Ganga Saptami 2024: गंगा सप्तमी के दिन इस विधि से करें पूजा, मिलेगा मां गंगा का आशीर्वादGanga Saptami 2024: हर वर्ष गंगा सप्तमी का दिन मां गंगा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन लोग देवी गंगा की पूजा करते हैं।
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गंगा सप्तमी 2022: जानिए शुभ मुहूर्त, अवसर का महत्व और पूजा विधि
गंगा सप्तमी 2022: जानिए शुभ मुहूर्त, अवसर का महत्व और पूजा विधि
छवि स्रोत: फ्रीपिक
गंगा सप्तमी पर गंगा नदी में स्नान करें
गंगा सप्तमी का हिंदू संस्कृति में बहुत महत्व है। गंगा सप्तमी प्रतिवर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल गंगा सप्तमी 8 मई 2022 को मनाई जाएगी। वह दिन रविवार है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन देवी गंगा का जन्म हुआ था, इसलिए इसे गंगा जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन दोपहर के समय मां गंगा की विशेष पूजा करने…
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जाने नवरात्रि की पूजा विधि (Navratri Puja Vidhi), कलश स्थापना व महत्व
Navratri Puja Vidhi : नवरात्रि मे देवी के नौ स्वरूप की पूजा की जाती है । हिन्दुओ मे नवरात्रि (Navratri) की बहुत मान्यता है नवरात्रि साल मे दो बार मनाया जाते है जिन्हे चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है । उत्तर भारत मे नवरात्र को बहुत ही खुशी और धूम धाम से मनाया जाता है । इस दिन माँ के भक्त नौ दिन के व्रतो का सकल्प लेते है और देवी माँ की चौकी की स्थापना करते है । नवरात���रि मे घर की साफ सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता है ।
ऐसा कहा जाता है की इन नौ दिन देवी माँ धरती पर अपने भक्तो के साथ रहने आती है । इस बार शारदीय नवरात्र 29 सितंबर 2019 से शुरु हो रहे है । (Navratri Puja Vidhi)नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है फिर देवी माँ की मूर्ति स्थापित की जाती है और अंठवे दिन हवन किया जाता है तथा नवे व दसवे दिन कन्या खिलाया जाता है और पूरे विधि विधान (Navratri Puja Vidhi)से देवी माँ की मूर्ति को विसर्जित किया जाता है ।
नवरात्रि पूजा विधि (Navratri Puja Vidhi)
भारत त्योहारो का देश माना जाता है यहाँ साल के शुरू से ही त्योहार शुरू हो जाते है और अंत तक चलते है । इन मे एक नवरात्रि का त्योहार है जिसे पूरे नौ दिनो तक मनाया जाता है । नवरात्रि मे लोग दुर्गा माँ के नो रूप की पूजा करते हैं । वैसे तो देवी माँ के पूजा कभी भी की जा सकती है परंतु नवरात्र मे पूजा (Navratri Puja) का अलग ही मान्यता है । नवरात्र की पूजा, कलश स्थापना से शुरू होती है इसमे कलश पूजा का बहुत महत्व होता है । कलश को सुख समृद्धि ऐश्वर्या देने वाला मंगलकारी माना गया है । कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रुद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तियों का कलश में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं तथा घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है। नवरात्र मे शुभ मुहूरत मे कलश स्थापना की जाती है कुछ लोग स्थापना करने के लिए किसी पंडित को बुलवाते है तो कुछ अपने आप ही कर लेते है ।( Navratri Puja Vidhi )
कलश स्थापना से पहले देवी की माँ की चौकी रखे उस पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाये और देवी की मूर्ति रखे माँ को चुनरी उढ़ाये । देवी का माँ का तिलक करे और उन्हे सुहाग का समान चढ़ाये । स्थापना के बाद अज्ञारी करे । अज्ञारी के लिए गोबर का उबला ले उसे जलाए और मिट्टी के पात्र मे रखे फिर अज्ञारी मे घी या कपूर डाले और जलाए हवन सामीग्री चढ़ाये लॉन्ग के दो जोड़े व बताशा चढ़ाये देवी माँ को भोग लगाए घर मे जो भी व्रत वाली सामाग्री हो उससे बनाकर और दुर्गा कवच का पाठ करे दुर्गा चालीसा पढे उसके बाद देवी माँ की आरती करे । भोग का प्रसाद घर मे सबको बाँट दे ।
कलश स्थापना की सामाग्री – मिट्टी का चौड़ा बर्तन,कलश, मिट्टी, जौ, जल, कलावा, इत्र, सुपारी, सिक्के, आम के पत्ते, चावल, नारियल, लाल कपड़ा, फूल, फूल माला, दूर्वा ।
नवरात्रि मे कलश स्थापना विधि (Navratri Kalash Sthapna Vidhi)
सबसे पहले गणेश जी का आवाहन करे और देवी माँ का ध्यान करे फिर कलश स्थापना शुरू करे । सबसे पहले मिट्टी का चौड़ा बर्तन ले उसमे मिट्टी डाले और उसको बर्तन मे चारो तरफ अच्छे से दाल दे, ताकि जब हम जौ डाले तो वो अच्छे से मिल सके फिर मिट्टी मे जौ डाले और मिला दे अगर पानी की जरूरत हो तो थोड़ा डाल दे उसके बाद कलश ले । कलश मिट्टी ताँबे या पीतल किसी का भी हो सकता है । कलश पर स्वस्तिक बनाए फिर कलश मे जल भरे, जल मे कुछ बूंदे गंगा जल की डाल दे और कलश पर कलावा बांधे और एक सिक्का, सुपारी और फूल डाल दे । इसके बाद कलश के ऊपर आम के पत्ते रखे पत्ते ऐसे रखे की आधे वह कलश के भीतर हो व आधे बाहर की ओर हो । उसके बाद कलश को मीठी से बनी कलश के आकार की प्लेट से ढक दे फिर उसके ऊपर कुछ चावल के दाने रखे और उसके ऊपर नारियल । नारियल को लाल कपड़े से लपेट दे और उस पर कलावा बांध ले । यह सब होने के बाद दिया जलाएँ नौ दिन तक कलश को वैसा ही रखा रहने दे । माँ के सामने ज्योत जलाए जो नौ दिन तक लगातार जलती रहनी चाहिए इसे अखंड ज्योत भी कहते है ज्योत के नीचे थोड़े से अक्षत रख दे ।
नवरात्रि मे कंजक पूजा विधि(Kanjak Puja Vidhi)
