पर बह रही है।
मंगलवार को उत्तराखंड में मानसून के दस्तक देने के बाद आज बुधवार को भी अधिकतर इलाकों में मौसम खराब बना हुआ है। राजधानी देहरादून सहित ज्यादातर क्षेत्रों में बादल छाए हुए हैं तो कहीं-कहीं रात से रुक-रुक कर बारिश जारी है। बागेश्वर, काशीपुर, रामनगर, प��थौरागढ़, लोहाघाट, अल्मोड़ा में तड़के से रुक-रुक कर बारिश हो रही है। 
उत्तराखंड: दो दिन की देरी से पहुंचा मानसून, अगले 48 घंटों में कई जगह भारी बारिश होने का अनुमान मौसम केंद्र निदेशक बिक्रम सिंह ने बताया कि अगले 48 घंटों के दौरान पूरे पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में मानसून पहुंच जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके चलते आज देहरादून, टिहरी, नैनीताल, चंपावत और पिथौरागढ़ जिलों में कुछ स्थानों पर भारी बारिश हो सकती है। 
26 जून तक ज्यादातर क्षेत्रों में भारी बारिश हो सकती है। 25 जून को नैनीताल, पिथौरागढ़ और देहरादून में कहीं-कहीं भारी से बहुत भारी बारिश हो सकती है। टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, ऊधमसिंह नगर, चंपावत और बागेश्वर में चुनिंदा स्थानों पर भारी बारिश हो सकती है। बागेश्वर में हुई बारिश से जल भराव हो गया। यहां घरों में पानी घुस गया। बागेश्वर में सरयू नदी उफान पर है। यहां पुलिस नदी के समीप न जाने की अपील कर रही है।
कालाढूंगी-हल्द्वानी मार्ग भाखड़ा जंगल में मुख्य हाईवे में विशाल पेड़ गिर गया। एक कार पेड़ की चपेट में आ गई। उसमें सवार शिक्षक बाल-बाल बचे। आवाजाही बंद होने से दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतार लग गई है।
यमुनोत्री हाईवे अवरुद्ध
वहीं उत्तरकाशी के बड़कोट में यमुनोत्री घाटी में मंगलवार की रात हुई बारिश से एक बार फिर यमुनोत्री हाईवे अवरुद्ध हो गया।  हाईवे डबरकोट में अवरुद्ध हो गया है। यहां हाईवे जगह-जगह दलदल में तब्दील हो गया है।
दो घंटे बंद रही कैलाश मानसरोवर सड़क
भारी बारिश के कारण आए मलबे से चीन सीमा को जोड़ने वाली लिपूलेख सड़क दो घंटे से अधिक समय तक बंद रही। इससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। इधर बारिश के कारण सात से अधिक आंतरिक सड़कें भी बंद हुईं, जिसमें चार से अधिक सड़कों को खोल दिया गया है। 
सीमांत पिथौरागढ़ जनपद में बेरीनाग में सर्वाधिक 10एमएम बारिश हुई। वहीं डीडीहाट में 5.0, धारचूला में 0.6 और मुनस्यारी में 2.0 एमएम बारिश रिकार्ड की गई। भारी बारिश के कारण थल- हरड़िया के पास कुछ देर बंद रही, जिसे लोनिवि ने समय रहते खोल दिया।
बारिश के कारण नाचनी-बांसबगड़, कोटा सामा- तेजम, सोसा-सिर्खा, तवाघाट-सोबला, मदकोट- दारमा, पौड़ी घटकूना सड़क बंद हो गई, जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। लगातार हो रही बारिश के कारसा पिथौरागढ़ नगर की आंतरिक सड़कों में जगह-जगह गड्ढे होने से जल भराव हो रहा है। जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष मुकेश पंत ने नगर की आंतरिक सड़कों में बने गड्ढों को भरने की मांग की है। 
खतरे के निशान से एक मीटर नीचे बह रही काली   
पिथौरागढ़ जिले के विभिन्न हिस्सों मे हो रही बारिश के कारण नदियों का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है। काली नदी खतरे के निशान से एक मीटर नीचे 888.05 मीटर पर बह रही है। इसका खतरे का निशान 890 मीटर है। गोरी नदी जौलजीबी खतरे के निशान से दो मीटर नीचे बह रही है। इसका जल स्तर 606.80 क्यूसेक नापा गया। सरयू नदी 445.50 और गोरी नदी मदकोट 1211.48 पर बह रही है।
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दो घंटे बंद रही कैलाश मानसरोवर सड़क
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bisaria · 6 years
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रान्त के द्वारकापुरी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यह स्थान गोमती द��वारका से बेट द्वारका जाते समय रास्ते में ही पड़ता है। द्वारका से नागेश्वर-मन्दिर के लिए बस,टैक्सी आदि सड़क मार्ग के अच्छे साधन उपलब्ध होते हैं। रेलमार्ग में राजकोट से जामनगर और जामनगर रेलवे से द्वारका पहुँचा जाता है।
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नागेश्वर मन्दिर Nageshwar Temple
पौराणिक इतिहास
