Tumgik
#संग्राम सिंह की शादी
rudrjobdesk · 2 years
Text
Payal-Sangram Wedding: एक-दूजे के हुए पायल रोहतगी और संग्राम सिंह, देखें शादी की फर्स्ट PHOTOS
Payal-Sangram Wedding: एक-दूजे के हुए पायल रोहतगी और संग्राम सिंह, देखें शादी की फर्स्ट PHOTOS
फोटोज में पायल लाल लंहगे में बेहद खूबसूरत लग रही हैं और संग्राम सिंह ने व्हाइट शेरवानी पहनी है, जिसमें वह बहुत ही हैंडसम लग रहे हैं. (फोटो साभारः इंस्टाग्रामः @sangramsingh_wrestler) Source link
View On WordPress
0 notes
studycarewithgsbrar · 2 years
Text
संग्राम सिंह और पायल रोहतगी ने मुंबई में किया वेडिंग रिसेप्शन
संग्राम सिंह और पायल रोहतगी ने मुंबई में किया वेडिंग रिसेप्शन
जुलाई में शादी करने वाले संग्राम सिंह और पायल रोहतगी ने 27 अगस्त को मुंबई में वेडिंग रिसेप्शन रखा था। संग्राम काले रंग के सूट में और पायल लाल अंजुम कुरैशी की पोशाक में दीप्तिमान लग रही थी। “हम आदमी और पत्नी के रूप में अपने जीवन के एक खूबसूरत दौर से गुजर रहे हैं।” पायल ने कहा। !function (f, b, e, v, n, t, s) if (f.fbq) return; n = f.fbq = function () n.callMethod ? n.callMethod.apply(n,…
View On WordPress
0 notes
cinnewsnetwork · 2 years
Text
मोहब्बत की नगरी में अभिनेत्री पायल रोहतगी लेंगी संग्राम संग सात फेरे
मोहब्बत की नगरी में अभिनेत्री पायल रोहतगी लेंगी संग्राम संग सात फेरे
अभिनेत्री पायल रोहतगी और रेसलर संग्राम सिंह दोनों की प्रेम कहानी 12 साल पहले आगरा-मथुरा हाईवे से शुरू हुई थी। जो अब सात फेरे लेकर सात जन्मो के लिए बांधने जा रहे है, फिल्म अभिनेत्री पायल रोहतगी और रेसलर संग्राम सिंह 9 जुलाई को आगरा में शादी करने वाले हैं। शादी की रस्में आगरा के जेपी पैलेस होटल में होंगी। विवाह के लिए पायल और संग्राम सिंह दोनों गुरुवार को आगरा पहुंच गए हैं। शादी से पहले उन्होंने…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
currentnewsss · 3 years
Text
*Finally! Sangram Singh Announces Marriage With Payal Rohatgi On Holi. Will Be Hitched This Day In July!
*Finally! Sangram Singh Announces Marriage With Payal Rohatgi On Holi. Will Be Hitched This Day In July!
*आखिरकार! होली पर संग्राम सिंह ने पायल रोहतगी के साथ किया शादी का ऐलान इस दिन जुलाई में होगी शादी!(फोटो साभार: इंस्टाग्राम) एक्ट्रेस पायल रोहतगी लॉक अप शो की मजबूत दावेदार बनी हुई हैं और अच्छा खेल रही हैं। उनके साथी अर्जुन पुरस्कार विजेता पहलवान संग्राम सिंह ने भी घोषणा की कि पायल और वह इस साल पता करेंगे। जी हाँ, होली से एक दिन पहले ट्विटर पर जल्द होने वाली शादी की घोषणा करते हुए संग्राम सिंह ने…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
newskey21 · 3 years
Text
'हमने मार्च में शादी की योजना बनाई लेकिन...'
‘हमने मार्च में शादी की योजना बनाई लेकिन…’
संग्राम सिंह जुलाई में पायल रोहतगी के साथ शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं। होली से एक दिन पहले, संग्राम सिंह ने पुष्टि की कि वह जल्द ही अपनी मंगेतर पायल रोहतगी से शादी करेंगे। उन्होंने ट्विटर पर अपनी शादी की तारीख की घोषणा की। पहलवान संग्राम सिंह ने घोषणा की है कि वह जल्द ही अपनी मंगेतर पायल रोहतगी के साथ शादी के बंधन में बंध जाएंगे। पायल वर्तमान में कंगना रनौत के रियलिटी शो ‘लॉक अप’ में एक…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
abhay121996-blog · 3 years
Text
परौंख के 'राम' दोबारा बनें राष्ट्रपति, यही है कामना! Divya Sandesh
#Divyasandesh
परौंख के 'राम' दोबारा बनें राष्ट्रपति, यही है कामना!
कानपुर देहात। कानपुर देहात के छोटे से गांव परौंख में जन्मे रामनाथ कोविंद को आज से चार साल पहले एनडीए की ओर से राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया था। उस समय गांव वाले ही नहीं, पूरे  प्रदेश के लोग कभी इस बात की कल्पना भी नहीं किये थे। उस दौरान गांव के लोगों से जब मीडियाकर्मी बात करते थे तो उनके चेहरों पर साफ दिखता था कि दिन में खुशी का सपना देख रहे हैं। उन पलों को ‘हिन्दुस्थान समाचार’ ने भी अहसास किया था। 
ठीक चार साल बाद जब मीडियाकर्मी राष्ट्रपति के आगमन पर उनके  गांव पहुंचे तो गांव के लोग एक बार फिर सपना देखने लगे कि गांव के ‘राम’ ​दोबारा राष्ट्रपति बनेंगे। इस सपने को उस समय और बल मिला, जब दो दिन पहले दिल्ली से कानपुर नगर जाते समय राष्ट्रपति ने झींझक स्टेशन पर अपने गांव के साथ आसपास के ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि अब उत्तर प्रदेश से राष्ट्रपति बनने का रास्ता खुल गया है।
देश के राष्ट्रपति बनने के बाद रामनाथ कोविंद शुक्रवार को छठवीं बार अपनी शैक्षणिक स्थली कानपुर नगर आये। इस बार उन्होंने अपने दौरे को हवाई यात्रा की जगह ट्रेन से करना सुनिश्चित किया। चार दिवसीय इस यात्रा में यह भी सुनिश्चित किये कि अबकी बार अपने पैतृक गांव परौंख जाना है।  तय हुआ कि  ट्रेन से जाते समय अपने गांव के नजदीक झींझक और रुरा स्टेशन पर अपने चहेतों से मिलना भी है। राष्ट्रपति की इच्छा के अनुसार ऐसा ही हुआ और शुक्रवार को प्रेसीडेंशियल महाराजा ट्रेन से उन्होंने यात्रा की। परौंख आने की जानकारी पर करीब दो सप्ताह से गांव वालों में खुशी का ठिकाना नहीं है। 
यह खबर भी पढ़ें: बिना भूकंप के अचानक हिलने लगी 980 फीट ऊंची इमारत, देखे वायरल वीडियों में कैसे जान बचाने के लिए भाग रहे है लोग
राष्ट्रपति के आने की खबर पर व प्रशासन की ओर से कराई जा रही व्यवस्थाओं को देखते हुए ग्रामीणों के मन  में अनायास आने लगा कि परौंख के राम यानी रामनाथ कोविंद दोबारा राष्ट्रपति बन जायें। हालांकि यह असंभव सा लगता है। देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जो बिहार से आते थे, उनको छोड़कर कोई भी दोबारा राष्ट्रपति नहीं बना, लेकिन राजनीति में सब कुछ संभव है। ग्रामीणों के इस सपने को उस समय पंख लग गये, जब दो दिन पहले झींझक स्टेशन पर अपनों के बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यह कह दिया कि आपके आर्शीवाद से राष्ट्रपति बना। यह भी कहा कि अब उत्तर प्रदेश से राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ हो गया है। 
जरूरत इस बात की है कि आप अपने को कहां तक ले जा पाते हैं। राष्ट्रपति का यह बयान हालांकि राजनीतिक नहीं है और राष्ट्रपति पद की गरिमा के अनुरुप भी है। फिर भी गांव वालों को यह लगने लगा कि हमारे ‘राम’ दोबारा राष्ट्रपति बनेंगे। इसको लेकर ग्रामीणों में अभी से मन्नतों का दौर शुरू हो गया है और आज से चार वर्ष पहले की भांति सभी दिन में सपना देख रहे हैं। ग्रामीणों का मानना है कि देश की राजनीतिक परिस्थितियों में हमारे राम फिट बैठते हैं और हमारी मन्नतों से असंभव संभव में बदल जाएगा।
यह खबर भी पढ़ें: परंपरा निभाने में रुक गई शादी, बिना सात फेरे लिए दुल्हन चली ससुराल
ग्रामीणों का कहना है राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के बालसखा व सेवानिवृत्त शिक्षक राजकिशोर सिंह को जब से जानकारी हुई कि बालसखा गांव आ रहे हैं तो खुशी से उनकी आंखों से नींद गायब हो गई है। उनके परिजन बताते हैं कि रात में जगकर राष्ट्रपति के साथ जो फोटोज हैं उनको देखते रहते हैं। राजकिशोर सिंह से जब बात की गई तो कहा कि मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है और मेरा बालसखा अपनी माटी पर आ रहा है। उन्होंने कहा कि मैं राष्ट्रपति से उम्र में बड़ा हूं, पर हमारी दोस्ती गांव ही नहीं, आसपास के गावों में मिसाल मानी जाती थी। आगे कहा कि शरीर कमजोर हो गया है, लेकिन जब से बालसखा राष्ट्रपति बने तो प्रफुल्लित मन से छोटा मोटा दर्द समझ में ही नहीं आता। उन्होंने कहा कि मेरी तमन्ना है कि बालसखा एक बार फिर राष्ट्रपति बने। गांव के प्रधान संग्राम सिंह ने कहा कि ईश्वर से प्रार्थना है कि बाबा दोबारा राष्ट्रपति बन जाये ताकि गांव का और अधिक विकास हो सके। कहा कि गांव के बहुत से लोग रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं। हमें उम्मीद है कि बाबा के दोबारा राष्ट्रपति बनने पर रोजगार के लिए भटक रहे युवाओं को गांव में ही रोजगार मिल जाएगा। 
