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#हाजिर प्रवेश
mwsnewshindi · 2 years
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डीयू एडमिशन 2022: स्पॉट राउंड रजिस्ट्रेशन आज से du.ac.in पर शुरू
डीयू एडमिशन 2022: स्पॉट राउंड रजिस्ट्रेशन आज से du.ac.in पर शुरू
कॉमन सीट एलोकेशन सिस्टम (CSAS) स्पॉट राउंड 1 प्रवेश के लिए खाली सीट की सूची दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा साझा की गई है। इच्छुक उम्मीदवार जिन्होंने अभी भी डीयू यूजी प्रवेश 2022 में सीट हासिल नहीं की है, वे आज, 21 नवंबर से आधिकारिक वेबसाइट du.ac.in के माध्यम से स्पॉट राउंड के लिए पंजीकरण कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए, उन्हें अपने लॉग-इन क्रेडेंशियल्स जैसे रोल नंबर और जन्म तिथि का उपयोग करना होगा।…
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trendingwatch · 2 years
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डीयू एडमिशन 2022: स्पॉट राउंड रजिस्ट्रेशन आज से du.ac.in पर शुरू
डीयू एडमिशन 2022: स्पॉट राउंड रजिस्ट्रेशन आज से du.ac.in पर शुरू
कॉमन सीट एलोकेशन सिस्टम (CSAS) स्पॉट राउंड 1 प्रवेश के लिए खाली सीट की सूची दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा साझा की गई है। इच्छुक उम्मीदवार जिन्होंने अभी भी डीयू यूजी प्रवेश 2022 में सीट हासिल नहीं की है, वे आज, 21 नवंबर से आधिकारिक वेबसाइट du.ac.in के माध्यम से स्पॉट राउंड के लिए पंजीकरण कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए, उन्हें अपने लॉग-इन क्रेडेंशियल्स जैसे रोल नंबर और जन्म तिथि का उपयोग करना होगा।…
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samaya-samachar · 7 months
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संसद् भवन छिर्ने लघुवित्तका ऋणीहरू हाजिर जमानीमा छोडियो
काठमाडौं, १७ फागुन । संघीय संसद् भवन परिसरमा प्रवेश गरेको आरोपमा पक्राउ परेका लघुवित्तका ऋणीहरू रिहा भएका छन्। बिहीबार जिल्ला प्रशासन कार्यालयले उनीहरूलाई हाजिर जमानीमा रिहा गरेको जिल्ला प्रहरी परिसर काठमाडौंका सूचना अधिकारी (एसपी) नवराज अधिकारीले जानकारी दिए। फागुन १४ गते सोमबार संसद् भवन परिसरमा प्रवेश गरेर नाराबाजी गरेको आरोपमा प्रहरीले ४९ जनालाई नियन्त्रणमा लिएको थियो।
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ashokkumarrao100 · 4 years
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Pariyon ki Kahani in Hindi Pdf | Pariyon ki story | परी और राजकुमार ~ thekahaniyahindi
Pariyon ki Kahani in Hindi Pdf | Pariyon ki story | परी और राजकुमार
Pariyon ki Kahani in Hindi Pdf | Pariyon ki story | परी और राजकुमार :- हेलो दोस्तों कैसे हो आप सब ? आपका फिर हाजिर हैं, एक नई भूतिया स्टोरी के साथ। दोस्तों अगर आप Google पर अगर Pariyon ki Kahani in Hindi Pdf | Pariyon ki story | परी और राजकुमार सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह आये हो। Pariyon ki Kahani in Hindi Pdf में हम आपके लिए एक परी की कहानी "परी और राजकुमार" लेके आये हैं Pariyon ki Kahani in Hindi Pdf | Pariyon ki story | परी और राजकुमार की कहानि में हम आपको ऐसे रहस्यमयी परी लोक की सैर कराने जा रहे हैं, जिसमें प्रवेश करने के बाद आप लोगो को एक अलग ही अनुभव होगा।
Pariyon ki Kahani in Hindi Pdf | Pariyon ki story | परी और राजकुमार
किसी जंगल में एक सुन्दर बगीचा था। उसमें बहुत-सी परियां रहती थीं। एक रात को वे उड़नखटोले में बैठकर सैर के लिए निकलीं। उड़ते-उड़ते वे एक राजा के महल की छत से होकर गुजरीं। गरमी के दिन थे, चांदनी रात थी। राजकुमार अपनी छत पर गहरी नींद में सो रहा था। परियों की रानी की निगाह इस राजकुमार पर पड़ी तो उसका दिल डोल गया।
उसके जी में आया कि राजकुमार को चुपचाप उठाकर उड़ा ले जाय, परंतु उसे पृथ्वीलोक का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए उसने ऐसा नहीं किया। वह राजकुमार को बड़ी देर तक निहारती रही। उसक साथवाली परियों ने अपनी रानी की यह हालत भांप ली। वे मजाक करती हुई बोलीं, "रानीजी, आदमियों की दुनिया से मोह नहीं करना चाहिए। चलो, अब लौट चलें। अगर जी नहीं भरा तो कल हम आपको यही ले आयंगी।"
परी रानी मुस्करा उठी। बोली, "अच्छा, चलो। मैंने कब मना किया ? लगता है, जिसने मेरे मन को मोह लिया है, उसने तुम पर भी जादू कर दिया है।"
परियां यह सुनकर खिलखिलाकर हंस पड़ीं और राजकुमार की प्रशंसा करती हुईं अपने देश को लौट गईं।
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everynewsnow · 4 years
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PICS: शाहरुख खान के बेटे आर्यन एक प्रसिद्ध प्रोडक्शन हाउस - टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रवेश करते हुए
PICS: शाहरुख खान के बेटे आर्यन एक प्रसिद्ध प्रोडक्शन हाउस – टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रवेश करते हुए
शाहरुख खान तथा गौरी खानका बेटा आर्यन शहर के सबसे पसंदीद�� स्टार किड्स में से एक है। हर बार जब वह शहर में कदम रखता है या सोशल मीडिया पर पोस्ट करता है, तो कुछ ही समय में उसकी तस्वीरें इंटरनेट पर वायरल हो जाती हैं। स्टार किड को मंगलवार शाम एक प्रसिद्ध प्रोडक्शन हाउस के परिसर में प्रवेश किया गया। फोटोग्राफर्स को आर्यन को शहर में हाजिर करने की जल्दी थी। तस्वीरों में, वह एक पाठ के साथ एक काले हूडि पहने…
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abhay121996-blog · 4 years
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कोकीन तस्करी कांड : कोलकाता पुलिस ने भाजपा नेता राकेश सिंह को किया गिरफ्तार Divya Sandesh
#Divyasandesh
कोकीन तस्करी कांड : कोलकाता पुलिस ने भाजपा नेता राकेश सिंह को किया गिरफ्तार
कोलकाता। महानगर कोलकाता में ड्रग्स तस्करी से संबंधित एक मामले में भाजपा नेता राकेश सिंह को गिरफ्तार किया गया है। हाल ही में कोकीन के साथ भाजपा महिला नेता पामेला गोस्वामी की गिरफ्तारी के बाद आगे जांच कर रही कोलकाता पुलिस की टीम ने भाजपा नेता राकेश सिंह को उनके घर की मैराथन तलाशी के बाद गिरफ्तार कर लिया। उन्हें मंगलवार रात पूर्व बर्दवान के गलसी से गिरफ्तार किया गया है। 
दरअसल पिछले सप्ताह भाजपा नेत्री पामेला गोस्वामी को 10 लाख रुपये के कोकीन के साथ गिरफ्तार किया गया था। पुलिस पूछताछ में उसने दावा किया था कि बंगाल भाजपा प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के करीबी माने जाने वाले अलीपुर के दबंग भाजपा नेता राकेश सिंह ने उन्हें फंसाया है।
सोमवार को पुलिस ने धारा 160 के तहत राकेश को नोटिस भेजकर मंगलवार शाम चार बजे तक पूछताछ के लिए हाजिर होने को कहा था। हालांकि इसके जवाब में राकेश ने कोलकाता पुलिस को ई-मेल भेजकर 26 फरवरी तक का समय मांगा था और कलकत्ता उच्च न्यायालय में याचिका लगाकर पुलिस को समन को रद्द करने की मांग की थी। बहरहाल कोर्ट ने मंगलवार को ही मामले की सुनवाई की और राकेश सिंह की याचिका को खारिज कर स्पष्ट कर दिया कि पुलिस का समन कानून के मुताबिक जायज है।
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इधर मामला खारिज होने के बाद कोलकाता पुलिस की टीम भारी संख्या में राकेश सिंह के आवास पर पहुंच गई और उनके घर को चारों तरफ से घेर लिया गया । दूसरी ओर सिंह दूसरे रास्ते से घर से निकलकर फरार हो गए थे और उनके बेटे साहिब ने कोलकाता पुलिसकर्मियों को घर में प्रवेश करने से यह कहते हुए रोक दिया था कि पुलिस के पास कथित तौर पर सर्च वारंट नहीं था। 
उधरषपुलिस भी डटी रही और स्पष्ट कर दिया कि सरकारी काम में बाधा देने वालों के खिलाफ ठोस कानूनी कार्रवाई होगी। आखिरकार दो घंटे की टाल-मटोल के बाद पुलिस राकेश सिंह के घर में प्रवेश कर सकी और तलाशी अभियान शुरु किया। शाम 7:30 बजे तक जांच पड़ताल के बाद राकेश सिंह के दोनों बेटों को भी हिरासत में ले लिया गया। इधर फरार हो चुके राकेश के मोबाइल को टावर डंपिंग टेक्नोलॉजी के जरिए सर्विलांस पर लगाकर रखा गया था। रास्ते भर के सीसीटीवी फुटेज की लाइव निगरानी की जा रही थी। आखिरकार रात 9 बजे के करीब राकेश को पूर्व बर्दवान के गलसी से धर दबोचा गया।
