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#हमें किस तरह से भक्ति करनी चाहिए
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🎋संत रामपालजी महाराज का जीवन परिचय व् आध्यात्मिक संघर्ष🎋
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संत ऱामपालजी महाराज हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। इसी दौरान संत रामपाल जी महाराज जी ने 17 फरवरी सन् 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम संत रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। उनके अनुयायी इस दिवस को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सत्ज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नही सका।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#SantRampalJiMaharaj
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🎋संत रामपालजी महाराज का जीवन परिचय व् आध्यात्मिक संघर्ष🎋
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संत ऱामपालजी महाराज हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। इसी दौरान संत रामपाल जी महाराज जी ने 17 फरवरी सन् 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम संत रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। उनके अनुयायी इस दिवस को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसा�� वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सत्ज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नही सका।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
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rajesh-03 · 8 months
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संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संत ऱामपालजी महाराज हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। इसी दौरान संत रामपाल जी महाराज जी ने 17 फरवरी सन् 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम संत रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। उनके अनुयायी इस दिवस को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सत्ज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतों द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नहीं सका।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
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dharmarajdas · 8 months
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संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
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अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
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इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
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8469410935 · 8 months
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संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
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अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सत्ज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतों द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नहीं सका।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
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beronikaxalxo8 · 8 months
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संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संत ऱामपालजी महाराज हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। इसी दौरान संत रामपाल जी महाराज जी ने 17 फरवरी सन् 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम संत रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। उनके अनुयायी इस दिवस को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी ��हाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
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इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
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𒊹︎︎︎• शास्त्रो में छुपे रहस्य को जानने के लिए पढ़े पवित्र पुस्तक 📘"ज्ञान गंगा"।
इस पुस्तक को निःशुल्क मंगवाने तथा सत्संग से सम्बन्धित अनमोल ज्ञान की बातें संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक "ज्ञान गंगा" बिल्कुल निःशुल्क प्राप्त करके पढ़ सकते हैँ।
