Surya Grahan 2023: कब लगेगा इस साल का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण ,जानिए तिथि और समय
सूर्य ग्रहण का न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्व है, बल्कि अध्यात्मिक दृष्टि से भी इसे बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। बता दें कि विगत सूर्य ग्रहण 20 अप्रैल को लगा था, अब इस साल का आगामी सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर 2023, शनिवार को लगने जा रहा है। साल का अंतिम सूर्य ग्रहण अमावस्या तिथि के दिन लगेगा और यह कंकणाकृत सूर्यग्रहण होगा।
वर्ष 2023 का अंतिम सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर 2023, शनिवार के दिन लगने…
भाई दूज 2022: शुभकामनाएं, उद्धरण, संदेश, एचडी इमेज, फेसबुक और व्हाट्सएप स्टेटस
भाई दूज 2022: शुभकामनाएं, उद्धरण, संदेश, एचडी इमेज, फेसबुक और व्हाट्सएप स्टेटस
छवि स्रोत: फ्रीपिक भाई दूज 2022
भाई दूज 2022: भाई दूज भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। इस दिन सभी बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और खुशियों की कामना करती हैं। चूंकि सूर्य ग्रहण के कारण 25 अक्टूबर को कोई शुभ कार्यक्रम नहीं हो सकता है, भाई दूज 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाई दूज हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाया जाता है। हमारा देश है डिजिटल हो रहा है और…
Surya Grahan 2022 This year not 5, but 6 days will be Deepotsav, after many years such a coincidence is being made
Surya Grahan 2022 In Hinduism, Goddess Lakshmi is considered to be the goddess of wealth and opulence. On Diwali festival day, special worship is paid to Goddess Lakshmi and she is pleased. This time, the 5-day long festival will be held for 6 days.
New Delhi, Digital Desk | Surya Grahan 2022 – Every year for 5 days, Deepotsav is celebrated with great enthusiasm. But this time after 27 years such a coincidence is being made that the Deepotsav festival will be celebrated not for 5 but for 6 days. Dhanteras, Choti Diwali, Badi Deepawali (Diwali 2022) are the major festivals celebrated in Hinduism. On the days of Deepotsav, a special worship of Goddess Lakshmi is performed. But this year there will be a solar eclipse just after Diwali. Which will also affect the worship of Goddess Lakshmi. This is the reason why this year the Deepotsav festival will be held for 6 days.
बालक कबीर को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक को निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-2 कर विलाप कर रही थी। सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न भिन्न-2 स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। आज पच्चीसवाँ दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फाँसी पर लटक जाऊँगी। मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए पीए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोच कर फूट-2 कर रो रही थी। भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी।