कोलकाता पुलिस सूत्रों ने बताया है कि बुधवार को उन्हें कोर्ट में पेश किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि राकेश सिंह के घर तलाशी में किसी तरह का कोई मादक पदार्थ बरामद नहीं हुआ है। 
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shaileshg · 4 years
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रविवार को राज्य सभा में जो कुछ हुआ, फिर निलंबित सांसदों का धरना और सुबह-सुबह एक भावुक पोस्चर लेते हुए उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह जिस तरह खुद झोले में चाय-बिस्कुट लेकर बेड-टी डिप्लोमेसी पर पहुंचे उसके बाद से इस पूरे प्रकरण पर बहस छिड़ी हुई है। बहस के कई सिरे हैं। अगर एक सिरा कृषि बिलों से जमीनी नफा-नुकसान पर है तो बहस का बड़ा सिरा हरिवंश को करीब से जानने वालों, खासकर पत्रकार और बुद्धिजीवी जमात में है। बहस का यह सिरा ‘समाजवादी हरिवंश’ के आचरण पर ज्यादा है। आइये जानते हैं कौन हैं ये हरिवंश और कहां-कहां से गुजर कर यहां तक आए और अब सत्ता कि राजनीति की धुरी बने दिखाई दे रहे हैं। किसान बिल से जमीनी नफा-नुकसान किसे कम हुआ, किसे ज्यादा यह तो वक्त तय कर देगा, लेकिन फिलहाल तो बहस हरिवंश के इर्द-गिर्द है।
वरिष्ठ पत्रकार और लम्बे समय तक बीबीसी से जुड़े रहे रामदत्त त्रिपाठी खुद भी समाजवादी धारा से आते हैं। रामदत्त अपने कार्यक्रम ‘जनादेश’ में कहते हैं कि लोग इसलिए ज्यादा दुखी हैं, क्योंकि उन्होंने शायद उम्मीद ज्यादा पाल ली थी, जबकि यह उम्मीद उसी दिन छोड़ देनी चाहिए थी जब हरिवंश पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में आए थे। रामदत्त कहते हैं, ‘बिल पास करने में जो अलोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई गई हरिवंश चाहते तो अपनी अंतरात्मा की आवाज पर इस प्रकिया से खुद को आसानी से अलग कर सकते थे, बचा सकते थे।
22 सितम्बर की सुबह की बात से शुरू करते हैं। बेड-टी का वक्त था। राज्यसभा के उन सांसदों ने शायद उस वक्त तक चाय नहीं पी थी, लेकिन सुबह-सुबह अचानक चाय के साथ जो हाजिर हुआ उसे देखकर कुछ सांसद मुस्कराए थे। ये हरिवंश थे। राज्य सभा के उप सभापति। उन सांसदों के लिए चाय लेकर आये, जो उन्हीं के ‘आचरण’ के खिलाफ धरने पर बैठे थे। हरिवंश अपने पुराने खांटी समाजवादी अंदाज में दिखे। अपना प्रिय बादामी कुर्ता, क्रीम कलर की बंडी और पाजामा पहने हुए। पैर में शायद वही पुराने स्टाइल वाली काली सैन्डल रही होगी। हां, झोला भी वही है, जूट वाला जिसमें वो चाय का थर्मस और ���िस्कुट लेकर आये थे। लम्बे समय तक साथ कम करने और उन्हें करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क कहते हैं- ‘ऊपर से सारा आवरण वही पुराना समाजवादी होने के बावजूद सही है कि हरिवंश अब वो वाले समाजवादी नहीं रहे।’ अश्क ये भी कहते हैं कि ‘हरिवंश उन अर्थों में कभी समाजवादी रहे ही नहीं। कम से कम पत्रकार के रूप में जितना देखा, उसमें तो कभी नहीं।’
कौन हैं हरिवंश मैं जिन हरिवंश को जानता हूं, उनसे मेरी पहली मुलाकात पटना के बोरिंग रोड चौराहे पर किताब की दुकान पर हुई थी। मैं कोई किताब देख रहा था। बगल वाली रैक पर वो अपनी कोई किताब उलट-पुलट रहे थे। शायद नब्बे के आसपास या एक-दो साल पहले की कोई तारीख रही होगी। तब हरिवंश सिर्फ पत्रकार थे। बिहार की पत्रकारिता का एक बड़ा ब्राण्ड जैसा कुछ। एक ऐसा ब्राण्ड जिस पर बिहार का पत्रकार तो कम से कम इतराता ही था। हरिवंश ने ऐसा क्या किया था, दावे से तो नहीं कह सकता, लेकिन मेरे कुछ अच्छे और समझदार मित्रों से मिली तारीफों ने मुझे उनके बारे में अच्छी धारणा बनाने को शायद बाध्य किया था। ‘रविवार’ पत्रिका के दौर की उनकी कुछ रिपोर्टिंग और लेखों का भी जरूर सीधे तौर पर इसमें योगदान रहा होगा। हालांकि, मुझे कभी सीधे तौर पर ऐसा कोई उदाहरण उन 12 वर्षों के बिहार प्रवास में नहीं दिखा कि आधिकारिक रूप से कुछ कह सकूं। हां, वैसा कुछ बड़ा विपरीत भी नहीं था कि धारणा खंडित होती दिखती।
हां, इतना जरूर याद है कि यूपी-बिहार में पत्रकारिता करते हुए उस एक खास कालखंड में अखबारों में अपनी आचार संहिता बनाने-दिखाने का जिन कुछ सम्पादकों को शौक चढ़ा था, उनमें हरिवंश भी एक थे। यह आचार संहिताएं भी ऐसी ही थीं कि उन्हें पढ़कर ही लगता था, यह तोड़ने के लिए ही बनाई और लिखी गई हैं। धेले भर का लाभ न लेने के भारी-भरकम वादे करने वाले ऐसे प्रधान सम्पादकों में से हरिवंश तो एक बार पीएमओ (पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के साथ) और फिर राज्यसभा (अब पीएम नरेंद्र मोदी) में भी पहुंच गए और फिर इस महती गरिमामय वाले आसन तक भी। हालांकि कुछ राज्यसभा से प्रसार भारती तक की आस लगाए, गाहे-बगाहे ऐसी कई आचार संहिताएं लिख और जारी करते-छापते रहे। उदाहरण कई हैं। खैर, यहां बात सिर्फ हरिवंश की।
पत्रकारिता के उसी दौर में राजनीतिक दोस्त नीतीश कुमार की मां के निधन पर ‘प्रभात खबर’ के मुख पृष्ठ पर अद्भुत डिस्प्ले के साथ ‘उस खबर’ का प्रकाशन बहुतों को याद होगा। बाद के दिनों में तो यह कहानी और आगे बढ़ी और मित्र नीतीश कुमार को चन्द्रगुप्त मौर्य के बरअक्स देखने से नहीं चूकी। यह सब अखबार के पन्नों पर खुलकर हुआ। दोस्ती की यह कहानी लगातार लंबी होती गई। फिर ‘प्रभात खबर’ का सम्पादक रहते ही उन्होंने राज्यसभा के उप-सभापति का भी दायित्व स्वीकार किया। इससे पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के साथ वे उनके अतिरिक्त सूचना सलाहकार रह ही चुके थे। पत्रकारिता से राज्यसभा की इस गरिमापूर्ण कुर्सी तक पहुंचने की इस यात्रा का तब हमने भी स्वागत किया था। ये अलग बात है कि यह सब अखबार की उन सीढ़ियों के कारण ही सम्भव हुआ, जिनकी हर सीढ़ी, हर दिन सत्ता के उसी गलियारे की ओर बढ़ती गई थी। उन सीढ़ियों में अविभाजित बिहार वाले ‘प्रभात खबर’ की कुछ सौ प्रतियों से सफलता के शिखर की यात्रा भी निर्विवाद रूप से शामिल है।
अपने पत्रकारों को हमेशा एक आचार संहिता में बांधने वाले, कम बोलने वाले, संयमित-सौम्य प्रकृति वाले हरिवंश एक द��सरी आचार संहिता की दुनिया में प्रवेश कर चुके थे। हरिवंश की इस राह में उनकी सादगी की तमाम मिसालें भी हैं। सता से करीबी और सत्ताधीशों से दोस्ती के तमाम किस्से भी। जाहिर है, इन किस्सों में दोस्तों के सत्ता शीर्ष तक पहुंचने की कई कहानियां भी शामिल होंगी ही।
यह भी अनायास नहीं है कि हरिवंश कभी भी अपनी ‘अतीत के गौरव’ का बखान करने से नहीं चूकते। अगस्त 2018 में दोबारा उपसभापति चुने जाने के बाद उन्होंने जब कहा- “मैं आपका आभारी हूं कि आपने एक ऐसे व्यक्ति को इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के लिए उपयुक्त समझा जो गांव में रहने वाले एक बहुत सामान्य परिवार से आता है और जो कभी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में नहीं गया।” तब उनके एक अनन्य मित्र ने कहा था- हरिवंश को अब ये अपना पुराना सर्टिफिकेट दिखाना बंद कर देना चाहिए। वो बहुत पहले उस दुनिया से बहुत आगे निकल आये हैं... उस दुनिया से बहुत दूर। अब उन्हें यह सब कहने की जिम्मेदारी उन लोगों पर छोड़ देनी चाहिए, जो अब भी स्वेच्छा से उन्हें उसी पुराने चश्मे से देखना चाहते हैं।
फिलहाल, मैं जिस हरिवंश को जानता था, वो तब तक सिर्फ हरिवंश थे। राज्यसभा में हमने जिस हरिवंश को जाते देखा, तब तक वे ‘हरिवंश नारायण सिंह’ हो चुके थे।
समाजवादी मित्र और वारिष्ठ पत्रकार अम्बरीश कुमार कहते हैं, ‘हरिवंश निजी जीवन की तरह सदन में भी अपने आचरण से लगातार प्रभावित करते रहे हैं/थे। लेकिन रविवार को सदन में कृषि विधेयकों की ताबड़तोड़ ध्वनिमत से मंजूरी दिलाने और उनकी चाय से लेकर ‘भावुक चिट्ठी’ तक की इस ‘अभूतपूर्व प्रक्रिया’ में जो कुछ ध्वनियां निकली हैं, उससे वे एक बार फिर से अलग कारणों से चर्चा में हैं और यह स्वाभाविक भी है।’अम्बरीश कहते हैं कि शायद इसके पीछे भी कोई भविष्य कि किसी बड़ी मंजिल की उम्मीद हो।
हालांकि, मंगलवार की सुबह धरने पर बैठे सांसदों की दरी पर बैठकर, उन्हें चाय पिलाने, उनके साथ चाय पीते हुए उनके तंजिया बयानों ने उन्हें जितना विचलित किया होगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उनकी प्रशंसा वाले ट्वीट उन्हें कितना संतुष्ट कर पाएंगे, फ़िलहाल इसे लेकर किसी निष्कर्ष या निकष पर पहुंचना मुश्किल है। शायद उनके अति करीबी मित्रों के लिए भी यह कठिन ही हो।