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pawankumar1976 · 1 year
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#ReadGyanGanga
📗बजरंग बली हनुमान जी का मोक्ष कैसे हुआ?
जानें इस तरह के कई और गहरे राज़। अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
📗भक्ति करना क्यों आवश्यक है? और किसकी भक्ति करनी चाहिए? जानने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
📗भगवान राम व भगवान कृष्ण जी सतयुग में नहीं थे। तब किस राम की भक्ति होती थी?जानने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
📗गीता ज्ञान दाता के अनुसार तत्वदर्शी संत की पहचान क्या है? जानने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
📗ज्ञान गंगा पढ़ने के बाद हमें ज्ञान होता है हम कौन हैं, कहां से आए हैं और हमें मनुष्य जीवन क्यों प्राप्त हुआ है।
Sant Rampal Ji Maharaj
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deepa-dasi · 2 years
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सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सत्ज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नही सका।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#SantRampalJiMaharaj
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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8529556223 · 2 years
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🎋संत रामपालजी महाराज का जीवन परिचय व् आध्यात्मिक संघर्ष🎋
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संत ऱामपालजी महाराज हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। इसी दौरान संत रामपाल जी महाराज जी ने 17 फरवरी सन् 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम संत रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। उनके अनुयायी इस दिवस को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर���षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सत्ज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नही सका।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
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🎋संत रामपालजी महाराज का जीवन परिचय व् आध्यात्मिक संघर्ष🎋
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संत ऱामपालजी महाराज हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। इसी दौरान संत रामपाल जी महाराज जी ने 17 फरवरी सन् 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम संत रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। उनके अनुयायी इस दिवस को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
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इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
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mohanrathore · 2 years
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🌸🙏जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपालजी महाराज की जय 🌸🙏
🙏सतगुरू मिले तो ईच्छा मेटें, पद मिले पद समाना ।
🙏चल हंसा परलोक पठाऊ, जो आदि अमर अस्थाना ।।
🎋संत रामपालजी महाराज का जीवन परिचय व् आध्यात्मिक संघर्ष🎋
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संत ऱामपालजी महाराज हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। इसी दौरान संत रामपाल जी महाराज जी ने 17 फरवरी सन् 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम संत रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। उनके अनुयायी इस दिवस को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
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उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सत्ज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नही सका।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
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praveendaskumar · 3 years
