20 हज़ार से भी कम कीमत में लॉन्च हुई 40 इंच दमदार Smart TV, मिलेगा 24W का बॉक्स स्पीकर
20 हज़ार से भी कम कीमत में लॉन्च हुई 40 इंच दमदार Smart TV, मिलेगा 24W का बॉक्स स्पीकर
स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनी इनफीनिक्स ने अपनी 40 इंच की एंड्रॉयड स्मार्ट टीवी इनफिनिक्स X1 को भारत में लॉन्च कर दिया है. ये कंपनी शानदार स्मार्टफोन बनाने के लिए जानी जाती है. इनफिनिक्स ने अपनी स्मार्ट टीवी सीरीज़ में 32 और 43 इंच की स्मार्ट टीवी को पिछले साल दिसंबर में लॉन्च किया था. इनफिनिक्स की इस नई टीवी में पहले की तरह ही स्लिम बेजल्स डिज़ाइन दिया गया है. फीचर्स की बात करें तो इस स्मार्ट टीवी…
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20 हज़ार रुपये से भी कम कीमत पर मिल रही है शानदार Smart TV, मिलेगा 20W का साउंड
20 हज़ार रुपये से भी कम कीमत पर मिल रही है शानदार Smart TV, मिलेगा 20W का साउंड
पिछले हफ्ते से अमेज़न की ग्रेट इंडिया फेस्टिव सेल जारी है. इस सेल में कई कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स पर धांसू ऑफर कर रही हैं. ऐसे में ही कई टॉप ब्रांड्स जैसे कि सैमसंग, वनप्लस और शियोमी जैसी कंपनियां अपने टीवी पर शानदार डिस्काउंट दे रही हैं. अगर आप भी बजट टीवी खरीदने की सोच रहे है तो ये खबर आपके लिए ही है. तो आइए हम आपको विस्तार से इन शानदार फीचर्स के टीवी के बारे में बता रहे है. Samsung…
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43 इंच के कम बजट पर IPL 2020 का आनंद लें सबसे सस्ता और सबसे अच्छा फीचर टेलीविजन | आईपीएल को ज्यादा मज़ेदार बनाया जाएगा 43 इंच स्क्रीन वाले ये 10 टीवी, कीमत 20 हज़ार से भी कम; 1000 रु से बहुत कम में कंपनी दे रही है का मौका https://cruxsdigital.com/2020/09/09/43-%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%9a-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%ae-%e0%a4%ac%e0%a4%9c%e0%a4%9f-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-ipl-2020-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%a8%e0%a4%82%e0%a4%a6-%e0%a4%b2%e0%a5%87/?feed_id=16334&_unique_id=5f583c0118d28
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भारत में 2 जुलाई को लॉन्च हो रहा है सस्ता OnePlus TV कीमत होगी 20 हज़ार रुपए से भी कम
भारत में 2 जुलाई को लॉन्च हो रहा है सस्ता OnePlus TV कीमत होगी 20 हज़ार रुपए से भी कम
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दैनिक भास्कर
Jun 30, 2020, 09:18 PM IST
सर्वश्रेष्ठ क्वलिटी और बेहतरीन इनोवेशन के लिए OnePlus की पहचान दुनियाभर में है। प्रीमियम स्मार्टफोन सेगमेंट में OnePlus ने भारतीय उपभोक्ताओं का दिल जीता है और अपने बेहतरीन स्मार्ट टीवी के साथ OnePlus ने दो साल पहले भारतीय प्रशंसकों को लुभाया है। अब सबसे अच्छी बात यह है कि OnePlus जल्दी ही भारत में बहुत ही आकर्षक कीमत पर नए स्मार्ट टीवी लॉन्च कर…
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20 हज़ार से कम कीमत में OnePlus ला रही है SmartTV, 3 साइज़ के साथ मिलेगा बेहद पतला डिज़ाइन
20 हज़ार से कम कीमत में OnePlus ला रही है SmartTV, 3 साइज़ के साथ मिलेगा बेहद पतला डिज़ाइन
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OnePlus smart TV 3 साइज़ में आएगी. OnePlus SmartTV को 3 साइज़ में पेश किया जाएगा, और सबसे खास बात ये हैं कि शानदार फीचर्स वाले इन टीवी की कीमत 20 हज़ार से भी कम है…
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20 हज़ार से कम कीमत में OnePlus ला रही है SmartTV, 3 साइज़ के साथ मिलेगा बेहद पतला डिज़ाइन
20 हज़ार से कम कीमत में OnePlus ला रही है SmartTV, 3 साइज़ के साथ मिलेगा बेहद पतला डिज़ाइन
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OnePlus smart TV 3 साइज़ में आएगी. OnePlus SmartTV को 3 साइज़ में पेश किया जाएगा, और सबसे खास बात ये हैं कि शानदार फीचर्स वाले इन टीवी की कीमत 20 हज़ार से भी कम है…
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भारत में 2 जुलाई को लॉन्च हो रहा है, वनप्लस टीवी की कीमत 20 हज़ार रुपए से भी कम होगी
भारत में 2 जुलाई को लॉन्च हो रहा है, वनप्लस टीवी की कीमत 20 हज़ार रुपए से भी कम होगी
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दैनिक भास्कर
30 जून, 2020, 09:19 अपराह्न IST
सर्वश्रेष्ठ क्वैलिटी और बेहतरीन इनोवेशन के लिए वनप्लस की पहचान उपलब्ध है। प्रीमियम स्मार्टफोन सेगमेंट में OnePlus ने भारतीय उपभोक्ताओं का दिल जीता है और अपने बेहतरीन स्मार्ट टीवी के साथ OnePlus ने दो साल पहले भारतीय फोन्स को लुभाया है। अब सबसे अच्छी बात यह है कि वनप्लस जल्दी ही भारत में बहुत ही आकर्षक कीमत पर नए स्मार्ट टीवी लॉन्च कर रहा है।
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उम्र है 20 साल से कम, लेकिन इनअभिनेत्रियो की एक दिन की फीस के बारे में जानकर रह जायेंगे हैरान !
