रोते शिशु को शांत करने के प्रभावी तरीके खोजें। यह व्यापक गाइड बच्चे के रोने के साथ सामना करने और नवजात शिशु की सुखद वातावरण को बढ़ावा देने के उपयोगी सुझाव प्रदान करता है।
अपने बच्चे को रोते हुए देखना माता-पिता के लिए सबसे मुश्किल अनुभवों में से एक है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि आप जो कुछ भी करें, वह रोना नहीं बंद होता है। अच्छी खबर यह है कि रोते हुए शिशु को शांत करने और माता-पिता की चिंता को कम करने के कई प्रभावी तरीके हैं। इस व्यापक गाइड में, हम आपको अपने शिशु के रोने को शांत करने और पूरे परिवार के लिए एक शांतिपूर्ण वातावरण को प्रोत्साहित करने के प्रमाणित तथा…
घर में हर छोटी वस्तु का अपना महत्व होता है। कभी-कभी बेकार समझी जाने वाली वस्तु भी घर में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर देती है। गृहस्थी में रोजाना काम में आने वाली चीजों से भी शकुन-अपशकुन जुड़े होते हैं, जो जीवन में कई महत्वपूर्ण मोड़ लाते हैं। शकुन शुभ फल देते हैं, वहीं अपशकुन इंसान को आने वाले संकटों से सावधान करते हैं। हम आपको घर से जुड़ी वस्तुओं के शकुनों के बारे में बता रहे हैं।
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1-दूध का शकुन
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सुबह-सुबह दूध को देखना शुभ कहा जाता है। दूध का उबलकर गिरना शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति, संपत्ति, मान व वैभव की उन्नति होती है। दूध का बिखर जाना अपशकुन मानते हैं, जो किसी दुर्घटना का संकेत है। दूध को जान-बूझकर छलकाना अपशकुन माना जाता है , जो घर में कलह का कारण है।
2-दर्पण का शकुन
हर घर में दर्पण का बहुत महत्व है। दर्पण से जुड़े कई शकुन-अपशकुन मनुष्य जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करते हैं। दर्पण का हाथ से छूटकर टूट जाना अशुभ माना जाता है। एक वर्ष तक के बच्चे को दर्पण दिखाना अशुभ होता है। यदि कोई नव विवाहिता अपनी शादी का जोड़ा पहन कर श्रृंगार सहित खुद को टूटे दर्पण में देखती है तो भी अपशकुन होता है। तात्पर्य यह है कि दर्पण का टूटना हर दृष्टिकोण से अशुभ ही होता है। इसके लिए यदि दर्पण टूट जाए तो इसके टूटे हुए टुकड़ों को इकटठा करके बहते जल में डाल देने से संकट टल जाते हैं।
3-पैसे का शकुन
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आज के इस युग में पैसे को भगवान माना जाता है। जेब को खाली रखना अपशकुन मानते हैं। कहा जाता है कि पैसे को अपने कपड़ों की हर जेब में रखना चाहिए। कभी भी पर्स खाली नहीं रखना चाहिए।
4-चाकू का शकुन
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चाकू एक ऐसी वस्तु है, जिसके बिना किसी भी घर में काम नहीं चल सकता। इसकी जरूरत हर छोटे-छोटे कार्य में पड़ती है। इससे जुड़े भी अनेक शकुन-अपशकुन होते हैं। डाइनिंग टेबल पर छुरी-कांटे का क्रास करके रखना अशुभ मानते हैं, इसके कारण घर के सदस्यों में झगड़ा हो जाता है। मेज से चाकू का नीचे गिरना भी अशुभ होता है। नवजात शिशु के तकिए के नीचे चाकू रखना शुभ होता है तथा छोटे बच्चे के गले में छोटा सा चाकू डालना भी अच्छा होता है। इससे बच्चों की बुरी आत्माओं से रक्षा होती है व नीं��� में बच्चे रोते भी नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति आपको चाकू भेंट करे तो इसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए एक सिक्का अवश्य दें।
5-झाडू का शकुन
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घर के एक कोने में पड़े हुए झाडू को घर की लक्ष्मी मानते हैं, क्योंकि यह दरिद्रता को घर से बाहर निकालता है। इससे भी कई शकुन व अपशकुन जुड़े हैं। दीपावली के त्यौहार पर नया झाडू घर में लाना लक्ष्मी जी के आगमन का शुभ शकुन है। नए घर में गृह प्रवेश से पूर्व नए झाडू का घर में लाना शुभ होता है। झाडू के ऊपर पांव रखना गलत समझा जाता है। यह माना जाता है कि व्यक्ति घर आई लक्ष्मी को ठुकरा रहा है। कोई छोटा बच्चा अचानक घर में झाडू लगाने लगे तो समझ लीजिए कि घर में कोई अवांछित मेहमान के आने का संकेत है। सूर्यास्त के बाद घर में झाडू लगाना अपशकुन होता है, क्योंकि यह व्यक्ति के दुर्भाग्य को निमंत्रण देता है।
6-बाल्टी का शकुन
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सुबह के समय यदि पानी या दूध से भरी बाल्टी दिखाई दे तो शुभ होता है। इससे मन में सोचे कार्य पूरे होते हैं। खाली बाल्टी देखना अपशकुन समझा जाता है, जो बने-बनाए कार्यों को बिगाड़ देता है। रात को खाली बाल्टी को प्रायः उल्टा करके रखना चाहिए एवं घर में एक बाल्टी को अवश्य भरकर रखें, ताकि सुबह उठकर घर के सदस्य उसे देख सकें।
7-लोहे का शकुन
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घर में लोहे का होना शुभ कहा जाता है। लोहे में एक शक्ति होती है, जो बुरी आत्माओं को घर से भगा देती है। पुराने व जंग लगे लोहे को घर में रखना अशुभ है। घर में लोहे का सामान साफ करके रखें।