औद्योगिक इकाइयां लगाने की करेंगे मांग राष्ट्रपति के बड़े भाई रामस्वरूप कोविंद ने बताया कि उनकी भी अपने भाई से मिलने की बहुत इच्छा थी, लेकिन कोविड की वजह से नहीं मिल पाये। अब वो गांव आ रहे हैं, ये बहुत खुशी की बात है और उनके आने से पूरे गांव में खुशी की लहर है। भाई ने गांव आने से पहले बहुत विकास कराया है, लेकिन राष्ट्रपति से मिलकर अब गांव और क्षेत्र के लोगों को रोजगार के अवसर के लिए औद्योगिक इकाइयां गांव में लगाने की मांग करेंगे। 
लड़कियों को गांव में ही मिल रही शिक्षा गांव में बने झलकारी बाई इंटर कालेज के प्रिंसिपल विमल कुमार अग्निहोत्री ने बताया कि राष्ट्रपति की प्रेरणा से ये स्कूल शुरू किया गया था। उस समय पांच कमरे बने थे। राष्ट्रपति का  गांव में स्कूल खोलने का उद्देश्य ये था कि गांव की लड़कियों को बाहर शिक्षा के लिए न जाना पड़े। आज उनकी प्रेरणा से स्कूल में 12 कमरे बन गए हैं और गांव की लड़कियों को गांव में ही बेहतर शिक्षा मिल रही है।
Download app: अपने शहर की तरो ताज़ा खबरें पढ़ने के लिए डाउनलोड करें संजीवनी टुडे ऐप
0 notes
sablogpatrika · 3 years
Text
आजाद भारत के असली सितारे - 24
Tumblr media
चिपको के रहनुमा : सुन्दरलाल बहुगुणा        चिपको आन्दोलन की शुरुआत उत्तराखण्ड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) के चमोली जिले में 1970 में हुई थी। इसकी पृष्ठभूमि में उसी वर्ष आयी अलकनंदा नदी की प्रलयकारी बाढ़ थी जिसकी तबाही ने उत्तराखण्ड के जनजीवन को बुरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया था। इस बाढ़ में अलकनंदा का जलस्तर 538 मीटर तक बढ़ चुका था। पर्यावरणविशेषज्ञों का मानना था कि अलकनंदा की इस बाढ़ का मुख्य कारण मानव जनित कृत्य ही हैं। बाढ़ को रोकने में जंगलों की प्रमुख भूमिका होती है। इसलिए जंगलों को बचाने के लिए पहाड़ के प्रबुद्ध नागरिकों ने कमर कस ली थी। इसी बीच 1972 में वन विभाग ने चमोली जिले में टेनिस रैकेट बनाने के लिए जंगल से 300 पेड़ काटने का ठेका इलाहाबाद स्थित साइमन कंपनी को दे दिया। क्षेत्र में इसका कड़ा विरोध हुआ और कांट्रैक्ट खत्म कर दिया गया। फिर भी 1973 ई. में शासन ने जंगलों को काटकर अकूत राजस्व बटोरने की नीति बनाई।  जंगल कटने का सर्वाधिक असर महिलाओं पर पड़ा। उनके लिए घास और लकड़ी की कमी होने लगी। हिंसक जंगली जानवर गावों में आने लगे। धरती खिसकने व धँसने लगी। गाँव के लोगों और खासकर महिलाओं का विरोध जारी रहा। इसके बावजूद वन विभाग ने बड़ी चालाकी से जनवरी 1974 में पेड़ों की कटाई का फिर से ठेका दे दिया। गाँव वालों ��े फिर से इसका विरोध किया। किन्तु इस बार ठेकेदार ने गाँव वालों से छल किया। जनवरी का महीना था। रैंणी गाँव के वासियों को जब पता चला कि उनके इलाके से गुजरने वाली सड़क-निर्माण के लिए 2451 पेड़ों का छपान (काटने के लिए चुने गये पेड़) हुआ है तो पेड़ों को अपना भाई-बहन मानने वाले गाँववासियों में इससे हड़कंप मच गयी और वे हर परिस्थिति में इसे रोकने को कटिबद्ध हो गये। ठेकेदार को पेड़ काटने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
Tumblr media
23 मार्च 1974 के दिन रैंणी गाँव में कटान के आदेश के खिलाफ, गोपेश्वर में एक रैली का आयोजन हुआ था। रैली में गौरा देवी, महिलाओं का नेतृत्व कर रही थीं। प्रशासन ने सड़क निर्माण के दौरान हुई क्षति का मुआवजा देने की तारीख 26 मार्च तय की थी, जिसे लेने के लिए गाँववालों को चमोली जाना था। दरअसल यह वन विभाग की एक सुनियोजित चाल थी। उनकी योजना थी कि 26 मार्च को चूँकि गाँव के सभी पुरुष चमोली में रहेंगे तो सामाजिक कार्यकर्ताओं को वार्ता के बहाने गोपेश्वर बुला लिया जाएगा और इसी दौरान ठेकेदारों से कहा जाएगा कि 'वे मजदूरों को लेकर चुपचाप रैंणी पहुँचें और कटाई शुरू कर दें। ' इस तरह नियत कार्यक्रम के अनुसार प्रशासनिक अधिकारियों के इशारे पर ठेकेदार मजदूरों को साथ लेकर देवदार के जंगलों को काटने निकल पड़े। उनकी इस हलचल को एक लड़की ने देख लिया। उसे ये सब कुछ असामान्य लगा। उसने दौड़कर यह खबर गौरा देवी को दिया। गौरा देवीने कार्यवाही में कोई विलंब नहीं किया। उस समय, गाँव में मौजूद 27 महिलाओं और कुछ बच्चों को लेकरवे भी जंगल की ओर चल पड़ीं। देखते ही देखते महिलाएँ मजदूरों के झुंड के पास पहुँच गयीं। उस समय मजदूर अपने लिए खाना बना रहे थे। गौरा देवी ने उनसे कहा, “भाइयों, ये जंगल हमारा मायका है। इससे हमें जड़ी-बूटी, सब्जी-फल और लकड़ी मिलती है। जंगल को काटोगे तो बाढ़ आएगी, हमारा सबकुछ बह जाएगा। , आप लोग खाना खा लो और फिर हमारे साथ चलो, जब हमारे मर्द लौटकर आ जाएँगे तो फैसला होगा। “ ठेकेदार और उनके साथ चल रहे वन विभाग के लोगों ने महिलाओं को धमकाया और गिरफ्तार करने की धमकी दी। लेकिन महिलाएँ अडिग थीं। ठेकेदार ने बंदूक निकालकर डराना चाहा तो गौरा देवी ने अपनी छाती तानकर गरजते हुए कहा, 'लो मारो गोली और काट लो हमारा मायका', इस पर सारे मजदूर सहम गये। गौरा देवी के इस अदम्य साहस और आह्वान पर सभी महिलाएँ पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गयीं और उन्होंने कहा, 'इन पेड़ों के साथ हमें भी काट डालो। '
Tumblr media
देखते ही देखते, काटने के लिए चिह्नितपेड़ों को पकड़कर महिलाएँ तैनात हो गयीं। ठेकेदार के आदमियों ने गौरा देवी को हटाने की हर कोशिश की लेकिन गौरा देवी ने आपा नहीं खोया और अपने विरोध पर अडिग रहीँ। आखिरकार थक-हारकर मजदूरों को लौटना पड़ा और इन महिलाओं का मायका कटने बच गया। अगले दिन यह खबर चमोली मुख्यालय तक पहुंची। पेड़ों से चिपकने का ये नायाब तरीका अखबारों की सुर्खियां बन गयीं। इस आन्दोलन ने सरकार के साथ-साथ वन प्रेमियों का भी ध्यान आकर्षित किया। इस तरह अलकनंदा की घाटी में शुरू हुआ यह आन्दोलन धीरे धीरे अल्मोड़ा, नैनीताल आदि जिलों में दूर दूर तक में फैल गया। मामले की गंभीरता को समझते हुए सरकार ने डॉ. वीरेंद्र कुमार की अध्यक्षता में एक जाँच समिति गठित की। जाँच में पाया गया कि रैंणी के जंगलों के साथ ही अलकनंदा में बाईं ओर मिलने वाली समस्त नदियों, ऋषि गंगा, पाताल गंगा, गरुड़ गंगा, विरही और नंदाकिनी के जल ग्रहण क्षेत्रों और कुंवारी पर्वत के जंगलों की सुरक्षा पर्यावरणीय दृष्टि से बहुत आवश्यक है। पाँचवीं क्लास तक पढ़ी चमोली जिले की इस आदिवासी महिला को दुनिया भर में ‘चिपको वूमेन फ्रॉम इंडिया’ कहा जाने लगा। इस तरह चिपको आन्दोलन' गौरा देवी के अदम्य साहस और सूझबूझ की कहानी है। चिपको आन्दोलन' का आप्तवाक्य है- “क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार। “ धीरे-धीरे एक दशक के भीतर ही यह आन्दोलन समूचे उत्तराखण्ड में फैल गया। इसे आगे ले जाने में सुन्दरलाल बहुगुणा (जन्म-9.1.1927) और उनके सहयोगियों-चंडी प्रसाद भट्ट,गौरा देवी,गोविंद सिंह रावत, वासवानंद नौटियाल और हयात सिंहकी प्रमुख भूमिका थी। इस आन्दोलन की सबसे खास बात यह थी कि इसमें स्त्रियों ने बड़ी संख्य़ा में भाग लिया था। सुन्दरलाल बहुगुणा ने अपना पूरा जीवन चिपको आन्दोलन को समर्पित कर दिया चिपको आन्दोलन से पहले 1730 ई. में जोधपुर के खेजड़ली गाँव में अमृतादेवी विश्वनोई के नेतृत्व में इसी तरह का एक आन्दोलन हो चुका था जिसमें जोधपुर के महाराजा के आदेश के विरुद्ध बिश्नोई समाज की महिलाएँ पेड़ से चिपक गयी थीं और उन्होंने पेड़ों को काटने से रोक दिया था किन्तु इस आन्दोलन में 630 लोगों ने अपना बलिदान दिया था। चमोली के चिपको आन्दोलन को विश्वनोई समाज के इस आन्दोलन से अवश्य प्रेरणा मिली होगी।
Tumblr media
सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म देवों की भूमि उत्तराखण्ड के सिल्यारा नामक स्थान पर हुआ। उनके पिता का नाम अम्बादत्त बहुगुणा और माँ का नाम पूर्णा देवी था। अम्बादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत के वन अधिकारी थे। सुन्दरलाल अपने माता पिता की छठीं संतान थे। उनसे बड़े तीन भाई और दो बहनें थीँ। बचपन से ही सुन्दरलाल बहुगुणा को पढ़ने- लिखने का खूब शौक था किन्तु संयोग से बचपन में ही वे श्रीदेव सुमन के सम्पर्क में आ गये। श्रीदेव सुमन टिहरी रियासत की राजशाही के विरुद्ध विद्रोह करने वाले भारत के अमर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं। श्रीदेव सुमन को जब गिरफ्तार किया गया तब टिहरी जेल से उनका एक वक्तव्य राष्ट्रीय दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ और ‘वीर अर्जुन’ में छपा। टिहरी की जेल से दिल्ली तक यह वक्तव्य पहुचाने में मुख्य भूमिका सुन्दरलाल बहुगुणा की थी। उन्हें इसके लिए जेल की सजा भी हुई। प्रधानाध्यापक के आग्रह पर पुलिस की निगरानी में उन्होंने उस वर्ष परीक्षा दी थी और उसके बाद उन्हें नरेन्द्रनगर जेल भेज दिया गया जहाँ उन्हें कठोर यातनाएं दी गयी। वहाँ से वे गुप-चुप तरीके से लाहौर भाग गये। लाहौर में सुन्दरलाल बहुगुणा ने सनातन धर्म कॉलेज से बी.ए. की पढ़ाई की। लाहौर में टिहरी गढ़वाल के रहने वाले लोगों ने ‘प्रजामंडल’ की एक शाखा बनाई थी जिसमें सुन्दरलाल बहुगुणा ने सक्रिय रूप से भागीदारी की। इस बीच टिहरी से भागे सुन्दरलाल बहुगुणा के लाहौर होने की खबर पुलिस तक पहुँच गयी और लाहौर में खोज शुरू हुई। इससे बचने के लिये सुंदरलाल बहुगुणा ने अपना पूरा हुलिया बदल लिया और लाहौर से दो सौ किमी दूर स्थित एक गाँव लायपुर में सरदार मान सिंह के नाम से रहने लगे। यहाँ अपनी आजीविका के लिये वे सरदार घुला सिंह के तीन बेटे और दो बेटियों को पढ़ाने लगे। 1947 में लाहौर से बी.ए. की परीक्षा पासकर सुन्दरलाल बहुगुणा टिहरी वापस लौट आये। समाज सेवा उनका स्वभाव था। सन 1949 में वे मीराबेन तथा ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आए। वे गाँधी जी के पक्के अनुयायी बन गये। उन दिनों राजनीति में भी उनकी गहरी रुचि थी, किन्तु 1956 में शादी के बाद वे राजनीति से दूर हो गये और गाँव में रहते हुए सामाजिक कार्यों से अपने को पूरी तरह जोड़ दिया। उनकी पत्नी विमला, सरला बहन की सबसे प्रिय शिष्या थी और वे स्वयं मीराबेन के शिष्य थे। दोनों ने मिलकर बालगंगा नदी के किनारे सिल्यारा गाँव में अपने लिये झोंपड़ी बनाई और वहीँ बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। सुन्दरलाल बहुगुणा लड़कों को पढ़ाते और उनकी पत्नी विमला नौटियाल लड़कियों को पढ़ातीं। दोनों के प्रयास से यहीं ‘'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' की नीव पड़ी। बाद में सरला बहन की सलाह पर ही यह नवजीवन मंडल ‘नवजीवन आश्रम’ में बदल गया। यह संगठन स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करने लगा। वे दलित समुदाय के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए काम करने लगे और उनके लिए उन्होंने टिहरी में ‘ठक्कर बाप्पा होस्टल’ की स्थापना की। उन्होंने दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए आन्दोलन छेड़ा और शराब की दुकानों को बंद करने के लिए उन्होंने सोलह दिन तक अनशन किया। 1960 के बाद उन्होंने अपना ध्यान पेड़ों की रक्षा पर केन्द्रित किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में ‘वृक्षमित्र’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये। चिपको आन्दोलन की मान्यता है कि वनों का संरक्षण और संवर्धन केवल कानून बनाकर या प्रतिबंधात्मक आदेशों के द्वारा नहीं किया जा सकता है। वनों के पतन के लिए वन प्रबन्धन सम्बन्धी नीतियाँ ही दोषपूर्ण हैं। एक ओर सरकारी संरक्षण में वन की उपजों को ऊँची कीमत पर बेचा जाता है तो दूसरी तरफ वनों में रहने वाले लोगों की जलाऊ लकड़ी, चारा पत्ती जैसी आवश्यकताएँ जो कानून से उन्हें प्राप्त है, आज की सरकारी नीतियों द्वारा छीन ली गयी हैं चिपको आन्दोलन ने ग्रामीण महिलाओं में न केवल पर्यावरण संरक्षण की चेतना विकसित की है बल्कि व्यवस्था में भागीदारी के लिए नेतृत्व का विकास भी किया है। अब वन पंचायतों पर महिलाओं का भी कब्जा होने लगा है। आज के वनों के संरक्षण में सबसे अगली कतार में महिलाएँ स्वत: स्फूर्त रूप में खड़ी हैं। चिपको आन्दोलन प्रारम्भ में त्वरित आर्थिक लाभ का विरोध करने का एक सामान्य आन्दोलन था किन्तु बाद में यह पर्यावरण सुरक्षा तथा स्थाई अर्थव्यवस्था का एक अभिनव आन्दोलन बन गया। चिपको आन्दोलन से पूर्व वनों का महत्व मुख्य रूप से वाणिज्यिक था। व्यापारिक दृष्टि से ही वनों का बड़े पैमाने पर दोहन किया जाता था। चिपको आन्दोलनकारियों द्वारा वनों के पर्यावरणीय महत्व की जानकारी सामान्य जन तक पहुँचाई जाने लगी। इस आन्दोलन की धारणा के अनुसार वनों की पर्यावरणीय उपज है, ईंधन, चारा, खाद, फल और रेशा। इसके अतिरिक्त मिट्टी तथा जल वनों की दो अन्य प्रमुख पर्यावरणीय उपज हैं जो मनुष्य के जिन्दा रहने का आधार हैं। इस तरह यह आन्दोलन वनों की अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आन्दोलन था। चिपको आन्दोलन की मान्यता है कि वनों के संरक्षण के लिए लोकशिक्षण को आधार बनाया जाना चाहिए जिससे और अधिक व्यापक स्तर पर जनमानस को जागरूक किया जा सके। इस प्रकार, चिपको आन्दोलन में पेड़ों की रक्षा के साथ- साथ, वन संसाधनों का वैज्ञानिक तरीके से उपयोग, समुचित संरक्षण और वृक्षारोपण आदि को भी शामिल किया गया। यह आन्दोलन अब केवल पेड़ों से चिपकने तथा उनको बचाने का ही आन्दोलन नहीं है अपितु यह एक ऐसा आन्दोलन बन गया है जो वनों की स्थिति के प्रति जागृति पैदा करने, संपूर्ण वन-प्रबन्ध को एक स्वरूप प्रदान करने और जंगलों एवं वनवासियों की समृद्धि के साथ ही धरती की समृद्धि के प्रति चेतना प्रदान करने वाला आन्दोलन है।
Tumblr media
चिपको आन्दोलन यह संदेश देता है कि वनों से हमारा गहरा रिश्ता है। वन हमारे वर्तमान और भविष्य के संरक्षक हैं। यदि वनों का अस्तित्व नहीं होगा तो हमारा अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। मनुष्य का यह अधिकार है कि वह अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर उपयोग करे लेकिन निर्ममता के साथ नहीं। प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ने की कीमत परनहीं। चिपको आन्दोलन के निरंतर प्रयास के कारण संपूर्ण देश में अब लोग यह समझने और स्वीकार करने लगे हैं कि अगर उन्हें अपनी खोई हुई खुशहाली को फिर से लौटाना है तो उसके लिए उन्हें वनरहित भूमि को पुनः हरियाली से ढकना होगा। इस आन्दोलन का संदेश अब देश की सीमा से बाहर फैल चुका है। उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखण्ड) में इस आन्दोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। इस तरह इस आन्दोलन की मुख्य उपलब्धि यह है कि इसने केंद्रीय राजनीति के एजेंडे में पर्यावरण को एक सघन मुद्दा बना दिया। धीरे-धीरे यह आन्दोलन पूर्व में बिहार, पश्चिम में राजस्थान, उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में कर्नाटक और मध्य भारत में विंध्य तक फैला गया। सुंदरलाल बहुगुणा ने 1981 से 1983 के बीच पर्यावरण को बचाने का संदेश लेकर, चंबा के लंगेरा गाँव से हिमालयी क्षेत्र में करीब 5000 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। यह यात्रा 1983 में विश्वस्तर पर सुर्खियों में रही। उन्होंने यात्रा के दौरान गाँवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया। बहुगुणा ने टिहरी बाँध के खिलाफ आन्दोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी। उनका मानना था कि 100 मेगावाट ��े अधिक क्षमता का बाँध नहीं बनना चाहिए। वे जगह-जगह जो जलधाराएँ हैं, उन पर छोटी-छोटी बिजली परियोजनाएँ बनाये जाने के पक्ष में थे। उनका कहना था कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल बर्बाद हो जाएँगे। उन्होंने कहा कि भले ही बाँध भूकम्प का सामना कर ले लेकिन वहाँ की पहाड़ियाँ नहीं कर पाएँगी। उन्होंने आगाह किया कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गयी हैं। अगर बाँध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा। उन्होंने इसके लिए कई बार भूख हड़ताल की। तत्कालीन प्रधानमन्त्री पी.वी.