इस प्रसिद्ध शिवलिंग की स्थापना के सम्बन्ध में इतिहास इस प्रकार है- एक धर्मात्मा, सदाचारी और शिव जी का अनन्य वैश्य भक्त था, जिसका नाम ‘सुप्रिय’ था। जब वह नौका (नाव) पर सवार होकर समुद्र के जलमार्ग से कहीं जा रहा था, उस समय ‘दारूक’ नामक एक भयंकर बलशाली राक्षस ने उस पर आक्रमण कर दिया। राक्षस दारूक ने सभी लोगों सहित सुप्रिय का अपहरण कर लिया और अपनी पुरी में ले जाकर उसे बन्दी बना लिया। चूँकि सुप्रिय शिव जी का अनन्य भक्त था, इसलिए वह हमेशा शिव जी की आराधना में तन्मय रहता था। कारागार में भी उसकी आराधना बन्द नहीं हुई और उसने अपने अन्य साथियों को भी शंकर जी की आराधना के प्रति जागरूक कर दिया। वे सभी शिवभक्त बन गये। कारागार में शिवभक्ति का ही बोल-बाला हो गया।
जब इसकी सूचना राक्षस दारूक को मिली, तो वह क्रोध में उबल उठा। उसने देखा कि कारागार में सुप्रिय ध्यान लगाए बैठा है, तो उसे डाँटते हुए बोला– ‘अरे वैश्य! तू आँखें बन्द करके मेरे विरुद्ध कौन-सा षड्यन्त्र रच रहा है?’ वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाता हुआ धमका रहा था, इसलिए उस पर कुछ भी प्रभाव न पड़ा।
घमंडी राक्षस दारूक ने अपने अनुचरों को आदेश दिया कि सुप्रिय को मार डालो। अपनी हत्या के भय से भी सुप्रिय डरा नहीं और वह भयहारी, संकटमोचक भगवान शिव को पुकारने में ही लगा रहा। उस समय अपने भक्त की पुकार पर भगवान शिव ने उसे कारागार में ही दर्शन दिया। कारागार में एक ऊँचे स्थान पर चमकीले सिंहासन पर स्थित भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में उसे दिखाई दिये। शंकरजी ने उस समय सुप्रिय वैश्य का अपना एक पाशुपतास्त्र भी दिया और उसके बाद वे अन्तर्धान (लुप्त) हो गये। पाशुपतास्त्र (अस्त्र) प्राप्त करने के बाद सुप्रिय ने उसक बल से समचे राक्षसों का संहार कर डाला और अन्त में वह स्वयं शिवलोक को प्राप्त हुआ। भगवान शिव के निर्देशानुसार ही उस शिवलिंग का नाम ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ पड़ा। ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ के दर्शन करने के बाद जो मनुष्य उसकी उत्पत्ति और माहात्म्य सम्बन्धी कथा को सुनता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है तथा सम्पूर्ण भौतिक और आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त करता है-
एतद् य: श्रृणुयान्नित्यं नागेशद्भवमादरात्। सर्वान् कामनियाद् धीमान् महापातकनशनान्।।
उपर्युक्त ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त नागेश्वर नाम से दो अन्य शिवलिंगों की भी चर्चा ग्रन्थों में प्राप्त होती है। मतान्तर से इन लिंगों को भी कुछ लोग ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं।
इनमें से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग निजाम हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश ग्राम में अवस्थित हैं। मनमाड से द्रोणाचलम तक जाने वाली रेलवे पर परभणी नामक प्रसिद्ध स्टेशन है। परभनी से कुछ ही दूरी पर पूर्णा जंक्शन है, जहाँ से रेलमार्ग पर ‘चारेंडी’ नामक स्टेशन है, जहाँ से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी ‘औढ़ाग्राम’ है। स्टेशन से मोटरमार्ग द्वारा ‘औढ़ाग्राम’ पहुँचा जाता है।
इसी प्रकार उत्तराखंड प्रदेश के अल्मोड़ा जनपद में एक ‘योगेश या ‘जागेश्वर शिवलिंग’ अवस्थित है, जिसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ बताया जाता है। यह स्थान अल्मोड़ा से लगभग 25 किलोमीटर उत्तर पूर्व की ओर है, जिसकी दूरी नैनीताल से लगभग 100 किलोमीटर है। यद्यपि शिव पुराण के अनुसार समुद्र के किनारे द्वारका पुरी के पास स्थित शिवलिंग ही ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रमाणित होता है।
ऐतिहासिक कारण
‘जागेश्वर शिवलिंग को नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहने या मानने के कुछ प्रमुख ऐतिहासिक कारण इस प्रकार हैं-–
द्वादश ज्योतिर्लिंगों के पाठ में ‘नागेश दारूकावने’ ऐसा उल्लेख मिलता है। अल्मोड़ा के समीप स्थित शिवलिंग जागेश्वर के नाम से जाना जाता है। ऐसी स्थिति में ‘योगेश’ किस प्रकार नागेश बन गये? इस सन्दर्भ में ध्यान देने योग्य बात यह है कि कश्मीर प्रान्त के पहाड़ियों तथा विभिन्न मैदानी क्षेत्रों से अनेक में पौण्ड्रक, द्रविड, कम्बोज, यवन, शक पल्लव, राद, किरात, दरद, नाग और खस आदि प्रमुख थीं। महाभारत के अनुसार ये सभी जातियाँ बहुत पराक्रमी तथा सभ्यता-सम्पन्न थीं। जब पाण्डवों को इन लोगों से संघर्ष करना पड़ा तब उन्हें भी ज्ञान हुआ कि ये सभी क्षत्रिय धर्म और उसके गुणों से सम्पन्न हैं।