अवसरवादी और समझौतावादी हरिवंश उनकी नैतिकता खरी न उतरने के कई उदाहारण हैं। उनके अत्यंत करीबी रहे एक मित्र बताते हैं कि- ‘जिनके खिलाफ उन्होंने मुहिम चलाई (लालू प्रसाद), उन्हीं के दल (राजद) के साथ जब नीतीश के जदयू का समझौता हुआ तो हरिवंश महज इसलिए चुप्पी साधे रहे कि उनकी राज्यसभा की कुर्सी सलामत रहे। ये वही प्रसंग है जब हरिवंश न सिर्फ सम्पादक के रूप में बल्कि एक छद्म नाम से रिपोर्टिंग करके भी (जिसे वे खुद भी स्वीकार करते हैं) अपने अखबार में लालू यादव का चिट्ठा खोलने, उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भिजवाने में कोई कोताही नहीं की थी। इसी कारण उनसे रिश्ते भी बिगड़े थे। हालांकि बाद के घटनाक्रमों से यह भी पुष्ट हुआ कि इस पूरे ‘खुलासा प्रकरण’ में सच चाहे जितना रहा हो, उनकी पत्रकारीय मंशा संदेह के घेरे में ही रही। वरना कोई कारण नहीं था कि 2015 में जब नीतीश कुमार का जदयू और लालू प्रसाद का राजद हाथ मिला रहे थे, वह पत्रकारीय नैतिकता दिखाते तो इस्तीफा देकर अलग हो जाते। पत्रकारीय नैतिकता भी बची रहती, राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी किसी और दल से तो पूरी हो ही जाती।
नीतीश की नाराजगी भी खामोशी से झेली 2009 की बात है। राज्यसभा का रास्ता लगभग साफ था लेकिन चुनाव के दौरान हरिवंश से थोड़ी ‘चूक’ हो गई। बांका से लोकसभा प्रत्याशी (जदयू के बागी) दिग्विजय सिंह के नामांकन समारोह में पहुंचे थे और बाकायदा मंच पर आसीन थे। तब वे प्रभात खबर के प्रधान सम्पादक थे। मैं उन दिनों भागलपुर में था और मुझे याद है कि उस समारोह में प्रभाष जोशी और अनुपम मिश्र भी आए थे। सबने न सिर्फ वह मंच साझा किया था बल्कि सम्भवतः हाथ में तलवार लेकर फोटो भी खिंचाई थी। उस माहौल में कुछ अप्रिय दीखते सवालों से असहज भी हुए थे। ���सहज तो प्रभाषजी भी हुए थे लेकिन दोनों के असहज होने का मीटर बहुत अलग था।
हरिवंश के अत्यंत प्रिय और उनकी टीम में लम्बे समय संपादक रहे रवि प्रकाश की फेसबुक पर लिखी यह टिप्पणी अपने आप में एक मुकम्मल तस्वीर दिखा देती है। रवि लिखते हैं- ‘आप पत्रकारिता में हमारे हीरो थे। लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ते थे। ईमानदार थे। शानदार पत्रकारिता करते थे। ‘जनता’ और ‘सरकार’ में आप हमेशा जनता के पक्ष में खड़े हुए। आपको इतना मज़बूर (?) पहले कभी नहीं देखा। अब आप अच्छे मौसम वैज्ञानिक हैं। आपको दीर्घ जीवन और सुंदर स्वास्थ्य की शुभकामनाएं सर। आप और तरक्की करें। हमारे बॉस रहते हुए आपने हर शिकायत पर दोनों पक्षों को साथ बैठाकर हमारी बातें सुनी। हर फैसला न्यायोचित किया। आज आपने एक पक्ष को सुना ही नहीं, जबकि उसको सुनना आपकी जवाबदेही थी। आप ऐसा कैसे कर गए सर? यक़ीन नहीं हो रहा कि आपने लोकतंत्र के बुनियादी नियमों की अवहेलना की।
करीब दस साल पहले एक बड़े अखबार के मालिक से रुबरू था। इंटरव्यू के वास्ते। उन्होंने पूछा कि आप क्या बनना चाहते हैं। जवाब में मैंने आपका नाम लिया। वे झल्ला गए। उन्होने मुझे डिप्टी एडिटर की नौकरी तो दे दी, लेकिन वह साथ कम दिनों का रहा। क्योंकि, हम आपकी तरह बनना चाहते थे। लेकिन आज...!
एक बार झारखंड के एक मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लाने के लिए सरकारी हेलिकॉप्टर भेजा। आपने पहले पन्ने पर खबर छापी। बाद में उसी पार्टी के एक और मुख्यमंत्री हर सप्ताहांत पर सरकारी हेलिकॉप्टर से ‘घर’ जाते रहे। आपका अखबार चुप रहा। हमें तभी समझना चाहिए था। आपके बहुत एहसान हैं। हम मिडिल क्लास लोग एहसान नहीं भूलते। कैसे भूलेंगे कि पहली बार संपादक आपने ही बनाया था। लेकिन, यह भी नहीं भूल सकते कि आपके अख़बार ने बिहार में उस मुख्यमंत्री की तुलना चंद्रगुप्त मौर्य से की, जिसने बाद में आपको राज्यसभा भेजकर उपकृत किया। आपकी कहानियाँ हममें जोश भरती थीं। हम लोग गिफ़्ट नहीं लेते थे। (कलम-डायरी छोड़कर) यह हमारी आचार संहिता थी। लेकिन, आपकी नाक के नीचे से एक सज्जन सूचना आयोग चले गए। आपने फिर भी उन्हें दफ्तर में बैठने की छूट दी। जबकि आपको उनपर कार्रवाई करनी थी। यह आपकी आचार संहिता के विपरीत कृत्य था। बाद में आप खुद राज्यसभा गए। यह आपकी आचार संहिता के खिलाफ बात थी। ख़ैर, आपके प्रति मन में बहुत आदर है। लेकिन, आज आपने संसदीय नियमों को ताक पर रखा। भारत के इतिहास में अब आप गलत वजहों के लिए याद किए जाएंगे सर। शायद आपको भी इसका भान हो। संसद की कार्यवाही की रिकार्डिंग फिर से देखिएगा। आप नज़रें ‘झुकाकर’ बिल से संबंधित दस्तावेज़ पढ़ते रहे। सामने देखा भी नहीं और उसे ध्वनिमत से पारित कर दिया। संसदीय इतिहास में ‘पाल’ ‘बरुआ’ और ‘त्रिपाठी’ जैसे लोग भी हुए हैं। आप भी अब उसी क़तार में खड़े हैं। आपको वहां देखकर ठीक नहीं लग रहा है सर। हो सके तो हमारे हीरो बने रहने की वजहें तलाशिए। शुभ रात्रि सर।
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हरिवंश नारायण सिंह लगातार दूसरी बार राज्यसभा में उपसभापति चुने गए हैं। साल 2014 में पहली बार जदयू ने हरिवंश को राज्यसभा के लिए प्रस्तावित किया था। - फाइल फोटो
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gokul2181 · 4 years
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Mumbai Thane (Maharashtra) Coronavirus Cases/Unlock 1.0 Latest Update | Maharashtra Corona Cases Deaths District Wise Today News; Mumbai Pune Thane Nashik Jalgaon Aurangabad Palghar | महाराष्ट्र में 24 घंटे में 5493 मरीज मिले, यह मरीजों की अब तक की सबसे बड़ी संख्या, कल भी 53 सौ से ज्यादा पॉजिटिव मिले थे
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Mumbai Thane (Maharashtra) Coronavirus Cases/Unlock 1.0 Latest Update | Maharashtra Corona Cases Deaths District Wise Today News; Mumbai Pune Thane Nashik Jalgaon Aurangabad Palghar | महाराष्ट्र में 24 घंटे में 5493 मरीज मिले, यह मरीजों की अब तक की सबसे बड़ी संख्या, कल भी 53 सौ से ज्यादा पॉजिटिव मिले थे
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100 दिन बाद आज से नाई की दुकान��ं और सैलून खुलीं
मुंबई में कोरोना को हराने शुरू हो रहा सीरो सर्वे
दैनिक भास्कर
Jun 28, 2020, 08:25 PM IST
मुंबई. रविवार देर शाम जारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले 24 घंटे में राज्य में 5493 संक्रमित मरीज मिले हैं। यह अब तक किसी भी राज्य में एक दिन में मिले मरीजों की सबसे बड़ी संख्या है। इससे पहले शनिवार शाम को जारी रिपोर्ट में राज्य में 53 सौ से ज्यादा मरीज मिले थे। राज्य में कुल मरीजों की संख्या 163579 हो गई है। वहीं, रविवार को 156 मौतें होने के बाद कोरोना संक्रमण से मरने वालों की कुल संख्या 7429 हो गई है। वहीं, मुंबई में 24 घंटे में 1287 नए कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले, जबकि 87 मरीजों की मौत हुई। मुंबई में अब तक कुल केस 75539 और कुल मौत 4371 हो गई हैं।
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मुंबई के नयगांव इलाके में एक सैलून को सैनिटाइज्ड करता एक कर्मचारी।
राज्य में आज से नाई की दुकान खुलीं महाराष्ट्र में 100 दिन बाद आज से नाई की दुकान, हेयर स्पा और सैलून पार्लर खुल गए हैं। राज्य सरकार ने इन दुकानों को कुछ दिशा-निर्देशों के साथ खोलने की अनुमति दी है। दुकानों को पूर्व निर्धारित अपॉइंटमेंट के आधार पर चलाने की इजाजत होगी। सैलून और नाई की दुकानों में सरकार ��ी ओर से निर्धारित एहतियात के साथ बाल काटने, हेयर डाइंग, वैक्सिंग, थ्रेडिंग को अनुमति है। जबकि दुकान में काम करने वाले कर्मचारियों को इन सेवाओं को मुहैया कराते वक्त दस्ताने, एप्रन और मास्क पहनने होंगे। हर सर्विस के बाद कुर्सियों को सैनिटाइज करना अनिवार्य होगा। दुकानदार को ग्राहकों के लिए तौलिया या नैपकिन का इंतजाम करना होगा। साथ ही दुकान के फर्श को हर दो घंटे में साफ करना होगा।
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मुंबई के धारावी के एक स्लम में जांच के लिए पहुंचे स्वास्थ्यकर्मी को देखता हुआ एक बच्चा। 
