जानिए भारत में गाय किस नस्ल की बढिया हैं और कौन सी कितना दूध देती हैं
भारत में गाय पालन (Cow Farming/Dairy farming) एक बेहतरीन व्यवसाय है। देसी गाय के दूध की पौष्टिकता को देखते हुए इसकी मांग अधिक है। छोटे बच्चों को भी डॉक्टर माँ के दूध के बाद गाय का दूध देने की ही सलाह देते हैं।
आइये आज हम देसी गाय और उनकी नस्लों के बारे में जानते हैं…
देसी गाय की पहचान
भारत में देसी गाय (Desi Cow) की पहचान करना काफी आसान है। देसी गायों में कूबड़ पाया जाता है। इसी कारण इन्हें कूबड़ धारी भारतीय नस्ल की गाय भी कहा जाता है।
ज्यादा दूध का उत्पादन देने वाली देसी गाय
देसी गाय की नस्ल जिस क्षेत्र की है, अगर उसी क्षेत्र में पाली जाए, सही से दानापानी दिया जाए तो उत्पादन अच्छा होता है। आज हम आपको बताएंगे कि किस क्षेत्र में गाय की कौन सी नस्ल ज्यादा फायदा दे सकती है।
गिर नस्ल (Gyr cattle Breed)
गिर नस्ल की गाय मूलतः गुजरात के इलाकों से आती हैं। गिर के जंगलों में पाए जाने के कारण इनका नाम “गिर” पड़ा है। इन्हें भारत मे सबसे ज्यादा दूध उत्पादन देने वाली नस्ल माना जाता है। इस नस्ल की गाय एक दिन में 50-80 लीटर तक दूध दे सकती है। इस गाय के थन बड़े होते हैं। देश ही नहीं, विदेशों में भी इस गाय की काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील के लोग गिर गाय को पालना पसंद करते हैं।
साहीवाल नस्ल (Sahiwal cattle Breed)
साहीवाल गायों को दूध व्यवसायी काफी पसंद करते हैं। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध उत्पादन करती है। एक बार मां बनने पर लगभग 10 महीने तक ये दूध देती है। इन्हें भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति माना जाता है। मूल रूप से ये नस्ल पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती है।
राठी नस्ल (Rathi Breed Cow)
राठी नस्ल राजस्थान की है। राठस जनजाति के नाम पर इनका नाम राठी पड़ा है। इन्हें ज्यादा दूध देने के लिए जाना जाता है। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में पाई जाती हैं। यह गाय प्रतिदन 6-8 लीटर दूध देती है।
हल्लीकर नस्ल (Hallikar Breed)
हल्लीकर गाय कर्नाटक में पायी जाने वाली नस्ल है। मैसूर (कर्नाटक) में ये नस्ल सबसे ज्यादा पायी जाती है। इस नस्ल की गायों की दूध देने की क्षमता काफी ज्यादा होती है।
हरियाणवी नस्ल (Haryana Cow Breed)
नाम के मुताबिक ये नस्ल हरियाणा की है। मगर उत्तर प्रदेश और राजस्थान के क्षेत्रों में भी इसे पाया जाता है। ये गाय सफेद रंग की होती है। इनसे दूध उत्पादन भी अच्छा होता है। इस नस्ल के बैल खेती में भी अच्छा कार्य करते हैं।
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"गौकुलम्" ( Gaukulam ) भारत का एकमात्र भारतीय नस्ल की कांकरेज गौमाता का संस्थान है। जहाँ वर्ष में 9 महीने खेतों में गाय चरती है और 3 महीने संस्थान में, हजारों वर्षों से जो भारत मे गाय को खुले खेत व जंगलों में गौपालकों द्वारा चराने का प्राकृतिक नियम अनुसार "गौकुलम्"( Gaukulam ) आज के आधुनिक युग मे भी गौपालक भाइयों की टीम के साथ गौमाता को जंगलों व खेतो में चराने का कार्य कर रहा है। ओर इनके दूध से बन रहा है आप सब देशवाशियों के लिए शुद्ध बिलोना घी।