इतिहास के पन्नों को देखने से यह भी ज्ञात होता है कि कुमाऊँ की अनार्य जातियों ने भी ब्राह्मण धर्म में प्रवेश पाने का प्रयास किया, किन्तु असफल रहीं। वसिष्ठ और विश्वामित्रके बीच वर्षो तक चला संघर्ष इसी आशय का प्रतीक है। श्री ओकले साहब ने उपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘पवित्र हिमालय’ में लिखा है कि कश्मीर और हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में नाग लोगों की एक जाति रहती है। ओकले क��� अनुसार सर्प की पूजा करने के कारण ही उन्हें ‘नाग’ कहा जाता है।
राई डेविडस् जो एक प्रसिद्ध बौद्ध लेखक थे, उनका मत है कि पुराने बौद्ध काल में चित्रों और मूर्तियों में मनुष्य तथा साँप के जुड़े हुए स्वरूप में नाग पूजा को अंकित किया गया है। यह प्रथा आज भी गढ़वाल तथा कुमाऊँ में प्रचलित है।
एटकिंशन नामक विद्वान् का भी यही अभिमत है, जिन्होंने ‘हिमालय डिस्ट्रिक्स’ नामक ग्रन्थ लिखा है, गढ़वाल के अधिकांशत: मन्दिरों में आज भी नागपूजा होती चली आ रही है।
जागेश्वर शिवमन्दिर जहाँ अवस्थित है, उसके आसपास में आज भी वेरीनाग, धौलेनाग, कालियनाग आदि स्थान विद्यमान हैं, जिनमें ‘नाग’ शब्द उस नाग जाति की याद दिलाता है। उनके आधार पर यह बात तर्क संगत लगती है कि इन नाग-मन्दिरों के बीच ‘नागेश’ नामक कोई बड़ा मन्दिर प्राचीनकाल से कुमाऊँ में विद्यमान है। पौराणिक धर्म और भूत-प्रेतों की पूजा की भी शिवोपासना में गणना की गई है।
आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के मत और सिद्धान्त के प्रचार से पहले कुमाऊँ के लोगों को ‘पाशुपतेश्वर’ का नाम नहीं मालूम था। इन देवों की बलि पूजा होती थी या नहीं, यह कहना कठिन है, किन्तु इतिहास के पृष्ठों से इतना तो निश्चित है कि काठमाण्डू, नेपाल के ‘पाशुपतिनाथ, और कुमाऊँ में ‘यागेश्वर’ के ‘पाशुपतेश्वर’ दोनों वैदिक काल से पूजनीय देवस्थान हैं। पवित्र हिमालय की सम्पूर्ण चोटियों को तपस्वी भगवान शिवमूर्तियों के रूप में स्वीकार किया जाता है, किन्तु कैलास पर्वत को तो आदि काल से नैसर्गिक शिव मन्दिर बताया गया है।
इन सब बातों से स्पष्ट है कि कुमाऊँ मण्डल में शिवपूजन का प्रचलन अति प्राचीन है।
एक प्रसिद्ध आख्यायिका के अनुसार ‘यागेश्वर मन्दिर’ हिमालय के उत्तर पश्चिम की ओर अवस्थित है तथा यहाँ सघन देवदार का वन है। इस मन्दिर का निर्माण तिब्बतीय और आर्य शैली का मिला जुला स्वरूप है। जागेश्वर-मन्दिर के अवलोकन से पता चलता है कि इसका निर्माण कम से कम 2500 वर्षों पूर्व का है। इसके समीप मृत्युंजय और डिण्डेश्वर-मन्दिर भी उतने ही पुराने हैं। जागेश्वर-मन्दिर शिव-शक्ति की प्रतिमाएँ और दरवाजों के द्वारपालों की मूर्तियाँ भी उक्त प्रकार की अत्यन्त प्राचीन हैं। जागेश्वर-मन्दिर में राजा दीपचन्द की चाँदी की मूर्ति भी स्थापित है।
स्कन्द पुराण के अनुसार
स्कन्द पुराण के मानस खण्ड और रेवा खण्ड में गढ़वाल तथा कुमाऊँ के पवित्र तीर्थो का वर्णन मिलता है। चीनी यात्री ह्रेनसांग ने बौद्ध धर्म की खोज में कुमाऊँ की यात्रा की थी।
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नागेश्वर महादेव, द्वारका, गुजरात Nageshwar Mahadev, Dwarka, Gujarat
कुमाऊँ और कोसल राज्य
कुमाऊँ कोसल राज्य का ही एक भाग था। कुमाऊँ में वैदिक तथा बौद्ध धर्म समानान्तर रूप से प्रचलित थे। मल्ल राजाओं ने भी पाशुपतेश्वर या जागेश्वर के दर्शन किये थे तथा जागेश्वर को कुछ गाँव उपहार में समर्पित किये थे। चन्द राजाओं की जागेश्वर के प्रति अटूट श्रृद्धा थी। इनका राज्य कुमाऊँ की पहाड़ियों तथा तराईभाँवर के बीच था। देवीचन्द, कल्याणचन्द, रतनचन्द, रुद्रचन्द्र आदि राजाओं ने जागेश्वर-मन्दिर को गाँव तथा बहुत-सा धन दान में दिये थे।
सन 1740 में अलीमुहम्मद ख़ाँ ने अपने रूहेला सैनिकों के साथ कुमाऊँ पर आक्रमण किया था। उसके सैनिकों ने भारी तबाही मचाई और अल्मोड़ा तक के मन्दिरों को भ्रष्ट कर उनकी मूर्तियों को तोड़ डाला। उन दुष्टों ने जागेश्वर-मन्दिर पर भी धावा बोला था, किन्तु ईश्वर इच्छा से वे असफल रहे। सघन देवदार के जंगल से लाखों बर्र निकलकर उन सैनिकों पर टूट पड़े और वे सभी भाग खड़े हुए। उनमें से कुछ कुमाऊँ निवासियों द्वारा मार दिये गये, तो कुछ सर्दी से मर गये।
बौद्धों के समय में
बौद्धों के समय में भगवान 'बदरी विशाल' की प्रतिमा की तरह जागेश्वर की देव-प्रतिमाएँ भी सूर्य कुण्ड में कुछ दिनों तक पड़ी रहीं। अपने दिग्विजय-यात्रा के दौरान आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने पुन: मूर्तियों को स्थापित किया और जागेश्वर-मन्दिर की पूजा का दायित्त्व दक्षिण भारतीय कुमारस्वामी को सौंप दिया।