(Navratri Puja Vidhi) नवरात्रि के नौवे दिन कन्या खिलाई जाती है जिनहे हम कंजक भी कहते है 3 साल से 9 साल के बीच की कन्याओ को खिलाया जाता है । नौ कन्या और एक लांगुर को न्योता दिया जाता है । नवमी के दिन जब वे आते है तो सबसे पहले उनके पैर धुलाये जाते है उसके बाद उन्हे जमीन मे कुछ बिछाकर एक लाइन मे बैठाया जाता है । फिर इन्हे हलवा, पूरी, चने, खीर, सब्जी परोसा जाता है खाना परोसने की शुरुआत लांगुर से करते है जब सभी कन्याएँ व लांगुर खाना खा लेते है तब, उसके बाद उनका तिलक किया जाता है व उनके हाथ मे कलावा बंधा जाता है उन्हे दक्षणा या फल या कोई गिफ्ट देते है फिर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है और उनको विदा किया जाता है ।
नवरात्रि व्रत का महत्व
Navratri Puja Vidhi नवरात्रि का अलग अलग शहरो मे अलग-अलग महत्व है कुछ जगह अष्टमी को कन्या पूजी जाती है तो कुछ जगह नवमी को कन्या पूजने का विधान है । दुर्गा पंडालो मे अष्टमी के दिन हवन होता है और नवरात्र समापन की पूजा भी होती है जिसे महाष्टमी कहते है | कुछ लोग पूरे नवरात्र न रखकर पहला नवरात्र और अष्टमी को व्रत रखते है । बंगाल मे इस दिन विशेष पूजा होती है और देवी माँ को दुर्गा पूजा के समय सिंदूर छड़ते है और एक दूसरे को लगाते भी है । सप्तमी से अष्टमी तक पूरा बंगाल दुर्गा पूजा मे डूबा रहता है नवमी के दिन पुसपंजंजलीकुछ लोग अष्टमी की रात को जागरण कराते है और नवमी की सुबह व्रत खोलने के बाद भंडारे का आयोजन करते है और भर पेट लोगो को खाना खिलते है । कई जगह व मंदिरो मे पूरे नवरात्र मेला लगा रहता है । कई जगह नवमी वाले दिन रामलीला का कार्यक्रम होता है जिसे देखने दूर दूर से लोग आते है । देवी माँ अपने भक्तो पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाती है । माँ का अटूट प्यार, दुलार और स्नेह आशीर्वाद के रूप मे मिलता रहता है । जिससे भक्तो को किसी अन्य सहायता की जरुरत नहीं पढ़ती और वह सर्वशक्तिमान हो जाता है । माँ की करुणा अपार है जिसका न कोई मोल है न ही कोई अंत है ।
देवी के 9 रूपों के नाम
शैलपुत्री – नवरात्रि के पहले दिन माता के प्रथम रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और इसी कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा ।
ब्रह्मचारिणी – माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या-साधना की थी, उसी रूप के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा ।
चंद्रघंटा – माता के इस रूप में उनके मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र अंकित है। इसी वजह से माँ दुर्गा का नाम चंद्रघण्टा भी है ।
कूष्माण्डा – माता के इस रूप में उनके मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र अंकित है। इसी वजह से माँ दुर्गा का नाम चंद्रघण्टा भी है ।
स्कंदमाता – भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक अन्य नाम स्कन्द भी है। अतः भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस रूप को स्कन्दमाता के नाम से भी लोग जानते हैं ।
कात्यायनी – माता कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। माता को अपनी तपस्या से प्रसन्न करने के बाद उनके यहां माता ने पुत्री रूप में जन्म लिया, इसी कारण वे कात्यायनी कहलाईं ।
कालरात्रि – माता काल अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करने वाली हैं इसलिए इन्हें कालरात्रि के नाम से जाना जाता है |
महागौरी – माँ दुर्गा का यह आठवां रूप उनके सभी नौ रूपों में सबसे सुंदर है। इनका यह रूप बहुत ही कोमल, करुणा से परिपूर्ण और आशीर्वाद देता हुआ रूप है, जो हर एक इच्छा पूरी करता है
सिद्धिदात्री – माँ दुर्गा का यह नौंवा और आखिरी रूप मनुष्य को समस्त सिद्धियों से परिपूर्ण करता है।
नवरात्रि मे इन खास बातों का रखे ध्यान (Navratri Puja Vidhi)
नवरात्रि में सूर्योदय से पहले उठें और नहा लें। शांत रहने की कोशिश करें। झूठ न बोलें और गुस्सा करने से भी बचें।
नवरात्रि के दौरान तामसिक भोजन नहीं करें। यानि इन 9 दिनों में लहसुन, प्याज, मांसाहार, ठंडा और झूठा भोजन नहीं करना चाहिए।
नवरात्रि के व्रत-उपवास बीमार, बच्चों और बूढ़ों को नहीं करना चाहिए। क्योंकि इनसे नियम पालन नहीं हो पाते हैं।
मन में किसी के लिए गलत भावनाएं न आने दें। अपनी इंद्रियों का काबु रखें और मन में कामवासना जैसे गलत विचारों को न आने दें।
नवरात्रि मे बाल और नाखून न कटवाएं और शेव भी न बनावाएं। नवरात्रि के दौरान दिन में नहीं सोएं।
पूजा के संपूर्ण होने के बाद दुर्गा मां से अपनी गलतियों की माफी मांग कर पूजा संपन्न करें |
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गंगा सप्तमी व्रत कथा
7 मई 2022, शनिवार
पौराणिक काल में भागीरथ नामक एक पराक्रमी राजा हुआ करता था। भागीरथ के चौसठ हजार पूर्वज महर्षि कपिल की क्रोध की ज्वाला में जलकर भस्म हो गए थे और उन्हें कभी भी मुक्ति नहीं मिल पाई। उनके पूर्वजों को गंगा के जल से ही मुक्ति मिल सकती थी, जिसके लिए देवी गंगा को धरती पर लाना ज़रूरी था।
देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भागीरथ ने कठोर तपस्या की, जिसे देखकर मां गंगा प्रसन्न हुईं और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने मां से धरती पर आने का आग्रह किया, जिससे उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिल पाए। मां गंगा धरती पर आने के लिए मान गईं। लेकिन उन्होंने भागीरथ को बताया कि अगर वह स्वर्ग से सीधा पृथ्वी पर आएंगी तो पृथ्वी उनके वेग और गति को सहन नहीं कर पाएगी।
इस समस्या के समाधान के लिए देवी गंगा ने भागीरथ को भगवान शिव की आराधना करने के लिए कहा। भागीरथ शिव भक्ति में पूरी तरह लीन हो गए और इससे प्रसन्न होकर स्वयं महादेव ने उन्हें दर्शन दिए। जब शिव जी ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा तो उन्होंने अपनी समस्या के बारे में बताया।