नरसिम्हा राव के शासनकाल में उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी। सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बाँध पर फिर से काम शुरू किया गया। उनकी भविष्यवाणी का असर अब दिखने लगा है। आजकल नदियों को आपस में जोड़कर पानी की समस्या के हल का सुक्षाव दिया जा रहा है। इस प्रस्ताव से सुन्दरलाल बहुगुणा सहमत नहीं है। उनकी दृष्टि में नदियों को आपस में जोड़ना अप्राकृतिक है। इसे वे मनुष्‍य के स्‍वार्थ की पराकाष्‍ठा कहते है। नदियों को जोड़ने से लगभग एक करोड़ लोग विस्‍थापित होंगे। विकास के नाम पर हो रहे नये प्रयोगों से आम इन्सान वैसे ही अत्यधिक परेशान हैं। पश्चिम इस समस्‍या को भुगत रहा है। अब वह इस मानव विरोधी विकास को हम पर थोप रहा है। इसी तरह बाँधों के बारे में वे कहते हैं कि बाँध पानी की समस्या का हल नहीं है। बाँध का पानी मृत पानी है और नदियों का पानी जिन्दा पानी है। गाँधी जी ने भी बड़े बाँधों के विचार को नकार दिया था। बड़े बाँध तबाही के मंजर हैं। टिहरी बाँध से एक लाख लोगों का विस्थापन हुआ था। विस्थापन सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी है। विस्थापित मनुष्य का मनोवैज्ञानिक पुनर्वास कभी भी नहीं हो सकता। बहुगुणा संभावनाव्यक्त करते हैं कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा। भूस्तर से जल दूर होता जा रहा है। उनके अनुसार आजकल भूमंडलीकरण, उदारीकरण, निजीकरण के नाम पर विकास की जो आँधी चल रही है यह भोगवादी सभ्यता हमें विनाश की ओर ले जा रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ हमारे प्राकृतिक संसाधनों का सिर्फ दोहन कर रही हैं। आज धरती माँ को हम प्यार की नजरों से नहीं, अपितु कसाई की भाँति देखते हैं किन्तु जो समाज प्रकृति को माँ के समान देखेगा वही बचेगा।
Tumblr media
बहुगुणा के अनुसार, “अमेरिका बड़ी शक्ति है जो पूरी दुनिया पर छाना चाहता है। इसलिए भय व खतरा उत्पन्न करके अपना हथियार गरीब देशों में बेचना चाहता है। भारत को कहता है कि पाकिस्तान तुम्हारा दुश्मन है, कभी भी हमला कर सकता है इसलिए हथियार खरीदो। .... व्यापारिक हितों से यूरोपियन देशों ने महासंघ बना लिया। परमाणु ऊर्जा से पर्यावरण का विनाश ही होगा। भारत तो भाग्यशाली देश रहा है। सूर्य यहाँ रोज उगता है। इसलिए ऊर्जा संकट के लिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलशक्ति ऊर्जा, मनुष्य ऊर्जा और पशु ऊर्जा से हम आत्मनिर्भर हो सकते हैं। हाँ इन स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा विकेंद्रित होनी चाहिए, जिससे इसका लाभ आम व्यक्ति को भी मिल सके। “ (अमित कुमार विश्वास द्वारा लिए गये एक साक्षात्कार से, हिन्दी समय डाट काम ) उन्होंने कहा है, “वर्तमान दौर में भूमंडलीकरण, उदारीकरण, निजीकरण के नाम पर जो विकास की आंधी चली है, यह मनुष्य को खतरनाक मोड़ पर ले जा रही है। आज का विकास प्रकृति के शोषण पर टिका है जिसमें गरीब, आदिवासी को प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल किए जाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। भोगवादी सभ्यता ने हम सभी को बाजार में खड़ा कर दिया है। “(https://www.amarujala.com/channels/downloads) बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की ‘फ्रेंड ऑफ नेचर’ नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत किया। इन्हें और भी अनेक पुरस्कार मिले। 1981 में इन्हें पद्मश्री पुरस्कार दिया गया जिसे उन्होंने यह कह कर अस्वीकार कर दिया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता हूँ। चिपको आन्दोलन ने इको-सोशलिज्म और इको-फेमिनिज्म जैसे शब्दों को गढ़ा और इन्हें अंतरराष्ट्रीय बनाया। चिपको आन्दोलन की 45 वीं वर्षगाँठ के अवसर पर गूगल ने डूडल बनाया जिसमें जंगल के एक एक बड़े पेड़ को घेरकर चार औरतें खड़ी हैं और आस पास जंगली जानवर दिखाई दे रहे है। ‘अमर उजाला’ (देहरादून) के 18 दिसम्बर 2020 के अंक में प्रकाशित खबर के अनुसार उन्होंने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आन्दोलन का समर्थन किया है। आज सुन्दरलाल बहुगुणा का 94वाँ जन्मदिन है। उन्हें हम जन्मदिन की हार्दिक बधाई देते हैं और उनके स्वस्थ व सक्रिय जीवन की कामना करते हैं। . Read the full article
0 notes
gujarat-news · 4 years
Text
सूरत में दो व्यक्तियों की आत्महत्या, पुलिस ने की जांच
सूरत में दो व्यक्तियों की आत्महत्या, पुलिस ने की जांच
[ad_1][og_img]
Tumblr media
सूरत, ता। सोमवार 7 दिसंबर 2020
कपूरड़ा में वल्लभाचार्य रोड पर विहल नगर सोसाइटी में रहने वाली 25 वर्षीय पूजा संग्राम सिंह राजावत ने कल रात की पांचवी रात घर में पंखे के हुक से दुपट्टा बांधकर आत्महत्या कर ली।
पूजा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर के अकबरकोट की रहने वाली थी। उसकी तीन साल पहले शादी हुई थी और उसका एक बच्चा है। उनके पति कढ़ाई के काम में शामिल हैं। कपोड़ा पुलिस मामले…
View On WordPress
0 notes
ggsnews24 · 4 years
Photo
Tumblr media
[09/07, 16:28] GGS NEWS 24: *जीजीएस न्यूज़24 ब्यूरो अम्बारी आज़मगढ़ रविन्द्र कुमार यादव* अम्बारी-आजमगढ़:फूलपुर तहसील क्षेत्र के अम्बारी स्थित समाजवादी पार्टी के कार्यालय पर अजय अखिलेश यादव के सौजन्य से समाज वादियों ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवम पूर्व सांसद स्व रामहरख सिंह यादव को किया याद, जनपद.... http://ggsnews24.com/27048/ [09/07, 16:36] GGS NEWS 24: *जीजीएस न्यूज़24 ब्यूरो बिलरियागंज आजमगढ़ सर्वेश पाण्डेय* बिलरियागंज/आजमगढ़ स्थानीय थाना बिलरियागंज के ग्राम पिपरहा दुलियावर गांव विगत वर्ष पूर्व पंकज पुत्र चन्द्रदेव यादव ग्राम पिपनार पोस्ट कनेरी जनपद गाजीपुर निवासी ने अपने बहन की शादी 23-4-17को राजेश यादव पुत्र रामकेर के साथ हुई थी जिसमें बहन के सांस मालती देवी पत्नी रामकेर व ननद अजिंमा व कौशिल्या पुत्रीगण रामकेर.... http://ggsnews24.com/27054/ [09/07, 16:55] GGS NEWS 24: *जीजीएस न्यूज़24 ब्यूरो अहरौला आजमगढ़ संतोष चौबे* अहरौला- गुरूवार को श्री श्री 1008 मौनी बा��ा की कुटी गहजी महिपालपुर मे भाजपा के जिलाध्यक्ष ऋषिकांत राय के नेतृत्व मे मौनी बाबा के आश्रम परिसर मे पीपल, पाकङ, अमरूद,जामुन आदि वृक्ष का रोपण किया गया और पार्टी के सभी लोगो से वृक्षारोपण के लिए संकल्प दिलाया भाज... http://ggsnews24.com/27061/ [09/07, 17:04] GGS NEWS 24: *जीजीएस न्यूज़24 ब्यूरो आज़मगढ़ सरफ़राज़ अहमद* आज़मगढ़ निज़ामाबाद के वार्ड नं0 10 वीर अब्दुल हमीद नगर के एक व्यक्ति को कोरोना संक्रमित पाए जाने के कारण उस मुहल्ले को कंटेंटमेंट जोन घोषित कर दिया गया। कंटेंटमेंट जोन के निरीक्षण के लिए निज़ामाबाद के उपजिलाधिकारी राजीव रत्न सिंह,नगर पं... http://ggsnews24.com/27064/ [09/07, 17:33] GGS NEWS 24: *जीजीएस न्यूज़24 ब्यूरो आज़मगढ़ सरफ़राज़ अहमद* आजमगढ़। समाजवादी पार्टी आजमगढ़ थाना-दीदारगंज ग्राम-राजापुर (हुब्बीगंज) में पुलिस द्वारा नाजायज वसुली को लेकर पुलिस के विरोध फलस्वरूप गाॅव में घुसकर पूरे गाॅव में पुलिस ने नग्न ताण्डव किया। यहाॅ तक गाॅव की भोलीभाली महिलाओं को बुरी तरह मारा पीटा.... http://ggsnews24.com/27070/ [09/07, 17:36] GGS NEWS 24: *जीजीएस न्यूज़24 ब्यूरो अम्बारी आज़मगढ़ रविन्द्र कुमार यादव* अम्बारी-आजमगढ़:फूलपुर तहसील क्षेत्र के अम्बारी स्थित समाजवादी पार्टी के कार्यालय पर अजय अखिलेश यादव के सौजन्य से समाज वादियों ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवम पूर्व सांसद स्व रामहरख सिंह यादव को किया याद, जनपद के स्वतंत्रता सं.... http://ggsnews24.com/27040/ [09/07, 17:45] GGS NEWS 24: *ज https://www.instagram.com/p/CCbbgQ4lZll/?igshid=10nodpdsc6n7z
0 notes
rudrjobdesk · 2 years
Text
कुछ ही पलों में एक हो जाएंगे पायल रोहतगी और संग्राम सिंह, शादी से पहले सामने आई खूबसूरत झलक
कुछ ही पलों में एक हो जाएंगे पायल रोहतगी और संग्राम सिंह, शादी से पहले सामने आई खूबसूरत झलक
Payal Rohtagi Sangram Singh Sangeet Ceremony: अपने बेबाक अंदाज के लिए मशहूर पायल रोहतगी (Payal Rohtagi) और रोहतक के इंटरनेशनल रेसलर संग्राम सिंह जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. आग्रा के जेपी पैलेस में शाम को हिंदू रीति-रिवाजों से शादी की रस्में पूरी होंगी. वहीं शादी से पहले हुई रस्मों की कई झलकें अब तक सामने आ चुकी हैं. इस बीच दोनों का रोमांटिक डांस भी देखने मिला है. दरअसल, बीते दिन संगीत…
View On WordPress
0 notes
iprconsultant · 4 years
Photo
Tumblr media