मुंबई में बीएमसी करेगी सीरो सर्वे  मुंबई में बीएमसी कोरोना के फैलाव को जांचने के लिए सीरो-सर्वे करवाएगी, जिसमें 10,000 रैंडम ब्लड सैंपल लिए जाएंगे। यह सर्वे नीति आयोग और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के साथ मिलकर मुंबई के एम- वेस्ट, एफ नॉर्थ और आर नॉर्थ वॉर्ड में किए जाएंगे। इस स्टडी से कोरोना संक्रमण की दर, इसके फैलाव की प्रकृति और आबादी पर इसके असर की जानकारी मिलेगी। जिसके आधार पर कोरोना से संबंधित जनस्वास्थ्य नीतियां बनाने में सहायता मिलेगी।
नवी मुंबई में एक सप्ताह का लॉकडाउन  नवी मुंबई महानगरपालिका ने आदेश दिया है कि रोगियों की संख्या बढ़ने की वजह से 29 जून से 5 जुलाई तक पूरे शहर में लॉकडाउन लागू करने का आदेश जारी किया गया है। नवी मुंबई में कोरोना रोगियों का आंकड़ा 5 हजार के पार पहुंच चुका है और 194 लोगों की मौत हो चुकी है। जिले के पालकमंत्री एकनाथ शिंदे ने इसका संज्ञान लिया है और इस संबंध में बैठक की गई है।
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लॉकडाउन के कारण नवी मुंबई में चलने वाला रैम्बो सर्कस बंद चल रहा है। सर्कस के मैनेजर बीजू नायर अपने कर्मचारियों के साथ खाना बनाते हुए।
ड्यूटी पर हाजिर नहीं होने के कारण 6 पुलिसकर्मियों पर एफआईआर कई बार नोटिस के बावजूद ड्यूटी पर हाजिर न होने के लिए 6 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। ये सारे पुलिसकर्मी बोरीवली पुलिस स्टेशन से जुड़े हैं। इनमें दो पुलिस नाइक हैं जबकि चार पुलिस कांस्टेबल हैं। इन पुलिसकर्मियों को पहले कई बार चेतावनी दी गई। नोटिस भी दिया गया। इसके बाद उन्हें निलंबित कर जांच के लिए बुलाया गया। इसके बावजूद ये पुलिसकर्मी नहीं आए। अब इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।
घर पर काम करने वालों पर राज्य में रोक नहीं सहकारिता मंत्री बालासाहब पाटील ने कहा है कि राज्य सरकार ने हाउसिंग सोसाइटी के घरों में काम के लिए आने वाले लोगों और वाहन चालकों के प्रवेश पर रोक नहीं लगाई है। लिहाजा, मजदूरों और घर में काम पर आने वाले लोगों को सोसाइटी परिसर में आने से न रोका जाए। उन्होंने सोसायटी पदाधिकारियों को आग्रह करते हुए कहा है कि कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने जो निर्देश जारी किए हैं, उसके अंतर्ग��� घर के काम के लिए मजदूरों और वाहन चालकों के प्रवेश पर रोक नहीं लगाई है।
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नवी मुंबई के ऐरोली में एक पिंजड़े में बंद कुछ कुत्ते। ये सभी सर्कस में करतब दिखाते थे। लॉकडाउन की वजह से इन्हें यहां बंद करके रखा गया है।
राज्य में शिक्षिकाओं को स्कूल नहीं आने की छूट
राज्य सरकार ने सर्कुलर जारी कर स्कूल खुलने तक शिक्षिकाओं को स्कूल नहीं आने और घर से काम करने की छूट दे दी है, लेकिन जो शिक्षक स्वस्थ हैं, उन्हें सप्ताह में दो दिन स्कूल में हाजिरी लगानी होगी। इन शिक्षकों को किस दिन स्कूलों में आना है, यह मुख्याध्यापक तय करेंगे। सर्कुलर के मुताबिक, मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई और पालघर में अत्यावश्यक सेवाओं के लिए ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट चल रहे हैं। इससे शिक्षकों को स्कूलों में जाने में अड़चन आ सकती है, इसलिए शिक्षकों की सहूलत के लिए वर्क फ्रॉम होम की अनुमति दी गई है। साथ ही, स्कूल खोलने की तैयारी और ई-लर्निंग को लेकर मुख्याध्यायकों को सप्ताह में दो दिन स्कूल में उपस्थित रहना होगा।
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रेम्बो सर्कस में काम करने वाली एक महिला आर्टिस्ट खाली समय पर खाना बनाती हुई।
मुंबई में कोरोना नियंत्रित करने में असफल रही सरकार: फडणवीस विपक्ष के नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आरोप लगाया है कि मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन में कोरोना मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। सरकार इस पर नियंत्रण करने में असफल हो गई है। इस संबंध में फडणवीस ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर पूरी जानकारी दी है।
फडणवीस ने पत्र में लिखा है कि कोरोना संक्रमण दर भिवंडी में 48 प्रतिशत, पनवेल में 45 प्रतिशत, मीरा-भाईंदर में 43 प्रतिशत, ठाणे में 29.94 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह आंकड़े तब हैं, जब कोरोना टेस्ट नियंत्रित किया जा रहा है। साथ ही मरने वालों के आंकड़े भी तेजी से बढ़े हैं। फडणवीस का कहना है कि 24 जून 2020 तक मुंबई में 2 लाख 99 हजार 369 टेस्ट किया गया था जबकि उस वक्त मरीजों की संख्या 69 हजार 528 थी। मतलब टेस्ट किए गए 23.22 प्रतिशत लोग कोरोना पीड़ित पाए गए। 
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नवी मुंबई में रेम्बो सर्कस के एक टेंट में खाली बैठे कर्मचारी। लॉकडाउन की वजह से सर्कस बंद चल रहा है। 
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acharya123himal · 4 years
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स्पष्टीकरण दिन स्वास्थ्य मन्त्रालय पुगे डा. पुन
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७ वैशाख, काठमाडौं । शुक्रराज ट्रपिकल तथा सरूवा रोग अस्पतालका डाक्टर शेरबहादुर पुन स्पष्टीकरण दिन स्वास्थ्य तथा जनसंख्या मन्त्रालय पुगेका छन् ।
मन्त्रालयले बोलाउँदा नआएको भन्दै पत्र काटेपछि उनी आइतबार मन्त्रालय हाजिर भएका छन् । उनी भर्खर मन्त्री भानुभक्त ढकालको कार्यकक्षमा प्रवेश गरेका छन् ।
मन्त्रलयले शुक्रबार नै पत्र काटेको थियो । तर उनले आइतबार मात्र पत्र पुगेको अस्पताल स्रोतले बताएको छ ।
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jaunpur24 · 4 years
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जौनपुर : जिले में चल रही है फिल्म ‘भगवान हाजिर हो’ की शूटिंग ।
जौनपुर : जिले में चल रही है फिल्म ‘भगवान हाजिर हो’ की शूटिंग ।
जौनपुर। वैश्विक महामारी कोरोना के बीच इन दिनों सुपर स्टार प्रवेश लाल यादव, यामिनी सिंह व समर सिंह स्टारर भोजपुरी फिल्म ‘भगवान हाजिर हो’ की शूटिंग नहोरा सहित जिले के कई स्थानों पर चल रही है।
फिल्म का निर्माण बॉलीवुड की तर्ज पर किया जा रहा है। यह जानकारी फिल्म के निर्देशक सचिन यादव ने दी। उन्होंने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरे विश्व को अस्त-व्यस्त कर दिया।
इसको लेकर देशभर में लॉकडाउन…
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ashokkumarrao100 · 4 years
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Bhobishyoter Bhoot full Movie Download Hindi Story | भटकती आत्मा ~ thekahaniyahindi
Bhobishyoter Bhoot full Movie Download Hindi Story | भटकती आत्मा का सच्चा प्रेम
Bhobishyoter Bhoot full Movie Download Hindi Story | भटकती आत्मा :- हेलो दोस्तों कैसे हो आप सब ? आपका फिर हाजिर हैं, एक नई भूतिया स्टोरी के साथ। दोस्तों अगर आप Google पर अगर Bhobishyoter Bhoot full Movie Download Hindi Story | भटकती आत्मा की कहानी ढूंढ रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह आये हो।
Bhobishyoter Bhoot full Movie Download Hindi Story | भटकती आत्मा में हम आपको ऐसे रहस्य की सैर कराने जा रहे हैं, जिसमें प्रवेश करने के बाद सोचने के लिए मजबूर हो जाओगे। की दुनिया में ऐसा भी हो सकता हैं  ऐसा माहौल जिसमें डर लगना तो पक्‍का है।
सच्चा प्रेम बहुत मुश्किल से मिलता है, क्योंकि आज की दुनिया स्वार्थ से परिपूर्ण है, दुनिया में सच्चे प्रेम का महत्व ही नहीं है। कहीं खूबसूरती के दिवाने मिल जाते हैं तो कहीं वाकपटुता एक दूसरे को करीब ला देती है पर अधिकतर मामलों में हवस ही प्रधान होती है। चार दिनों का साथ फिर चल दिए किसी और की तलाश में।
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दिल मिले, ऐसा बहुत कम होता है, क्योंकि अगर दिल मिल गए तो वे कभी एक दूसरे से अलग हो ही नहीं सकते और निश्वार्थ भाव से, अपने सुख की बलि देकर भी दूसरे के सुख की चाह को कायम रखते हैं। दुनिया भी तेजी से बदल रही है और आज दुनिया के सार्वभौमिकरण के कारण प्रेम और रिश्तों की परिभाषा भी बदल रही है।
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dendy · 6 years