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आज भी वैदिकमार्ट बिलोना घी भारतीय नस्ल की कंकरेज देसी गाय के शुद्ध A2 दूध से बना है और इसे हाथ से बनाया जाता है । वही मिट्टी की सौंधी-सौंधी सुगंध वाला वैदिक बिलोना घी,क्योंकि हमारी जो गौमाता खुले मैदान में चरने वाली भारतीय नस्ल भगवान् कृष्ण की प्रिय कांकरेज देशी गौमाता जी के दूध को मिटटी की हंडिया में हारे(धीमी आंच का स्वदेशी चूल्हा) पर आठ घंटे तक दूध को पकाते हैं।
धीमी आंच पर पकते इस दूध में समस्त पोषक तत्व पल्लवित होकर मिटटी की सौंधी सुगंध से भर जाते हैं और घी बनने के बाद भी वही सुगंध आपके घर तक पहुंचकर भोजन का स्वाद और इंद्रियों को आंनदित कर देते हैं।
लेकिन आज बाजारू घी में तो दूर घर पर भी कोई मिटटी की हंडिया में दूध को नहीं पकाता। तो कैसे आज की पीढ़ी इस सुगंध का आनंद अपने जीवन में ले पायेगी।
किन्तु जहाँ वैदिकमार्ट उन देसी गाय के दूध का उपयोग करता है जो खुले मैदान में घूमती हैं । और हरी घास खाती हैं ।। इसलिए उन गाय का दूध और घी अमृत के समान है । वैदिकमार्ट बिलोना घी कई गुणों से भरपूर है । यह 100% शुद्ध और प्राकृतिक है । ( Certified by FSSAI )
" सात्विक ��हार शुद्ध विचार "
आयुर्वेद में तो सुगंध(वो गंध जो नाक से सूंघने पर आत्मा को भी प्रसन्न करे) से पुष्टि होती है ऐसा कहा गया है।महामृत्युंजय मन्त्र में "सुगंधिम पुष्टि वर्धनम" का आलेख हुआ है। अर्थात सुगंध से समस्त शरीर और इंद्रियों की पुष्टि(वृद्धि) होती है।इसलिए वैदिक मार्ट शुद्ध घी अपनी मिटटी की प्राकृतिक सुगंध से आपके मन, शरीर और आत्मा की पुष्टि करता है।
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राजस्थान पशु सम्पदा 19वीं पशु गणना.
पशु सम्पदा
राजस्व मण्डल अजमेर- प्रत्येक 5 वर्ष में पशुगणना करता है।
19 वीं पशुगणना 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर 2012 तक की गई।
18 वीं पशुगणना 2007 में आयोजित की गई जो नस्ल के आधार पर प्रथम गणना थी।
भारत में प्रथम पशुगणना 1919 में आयोजित की गई। तब राज्��� की कुछ रियासतों ने भी पशुगणना करवाई।
राजस्थान में कुल पशु - 5.77 करोड़
सबसे ज्यादा पशुधन -बाडमेर
सबसे कम पशुधन- धौलपुर
वर्ष 2012 की पशु गणना के अनुसार राज्य में पशु घनत्व 169 है।
वर्ष 2012 की पशु गणना में सर्वाधिक पशुघनत्व - डूंगरपुर
वर्ष 2012 की पशु गणना में न्यूनतम पशुघनत्व -जैसलमेर
पशु कुल पशु सर्वाधिक न्यूनतम
बकरी 216 लाख बाडमेर धौलपुर
गाय 133 लाख उदयपुर धौलपुर
भैंस 129 लाख अलवर जैसलमेर
भेड 90.79 लाख बाड़मेर धौलपुर
घोडे़ 37776 बाडमेर बांसवाडा
कुक्कुट 80.24 लाख अजमेर धौलपुर
गधे-खच्चर 81 हजार बाडमेर टोंक
ऊंट 3.25 लाख बाडमेर धौलपुर
सूअर 2.37 लाख भरतपुर बांसवाडा
भारत में राजस्थान दुग्ध उत्पादन 12 प्रतिशत के साथ दुसरे स्थान पर है।
पशुपालन व पशुपालन प्रसंस्करण से लगभग 9 से 10 प्रतिशत राजस्व की प्राप्ति होती है।
भारत की कुल पशु सम्पदा का 10 प्रतिशत भाग राजस्थान का है।
ऊन उत्पादन में राजस्थान का देश में प्रथम स्थान है। तथा सम्पुर्ण राष्ट्र की लगभग 40 प्रतिशत ऊन उत्पादित होती है।