बप्पा रावल याद है ना, 35 मुस्लिम राजकुमारियों से शादी की थी ।गजनी जीतने के बाद बप्पा ने वहां अपना एक प्रतिनिधि नियुक्त किया। सिर्फ यही नही बप्पा रावल ने कंधार समेत पश्चिम के कंधार, खुरासान, तुरान, इस्पाहन, ईरानी साम्राज्यों को जीतकर उन्हें अपने साम्राज्य में मिला लिया था। इन सभी राज्यो के मुस्लिम शासकों ने अपनी बेटियों की शादी बप्पा रावल से की, कहते है कि उन्होंने 35 मुस्लिम राजकुमारियों से विवाह किया था। लगभग 20 वर्ष तक शासन करने के बाद उन्होंने वैराग्य ले लिया और अपने पुत्र को राज्य देकर शिव की उपासना में लग गये। महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा), उदय सिंह और महाराणा प्रताप जैसे श्रेष्ठ और वीर शासक उनके ही वंश में उत्पन्न हुए थे। उन्होंने अरब की हमलावर सेनाओं को कई बार ऐसी करारी हार दी कि अगले 400 वर्षों तक किसी भी मुस्लिम शासक की हिम्मत भारत की ओर आंख उठाकर देखने की नहीं हुई। बहुत बाद में महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत की थी और कई बार पराजित हुआ था वामपन्थी इतिहासकारों की कुटिल नीति वामपन्थी इतिहाकारो का खेल समझिए, वर्ष 712 में मुहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर को पराजित किया। परंतु उसके बाद सीधे बारहवीं शताब्दी में मुहम्मद गोरी का आक्रमण मिलता है। आठवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक क्या अरब आक्रमणकारी उस एक जीत का जश्न मना रहे थे? वास्तव में इस पूरे काल में अरब आक्रमणकारियों को भारतीय योद्धा खदेड़े हुए थे। उस कालखंड में अरबों को पराजित करने वाला एक महानायक योद्धा था बप्पा रावल। अरब की आंधी का सीधा सामना उस समय मेवाड़ के सैनिकों और शासकों ने देश का सीमारक्षक बनकर निभाई और भारतवर्ष के सम्मान की रक्षा की, अन्यथा देश इस्लाम की आंधी में नेस्तनाबूत हो जाता और सनातन धर्म जिसे आज हिन्दू कहा जाता है, वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पारसियों और यहूदियों की भांति मातृभूमि से पृथक हो चुका होता। यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि भला हो मेवाड़ के गहलोत और भीनमाल के प्रतिहारों का, जिनके कारण आज भारतवर्ष में हिन्दू स्वयं को हिन्दू कहने का अधिकार रखता है। जय माँ भवानी।। साभार Copied https://www.instagram.com/p/CB8AS2AJMk2/?igshid=15cxv2v2oze3a
0 notes
sahu4you · 4 years
Text
शहीद दिवस पर भाषण - Shaheed Diwas Speech in Hindi
Tumblr media
पंजाब के लायलपुर के एक गाँव बंगा में, एक शिशु का जन्म हुआ। दादी ने बड़े प्यार से उस बच्चे का नाम भगत सिंह रखा। सब भगत सिंह को खूब प्यार करते। घर में दादा-दादी, माता-पिता, बडे़ भाई-बहन और चाचा-चाची साथ रहते। सबके बीच खेलकर भगत सिंह बड़ा होने लगा।
Tumblr media
Bhagat Singh Quotes and BIography in Hindi Bhagat Singh के जन्म के समय भारत में अंग्रेजों का शासन था। भगत सिंह के दादा, पिता और चाचा सब देश को आजाद कराने की कोशिश में जी-जान से जुटे हुए थे। घर के लोगों की बातचीत का भगत सिंह के मन पर गहरा असर पड़ा। वह बचपन से ही भारत की आजादी के सपने देखने लगा। सॅंझले चाचा की मृत्यु पर उसकी चाची रो रही थीं। धोखेबाज दोस्त पर शायरी in Hindi भाई बहन पर अनमोल विचार चाची को तसल्ली देते हुए बालक भगत सिंह ने कहा- "चाची जी, रोइए मत। जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, अंग्रेजों को भारत से भगा। दूंगा और चाचा जी को वापस लाऊंगा।" चाची ने भगत को सीने से चिपका लिया।
शहीद भगत सिंह पर निबंध
पढ़ने लायक उम्र होने पर भगत सिंह को गाँव के प्राइमरी स्कूल में भर्ती करा दिया गया। वे पढ़ाई में बहुत तेज थे। भगत सिंह अपने गुरू का बहुत आदर करते थे। जब वे चौथी कक्षा में थे उनके मास्टर जी ने बच्चों से पूछा- "बच्चों, तुम बड़े होकर क्या करना चाहोगे?" एक बच्चे ने कहा- "मैं बड़ा होकर खेती-बाड़ी करूँगा और फिर शादी करूँगा।" सब हॅंस पड़े, भगत सिंह ने अकड़कर कहा- ये सब बड़े काम नहीं हैं। मैं हरगिज शादी नहीं करूँगा। मैं तो अंग्रेजों को देश से निकाल बाहर करूँगा। सब भगत सिंह की तेजी देखते रह गए। मास्टर जी ने उन्हें शाबाशी देकर कहा- भगत सिंह जरूर अपना वादा पूरा करेगा। पंजाब के जलियाँवाला बाग में एक सभा हो रही थी। अंग्रेजों ने बेकसूर हिंदुस्तानियों पर गोलियाँ बरसा दीं। सैकड़ों देशवासियों की जानें चली गई। उस वक्त भगत सिंह सिर्फ बारह बर्ष के थे। उनके मन में आग धधक उठी। निहत्थों पर गोलियाँ चलाना अन्याय है। भगत सिंह जलियाँवाला बाग में अकेले चले गए। चारों ओर सिपाही थे। वे जरा भी नहीं डरे। बाग की मिट्टी एक शीशी में भरकर ले आए। घर में आम आए हुए थे। भगत सिंह को आम बहुत पसंद थे। उनकी बहन ने उन्हें आम खाने को बुलाया। भगत सिंह ने आम खाने से इनकार कर दिया। बहन को अकेले में ले जाकर शीशी में बंद मिट्टी दिखाकर कहा- अंग्रेजों ने हमारे सैकड़ों लोग मार दिए। ये खून उन्हीं शहीदों का है। मुझे अंग्रेजों से इस खून का बदला लेना है। भगत सिंह कई वर्षो तक उस शीशी को अपने पास रखे रहे और उस पर फूल चढ़ाते रहे। कॅलेज पहुंचने पर गाँधी जी की बातों का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। वे ।कॉलेज में भी मित्रों के साथ भारत की आजादी की बातें करते। नेशनल कॉलेज में उन्होंने महाराणा प्रताप, सम्राट चंद्रगुप्त, भारत दुर्दशा जैसे नाटकों में भाग लिया। इन सभी नाटकों में देश-भक्ति की भावना थी। भगत सिंह की तरह उनके मित्र सुखदेव और राजगुरू भी आजादी के दीवाने थे। तीनों मिलकर गाते- "मेरा रंग दे बसंती चोला, माँ रंग दे बसंती चोला।" भगत सिंह के माता-पिता उनका विवाह कर देना चाहते थे, पर भगत सिंह को तो देश को आज़ाद कराना था। उन्होंने माता-पिता से कह दिया- "गुलाम देश में सिर्फ़ मौत ही मेरी पत्नी हो सकती है। मैं देश को आजादी दिलाए बिना शादी नहीं कर सकता।" अपने देश को आजाद कराने के लिए भगत सिंह अपने मित्रों के साथ जी जान से जुट गए। उन्हें लगा बम के धमाकों से अंग्रेजों को डराया जा सकता है। अपने एक साथी के साथ उन्होंने असेंबली में बम फेंका और खुद गिरफ्तारी दी। भगत सिंह और उनके मित्रों के खिलाफ़ मुकदमा चलाया गया। उन पर बम फेंककर अंग्रेजों को मारने का दोष लगाया गया। कोर्ट ने भगत सिंह और उनके मित्र सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सजा सुनाई। सजा सुनकर तीनों मित्र हॅंस पड़े और नारा लगाया, "वंदे मातरम्! इंकलाब जिंदाबाद।" भगत सिंह ने अपने माता-पिता को समझाया- "आपका बेटा देश के लिए शहीद होगा। आप लोग दुख मत कीजिएगा।" भगत सिंह से कहा गया कि अगर वे वायसरायय से माफी माँग लें तो उनकी फाँसी की सज़ा माफ़ की जा सकती है। भगत सिंह ने माफ़ी माँगना स्वीकार नहीं किया। भगत सिंह से फाँसी के पहले उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई। उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा- "मैं चाहता हूँ, मैं फिर भारत में जन्म लूं और अपने देश की सेवा करूँ।" फाँसी लगने के पहले तीनों मित्र एक-दूसरे के गले मिले। मनपसंद रसगुल्ले खाए। मित्रों के साथ भगत सिंह फाँसी के फंदे के पास जा पहुंचे। अपने हाथ से गले में फाँसी का फंदा लगाया और हॅंसते-हॅंसते फाँसी चढ़ गए। अंत तक वे नारे लगाते रहे- इंकलाब जिंदाबाद। शहीद दिवस पर भाषण भारत में 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है। इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसे भारतीय इतिहास के लिए एक काला दिन माना जाता है, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं। देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले इन वीर सपूतों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत में हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है। हिंदी में शहीद दिवस पर भाषण हमारे देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों के लिए शहीद दिवस के उपलक्ष्य पर मैं कुछ शब्द बोलने जा रहा हूं। कुछ गलत कह बैठूं तो माफ़ कर देना। आओ, झुक कर सलाम करें उनको, जिनके हिस्से में यह मुकाम आता है, खुशनसीब होते हैं वो लोग, जिनका खून देश के काम आता है। भारतीय सैनिक हमारी जान है, हमारी शान है। देश की सीमा और सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा सेना का निर्माण किया जाता है। इस सेना पर देश की सीमाओं में आने वाले सभी जल, थल और आकाश की रक्षा का भार होता है। इस सेना में देश के नौजवान युवाओं को भर्ती किया जाता है। यह ऐसे नौजवान युवक होते हैं जिनमें देश के लिए मरने का जज्बा होता है। जब एक नौजवान देश की रक्षा के लिए बॉर्डर पर जाता है तो केवल एक परिवार ही तैयार नहीं होता है, तैयार होते हैं बूढ़े मां बाप के कई सपने, चूड़ी, मंगलसूत्र और तैयार होती कई हसरतें और जब कभी उनका खून आतंकी हमलों में वो जवान शहीद होता है तो पता है क्या होता है। इस धरती मां का सीना फट जाता है, रूह कांप जाती है उनके बूढ़े मां बाप की, चकनाचूर हो जाते हैं उनके सारे सपने, वो चूड़ी वो बिंदी, वो मुस्कान एक सफेद कागज की तरह खामोश हो जाती है। जब एक जवान शहीद होता है तो केवल एक परिवार ही नहीं रोता, बल्कि पूरा देश रोता है। वो हर इंसान रोता है जो शहादत के मायने समझता है, वो हर नागरिक रोता है जो अपने देश के प्रति प्यार रखता है। तिरंगे से लिपटे जवान को जब एक मां आखरी बार अपने सीने से लगाती हैं तो देश की 133 करोड़ आंखों में, लबों पर एक ही बात होती है की मेरी ख्वाहिश है कि फिर से फरिश्ता हो जाऊं, मां से इस कदर लिपटू कि बच्चा हो जाऊं। ऐसे ही हमारे देश में ना जाने कितने क्रांतिकारी हुए हैं जिन्होंने जाने से पहले अपनी मां को वचन दिया। उन्हीं में से एक है शहीद भगत सिंह। जिन्होंने जाने से पहले अपनी मां को वचन दिया की मां जब मैं इस दुनिया से जाऊं तो तुम रोना मत वरना यह दुनिया कहेगी कि देखो आज वीर भगत सिंह की मां रो रही है। माँ मुझे अच्छा नहीं लगेगा तू रोना मत। एक बात आज तक मुझे समझ में नहीं आई की लोगों में माता, बालाजी, भुत-प्रेत आते है, मरे हुए इंसान बोलते है। अरे, मैं पूछता हूं इन लोगों में भगत सिंह क्यों नहीं आते, चंद्रशेखर आजाद क्यों नहीं आते, लक्ष्मीबाई क्यों नहीं आती। यकीन मानिए जिस दिन वे लोग मेरे देश के लोगों में अंग लग गए उस दिन मेरे देश, मेरी भारत मां की तरफ कोई आंख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं करेगा। मंजिलें मिल ही जाती है भटकते ही सही, गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं। एक आखरी बात में आप सभी से कहना चाहता हूं, अगर पीठ पीछे कभी आपकी बात चले तो घबराना मत क्योंकि बात उन्हीं की होती है जिनमें कोई बात होती और बात भी वही मनवाता है जिसमें कोई बात होती है। शहीद दिवस पर शायरी हर तूफान को मोड़ दूंगा, जो मेरे देश से टकराएगा, चाहे मेरा सीना हो छलनी, मेरे देश के तिरंगे को कभी झुकने नहीं दूंगा। धन्य है वे माता-पिता जिन्होंने ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया जिन्होंने युवावस्था में ही अपनी जिंदगी देश के लिए न्योछावर कर दी और अपने देश के प्रति देश भक्ति की मिसाल पेश की। कभी तपती हुई धूप में जलकर देख लेना, कभी कड़ाके की ठंड में ठिठुर कर देख लेना, कैसे होती है हिफाज़त अपने देश की, जरा सरहद पर जाकर देख लेना। अगर यह शहीद दिवस भाषण आपमें अपने देश के लिए मर मिटने का जज्बा पैदा करे तो मुझे गर्व महसूस होगा। मैं अपने देश के लिए कुर्बान हुए शहीदों को सलाम करता हूँ। जय हिन्द जय भारत। शहीद दिवस उन स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने और सम्मान देने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस दिन शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए भाषण और वार्ता आदि का आयोजन किया जाता है। यहाँ हम उनके लिए शहीद दिवस पर भाषण शेयर कर रहे है जो शहादत के मायने समझता है और जिन्हें देश के प्रति प्यार है धन्य हैं वीर भगत सिंह। उन जैसे शहीदों के त्याग से ही भारत को आज़ादी मिल सकी। मरने के बाद भी वे अमर हैं। हम उन्हें सदैव याद करते रहेंगे। भगत सिंह ने देश के लिए अपनी जान दे दी। इसीलिए उन्हें शहीद भगत सिंह कहा जाता है। Read the full article
0 notes
hindijankari · 4 years
Text
भगत सिंह का जीवन परिचय , शिक्षा, आन्दोलन और मृत्यु का कारण
शहीद भगत सिंह जी के बारे में कुछ ऐसी बातें जो किसी ने कभी नहीं सुनी है। भगत सिंह का जीवन परिचय में अगर कुछ बात रहती है तो पूछिए हम जवाब देने का पूरा प्रयास करेंगे। भगत सिंह की जीवनी हिंदी में
नामशहीद भगत सिंहजन्म28 सितम्बर 1907जन्मस्थलगाँव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में)मृत्यु23 मार्च 1931मृत्युस्थललाहौर जेल, पंजाब (अब पाकिस्तान में)आन्दोलनभारतीय स्वतंत्रता संग्रामपितासरदार किशन सिंह सिन्धुमाताश्रीमती विद्यावती जीभाई-बहन
रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर, शकुंतला कौर
चाचाश्री अजित सिंह जीप्रमुख संगठन
नौजवान भारत सभा, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन
शहीद भगत सिंह की जीवनी हिंदी में
Tumblr media
भागत सिंह जी के बारे में बात करे तो भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।
सरदार भगत सिंह का नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप में लिया जाता है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह सिन्धु और माता का नाम श्रीमती विद्यावती जी था।
भारत के सबसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगत सिंह भारत देश की महान ताकत है जिन्होंने हमें अपने देश पर मर मिटने की ताकत दी है और देश प्रेम क्या है ये बताया है।
भगत सिंह जी को कभी भुलाया नहीं जा सकता उनके द्वारा किये गए त्याग को कोई माप नहीं सकता। उन्होंने अपनी मात्र 23 साल की उम्र में ही अपने देश के लिए अपने प्राण व अपना परिवार व अपनी युवावस्था की खुशियाँ न्योछावर कर दी ताकि आज हम लोग चैन से जी सके।
भारत की आजादी की लड़ाई के समय, भगत सिंह का जीवन परिचय सिख परिवार में जन्मे और सिख समुदाय का सीर गर्व से उंचा कर दिया।
भगत सिंह जी ने बचपन से ही अंग्रेजों के अत्याचार देखे थे, और उसी अत्याचार को देखते हुए उन्होने हम भारतीय लोगों के लिए इतना कर दिया की आज उनका नाम सुनहरे पन्नों में है। उनका कहना था कि देश के जवान देश के लिए कुछ भी कर सकते है, देश का हुलिया बदल सकते है और देश को आजाद भी करा सकते है। भगत जी का जीवन ही संघर्ष से परिपूर्ण था।
Bhagat Singh History in Hindi
भगत सिंह जी सिख थे और भगत सिंह जी के जन्म के समय उनके पिता सरदार किशन सिंह जी जेल में थे, भगत जी के घर का माहौल देश प्रेमी था, उनके चाचा जी श्री अजित सिंह जी स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी। उनके साथ सैयद हैदर रजा भी थे।
भगत सिंह का जीवन परिचय
Tumblr media
भगत जी के चाचा जी के नाम 22 केस दर्ज थे, जिस कारण उन्हें ईरान जाना पड़ा क्योंकि वहाँ वे बचे रहते अन्यथा पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती। भगत जी का दाखिला दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में कराया था।
सन् 1919 में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह का खून खोल उठा और महात्मा गांधी जी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन का उन्होंने पूरा साथ दिया। भगत सिंह जी अंग्रेजों को कभी भी ललकार दिया करते थे जैसे कि मानो वे अंग्रेजो को कभी भी लात मार कर भगा देते।
भगत जी ने महात्मा गांधी जी के कहने पर ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे, भगत जी की ये नटखट हरकतें उनकी याद दिलाती है और इन्हें सुन कर, पढ़कर आंखों में आंसू आ जाते है।
चौरी चौरा हुई हिंसात्मक गतिविधि पर गांधी जी को मजबूरन असहयोग आन्दोलन बंद करना पड़ा, मगर भगत जी को ये बात हजम नहीं हुई उनका गुस्सा और भी उपर उठ गया और गांधी जी का साथ छोड़ कर उन्होंने दूसरी पार्टी पकड़ ली।
लाहौर के नेशनल कॉलेज से BA कर रहे थे और उनकी मुलाकात सुखदेव, भगवती चरण और कुछ सेनानियों से हुई और आजादी की लड़ाई और भी तेज हो गयी, और फिर क्या था उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और आजादी के लिए लड़ाई में कूद पड़े।
Essay on Bhagat Singh in Hindi
भगत सिंह जी की शादी के लिए उनका परिवार सोच ही रहा था की भगत जी ने शादी के लिए मना कर दिया और कहा “अगर आजादी से पहले मैं शादी करूँ तो मेरी दुल्हन मौत होगी.”
