bkkm1973
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bkkm1973 · 10 months ago
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*क्षमताओं पर न इतराना*
*क्षमताओं पर न इतराना*
लोहा अपनी ताकत पर, देखो कितना इतराता
लेकिन उसे ज्ञान नहीं, कि आग उसे पिघलाता
अग्नि बहुत इतराती, कि मैं लोहे को पिघलाती
याद उसे न रह पाता, कि जलधार उसे बुझाती
जल भी इतराने लगा, कि मैं अग्नि को बुझाता
भूल गया वो किंचित, कि मानव उसे पी जाता
मानव को वहम हुआ, कि मैं पानी को पी जाता
भूल गया वो मूल सत्य, कि मौत उसे खा जाता
मौत भी मुस्काने लगी, कि मैं जीवन को हराती
मगर दुआ सबसे बड़ी, जो मौत को टाल जाती
अपने ही स्थान पर, हर शक्ति उपयोग में आती
अपने आप में कोई एक, महान कहला न पाती
भूले से भी तुम अपनी, क्षमताओं पर न इतराना
आपस के तालमेल से, जीवन खुशहाल बनाना
*ऊँ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 10 months ago
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*चरित्र का सर्वोच्च सोपान*
*चरित्र का सर्वोच्च सोपान*
काया की ये उजली धूप, सारी बिखर जाएगी
चमकती हुई ये त्वचा, पूरी ही सिकुड़ जाएगी
रूप की सारी रंगीनियाँ, कल नजर न आएगी
यौवन की ये घड़ियाँ, एक दिन सिमट जाएगी
वक्त जब बदलेगा तो, चेहरा भी बदल जाएगा
दमकता ये रूप लावण्य, कालिमा को पाएगा
शरीर की ये सारी चमक, केवल भ्रम का खेल
आखिर कब तक करोगे, देह संग विकारी मेल
और बढ़ेगी इच्छा तेरी, इंद्रियों का सुख पाकर
इक दिन घिर जाएगा, दुखों के चक्र में आकर
जब तक है ये जवानी, भोग विलास में सोएगा
जब लुट जाएगी ये सारी, तो विलाप में रोएगा
समझ ये सच्चाई मानव, रूप रंग सब नाशवान
इसका घमंड छोड़ दे, समझाते हैं खुद भगवान
तन है सबका विनाशी, आत्मा का न होता नाश
देह का मोह त्यागकर, जगा आत्मा पर विश्वास
सीमाओं में बंधा शरीर, किन्तु आत्मा है असीम
आकर बड़ा है तन का, आत्मा है अदृश्य महीन
चिन्तन कर आत्मा का, अतीन्द्रिय सुख पाएगा
विनाशी तन का आकर्षण, पूरा ही मिट जाएगा
आत्मा है अनमोल निधि, मलिन होने से बचाना
चरित्र का सर्वोच्च सोपान, प्राप्त कर दिखलाना
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 11 months ago
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*अपनी जीत के इरादे पर*
*अपनी जीत के इरादे पर*
किस्मत में क्या लिखा है, क्यों उसको मैं जानूं
सब है कर्मों का फल, बात यही केवल मैं मानूं
खुशी आती है वक्त पे, आता वक्त पर ही गम
चिन्ता मुझे क्या करनी, हौसले में जब हो दम
नसीब का बहाना देकर, रोते क्यों रहते हैं लोग
खुद को दुखी बताने का, पाले क्यों बैठे हैं रोग
जैसी भी मेरी किस्मत, मैं उसको न देता दोष
किसी बात का मेरे दिल में, नहीं जरा भी रोष
मैं ही खुद बदलूंगा इसे, जगाकर मन में जोश
कहीं भटक न जाए कदम, रखूंगा मैं पूरा होश
वादा खुद से निभाने की, जलाई दिल में आग
मुकद्दर चमका दे ऐसी, छेड़ दी मैंने सुंदर राग
कंकड़ पत्थर नदी नाले, और पहाड़ भी मंजूर
मंजिल पर पहुंचने का, हौसला मुझ में भरपूर
तकदीर मेरी खरी उतरेगी, संवरने के वादे पर
कायम अगर रहूंगा, अपनी जीत के इरादे पर
*ऊँ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*जीवन को जीवन्त कर दिखलाओ*
कौन है वो मानव जो, जीकर भी है मृत समान