8-हेयरपिन का शकुन
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हेयरपिन एक बहुत ही मामूली सी चीज है, परंतु इसका प्रभाव बड़ा आश्चर्यजनक होता है। यदि किसी व्यक्ति को राह में कोई हेयरपिन पड़ा मिल जाये तो समझो कि उसे कोई नया मित्र मिलने वाला है। वहीं यदि हेयर पिन खो जाये तो व्यक्ति के नए दुश्मन पैदा होने वाले हैं। हेयरपिन को घर में कहीं लटका दिया जाए तो यह अच्छे भाग्य का प्रतीक है।
9-काले वस्त्र का शकुन
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काले वस्त्र बहुत अशुभ माने जाते हैं। किसी व्यक्ति के घर से बाहर जाते समय यदि कोई आदमी काले वस्त्र पहने हुए दिखाई दे तो अपशकुन माना जाता है, जिसके बुरे प्रभाव से जाने वाले व्यक्ति की दुर्घटना हो सकती है। अतः ऐसे व्यक्ति को अपना जाना कुछ मिनट के लिए स्थगित कर देना चाहिए।
10-रुई का शकुन
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रूई का कोई टुकड़ा किसी व्यक्ति के कपड़ों पर चिपका मिले तो यह शुभ शकुन है। यह किसी शुभ समाचार आने का संकेत है या किसी प्रिय व्यक्ति के आने का संकेत है। कहा जाता है कि रूई का यह टुकड़ा व्यक्ति को किसी एक अक्षर के रूप में नजर आता है व यह अक्षर उस व्यक्ति के नाम का प्रथम अक्षर होता है, जहां से उस व्यक्ति के लिए शुभ संदेश या पत्र आ रहा है।
11-चाबियों का शकुन
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चाबियों का गुच्छा गृहिणी की संपूर्णता का प्रतीक है। यदि गृहिणी के पास चाबियों का कोई ऐसा गुच्छा है, जिस पर बार-बार साफ करने के बाद भी जंग चढ़ जाए तो यह एक अच्छा शकुन है। इसके फलस्वरूप घर का कोई रिश्तेदार अपनी जायदाद में से आपको कुछ देना चाहता है या आपके नाम से कुछ धन छोड़कर जाना चाहता है। चाबियों को बच्चे के तकिए के नीचे रखना भी अच्छा होता है, इससे बुरे स्वप्नों एवंबुंरी आत्माओं से बच्चे का बचाव होता है।
12-बटन का शकुन
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कभी-कभी कमीज़, कोट या अन्य कोई कपड़े का बटन गलत लग जाए तो अपशकुन होता है, जिसके अनुसार सीधे काम भी उल्टे पड़ जाएंगे। इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए कपड़े को उतारकर सही बटन लगाने के बाद पहनें। यदि रास्ते चलते आपको कोई बटन पड़ा मिल जाए तो यह आपको किसी नए मित्र से मिलवाएगा।
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart90 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart91
"शेष कथा"
श्री कृष्ण भगवान ने अपनी शक्ति से युधिष्ठिर को उन सर्व महा मण्डलेश्वरों के आगे होने वाले जन्म दिखाए जिसमें किसी ने कैंचवे का, किसी ने भेड़-बकरी, भैंस व शेर आदि के रूप धारण किए थे।
यह सब देख कर युधिष्ठिर ने कहा हे भगवन! फिर तो पृथ्वी संत रहित हो गई है। भगवान कृष्ण जी ने कहा जब पृथ्वी संत रहित हो जाएगी तो यहाँ आग लग जाएगी। सर्व जीव-जन्तु आपस में लड़ मरेंगे। यह तो पूरे संत की शक्ति से सन्तुलन बना रहता है। समय-समय पर मैं (भगवान विष्णु) पृथ्वी पर आ कर राक्षस वृत्ति के लोगों को समाप्त करता हूँ जिससे संत सुखी हो जाते है। जिस प्रकार जर्मीदार अपनी फसल से हानि पहुँचने वाले अन्य पौधों को जो झाड़-खरपतवार आदि को काट-काट कर बाहर डाल देता है तब वह फसल स्वतन्त्रता पूर्वक फलती-फूलती है। यानी ये संत उस फसल में सिचाई का सुख प्रदान करते हैं। पूर्ण संत सबको समान सुख देते हैं। जिस प्रकार वर्षा व सिंचाई का जल दोनों प्रकार के पौधों (फसल व खरपतवार) का पोषण करते हैं। उनमें सर्व जीव के प्रति दया भाव होता है। अब मैं आपको पूर्ण संत के दर्शन करवाता हूँ। एक महात्मा काशी में रहते हैं। उसको बुलवाना है। तब युधिष्ठिर ने कहा कि उस ओर संतों को आमन्त्रित करने का कार्य भीमसेन को सौंपा था। पूछते हैं कि वह उन महात्मा तक पहुँचा या नहीं। भीमसेन को बुलाकर पूछा तो उसने बताया कि मैं उस से मिला था। उनका नाम स्वपच सुदर्शन है। बाल्मीकि जाति में गृहस्थी संत हैं। एक झोंपड़ी में रहता है। उन्होंने यज्ञ में आने से मना कर दिया। इस पर श्री कृष्ण जी ने कहा कि संत मना नहीं किया करते। सर्व वार्ता जो उनके साथ हुई है वह बताओ। तब भीम सेन ने आगे बताया कि मैंने उनको आमन्त्रित करते हुए कहा युधिष्ठिर ने कहा कि उस ओर संतों को आमन्त्रित करने का कार्य भीमसेन को सौंपा था। पूछते हैं कि वह उन महात्मा तक पहुँचा या नहीं। भीमसेन को बुलाकर पूछा तो उसने बताया कि मैं उस से मिला था। उनका नाम स्वपच सुदर्शन है। बाल्मीकि जाति में गृहस्थी संत हैं। एक झोंपड़ी में रहता है। उन्होंने यज्ञ में आने से मना कर दिया। इस पर श्री कृष्ण जी ने कहा कि संत मना नहीं किया करते। सर्व वार्ता जो उनके साथ हुई है वह बताओ।