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उम्र है 20 साल से कम, लेकिन इनअभिनेत्रियो की एक दिन की फीस के बारे में जानकर रह जायेंगे हैरान !
दोस्तों टीवी जगत में कई बड़ी बड़ी और फैमस अभिनेत्रिया है लेकिन टीवी शो में फिलहाल 20 साल से कम उम्र की अभिनेत्रियां काफी ज़्यादा पॉपुलर हो चुकी है स्टाइल फैशन और अभिनय के मामले में ये अभिनेत्रियां बड़ी बड़ी अभिनेत्रियों को टक्कर दे रही है। साथ ही फीस के मामले में भी ये अभिनेत्रिया बड़ी बड़ी अभिनेत्रियो को मत दे रही है, आज आपको इन 20 साल से कम उम्र वाली अभिनेत्रियों की एक दिन की फीस के बारे में बता रहे है।
अवनीत कौर
टीवी के कई शो में अवनीत नेबालकलाकार के रूप में नजर आ चुकी है और आज ये सब टीवी के लोकप्रिय शो अलादीन नाम तो सुना होगा में मुख्य किरदार निभा रही है। खबर है कि महज 17 साल की अवनीत के हर दिन की फीस 30 से 35 हज़ार रूपये है।
जन्नत जुबैर रहमानी
टीवी जगत की उभरती हुई अभिनेत्री जन्नत जुबैर कम उम्र में भी टीवी का बड़ा नाम बन चुकी है। सीरियल तू आशिकी से जन्नत काफी फेमस हुई। अगर खबरों की माने तो 16 वर्षीय जन्नत जुबैर अपने हर दिन के लिए 40 हजार रुपए चार्ज करती है।
रीम शेख
टीवी जगत के पोपुलर शो तुझ से है राबता में मुख्य भूमिका निभा रही अभिनेत्री रीम शेख कई सीरियल्स में बतौर चाइल्ड भी नजर आ चुकी है। फिलहाल शो तुझ से है राबता में लोग उनके अभिनय की काफी तारीफ कर रहे है। खबरों की माने तो 15 साल की रीम शेख शो में काम करने के लिए हर दिन के 25 हजार रुपए चार्ज करती है।
अनुष्का सेन
टीवी अभिनेत्री अनुष्का सेन सब टीवी के शो बालवीर में नजर आ चुकी है। फिलहाल वह मशहूर टीवी सीरियल झांसी की रानी में मुख्य भूमिका में नजर आ रही है। 16 साल की उम्र में 48 हजार फीस लेने वाली अनुष्का टीवी की सबसे महंगी बाल अभिनेत्रियों में से एक है।
अदिति भाटिया
टीवी जगत की खुबसूरत अभिनेत्री अदिति भाटिया कई शो में काम कर चुकी है। सीरियल्स के अलावा वो बॉलीवुड फिल्म विवाह में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट नजर आ चुकी है। फिलहाल अदिति शो ये है मोहब्बतें में रूही का किरदार निभा रही है। अगर खबरों की माने तो 19 साल की अदिति भाटिया दिन के 50 हजार रुपए चार्ज करती है। और वो टीवी की सबसे महंगी बाल कलाकार है।
अशनूर कौर
टीवी शो पटियाला बेब्स में नजर आ रही अभिनेत्री अशनूर कौर ने हाल ही में 10th में 93% मार्क हासिल किए थे। पढ़ाई में तेज अशनूर आज टीवी का जाना माना नाम बन चुकी है। खबरों की माने तो अशनूर कौर एक दिन के 30 हजार रुपए चार्ज करती है। आपको बता दें कि अशूनर कौर अभी सिर्फ 15 साल की है।
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न्यू इंडिया बजट से संतुलित विकास को मिलेगी रफ्तार आलेख : कमलेश पांडे, वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार। 'सबका साथ-सबका विकास' चाहने वाली और 'नए भारत' का सपना संजोने वाली मोदी सरकार ने संसद में पेश अपने आखिरी पूर्ण बजट के सहारे देशवासियों में यह एहसास जगाने में कामयाब रही कि उसकी स्वच्छ-पारदर्शी नीतियों व उदार पहल से राष्ट्रव्यापी सन्तुलित विकास को जो गति मिली है, वह आगे भी जारी रहेगी। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को न्यू इंडिया का आम बजट 2018-19 प्रस्तुत करके जिस नए भारत की प्रगतिशीलता का खाका स्पष्ट किया, उसके गहरे राजनैतिक और आर्थिक निहितार्थ हैं। इस बात से सभी वाकिफ हैं कि जीएसटी लागू होने के बाद का यह पहला और नोटबन्दी के बाद का दूसरा आम बजट है जिसमें सरकार जनहित और राष्ट्रहित दोनों का समान रूप से ख्याल रखने में सफल रही है। यही नहीं, समाज के विभिन्न वर्गों, पेशेवर समूहों और अर्थव्यवस्था के सभी महत्वपूर्ण घटकों के बीच उन्होंने जैसी बारीक आर्थिक कारीगरी की है, उससे सभी प्रसन्नचित्त हैं कि सरकार ने उन्हें कम य��� ज्यादा नहीं, बल्कि सही तवज्जो दी है। कहना न होगा कि देश के संघात्मक स्वरूप की नैतिक व आर्थिक जिम्मेवारियों को समझते हुए सभी