भगवान शिव, एक ब्राह्मण (ऋषि) का रूप बना कर नीरू की झोंपड़ी के सामने खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। सन्त रूप में खड़े भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी हे ब्राह्मण ! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। फकीर वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आँसू जिव्हा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे महात्मा जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया। सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूँगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतिक्षा कर रही हूँ। सर्व रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी। नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाईए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर ऋषि के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाऐं व हस्त रेखाऐं देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है। कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे विप्रवर! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की साँस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी। मैं उस कुँवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याए (अर्थात् कुँवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई।
शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा ब्राह्मण को प्रणाम किया। ब्राह्मण ने कहा नीरू! आप एक कुँवारी गाय लाओ। वह दूध देवेगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कुँवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्र) भी ले आया। परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार विप्ररूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्र थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने ब्राह्मण रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो। आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। विप्र रूपधारी भगवान शंकर बोले! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधु नाहीं। यह कहकर विप्र रूपधारी शिवजी ने वहाँ से प्रस्थान किया।
विशेष वर्णन अध्याय ’’ज्ञान सागर‘‘ के पृष्ठ 74 तथा ’’स्वसमबेद बोध‘‘ के पृष्ठ 134 पर भी है जो इस प्रकार है:-
’’कबीर सागर के ज्ञान सागर के पृष्ठ 74 पर‘‘
सुत काशी को ले चले, लोग देखन तहाँ आय। अन्न-पानी भक्ष नहीं, जुलहा शोक जनाय।।
तब जुलहा मन कीन तिवाना, रामानन्द सो कहा उत्पाना।। मैं सुत पायो बड़ा गुणवन्ता। कारण कौण भखै नहीं सन्ता।
रामानन्द ध्यान तब धारा। जुलहा से तब बचन उच्चारा।।।
पूर्व जन्म तैं ब्राह्मण जाती। हरि सेवा किन्ही भलि भांति।।
कुछ सेवा तुम हरि की चुका। तातैं भयों जुलहा का रूपा।।
प्रति प्रभु कह तोरी मान लीन्हा। तातें उद्यान में सुत तोंह दिन्हा।।
नीरू वचन
हे प्रभु जस किन्हो तस पायो। आरत हो तव दर्शन आयो।।
सो कहिए उपाय गुसाई। बालक क्षुदावन्त कुछ खाई।।
रामानन्द वचन
रामानन्द अस युक्ति विचारा। तव सुत कोई ज्ञानी अवतारा।।
बछिया जाही बैल नहीं लागा। सो लाई ठाढ़ करो तेही आगै।।
साखी = दूध चलै तेहि थन तें, दूध्हि धरो छिपाई।
क्षूदावन्त जब होवै, तबहि दियो पिलाई।।
चैपाई
जुलहा एक बछिया लै आवा। चल्यो दूत (दूध) कोई मर्म न पावा।।
चल्यो दूध, जुलहा हरषाना। राखो छिपाई काहु नहीं जाना।।।
पीवत दूध बाल कबीरा। खेलत संतों संग जो मत धीरा।।
ज्ञान सागर पृष्ठ 73 पर चैपाई
’’भगवान शंकर तथा कबीर बालक की चर्चा’’
{नोटः- यह प्रकरण अधूरा लिखा है। फिर भी समझने के लिए मेरे ऊपर कृपा है परमेश्वर कबीर जी की। पहले यह वाणी पढ़ें जो ज्ञान सागर के पृष्ठ 73 पर लिखी है, फिर अन्त में सारज्ञान यह दास (रामपाल दास) बताएगा।}
चैपाई
घर नहीं रहो पुरूष (नीरू) और नारी (नीमा)। मैं शिव सों अस वचन उचारी।।
आन के बार बदत हो योग। आपन नार करत हो भोग।।
नोटः- जो वाणी कोष्ठक { } में लिखी हैं, वे वाणी ज्ञान सागर में नहीं लिखी गई हैं जो पुरातन कबीर ग्रन्थ से ली हैं।
{ऐसा भ्रम जाल फलाया। परम पुरूष का नाम मिटाया।}
काशी मरे तो जन्म न होई। {स्वर्ग में बास तास का सोई}
{ मगहर मरे सो गधा जन्म पावा, काशी मरे तो मोक्ष करावा}
और पुन तुम सब जग ठग राखा। काशी मरे हो अमर तुम भाखा
जब शंकर होय तव काला, {ब्रह्मण्ड इक्कीस हो बेहाला}