कविता के द्वारा करूं, इस पहेली का समाधान
जिन्दा होकर भी जिन्दा नहीं, ऐसा प्राणी कौन
मैंने उनको पहचाना, धारण करके मन का मौन
मिट ना पाती इच्छाएं, रहता सदा उनके अधीन
अध्यात्म से दूर होकर, रहता वासनाओं में लीन
लिप्त रहे काम वासना में, जो है अत्यन्त भोगी
उसका जीवन मृत समान, कहलाता है वो रोगी
दुनिया के विपरीत चले, वो वाममार्गी कहलाता
नियम और मर्यादाओं का, जीवन उसे ना भाता
बात बात पर आलोचना, करती जिसकी वाणी
ना माने जो कोई कायदा, मृत समान वो प्राणी
कार्य धर्म का करने में, आती हो जिसको लाज
धन के लोभ में डूबकर, बन जाता वो दगाबाज
दया करे ना किसी पर, सिर्फ अपना लाभ सोचे
मृत समान वो मानव है, जो हक औरों का नोचे
जिसका साहस और, आत्मविश्वास म��ट जाता
ऐसा मानव जीवन में, सफलता कभी ना पाता
मनोबल के अमूल्य धन से, दरिद्र वो रह जाता
ऐसा व्यक्ति समाज में, मरे समान ही कहलाता
अपने जीवन के निर्णय, जो खुद नहीं ले पाता
हर कार्य में औरों से, सहयोग की आस लगाता
महामूर्ख है वो प्राणी, जो रहता विवेक से हीन
जीकर भी जिन्दा नहीं, वो सबकी दृष्टि में दीन
सामाजिक मर्यादाओं का, देता गला जो घोट
अपने आत्मसम्मान पर, जो खुद लगाता चोट
जो अपने कुकर्मों से, समाज में होता बदनाम
जीवित लोगों में उसका, लिया ना जाता नाम
पालकर बैठा है जो, अपने तन में हजारों रोग
सेहत बिगाड़ चुका हो, कर करके लाखों भोग
जीवन का सच्चा आनन्द, भोग नहीं वो पाता
ऐसा प्राणी मृत्यु की, कामना में ही लग जाता
वृद्धावस्था के चरम पर, जिसका जीवन आया
शरीर और बुद्धि दोनों को, अक्षम उसने पाया
आश्रित होता औरों पर, जीना कठिन हो जाता
मृत्यु की प्रतिक्षा में, केवल कष्ट भोगता जाता
सदा क्रोध जो करता, वो जालिम ही कहलाता
उसका उपस्थित होना, सबको दुखी कर जाता
अनेक जीवों को पहुंचाता, जीवन भर आघात
भावना हीन ऐसे पुरुष से, ना करता कोई बात
पापकर्म से अर्जित धन से, पालता जो परिवार
सदा प्रदूषित ही रहते, उसके बच्चों के संस्कार
जो अपने ही सुख की, कामना में रहता खोया
हर जन्म के लिए उसने, खुद का भाग्य डुबोया
संवेदनहीन होकर जिसने, सोचा अपना स्वार्थ
कर ना पाया जीवन भर, जो एक भी परमार्थ
खाने पीने भोगने में, अपना जीवन जो बिताता
ऐसा व्यक्ति देश के लिए, अनुपयोगी कहलाता
सबका अपमान करने से, जो ना कभी चूकता
ऐसा प्राणी खुद अपने, व्यक्तित्व पर ही थूकता
हर कार्य में कमी देखता, कहलाता वो नादान
करे सदा जो परनिंदा, वो इंसान है मृत समान
अहंकार में डूबकर जो, परमात्मा को दे नकार
कभी ना कर पाता वो, अपने भाग्य का सुधार
ईश्वर प्रति ना शेष बची, जिसके मन में आस्था
कोई नहीं रखना चाहेगा, ऐसे व्यक्ति से वास्ता
संस्कारों के संशोधन का, जो करता हो विरोध
उसके ही जीवन में आते, अनेकानेक अवरोध
दुर्गुण जितने बताए हैं, उनसे खुद को बचाओ
अपने जीवन को तुम, जीवन्त कर दिखलाओ
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*और भला होगा कौन*
सखा रूप सुन्दर उसका, मेरे मन को भाया
मेरा एकांकीपन उसने, संगी बनकर मिटाया
हर बात मेरी सुनकर, नेक राय मुझको देता
पल भर में वो मेरे, जीवन के दुख हर लेता
सांझी मेरे दुख सुख का, साथ सदा चलता
उसका सहयोगी भाव, उम्र भर न बदलता
मदद सदा मेरी करता, लेकर भाव समर्पण
मेरे कष्ट मिटाने को, करता सबकुछ अर्पण