दूध उत्पादन की दृष्टि से हमारे देश का विश्व में प्रथम स्थान है, तथा राजस्थान का देश में दूसरा स्थान है।
राजस्थान में सर्वाधिक दूध उत्पादन जयपुर, गंगानगर व अलवर जिले में व न्यूनतम दूध उत्पादन बांसवाड़ा में होता है।
राजस्थान में सर्वाधिक पशु मेले आयोजित होने वाले जिले - नागौर (3 मेले), झालावाड़ (2 मेले)।
राजस्थान के पशु मेले
वीर तेजाजी पशु मेला - परबतसर (नागौर)
बलदेव पशु मेला - मेड़ता शहर (नागौर)
रामदेव पशु मेला - नागौर
चन्द्रभागा पशु मेला - झालावाड़
गोमती सागर पशु मेला - झालावाड़
मल्लीनाथ पशु मेला - तिलवाड़ा (बाड़मेर)
गोगामेड़ी पशु मेला - गोगामेड़ी (नोहर)
कार्तिक पशु मेला - पुष्कर (अजमेर)
जसवन्त पशु मेला - भरतपुर
महाशिवरात्री पशु मेला - करौली
पशु प्रजनन केन्द्र
केन्द्रीय भेड़ प्रजनन केन्द्र - अविकानगर, टोंक।
केन्द्रीय बकरी अनुसंधान केन्द्र - अविकानगर,टोंक।
बकरी विकास एवं चारा उत्पादन केन्द्र - रामसर, अजमेर।
केन्द्रीय ऊंट प्रजनन केन्द्र - जोहड़बीड़, बीकानेर (1984 में)।
भैंस प्रजनन केन्द्र - वल्लभनगर, उदयपुर।
केन्द्रीय अश्व प्रजनन केन्द्र -
विलड़ा - जोधपुर
जोहड़बिड़ - बीकानेर।
सुअर फार्म - अलवर।
पोल्ट्री फार्म - जयपुर।
कुक्कड़ शाला - अजमेर।
गाय भैंस का कृत्रिम गर्भधारण केन्द्र (फ्रोजन सिमन बैंक)
बस्सी, जयपुर
मण्डौर, जोधपुर
राज्य भेड़ प्रजनन केन्द्र - चित्तौड़गढ़, जयपुर, फतेहपुर (सीकर), बांकलिया (नागौर)
राज्य गौवंश प्रजनन केन्द्र - बस्सी (जयपुर), कुम्हेर (भरतपुर), डग (झालावाड़), नोहर (हनुमानगढ़), चांदन (जैसलमेर), नागौर।
बकरियां
राजस्थान में सबसे बड़ा पशुधन बकरियां है। 19 वीं पशु गणना के अनुसार इनकी कुल संख्या 80.24 लाख थी।
देश का कुल बकरा मांस उत्पादन में राजस्थान का प्रथम (35 प्रतिशत) स्थान है।
बकरी की नस्ल
जमनापुरी - सर्वाधिक दूध देने वाली बकरी
लोही - सर्वाधिक मांस देने वाली बकरी
जखराना - सर्वाधिक दूध व सांस देने वाली श्रेष्ठ नस्ल - अलवर
बरबरी - सुन्दर बकरी - भरतपुर, सवाई माधोपुर
अन्य बकरी की नस्ल - परबतसरी, सिरोही व मारवाड़ी।
गाय
गौवंश की नस्लें
1. गिर गाय - उद्गम - गिर प्रदेश (गुजरात)।
इसे रेडां/अजमेरा भी कहते हैं।
अजमेर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा।
2. राठी - लालसिंधी एवं साहिवाल की मिश्रण नस्ल।
सर्वाधिक दूध देने वाली गाय की श्रेष्ठ नस्ल।
गंगानगर, जैसलमेर, बीकानेर।
3. थारपारकर - उद्गम - बाड़मेर का मालाणी प्रदेश।
दुसरी सर्वाधिक दूध देने वाली गाय।
उत्तरी - पश्चिमी सीमावर्ती जिले।
4. नागौरी - उद्गम - नागौरी का सुहालक प्रदेश।
इसका बैल चुस्त व मजबुत कद काठी का होता है।
नागौर, बीकानेर, जोधपुर।
5. कांकरेज - उद्गम - कच्छ का रन।
गाय की द्विप्रयोजनीय नस्ल।
जालौर, पाली, सिरोही, बाड़मेर।
6. सांचौरी - जालौर, पाली, उदयपुर।
7. मेवाती - अलवर, भरतपुर,कोठी (धौलपुर)।
8. मालवी - मध्यप्रदेश की सीमा वाले जिले।
9. हरियाणवी - हरियाणा के सीमा वाले जिले।
भैंस
भैंस की नस्ल
1. मुर्रा (कुन्नी) - सर्वाधिक दूध देने वाली भैंस की नस्ल।
जयपुर, अलवर।
2. बदावरी - इसके दूध में सर्वाधिक वसा होती है।