{तुम मरो और जन्म उठाओ, ओरेन को कैसे अमर कराओ}
{सुनों शंकर एक बात हमारी, एक मंगाओ धेनु कंवारी}
{साथ कोरा घट मंगवाओ। बछिया के पीठ हाथ फिराओ}
{दूध चलैगा थनतै भाई, रूक जाएगा बर्तन भर जाई}
{सुनो बात देवी के पूता। हम आए जग जगावन सूता}
{पूर्ण पुरूष का ज्ञान बताऊँ। दिव्य मन्त्रा दे अमर लोक पहुँचाऊँ}
{तब तक नीरू जुलहा आया। रामानन्द ने जो समझाया}
{रामानन्द की बात लागी खारी। दूध देवेगी गाय कंवारी}
{जब शंकर पंडित रूप में बोले, कंवारी धनु लाओ तौले}
{साथ कोरा घड़ा भी लाना, तास में धेनु दूधा भराना}
{तब जुलहा बछिया अरू बर्तन लाया, शंकर गाय पीठ हाथ लगाया}
{दूध दिया बछिया कंवारी। पीया कबीर बालक लीला धारी}
{नीरू नीमा बहुते हर्षाई। पंडित शिव की स्तुति गाई}
{कह शंकर यह बालक नाही। इनकी महिमा कही न जाई}
{मस्तक रेख देख मैं बोलूं। इनकी सम तुल काहे को तोलूं}
{ऐस नछत्र देखा नाहीं, घूम लिया मैं सब ठाहीं।}
{इतना कहा तब शंकर देवा, कबीर कहे बस कर भेवा}
{मेरा मर्म न जाने कोई। चाहे ज्योति निरंजन होई}
{हम है अमर पुरूष अवतारा, भवसैं जीव ऊतारूं पारा}
{इतना सुन चले शंकर देवा, शिश चरण धर की नीरू नीमा सेवा}
हे स्वामी मम भिक्षा लीजै, सब अपराध क्षमा (हमरे) किजै
{कह शंकर हम नहीं पंडित भिखारी, हम है शंकर त्रिपुरारी।}
{साधु संत को भोजन कराना, तुमरे घर आए रहमाना}
{ज्ञान सुन शंकर लजा आई, अद्भुत ज्ञान सुन सिर चक्राई।}
{ऐसा निर्मल ज्ञान अनोखा, सचमुच हमार है नहीं मोखा}
कबीर सागर अध्याय ‘‘स्वसम वेद बोध‘‘ पृष्ठ 132 से 134 तक परमेश्वर कबीर जी की प्रकट होने वाली वाणी है, परंतु इसमें भी कुछ गड़बड़ कर रखी है। कहा कि जुलाहा नीरू अपनी पत्नी का गौना (यानि विवाह के बाद प्रथम बार अपनी पत्नी को उसके घर से लाना को गौना अर्थात् मुकलावा कहते हैं।) यह गलत है। जिस समय परमात्मा कबीर जी नीरू को मिले, उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी। विचार करें गौने से आते समय कोई बालक मिल जाए तो कोई अपने घर नहीं रखता। वह पहले गाँव तथा सरकार को बताता है। फिर उसको किसी निःसंतान को दिया जाता है यदि कोई लेना चाहे तो। नहीं तो राजा उसको बाल ग्रह में रखता है या अनाथालय में छोड़ते हैं। नीमा ने तो बच्चे को छोड़ना ही नहीं चाहा था। फिर भी जो सच्चाई वह है ही, हमने परमात्मा पाना है। उसको कैसे पाया जाता है, वह विधि सत्य है तो मोक्ष सम्भव है, ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि विश्वास बने कि परमात्मा कौन है, कहाँ प्रमाण है? वह चेष्टा की जा रही है। अब केवल ’’बालक कबीर जी ने कंवारी गाय का दूध पीया था, वे वाणी लिखता हूँ’’।
स्वसम वेद बोध पृष्ठ 134 से
पंडित निज निज भौन सिधारा। बिन भोजन बीते बहु बारा (दिन)।।
बालक रूप तासु (नीरू) ग्रह रहेता। खान ��ान नाहीं कुछ गहते।
जोलाहा तब मन में दुःख पाई। भोजन करो कबीर गोसांई।।
जोलाहा जोलाही दुखित निहारी। तब हम तिन तें बचन उचारी।।
कोरी (कंवारी) एक बछिया ले आवो। कोरा भाण्डा एक मंगाओ।।
तत छन जोलाहा चलि जाई। गऊ की बछिया कोरी (कंवारी) ल्याई।।
दोऊ कबीर के समुख आना। बछिया दिशा दृष्टि निज ताना।।
बछिया हेठ सो भाण्डा धरेऊ। ताके थनहि दूधते भरेऊ।
दूध हमारे आगे धरही, यहि विधि खान-पान नित करही।।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
हर महीने में दो बार एकादशी व्रत किया जाता है और इस तरह एक साल में 24 एकादशी व्रत किए जाते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपको किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त हो तो इसके लिए विजया एकादशी का व्रत रखें। इस व्रत को रखने से और भगवान विष्णु की पूजा करने से आपको जीवन में अवश्य सफलता मिलती है। इसी कड़ी में आइये जानते हैं कब है विजया एकादशी का व्रत और क्या है इस व्रत का महत्व ?
कब है विजया एकादशी 2024 ?