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जोकर के हाथों में लोकतंत्र की लूट कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री के रूप में एच. डी. कुमारस्वामी जब शपथ ग्रहण कर रहे थे उस समय पूरे देश के सभी गैर-मोदी दलों के नेता वहां एकत्र हुए थे। मंच पर ही एक दूसरे का हाथ थाम कर इन सब लोगों ने अपने एक होने का संकेत उनके समर्थकों को दिया। उस दृश्य ने बता दिया, कि पिछले 4 वर्षों से केंद्र तथा देश के अधिकांश राज्यों में जिस प्रकार से भाजपा का रोड रोलर चल रहा है उसका जोरदार जवाब देने की तैयारी विरोधियों ने की है। इस शपथग्रहण समारोह में पांच राज्यों के मुख्यमंत्री उपस्थित थे। पश्चिम बंगाल में मुहर्रम के लिए दुर्गा पूजा पर पाबंदी लगानेवाली ममता बैनर्जी, आंध्र प्रदेश में तिरुपति देवस्थान पर ईसाई महिला की नियुक्ति करनेवाले चंद्रबाबू नायडू, तेलंगाना में मुस्लिमों को आरक्षण देने के लिए जिद पर अड़े हुए के. चंद्रशेखर राव, केरल में दूसरा अरबस्थान बनाने के लिए लालायित पिनराई विजयन और दिल्ली में नौटंकी को संस्थात्मक दर्जा दिलानेवाले अरविंद केजरीवाल ने इस मंच को चार चांद लगाए। चंद्रबाबू नायडू और चंद्रशेखर राव इनमें कितनी पटती है, यह सबको पता है लेकिन वे वहां हाजिर थे। इतना ही नहीं एक दूसरे के खून के प्यासे अखिलेश यादव और मायावती भी वहां हाजिर थे। अरविंद केजरीवाल को मानो तक सभी दलों ने जैसे अपने कुनबे से बाहर रखा था और उन्होंने भी भ्रष्टाचार निर्मूलन के पुरोधा के रूप में खुद को महिमामंडित किया था। लालू प्रसाद यादव के गले मिलकर भी उनका भ्रष्टाचार का पाखंड बदस्तूर जारी था। किसी समय कांग्रेस को जी भर कर कोसनेवाला यह भ्रष्टाचारविरोधी वीर वहां कांग्रेस की पंक्ति में बैठा था। इस समारोह में जिन्होंने एक दूसरे का हाथ पकड़कर कांग्रेस का हाथ मजबूत करने का बीड़ा उठाया उन सब नेताओं के पास मिलकर आज की घड़ी में लोकसभा की 265 सीटें हैं। फिर भी इनमें महाराष्ट्र की शिवसेना नहीं थी। यह दीगर बात है, कि यह जमावड़ा एक दूसरे की कितनी मदद करता है, इसको लेकर आशंकाएं बरकरार है। इन्हें देखकर भाजपा नेताओं के माथे की रेखाएं बढ़ गई होगी इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। भाजप से नाराज रहे लोगों को अच्छा लगे इसलिए ये दोनों कुछ दिन के लिए चेहरे पर चिंता लेकर घूमेंगे भी। भाजपा के विरोध में इस अभियान का शंखनाद करने के लिए सेकुलरों को कुमार स्वामी के राज्याभिषेक से बेहतर मुहूरत नहीं मिल सकता था। एक ओर पूर्ण बहुमत ना मिलने का मलाल भाजपा को सता रहा हो, बहुमत ना मिलने के कारण पद छोड़ने की आफत येदियुरप्पा पर आई हो, मोदी शाह के हाथों से लोकतंत्र की इज्जत बचा सके ऐसा रिसॉर्ट विरोधियों को हाल ही में मिला हो - संक्षिप्त में कहे तो भाजपा के सारे घाव हरे हो ऐसे समय में यह शंखनाद किया गया। पर इन सब लोगों को एकत्र लानेवाला शख्स कौन है? वह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। सन 2014 के लोकसभा और उसके बाद के लगभग हर चुनाव में एक बात दिख चुकी है माहौल चाहे जैसा भी हो, एक बार मोदी के मैदान में उतरते ही सारा दृश्य बदल जाता है। कर्नाटक में भी भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिली लेकिन इनमें से अधिकांश सीटें मोदी के करिश्मे का नतीजा है। पार्टी के किसी भी अन्य नेताओं को मतदान से संवाद साधने में सफलता नहीं मिली। येदियुरप्पा प्रभावशाली नेता जरूर है लेकिन भाजपा को अकेले के बूते सत्ता तक ले जाने की ताकत उनमें नहीं है यह फिर एक बार फिर साबित हो गया। कर्नाटक में मोदी अकेले भाजपा को 100 के पार ले गए यह बात भाजपा के लिए वास्तव में चिंता की बात है। अगले एक वर्ष में लोकसभा का चुनाव है और भाजपा के अलावा बाकी सारे दलों का एक ही मलाल है, कि उनके पास मोदी नहीं है! सीधे जनता से बात करने वाला और उनके मत खींचने वाला चेहरा उनके पास नहीं है। फिर अपने अस्तित्व की आशंका से भयभीत विरोधियों के मन में एक बात ने पैठ जमा ली है, कि मोदी और भाजपा को टक्कर देने हो तो सभी भाजपा विरोधी दलों को एकत्र आना ही होगा। फुलपुर आदि उपचुनावों के नतीजों ने उनके मुगालते को और हवा दी है, हालांकि बड़े चुनावों के नतीजे कुछ और ही कहते हैं। मजे की बात यह, कि जिस कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण के लिए ये लोग इकट्ठा हुए थे वह कहां एकत्रित विरोधियों के दम पर चुनकर आए थे। कर्नाटक में कांग्रेस और जीडीएस ने चुनाव सिर्फ अलग-अलग नहीं लढ़ा, बल्कि एक दूसरे पर आग उगलते हुए लड़ा था। लेकिन मतदाताओं का जनादेश खंडित रूप से आया और हताश कांग्रेस ने उत्साहित जीडीएस को तश्तरी में रखकर सत्ता सौंप दी। विधान सौध के सीढ़ियों पर बने मंच पर आसीन इन नेताओं के मन में क्या विचार आते होंगे? पिछले तीन दशकों से देश की राजनीति कितनी अच्छी चल रही थी? प्रादेशिक दलों का जोर बढ़ रहा था, जिसके पास 5-10 विधायक या 15-20 सांसद हो वह नेता भी राज्य के मुख्यमंत्री या केंद्र में प्रधानमंत्री को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता था! सिर्फ अपनी जाति की गठरी संभलने की बात थी! कईयों के पोतो-पड़पोतों का का भी इंतज़ाम हो जाता था! कोई जेल में जाते समय अपनी बीवी को मुख्यमंत्री करता था, कोई रातोंरात इस दल से उस दल में जाता था या स्वाभिमान का दम देकर मंत्री पद हासिल करता था। इस पूरे तंत्र पर एक प्रहार किया मोदी नाम के व्यक्ति ने। दुष्ट व्यक्ति के विरोध में एकत्र आना ही होगा। लोकतंत्र बचाना ही होगा। मोदी नामक राक्षस को हराना ही है, ऐसा निश्चय उन्होंने किया होगा। बैटमैन सीरीज की फिल्मों में से एक 'डार्क नाइट राइज़ेस' में आरंभ का एक दृश्य है। विलेन जोकर कई लोगों को साथ में लेकर बैंक पर डकैती डालने जाता है। उस समय सभी लोग जोकर के मुखोटे पहने हुए ही होते हैं। बैंक में प्रवेश करने के बाद ये लोग पहले वहां के लोगों को और कर्मचारियों को गोलियों से भूनते हैं। बाद में जैसे-जैसे रकम हाथ में आने लगती है वैसे वैसे ये सारे जोकर एक दूसरे को मारने लगते हैं। सबसे आखिर में पूरी रकम हाथ में हथियाने वाला जोकर (हीथ लेजर) हाथ आई लूट को लेकर भाग जाता है। भारतीय लोकतंत्र की लूट ऐसे किसी जोकर के हाथ में ना पड़े तो गनीमत है।
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onlinekhabarapp · 4 years
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किन अदालत हाजिर भएनन् बम्जन ?
१ पुस, काठमाडौं । तपश्वीको भेषमा अनुयायी बलात्कार गरेको अभियोग लागेका रामबहादुर बम्जन अदालतले दिएको ३५ दिने म्यादभित्र हाजिर भएनन् ।
जिल्ला अदालत, सर्लाहीले २४ कात्तिकमा निजगढमा रहेको बम्जन निवासमा सूचना टाँस गर्दै अदालतमा हाजिर हुन भनेको थियो । तर, उनी उपस्थित नभएको जिल्ला अदालत, सर्लाहीका वैतनिक वकिल नरेशकुमार चौधरीले अनलाइनखबरलाई बताए ।
बम्जनलाई खोज्दै केन्द्रीय अनुसन्धान ब्युरो (सीआईबी) सहितका प्रहरी टोलीले पटकपटक उनको आश्रममा छापा हानेका थिए । बम्जन फेला नपरेपछि १८ वर्षीया किशोरीलाई बलात्कार गरेको सम्बन्धी विषयमा जिल्ला सरकारी वकिलको कार्यालय, सर्लाहीमार्फत १८ असारमा मुद्दा दायर भएको थियो ।
अधिवक्ता टीपी शर्मा कँडेलका अनुसार अदालतमा बम्जन उपस्थित नहुनु भनेको उनी आफैं कमजोर हुनु हो । ‘प्रतिवादी अदालतमा उपस्थित नभएपछि उनीविरुद्धको मुद्दा अझै बलियो हुन्छ, आफूविरुद्धको अभियोगको प्रतिरक्षाका लागि पनि बम्जन अदालतमा उपस्थित हुनुपर्ने हो’, उनले भने, ‘अब अदालतले एकपक्षीयरुपमा फैसला गर्छ ।’
मुद्दाको फैसला हुञ्जेलसम्म पनि अदालतमा पनि उपस्थित नभए बम्जनले पुनरावेदनको अवसरसमेत गुमाउने कँडेलको भनाइ छ । त्यसो त मुद्दा प्रक्रिया जारी रहेको अवस्थामा ‘मुल्तबीमा भएको मुद्दालाई ब्युतायी पाउँ’ भन्ने व्यहोराको निवेदन दिएर अदालतमा उपस्थित हुने बाटो पनि रहेको उनले सुनाए ।
जिल्ला सरकारी वकिलको कार्यालय, सर्लाहीका न्यायाधीवक्ता केशवप्रसा गौतमका अनुसार यो अवधिमा प्रहरीले समेत बम्जनलाई पक्राउ गरेर अदालतमा बुझाउने बाटो खुला छ । वैतनिक वकिल चौधरीका अनुसार बम्जनविरुद्ध वारेन्टसमेत जारी भइसकेको छ ।
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यो पनि पढ्नुहोस रामबहादुर बम्जन प्रहरीबाट उम्किए, अदालतले के गर्ला ?