इस प्रकार प्राचीन इतिहास का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि, जागेश्वर-मन्दिर अत्यन्त प्राचीन काल का है और नाग जातियों के द्वारा इस शिवलिंग की पूजा होने के कारण इसे ‘यागेश’ या ‘नागेश’ कहा जाने लगा। इसी के कारण इसे ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ मानने के पर्याप्त आधार मिल जाता है।
शिवपुराण की कथा
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में श्री शिव पुराण की कथा इस प्रकार है–
‘दारूका’ नाम की एक प्रसिद्ध राक्षसी थी, जो पार्वती जी से वरदान प्राप्त कर अहंकार में चूर रहती थी। उसका पति ‘दारूका’ महान् बलशाली राक्षस था। उसने बहुत से राक्षसों को अपने साथ लेकर समाज में आतंक फैलाया हुआ था। वह यज्ञ आदि शुभ कर्मों को नष्ट करता हुआ सन्त-महात्माओं का संहार करता था। वह प्रसिद्ध धर्मनाशक राक्षस था। पश्चिम समुद्र के किनारे सभी प्रकार की सम्पदाओं से भरपूर सोलह योजन विस्तार पर उसका एक वन था, जिसमें वह निवास करता था।
दारूका जहाँ भी जाती थी, वृक्षों तथा विविध उपकरणों से सुसज्जित वह वनभूमि अपने विलास के लिए साथ-साथ ले जाती थी। महादेवी पार्वती ने उस वन की देखभाल क�� दायित्त्व दारूका को ही सौंपा था, जो उनके वरदान के प्रभाव से उसके ही पास रहता था। उससे पीड़ित आम जनता ने महर्षि और्व के पास जाकर अपना कष्ट सुनाया। शरणागतों की रक्षा का धर्म पालन करते हुए महर्षि और्व ने राक्षसों को शाप दे दिया। उन्होंने कहा कि ‘जो राक्षस इस पृथ्वी पर प्राणियों की हिंसा और यज्ञों का विनाश करेगा, उसी समय वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठेगा। महर्षि और्व द्वारा दिये गये शाप की सूचना जब देवताओं को मालूम हुई, तब उन्होंने दुराचारी राक्षसों पर चढ़ाई कर दी। राक्षसों पर भारी संकट आ पड़ा। यदि वे युद्ध में देवताओं को मरते हैं, तो शाप के कारण स्वयं मर जाएँगे और यदि उन्हें नहीं मारते हैं, तो पराजित होकर स्वयं भूखों मर जाएँगे। उस समय दारूका ने राक्षसों को सहारा दिया और भवानी के वरदान का प्रयोग करते हुए वह सम्पूर्ण वन को लेकर समुद्र में जा बसी। इस प्रकार राक्षसों ने धरती को छोड़ दिया और निर्भयतापूर्वक समुद्र में निवास करते हुए वहाँ भी प्राणियों को सताने लगे।
एक बार उस समुद्र में मनुष्यों से भरी बहुत-सारी नौकाएँ जा रही थीं, जिन्हें उन राक्षसों ने पकड़ लिया। सभी लोगों को बेड़ियों से बाँधकर उन्हें कारागार में बन्द कर दिया गया। राक्षस उन यात्रियों को बार-बार धमकाने लगे। एक ‘सुप्रिय’ नामक वैश्य उस यात्री दल का अगुवा (नेता) था, जो बड़ा ही सदाचारी था। वह ललाट पर भस्म, गले में रुद्राक्ष की माला डालकर भगवान शिव की भक्ति करता था। सुप्रिय बिना शिव जी की पूजा किये कभी भी भोजन नहीं करता था। उसने अपने बहुत से साथियों को भी शिव जी का भजन-पूजन सिखला दिया था। उसके सभी साथी ‘नम: शिवाय’ का जप करते थे तथा शिव जी का ध्यान भी करते थे। सुप्रिय परम भक्त था, इसलिए उसे शिव जी का दर्शन भी प्राप्त होता था।
इस विषय की सूचना जब राक्षस दारूका को मिली, तो वह करागार में आकर सुप्रिय सहित सभी को धमकाने लगा और मारने के लिए दौड़ पड़ा। मारने के लिए आये राक्षसों को देखकर भयभीत सुप्रिय ने कातरस्वर से भगवान शिव को पुकारा, उनका चिन्तन किया और वह उनके नाम-मन्त्र का जप करने लगा। उसने कहा- देवेश्वर शिव! हमारी रक्षा करें, हमें इन दुष्ट राक्षसों से बचाइए। देव! आप ही हमारे सर्वस्व हैं, आप ही मेरे जीवन और प्राण हैं। इस प्रकार सुप्रिय वैश्य की प्रार्थना को सुनकर भगवान शिव एक 'विवर'[1] अर्थात् बिल से प्रकट हो गये। उनके साथ ही चार दरवाजों का एक सुन्दर मन्दिर प्रकट हुआ।
उस मन्दिर के मध्यभाग में (गर्भगृह) में एक दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकाशित हो रहा था तथा शिव परिवार के सभी सदस्य भी उसके साथ विद्यमान थे। वैश्य सुप्रिय ने शिव परिवार सहित उस ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन किया–
इति सं प्रार्थित: शम्भुर्विवरान्निर्गतस्तदा। भवनेनोत्तमेनाथ चतुर्द्वारयुतेन च।। मध्ये ज्योति:स्वरूपं च शिवरूपं तदद्भुतम्। परिवारसमायुक्तं दृष्टवा चापूजयत्स वै।। पूजितश्च तदा शम्भु: प्रसन्नौ ह्यभवत्स्वयम्। अस्त्रं पाशुपतं नाम दत्त्वा राक्षसपुंगवान्।। जघान सोपकरणांस्तान्सर्वान्सगणान्द्रुतम्। अरक्षच्च स्वभक्तं वै दुष्टहा स हि शंकर:।।[2]