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। उदयातिथि के आधार पर विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च बुधवार को है। क्योंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 6 मार्च को होगा इसलिए यह व्रत इसी दिन किया जायेगा। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने से पहले विजया एकादशी का व्रत रखा था, जिसके प्रभाव से उन्होंने रावण का वध किया था इसलिए इस दिन व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
विजया एकादशी व्रत की पूजा विधि
विजया एकादशी के दिन सबसे पहले सवेरे उठकर स्नान आदि करें और फिर सच्चे मन से भगवान विष्णु का नाम लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। फिर भगवान को अक्षत, फल, पुष्प, चंदन, मिठाई, रोली, मोली आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल जरूर अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है। श्रद्धा-भाव से पूजा कर अंत में भगवान विष्णु की आरती करने के बाद सबको प्रसाद बांटें।
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी शुभ होता है क्योंकि इस पाठ को करने से लक्ष्मी जी आपके घर में वास करती हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के शुभ दिन किसी गोशाला में गायों के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करें। विजया एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। गरीबों व जरूरतमंदों को अन्न , वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करें।
विजया एकादशी पारण
विजया एकादशी व्रत के दूसरे दिन पारण किया जाता है। एकादशी व्रत में दूसरे दिन विधि-विधान से व्रत को पूर्ण किया जाता है। विजया एकादशी व्रत का पारण 7 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस व्रत का पारण करने से पहले आप ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करायें और साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंद को दान करें और इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।
विजया एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। साल में जो 24 एकादशी आती हैं, हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। विजया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की मुश्किलें दूर होती हैं और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि भगवान विष्णु के आशीर्वाद से पाप मिटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विजया एकादशी जिसके नाम से ही पता चलता है कि इस एकादशी के प्रभाव से आपको विजय की प्राप्ति होती है। यानि विजय प्राप्ति के लिए इस दिन श्रीहरि की पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उस मनुष्य के पितृ स्वर्ग लोक में जाते हैं।
पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें- कृं कृष्णाय नम:, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:। महंत श्री पारस भाई जी ने इस व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है। विजया एकादशी का व्रत भी बाकी एकादशियों की तरह बहुत ही कल्याणकारी है।
महंत श्री पारस भाई जी आगे कहते हैं कि यदि आप शत्रुओं से घिरे हो और कैसी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो, तब विजया एकादशी के व्रत से आपकी जीत निश्चित है।
इस दिन ये उपाय होते हैं बहुत ख़ास
तुलसी की पूजा विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा को बहुत ही अधिक महत्व दिया जाता है। इस तुलसी के पौधे को जल अर्पित कर दीपक जलाएं। इसके अलावा तुलसी का प्रसाद भी ग्रहण करें। ऐसा करने से घर से दुःख दूर होते हैं और घर में खुशालीआती है ।
