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#देवशयानीएकादशीकीपूजाविधि
chaitanyabharatnews · 3 years
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देवशयनी एकादशी पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, सुनकर मिलता है व्रत का पूर्ण फल
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चैतन्य भारत न्यूज हिन्दू धर्म में देवशयनी एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस साल देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को पड़ रही है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम के लिए चले जाते हैं। इसके बाद देवोत्थानी एकादशी को उन्हें उठाया जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। इस दौरान किसी प्रकार के शुभ कार्य भी नहीं किए जाते हैं। देवशयनी एकादशी व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। हालांकि व्रती को उसका व्रत का फल तभी मिलता है जब वह देवशयनी एकादशी व्रत को विधि-विधान से कर व्रत का श्रवण या पाठ करता है। आइए जानते हैं इस एकादशी व्रत के नियम और व्रत कथा के बारे में- देवशयनी एकादशी व्रत कथा सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धन-धान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था। एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजा! सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है, क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है। वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन! कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो। राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुखी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दुखों को समझता हूं। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना के साथ लेकर वन की तरफ चल पड़ा। वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करते हुआ अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया। मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवन! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है।
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इससे प्रजा अत्यंत दुखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है। जब मैं धर्मानुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका। अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए आया हूं। कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए। इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म को चारों चरण सम्मिलित हैं अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं, परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो। इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो। मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा। अत: इस मास की ए���ादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है। इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय गुप्‍त नवरात्रि, देवशयनी एकादशी से लेकर गुरु पूर्णिमा तक, जुलाई में आने वाले हैं ये महत्वपूर्ण तीज-त्योहार Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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आज है देवशयानी एकादशी, जानिए इसका महत्व, पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त
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चैतन्य भारत न्यूज हिन्दू धर्म में देवशयानी एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस साल देवशयानी एकादशी 12 जुलाई को पड़ रही है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयानी एकादशी कहा जाता है। इस दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम के लिए चले जाते हैं। इसके बाद देवोत्थानी एकादशी को उन्हें उठाया जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। इस दौरान किसी प्रकार के शुभ कार्य भी नहीं किए जाते हैं। आइए जानते हैं देवशयानी एकादशी का महत्व और पूजा-विधि। देवशयानी एकादशी का महत्व  देवशयानी एकादशी को कई नामों से जाना जाता है। जैसे कि आषाढ़ी एकादशी, पदमा एकादशी और हरी शयनी एकादशी। इसके अलावा भारत में कई जगह इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। मान्यता है कि, सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने का खास महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। देवशयानी एकादशी के दिन पूजा-पाठ वाले स्थान पर भगवान विष्णु की सोने, चांदी, तांबे या पीपल की मूर्ति की स्थापना की जाती है। इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ विष्णु की पूजा की जाती है। देवशयानी एकादशी की पूजा-विधि देवशयानी एकादशी के दिन सबसे पहले जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें। स्नान कर घर में पवित्र जल का छिड़काव करें। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का कमल के पुष्पों से पूजन करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, इन चार महीनों के दौरान भगवान शिवजी सृष्टि को चलाते हैं। इसलिए विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना गया है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कथा सुनें। देवशयानी एकादशी की पूजा के बाद गरीबों को फल दान करें। देवशयानी एकादशी का शुभ मुहूर्त  देवशयानी एकादशी 11 जुलाई की रात से 3:08 बजे से शुरु होकर 12 जुलाई की रात 1:55 मिनट तक रहेगी। इस दौरान प्रदोष काल शाम 5:30 से 7:30 तक होगा। अगले दिन सूर्योदय के साथ व्रत खोले। ये भी पढ़े  12 जुलाई से शुरू हो रहा चातुर्मास, 4 महीने तक नहीं किए जाएंगे कोई भी शुभ कार्य इस दिन से शुरू होगी श्रीखंड महादेव यात्रा, जान जोखिम में डालकर 18,500 फीट की ऊंचाई पर दर्शन करने पहुंचते हैं श्रद्धालु इस रहस्यमयी मंदिर में 5 घंटों तक भगवान शिव के पास बैठा रहता है सांप Read the full article
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