तब भीम सेन ने आगे बताया कि मैंने उनको आमन्त्रित करते हुए कहा कि हे संत परवर ! हमारी यज्ञ में आने का कष्ट करना। उनको पूरा पता बताया। उसी समय वे (सुदर्शन संत जी) कहने लगे भीम सेन आप के पाप के अन्न को खाने से संतों को दोष लगेगा। करोड़ों सैनिकों की हत्या करके आपने तो घोर पाप कर रखा है। आज आप राज्य का आनन्द ले रहे हो। युद्ध में वीरगति को प्राप्त सैनिकों की विधवा पत्नी व अनाथ बच्चे रह-रह कर अपने पति व पिता को याद करके फूट-फूट कर घंटों रोते हैं। बच्चे अपनी माँ से लिपट कर पूछ रहे हैं माँ, पापा छुट्टी नहीं आए? कब आएंगे? हमारे लिए नए वस्त्र लाएंगे। दूसरी लड़की कहती है कि मेरे लिए नई साड़ी लाएंगे। बड़ी होने पर जब मेरी शादी होगी तब मैं उसे बाँधकर ससुराल जाऊँगी। वह लड़का (जो दस वर्ष की आयु का है) कहता है कि मैं अब की बार पापा (पिता जी) से कहूँगा कि आप नौकरी पर मत जाना। मेरी माँ तथा भाई-बहन आपके बिना बहुत दुःख पाते हैं। माँ तो सारा दिन-रात आपकी याद करके जब देखो एकांत स्थान पर रो रही होती है। या तो हम सबको अपने पास बुला लो या आप हमारे पास रहो। छोड़ दो नौकरी को। मैं जवान हो गया हूँ। आपकी जगह मैं फौज में जा कर देश सेवा करूँगा। आप अपने परिवार में रहो। आने दो पिता जी को, बिल्कुल नहीं जाने दूँगा। (उन बच्चों को दुःखी होने से बचाने के लिए उनकी माँ ने उन्हें यह नहीं बताया कि आपके पिता जी युद्ध में मर चुके हैं क्योंकि उस समय वे बच्चे अपने मामा के घर गए हुए थे। केवल छोटा बच्चा जो डेढ़ वर्ष की आयु का था वही घर पर था। अन्य बच्चों को जान बूझ कर नहीं बुलाया था।) इस प्रकार उन मासूम बच्चों की आपसी वार्ता से दुःखी होकर उनकी माता का हृदय पति की याद के दुःख से भर आया। उसे हल्का करने के लिए (रोने के लिए) दूसरे कमरे में जा कर फूट-फूट कर रोने लगी। तब सारे बच्चे माँ के ऊपर गिरकर रोने लगे। सम्बन्धियों ने आकर शांत करवाया। कहा कि बच्चों को स्पष्ट बताओ कि आपके पिता जी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। जब बच्चों को पता चला कि हमारे पापा (पिता जी) अब कभी नहीं आएंगे तब उस स्वार्थी राजा को कोसने लगे जिसने अपने भाई बटवारे के
लिए दुनियाँ के लालों का खून पी लिया। यह कोई देश रक्षा की लड़ाई भी नहीं थी जिसमें हम संतोष कर लेते कि देश के हित में प्राण त्याग दिए हैं। इस खूनी राजा ने अपने ऐशो-आराम के लिए खून की नदी बहा दी। अब उस पर मौज कर रहा है। आगे संत सुदर्शन (सुपच) बता रहे हैं कि भीम ऐसे-2 करोड़ों प्राणी युद्ध की पीड़ा से पीड़ित हैं। उनकी हाय आपको चैन नहीं लेने देगी चाहे करोड़ यज्ञ करो। ऐसे दुष्ट अन्न को कौन खाए? यदि मुझे बुलाना चाहते हो तो मुझे पहले किए हुए सौ (100) यज्ञों का फल देने का संकल्प करो अर्थात् एक सौ यज्ञों का फल मुझे दो तब मैं आपके भोजन पाऊँ।
सुदर्शन जी के मुख से इस बात को सुन कर भीम ने बताया कि मैं बोला आप तो कमाल के व्यक्ति हो, सौ यज्ञों का फल मांग रहे हो। यह हमारी दूसरी यज्ञ है। आपको सौ का फल कैसे दें? इससे अच्छा तो आप मत आना। आपके बिना कौन सी यज्ञ सम्पूर्ण नहीं होगी। जब स्वयं भगवान कृष्ण जी हमारे साथ हैं। तो तेरे न आने से क्या यज्ञ पूर्ण नहीं होगा। सर्व वार्ता सुन कर श्री कृष्ण जी ने कहा भीम संतों के साथ ऐसा आपत्तिजनक व्यवहार नहीं करना चाहिए। सात समुद्रों का अंत पाया जा सकता है परंतु सतगुरु (कबीर साहेब) के संत का पार नहीं पा सकते। उस महात्मा सुदर्शन वाल्मिीकि के एक बाल के समान तीन लोक भी नहीं हैं। मेरे साथ चलो, उस परमपिता परमात्मा के प्यारे हंस को लाने के लिए। तब पाँचों पाण्डव व श्री कृष्ण भगवान सुपच सुदर्शन की झोंपड़ी की ओर रथ में बैठकर चले। एक योजन अर्थात् 12 किलोमीटर पहले रथ से उतरकर नंगे पैरों चले तथा रथ को खाली लेकर रथवान पीछे-पीछे चला।
उस समय स्वयं कबीर साहेब सुदर्शन सुपच का रूप बना कर झोपड़ी में बैठ गए व सुदर्शन को अपनी गुप्त प्रेरणा से मन में संकल्प उठा कर कहीं दूर के संत या भक्त से मिलने भेज दिया जिसमें आने व जाने में कई रोज लगने थे। तब सुदर्शन के रूप में सतगुरु की चमक व शक्ति देख कर सर्व पाण्डव बहुत प्रभावित हुए। स्वयं श्रीकृष्णजी ने लम्बी दण्डवत् प्रणाम की। तब देखा देखी सर्व पाण्डवों ने भी ऐसा ही किया। कृष्ण जी की तरफ नजर करके सुपच सुदर्शन ने आदर पूर्वक कहा कि हे त्रिभुवननाथ! आज इस दीन के द्वार पर कैसे? मेरा अहोभाग्य है कि आज दीनानाथ विश्वम्भरनाथ मुझ तुच्छ को दर्शन देने स्वयं चल कर आए हैं। सबको आदर पूर्वक बैठा दिया तथा आने का कारण पूछा। उस समय श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे जानी-जान! आप सर्व गति (स्थिति) से परिचित हैं। पाण्डवों ने यज्ञ की है। वह आपके बिना सम्पूर्ण नहीं हो रही है। कृपा इन्हें कृतार्थ करें। उसी समय वहां उपस्थित भीम की ओर संकेत करते हुए सुदर्शन रूप धारी परमेश्वर जी ने कहा कि यह वीर मेरे पास आया था तथा अपनी मजबूरी से इसे अवगत करवाया था। उस समय श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे पूर्णब्रह्म ! आपने स्वयं अपनी वाणी में कहा है कि :-