शंख की पूजा
विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा की तरह शंख पूजा का भी अत्यधिक महत्व है। इस दिन शंख को तिलक लगाने के बाद शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक कर शंख बजाएं। शंख से अभिषेक कर बजाना भी फलदायी माना जाता है। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पीला चंदन प्रयोग करें
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के दिन पीले चंदन का अत्यंत महत्व होता है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु को और स्वयं भी पीले चंदन का टीका अवश्य लगाएं। पीले चंदन का टीका लगाने से आपको कभी असफलता नहीं मिलेगी और आपकी सदैव जीत होगी।
ॐ श्री विष्णवे नम: “पारस परिवार” की ओर से विजया एकादशी 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
27 जून 2024, नई दिल्ली, संविधान की किताब हाथ में लेकर शपथ ग्रहण करने भर से, संविदान नही बच जाता।संविधान बचेगा उसकी मूल भावना के मुताबिक कम्पालायंस करने से, यहाँ के नागरिकों की समस्याओं का समधन करने से बराबरी का माहौल क़ायम करने से, भेदभाव किये बिना लोगों के साथ व्यवहार करने से, क़ानून का राज क़ायम करने से ये कहना है मुस्लिम समाज पर होते भगवा सरकारों के उत्पिडन पर बरिष्ठ समाजसेवी सलीम बेग का
आपने…
आ रहा है सदी का 'सबसे लंबा' पूर्ण सूर्य ग्रहण, कब लगेगा? देखें अगले 10 सूर्य ग्रहण की तारीखें
वॉशिंगटन: बेहद दुर्लभ घटना होती है। उसमें भी पूर्ण सूर्य ग्रहण का होना और भी खास होता है। यह कितना लंबा होता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसकी छोटी सी घटना ही बेहद महत्वपूर्ण होती है। 8 अप्रैल 2024 को अमेरिका में सूर्य ग्रहण देखने को मिला था। जिसने भी इसे देखा है उसे पता है कि यह नजारा कितना अनोखा होता है। क्योंकि समग्रता के दौरान सूर्य को चंद्रमा पूरी तरह से ढक लेता है। तब धरती पर एक बड़ी परछाई होती है, जिससे दिन में रात जैसा माहौल हो जाता है। इस दौरान सूर्य का चमकदार कोरोना दिखता है। पूर्णता जितनी ज्यादा देर की होगी, कोरोना उतनी देर दिखेगा। 2027 में सदी का दूसरा सबसे लंबा पूर्ण सूर्य ग्रहण लगने वाला है। ये पूर्ण सूर्य ग्रहण कब लगेगा उससे पहले हम इस साल लगने वाले दूसरे सूर्य ग्रहण के बारे में जान लेते हैं। अगला सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर 2024 को लगेगा, जो एक वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। एक वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पूरी तरह सूर्य को नहीं ढक पाता। इस दौरान आसमान में एक आग की रिंग दिखाई देती है। यह सूर्य ग्रहण प्रशांत महासागर, दक्षिणी चिली और दक्षिणी अर्जेंटीना के कुछ हिस्सों में दिखेगा।
सदी का सबसे लंबा पूर्ण सूर्य ग्रहण
सदी के सबसे लंबे पूर्ण सूर्य ग्रहण की बात करें तो यह 22 जुलाई 2009 को लगा था। इसकी पूर्णता 6 मिनट 38 सेकंड लंबी थी। अब सदी का अगला सबसे लंबा सूर्य ग्रहण 2 अगस्त 2027 को लगेगा। यह 6 मिनट 22 सेकंड का होगा। यह सूर्य ग्रहण उत्तरी अफ्रीका के आसमान में दिखेगा। 8 अप्रैल को अमेरिका में लगे सूर्य ग्रहण के दौरान बादलों के कारण कई दर्शक इसे साफ नहीं देख सके। लेकिन 2027 का सूर्य ग्रहण एकदम साफ दिखेगा।
भविष्य के 10 सूर्य ग्रहण
* 2 अक्टूबर 2024- वलयाकार सूर्य ग्रहण
* 29 मार्च 2025- आंशिक सूर्य ग्रहण
* 17 फरवरी 2026- वलयाकार सूर्य ग्रहण
* 12 अगस्त 2026- पूर्ण सूर्यग्रहण
* 6 फरवरी 2027- वलयाकार सूर्य ग्रहण