हत्याबारे अनुसन्धान गर्ने बाटो बन्द
बम्जनमाथि चार जना अनुयायी बेपत्ता पारेको समेत उजुरी छ । तीमध्ये हेटौंडाको सञ्चलाल वाइवाको हत्या भएको आशंका गरिएको थियो । उनका छोरा महेन्द्रले प्रहरीमा किटानी जाहेरी दिएका छन् ।
छोरा सुरेश हराएको भन्दै हस्तबहादुर आलेमगर, दिदी फूलमायाबारे हेटौंडाका विजय रुम्बा र बहिनी चिनिमायाबारे नुवाकोटकी गंगामाया तामाङले प्रहरीमा जाहेरी दिएका थिए । प्रहरीले अनुसन्धानको सिलसिलामा सिन्धुपाल्चोकस्थित आश्रममा छापा हानेर खनतलासी लिए पनि कुनै प्रमाण भेटिएको थिएन ।
सिन्धुपाल्चोकको आश्रमको एक शंकास्पद स्थानमा खनेर प्रहरीले नुनको पोका फेला पारेको थियो । त्यहाँ शव गाडेर गलाइएको हुनसक्ने आशंका गरिए पनि कुनै सुराक भेटिएन ।
त्यसपछि प्रहरीले बम्जनलाई जबरजस्तीकरणी सम्बन्धी कसुरमा पक्राउ गरेर २५ दिन हिरासतमा राख्दा व्यक्ति बेपत्ताको विषयमा समेत अनुसन्धान गर्ने तयारी गरेको थियो । यद्यपि, मुद्दा अदालतमा पुगेसँगै थप अनुसन्धानको बाटो टरेको सीआईबीका एक अधिकृत बताउँछन् ।
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यो पनि पढ्नुहोस रामबहादुर बमजनमाथिको अनुसन्धान : प्रहरीलाई विवादमा पर्ने डर !
कहाँ छन् बम्जन ?
प्रहरी अधिकृतहरुको दाबी मान्ने हो भने उनी अझै सिन्धुलीकै घना जंगलमा लुकेर बसेका छन् । बम्जनले सुराकी राखेर प्रहरी प्रवेश गर्ने वित्तिकै सूचना लिएको हुनाले उनी उम्कन सफल भएको हुनसक्ने आशंका प्रहरीको छ ।
उनी अदालतमा हाजिर नहुनुले चाहिँ अनेक शंका गरेको प्रहरीको भनाइ छ । यो अवधिमा उनले पीडित किशोरीलाई समेत प्रलोभनमा पार्ने कोसिस गरेको सूचना प्रहरीसम्म पुगेको छ ।
प्रहरी स्रोतका अनुसार पीडितलाई होस्टायल गराएर मात्रै हाजिर हुने तयारी बम्जनले गरेको हुनसक्छ । पीडित परिवारसमेत बम्जनकै अनुयायी भएकाले सम्प्रदायकै व्यक्तिबाट पनि चुप लागिदिन दबाब रहेको प्रहरी स्रोत बताउँछ ।
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jayveer18330 · 7 years
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कोयल
बसंत का दिन । पौ फटने का समय । उषा काल । धीमी-धीमी पुरवाई । कलियों का चटकना। अमराइयों के बीच से कोयल बोल उठती है--' और एक साथ सहसा सैकड़ों हृदयों के हृदयतन्तु कांप उठते है, डोल उठते हैं । आगे का हाल इन पंक्तियों में पढ़िए सिहर उठा उर देख नदी का, सिहर उठी जलबीच पंकजा ; ताल-ताल पर तेरे आली पून-व्यथा जग उठी संत की। संत-हृदय में भी प्रेमव्यथा जगाने की शक्ति सिवा कोयल के और किस पक्षी म है वह ने , ? ? कौन है हृदय जिसे मदभरी कोयल की कूक तड़पाया नहींरुलाया नहीं प्रकृतितः भारतीय साहित्य ने जो स्थान कोयल को दिया है वह किसी और को नहीं । न जाने कितनी शतसहन पंक्तियां इसकी प्रशंसा में, प्रशस्ति में लिखी जा चुकी हैं और आज भी, जबकि प्राचीन परम्पराओं की दीवार व्रत गति से ढहती जा रही है, आधुनिक साहित्य में इसका स्थान अक्षुण्ण है । मनुष्य की वाणी उसका मित्र और शत्रु दोनों ही है । दुधन के सम्बन्ध में कहे हुए दो शब्द महाभारत के भीषण रण का कारण बने । महात्मा गांधी के मीठे शब्दों ने कितनों को उनके चरणों पर विनयावनत किया। यही हाल पक्षियों का भी है। समय। पड़ने पर हम प्रियाप्रियतम के संवादवाही काग की भले ही खुशामद कर लें, साधारण तौर पर उसकी कर्कश वाणी से तंग आकर हम ढले मारमार कर उसे उड़ाते फिरते हैं पर कोयल की, जो देखने में उतनी ही कुरूप है जितना कि काग, वाणी सुनने को हम उत्कंठित रहते हैं और ऐसे स्थानों में, जहां कोयल का आवास नहीं , मसलन शिमला, मसूरी आदि पहाड़ों पर, उसकी बोली सुनने को तरसते हैं। उसकी मधुर बोली ने। ही तो मानव-हृदय में उसके लिए यह गहरा स्थान बना रखा है । किसी ने ठीक ही कहा है कौआ कासों लेत है, कोयल काको वेत, मीठो बचन सुनाय क, सब को बस करि लेत। कोयल और वसंत का गहरा सम्बन्ध है तथा वसन्त काल में कोयल का कूकना कहीं तो आनन्द की वर्षा करता है, कहीं प्रोषित पतिकारों के हृदय में विष उड़ेलता है । कवि पण्डित प्रवीन’ के शब्दों में बल्ली' को बितान, मल्ली दल को बिछौना, मऊ महल निकु है प्रमोदवन३ राज को, भारी दरबार भिरी भरन की भीर बेठ मदन दिवान इतिमाम४ काम काज को। ‘पण्डित प्रबीन' तजि मानिनी गुमान गढ़ ‘हाजिर हुजूर' सुनि कोकिल अवाज को, चोपदार चातक बिरद बढ़ि बोले वर दौलत दराज सहराज ऋतुराज को।' ऋतुराज के दरबार की ज्योतियों में है यह कोयलअतिशय सुखदायी । पर देखिएपद्माकर का विचार कुछ और ही है । वे कहते हैं. ए ब्रजचन्द ! चलो किन वा ब्रज लू वसन्त की अकन लागीं, त्यों पद्माकरपेखौ पलासन पावक सी मनो फूकन लागों । वे बजवारी बिचारी वध वन बावरी लीं हिये फूकन लागों, कारी कुरूप कसाइमैं ये सु कुडू कुहू क्वैलियां कूकन लागीं । विचार चाहे पद्माकर के अपने हों अथवा ब्रजवनिता के, पर यहां स्पष्ट है कि उसका ककना विष ही ढालता है, अमृत नहीं। क्यों ? इसे वियोग वाण से बिंधे हुए जन ही समझ सकेंगे । फिर भी कोयल, कोयल ही है, पक्षीराज है, और तावच्चकोरचरणायुधचक्रवाक पारावतादि विहगाः कलमालपन्तु, यावद्वसन्तरजनीघटिकावसानमासा कोकिल युवा न कुकरोति । चकोर, मुगा , चकवा तथा कबूतर आदि पक्षी तभी तक अपनीअपनी बोलियां सुनाते हैं जब तक कि वसंत की प्रभात वेला में कोयल अपना कुहूकुहू शब्द नहीं सुनाने लगती । कोयल उन पक्षियों में है जिन्हें गाने का अत्यन्त शौक है। वह जब गाती है। तो दिल खोल कर गाती है, और गाती ही रहती है । फारस की बुलबुल की तरह। वह दिनरात गाती है । वसंत के आरम्भ में जब आम के वक्ष बौरों से लद। जाते हैं तो वह मंजरीकोपलें, फल आदि का रसास्वादन करती हुई पंचम स्वर में ऐसी तान छेड़ती है कि एक समां बांध देती है। डालडाल पर नाचती है और रहरह। कर गाने में तल्लीन हो जाती है । वसंत के बाद भी, प्रीष्म तथा पावस में, उसका रुकना जारी रहता है। किसी कवि का यह कथन "अब तो दादुर बोलिहैंभये कोकिला मौन" गलत है, क्योंकि वर्षाकाल में भी वह पूरे जोशोखरोश के साथ गाती रहती है और तब तक गाती है जब तक कि शीतकाल का आरम्भ नहीं हो जाता तथा अन्तरिक्ष में पहाड़ी झीलों से आए हुए जल पक्षी अपने सृजन से आकाश को भरना नहीं शुरू कर देते । गरज यह कि साल में चार महीने से अधिक वह चुप नहीं रहती। कहते हैं कि जाड़ों में यह दक्षिण की ओोर, जहां ठंडक नाम-मात्र को पड़ती है, चली जाती है । । मुमकिन है इनमें से कुछ चली जाती हों पर अवश्य ही सभी नहीं जातीं, क्योंकि शिशिर और हेमन्त में भी बहुधा कोयल को बोलते सुना गया है । हां, सदियों से इसे नफरत जरूर है और यही वजह है कि पहाड़ों की ओर यह कभी भूल कर भी नहीं जाती। पर्वतीय कोयल चित्र संख्या : ७) समतल क्षेत्रों में पाई जाने वाली कोयलों से भिन्नदेखने में इनसे सुन्दर अवश्य हैपर उसके गले में न तो वह सोज है न वह साज़ जो इन काली कोयलों में है । केवल उत्तरपश्चिम सीमान्त को छोड़ करभारतवर्ष के सभी राज्यों में यह पाई जाती। है और हर जगह इसकी कद्र है । मलय चीन आदि देशों में भी वह मिलती है। अधिकतर वटअश्वत्थ आदि वृक्षों के छोटे-छोटे फल इसके आहार है, पर भोजन निरामिष ही हो, ऐसा कोई बन्धन नहीं है । यदाकदा कीड़ेमकोड़े भी उसके भोजनपात्र में