केवल एक वही मेरे, इस जीवन का सहारा
सब रिश्तों में एक वही, प्यारा सखा हमारा
बिन कुछ बोले समझे, हर एक समस्या मेरी
हाथ पकड़ लेता मेरा, जब छाये घटा घनेरी
बन गया है मेरा जीवन, मुस्कान भरा त्योहार
हर घड़ी अनुभव होता, स्नेही सखा का प्यार
सच्चे सखा की बातों से, मन में आए जवानी
जीवन भी बनने लगता, खुशियों भरी कहानी
पहचाना मैंने उसे, धारण करके मन का मौन
खुदा दोस्त के सिवाय, और भला होगा कौन
*ऊँ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*किस्मत बदलने की घड़ी*
अपने सपनों को हिम्मत के पंख लगाओ
सच भी हो जायेंगे पहले नींद को भगाओ
मुश्किल रस्ते में आयेगी उनसे मत हारना
बुलन्द इरादे से स्वयं को खेल में उतारना
सांसों के घृत से जीवन का दीपक जलता
एक जैसा न रहता समय अवश्य बदलता
तपस्या की अग्नि में पाँचों विकार जलाओ
सोने जैसा चमककर जीत का पर्व मनाओ
कर्तव्य निभाने का साहस स्वयं में जगाओ
पथ में आये विघ्नों को आसानी से हराओ
आशाओं की किरणें अपने मन में जगाओ
याद करे दुनिया कुछ ऐसा कर दिखलाओ
बाधाओं के प्रवाह को अपने गले लगाओ
जीवन की समस्या हल करके दिखलाओ
लक्ष्य का संकेत हर मोड़ पे मिल जायेगा
मिट्टी से सोना भी अवश्य निकल आयेगा
ने�� इरादों पर हिम्मत अगर है चलने की
घड़ी पास आयेगी किस्मत के बदलने की
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*बहारों की महफिल*
न जाओ उस राह पर, जिसकी न कोई मंजिल
बेइंतहा आरजूएं न रखो, होगा न कुछ हासिल
हर किसी की जिन्दगी, उसकी अपनी अमानत
मत होना कभी किसी की, दहलीज में दाखिल
दिखाना अपना हुनर, जहां को बेहतर बनाने में
तभी बन पाओगे तुम, सबकी दीद के काबिल
अपना किरदार तुम, उस मुकाम तक पहुंचाना
दूर कर सको जहां पर, हर किसी की मुश्किल
बेगरजी का अंदाज तुम, सदा अपनाए रखना
बहारों की तुम्हारे घर में, सजी रहेगी महफिल
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*चिन्तन के चिराग से चिन्ता मिटाओ*
रुककर जरा सा देख ले, तूँ किसके पीछे भाग रहा
चैन की नींद गंवाकर तूँ, किस चिन्ता में जाग रहा
चिन्ता के चौराहे पर बैठा, चिन्तन क्या कर पायेगा
मन के बिगड़े सन्तुलन से, जीवन भटकता जायेगा
चिन्ता रूपी ये दावानल, मानव को जिन्दा जलाता
चिन्तन का चिराग जले तो, नया मार्ग जीवन पाता
चिन्तन की पगडंडी कभी, इधर उधर न भटकाती
हर तनाव मिटाकर, आनन्द का अनुभव करवाती
चिन्तन इक शीतल चाँदनी, घोर अंधियारा भगाती
कुण्ठा, निराशा और हताशा, अन्तर्मन से मिटाती
आत्म सृजन करो अपना, बहाकर चिन्तन की धार
चिन्ता लुप्त हो जायेगी, उभरेंगे जब दिव्य संस्कार
छोड़कर सारी चिन्ताएं, कर लो तुम आत्म चिन्तन
बन जायेगा सारा जीवन, महकता हुआ एक चन्दन
*ऊँ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*सूरज की तपन से मुक्ति*
*सूरज की तपन से मुक्ति*
जेठ मास की ये दोपहरी, चिंगारी बरसाती
सूरज के ताप से लगती, छाया बड़ी प्यारी
सुख गए ताल तलईया, तड़पे प्यासी गईया
कैसे चल पाएगी बोलो, जीवन की ये नईया
सुख गई पेड़ों डाली, हर फुलवारी मुरझाई
सूरज के मुख से, प्रचण्ड अग्नि उमड़ आई
दोष न दे सूरज को, विपदा तुमने उपजाई
लालच में की है तुमने, पेड़ों की खूब कटाई
प्रकृति के प्रति अपना, दया का भाव जगा
कम से कम एक पेड़, तू हर मौसम में लगा