* 2 अगस्त 2027- पूर्ण सूर्यग्रहण
* 26 अगस्त 2028- वलयाकार सूर्य ग्रहण
* 22 जुलाई 2028- पूर्ण सूर्यग्रहण
* 1 जून 2030- वलयाकार सूर्य ग्रहण
* 25 नवंबर 2030- पूर्ण सूर्यग्रहण http://dlvr.it/T7k1yl
हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण: सनातनी पूजा का अंत और पुनः उत्थान
दुनियाभर में धर्म को मानने वालों की कोई कमी नहीं है लेकिन आज पूरे विश्व में धर्म के नाम पर पाखण्ड और अंधविश्वास चरम सीमा पर देखने को मिल रहा है जिससे मानव को कोई सुख प्राप्त नहीं होता। धर्मगुरुओं को अपने ही धर्मशास्त्रों का ज्ञान हुआ नहीं, जिसके कारण उन्होंने मानव को शास्त्रविरुद्ध क्रियाओं जैसे व्रत, उपवास, तीर्थ, हठयोग आदि शास्त्रविरुद्ध मनमाने आचरण में लगा दिया, जिसने आगे पाखण्ड और अंधविश्वास का रूप ले लिया। वहीं पाखण्ड और अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने तथा मानव को धर्मग्रंथों के सत्यज्ञान से परिचित कराने के लिए संत रामपाल जी महाराज द्वारा अनेकों पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं जिनका प्रचार उनके अनुयायियों द्वारा देश हो या विदेश गाँव, नगर, कस्बों, शहरों में घर-घर जाकर किया जा रहा हैं तो वहीं सोशल मीडिया के माध्यम से भी इन पुस्तकों का प्रचार उनके समर्थकों द्वारा किया जा रहा है ताकि लोग पाखण्डवाद, अंधविश्वास, शास्त्रविरुद्ध कर्मकांडो को त्यागकर सतमार्ग ग्रहण कर सकें।
इसी बात के मद्देनजर जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा एक पवित्र पुस्तक हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण लिखी गई है जो हिन्दू समाज के लिए संजीवनी है तथा वरदान सिद्ध होने वाली है जिसमें सूक्ष्मवेद यानि तत्त्वज्ञान दिया गया है। साथ ही, मानव को समझने के लिए वेदों, गीता तथा पुराणों आदि शास्त्रों के प्रमाण दिए गए हैं। जिसमें मानव की प्रत्येक शंका का समाधान संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रमाण सहित किया गया है। वहीं इस लेख के माध्यम से आपको जानने को मिलेगा:
क्या संत रामपाल जी ब्रह्मा, विष्णु, महेश की भक्ति छुड़वाते हैं?
संत रामपाल जी महाराज का उद्देश्य
एक आदि सनातन (पंथ) धर्म से कैसे हुए अनेक?
शास्त्रानुकूल पूजा और शास्त्रविरुद्ध पूजा में अंतर
कैसे हुआ शास्त्रानुकूल सनातनी पूजा का अंत?
पवित्र गीता का ज्ञान कब बोला गया?
शास्त्रानुकूल सनातनी पूजा का पुनः उत्थान
संत रामपाल जी प्रदान कर रहे तत्त्वज्ञान
क्या संत रामपाल जी ब्रह्मा, विष्णु, महेश की भक्ति छुड़ाते हैं?
संत रामपाल जी महाराज कहते हैं,
ब्रह्मा, विष्णु तथा महेशा। तीनूं देव दयालु हमेशा।।
तीन लोक का राज है। ब्रह्मा, विष्णु महेश।।
तीनों देवता कमल दल बसै, ब्रह्मा, विष्णु, महेश।
प्रथम इनकी बंदना, फिर सुन सतगुरू उपदेश।।
अर्थात् तीनों देवता श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी बहुत दयालु हैं। इनकी केवल तीन लोक (स्वर्ग लोक, पाताल लोक, पृथ्वी लोक) में सत्ता यानि प्रभुता है, ये तीन लोक के मालिक हैं, परंतु लोक तो बहुत सारे हैं जिनका मालिक परम अक्षर ब्रह्म है जिसकी सत्ता तीनों लोकों समेत सब पर है। मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रथम इन तीनों देवताओं की बंदना यानि साधना करनी होती है। फिर सतगुरू का उपदेश सुनो जो परम अक्षर ब्रह्म की पूजा साधना बताएगा। उस संत से तत्त्वज्ञान सुनो। तत्त्वदर्शी संत पूर्ण मोक्ष प्राप्ति की साधना / पूजा बताता है। पूर्ण मोक्ष के लिए इन तीनों देवताओं की शास्त्रोक्त यानि शास्त्रानुकूल साधना करनी होती है, परंतु पूजा गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8-10, अध्याय 15 श्लोक 17, अध्याय 18 श्लोक 62 में बताए "परम अक्षर ब्रह्म" की ही करनी होती है। परम अक्षर ब्रह्म को गीता अध्याय 8 श्लोक 9 तथा अध्याय 15 श्लोक 17 में गीता ज्ञान देने वाले प्रभु ने अपने से अन्य बताया है तथा कहा है कि उत्तम पुरुष यानि पुरूषोत्तम तो मेरे से अन्य