भागीरथ की समस्या सुनकर महादेव ने इसका समाधान निकाला और गंगा जी को अपनी जटाओं में कैद कर लिया। फिर जटा से एक लट को खोल दिया जिससे देवी गंगा सात धाराओं में पृथ्वी पर प्रवाहित हुईं। इस प्रकार भागीरथ मां गंगा को धरती पर लाने में और अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल रहे।
हम आशा करते हैं कि गंगा सप्तमी की कथा सुनने वाले सभी भक्तों को मां गंगा का आर्शीवाद प्राप्त हो। अगर आप गंगा सप्तमी की पूजा विधि और गंगा सप्तमी का महत्व जानना चाहते हैं तो श्री मंदिर के ऐप पर जाकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। नमस्कार!
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चैत्र नवरात्रि : आज करें काल का नाश करने वाली मां कालरात्रि की पूजा, जानिए व्रत का महत्व और पूजन-विधि
चैतन्य भारत न्यूज
आज चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है और इस दिन मां कालरात्रि की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां कालरात्रि की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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मां कालरात्रि की पूजा का महत्व
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। मां कालरात्रि का रंग घने अंधकार के समान काला है और इस वजह से उन्हें कालरात्रि कहा गया। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था। मां कालरात्रि को 'शुभंकारी' भी कहा जाता हैं। मां कालरात्रि सभी कालों का नाश कर देती हैं। मां के स्मरण मात्र से ही भूत-पिशाच, भय और अन्य सभी तरह की परेशानी दूर हो जाती हैं। कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्त समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेते हैं। कालरात्रि देवी की पूजा काला जादू की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध है।
मां कालरात्रि की पूजा-विधि
सबसे पहले चौकी पर मां कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
मां कालरात्रि की पूजा के दौरान लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
मकर और कुंभ राशि के जातकों को कालरात्रि की पूजा जरूर करनी चाहिए।
मां को सात या सौ नींबू की माला चढाने से परेशानियां दूर होती हैं।
सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योत जलाएं।
पूजा करते समय सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करना चाहिए।
मां कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य बहुत पसंद है अर्थात उन्हें प्रसाद में गुड़ अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
मां कालरात्रि का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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गंगा सप्तमी: लॉकडाउन में कैसे उठाएं गंगा स्नान का पुण्य लाभ
भारत में प्रायः सभी पर्वों पर गंगा स्नान पवित्र और पुण्यदायी माना जाता है।हिन्दू ध��्म में गंगा नदी को मां की उपमा दी गई है। कहा जाता है कि गंगा नदी में डुबकी लगाने से सभी पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा का अवतरण हुआ था। मान्यता है कि ऋषि भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा धरती पर आईं थीं। इसलिए इस दिन गंगा पूजन भी की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार गंगा सप्तमी 30 अप्रैल यानी कि आज है। इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है।
गंगा स्नान का पुण्य लाभ लेने के लिए सुबह स्नान के जल में पवित्र गंगाजल डालकर स्नान करें और मन ही मन मां गंगा का स्मरण करें। यदि घर पर गंगाजल स्टोर नहीं किया है तो भी घबराने की जरूरत नहीं है। मन में शुद्ध विचार रखें। यह भी किसी पूजा से कम नहीं है। भक्त रैदास ने एक बार कहा था कि मन चंगा तो कठौती में गंगा।दरअसल, जब कोई व्यक्ति किसी कारणवश गंगा नदी तक नहीं जा सकता, तो ऐसी स्थिति में वह घर पर रहकर भी पुण्यफल प्राप्त कर सकता है। इसके लिए घर में ही स्नान वाले जल में थोड़ा सा गंगा जल मिला कर स्नान करें। स्नान करते समय गंगा का ध्यान करें। ऐसा करने से आपको नदी में स्नान का फल प्राप्त होगा।
गंगा के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथाएं- गंगा के जन्म से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के मुताबिक गंगा का जन्म विष्णु के पैर में होने वाले पसीने की बूंद से हुआ है। एक कथा कहती है कि गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमण्डल से हुआ है। एक मान्यता ये भी प्रचलित है कि राक्षस बलि से जगत को मुक्त करने के लिए ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के पैर धोए और जल को अपने कमण्डल में भर लिया। इससे गंगा उत्पन्न हुईं। गंगा को धरती पर लाने का प्रयत्न राजा भगीरथ ने किया था। उनके प्रयास से ही गंगा का धरती पर अवतरण हो पाया। ऐसा माना जाता है कि कपिल मुनि ने राजा सागर के 60000 पुत्रों को भस्म कर दिया था। उनके उद्धार हेतु राजा भगीरथ ने तपस्या की।
भगीरथ की तपस्या से मां गंगा धरती पर आने को तैयार तो हो गयीं लेकिन उन्होंने कहा कि उनकी तीव्र जलधारा पृथ्वी पर प्रलय ला देगी। भगवान शिव के प्रयास से उनका वेग कम हो सकता है। तब राजा भगीरथ ने शिव जी से प्रार्थना की। भगवान शिव ने अपनी जटा से गंगा की तेज धारा को नियंत्रित कर धरती पर भेजा। तब उसमें राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियां विसर्जित कीं और उनका उद्धार हुआ।
