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#सत्ता का संग्राम
deshbandhu · 4 days
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Brahmin Saansadon ka Bhaaratiya Raajaniti Mein Badhata Dabdaba
भारत की राजनीति में जाति का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। समय के साथ कई जातियों और वर्गों ने सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत की है। इन्हीं जातियों में ब्राह्मण समुदाय भी एक प्रमुख भूमिका में रहा है। "भारत में ब्राह्मण सांसद" इस बात का प्रमाण है कि भारतीय लोकतंत्र में यह जाति सदियों से प्रभावी भूमिका निभाती आई है। चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम का दौर हो या आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था, ब्राह्मण समाज ने सत्ता के विभिन्न स्तरों पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है।
ब्राह्मणों का ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व
भारतीय समाज में ब्राह्मणों का स्थान सदियों से ऊँचा माना जाता रहा है। उन्हें विद्या, धर्म, और नीति का संरक्षक माना गया है। प्राचीन समय से ही यह समुदाय राजा और शासकों के सलाहकार की भूमिका में रहा है। वे न केवल धार्मिक कार्यों में अग्रणी रहे, बल्कि नीति-निर्धारण और प्रशासनिक जिम्मेदारियों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
आधुनिक भारत में भी ब्राह्मणों ने स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर संविधान सभा तक अपनी पहचान बनाई है। महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, और गोविंद बल्लभ पंत जैसे प्रमुख नेताओं का संबंध ब्राह्मण समुदाय से रहा है, जिन्होंने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वतंत्रता के बाद से भारत में ब्राह्मण सांसदों की संख्या और उनका प्रभाव लगातार बना हुआ है, हालांकि यह समय-समय पर घटता-बढ़ता रहा है।
ब्राह्मण सांसदों की वर्तमान स्थिति
भारत में ब्राह्मण सांसदों की स्थिति समय के साथ बदलती रही है। 1950 और 1960 के दशक में, जब कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व था, तब ब्राह्मण नेता भारतीय राजनीति में शीर्ष पर थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक, कई प्रमुख नेता ब्राह्मण समाज से थे। लेकिन समय के साथ, विशेष रूप से 1980 के दशक के बाद, मंडल आयोग और पिछड़ी जातियों के आरक्षण के बाद, जातिगत राजनीति ने एक नया मोड़ लिया।
हालांकि, इसके बावजूद, आज भी संसद और राज्य विधानसभाओं में ब्राह्मण सांसदों का महत्वपूर्ण स्थान है। वे न केवल बड़े राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता बने हुए हैं, बल्कि कई राज्यों में मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी आसीन हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ब्राह्मण सांसदों की संख्या और प्रभाव आज भी चर्चा का विषय बना रहता है।
जातिगत समीकरण और ब्राह्मणों का दबदबा
भारत में जातिगत राजनीति ने हमेशा चुनावी समीकरणों को प्रभावित किया है। पिछले कुछ दशकों में, पिछड़ी जातियों और दलितों के उभरने के बावजूद, ब्राह्मण समुदाय ने अपनी पकड़ बनाए रखी है। इसका कारण यह है कि ब्राह्मण नेता उच्च राजनीतिक सूझ-बूझ और व्यापक प्रशासनिक अनुभव के कारण विभिन्न दलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।
ब्राह्मण नेताओं का महत्व इस बात में भी देखा जा सकता है कि जब किसी भी पार्टी को चुनाव जीतने के लिए जातिगत समीकरणों की जरूरत होती है, तब ब्राह्मण समाज को नजरअंदाज करना कठिन होता है। भाजपा, कांग्रेस, और अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों ने समय-समय पर ब्राह्मण नेताओं को अपने शीर्ष पदों पर बिठाया है ताकि ब्राह्मण मतदाताओं का समर्थन प्राप्त किया जा सके।
विभिन्न राज्यों में ब्राह्मणों का प्रभाव
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ब्राह्मण सांसदों का महत्वपूर्ण प्रभाव है। उत्तर प्रदेश, जो देश का सबसे बड़ा राज्य है, वहां के चुनावी समीकरण जातिगत आधार पर तय होते हैं। यहां पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या अधिक है, और इसलिए, चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, सभी पार्टियां ब्राह्मण नेताओं को टिकट देने में पीछे नहीं रहतीं।
बिहार में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। यहां जातिगत समीकरण में ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य में जब चुनाव होते हैं, तो ब्राह्मण वोटरों को साधने के लिए राजनीतिक पार्टियां अपने प्रमुख नेताओं के रूप में ब्राह्मणों को पेश करती हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और भाजपा दोनों ने ब्राह्मण समुदाय से कई महत्वपूर्ण नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है।
ब्राह्मण सांसदों की भूमिका और चुनौतियाँ
हालांकि ब्राह्मण सांसदों का दबदबा आज भी बरकरार है, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ जहां पिछड़ी जातियों और दलितों का राजनीतिक सशक्तिकरण हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ ब्राह्मण नेताओं को जातिगत राजनीति के भीतर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।