राज्यों व केंद्रशासित क्षेत्रों बीच परस्पर हितसाधक संतुलन बनाये रखने की जो उन्होंने पहल की और इस हेतु अपेक्षित बजट तारतम्यता बनाये रखने के लिये समुचित बजटीय प्रावधान किए, उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गदगद हो गए। उनके मंत्रिमंडल के अन्य लोगों को भी जेटली की यह आर्थिक कारीगरी बहुत पसन्द आई। विपक्ष के औपचारिक विरोध को छोड़कर बीजेपी और उसके गठबंधन साथियों ने भी इसे सराहनीय बताया। कइयों ने तो खुले तौर पर इसका इजहार भी किया। इस बात में कोई दो राय नहीं कि सबके लिये रोटी, कपड़ा और मकान तथा शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीक की जरूरतों को भी सरकार समझ रही है। उसने जिस तरह से कृषि, रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य को आशातीत बढ़ावा दिया और परिवहन, उद्यमिता, बिजली, पेयजल, स्वच्छता और ईंधन की भावी आवश्यकता को समझते हुए इस क्षेत्र में विज्ञान और तकनीक को बढ़ावा देने की ठानी है, उसका विशेष महत्व है। उसने बाजारू उत्पादन से जुड़ी इच्छाओं, कतिपय विशेष अपेक्षाओं पर भी फोकस किया है। यह सब महत्वपूर्ण निर्णय है। इससे मंहगाई नियंत्रित होगी और आधारभूत संरचनाओं समेत विविध क्षेत्रों में समावेशी और टिकाऊ विकास को बल मिलेगा। कहना न होगा कि मोदी सरकार का यह अंतिम पूर्ण बजट था, इसलिये मिशन 2019 की छाया भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हुई। सच कहा जाये तो केंद्र सरकार की बदली कार्यसंस्कृति, व्यवहारिक व दूरदर्शी आर्थिक नीति और आक्रामक विदेश नीति का अतिरिक्त असर भी ताजा बजट में देखा गया। विगत लगभग चार वर्षों में सरकार ने जिस तरीके से नौकरशाही की तमाम बारीकियों को समझते हुए उसकी अधिकांश उलझनों को सुलझाने की सफल कोशिश की और नए भारत के निर्माण की प्रतिबद्धता जताई, उससे भी समग्र सोच और समयबद्ध विकास को गति मिली है। लोग सरकार की दूरदर्शिता और नेकनीयती से अनुप्राणित हैं, और राष्ट्र के नवोत्थान हेतु हर तरह की कुर्बानियों के लिये तैयार भी। इस बात की झलक भी ताजा बजट से मिलती है। यह सही है कि कुछेक नई योजनाओं, प्रावधानों को छोड़कर नए बजट में भी सरकार विगत तीन वर्षों में अपने द्वारा चलाई हुई कतिपय महत्वपूर्ण योजनाओं के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आई। लेकिन जिस तरह से उसने इसकी उपयोगिता बताई और उपलब्धि के आंकड़े प्रस्तुत किये तथा पूर्व के तय कार्य लक्ष्यों में आशातीत बढोत्तरी की, उससे यह स्पष्ट हो गया कि सरकार के विकास-दर्पण में सभी को अपना चेहरा दिखाई पड़ रहा है। न तो उनकी खुशी छिप रही है और न ही अक्स ओझल हो रहा है। फिर भी जो, जहाँ, जैसे व जिस भी हाल में है, सन्तोष करके सुनहरे भविष्य के प्रति आशान्वित नजर आ रहा है। जरा सोचिए, सरकार ने आयकर सीमा में कोई बदलाव नहीं किया, लेकिन वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए 40 हज़ार रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन भी दे दिया, यानी कि जिसका जितना वेतन है उसमें से 40 हज़ार रुपये घटाकर जो रकम बचेगी, सिर्फ उस पर ही टैक्स लगेगा। साथ ही, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सेस 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 4 प्रतिशत किया गया। स्वाभाविक है कि सरकार एक हाथ से देने और दूसरे से लेने में माहिर हो चुकी है। इसलिये एक लाख रुपये से अधिक के निवेश पर 10 प्रतिशत कैपिटल गेन टैक्स भी थोप दिया। अब भले ही मोबाइल व टीवी उपकरणों पर कस्टम ड्यूटी 15 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत कर दी गई है, जिससे मोबाइल व टीवी महंगे होंगे। स्वाभाविक है कि इससे युवा वर्ग की जेब ढीली होगी, लेकिन सरकार ने 70 लाख नई नौकरियां बनाने का लक्ष्य घोषित करके लगभग उन्हें शांत रखने की पहल कर डाली। बेशक, आठ करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन देने, नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम के तहत 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक का हेल्थ बीमा देने का फैसला करके सरकार ने गरीबों को लुभाने की पहल की है। साथ ही, किसानों को भी उनकी फसल पर लागत का डेढ़ गुना दाम देने की चाल चलके उन्हें रिझा ली है। बजट मसौदे के मुताबिक, अब राष्ट्रपति की तनख्वाह पाँच लाख रुपये, उपराष्ट्रपति की चार लाख रुपये और राज्यपाल की तनख्वाह साढ़े तीन लाख होगी। इतना ही नहीं, सांसदों का वेतन भी बढ़ेगा तथा हर पांच साल में सांसदों के भत्ते की समीक्षा भी होगी। इसका मकसद है कि जब जनप्रतिनिधियों को उचित वेतन व सुविधाएं मिलेंगी तो वो लोकसेवा में मन लगाएंगे और भ्रष्टाचार से गुरेज करेंगे। लगता है कि इसकी भरपाई के लिये सरकार ने 250 करोड़ रुपये तक के कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए 25 प्रतिशत टैक्स निर्धारित कर दिया है। वित्त मंत्री ने आश्वस्त किया कि उनकी सरकार की नेक पहल से बाजार में कैश का प्रचलन कम हुआ है, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर है और भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगी। स्वाभाविक है कि यह नोटबंदी और जीएसटी की सफलता है। सरकार ने कुछ और नए उपाय किये ताकि अर्थव्यवस्था को गति मिले। अब वह नए कर्मचारियों के ईपीएफ में 12 फीसदी अंशदान देगी और 70 लाख नई नौकरियां भी पैदा करेगी। सरकार को अपनी नीतियों पर फक्र है कि पिछले 3 सालों में औसत विकास दर 7.5 प्रतिशत पहुंची है और भारतीय अर्थव्यवस्था 2.5 ट्रिलियन डॉलर की हो गई है। टैक्स पेयर बेस 2014-15 के 6.47 करोड़ से बढ़कर 2016-17 में 8.27 करोड़ हो गया है, जिससे सरकार उत्साहित है। 2018-19 में वित्तिय घाटा जीडीपी का 3.3% रहने का अनुमान है। सरकार ने अब यह भी स्पष्ट कर दिया कि बिटक्वाइन जैसी करेंसी अब नहीं चलेगी और क्रिप्टोकरेंसी की जगह ब्लॉकचेन की तकनीक को बढ़ावा दिया जाएगा। यही नहीं, सरकार 2022 तक किसानों की आय भी दोगुनी करेगी। इसके लिये न्यूनतन समर्थन मूल्य 1.5 गुना बढ़ाने का एलान किया गया है। खरीफ का समर्थन मूल्य भी उत्पादन लागत से डेढ़ गुना होगा। नया ग्रामीण बाजार ई-नैम बनाने का एलान किया गया है। किसानों को पूरा एमएसपी देने का भी लक्ष्य है, जबकि जिलेवार खेती का मॉडल भी तैयार किया जाएगा। सरकार द्वारा 42 मेगा फूड पार्क भी बनाए जाएंगे। आलू, टमाटर और प्याज के लिए सरकार 500 करोड़ रुपए देगी। अब पशुपालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड मिलेगा। 1290 करोड़ रुपए से बांस मिशन चलाया जाएगा। खेती के कर्ज के लिए 11 लाख करोड़ मिलेंगे। सरकार 4 करोड़ गरीब परिवारों को बिजली कनेक्शन देंगी और 2 करोड़ शौचालय भी बनाए जाएंगे। आदिवासी बच्चों के लिए एकलव्य स्कूल खोलेंगी सरकरा। प्री-नर्सरी से 12वीं तक पढ़ाई के लिए एक नीति होगी। सरकार द्वारा 24 नए मेडिकल कॉलेज भी खोले जाएंगे। जबकि, टीबी मरीजों के लिए 600 करोड़ रुपए की स्कीम चलाई गई जिसके तहत टीबी मरीज को हर महीने 500 रुपए देंगे। सरकार ने व्यापार शुरू करने के लिए मुद्रा योजना में 3 लाख करोड़ का फंड दिया, जिसमें से छोटे उद्योगों के लिए 3,794 करोड़ रुपए खर्च होंगे। अब उज्जवला स्कीम के तहत 8 करोड़ महिलाओं को गैस कनेक्शन मिलेगा और 2 करोड़ शौचालय बनवाने का लक्ष्य भी रखा गया है ताकि स्वच्छता मिशन पूरा हो।सरकार 2022 तक सबको घर देने को भी प्रतिबद्ध है। स्मार्ट सिटी के लिए 99 शहर चुने गए हैं। सीमा पर सड़कें बनाने पर भी जोर है। धार्मिक-पर्यटन शहरों के लिए हेरिटेज सिटी की योजना है। सरकार अनुसूचित जाति कल्याण के लिए 56,619 रुपए, अनुसूचित जनजाती के लिए 39,135 रुपए की राशि का भी आवंटन करेगी, ताकि इस वर्ग की भी उन्नति हो। नई घोषणा के मुताबिक, अब 99% एमएसएमई को मात्र 25% टैक्स ही देना होगा। जबकि, 100 करोड़ के टर्नओवर वाली कृषि उत्पाद बनाने वाली कंपनियों का 100% टैक्स माफ किया जाएगा। अरुणाचल प्रदेश में सी-ला पास के पास टनल बनाने के भी प्रस्ताव है। अब देशभर में आयकर का आकलन ऑनलाइन होगा। साथ ���ी, गोल्ड डिपॉज़िट अकाउंट खोलने में लोगों को आ रही दिक्कतों को भी दूर किया जाएगा। इसके लिये मुद्रीकरण स्कीम को भी नए सिरे से ठीक किया जा रहा है। औद्योगिक विकास को गति देने के लिये देशे में दो इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर बनाए जाएंगे, जिसके जरिए पब्लिक-प्राइवेट दोनों ही सेक्टर्स में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि ख़ुशहाली निरन्तर बढ़ती रहे।