"संत मिलन को चालिए, तज माया अभिमान । जो-जो पग आगे धरै, सो सो यज्ञ समान।।"
आज पांचों पाण्डव राजा हैं तथा मैं स्वयं द्वारिकाधीश आपके दरबार में राजा होते हुए भी नंगे पैरों उपस्थित हूँ। अभिमान का नामों निशान भी नहीं है तथा स्वयं भीम ने भी खड़ा हो कर उस दिन कहे हुए अपशब्दों की चरणों में पड़ कर क्षमा याचना की। श्री कृष्ण जी ने कहा हे नाथ! आज यहाँ आपके दर्शनार्थ आए आपके छः सेवकों के कदमों के यज्ञ समान फल को स्वीकार करते हुए सौ आप रखो तथा शेष हम भिक्षुकों को दान दीजिए ताकि हमारा भी कल्याण हो। इतना आधीन भाव सर्व उपस्थित जनों में देख कर जगतगुरु साहेब करूणामय सुदर्शन रूप में अति प्रसन्न हुए।
कबीर, साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं। जो कोई धन का भूखा, वो तो साधू नाहिं ।।
उठ कर उनके साथ चल पड़े। जब सुदर्शन जी यज्ञशाला में पहुँचे तो
चारों ओर एक से एक ऊँचे सुसज्जित आसनों पर विराजमान महा मण्डलेश्वर सुदर्शन जी के रूप व वेश (दोहरी धोती घुटनों से थोड़ी नीचे तक, छोटी-2 दाड़ी, सिर के बिखरे केश न बड़े न छोटे, टूटी-फूटी जूती। मैले से कपड़े, तेजोमय शरीर) को देखकर अपने मन में सोच रहे हैं कि ऐसे अपवित्र व्यक्ति से शंख सात जन्म भी नहीं बज सकता है। यह तो हमारे सामने ऐसे है जैसे सूर्य के सामने दीपक। श्रीकृष्ण जी ने स्वयं उस महात्मा का आसन अपने हाथों लगाया (बिछाया) क्योंकि श्री कृष्ण जी श्रेष्ठ आत्मा हैं। फिर द्रोपदी से कहा कि हे बहन ! सुदर्शन महात्मा जी आए हैं, भोजन तैयार करो। बहुत पहुँचे हुए संत हैं। द्रोपदी देख रही है कि संत लक्षण तो एक भी नहीं दिखाई देते हैं। यह तो एक दरिद्र गृहस्थी व्यक्ति है। न तो वस्त्र भगवां, न गले में माला, न तिलक, न सिर पर बड़ी जटा, न मुण्ड ही मुण्डवा रखा और न ही कोई चिमटा, झोली, कमण्डल लिए हुए था। श्री कृष्ण जी के कहते ही स्वादिष्ट भोजन कई प्रकार का बनाकर एक सुन्दर थाल (चांदी का) में परोस कर सुदर्शन जी के सामने रख कर द्रोपदी ने मन में विचार किया कि आज तो यह भक्त भोजन को खाएगा तो ऊँगली चाटता रह जाएगा। जिन्दगी में ऐसा भोजन कभी नहीं खाया होगा।
सुदर्शन जी ने नाना प्रकार के भोजन को थाली में इक्ट्ठा किया तथा खिचड़ी सी बनाई। उस समय द्रौपदी ने देखा कि इसने तो सारा भोजन (खीर, खांड, हलुवा, सब्जी, दही, दही-बड़े आदि) घोल कर एक कर लिया। तब मन में दुर्भावना पूर्वक विचार किया कि इस मूर्ख हब्शी ने तो खाना खाने का भी ज्ञान नहीं। यह काहे का संत? कैसा शंख बजाएगा। (क्योंकि खाना बनाने वाली स्त्री की यह भावना होती है कि मैं ऐसा स्वादिष्ट भोजन बनाऊँ कि खाने वाला मेरे भोजन की प्रशंसा कई जगह करे)। प्रत्येक बहन की यही आशा होती है।
वह बेचारी एक घंटे तक धुएँ से आँखें खराब करे और मेरे जैसा कह दे कि नमक तो है ही नहीं, तब उसका मन बहुत दुःखी होता है। इसलिए संत जैसा मिल जाए उसे खा कर सराहना ही करते हैं। यदि कोई न खा सके तो नमक कह कर 'संत' नहीं मांगता। संतों ने नमक का नाम राम-रस रखा हुआ है। कोई ज्यादा नमक खाने का अभ्यस्त हो तो कहेगा कि भईया रामरस लाना। घर वालों को पता ही न चले कि क्या मांग रहा है? क्योंकि सतसंग में सेवा में अन्य सेवक ही होते हैं। न ही भोजन बनाने वालों को दुःख हो। एक समय एक नया भक्त किसी सतसंग में पहली बार गया। उसमें किसी ने कहा कि भक्त जी रामरस लाना। दूसरे ने भी कहा कि रामरस लाना तथा थोड़ा रामरस अपनी हथेली पर रखवा लिया। उस नए भक्त ने खाना खा लिया था। परंतु पंक्ति में बैठा अन्य भक्तों के भोजन पाने का इंतजार कर रहा था कि इकट्ठे ही उठेंगे। यह भी एक औपचारिकता सतसंग में होती है। उसने सोचा रामरस कोई खास मीठा खाद्य पदार्थ होगा। यह सोच कर कहा मुझे भी रामरस देना। तब सेवक ने थोड़ा सा रामरस (नमक) उसके हाथ पर रख दिया। तब वह नया भक्त बोला ये के कान कै लाना है, चौखा सा (ज्यादा) रखदे। तब उस सेवक ने दो तीन चमच्च रख दिया। उस नए भक्त ने उस बारीक नमक को कोई खास मीठा खाद्य प्रसाद समझ कर फांका मारा। तब चुपचाप उठा तथा बाहर जा कर कुल्ला किया। फिर किसी भक्त से पूछा रामरस किसे कहते हैं? तब उस भक्त ने बताया कि नमक को रामरस कहते हैं। तब वह नया भक्त कहने लगा कि मैं भी सोच रहा था कि कहें तो रामरस परंतु है बहुत खारा। फिर विचार आया कि हो सकता है नए भक्तों पर परमात्मा प्रसन्न नहीं हुए हों। इसलिए खारा लगता हो। मैं एक बार फिर कोशिश करता, अच्छा हुआ जो मैंने आपसे स्पष्ट कर लिया। फिर उसे बताया गया कि नमक को रामरस किस लिए कहते हैं?]
सुपच सुदर्शन जी ने थाली वाले मिले हुए उस सारे भोजन को पाँच ग्रास बना कर खा लिया। पाँच बार शंख ने आवाज की। उसके पश्चात् शंख ने आवाज नहीं की।