इसके अलावा, मंडल आयोग के बाद से ब्राह्मणों की राजनीतिक स्थिति कुछ हद तक कमजोर हुई है, क्योंकि आरक्षण नीति ने पिछड़ी जातियों को अधिक अवसर प्रदान किए हैं। फिर भी, ब्राह्मण सांसदों ने अपनी राजनीतिक कौशल और कूटनीति से अपने लिए एक मजबूत आधार बनाए रखा है।
भविष्य में ब्राह्मणों की भूमिका
भारत में ब्राह्मण सांसदों की भूमिका भविष्य में भी महत्वपूर्ण बनी रहेगी। हालांकि राजनीति का जातिगत समीकरण समय-समय पर बदलता रहेगा, लेकिन ब्राह्मण नेताओं की बौद्धिक और संगठनात्मक क्षमता के कारण उनका स्थान हमेशा खास रहेगा। वर्तमान समय में जब राजनीति का ध्रुवीकरण हो रहा है, तब ब्राह्मण समुदाय को अपनी एकता और प्रभाव को बनाए रखना होगा।
इसके अलावा, ब्राह्मण समाज को सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अधिक संवेदनशील और प्रगतिशील होना पड़ेगा, ताकि वे बदलते भारत के साथ तालमेल बिठा सकें। अगर वे इन चुनौतियों का सामना कर पाते हैं, तो निश्चित रूप से भारत में ब्राह्मण सांसदों का प्रभाव भविष्य में भी बरकरार रहेगा।
निष्कर्ष
"भारत में ब्राह्मण सांसद" एक ऐसा विषय है जो भारतीय राजनीति के कई आयामों को छूता है। ब्राह्मणों का दबदबा केवल जातिगत समीकरणों के आधार पर नहीं है, बल्कि यह उनकी राजनीतिक कुशलता, शिक्षा, और अनुभव के कारण भी है। हालांकि, बदलते सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में ब्राह्मण नेताओं को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन उनके ऐतिहासिक और सामाजिक प्रभाव को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारतीय राजनीति में ब्राह्मण सांसदों की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण बनी रहेगी।
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imranjalna · 6 months
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Elections Polls: 44 दिनों तक चलेगा सत्ता का संग्राम, इतिहास में दूसरा सबसे लंबा लोकसभा चुनाव; जानें सबसे कम वक्त कब लगा The battle for power will last for 44 days, the second longest Lok Sabha election in history; know when it took the least time
Elections: 1951-52 के दौरान पहले लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया में 120 दिन लगे थे। 1980 में दो चरण में मतदान हुए थे और यह अवधि केवल चार दिन की ही थी। 2024 के लोकसभा चुनाव देश के चुनावी इतिहास के दूसरे सबसे लंबे चुनाव हैं।  देश में इन दिनों लोकसभा चुनावों की सरगर्मी है। 16 मार्च को चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के लिए कार्यक्रमों की घोषणा की थी। 19 अप्रैल से 1 जून के बीच देश में सात चरण में चुनाव होने…
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dotengine · 1 year
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74 साल पहले हुई वो बहस, जिससे देश का नाम पड़ा India और Bharat... जानें आंबेडकर का क्या था रोल - BR Ambedkar INDIA Bharat name changes india got bharat name process for changing name of country ntc
आज से 74 साल पहले 18 सितंबर 1949 को देश के सबसे प्रबुद्ध लोगों ने इकट्ठे होकर इस बात पर विचार-विमर्श किया कि देश को ‘इंडिया’ बुलाया जाए या ‘भारत’ या फिर कुछ और. लेकिन सात दशक बीत जाने के बाद आज भी यह बहस जारी है. आजाद भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए संविधान सभा की स्थापना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान की प्रमुख मांगों में से एक थी. भारत को सत्ता सौंपने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1946…
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nidarchhattisgarh · 1 year
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Bangladesh Election : Bangladesh PM शेख हसीना से इस्तीफे की मांग को लेकर प्रदर्शन जारी, पुलिस ने दागे आंसू गैस के गोले
बांग्लादेश में आगामी चुनाव को लेकर माहौल गर्मा-गर्मी का बन गया है। विपक्षी दलों ने शनिवार को सड़कों पर जमकर बवाल किया और प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग की है। बांग्लादेश चुनाव (Bangladesh Election) से पहले सियासी दलों के कार्यकर्ताओं के बीच संग्राम बढ़ गया है। सत्ता पक्ष और विपक्षी कार्यकर्ताओं के बीच जमकर बवाल हो रहा है। विपक्षी पार्टी सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है और प्रधानमंत्री शेख…
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visitingdream · 1 year
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"गेटवे ऑफ़ इंडिया, मुंबई: भारतीय ऐतिहासिकता के प्रमुख द्वार"
गेटवे ऑफ़ इंडिया मुंबई, महाराष्ट्र राज्य की राजधानी है और भारत का व्यापारिक और पर्यटन केंद्र है। यह मुंबई की प्रमुख आकर्षणों में से एक है और भारतीय सागर के तट पर स्थित है। यह इमारत दरवाजे की भांति बनाई गई है, जिसे 1924 में विश्वस्तरीय वाणिज्यिक मेले के अवसर पर उद्घाटन किया गया था।