सुप्रिय के पूजन से प्रसन्न भगवान शिव ने स्वयं पाशुपतास्त्र लेकर प्रमुख राक्षसों को, उनके अनुचरों को तथा उनके सारे संसाधनों (अस्त्र-शस्त्र) को नष्ट कर दिया। लीला करने के लिए स्वयं शरीर धारण करने वाले भगवान शिव ने अपने भक्त ��ुप्रिय ��दि की रक्षा करने के बाद उस वन को भी यह वर दिया कि ‘आज से इस वन में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र, इन चारों वर्णों के धर्मों का पालन किया जाएगा। इस वन में शिव धर्म के प्रचारक श्रेष्ठ ऋषि-मुनि निवास करेंगे और यहाँ तामसिक दुष्ट राक्षसों के लिए कोई स्थान न होगा।’
राक्षसों पर आये इसी भारी संकट को देखकर राक्षसी दारूका ने दैन्यभाव (दीनता के साथ) से देवी पार्वती की स्तुति, विनती आदि की। उसकी प्रार्थना से प्रसन्न माता पार्वती ने पूछा– ‘बताओ, मैं तेरा कौन-सा प्रिय कार्य करूँ?’! दारूका ने कहा– ‘माँ! आप मेरे कुल (वंश) की रक्षा करें।’ पार्वती ने उसके कुल की रक्षा का आश्वासन देते हुए भगवान शिव से कहा– ‘नाथ! आपकी कही हुई बात इस युग के अन्त में सत्य होगी, तब तक यह तामसिक सृष्टि भी चलती रहे, ऐसा मेरा विचार है।’ माता पार्वती शिव से आग्रह करती हुईं बोलीं कि ‘मैं भी आपके आश्रय में रहने वाली हूँ, आपकी ही हूँ, इसलिए मेरे द्वारा दिये गये वचन को भी आप सत्य (प्रमाणित) करें। यह राक्षसी दारूका राक्षसियों में बलिष्ठ, मेरी ही शक्ति तथा देवी है। इसलिए यह राक्षसों के राज्य का शासन करेगी। ये राक्षसों की पत्नियाँ अपने राक्षसपुत्रों को पैदा करेगी, जो मिल-जुलकर इस वन में निवास करेंगे-ऐसा मेरा विचार है।’
माता पार्वती के उक्त प्रकार के आग्रह को सुनकर भगवान शिव ने उनसे कहा– ‘प्रिय! तुम मेरी भी बात सुनो। मैं भक्तों का पालन तथा उनकी सुरक्षा के लिए प्रसन्नतापूर्वक इस वन में निवास करूँगा। जो मनुष्य वर्णाश्रम-धर्म का पालन करते हुए श्रद्धा-भक्तिपूर्वक मेरा दर्शन करेगा, वह चक्रवर्ती राजा बनेगा। कलि युग के अन्त में तथा सत युग के प्रारम्भ में महासेन का पुत्र वीरसेन राजाओं का महाराज होगा। वह मेरा परम भक्त तथा बड़ा पराक्रमी होगा। जब वह इस वन में आकर मेरा दर्शन करेगा। उसके बाद वह चक्रवर्ती सम्राट हो जाएगा।’ तत्पश्चात् बड़ी-बड़ी लीलाएँ करने वाले शिव-दम्पत्ति ने आपस में हास्य-विलास की बातें की और वहीं पर स्थित हो गये। इस प्रकार शिवभक्तों के प्रिय ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान शिव ‘नागेश्वर’ कहलाये और शिवा (पार्वती) देवी भी ‘नागेश्वरी’ के नाम से विख्यात हुईं। इस प्रकार शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए हैं, जो तीनों लोगों की कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं। जो कोई इस नागेश्वर महादेव के आविर्भाव की कथा को श्रद्धा-प्रेमपूर्वक सुनता है, उसके समस्त पातक नष्ट हो जाते हैं और वह अपने सम्पूर्ण अभीष्ट फलों को प्राप्त कर लेता है–
इति दत्तवर: सोऽपि शिवेन परमात्मना। शक्त: सर्वं तदा कर्त्तु सम्बभूव न संशय:।। एवं नागेश्वरो देव उत्पन्नो ज्योतिषां पति:। लिंगस्पस्त्रिलोकस्य सर्वकामप्रद: सदा।। एतद्य: श्रृणुयान्नित्यं नागेशोद्भवमादरात्। सर्वान्कामानियाद्धिमान्ममहापातक नाशनान्।।[3]
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जनपद नैनीताल में चमड़िया बैंड पर बस व कार की भिड़ंत 23 घायल एक की मौत
जनपद नैनीताल में चमड़िया बैंड पर बस व कार की भिड़ंत 23 घायल एक की मौत
नैनीताल   आज दिनांक 15 जनवरी 2023 को पुलिस चौकी खैरना, थाना भवाली द्वारा SDRF को सूचित किया गया कि हल्द्वानी से शीतला खेत अल्मोड़ा जा रही केमू बस संख्या (UK04 PA0520) से अल्मोड़ा से हल्द्वानी जा रही टैक्सी (UK04TB3053) की आपसी भिड़ंत होने के कारण बस अनियंत्रित होकर सड़क पर ही पलट गई है जिसमे रेस्क्यू हेतु SDRF टीम की आवश्यकता है। उक्त सूचना पर SDRF टीम HC नवीन कुंवर के हमराह मय रेस्क्यू उपकरणों के…
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बस के ऊपर गिरा हाईटेंशन तार, तीन की मौत :उत्तराखंड
बस के ऊपर गिरा हाईटेंशन तार, तीन की मौत :उत्तराखंड
अल्‍मोड़ा: राज्य में लगातार हो रहे हादसों के बाद आज जिले में फिर से एक हादसा हो गया. रामनगर जा रही गढ़वाल मोटर्स की बस पर हाईटेंशन लाइन का तार टूटकर गिर गया. जिससे बस में करंट दौड़ गया. इस दौरान तीन यात्रियों की मौत हो गई ।
जानकारी के मुताबिक घटना आज सुबह की है. वहीं हादसा तब हुआ जब गढ़वाल मोटर्स की बस गौलिखाल पौड़ी से रामनगर जा रही थी. यात्रियों से भरी बस नैनीताल व अल्मोड़ा जनपद की सीमा स्थित…
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theindiapost · 7 years
