*जीवन को जीवन्त कर दिखलाओ*
कौन है वो मानव जो, जीकर भी है मृत समान
कविता के द्वारा करूं, इस पहेली का समाधान
जिन्दा होकर भी जिन्दा नहीं, ऐसा प्राणी कौन
मैंने उनको पहचाना, धारण करके मन का मौन
मिट ना पाती इच्छाएं, रहता सदा उनके अधीन
अध्यात्म से दूर होकर, रहता वासनाओं में लीन
लिप्त रहे काम वासना में, जो है अत्यन्त भोगी
उसका जीवन मृत समान, कहलाता है वो रोगी
दुनिया के विपरीत चले, वो वाममार्गी कहलाता
नियम और मर्यादाओं का, जीवन उसे ना भाता
बात बात पर आलोचना, करती जिसकी वाणी
ना माने जो कोई कायदा, मृत समान वो प्राणी
कार्य धर्म का करने में, आती हो जिसको लाज
धन के लोभ में डूबकर, बन जाता वो दगाबाज
दया करे ना किसी पर, सिर्फ अपना लाभ सोचे
मृत समान वो मानव है, जो हक औरों का नोचे
जिसका साहस और, आत्मविश्वास मिट जाता
ऐसा मानव जीवन में, सफलता कभी ना पाता
मनोबल के अमूल्य धन से, दरिद्र वो रह जाता
ऐसा व्यक्ति समाज में, मरे समान ही कहलाता
अपने जीवन के निर्णय, जो खुद नहीं ले पाता
हर कार्य में औरों से, सहयोग की आस लगाता
महामूर्ख है वो प्राणी, जो रहता विवेक से हीन
जीकर भी जिन्दा नहीं, वो सबकी दृष्टि में दीन
सामाजिक मर्यादाओं का, देता गला जो घोट
अपने आत्मसम्मान पर, जो खुद लगाता चोट
जो अपने कुकर्मों से, समाज में होता बदनाम
जीवित लोगों में उसका, लिया ना जाता नाम
पालकर बैठा है जो, अपने तन में हजारों रोग
सेहत बिगाड़ चुका हो, कर करके लाखों भोग
जीवन का सच्चा आनन्द, भोग नहीं वो पाता
ऐसा प्राणी मृत्यु की, कामना में ही लग जाता
वृद्धावस्था के चरम पर, जिसका जीवन आया
शरीर और बुद्धि दोनों को, अक्षम उसने पाया
आश्रित होता औरों पर, जीना कठिन हो जाता
मृत्यु की प्रतिक्षा में, केवल कष्ट भोगता जाता
सदा क्रोध जो करता, वो जालिम ही कहलाता
उसका उपस्थित होना, सबको दुखी कर जाता
अनेक जीवों को पहुंचाता, जीवन भर आघात
भावना हीन ऐसे पुरुष से, ना करता कोई बात
पापकर्म से अर्जित धन से, पालता जो परिवार
सदा प्रदूषित ही रहते, उसके बच्चों के संस्कार
जो अपने ही सुख की, कामना में रहता खोया
हर जन्म के लिए उसने, खुद का भाग्य डुबोया
संवेदनहीन होकर जिसने, सोचा अपना स्वार्थ
कर ना पाया जीवन भर, जो एक भी परमार्थ
खाने पीने भोगने में, अपना जीवन जो बिताता
ऐसा व्यक्ति देश के लिए, अनुपयोगी कहलाता
सबका अपमान करने से, जो ना कभी चूकता
ऐसा प्राणी खुद अपने, व्यक्तित्व पर ही थूकता
हर कार्य में कमी देखता, कहलाता वो नादान
करे सदा जो परनिंदा, वो इंसान है मृत समान
अहंकार में डूबकर जो, परमात्मा को दे नकार
कभी ना कर पाता वो, अपने भाग्य का सुधार
ईश्वर प्रति ना शेष बची, जिसके मन में आस्था
कोई नहीं रखना चाहेगा, ऐसे व्यक्ति से वास्ता
संस्कारों के संशोधन का, जो करता हो विरोध
उसके ही जीवन में आते, अनेकानेक अवरोध
दुर्गुण जितने बताए हैं, उनसे खुद को बचाओ
अपने जीवन को तुम, जीवन्त कर दिखलाओ
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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