Sri Ram Charit Manas, Bal Kand 211 || परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तप...
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কবীর পরমেশ্বর লহরতারা নামক সরোবরে নীরু নীমাকে শিশু রূপে প্রাপ্ত হন। এই বিষয়ে গরীব দাস জী নিজের অমৃত বাণীতে বলেছেন:-
গরীব কাশী পুরী কস্ত কিয়া, উতরে অধর অধার।
মোমন কে মুজরা হুয়া, জঙ্গল মে দীদার।।
গরীব, কোটি কিরণ শশি ভান সুন, আসান অধর বিমান।
পরসত পূর্ণ ব্রহ্ম কে শীতল পিডরু প্রাণ।।
গোদ লিয়া মুখ চুম্ভ করী, হেম রুপ ঝলকন্ত।।
জগর মগর কায়া করে, দম কে পদম্ অনন্ত।।
कबीर परमेश्वर लहरतारा नामक तालाब में नीरू नीमा को शिशु रूप में मिले थे ।इसके बारे में गरीबदास साहेब जी अपनी अमृत वाणी में कहा है:-
गरीब काशी पूरी कस्त किया,उतरे अधर अधार।
मोमन को मुजरा हुआ, जंगल मे दीदार।।
गरीब कोटि किरण शशि भान सुन ,आसान अधर विमान।।
परसत पूर्ण ब्रह्म को शीतल पिंडरु प्राण।।
गोद लिया मुख चुम्भ करी, हेम रूप झलकन्त।।
जगर मगर काया करे, दम के पदम् अनन्त ।।
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কবীর পরমেশ্বর লহরতারা নামক সরোবরে নীরু নীমাকে শিশু রূপে প্রাপ্ত হন। এই বিষয়ে গরীব দাস জী নিজের অমৃত বাণীতে বলেছেন:-
গরীব কাশী পুরী কস্ত কিয়া, উতরে অধর অধার।
মোমন কে মুজরা হুয়া, জঙ্গল মে দীদার।।
গরীব, কোটি কিরণ শশি ভান সুন, আসান অধর বিমান।
পরসত পূর্ণ ব্রহ্ম কে শীতল পিডরু প্রাণ।।
গোদ লিয়া মুখ চুম্ভ করী, হেম রুপ ঝলকন্ত।।
জগর মগর কায়া করে, দম কে পদম্ অনন্ত।।
कबीर परमेश्वर लहरतारा नामक तालाब में नीरू नीमा को शिशु रूप में मिले थे ।इसके बारे में गरीबदास साहेब जी अपनी अमृत वाणी में कहा है:-
गरीब काशी पूरी कस्त किया,उतरे अधर अधार।
मोमन को मुजरा हुआ, जंगल मे दीदार।।
गरीब कोटि किरण शशि भान सुन ,आसान अधर विमान।।
परसत पूर्ण ब्रह्म को शीतल पिंडरु प्राण।।
गोद लिया मुख चुम्भ करी, हेम रूप झलकन्त।।
जगर मगर काया करे, दम के पदम् अनन्त ।।
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#वेदों_अनुसार_कबीरप्रभु_लीलाকবীর পরমেশ্বর লহরতারা নামক সরোবরে নীরু নীমাকে শিশু রূপে প্রাপ্ত হন। এই বিষয়ে গরীব দাস জী নিজের অমৃত বাণীতে বলেছেন:-
গরীব কাশী পুরী কস্ত কিয়া, উতরে অধর অধার।
মোমন কে মুজরা হুয়া, জঙ্গল মে দীদার।।
গরীব, কোটি কিরণ শশি ভান সুন, আসান অধর বিমান।
পরসত পূর্ণ ব্রহ্ম কে শীতল পিডরু প্রাণ।।
গোদ লিয়া মুখ চুম্ভ করী, হেম রুপ ঝলকন্ত।।
জগর মগর কায়া করে, দম কে পদম্ অনন্ত।।
कबीर परमेश्वर लहरतारा नामक तालाब में नीरू नीमा को शिशु रूप में मिले थे ।इसके बारे में गरीबदास साहेब जी अपनी अमृत वाणी में कहा है:-
गरीब काशी पूरी कस्त किया,उतरे अधर अधार।
मोमन को मुजरा हुआ, जंगल मे दीदार।।
गरीब कोटि किरण शशि भान सुन ,आसान अधर विमान।।
परसत पूर्ण ब्रह्म को शीतल पिंडरु प्राण।।
गोद लिया मुख चुम्भ करी, हेम रूप झलकन्त।।
जगर मगर काया करे, दम के पदम् अनन्त ।।
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P61
सुनि राजा अति अप्रिय बानी। हृदय कंप मुख दुति कुमुलानी॥
चौथेंपन पायउँ सुत चारी। बिप्र बचन नहिं कहेहु बिचारी॥
मागहु भूमि धेनु धन कोसा। सर्बस देउँ आजु सहरोसा॥
देह प्रान तें प्रिय कछु नाही। सोउ मुनि देउँ निमिष एक माही॥
सब सुत प्रिय मोहि प्रान कि नाईं। राम देत नहिं बनइ गोसाई॥
कहँ निसिचर अति घोर कठोरा। कहँ सुंदर सुत परम किसोरा॥
सुनि नृप गिरा प्रेम रस सानी। हृदयँ हरष माना मुनि ग्यानी॥
तब बसिष्ट बहु निधि समुझावा। नृप संदेह नास कहँ पावा॥
अति आदर दोउ तनय बोलाए। हृदयँ लाइ बहु भाँति सिखाए॥
मेरे प्रान नाथ सुत दोऊ। तुम्ह मुनि पिता आन नहिं कोऊ॥
दो0-सौंपे भूप रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस।
जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस॥208(क)॥
सो0-पुरुषसिंह दोउ बीर हरषि चले मुनि भय हरन॥
कृपासिंधु मतिधीर अखिल बिस्व कारन करन॥208(ख)
अरुन नयन उर बाहु बिसाला। नील जलज तनु स्याम तमाला॥
कटि पट पीत कसें बर भाथा। रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा॥
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। बिस्बामित्र महानिधि पाई॥
प्रभु ब्रह्मन्यदेव मै जाना। मोहि निति पिता तजेहु भगवाना॥
चले जात मुनि दीन्हि दिखाई। सुनि ताड़का क्रोध करि धाई॥
एकहिं बान प्रान हरि लीन्हा। दीन जानि तेहि निज पद दीन्हा॥
तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही। बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही॥
जाते लाग न छुधा पिपासा। अतुलित बल तनु तेज प्रकासा॥
दो0-आयुष सब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि।
कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगति हित जानि॥209॥
प्रात कहा मुनि सन रघुराई। निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई॥
होम करन लागे मुनि झारी। आपु रहे मख कीं रखवारी॥
सुनि मारीच निसाचर क्रोही। लै सहाय धावा मुनिद्रोही॥
बिनु फर बान राम तेहि मारा। सत जोजन गा सागर पारा॥
पावक सर सुबाहु पुनि मारा। अनुज निसाचर कटकु सँघारा॥
मारि असुर द्विज निर्मयकारी। अस्तुति करहिं देव मुनि झारी॥
तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया। रहे कीन्हि बिप्रन्ह पर दाया॥
भगति हेतु बहु कथा पुराना। कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना॥
तब मुनि सादर कहा बुझाई। चरित एक प्रभु देखिअ जाई॥
धनुषजग्य मुनि रघुकुल नाथा। हरषि चले मुनिबर के साथा॥
आश्रम एक दीख मग माहीं। खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं॥
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी॥
दो0-गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर॥210॥
छं0-परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही।
देखत रघुनायक जन सुख दायक सनमुख होइ कर जोरि रही॥
