खीर बनाए बिलकुल नए तरीक़े से, चावल की रबड़ीदार खीर! Rice kheer Recipe
Rice kheer Recipe in Hindi: Simmo Kitchenwali की रसोई में आएं और उनके साथ खोजें चावल की खीर की एक अनोखी और नवीन रेसिपी। यह खास रेसिपी, जिसमें रबड़ीदार अंदाज में चावल की खीर बनाई गई है, आपको भारतीय मिठाइयों के पारंपरिक स्वाद के साथ-साथ एक नए जायके का अनुभव कराएगी। यह रेसिपी न सिर्फ स्वादिष्ट है, बल्कि इसे बनाने की विधि भी अनूठी है। इस अद्भुत खीर को बनाने के तरीके और स्वाद का राज जानने के लिए,…
वह परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जो पूर्ण परमात्मा है। आज से 626 वर्ष पहले भारत की इस पवित्र धरती काशी नगरी में आये और अनेकों आश्चर्यजनक तथा अद्भुत लीलाएं करके वापस अपने लोक को चले गए। उस समय कबीर परमेश्वर के 64 लाख शिष्य थे।
उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित क��ाया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 26-28 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो नेपाल समेत 10 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
#SantRampalJiMaharaj
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वह परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जो पूर्ण परमात्मा है। आज से 626 वर्ष पहले भारत की इस पवित्र धरती काशी नगरी में आये और अनेकों आश्चर्यजनक तथा अद्भुत लीलाएं करके वापस अपने लोक को चले गए। उस समय कबीर परमेश्वर के 64 लाख शिष्य थे।
उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 26-28 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो नेपाल समेत 10 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
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#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
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वह परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जो पूर्ण परमात्मा है। आज से 626 वर्ष पहले भारत की इस पवित्र धरती काशी नगरी में आये और अनेकों आश्चर्यजनक तथा अद्भुत लीलाएं करके वापस अपने लोक को चले गए। उस समय कबीर परमेश्वर के 64 लाख शिष्य थे।
उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 26-28 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो नेपाल समेत 10 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
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उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बं��ीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
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जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 26-28 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो नेपाल समेत 10 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
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वह परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जो पूर्ण परमात्मा है। आज से 626 वर्ष पहले भारत की इस पवित्र धरती काशी नगरी में आये और अनेकों आश्चर्यजनक तथा अद्भुत लीलाएं करके वापस अपने लोक को चले गए। उस समय कबीर परमेश्वर के 64 लाख शिष्य थे।
उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पी��� था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 26-28 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो नेपाल समेत 10 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
#SantRampalJiMaharaj
#trending
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
वह परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जो पूर्ण परमात्मा है। आज से 626 वर्ष पहले भारत की इस पवित्र धरती काशी नगरी में आये और अनेकों आश्चर्यजनक तथा अद्भुत लीलाएं करके वापस अपने लोक को चले गए। उस समय कबीर परमेश्वर के 64 लाख शिष्य थे।
उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत��य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 26-28 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो नेपाल समेत 10 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
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26-27-28 नवंबर 2023
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उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 26-28 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो नेपाल समेत 10 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