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एक दिन पीएम मोदी कह दे – बीजेपी के साथ आ जाने से ही भ्रष्टाचार दूर हो जाता है रवीश कुमार भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए धर्मनिरपेक्षता का इस्तमाल नहीं हो सकता है। स्वागत योग्य कथन है। आजकल हर दूसरे राजनीतिक लेख में ये लेक्चर होता है। ऐसा लगता है कि धर्मनिरपेक्षता की वजह से ही भारत में भ्रष्टाचार है। ऐसे बताया जा रहा है कि धर्मनिरपेक्षता न होती तो भारत में कोई राजनीतिक बुराई न होती। सारी बुराई की जड़ धर्मनिरपेक्षता है। मुझे हैरानी है कि कोई सांप्रदायिकता को दोषी नहीं ठहरा रहा है। क्या भारत में सांप्रदायिकता समाप्त हो चुकी है? क्या वाकई नेताओं ने भ्रष्टाचार इसलिए किया कि धर्मनिरपेक्षता बचा लेगी? भ्रष्टाचार से तंत्र बचाता है या धर्मनिरपेक्षता बचाती है ? हमारे नेताओं में राजनीतिक भ्रष्टाचार पर खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं बची है। लड़ने की बात छोड़ दीजिए। यह इस समय का सबसे बड़ा झूठ है कि भारत का कोई राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से लड़ रहा है। भारत में लोकपाल को लेकर दो साल तक लोगों ने लड़ाई लड़ी। संसद में बहस हुई और 2013 में कानून बन गया। 4 साल हो गए मगर लोकपाल नियुक्त नहीं हुआ है। बग़ैर किसी स्वायत्त संस्था के भ्रष्टाचार से कैसे लड़ा जा रहा है? लड़ाई की विश्वसनीयता क्या है? इसी अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हर बहाने को खारिज कर दिया और कहा कि लोकपाल नियुक्त होना चाहिए। नेता विपक्ष का नहीं होना लोकपाल की नियुक्ति में रुकावट नहीं है। अप्रैल से अगस्त आ गया, लोकपाल का पता नहीं है। क्या आपने भ्रष्टाचार के लिए धर्मनिरपेक्षता को ज़िम्मेदार ठहराने वाले किसी भी नेता को लोकपाल के लिए संघर्ष करते देखा है? 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने एस आई टी का गठन किया था कि वो भ्रष्टाचार का पता लगाए। 2011 से 2014 तक तो एस आई टी बनी ही नहीं जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश था। उसी के आदेश से जब मोदी सरकार ने 27 मई 2014 को एस आई टी का गठन किया तब सरकार ने इसका श्रेय भी लिया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी लड़ाई का प्रमाण यही है कि पहला आदेश इसी से संबंधित था। क्या आप जानते हैं कि इस एस आई टी के काम का क्या नतीजा निकला है? एस आई टी की हालत भी कमेटी जैसी हो गई है। इसके रहते हुए भी भारतीय रिजर्व बैंक उन लोगों के नाम सार्वजनिक करने से रोकता है जिन्होंने बैंकों से हज़ारों करोड़ लोन लेकर नहीं चुकाया है और इस खेल में भ्रष्टाचार के भी आरोप हैं। क्या भ्रष्टाचार से लड़ने वाले नेता नाम ज़ाहिर करने की मांग कर��ंगे? ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कुछ नहीं हो रहा है। जितना हो रहा है,उतना तो हर दौर में होता ही रहता है। लेकिन न तो बड़ी लड़ाई लड़ी जा रही है न सीधी लड़ाई। लड़ाई के नाम पर चुनिंदा लड़ाई होती है। बहुत चतुराई से नोटबंदी, जी एस टी और आधार को इस लड़ाई का नायक बना दिया गया है। काला धन निकला नहीं और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई का एलान भी हो गया है। नोटबंदी के दौरान कहा गया था कि पांच सौ और हज़ार के जितने नोट छपे हैं, उससे ज़्यादा चलन में हैं। जब ये नोट वापस आएंगे तो सरकार को पता चलेगा कि कितना काला धन था। नौ महीने हो गए मगर भारतीय रिज़र्व बैंक नहीं बता पाया कि कितने नोट वापस आए। अब कह रहा है कि नोट गिने जा रहे हैं और उसके लिए गिनने की मशीनें ख़रीदी जाएंगी। क्या बैंकों ने बिना गिने ही नोट रिज़र्व