गेटवे ऑफ़ इंडिया का निर्माण 1911 में शुरू हुआ था, जब ब्रिटिश सरकार ने मुंबई के आगंतुकों का स्वागत करने के लिए एक वाणिज्यिक बंदरगाह का निर्माण करने का निर्णय लिया। इसके निर्माण का कार्य 1915 में शुरू हुआ था, लेकिन पहले विश्वयुद्ध के कारण यह कार्य रुक गया (travel blogs to read)।
1920 के दशक में यह कार्य फिर से शुरू हुआ और 1924 में पूरा हुआ। गेटवे ऑफ़ इंडिया की निर्माणाधीनता का श्रेय अर्थर ब्लेक और जोरज़ विटैल के नाम से जाने जाते हैं, जो यह इमारत बनाने का कार्य किया। इसका स्थापना पत्थर और सीमेंट का इस्तेमाल करके किया गया है और इसकी ऊँचाई करीब 85 फुट है।
गेटवे ऑफ़ इंडिया मुंबई की वाणिज्यिक महत्ता का प्रतीक है। इसे पूरे भारत के साथ-साथ ब्रिटिश साम्राज्य की शक्ति और विभूति के प्रतीक के रूप में भी माना जाता है। यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और हर साल लाखों पर्यटक इसे देखने आते हैं।
गेटवे ऑफ़ इंडिया का निर्माण ब्रिटिश सत्ता के समाप्त होने के बाद भी संभव हुआ। इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रतीक माना जाता है और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के समय यहां ब्रिटिश साम्राज्य की पहली लाठी नेशनल फ्लैग हटाई गई थी।
इसके पास स्थित सागर द्वारा गोदे जाने के लिए दीवारों का निर्माण किया गया है, जिसे "जलाशय जवाहर" कहा जाता है। इसे खासकर शाम के समय रोशनी के लिए विख्यात किया जाता है, जब इसके पास स्थित पार्क से देखा जाए तो यह एक अद्वितीय दृश्य प्रदान करता है।
गेटवे ऑफ़ इंडिया ने सालों से अनेक अद्वितीय और ऐतिहासिक क्षणों का सामना किया है। यहां कई अन्तरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रमुख व्यक्तियों और दलों का स्वागत किया जाता है। इसके पास स्थित ताज महल पैलेस और अन्य आकर्षणों के करीब यह व्यापारिक और पर्यटन स्थल के रूप में महत्त्वपूर्ण है।
गेटवे ऑफ़ इंडिया मुंबई का इतिहास और महत्त्व संक्षेप में यही है। यह एक प्रमुख ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है जो मुंबई की गर्वभारी विरासत का हिस्सा है। इसकी सुंदरता और उपन्यास का मिश्रण यहां आने वाले पर्यटकों को अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।
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writerss-blog · 1 year
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राजनीति के चौसड
राजनीति के चौसड पर बिछ गई जनता वोट बैंक के चालों में उलझ गई जनता इस बार चुनाव लोकसभा का भीषण संग्राम, सारी विपक्षी पार्टियों का मिला जुला अभियान मिलकर जो लड़ेंगे जीत जायेंगे बिखर गए तो फिर सत्ता में ना आयेंगे, मोदी जी के औरा के सामने कोई नहीं है जनता के दिल में विश्वास उनपर आज भी है । गठबंधन करने पर ही भविष्य बनेगा, वरना तो सबके सियासत का अंत होगा ।।
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मनुष्य मात्र के अन्त:करण में एक युद्ध चल रहा है, सुमति और कुमति का। इसी का नाम देव-असुर संग्राम है। दैवी गुणों और आसुरी अवगुणों में, वानरी सेना और राक्षसी सेना में, पाण्डवों और कौरवों में, अच्छे और बुरे में, उपासना और वासना में, धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र में होने वाला युद्ध भी यही है। एक ओर धर्मक्षेत्र है, धर्म का पक्ष है, जिसका मानना है कि कल्याण संसार से न होगा, धन से न होगा, बल से न होगा, परिजनों से न होगा। कल्याण तो भगवान के आश्रय में रहने से होगा, उनकी ईच्छा को अपनी ईच्छा बनाने से होगा। कल्याण जगत का, देह का, मन का अनुसरण करने से नहीं होगा। कल्याण तो शास्त्र का, संत का, भगवान का अनुसरण करने से होगा। ऐसा मानने वाला धर्म के पक्ष में खड़ा है। दूसरी और कुरुक्षेत्र है, कुरु क्षेत्र है, कुरु माने करना, माने कर्तृत्वाभिमान का पक्ष। जो मानता है कि मेरे किए बिना कैसे होगा? जो भी मुझे करना है मैं स्वयं कर लूंगा, मुझे संत की या किसी अन्य की क्या आवश्यकता है? मेरे पास बुद्धि है, बल है, धन है, परिवार और मित्र हैं, रसूख है। मैं क्या नहीं कर सकता? ऐसा मानने वाला अधर्म के पक्ष में है। जो संसार में ही रच-पच गया, जिसके जीवन का लक्ष्य केवल कमाना, खाना और पैखाना है, वह तो राक्षस है। वह माया के हाथ का खिलौना बनकर यहीं सड़ेगा। लेकिन वह जो एक बार दृढ़ निश्चय करके, सदा सदा के लिए धर्म के ही पलड़े पर खड़ा हो गया, किसी संत का हो गया, वह मंजिल पा गया, संसार से पार हो गया। ध्यान से देखो, रावण जैसा शास्त्रों का ज्ञाता, अपार सेना, अनन्त वैभव, संपूर्ण छल बल और भरापूरा परिवार होते हुए भी हार गया। जबकी भगवान के आश्रय में चलने वाली पैदल, शस्त्र विहीन वानरी सेना, जीत गई। दुर्योधन जैसा दुष्ट, भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे बड़े बड़े धुरंधरों, नारायणी सेना, निन्यानवे भाईयों और सत्ता बल के होते हुए भी मारा गया। जबकी अर्जुन ने भगवान को चुना तो जीत गया। रामकथा में बलवान इन्द्रपुत्र बालि मारा गया, डरपोक सूर्यपुत्र सुग्रीव जीत गया। तो महाभारत में सूर्यपुत्र कर्ण मारा गया, इन्द्रपुत्र अर्जुन जीत गया। हिरण्यकशिपु मारा गया, प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। मीरा को जहर भी अमृत हो गया। कौन है जिसने धर्म का पक्ष चुना हो, और जीता न हो? लोकेशानन्द कहता है कि आप कौन हो, क्या हो, कैसे हो, किसके पुत्र हो, इसकी कोई कीमत नहीं है। कीमती बात तो यह है कि आप किस पक्ष में हो? जगत के या जगदीश के? https://www.instagram.com/p/CoECOw4S4ht/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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mmulnivasi · 2 years
