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#आयकर कानून
dainiksamachar · 8 months
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क्‍या बजट में इनकम टैक्‍स रिबेट को बढ़ाया गया है? समझ‍िए कैसे आपकी टैक्‍स देनदारी कम करती है यह छूट
नई दिल्‍ली: क्‍या अंतरिम बजट में को बढ़ाया गया है? इस सवाल जवाब है नहीं। 2024 के बजट में इनकम टैक्स रिबेट को नहीं बढ़ाया गया है। 2023-24 के लिए आयकर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये है। यह 2024-25 के लिए भी यही रहेगी। वित्‍त मंत्री न‍िर्मला सीतारमण ने सेक्‍शन 87ए के तहत टैक्‍स रिबेट में बढ़ोतरी का का कोई ऐलान नहीं किया है। टैक्‍स रिबेट एक तरह की छूट है जो सरकार टैक्‍सपेयर्स को देती है। इससे टैक्‍स देनदारी घटाने में मदद मिलती है। टैक्‍स रिबेट और टैक्‍स छूट में फर्क होता है। टैक्‍स छूट में आपको टैक्‍स नहीं देना होता है। जबकि टैक्‍स रिबेट में आपको टैक्‍स देना होता है, लेकिन सरकार आपको कुछ राशि वापस कर देती है। यह रिबेट उन टैक्‍सपेयर्स को दी जाती है जो कुछ खास बचत स्‍कीमों में निवेश करते हैं। क‍िस तरह से म‍िलता है फायदा? वर्तमान में आयकर कानून की धारा 87ए लोगों को पुरानी टैक्‍स व्यवस्था के तहत 12,500 रुपये क्‍लेम करने की इजाजत है। इसी तरह नई टैक्‍स व्यवस्था के तहत 25,000 रुपये टैक्‍स रिबेट में क्‍लेम किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि पुरानी टैक्‍स व्यवस्था को चुनने वाले लोगों को तब तक कोई टैक्‍स नहीं देना है जब तक उनकी टैक्‍सेबल इनकम 5 लाख रुपये से ज्‍यादा नहीं है। इसी तरह अगर कोई नई टैक्‍स व्यवस्था का विकल्प चुनता है तो 7 लाख रुपये तक की टैक्‍सेबल इनकम पर शून्य टैक्‍स देनदारी होगी। ध्यान देने वाली बात यह है कि सेक्‍शन 87ए के तहत डिडक्‍शन देय टैक्‍स से होता है, न कि व्यक्ति की इनकम से। इसे क्‍लेम करने के ल‍िए क्‍या करना पड़ता है? टैक्‍स रिबेट क्‍लेम करने के लिए इनमक डिपार्टमेंट को एक फॉर्म भरना होता है। इस फॉर्म में अपनी आय, निवेश और अन्य जानकारी का ब्‍योरा देना पड़ता है। टैक्‍स रिबेट एक निश्चित रकम होती है जिसे सरकार तय करती है। टैक्‍स रिबेट का फायदा यह है कि इससे टैक्‍स देनदारी को कम करने में मदद मिली है। यह करदाताओं को बचत करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इससे दिव्‍यांगों को आर्थिक सहायता मिलती है। सेक्शन 87ए के तहत रिबेट पाने के लिए एलिजिबिलिटी के कुछ मानदंड हैं। मसलन, आपकी आय 5 लाख रुपये से कम होनी चाहिए। इसके लिए भारत का निवासी होना जरूरी है। आपको कोई अन्य छूट या कटौती नहीं मिल रही हो। http://dlvr.it/T29v3f
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currenthunt · 9 months
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न्यायमूर्ति के.एस.पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, 2017 मामले में ऐतिहासिक निर्णय ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया
न्यायमूर्ति के.एस.पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, 2017 मामले में ऐतिहासिक निर्णय ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। हालाँकि भारत में आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 द्वारा दी गई अतिरिक्त-सांविधानिक शक्तियों के संबंध में चिंताएँ सामने आई हैं क्योंकि वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करती प्रतीत होती हैं। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 - यह धारा वर्ष 1961 में आयकर अधिनियम, 1961 के भाग के रूप में, आय पर कराधान (अन्‍वेषण आयोग) अधिनियम, 1947 को प्रतिस्थापित करने के लिये प्रस्तुत की गई थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने सूरज मल मोहता बनाम ए.वी. विश्वनाथ शास्त्री (1954) मामले में रद्द कर दिया था क्योंकि न्यायालय के अनुसार इसमें करदाताओं के एक निश्चित वर्ग के साथ अन्य की तुलना में विशेष व्यवहार का प्रावधान था जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित एकसमान व्यवहार की गारंटी का हनन हुआ। - वर्ष 1922 में प्रस्तुत मूल आयकर कानून में खोज तथा ज़ब्ती शक्तियों का अभाव था। - आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132, कर अधिकारियों को बिना किसी पूर्व न्यायिक वारंट के व्यक्तियों तथा संपत्तियों की खोज/तलाशी एवं ज़ब्ती करने का अधिकार देती है यदि उनके पास “संदेह करने का कारण” है कि व्यक्ति ने आय छुपाई है अथवा चोरी की है। - यह अधिकारियों को वित्तीय संपत्ति छिपाने के संदेह के आधार पर भवन, स्थानों, वाहनों अथवा विमानों की तलाशी लेने की शक्ति प्रदान करता है। - संबद्ध अधिकारी इस अधिनियम के तहत तलाशी अथवा सर्वेक्षण के दौरान किसी भी व्यक्ति के कब्ज़े में पाई गई ऐसी वस्तुओं को ज़ब्त कर सकते हैं। तलाशी के दौरान खोजी गई बहीखाते, धन, बुलियन, आभूषण अथवा अन्य मूल्यवान वस्तुओं को ज़ब्त करने की अनुमति देता है। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 से संबंधित मामला पूरन मल बनाम निरीक्षण निदेशक - अमुक प्रावधान की सांविधानिकता को पूरन मल बनाम निरीक्षण निदेशक (1973) मामले में चुनौती दी गई थी। - सर्वोच्च न्यायालय ने एम.पी. शर्मा बनाम सतीश चंद्रा (1954) में अपने निर्णय का हवाला देते हुए कानून को बरकरार रखा और तर्क दिया कि खोज व ज़ब्ती की शक्ति सामाजिक सुरक्षा के बचाव के लिये आवश्यक है एवं विधि द्वारा विनियमित है। - अदालत ने यह भी कहा कि संविधान तलाशी और ज़ब्ती के बारे में अमेरिकी चौथे संशोधन के समान निजता के मौलिक अधिकार को मान्यता नहीं देता है। - अमेरिकी चौथा संशोधन सरकार द्वारा अनुचित तलाशी और ज़ब्ती से बचाता है। - यह निष्कर्ष निकाला गया कि तलाशी के लिये वैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 20(3) के तहत संवैधानिक सुरक्षा को पराजित नहीं करते हैं। - एम.पी. शर्मा मामले में फैसला आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत तलाशी से संबंधित था, जबकि आयकर अधिनियम के तहत तलाशी के लिये न्यायिक लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है। - एम.पी. शर्मा के फैसले को औपचारिक रूप से खारिज कर दिये जाने के बाद से कानून के बारे में न्यायालय की स���झ बदल गई है। निजता का अधिकार अब संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में अंतर्निहित माना जाता है। आयकर अधिनियम,1961 की धारा 132 के संबंध में चुनौतियाँ आनुपातिक सिद्धांत का उल्लंघन - आयकर अधिनियम की धारा 132, औपचारिक रूप से चुनौती नहीं दिये जाने के बावजूद, आनुपातिकता के सिद्धांत के संभावित उल्लंघन का सुझाव देती है। - तलाशी और ज़ब्त करने की राज्य की शक्ति को अब सामाजिक सुरक्षा के एक सरल उपकरण के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि यह आनुपातिकता के सिद्धांत के अधीन है। इसका मतलब यह है कि इसका उपयोग एक वैध उद्देश्य के लिये किया जाना चाहिये, तर्कसंगत रूप से अपने उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिये, कोई वैकल्पिक कम दखल देने वाला साधन उपलब्ध नहीं होना चाहिये और चुने गए साधनों तथा उल्लंघन किये गए अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिये। - सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य आयकर निदेशक बनाम लालजीभाई कांजीभाई मांडलिया, 2022 के मामले में “वेडनसबरी (Wednesbury)” अवधारणा पर निर्भरता प्रदर्शित की, जो ब्रिटेन की अदालत के फैसले से लिया गया प्रशासनिक समीक्षा का एक मानक है, जिसमें तलाशी को न्यायिक नहीं बल्कि प्रशासनिक माना गया है। - वेडनसबरी सिद्धांत कहता है कि यदि कोई निर्णय इतना अनुचित है कि कोई भी समझदार प्राधिकारी इसे कभी नहीं ले सकता है, तो ऐसे निर्णय न्यायिक समीक्षा के माध्यम से रद्द किये जा सकते हैं। - आलोचकों का तर्क है कि पुट्टस्वामी के बाद, वेडनसबरी मानदंड का कोई स्थान नहीं है, खासकर जहाँ बुनियादी अधिकार खतरे में हैं और किसी भी कार्यकारी कार्रवाई को वैधानिक कानून का सबसे सख्त अर्थ में पालन करना चाहिये। निजता के अधिकार का हनन - निजता का अधिकार, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक बुनियादी अधिकार है, अनुचित तलाशी और ज़ब्ती के साथ-साथ गोपनीय रूप से व्यक्तिगत जानकारी से सुरक्षा प्रदान करता है। - हालाँकि आयकर की जाँच व्यक्तियों की सहमति के बिना उनकी गोपनीयता में हस्तक्षेप करती हैं, जो प्रायः अस्पष्ट आधारों पर आधारित होती हैं, जिससे संभावित दुरुपयोग होता है। - इसके अतिरिक्त, दुरुपयोग को रोकने और I-T जाँचों के अधीन व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपायों तथा निरीक्षण तंत्र की कमी है। - कड़े सुरक्षा उपायों के अभाव के कारण  व्यक्तियों को कर अधिकारियों द्वारा शक्ति के संभावित दुरुपयोग के लिये उजागर किया जाता है। जाँच की अवधि और शर्तें - गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा उस छापेमारी पर सवाल उठाना जहाँ व्यक्तियों को कथित तौर पर उचित सुरक्षा उपायों के बिना कई दिनों तक आभासी हिरासत में रखा गया था, ऐसी खोजों की अवधि और शर्तों से संबद्ध चिंताओं को उजागर करता है। Read the full article
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gstnitbuddies-blog · 1 year
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प्राइवेटसिक्योरिटीएजेंसी (PSARA License) कैसेप्राप्तकरें
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भारत में निजी सुरक्षा व्यवसाय शुरू करने से पहले Psara License लेना आवश्यक है | क्या अपने कभी सोचा है कि PSARA License कैसे लिया जाता है तो आज की वीडियो आपके लिये बहुत ही ज्यादा लाभ दायक है | आइये Psara license लेने की पूरी प्रक्रिया के बारे मे जानते है|
Psara license लेने पूरी प्रक्रिया