अति प्रेम अधीरा पुलक सरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही।
अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही॥
धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई।
अति निर्मल बानीं अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई॥
मै नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई।
राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई॥
मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना।
देखेउँ भरि लोचन हरि भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना॥
बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना।
पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना॥
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी।
सोइ पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी॥
एहि भाँति सिधारी गौतम नारी बार बार हरि चरन परी।
जो अति मन भावा सो बरु पावा गै पतिलोक अनंद भरी॥
दो0-अस प्रभु दीनबंधु हरि कारन रहित दयाल।
तुलसिदास सठ तेहि भजु छाड़ि कपट जंजाल॥211॥
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*🙏🏽 सतगुरुदेव की जय 🙏🏽*
*बन्दीछोड कबीर साहेब की जय*
*बन्दीछोड गरीबदास जी महाराज की जय*
*स्वामी रामदेवानंद जी महाराज की जय*
*🙇🏽♂️ बन्दीछोड सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय 🙇🏽♂️*
*📚 यथार्थ भक्ति बोध*
*📚 नित्य-नियम का सरलार्थ*
*📚 "सर्व लक्षणा ग्रन्थ का सरलार्थ"*
*📚 "दूसरा पद"*
*🍁 वाणी :-*
कर्म भर्म भारी लगे, संसा सूल बंबूल।
डाली पानो डोलते, परसत नाहीं मूल।।(15)
*➡️ सरलार्थ :- जब तक सम्पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होता तब तक संशय बबूल के सूल (काँटे) के समान चुभता रहता है। कोई भी भ्रमित कर देता है। अपनी क्रिया पर शंका हो जाती है। दूसरे की क्रिया स्वीकार करना मुश्किल होता है। जब तक सम्पूर्ण ज्ञान नहीं होता तो जो क्रिया कर रहा है, वे कठिन भी लगती हैं, जैसे बैठकर या खड़ा होकर हठ योग द्वारा तप, हरिद्वार से पैदल चलकर कावड़ लाना आदि-आदि, ये कठिन भी लगती हैं तथा भ्रम, अविश्वास भी रहता है। फिर साधक सम्पूर्ण आध्यात्म ज्ञान के अभाव से संसार रूपी वृक्ष के मूल को न पूजकर डाली तथा पत्तों को पूजता डोल रहा है।*
*➡️ श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में तथा श्लोक 16-17 में बताया है कि यह संसार पीपल के वृक्ष के तुल्य जानो जिसकी मूल (जड़ें) तो ऊपर को हैं, वह तो पूर्ण परमात्मा मानो जो सर्व का सृजन करने वाला तथा धारण-पोषण करने वाला है। उसको गीता अध्याय 8 श्लोक 3,8,9,10 में परम अक्षर ब्रह्म कहा है। इसी का विवरण गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में भी है। फिर गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में आगे कहा है कि जो संत उस संसार रूपी वृक्ष के सब अंगों का ज्ञान करा देता है, वह वेदवित अर्थात् वेद के तात्पर्य को जानने वाला तत्वदर्शी संत है। इस वृक्ष की ऊपर को जड़ नीचे को शाखा हैं। गीता अध्याय 15 श्लोक 2-3 में बताया है कि इस संसार रूपी वृक्ष की तीनों गुण (रजगुण श्री ब्रह्मा जी, सतगुण श्री विष्णु जी तथा तमगुण श्री शिव जी) रूपी शाखाएं हैं जो ऊपर स्वर्ग लोक में तथा नीचे पाताल लोक तक फैली हैं। तीसरे पृथ्वी लोक पर यह गीता ज्ञ��न बोला जा रहा था क्योंकि श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश जी की सत्ता एक ब्रह्माण्ड में बने तीनों लोकों पर ही है। इसलिए कहा है कि इनकी सत्ता पृथ्वी के अतिरिक्त ऊपर (स्वर्ग लोक में) तथा नीचे (पाताल लोक में) फैली है। ये ही तीनों देवता (तीनों गुण रूपी शाखा) प्रत्येक प्राणी को कर्मों के अनुसार संसार चक्र में बाँधने वाले मुख्य हैं।*
*➡️ गीता अध्याय 15 श्लोक 3 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि "इस संसार का वृक्ष जैसा स्वरूप है, पूर्ण रूप से मैं यहाँ विचार काल में अर्थात् मेरे द्वारा बताए जा रहे गीता ज्ञान में मैं तुझे नहीं बता पाऊंगा क्योंकि जैसी वास्तविक इस संसार रूपी वृक्ष की संरचना है, वैसी नहीं पाई जाती।*
*➡️ भावार्थ है कि गीता ज्ञान दाता को भी सम्पूर्ण आध्यात्म ज्ञान अर्थात् तत्वज्ञान नहीं है। उसके लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 32 तथा 34 में स्पष्ट किया है कि सम्पूर्ण यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों का ज्ञान स्वयं सच्चिदानन्द घन ब्रह्म (ब्रह्मणः) अपने मुख कमल से (मुखे) बोलकर कही वाणी में विस्तारपूर्वक कहता है, वह तत्वज्ञान है। (गीता अध्याय 4 श्लोक 32) फिर गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि वह तत्वज्ञान तत्वदर्शी संतों से समझ, उनको दण्डवत करने से नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्व को भली-भांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तेरे को तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे। इससे सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता को पूर्ण अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है। यदि होता तो एक अध्याय और बोल देता और कहता तत्वज्ञान उस अध्याय में पढ़ लेना।*
*➡️ गीता अध्याय 15 श्लोक 3 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट किया है कि अर्जुन! मैं तेरे को इस संसार रूपी वृक्ष के सम्पूर्ण भाग नहीं बता पाऊँगा क्योंकि इसकी स्थिति का आदि-अंत को मुझे ज्ञान नहीं है। इस अति दृढ़ मूल वाले संसार रूपी वृक्ष को तत्वज्ञान रूपी शस्त्र द्वारा काटकर अर्थात् अच्छी तरह समझकर।*
*➡️ [विशेष :- संसार रूपी वृक्ष की मूल (जड़ें) तो ऊपर का भाग बताया है जो ऊपर के चार अमर लोक हैं (1.सत्यलोक 2.अलख लोक 3.अगम लोक 4.अकह-अनामी लोक) ये अति दृढ़ अर्थात् अविनाशी हैं । इसलिए अति दृढ़ मूल वाला कहा है।]*