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अधिकतर लोग मात -पिता को ही पूर्ण गुरु व भगवान समझ बैठे और कहते हैं इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं और ना ही सेवा है, दुनिया में इससे बढ़कर कोई सेवा नही, नोट :- जिन जिन बच्चों के माता-पिता जन्म से ही शरीर त्याग गए वह बच्चे किस मात पिता की सेवा करेंगे ? दान धर्म भी नहीं कर सकते क्योंकि वह तो खुद ही अपनी परवरिश करेंगे और दूसरे के सहारे रहेंगे। "कहने को तो कुछ भी कह दो लेकिन सत्य ज्ञान ग्रहण करोगे तो आने वाली समस्या से बचोगे " 👇👇 यहां पर तत्वज्ञान से समझना बहुत जरूरी है। सद्गुरु वाणी १- गुरुवां गांव बिगाड़ा, संतो गुरुवां गांव बिगाड़ा। ऐसे कर्म जीव के लादे, अबके झड़े न झाड़ा।। 🎯 इस वाणी से यह प्रतीत होता है कि गांव के गांव नकली गुरूओं, काजी , मुल्ला, ब्राह्मणों ने बर्बाद कर दिया क्योंकि इनको वेद और गीता बाइबल कुरान गुरु ग्रंथ साहिब का ज्ञान नहीं था, अगर ज्ञान यह बता देते कि कबीर ही भगवान है और कबीर की पूजा करनी चाहिए तो संत रामपाल जी महाराज को संघर्ष करने की जरूरत नहीं थी, ना ही नकली धर्म गुरुओं से वाद-विवाद करने की, क्योंकि इन्होंने शास्त्रों के विरुद्ध ज्ञान देकर हमारे परिवार को तोड़ दिया है हमको धर्म के विरुद्ध बनाकर हिंदू मुस्लिम ईसाई सिख में बांट दिया है। २- भक्ति मुक्ति के दाता सतगुरु भटकत प्राणी परिंदा। उस साहिब के हुक्म बिना नहीं तरूवर पात हिलंदा। 🎯 इस वाणी से यह प्रतीत होता है कि साहिब अर्थात पूर्ण परमात्मा ने सभी ब्रह्मांड की रचना की और उसकी मर्जी बिना संसार में कोई पत्ता भी नहीं हिल सकता क्योंकि सर्व कार्य उसी के आधार से चल रहा है, फिर भी हमें भक्ति करने की आवश्यकता क्यों है ? यह बात एक प्रश्न की तरह सामने आ जाती है। यह आत्मा जन्म जन्म से कुछ भक्ति की ओर जरूर दौड़ती है। हम सभी आत्माएं जिस लोक से आई हुई है, उस आत्मा पर काल निरंजन ने एक ऐसा जुगाड़ फिट किया है कि इसको साफ करने के लिए सतगुरु के पास जाकर नाम लेना होता है, और उसके ज्ञान से सत्संग सुनकर हमारी आत्मा साफ होती है, और हमें आगे की जानकारी प्राप्त होती है। 👉 विचार करके देखें हमारे शरीर में खून एक हैं हम एक ही खाते हैं, एक प्रकार का भोजन करते हैं। 👉 मांस खाना अंडे खाना शराब पीना तंबाकू खाना यह सब नकली धर्मगुरुओं ने एक अड्डा बना रखा और यह खुद खाते हैं। इसलिए Satya gyan ko Satya बताने में असमर्थ हैं। 🌠 संत रामपाल जी महाराज ने सभी शास्त्रों को लेकर Satya ज्ञान बताया है, और आज भी उनके शिष्य संघर्ष कर रहे हैं, लोगों की गलत आवाज को सुनतें हैं। संसार की सबसे अधिक पुस्तक पढ़ने जाने वाली "जीने की राह" (at India) https://www.instagram.com/p/CPSeU_BFEoj/?utm_medium=tumblr
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sant-rampal-ji · 4 years
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#कबीर_वाणी
मैं रोवत हूं सृष्टि को सृष्टि रोवत है मोहे हम दोनों के बियोग को समझ सकता ना कोई ❓❓
अर्थ
भगवान कह रहे हैं कि मैं इन सभी जीव आत्माओं को रो रहा हूं जो मुझसे दूर हो चुके हैं और जो सभी सृष्टि पर जीव आत्माएं हैं वह सभी भगवान को रो रही हैं
मनुष्य प्राणी कैसा भी हो उसे भगवान की अवश्य होती है इसीलिए कोई मंदिर में चर्च में मस्जिद में गुरुद्वार में जाता है और हम सभी को ज्ञान ना होने के कारण अज्ञानी गुरु के कहने पर चलने के कारण हम सत भक्ति नहीं कर पा रहे और भक्ति का सही लाभ नहीं उठा पा रहे इस सृष्टि करें किसी भी मनुष्य को पूर्ण ज्ञान ना होने के कारण और एक लोक वेद को ज्ञान का आधार मानकर चल रहे हैं इसी कारण से हमें दुखों का सामना करना पड़ता है और हमारी भक्ति का गुलाब नहीं मिलता जो मीराबाई भक्ति ध्रुव को मिला .
इसीलिए तो रामायण में कहा गया है ❓ .
गुरु बिन वेद पढ़े जो ज्ञानी समझे ना सार रहे अज्ञानी❓ .
इससे सिद्ध होता है कि जो हमारे धर्म गुरु हैं उन्हें .#पवित्र शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान नहीं है .
और उन्हें यह पता नहीं है कि जो प्रभु हमें जन्म देता है और मारता है उसमें किस प्रभु का स्वार्थ है अर्थात जो हमें कष्ट देता है .
इन धर्म गुरुओं को शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान ना होने के कारण काल के जाल से नहीं तो वह खुद बच पा रहे हैं और नहीं हम जीवो को इस काल के जाल से निकाल पा रहे हैं और इसी कारण से हमें अपने किए हुए कर्मों का फल भोगना पड़ता है यहां तक की शास्त्रों में तो लिखा है सत भक्ति करने से अगले जन्मों के भी पाप कर्मों को काट देते हैं .
❓❓❓ अब आप खुद देखें प्रमाण सहित .
❓वेदों में वर्णन है कि भगवान संपूर्ण शांतिदायक है।वेदों में वर्णन है कि भगवान संपूर्ण शांतिदायक है। वह जो हमारे सारे पाप नष्ट करके हमें सुख प्रदान करता है। उसे ही सच्चा एवं सर्वोच्च भगवान कहा गया है।
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यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 भगवान के निम्न गुणों का वर्णन करता है:
उशिगसी कविरंघारिसि बम्भारिसि...
उशिगसी = (सम्पूर्ण शांति दायक) कविरंघारिसि = (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि = (बम��भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5
गीताजी अध्याय 5 श्लोक 29 में गीता ज्ञान दाता काल–ब्रह्म कह रहा है कि अज्ञानी लोग जो मुझे जगत का स्वामी और संपूर्ण सुखदायी भगवान मानकर मेरी साधना पर आश्रित हैं, वह मेरे से मिलने वाली अश्रेष्ठ(अस्थाई) शांति को प्राप्त होते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप वे लोग पूर्ण परमात्मा से मिलने वाली शांति से वंचित रह जाते हैं, अर्थात् उनका पूर्ण मोक्ष नहीं होता। उनकी शांति समाप्त हो जाती है और अनेक प्रकार के कष्ट सहने पड़ते हैं। इसलिए अध्याय 18 के श्लोक 62 में गीता ज्ञानदाता ने कहा है –
“हे अर्जुन! पूर्ण शांति की प्राप्ति के लिए तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सदा रहने वाला सत स्थान/धाम/लोक को प्राप्त होगा।” 
इसका प्रमाण अध्याय 7 के श्लोक 18 में भी है।
महत्वपूर्ण: काल (ब्रह्म) भगवान तीनों लोकों के भगवानों (ब्रह्मा - विष्णु - महेश) के और इक्कीस ब्रह्मांडो के स्वामी हैं, वे देवताओं के देवता हैं। इसलिए उन्हें महेश्वर (महादेव) भी कहा जाता है। अज्ञानतावश, मूर्ख समुदाय इस काल को दयावान परमात्मा मानते हुए इससे शांति प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए एक कसाई अपने पशुओं को चारा और पानी उपलब्ध कराता है, और उन्हें आश्रय प्रदान करके गर्मी और ठंड से बचाता है। इसके कारण वे जानवर कसाई को दयालु मानकर उससे प्यार करते हैं। लेकिन वास्तव में कसाई उनका दुश्मन है। वह अपने स्वार्थ पूर्ण उद्देश्य के लिए उन सभी जानवरों को काटता है, मारता है।
इसी तरह, काल भगवान दयालु दिखाई देता है लेकिन सभी जीवों को खाता है। इसलिए, यह कहा गया है कि उनकी शांति समाप्त हो जाती है अर्थात वे अत्यंत कष्ट का अनुभव करते हैं।
गीताजी अध्याय 15 के श्लोक 17 में कहा गया है कि उत्तम पुरुष, अर्थात श्रेष्ठ ईश्वर तो कोई और है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सभी का धारण-पोषण करता है। वह वास्तविक अमर परमात्मा है। उसे ही भगवान कहा जाता है। अपने बारे में गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 11 के श्लोक 32 में कहा है कि “अर्जुन, मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। सभी लोकों (मनुष्यों) को खाने के लिए प्रकट हुआ हूं।” जिसके दर्शन मात्र से अर्जुन जैसा पराक्रमी भी अपनी शांति खोकर थरथर कांपने लगा। इसलिए इसी अध्याय 5 के श्लोक 24 से 26 में, गीता ज्ञानदाता के अतिरिक्त एक अन्य शांतिदायक ब्रह्म का उल्लेख है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि गीता ज्ञान दाता शांति दायक ब्रह्म नहीं है, अर्थात् काल है।
विचार करें:  वह, जो किसी को गधा बनाता है, किसी को कुत्ता बनाता है, जो किसी के पैर काट देता है (क्योंकि यहां सभी भक्तात्माओं का मानना ​​है कि सब कुछ भगवान की कृपा से होता है। यहां तक ​​कि एक पत्ता भी उनके आदेश के बिना नहीं हिलता है), जो सभी को खाता है, और अर्जुन जैसे योद्धा को डराकर युद्ध का कारण बनता है और फिर युद्ध में किए गए पापों के परिणाम स्वरूप युधिष्ठिर को बुरे सपने भी देता है, फिर जो कृष्ण जी के माध्यम से यह बताता है कि आपको यज्ञ करना चाहिए क्योंकि युद्ध में ��पके द्वारा किए गए पाप कष्ट दे रहे हैं, जो उनसे हिमालय में तप करवा कर उनके शरीर गलवाता है और फिर उन्हें नर्क भी भेजता है; ऐसे प्रभु को शांति दायक परमात्मा नहीं कहा जा सकता। अब पाठक स्वयं चिंतन कर सकते हैं।
वो दयालु भगवान कबीर साहिब जी हैं, जो सतलोक के स्वामी हैं। वो सुख के सागर हैं। सतलोक में कोई भी आत्मा दुखी नहीं है। काल लोक में यदि कोई भक्त सुख चाहता है तो उसे परमपिता परमात्मा, पूर्ण ब्रह्म, सनातन प्रभु, कबीर परमात्मा की भक्ति करनी होगी और पूरा जीवन उनकी शरण में रहकर जीना होगा।
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💫क्या आप जानते हैं🤔
1. हम बार बार जन्मते और मरते क्यों हैं ?
2. जब सबका मालिक एक है तो फिर इतने सारे देवी देवताओं की पूजा हम क्यों करते हैं?
3. क्या बली देने और मांस खाने से भगवान खुश हो सकता है ?
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https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLScg6eVSEpM2k7cT5XKcoP33Bmcky5pcBbFLsA8RJ679hO0qTw/viewform?usp=sf_link💫क्या आप जानते हैं 🤔
🔴 हम जन्म्ते और मरते क्यों है?
