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i’ll say it a hundred times because some of you need to hear it a hundred times but the trick to liking yourself again is learning new skills and hobbies or returning to ones you had. it makes you so confident learning new shit all the time.
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Life finds a way, even in the cracks of concrete.
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प्रिय चाय,
इन दिनों काम बहुत होता है। मैं अपने लैपटॉप से चिपकी रहती हूँ और शाम के 6 बजने का इंतज़ार करती हूँ। सोचती हूँ कि अब 6 बजेंगे, और मैं बेंगलुरु की फ़िल्टर कॉफ़ी की चुस्की लेते हुए अपने दोस्तों के साथ हँसूगी, बातें करूँगी। पर आज बहुत तेज़ बारिश हो रही थी और फ़िल्टर कॉफ़ी पीने की इच्छा बहुत ज़्यादा थी।

तभी मेरी दोस्त ने कहा, “चलो चाय पीने चलते हैं।” जब मेरी आख़िरी मीटिंग ख़त्म हुई, तो मैं बिना सोचे निकल पड़ी। ऐसा लगा जैसे तुम मुझे बुला रही हो। उस टपरी या दुकान की चाय का मज़ा ही कुछ और होता है, है ना?
मैं चाय के लिए ऐसे रुकी जैसे मेरी माँ अपने हाथों से गरमा गरम पुरण पोली बना रही हो। जैसे ही चाय मेरे सामने आई, शाम के 6 बजे की हल्की धूप मेरे चेहरे को चूम गई। मुझे मेरी चाय बहुत गरम पसंद है तुम मुझे कभी फूंकते हुए या चाय को ठंडा करते हुए नहीं देखोगी। हाँ, लोग मुझे अजीब नज़रों से देखते हैं, पर क्या करूँ, तुम्हारे साथ एक अलग तरह का प्यार महसूस होता है।
थोड़ा हँसते और बातें करते हुए चाय खत्म हो गई, साथ में एक बिस्किट। पर अंदर से कुछ पुरानी बातें जाग उठीं जो मैंने तुमसे कभी नहीं बाँटी।
तुम्हें पता है, बचपन से तुम्हें पीती आ रही हूँ। कभी माँ के साथ किचन में चाय बनाते हुए, सही चीनी है या नहीं चखते हुए। कभी कॉलेज कैंटीन में सबसे करीबी दोस्त के साथ समोसे खाते हुए परीक्षा की बेचैनी बाँटते हुए। या फिर उसकी आख़िरी मुलाकात के समय के दो कप चाय। या फिर जब मैं अकेले कविता लिखती हूँ तुमने मुझे बचपन में पार्ले-जी के चार बिस्किट में डुबोते हुए भी देखा है। तुमने तो मुझे हमेशा से देखा है।
पर तुम्हें पता है, कॉफ़ी ने मुझे कैसे देखा है? जब ज़िंदगी की उलझनों में उलझी हुई थी रात के 2 बजे पढ़ाई करते हुए, किसी इंटर्नशिप के लिए रेज़्युमे बनाते हुए, दसवीं की परीक्षा की चिंता में सुबह 4 बजे तक किताबों में डूबी हुई थी, तब कॉफ़ी ने मेरा साथ दिया। और बेंगलुरु में, एक अजनबी के साथ एक कप कॉफ़ी और ढेर सारी बातें, और दिल की धड़कन जब मधुर गीत सी सुनाई दी, वो कॉफ़ी के साथ ही हुआ।
जब मैंने इस नए शहर में काम शुरू किया, मैंने यहाँ के लोगों की जीवनशैली अपना ली। मैं भी इनकी तरह हो गई। एक ऐसा शहर जो विचारों में डूबा है यहाँ की ऊँची-ऊँची इमारतें और हमारे सपनों की दौड़, कि ये इमारतें जैसे हमारे सपनों से भी ऊँची हों। मैं इस शहर की हो गई हूँ। जैसे चीनी कॉफ़ी में घुल जाती है, मैं भी घुल गई हूँ।
और इतने महीने हो गए कि मैं तुम्हें भूल सी गई। तुम उस किताब की तरह लगती हो जो मैंने बचपन में बहुत पढ़ी थी, पर अब किसी कोने में पड़ी है और दूर से देखती हो कि मैं कब आऊँ और तुम्हें फिर से पढ़ूँ।
तुम मेरे दिल के बहुत क़रीब हो। और कॉफ़ी? कॉफ़ी मेरी ज़िंदगी का वो अजनबी दोस्त है जो मुझे मेरे सपनों से जोड़े रखता है। पर तुम... तुम वो सुकून हो जो मेरी माँ मुझे शाम को चाय और टोस्ट के साथ चुपचाप मेरे टेबल पर रख देती थी।