स्थान पा जाते हैं । कोयल उन चिड़ियों में है जिसे बड़ी मुश्किल से हम देख पाते हैं, क्योंकि यह कभी जमीन पर नहीं उतरती तथा वृक्षों पर भी अधिकतर पत्तों की ओट से ही अपनी तान छेड़ा करती है। यदि आपने कभी भूल कर वृक्ष के नीचे जाकर इसे देखने की चेष्टा की तो यह फौरन वहां से उड़ कर अन्यत्र चल देगी । एक वृक्ष से उड़ कर दूसरे पर जाते हुए ही इसे हम देख पाते हैं। पर काली होने के कारण हम इसे कौआ समझ कर अक्सर श्रम में पड़ जाते हैं। वे जी के एक प्रसिद्ध कवि वड्र्सवर्थ ने कुछ पक्षी के, जो कोयल वंशव की ही एक विख्यात गायिका है, सम्बन्ध में कहा था O, Cuckool Shall I call thee Bird, Or, but a wandering Voice ? मात्र --कुछ ! तुम्हें में पक्षी कहें या कि भ्रमणशील एक ध्वनि ? कोयल के सम्बन्ध में भी, जिसे हम हाड़मांस के बने हुए पक्षी के रूप में क्षम हो। देखते हैं, उसकी ध्वनिमान ही सुन पाते हैं कभी इस वृक्ष से, कभी उस वृक्ष से हम कुछ ऐसा ही कह सकते हैं । कोयल के नर और मादा के रंग-रूप में काफी अन्तर है । नर नीलीहरी चमक लिए हुए पूरा काला और मादा भूरी होती है ।मादा के पेट पर गहरा भूरापन होता है. डैनों आदि पर सफेद चित्तियां होती है। दुम गहरी भूरी होती है और उस पर श्वेत धारियां होती हैं जो पपीहे से बहुत कुछ मिलतीजुलती है । नर और मादा दोनों की आने लाल और पांव गहरे स्लेटी रंग के तथा चोंच ही होती है। लम्बाई प्रायः १७ इंच होती है। गाने का शौक नर को ही है । आवाज में जोर है । गला फाड़ कर जब यह पक्षी 'कुड़   कुह' की रट लगाता है तो दिग् दिगन्त गूंज उठता है । मादा कभीकभी एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर जाती हुईतेजी से किकृ-किकिक शब्द उच्चारण करती है । इसके अंडे नीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं, जिन पर कत्थई चितियाँ होती। है। यह कई अंडे एक साथ देती है और एक ही ऋतु में कई बार भी। विलायत की कोयल। तो कहते हैं कि एक ऋतु में २०-२५ अंडे तक दे डालती है पर भारत की कोयल के सम्बन्ध में २०-२५ अंडे देने का दृष्टांत अब तक प्राप्त नहीं हो सका है । फिर भी अंडों की संख्या अधिकांश पक्षियों से अधिक अवश्य होती है । । आकार में ये छोटे होते हैं । अंडा देने का समय अप्रैल से अगस्त तक है । संस्कृत के एक नीति-रलोक में कहा है कि मनुष्य को यदि कूटनीति सीखनी हो तो बारवनिता से सीखे अथवा किसी राज दरबार में बारांगणा राजसभा प्रवेश ।" आम तौर पर कूटनीति का मतलब धूर्तता से समझा जाता है और इस अर्थ में कोयल भी, जो पक्षियों में गानविद्या की दृष्टि से गणिका के समकक्ष है, आचार्यपद के सर्वथा। उपयुक्त है । जिस धूर्तता से वह अपने अंडे स्वयं न सेकर कौए के घोंसले में रख आती है। और उनसे अपने अंडे सेवाती तथा बच्चों का पालनपोषण करती है उस धूर्तता के कारण वह बड़ेबड़े धूर्त कूटनीतिज्ञों के भी कान काट सकती है । कौए की, जो स्वयं दूसरों को चकमा देने में सिद्धहस्त है, आंखों में धूल झोंकना साधारण काम नहीं है, पर कोयल इस काम को बड़ी निपुणता के साथ करती है । तरीका यों है सर्वप्रथम नर कोकिल कौए के घोंसले के पास पहुंचता है और तरहतरह की भाव भंगिमाओं से उसे चिढ़ाता है । मादा मंह में अंडा रख कर अड़ोसपड़ोस के ही किसी वृक्ष पर छिप कर बैठ जाती है । कौआ या यों कहिए कि कौए कोयल के अभद्रतापूर्ण व्यवहार से चिढ़कर उस पर टूटते हैं और वह भाग चलती है । कौए उसका पीछा करते हैं । कोयल उड़ने में तेज होती ही है, ३ड़ती हुई कुछ दूर निकल जाती है, साथसाथ कौए भी; इधर मैदान खाली पा कर मादा कोयल घोंसले में घुसती है, अंडा रख देती है और कौए के अंडे कहीं दूर गिरा आती है । फिर एक ऐसी आवाज देती है जिससे नर समझ जाता है कि काम सफल हो गयाबस एक ही छलांग में कौों के दृष्टिपथ से वह ओझल हो जाता है। कौए यह सोच कर कि दुश्मन सरहद से बाहर हो ही गया, लौटते हैं और पुनः घरगृहस्थी में लग जाते हैं। कौआ जैसे धूर्त पक्ष को भी मूर्ख बनाकर स्वार्थसाघन करने वाली कोयल को यथार्थतः महाकवि कालिदास ने विशेषु पण्डितः की उपाधि प्रदान की है । विक्रमोवंशीयम् में लिखा है अपे, इय मातपातस सितमदा जम्यूविटपमध्यास्ते परभुता । विहर्ष पण्डितया जाति: । यजुर्वेद में का नाम इसी 'अन्याय' (दूसरे के घोंसले में अपना अंडा रखने वाला पक्षी) है । यथाकाल कोयलकुमार का जन्म होता है, काग-दम्पति बड़े शौक से उसे अपनी । संतान समझकर पालतेपोसते हैं और जब वह उड़ने लायक हो जाता है तो एक दिन उन्हें। चकमा दे कर नौ-दोग्यारह हो जाता है यही नहींघोंसले में यदि कौए की कोई वास्त ।, विक संतान ही हो तो मौका देखकर उसे जन्म के कुछ ही दिन बाद ठोकर देकर नीचे गिरा   भी डालता है । प्रश्न उठता है कि कोयल के इस नवजात शिशु को आखिर यह धूर्तता तथा कौों के प्रति विद्वेष की यह भावना सिखाता कौन है ? निस्सन्देह शगुण और संस्कार से हो उसे यह प्रेरणा मिलती है । दूसरों द्वारा पाले जान के कारण ही कोयल संस्कृत भाषा में प्रभुता कहलाई है। अभिज्ञान शाकुन्त त में जब पतला महाराज दुष्यन्त की स्मृति जगाने की चेष्टा करती है तो वह कहते हैं स्त्र गामशिक्षितषदुत्वममानुषीण संदृश्यते किमृत याः परिबोषबत्य, प्रागन्तरिक्षगमनास्वमपत्यजात मन्यतेिजी : परताः किल पोषयन्ति। —हे गौतमी ! तपोवन में लालितपालित हुए हैंयह कहकर क्या इनको अनभिज्ञता स्वीकार करनी पड़ेगी ? मनुष्य से भिन्न जीवों की स्त्रियों में भी जब आप से आप पता। आ जाती है तो फिर बुद्धि से युक्त नारी यह प्रकट हो, इसमें आश्चर्य ही क्या ? मादा कोयलअन्तरिक्षगमन के पहले अपनी सन्तान की अन्य पक्षी के द्वारा पालन-पोषण की व्यवस्था कर लेती है । देखने में कौए की अपेक्षा अधिक सुन्दर और तगड़े होने के कारण कभीकभी कोयल कुमार अपने बूढ़े मांबाप के विशेष लाड़प्यार के भागी बन जाते हैं । प्रकृति की ऐसी माया है कि कौए इस छल छन्द को कतई नहीं समझ पाते हैं तथा इन्हें अपनी ही संतान मान बैठते हैं । यही नहीं, इन पर अधिक प्यार भी दिखाने लगते हैं । इस सम्बन्ध में कभीकभी एक बड़ी रोचक घटना हो जाती है । कौए के एक ही घोंसले में अज्ञानवश कई कोयलें अंडे रख आती हैं और इस प्रकार काक अपने-अपने दम्पति को कोयल के चार-चार पांचपांच बच्चों तक को पालना पड़ जाता है । पर वे इस काम को बड़ी खुशी के साथ करते हैं । यह संसार धोखे की टटी है, इसमें सन्देह नहीं। लन्दन के फ़ोल्ड" नामक एक पत्र में परशुत कुछ की बेनियाजी का एक मजेदार वर्णन पिछले दिनों पढ़ने को मिला, जो इस प्रकार है हाल नामक व्यक्ति -वाटिका में को दो एक की पुष्प२४ जुलाई१९५६ परन्त के शिशु नजर आए जिनके पूरी तरह पंख हो आए थे । उसके साथ ही रॉबिन को वह मादा भी थीजिसने उन्हें पालापोसा था । वह श्री हाल के घर के आसपास से खाद्य वस्तुएं ला-ला कर दोनों बच्चों को खिलाती और वे मुंह खोलखोल कर बड़े चाव से खाते थे । सारे दिन यह सिलसिला चलता रहा । बीचबीच में परभूत शिशु क्रोधापन्न हो कर हगल पर प्रहार भी कर देता था, पर वह इसका कोई ख्याल न कर अपने कर्तव्य में जुटी रही । दूसरे दिन दो बच्चों में से एक गायब था, तीसरे दिन दूसरा । पंख पाकर दोनों नौ-दोग्यारह हो गए थे । हगल कुछ काल एकाकी, विरहाकुल