🔴 क्या उजडते परिवार फिर से बस सकते हैं?
🔴 क्या ब्रह्मा विष्णु महेश अजर अमर है?
इस तरह के अनसुलझे सवालों का जवाब पाने के लिए पढ़िए पुस्तक 👇
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😳 क्या आप जानते हैं?🤔
◆ सबका मालिक एक है ,पर वे कौन है ?
◆ पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कैसे ही सकती है?
◆तीर्थ तथा धाम क्या है,यहां जाने से क्या क्या लाभ होता है?
◆हमें भक्ति क्यों करना चाहिए?
इन अनसुलझे आध्यात्मिक सवालों का जवाब पाने के लिए पढ़िए पुस्तक 👇
📖 "ज्ञान गंगा ✓ 𝐆𝐲𝐚𝐧 𝐆𝐚𝐧𝐠𝐚"📚
जो संत रामपाल जी महाराज 𝐒𝐚𝐧𝐭 𝐑𝐚𝐦𝐩𝐚𝐥 𝐉𝐢 द्वारा लिखित है!
इन अनसुलझे सवालों का जवाब पाने के लिए पढ़िए पुस्तक 👇
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https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLScg6eVSEpM2k7cT5XKcoP33Bmcky5pcBbFLsA8RJ679hO0qTw/viewform?usp=sf_link📒 𝐀𝐦𝐚𝐳𝐢𝐧𝐠 𝐅𝐫𝐞𝐞 𝐁𝐨𝐨𝐤 📒
अवश्य जानिए🤔
◆तीर्थ,व्रत, तर्पण, श्राद्ध निकालने से लाभ संभव है या नहीं?
◆ भक्ति न करने से बहुत दुःख होगा?
◆तम्बाकू सेवन करना महापाप है
◆"भक्ति किस प्रभु की करनी चाहिए" गीतानुसार।
◆हमको जन्म देने व मारने में किस प्रभु का स्वार्थ?
◆हम सभी देवी- देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं फिर भी दुखी क्यों हैं?
◾ये पुस्तक संत रामपाल जी महाराज (𝐒𝐚𝐧𝐭 𝐑𝐚𝐦𝐩𝐚𝐥 𝐉𝐢) द्वारा लिखित सभी धर्मो के शास्त्रों 📚 पर आधारित है तथा 100% निशुल्क है।
📖 "जीने की राह ✓ 𝐉𝐞𝐞𝐧𝐞 𝐊𝐢 𝐑𝐚𝐡"📚
जो संत रामपाल जी महाराज 𝐒𝐚𝐧𝐭 𝐑𝐚𝐦𝐩𝐚𝐥 𝐉𝐢 द्वारा लिखित है!
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differentlandmaker · 4 years
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स्वर ज्ञान और काल विज्ञान साधना के जरिये कैसे हम अपनी मौत के दिन को जान सकते है ? top secret
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स्वर विज्ञान या स्वरोदय विज्ञान क्या है ? svar gyan sadhna pdf यानि स्वर साधना ज्ञान की पीडीऍफ़ hindi में अब sachhiprerna पर उपलब्ध है, आज की पोस्ट स्वर साधना ज्ञान स्वर विज्ञान pdf और स्वर ज्योतिष को मिलाकर बनी है. आप सभी ने बाया स्वर दाया स्वर और स्वर ज्ञान के बारे में सुना ही होगा ये क्या और कैसे काम करते है. काल ज्ञान का निर्धारण भी स्वर-साधना का ज्ञान मिलाकर पता किया जा सकता है. अक्सर लोगो के मन स्वर शास्त्र या स्वरोदय विज्ञान सिखने की इच्छा देखने को मिलती है क्यों की स्वर योग के जरिये बहुत सारी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है. अगर दैनिक लाइफ में स्वर vigyan और sadhna को अजमाया जाए तो amazing result देखने को मिलते है.