गंगा जयंती का महत्व – गंगा सप्तमी के दिन ही गंगा जी की उत्पत्ति हुई थी। इस दिन मां गंगा स्वर्ग लोक से शिव जी की जटा में पहुंची थीं। इसलिए इस गंगा-पूजन का विशेष महत्व है। गंगा जयंती के दिन गंगा में स्नान करने तथा पूजन से सभी दुख-क्लेश दूर होते हैं। इस दिन गंगा स्नान का खास महत्व है। अगर आप गंगा नदी में स्नान न कर सकें तो गंगा के जल की कुछ बूंदें पानी में डाल कर स्नान करें। इस प्रकार के स्नान से भी सिद्धि प्राप्त होती है। यश-सम्मान की भी प्राप्ति होती है। मांगलिक दोष से ग्रस्त व्यक्तियों को गंगा जयंती के अवसर पर गंगा-स्नान और पूजन से विशेष लाभ मिलता है।
इस दिन गंगा को धरती पर लाने वाले भगीरथजी की भी विधि-विधान से पूजा की जाती है। उसके बाद लोगों में प्रसाद वितरित किया जाता है। यही नहीं भगवान शिव की आराधना भी इस दिन शुभ फलदायी मानी जाती है। गंगा पूजन के साथ-साथ दान-पुण्य करने का भी फल मिलता है। इस दिन किसी गरीब जरूरतमंद को अनाज, फल और मिष्ठान का दान करना चाहिए। हो सके तो कुछ दक्षिणा भी देनी चाहिए।
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Navratri 2019 date & time – नवरात्रि 2019 शुभ चौघड़िया मुहूर्त
Navratri 2019 : जानें कब से शुरू हो रहे है नवरात्र ( JAI MATA DI )
आपको ये जानकर बहुत खुशी होगी इस नवरात्रि माता रानी मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी. हमारे हिंदू धर्म में नवरात्र और बहुत से तौयार का बहुत अधिक महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार शारदीय नवरात्र की शुरूआत 29 सितंबर 2019 से शुभारंभ हो रहे है जोकि 7 अक्टूबर 2019 तक होगे। इस बार पूरे नौ दिन मां दुर्गा की उपासना की जाएगी। वहीं 8 अक्टूबर को बहुत ही धूमधाम के साथ विजयदशमी यानि दशहरा के अलावा दुर्गा विसर्जन का त्योहार मनाया जाएगा। आपको बता दें कि इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार हो कर आएगी और उनका प्रस्थान भी घोड़े पर ही होगा।
शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों का बखान किया गया है. देवी के इन स्वरूपों की पूजा नवरात्रि में विशेष रूप से की जाती है. नवरात्रि के नौ दिन लगातार माता का पूजन चलता है.
29 सितंबर, प्रतिपदा – बैठकी या नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना – शैलपुत्री
30 सितंबर, द्वितीया – नवरात्रि 2 दिन तृतीय- ब्रह्मचारिणी पूजा
1 अक्टूबर, तृतीया – नवरात्रि का तीसरा दिन- चंद्रघंटा पूजा
2 अक्टूबर, चतुर्थी – नवरात्रि का चौथा दिन- कुष्मांडा पूजा
3 अक्टूबर, पंचमी – नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती पूजा, स्कंदमाता पूजा
4 अक्टूबर, षष्ठी – नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी पूजा
5 अक्टूबर, सप्तमी – नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती पूजा
6 अक्टूबर, अष्टमी – नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन
7 अक्टूबर, नवमी – नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
8 अक्टूबर, दशमी – दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी
Navratri 2019 : कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त ( JAI MATA DI )
इस बार नवरात्र पर कलश स्थापना की बात करें तो इसका शुभ मुहूर्त सुबह 6.16 बजे से 7.40 बजे (सुबह) के बीच है। इसके अलावा दोपहर में 11.48 बजे से 12.35 के बीच अभिजीत मुहूर्त भी है जिसके बीच आप कलश स्थापना कर सकते हैं। बता दें कि अश्विन की प्रतिपदा तिथि 28 सितंबर को रात 11.56 से ही शुरू हो रही है और यह अगले दिन यानी 29 सितंबर को रात 8.14 बजे खत्म होगी।
Navratri 2019 : कलश स्थापना की विधि ( JAI MATA DI )
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा के स्थान पर मिट्टी और पानी को मिलाकर एक समतल वेदी तैयार कर लें जिस पर कलश को रखा जाना है। इस मिट्टी से तैयार जगह के बीचों बीच कलश को रखें। कलश में गंगा जल भर दें। साथ ही कुछ सिक्के, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत आदि भी डाल दें। कलश के चारों ओर जौ के बीच डालें। इसके बाद कलश के ऊपर आम की पत्तियां रखें और उसे ढक्कन से ढक दें। कलश के ऊपरी हिस्से पर मौली या रक्षा सूत्र बांधे। साथ ही तिलक भी लगाये। कलश रखने के लिए आप मिट्टी की वेदी से अलग एक बड़े पात्र का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में आपको उस पात्र में मिट्टी भरनी होगी और उसमें जौ के बीज डालने होंगे। बहरहाल, अब कलश के ऊपर लाल कपड़े या लाल चुन्नी में ढका नारियल रख दें। नारियल को भी रक्षा सूत्र से बांधे। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी जरूर बनायें। इसके साथ ही आपकी कलश स्थापना पूरी हो चुकी है और आप अपनी पूजा शुरू कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि अगले 9 दिनों तक उन हिस्सों में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते रहें जहां आपने जौ के बीज डाले हैं।
Navratri 2019 : पूजा विधि ( JAI MATA DI )
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा के स्थान पर मिट्टी और पानी को मिलाकर एक समतल वेदी तैयार कर लें जिस पर कलश को रखा जाना है। इस मिट्टी से तैयार जगह के बीचों बीच कलश को रखें। कलश में गंगा जल भर दें। साथ ही कुछ सिक्के, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत आदि भी डाल दें। कलश के चारों ओर जौ के बीच डालें। इसके बाद कलश के ऊपर आम की पत्तियां रखें और उसे ढक्कन से ढक दें। कलश के ऊपरी हिस्से पर मौली या रक्षा सूत्र बांधे। साथ ही तिलक भी लगाये। कलश रखने के लिए आप मिट्टी की वेदी से अलग एक बड़े पात्र का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में आपको उस पात्र में मिट्टी भरनी होगी और उसमें जौ के बीज डालने होंगे। बहरहाल, अब कलश के ऊपर लाल कपड़े या लाल चुन्नी में ढका नारियल रख दें। नारियल को भी रक्षा सूत्र से बांधे। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी जरूर बनायें। इसके साथ ही आपकी कलश स्थापना पूरी हो चुकी है और आप अपनी पूजा शुरू कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि अगले 9 दिनों तक उन हिस्सों में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते रहें जहां आपने जौ के बीज डाले हैं।
