#सोहं ओहं जानव बीरू । धर्मदास से कहा कबीरू ।। सत्य शब्द (नाम) गुरू गम पहिचाना। बिन जिभ्या करू अमृत
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#MuktiBodh_Part201
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 382-383
◆ज्ञानप्रकाश◆
दोहा - निर्गुण सर्गुण आदिहौ, अविगति अगम अथाह॥
गुप्त भये जग महँ फिरो, को तुव पाये थाह॥
सोरठा - मोहि परचे तुम दीन्ह, ताते चीन्दउँ तोदि प्रभु॥
भये चरण लोलीन, दुचिताई सकलो गयी।।
◆चौपाई
कीट ते भङ्ग मोहि प्रभुकीन्हा। निश्चलरंग आपनो दीन्हा।।
जिमिनिलते जग होय फुलेला। तिमि मोहिं भयोसमर्थपदमेला॥
पारस परसि लोहा जिमिहेमा। तिमि मोहिं भयउनाथव्रतनेमा।।
अगर परसि जिमिभयोसुवासा। जल प्रसंग बसन मल नासा॥
सनपट शुद्ध सूत कहे न कोई। प्रभुगुण लखित शिरनावे लोई॥
हे प्रभु तिमिमाहिं भयउ अनंदा। जिमिचकोरहरहितलखिचंदा॥
जनम मरण भी संशय नाशी। तवपद सुखनिधान सुखराशी॥
हे प्रभु अस शिख दीजै मोही। एको पल न विसारौ तोही॥
◆ सतगुरू वचन
जस मनसा तस आगे आवे। कहै कबीर इजा नहिं पावै॥
धर्मनि गुरुहि दोष देइ प्रानी। आपु करहिनर आपनहानी॥
जो गुरु वचन कहे चित लाई। बयापै नाहिं ताहि दुचिताई।।
जो गुरुचरन शिष्य संयोगा। उपजे ज्ञान न नासै भ्रम रोगा।।
जिमि सौदागर साहु मिलाहीं। पूँजि जोग बहु लाभ बढ़ाहीं॥
सतगुरु साहु सन्त सौदागर। सजीशब्द गुरुयोगा बहुनागर।।
जो गुरु शब्द कहे विश्वासा। गुरु पूरा पुरवहिं आसा।।
बिनु विश्वासा पावे दुखचेला। गहे न निश्चय हृदय गुरुमेला॥
सुत नारी तन मन धन जाई। तन जोरहे न प्रीति हटाई॥
शूरा हंस सोई कहलावै। अग्नि रहे तो शोक न लावे॥
जो विचले तो यम धरि खायी। अड़ा रहे तो निज घर जायी।
भावार्थ :- यह फोटोकॉपी कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 60 की है(attach in post)
सत्यलोक तथा परमेश्वर को सत्यलोक में पहचानकर धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी का धन्यवाद किया। कहा है कि जैसे पारस पत्थर से स्पर्श होने के पश्चात् लोहा स्वर्ण बन जाता है। ऐसे मेरा जीवन सत्य भक्ति से बहुमूल्य हो गया है। मेरा जन्म-मरण समाप्त हो जाएगा। जैसे भृंग, कीट को अपने समान बना लेता है, ऐसे आप जी ने मेरे को अपना शिष्य बनाया है। गुरू का शब्द (मन्त्र) विश्वास के साथ गहे (ग्रहण) करे तो उस शिष्य की मनोकामना गुरू पूरी करता है। सतगुरू भक्ति धन का शाह (सेठ) यानि धनी होता है। सेठ से धन लेकर
जो अपना व्यापार बढ़ाता है तो धनी हो जाता है यानि शिष्य गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करता है तो मोक्ष प्राप्त कर लेता है। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘
के पृष्ठ 61 में गुरू की महिमा बताई है। पढ़ने से आसानी से समझ आती है। अधिक सरलार्थ की आवश्यकता नहीं है।
◆ ज्ञानप्रकाश ◆
सोइ हम सोइ तुम सोइ अनन्ता। कहैं कबीर गुरु पारस सन्ता॥
सन्त चेतु चित सतगुरु ध्याना। कहै कबीर सद्गुरु परमाना॥
सतगुरु शब्द ज्ञान गुरु पुजा। कहैं कबीर लखु मोहनकुंजा॥
कुंज मोहि मोहन ठहरावे। कहै कबीर सोइ सन्त कहावे॥
सन्त कहाय जो सोधे आपू। कहैं कबीर तेहि पुण्य न पापू॥
पुण्य पाप नहिं मान गुमाना। कहैं कबीर सो लोक समाना॥
जिन्दा मुरदा चीन्है जीवा। कहैं कबीर सतगुरु निज पीवा॥
मुरदा जग जिन्दा सतनामा। कहैं कबीर सतगुरु निजधामा।।
यक जग जीते यक जग हारे। कहे कबीर गुरु काज सँवारे॥
◆ धर्मदास वचन
कौन जग जीते कौन जग हारे । कहौ कौन विधि काज सवारे॥
◆ सतगुरू वचन
इन्द्रिन जीते साधुन सो हारे। कहैं कबीर सतगुरु निस्तारे॥
सतगुरु सो सत्यनाम लखावे। सतपुर ले हंसन पहुँचावे॥