भरतपुर, सवाई माधोपुर, अलवर।
3. जाफाराबादी - भैंस की श्रेष्ठ नस्ल।
कोटा, बारां, झालावाड़।
अन्य नस्ल - नागपुरी, सुरती, मेहसाना।
भेड़
भेड़ की नस्लें
1. चोकला (शेखावटी) - इसका ऊन श्रेष्ठ किस्म का होता है इसे भारत की मेरिनों कहते है। चुरू, सीकर, झुन्झुनू।
2. जैसलमेरी - सर्वाधिक ऊन देने वाली भेड़ की नस्ल।
क्षेत्र - जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर।
3. नाली - इसका ऊन लम्बे रेशे का होता है, जिसका उपयोग कालीन बनाने में किया जाता है।
क्षेत्र - गंगानगर, बीकानेर, चुरू, झुन्झुनू।
4. मगरा - सर्वाधिक मांस देने वाली नस्ल।
क्षेत्र - जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, नागौर।
5. मारवाड़ी - इसमें सर्वाधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है।
क्षेत्र - जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर।
6. सोनाड़ी/चनोथर - लम्बे कान वाली नस्ल।
क्षेत्र - उदयपुर, डुंगरपुर, बांसवाड़ा।
7. पूंगला - बीकानेर में।
8. मालपुरी/अविका नगरी - टोंक, बुंदी, जयपुर।
9. खेरी नस्ल - भेड़ के रेवड़ों में पाई जाती है।
ऊंट
अन्य पशुधन में ऊंटों की संख्या सर्वाधिक है। 19 वीं पशुगणना के अनुसार राजस्थान में ऊंट 3.25 लाख थे।
ऊंट की नस्ल
1. नांचना - सवारी व तेज दौड़ने की दृष्टि से महत्वपूर्ण ऊंट।
2. गोमठ - भारवाहक के रूप में प्रसिद्ध ऊंट।
फलौदी (जोधपुर)।
अन्य नस्ल - अलवरी, बाड़मेरी, बीकानेरी, , कच्छी ऊंट, सिन्धी ऊंट।
जैसलमेरी ऊंट - मतवाली चाल के लिए प्रसिद्ध।
रेबारी ऊंट पालक जाती है। पाबू जी राठौड की ऊंटों का देवता भी कहा जाता है। ऊंटों में सर्रा नामक रोग पाया जाता है।
केन्द्रीय ऊंट प्रजनन केन्द्र जोडबीड (बीकानेर) में है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा इस केन्द्र की स्थापना की गई है। राजस्थान में देश के 70 प्रतिशत ऊंट पाये जाते है। विश्व में सर्वाधिक ऊंट आस्ट्रेलिया में है।
राजस्थान का ऊन उत्पादन में देश में प्रथम स्थान है।
केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड - जोधपुर।
केन्द्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला - बीकानेर।
राजस्थान में सर्वाधिक ऊन उत्पादन जोधपुर, बीकानेर, नागौर में व न्यूनतम ऊन उत्पादन झालावाड़ में होता है।
नोट - केन्द्रीय ऊंट प्रजनन केन्द्र जोहडबीड़ बीकानेर की स्थापना -5 जुलाई 1984।
कुक्कुट
पशुगणना के समय मुर्गे मुर्गियों की गणना भी की जाती है। 19 वीं पशुगणना के समय इनकी संख्या 80.24 लाख थी। सर्वाधिक कुक्कुट अजमेर में व देशी कुक्कुट बांसवाडा जिले में है।
अजमेर में मुर्गी पालन प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई है। अण्डों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रजत व सुनहरी क्रांतियां आरम्भ की गई है।
"हॉप एण्ड मिलियम जोब प्रोग्राम" अण्डों के विपणन हेतु आरम्भ की गई है।
रानी खेत व बर्डफ्लू मुर्गे व मुर्गियों में पाये जाने वाली प्रमुख बिमारियां है।
राजकीय कुक्कुटशाला - जयपुर।
डुंगरपुर व बांसवाड़ा में दो बतख व चूजा पालन केन्द्र स्थापित किये हैं, जो आदिवासीयों को बतख व कुक्कुट चूजे उपलब्ध करवाता है।
घोड़े
घोड़े की नस्ल