नवरात्रि के 9 दिन और 9 देवियां
पहले दिन- शैलपुत्री
दूसरे दिन- ब्रह्मचारिणी
तीसरे दिन- चंद्रघंटा
चौथे दिन- कुष्मांडा
पांचवें दिन- स्कंदमाता
छठे दिन- कात्यानी
सातवें दिन- कालरात्रि
आठवें दिन- महागौरी
नवें दिन- सिद्धिदात्री
दशहरे का शुभ संयोग
नवमी के अगले दिन दशहरा का त्योहार है। 7 अक्टूबर 2019 को महानवमी दोपहर 12.38 तक रहेगी। इसके दशमी यानी दशहरा होगा। 8 अक्टूबर को विजयदशमी रवि योग में दोपहर 2.51 तक रहेगी। यह बहुत ही शुभ मानी गई है।
दुर्गा पूजा
अष्टमी तिथि – रविवार, 6 अक्टूबर 2019
अष्टमी तिथि प्रारंभ – 5 अक्टूबर 2019 से 09:50 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – 6 अक्टूबर 2019 10:54 बजे तक
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शारदीय नवरात्रि इस दिन से शुरू, भगवान राम ने की थी इस पर्व की शुरुआत, जानें पूजा विधि और सभी तिथियां-
शारदीय नवरात्रि 2019, 29 सितंबर से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक रहेंगी। इस बार मां का आगमन एवं गमन घोड़े पर हो रहा है।
नवरात्रि 2019 पर्व 29 सितंबर से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक चलेगा। इस बार मां का आगमन एवं गमन घोड़े पर हो रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां शक्ति का घोड़े पर आना अशांति क�� सूचक होता है। लेकिन माता अम्बे की सच्चे मन से पूजा करना फलदायी साबित होगा। इस बार नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना का मुहूर्त भी लंबा रहने वाला है। 29 सितंबर यानी नवरात्र के पहले दिन रात 10 बजकर 11 मिनट तक प्रतिपदा है। जिस कारण कभी भी कलश की स्थापना की जा सकती है।
क्यों मनाई जाती है शारदीय नवरात्रि?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि का कनेक्शन भगवान राम से है। ऐसा माना जाता है कि इन्होंने ही इस नवरात्र की शुरुआत की थी। भगवान राम ने सबसे पहले समुद्र के किनारे शारदीय नवरात्रों की पूजा शुरू की और ये पूजा उन्होंने लगातार नौ दिनों तक विधिवत की और इसके 10वें दिन भगवान राम ने रावण का वध कर दिया था। यही वजह है कि शारदीय नवरात्रों में नौ दिनों तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।
नवरात्रि की तिथियां-
29 सितंबर 2019 (रविवार) – प्रतिपदा तिथि, घटस्थापना, मां शैलपुत्री पूजा।
30 सितंबर 2019 (सोमवार) – द्वितीया तिथि, मां ब्रह्मचारिणी पूजा।
1 अक्टूबर 2019, (मंगलवार) – तृतीया तिथि, मां चंद्रघंटा पूजा।
2 अक्टूबर 2019 (बुधवार) – चतुर्थी तिथि, मां कूष्मांडा पूजा।
3 अक्टूबर 2019 (गुरुवार) – पंचमी तिथि, मां स्कंदमाता पूजा।
4 अक्टूबर 2019 (शुक्रवार) – षष्ठी तिथि, मां कात्यायनी पूजा।
5 अक्टूबर 2019 (शनिवार) – सप्तमी तिथि, मां कालरात्रि पूजा।
6 अक्टूबर 2019, (रविवार) – अष्टमी तिथि, मां महागौरी, दुर्गा महा अष्टमी पूजा
7 अक्टूबर 2019, (सोमवार) – नवमी तिथि, मां सिद्धिदात्री नवरात्रि पारणा
8 अक्टूबर 2019, (मंगलवार) – दशमी तिथि, दुर्गा विसर्जन, विजय दशमी (दशहरा)।
नवरात्रि की पूजा विधि-
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इस दिन कलश स्थापना का सुबह का समय सबसे उत्तम माना गया है। इसके लिए सुबह उठकर नहाकर साफ सुथरे कपड़े पहन लें। व्रत रखने के इच्छुक व्रत रखने का संकल्प लें। अब किसी बर्तन या जमीन पर मिट्टी की थोड़ी ऊंची बेदी बनाकर जौ को बौ दें। अब इस पर कलश की स्थापना करें। कलश में गंगा जल रखें और उसके ऊपर कुल देवी की प्रतिमा या फिर लाल कपड़े में लिपटा नारियल रखें और पूजन करें। पूजा के समय दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। साथ ही इस दिन से नौ दिनों तक अखंड दीप भी जलाया जाता है।
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शारदीय नवरात्रि इस दिन से शुरू, भगवान राम ने की थी इस पर्व की शुरुआत, जानें पूजा विधि और सभी तिथियां-
शारदीय नवरात्रि 2019, 29 सितंबर से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक रहेंगी। इस बार मां का आगमन एवं गमन घोड़े पर हो रहा है।
नवरात्रि 2019 पर्व 29 सितंबर से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक चलेगा। इस बार मां का आगमन एवं गमन घोड़े पर हो रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां शक्ति का घोड़े पर आना अशांति का सूचक होता है। लेकिन माता अम्बे की सच्चे मन से पूजा करना फलदायी साबित होगा। इस बार नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना का मुहूर्त भी लंबा रहने वाला है। 29 सितंबर यानी नवरात्र के पहले दिन रात 10 बजकर 11 मिनट तक प्रतिपदा है। जिस कारण कभी भी कलश की स्थापना की जा सकती है।
क्यों मनाई जाती है शारदीय नवरात्रि?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि का कनेक्शन भगवान राम से है। ऐसा माना जाता है कि इन्होंने ही इस नवरात्र की शुरुआत की थी। भगवान राम ने सबसे पहले समुद्र के किनारे शारदीय नवरात्रों की पूजा शुरू की और ये पूजा उन्होंने लगातार नौ दिनों तक विधिवत की और इसके 10वें दिन भगवान राम ने रावण का वध कर दिया था। यही वजह है कि शारदीय नवरात्रों में नौ दिनों तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।