शुरू कर ये आन्दोलन, वृक्ष ही मुझे लगाना
सारी धरती पर केवल, हरियाली ही फैलाना
धरती का आंगन जब, पेड़ों से सज जाएगा
तपन से मुक्त होकर, सुकून की छांव पाएगा
*ऊँ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*बिल्कुल भी न घबराओ*
दिल की धड़कन जब, साथ छोड़कर जाती
जिन्दगी एक धक से, खत्म सी नजर आती
इंसान का जिस्म, निढ़ाल होकर पड़ा रहता
सुनता न कोई बात, और न ही कुछ कहता
रूह चली जाती, जिस्म को पराया मानकर
फिर कभी न आती, उसी जिस्म में लौटकर
बुलावे भेजते रहो, मिन्नतें भी कर लो हजार
सोया हुआ वो सख्श, न उठता एक भी बार
बड़ी ही डरावनी लगती, मौत इसे हम कहते
आती है सबको लेकिन, इससे ही हम डरते
कीमत है जीवन की, मगर मरना भी जरूरी
जब चाहे तब आने की, दे दो उसको मंजूरी
मौत आई तो भी हमसे, क्या लेकर जाएगी
वापस जन्म पाने से, हमें रोक न वो पाएगी
जब तक है ये जीवन, खुशी से जीते जाओ
मौत यदि आए तो, बिल्कुल भी न घबराओ
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*विजय पताका लहरा*
जीवन है एक खेल, बिना रुके ये चलता
खेलने वाला अपना, दांव जरूर बदलता
जीवित रहने तक, ये खेल खेलना पड़ता
सांसे रुक जाए तो, खेल से जाना पड़ता
खेल में रहने तक, खेलो इसे जी भरकर
खेलना मत छोड़ो, मैदान में तुम उतरकर
जीत उसे मिलेगी, जो बढ़ता रहेगा आगे
लक्ष्य वही पाएगा, जो आराम को त्यागे
नए पुराने खिलाड़ी, तुझको सभी मिलेंगे
तुझे समझ न आए, ऐसी चालें वो चलेंगे
कम नहीं किसी से, तू भी है बुद्धि वाला
इतनी आसानी से, तू हार न खाने वाला
सीख पैंतरे जीतने के, खेल ये समझकर
अपनी अकल से, दिखा बाजी पलटकर
रोज करता चल, खुद पर विश्वास गहरा
अपने बलबूते पर, विजय पताका लहरा
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*शांति की लहर*
*शांति की लहर*
शब्दों से अधिक मौन की, कीमत तुम पहचानो
अपने मन में तुम इसको, धारण करने की ठानो
कुछ ना कुछ बोलने को, ये मन तुम्हें उकसाएगा
न कहने वाला शब्द ही, वाणी से निकल जाएगा
पछतावा होगा तुम्हें, निराशा भी बहुत सताएगी
तुम्हारी हिम्मत की डोर भी, टूटती नजर आएगी
निराशा छोड़कर तुम, यही प्रयास फिर दोहराना
मौन को धारण करने का, अभ्यास करते जाना
वो दिन भी आयेगा जब, सफलता मिल जाएगी
तुम्हारे अन्दर मौन की, शक्ति संचित हो जाएगी
कल्याण हो जिसमें, मुख पर शब्द वही आएगा
तुम्हारा सामान्य शब्द भी, महावक्य कहलाएगा
शिखर वही पुरुषार्थ का, छूकर तुम दिखलाओ
मौन बल से चारों और, शांति की लहर फैलाओ
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*जीवन का आनन्द*
*जीवन का आनन्द*
सुख शांति से जीना है, तो नियम कुछ अपना लो
आशा ना रखो किसी से, स्वयं को सक्षम बना लो
बीत गई जो बातें उन्हें, कभी ना रखना पकड़कर
नरमी रखो व्यवहार में, ना रहना कभी अकड़कर
औरों को बदलने की तुम, कोशिश भी ना करना
बदलना पड़े स्वयं को, तो बिलकुल भी ना डरना
आने वाली परिस्थितियां, रहती हैं जाने को तैयार
किन्तु वो ये कहती पहले, तुम करो मुझे स्वीकार
जब शान्त मन से सोचोगे, तो समाधान निकलेगा
वक्त जैसा भी आया है, वो हर हालात में बदलेगा
किसी के जीवन से तुम, अपनी तुलना मत करना
अन्तर्मन में औरों के प्रति, स्नेह की भावना भरना
शुद्ध संकल्पों के लिए करना, मन को तुम पाबन्द