*➡️ गीता अध्याय 15 श्लोक 4 :- गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि तत्वदर्शी संत से तत्वज्ञान समझकर अर्थात् नौ मन सूत सुलझने के पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के बाद साधक लौटकर कभी संसार में नहीं आते। जिस परमेश्वर से संसार रूपी वृक्ष की प्रवृति विस्तार को प्राप्त हुई है अर्थात् जिसने संसार की रचना की है, केवल उसी मूल रूप परमेश्वर की भक्ति करो।*
*➡️ इस श्लोक में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट कर दिया है कि मेरी भक्ति भी छोड़, उस मूल मालिक परमेश्वर की भक्ति करो जैसा कि गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में तीन पुरूष (प्रभु) बताए हैं। गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहा है कि इस संसार में दो पुरूष (प्रभु) हैं :-*
*1. क्षर पुरूष (यह केवल 21 ब्रह्माण्डों का प्रभु है।)*
*2. अक्षर पुरूष (यह केवल 7 शंख ब्रह्माण्डों का प्रभु (पुरूष) है। ये दोनों तथा इनके अंतर्गत जितने जीव हैं, वे सब नाशवान हैं, आत्मा तो किसी की नहीं मरती। (गीता अध्याय 15 श्लोक 16)*
*3. परम अक्षर पुरूष (यह कुल का मालिक है, संसार रूपी वृक्ष का मूल रूप प्रभु है। यह असंख्य ब्रह्माण्डों का मालिक तथा सृजनहार है।) इस परम अक्षर ब्रह्म का ज्ञान गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में है। कहा है :- "उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम तो उपरोक्त क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष से अन्य ही है जो परमात्मा कहा जाता है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है, वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है।*
*[विशेष :- यहाँ पर तीन लोकों का जो वर्णन है, वे लोक इस प्रकार हैं :-*
*1. क्षर पुरूष का 21 ब्रह्माण्डों का क्षेत्र है जो काल लोक कहलाता है।*
*2. अक्षर पुरूष का 7 शंख ब्रह्माण्डों का क्षेत्र जो अक्षर पुरूष लोक कहलाता है।*
*3. परम अक्षर पुरूष के ऊपर के चार लोकों वाला क्षेत्र जो अमर लोक कहलाता है।]*
*➡️ इसलिए गीता अध्याय 15 के श्लोक 17 में कहा है कि परम अक्षर पुरूष तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। अब संत गरीबदास जी की अमर वाणी नं.15 का शेष सरलार्थ करते हैं :-*
*➡️ संत गरीबदास जी ने भी गीता वाले ज्ञान को दृढ़ किया है कि आप जी डालियों {शाखा रूपी तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी) की पूजा करते डोलते अर्थात् फिरते हो, आप मूल को नहीं पूज रहे। जिस कारण से मोक्ष फल से वंचित हैं।}(15)*
*🚨 मालिक की दया से इससे आगे की वाणी का सरलार्थ आज रात 9 बजे ग्रुप में डाला जाएगा जी।*
*🙇🏽♂️ सत साहेब 🙇🏽♂️*
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अहल्या उद्धार
आश्रम एक दीख मग माहीं । खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं ॥
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी । सकल कथा मुनि कहा बिसेषी॥
मार्�� में एक आश्रम दिखाई पड़ा । वहाँ पशु-पक्षी, को भी जीव-जन्तु नहीं था । पत्थर की एक शिला को देखकर प्रभु ने पूछा, तब मुनि ने विस्तारपूर्वक सब कथा कही॥6॥
दोहा:
गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर । चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर ॥210॥
गौतम मुनि की स्त्री अहल्या शापवश पत्थर की देह धारण किए बड़े धीरज से आपके चरणकमलों की धूलि चाहती है । हे रघुवीर! इस पर कृपा कीजिए ॥210॥
छन्द :
परसत पद पावन सोकनसावन प्रगट भई तपपुंज सही । देखत रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही ॥
अति प्रेम अधीरा पुलक शरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही । अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही॥
श्री रामजी के पवित्र और शोक को नाश करने वाले चरणों का स्पर्श पाते ही सचमुच वह तपोमूर्ति अहल्या प्रकट हो गई । भक्तों को सुख देने वाले श्री रघुनाथजी को देखकर वह हाथ जोड़कर सामने खड़ी रह गई । अत्यन्त प्रेम के कारण वह अधीर हो गई । उसका शरीर पुलकित हो उठा, मुख से वचन कहने में नहीं आते थे । वह अत्यन्त बड़भागिनी अहल्या प्रभु के चरणों से लिपट गई और उसके दोनों नेत्रों से जल (प्रेम और आनंद के आँसुओं) की धारा बहने लगी॥1॥
धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई । अति निर्मल बानी अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई ॥
मैं नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई । राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई॥2॥
फिर उसने मन में धीरज धरकर प्रभु को पहचाना और श्री रघुनाथजी की कृपा से भक्ति प्राप्त की । तब अत्यन्त निर्मल वाणी से उसने (इस प्रकार) स्तुति प्रारंभ की- हे ज्ञान से जानने योग्य श्री रघुनाथजी! आपकी जय हो! मैं (सहज ही) अपवित्र स्त्री हूँ, और हे प्रभो! आप जगत को पवित्र करने वाले, भक्तों को सुख देने वाले और रावण के शत्रु हैं । हे कमलनयन! हे संसार (जन्म-मृत्यु) के भय से छुड़ाने वाले! मैं आपकी शरण आई हूँ, (मेरी) रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए॥2॥
मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना । देखेउँ भरि लोचन हरि भव मोचन इहइ लाभ संकर जाना ॥
बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना । पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना॥3॥
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी । सोई पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी ॥
एहि भाँति सिधारी गौतम नारी बार बार हरि चरन परी । जो अति मन भावा सो बरु पावा गै पति लोक अनंद भरी॥4॥
जिन चरणों से परमपवित्र देवनदी गंगाजी प्रकट हुईं, जिन्हें शिवजी ने सिर पर धारण किया और जिन चरणकमलों को ब्रह्माजी पूजते हैं, कृपालु हरि (आप) ने उन्हीं को मेरे सिर पर रखा । इस प्रकार (स्तुति करती हुई) बार-बार भगवान के चरणों में गिरकर, जो मन को बहुत ही अच्छा लगा, उस वर को पाकर गौतम की स्त्री अहल्या आनंद में भरी हुई पतिलोक को चली गई॥4॥