मालाणी - बाड़मेरी, जोधपुर।
मारवाड़ी - जोधपुर, बाड़मेर, पाली, जालौर।
"अश्व विकास कार्यक्रम" पशुपालन विभाग द्वारा संचालित -मालाणी घोडे नस्ल सुधार हेतु।
केन्द्रीय अश्व उत्पादन परिसर- बीकानेर के जोडबीड स्थित इस संस्था में चेतक घोडे के वंशज तैयार किये जाएंगे।
राजस्थान में डेयरी विकास
राजस्थान में विकास कार्यक्रम गुजरात के ‘अमुल डेयरी‘ के सहकारिता के सिद्धान्त पर संचालित किया जा रहा है।
इनका ढांचा त्रिस्तरीय है।(डेयरी संयंत्रों का)
1. ग्राम स्तर - (प्राथमिक दुग्ध उत्पादक) सहकारी समिति
राजस्थान में संख्या - 12600
2. जिला स्तर - जिला दुग्ध संघ
राजस्थान में संख्या - 21
3. राज्य स्तर - राजस्थान सहकारी डेयरी संघ (RCDF)
स्थापना - 1977
मुख्यालय - जयपुर
राजस्थान में प्रथम डेयरी - पदमा डेयरी (अजमेर)।
राजस्थान में औसत दुग्ध संग्रहण - 18 लाख लीटर प्रतिदिन।
राजस्थान में अवशीतन् केन्द्र (कोल्ड स्टोरेज) - 30।
राजस्थान में सहकारी पशु आहार केन्द्र - 4
जोधपुर, झोटवाड़ा (जयपुर), नदबई (भरतपुर), तबीजी (अजमेर)।
जालौर के रानीवाड़ा में सबसे बडी डेयरी है।
गंगमूल डेयरी -हनुमानगढ़
उरमूल डेयरी -बीकानेर
वरमूल डेयरी -जोधपुर.
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खुले मैदान में चरने वाली भारतीय नस्ल भगवान् कृष्ण की प्रिय कांकरेज देशी ...
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A2 गाय घी क्या है?
शीर्षक – भारतीय नस्ल कंकरेज देसी गाय की 'वैदिक बिलोना घी के लिए बिलोना या वैलोना सबसे अच्छी प्रक्रिया क्या है?
वैदिकमार्ट (भारतीय नस्ल कंकरेज देसी गाय की 'वैदिक बिलोना घी')
'महाभारत' में, देवों (देवताओं) को अमृत पाने के लिए समुंद्र मंथन करना पड़ा। आज, देसी गाय के घी को देवताओं के अमृत के रूप में शुद्ध रूप में प्राप्त करने के लिए (मंथन: मंथन) करना पड़ता है - वैदिक मार्ट देसी गाय वैदिक बिलोना घी, असीम अच्छाई के भंडार को आयुर्वेदिक दवाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला है। यह विभिन्न तरीकों का उपयोग करके तैयार किया जाता है, लेकिन सबसे शुद्ध भारतीय देसी गाय वैदिक बिलोना घी का उत्पादन पारंपरिक बिलोना प्रक्रिया है। किन्तु जहाँ वैदिकमार्ट उन देसी गाय के दूध का उपयोग करता है जो खुले मैदान में घूमती हैं । और हरी घास खाती हैं ।। इसलिए उन गाय का दूध और घी अमृत के समान है । वैदिकमार्ट बिलोना घी कई गुणों से भरपूर है ।
वैदिकमार्ट बिलोना घी भारतीय नस्ल की कंकरेज देसी गाय के शुद्ध A2 दूध से बना है और इसे हाथ से बनाया जाता है । वही मिट्टी की सौंधी-सौंधी सुगंध वाला वैदिक बिलोना घी,क्योंकि हमारी जो गौमाता खुले मैदान में चरने वाली भारतीय नस्ल भगवान् कृष्ण की प्रिय कांकरेज देशी गौमाता जी के दूध को मिटटी की हंडिया में हारे(धीमी आंच का स्वदेशी चूल्हा) पर आठ घंटे तक दूध को पकाते हैं।
धीमी आंच पर पकते इस दूध में समस्त पोषक तत्व पल्लवित होकर मिटटी की सौंधी सुगंध से भर जाते हैं और घी बनने के बाद भी वही सुगंध आपके घर तक पहुंचकर भोजन का स्वाद और इंद्रियों को आंनदित कर देते हैं।