सत्यनाम सतगुरु तत भाखा। शब्द ग्रन्थ कथि गुप्तहिं राखा॥
सत्य शब्द गुरु गम पहिचाना। विनु जिभ्या करु अमृत पाना॥
सत्य सुरति अम्मर सुख चीरा । अमी अंकका साजहु वीरा॥
सोहं ओमं जावन वीरू। धर्मदास सो कहे कबीरू॥
धरिहौ गोय कहिहौ जिन काहीं । नाद सुशील लखेडो ताहीं॥
प्रथमहि नाद विन्द तब कीन्हा। मुक्ति पन्थसो नाद गहिचीन्हा॥
नाद सो शब्द पुरुष मुख बानी। गुरुमुख शब्द सो नाद बखानी॥
पुरुष नाद सुत पोडश अहई । नाद पुत्र शिष्यशब्द जो लहई।।
शब्द प्रतीति गहै जो हंसा। शब्द चालु जेहिसे मम बशा॥
शब्द चाल नाद दृढ़ गहहै। यम शिर पगु देइ सो निस्तरई॥
सुमिरण दया सेवा चित धरई । सत्यनाम गहि हंसा तरई॥
भावार्थ :- यह फोटोकॉपी कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 62 की है। इसमें सत्यनाम भी लिखा है जो धर्मदास को परमेश्वर कबीर जी ने जाप के लिए दिया था।
यह अपभ्रंश किया है :-
सोहं ओहं जानव बीरू। धर्मदास से कहा कबीरू।।
सत्य शब्द (नाम) गुरू गम पहिचाना। बिन जिभ्या करू अमृत पाना।।
विवेचन :- आप जी ने कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ की फोटोकॉपी पढ़ी।
ये प्रमाण के लिए लगाई हैं। भले ही इनमें कुछ मिलावट है, परंतु कुछ सच्चाई भी बची है। इस पृष्ठ पर यह भी स्पष्ट किया है कि नाद पुत्र दो प्रकार के हैं। जैसे सतलोक में सतपुरूष ने सोलह वचनों से सोलह सुत उत्पन्न किए थे। वे नाद पुत्र हैं तथा धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ली थी तो धर्मदास जी भी नाद पुत्र हुए। इसी प्रकार जो गुरू से दीक्षा
लेता है, वह नाद पुत्र होता है। उसे वचन पुत्र भी कहते हैं। अब आप जी को आत्मा (धर्मदास जी) तथा परमात्मा (कबीर बन्दी छोड़ जी) का यथार्थ संवाद अर्थात् धर्मदास जी को शरण में लेने का यथार्थ प्रकरण सुनाता हूँ।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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पेज नंबर 382-383
◆ज्ञानप्रकाश◆
दोहा - निर्गुण सर्गुण आदिहौ, अविगति अगम अथाह॥
गुप्त भये जग महँ फिरो, को तुव पाये थाह॥
सोरठा - मोहि परचे तुम दीन्ह, ताते चीन्दउँ तोदि प्रभु॥
भये चरण लोलीन, दुचिताई सकलो गयी।।
◆चौपाई
कीट ते भङ्ग मोहि प्रभुकीन्हा। निश्चलरंग आपनो दीन्हा।।
जिमिनिलते जग होय फुलेला। तिमि मोहिं भयोसमर्थपदमेला॥
पारस परसि लोहा जिमिहेमा। तिमि मोहिं भयउनाथव्रतनेमा।।
अगर परसि जिमिभयोसुवासा। जल प्रसंग बसन मल नासा॥
सनपट शुद्ध सूत कहे न कोई। प्रभुगुण लखित शिरनावे लोई॥
हे प्रभु तिमिमाहिं भयउ अनंदा। जिमिचकोरहरहितलखिचंदा॥
जनम मरण भी संशय नाशी। तवपद सुखनिधान सुखराशी॥
हे प्रभु अस शिख दीजै मोही। एको पल न विसारौ तोही॥
◆ सतगुरू वचन
जस मनसा तस आगे आवे। कहै कबीर इजा नहिं पावै॥
धर्मनि गुरुहि दोष देइ प्रानी। आपु करहिनर आपनहानी॥
जो गुरु वचन कहे चित लाई। बयापै नाहिं ताहि दुचिताई।।
जो गुरुचरन शिष्य संयोगा। उपजे ज्ञान न नासै भ्रम रोगा।।
जिमि सौदागर साहु मिलाहीं। पूँजि जोग बहु लाभ बढ़ाहीं॥
सतगुरु साहु सन्त सौदागर। सजीशब्द गुरुयोगा बहुनागर।।
जो गुरु शब्द कहे विश्वासा। गुरु पूरा पुरवहिं आसा।।
बिनु विश्वासा पावे दुखचेला। गहे न निश्चय हृदय गुरुमेला॥
सुत नारी तन मन धन जाई। तन जोरहे न प्रीति हटाई॥
शूरा हंस सोई कहलावै। अग्नि रहे तो शोक न लावे॥
जो विचले तो यम धरि खायी। अड़ा रहे तो निज घर जायी।
भावार्थ :- यह फोटोकॉपी कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 60 की है(attach in post)