Psara License लेने के लिये सबसे पहले एक फॉर्म या कंपनी का निर्माण करना होगा | निजी सुरक्षा एजेंसी का मतलब एक एंटिटी है जो पुलिस के विकल्प के रूप में एक प्रतिष्ठान में सुरक्षा गार्ड और अन्य सेवाएं प्रदान करने के व्यवसाय मे शामिल हैं | निजी सुरक्षा एजेंसी के संचालन को निजी सुरक्षा एजेंसी विनियमन अधिनियम, 2005 के माध्यम से संचालित किया जाता है| जिसे प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी रेगुलेशन एक्ट (Psara) के नाम से भी जाना जाता है | Psara अधिनियमित होने के बाद व्यवसाय शुरू करने से पहले एक सुरक्षा एजेंसी के लिए राज्य नियंत्रण प्राधिकरण से संबंधित लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है | और गैर अनुपालन के मामले में कानून मे कड़े दंडात्मक नतीजा शामिल है | भारत में निजी सुरक्षा एजेंसी खोलने के लिये लाइसेंस के लिये आवेदन राज्य के लिये सक्षम प्राधिकारी यानि कॉम्पिटेंट अथॉरिटी को किया जाता है | Psara लाइसेंस किसी विशेष राज्य के एक या एक से अधिक जिले या पूरे राज्य मे संचालित करने के लिये जारी किया जाता है
Psara लाइसेंस के लिए आवेदन करने की पात्रता
Psara लाइसेंस के लिए कौन कौन आवेदन कर सकता है |
एक व्यक्ति
साझेदारी फर्म
सीमित देयता भागीदारी फर्म
एक व्यक्ति कंपनी
प्राइवेट लिमिटेड कं���नी
संबंधित राज्य के कॉम्पिटेंट अथॉरिटी को Psara License के लिये आवेदन कर सकते है |
निदेशक अधिकारी की पात्रता
आवेदक के पुलिस सत्यापन के लिये आवेदन कर्ता को भारतीय निवासी होना अनिवार्य है|
आयकर रिटर्न की एक प्रति पेश करने की ज़रूरत होती है | किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं होना चाहिए |
राष्ट्रीय हित खंड
ये लाइसेंस किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं दिया जाता है यदि वह राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक व्यवस्था की रक्षा के लिए किसी भी कानून के तहत प्रतिबंधित संगठन या एसोसिएशन के साथ संपर्क रखता हो |
आवेदक का नाम और उद्देश्य
एंटिटी के नाम में सुरक्षा, सेवा से संबंधित शब्द शामिल होने चाहिए | जो आवेदक के उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करता हो |
कंपनी के मामले में, MOA में मुख्य उद्देश्यों में से एक के रूप मे सुरक्षा सेवाए प्रदान करना शामिल होना चाहिए |
प्रशिक्षण संस्था के साथ MOU
PSARA लाइसेंस के लिये आवेदक को प्रशिक्षण संस्थान या एक संगठन के साथ समझौता ज्ञापन में प्रवेश करना चाहिए | जिसे राज्य नियंत्रक प्राधिकरण द्वारा सुरक्षा गार्ड को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये अनुमोदित किया गया हो | पूर्व सैनिकों के लिये प्रशिक्षण आवश्यकता में छूट है |
Psara लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया
अपनी योग्यता और दस्तावेजों की जांच करें | Psara लाइसेंस आवेदन करने का पहला चरण सभी आवश्यक दस्तावेज़ जैसे पैनकार्ड, टैन नंबर , GST , provident fund, ईएसआई , दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम के तहत स्थापना का रजिस्ट्रेशन और सभी निर्देशक का आयकर |
एक प्रशिक्षण संस्थान के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर
आवेदक अपने गार्ड और सुपरवाइजर को प्रशिक्षित करने के लिए एक मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण संस्थान के एक समझौता ज्ञापन में प्रवेश करने के लिए होना चाहिए |
राज्य की कंट्रोलिंग अथॉरिटी में फाइलिंग
सहायक दस्तावेज के साथ भरे हुए पत्रों को नियंत्रित करने वाले प्राधिकरण मे जमा करने के बाद, आवेदन को सत्यापन के लिए संसाधित किया जाता है | पुलिस अधिकारी से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त होने के बाद प्राधिकरण को लाइसेंस की मजूरी दे सकता है या किसी कारण के साथ अस्वीकृत कर सकता है |
Psara लाइसेंस की शर्त: -
Psara यह बताता है की प्रत्येक सुरक्षा एजेंसी सुरक्षा गार्ड के काम की निगरानी के लिए पर्यवेक्षक को जोड़ने की आवश्यकता है| पर्यवेक्षक को आवश्यक प्रशिक्षण और कौशल प्रदान करने के लिए सुरक्षा एजेंसी की आवश्यकता होती हैं | क़म से कम तीन साल के अनुभव के साथ सेना, नौसेना या वायुसेना के साथ एक व्यक्ति को पर्यवेक्षक को जोड़ते समय तरजीह दी जानी चाहिए | अधिनियम एक सुरक्षा गार्ड के लिए मापदंड, योग्यता को निर्धारित करता है |
Psara पंजीकरण के लिये आवश्यक दस्तावेज़: -
इन्‌ˌकॉपˈरेश्‌न्‌ का प्रमाणपत्र और MOA
पंजीकृत कार्यालय का दस्तावेज़
प्रशिक्षण संस्थान के साथ समझौता ज्ञापन
सुरक्षा गार्ड के दस्तावेज़
निदेशक का पहचान पत्र और पता प्रमाण पत्र
प्रत्येक प्रोत्साहक का पैन कार्ड
प्रोत्साहक की दो तस्वीर
प्रत्येक निदेशक की आयकर
Psara पंजीकरण के लिए हमारे विशेषज्ञ से बात करें | यदि आप भी भविष्य में Psara पंजीकरण के लिए सोच रहे है तो आज ही हमसे संपर्क करे हमारे फ़ोन नंबर है +91-7229903363 और अधिक जानकारी के लिये हमारी वेबसाइट www.gstnitbuddies.com पर विजिट करे |
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nationalnewsindia · 2 years
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onlinesujhav · 2 years
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GST IN Hindi : Full Form - GST क्या है पूरी जानकारी हिंदी में?
GST Kya Hai In Hindi  : नियम, फुल फॉर्म, अर्थ एंव विशेषताएं और लाभ - हानि 
GST FULL FORM In Hindi
GST FULL FORM: GOODS & SERVICE TAX 
GST FULL FORM IN HINDI: वस्तु एंव सेवा कर GST IN Hindi
GST क्या है In Hindi
Contents
वस्तु एवं सेवा कर का परिचय 
(Introduction to Goods and Service Tax-GST) 
वस्तु एवं सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है। हमारे देश में इसे 1 जुलाई, 2017 से लागू किया गया है। इसके पूर्व हमारे देश में केन्द्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अनेक अप्रत्यक्ष कर लगाये गये थे। भारत एक प्रजातान्त्रिक गणतन्त्र (Democratic Republic) देश है तथा हमारे देश में कानून की सर्वोच्च शक्ति संविधान में निहित है। हमारे संविधान में इस बात का उल्लेख है कि कानूनी अधिकार के बिना किसी भी कर का संग्रहण नहीं किया जा सकता है। अतः वस्तु एवं सेवा कर का परिचय (सम्बन्धित प्रावधान) जानने के पूर्व संक्षेप में अप्रत्यक्ष करों की पृष्ठभूमि जानना भी उचित रहेगा। 
अप्रत्यक्ष करों की पृष्ठभूमि  (Background of Indirect Taxes) 
कर से आशय (Meaning of Tax) : कर सरकार द्वारा लगाया गया आर्थिक प्रभार है जिसका भुगतान जनता द्वारा सरकार को किया जाता है। सरकार इस धन का प्रयोग जनता को सुविधाएँ प्रदान करने के लिए करती है। कर सामान्यतः व्यक्ति या सम्पत्ति पर लगाया जाता है। 
करों के प्रकार : कर का भार वहन करने की दृष्टि से इसे निम्न दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- 
(1) प्रत्यक्ष कर (Direct Tax) 
(2) अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) 
(1) प्रत्यक्ष कर (Direct Tax) : 
यदि कर का वास्तविक भार भी उसी व्यक्ति को वहन करना पड़े जिस पर यह कर लगाया गया है, तो ऐसे कर को प्रत्यक्ष कर कहते हैं। जैसे, आयकर। आयकर किसी व्यक्ति की आय पर लगाया जाता है। पूर्व में कई अन्य प्रत्यक्ष कर प्रभाव में रहे हैं जैसे धनकर, उपहार कर, सम्पदा शुल्क (Estate Duty) आदि। वर्तमान में प्रमुख प्रत्यक्ष कर आयकर ही है। 
(2) अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) : 
यदि कर का वास्तविक भार उसी व्यक्ति को वहन नहीं करना पड़े जिस पर यह लगाया गया है, बल्कि इसे अन्य व्यक्ति पर हस्तान्तरित कर दिया जाये तथा अन्तिम उपभोक्ता को इसका भार वहन करना पड़े तो इसे अप्रत्यक्ष कर कहते हैं। यह कर माल अथवा सेवाओं पर लगाया जाता है। वर्तमान में ऐसे करों में वस्तु एवं सेवा कर (GST) एवं सीमा शुल्क प्रमुख हैं। 1 जुलाई, 2017 से पूर्व कई अप्रत्यक्ष कर प्रभाव में थे जिनमें केन्द्रीय विक्रय कर (CST), राज्य वैट (State Vat), उत्पाद शुल्क (Excise Duty), सेवा कर (Service Tax) आदि प्रमुख अप्रत्यक्ष कर थे। 
वस्तु एवं सेवा कर लागू होने से पूर्व संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions before imposition of Goods & Service Tax) 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 265 के अनुसार केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार द्वारा बिना कानूनी अधिकार के किसी भी प्रकार का कोई भी कर नहीं लगाया जा सकता है अथवा नहीं वसूला जा सकता है। कानून बनाने एवं कर या शुल्क लगाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 245 द्वारा दिया गया है।
वस्तु एवं सेवा कर का अर्थ एवं विशेषताएँ
वस्तु एवं सेवा कर से आशय (Meaning of  GST) 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366(12A) के अनुसार मानवीय उपयोग की शराब की पूर्ति पर देय कर के अलावा माल या सेवा या दोनों की आपूर्ति पर कोई कर है। संविधान में दी गई GST की यह परिभाषा संक्षिप्त है तथा इसकी विशेषताओं पर कोई प्रकाश नहीं डालती है। अतः हमें विद्वानों के विचारों को ध्यान में रखकर इसका अर्थ समझना होगा। 
'वस्तु एवं सेवा कर' माल एवं सेवाओं के उपभोग पर लगाया गया गन्तव्य आधारित कर है। यह निर्माण से लेकर अन्तिम उपभोग तक प्रत्येक लेन-देन पर लगाया जाने वाला कर है जिसमें पिछले लेन-देनों पर चुकाये गये करों की जमा (क्षतिपूर्ति के रूप में) स्वीकृत हो जाती है। संक्षेप में, यह एक ऐसा कर है जिसमें केवल मूल्य वृद्धि (Value Addition) पर ही कर लगाया जाता है तथा इस कर का भार अन्तिम उपभोक्ता द्वारा वहन किया जाता है।
वस्तु एवं सेवा कर की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of GST) 
वस्तु एवं सेवा कर की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- 
1. वस्तु एवं सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है (GST is an indirect tax) : 
माल एवं सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है। जैसा कि पूर्व में भी बताया गया है कि अप्रत्यक्ष कर ऐसा कर होता है जिसका भार अन्तिम उपभोक्ता को वहन करना होता है। अन्य बीच के मध्यस्थ व्यापारी अथवा वितरक यद्यपि इस कर का भुगतान तो करते हैं परन्तु वे इसे क्रेता से वसूल करके इसको क्रेता पर हस्तान्तरित कर देते हैं तथा वसूल की गई कर की राशि में से चुकाई गई कर की राशि अपने पास रख लेते हैं तथा शेष राशि सरकार में जमा करा देते हैं। 
2. यह समस्त माल एवं सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाता है (It is levied on supply of all goods and services) :