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*🌹20नवंबर : आर.एल.चंदापुरी जन्मजयंती🌹* ××××××××××××××××××××××××××××××× *त्यागमूर्ति राम लखन चंदापुरी जी का जन्म 20नवंबर1923 को उनके ननिहाल ग्राम बसुहार, तालुका पुनपुन, जिला पटना, बिहार मे हुआ था, किन्तु उनका पैतृक घर ग्राम चंदा, तालुका अथमलगोला, जिला पटना मे था, इसलिए अपने पैतृक गांव के नाम अनुरूप उन्होने अपना उपनाम "चंदापुरी" रखा था| उनके पिता महावीर सिंह एवं माता हीरामणि कुँवर कुर्मी जाति के किसान थे|* *जिस प्रकार कार्ल मार्क्स और साम्यवाद एक दूसरे के पर्यायवाची है, उसी प्रकार राम लखन चंदापुरी जी और पिछडा वर्ग आंदोलन एक दूसरे के पर्याय है| वे भारत के सभी एससी-एसटी, ओबीसी और इनसे धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यको को पिछडा मानते थे| देश की आजादी के साथ ही विषमतावादी व्यवस्था के खिलाफ राष्ट्रव्यापी पिछडा वर्ग आंदोलन छेडने के लिए उन्होने पिछडे वर्ग के कुछ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो के साथ मिलकर 10सितंबर1947 को 'बिहार प्रांतीय पिछडा वर्ग संघ' की स्थापना की थी, जो बाद मे 'अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग संघ' के रूप मे एक राष्ट्रव्यापी संगठन बना| उन्होने 1949 मे 'साप्ताहिक पिछडा वर्ग' एवं इसके ढाई साल बाद पिछडा वर्ग संदेश' नामक हिंदी साप्ताहिक पत्रिकाओ का प्रकाशन किया| उसमे प्रकाशित उनके भाषणो एवं लेखो से गांव मे रहने वाली पिछडी जातियां जागृत होने लगी| पिछडा वर्ग संघ के बैनर तले संविधान निर्माण के समय से ही संविधान मे पिछडो के लिए विशेष अवसर और आरक्षण संबंधी धारा 340 जुडवाने, देश मे पिछडा वर्ग आयोग के गठन, उसकी सिफारिशो को देश मे लागू करवाने एवं बिहार मे पिछडे वर्ग को आरक्षण दिलवाने के लिए उन्होने जीवन भर आंदोलनात्मक प्रयास किया| इसके लिए वे बाबासाहब डॉ.अम्बेडकर के संपर्क मे बराबर रहे|* *10नवंबर1978 को उनके उग्र आंदोलन के कारण ही बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने ओबीसी आरक्षण लागू किया था| वे बाबासाहब के आंदोलन और मिशन से अत्यंत प्रभावित थे और मानते थे कि एससी-एसटी और ओबीसी यदि एक मंच पर आ जाएं तो देश मे सत्ता परिवर्तन हंसी खेल मे हो जाएगा| इसके लिए उन्होने प्रयास भी किया और 06नवंबर1951 को बाबासाहब को पटना के गांधी मैदान मे बुलाकर एक विशाल जनसभा को संबोधित भी करवाया था| ऐसे ही कार्यों की वजह से 10जनवरी1960 को उन्हे त्यागमूर्ति" की उपाधि दी गई थी| ऐसे समर्पित समाजसेवी क्रांतिकारी मसीहा का निर्वाण 31अक्टूबर2004 को 81वर्ष की उम्र मे पटना के कंकडबाग अस्पताल मे हो गया| अपने निर्वाण से तीन दिन पूर्व 27अक्टूबर को दिन के 02 बजे हुई पत्रकार वार्ता मे गंभीर रूप से बीमार चंदा (at Patna, Bihar, India) https://www.instagram.com/p/ClMB5dXsk-7/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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rebel-bulletin · 2 years
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महाराष्ट्र में सत्ता का संग्राम : कुर्ला MLA के ऑफिस में तोड़फोड़, शिंदे की तस्वीर पर कालिख पोती; चांदीवाली विधायक का पोस्टर फाड़ा
महाराष्ट्र में सत्ता का संग्राम : कुर्ला MLA के ऑफिस में तोड़फोड़, शिंदे की तस्वीर पर कालिख पोती; चांदीवाली विधायक का पोस्टर फाड़ा
महाराष्ट्र में सत्ता का संग्राम अब हिंसक रूप लेने लगा है। शुक्रवार को कुर्ला इलाके में शिवसेना विधायक मंगेश कुंडालकर के दफ्तर पर कुछ लोगों ने हमला किया है। उन्होंने मेन गेट पर तोड़फोड़ की है। उनके पोस्टर और नेम प्लेट तोड़ डाले। अहमदनगर में भी बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे की तस्वीर पर कालिख पोती गई है। यहां उद्धव समर्थकों ने शिंदे के खिलाफ जमकर नारेबाजी की साथ ही उन्हें गद्दार बताया। साकीनाका…
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007rebel · 3 years
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*संविधान पर भरोसा रखने वालों को हार्दिक बधाई*
*गण की रक्षा में असफल तंत्र*
मंदसौर। 72 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारतीय संविधान में भरोसा रखने वाले सभी नागरिकों का हार्दिक अभिनंदन। आज ही के दिन 26 जनवरी 1950 को *हम भारत के लोगों...* ने उस पुस्तक में अपनी आस्था और विश्वास व्यक्त किया था जिसे संविधान कहा गया है। हमारी पहचान किसी नस्ल, धर्म,जाति, वर्ण,लिंग, समुदाय की न होकर संविधान में *हम भारत के लोग...* के रूप में की गई है ।