मुनि ने जो मुझे शाप दिया, सो बहुत ही अच्छा किया । मैं उसे अत्यन्त अनुग्रह (करके) मानती हूँ कि जिसके कारण मैंने संसार से छुड़ाने वाले श्री हरि (आप) को नेत्र भरकर देखा । इसी (आपके दर्शन) को शंकरजी सबसे बड़ा लाभ समझते हैं । हे प्रभो! मैं बुद्धि की बड़ी भोली हूँ, मेरी एक विनती है । हे नाथ ! मैं और कोई वर नहीं माँगती, केवल यही चाहती हूँ कि मेरा मन रूपी भौंरा आपके चरण-कमल की रज के प्रेमरूपी रस का सदा पान करता रहे॥3॥
जय श्री राम🚩🏹🙏
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प्रधानमंत्री हसीना ने कहा- पाकिस्तान परस्त ताकतों की देश को अस्थिर करने की साजिशें कभी कामयाब नहीं होंगी
प्रधानमंत्री हसीना ने कहा- पाकिस्तान परस्त ताकतों की देश को अस्थिर करने की साजिशें कभी कामयाब नहीं होंगी
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ढाका. बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मंगलवार को कहा किपाकिस्तान परस्त ताकतें उनके देश में जो गड़बड़ी फैलाने की कोशिशें कर रही हैं, उसे कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। यह बात उन्होंने 49वें विजय दिवस को लेकरअवामी लीग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कही। हसीना ने यह भी कहा कि पाकिस्तान और उसके सहयोगी बांग्लादेश को कड़े संघर्ष के बाद मिली आजादी को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं।
‘हम आज…
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हिंदी न्यूज़ - VIDEO-क्या आपने देखा है 'जेल खाना' रेस्टोरेंट, जहां कैदी परोसेते हैं खाना
हिंदी न्यूज़ – VIDEO-क्या आपने देखा है ‘जेल खाना’ रेस्टोरेंट, जहां कैदी परोसेते हैं खाना
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भोपाल में एक रेस्ट्रॉन्ट में खाना खाने गई एक महिला को पुलिस जैसी ड्रेस पहने एक आदमी ज़ंजीरों से बाध कर क़ैदी की तरह अन्दर ले जाने लगा. ये तस्वीर भोपाल में जेल की थीम पर बने एक रेस्ट्रॉन्ट की हैजिसमें खाना खाने पहुंची एक महिला को वहाँ पुलिस की वर्दी पहने मैनेजर ने ज़ंजीरों से बांध दिया और अन्दर ले जाने लगा. जेल की थीम पर बने इस रेस्ट्रॉन्ट में मौजूद कुछ ग्राहक काल कोठरी के अन्दर बैठकर…
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दिनदाहाडै प्रसुती गृहबाट नबजात शिशु चोरियो, स्थिति तनावग्रस्त काठमाडौं । वीरगञ्जस्थित नारायणी क्षेत्रीय अस्पताल बाट एक नवजात शिशुको चोरी भएको छ । जन्मिएको केही समय पछि विहान दश बजेर ४० मिनेटको समयमा ��िशु अस्पतालबाट हराएको बताइएको छ । प्रहरीका अनुसार आशादेवीबाट जन्मिएको शिशुको चोरी भएको हो । सासुलाई लिएर अस्पताल पुगेकी थिइन आशादेवी । बच्चा जन्मेपछि नजिकै रहेकी एक महिलालाई केही समयको लागि शिशु जिम्मा लगाएर बाहिर गएर सामान किनेर फर्केपछि शिशु र महिला दुवै भेटिएनन् । त्यसपछि अस्पतालमा स्थिति तनावग्रस्त भएको छ । घटनाबारे प्रहरीले अनुसन्धान गरिरहेको बताइएको छ ।
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🌺कबीर परमेश्वर जी का प्रकट दिवस 14 जून🌺
*कलयुग में अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न एवं महिमामण्डित कबीर साहिब जी का प्राकट्य*
आज से लगभग 625 साल वर्ष पूर्व कबीर साहेब जी कलयुग में भारत के काशी शहर के लहरतारा नामक तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398 ई.) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सोमवार को कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे। कबीर साहिब जी के जन्म के विषय में यह भ्रांति फैली हुई है कि कबीर साहिब जी का जन्म महर्षि रामानंद जी के आशीर्वाद से विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। किंतु यह पूर्णतया निराधार है इस लेख में कबीर साहेब के जन्म के विषय में यथार्थ जानकारी दी जाएगी।
कबीर साहेब जी के जन्म के विषय में यह छन्द प्रचलित है:
"चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ भए।
जेठ सुदी बरसायत को, पूरण मासी को प्रकट भए।।"
कबीर साहिब जी ने अपने जन्म के विषय में स्वयं कहा है,
*"ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया काशीनगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे ने पाया।।"*
प्रतिदिन की तरह ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (1398 ई.) सोमवार को एक अष्टानन्द नामक ऋषि, जो स्वामी रामानन्द ऋषि जी के शिष्य थे काशी शहर से बाहर बने लहरतारा तालाब के स्वच्छ जल में स्नान करने के लिए गए। ब्रह्म महूर्त का समय था। ऋषि अष्टानन्द जी ने लहरतारा तालाब में स्नान किया। वे प्रतिदिन वहीं बैठ कर कुछ समय अपनी पाठ पूजा किया करते थे। ऋषि अष्टानन्द जी ध्यान मग्न होने की चेष्टा कर ही रहे थे उसी समय उन्होंने देखा कि आकाश से एक प्रकाश पुंज नीचे की ओर आता दिखाई दिया वह इतना तेज प्रकाश था उसे ऋषि जी की चर्म दष्टि सहन नहीं कर सकी। जिस प्रकार आँखे सूर्य की रोशनी को सहन नहीं कर पाती। ऋषि जी इस क्रिया को अपनी उपलब्धि समझ बैठे किंतु वह इस भ्रम को अपने गुरुदेव रामानंद जी से निवारण के लिए साधना छोड़कर गए।
ऋषि रामानन्द स्वामी जी ने अपने शिष्य अष्टानन्द से कहा हे ब्राह्मण! यह न तो तेरी भक्ति की उपलब्धि है न आप का दृष्टिदोष ही है। इस प्रकार की घटनाऐं उस समय होती हैं। जिस समय ऊपर के लोकों से कोई देव पथ्वी पर अवतार धारण करने के लिए आते हैं। वह किसी स्त्री के गर्भ में निवास करता है। फिर बालक रूप धारण करके नर लीला करके अपना अपेक्षित कार्य पूर्ण करता है। कोई देव ऊपर के लोकों से आया है। वह काशी नगर में किसी के घर जन्म लेकर अपना प्रारब्ध पूरा करेगा उपरोक्त वचनों द्वारा ऋषि रामानन्द स्वामी जी ने अपने शिष्य अष्टानन्द की शंका का समाधान किया। उन ऋषियों की धारणा रही है कि सर्व अवतार गण माता के गर्भ से ही जन्म लेते है और लीला करते हैं। *किन्तु पवित्र वेदों में प्रमाण हैं कि वह पूर्ण परमात्मा कभी माता से जन्म नहीं लेता। वह स्वयं सशरीर शिशु रूप में प्रकट होते है। (•यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8, •ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2, •ऋग्वेद मंडल 10, सूक्त 4, मंत्र 3)*