नवरात्रि की तिथियां-
29 सितंबर 2019 (रविवार) – प्रतिपदा तिथि, घटस्थापना, मां शैलपुत्री पूजा।
30 सितंबर 2019 (सोमवार) – द्वितीया तिथि, मां ब्रह्मचारिणी पूजा।
1 अक्टूबर 2019, (मंगलवार) – तृतीया तिथि, मां चंद्रघंटा पूजा।
2 अक्टूबर 2019 (बुधवार) – चतुर्थी तिथि, मां कूष्मांडा पूजा।
3 अक्टूबर 2019 (गुरुवार) – पंचमी तिथि, मां स्कंदमाता पूजा।
4 अक्टूबर 2019 (शुक्रवार) – षष्ठी तिथि, मां कात्यायनी पूजा।
5 अक्टूबर 2019 (शनिवार) – सप्तमी तिथि, मां कालरात्रि पूजा।
6 अक्टूबर 2019, (रविवार) – अष्टमी तिथि, मां महागौरी, दुर्गा महा अष्टमी पूजा
7 अक्टूबर 2019, (सोमवार) – नवमी तिथि, मां सिद्धिदात्री नवरात्रि पारणा
8 अक्टूबर 2019, (मंगलवार) – दशमी तिथि, दुर्गा विसर्जन, विजय दशमी (दशहरा)।
नवरात्रि की पूजा विधि-
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इस दिन कलश स्थापना का सुबह का समय सबसे उत्तम माना गया है। इसके लिए सुबह उठकर नहाकर साफ सुथरे कपड़े पहन लें। व्रत रखने के इच्छुक व्रत रखने का संकल्प लें। अब किसी बर्तन या जमीन पर मिट्टी की थोड़ी ऊंची बेदी बनाकर जौ को बौ दें। अब इस पर कलश की स्थापना करें। कलश में गंगा जल रखें और उसके ऊपर कुल देवी की प्रतिमा या फिर लाल ���पड़े में लिपटा नारियल रखें और पूजन करें। पूजा के समय दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। साथ ही इस दिन से नौ दिनों तक अखंड दीप भी जलाया जाता है।
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शनिवार 1 फरवरी को नर्मदा जयंती का पर्व है। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मेकल सुता माँ नर्मदा की जयंती मनाई जाती है। नर्मदा जयंती के दिन इस नर्मदा चालीसा का पाठ करने से अनेक इच्छाओं की पूर्ति होने लगती है।
॥ दोहा ॥
देवि पूजित, नर्मदा, महिमा बड़ी अपार।
चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार॥
इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान।
तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान ॥
नर्मदा जयंती 1 फरवरी : इस विधि से करें पूजन व दीपदान, हो जाएगी हर कामना पूरी
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय नर्मदा भवानी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।
अमरकण्ठ से निकली माता, सर्व सिद्धि नव निधि की दाता।
कन्या रूप सकल गुण खानी, जब प्रकटीं नर्मदा भवानी।
सप्तमी सुर्य मकर रविवारा, अश्वनि माघ मास अवतारा।
वाहन मकर आपको साजैं, कमल पुष्प पर आप विराजैं।
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं, तब ही मनवांछित फल पावैं।
दर्शन करत पाप कटि जाते, कोटि भक्त गण नित्य नहाते।
जो नर तुमको नित ही ध्यावै, वह नर रुद्र लोक को जावैं।
मगरमच्छा तुम में सुख पावैं, अंतिम समय परमपद पावैं।
मस्तक मुकुट सदा ही साजैं, पांव पैंजनी नित ही राजैं।
कल-कल ध्वनि करती हो माता, पाप ताप हरती हो माता।
पूरब से पश्चिम की ओरा, बहतीं माता नाचत मोरा।
नर्मदा जयंती 2020 : नर्मदा मैया की आरती
शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं, सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं।
शिव गणेश भी तेरे गुण गवैं, सकल देव गण तुमको ध्यावैं।
कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे, ये सब कहलाते दु:ख हारे।
मनोकमना पूरण करती, सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं।
कनखल में गंगा की महिमा, कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा।
पर नर्मदा ग्राम जंगल में, नित रहती माता मंगल में।
एक बार कर के स्नाना, तरत पिढ़ी है नर नारा।
मेकल कन्या तुम ही रेवा, तुम्हरी भजन करें नित देवा।
जटा शंकरी नाम तुम्हारा, तुमने कोटि जनों को है तारा।
समोद्भवा नर्मदा तुम हो, पाप मोचनी रेवा तुम हो।
तुम्हरी महिमा कहि नहीं जाई, करत न बनती मातु बड़ाई।
जल प्रताप तुममें अति माता, जो रमणीय तथा सुख दाता।
नर्मदा जयंती : श्री नर्मदा स्तुति "नर्मदाष्टकम"
चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी, महिमा अति अपार है तुम्हारी।
तुम में पड़ी अस्थि भी भारी, छुवत पाषाण होत वर वारि।
यमुना मे जो मनुज नहाता, सात दिनों में वह फल पाता।
सरस्वती तीन दीनों में देती, गंगा तुरत बाद हीं देती।
पर रेवा का दर्शन करके मानव फल पाता मन भर के।
तुम्हरी महिमा है अति भारी, जिसको गाते हैं नर-नारी।
जो नर तुम में नित्य नहाता, रुद्र लोक मे पूजा जाता।
जड़ी बूटियां तट पर राजें, मोहक दृश्य सदा हीं साजें|
वायु सुगंधित चलती तीरा, जो हरती नर तन की पीरा।
घाट-घाट की महिमा भारी, कवि भी गा नहिं सकते सारी।
नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा, और सहारा नहीं मम दूजा।
हो प्रसन्न ऊपर मम माता, तुम ही मातु मोक्ष की दाता।
फरवरी 2020 के मुख्य व्रत पर्व त्यौहार
जो मानव यह नित है पढ़ता, उसका मान सदा ही बढ़ता।
जो शत बार इसे है गाता, वह विद्या धन दौलत पाता।
अगणित बार पढ़ै जो कोई, पूरण मनोकामना होई।
सबके उर में बसत नर्मदा, यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ।
॥ दोहा ॥
भक्ति भाव उर आनि के, जो करता है जाप।
माता जी की कृपा से, दूर होत संताप॥
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source https://www.patrika.com/dharma-karma/narmada-jayanti-narmada-chalisa-in-hindi-5713927/
http://www.poojakamahatva.site/2020/01/1-2020.html
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आज सीता अष्टमी व्रत, पति की लंबी उम्र के लिए इस विधि से करें सीता माता की पूजा
चैतन्य भारत न्यूज
हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की ��ष्टमी को मनाई जाने वाली जानकी जयंती इस साल 06 मा��्च को मनाई जाएगी। इसे सीता जयंती और सीता अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता सीता की विशेष रूप से पूजा की जाती है। आइए जानते हैं सीता अष्टमी का महत्व और पूजा-विधि।
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सीता अष्टमी का महत्व
इस दिन को माता सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सीता अष्टमी के दिन सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए माता सीता की पूजा-अर्चना करती है। मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त भगवान राम और माता सीता की श्रद्धा भाव से पूजा करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। साथ ही उसे सोलह महादान का फल और पृथ्वी दान का फल प्राप्त होता है। माता सीता राजा जनक की पुत्री थीं। इसलिए माता सीता को जानकी नाम से भी जाना जाता है।
सीता अष्टमी पूजा-विधि
मान्यता है कि सीता अष्टमी व्रत पूजन की तैयारी एक दिन पहले से ही करनी चाहिए। यानि की सप्तमी के दिन से ही घर की साफ-सफाई करनी चाहिए। साफ-सफाई के बाद पूजा घर या किसी साफ स्थान पर गंगा जल का छिड़ककर उस स्थान को पवित्र कर दें। इसके बाद वहां मंडप बनाएं। मंडप चार, आठ या सोलह स्तंभ का होना चाहिए। पूजा के दौरान महिलाओं को ऊं श्री सीताय नम: मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। इस व्रत में जौ, चावल आदि सर्वधान्य की खीर का हवन किया जाता है और नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
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रथ सप्तमी पर सूर्य देव की आराधना से मिलेगा शुभ फल, जानिए व्रत का महत्व और पूजन-विधि
चैतन्य भारत न्यूज
माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ सप्तमी का त्योहार मनाया जाता है। इस सप्तमी को अचला सप्तमी और मानु सप्तमी भी कहा जाता है। इस बार यह 19 फरवरी को यानी आज है। इस दिन भगवान सूर्य की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं रथ सप्तमी का महत्व और पूजा-विधि।
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रथ सप्तमी का महत्व
शास्त्रों के मुताबिक रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य नारायण का जन्म हुआ था। उनकी पूजा करने से आरोग्यता प्राप्त होती है। भगवान सूर्य को समर्पित यह व्रत संतान की उन्नति के लिए भी लाभप्रद है। इस दिन सूर्य का पूजन सेहत के लिए खास महत्व रखता है। माना जाता है कि जिन्हें कोई भी शारीरिक विकार हो, वे लोग अगर पूरे मन से सूर्यदेव की पूजा करें तो सारे शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं। सूर्य पूजा विशेषकर चर्मरोगों को दूर करती है। ग्रहों के कष्ट दूर करने में भी सूर्य पूजा का महत्व है, इससे ग्रह दोष दूर हो जाते हैं।
रथ सप्तमी की पूजा-विधि
रथ सप्तमी के दिन प्रातःकाल उठकर गंगा जल का प्रयोग कर स्नान आदि से निवृत हो जाएं।
पूजा घर की साफ-सफाई कर वहां कुश या उचित आसान लगाकर घी का दीपक जलाएं।
श्री गणेश उपासना के बाद सूर्य पूजा प्रारम्भ करें।
भगवान सूर्य देव के सभी नामों का जप करें।
उसके बाद गायत्री मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। यदि संभव हो तो पांच माला गायत्री का जप करना श्रेयस्कर है।
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आज करें काल का नाश करने वाली मां कालरात्रि की पूजा, परेशानियों से मुक्त होने के लिए करें इन मंत्रों का जाप
चैतन्य भारत न्यूज
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। मां कालरात्रि का रंग घने अंधकार के समान काला है और इस वजह से उन्हें कालरात्रि कहा गया। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था। इन्हें 'शुभंकारी' भी कहा जाता हैं। मां कालरात्रि की तीव्र छवि देख भूत-प्रेत भाग जाते है। मां कालरात्रि के तीन नेत्र हैं और तीनों ही गोल हैं। मां ने गले में विधुत की माला पहनी है। मां कालरात्रि के चार हाथ हैं जिसमें एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है। वहीं देवी मां के अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है।
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मां कालरात्रि सभी कालों का नाश कर देती हैं। मां के स्मरण मात्र से ही भूत-पिशाच, भय और अन्य सभी तरह की परेशानी दूर हो जाती है। कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्त समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेते हैं। कालरात्रि देवी की पूजा काला जादू की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध है।
मां कालरात्रि की पूजा विधि
सबसे पहले चौकी पर मां कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
मां कालरात्रि की पूजा के दौरान लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
मकर और कुंभ राशि के जातकों को कालरात्रि की पूजा जरूर करनी चाहिए।
मां को सात या सौ नींबू की माला चढाने से परेशानियां दूर होती हैं।
सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योत जलाएं।
पूजा करते समय सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करना चाहिए।
मां कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य बहुत पसंद है अर्थात उन्हें प्रसाद में गुड़ अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
मां कालरात्रि का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
मां कालरात्रि का स्तोत्र पाठ
हृीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