गण मूलतः वैदिक शब्द है । प्राचीन ग्रामीण व्यवस्था में प्रत्येक गांव एक गण समूह होता था, वह अपने कार्यों के प्रति स्वयं उत्तरदाई था। एक निश्चित भूभाग का निर्वाचित गणपति पशुपालन और खेती की समृद्धि के लिए ग्राम वासियों को मार्गदर्शन देता था । कालांतर में यह गणपति देवता बन गया और गणों के समूह का गणाधिपति ईश्वर के रूप में स्थापित हो गया।
हमारे संविधान ने गण (समाज) के लिए तंत्र की स्थापना की, ताकि हम भारत के लोगों के सुखद जीवन के लिए किये जा रहे प्रयासों को बल मिले। देशवासियों का शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक और बौद्धिक विकास हो। बाहरी और भीतरी खतरों से वे सुरक्षित रहें। किसी के साथ पक्षपात न हो, सभी नागरिकों के समान अधिकार हों।विगत वर्षों में हमारा तंत्र इन कर्तव्यों के पालन में कितना सफल रहा है? इस पर विचार किया जाना चाहिए।
75 वर्ष पूर्व औपनिवेशिक आजादी के पश्चात गणतंत्र की स्थापना से ही देश समाजवादी समाज की स्थापना के लिए, धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को अपनाते हुए विकास की ओर अग्रसर था। अनेक विसंगतियां विरोधाभास और असहमतियों के बावजूद देश निरंतर प्रगति कर रहा था । इसी दौर में वे ताकतें भी सक्रिय थी जिन्हें भारतीय संविधान मंजूर नहीं था। ये लोग और संगठन देश को धर्म आधारित राष्ट्र बनाने की कवायद में लगे रहे थे। आखिरकार ये ताकतें सफल रही, शासन में आई और अब इनके निशाने पर वही भारतीय संविधान है जिसके आधार पर ही वे चुनकर सत्ता में आए हैं। संविधान को सीधे तरीके से खारिज कर देने की कोई व्यवस्था न होने के कारण शासक दल अपने अनेक संगठनों के माध्यम से शनै: शनै: संवैधानिक मूल्यों, उनके आधार पर नागरिकों को मिले अधिकारों पर हमला कर रहे हैं। देश में ऐसे दमनकारी कानून लागू किए गए हैं जिनके खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों द्वारा विरोध किया गया था। कोविड-19 के बहाने आम नागरिक की स्वतंत्रता इतनी सीमित कर दी गई है वह अपने ही घरों में कैद में रहने पर विवश कर दिए गए हैं। इन सब के लिए गण के विरुद्ध तंत्र का खुलकर उपयोग हो रहा है।
समाज और देश के नागरिकों में असमानता की आर्थिक खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है। करोड़ों नागरिक राशन की खैरात पर निर्भर कर दिए गए हैं। दूसरी और चंद पूंजीपतियों की संपदा का विस्तार हो रहा है। देश की संपत्ति को कौड़ियों के दाम बेचा जा रहा है। धर्म आधारित पक्षपात चरम पर है। अल्पसंख्यक समुदाय प्रताड़ित और पीड़ित है। प्रचार और झूठ के शोर में सच कहीं विलुप्त सा हो गया है। ऐसे माहौल में भारतीय गणतंत्र स्वयं को कब तक बचाए रख पाएगा यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारतीय गणतंत्र में गण की कोई पहचान बची भी है ? 75 वर्षों की आजादी का निरंतर दुरुपयोग हुआ है। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लचर कानून व्यवस्था, गरीब- अमीर के बीच बढ़ती खाई, निरंकुश राजनेता, ढुलमुल प्रशासन गणतंत्र की पहचान बनकर रह गए हैं।
प्रति वर्ष हो रहे गणतंत्र दिवस के समारोह मात्र औपचारिक शासकीय आयोजन बन गए हैं। इनमें गण की कोई भूमिका ही नहीं है । वह टुकर टुकर राजपथ पर चमचमाती झांकियों कल्फ लगी कड़क वर्दीयों नेताओं की नौटंकी का दूरदर्शक बना हुआ है। अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं को सुरक्षा देने में असफल तंत्र का पक्षपाती चरित्र उजागर हो चुका है। यह सब देशवासी कितना और भुगतेंगे अथवा इस व्यवस्था के खिलाफ प्रतिरोध के भी स्वर उठेंगे ? यह देखना बाकी है ।
हमारे समय के महान शायर अली सरदार जाफरी ने अपनी निराशा इन शब्दों में व्यक्त की है
*कौन आजाद हुआ ?
*किसके माथे से गुलामी की सियाही छूटी*
*मेरे सीने में दर्द है महकूमी का*
*मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही* ।
*खंजर आजाद है सीने में उतरने के लिए*
*वर्दी आजाद है बेगुनाहों पर जुल्मों सितम के लिए*
*मौत आजाद है लाशों पर गुजरने के लिए*
*कौन आजाद हुआ?*
पुनः सभी नागरिकों को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई
हरनाम सिंह
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amitranjanblogs · 4 years
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फिर भारत की खोज...
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हम खोजते उसे हैं, जिसकी जरूरत तो लगती है, पर वह हमारे पास होती नहीं है; या जो कभी मिली थी और अब खो गई है। भारत के साथ दोनों स्थितियां हैं। दार्शनिक जद्दू कृष्णमूर्ति से कभी किसी ने भारत की खोज करने की ऐसी ही बात की थी, तो उन्होंने पलट कर पूछा था : क्या तुम्हें कहीं कोई भारत मिला? क्या तुमने कहीं भारत की विशालता जितना बड़ा मन पाया? मुझे तो यहां हर कहीं 'ट्राइबल माइंड' ही दिखाई देता है! जद्दू कृष्णमूर्ति जिसे 'ट्राइबल' कह रहे हैं, वह जाति या समुदायसूचक नहीं है, बल्कि वह मनोवृत्ति सूचक है। मतलब यह कि जद्दू कृष्णमूर्ति का भारत संकीर्णताओं में समाता नहीं है। भारतीय मन की पहचान है उसकी उदात्तता। गांधी का भारत कैसा है? गांधी का भारत वह है, जो अपने गहन अनुभव के आंगन में किसी भी आधुनिकतम सोच का पौधा लगाने से न घबराता है और न झिझकता है, क्योंकि उसकी जड़ें, उसकी अपनी मिट्टी में गहरे समाई हुई हैं।