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kaal gyan sadhna के बारे में बहुत से लोग पूछ चुके है तो बता देना चाहते है की kaal gyan sadhna भी svar vigyan sadhna के साथ की जा सकती है अगर दोनों के परिणाम मिलाकर देखे तो कोई भी व्यक्ति अपने day of death को जान सकता है, लेकिन आपकी सारी कैलकुलेशन बहुत सटीक होनी चाहिए, पुराने ज़माने में वैध सिर्फ नाड़ी देख कर व्यक्ति के दुःख को बीमारी को बता देते थे वो svar gyan sadhna यानि स्वर साधना की ही प्रैक्टिस का एक हिस्सा है.
svar gyan sadhna - कैसे करे स्वरों की पहचान
svar gyan sadhna में स्वरों की पहचान करना और इसका ज्ञान इतना सुगम है की कोई भी आसानी से इसे सीख सकता है. अगर आप स्वरोदय की पहचान कर इसे अपनी लाइफ में अपनाते है तो शायद ही आप कभी बीमार पड़े. स्वरोदय का ज्ञान हम सिर्फ सांसो के आवागमन को महसूस कर भी कर सकते है. हमारे शरीर में इड़ा और पिंगला दो नाड़ीया है स्वर इन दोनो में वैसे ही चलते है जैसे ��ी एक माह में शुक्ल और कृष्ण पक्ष चलते है. चांदनी रात में पड़वा के दिन से सूर्यास्त तक तीन दिन चन्द्र स्वर, इड़ा नाड़ी में चलता है और कृष्ण यानी अँधेरी रात में 3 दिन तक पिंगला नाड़ी चलती है, स्वरों की गणना का ज्ञान इन्ही दिनों से किया जाता है. वैसे तो नासिका के दोनों छिद्रों से साँस चलता रहता है लेकिन प्राकृतिक नियम के अनुसार एक छिद्र में दुसरे से कम साँस चलता है. इन्ही की चाल का ज्ञान स्वरोदय में होता है. एक स्वस्थ व्यक्ति की प्रत्येक नाड़ी अपने नियत समय से पांच घड़ी तक चलती है फिर स्वर बदलता है. ये क्रम 3 दिन तक चलता है प्रत्येक स्वर के साथ एक घड़ी तत्व चलता जो की वायु तत्व से शुरू होता है. इसके बाद आग, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश तत्व चलते है. इसके हिसाब से 1 दिन में बारह बार स्वर बदलता है. 60 बार तत्व बदलते है ( 60 घड़ी का दिन और रात होता है ) पढ़िए : किसी भी शाबर मंत्र को आसानी से जाग्रत करने वाली अलोकिक साधना जो वशीकरण सिखने में काम आती है सूर्य चन्द्र और सुषुम्ना स्वर की पहचान : सबसे पहले शांत बैठ कर अपनी चल रही सांसो को देखिये. अगर दाए छिद्र से स्वर निकल रहा है तो सूर्य और बाए से निकल रही है तो चन्द्र स्वर. आप इसकी पहचान सांसो की गर्माहट से कर सकते है क्यों की दोनों नासिका छिद्र में से एक में स्वर ज्यादा और दुसरे से कम निकलते है. अगर दोनों ही छिद्र से निकलने वाले स्वर की दुरी एक समान है तो ये तीसरा स्वर यानि सुषुम्ना स्वर है. योगीजन कहते है की इस स्वर में कोई भी सांसारिक कार्य नहीं करना चाहिए. वायु और आकाश तत्व में भी किया गया इस तरह का कार्य निष्फल हो जाता है. इस स्वर के दौरान भक्ति, पूजा पाठ और इश्वर ध्यान ही सबसे अच्छा कार्य है जिसकी वजह है इस स्वर के दौरान शरीर के सभी चक्र का जाग्रत हो जाना. स्वरोदय में तत्वों का ज्ञान स्वरोदय में तत्वों का ज्ञान करने के लिए कई तरीके है जिन्हें आप खुद पर कर वर्तमान में कौनसा तत्व चल रहा है की गणना की जा सकती है. इसके लिए मुख्य तरीके निम्न है. स्वर में बदलाव