कभी-कभी लगता है कि मैं खुद को मौका नहीं देती तुम्हारे पास आने का, क्योंकि डरती हूँ ये सुकून मुझे अपनी बाहों में ऐसे भर लेगा कि शायद मैं खुद को भूल जाऊँ। चाहती हूँ कि तुम मुझे अपनी यादों की नगरी में ले चलो, पर इन यादों और खुशी से भी डर लगता है।
तुम्हारे साथ बिताए हर पल अच्छे या बुरे सब याद आ जाते हैं। लगता है फिर से जी लूँ तुम्हें, पर वो मुमकिन नहीं है। अब न वो लोग मेरे साथ हैं, न ही तुम वैसे के वैसे हो।
पर आज, लगता है कि अब तुम्हें टपरी पर नहीं, मेरे नए घर में मिलना है अदरक ज़्यादा, चीनी कम, दूध ज़्यादा और हल्का मसाला डालकर, और मेरी किताबों के साथ। मुझे अब तुमसे वैसे मिलना है। ऐसा लग रहा है कि मैं खुद को इतना बदल चुकी हूँ कि कहीं अपनी पसंदीदा चीज़ें भूल न जाऊँ।
तुमसे फिर मिलने आऊँगी , तब तक तुम्हारी ये मिठास मेरी ज़ुबान पर बनी रहे।
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क्या तुम्हें पता है?
मैं अपने शहर से दूर हूँ, लेकिन जब मेरी माँ मुझसे किसी हलवाई की दुकान का रास्ता पूछती हैं, तो मैं झट से उन्हें बता देती हूँ। कभी-कभी पापा जब अपनी सबसे पसंदीदा चाय की दुकान पर जाते थे, तो मेरे लिए वड़ा पाव ले आते थे। आज भी उसकी खुशबू मेरे ज़ेहन में ताज़ा है।
मुझे अपने शहर की हर गली, हर सड़क, हर साइन बोर्ड और हर चेतावनी का बोर्ड याद है। लगता है कि मैं भले ही इस शहर से दूर आ गई हूँ, लेकिन वो शहर अब भी मेरे अंदर बसा हुआ है।
जैसे तुम। जैसे अब तुम मुझसे दूर हो, फिर भी तुम्हारे साथ होने का एहसास बना रहता है। इस शहर में तुमसे मिलना कोई हैरानी की बात नहीं थी। इस शहर ने घर से दूर मुझे एक घर जैसा सुकून दिया था। और अब, तुम इस शहर को छोड़कर जा चुके हो।
पर तुम्हारी यादें आज भी इन रास्तों में दबी हुई हैं। कभी-कभी जब शाम को टहलने निकलती हूँ, तो वो यादें मेरे साथ चलने लगती हैं। बार-बार लौटने का मन करता है, जैसे किसी किताब का एक पन्ना पढ़ा हो और फिर अगला पढ़े बिना चैन न मिले।
बहुत याद आती है तुम्हारी। सोचती हूँ, अगर किसी दिन फिर ��ुमसे टकरा जाऊँ तो क्या करूँगी? तुमसे बात करूँगी? हाथ मिलाऊँगी? या फिर तुम्हें देखकर चुपचाप रह जाऊँगी?
मैं अपने शहर और तुमसे दूर रहकर भी प्यार कर सकती हूँ, क्योंकि जब उस शहर में होती हूँ, तो हर काली रात मुझे बाँध लेती है। और तुम... तुमसे तो जैसे मुझे चाँद जैसी मोहब्बत हो गई है। तुम दूर हो, पर तुम्हारा हाथ थामने की ख्वाहिश अब भी दिल में ज़िंदा है।
मैं... और ये गलियाँ... अब भी तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं।

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After a long long time! We are here
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i hope you get through all your trauma anniversaries with as little pain as possible, and i hope the pain lessens even more next year
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I have always felt that a human being could only be saved by another human being. I am aware that we do not save each other very often. But I am also aware that we save each other some of the time.
James Baldwin, born 100 years ago today, on how to live through your darkest hour.
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Mohammed El-Kurd, from "No Moses in Siege," Rifqa
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