मां कालरात्रि का ध्यान मंत्र
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
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चैत्र नवरात्रि : आज करें काल का नाश करने वाली मां कालरात्रि की पूजा, जानिए व्रत का महत्व और पूजन-विधि
चैतन्य भारत न्यूज
आज चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है और इस दिन मां कालरात्रि की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां कालरात्रि की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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मां कालरात्रि की पूजा का महत्व
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। मां कालरात्रि का रंग घने अंधकार के समान काला है और इस वजह से उन्हें कालरात्रि कहा गया। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था। मां कालरात्रि को 'शुभंकारी' भी कहा जाता हैं। मां कालरात्रि सभी कालों का नाश कर देती हैं। मां के स्मरण मात्र से ही भूत-पिशाच, भय और अन्य सभी तरह की परेशानी दूर हो जाती हैं। कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्त समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेते हैं। कालरात्रि देवी की पूजा काला जादू की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध है।
मां कालरात्रि की पूजा-विधि
सबसे पहले चौकी पर मां कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
मां कालरात्रि की पूजा के दौरान लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
मकर और कुंभ राशि के जातकों को कालरात्रि की पूजा जरूर करनी चाहिए।
मां को सात या सौ नींबू की माला चढाने से परेशानियां दूर होती हैं।
सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योत जलाएं।
पूजा करते समय सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करना चाहिए।
मां कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य बहुत पसंद है अर्थात उन्हें प्रसाद में गुड़ अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
मां कालरात्रि का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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आज भानु सप्तमी, सुख-समृद्धि के लिए ऐसे करें सूर्यदेव की पूजा
चैतन्य भारत न्यूज
हिंदू धर्म में भानु सप्तमी का काफी महत्व है। भानु सूर्य भगवान को कहा जाता है। सूर्य देव को ऊर्जा का प्रतीक कहा जाता है। इस बार भानु सप्तमी 15 मार्च को पड़ रही है। मान्यता है कि इस दिन अगर कोई भक्त पूरे मन से सूर्य देव की उपासना करे तो उसके सभी प्रकार के पाप कर्मों और दुखों का नाश होता है। आइए जानते हैं भानु सप्तमी का महत्व और पूजन-विधि।
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भानु सप्तमी का महत्व
भगवान सूर्य नारायण की विशेष कृपा पाने के लिए भानु सप्तमी का व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से दरिद्रता का नाश होने के साथ धन, वैभव, ऐश्वर्य और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस बार रविवार के दिन सप्तमी तिथि के संयोग से 'भानु सूर्य सप्तमी' पर्व का सृजन होता है। इस साल रविवार और भानु सप्तमी का एक ही दिन होना शुभ फल प्रदान करने वाला है।
भानु सप्तमी की पूजा-विधि
भानु सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके उगते हुए सूर्य का दर्शन एवं उन्हें 'ॐ घृणि सूर्याय नम:' कहते हुए जल अर्पित करें।
इस दिन सूर्य की किरणों को लाल रोली और लाल फूल मिलाकर जल दें।
इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व होता है। अगर चाहे तो घर पर नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
स्नान के दौरान सूर्य मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
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आज रथ सप्तमी, इस विधि से करें सूर्य देव की आराधना, मिलेगा शुभ फल
चैतन्य भारत न्यूज
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ सप्तमी का त्योहार मनाया जाता है। इस सप्तमी को अचला सप्तमी और मानु सप्तमी भी कहा जाता है। इस बार यह 1 मार्च दिन रविवार को है। इस दिन भगवान सूर्य की उपासना की जाती है। इस बार रथ सप्तमी रविवार को पड़ने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। आइए जानते हैं रथ सप्तमी का महत्व और पूजा-विधि।
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रथ सप्तमी का महत्व
शास्त्रों के मुताबिक, रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य नारायण का जन्म हुआ था। उनकी पूजा करने से आरोग्यता प्राप्त होती है। भगवान सूर्य को समर्पित यह व्रत संतान की उन्नति के लिए भी लाभप्रद है। इस दिन सूर्य का पूजन सेहत के लिए खास महत्व रखता है। माना जाता है कि जिन्हें कोई भी शारीरिक विकार हो, वे लोग अगर पूरे मन से सूर्यदेव की पूजा करें तो सारे शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं। सूर्य पूजा विशेषकर चर्मरोगों को दूर करती है। ग्रहों के कष्ट दूर करने में भी सूर्य पूजा का महत्व है, इससे ग्रह दोष दूर हो जाते हैं।
रथ सप्तमी की पूजा-विधि
रथ सप्तमी के दिन प्रातःकाल उठकर गंगा जल का प्रयोग कर स्नान आदि से निवृत हो जाएं।
पूजा घर की साफ-सफाई कर वहां कुश या उचित आसान लगाकर घी का दीपक जलाएं।
श्री गणेश उपासना के बाद सूर्य पूजा प्रारम्भ करें।
भगवान सूर्य देव के सभी नामों का जप करें।
उसके बाद गायत्री मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। यदि संभव हो तो पांच माला गायत्री का जप करना श्रेयस्कर है।
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