फिर हमें मिलते हैं कविगुरु रवींद्रनाथ ठाकुर। उनका भारत कैसा है? वह प्रार्थनारत होकर उस भारत के गीत गाते हैं, जहां भयमुक्त मन और ज्ञानवान मस्तक एक ऐसे स्वर्ग की रचना करते हैं, जिसमें मनुष्य अपनी पूर्ण संभावनाओं के साथ खिल व खेल सके। और एक भारत लोकनायक जयप्रकाश का भी है, जहां मनुष्य मात्र की स्वाधीनता ऐसी अपूर्व व असीम होगी कि जिस पर किसी राज्य या व्यक्ति की कोई जकड़बंदी नहीं होगी और जिसका सौदा न सत्ता से हो सकेगा, न संपत्ति से। क्या ये सारे भारत अलग-अलग हैं? या यह एक ही वह भारत है, जिसकी मिट्टी से ये महान प्रतिभाएं पैदा हुईं और इसकी महानता में अपना भी कुछ अंश उड़ेल कर तिरोहित हो गईं? 26 जनवरी, 2016 के सूर्य की पहली किरण के साथ हमारे भीतर भी इस खोज और पहचान की कोई किरण उतरे, इस प्रार्थना और कामना के साथ हम सब भी अपने भारत की खोज करें।
ऐसा क्या हुआ कि अपने संविधान की किताब में जो भारत मिलता है, वह यहां के खेतों-खलिहानों, सड़कों-कारखानों, संसद-विधानसभाओं और स्कूलों-कॉलेजों में नहीं मिलता है? सारी मुश्किल शायद वहां से शुरू हुई, जहां से महात्मा गांधी का अवतरण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में होता है। महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई को ही जिंदगी बना दिया। गांधी ने कहा : हां, पहले, और सबसे पहले आजादी, पर किसकी आजादी, किससे आजादी और कैसे आजादी भी तय करनी पड़ेगी, क्योंकि इसके बिना आजादी आती ही नहीं है, गुलामी ही रूप बदल कर आ धमकती है।
विधि का विधान ऐसा कि आजाद भारत का संविधान बनाने बैठी संविधान सभा के दो सबसे चमकीली सितारे, जिनके तेज से संविधान सभा चौंधियाती रही थी, वे दोनों एक बात में समान थे कि दोनों ही गांधी से बहुत सावधान थे। संविधान के हर अनुच्छेद, हर व्याख्या और हर व्यवस्था पर जिनकी अमिट छाप रही, वह जवाहरलाल नेहरू और संविधान सभा के सारे निर्णयों को कलमबद्ध करने का विकट काम जिन्होंने अपूर्व प्रतिभा से किया, वह बाबा साहेब अंबेडकर गांधी को समझते भी कम थे, उनसे सहमत भी कम थे और इसलिए उनके विराट व्यक्तित्व से बचने की पूरी सावधानी रखते थे।
शिकायत तब भी नहीं होती, अगर यह संविधान गांधी का भारत न सही, भारत का भारत तो बनाता। अगर यह शहरी सभ्यता और शहरी गति वाला भारत है, तो हमारे शहर बहुत बड़े कूड़ाघर में नहीं बदल गए हैं, जिन्हें स्वच्छ भारत अभियान भी साफ नहीं कर पा रहा है? कृषि को लात मारकर जिस औद्योगिक विकास की माला जपी गई, वह एशिया में ही नहीं, सारी दुनिया में दम तोड़ रहा है और मंदी में छटपटाती वैश्विक अर्थव्यवस्था समझ ही नहीं पा रही है कि वैसे संसाधन कहां से लाएं, कि इसमें जान फूंकी जा सके। हथियारों के बल पर सुरक्षा की खोज ने हमें वहां लाकर खड़ा कर दिया है, जहां अब कोई सुरक्षित नहीं बचा है-स्कूलों में पढ़ने वाली हमारी अगली नस्ल तक हमारे ही निशाने पर है। हमारा संसदीय लोकतंत्र आज इस मुकाम पर आ पहुंचा है कि सारा राजनीतिक विमर्श यहीं अटका हुआ है कि आत्महत्या करने वाला युवक रोहित वेमुला सच्चा और संपूर्ण दलित था या नहीं। इसलिए करनी होगी फिर से भारत की खोज; और यह खोज तभी शुरू होगी और किसी नतीजे पर पहुंचेगी, जब हम में से हर एक के पास उसका अपना भारत होगा। बताइए, आपका भारत कैसा है?
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ashesh-thakur · 5 years
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कर्म और निष्ठा
मैंने कुछ समय देकर अपने देश के गौरवशाली इतिहास की एक  प्रेरणादायी घटना का अपने शब्दों में वर्णन करने की कोशिश की है अगर आपके पास थोड़ा समय हो तो कृपया कर इसे पढ़ें  बताएं की में कितना बुरा लिखता हुँ. मेरी मेहनत  पर कृपया एक नज़र जरूर डालें।
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यह वो दौर था जब मेवाड़ का सशक्त और समृद्ध राज्य अपने युग की सबसे बड़ी राजनीतिक उथल पुथल देख रहा था। एक तरफ मुग़ल बादशाह  बाबर  दिल्ली की हुकूमत पर अपनी सत्ता कायम करने मै कोई  कसर न छोड़ रहा था। 1526 मैं बाबर पानीपत के पहले युद्ध में इब्राहिम लोधी को परास्त कर दिल्ली पर अपना हक़ जमा चूका था। बाबर के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी मेवाड़ के सबसे प्रतापी राजा  में से एक राणा संग्राम सिंह या राणा सांगा की । बाबर ने सांगा को चुनौती दी और उसे सहर्ष सांगा ने स्वीकार किया।
17 मार्च 1527  को आगरा के पास खानवा गाँव में दोनों ओर की सेनाएं एक दूसरे से महा समर में भिड़ी ,बाबर की तोपों का जवाब राजपूत अपनी तलवार से न दे पाये क्यूंकि इससे पहले किसी भी युद्ध में  भारत मैं तोप का इस्तेमाल न हुआ  था, मुग़ल पहली बार तोप लेकर आये थे।
सांगा हारा  मगर वीरों की तरह। कुछ दिन बाद वह  अपने जख्मों के कारण चल बसा।
