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महामृत्युंजय मंत्र 108 बार
महामृत्युंजय मंत्र की महिमा
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में महामृत्युंजय मंत्र का अत्यधिक महत्व है। यह मंत्र जीवन और मृत्यु के चक्र से परे होने का सामर्थ्य प्रदान करता है। इसे 'मृत्युंजय मंत्र' भी कहा जाता है, और यह विशेष रूप से भगवान शिव से संबंधित है। यह मंत्र न केवल मृत्यु के भय को समाप्त करता है, बल्कि जीवन के कठिनतम समय में भी इसे जाप करने से व्यक्ति को आंतरिक शक्ति और शांति मिलती है।
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एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में एक ब्राह्मण परिवार रहता था। उस परिवार का नाम था श्रीवास्तव। परिवार में एक छोटी सी बच्ची थी, जिसका नाम काव्या था। काव्या बहुत ही समझदार और होशियार थी, लेकिन वह एक गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। उसकी हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी, और गाँव के सारे वैद्य भी उसकी बीमारी का इलाज करने में असमर्थ थे।
काव्या के माता-पिता बहुत परेशान थे। उन्होंने गाँव के प्रमुख पुजारी से मदद की गुहार लगाई। पुजारी ने काव्या की स्थिति को देखकर सोचा और फिर उसे एक सुझाव दिया। उसने कहा, "तुम्हें महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक कष्टों से भी मुक्ति दिलाता है। अगर तुम सच्चे मन से इसे जाप करोगी, तो भगवान शिव की कृपा से तुम्हारी बीमारी दूर हो सकती है।"
काव्या की माँ ने पुजारी की बात मानी और उसने काव्या को हर दिन इस मंत्र का जाप करने के लिए कहा। काव्या और उसकी माँ ने सुबह-शाम महामृत्युंजय मंत्र का जाप शुरू किया। "ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योरमुक्षीय मामृतात्।"
यह मंत्र न केवल काव्या के मन को शांति देता था, बल्कि उसकी तबियत में भी सुधार आने लगा। धीरे-धीरे उसकी बीमारी कम होने लगी और उसकी शक्ति में वृद्धि होने लगी। काव्या की माँ ने पूरे विश्वास के साथ यह मंत्र पढ़ना जारी रखा। कुछ महीनों बाद, काव्या पूरी तरह से स्वस्थ हो गई। उसकी स्वास्थ्य स्थिति में चमत्कारी बदलाव आया था।
गाँववाले यह देखकर हैरान रह गए और वे भी महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव को जानने के लिए उसे जाप करने लगे। काव्या की माँ ने समझाया, "यह मंत्र भगवान शिव की शक्ति का प्रतीक है। यदि आप सच्चे दिल से इसे जाप करते हैं, तो जीवन के हर कठिन समय में शिव की कृपा प्राप्त होती है।"
महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से न केवल काव्या बल्कि गाँव के अन्य लोग भी शांति और समृद्धि का अनुभव करने लगे। इस मंत्र के जाप ने न केवल उनके शारीरिक कष्टों को दूर किया, बल्कि उनके मानसिक और आत्मिक बल को भी बढ़ाया।
सम��प्त!
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Chhathi Ghat Jana Hai
**छठ घाट पूजा: परंपरा, महत्व और अनुष्ठान**
**परिचय**
छठ पूजा, भारतीय संस्कृति में एक प्रमुख हिन्दू पर्व है जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता और उनकी पत्नी उषा की पूजा के रूप में प्रसिद्ध है। विशेष रूप से इस दिन लोग छठ घाट पर एकत्र होते हैं, जहाँ वे सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पूजा अर्चना करते हैं। इस पूजा का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। यह पर्व जीवन की समृद्धि, स्वास्थ्य, और सुख-शांति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। **छठ पूजा का ऐतिहासिक महत्व**
छठ पूजा का इतिहास बहुत पुराना है और यह मुख्य रूप से सूर्य उपासना से जुड़ा हुआ है। यह पूजा आदिकाल से चली आ रही है। माना जाता है कि यह पूजा पहले मगध (अब बिहार) क्षेत्र में होती थी। इतिहासकारों का मानना है कि यह पूजा प्राचीन हिन्दू वेदों और पुराणों से जुड़ी हुई है, जहाँ सूर्य को जीवनदाता माना गया है। साथ ही यह पर्व पृथ्वी पर जीवन के संरक्षण में सूर्य के योगदान को सम्मानित करने का अवसर प्रदान करता है। छठ पूजा को विशेष रूप से आदिवासी संस्कृति और लोक परंपराओं का मिश्रण भी माना जाता है, जो समय के साथ हिन्दू धर्म में समाहित हो गई। इस पूजा का उल्लेख महाभारत और रामायण में भी किया गया है, जहाँ सूर्य देवता की पूजा का उल्लेख है।
**छठ पूजा के दिन और अनुष्ठान**
छठ पूजा चार दिनों तक मनाई जाती है। प्रत्येक दिन का अपना महत्व और विशेष अनुष्ठान होते हैं:
1. **पहला दिन - नहाय-खाय:** यह दिन पूजा की शुरुआत होती है। इस दिन श्रद्धालु विशेष रूप से शुद्धता और पवित्रता के साथ स्नान करते हैं और पूरे घर की सफाई करते हैं। फिर वे शुद्धता का पालन करते हुए विशेष भोजन तैयार करते हैं, जिसमें चिउड़े (चिउड़े चावल), शकरकंद, फल और दाल का प्रसाद होता है। यह भोजन त्याग और आत्मशुद्धि के प्रतीक के रूप में तैयार किया जाता है। इस दिन की शाम को महिलाएं और पुरुष अपनी सामूहिक तैयारी के साथ पूजा स्थल पर जाते हैं।
2. **दूसरा दिन - खरना:** दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन व्रति दिनभर उपवासी रहते हैं और सूर्यास्त के समय विशेष पूजन करते हैं। खरना का अर्थ होता है—"खर" यानी सूखा, और "ना" यानी खाना, अर्थात इस दिन व्रति दिनभर उपवास रखते हुए सूर्यास्त के समय मिट्टी के बर्तन में तैयार खीर, रोटी, गुड़, और फल का प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह दिन व्रति की शक्ति और संकल्प को मजबूत करता है।
