ईद-उल-अजहा 2021: बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी
चैतन्य भारत न्यूज
भारत में 21 जुलाई यानी आज बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है। हालांकि ऊंट की कुर्बानी का रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है।
बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी अलैय सलाम नाम के एक आदमी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा। सलाम ने अल्लाह की बात मान ली और अपने बेटे को छुरी लेकर कुर्बान लगे।
तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया और अल्लाह ने सलाम के नेक जज्बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद से ही अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं बल्कि जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया।
ऐसे बकरे को किया जाता है कुर्बान
जिस बकरे को कोई बीमारी ना हो, उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो, जो बकरा स्वस्थ हो उसकी ही बलि दी जाती है। इसके अलावा अगर बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी बलि नहीं दी जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है।
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ईद-उल-अजहा 2020: बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी
चैतन्य भारत न्यूज
भारत में 01 अगस्त यानी शनिवार के दिन बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है। हालांकि ऊंट की कुर्बानी का रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है।
बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी अलैय सलाम नाम के एक आदमी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा। सलाम ने अल्लाह की बात मान ली और अपने बेटे को छुरी लेकर कुर्बान लगे।
तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया और अल्लाह ने सलाम के नेक जज्बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद से ही अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं बल्कि जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया।
ऐसे बकरे को किया जाता है कुर्बान
जिस बकरे को कोई बीमारी ना हो, उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो, जो बकरा स्वस्थ हो उसकी ही बलि दी जाती है। इसके अलावा अगर बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी बलि नहीं दी जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है।
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बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी
चैतन्य भारत न्यूज
भारत में 12 अगस्त यानी सोमवार के दिन बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है। हालांकि ऊंट की कुर्बानी का रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है।
बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी अलैय सलाम नाम के एक आदमी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा। सलाम ने अल्लाह की बात मान ली और अपने बेटे को छुरी लेकर कुर्बान लगे।
तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया और अल्लाह ने सलाम के नेक जज्बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद से ही अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं बल्कि जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया।
ऐसे बकरे को किया जाता है कुर्बान
जिस बकरे को कोई बीमारी ना हो, उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो, जो बकरा स्वस्थ हो उसकी ही बलि दी जाती है। इसके अलावा अगर बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी बलि नहीं दी जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है।
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बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी
चैतन्य भारत न्यूज
भारत में 12 अगस्त यानी सोमवार के दिन बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है। हालांकि ऊंट की कुर्बानी का रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है।
बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी अलैय सलाम नाम के एक आदमी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा। सलाम ने अल्लाह की बात मान ली और अपने बेटे को छुरी लेकर कुर्बान लगे।
तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया और अल्लाह ने सलाम के नेक जज्बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद से ही अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं बल्कि जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया।
ऐसे बकरे को किया जाता है कुर्बान
जिस बकरे को कोई बीमारी ना हो, उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो, जो बकरा स्वस्थ हो उसकी ही बलि दी जाती है। इसके अलावा अगर बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी बलि नहीं दी जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है।
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