सत्यलोक तथा परमेश्वर को सत्यलोक में पहचानकर धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी का धन्यवाद किया। कहा है कि जैसे पारस पत्थर से स्पर्श होने के पश्चात् लोहा स्वर्ण बन जाता है। ऐसे मेरा जीवन सत्य भक्ति से बहुमूल्य हो गया है। मेरा जन्म-मरण समाप्त हो जाएगा। जैसे भृंग, कीट को अपने समान बना लेता है, ऐसे आप जी ने मेरे को अपना शिष्य बनाया है। गुरू का शब्द (मन्त्र) विश्वास के साथ गहे (ग्रहण) करे तो उस शिष्य की मनोकामना गुरू पूरी करता है। सतगुरू भक्ति धन का शाह (सेठ) यानि धनी होता है। सेठ से धन लेकर
जो अपना व्यापार बढ़ाता है तो धनी हो जाता है यानि शिष्य गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करता है तो मोक्ष प्राप्त कर लेता है। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘
के पृष्ठ 61 में गुरू की महिमा बताई है। पढ़ने से आसानी से समझ आती है। अधिक सरलार्थ की आवश्यकता नहीं है।
◆ ज्ञानप्रकाश ◆
सोइ हम सोइ तुम सोइ अनन्ता। कहैं कबीर गुरु पारस सन्ता॥
सन्त चेतु चित सतगुरु ध्याना। कहै कबीर सद्गुरु परमाना॥
सतगुरु शब्द ज्ञान गुरु पुजा। कहैं कबीर लखु मोहनकुंजा॥
कुंज मोहि मोहन ठहरावे। कहै कबीर सोइ सन्त कहावे॥
सन्त कहाय जो सोधे आपू। कहैं कबीर तेहि पुण्य न पापू॥
पुण्य पाप नहिं मान गुमाना। कहैं कबीर सो लोक समाना॥
जिन्दा मुरदा चीन्है जीवा। कहैं कबीर सतगुरु निज पीवा॥
मुरदा जग जिन्दा सतनामा। कहैं कबीर सतगुरु निजधामा।।
यक जग जीते यक जग हारे। कहे कबीर गुरु काज सँवारे॥
◆ धर्मदास वचन
कौन जग जीते कौन जग हारे । कहौ कौन विधि काज सवारे॥
◆ सतगुरू वचन
इन्द्रिन जीते साधुन सो हारे। कहैं कबीर सतगुरु निस्तारे॥
सतगुरु सो सत्यनाम लखावे। सतपुर ले हंसन पहुँचावे॥
सत्यनाम सतगुरु तत भाखा। शब्द ग्रन्थ कथि गुप्तहिं राखा॥
सत्य शब्द गुरु गम पहिचाना। विनु जिभ्या करु अमृत पाना॥
सत्य सुरति अम्मर सुख चीरा । अमी अंकका साजहु वीरा॥
सोहं ओमं जावन वीरू। धर्मदास सो कहे कबीरू॥
धरिहौ गोय कहिहौ जिन काहीं । नाद सुशील लखेडो ताहीं॥
प्रथमहि नाद विन्द तब कीन्हा। मुक्ति पन्थसो नाद गहिचीन्हा॥
नाद सो शब्द पुरुष मुख बानी। गुरुमुख शब्द सो नाद बखानी॥
पुरुष नाद सुत पोडश अहई । नाद पुत्र शिष्यशब्द जो लहई।।
शब्द प्रतीति गहै जो हंसा। शब्द चालु जेहिसे मम बशा॥
शब्द चाल नाद दृढ़ गहहै। यम शिर पगु देइ सो निस्तरई॥
सुमिरण दया सेवा चित धरई । सत्यनाम गहि हंसा तरई॥
भावार्थ :- यह फोटोकॉपी कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 62 की है। इसमें सत्यनाम भी लिखा है जो धर्मदास को परमेश्वर कबीर जी ने जाप के लिए दिया था।
यह अपभ्रंश किया है :-
सोहं ओहं जानव बीरू। धर्मदास से कहा कबीरू।।
सत्य शब्द (नाम) गुरू गम पहिचाना। बिन जिभ्या करू अमृत पाना।।
विवेचन :- आप जी ने कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ की फोटोकॉपी पढ़ी।
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लेता है, वह नाद पुत्र होता है। उसे वचन पुत्र भी कहते हैं। अब आप जी को आत्मा (धर्मदास जी) तथा परमात्मा (कबीर बन्दी छोड़ जी) का यथार्थ संवाद अर्थात् धर्मदास जी को शरण में लेने का यथार्थ प्रकरण सुनाता हूँ।
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सोहं ओहं जानव बीरू । धर्मदास से कहा कबीरू ।।
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"मुसलमान नहीं समझे ज्ञान क़ुरआन"
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सत्य शब्द नाम गुरू गम पहिचाना। बिन जिभ्या करू अमृत पाना ।।
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