*यही नहीं वेदों में यह भी प्रमाण है कि वह पूर्ण परमात्मा कविर्देव अर्थात् कबीर साहिब तत्वज्ञान बताने के उद्देश्य से शिशु रूप में लीला करते है तथा उनके तत्वज्ञान को सुनकर बहुत से भगत उनके अनुयाई बन जाते है। ( •ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9, •ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2,•ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मंत्र 17, •ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3)*
जिस तलाब में कबीर साहेब कमल के पुष्प पर अवतरित हुए थे उसी तालाब में नीरू और नीमा नामक निः संतान दंपत्ति प्रतिदिन स्नान करने जाते थे। नीमा की कोई संतान न होने के कारण बहुत दुखी होती थी और मन ही मन भगवान शंकर से प्रार्थना करती थी कि "हे भोलेनाथ मुझ पापीन से कौन सा अपराध हो गया है जो आप मेरी झोली में एक बच्चा नहीं दे सकते । मुझ पापीन पर दया करो मुझे भी एक संतान दे दो आपके घर में कोई संतान की कमी है क्या?" ऐसा कह कर वह फूट–फूट कर रोने लगी और संयोगवश स्नान के लिए लहरतारा नामक तालाब में प्रवेश किया तत्पश्चात उसे वहां पर कमल के फूल पर बच्चा दिखा जिसे दोनों दंपत्ति शिशु को उठाकर अपने घर लेकर चले आए ।
शिशु रूप में कबीर साहेब अत्यंत सुंदर लग रहे थे उनके शरीर की नूर झलक रही थी। कबीर साहिब जी को देखने के लिए गांव से उमड़–उमड़ कर लोग आ रहे थे। शिशु रूप में कबीर साहब जी की सुंदरता को देखकर वे लोग अपनी–अपनी कल्पनानुसार कोई तो ब्रह्मा जी का रूप कोई तो विष्णु जी का रूप कोई शिवजी का रूप और कोई तो देवगण की उपमा दे रहे थे।
आदरणीय गरीब दास जी महाराज ने बहुत ही मार्मिक रूप से चित्रार्थ किया है:
गरीब , काशी पुरी कस्त किया , उतरे अधर आधार । मोमन कूँ मुजरा हुवा , जंगल में दीदार ।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर विमान।
परसत पूर्ण ब्रह्म कूँ, शीतल पिंड रू प्राण।।
गरीब, गोद लिया मुख चूम करि, हेम रूप झलकंत।
जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहे ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहे इन्द्र कुबेर।।
गरीब, कोई कहे वरुण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश सोलह कला सुभान गति, कोई कहे जगदीश।।
नीरू तथा नीमा पहले हिन्दु ब्राह्मण-ब्राह्मणी थे। इस कारण लालच वश ब्राह्मण लड़के का नाम रखने आए उसी समय काजी मुसलमान अपनी पुस्तक कुरान शरीफ को लेकर लड़के का नाम रखने के लिए आ गए। उस समय दिल्ली में मुगल बादशाहों का शासन था जो पूरे भारतवर्ष पर शासन करते थे। जिस कारण हिंदू समाज मुसलमानों से दबता था। काजियों ने कहा लड़के का नाम करण हम मुसलमान विधि से करेंगे अब ये मुसलमान हो चुके हैं। यह कह कर काजियों में मुख्य काजी ने कुरान शरीफ पुस्तक को कहीं से खोला। उस पष्ठ पर प्रथम पंक्ति में प्रथम नाम "कबीरन्' लिखा था। काजियों ने सोचा "कबीर" नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात् धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा यह तो उच्च घरानों के बच्चों के नाम रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर काजियों के मन के दोष को जानते थे। काजियों ने पुनः पवित्र कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पष्ठों पर कबीर कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे अन्य अक्षर नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर–कबीर–कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व अक्षर कबीर कबीर कबीर कबीर हो गए काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मन्त्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों में कबीर अल्लाह अर्थात् अल्लाहु अकबर हूँ। मेरा नाम "कबीर" ही रखो। काजियों ने अपने साथ लाई कुरान को वहीं पटक दिया तथा चले गए बोले इस बच्चे में कोई प्रेत आत्मा बोल रही है।
उपरोक्त विवरण के आधार पर आदरणीय गरीब दास जी महाराज ने परमेश्वर कबीर साहिब की लीला का वर्णन अपनी वाणी में चित्रार्थ किया है:
गरीब, काजी आये कुरांन ले धरि लड़के का नाम।
अक्षर अक्षर मैं फुर्या, धंन कबीर बलि जांव।।
गरीब, सकल कुरान कबीर हैं, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहैं, गई दीन की टेक।।
प्रिय पाठकों ! हम आपको निष्कर्ष रूप में बता देना चाहते हैं कि कबीर साहेब कोई आम संत,कवि या दास नहीं थे अपितु वे पूर्ण परमेश्वर थे जिन्होंने यह सब लीला की है। कबीर साहेब के पूर्ण परमात्मा होने का प्रमाण हमारे पवित्र वेदों में भी हैं। यही नहीं अपितु सभी धर्मों के पवित्र शास्त्रों में भी अनेकों प्रमाण कबीर साहिब जी के पूर्ण परमात्मा होने का मिल जाएगा। वर्तमान समय में इस पृथ्वी पर केवल एकमात्र संत जगतगुरू रामपाल जी महाराज जी हैं जो कबीर साहब को पूर्ण परमात्मा सिद्ध करने का दावा करते हैं और वे सभी धर्मों के पवित्र शास्त्रों को खोल खोल कर दिखाते भी हैं आपसे निवेदन है संत रामपाल जी महाराज जी के अनमोल प्रवचन अवश्य सुने साधना टीवी पर शाम 7:30 बजे से और विचार जरूर करें।
#KabirPrakatDiwas
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
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🥏कबीर परमेश्वर जी का प्रकट दिवस 14 जून🥏
*कलयुग में अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न एवं महिमामण्डित कबीर साहिब जी का प्राकट्य*