 सामान्यतः वस्तु एवं सेवा कर सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाता है जब तक की किसी वस्तु या सेवा को कर के दायरे से बाहर नहीं रखा गया हो। उदाहरण के लिए मानवीय उपयोग की अलकोहल युक्त शराब की आपूर्ति को इस अधिनियम से बाहर रखा गया है। अतः ऐसी शराब की आपूर्ति पर इस अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे। इसी प्रकार पैट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस, कच्चा तेल एवं विमान ईंधन को भी प्रारम्भ में अस्थाई रूप से इसके क्षेत्र से बाहर रखा गया है। इन वस्तुओं को GST के दायरे में लाने की तिथि GST Council द्वारा बाद में निर्धारित की जायेगी। इसी प्रकार कोई वस्तु माल की परिभाषा में नहीं आती है तो उसकी आपूर्ति पर भी इस अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे, जैसे—अंश एवं प्रतिभूतियाँ । 
3. यह कर केवल मूल्य संवर्धन पर ही लगाया जाता है (It is levied only on value addition):
 यह कर व्यापारी द्वारा बढ़ाये गये मूल्य पर ही लगाया जाता है। उदाहरण के लिए किसी व्यापारी ने ₹ 10,000 का माल खरीदा एवं 18 प्रतिशत कर (GST) चुकाया। ₹1,800 की कर की राशि को व्यापारी अपनी लागत में सम्मिलित नहीं करेगा। व्यापारी ने उस माल पर ₹ 2,000 का खर्चा किया तथा ₹ 500 अपने लाभ के जोड़कर ₹ 12,500 में बेच दिया तथा ग्राहक से 12,500 × 18% - ₹2,250 कर (GST) वसूल किया। व्यापारी ₹ 2,250 के कर में से अपने द्वारा चुकाये गये कर के ₹ 1,800 अपने पास रख लेगा तथा शेष ₹ 450 सरकार में जमा करा देगा जो उसके द्वारा की गई ₹2,500 की वृद्धि का 18 प्रतिशत है। GST के तहत कर पर कर नहीं लगाया जाता है अर्थात् व्यापारी द्वारा चुकाये गये ₹ 1,800 पर कर नहीं लगाया गया है। 
4. यह गन्तव्य आधारित उपभोग पर कर है (It is destination based tax on consumption) : 
यदि माल के निर्माण एवं उपभोग का स्थान एक ही राज्य में हो तो उसी राज्य सरकार को कर की प्राप्ति का अधिकार होगा। परन्तु यदि माल के निर्माण का स्थान एवं उसके उपभोग या आपूर्ति का स्थान भिन्न राज्य में हो तो स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि कर प्राप्ति का अधिकार कौन से राज्य को है? ऐसी स्थिति में चूँकि यह कर गन्तव्य पर आधारित है, अत: कर प्राप्ति का अधिकार उस राज्य को होगा जहाँ माल का उपभोग हुआ है अथवा माल की आपूर्ति की गई है। उदाहरण के लिए, यदि कोई माल महाराष्ट्र में निर्मित होता है तथा उसको राजस्थान भेजा जाता है तथा राजस्थान में इसकी आपूर्ति होती है एवं उपभोग होता है। अतः इस माल का गन्तव्य स्थान या पूर्ति का स्थान या उपभोग का स्थान राजस्थान में है तथा इस माल पर कर की प्राप्ति का अधिकार राजस्थान सरकार को होगा। 
5. हमारे देश में दोहरा जी.एस.टी. मॉडल को लागू किया गया है (Dual GST model has been implemented in our country): 
विश्व के अधिकांश देशों ने अपनी सामाजिक एवं आर्थिक संरचना के अनुसार जी.एस.टी. (GST) के दो प्रारूपों में से किसी एक प्रारूप को अपनाया है। इनमें से एक है राष्ट्रीय स्तर पर जी.एस.टी. (GST) जिसमें यह कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया जाता है एवं दूसरा प्रारूप दोहरा जी.एस.टी. (Dual GST) प्रारूप (model) है जिसमें यह कर केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा एक साथ लगाया जाता है। भारत ने कनाड़ा एवं ब्राजिल द्वारा अपनाये गये दोहरा जी.एस.टी. प्रारूप (Dual GST model) को ही अपनाया है। 
यदि माल अथवा सेवाओं की आपूर्ति एक ही राज्य में हुई है (Intra-state supply) तो केन्द्र सरकार द्वारा लगाये गये कर को केन्द्रीय जी.एस.टी. (CGST) कहा जायेगा तथा राज्यों अथवा संघीय क्षेत्रों द्वारा लगाये गये कर को राज्य जी.एस.टी. (SGST) / संघीय क्षेत्र जी.एस.टी. (UTGST) कहा जायेगा। 
6. अनेक अप्रत्यक्ष करों के स्थान पर एक कर (Single tax in place of several indirect taxes):
 जी.एस.टी. (GST) लागू होने से पूर्व भारत में अनेक अप्रत्यक्ष कर लगाये जा रहे थे, जैसे, केन्द्रीय बिक्री कर, राज्य मूल्य संवर्द्धित कर (State VAT), उत्पाद शुल्क, सेवा कर आदि। अब इनमें से अधिकांश करों को जी.एस.टी. में सम्मिलित कर लिया गया है तथा एक कर जी.एस.टी. (GST) लागू किया गया है। जी.एस.टी. में सम्मिलित किये गये केन्द्र एवं राज्य के विभिन्न कर निम्न प्रकार हैं- 
A. जी.एस.टी. में सम्मिलित किये गये केन्द्र के कर 
 केन्द्रीय उत्पाद शुल्क 
अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (विशेष महत्त्व के माल) 
 चिकित्सकीय एवं प्रसाधन सामग्री पर उत्पाद शुल्क 
 अतिरिक्त सीमा शुल्क (CVD) 
 विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क (SAD) 
 सेवा कर 
 इन करों के साथ में केन्द्र द्वारा आरोपित उपकर (सैस) तथा अधिभार (सरचार्ज) 
B. जी.एस.टी. में सम्मिलित किये गये राज्य के कर 
 वैट/बिक्री कर 
 केन्द्रीय बिक्री कर 
 लक्जरी कर 
 क्रय कर 
 प्रवेश कर, चुंगी या स्थानीय निकाय कर 
 मनोरंजन कर 
 शर्त, जुआ एवं लाटरी कर 
उक्त करों के साथ लगने वाले उपकर (सैस) एवं अधिभार (सरचार्ज) 
यद्यपि अधिकांश अप्रत्यक्ष करों को जी.एस.टी. में सम्मिलित कर लिया गया है, परन्तु फिर भी कुछ कर ऐसे रह गये हैं जो इसमें सम्मिलित नहीं किये गये हैं। ये कर निम्नलिखित हैं- 
A. केन्द्रीय कर जो जी.एस.टी. में सम्मिलित नहीं किये गये- 
 आधारभूत सीमा शुल्क 
 शोध एवं विकास उपकर 
निर्यात शुल्क 
राशिपातन विरोध शुल्क 
 सुरक्षा शुल्क 
B. राज्य कर जो जी.एस.टी. में सम्मिलित नहीं किये गये 
 राज्य उत्पाद शुल्क 
स्टाम्प शुल्क 
प्रोफेशन पर कर 
 मोटर वाहन कर 
7. कर प्रशासन में विकेन्द्रीयकरण (Decentralisation in Administration) : 
केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) एवं एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) का आरोपण एवं प्रशासन केन्द्र सरकार द्वारा किया जायेगा जबकि राज्य वस्तु एवं सेवा कर/संघीय क्षेत्र वस्तु एवं सेवा कर (SGST) / (UTGST) का आरोपण एवं प्रशासन सम्बन्धित राज्य सरकार/संघीय क्षेत्र सरकार द्वारा किया जायेगा। 
8. आयात को अन्तर्राज्यीय आपूर्ति मानना (Import to be treated as inter-state supply): 
आयात को अन्तर्राज्यीय आपूर्ति माना जायेगा। चूँकि एक राज्य से दूसरे राज्य में आपूर्ति को (Inter-state) आपूर्ति कहते हैं तथा उस पर एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर लागू होता है। उसी प्रकार सेवाओं के आयात को भी अन्तर्राज्यीय आपूर्ति माना जायेगा एवं एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) देय होगा। माल के आयका पर लगने वाले आधारभूत सीमा शुल्क के अलावा एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) भी देय होगा। 
9. निर्यातों को शून्य दर वाली आपूर्ति मानना (Export to be treated as zero rated supply):
निर्यातों को शून्य दर वाली आपूर्ति माना जायेगा। दूसरे शब्दों में माल एवं सेवाओं के निर्यात पर कोई कर देय नहीं होगा। परन्तु इनपुट कर जमा का लाभ उनको प्राप्त होगा। निर्यातकों को इनपुट कर की जमा वापसी (Refund) के रूप में प्राप्त होगी। 
10. इनपुट कर जमा का प्रावधान (Provision of Input Tax Credit) : 
इनपुट कर जमा का लाभ केवल पंजीकृत व्यक्ति को ही प्राप्त होता है। प्रत्येक पंजीकृत व्यक्ति जब माल एवं सेवाओं की आपूर्ति करता है तो आपूर्ति प्राप्तकर्त्ता से वह सी.जी.एस.टी., एस.जी.एस.टी. अथवा आई.जी.एस.टी. (जो भी लागू हो) वसूल करता है। इसी प्रकार जब उसको माल एवं सेवाओं की आपूर्ति की जाती है तो वह CGST, SGST अथवा IGST (जो भी लागू हो) का भुगतान करता है। इनपुट कर जमा का अर्थ है कि पंजीकृत व्यक्ति उसके द्वारा वसूल किये गये कर में से चुकाये गये कर की जमा प्राप्त कर लेता है अर्थात् समायोजन कर लेता है तथा शेष राशि ही सरकार में जमा कराता है। अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया है कि कौन से कर की इनपुट कर जमा कौन-कौन से करों से ली जा सकती है अथवा उनके उपयोग का क्रम क्या होगा। एक कर की दूसरे कर से इनपुट कर जमा लेने के सम्बन्ध में निम्न ���्रावधान हैं- 
(A) CGST का समायोजन CGST एवं IGST से किया जा सकता है। 
(B) SGST का समायोजन SGST एवं IGST से किया जा सकता है। 
(C) IGST का समायोजन IGST, CGST एवं SGST से इसी क्रम में किया जा सकता है। 
11. लघु स्तर पर व्यापार करने वाले व्यक्तियों को पंजीकरण से मुक्ति (Exemption from registration to persons doing business on small scale) : 
सामान्यतः कर योग्य माल की आपूर्ति करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पंजीकरण करवाना होता है। परन्तु अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति की एक वित्तीय वर्ष में कुल आवर्त ₹40 लाख/₹20 लाख/₹ 10 लाख (उसके राज्य के लिए जो भी लागू हो) से अधिक नहीं हो तो उस व्यक्ति के लिए पंजीकरण कराना आवश्यक नहीं होगा। पंजीकरण से मुक्ति के प्रावधानों को विस्तार से पंजीकरण के अध्याय में समझाया गया है। 
12. निश्चित सीमा से अधिक कुल आवर्त नहीं करने वाले व्यक्तियों को कम्पोजीशन स्कीम अपनाने का विकल्प (Option of adoption of composition scheme to persons not having excess aggregate turnover than prescribed limit) : 
ऐसे पंजीकृत व्यापारी जिनकी कुल आवर्त पिछले वित्तीय वर्ष अर्थात् वित्तीय वर्ष 2020-21 में ₹ 15 करोड़ (विशिष्ट श्रेणी के 8 राज्यों में ₹75 लाख) से अधिक नहीं हो तो वे वित्तीय वर्ष 2021-22 में कम्पोजीशन स्कीम का विकल्प अपना सकते हैं। विशिष्ट श्रेणी के राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा, सिक्किम एवं उत्तराखण्ड हैं।
कम्पोजीशन स्कीम अपनाने वाले व्यक्ति पर विशिष्ट प्रावधान निम्न प्रकार लागू होंगे- 
(i) कम्पोजीशन स्कीम अपनाने वाले व्यापारी को निम्न शुल्क प्रदान करना होगा-
Supplier
CGST
SGST/UTGST
TOTAL GST
Manufacturer 
0.5%
0.5%
1%
Restaurant Services
2.5%
2.5%
5%
Others
0.5%
0.5%
1%
(ii) ऐसा व्यक्ति प्रतिमाह विवरणी प्रस्तुत करने के स्थान पर तिमाही विवरणी प्रस्तुत कर सकेगा। 
(iii) ऐसा व्यक्ति इस अधिनियम के तहत कर का संग्रह नहीं कर सकेगा तथा उसे उसके द्वारा चुकाये गये कर के सम्बन्ध में इनपुट कर जमा का लाभ नहीं मिलेगा। 
(iv) यदि वित्तीय वर्ष के दौरान किसी भी समय उसका कुल आवर्त निर्धारित सीमा 15 करोड़/75 लाख रुपये से अधिक हो जाता है तो उसका विकल्प उसी दिन से समाप्त हो जायेगा। 
(v) ऐसा व्यक्ति अन्तर्राज्यीय क्रय तो कर सकता है परन्तु अन्तर्राज्यीय (inter-state) आपूर्ति नहीं कर सकेगा। 
13. कर की दरों का सीमित होना (Limited Rates of Tax) : 
GST काउन्सिल ने निम्नलिखित चार दरें निर्धारित की हैं-.