प्रतिपल लेते रहना तुम, अपने जीवन का आनन्द
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*आत्म श्रद्धा और आत्म विश्वास का महत्व*
मनुष्य ने स्वयं में अन्तर्निहित क्षमताओं और शक्तियों के उपयोग द्वारा समुद्र की गहराई से लेकर चन्द्रमा तक पहुंचकर अपनी असीमित प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए अनगिनत अविष्कारों और उपलब्धियों का अम्बार लगा दिया है । इन सभी सफलताओं के लिये मनुष्य को अपनी शक्तियाँ उपयोग में लाने की क्षमता पर पूर्ण विश्वास होना भी आवश्यक था, अन्यथा सफलता के नाम पर उसके हाथ खाली ही रह जाते । इन समस्त अविष्कारों, उपलब्धियों और सफलताओं हेतु किये गये कठोर परिश्रम के गौरवशाली और प्रेरणादायक इतिहास ने मनुष्य को शक्तियों के भण्डार के रूप में परिभाषित किया है ।
आत्म विश्वास और आत्म श्रद्धा ही मनुष्य को अपनी विलक्षण क्षमताओं का उपयोग करने की प्रेरणा देती है । अपने भीतर की विलक्षण क्षमताओं के प्रति आस्था जितनी प्रगाढ़ होगी, सफलता भी उतनी ही महान होगी । लक्ष्य प्राप्ति हेतु वांछित हिम्मत तभी आती है जब मनुष्य में विद्यमान अद्भुत विशेषताओं, क्षमताओं और शक्तियों के प्रति आत्म श्रद्धा या आस्था पल्लवित होती है । उच्च कोटि के आत्मविश्वास और लक्ष्य के प्रति अडिगता ने हमेशा विस्मयकारी परिणाम दिये हैं ।
अपनी क्षमताओं पर पूर्ण आस्था, दृढ़ निश्चय और आत्म विश्वास के साथ आगे बढ़ने के अतिरिक्त सफलता पाने का अन्य कोई नियम नहीं है । सफलता देवकृपा से नहीं मिलती, बल्क��� आत्म श्रद्धा, कठोर परिश्रम और कष्टों को सहन करने की क्षमता ही सफलता दिलाती है । किसी व्यक्ति के शक्तिशाली होने, बौद्धिक रूप से प्रखर होने या किसी ऊँचे और प्रसिद्ध विश्वविद्यालय का मेधावी छात्र होने के उपरान्त आत्म विश्वास या आत्म श्रद्धा का अभाव उसे सफल नहीं बना सकता । यह निर्विवाद नियम है कि स्वयं पर पूर्ण विश्वास और श्रद्धा रखने वाला ही सफल होता है ।
लोगों द्वारा काल्पनिक और तुच्छ समझी गई उपलब्धियां हासिल करने में अनेक महान आत्माओं ने अविश्वसनीय सहन शक्ति का परिचय देते हुए अपना जीवन खपाकर मानव सभ्यता की उन्नति हेतु अनेक महत्वपूर्ण साधन उपलब्ध कराये । यदि लोगों के उपहास, तानों और आलोचनाओं के प्रभाव में आकर उनके द्वारा अपने प्रयासों को थमा दिया जाता तो विकास के नाम पर आज भी मानव सभ्यता सदियों पुरानी व्यवस्थाओं पर चल रही होती । यह सार्वभौमिक नियम है कि लक्ष्य जितना महान होगा, त्याग भी उतना ही करना पड़ेगा । यह सम्भव है कि अपने उद्देश्य की पूर्ति में अपनी सम्पत्ति, स्वास्थ्य, सामाजिक प्रतिष्ठा और लोगों का सम्मान खोना पड़े, किन्तु स्वयं पर विश्वास और भरोसा रहने तक विजय के द्वार मनुष्य के लिये सदा खुले रहेंगे । विलम्ब से ही सही, किन्तु आत्म विश्वास के साथ आगे बढ़ने वाले का मार्ग संसार स्वयं ही प्रशस्त करता है । इसलिये आलोचनाओं को केवल लक्ष्यमार्ग का गति अवरोधक पत्थर समझकर सहनशीलता के साथ धैर्यपूर्वक आगे बढ़ना चाहिये ।