है, वही सबका धारण-पोषण करने वाला अविनाशी परमेश्वर है जिससे स्पष्ट है कि संत रामपाल जी महाराज ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी की भक्ति नहीं छुड़वाते बल्कि शास्त्रानुकूल भक्ति बताते हैं।
कबीर पंथ में रहनी और गहनी पर विशेष जोर दिया जाता हैं।
माला टोपी सूमरिनी,सतगुरू ने दिया बक्शीस *
पल पल गुरू को बंदगी,चरण नमाऊं शीस **
🌼🌼🌼 वे सन्तजन यह मानते हैं कि सतगुरू ने हमें जो टोपी और सूमिरनी माला दिया हैं उनको धारण करना हैं, शरीर के विशेष द्वादश अंगों पर चंदन का तिलक लगाना हैं और सात्विक आहार ग्रहण करते हुए,सात्विक विचार रखते हुए सात्विक जीवन जीना हैं।
जबकि कबीर साहेब ने इस तरह के दिखावे पर कटाक्ष करते हुए कहा हैं कि
कंठी माला सूमरणी,पहने से क्या होय *
उपर डुंडा साधु का, अंतर राखे खोह **
🌼🌼🌼 वास्तव में इसमें यह संकेत किया गया हैं कि
✓ अपने निज श्वांस को ही आपको सूमिरनी माला बनाना हैं।
कबीर साहेब कहते हैं कि
माला हैं निज श्वांस की,फेंरेगे कोई दास *
चौरासी निश्चय मिटे, कटे करम की फॉस **
✓ सतगुरू ने आपको जो भक्ति साधना के मंत्र बताए हैं
वह आपका सूमिरन हैं। वही आपका कंठ में धारण करने वाला कंठी हैं जिस पर आपको सदैव लव लगा कर रखनी हैं। असल सूमिरन तो अजपा जाप हैं।
✓ दया भाव की टोपी धारण करना हैं।
✓ तत्वज्ञान का तिलक लगाना हैं।
✓ कबीर साहेब के इस मोक्ष मार्ग पर चलने का दृढ निश्चय ही आपकी धोती हैं।
✓ अपने अनमोल मानव जीवन के एक एक श्वांस को कीमती समझ कर जनेऊ की तरह धारण करें।
✓ और अपने इस तन को धर्मशाला समझें जिसमें आत्मा रूपी पंथी कुछ ही समय तक के आकर के ठहरे हैं, ना जाने वह कब प्रस्थान कर जाएं अर्थात् ना जाने कब आपका प्राण निकल जाए ।
सारांश.....
✓✓✓ #रहनी -- गुरू मर्यादा के अंदर आपको रहना हैं अर्थात् गुरू मर्यादा रूपी जो लक्ष्मण रेखा हैं उनके भीतर रहकर ही आपको अपने जीवन को ��क नेक इंसान (साधु) की तरह जीना हैं और भक्ति साधना करनी हैं।
✓✓✓ #गहनी -- कबीर साहेब ने कहा कि हे धर्मदास! भवसागर यानि काल लोक से निकलने के लिए भक्ति की शक्ति की आवश्यकता होती है। परमात्मा प्राप्ति के लिए जीव में सोलह (16) लक्षण अनिवार्य हैं। इनको आत्मा के सोलह सिंगार (आभूषण/गहना) कहा जाता है।
1. ज्ञान 2. विवेक 3. सत्य 4. संतोष 5. प्रेम भाव 6. धीरज 7. निरधोषा (धोखा रहित) 8. दया 9. क्षमा 10. शील 11. निष्कर्मा 12. त्याग 13. बैराग 14. शांति निज धर्मा 15. भक्ति कर निज जीव उबारै 16. मित्र सम सबको चित धारै।
भावार्थ:- परमात्मा प्राप्ति के लिए भक्त में कुछ लक्षण विशेष होने चाहिऐं। ये 16 आभूषण अनिवार्य हैं जिसे एक भगत को गहना (कीमती आभूषण) की तरह धारण करना परम् आवश्यक हैं।
12 कबीरपंथों में वर्तमान में कबीर साहेब का #यथार्थ_कबीरपंथ कौन सा हैं ? मानव जीवन के परम् कल्याण के लिए इसे जानना बहुत ही जरूरी हैं।
आना कबीर पंथ में, खाला का घर नाहीं *
आते हैं सूर नर मुनि,जिन्हें दुनियां का डर नाहीं **
और अधिक अध्यात्मिक नॉलेज के लिए अवश्य पढ़ें
पवित्र सद्ग्रंथों पर आधारित तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक *#ज्ञानगंगा*
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