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chaitanyabharatnews · 3 years
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ईद-उल-अजहा 2021: बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी
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चैतन्य भारत न्यूज भारत में 21 जुलाई यानी आज बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है। हालांकि ऊंट की कुर्बानी का रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है।
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बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी अलैय सलाम नाम के एक आदमी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा। सलाम ने अल्लाह की बात मान ली और अपने बेटे को छुरी लेकर कुर्बान लगे।
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तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया और अल्लाह ने सलाम के नेक जज्‍बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद से ही अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं बल्कि जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया।
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ऐसे बकरे को किया जाता है कुर्बान जिस बकरे को कोई बीमारी ना हो, उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो, जो बकरा स्वस्थ हो उसकी ही बलि दी जाती है। इसके अलावा अगर बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी बलि नहीं दी जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है। Read the full article
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chaitanyabharatnews · 4 years
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ईद-उल-अजहा 2020: बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी
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चैतन्य भारत न्यूज भारत में 01 अगस्‍त यानी शनिवार के दिन बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है। हालांकि ऊंट की कुर्बानी का रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है।
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बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी अलैय सलाम नाम के एक आदमी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा। सलाम ने अल्लाह की बात मान ली और अपने बेटे को छुरी लेकर कुर्बान लगे।
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तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया और अल्लाह ने सलाम के नेक जज्‍बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद से ही अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं बल्कि जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया।
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ऐसे बकरे को किया जाता है कुर्बान जिस बकरे को कोई बीमारी ना हो, उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो, जो बकरा स्वस्थ हो उसकी ही बलि दी जाती है। इसके अलावा अगर बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी बलि नहीं दी जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है। Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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बकरीद 2019: ढाई लाख में बिका सबसे महंगा बकरा, इन नस्लों के बकरों को खरीदने के लिए उमड़ी भीड़
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चैतन्य भारत न्यूज 12 अगस्त को देशभर में बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा। रमजान के पवित्र महीने में पड़ने वाली ईद-उल-फितर या मीठी ईद के दो महीने बाद बकरा ईद का त्योहार आता है। इस त्योहर पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है, ऐसे में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बकरों की खरीदारी शुरू कर दी है।
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बता दें कि शुक्रवार की रात सबसे उम्दा नस्ल जटियादी बकरा 2.50 लाख रुपए में बिका है। कहा जाता है कि इसकी खुराक अन्य बकरों से ज्यादा है। यह एक दिन में दो किलो दूध पीता है। इसके अलावा दो किलो गेहूं, दो किलो चना, दो किलो सेब खाता है। इसके अलावा बाजार में तोतापरी, अजमेरी, बरबरे और अमृतसरी बकरों की मांग भी है।
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खबरों के मुताबिक, इस साल बाजार में 10 हजार रुपए से लेकर 2.50 लाख रुपए तक बकरे आए हैं। इन सभी बकरों की अलग-अलग खासियत है। मान्यता है कि इस त्योहार को मनाने वाले लोग दूसरों की भलाई के लिए अपनी करीबी चीजों की कुर्बानी दे सकते हैं। इस दिन सबसे पहले सुबह की नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या फिर अन्य जानवर की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बकरे के गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं, उसमें से एक हिस्सा गर��बों में, दूसरा हिस्सा दोस्तों में और तीसरा हिस्सा घर परिवार के लिए रखा जाता हैं।
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अन्य नस्लों के बकरों की कीमत तोतापरी बकरे की कीमत 65 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक है। अजमेरी बकरे की कीमत 15 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक है। बरबरे बकरे की कीमत 10 हजार से 50 हजार रुपए तक है। जानकारी के मुताबिक सबसे ज्यादा बिक्री 15 से 50 हजार रुपए तक के बकरों की हो रही है। यह भी पढ़े... बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी   Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी
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चैतन्य भारत न्यूज भारत में 12 अगस्‍त यानी सोमवार के दिन बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है। हालांकि ऊंट की कुर्बानी का रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है।
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बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी अलैय सलाम नाम के एक आदमी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा। सलाम ने अल्लाह की बात मान ली और अपने बेटे को छुरी लेकर कुर्बान लगे।
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तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया और अल्लाह ने सलाम के नेक जज्‍बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद से ही अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं बल्कि जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया।
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ऐसे बकरे को किया जाता है कुर्बान जिस बकरे को कोई बीमारी ना हो, उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो, जो बकरा स्वस्थ हो उसकी ही बलि दी जाती है। इसके अलावा अगर बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी बलि नहीं दी जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है। Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी
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चैतन्य भारत न्यूज भारत में 12 अगस्‍त यानी सोमवार के दिन बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है। हालांकि ऊंट की कुर्बानी का रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है।
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बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी अलैय सलाम नाम के एक आदमी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा। सलाम ने अल्लाह की बात मान ली और अपने बेटे को छुरी लेकर कुर्बान लगे।
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तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया और अल्लाह ने सलाम के नेक जज्‍बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद से ही अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं बल्कि जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया।
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ऐसे बकरे को किया जाता है कुर्बान जिस बकरे को कोई बीमारी ना हो, उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो, जो बकरा स्वस्थ हो उसकी ही बलि दी जाती है। इसके अलावा अगर बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी बलि नहीं दी जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है। Read the full article
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