व्यंजन छतीसों परोसिया जहाँ द्रौपदी रानी। बिन आदर सतकार के, कही शंख न बानी।। पंच गिरासी वाल्मिीकि, पंचै बर बोले। आगे शंख पंचायन, कपाट न खोले ।। बोले कृष्ण महाबली, त्रिभुवन के साजा। बाल्मिक प्रसाद से, कण कण क्यों न बाजा ।। द्रोपदी सेती कृष्ण देव, जब पैसे भाखा। बाल्मिक के चरणों की, तेरे न अभिलाषा ।। प्रेम पंचायन भूख है, अन्न जग का खाजा। ऊँच नीच द्रोपदी कहा, शंख कण कण यूँ नहीं बाजा ।। बाल्मिक के चरणों की, लई द्रोपदी धारा। शंख पंचायन बाजीया, कण-कण झनकारा ।। युधिष्ठिर जी श्री कृष्ण जी के पास आए तथा कहा हे भगवन् ! आप की कृपा से शंख ने आवाज की है हमारा कार्य पूर्ण हुआ। श्री कृष्ण जी ने सोचा कि इन महात्मा सुदर्शन के भोजन खा लेने से भी शंख अखण्ड क्यों नहीं बजा? फिर अपनी दिव्य दृष्टि से देखा? तो पाया कि द्रोपदी के मन में दोष है जिस कारण से शंख ने अखण्ड आवाज नहीं की केवल पांच बार आवाज करके मौन हो गया है। श्री कृष्ण जी ने कहा युधिष्ठिर यह शंख बहुत देर तक बजना चाहिए तब यज्ञ पूर्ण होगी। युधिष्ठिर ने कहा भगवन्! अब कौन संत शेष है जिसे लाना होगा। श्री कृष्ण जी ने कहा युधिष्ठिर इस सुदर्शन संत से बढ़कर कोई भी सत्यभक्ति युक्त संत नहीं है। इसके एक बाल समान तीनों लोक भी नहीं हैं। अपने घर में ही दोष है उसे शुद्ध करते हैं। श्री कृष्ण जी ने द्रौपदी से कहा द्रौपदी, भोजन सब प्राणी अपने 2 घर पर रूखा-सूखा खा कर ही सोते हैं। आपने बढ़िया भोजन बना कर अपने मन में अभिमान पैदा कर लिया। बिना आदर सत्कार के किया हुआ धार्मिक अनुष्ठान (यज्ञ, हवन, पाठ) सफल नहीं होता। आपने इस साधारण से व्यक्ति को क्या समझ रखा है? यह पूर्णब्रह्म हैं। इसके एक बाल के समान तीनों लोक भी नहीं हैं। आपने अपने मन में इस महापुरुष के बारे में गलत विचार किए हैं उनसे आपका अन्तःकरण मैला (मलिन) हो गया है। इनके भोजन ग्रहण कर लेने से तो यह शंख की स्वर्ग तक आवाज जाती तथा सारा ब्रह्मण्ड गूंज उठता। यह केवल पांच बार बोला है। इसलिए कि आपका भ्रम दूर हो जाए क्योंकि और किसी ऋषि के भोजन पाने से तो यह टस से मस भी नहीं हुआ। आप अपना मन साफ करके इन्हें पूर्ण परमात्मा समझकर इनके चरणों को धो कर पीओ, ताकि तेरे हृदय का मैल (पाप) साफ हो जाए।
उसी समय द्रौपदी ने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए संत से क्षमा याचना की और सुपच सुदर्शन के चरण अपने हाथों धो कर चरणामृत बनाया। रज भरे (धूलि युक्त) जल को पीने लगी। जब आधा पी लिया तब भगवान कृष्ण जी ने कहा द्रौपदी कुछ अमृत मुझे भी दे दो ताकि मेरा भी कल्याण हो। यह कह कर कृष्ण जी ने द्रौपदी से आधा बचा हुआ चरणामृत पीया। उसी समय वही पंचायन शंख इतने जोरदार आवाज से बजा कि स्वर्ग तक ध्वनि सुनि। तब पाण्डवों की वह यज्ञ सफल हुई।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
काशी बनारस के सुप्रसिद्ध विद्वान व 1400 शिष्यों के गुरु स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे।
एक दिन वहां पर पहले से ही 5 वर्षीय कबीर देव जी ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंचगंगा घाट की सीढ़ियों में लेट गए। अंधेरा होने के कारण रामानंद जी के पैर की खड़ाऊ बालक रूप कबीर देव के सिर में लगी तथा कबीर साहेब जी ने रोने की लीला की।
जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो उनके गले की माला कबीर देव जी के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल और आशीर्वाद भरा सिर पर हाथ रखा।
इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की।
प्रभु कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को तत्वज्ञान समझाया।
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे।
पाँच वर्ष की आयु में रामानन्द जी को गुरु धारण करना
जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौडि़यों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे। श्री रामानन्द जी चारों वेदों के ज्ञाता और पवित्रा गीता जी के विद्वान माने जाते थे। स्वामी रामानन्द जी की आयु 104 वर्ष की हो चुकी थी। काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्रा अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। रामानन्द जी पवित्रा गीता जी व पवित्र वेदों के आधार पर विधिवत् साधना बताते थे। ओ3म् नाम का जाप उपदेश देते थे।
उस दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौडि़यों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममूहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके और देखा कि कहीं बालक को चोट तो नहीं लग गई तथा प्यार से उठाया। उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम - राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, पुत्र राम - राम बोलो, कबीर साहेब के सिर पर हाथ रखा। शिशु रूप में कबीर साहेब चुप हो गए। फिर रामानन्द जी स्नान करने लग गए और सोचा कि बच्चे को आश्रम में ले चलूँगा। जिसका होगा उसके पास भिजवा दूँगा। रामानन्द जी ने स्नान करके देखा तो बच्चा वहाँ पर नही��� है। कबीर साहेब वहाँ से अंतध्र्यान हुए और अपनी झोपड़ी में आ गए। रामानन्द जी ने सोचा कि बच्चा था चला गया होगा, अब उसको कहाँ ढूंढूं?।