आज से लगभग 625 साल वर्ष पूर्व कबीर साहेब जी कलयुग में भारत के काशी शहर के लहरतारा नामक तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398 ई.) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सोमवार को कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे। कबीर साहिब जी के जन्म के विषय में यह भ्रांति फैली हुई है कि कबीर साहिब जी का जन्म महर्षि रामानंद जी के आशीर्वाद से विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। किंतु यह पूर्णतया निराधार है इस लेख में कबीर साहेब के जन्म के विषय में यथार्थ जानकारी दी जाएगी।
कबीर साहेब जी के जन्म के विषय में यह छन्द प्रचलित है:
"चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ भए।
जेठ सुदी बरसायत को, पूरण मासी को प्रकट भए।।"
कबीर साहिब जी ने अपने जन्म के विषय में स्वयं कहा है,
*"ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखल���या काशीनगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे ने पाया।।"*
प्रतिदिन की तरह ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (1398 ई.) सोमवार को एक अष्टानन्द नामक ऋषि, जो स्वामी रामानन्द ऋषि जी के शिष्य थे काशी शहर से बाहर बने लहरतारा तालाब के स्वच्छ जल में स्नान करने के लिए गए। ब्रह्म महूर्त का समय था। ऋषि अष्टानन्द जी ने लहरतारा तालाब में स्नान किया। वे प्रतिदिन वहीं बैठ कर कुछ समय अपनी पाठ पूजा किया करते थे। ऋषि अष्टानन्द जी ध्यान मग्न होने की चेष्टा कर ही रहे थे उसी समय उन्होंने देखा कि आकाश से एक प्रकाश पुंज नीचे की ओर आता दिखाई दिया वह इतना तेज प्रकाश था उसे ऋषि जी की चर्म दष्टि सहन नहीं कर सकी। जिस प्रकार आँखे सूर्य की रोशनी को सहन नहीं कर पाती। ऋषि जी इस क्रिया को अपनी उपलब्धि समझ बैठे किंतु वह इस भ्रम को अपने गुरुदेव रामानंद जी से निवारण के लिए साधना छोड़कर गए।
ऋषि रामानन्द स्वामी जी ने अपने शिष्य अष्टानन्द से कहा हे ब्राह्मण! यह न तो तेरी भक्ति की उपलब्धि है न आप का दृष्टिदोष ही है। इस प्रकार की घटनाऐं उस समय होती हैं। जिस समय ऊपर के लोकों से कोई देव पथ्वी पर अवतार धारण करने के लिए आते हैं। वह किसी स्त्री के गर्भ में निवास करता है। फिर बालक रूप धारण करके नर लीला करके अपना अपेक्षित कार्य पूर्ण करता है। कोई देव ऊपर के लोकों से आया है। वह काशी नगर में किसी के घर जन्म लेकर अपना प्रारब्ध पूरा करेगा उपरोक्त वचनों द्वारा ऋषि रामानन्द स्वामी जी ने अपने शिष्य अष्टानन्द की शंका का समाधान किया। उन ऋषियों की धारणा रही है कि सर्व अवतार गण माता के गर्भ से ही जन्म लेते है और लीला करते हैं। *किन्तु पवित्र वेदों में प्रमाण हैं कि वह पूर्ण परमात्मा कभी माता से जन्म नहीं लेता। वह स्वयं सशरीर शिशु रूप में प्रकट होते है। (•यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8, •ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2, •ऋग्वेद मंडल 10, सूक्त 4, मंत्र 3)*
*यही नहीं वेदों में यह भी प्रमाण है कि वह पूर्ण परमात्मा कविर्देव अर्थात् कबीर साहिब तत्वज्ञान बताने के उद्देश्य से शिशु रूप में लीला करते है तथा उनके तत्वज्ञान को सुनकर बहुत से भगत उनके अनुयाई बन जाते है। ( •ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9, •ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2,•ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मंत्र 17, •ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3)*
जिस तलाब में कबीर साहेब कमल के पुष्प पर अवतरित हुए थे उसी तालाब में नीरू और नीमा नामक निः संतान दंपत्ति प्रतिदिन स्नान करने जाते थे। नीमा की कोई संतान न होने के कारण बहुत दुखी होती थी और मन ही मन भगवान शंकर से प्रार्थना करती थी कि "हे भोलेनाथ मुझ पापीन से कौन सा अपराध हो गया है जो आप मेरी झोली में एक बच्चा नहीं दे सकते । मुझ पापीन पर दया करो मुझे भी एक संतान दे दो आपके घर में कोई संतान की कमी है क्या?" ऐसा कह कर वह फूट–फूट कर रोने लगी और संयोगवश स्नान के लिए लहरतारा नामक तालाब में प्रवेश किया तत्पश्चात उसे वहां पर कमल के फूल पर बच्चा दिखा जिसे दोनों दंपत्ति शिशु को उठाकर अपने घर लेकर चले आए ।
शिशु रूप में कबीर साहेब अत्यंत सुंदर लग रहे थे उनके शरीर की नूर झलक रही थी। कबीर साहिब जी को देखने के लिए गांव से उमड़–उमड़ कर लोग आ रहे थे। शिशु रूप में कबीर साहब जी की सुंदरता को देखकर वे लोग अपनी–अपनी कल्पनानुसार कोई तो ब्रह्मा जी का रूप कोई तो विष्णु जी का रूप कोई शिवजी का रूप और कोई तो देवगण की उपमा दे रहे थे।
आदरणीय गरीब दास जी महाराज ने बहुत ही मार्मिक रूप से चित्रार्थ किया है:
गरीब , काशी पुरी कस्त किया , उतरे अधर आधार । मोमन कूँ मुजरा हुवा , जंगल में दीदार ।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर विमान।
परसत पूर्ण ब्रह्म कूँ, शीतल पिंड रू प्राण।।
गरीब, गोद लिया मुख चूम करि, हेम रूप झलकंत।
जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहे ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहे इन्द्र कुबेर।।
गरीब, कोई कहे वरुण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश सोलह कला सुभान गति, कोई कहे जगदीश।।