भगत सिंह जीवनी: 
Tumblr media
भगत जी कॉलेज में बहुत से नाटक आदि में भाग लिया करते थे वे बहुत अच्छे एक्टर भी थे, उनके नाटक में केवल देशभक्ति शामिल थी उन नाटकों के चलते वे हमेशा नव युवकों को देश भक्ति के लिए प्रेरित किया करते थे और अंग्रेजों का मजाक भी बनाते थे और उन्हें नीचा दिखाते थे। क्योंकि अंग्रेजों का इरादा गलत था।
भगत सिंह जी मस्तमौला इंसान थे और उन्हें लेक लिखने का बहुत शौक था। कॉलेज में उन्हें निबंध में भी कई पुरस्कार मिले थे।
क्रन्तिकारी जीवन
1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में सक्रिय हो गए। वर्ष 1922 में जब महात्मा गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपयोगी रास्ता है। 
अपनी पढाई जारी रखने के लिए भगत सिंह ने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।
विवाह से बचने के लिए भगत सिंह घर से भाग कर कानपुर चले गए। यहाँ वह गणेश शंकर विद्यार्थी नामक क्रांतिकारी के संपर्क में आये और क्रांति का प्रथम पाठ सीखा। जब उन्हें अपनी दादी माँ की बीमारी की खबर मिली तो भगत सिंह घर लौट आये। उन्होंने अपने गावं से ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा। 
वह लाहौर गए और ‘नौजवान भारत सभा’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। उन्होंने पंजाब में क्रांति का सन्देश फैलाना शुरू किया। वर्ष 1928 में उन्होंने दिल्ली में क्रांतिकारियों की एक बैठक में हिस्सा लिया और चंद्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आये। दोनों ने मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया। इसका प्रमुख उद्देश्य था सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत में गणतंत्र की स्थापना करना।
फरवरी 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उसके भारत दौरे का मुख्य उद्देश्य था – भारत के लोगों की स्वयत्तता और राजतंत्र में भागेदारी। पर इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारण साइमन कमीशन के विरोध का फैसला किया। लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ नारेबाजी करते समय लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। 
भगत सिंह ने लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट, जो उनकी मौत का जिम्मेदार था, को मारने का संकल्प लिया। उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर मार गिराया। मौत की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर छोड़ना पड़ा।
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को अधिकार और आजादी देने और असंतोष के मूल कारण को खोजने के बजाय अधिक दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया। ‘डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट’ के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने पुलिस को और दमनकारी अधिकार दे दिया। इसके तहत पुलिस संदिग्ध गतिविधियों से सम्बंधित जुलूस को रोक और लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। 
केन्द्रीय विधान सभा में लाया गया यह अधिनियम एक मत से हार गया। फिर भी अँगरेज़ सरकार ने इसे ‘जनता के हित’ में कहकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किये जाने का फैसला किया।
 भगत सिंह ने स्वेच्छा से केन्द्रीय विधान सभा, जहाँ अध्यादेश पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा था, में बम फेंकने की योजना बनाई। यह एक सावधानी पूर्वक रची गयी साजिश थी जिसका उद्देश्य किसी को मारना या चोट पहुँचाना नहीं था बल्कि सरकार का ध्यान आकर्षित ��रना था और उनको यह दिखाना था कि उनके दमन के तरीकों को और अधिक सहन नहीं किया जायेगा।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान विधान सभा भवन में बम फेंका। बम से किसी को भी नुकसान नहीं पहुचा। उन्होंने घटनास्थल से भागने के वजाए जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी। 
अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने किसी भी बचाव पक्ष के वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया। जेल में उन्होंने जेल अधिकारियों द्वारा साथी राजनैतिक कैदियों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की।
शहीद भगत सिंह को फांसी कब दी गयी थी?
Tumblr media
भगत सिंह की मृत्यु 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन देश के लोगों ने उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन किये थे जिसके चलते ब्रिटिश सरकार को डर लगा की अगर भगत जी को आजाद कर दिया तो वे ब्रिटिश सरकार को जिंदा नहीं छोड़ेंगे इसलिए 23 मार्च 1931 को शाम 7 बज कर 33 मिनट पर जाने से पहले भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उनसे पूछा गया की उनकी आखिरी इच्छा क्या है तो भगत सिंह जी ने कहा की मुझे किताब पूरी कर लेने दीजिए।
कहा जाता है कि उन्हें जेल के अधिकारियों ने बताया की उनकी फांसी दी जानी है अभी के अभी तो भगत जी ने कहा की “ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले” फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – “ठीक है अब चलो”
मरने का डर बिल्कुल उनके मुख पे नहीं था डरने के वजह वे तीनों ख़ुशी से मस्ती में गाना गा रहे थे।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे; मेरा रँग दे बसन्ती चोला, माय रँग दे बसन्ती चोला…
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को फांसी दे दी गयी। ऐसा भी कहा जाता है कि महात्मा गांधी चाहते तो भगत जी और उनके साथियों की फांसी रुक जाती, मगर गांधी जी ने फांसी नहीं रुकवाई।
भगत सिंह जी के बेदर्दी से टुकड़े टुकड़े किये थे अंग्रेजों ने
फांसी के बाद कहीं आन्दोलन न भड़क जाए इस डर की वजह से अंग्रेजों ने पहले मृत शरीर के टुकड़े टुकड़े किये और बोरियों में भरकर फिरोजपुर की तरफ ले गए.
मृत शरीर को घी के बदले मिटटी किरोसिन के तेल से जलाने लगे और गाँव के लोगों ने जलती आग के पास आकर देखा तो अंग्रेज डर के भागने लगे और अंग्रेजों ने आधे जले हुए शरीर को सतलुज नदी में फैंक दिया और भाग गए.
Tumblr media
गाँव वालों ने पास आकर शहीद भगत सिंह जी के ��ुकड़े को इकठ्ठा किया और ��ंतिम संस्कार किया.
लोगों ने अंग्रेजों के साथ साथ गांधी जी को भी भगत सिंह जी की मृत्यु का दोषी ठहराया और गांधी जी लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे थे तो लोगों ने काले झंडों के साथ गांधी जी का स्वागत किया और कई जगह तो गांधी जी पर हमला हुए और सादी वर्दी में उनके साथ चल रही पुलिस ने बचा लिया नहीं तो गाँधी जी को मार दिया जाता.
भगत सिंह जी का व्यवहार – History of Bhagat Singh in Hindi
भगत सिंह जी ने जेल के दिनों में जो खत आदि लिखे थे उससे उनके सोच और विचार का पता चलता है। उनके अनुसार भाषाओं में आई हुई विशेषता जैसे की पंजाबी के लिए गुरुमुखी व शाहमुखी तथा हिंदी अरबी जैसी अलग अलग भाषा की वजह से जाति और धर्म में आई दूरियाँ पर दुःख व्यक्त किया।
अगर कोई हिन्दू भी किसी कमजोर वर्ग पर अत्याचार करता था तो वो भी उन्हें ऐसा लगता था जैसे कोई अंग्रेज हिंदुओं पर अत्याचार करते है।
भगत सिंह जी को कई भाषाएँ आती थी और अंग्रेजी के अलावा बांगला भी आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी। उनका विश्वास था की उनकी शहादत से भारतीय जनता और जागरूक हो जायेगी और भगत सिंह जी ने फांसी की खबर सुनने के बाद भी माफीनामा लिखने से मना कर दिया था।
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए- ज़फ़ा क्या है? हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें। सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।
इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चंद्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी। उन्हें भुलाया भी नहीं भुलाया जा सकता।
शहीद भगत सिंह जी को प्राप्त ख्याति और सम्मान
भगत सिंह जी के शहीद होने की ख़बर को लाहौर के दैनिक ट्रिब्यून तथा न्यूयॉर्क के एक पत्र डेली वर्कर ने छापा। उसके बाद कई मार्क्सवादी पत्रों में उन पर लेख छापे गए, पर क्योंकि भारत में उन दिनों मार्क्सवादी पत्रों के आने पर रोक लगी हुई थी इसलिए भारतीय बुद्धिजीवियों को इसकी ख़बर नहीं थी। देशभर में उनकी शहादत को याद किया गया.
आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता भगत सिंह को आज़ादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिन्दगी देश के लिये समर्पित कर दी.
यह भी पढ़ें: 
Mr. Faisu (फैसल शेख) जीवनी 2020, विकी, आयु, ऊंचाई, प्रेमिका
कोरोना वायरस से कैसे बचे?
via Blogger https://ift.tt/2xNxmN0
0 notes
vsplusonline · 5 years
Text
दिल्ली हिंसा में गिरफ्तार ताहिर हुसैन की कोर्ट में पेशी आज, कॉल रिकॉर्ड से उठे सवाल
New Post has been published on https://apzweb.com/%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%97%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a4%ab%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%be/
दिल्ली हिंसा में गिरफ्तार ताहिर हुसैन की कोर्ट में पेशी आज, कॉल रिकॉर्ड से उठे सवाल
Tumblr media
ताहिर हुसैन को आज कोर्ट में पेश करेगी दिल्ली पुलिस
अंकित शर्मा की हत्या के दौरान इलाके में थी मौजूदगी
दिल्ली हिंसा के मामले में कई संगीन इल्ज़ामों का सामना कर रहा पार्षद ताहिर हुसैन दिल्ली पुलिस के शिकंजे में आ गया है. दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में सरेंडर करने आए ताहिर हुसैन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. अब ताहिर की कॉल डिटेल खंगालने के बाद पुलिस को कई अहम जानकारी मिली है. इस बीच आज ताहिर हुसैन को आज कोर्ट में पेश किया जाएगा.
ताहिर हुसैन के कॉल रिकॉर्ड में पता चला कि वह 24 से 27 फरवरी तक मुस्तफाबाद के पास ही था. चांद बाग भी मुस्तफाबाद में पड़ता है. ताहिर का दावा है कि हिंसा के दौरान और बाद में वो अपनी बिल्डिंग या बिल्डिंग के आस पास की गलियों और इलाकों में रहा. 27 फरवरी के बाद उसकी लोकेशन दिल्ली के जाकिर नगर में मिली थी, उसके बाद उसका फोन बंद हो गया था.
सरेंडर से पहले आजतक से बोले ताहिर हुसैन- पुराने दोस्त कपिल मिश्रा ने रची मेरे खिलाफ साजिश
मुस्तफाबाद में क्यों रहा ताहिर?
इसके बाद उसने पुराना सिम ऑन किया और आम आदमी पार्टी के एक नेता और कुछ वकीलों से बात की थी. पुलिस इस बात पर शक कर रही है कि अगर इलाके में हिंसा हुआ और अगर पुलिस ने उसे रेस्क्यू किया जैसा कि वो दावा कर रहा है तो फिर वो हिंसा प्रभावित इलाकों में इतने दिन क्यों रहा?
आजतक पर इंटरव्यू देख ताहिर को गिरफ्तार करने कोर्ट पहुंची दिल्ली पुलिस की SIT
इस एफआईआर में हुई गिरफ्तारी
वहीं 26 फरवरी को जब अंकित शर्मा की हत्या के केस में उसे नामजद किया गया तो उसकी बेचैनी बढ़ गई, हालांकि अंकित शर्मा की हत्या के मामले में वो खुद को बेकसूर बता रहा है. क्राइम ब्रांच ने फिलहाल ताहिर को खजूरी पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर नंबर 101 के मामले में गिरफ्तार किया है.
कॉन्स्टेबल ने दर्ज कराई थी FIR
ये एफआईआर खजूरी में तैनात एक कांस्टेबल संग्राम सिंह ने दर्ज करवाई थी, जिसमें ताहिर के घर से पेट्रोल बम और पत्थर फेंकने की बात कही गई. इस हमले में उपद्रवियों ने संग्राम सिंह की मोटर साइकिल जला दी थी. संग्राम सिंह ने इस एफआईआर में बताया है कि ताहिर के घर से फेंके जा रहे पेट्रोल बम से बगल में होने वाली शादी का सामान जल गया था.