कबीर प्रभु द्वारा स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में दो रूप धारण करना
एक दिन स्वामी रामानन्द जी का कोई शिष्य कहीं पर सत्संग कर रहा था। कबीर साहेब वहाँ पर चले गए। वह ऋषि जी श्री विष्णु पुराण की कथा सुना रहा था। वह कह रहा था कि भगवान विष्णु जी सारी सृष्टी के रचनहार हैं, यही पालनकर्ता हैं, यही राम और कृष्ण रूप में अवतार आने वाली परम शक्ति हैं, अजन्मा हैं, श्री विष्णु जी के कोई माता-पिता नहीं हैं। कविरीश्वर ने यह सारी चर्चा सुनी। सत्संग के उपरान्त कबीर परमेश्वर ने कहा ऋषि जी क्या मैं एक प्रश्न पूछ सकता हूँ? ऋषि जी ने कहा कि हाँ बेटा! पूछो। वहाँ सैकड़ों की संख्या में भक्तजन उपस्थित थे। कविर्देव ने कहा कि आप विष्णु पुराण से सत्संग सुना रहे थे कि श्री विष्णु जी परमशक्ति है, इन्हीं से ब्रह्मा और शिव की उत्पत्ति हुई है। ऋषि जी ने कहा कि मैं जो सुनाता हूँ, विष्णु पुराण में ऐसा ही लिखा हुआ है। कबीर साहेब ने कहा कि ऋषि जी मैंने तो आपसे संशय निवारण के लिए प्रार्थना की है आप क्षुब्ध मत होईये। एक दिन मैंने शिवपुराण सुना था। उसमें वह महापुरुष सुना रहे थे कि भगवान शिव से विष्णु और ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई (प्रमाण पवित्रा शिव पुराण, रूद्र संहिता, अध्याय 6 तथा 7 में, गीता प्रैस गोरख पुर से प्रकाशित) देवी भागवत के तीसरे स्कंद में लिखा है कि देवी इन तीनों ब्रह्मा-विष्णु- शिव की माँ है। ये तीनों नाशवान हैं, अविनाशी नहीं हैं। ऋषि जी निरूतर हो गए। क्रोधित होकर बोला तू कौन है ? किसका पुत्रा है ? कबीर साहेब से पहले ही दूसरे भक्तजन कहने लगे कि यह तो नीरु जुलाहे का पुत्रा है। स्वामी रामानन्द जी का शिष्य कहने लगा कि तूने गले में कण्ठी कैसे डाल रखी है ? (वैष्णु साधू तुलसी की एक मणिये की माला गले में डालते हैं, उससे यह प्रमाणित होता है कि इन्होंने विष्णु परंपरा से उपदेश ले रखा है।) तेरा गुरुदेव कौन है? कबीर साहेब ने कहा कि मेरे गुरुदेव वही हैं जो आपके गुरुदेव हैं। वह ऋषि बहुत क्रोधित हो गया तथा बोला कि रे नादान ! तू अछूत जुलाहे का बच्चा और मेरे गुरुदेव को अपना गुरुदेव बताता है। मेरे गुरुदेव का पता है कौन हैं ? श्री श्री 1008 पंडित रामानन्द जी आचार्य। तू जुलाहे का बालक, वे तो तेरे जैसे अछूतों के दर्शन भी नहीं करते और तू कह रहा है कि मैंने उनसे नाम लिया है। देख लो भाई भक्तजनों यह झूठा, कपटी है। अभी गुरुदेव के पास जाऊँगा और उनको तेरी सारी कहानी बताऊँगा। तू छोटी जाति का बच्चा हमारे गुरुदेव की बेइज्जती करता है। कविरग्नि बोले कि ठीक है गुरुदेव जी को बताओ। उस ऋषि ने जाकर श्री रामानन्द जी को बताया कि गुरुदेव एक जुलाहे जाति का लड़का है। उसने तो हमारी नाक काट दी। वह कहता है कि स्वामी रामानन्द जी मेरे गुरुदेव हैं। हे भगवन् ! हमारा तो बाहर निकलना दुःभर हो गया। स्वामी रामानन्द जी बोले कि कल सुबह उसको बुला कर लाओ। कल देखना तुम्हारे सामने मैं उसको कितना दण्ड दूँगा।
स्वामी रामानन्द जी के मन की बात बताना
अगले दिन सुबह-सुबह कबीर साहेब क�� दस नादान व्यक्तियों ने पकड़ कर श्री रामानन्द जी के सामने उपस्थित कर दिया। रामानन्द जी ने यह दिखाने के लिए कि मैं कभी छोटी जाति वालों के दर्शन भी नहीं करता, यह झूठ बोल रहा था कि इसने मेरे से दीक्षा ली है, आगे पर्दा लगा लिया। रामानन्द जी ने पर्दे के पीछे से पूछा कि तू कौन है और तेरी क्या जाति है? तेरा कौन सा पंथ है, अर्थात् किस परमात्मा की पूजा
जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला) कबीर देव के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल, राम नाम से सब कष्ट दूर हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। इस
जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला) कबीर देव के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल, राम नाम से सब कष्ट दूर हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की।
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स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। 5 वर्षीय कबीर देव ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंचगंगा की घाट की सीढ़ियों में लेट गए। अंधेरा होने के कारण रामानंद जी के पैर की खड़ाऊ बालक रूप कबीर देव जी के सिर में लगी। जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला) कबीर देव के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल, राम नाम से सब कष्ट दूर हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की। वास्तव में कबीर परमेश्वर ही रामानंद जी के गुरु थे।
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ऋषि रामानन्द का उद्धार