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आखिर क्या बात होगी की स्टीव जॉब्स ,मार्क जुकरवर्ग और जूलिया राबर्टसनीम किरौली बाबा के भक्त बन गए देवभूमि उत्तराखंड की अलौकिक वादियों में से एक दिव्य रमणीक लुभावना स्थल "कैंची धाम" कैंची धाम जिसे नीम किरौली धाम भी कहा जाता है, उत्तराखंड का एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां वर्षभर श्रद्धालुओ का तांता लगा रहता है। अपार संख्या में भक्तजन व श्रद्धालु यहां पहुंचकर अराधना व श्रद्धा पुष्प श्री नीम किरौली के चरणों में अर्पित करते है। हर वर्ष १५ जून को यहां एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है। भक्तजन यहां पधारकर अपनी श्रद्धा व आस्था को व्यक्त करते है। कहते है कि ��हां पर श्रद्धा एवं विनयपूर्वक की गयी पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है। यहां पर मांगी गयी मनौती पूर्णतया फलदायी कही गयी है। इस मंदिर की स्थापना को लेकर कई रोचक कथाएं जनमानस में खासी प्रसिद्ध है। नीम किरौली महाराज की अनुपम कृपा से ही इस स्थान पर मंदिर की स्थापना की गई। कहते है कि १९६२ के आस-पास श्री महाराज जी ने यहां की भूमि पर कदम रखा तथा उनके चरणों की आभा पाकर यह भूमि धन्य हुई। जब वे सन् १९६२ के लगभग यहां पहुचे तो उन्होंने अनेक चमत्कारिक लीलाएं रचकर जनमानस को हतप्रभ कर दिया। एक चमत्कारिक कथा के अनुसार माता सिद्धि व तुलाराम शाह के साथ बाबा नीम किरौली महाराज किसी वाहन से जनपद अल्मोड़ा के रानीखेत नामक स्थान से नैनीताल को आ रहे थे तो अचानक वे कैंची धाम के पास उतर गए। इस बीच उन्होंने तुलाराम जी को बताया कि श्यामलाल अच्छा आदमी था, उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी, क्योंकि श्यामलाल जी उनके समधी थे। भाषा में 'था' शब्द के उपयोग से वे बेरुखे हो गए। किसी तरह मन को काबू में रखकर वे अपने गंतव्य स्थल को चल दिए। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि उनके समधी का हृदय गति रुकने से देहांत हो गया। कितना अलौकिक दिव्य चमत्कार था बाबा नीम किरौली महाराज का कि उन्होंने दूर घटित घटना को बैठे-बैठे जान लिया इस तरह की अनेक चमत्कारिक घटनाएं बाबा नीम किरौली महाराज जी से जुड़ी हुई है। इसी तरह १५ जून १९९१ को घटी एक चमत्कारिक घटना के अनुसार कैंची धाम में आयोजित भक्तजनों की विशाल भीड़ में बाबा ने बैठे-बैठे इसी तरह निदान करवाया कि जिसे यातायात पुलिसकर्मी घंटो से नहीं करवा पाए। थक-हार कर उन्होंने बाबा जी की शरण ली। आख़िरकार उनकी समस्याओ का निदान हुआ। यह घटना आज भी खास चर्चाओ में रहती है। इसके आलावा यहाँ आयोजित भंडारे में 'घी' की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो, वह जल घी में परिवर्तित हो गया। इस चमत्कार से आस्थावान भक्तजन नतमस्तक हो उठे। एक अन्य चमत्कार के अनुसार बाबा नीम किरौली महाराज जी ने गर्मी की तपती धूप में एक भक्त को बादल की छतरी बनवाकर उसे उसकी मंजिल तक पहुचवाया। इस तरह एक नहीं अनेक किवंदतिया जुड़ी हुई है बाबा नीम किरौली महाराज से। नीम करौली बाबा को यह स्थान बहुत प्रिय था। प्राय: हर गर्मियों में वे यहीं आकर निवास करते थे। बाबा के भक्तों ने इस स्थान पर हनुमान का भव्य मन्दिर बनवाया। उस मन्दिर में हनुमान की मूर्ति के साथ-साथ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। अब तो यहाँ पर बाबा नीम करौली की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित कर दी गयी है। धाम में हनुमान जी, राम-सीता और मां दुर्गा के मंदिर हैं। कैंची धाम बाबा नीम करौली और हनुमान जी की महिमा के लिए प्रसिद्ध है। नीम करौली धाम की स्थापना को लेकर कई रोचक कथाएं प्रसिद्ध हैं। फेसबुक और एप्पल के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, स्टीव जॉब्स को राह दिखाने वाले नीम करौली बाबा हमेशा एक कंबल ओढ़े रहते थे। नीम करौली बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मात्र 11 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया। शादी के कुछ समय बाद ही उन्होंने घर छोड़ दिया। 17 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। नीम करौली बाबा हनुमान जी के भक्त थे। उन्होंने अपने जीवन में 108 हनुमान मंदिर बनवाए। बाबा ने अपनी समाधि के लिए वृंदावन की पवित्र भूमि को चुना। १० सितंबर १९७३ को उन्होंने शरीर त्याग दिया। मार्क जुकरबर्ग भी कैंची धाम आश्रम में आए। वह यहां दो दिन रुके थे। फेसबुक के मुश्किल के दिनों में मार्क जुकरवर्ग, एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स की सलाह पर इस मंदिर में आए थे। हॉलीवुड की अभिनेत्री जूलिया राबर्टस भी नीम करौली बाबा की भक्त रहीं हैं।।।