आजतक के नए ऐप से अपने फोन पर पाएं रियल टाइम अलर्ट और सभी खबरें. डाउनलोड करें
Tumblr media Tumblr media
!function(e,t,n,c,o,a,f)(window,document,"script"),fbq("init","465285137611514"),fbq("track","PageView"),fbq('track', 'ViewContent'); Source link
0 notes
abhay121996-blog · 3 years
Text
Hamirpur News: आज भी यवनों पर विजय का अहसास कराता है गरुण ध्वज, क्षत्रियों के लिए गर्व का दिन होता है Divya Sandesh
#Divyasandesh
Hamirpur News: आज भी यवनों पर विजय का अहसास कराता है गरुण ध्वज, क्षत्रियों के लिए गर्व का दिन होता है
पंकज मिश्रा, हमीरपुर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यवनों पर विजय का प्रतीक झंडा शोभायात्रा आज भी अहसास कराता है। झंडा शोभायात्रा में कई गांवों के बड़ी संख्या में क्षत्रिय शामिल होते हैं। जानिये झंडा शोभायात्रा क्यों निकाली जाती है।
जिले के कुरारा कस्बे में प्रति वर्ष की भांति ऐतिहासिक विजय का प्रतीक गरुण ध्वज (झंडा) डोल-नगाड़ों के साथ मंगलवार को निकाला गया। गरुण ध्वज की शोभायात्रा में आसपास के कई गांवों के क्षत्रिय बड़ी संख्या में शामिल हुए। शोभायात्रा में वाहनों पर सजी झांकियां आकर्षक का केन्द्र रहीं।
राजस्थान के अलवर के हमीरदेव ने बसाया था हमीरपुर राजस्थान के अलवर से निष्काषित हमीरदेव को यहां ग्यारहवीं शताब्दी में शरण मिली थी। उन्हीं के नाम पर हमीरपुर का विस्तार हुआ था। प्राचीन काल में यह भूभाग घने जंगलों से आच्छादित था, जिसमें विभिन्न जन जातियां रहती थीं। गुप्त साम्राज्य के बाद महाराज हर्षवर्धन का भी यहां शासन रहा है। गहरवार, परिहार और चंदेल राजाओं ने भी इस भूभाग में लम्बे समय तक शासन किया है।
हमीरदेव और यवनों में हुआ था भीषण संग्राम कुरारा कस्बे के वयोवृद्ध धर्मपाल सिंह गौर ने बताया कि हमीरपुर में जब हमीरदेव का शासन था तब यवनों ने उन पर चढ़ाई कर दी थी। हमीरदेव ने राजगढ़ स्टेट राजस्थान से मदद मांगी थी। तब वहां के युवराज सिंहलदेव और बीसलदेव ने अपनी सेना के साथ यहां आकर हमीरदेव के पक्ष में युद्ध किया था। युद्ध में हमीरदेव को विजय मिली। ने विजय निशान गरुण ध्वज सिंहलदेव को तथा नगाड़ा बीसलेदव को उपहार स्वरूप दिया था।
युद्ध के बाद हमीरदेव ने बीसलदेव को बनाया था दामाद युद्ध के बाद राजा हमीरदेव ने अपनी बेटी रामकुंवर की शादी बीसलदेव के साथ की थी, जबकि सिंहलेदव को हमीरपुर जिले के कुरारा क्षेत्र के 12 गांव भी उपहार में दिए थे। इनमें कोडार्क देव ने कुरारा, रिठारी, जल्ला, चकोठी, पारा, कण्डौर, पतारा, झलोखर, टीकापुर, वहदीना, कुम्हपुर, बेजेइस्लामपुर आदि गांवों में शासन किया था। ये गांव गौर वंश के हैं।
गौर वंश में नौ पीढ़ी तक हुई थी एक ही संतान गौर वंश के वंशज वयोवद्ध धर्मपाल सिंह गौर ने बताया कि पूर्वजों से सुना गया है कि सिंहलेदव ने अपनी राजधानी बेतवा नदी के किनारे कुम्हूपुर को बनाया था। इस वंश में नौ पीढ़ी तक एक ही संतान हुई थी। इसके बाद नौ पीढ़ी में र��जा हरिहर देव की नौ संतानें हुई थीं। इनमें 9 गांव का संचालन पुत्रों को दिया गया, जिसमें सबसे बड़े पुत्र कोडार्क देव को कुरारा दिया गया था।
गरुण ध्वज को यमुना नदी में स्नान कराकर होती है विशेष पूजा पूर्व में गौर वंश के समस्त गांव के लोग होली के बाद दूज को हरेहटा गांव में जसला कार्यक्रम में शामिल होने जाते थे। इसमें नौ गांव के गौर क्षत्रिय भी भाग लेते थे। इसके बाद यह विजय ध्वज कोडार्क के यहां आ गया, तभी से कुरारा में हर साल विजय के प्रतीक ध्वज निकालकर जलसा मनाया जाता है। इसे सुबह यमुना नदी में स्नान कराकर विशेष पूजा भी की जाती है। नये वस्त्र धारण कर गौर वंश के क्षत्रिय लोग कुरारा कस्बे में शोभायात्रा निकालते हैं।
गौर वंश के प्रत्येक गांवों में 8 दिन तक होता है विजय पर्व कण्डौर गांव के डॉ. देवेन्द्र सिंह गौर ने बताया कि कोडार्क देव की दो संतानें महलदेव और खान देव थी। इनमें महलदेव के चार पुत्र बलभद्र, नीर, हमीर, भीखम और खान देव के एक पुत्र रावदेव थे। इन्हीं के वंशज आज भी सैकड़ों साल पुरानी इस परम्परा को जीवित किए हुए हैं। प्रति वर्ष होली के बाद दूज को इस विजय निशान ध्वज को धूमधाम के साथ निकालकर विजय उत्सव मनाते हैं। रात्रि में संगीत महोत्सव होता है।
गौर वंश के क्षत्रिय कण्डौर में अष्टमी के दिन मनाएंगे विजय पर्व बताया कि कुरारा क्षेत्र के कण्डौर गांव बेतवा नदी किनारे बसा है। इस गांव में गौर वंश के क्षत्रिय रहते हैं। इस गांव की परम्परा है कि होली के बाद अष्टमी को होली का जलसा मनाया जाता है। होली की परेवा को यहां गांव में होली नहीं खेली जाती है। धर्मपाल सिंह गौर ने बताया कि होली के बाद गौर वंश के शासनकाल में प्रत्येक गांव में 8 दिनों तक विजय पर्व मनाया जाता है। इसमें क्षेत्र के 9 गांव हैं। कण्डौर में होली के आठवें दिन जलसा मनाने की परम्परा में सभी क्षत्रिय शामिल होते हैं।
0 notes
bollywoodpapa · 4 years
Text
टीवी जगत के ये पॉपुलर सितारे शादी के बाद बस गए विदेश में, प्यार के लिए टीवी जगत को कह दिया अलविदा!
New Post has been published on https://bollywoodpapa.com/277667/these-tv-stars-settle-in-abroad-and-quit-tv-industry/
टीवी जगत के ये पॉपुलर सितारे शादी के बाद बस गए विदेश में, प्यार के लिए टीवी जगत को कह दिया अलविदा!
दोस्तों बॉलीवुड की तरह टीवी इंडस्ट्री में भी ऐसे कई सितारे हैं जो शादी के बाद के बाद से इंडस्ट्री से दूर चले गया साथ हीऐसे भी सितारे है जो  अपने प्यार की खातिर उनके साथ विदेश में बस गए हैं। बॉलीवुड में कई सितारे है जैसे प्रियंका चोपड़ा, प्रीति जिंटा, सेलिना जेटली जो शादी के बाद विदेश में बस गए हैं। ऐसी में आज आपको टीवी के ऐसे सितारों के बारे में बता रहे है जो शादी के बाद विदेश में सेटल हो गए हैं। आईये जाने है इन सितारों के बारे में!
श्वेता केसवानी
टीवी जगत की अभिनेत्री श्वेता केसवानी ने बहुत पहले ही विदेश में चुकी है, श्वेता ने ‘कहानी घर घर की’, ‘देस में निकला होगा चांद’, ‘बा, बहू और बेबी’ जैसे कई शोज में काम किया है। उन्होंने 2008 में अमेरिकी अभिनेता एलेक्स ओ नेल से शादी अपना घर बसा लिया और टीवी जगत से हमेसा से लिए दुरी बना ली। 2011 में कपल का तलाक हो गया। अगले ही साल 2012 में श्वेता ने केन एंडीनो से शादी कर ली। दोनों की मुलाकात न्यूयॉर्क में हुई थी। श्वेता और केन की एक बेटी है।
सौम्या सेठ
टीवी जगत के पॉपुलर शो सीरियल ‘नव्या’ से मशहूर हुईं अभिनेत्री सौम्या सेठ अमेरिका में रहने वाले अरुण कपूर से शादी के बंधन में बंध गईं। सौम्या के मुख्य सीरियल ‘दिल की नजर से खूबसूरत’, ‘ये है आशिकी’ और ‘चक्रवर्ती अशोक सम्राट’ हैं।
संग्राम सिंह
लोगो के बीच लोकप्रिय हुए शो ‘ये हैं मोहब्बतें’ में नज़र आ चुके अभिनेता संग्राम सिंह ने टीवी की दुनिया को अलविदा कह दिया है। मूल रूप से पंजाब के रहने वाले संग्राम अपने पार्टनर के साथ विदेश में बस गए हैं। उन्होंने नॉर्वे की रहने वालीं गुरकिरन कौर से अरेंज मैरिज की। गुरकिरन नॉर्वे में वैट कंसलटेंट हैं।
समीक्षा सिंह
टीवी अभिनेत्री समीक्षा सिंह अपने ब्वॉयफ्रेंड शैल ओसवाल के साथ इसी साल तीन जुलाई को शादी के बंधन में बंध गईं। दोनों ने सिंगापुर में गुरुद्वारे में शादी की। शादी के बाद समीक्षा ने इंडस्ट्री को अलविदा कहने का फैसला किया है। उनका मुंबई लौटने का कोई प्लान नहीं है। अब समीक्षा स्क्रिप्टिंग, डायरेक्शन और प्रोडक्शन का काम संभालेंगी। साथ ही अपने प्रोडक्शन हाउस का काम देखेंगी।
मिहिका वर्मा
अभिनेत्री मिहिका वर्मा ने ‘ये हैं मोहब्बतें’ में दिव्यांका त्रिपाठी की ऑनस्क्रीन बहन का रोल किया था। शादी के बाद मीहिका ने टीवी इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया। वो पति आनंद कपाई के साथ अमेरिका में शिफ्ट हो गई हैं।
0 notes