बैंक को दिये होंगे? कम से कम उसी का जोड़ रिजर्व बैंक बता सकता था। तर्क और ताकत के दम पर सवालों को कुचला जा रहा है। सिर्फ विरोधी दलों के ख़िलाफ़ इन्हें मुखर किया जाता है। यही रिज़र्व बैंक सुप्रीम कोर्ट से कहता है कि जिन लोगों ने बैंकों के हज़ारों करोड़ों रुपये के लोन का गबन किया है, डुबोया है, उनके नाम सार्वजनिक नहीं होने चाहिए। भ्रष्टाचार की लड़ाई में जब नेता का नाम आता है तो छापे से पहले ही मीडिया को बता दिया जाता है, जब कारपोरेट का नाम आता है तो सुप्रीम कोर्ट से कहा जाता है कि नाम न बतायें। ये कौन सी लड़ाई है? क्या इसके लिए भी धर्मनिरपेक्षता दोषी है? पिछले साल इंडियन एक्सप्रेस ने पूरे अप्रैल के महीने में पनामा पेपर्स के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित किया। 500 से अधिक भारतीयों ने पनामा पेपर्स के ज़रिये अपना पैसा बाहर लगाया है। इसमें अदानी के बड़े भाई, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्य राय बच्चन, इंडिया बुल्स के समीर गहलोत जैसे कई बड़े नाम हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे का भी नाम आया। अभिषेक सिंह तो बीजेपी सांसद हैं। सबने खंडन करके काम चला लिया। सरकार ने दबाव में आकर जांच तो बिठा दी मगर उस जांच को लेकर कोई सक्रियता नहीं दिखती है जितनी विपक्ष के नेताओं के यहां छापे मारने और पूछताछ करने में दिखती है। अदानी के बारे में जब इकनोमिक एंड पोलिटकल वीकली में लेख छपा तो संपादक को ही हटा दिया गया। ठीक है कंपनी ने नोटिस भेजा लेकिन क्या सरकार ने संज्ञान लिया? क्या धर्मनिरपेक्षता को गरियाते हुए भ्रष्टाचार से लड़ने वाले किसी नेता या दल ने जांच की मांग की। A FEAST OF VULTURES एक किताब आई है, इसके लेखक हैं पत्रकार JOSY JOSEPH। इस किताब में बिजनेस घराने किस तरह से भारत के लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं, उसका ब्योरा है। जोसेफ़ ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट की बनाई एस आई टी के सामने भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा मामला अदानी ग्रुप का आया है। लेखक को प्रत्यर्पण निदेशालय के सूत्रों ने बताया है कि अगर सही जांच हो जाए तो अदानी समूह को पंद्रह हज़ार करोड़ रुपये का जुर्माना भरना पड़ सकता है। आप सभी जानते ही होंगे कि अदानी ग्रुप किस नेता और सत्ता समूह के करीबी के तौर पर देखा जाता है। क्या इस लड़ाई के ख़िलाफ़ कोई नेता बोल रहा है? सिर्फ दो चार पत्रकार ही क्यों बोलते है? उन्हें तो अपनी नौकरी गँवानी पड़ती है लेकिन क्या किसी नेता ने बोलकर कुर्सी गँवाने का जोखिम उठाया ? THEWIRE.IN ने जोसी जोसेफ़ की किताब की समीक्षा छापी है। कारपोरेट करप्शन को लेकर वायर की साइट पर कई ख़बरें छपी हैं मगर धर्मनिरपेक्षता को गरियाते हुए भ्रष्टाचार से लड़ने वाले नेताओं और विश्लेषकों के समूह ने नज़रअंदाज़ कर दिया। लालू यादव के परिवार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार को लेकर लिखने वाले तमाम लेखकों का लेख छान लीजिए, एक भी लेख कारपोरेट भ्रष्टाचार के आरोपों पर नहीं मिलेगा जो मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठा से संबंध रखते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि लालू यादव के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कार्रवाई ग़लत है, ग़लत है यह कहना कि सरकार ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ रखा है। इसी फरवरी में प्रशांत भूषण,योगेंद्र यादव और कालिखो पुल की पहली पत्नी ने प्रेस कांफ्रेंस की। अरुणालच प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कालिखो पुल ने आत्महत्या कर ली थी। उनके सुसाइड नोट को कोई मीडिया छाप नहीं रहा था। THEWIRE.IN ने छाप दिया। उसमें सुप्रीम कोर्ट के जजों पर रिश्वत मांगने के संगीन आरोप लगाए गए थे। किसी ने उस आरोप का संज्ञान नहीं लिया। इसके बावजूद देश में एलान हो गया कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जंग हो रहा है। मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से लेकर महाराष्ट्र का सिंचाई घोटाला। सब पर चुप्पी है। ऐसे अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। आज अगर सारे दल एकतरफ हो जाए, बीजेपी में शामिल हो जाएं तो हो सकता है कि एक दिन प्रधानमंत्री टीवी पर आकर एलान कर दें कि भारत से राजनीतिक भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है क्योंकि सभी मेरे साथ आ गए हैं। कांग्रेस के सारे विधायक आ गए हैं और बाकी सारे दल। लोकपाल की ज़रूरत नहीं है। बीजेपी के साथ आ जाने से ही भ्रष्टाचार दूर हो जाता है। राजनीति में भ्रष्टाचार और परिवारवाद धर्मनिरपेक्षता के कारण है, यह हमारे समय का सबसे बड़ा झूठ है। बीजेपी के भीतर और उसके तमाम सहयोगी दलों में परिवारवाद है। शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी, अपना दल, अकाली दल में परिवारवाद नहीं तो क्या लोकतंत्र है? क्या वहां परिवारवाद धर्मनिरपेक्षता के कारण फला फूला है। सबका सामाजिक जातिगत आधार भी तो परिवारवाद की जड़ में है। दक्षिण भारत के तमाम दलों में परिवारवाद है। तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के बेटे राज्य चला रहे हैं। तेलगु देशम पार्टी के मुखिया और एन डी ए के सहयोगी चंद्रबाबू नायडू के बेटे भी वारिस बन चुके हैं। क्या बीजेपी नायडू पर परिवारवाद के नाम पर हमला करेगी? क्या नायडू के घर में भी धर्मनिरपेक्षता ने परिवारवाद को पाला है? बिहार के नए मंत्रिमंडल में रामविलास पासवान के भाई मंत्री बने हैं, जो किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं, वो बिहार सरकार में मंत्री बने हैं। क्या इस परिवारवाद के लिए भी धर्मनिरपेक्षता दोषी है? कांग्रेस, राजद और सपा बसपा का परिवारवाद बुरा है। अकाली लोजपा, शिवसेना, टी डी पी, टी आर एस का परिवारवाद बुरा नहीं है। बीजेपी के भीतर नेताओं के अनेक वंशावलियां मिल जाएंगी। बीजेपी के इन वारिसों केलिए कई संसदीय क्षेत्र और विधानसभा क्षेत्र रिज़र्व हो गए हैं। एक ही बड़ा फर्क है। वो यह कि बीजेपी का अध्यक्ष पद कांग्रेस की तरह परिवार के नाम सुरक्षित नहीं है। लेकिन बीजेपी का अध्यक्ष भी उसी परिवारवादी परंपरा से चुना जाता है जिसे हम संघ परिवार के नाम से जानते हैं। वहां भी अध्यक्ष ऊपर से ही थोपे जाते हैं। कोई घनघोर चुनाव नहीं होता है। जिन दलों में परिवारवाद नहीं है, यह मान लेना बेवकूफी होगी कि वहां सबसे अच्छा लोकतंत्र है। ऐसे दलों में व्यक्तिवाद है। व्यक्तिवाद भी परिवारवाद है। कंचन चंद्रा की एक किताब है Dynasties: state, party and family in contemporary Indian Politics । कंचन चंद्रा ने बताया है कि तीन लोकसभा चुनावों के दौरान किस दल में परिवारवाद का कितना प्रतिशत रहा है। अभी 2014 के चुनाव के बाद चुने गए सांसदों के हिसाब से ही यह प्रतिशत देख लेते हैं। आई डी एम के में 16.22 प्रतिशत सांसद परिवारवादी हैं। भारतीय जनता पार्टी में 14.89 प्रतिशत सांसद परिवारवादी हैं। सी पी एम में भी परिवारवाद का प्रतिशत 11 है। सीपीआई में तो 100 फीसदी है। राजद और जदयु के सांसदों में परिवारवाद का प्रतिशत शून्य है। कांग्रेस में सबसे अधिक 47.73 प्रतिशत हैं। एन सी पी में 33.33 प्रतिशत है। अकाली दल में 25 प्रतिशत है। मतलब जितने सांसद चुन कर आए हैं उनमें से कितने ऐसे हैं जिनके परिवार के सदस्य पहले सांसद वगैरह रह चुके हैं। इस किताब के अनुसार 2004 में लोकसभा में 20 प्रतिशत सांसद ऐसे पहुंचे जो परिवारवादी कोटे से थे। 2009 में इनका प्रतिशत बढ़कर 30.07 हो गया और 2014 में घटकर 21.92 प्रतिशत हो गया क्योंकि कई दलों का खाता ही नहीं खुला। बीजेपी जो परिवारवाद से लड़ने का दावा करती है उसमें परिवारवादी सांसदों का प्रतिशत बढ़ गया। 