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devbhumimedia · 7 years
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शैलेश मटियानी पुरस्कार से नवाजे जायेंगे राज्य के 27 श‌िक्षक 12 टीचर बेसिक के  भी होंगे पुरस्कृत बेसिक के 12, माध्यमिक के 13 और DIET एवं संस्कृत शिक्षा के एक-एक टीचर देहरादून : शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर टीचरों को दिए जाने वाले प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ शैलेश मटियानी पुरस्कार की मंगलवार को घोषणा कर दी गई है। इस बार 27 टीचरों को शैलेश मटियानी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। राज्यपाल डॉ. केके पाल की मंजूरी के बाद वर्ष 2015 के लिए टीचरों के नामों की घोषणा कर दी गई है। इसमें बेसिक के 12, माध्यमिक के 13 और प्रशिक्षण संस्थान एवं संस्कृत शिक्षा के एक-एक टीचर शामिल हैं। राज्य में शिक्षा के उन्नयन एवं इसमें गुणात्मक सुधार के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वाले टीचरों को यह पुरस्कार दिया जाता है। इस बार संस्कृत शिक्षा से श्री बदरीनाथ राजकीय संस्कृत महाविद्यालय नई टिहरी के सहायक अध्यापक दिनेश प्रसाद बडोनी एवं प्रशिक्षण संस्थान से जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान गौचर, चमोली में प्रवक्ता सत्ये सिंह राणा को यह पुरस्कार दिया जाएगा। माध्यमिक के 13 टीचरों को मिलेगा पुरस्कार पौड़ी जनपद के जीजीआईसी कलालघाटी की सहायक अध्यापिका डॉ. मंजू कपरवाण, रुद्रप्रयाग जनपद के नागेंद्र इंटर कॉलेज बजीरा लस्या के सहायक अध्यापक बीरेंद्र सिंह राणा, फूलचंद नारी शिल्प गर्ल्स इंटर कॉलेज देहरादून की प्रिंसिपल कुसुम रानी नैथानी, जीआईसी भगवती जनपद चमोली के प्रवक्ता कुंवर सिंह गुसाईं, जीआईसी जोशियाड़ा उत्तरकाशी के सहायक अध्यापक वीरेंद्र सिंह नेगी, जीआईसी तपोवन टिहरी गढ़वाल के रामाश्रय सिंह, जीआईसी रुड़की हरिद्वार के राम शंकर सिंह, जीजीआईसी रानीखेत अल्मोड़ा की प्रिंसिपल नीलम नेगी, जीआईसी वज्यूला जनपद बागेश्वर के प्रवक्ता जीवन चंद दुबे, जीआईसी सिप्टी जनपद चंपावत के प्रवक्ता ललित मोहन बोहरा, जीजीआईसी भवाली नैनीताल की सहायक अध्यापिका गीता लोहनी, जीआईसी बेरीनाग पिथौरागढ़ प्रवक्ता दरपान सिंह टम्टा और बीएसवी इंटर कॉलेज जसपुर ऊधमसिंह नगर के प्रवक्ता स्वतंत्र कुमार मिश्रा। वहीँ 12 बेसिक के अध्यापकों को भी शैलेश मटियानी पुरस्कृत से नवाजा जायेगा जिनमें  प्राथमिक विद्यालय नीलकंठ यमकेश्वर, जनपद पौड़ी गढ़वाल की रीता सेमवाल, उत्यासूं रुद्रप्रयाग की प्रमिला भंडारी, बौन उत्तरकाशी की रेखा रानी कोटियाल, अजबपुर कला नंबर एक रायपुर देहरादून की कुसुमलता, सिमल्ट चमोली की ममता डिमरी, विशेष आवासीय विद्यालय अलीपुर बहादराबाद हरिद्वार के किशन पाल महर, पनुवानौला धौलादेवी अल्मोड़ा की पुष्पा जोशी, जखेड़ा बागेश्वर के राम लाल, भुड़ाई खटीमा ऊधमसिंह नगर के भानुप्रताप गुप्ता, हल्दूपोखरा नायक हल्द्वानी नैनीताल की विमला जोशी, भूलगांव मूनाकोट पिथौरागढ़ की दीपा कलाकोटी एवं राउमावि फुंगर चंपावत के महेश गिरी को पुरस्कृत किया जाएगा।
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lokkesari · 3 years
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मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने राज्य में विभिन्न विकास कार्यों हेतु वित्तीय एवं प्रशासकीय दी स्वीकृति
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मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने राज्य में विभिन्न विकास कार्यों हेतु वित्तीय एवं प्रशासकीय दी स्वीकृति
मुख्यमंत्री पुष्कर धामीi ने विभिन्न विकास कार्यों हेतु वित्तीय एवं प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की है। मुख्यमंत्री ने राज्य योजनान्तर्गत विधानसभा क्षेत्र टिहरी के अन्तर्गत 05 निर्माण कार्यों हेतु ₹223.07 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है।
मुख्यमंत्री धामी ने विधानसभा क्षेत्र डीडीहाट के अन्तर्गत छड़नदेव-गैडाली-चनौली मोटर मार्ग के पुनर्निर्माण एवं सुधारीकरण कार्य हेतु ₹180.55 लाख एवं विधानसभा क्षेत्र डीडीहाट के अन्तर्गत 02 निर्माण कार्यों हेतु ₹140.26 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है।