और उनका प्रभाव : आचार्य जन का मानना है की स्वरों की चाल अगर नियत रहती है तो जीवन सुखदायी बीतता है इसके विपरीत दुःख भोगने पड़ते है उदाहरण के तौर पर सूर्य के स्थान पर चन्द्र स्वर चले तो शुरू के दो घंटे चिंता में बीतते है, उसके बाद के 2 घंटे में धन हानि, तीसरे में योग ( सांसारिक घटनाक्रम से हटना ) और फिर पांचवे में शोकाकुल शकुन फिर 6 और सातवे में रोग और मृत्य का योग बनता है. यदि प्रात: काल चन्द्र स्वर और शाम को सूर्य स्वर चले तो निराश व्यक्ति की भी आशा पूर्ण होने की सम्भावना बनती है. यदि किसी तरह के दुःख से मन परेशान है तो स्वर बदल कर देखे आपका मन भी बदल जायेगा. ये सब संकेत है स्वर के विपरीत चलने पर जिन्हें समय पर पहचान कर बदला जा सकता है जिसके लिए आपको स्वर साधना करनी होती है. अपने दैनिक जीवन में इसे अपनाकर हम जीवन में काफी बदलाव कर सकते है. स्वर साधना का अभ्यास आपके दैनिक जीवन से जुड़ा है इसलिए पहले स्वर की चाल में बदलाव कैसे लाए ये जानते है. पढ़े : ध्यान में की जाने वाली सबसे बड़ी गलतिया जिन्हें आप सही मानते है कैसे करे सही अनुभव-2017 updated कुछ आसान तरीके स्वर बदलने के : जिस स्वर को चलाना है उसके विपरीत करवट से लेट जाइए. जो स्वर आप बंद करना / बदलना चाहते है उस नासिका छिद्र में पुरानी कड़ी रुई की बत्ती लगा दो दूसरा स्वर चलने लगेगा. आप जितनी ज्यादा मेहनत करते है उसके हिसाब से साँस बदलती रहती है और इसी वजह से स्वर भी बदलने लगता है. लेट कर शरीर की तीसरी पसली को दबाये पसली उसी तरफ की दबानी जिसके विपरीत आपको स्वर चलाना है. svar gyan sadhna - करे स्वर द्वारा जीवन में बदलाव दिन में चन्द्र और रात्रि में सूर्य स्वर चलाने की कोशिश करे. भोजन के समय आधे घंटे तक सूर्य स्वर चलाने की कोशिश करे. रात्रि में अगर जल ग्रहण करते है तो उस दौरान चन्द्र स्वर 15 मिनट चलाए. भोजन के बाद जब लेटे तो पहले 8 श्वांस दाहिने करवट से फिर 32 साँस बाये करवट से लेवे ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता है. तत्व विचार – किस तत्व के अधिक होने से क्या प्रभाव पड़ता है तत्व विचार जीवन में काफी महत्त्व रखता है क्यों की इसके जरिये हम पता कर सकते है की जीवन कैसा व्यतीत होगा. चन्द्र स्वर में पृथ्वी और जल तत्व के अधिक होने से धन लाभ और आरोग्यता प्राप्त होती है, वही वायु तत्व से विपत्ति,अग्नि तत्व से मृत्यु के योग बनते है. यदि आप कही लोगो के बिच बैठे है और ठीक उसी वक़्त अचानक वायु तत्व चलने लगे तो कोई मनुष्य उठकर जाने वाला चला जाता है. मनुष्य का स्वर हर पांच घड़ी में खुद बदल जाता है. रोगी होने की स्थिति में मनुष्य के स्वर में बदलाव आ जाता है. यदि पक्ष के आरंभ काल में तीन दिन तक लगातार विरुद्ध स्वर चले तो रोग पैदा होने लगता है उदहारण के लिए सूर्य और कृष्ण पक्ष में चन्द्र स्वर तीन दिन तक चलता है तो 15 दिन बाद रोग हो जायेगा. पढ़े : विश्व की मशहूर haunted doll की सच्ची कहानी जो साबित करती है की आत्माओ का मजाक बनाना पड़ता है महंगा svar gyan sadhna और यात्रा नियम : अगर आप कही यात्रा पर जाने वाले है तो