मनुष्य के विचार ही उसका आदर्श है । सर्वशक्तिमान परमात्मा हमारा पिता, शिक्षक और सद्गुरू है जिनके मार्गदर्शन में चलने वाला मनुष्य सर्व सफलताओं का अधिकारी है । किन्तु इसी विस्मृति के कारण मनुष्य ने स्वयं में विद्यमान समस्त शक्तियों का उपयोग करके सफलता पाने का आत्म विश्वास गंवा दिया । आत्म विश्वास की शुन्यता ने मनुष्य को संसार की अनेक वस्तुओं, साधनों और सुविधाओं का उपभोग करने के अधिकार से वंचित कर दिया । स्वयं को छोटा, हीन और बौना समझने की मनोवृत्ति ने मनुष्य को निर्बल बनाकर उसका अपना ही भरोसा छीन लिया । आज मनुष्य अपनी साधारण सी आवश्यकताओं को पूर्ण करने का आत्मविश्वास भी खो चुका है । एक गरीब, निशक्त और दूसरों पर निर्भर रहने वाला व्यक्ति स्वयं को कभी हनुमान या भीमसैन नहीं कहला सकता । हताशा, निराशा, पराजय जैसी नकारात्मक भावनाओं को अपना आदर्श बनाने वाले का व्यक्तित्व भी वैसा ही निशक्त बन जाता है । यदि बाल्यकाल से बच्चों के मन में इस विचार का बीजारोपण कर दिया जाये कि संसार की उत्तम से उत्तम वस्तुयें उनके ��पयोग के लिये नहीं है । केवल श्रेष्ठ, अमीर और बड़े लोग ही उनका उपयोग कर सकते हैं तो वे स्वयं को तुच्छ श्रेणी का समझकर अपनी क्षमताओं और योग्यताओं का जीवन पर्यन्त उपयोग नहीं कर पायेंगे । उनका जीवन तुच्छ कार्यों में ही व्यतीत हो जायेगा । उन्हें स्वयं से भी कोई महान कार्य कर पाने की आशा नहीं रहेगी । यह हीन भावना मनुष्य का शक्तिशाली व्यक्तित्व पनपने ही नहीं देती । स्वयं को दूसरो की तुलना में निम्न और निर्बल समझकर मनुष्य अपनी ही क्षमताओं पर कुठाराघात करता है । व्यक्ति अपने जीवन, विचारों और भाग्य का निर्माता स्वयं होता है । मनुष्य को अपनी आत्मोन्नति और विकास के नैसर्गिक अधिकारों की वास्तविक समझ होनी ही चाहिये । अपने श्रेष्ठ भाग्य का निर्माण करने के मूल अधिकार का उपयोग करने की चेतना आज के मनुष्य में मुर्छित अवस्था में पड़ी है । इसी कारण समाज के अधिकांश लोग एक साधारण मिट्टी के ढ़ेले समान बनकर रह जाते हैं जिन्हें चंद लोग कुचलते हुए अनैतिक तरीकों से उन पर शासन करते हैं ।
मनुष्य स्वयं को परखकर अपनी शक्तियों और क्षमताओं का अनुमान लगा सकता है । उच्च आदर्शों की पालना और श्रेष्ठ उद्देश्य पर चलने से ही महत्वाकांक्षायें पूर्ण करने हेतु वांछित शक्तियों का जीवन में प्रादुर्भाव होता है । अक्सर हम सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति जो भी कार्य अपने हाथ में लेता है, वह पूरा कर दिखलाता है या उसके छूने मात्र से मिट्टी भी सोना बन जाती है । इन लोगों की सफलता का मूल कारण उनकी विलक्षण प्रतिभा, चरित्रबल और बुद्धिमता है जिसका सदुपयोग करके वे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सफलता प्राप्त कर लेते हैं । कहा जाता है कि विश्वास से ही विश्वास कायम होता है, श्रद्धा ही श्रद्धा को जन्म देकर बलवान बनाती है । आत्म विश्वास से सम्पन्न, अपनी विजय के प्रति पूर्ण आश्वस्त व्यक्ति के शक्तिशाली विचार और शब्द उसके सम्पर्क में आने वाले लोगों में वैसे ही उमंग उत्साह भरे विचारों और भावनाओं का सृजन करते हैं । यहां तक कि प्रकृति के पांच तत्व भी उनके हर कार्य में सहयोगी बन जाते हैं । ये सब मिलकर सफलता के प्रति विश्वास को अधिक सुदृढ़ बना देते हैं । इतिहास में अनेक महापुरुष आत्म श्रद्धा के बल पर आमजन में वही विश्वास और श्रद्धा जगाकर वांछित व्यवस्थायें सुस्थापित करने में सफल हुए हैं । प्रत्येक सफलता नये अनुभवों के साथ मनुष्य के व्यक्तित्व में गम्भीरता, विश्वास, श्रद्धा और शक्तियों का विकास करती है ।