कबीर साहेब ने महज 5 वर्ष की आयु में 104 वर्ष के स्वामी रामानन्द जी को ज्ञानचर्चा में पराजित कर दिया था। कबीर परमेश्वर ने उन्हें अपना तत्वज्ञान बताया व सतलोक दिखाया। तब स्वामी रामानन्द जी ने कबीर साहेब जी से उपदेश लिया था।
संत गरीबदास जी की वाणी में प्रमाण है- "बोलत रामानन्द जी सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में तुम ही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।”
स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। 5 वर्षीय कबीर देव ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंचगंगा की घाट की सीढ़ियों में लेट गए। अंधेरा होने के कारण रामानंद जी के पैर की खड़ाऊ बालक रूप कबीर देव जी के सिर में लगी। जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला) कबीर देव के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल, राम नाम से सब कष्ट दूर हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की। वास्तव में कबीर परमेश्वर ही रामानंद जी के गुरु थे।
🐚 स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। 5 वर्षीय कबीर देव ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंचगंगा की घाट की सीढ़ियों में लेट गए। अंधेरा होने के कारण रामानंद जी के पैर की खड़ाऊ बालक रूप कबीर देव जी के सिर में लगी। जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला) कबीर देव के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल, राम नाम से सब कष्ट दूर हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की। वास्तव में कबीर परमेश्वर ही रामानंद जी के गुरु थे।
जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला) कबीर देव के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल, राम नाम से सब कष्ट दूर हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की।
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स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। 5 वर्षीय कबीर देव ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंचगंगा की घाट की सीढ़ियों में लेट गए। अंधेरा होने के कारण रामानंद जी के पैर की खड़ाऊ बालक रूप कबीर देव जी के सिर में लगी। जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला) कबीर देव के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल, राम नाम से सब कष्ट दूर हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की। वास्तव में कबीर परमेश्वर ही रामानंद जी के गुरु थे।
#kabirisgod स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। 5 वर्षीय कबीर देव ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंचगंगा की घाट की सीढ़ियों में लेट गए। अंधेरा होने के कारण रामानंद जी के पैर की खड़ाऊ बालक रूप कबीर देव जी के सिर में लगी। जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला) कबीर देव के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल, राम नाम से सब कष्ट दूर हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की। वास्तव में कबीर परमेश्वर ही रामानंद जी के गुरु थे।
काशी बनारस के सुप्रसिद्ध विद्वान व 1400 शिष्यों के गुरु स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे।
एक दिन वहां पर पहले से ही 5 वर्षीय कबीर देव जी ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंचगंगा घाट की सीढ़ियों में लेट गए। अंधेरा होने के कारण रामानंद जी के पैर की खड़ाऊ बालक रूप कबीर देव के सिर में लगी तथा कबीर साहेब जी ने रोने की लीला की।
जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो उनके गले की माला कबीर देव जी के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल और आशीर्वाद भरा सिर पर हाथ रखा।
इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की।
[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: कबीर परमेश्वर स्वामी रामानंद जी की आत्मा को साथ लेकर सतलोक ले गए। बालक रूप धारी कबीर देव जी ने अपने ही अन्य स्वरूप पर चं��र किया जो स्वरूप अत्यधिक तेजोमय ��ा तथा तेजोमय शरीर वाला परमात्मा उस बालक कबीर जी के शरीर में समा गया। इतनी लीला करके स्वामी रामानंद जी की आत्मा को वापस शरीर में भेज दिया तब रामानंद जी को समझ में आया कि यह स्वयं परम दिव्य पुरुष अर्थात आदि पुरुष हैं।
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[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा स्वामी रामानंद जी को शरण में लेने की लीला का वर्णन करते हुए बताया :
[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: स्वामी रामानंद जी को कबीर परमेश्वर जी ने सतलोक दिखाया। जब रामानंद जी ने सतलोक और पृथ्वी लोक पर कबीर परमेश्वर को देखा तो कहा -
दोहूं ठौर है एक तूं, भया एक से दो। गरीबदास हम कारणे, आए हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रुप बिन और न दूजा अंश।।
