Tumgik
#Chaturmas Swadhyaya to Sant Samaj - opportunity for development - Swami Upendranand
kisansatta · 4 years
Photo
Tumblr media
दिल्ली से बढ़ा कोरोना का खतरा, लापता हुए 1589 कोरोना संक्रमितों लोग, जानें क्या है पूरा मामला
Tumblr media
लगातार बढ़ते जा रहे हैं दिल्ली में कोरोना के मामले, वहीं दूसरी तरफ 1589 कोरोना पॉजिटिव मरीजों के गायब होने से मुसीबत खड़ी हो गई है, हर कोशिस के बाद भी स्वास्थ्य विभाग को ये गायब मरीज नहीं मिल पा रहे हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि इन मरीजों ने जांच के दौरान गलत मोबाइल नंबर और पता लिखवाया था। हालांकि कुछ को खोज लिया गया है। नहीं तो यह संख्या और ज्यादा होती। गायब मरीजों में दिल्ली के 180, नोएडा के 19, गाजियाबाद के 124, गुरुग्राम के 266 और फरीदाबाद एक हजार लोग शामिल हैं। जांच में सामने आया है कि नमूने देने के दौरान इन लोगों ने मोबाइल नंबर और घर का पता गलत दिया था।
दिल्ली के मध्य जिला की चिकित्साधिकारी ने बताया कि सैंपल लेने से पहले आईसीएमआर एप पर मरीज की पूरी जानकारी को अपलोड किया जाता है। फिर मोबाइल नंबर के रजिस्ट्रेशन के बाद ओटीपी जनरेट होता है।
ओटीपी डालने के बाद ही सैंपल लिया जाता है। उनके मुताबिक जो लोग गायब हैं उनमें ज्यादातर लोगों ने निजी लैब से जांच कराई थी। ये सभी शुरुआती समय के हैं। कोरोना जांच में पॉजिटिव पाए गए इन गायब मरीजों की तलाश में स्वास्थ्य विभाग पुलिस की भी मदद ले रहा है। गाजियाबाद जिले में पिछले माह के पहले सप्ताह तक ऐसे मरीजों की संख्या 53 थी, 21 जून तक 107 संक्रमित लापता थे।
वहीं 26 जून को है संख्या 189 पहुंच गई। स्वास्थ्य विभाग द्वारा बताया गया कि इसमें 65 मरीजों को खोज लिया गया है और उन्हें गृह जनपद में भर्ती करा दिया गया है। वहीं प्रशासन की ओर से लापता हुए संक्रमितों की खोज के लिए तीन अलग-अलग टीम बनाई गई है। वहीं, फरीदाबाद में ऐसे मरीजों को खोजने की जिम्मेदारी नगर निगम को सौंप दी गई है। उन्हें स्वास्थ्य विभाग की ओर से डाटा मुहैया करा दिया जाएगा।
बताया जा रहा है कि स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारियों के अभाव में दिक्कत आ रही थी। फरीदाबाद के सिविल सर्जन डॉ. रणदीप सिंह पूनिया ने कहा कि अब अधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और अवासीय प्रमाण पत्र दिखाने के बाद ही कोरोना के नमूने लिए जाएंगे। इस संबंध दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हैं।
उन्होंने कुछ लोग गलत नाम पता लिखवाकर जांच करा लेते है। उनकी जांच रिपोर्ट संक्रमित आने के बाद उन्हें खोजना मुश्किल हो जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए कोई भी पहचान पत्र लेने का निर्णय लिया गया है।
कारण: 1. मरीजों द्वारा दिया गया मोबाइल नंबर और पता गलत निकला 2. जिन्होंने सही नंबर दिया उनके फोन भी काफी दिनों तक बंद रहे 3. आधार कार्ड पर घर का पता कुछ और हकीकत में कुछ निकला
जो कोरोना संक्रमित है और सामने नहीं आए हैं। वह लोग अपने साथ समाज के दूसरे लोगों की जान के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। उन्हें तुंरत खुद इलाज के लिए डॉक्टर और सरकार से संपर्क करना चाहिए। इन लोगों के ट्रेस न हो पाने से संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ सकती हैं।