2004 में चुने गए सांसदों में 14.49 प्रतिशत परिवारवादी थे, 2009 में 19.13 प्रतिशत हो गए और 2014 में 14.89 प्रतिशत। परिवारवाद बीजेपी में भी है, सहयोगी दलों में है और कांग्रेस से लेकर तमाम दलों में है। इससे मुक्त कोई दल नहीं है। इसलिए भारतीय राजनीति में परिवारवाद और भ्रष्टाचार के लिए धर्मनिरपेक्षता को दोषी ठहराना ठीक नहीं है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय राजनीति की आत्मा है। अब कोई इसे कुचल देना चाहता है तो अलग बात है। परिवारवाद के आंकड़े और भ्रष्टाचार के चंद मामलों से साफ है कि न तो कोई परिवारवाद से लड़ रहा है न ही भ्रष्टाचार से और न ही कोई धर्मनिरपेक्षता के लिए लड़ रहा है। बस परिवारवाद और भ्रष्टाचार को लेकर कोई ठोस सवाल न पूछे इसलिए धर्मनिरपेक्षता को शैतान की तरह पेश किया जा रहा है ताकि लोग उस पर पत्थर मारने लगें। किसी को धोखे में रहना है कि भ्रष्टाचार से लड़ा जा रहा है और कम हो रहा है तो उसका स्वागत है। चुनावी जीत का इस्तमाल हर सवाल के जवाब के रूप में किया जाना ठीक नहीं है। क्या कल यह भी कह दिया जाएगा कि चूंकि बीजेपी पूरे भारत में जीत रही है इसलिए भारत से ग़रीबी ख़त्म हो गई है, बेरोज़गारी ख़त्म हो गई? आज राजनीतिक दलों को पैसा कोरपोरेट से आता है। उसके बदले में कोरपोरेट को तरह तरह की छूट दी जाती है। जब भी किसी कारपोरेट का नाम आता है सारे राजनीतिक दल चुप हो जाते हैं। भ्रष्टाचार से लड़ने वाले भी और नहीं लड़ने वाले भी। आप उनके मुंह से इन कंपनियों के नाम नहीं सुनेंगे। इसलिए बहुत चालाकी से दो चार नेताओं के यहां छापे मारकर, उन्हें जेल भेज कर भ्रष्टाचार से लड़ने का महान प्रतीक तैयार किया है ताकि कोरपोरेट करप्शन की तरफ किसी का ध्यान न जाए। वर्ना रेलवे में ख़राब खाना सप्लाई हो रहा है। क्या यह बगैर भ्रष्टाचार के मुमकिन हुआ होगा? सी ए जी ने यह भी कहा गया कि बीमा कंपनियों को बिना शर्तों को पूरा किए ही तीन हज़ार करोड़ रुपये दे दिये गए। सी ए जी इन बीमा कंपनियों को आडिट नहीं कर सकती जबकि सरकार उन्हें हज़ारों करोड़ रुपये दे रही है। लिहाज़ा यह जांच ही नहीं हो पाएगा कि बीमा की राशि सही किसान तक पहुंची या नहीं। अब किसी को यह सब नहीं दिख रहा है तो क्या किया जा सकता है। बीजेपी से पूछना चाहिए कि उसने नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाए थे क्या वे सभी झूठे थे? क्या बीजेपी ने इसके लिए माफी मांग ली है? क्या प्रधानमंत्री चुनावों के दौरान नीतीश कुमार पर झूठे आरोप लगा रहे थे? दरअसल खेल दूसरा है। धर्मनिरेपक्षता की आड़ में बीजेपी को इन सवालों से बचाने की कोशिश हो रही है ताकि उससे कोई सवाल न करे। आज समस्या राष्ट्रवाद की आड़ में सांप्रदायिकता है लेकिन उस पर कोई नहीं बोल रहा है। धर्मनिरपेक्षता सबसे कमज़ोर स्थिति में है तो सब उस पर हमले कर रहे हैं। बीजेपी के साथ जाने में कोई बुराई नहीं है। बहुत से दल शान से गए हैं और साथ हैं। भारत में खेल दूसरा हो रहा है। भ्रष्टाचार से लड़ने के नाम पर व्यापक भ्रष्टाचार को छुपाया जा रहा है। कोरपोरेट करप्शन पर चुप्पी साधी जा रही है। धर्मनिरपेक्षता का इस्तमाल उस व्यापक भ्रष्टाचार पर चुप्पी को ढंकने के लिए हो रहा है। यह सही है कि भारत में न तो कोई राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता को लेकर कभी ईमानदार रहा है न ही भ्रष्टाचार मिटाने को लेकर। धर्मनिरपेक्षता का इस्तमाल सब करते हैं। जो इसमें यकीन करते हैं वो भी, जो इसमें यकीन नहीं करते हैं वो भी। इसी तरह भ्रष्टाचार का इस्तमाल सब करते हैं। लड़ने वाले भी और नहीं ल़ड़ने वाले भी। नोट: आपको एक जंत्री देता हूं। गांधी जी की तरह। अगर भ्रष्टाचार से लड़ाई हो रही है तो इसका असर देखने के लिए राजनीतिक दलों की रैलियों में जाइये। उनके रोड शो में जाइये। आसमान में उड़ते सैंकड़ों हेलिकाप्टर की तरफ देखिये। उम्मीदवारों के ख़र्चे और विज्ञापनों की तरफ देखिये। आपको कोई दिक्कत न हो इसलिए एक और जंत्री देता हूं। जिस राजनीतिक दल के कार्यक्रमों में ये सब ज़्यादा दिखे, उसे ईमानदार घोषित कर दीजिए। जीवन में आराम रहेगा। टाइम्स आफ इंडिया और डी एन ए को यह जंत्री पहले मिल गई थी तभी दोनों ने अमित शाह की संपत्ति में तीन सौ वृद्धि की ख़बर छापने के बाद हटा ली।
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