[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: ऋषि रामानन्द का उद्धार
स्वामी रामानंद जी विष्णु जी की काल्पनिक मूर्ति बनाकर मानसिक पूजा करते थे। एक समय वे ठाकुर जी की मूर्ति पर माला डालना भूल गए। तब कबीर परमात्मा जो कि 5 वर्ष के बालक की लीला कर रहे थे बो���े कि माला की गांठ खोल कर गले में डाल दो स्वामी जी, पूजा खंडित नहीं होगी। तब रामानंद जी ने जो पर्दे के भीतर मन में पूजा कर रहे थे, कबीर परमात्मा को सबके सामने गले लगा लिया।
[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। 5 वर्षीय कबीर देव ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंचगंगा की घाट की सीढ़ियों में लेट गए। अंधेरा होने के कारण रामानंद जी के पैर की खड़ाऊ बालक रूप कबीर देव जी के सिर में लगी। जब स्वामी रामानंद जी रोते हुए बालक को उठाने के लिए झुके तो गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला) कबीर देव के गले में डल गई और उन्होंने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम राम बोल, राम नाम से सब कष्ट दूर हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रखा। इस तरह कबीर परमेश्वर ने रामानंद जी को गुरु धारण करने की लीला की। वास्तव में कबीर परमेश्वर ही रामानंद जी के गुरु थे।
[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: स्वामी रामानंद जी के गुरु
परमात्मा कबीर जी ने ढ़ाई वर्ष की आयु में गंगा घाट पर लीलामय तरीके से स्वामी रामानंद जी को इसलिए गुरु बनाया ताकि आने वाली पीढ़ियों में कोई यह ना कहे की कबीर जी का कौन सा कोई गुरु था।
[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: ऋषि रामानन्द का उद्धार
कबीर साहेब ने महज 5 वर्ष की आयु में 104 वर्ष के स्वामी रामानन्द जी को ज्ञानचर्चा में पराजित कर दिया था। कबीर परमेश्वर ने उन्हें अपना तत्वज्ञान बताया व सतलोक दिखाया। तब स्वामी रामानन्द जी ने कबीर साहेब जी से उपदेश लिया था।
संत गरीबदास जी की वाणी में प्रमाण है- "बोलत रामानन्द जी सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में तुम ही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।”
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[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: परमेश्वर कबीर जी ने अपनी आत्माओं को विभिन्न प्रकार से इस भवसागर से पार करने का प्रयास किया है। कभी किसी का गुरु बनकर तो कभी किसी को गुरु बनाने की लीला करके।
[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: एक बार स्वामी रामानंद जी के संशय को दूर करने के लिए उनके आश्रम में सैंकड़ों लोगों के सामने पांच वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर एक ढाई वर्ष के बालक का दूसरा रुप बनाकर चारपाई पर लेट गए। फिर रामानंद जी के सामने ही ढाई वर्ष के बालक वाला शरीर पांच वर्षीय बालक के शरीर में समा गया।
वहां केवल पांच वर्ष के बालक रूप में कबीर परमेश्वर रह गए।
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[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: कबीर परमेश्वर जी की अजब लीला
पांच वर्ष की आयु के कबीर परमेश्वर ने रामानंद के ब्राह्मण शिष्य को प्रमाण सहित ज्ञान चर्चा के दौरान बताया कि तीनों देवताओं की जन्म-मृत्यु होती है ।
इस बात पर वाद विवाद हुआ और परमेश्वर कबीर जी को पड़कर रामानंद जी के आश्रम ले जाया गया, जहां परमेश्वर कबीर जी ने काल्पनिक पूजा कर रहे रामानंद जी के मन की बात बता दी। इसके बाद रामानंद जी ने परमेश्वर कबीर जी को गले लगा लिया और दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाया। लेकिन परमात्मा कबीर जी ने रामानंद जी को समाज की नजर में अपना गुरु बना रहने को कहा ताकि आने वाले समय में लोग ये ना कहें की कबीर जी ने कौनसा गुरु बनाया था।
[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: स्वामी रामानंद जी को कबीर परमेश्वर ने किस तरह गुरु बनाया उसका वर्णन करते हुए संत गरीबदास जी कहते हैं कि परमेश्वर कबीर जी ने रामानंद के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि
[14/06, 7:09 am] +91 83078 98929: स्वामी रामानंद जी, कबीर परमात्मा की सामर्थता को देखकर कहते हैं कि आप स्वयं भगवान तो हो ही साथ ही आप सच्चे संत, सतगुरु भी हो।
स्वामी रामानंद जी श्री विष्णु जी की मानसिक पूजा करते थे। उस दौरान मूर्ति में माला अटक गई जिसका समाधान भी कबीर परमेश्वर ने स्वामी रामानंद जी को बताया और अपनी समर्थता का परिचय दिया।
बोलत रामानंदजी, हम घर बड़ा सुकाल। गरीबदास पूजा करें, मुकुट फही जदि माल।।
सेवा करौ संभाल करि, सुनि स्वामी सुर ज्ञान। गरीबदास शिर मुकुट धरि माला अटकी जान।।
स्वामी घुडी खोलि करि, फिरि माला गल डार। गरीबदास इस भजन कूं जानत है करतार।।