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उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 26-28 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो नेपाल समेत 10 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
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उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 7, 8, 9 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो देशभर में 9 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
7-8-9 November
दिव्य धर्म यज्ञ दिवस पर देखिये विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण
09 नवंबर 2022
सुबह 09:15 बजे से।
साधना Tv और पॉपकॉर्न Tv पर।
इस प्रोग्राम को आप Youtube Channel "Sant Rampal Ji Maharaj" पर भी देख सकते हैं।
वह परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जो पूर्ण परमात्मा है। आज़ से लगभग 600 वर्ष पहले भारत की इस पवित्र धरती काशी नगरी में आये और अनेकों आश्चर्यजनक तथा अद्भुत लीलाएं करके वापस अपने लोक को चले गए। उस समय कबीर परमेश्वर के 64 लाख शिष्य थे।
उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी समय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 7, 8, 9 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो देशभर में 9 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
7-8-9 November
दिव्य धर्म यज्ञ दिवस पर देखिये विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण
09 नवंबर 2022
सुबह 09:15 बजे से।
साधना Tv और पॉपकॉर्न Tv पर।
इस प्रोग्राम को आप Youtube Channel "Sant Rampal Ji Maharaj" पर भी देख सकते हैं।
How to Make आम की खीर: एक फ्रूटी ट्विस्ट जो आपके आम खीर की रेसिपी के लिए है
How to Make आम की खीर: एक फ्रूटी ट्विस्ट जो आपके आम खीर की रेसिपी के लिए है
भारतीयों को मिठाइयों का शौक है; कोई भी भोजन बिना मिठाई के पूरा नहीं होता। पायसम से लेकर श्रीखंड तक, रसगुल्ला से लेकर बर्फी तक – देश भर में बहुत सारी स्वादिष्ट और रमणीय मिठाइयाँ हैं। जबकि हम सभी अपने पारंपरिक डेसर्ट से प्यार करते हैं, क्लासिक व्यंजनों को एक नया और मजेदार मोड़ देना हमेशा एक अच्छा विचार है। खीर एक ऐसी अद्भुत मिठाई है जिसे हम अक्सर उत्सव के दौरान या फिर भी पसंद करते हैं। चावल और दूध…
अपनाएं कुछ आसान टिप्स, खीर से लेकर दाल चावल हर चीज बनेगी स्वादिष्ट
अपनाएं कुछ आसान टिप्स, खीर से लेकर दाल चावल हर चीज बनेगी स्वादिष्ट
आज के समय में महिला हो या पुरुष दोनों ही एक दूसरे का बढ़-चढ़ कर साथ देते हैं. फिर चाहे बात ऑफिस की हो या घर में कोई भी काम की. बिना एक दूसरे के सहयोग के काम करना बहुत मुश्किल हो जाता है. कई बार देखा जाता है कि अकेली महिला पर ही घर की कई सारी जिम्मेदारियां आ जाती है. आज के इस आर्टिकल में हम कुछ ऐसे हैक्स बताने जा रहे हैं जो आपके लिए बेहद कारगर साबित हो सकते हैं. इनको अपनाकर आप खीर, चावल और दाल…
चावल की खीर बनाने की विधि नोट करे by - myrasoirecipes.com
भारतीय त्योहारों मे खीर की एक एहम भूमिका होती है | घरों में पूजा पाठ हो या छोटे बड़े फंक्शन जैसे – नामकरण, गृह प्रवेश, व्रत, शरद पूर्णिमा, जन्मदिन, भंडारा हो खीर तो बनती ही है | यह खीर इतनी टेस्टी होती है, की घरों के छोटे बढ़े सभी लोग इसको खूब पसंद करते है, दूध की खीर कैसे बनाएं या चावल की खीर बनाने की विधि – दूध उबालकर उसमे चावल, चीनी तथा ड्राई फ्रूट्स डालकर बनाई जाती है |
चावल की खीर बनाने की सामग्री
इलाइची – 4
ड्राई फ्रूट्स – काजू, बादाम, किसमिस
चीनी – 100 ग्राम
चावल – 150 ग्राम
दूध – 1 लीटर
चावल की खीर बनाने की रेसिपी
चावक को एक घंटे पहले पानी मे भिगो दे |
अब एक बर्तन मे दूध डाले और इसको एक बॉईल आ जाने तक तेज़ आच मे पकाएं |
फिर आच को मीडियम कर दे और इसमें भीगे हुए चावल डाल कर 20 मिनट तक पकाएं |
फिर इसमें इलाइची, चीनी डालकर 15 मिनट तक मिलाएं |
अब लास्ट मे मोटे कटे हुए ड्राई फ्रूट्स डाले फिर इसको 10 मिनट तक मीडियम आच मे पकाए और बीच बीच मे करछी से हिलाते रहे |
दोस्तों अगर आपको यह स्वादिष्ट रेसिपी स्टेप बाई स्टेप फोटो के साथ चाहिए तो तो नीचे लिंक मे click करे ↓
चावल के खीर बनाने की विधि ( स्टेप बाई स्टेप फोटो )
दोस्तों अगर आपको ये Post पसंद आया हो तो अपवोट जरुर करे |
चावल की खीर रेसिपी : आज हम आपको बताने वाले है |की कैसे आप घर पर स्वादिष्ट खीर बना सकते है |हमारे यहाँ हिन्दू त्योहारों पर कुछ मीठा अवश्य बनता है | जिससे भगवान् का भोग लगाया जाता है | क्योकि त्यौहार एक ख़ुशी का मौका होता है ततो मीठा बनना लाज़मी होता है |और ज्यादातर घरो में जब मीठा बनता है |तो सबसे पहले चावल से बनी खीर ही बनती है |जो खाने में न केवल टेस्टी होती है बल्कि इससे बनाना भी आसान होता है…