सांगा के जाने के बाद मेवाड़ की बागडोर उसके बेटे महाराणा रतन सिंह 2 के हाँथ में आई।  रतन सिंह 4साल बाद चल बसा।
रतन सिंह के बाद उसके छोटे भाई राणा विक्रमादित्य ने साशन संभाला।   विक्रमादित्य बहुत ही गुस्सैल और  तुनक मिजाज था। उसके कारण सारे दरबारी और जनता परेशान थी।
जब पानी सर से ऊपर चला गया दरबारियों ने षड़यंत्र रचा. उन्होंने विक्रमआदित्य के चचेरे भाई बनबीर को मेवाड़ बुलाया और उसे उकसाया की वो शाशन करने का असली हक़दार है।
बनबीर ने तुरंत विक्रमादित्य को नज़र बंद किया और इस बहाने वो विक्रमादित्य के छोटे भाई और राणा संग्राम सिंह की  आखरी संतान, उदय सिंह का राज-प्रतिनिधि बन गया।
एक रात मौका देख बनबीर ने विक्रमादित्य का सर कलम किया और अब उसकी खून से सनी तलवार छोटे व दूधमुहे उदय  सिंह के रक्त की प्यासी थी क्यूंकि बस अब उदय सिंह ही आखरी काँटा था बनबीर और राज गद्दी के बीच  मे।
पन्ना दाई, उदय सिंह को पालने वाली माँ समान दाई अपने बेटे चन्दन और उदय सिंह को दूध पिला कर सुला चुकी थी।  एक नौकर दौड़ता हुआ पन्ना के पास आया  और उसने दाई को  सब कुछ बता दिया. पन्ना दाई, एक तरफ उसका खुद का बेटा  चन्दन था जो उदय सिंह का हमउम्र और उसका खेल साथी था और दूसरी तरफ था मेवाड़ का आखरी दूधमुँहा  राणा , राणा उदय सिंह। मेवाड़ का  आखरी खून ,आखरी वंशज।
दाई के लिए ये समय या तो अपने  कर्तव्य  का संपूर्ण रूप से निर्वाहन करने का था या कर्तव्य  विमुखता का।
दाई ने पल भर में निर्णय लिया ,और अपने बेटे को गोद  में उठाकर आखरी बार उस माँ ने अपने बेटे पर दुनिया भर का लाड प्यार बरसाया।  उसने आखरी बार अपने बेटे चन्दन को प्रेम से चूमा और मन में सोचा होगा और कहा होगा की " मेरे लाल मुझे माफ़ कर दे, मुझे नमक का क़र्ज़ चुकाना है और अपना कर्तव्य निभाना है. "
दाई ने राज पालने में से उदय सिंह को उतार लिया उसके कपडे चन्दन को पहनाये और उदय सिंह की जगह चन्दन को राज पालने मै कम्बल ओढ़ा कर सुला दिया। पन्ना ने उदय सिंह को एक टोकरी में रखकर एक नौकर की मदद से किले के बहार पहुँचवा दिया और उस नौकर से बाद मैं  नदी के पास  मिलने को कहा।
बनबीर खून सी लाल सुर्ख आँखों के साथ कक्ष में दाखिल हुआ ,
बनबीर :- " उदय सिंह कहाँ है ?"
पन्ना दाई ने पालने की तरफ इशारा कर दिया।  और अगले ही पल एक माँ के सामने उसके ही दूधमुहे बच्चे को दो टुकड़ो में काट दिया गया।
पन्ना की आँख से एक आंसू न निकला वो बस सहमी सी खड़ी  रही। माँ की ममता ,प्रेम लाड ,प्यार सब कुछ बिखर चूका था या यूँ कहो के दो टुकड़ो में बँट चूका था।
बनबीर रक्तपात कर जा चूका था।  मगर पन्ना के पास अभी रोने और विलाप का समये  नहीं था। वो अपने बेटे का दाह संस्कार न तो करवा पायी और न ही देख पायी।  बनबीर राजा बन चूका था।
पन्ना नौकर से नदी किनारे   मिली और नन्हे राणा को लेकर कुम्भलगढ़ चली गयी। वहां कुम्भलगढ़ के एक जैन व्यापारी ने उन्हें अपने यहाँ आश्रय दिया।
रा���ा उदय बड़ा हुआ और एक कुशल योद्धा बना। बात दूर तक फैली और  मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ तक पहुंची अब भी कुछ  दरबारी असल राजा के वफादार थे। बनबीर को पता चला के मेवाड़ का असल राजा राणा उदय अभी जीवित है। उदय सिंह सिर्फ 18 वर्ष  का था और राज गद्दी के लिए फिरसे  युद्ध हुआ।
बनबीर  बुरी तरह परास्त हुआ वो मारा गया या भाग गया ये इतिहास में कहीं नहीं है।
राणा उदय प्रताप सिंह का मेवाड़ और चित्तौड़ की गद्दी पर राज्याभिषेक हुआ और आज का उदयपुर शहर उन्ही का बसाया हुआ है। राणा उदय सिंह वीरो के वीर राजपूत राजा महाराणा प्रताप सिंह के पिता बने।
राज्याभिषेक के बाद पन्ना दाई को राज माता के समान ओहदा मिला। पर इतिहास में कहीं भी पन्ना दाई के बलिदान और उसके कर्तव्य के प्रति निष्ठां का कोई भी बखान नहीं है।   पन्ना दाई इतिहास के पन्नो में खो सी गई। पन्ना दाई ने राजवंश के आखरी चिराग को अपने बेटे की  आहुति देकर बचाया ,और बचाने के बाद उसने  राणा को इस लायक बनाया की वो वापस अपना हक़ ,अपना राज्य वापस ले सके.
पन्ना दाई की ये कहानी युगो युगो तक हमे और आने वाली पीढ़ियों को सदैव कर्तव्यनिष्ठा का पाठ सिखाती रहेगी।
धन्य है वह भूमि जहाँ पन्ना दाई जैसी माँएं रही हैं।
पढ़ने के लिए धन्यवाद।
-अशेष सिंह ठाकुर 'हरि’
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thenewspantry · 4 years
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राजस्थान में जारी है सत्ता का संग्राम, पायलट और गहलोत दोनों खेमे आजमा रहे हैं नये पैंतरे
राजस्थान में जारी है सत्ता का संग्राम, पायलट और गहलोत दोनों खेमे आजमा रहे हैं नये पैंतरे
न्यूज पैंट्री डेस्क: राजस्थान में सत्ता का संग्राम जारी है. सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट दोनों खेमे के नेता अलग-अलग जगह होटलों में डेरा जमाये हुए हैं. गहलोत खेमा जहां जयपुर के एक लग्जरी होटल में ठहरा हुआ है तो वहीं पायलट गुट दिल्ली के एक होटल में डेरा डाले हुए है. दोनों तरफ से वार पलटवार का खेल जारी है. तलवारें खींची हुई है. सत्ता के संघर्ष में रेज नये पैंतरे आजमाये जा रहे हैं.