किसी स्थूल वस्तु का निर्माण करने से पूर्व उसका वैचारिक रूप निर्मित होता है । तत्पश्चात् वह वस्तु अपना साकार रूप ले पाती है । विचार ही प्रत्येक उद्देश्य ही पूर्णता का आरम्भिक चरण है । मनुष्य की शक्तिशाली, सुदृढ़ और उद्देश्य पूरक कल्पना शक्ति ही परिणाम की गुणवत्ता निर्धार��त करती है । यदि विचार ही लचर और मंद होंगे तो परिणाम भी सुस्त ही होगा । समस्त महान कार्यों की सफलता का मूल आधार शक्तिशाली विचार और विघ्नकारी परिस्थितियों में भी अंगद समान अचल अडोल रहने वाला दृढ़ निश्चय है । मनुष्य के आत्म विश्वास पर ही सफलता की ऊँचाईयां निर्भर है । जितना ऊँचा आत्म विश्वास, उतनी बड़ी सफलता ।
अनेक उद्योगपत���यों ने सफलता पाने के लिये अपने कार्य को लेकर स्वयं पर दृढ़ निश्चय और आत्म विश्वास हमेशा कायम रखा । उन्हें अपने उद्देश्य की पूर्ति में इतनी श्रद्धा और लगन थी कि सामने आने वाली बाधाओं ने अपना मार्ग बदल लिया । उनकी सफलता देखकर यही लगता था कि भाग्य विधाता स्वयं उन पर प्रसन्न है । उन लोगों ने जिस किसी कार्य में हाथ डाला, उसी में उन्हें असाधारण सफलता मिली । ऐसे सफल व्यक्तियों के सम्बन्ध में आम जनता के अनेक अनुमानों के बावजूद वास्तविकता यही है कि उनके आशावादी दृष्टिकोण, सृजनात्मक विचार और दृढ़ निश्चय ने उन्हें सफल बनाया । उनके मन में किंचित ही सफलता के प्रति संदेह उत्पन्न हुआ होगा । इसलिये स्वयं में सफलता के प्रति शक्तिशाली विचार निरन्तर चलते रहने चाहिये । मनुष्य को स्वयं पर पूर्ण विश्वास और दृढ़ निश्चय होना चाहिये कि सफलता अवश्य मिलेगी ।
सुस्त महत्वाकांक्षा और शिथिल प्रयत्नों से कार्य सिद्ध होना असम्भव है । मनुष्य की श्रद्धा, निश्चय और प्रयासों में बल होना आवश्यक है । अपनी सम्पूर्ण शक्तियों के साथ मनुष्य को लक्ष्य प्राप्ति में लग जाना चाहिये । मनुष्य में आत्म श्रद्धा का अभाव ही उसकी आर्थिक, भौतिक और सामाजिक दरिद्रता का कारण है जो उसे किसी भी कार्य में सफल नहीं होने देता ।
आत्म विश्वास या आत्म श्रद्धा को अहंकार के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता । किसी कार्य को आरम्भ करने का निर्णय लेकर उसे पूर्ण करने की क्षमता का ज्ञान होना ही आत्म विश्वास या आत्म श्रद्धा की वास्तविक परिभाषा है जिस पर मनुष्य की समस्त उन्नति निर्भर है । मन में संशय, संदेह और शंकायें पालकर हानि लाभ की गणना में व्यस्त रहने वाला व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता । ऐसे व्यक्ति के कदम कार्य के आरम्भ से ही डगमगाते रहते हैं, निश्चय का अभाव उसे आगे बढ़ने नहीं देता । शंका, भय और कायरता के कारण उसका व्यक्तित्व मामूली सा होकर रह जाता है । प्रचण्ड बल से कार्य आरम्भ करने वाला ही सामने आने वाले सभी विघ्नों को हटाकर सफलता हासिल करता है । अस्थिर मन कभी भी कोई सिद्धि हासिल नहीं कर सकता । औरों के लिये असम्भव लगने वाला कार्य दृढ़ निश्चय वाला व्यक्ति पूर्ण आत्म विश्वास के साथ सम्पन्न करके दिखा देता है ।