भारत में अधिक से अधिक "आधुनिक" परिवार आज भारतीय देसी गाय बिलोना घी के साथ खाना पकाने की "पुरानी शैली" की आदत अपना रहे हैं। क्या अधिक है, यहां तक कि डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ भी सहमत हैं कि जब सीमित मात्रा में सेवन किया जाता है, तो यह आपकी हड्डी को मजबूत कर सकता है और प्रतिरक्षा को बढ़ा सकता है।
पवित्रता -
- हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन में शुद्धता का अत्यधिक महत्व है। हमारा शरीर शुद्ध, बिना मिलावट के उत्पादों द्वारा सर्वोत्तम पोषण प्राप्त करता है। बिलोना प्रक्रिया द्वारा प्राप्त शुद्ध ए 2 गाय घी घी का सबसे फायदेमंद और शुद्ध रूप है।
मूल्य के लायक
- सब कुछ अच्छा एक समान रूप से अच्छी कीमत से जुड़ा हुआ है और यह देसी गाय के घी के लिए भी सही है क्योंकि 30 किलोग्राम दही का उपयोग 1 किलो शुद्ध देसी घी प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसमें शामिल श्रम श्रम अधिक होता है क्योंकि इसमें समय लगता है, ये कारक शुद्ध देसी गाय के घी की उच्च लागत को सही ठहराते हैं।
‘औषधीय गुण ‘
आयुर्वेद में बिलोना घी का उपयोग उम्र के लिए दवा के रूप में किया गया है। इसमें अत्यधिक औषधीय गुण होते हैं क्योंकि बिलोना की द्विदिश मंथन घी की औषधीय क्षमताओं में योगदान देता है। उपयोग अनगिनत हैं, उनमें से कुछ पाचन तंत्र का समर्थन करते हैं, सूखापन का इलाज करते हैं, दृष्टि में सुधार करते हैं, खांसी का इलाज करते हैं, ऊर्जा प्रदान करते हैं और एंटी-एजिंग प्रभाव प्रदान करते हैं।
पवित्र और शुभ - शुद्ध देसी गाय घी का उपयोग पूजा, यज्ञ आदि में शुभ उद्देश्यों के लिए किया जाता है। पवित्रता इसे धार्मिक समारोहों में उपयोग के लिए उपयुक्त बनाती है। कोई आश्चर्य नहीं कि यह भगवान कृष्ण का पसंदीदा था।
गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के लिए फायदेमंद - गर्भवती महिला और शिशुओं के लिए A2 गाय के घी की सिफारिश की जाती है क्योंकि यह उन्हें बहुत जरूरी ऊर्जा, पाचन में सहायता प्रदान करता है और प्रतिरक्षा में सुधार करता है।
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वैदिकमार्ट की वैदिक बिलोना घी विधि:
भारतीय नस्ल की कंकरेज देसी गाय के दूध को धीमी आंच पर गाय के गोबर की आग के ऊपर मिट्टी के बर्तन में गर्म किया जाता है। इसके बाद, दही को गर्म दूध से मिट्टी के बर्तन में तैयार किया जाता है। इस दही को "पारंपरिक मंथन (बिलोना) विधि" विशुद्ध रूप से हाथ मंथन द्वारा उपयोग किया जाता है। इस तरह, हम छाछ और मखाने प्राप्त करते हैं। पारंपरिक वैदिक बिलोना हैंड चर्नड विधि के अनुसार, माखन प्राप्त किया जाता है, फिर धीमी आंच पर गोबर की आग के ऊपर मिट्टी के बर्तन में डाल दिया जाता है। इस तरह, हम घी प्राप्त करते हैं। घी की गुणवत्ता, रंग और स्वाद देसी गाय के दूध के गर्म होने की अवधि और मखान की गुणवत्ता पर आधारित है। इस प्रक्रिया में लगभग 1 किलो घी बनाने के लिए लगभग 30 से 35 लीटर दूध की खपत होती है। इस विधि से बने घी को वैदिक बिलोना घी कहा जाता है। VaidikMart.com उत्पाद वैदिक घी बना रहे हैं जो शास्त्रों (वैदिक) में उल्लिखित सभी मात्राओं के अधिकारी हैं।
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