नीरू तथा नीमा पहले हिन्दु ब्राह्मण-ब्राह्मणी थे। इस कारण लालच वश ब्राह्मण लड़के का नाम रखने आए उसी समय काजी मुसलमान अपनी पुस्तक कुरान शरीफ को लेकर लड़के का नाम रखने के लिए आ गए। उस समय दिल्ली में मुगल बादशाहों का शासन था जो पूरे भारतवर्ष पर शासन करते थे। जिस कारण हिंदू समाज मुसलमानों से दबता था। काजियों ने कहा लड़के का नाम करण हम मुसलमान विधि से करेंगे अब ये मुसलमान हो चुके हैं। यह कह कर काजियों में मुख्य काजी ने कुरान शरीफ पुस्तक को कहीं से खोला। उस पष्ठ पर प्रथम पंक्ति में प्रथम नाम "कबीरन्' लिखा था। काजियों ने सोचा "कबीर" नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात् धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा यह तो उच्च घरानों के बच्चों के नाम रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर काजियों के मन के दोष को जानते थे। काजियों ने पुनः पवित्र कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पष्ठों पर कबीर कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे अन्य अक्षर नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर–कबीर–कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व अक्षर कबीर कबीर कबीर कबीर हो गए काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मन्त्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों में कबीर अल्लाह अर्थात् अल्लाहु अकबर हूँ। मेरा नाम "कबीर" ही रखो। काजियों ने अपने साथ लाई कुरान को वहीं पटक दिया तथा चले गए बोले इस बच्चे में कोई प्रेत आत्मा बोल रही है।
उपरोक्त विवरण के आधार पर आदरणीय गरीब दास जी महाराज ने परमेश्वर कबीर साहिब की लीला का वर्णन अपनी वाणी में चित्रार्थ किया है:
गरीब, काजी आये कुरांन ले धरि लड़के का नाम।
अक्षर अक्षर मैं फुर्या, धंन कबीर बलि जांव।।
गरीब, सकल कुरान कबीर हैं, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहैं, गई दीन की टेक।।
प्रिय पाठकों ! हम आपको निष्कर्ष रूप में बता देना चाहते हैं कि कबीर साहेब कोई आम संत,कवि या दास नहीं थे अपितु वे पूर्ण परमेश्वर थे जिन्होंने यह सब लीला की है। कबीर साहेब के पूर्ण परमात्मा होने का प्रमाण हमारे पवित्र वेदों में भी हैं। यही नहीं अपितु सभी धर्मों के पवित्र शास्त्रों में भी अनेकों प्रमाण कबीर साहिब जी के पूर्ण परमात्मा होने का मिल जाएगा। वर्तमान समय में इस पृथ्वी पर केवल एकमात्र संत जगतगुरू रामपाल जी महाराज जी हैं जो कबीर साहब को पूर्ण परमात्मा सिद्ध करने का दावा करते हैं और वे सभी धर्मों के पवित्र शास्त्रों को खोल खोल कर दिखाते भी हैं आपसे निवेदन है संत रामपाल जी महाराज जी के अनमोल प्रवचन अवश्य सुने साधना टीवी पर शाम 7:30 बजे से और विचार जरूर करें।
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#KabirPrakatDiwas गरीब, काशीपुरी कस्त किया, उतरे अधर अधार। मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार। गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर बिमान। परसत पूरणब्रह्म कूं, शीतल पिंडरू प्राण। https://www.instagram.com/p/CewNXMzIOCH/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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🥏कबीर परमेश्वर जी का प्रकट दिवस 14 जून🥏
*कलयुग में अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न एवं महिमामण्डित कबीर साहिब जी का प्राकट्य*
आज से लगभग 625 साल वर्ष पूर्व कबीर साहेब जी कलयुग में भारत के काशी शहर के लहरतारा नामक तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398 ई.) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सोमवार को कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे। कबीर साहिब जी के जन्म के विषय में यह भ्रांति फैली हुई है कि कबीर साहिब जी का जन्म महर्षि रामानंद जी के आशीर्वाद से विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। किंतु यह पूर्णतया निराधार है इस लेख में कबीर साहेब के जन्म के विषय में यथार्थ जानकारी दी जाएगी।
कबीर साहेब जी के जन्म के विषय में यह छन्द प्रचलित है:
"चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ भए।
जेठ सुदी बरसायत को, पूरण मासी को प्रकट भए।।"
कबीर साहिब जी ने अपने जन्म के विषय में स्वयं कहा है,
*"ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया काशीनगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे ने पाया।।"*
प्रतिदिन की तरह ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (1398 ई.) सोमवार को एक अष्टानन्द नामक ऋषि, जो स्वामी रामानन्द ऋषि जी के शिष्य थे काशी शहर से बाहर बने लहरतारा तालाब के स्वच्छ जल में स्नान करने के लिए गए। ब्रह्म महूर्त का समय था। ऋषि अष्टानन्द जी ने लहरतारा तालाब में स्नान किया। वे प्रतिदिन वहीं बैठ कर कुछ समय अपनी पाठ पूजा किया करते थे। ऋषि अष्टानन्द जी ध्यान मग्न होने की चेष्टा कर ही रहे थे उसी समय उन्होंने देखा कि आकाश से एक प्रकाश पुंज नीचे की ओर आता दिखाई दिया वह इतना तेज प्रकाश था उसे ऋषि जी की चर्म दष्टि सहन नहीं कर सकी। जिस प्रकार आँखे सूर्य की रोशनी को सहन नहीं कर पाती। ऋषि जी इस क्रिया को अपनी उपलब्धि समझ बैठे किंतु वह इस भ्रम को अपने गुरुदेव रामानंद जी से निवारण के लिए साधना छोड़कर गए।
ऋषि रामानन्द स्वामी जी ने अपने शिष्य अष्टानन्द से कहा हे ब्राह्मण! यह न तो तेरी भक्ति की उपलब्धि है न आप का दृष्टिदोष ही है। इस प्रकार की घटनाऐं उस समय होती हैं। जिस समय ऊपर के लोकों से कोई देव पथ्वी पर अवतार धारण करने के लिए आते हैं। वह किसी स्त्री के गर्भ में निवास करता है। फिर बालक रूप धारण करके नर लीला करके अपना अपेक्षित कार्य पूर्ण करता है। कोई देव ऊपर के लोकों से आया है। वह काशी नगर में किसी के घर जन्म लेकर अपना प्रारब्ध पूरा करेगा उपरोक्त वचनों द्वारा ऋषि रामानन्द स्वामी जी ने अपने शिष्य अष्टानन्द की शंका का समाधान किया। उन ऋषियों की धारणा रही है कि सर्व अवतार गण माता के गर्भ से ही जन्म लेते है और लीला करते हैं। *किन्तु पवित्र वेदों में प्रमाण हैं कि वह पूर्ण परमात्मा कभी माता से जन्म नहीं लेता। वह स्वयं सशरीर शिशु रूप में प्रकट होते है। (•यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8, •ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2, •ऋग्वेद मंडल 10, सूक्त 4, मंत्र 3)*