https://is.gd/BPAeza #ChaturmasSwadhyayaToSantSamajOpportunityForDevelopmentSwamiUpendranand Chaturmas Swadhyaya to Sant Samaj - opportunity for development - Swami Upendranand Corona Virus, Top #CoronaVirus, #Top KISAN SATTA - सच का संकल्प
0 notes
kisansatta · 4 years
Photo
Tumblr media
संत समाज को चातुर्मास स्वाध्याय -विकास का अवसर—स्वामी उपेन्द्रानन्द
Tumblr media
नैमिषारण्य तीर्थ् के दण्डी स्वामी श्री मदजगदाचार्य उपेन्द्रानन्द सरस्वती जी बताते है कि चर्तमास प्रत्येक संत के लिए परम आवश्यक है यह समय उपासना व स्वाध्याय का समय होता है इससे जगत कल्याण की प्रेरणा मिलती है।
भारतीय दर्शन के आधार पर धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में चातुर्मास का विशेष महत्व है। विशेषकर वर्षाकालीन चातुर्मास का, हमारे यहां मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ होती हैं- ग्रीष्म, वर्षा और शरद। वर्ष के बारह महीनों को इनमें बॉंट दें, तो प्रत्येक ऋतु चार-चार महीने की हो जाती है। वर्षा ऋतु के चार महीनों के लिए ‘चातुर्मास’ शब्द का प्रयोग होता है। चार माह की यह अवधि साधना-काल की होती है। एक ही स्थान पर रहकर साधना की जाती है।यदि कोई किसी गांव में तो प्राय:वही रह कर चार माह व्यतीत किये जाते है।
हिन्दू धर्म और विशेषतः सनातन धर्म में इन चार महीने सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक में उपवास, व्रत और जप-तप का विशेष महत्व होता है। हिन्दू धर्म में देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास की शुरुआत होती है जो कार्तिक के देव प्रबोधिनी एकादशी तक चलती है, जबकि सनातन धर्म में आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इस समय में श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं इसलिए किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होती है। इसी अवधि में ही आषाढ़ के महीने में भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया था और राजा बलि से तीन पग में सारी सृष्टी दान में ले ली थी। उन्होंने राजा बलि को उसके पाताल लोक की रक्षा करने का वचन दिया था। फलस्वरूप श्री हरि अपने समस्त स्वरूपों से राजा बलि के राज्य की पहरेदारी करते हैं। इस अवस्था में कहा जाता है कि भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं। इस बार हिन्दू चातुर्मास 1 जुलाई से 25 नवंबर तक रहेगा जबकि जैन धर्म का चातुर्मास 5 जुलाई से प्रारंभ होकर 30 नवम्बर तक चलेगा।
वास्तव में पुराने समय में वर्षाकाल पूरे समाज के लिए विश्राम काल बन जाता था किन्तु संन्यासियों, श्रावकों, भिक्षुओं आदि के संगठित संप्रदायों ने इसे साधना काल के रूप में विकसित किया। इसलिए वे निर्धारित नियमानुसार एक निश्चित तिथि को अपना वर्षावास या चातुर्मास शुरू करते थे और उसी तरह एक निश्चित तिथि को उसे समाप्त करते थे। चातुर्मास शुभारंभ पर सम्पूर्ण देश में जगह-जगह आध्यात्मिक कार्यक्रमों की गरिमापूर्ण प्रस्तुति देखने को मिलती है। इस दिन से तप की गंगा प्रवहमान हो जाती है।
सनातन परम्परा में आषाढ़ी पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक का समय तथा वैदिक परम्परा में आषाढ़ से आसोज तक का समय चातुर्मास कहलाता है। धन-धान्य की अभिवृद्धि के कारण उपलब्धियों भरा यह समय स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार, आत्म-वैभव को पाने एवं अध्यात्म की फसल उगाने की दृष्टि से भी सर्वोत्तम माना गया है।इसका एक यह भी महत्व है कि जन-जन को सुखी, शांत और पवित्र जीवन की कला का प्रशिक्षण मिलता है।गृहस्थ को उनके सान्निध्य में आत्म उपासना का भी अपूर्व अवसर उपलब्ध होता है।