अवस्था में, उदास हो कर बैठी रहीफिर वह भी अन्यत्र चली गई । जिन्हें पालपोस कर उसने बड़ा किया उन्होंने चलते समय उससे विदा भी न मांगी ! परभूत-वाहे मानव कुल के हों या पक्षीकुल के कभी किसी के नहीं होते । खैरतो इधर काकदम्पति उनके अंडे सेने तथा बच्चों के पालनपोषण में व्यस्त रहते हैं, उधर नर और मादा कोयल मंजरीमदिरा का पान एवं नाचनेगाने में अपना समय बिताती है और कहती है दिन भर गाना, दिन भर पीना हमें यही है फिर जीना ; चार दिनों का ही तो जीवन, जी भर पीलेजी भर गा , प्याले पर प्याले हम दालें, वास स्थान हमारा मावक आ-मंजरी का मदिरालय, परवश नहीं, किसी का क्या भय ? कहीं इंगलैण्ड का प्रसिद्ध कवि किपलिग उसे देख कर अपने वतन के सम्बन्ध से पूछता है Oh Koel, little Koel, singing on the siris bough, can you tell me aught of Angland or of spring in England now? -Kipling -सिरीषवृक्ष की डालों पर से गाती हुई कोयल ! ओो नन्हीं कोयल ! नन्हीं कोयल ! गया तुम मुझे इंगलैंड के अथवा इंगलैंड में वसंत के विषय में कुछ बता सकती हो ? और कहीं प्रमत्त पिक के कूकबाण से विंधा हुआ कवि भोर की कोयल से पूछता है। रात क्या आयी न तु को नौंद, कोकिलेकिसके विर में तड़पती लवलीन ? तपती जल-गों में ज्यों विरह-व्याकुल मोन । तू रही न्वित पपीहा-सी न तुझ को चैन फट न क्यों पड़ती घरा यह श्रवण कर दुखचैन ? रात भर त ने बजाई बलू उर की बीन, कोकिलेकिसके विरह में तड़पती लवलोन ? पौ फटीआकाश में था अरुणिमा-विस्तार, स उठी नीलोत्पला तब सेज-स्वप्नागार, जीव माया में फंसा ज्यों सजग हो, निर्बन्य, मलिनिबथन से निकल कर अलि हुआ स्वच्छन्व। प्रणय के किस पाश में, पर, तू रही गति-हीन, कोकिलेकिस विरह में तड़पती लवलीन ? ले चले सम्वेश प्रियतम को प्रिया का, फाग, औौ पमुख पर लगाने प्रतवात पराग कर रहे छाती भिगो कर ओस का मूड पान नीलकंठकपोत, पंडक, और भ्रमर सुजान मंजरीमधु से विरहत्रण हो न पाया कीण, कोकिले, किसके विरह में तड़पती लवलीन ? भाबिर कोयल की कूक से वह घबड़ाता क्यों है ? उत्तर देखिए। आधी रात पुकारे चातक, और भोर में कोयल फसे , रहे थिर मेरा यह छोटा अन्तरतल        अब अपनी तेज जिंदगी में से एक दो पल निकालकर कभी  कुदरत के इन करिश्में की ओर भी देखे और जीवन का नैसर्गिक आनंद ले । 
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nepal123 · 8 years
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विद्रोह त्यागेर राष्ट्रसेवा : बन्दुक उठाएका राजीव, अधिकृत बनेर देश जोड्ने लक्ष्यमा राजविराज – संविधानसभाको पहिलो निर्वाचनको माहोल थियो । सप्तरीको तिलाठी–१ का राजीव झा बालिग भइसकेका थिए । तर, उनी मत हाल्ने योजनामा थिएनन् । बरु निर्वाचन बिथोल्न अघि सरे । त्यसका लागि बन्दुक बोके, बम पड्काए । तत्कालीन जनतान्त्रिक तराई मुक्ति मोर्चा (उत्कर्ष समूह) का अध्यक्ष थिए उनी । दोस्रो संविधानसभा निर्वाचन आइपुग्दा उनको ‘विद्रोह’ लगभग मत्थर भइसकेको थियो । यति बेला उनी शान्ति वार्तामा आएर मधेसी जनअधिकार फोरम लोकतान्त्रिकको नेता बनिसकेका थिए । अघिल्लोचोटि बहिष्कार गरेको त्यही निर्वाचनको प्रचारप्रसारमा खटिए । अहिले मुलुक स्थानीय तह चुनावको संघारमा आइपुग्दा उनको परिचय अझ फेरिएको छ । चुनाव सम्पन्न गराउन गृह जिल्लामा सरकारी प्रतिनिधि (अधिकृत) बनेर खटिएका छन्, राजीव । ज्वाला सिंह नेतृत्वको जनतान्त्रिक तराई मुक्ति मोर्चा हुँदै आफ्नै नेतृत्वमा सशस्त्र समूह सञ्चालन गरेका उनले त्यो बाटो चटक्कै छाडिदिए अनि लागे सरकारी सेवातिर । लोकसेवा आयोगबाट शाखा अधिकृत परीक्षा पास गरे । तालिमरत अवस्थामै नयाँ राज्य पुन:संरचनाअनुसार सप्तरी जिल्लाको कृष्णासवरण गाउँपालिकाको कार्यकारी अधिकृतका रूपमा गत चैत ६ गते हाजिर भइसके उनी । ‘पहिलो संविधानसभा निर्वाचनमा मत हाल्न बालिग भइसकेको थिएँ तर बम बोकेर प्रतिकारमा उत्रेँ, दोस्रोपटक फोरम लोकतान्त्रिकमा रहेर प्रचारप्रसारमा जुटेँ, अहिले निर्वाचन सफल बनाउन आफ्नै काँधमा जिम्मेवारी आएको छ, खुसी लागेको छ’ राजीवले भने । अल्लारे उमेरमा तराईलाई छुट्टै देश बनाउनुपर्ने माग राखेका उनको बुझाइ अहिले पूरै परिवर्तित छ । ‘देश तोड्ने होइन, जोड्ने बेला आएको छ, म त्यही भूमिका निर्वाह गर्न जनताको कारिन्दा भएर आएको छु,’ उनले भने, ‘राज्य रूपान्तरणका लागि संघर्ष जरुरी हो तर तोडेर होइन, जोडेर लक्ष्य प्राप्तिको मार्गमा अघि बढ्न श्रेयष्कर हुन्छ ।’ हिजो बन्दुक बोकेर हिँडे पनि अहिले आफ्नो लक्ष्य मधेसी समुदायको उन्नति–प्रगति रहेको र त्यही बुझेर राज्यले आफूलाई सप्तरीमा खटाएको ठान्छन् । मधेसी मोर्चा चुनावको विरोधमा उत्रिरहँदा कृष्णासवरण गाउँपालिकामा हाजिर भएका राजीव स्थानीय स्तरमा निर्वाचन माहोल बनाउन जुटेका छन् । उनले हाजिर भएकै दिन स्थानीय स्तरमा क्रियाशील राजनैतिक दलका नेता कार्यकर्तासित छलफल गरेको उनले बताए । मोर्चा कार्यकर्ताले कार्यकक्षमा तालाबन्दी गरेका छन् तर उनी नियमित कार्यालय जान्छन् । मन्त्रालय र निर्वाचन आयोगबाट प्राप्त निर्देशन कार्यान्वयनमा लाग्छन् । ‘केही राजनैतिक विषयवस्तु उच्च स्तरमा राजनैतिक रूपमै समाधान हुन्छन्,’ राजीवले भने, ‘अहिले मेरो काम त राज्यका नीतिनियम र निर्देशन कार्यान्वयन गराउने हो ।’ तराईको सशस्त्र समूहका कारबाही पहाडी समुदाय लक्षित हुन्थे । त्यही पृष्ठभूमिबाट आएका राजीवले जिम्मेवारी सम्हालेको कृष्णासवरण गाउँपालिका मूलत: थारूबहुल क्षेत्र हो तर पहाडीको बसोबास पनि बाक्लै छ । यहाँ २८ हजार ४ सय ८१ जनसंख्या र ५ वटा वडा छन् । यसरी मोडिए राजीव जिल्लाको तिलाठी–१ मा स्थायी बसोबास रहेको मध्यम वर्गीय मधेसी ब्राह्मण परिवारका एक्लो सन्तान हुन् राजीव । २०६३ सालमा ललितपुरको धापाखेलस्थित कान्तिपुर इन्जिनियरिङ कलेजबाट पढाइ पूरा गरेपछि जनकपुर इन्जिनयरिङ कलेजमा पढाउन थाले उनी । त्यसको ६ महिनामै भूमिगत सशस्त्र समूहमा जोडिए । ज्वालासिंह नेतृत्वको जनतान्त्रिक तराई मुक्ति मोर्चाबाट अलग भएर राजनमुक्तिले छुट्टै समूह स्थापना गरेको थियो । उनी त्यसैमा लागे । ०६३ देखि ०६५ साल पुससम्म भूमिगत भए राजीव । प्रहरीसित लुकामारी खेल्दै बन्दुकको राजनीति गरेका उनले यसबाट पार नलाग्ने देखे । यसबीच उनी शान्तिपूर्ण राजनीतिमा आए । ०६७ सालमा जयप्रकाशप्रसाद गुप्ता नेतृत्वको मधेसी जनअधिकार फोरममा प्रवेश गरे । गुप्तासित मतभेद भएपछि पार्टी परित्याग गर्दै दोस्रो संविधानसभाको निर्वाचनअघि विजयकुमार गच्छदारको फोरम लोकतान्त्रिकमा प्रवेश गरे । तर, निर्वाचनमा पार्टीले भूमिका नदिएझैं लाग्यो उनलाई अनि राजनीति नै छाडिदिए । ‘त्यसपछि सरकारी सेवाबाट जनताको सेवा गरुँ भन्ने लाग्यो, लोकसेवा तयारी थालें,’ उनले भने । राजिवले ०७२ पुस १ गते नेपाल सरकारको नायव सुब्बामा नियुक्ति पाएका थिए । १० महिना स्थानीय मन्त्रालयमा काम गरे । त्यही क्रममा अधिकृत पदमा आवेदन दिएका उनले त्यो खुड्किलो पनि उक्लिएरै छाडे । ‘विगत जे होस्, वर्तमानमा नेपाल सरकारको अधिकृत हुँ, जनताको सेवा गर्ने अठोट लिएको छु ।’
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ashokkumarrao100 · 4 years
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