Revenue Neutral Rate (RNR)
18%
Product/ser. Which are basic necessities
12%
Essential Goods
5%
Demerit and Luxury Goods 
28%+ cess
स्पष्टीकरण : उपरोक्त दरें राज्य के भीतर की आपूर्ति की दशा में CGST एवं SGST दोनों के लिये हैं जिनमें 50% CGST के लिये एवं 50% SGST के लिए है। 
कुछ दशाओं में काउन्सिल ने उपरोक्त चार दरों के अलावा 0%, 0.25%, 3% की दर भी निर्धारित की है। राज्य के भीतर की आपूर्ति पर GST की अधिकतम दर 40% तक हो सकती है जिसमें आधा हिस्सा केन्द्र का CGST होगा तथा आधा हिस्सा राज्य का SGST होगा। अन्तर्राज्यीय आपूर्ति पर भी IGST की दर अधिकतम 40% तक हो सकती है। CGST की दरों का निर्धारण GST काउन्सिल की सिफारिश पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा किया जायेगा तथा IGST की दरों का निर्धारण केन्द्र सरकार द्वारा किया जायेगा। राज्य सरकारों ने काउन्सिल से दरों को +2% कम-ज्यादा करने का विकल्प भी प्राप्त कर लिया है। उदाहरण के लिए, 18% की दर में SGST का हिस्सा 9% है इसे कोई राज्य सरकार 7% से 11% तक रख सकती है। 
14. स्व: कर निर्धारण की योजना (Scheme of self assessment) : 
इस अधिनियम के तहत प्रत्येक पंजीकृत व्यक्ति उसके द्वारा देय कर का निर्धारण स्वयं करेगा। किसी भी कर अवधि के लिए ऐसा निर्धारण करने के बाद ही वह निर्धारित विवरणी प्रस्तुत करेगा।
वस्तु एवं सेवा कर (GST) के लाभ : (Benefits of GST) 
वस्तु एवं सेवा कर का लागू होना सम्पूर्ण देश के लिए सुखद स्थिति है क्योंकि यह अप्रत्यक्ष कर ढाँचे में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सुधार है। इसके लाभों के कारण ही विश्व के अन्य देशों ने लगभग 60 वर्ष पूर्व ही इसे अपनाना प्रारम्भ कर दिया था तथा अब तक 160 से अधिक देश इसे अपना चुके हैं। हमारे देश में तत्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा सिद्धान्त रूप से इसे अपनाने एवं लागू होने के वर्ष की घोषणा के बावजूद इसके वास्तव में लागू किये जाने में लगभग 10 वर्ष का समय लग गया। केन्द्र एवं सभी राज्य सरकारों, राजनैतिक दलों, उद्योगपतियों आदि द्वारा एक स्वर में अपनाने का सीधा-सीधा अर्थ है कि यह एक महत्त्वपूर्ण कर सुधार है जिसका लाभ सभी हितधारकों, सरकारों, उद्योग एवं व्यापार जगत एवं उपभोक्ताओं को प्राप्त होगा। 
वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने से माल एवं सेवाओं की लागत में कमी आयेगी, आर्थिक विकास में तेज गति से वृद्धि होगी तथा वस्तुएँ एवं सेवाएँ राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए मजबूत स्थिति में होंगी। इस कर व्यवस्था (GST) के लागू होने से विभिन्न वर्गों को होने वाले प्रमुख  लाभ निम्नलिखित हैं- 
1. कर पर कर लगाने के बुरे प्रभावों में कमी (Mitigation of ill effects of cascading) 
जी.एस.टी. लागू होने से पूर्व देश में केन्द्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अनेक अप्रत्यक्ष कर लगाये जाते थे। उनमें से अनेक करों के सम्बन्ध में कर जमा का लाभ नहीं मिलता था तथा वे वस्तु की लागत में सम्मिलित कर लिये जाते थे। जब इन वस्तुओं की बिक्री पर कर वसूल किया जाता था तो पहले चुकाये गये कर पर भी कर की गणना हो जाती थी। इस प्रकार उपभोक्ता को करों का भार अधिक वहन करना पड़ता था। परन्तु जी.एस.टी. में आपूर्ति के हर स्तर पर कर जमा का लाभ मिलने के कारण अब कर पर कर की गणना नहीं होती है। 
2. अनेक करों एवं दोहरे करारोपण की समाप्ति (Elimination of multiple taxes and double taxation) : 
हमारे देश में केन्द्र एवं राज्य स्तर पर अनेक अप्रत्यक्ष कर लगाये जा रहे थे जैसे, वस्तु निर्माण करने पर उत्पाद शुल्क, उस माल को दूसरे राज्य में भेजने पर केन्द्रीय बिक्री कर तथा दूसरे राज्य में उसका विक्रय करने पर राज्य वैट (State VAT) । इसके अलावा परिवहन भाड़े पर सेवा कर, शहर में माल के प्रवेश पर 'प्रवेश कर', चुंगी आदि कर माल पर लगते थे। वस्तु एवं सेवा कर में लगभग इन सभी करों को सम्मिलित कर लिया गया है तथा केवल एक कर 'वस्तु एवं सेवा कर' (GST) लगाया गया है। स्वाभाविक रूप से अधिकांश दशाओं में इस कर की दर पुराने समस्त करों के योग की तुलना में कम रही है। इसके अलावा इसे समान रूप से माल एवं सेवाओं दोनों पर लागू किया गया है। पुराने करों में अनेकों बार ऐसे विवादास्पद म���मले सामने आते थे कि कोई व्यवहार (लेन-देन) माल से सम्बन्धित व्यवहार है अथवा सेवा से सम्बन्धित व्यवहार है। चूंकि इस कर को माल एवं सेवाओं दोनों पर एकरूपता के साथ लागू किया गया है, अतः अब दोहरे करारोपण की समस्याएँ स्वतः समाप्त हो जायेंगी तथा व्यवसाय करना आसान रहेगा। 
3. एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का निर्माण (Creation of unified or common national market); 
सम्पूर्ण देश में एक-समान कर (GST) की दर तथा एक समान प्रक्रिया होने के कारण व्यापार में आने वाली अनेक बाधाएँ स्वतः दूर हो जायेंगी तथा सम्पूर्ण देश एक बाजार जैसा हो जायेगा। राज्य सरकारों द्वारा लगाये गये करों की दर, प्रक्रिया आदि में भिन्नता होने के कारण व्यापार में अनेक बाधाएँ आती रही हैं। 
4. उत्पादों का प्रतिस्पर्धा के मुकाबले में अधिक सक्षम होना (More Competitive Products): 
वस्तु एवं सेवा कर के अपनाने से एक तरफ तो कर का बोझ कम होने के कारण माल का मूल्य घटाना सम्भव होगा। इसके साथ ही नौकरशाही, लालफीताशाही की समस्याओं में कमी आने के कारण अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादन लागतों में कमी आयेगी। हमारे देश में निर्मित माल एवं सेवाएँ विदेशी माल एवं सेवाओं से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो जायेंगी। विदेशी बाजारों में हमारा माल महँगा होने के कारण हमें आसानी से विदेशी बाजार नहीं मिल पाता है तथा सरकार को आयात-निर्यात करों में परिवर्तन करके सहायता करनी पड़ती है। इतना ही नहीं दूसरे देश हमारे देश में अपना माल हमारे माल की प्रतिस्पर्धा में आसानी से बेच लेते हैं। इस नये कर के कारण हमारे उत्पाद दोनों तरह की प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने में सक्षम हो जायेंगे। इससे हमारे देश में वस्तुओं के निर्माण में वृद्धि होगी तथा भारत सरकार की 'Make in India' पहल को भी प्रोत्साहन एवं ताकत मिलेगी। 
5. उपभोक्ता अथवा सामान्य जनता के कुल कर भार में कमी (Reduction in overall tax burden of consumers) : 
प्रत्येक अप्रत्यक्ष कर का भार उपभोक्ता को वहन करना पड़ता है। पूर्व कर प्रणाली में उपभोक्ता को केवल बिक्री कर के भुगतान का पता चलता था। पूर्व में उस माल की लागत में कितने कर जोड़े जा चुके हैं इसका पता उसे नहीं चलता था। अतः दिखने में उपभोक्ता को यह लग सकता है कि उस पर GST की दर अधिक है, परन्तु कई कर सम्मिलित हो जाने के कारण उपभोक्ता पर कुल कर भार कम हो जाता है तथा उसे वस्तुएँ सस्ती उपलब्ध होती हैं। 
6. सरकारी राजस्व में वृद्धि (Increase in Government's Revenue) : 
यह हास्यास्पद लगता है कि उपभोक्ता कम कर चुकायेगा तो फिर सरकारी राजस्व में वृद्धि कैसे हो सकती है? परन्तु वास्तविकता यहीं है कि इससे केन्द्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों के राजस्व में वृद्धि होगी। ऐसा कई कारणों से सम्भव होगा। एक तो कर का दायरा विस्तृत होगा। जो सेवाएँ, वस्तुएँ तथा व्यक्ति कर के दायरे में अभी नहीं हैं उनके कर के दायरे में आने से सरकारी राजस्व में वृद्धि होगी। दूसरे देशी एवं विदेशी माँग में वृद्धि होने के कारण उत्पादन अधिक होने के कारण अथवा सेवाओं की अधिक आपूर्ति होने के कारण सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त होगा। तीसरे कर कानूनों की अनुपालना से भी कर की चोरी में कमी आयेगी तथा सरकारों को अधिक राजस्व प्राप्त होगा। 
7. करों का प्रशासन सुगम होना (Smooth administration of taxes) : 
इस कर कानून अर्थात् जी.एस.टी. (GST) में पारदर्शिता है तथा डिजिटल एवं इलैक्ट्रॉनिक साधनों का बिल बनाने, रिटर्न दाखिल करने आदि में प्रयोग किया गया है। इससे कर प्रशासन आसान होगा तथा लागत में कमी आयेगी। कर अधिकारियों एवं सामान्य व्यापारियों के मध्य व्यक्तिगत सम्पर्क में कमी आने से भी कर-अनुपालना बढ़ेगी। स्व:कर निर्धारण प्रणाली (Self assessment) को लागू करने से भी कर प्रशासन सुगम रहेगा। 
वस्तु एवं सेवा कर GST की हानियाँ (Disadvantages of Goods and Service Tax) 
वस्तु एवं सेवा कर लागू किये जाने के पूर्व से ही सरकार द्वारा इसका गुणगान किया जा रहा है तथा लागू करने के बाद भी सरकार द्वारा इसका गुणगान किया जाना जारी है। पिछले पृष्ठों में हमने इससे मिलने वाले लाभों का अध्ययन भी किया है। किन्तु ऐसा नहीं है कि इस कर के केवल लाभ ही हैं तथा हानियाँ नहीं हैं। वास्तविकता यह है कि अभी तक तो व्यापारियों में हा-हाकार मचा हुआ है एवं उपभोक्ता महँगाई के कारण असमंजस्य में पड़े हुए हैं तथा कागजी कार्यवाही को पूरा करने में सभी व्यक्ति परेशान हैं। इस प्रणाली से उत्पन्न होने वाली कठिनाइयाँ, कमियाँ, दोष अथवा हानियाँ निम्न प्रकार हैं- 
1. कम्प्यूटर के ज्ञान का अभाव (Lack of Computer Knowledge) : 
��ी.एस.टी. की मूल अवधारणा ही कम्प्यूटर प्रणाली पर आधारित है। इसमें व्यापारी द्वारा बिल जारी करने से लेकर रिटर्न प्रस्तुत करने एवं कर जमा कराने तक का सम्पूर्ण कार्य कम्प्यूटर के माध्यम से ही किया जाता है। अधिकांश व्यापारी कम्प्यूटर का प्रयोग ही नहीं करते हैं और जो करते हैं उनके लिए भी जी.एस.टी. से सम्बन्धित कार्य करना कठिन होता है। 
2. जटिल कार्यप्रणाली से कठिनाई (Problem due to complicated working): 
इनपुट कर जमा (Input Tax Credit) की जमा प्रदान करने के प्रावधान एवं विपरीत प्रभार तन्त्र के आधार पर कर जमा कराने के कारण इस कर की कार्यप्रणाली काफी जटिल हो गयी है जिससे व्यापारियों को काफी कठिनाई होती है। एक तो व्यापारी को इनपुट कर जमा का लाभ लेने के कारण उसका पूरा हिसाब-किताब रखना पड़ता है। दूसरे जब तक पूर्तिकर्त्ता द्वारा प्रस्तुत किये गये विवरणों से इसका मिलान (tally) नहीं हो जायेगा तथा पूर्तिकर्त्ता जब तक 'आउटपुट कर' का भुगतान नहीं कर देगा, तब तक इनपुट कर जमा का दावा स्वीकृत नहीं किया जायेगा। इसी प्रकार विपरीत प्रभार तन्त्र (Reverse charge mechanism) के तहत कर का हिसाब रखना एवं उसकी जमा लेना भी कठिन कार्य है। 
3. निजी मामलों एवं गोपनीयता का सार्वजनिक होने का खतरा (Danger of leak out of secret and private matters) : 
जी.एस.टी. में व्यवसाय के सभी रिकॉर्ड्स एवं व्यवसायी की निजी जानकारी कम्प्यूटर में रखी जाती है। कम्प्यूटर के डेटा हेक किये जाने का खतरा हमेशा बना रहता है। यदि डेटा वास्तव में हेक कर लिये जायें तो इससे व्यवसाय की सम्पूर्ण गोपनीय जानकारी सार्वजनिक हो जायेगी तथा इसका दुरूपयोग किया जा सकता है। 
4. कर की ऊँची दरों के कारण कर का भार अधिक होना (Tax burden high due to high rates of tax) : 
जी.एस.टी. के सम्बन्ध में यह कहा गया था कि कई करों को मिलाकर एक कर लगाने के कारण उसकी दर कम रहेगी तथा अन्तिम उपभोक्ता को सस्ती वस्तुएँ प्राप्त होंगी। परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत है। 