गदरपुर विधानसभा के अन्तर्गत 02 कार्यों हेतु ₹1002 लाख, नैनीताल विधानसभा के अन्तर्गत काण्डा-डौन-परेवा अमगढ़ी मोटर मार्ग के सुधारीकरण कार्य हेतु ₹139.13 लाख, विधानसभा क्षेत्र बागेश्वर के अन्तर्गत 10 निर्माण कार्यों हेतु ₹600.82 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है।
मुख्यमंत्री ने विधानसभा बागेश्वर में कठपुलियाछिना से भोलनानाघर तक मोटर मार्ग के निर्माण हेतु ₹19.62 लाख, मसूरी विधानसभा के मालदेवता-सेरकी सिल्ला मोटर मार्ग के सुधारीकरण हेतु ₹193.70, भीमताल विधानसभा के देवलीधार से सुरंग तक मोटर मार्ग के निर्माण हेतु ₹45 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है।
जनपद नैनीताल के मोटर मार्ग में सुरक्षात्मक कार्य हेतु ₹166.91 लाख, रामनगर-कालाढूंगी सितारगंज-बिजटी मोटर मार्ग में रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹77.54 लाख, देवप्रयाग विधानसभा में लक्षमोली हिसरियाखाल -जामणीखाल मोटर मार्ग के सुधारीकरण हेतु ₹86.68 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई है।
जनपद पौड़ी में स्व० जगमोहन सिंह नेगी मोटर मार्ग में दिशा सूचक / साईनेज के कार्य हेतु ₹114.55 लाख, यमुनोत्री विधानसभा में कैश बैरियर एवं साइनेज के कार्य हेतु ₹71.42, जनपद टिहरी गढ़वाल में मोटर मार्ग में सुरक्षात्मक कार्य हेतु ₹409.89 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई है।
जनपद अल्मोड़ा में विभिन्न मोटर मार्गों में साईनेज/सुरक्षात्मक कार्य हेतु ₹142.29 लाख, मसूरी विधानसभा में मोटर मार्ग सुधारीकरण / साईनेज का कार्य हेतु ₹268.77 लाख, लैंसडाउन विधानसभा के मोटर मार्ग में डिफैक्ट कट���ंग/मरम्मत हेतु ₹197.89 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई है।
लैंसडाउन विधानसभा में धुमाकोट पीपली मोटर मार्ग में डिफैक्ट कटिंग, मरम्मत व स्क्वर निर्माण हेतु ₹197.89 लाख, उत्तरकाशी-लम्बगांव-घनसाली-तिलवाड़ा (चारधाम यात्रा) मोटर मार्ग में सुरक्षात्मक कार्य हेतु ₹149.02 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है।
पौड़ी-देवप्रयाग-गजा-जाजल मोटर मार्ग में रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹650 लाख, वड्डा-चमना (अनु०ग्राम) बुरांसी मोटर मार्ग में डामरीकरण एवं पक्कीकरण हेतु ₹740 लाख, जनपद टिहरी में मोटर मार्ग में रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹40.56 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है।
जनपद देहरादून में अन्ना हजारे चौक में रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹80.63 लाख, चांदनी चौक में रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹135.09 लाख, माजरा-बुड्डी में शेखोवाला-धर्मावाला रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹197 लाख, सहिया-क्वानु में रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹650 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है।
जनपद अल्मोड़ा में अल्मोड़ा-बैजनाथ-ग्वालदम-कर्णप्रयाग मोटर मार्ग में रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹591.42 लाख, विधानसभा क्षेत्र द्वाराहाट में जालीखान-उत्तमछानी-नौबाडा मोटर मार्ग में रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹25.98 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई है।
जनपद बागेश्वर में राज्य मार्ग-11 में सेफ्टी कार्य हेतु ₹104.65 लाख, जनपद चमोली में नन्दप्रयाग-घाट मोटर मार्ग में साईनेज/रोड सेफ्टी कार्य हेतु ₹234.81 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई है।
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अगले 24 घंटे में नैनीताल, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में भारी बारिश की संभावना, येलो अलर्ट जारी
अगले 24 घंटे में नैनीताल, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में भारी बारिश की संभावना, येलो अलर्ट जारी
देहरादून: मानसून की सक्रियता बढ़ने से सोमवार देर रात से मंगलवार को पूरे दिन राजधानी दून के साथ पहाड़ी जिलों में झमाझम बारिश हुई। इससे पिछले कई दिनों से गर्मी से जूझ रहे लोगों ने राहत की सांस ली। वाहिबमौसम विभाग ने अगले 24 घटों में अल्मोड़ा, नैनीताल व पिथौरागढ़ आदि जिलों के लिए येलो अलर्ट भी जारी किया है। देहरादून में हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है। चमोली जनपद में मंगलवार देर रात से हो रही बारिश…
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