आत्म श्रद्धा ही मनुष्य को परमात्म शक्तियों के साथ जोड़कर उसमें अपार शक्तियों का संचार करती है, जिनका उपयोग करके समस्त विघ्नों को ध्वस्त कर देता है । केवल एक ही काम जानने वाला व्यक्ति आत्म श्रद्धा के बल पर सफल हो सकता है । उसकी तुलना में दस काम जानने वाला व्यक्ति आत्म श्रद्धा के अभाव में निष्फल हो जाता है । इसलिये मनुष्य को स्वयं के भीतर विद्यमान विलक्षण क्षमताओं के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखते हुए सम्पूर्ण शक्ति और आत्म विश्वास के साथ ��ार्य आरम्भ करना चाहिये ।
*ऊँ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*हो जा तू तैयार*
मौके हजारों मिले तुझे, कुछ कर गुजरने के
बेकार ही गंवा दिए में, जो पल थे संवरने के
धोने थे बुराइयों के दाग़, तूने और ही बढ़ाए
बहुत पापों के बोझ, ख़ुद पर ही तूने चढ़ाए
कर सकता था पुण्य कर्म, मगर नहीं किया
विकारों के वश होकर, चरित्र बिगाड़ लिया
जीवन के अंत में आकर, पछतावा तू करता
पापों का फल भोगने से, अब तू काहे डरता
दिया ईशारा बहुत तुझे, देख नहीं क्यों पाया
समझाने में कमी न थी, तुझे समझ न आया
वक्त कुछ कम था, ये उलाहना नहीं स्वीकार
विकर्मों का फल भोगने को, हो जा तू तैयार
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*लक्ष्य ख़ुद ही चल पड़ेगा*
*लक्ष्य ख़ुद ही चल पड़ेगा*
ले लो थोड़ी सांस पथिक, कितना तुम चलोगे
पांवों की पीड़ाओं में तुम, कितना और पलोगे
मंजिल पाना ज़रूरी, किन्तु स्वस्थ सदा रहना
विश्राम जरा लेकर, लक्ष्य धारा के संग बहना
अवसर पाते ही स्वयं में, शक्ति करना संचित
कदमों में बल के बिना, रहोगे लक्ष्य से वंचित
केवल चलते रहने से, तुम मंजिल ना पाओगे
आधे रस्ते में ही तुम, ख़ुद को पूरा थकाओगे
लक्ष्य पाने की पहले, सम्पूर्ण योजना बनाओ
कैसे आगे बढ़ोगे तुम, उसका उपाय सुझाओ
विघ्न मिटाने की शक्ति, पहले स्वयं में भरना
तब ही उनके सामने, रण क्षेत्र में तुम उतरना
हर बाधा पार करके, अनेक अनुभव पाओगे
आगे बढ़ने की शक्ति, स्वयं में खूब बढ़ाओगे
लक्ष्य बिंदु को पाना, समझो अपना अधिकार
किंतु बाधाओं से लड़ने का, तुम पर ही प्रभार
आत्मबल जितना खुद में, इकट्ठा कर पाओगे
उतना ही आसान अपना, लक्ष्य पथ बनाओगे
लक्ष्य पाने का सपना, होगा सहज ही साकार
लक्ष्य ख़ुद ही चल पड़ेगा, करने तुम्हें स्वीकार
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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bkkm1973 · 1 year ago
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*अध्यात्म अपनाओ, परमात्मा को पाओ*
देह नहीं तुम हो आत्मा, जब ये जान जाओगे
अध्यात्म का आगमन, जीवन में होता पाओगे
मौन में रहना तुम्हारे, मन को बहुत ही भाएगा
अपने जीवन में तुम्हें, हल्कापन नजर आएगा
परमात्मा के कानों तक, पहुंचेगी बात तुम्हारी
कर ही लेगा मंजूर वो, तुम्हारी फरियादें सारी
पांच विकारों से जितनी, दूरियां तुम बढ़ाओगे
अपनी खोज में डूबकर, ईश्वर को तुम पाओगे
प्यार सम्मान स्नेह देना, सबको वही सिखाता
साधारण मनुष्य से वो, देवता सबको बनाता
अपना लो अध्यात्म को, मान लो बात हमारी
बदली सी नजर आएगी, तुमको दुनिया सारी
कभी भी अपना जीवन, दुख में ना बिताओगे
मिलन होगा खुद से, परमात्मा को भी पाओगे
*ॐ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
*मोबाइल नम्बर 9460641092*
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