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urbandehati · 5 years
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स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी द्वारा 1918 से 1948 तक किए गए आंदोलन उनका प्रभाव और परिणाम।
शॉर्ट में बोले तो गांधीजी के कर्मकांडों का कच्चा चिट्ठा
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1) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश वाइसरॉय के आमंत्रण पर गांधीजी उनसे मिले और उन्हें भरोसा दिलाया कि ब्रिटिश ताज के रक्षा हेतु ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को ब्रिटिश सेना में शामिल करने के लिए अभियान चलाएंगे और युद्ध की समाप्ति तक राज की मदद के लिए कोई आंदोलन नही करेंगे।
2) चंपारण सत्याग्रह : यह किसान सत्याग्रह गांधीजी के सबसे सफल आंदोलनों में से एक माना जाता है और इसी आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने गांधी को राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी नहीं लेकिन कूटनीतिक मित्र बनाने के कदम उठाने शुरू किए। इस सत्याग्रह के बाद गांधीजी को कभी कठोर कारावास की सजा नहीं दी गई।
3. 1) खिलाफत आंदोलन : सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण के उद्देश्य से गांधीजी ने पूरे भारत देश को एक पराये देश (तुर्कीस्तान) के पचडे में फंसा दिया लेकिन फिर भी वे मुसलमान नेताओं को खुश नहीं रख पाए और आंदोलन के तुरंत बाद मुस्लिमों ने कांग्रेस से अलग अपनी राजनीति की शुरुआत कर दी।
3.2) खिलाफत आंदोलन के बाद ही सही मायने में सांप्रदायिक राजनीति की शुरुआत हुई और रविंद्रनाथ टैगोर जैसी हस्तियों ने खिलाफत के समर्थन के लिए गांधीजी की आलोचना की।
4.1) असहकार आंदोलन : सन 1919 में गांधीजी ने अपने जीवन के सबसे बड़े आंदोलन का आगाज किया और इस आंदोलन के चलते कईं युवाओं ने ब्रिटिश कॉलेज से पढाई छोडी, लोगों ने अपनी नौकरीयां छोडीं और समग्र देश अराजकता के दौर में धकेल दिया गया। जलियांवाला बाग हत्याकांड भी इसी दौरान घटित हुआ।
4.2) दो साल के विराट आंदोल�� के बावजूद भी गांधी ब्रिटिश सत्ता का बाल भी बांका नहीं कर पाए और निराश गांधी ने चौरीचौरा जैसी छोटी सी घटना का बहाना बना कर आंदोलन समेट लिया और जो लाखों युवाओं ने स्वराज के लिए अपनी पढ़ाई और कमाई छोडी थी उनका भविष्य अंधकार में धकेल दिया।
5. 1) दांडी सत्याग्रह : दांडी के लिए कुच करने से पहले गांधीजी ने ऐलान किया कि "कुत्ते कौवे की मौत मरना पसंद करूंगा लेकिन बिना पुर्ण स्वराज लिए वापस नहीं लौटुंगा" (NB: दांडी यात्रा के 17 साल बाद भारत स्वतंत्र हुआ।)
5.2) 1931-32 में चर्चास्पद गांधी-इरवीन समझौता और round table conference के दौरान भी देशवासियों को आशा थी कि गांधीजी पूर्ण स्वराज की बात करेंगे और भगतसिंह की फांसी पर रोक लगाने के लिए प्रयास करेंगे लेकिन फिर से एक बार गांधी ने देश को निराश ही किया।
6.1) भारत छोड़ो आंदोलन : इतनी विफलताओं के बावजूद गांधीजी की दुम में एक और आंदोलन का कीड़ा जाग उठा और बिना किसी पुर्व-आयोजन के उन्होंने Quit India Movement शुरू कर दी। लाखों लोगों ने लाठीयां खाईं और कईंयों ने जान गंवाई लेकिन आंदोलन सफल नहीं हुआ।
6.2) भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधीजी को पूणे के आगाखान महल में नजरबंद किया गया और अन्य कांग्रेसी नेताओं को भी जेलों में बंद कर दिया गया, बिना सक्षम नेतृत्व के आंदोलन ने दम तोड़ दिया। यह गांधीजी का अंतिम प्रयास था जिसमें वो असफल ही रहे।
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writerss-blog · 2 years
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राजनीतिक तनाव
Picture by: Google राजनीति में तनाव आया है लोकतंत्र का चुनाव आया है, नेताओं के बोल खोलते एक दूजे के पोल मीडिया सोशल मीडिया में तीखी बहस से भूचाल आया है , लोकतंत्र का चुनाव आया है । ईडी सीबीआई आईटी का बढ़ता दबाव विरोधी दलों में भ्रष्टाचार का अलाव सुलगते सवालों के पोल खोल सत्ता और विपक्ष का बिगड़ता ताल मेल राजनीति में संग्राम लाया है, लोकतंत्र का चुनाव आया है ।।
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cinnewsnetwork · 2 years
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शिंदे-उद्धव विवाद में 27 सितंबर को सुनवाई
शिंदे-उद्धव विवाद में 27 सितंबर को सुनवाई
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शुरू हुआ सियासी संग्राम अब तक जारी है। शिवसेना पर किसका हक होगा? इसे लेकर भी मामला कोर्ट में है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तारीख तय की है,महाराष्ट्र में जारी सियासी संग्राम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। साथ ही सत्ता संघर्ष की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। सुप्रीम कोर्ट में…
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