स्वर चाल की पहचान करे जिससे आपको सही लाभ मिल सके. अगर बाया स्वर चल रहा है तो उत्तर पूर्व दिशा में जाने से लाभ मिलता है. इसके विपरीत जाने से हनी और मृत्यु संभव है. दक्षिण पश्चिम को दाए स्वर में जाने पर सुख आनंद प्राप्ति, विपरीत में हानि और दाहिने स्वर में पूर्व दिशा में जाने से सुख सम्पति और राज का लाभ मिलता है, यही नहीं सर्व कार्य सिद्धि के योग भी बनते है. अगर बात करे तत्व की तो पृथ्वी और जल तत्व स्वरोदय के दौरान यात्रा में सहायक है वही आकाश वायु और जल तत्व का संयोग हानिकारक है. आकाश तत्व और अग्नि तत्व के मिलन से स्वरोदय में यात्रा करने से चोट की सम्भावना बनती है और कार्य भी सफल नहीं होते. तत्व का मिलान svar gyan sadhna के साथ करना थोड़ा मुश्किल भरा काम है लेकिन हम इसे आसानी से कर सकते है जब हमें पता हो की किस स्वर के साथ कौनसा तत्व जाग्रत है. svar gyan sadhna और kaal vigyan विधि काल विज्ञान मंत्र के बारे में हम पहले की पोस्ट में पढ़ चुके है और बहुत से लोगो को काल ज्ञान सिखने में रूचि है तो आज स्वर विज्ञान के साथ काल ज्ञान की गणना कैसे की जाती है को देखते है. काल ज्ञान एक ऐसी विद्या है जिसके जरिये हम जीवन काल में ही आने वाली मृत्यु के दिन को ज्ञात कर सकते है. प्राचीन काल से योगीजन में इसका प्रयोग कर पहले से पहचान लिया करते थे की उनकी किस दिवस पर मृत्यु होगी जिसके लिए वो तय दिन पर समाधी की अवस्था ग्रहण कर लेते थे. चलिए जानते है kaal vigyan sadhna or svar gyan sadhna के secret जिसके अनुसार अगर मनुष्य का सूर्य स्वर बिना बदले आठ पहर तक चलता है तो वह व्यक्ति तीन साल बाद मर जायेगा. सूर्य स्वर लगातार 16 पहर तक चले तो 2 साल बाद मृत्यु होगी वही पर तीन दिन और तीन रात बराबर सूर्य स्वर चले तो व्यक्ति सिर्फ एक साल जीवित रह पायेगा. एक माह तक लागातार दिन और रात में सूर्य स्वर चले तो 2 दिन बाद मृत्यु हो जाती है. सुषुम्ना नाड़ी और काल ज्ञान – पांच घड़ी बराबर सुषुम्ना नाड़ी के चलने से जल्दी ही मृत्यु योग बनता है. जानिए : क्यों आखिर कई बार एक के बाद एक काम उल्टे पड़ने लगते है जानिए इसके पीछे की वजह svar gyan sadhna ( स्वर विज्ञान ) – अंतिम शब्द : दोस्तों स्वर विज्ञान वास्तव में एक बहुत ही गहरी और गूढ़ नॉलेज है जिसे समझ कर हम अपनी उम्र में बदलाव कर सकते है. आज की पोस्ट svar gyan sadhna में आपने svar vigyan or tatv vichar, svarodaya science और ऐसी ही कई नयी बाते पढ़ी हो सकता है की ये थोड़ी मुश्किल जान पड़े लेकिन यकीन मानिये इसे हम और ज्यादा सरल नहीं कर सकते. अगर आप स्वर विज्ञान को सिखने में interested है तो हमें बताइए हम आगे भी आपके लिए और ज्यादा गुढ़ जानकारी लायेंगे. download स्वर विज्ञान साधना in pdf from here निवेदन : अगर आपको हमारा ब्लॉग पढना अच्छा लगता है तो हमारी पोस्ट को शेयर करना ना भूले. आप ब्लॉग को subscribe कर सकते है ताकि हम आपको नये अपडेट भेजते रहे. हमारा youtube channel अब active है और आप वहा कई knowledgeful video देख सकते है. 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