वस्तुओं का वर्गीकरण कर की दर से विवेकपूर्ण नहीं किया गया है। 4%, 5% वाली वस्तुओं को 12% की दर में एवं 14%, 15% वाली वस्तुओं को 18% या 28% दर वाली वस्तुओं में रखा गया है। सेवा कर की दर भी 15% के स्थान पर 18% रखी गयी है। अतः अन्तिम उपभोक्ता को अधिक कर चुकाना पड़ रहा है। 
5. अनेक विवरणी प्रस्तुत करने की बाध्यता के कारण कठिनाई (Problem due to mandatory furnishing of several returns) : 
जी.एस.टी. लागू होने के पूर्व वर्ष में केवल एक विवरणी प्रस्तृत करनी होती थी। अब प्रत्येक माह तीन विवरणी प्रस्तुत करनी होती हैं तथा एक विवरणी वर्ष के अन्त में प्रस्तुत करनी होती है। इस प्रकार अधिकांश व्यापारियों को 37 विवरणी प्रस्तुत करनी होती है। वह सम्पूर्ण वर्ष इन विवरणियों को भरने में लगा रहता है। इसके कारण ���सके कारोबार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा विवरणी प्रस्तुत करने में वकील की मदद लेना भी जरूरी होता है। वकीलों ने अपनी फीस में वृद्धि कर दी है जिससे व्यापारियों को सीधा नुकसान है। पिछले दो वर्षों में सरकार का ध्यान इस समस्या की ओर गया है तथा सरकार प्रस्तुत की जाने वाली विवरणियों की संख्या में कमी करके व्यापारियों को कुछ राहत प्रदान की है। 
6. वस्तु उत्पादन करने वाले राज्यों की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव (Adverse effect on the economy of goods manufacturing states) :
 हमारे देश में कुछ राज्य तो ऐसे हैं जहाँ वस्तुओं का निर्माण अधिक होता है। दूसरी तरफ कुछ राज्य ऐसे हैं जहाँ वस्तुओं का निर्माण कम होता है एवं उपभोग अधिक होता है। चूँकि जी.एस.टी. गन्तव्य आधारित उपभोग कर है, अतः माल का निर्माण करके दूसरे राज्यों को निर्यात करने पर उन राज्यों को कोई कर प्राप्त नहीं होता है। यद्यपि संघीय कर प्रणाली के तहत सभी राज्यों ने अपनी सहमति प्रदान कर दी है, परन्तु ऐसे राज्य समय-समय पर अपना विरोध प्रकट करते रहते हैं। यद्यपि केन्द्र सरकार ने उनको इस प्रकार होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का आश्वासन 5 वर्षों तक के लिए दिया है। हानि की गणना भी विवाद का विषय है तथा 5 वर्ष बाद तो उनको पूर्व में मिलने वाले सी.एस.टी. (CST) की पूरी हानि होगी। 
7. प्रणाली की सुरक्षा का अभाव (Lack of security of system) : 
देश के समस्त कम्प्यूटर जी.एस.टी. की वेबसाइट से जुड़े हुए हैं। अतः यदि कम्प्यूटर प्रणाली में कोई दोष (वायरस) उत्पन्न हो जाता है तो सभी व्यावसायिक गतिविधियों में अवरोध आ जाने का खतरा बना रहता है। 
8. कर चोरी एवं भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं (No reduction in tax evasion and corruption): 
यह माना गया था कि जी.एस.टी. लागू करने से कर चोरी एवं भ्रष्टाचार में कमी आयेगी। परन्तु वास्तव में ऐसा हुआ नहीं है। बिना बिल के माल क्रय-विक्रय की गतिविधियाँ पूर्व की तरह अभी भी जारी हैं तथा कई अधिकारी व्यापारियों से रिश्वत लेते हुए भी पकड़े गये हैं। 
जी.एस.टी. की उपरोक्त कमियाँ या परेशानियाँ ध्यान देने योग्य हैं। सरकार यदि इसका सफल क्रियान्वयन चाहती है तो उसे शीघ्र ही इसे युक्तिसंगत एवं सरल बनाना होगा। पिछले कुछ समय में सरकार ने राहतकारी निर्णय लिये हैं, परन्तु अभी भी कई व्यावहारिक कदम शीघ्र उठाने की आवश्यकता है।
वस्तु एवं सेवा कर का ढाँचा एवं कर संग्रह का प्रशासन (Framework of GST and Administration of Tax Collection) 
1. वस्तु एवं सेवा कर का विस्तार (Extent of Goods and Service Tax) : 
वस्तु एवं सेवा कर (GST) जम्मू एवं कश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत में लागू होता है। यह अधिनियम 1 जुलाई, 2017 लागू हुआ है यद्यपि इसके कुछ प्रावधानों को भिन्न तिथियों से लागू किया गया है। 
2. दोहरा जी.एस.टी. मॉडल को अपनाना (Adoption of Dual GST Model): 
हमारे देश में वस्तु एवं सेवा कर के दोहरा मॉडल को लागू किया गया है। इसमें केन्द्र एवं राज्य एक साथ कर लगाते हैं। सामान्य कर की दर में केन्द्र एवं राज्य का हिस्सा पहले से ही निर्धारित होता है। हमारे देश में वर्तमान में यह 50- 50 है। केन्द्र एवं राज्य अलग-अलग अधिनियम के तहत इस कर को लगाते हैं। जी.एस.टी. को लगाने, संग्रह करने एवं प्रशासन करने के सम्बन्ध में केन्द्र एवं राज्यों को समान अधिकार है। 
3. जी.एस.टी. से सम्बन्धित विभिन्न कानून (Different Laws relating to GST) : 
हमारे देश में जी.एस.टी. से सम्बन्धित निम्नलिखित 35 अधिनियम बनाये गये हैं- 
Name of Act
No.
Name Of Tax
The Central GST Act, 2017
1
CGST
State GST Act, 2017
31
GST
The Union Territory GST Act, 2017 
1
UTGST
The Integrated GST Act, 2017. GST
1
GUEST
The GST Act, 2017
1
GST
4. विभिन्न करों का क्षेत्र एवं प्रशासन (Scope and Administration of various taxes) : 
वस्तु एवं सेवा कर (GST) के तहत लगाये जाने वाले विभिन्न करों के क्षेत्र एवं प्रशासन सम्बन्धी प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं- 
QUESTION : 
जीएसटी कितने प्रकार के होते है? (GST Ke Prakar in Hindi)
(i) केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर (Central Goods and Service Tax: CGST) : 
यदि माल अथवा सेवा या दोनों का आपूर्तिकर्त्ता तथा प्राप्तकर्त्ता दोनों एक ही राज्य में हो अथवा किसी भी संघीय क्षेत्र में हों तो यह कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया जाता है। इसके लिए केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम (CGST Act) लागू किया गया है। इस अधिनियम में 174 धाराएँ एवं तीन अनुसूचियाँ हैं। इसका पूरा नाम केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 है। इस अधिनियम में प्रयोग की गई अनेक मदों का इसमें स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। अनेक प्रावधानों की कार्यविधि एवं क्रियान्वयन की विधि भी नहीं दी गई है। अतः इन कमियों को पूरा करने के लिए केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर नियम, 2017 बनाये गये हैं। इनमें अनेक मदों का स्पष्टीकरण एवं अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों की कार्यविधि एवं क्रियान्वयन के सम्बन्ध में विस्तृत नियम दिये गये हैं। अधिनियम में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न फार्मस् (FORMS) का भी प्रारूप इनमें दिया गया है। वास्तव में ये नियम उक्त अधिनियम के अनुपूरक (supplement) हैं, अतः इनमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं दिया गया है जो उक्त अधिनियम के प्रावधानों से विरोधाभास रखता हो। वर्तमान में कुल मिलाकर 162 नियम बनाये गये हैं तथा अनेक है फार्म निर्धारित किये गये हैं। इन नियमों में अधिनियम की तरह अक्सर संशोधन होता रहता इसके अलावा अपेलेट ट्रिब्यूनल एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय भी प्रशासनिक अधिकारियों की निर्णयन प्रक्रिया में सहायक होते हैं। 
(ii) राज्य वस्तु एवं सेवा कर (State Goods and Service Tax : SGST) : 
यह कर राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है यदि माल का आपूर्तिकर्त्ता एवं प्राप्तकर्त्ता एक ही राज्य में हो जैसे दोनों या तो राजस्थान में हों या दोनों मध्य प्रदेश में हों। राजस्थान में इस कर का नाम Rajasthan GST Act एवं मध्य प्रदेश में इस कर का नाम M. P. GST Act होगा। इस प्रकार सभी 31 राज्य सरकारें (उन तीन संघीय क्षेत्र सरकारों को सम्मिलित करते हुए जिनके अपने विधान मण्डल हैं) अपने ही राज्य के भीतर की आपूर्ति (Intra State Supply) पर यह कर लगायेंगी एवं अधिनियम बनायेंगी। 
हमारे देश में राज्यों को कर वसूल करने का अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है। इस अधिकार के तहत प्रत्येक राज्य सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी विधानसभा से अपने राज्य करें | का SGST पारित करायें और उसके आधार पर GST वसूल विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा बनाये गये SGST Act एवं नियमों की विषय-सामग्री पूर्णत: केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम एवं नियमों के अनुसार ही होगी। 
(iii) संघीय क्षेत्र वस्तु एवं सेवा कर (Union Territory Goods and Service Tax: UTGST): 
यदि वस्तु या सेवा या दोनों का आपूर्तिकर्त्ता एवं प्राप्तकर्त्ता दोनों किसी भी एक संघीय क्षेत्र (अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह, लक्ष्यद्वीप, दादरा एवं नगर हवेली, दमन एवं दीउ, लद्दाख या चण्डीगढ़) में हो तो यह कर उस संघ���य क्षेत्र सरकार द्वारा लगाया जायेगा। टिप्पणी : किसी भी लेन-देन पर SGST एवं UTGST एक साथ नहीं लगेंगे। CGST के साथ या तो SGST लगेगा या UTGST लगेगा। 
इस अधिनियम में कुल 26 धाराएँ हैं। इस अधिनियम में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि शेष मामलों में केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे। इस अधिनियम एवं नियमों में संशोधन करने का अधिकार केन्द्र सरकार के पास है परन्तु इस अधिनियम एवं नियमों में किया गया कोई भी संशोधन एवं जारी की गई प्रत्येक अधिसूचना का संसद के दोनों सदनों में पारित होना आवश्यक है। 
(iv) एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (Integrated Goods and Service Tax - IGST): 
यदि माल या सेवा या दोनों का आपूर्तिकर्त्ता एवं प्राप्तकर्त्ता दो अलग-अलग राज्यों में हो अथवा दोनों में से एक किसी राज्य में हो तथा दूसरा किसी संघीय क्षेत्र (Union Territory) में हो तो यह कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया एवं एकत्र किया जायेगा। चूंकि यह गन्तव्य आधारित कर है अतः गन्तव्य वाले राज्य का हिस्सा केन्द्र द्वारा उस राज्य को हस्तान्तरित कर दिया जायेगा। इस कर की राशि उस माल पर लगने वाला CGST + SGST के बराबर होगी। 
माल या सेवाओं या दोनों की अन्तर्राज्यीय आपूर्ति पर कर के उद्ग्रहण एवं संग्रहण के लिए केन्द्र सरकार ने एक अलग अधिनियम एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 बनाया है। इस अधिनियम में अन्तर्राज्यीय आपूर्ति से जुड़े हुए एवं आनुषांगिक मामलों जैसे आयात- निर्यात के सम्बन्ध में भी इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम में कुल 25 धाराएँ हैं। शेष मामलों में केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम के प्रावधान ही लागू होंगे। आयात को अन्तर्राज्यीय आपूर्ति मानना (Imports to be treated rs Inter-state supply): माल या सेवा या दोनों के आयात को अन्तर्राज्यीय (Inter-state supply) माना जायेगा तथा उस पर सीमा शुल्क के साथ IGST भी देय होगा । 
निर्यात पर कर की दर शून्य होना (Zero rate of tax on exports) : माल या सेवा या दोनों के निर्यात पर कर की दर शून्य है अर्थात् कोई कर देय नहीं है। परन्तु इनपुट कर जमा निर्यात पर उपलब्ध है तथा निर्यातक इसकी वापसी का दावा प्रस्तुत कर सकता है। 
(v) माल एवं सेवा कर (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम, 2017 : 