यों तो हर व्यक्ति को जीने के लिये तीन सौ पैंसठ दिन हर वर्ष मिलते, लेकिन उनमें वर्षावास की यह अवधि हमें जागते मन से जीने को प्रेरित करती है, इसके लिये जैन धर्म में विशेष आध्यात्मिक अनुष्ठान एवं उपक्रम किये जाते हैं। यह अवधि चरित्र निर्माण की चैकसी का आव्हान करती है ताकि कहीं कोई कदम गलत न उठ जाये। यह अवधि एक ऐसा मौसम और माहौल देती है जिसमें हम अपने मन को इतना मांज लेने को अग्रसर होते हैं कि समय का हर पल जागृति के साथ जीया जा सके।
संतों के लिये यह अवधि ज्ञान-योग, ध्यान-योग और स्वाध्याय-योग में आत्मा में अवस्थित होने का दुर्लभ अवसर है। वे इसका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिये तत्पर होते हैं। वे चातुर्मास प्रवास में अध्यात्म की ऊंचाइयों का स्पर्श करते हैं, वे आधि, व्याधि, उपाधि की चिकित्सा कर समाधि तक पहुंचने की साधना करते हैं। वे आत्म-कल्याण ही नहीं पर-कल्याण के लिये भी उत्सुक होते हैं। यही कारण है कि श्रावक समाज भी उनसे नई जीवन दृष्टि प्राप्त करता है। स्वस्थ जीवनशैली का निर्धारण करता है।
हम सही अर्थों में जीना सीखें। औरों को समझना और सहना सीखें । जीवन मूल्यों की सुरक्षा के साथ सबका सम्मान करना भी जानें। इसी दृष्टि से वर्षाकाल है प्रशिक्षण का अनूठा अवसर। यह अवसर जहां प्रकृति के अणु-अणु में प्राणवत्ता का संचार करता है, भूगर्भगत उर्वरता की अनंत संभावनाओं को उभार देता है, वहां वह व्यक्ति और समाज की आध्यात्मिक चेतना को जगाने एवं संस्कार बीजों को बोने और उगाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह इंसान को इंसान बनाने एवं स्वस्थ जीवन-शैली की स्थापना का उपक्रम है। जिसमें संतों के साथ-साथ श्रावक भी अपने जीवन को उन्नत बनाने को प्रेरित होता है।
संतों के अध्यात्म एवं शुद्धता से अनुप्राणित आभामंडल समूचे वातावरण को शांति, ज्योति और आनंद के परमाणुओं से भर देता है। वे कर्म संस्कार के रूप में चेतना पर परत-दर-परत जमी राख को भी हवा देते हैं। इससे जीवन-रूपी सारे रास्ते उजालों से भर जाते हैं। लोक चेतना शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनावों से मुक्त हो जाती है। उसे द्वंद्व एवं दुविधाओं से त्राण मिलता है। भावनात्मक स्वास्थ्य उपलब्ध होता है।
संत धरती के कल्पवृक्ष होते हैं। संस्कृति के प्रतीक, परम्परा के संवाहक, जीवन कला के मर्मज्ञ और ज्ञान के रत्नदीप होते हैं। उनके सामीप्य में संस्कृति, परम्परा, इतिहास, धर्म और दर्शन का व्यवस्थित प्रशिक्���ण लिया जा सकता है। उनका उपदेश किसी की ज्ञान चेतना को जगाता है तो किसी की विवेक चेतना को विकसित करता है।
किसी को आत्महित में प्रवृत्त करता है तो किसी को चित्तगत संक्लेशों से निवृत्त करता है। ठीक इसी तरह श्रावक भी संवेदनाओं एवं करुणाशीलता के फैलाव के लिये जागरूक बनते हैं। यह इस अवधि और इसकी साधना का ही प्रभाव है कि श्रावक की संवेदनशीलता इतनी गहरी और पवित्र हो जाती है कि वह अपने सुख की खोज में किसी को सुख से वंचित नहीं करता। किसी के प्रति अन्याय, अनीति और अत्याचार नहीं होने देता। यहां तक की वह हरे-भरे वृक्षों को भी नहीं काटता और पर्यावरण को दूषित करने से भी वह बचता है। चातुर्मास का महत्व शांति और सौहार्द की स्थापना के साथ-साथ भौतिक उपलब्धियों के लिये भी महत्वपूर्ण माना गया है।
इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंग हैं, जहां चातुर्मास या वर्षावास और उनमें संतों की गहन साधना से अनेक चमत्कार घटित हुए है। यह अवधि जिसमें कुछ व्यक्ति सामूहिक रूप से ध्यान, साधना, तपोयोग या मंत्र अनुष्ठान करना चाहें, उनके लिये उपहार की भंाति है। जिस क्षेत्र की स्थिति विषम हो।
जनता विग्रह, अशांति, अराजकता या अत्याचारी शासक की क्रूरता की शिकार हो, उस समस्या के समाधान हेतु शांति और समता के प्रतीक साधु-साध्वियों का चातुर्मास वहां करवाया जाकर परिवर्तन को घटित होते हुए देखा गया है। क्योंकि संत वस्तुतः वही होता है जो औरों को शांति प्रदान करे। बाहर-भीतर के वातावरण को शंाति से भर दे। जो स्वयं शांत रस में सराबोर रहता है तथा औरों के लिए सदा शांति का अमृत छलकाता रहता है। एक तरह से अध्यात्म एवं पवित्र गुणों से किसी क्षेत्र और उसके लोगों को अभिस्नात करने के लिये चातुर्मास एक स्वर्णिम अवसर है।
वर्षावास जैन परम्परा में साधना का विशेष अवसर माना जाता है। इसलिए इस काल में वे आत्मा से परमात्मा की ओर, वासना से उपासना की ओर, अहं से अर्हम् की ओर, आसक्ति से अनासक्ति की ओर, भोग से योग की ओर, हिंसा से अहिंसा की ओर, बाहर से भीतर की ओर आने का प्रयास करते हैं। वह क्षेत्र सौभाग्यशाली माना जाता है, जहां साधु-साध्वियों का चातुर्मास होता है। उनके अध्यात्म प्रवचन ज्ञान के स्रोत तथा जीवन के मंत्र सूत्र बन जाते हैं। उनके सान्निध्य का अर्थ है- बाहरी के साथ-साथ आंतरिक बदलाव घटित होना।
आज की भौतिक सुखवादिता एवं सुविधावादी दृष्टिकोण ने जहां प्राकृतिक क्षेत्र में प्रदूषण फैलाया है, कोरोना महाव्याधि ने मानव जीवन को संकट में डाला है, उससे कहीं ज्यादा मन के गलत विचारों ने मानवीय संवेदना को प्रदूषित किया है। कोरोना कहर के इन जटिल से जटिल होने हालातों को बदलने के लिये और जीवन को सकारात्मक दिशाएं देने के लिये चातुर्मास एक सशक्त माध्यम है। यह आत्म-निरीक्षण का अनुष्ठान है।
यह महत्वाकांक्षाओं को थामता है। इन्द्रियों की आसक्ति को विवेक द्वारा समेटता है। मन की सतह पर जमी राग-द्वेष की दूषित परतों को उघाड़ता है। करणीय और अकरणीय का ज्ञान देता है तभी जीवन की दिशायें बदलती है। चातुर्मास में ज्ञानी मुनिजनों के मुख से शास्त्र-वाणी का श्रवण करने से भौतिकता के साथ-साथ आध्यात्मिक का भाव पुष्ट होता है। त्याग-प्रत्याख्यान में वृद्धि होती है। कर्म निर्जरा के लिए पराक्रम के प्रस्फोट की पे्ररणा मिलती है।
गांव और घर-घर में तप आराधना का ज्वार-सा आ जाता है। जो न केवल जीवन की दिशाओं को ही नहीं बदलता बल्कि जीवन का ही सर्वांगीण रूपान्तरण भी कर देता है। चातुर्मास संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। जरूरत है इस सांस्कृतिक परम्परा को अक्षुण्ण बनाने की। ऐसी परम्पराओं पर हमें गर्व और गौरव होना चाहिए कि जहां जीवन की हर सुबह सफलताओं की धूप बांटें और हर शाम चारित्र धर्म की आराधना के नये आयाम उद्घाटित करें। क्योंकि यही अहिंसा, शांति और सह-अस्तित्व की त्रिपथगा सत्यं, शिवं, सुंदरम् का निनाद करती हुई समाज की उर्वरा में ज्योति की फसलें उगाती है।
https://is.gd/O5hGMk #Sanatandharm, #Swamiupendranand, #Vaidik, #ChaturmasSwadhyayaToSantSamajOpportunityForDevelopmentSwamiUpendranand #sanatandharm, #swamiupendranand, #vaidik, Chaturmas Swadhyaya to Sant Samaj - opportunity for development - Swami Upendranand In Focus, Religious, Top #InFocus, #Religious, #Top KISAN SATTA - सच का संकल्प
0 notes