*यही नहीं वेदों में यह भी प्रमाण है कि वह पूर्ण परमात्मा कविर्देव अर्थात् कबीर साहिब तत्वज्ञान बताने के उद्देश्य से शिशु रूप में लीला करते है तथा उनके तत्वज्ञान को सुनकर बहुत से भगत उनके अनुयाई बन जाते है। ( •ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9, •ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2,•ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मंत्र 17, •ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3)*
जिस तलाब में कबीर साहेब कमल के पुष्प पर अवतरित हुए थे उसी तालाब में नीरू और नीमा नामक निः संतान दंपत्ति प्रतिदिन स्नान करने जाते थे। नीमा की कोई संतान न होने के कारण बहुत दुखी होती थी और मन ही मन भगवान शंकर से प्रार्थना करती थी कि "हे भोलेनाथ मुझ पापीन से कौन सा अपराध हो गया है जो आप मेरी झोली में एक बच्चा नहीं दे सकते । मुझ पापीन पर दया करो मुझे भी एक संतान दे दो आपके घर में कोई संतान की कमी है क्या?" ऐसा कह कर वह फूट–फूट कर रोने लगी और संयोगवश स्नान के लिए लहरतारा नामक तालाब में प्रवेश किया तत्पश्चात उसे वहां पर कमल के फूल पर बच्चा दिखा जिसे दोनों दंपत्ति शिशु को उठाकर अपने घर लेकर चले आए ।
शिशु रूप में कबीर साहेब अत्यंत सुंदर लग रहे थे उनके शरीर की नूर झलक रही थी। कबीर साहिब जी को देखने के लिए गांव से उमड़–उमड़ कर लोग आ रहे थे। शिशु रूप में कबीर साहब जी की सुंदरता को देखकर वे लोग अपनी–अपनी कल्पनानुसार कोई तो ब्रह्मा जी का रूप कोई तो विष्णु जी का रूप कोई शिवजी का रूप और कोई तो देवगण की उपमा दे रहे थे।
आदरणीय गरीब दास जी महाराज ने बहुत ही मार्मिक रूप से चित्रार्थ किया है:
गरीब , काशी पुरी कस्त किया , उतरे अधर आधार । मोमन कूँ मुजरा हुवा , जंगल में दीदार ।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर विमान।
परसत पूर्ण ब्रह्म कूँ, शीतल पिंड रू प्राण।।
गरीब, गोद लिया मुख चूम करि, हेम रूप झलकंत।
जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहे ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहे इन्द्र कुबेर।।
गरीब, कोई कहे वरुण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश सोलह कला सुभान गति, कोई कहे जगदीश।।
नीरू तथा नीमा पहले हिन्दु ब्राह्मण-ब्राह्मणी थे। इस कारण लालच वश ब्राह्मण लड़के का नाम रखने आए उसी समय काजी मुसलमान अपनी पुस्तक कुरान शरीफ को लेकर लड़के का नाम रखने के लिए आ गए। उस समय दिल्ली में मुगल बादशाहों का शासन था जो पूरे भारतवर्ष पर शासन करते थे। जिस कारण हिंदू समाज मुसलमानों से दबता था। काजियों ने कहा लड़के का नाम करण हम मुसलमान विधि से करेंगे अब ये मुसलमान हो चुके हैं। यह कह कर काजियों में मुख्य काजी ने कुरान शरीफ पुस्तक को कहीं से खोला। उस पष्ठ पर प्रथम पंक्ति में प्रथम नाम "कबीरन्' लिखा था। काजियों ने सोचा "कबीर" नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात् धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा यह तो उच्च घरानों के बच्चों के नाम रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर काजियों के मन के दोष को जानते थे। काजियों ने पुनः पवित्र कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पष्ठों पर कबीर कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे अन्य अक्षर नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर–कबीर–कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व अक्षर कबीर कबीर कबीर कबीर हो गए काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मन्त्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों में कबीर अल्लाह अर्थात् अल्लाहु अकबर हूँ। मेरा नाम "कबीर" ही रखो। काजियों ने अपने साथ लाई कुरान को वहीं पटक दिया तथा चले गए बोले इस बच्चे में कोई प्रेत आत्मा बोल रही है।
उपरोक्त विवरण के आधार पर आदरणीय गरीब दास जी महाराज ने परमेश्वर कबीर साहिब की लीला का वर्णन अपनी वाणी में चित्रार्थ किया है:
गरीब, काजी आये कुरांन ले धरि लड़के का नाम।
अक्षर अक्षर मैं फुर्या, धंन कबीर बलि जांव।।
गरीब, सकल कुरान कबीर हैं, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहैं, गई दीन की टेक।।
प्रिय पाठकों ! हम आपको निष्कर्ष रूप में बता देना चाहते हैं कि कबीर साहेब कोई आम संत,कवि या दास नहीं थे अपितु वे पूर्ण परमेश्वर थे जिन्होंने यह सब लीला की है। कबीर साहेब के पूर्ण परमात्मा होने का प्रमाण हमारे पवित्र वेदों में भी हैं। यही नहीं अपितु सभी धर्मों के पवित्र शास्त्रों में भी अनेकों प्रमाण कबीर साहिब जी के पूर्ण परमात्मा होने का मिल जाएगा। वर्तमान समय में इस पृथ्वी पर केवल एकमात्र संत जगतगुरू रामपाल जी महाराज जी हैं जो कबीर साहब को पूर्ण परमात्मा सिद्ध करने का दावा करते हैं और वे सभी धर्मों के पवित्र शास्त्रों को खोल खोल कर दिखाते भी हैं आपसे निवेदन है संत रामपाल जी महाराज जी के अनमोल प्रवचन अवश्य सुने साधना टीवी पर शाम 7:30 बजे से और विचार जरूर करें।
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हिंदी न्यूज़ - HTP : क्या अलगाववाद परस्तों को जावेद डार की शहादत के बाद देश से माफ़ी माँगनी चाहिए?
हिंदी न्यूज़ – HTP : क्या अलगाववाद परस्तों को जावेद डार की शहादत के बाद देश से माफ़ी माँगनी चाहिए?
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न्यूज़ 18 इंडिया के ख़ास दिनेत शो ‘हम तो पूछेंगे’ में आज का विषय था कि क्या अलगाववाद परस्तों को जावेद डार की शहादत के बाद देश से माफ़ी माँगनी चाहिए? जम्मू-कश्मीर पुलिस में तैनात जावेद अहमद डार ने आज देश के लिए खुद को कुर्बान कर दिया. उसके जनाज़े में आई बड़ी भीड़ ने ये साबित किया कि कश्मीर की आवाम जावेद जैसे फौजियों के साथ है, अलगाववादियों के साथ नहीं. देश के शहीद बेटे जावेद को श्रद्धांजलि…
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