एक राज्य (उत्पादक राज्य) से दूसरे राज्य (उपभोक्ता राज्य) की माल की आपूर्ति करने पर कर की प्राप्ति केन्द्र सरकार एवं उपभोक्ता राज्य की सरकार को होती है। इस कारण से उत्पादक राज्यों को पुरानी व्यवस्था (Sales Tax) की तुलना में हानि होती है। इस अधिनियम को लागू करने का उद्देश्य उत्पादक राज्यों को GST प्रणाली को लागू करने से होने वाली हानि की 5 वर्षों तक क्षतिपूर्ति करना है। यह बहुत ही छोटा अधिनियम है। इसमें कुल 14 धाराएँ एवं एक अनुसूची है। इस अधिनियम के अपने नियम भी हैं। वास्तव में उन नियमों में केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर नियमों के कुछ नियमों को हटाकर शेष नियमों को हुबहू उसी रूप में लागू किया गया है। इस अधिनियम की अनुसूची में उन वस्तुओं एवं उनकी विशेष श्रेणियों का उल्लेख किया गया है जिनकी राज्य के भीतर एवं अन्तर्राज्यीय आपूर्ति पर यह कर वसूल किया जायेगा। अनुसूची में दरों का भी उल्लेख किया गया है। वस्तुओं की श्रेणी को अनुसूची में सीमा शुल्क टैरिफ अधिनियम की प्रथम अनुसूची में दिये गये HSN कोड़ नम्बर द्वारा प्रकट किया गया है। 
इस अधिनियम में राज्यों को होने वाली क्षति की गणना करने एवं राज्यों को भुगतान करने की विधि के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है। 
इस अधिनियम में यह भी प्रावधान कर दिया गया है कि जिन शब्दों एवं अभिव्यक्तियों को इस अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है उनके सम्बन्ध में केन्द्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम अथवा एकीकृत माल एवं सेवा कर अधिनियम में दिया गया अर्थ ही लागू होगा। 
5. आगम कर जमा के प्रयोग सम्बन्धी प्रावधान (Provisions relating to utilisation of Input Tax Credit) : निर्माता से लेकर अन्तिम फुटकर आपूर्तिकर्त्ता तक आगम कर जमा के हकदार हैं। किसी भी कर की इनपुट कर जमा उस कर के अलावा अन्य कर के भुगतान के लिए भी प्रयोग की जा सकती है।
टिप्पणी : (1) उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि CGST की जमा SGST से तथा SGST की जमा को CGST से नहीं लिया जा सकता है। Cess की जमा केवल Cess से ली जा सकती है। 
(2) IGST की जमा का प्रयोग पहले IGST के Output कर के भुगतान के लिए किया जायेगा तथा यदि शेष बचे तो CGST/SGST / UTGST किसी के भुगतान के लिए भी किसी भी क्रम (Order) में किया जा सकता है। आंशिक रूप से CGST एवं आंशिक रूप से SGST के भुगतान के लिए भी किया जा सकता है। 
(3) किसी भी Output कर के भुगतान के लिए पहले IGST की सम्पूर्ण जमा का प्रयोग किया जाना आवश्यक है। IGST की जमा की सम्पूर्ण राशि का प्रयोग करने के बाद ही अन्य किसी जमा (CGST/SGST/ UTGST) का प्रयोग किसी भी कर के Output कर के भुगतान के लिए किया जा सकता है। 
(4) CGST की इनपुट कर जमा का प्रयोग पहले CGST के Output Tax के भुगतान के लिए किया जायेगा। यदि जमा का शेष बचे तो IGST के Output Tax के भुगतान के लिए किया जा सकता है। 
(5) SGST / UTGST की इनपुट कर जमा का प्रयोग पहले SGST/UTGST के Output Tax के भुगतान के लिए किया जायेगा। यदि जमा का शेष बचे तो IGST के Output Tax के भुगतान के लिए प्रयोग किया जा सकता है। 
उपरोक्त प्रावधानों को Numerical Questions के माध्यम से अध्याय-11 'कर का भुगतान' में समझाया गया है। 
6. वस्तु एवं सेवा कर के तहत माल एवं सेवाओं का वर्गीकरण (Classification of goods and services under GST) :
जिस प्रकार आयात-निर्यात व्यापार में माल का वर्गीकरण किया गया है, ठीक उसी प्रकार GST में भी माल एवं सेवाओं का वर्गीकरण किया गया है। सम्बन्धित प्रावधान निम्न प्रकार हैं- 
(अ) माल का वर्गीकरण (Classification of Goods) : माल के वर्गीकरण के लिए Harmonised system of Nomenclature (HSN) को ही अपनाया गया है। इसमें प्रत्येक वस्तु को एक कोड नं. दे दिया जायेगा तथा कर योग्य व्यक्ति बीजक जारी करते समय बीजक पर इस कोड का उल्लेख करेगा। इस कोड के आधार पर वस्तु की पूरी पहचान हो जाती है। इसमें कुल 8 डिजिट होती हैं। भारत में ही आपूर्ति करने पर 4 डिजिट काम आती है। आयात-निर्यात व्यापार में 8 डिजिट का प्रयोग होता है। ₹ 1.5 करोड़ तक के आवर्त पर कर योग्य व्यक्ति इसका प्रयोग नहीं करेगा। ₹1.5 करोड़ से अधिक परन्तु ₹5 करोड़ तक दो डिजिट का प्रयोग होगा। ₹5 करोड़ से अधिक आवर्त वाले कर योग्य व्यक्ति 4 डिजिट का प्रयोग करेंगे। 
ब) सेवाओं का वर्गीकरण (Classification of Services): जी.एस.टी. कानून के तहत सेवाओं का वर्गीकरण सेवा लेखांकन कोड (Service Accounting Code- SAC) के अनुसार किया गया है। इसमें भी 8 डिजिट हैं जिनमें प्रारम्भ में दो डिजिट शून्य (00) की हैं। 
7. केन्द्र एवं राज्य/संघीय क्षेत्र के करों के हिस्से को बीजक में अलग-अलग दिखानाः 
राजस्थान जयपुर के A द्वारा अजमेर के B को ₹ 1,00,000 की आपूर्ति की गई जिस पर कर की दर 18% है । यह राज्य के भीतर की आपूर्ति है तथा इस पर CGST एवं Raj GST दोनों प्रत्येक 9% की दर से बीजक में निम्न प्रकार दिखाये जायेंगे-
SALE PRICE
1,00,000
ADD Raj.GST @ 9%
9,000
ADD: CGST @ 9%
9,000
Invoice Price i.e. cost to Customer 
1,18,000
यही माल यदि जयपुर (राजस्थान) से इन्दौर (मध्य प्रदेश) भेजा जाये (Inter-state) या आपूर्ति की जाये तो एक साथ 18 प्रतिशत की दर से IGST लगाया जायेगा। राजस्थान सरकार को कोई कर नहीं मिले���ा। जयपुर का व्यापारी 18,000 केंद्र के खाते मे जमा कराएगा और केंद्र सरकार मध्य प्रदेश सरकार को उसका हिस्सा हस्तांतरित कर देगी |
केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाये जाने वाले कर 
केन्द्रीय सरकार ने संघ सूची में उल्लेखित विभिन्न करों में से निम्नलिखित प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर लगाये हैं- 
(A) प्रत्यक्ष कर 
(1) कृषि आय को छोड़कर अन्य आय पर कर (प्रविष्टि संख्या 82)। 
(2) निगम कर (प्रविष्टि संख्या 85 ) । 
(3) सम्पत्तियों के पूँजीगत मूल्य पर धन-कर (प्रविष्टि संख्या 86)। 
(B) अप्रत्यक्ष कर 
(1) सीमा शुल्क (निर्यात शुल्क सहित) (प्रविष्टि संख्या 83) 
(2) भारत में निर्मित अथवा उत्पादित तम्बाकू तथा अन्य वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क (प्रविष्टि संख्या 
84)। परन्तु निम्नलिखित को छोड़कर- 
(अ) मानवीय उपभोग में काम आने वाली शराब । 
(ब) अफीम, भारतीय भांग तथा अन्य नशीली दवाइयाँ तथा मादक पदार्थ । 
(3) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वाणिज्य के दौरान समाचार-पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं के क्रय- विक्रय पर कर-केन्द्रीय विक्रय कर (प्रविष्टि संख्या 92अ)। 
(4) सेवाओं पर कर (प्रविष्टि संख्या 92स) । 
स्पष्टीकरण (1) उपर्युक्त प्रमुख कर अथवा शुल्क की मदों के अलावा भी प्रथम सूची में अनेक मदें हैं जिनसे केन्द्रीय सरकार राजस्व प्राप्त कर सकती है। 
(2) भूतकाल में केन्द्रीय सरकार ने कई अन्य कर अथवा शुल्क लगाये थे परन्तु वे अब प्रभाव में नहीं हैं। जैसे—सम्पदा शुल्क (Estate Duty)। यह कर किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसके द्वारा छोड़ी गई सम्पत्तियों पर उन सम्पत्तियों को प्राप्त करने वालों से वसूल किया जाता था। 
(3) धन कर को भी वित्तीय वर्ष 2015-16 से समाप्त कर दिया गया है। 
राज्य सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले कर 
राज्य सरकारें द्वितीय सूची अर्थात् राज्य सूची में उल्लिखित विभिन्न प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों को लगा सकती हैं। राज्य सरकारों द्वारा प्रमुख रूप से निम्न करों को लगाया गया है- 
(1) भू-राजस्व अथवा मालगुजारी (प्रविष्टि संख्या 45 ) । 
(2) कृषि आय पर कर (प्रविष्टि संख्या 46) । 
(3) भूमि एवं भवन कर (प्रविष्टि संख्या 49)। 
(4) राज्य में निर्मित अथवा उत्पादित निम्नलिखित वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क तथा भारत में अन्य किसी भी स्थान पर निर्मित अथवा उत्पादित ऐसी ही वस्तुओं पर समान अथवा नीची दर से संतुलनकारी शुल्क ( Countervailing duties ) — 
(अ) मानवीय उपभोग के लिए काम में लाई जाने वाली शराब। 
(ब) अफीम, भारतीय भांग अथवा नशीली औषधियाँ अथवा मादक पदार्थ, परन्तु उन औषधीय तथा प्रसाधन सामग्रियों को छोड़कर जिनमें इन पदार्थों का प्रयोग किया गया हो (प्रविष्टि संख्या 51 ) । 
(5) किसी स्थानीय क्षेत्र में उपभोग, उपयोग अथवा बिक्री के लिए आने वाली वस्तुओं के प्रवेश पर कर (प्रविष्टि संख्या 52 ) । 
(6) समाचार-पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं के क्रय-विक्रय पर कर अर्थात् राज्य स्तरीय मूल्य 
संवर्द्धित कर (प्रविष्टि संख्या 54)। 
(7) धंधों, व्यापारों, रोजगारों तथा पेशों पर कर (प्रविष्टि संख्या 60)। 
(8) दस्तावेजों पर स्टाम्प शुल्क की दरें परन्तु उन दस्तावेजों को छोड़कर जिन पर स्टाम्प शुल्क लगाने का अधिकार प्रथम सूची के अनुसार केन्द्रीय सरकार का हो (प्रविष्टि संख्या 63)। स्पष्टीकरण—उपर्युक्त प्रमुख मदों के अलावा द्वितीय सूची में अन्य कई मदें हैं जिनसे राज्य सरकारें राजस्व प्राप्त कर सकती हैं। 
केन्द्र अथवा राज्य सरकार दोनों को कर वसूली का अधिकार 
(Power of both Central and State Government to collect Tax) 
उपर��युक्त वर्णित दो सूचियों के अलावा तृतीय सूची के अन्तर्गत दिये गये मामलों में केन्द्र एवं राज्य सरकार दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। चूँकि तृतीय सूची में कर राजस्व की कोई मद नहीं है, अतः आम जनता पर दोहरा करारोपण नहीं हो सकता है। यदि किसी विषय पर केन्द्र और किसी राज्य सरकार दोनों द्वारा कानून बनाये जायें तथा उनमें विरोधाभास हो तो उस परिस्थिति में केन्द्रीय कानून ही मान्य होगा । 
टिप्पणी- इसके अलावा केन्द्रीय सरकार को प्रथम सूची की प्रविष्टि संख्या 97 के अनुसार करारोपण का अवशिष्ट अधिकार भी है। इस अधिकार के तहत केन्द्रीय सरकार को ऐसे किसी भी मामले में कर लगाने का अधिकार है जिसका उल्लेख सूची II एवं सूची III में नहीं हो । 
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newslobster · 2 years
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GST कानून को अपराध मुक्त किया जाए, व्यक्तिगत आयकर दरें घटाई जाएं: CII
GST कानून को अपराध मुक्त किया जाए, व्यक्तिगत आयकर दरें घटाई जाएं: CII
उद्योग मंडल के अध्यक्ष संजीव बजाज ने कहा कि सरकार को सुधार के अगले चरण में… Source link
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suryyaskiran · 2 years
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बैंकिंग चैनलों के जरिए भारत, विदेश से फंड जुटाने और हवाला में शामिल है पीएफआई : केंद्र
कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने अब तक अपनी जांच में पाया है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पदाधिकारी और कार्यकर्ता अन्य लोगों के साथ बैंकिंग चैनलों, हवाला, दान आदि के माध्यम से भारत और विदेशों से धन जुटाने की साजिश कर रहे थे।गृह मंत्रालय के अनुसार, धन एक अच्छी तरह से तैयार की गई आपराधिक साजिश के हिस्से के रूप में उठाया गया था और पीएफआई इन फंडों को वैध करने के लिए कई खातों के माध्यम से इन फंडों को स्थानांतरित, लेयरिंग और एकीकृत करता पाया गया है और अंतत: इन फंडों का उपयोग भारत में विभिन्न आपराधिक, गैरकानूनी और आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया गया।केंद्र ने बुधवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके सहयोगियों पर पांच साल की अवधि के लिए प्रतिबंध लगा दिया। सहयोगियों में रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल वुमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पॉवर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन शामिल हैं।जांच से पता चला है कि पीएफआई की ओर से अपने कई बैंक खातों के संबंध में जमा के स्रोत खाताधारकों के वित्तीय प्रोफाइल द्वारा समर्थित नहीं थे और पीएफआई की गतिविधियों को उनके घोषित उद्देश्यों के अनुसार नहीं किया जा रहा था।अधिसूचना के अनुसार, आयकर विभाग ने आयकर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 12ए या 12एए के तहत पीएफआई को दिए गए पंजीकरण को रद्द कर दिया। आयकर विभाग ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 12ए या धारा 12एए के तहत रिहैब इंडिया फाउंडेशन को दिए गए पंजीकरण को भी रद्द कर दिया।जांच एजेंसियों के अनुसार, सहयोगी या सहयोगी कंपनियों या मोर्चे का पीएफआई के साथ घनिष्ठ संबंध है और गैरकानूनी गतिविधियों के लिए अपनी क्षमता को मजबूत करने के लिए अपने सहयोगियों या मोर्चो की सामूहिक पहुंच और धन जुटाने की क्षमता का उपयोग करता है। Read the full article
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everynewsnow · 4 years
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गायक दिलजीत दोसांझ ने इनकम टैक्स सर्टिफिकेट की जांच की
गायक दिलजीत दोसांझ ने इनकम टैक्स सर्टिफिकेट की जांच की
दिलजीत दोसांझ सक्रिय रूप से किसानों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हैं। (फाइल) मुंबई: इतनी नफरत न फैलाएं, पंजाबी गायक-अभिनेता दिलजीत दोसांझ ने उनके खिलाफ आयकर जांच की रिपोर्टों के बीच वित्त मंत्रालय से अपना प्रमाण पत्र साझा करते हुए कहा। श्री दोसांझ नए कृषि विधानों के खिलाफ चल रहे किसानों के विरोध का सक्रिय समर्थन कर रहे हैं। ऐसी खबरें थीं कि आयकर विभाग ने किसानों को 1 करोड़ रुपये दान करने…
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007rebel · 3 years
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*देश मजबूत हाथों में है, लेकिन वह मजबूती किसके लिए है? वह मजबूती ​है बैंक लूट ​के लिए, भ्रष्टाचार के लिए, कॉरपोरेट के लिए और सिर्फ उनके लिए जो इस लूट में भागीदार हैं।*
*लगातार जो बैंक लूटे जा रहे हैं, वह पैसा भले सीधे आपकी जेब से नहीं जा रहा है, लेकिन है वह आपका ही पैसा। आपसे वसूला गया टैक्स सरकारी खजाने में जाता है और वही पैसा बैंकों के जरिये कॉरपोरेट को लोन दिया जाता है। जितना धन कॉरपोरेट का लोन माफ करने और बैंक फ्रॉड करने में लुट रहा है, वह आपका पैसा है।*
*बैंकिंग के ​इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला सामने आया है। देश के 28 बैंकों का 22,842 करोड़ लूट लिया गया है। कंपनी का नाम है एबीजी शिपयार्ड। गुजराती कंपनी है। जहाज बनाती है। यह देश में जहाज बनाने वाली सबसे बड़ी प्राइवेट कंपनी है। यह भारतीय नौसेना के लिए भी जहाज बनाती है।*
*एबीजी शिपयार्ड पर 2014 में 11 हजार करोड़ का लोन था। इसकी रिकवरी करने की जगह इसे और लोन दिया गया। 2022 में यह बढ़कर लगभग 23 हजार करोड़ पहुंच गया।*
*चौकीदार बनकर खजाने की रखवाली करने आये नरेंद्र मोदी ने जबसे प्रधानमंत्री बने हैं तबसे लगातार एक एक कर बैंक डूब रहे हैं। बैंकों के पैसे डूब रहे हैं। अर्थव्यवस्था डूब रही है। देश भविष्य अंधकार में डूब रहा है।*
*यह नीरव मोदी, विजय माल्या, मेहुल चौकसी से भी बड़ा घोटाला है। भारत अपने इतिहास के सबसे भ्रष्ट प्रशासन का सामना कर रहा है जो किसी भी भ्रष्टाचार के आरोप की जांच नहीं कराता। सीबीआई, ईडी, आयकर सब सरकारी पिंजड़े में हैं। प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट, लोकपाल कानून और आरटीआई जैसे कानूनों को संसद में बिल पास करके कमजोर कर दिया गया है। पारदर्शिता का हवाला देकर इलेक्टोरल बॉन्ड जैसी अंधी सुरंग बनाई गई है, जिसके अकूत संपत्ति पार की जा रही है।*
*जनता को यानी हम आपको हिंदू - मुसलमान का राष्ट्रीय सिलेबस पकड़ा दिया गया है। हम आप इसी में उलझे हैं और देश का खजाना लुट रहा है। इसका असर किस पर होगा? आपके बच्चों पर। पिछले दो साल में लगभग 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं और करोड़ों लोगों का रोजगार छीन लिया गया है। जनता लगातार गरीब हो रही है और दो पूंजीपति लगातार अमीर हो रहे हैं।*
*आप सोते रहिए या हिंदू-मुसलमान के बहाने गढ़ी गई नफरत और धार्मिक उन्माद में उलझे रहिए। जब तक जागेंगे, शायद देर हो जाएगी।*
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dainiksamachar · 11 months
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सत्ताधारी पार्टी को ही ज्यादा चंदा क्यों मिलता है... सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा तीखा सवाल
नई दिल्ली: चुनावी बॉन्ड स्कीम पर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में दलीलें रखी जा रही हैं। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड योजना से सत्ताधारी दल को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। इस पर केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सत्तारूढ़ दल को ज्यादा योगदान मिलना एक परिपाटी है। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि आपके अनुसार, ऐसा क्यों है कि सत्ताधारी दल को चंदे का एक बड़ा हिस्सा मिलता है, इसका कारण क्या है? मेहता ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि जो भी पार्टी सत्तारूढ़ होती है उसे ज्यादा चंदा मिलता है। हालांकि उन्होंने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत जवाब है, सरकार का जवाब नहीं है। जब चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने आंशिक गोपनीयता का हवाला दिया और कहा कि सत्ता में ���ैठे व्यक्ति के पास विवरण तक पहुंच हो सकती है, तो सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जानकारी पूरी तरह से गोपनीय है। पीठ ने कहा, ‘यह एक अस्पष्ट क्षेत्र है। आप ऐसा कह सकते हैं, दूसरा पक्ष इससे सहमत नहीं होगा।’ स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट का सवालसुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना के साथ समस्या यह है कि यह ‘सिलेक्टिव गुमनामी’ और ‘सिलेक्टिव गोपनीयता’ प्रदान करती है क्योंकि विवरण स्टेट बैंक के पास उपलब्ध रहता है और उन तक कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी पहुंच सकती हैं। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि योजना के साथ (इस तरह की) समस्या रहेगी अगर यह सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर नहीं प्रदान करती और अस्पष्टता से ग्रस्त है। केंद्र की दलीलकेंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारत सहित लगभग हर देश चुनावों में काले धन के इस्तेमाल की समस्या से जूझ रहा है और चुनावी बॉन्ड योजना मतदान प्रक्रिया में ‘अवैध धन’ के खतरे को खत्म करने का एक प्रयास है। संविधान पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत इस विशेष योजना को काले धन की समस्या से निपटने की दिशा में एक एकल प्रयास के रूप में नहीं ले सकती है। मेहता ने डिजिटल भुगतान और वर्ष 2018 और 2021 के बीच 2.38 लाख ‘शेल कंपनियों’ के खिलाफ कार्रवाई सहित काला धन से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों पर प्रकाश डाला। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ के समक्ष मेहता ने कहा, ‘आम तौर पर चुनावों और राजनीति में, विशेषकर चुनावों में काले धन का इस्तेमाल होता है...हर देश इस समस्या से जूझ रहा है। भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है।’ पीठ राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुन रही है।उन्होंने अदालत में दायर अपनी लिखित दलील में कहा, ‘देश की चुनावी प्रक्रिया को चलाने में बेहिसाब नकदी (काला धन) का इस्तेमाल देश के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।’ डिजिटलीकरण की भूमिका का उल्लेख करते हुए मेहता ने कहा कि भारत में लगभग 75 करोड़ मोबाइल इंटरनेट यूजर हैं और हर तीन सेकंड में एक नया इंटरनेट यूजर जुड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘भारत में डिजिटल भुगतान की मात्रा अमेरिका और यूरोप की तुलना में लगभग सात गुना और चीन की तुलना में तीन गुना है।’मेहता ने कहा कि कई तरीकों को आजमाने के बावजूद प्रणालीगत विफलताओं के कारण काले धन के खतरे से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा जा सका है, इसलिए वर्तमान योजना बैंकिंग प्रणाली और चुनाव में सफेद धन को सुनिश्चित करने का एक विवेकपूर्ण प्रयास है। 'पारदर्शिता कम होती है'दिनभर चली सुनवाई के दौरान एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने तर्क दिया कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान की बुनियादी संरचना है और राजनीतिक दलों की गुमनाम ‘कॉर्पोरेट फंडिंग’, जो अनिवार्य रूप से पक्षपात के लिए दी गई रिश्वत है, सरकार की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली की जड़ पर प्रहार करती है। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉन्ड गुमनाम कॉर्पोरेट फंडिंग का एक साधन है जो पारदर्शिता को कमजोर करता है और अपारदर्शिता को बढ़ावा देता है।न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ‘कंपनी अधिनियम के तहत खाते वास्तविक आय का पता लगाने के उद्देश्य से रखे जाते हैं। ये आयकर खातों से अलग होते हैं। आम तौर पर कंपनी अधिनियम के तहत, मुनाफे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की प्रवृत्ति होती है क्योंकि तब आपको बाजार में अधिक विश्वसनीयता और ऋण तक अधिक पहुंच मिलती है।’ उन्होंने कहा कि इसके विपरीत आयकर अधिनियम में कर बचाने की प्रवृत्ति है।एक अन्य हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने भी दिन के दौरान अपनी दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉण्ड विशिष्ट हैं। इस पर पीठ ने कहा, यह जरूरी नहीं है। यह कहा गया कि बॉन्ड साल में कुछ… http://dlvr.it/SyG7vC
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gstnitbuddies-blog · 1 year
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भारत में निजी सुरक्षा व्यवसाय शुरू करने से पहले Psara License लेना आवश्यक है | क्या अपने कभी सोचा है कि PSARA License कैसे लिया जाता है तो आज की वीडियो आपके लिये बहुत ही ज्यादा लाभ दायक है | आइये Psara license लेने की पूरी प्रक्रिया के बारे मे जानते है|
Psara license लेने पूरी प्रक्रिया
Psara License लेने के लिये सबसे पहले एक फॉर्म या कंपनी का निर्माण करना होगा | निजी सुरक्षा एजेंसी का मतलब एक एंटिटी है जो पुलिस के विकल्प के रूप में एक प्रतिष्ठान में सुरक्षा गार्ड और अन्य सेवाएं प्रदान करने के व्यवसाय मे शामिल हैं | निजी सुरक्षा एजेंसी के संचालन को निजी सुरक्षा एजेंसी विनियमन अधिनियम, 2005 के माध्यम से संचालित किया जाता है| जिसे प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी रेगुलेशन ए���्ट (Psara) के नाम से भी जाना जाता है | Psara अधिनियमित होने के बाद व्यवसाय शुरू करने से पहले एक सुरक्षा एजेंसी के लिए राज्य नियंत्र�� प्राधिकरण से संबंधित लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है | और गैर अनुपालन के मामले में कानून मे कड़े दंडात्मक नतीजा शामिल है | भारत में निजी सुरक्षा एजेंसी खोलने के लिये लाइसेंस के लिये आवेदन राज्य के लिये सक्षम प्राधिकारी यानि कॉम्पिटेंट अथॉरिटी को किया जाता है | Psara लाइसेंस किसी विशेष राज्य के एक या एक से अधिक जिले या पूरे राज्य मे संचालित करने के लिये जारी किया जाता है
Psara लाइसेंस के लिए आवेदन करने की पात्रता
Psara लाइसेंस के लिए कौन कौन आवेदन कर सकता है |
एक व्यक्ति
साझेदारी फर्म
सीमित देयता भागीदारी फर्म
एक व्यक्ति कंपनी
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी
संबंधित राज्य के कॉम्पिटेंट अथॉरिटी को Psara License के लिये आवेदन कर सकते है |
निदेशक अधिकारी की पात्रता
आवेदक के पुलिस सत्यापन के लिये आवेदन कर्ता को भारतीय निवासी होना अनिवार्य है|
आयकर रिटर्न की एक प्रति पेश करने की ज़रूरत होती है | किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं होना चाहिए |
राष्ट्रीय हित खंड
ये लाइसेंस किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं दिया जाता है यदि वह राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक व्यवस्था की रक्षा के लिए किसी भी कानून के तहत प्रतिबंधित संगठन या एसोसिएशन के साथ संपर्क रखता हो |
आवेदक का नाम और उद्देश्य
एंटिटी के नाम में सुरक्षा, सेवा से संबंधित शब्द शामिल होने चाहिए | जो आवेदक के उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करता हो |
कंपनी के मामले में, MOA में मुख्य उद्देश्यों में से एक के रूप मे सुरक्षा सेवाए प्रदान करना शामिल होना चाहिए |
प्रशिक्षण संस्था के साथ MOU
PSARA लाइसेंस के लिये आवेदक को प्रशिक्षण संस्थान या एक संगठन के साथ समझौता ज्ञापन में प्रवेश करना चाहिए | जिसे राज्य नियंत्रक प्राधिकरण द्वारा सुरक्षा गार्ड को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये अनुमोदित किया गया हो | पूर्व सैनिकों के लिये प्रशिक्षण आवश्यकता में छूट है |
Psara लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया
अपनी योग्यता और दस्तावेजों की जांच करें | Psara लाइसेंस आवेदन करने का पहला चरण सभी आवश्यक दस्तावेज़ जैसे पैनकार्ड, टैन नंबर , GST , provident fund, ईएसआई , दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम के तहत स्थापना का रजिस्ट्रेशन और सभी निर्देशक का आयकर |
एक प्रशिक्षण संस्थान के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर
आवेदक अपने गार्ड और सुपरवाइजर को प्रशिक्षित करने के लिए एक मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण संस्थान के एक समझौता ज्ञापन में प्रवेश करने के लिए होना चाहिए |
राज्य की कंट्रोलिंग अथॉरिटी में फाइलिंग
सहायक दस्तावेज के साथ भरे हुए पत्रों को नियंत्रित करने वाले प्राधिकरण मे जमा करने के बाद, आवेदन को सत्यापन के लिए संसाधित किया जाता है | पुलिस अधिकारी से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त होने के बाद प्राधिकरण को लाइसेंस की मजूरी दे सकता है या किसी कारण के साथ अस्वीकृत कर सकता है |
Psara लाइसेंस की शर्त: -
Psara यह बताता है की प्रत्येक सुरक्षा एजेंसी सुरक्षा गार्ड के काम की निगरानी के लिए पर्यवेक्षक को जोड़ने की आवश्यकता है| पर्यवेक्षक को आवश्यक प्रशिक्षण और कौशल प्रदान करने के लिए सुरक्षा एजेंसी की आवश्यकता होती हैं | क़म से कम तीन साल के अनुभव के साथ सेना, नौसेना या वायुसेना के साथ एक व्यक्ति को पर्यवेक्षक को जोड़ते समय तरजीह दी जानी चाहिए | अधिनियम एक सुरक्षा गार्ड के लिए मापदंड, योग्यता को निर्धारित करता है |
Psara पंजीकरण के लिये आवश्यक दस्तावेज़: -
इन्‌ˌकॉपˈरेश्‌न्‌ का प्रमाणपत्र और MOA
पंजीकृत कार्यालय का दस्तावेज़
प्रशिक्षण संस्थान के साथ समझौता ज्ञापन
सुरक्षा गार्ड के दस्तावेज़
निदेशक का पहचान पत्र और पता प्रमाण पत्र
प्रत्येक प्रोत्साहक का पैन कार्ड
प्रोत्साहक की दो तस्वीर
प्रत्येक निदेशक की आयकर
Psara पंजीकरण के लिए हमारे विशेषज्ञ से बात करें | यदि आप भी भविष्य में Psara पंजीकरण के लिए सोच रहे है तो आज ही हमसे संपर्क करे हमारे फ़ोन नंबर है +91-7229903363 और अधिक जानकारी के लिये हमारी वेबसाइट www.gstnitbuddies.com पर विजिट करे |
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sabkuchgyan · 5 years
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पोस्ट ऑफिस में चल रही इस स्कीम में लगायें पैसा - जल्दी होगा दुगना
पोस्ट ऑफिस में इस स्कीम में लगायें पैसा - जल्दी होगा दुगना #PostOffice #SarkariYojna #Money #BusinessNews
देश : देखिये हाल अभी वर्तमान में, बचत योजनाओं पर ब्याज लगातार घट रहा है। पोस्ट ऑफिस की इस स्कीम में आपका पैसा 119 महीने में दोगुना हो जाएगा। इस योजना की खासियत यह है कि आप इसमें केवल 100 रुपये का निवेश कर सकते हैं और कर छूट का लाभ भी उठा सकते हैं।
दिल्ली पुलिस नौकरियां 2019: 649 हेड कांस्टेबल पदों के लिए ऑनलाइन आवेदन करें
AIIMS भोपाल में निकली नॉन फैकेल्टी ग्रुप A के लिए भर्तियाँ – अभी देखें 
सरक…
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दोस्तों इनकम टैक्स क्या होता हैं(income tax in Hindi) इसकी जानकारी आपको हिंदी में दी जायेगी। इसके लिये आपको हमारा आर्टिकल इनकम टैक्स इन हिन्दी का अध्यन करना पड़ेगा। आयकर(income tax) एक कर है जो सरकारें अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर व्यवसायों और व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न आय पर लगाती हैं। कानून के अनुसार, करदाताओं को अपने कर दायित्वों को निर्धारित करने के लिए सालाना आयकर रिटर्न दाखिल करना होगा। आयकर, सरकारों के लिए राजस्व(tax) का एक स्रोत है। उनका उपयोग सार्वजनिक सेवाओं को निधि (fund)देने, सरकारी दायित्वों का भुगतान करने और नागरिकों के लिए सामान(The honor) प्रदान करने के लिए किया जाता है।
अधिकांश देश एक प्रगतिशील(Progressive) आयकर प्रणाली का उपयोग करते हैं जिसमें उच्च-आय वाले अपने निम्न-आय वाले समकक्षों(Counterparts)की तुलना में उच्च कर दर का भुगतान करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका(usa) ने 1812 के युद्ध के दौरान पहला आयकर लगाया। इसका मूल उद्देश्य(Original purpose) युद्ध-संबंधी खर्चों से होने वाले $ 100 मिलियन के ऋण के पुनर्भुगतान के लिए था। युद्ध के बाद, कर(tax) को निरस्त कर दिया गया और फिर 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में बहाल किया गया।
https://taxjankari.com/income-tax-kya-hai/
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thenewsme · 5 years
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भारत में आयकर अधिनियम कानून के तहत 2019-20 किसे अपने खातों का ऑडिट करवाना होगा ?
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भारत में आयकर अधिनियम कानून के अनुसार कुछ श्रेणियों को अपने खातों का ऑडिट (Account Audit) करवाना आवश्यक है और ऐसी श्रेणी के लिए आयकर रिटर्न दाखिल करने की नियत तारीख 30 सितंबर 2019 है। भारत में आयकर अधिनियम कानून की धारा 44 AB के Tax Audit तहत टैक्स ऑडिट निम्नलिखित श्रेणी के लिए अनिवार्य है करदाताओं की संख्या:
व्यक्तिगत जो व्यवसाय में हैं और टर्नओवर या सकल प्राप्तियां किसी भी पिछले वर्ष में दो करोड़ (Two crore rupees) रुपये से अधिक हैं
पेशे में व्यक्तिगत और जिसका सकल लाभ किसी भी पिछले वर्ष में 50 लाख रुपये से अधिक है।
व्यक्ति, जो धारा 44AD की ��्रकल्पित कराधान योजना क�� चयन करने के लिए पात्र है, लेकिन इस तरह के व्यवसाय के लिए लाभ या लाभ कम होने का दावा करता है और धारा 44AD के प्रकल्पित कराधान योजना के अनुसार लाभ और लाभ की गणना उसकी आय से अधिक है जो प्रभार्य नहीं है कर लगाना
एक कंपनी या सहकारी समिति जैसी कुछ संस्थाओं को अपने खातों को विशिष्ट कानूनों के तहत ऑडिट कराना चाहिए। ऐसी संस्थाओं को धारा 44AB के तहत अन्य कर लेखा परीक्षा से गुजरना आवश्यक नहीं है
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कौन धारा 44AB के तहत कर लेखा परीक्षा करता है
कर लेखा परीक्षा को निर्धारित खातों में एक (Chartered Accountant) चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिए। धारा 44AB के तहत किए गए ऑडिट के संबंध में औपचारिक रिपोर्ट फॉर्म नंबर 3CB में तैयार की जाती है और ऑडिट के विवरण फॉर्म 3CD में दर्ज किए जाने चाहिए। उन लोगों के लिए कर लेखा परीक्षा रिपोर्ट जिन्हें उनके खातों को किसी अन्य कानून के तहत या उनके ऑडिट के लिए फॉर्म 3CA / 3CB में तैयार किया जाना चाहिए और उसी के लिए विवरणों को फॉर्म Form 3CD में दर्ज किया जाना चाहिए।
A.Y. 2019-20 के लिए टैक्स ऑडिट के लिए नियत तारीख
30th of September 2019
धारा 44 क के तहत जुर्माना
यदि आप ऑडिट के कर कानून का पालन करने में विफल रहते हैं। नीचे का निचला दंड है: व्यवसाय के कुल राजस्व का 0.5% या वर्तमान वित्तीय वर्ष के पेशे में कुल प्राप्तियों का 0.5% है। 1,50,000 रु
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joinnoukri · 2 years
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Income Tax नहीं भरने पर भारी जुर्माना और हो सकती है जेल, जानिए आयकर कानून के नियम income tax return not filled you have to pay heavy penalty and possible to jail imprisonment
Income Tax नहीं भरने पर भारी जुर्माना और हो सकती है जेल, जानिए आयकर कानून के नियम income tax return not filled you have to pay heavy penalty and possible to jail imprisonment
फोटो:फ़ाइल इनकम टैक्स रिटर्न आयकर आय पिछली बार की तारीख 31 जुलाई, 2022 समाप्त हो गई है। ऐसे में अगर आप सक्षम हैं, तो यह आपकी मदद कर सकता है। दोबारा लोड करने वाले को वापस करने के लिए लागू नहीं किया गया। शर्त के साथ भी यही है। रिटर्न, रिटर्न भरने में क्या– है। अधिक से अधिक आय भरने के लिए 🙏 20 वर्ष की आयु के लिए जितना अधिक होगा उतना ही मजबूत होगा। किसी भी व्यक्ति को गलत तरीके से सामना करना पड़ सकता…
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divyabhashkar · 2 years
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1 अप्रैल से बदल रहा है और इन नियमों को अपने निवेश से बढ़ा रहा है, यहां
1 अप्रैल से बदल रहा है और इन नियमों को अपने निवेश से बढ़ा रहा है, यहां
नई दिल्ली . 1 अप्रैल 2022 से कई बड़े बदलाव हो रहे हैं। इसमें बैंक नियम, टैक्स, जीएसटी, पीएफ और म्यूचुअल फंड में निवेश के नियम शामिल हैं। हम आपको बताते हैं ऐसी ही कुछ बेहतरीन कृतियों के बारे में जिनका सीधा असर आप पर पड़ेगा। पीएफ . पर टैक्सकेंद्र सरकार एक अप्रैल से नया आयकर कानून लागू करेगी। इसके नीचे पीएफ वितरण पैटर्न दर्ज करें और इस पर भी टैक्स लगेगा। ध्यान दें कि ईपीएफ खाते में 2.5 लाख रुपये तक…
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