**छठ घाट की विशेषताएँ**
छठ पूजा के दौरान जिस घाट पर पूजा होती है, वह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है। इन घाटों पर व्रति अपने परिवार और मित्रों के साथ एकत्र होते हैं। यह स्थान एक साथ कई महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यों का स्थल होता है। छठ घाट पर स्नान करना, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करना, और विशेष प्रकार के पकवानों का अर्पण करना, यह सभी अनुष्ठान अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ किए जाते हैं। छठ घाट पर विशेष पूजा सामग्री जैसे ठेकुआ, चिउड़े, शकरकंद, गुड़, फल, और अन्य प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। ये सभी प्रसाद सूर्य देवता के प्रति श्रद्धा और आभार का प्रतीक होते हैं।
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Chhath Puja Song 2024
**छठ पूजा: सूर्य देवता की आराधना और भारतीय संस्कृति में इसका महत्व**
**परिचय**
छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता की पूजा का पर्व है, जिसमें श्रद्धालु सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा करते हैं। यह पर्व शुद्धता, तात्त्विकता और सूर्य के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।
**छठ पूजा का इतिहास और उत्पत्ति**
छठ पूजा का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन इसकी उत्पत्ति के बारे में कई अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह पूजा सूर्य देवता की आराधना से संबंधित है, जिसे हिंदू धर्म में 'आदि देवता' के रूप में पूजा जाता है। छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल में मानी जाती है, जब पांडवों ने सूर्य देवता की आराधना की थी।
**छठ पूजा का महत्व**
छठ पूजा का महत्व शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता से जुड़ा हुआ है। इस पूजा में सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा की जाती है, जो जीवन के उत्थान और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इस पूजा का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत कल्याण है, बल्कि पूरे समाज के कल्याण की भी कामना की जाती है। यह पर्व एकता, भाईचारे, और समाज की समृद्धि को बढ़ावा देने वाला है।
**छठ पूजा की तैयारी**
छठ पूजा की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। इस पूजा का सबसे अहम हिस्सा है 'व्रत'। जो लोग व्रत करते हैं, वे पूरे दिन उपवासी रहते हैं, और सन्नाटे में अपना समय बिताते हैं। यह पूजा पूरी तरह से शुद्धता और संयम पर आधारित है, इसलिए पूजा की तैयारी में ध्यान, स्वच्छता, और साधना का विशेष स्थान होता है।
**छठ पूजा का व्रत और विधि**
छठ पूजा के मुख्य रूप से दो दिन होते हैं -
1. **पहला दिन - नहाय-खाय**: इस दिन व्रति गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करके, शुद्ध होकर अपने घर लौटते हैं। इस दिन व्रति विशेष प्रकार का भोजन करते हैं, जिसे 'नहाय-खाय' कहा जाता है। यह भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है, जिसमें कद्दू-चिउड़ा, चावल, दाल और साग होते हैं। इस दिन का उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना और मानसिक रूप से पूजा के लिए तैयार होना होता है।
2. **दूसरा दिन - खट्टी-चढ़ाई**: यह दिन व्रति के लिए विशेष रूप से कठिन होता है। इस दिन व्रति केवल फलाहार करते हैं और पूरे दिन उपवासी रहते हैं। वे सूर्य देवता की उपासना के लिए पवित्र जल में स्नान करते हैं और छठी मइया को सम्मानित करने के लिए पूजा करते हैं। इस दिन के अंत में व्रति ठेकुआ और अन्य पकवानों का प्रसाद छठी मइया को अर्पित करते हैं।
**छठ पूजा में पर्यावरण का महत्व** छठ पूजा में प्रकृति और पर्यावरण का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इस पूजा के दौरान नदी, तालाब या जलाशयों में स्नान करना और सूर्य देवता की पूजा करना, यह प्रदूषण और जलवायु संरक्षण का संदेश देता है।
**समाप्ति**
छठ पूजा न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन में संयम, शुद्धता, और आस्था को भी बढ़ावा देती है। सूर्य देवता की आराधना के माध्यम से हम अपने जीवन में समृद्धि, सुख और शांति की कामना करते हैं।
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छठ पूजा गीत

**छठ पूजा: सूर्य देवता की आराधना और भारतीय संस्कृति में इसका महत्व**
**परिचय**
छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता की पूजा का पर्व है, जिसमें श्रद्धालु सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा करते हैं। यह पर्व शुद्धता, तात्त्विकता और सूर्य के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। छठ पूजा का आयोजन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। इस दिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय विशेष पूजा होती है। इस पूजा में व्रति (व्रत रखने वाले) अपनी संतान की सुख-समृद्धि, आरोग्य और दीर्घायु के लिए सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जल में खड़े होकर पूजा करते हैं।
**छठ पूजा का इतिहास और उत्पत्ति**
छठ पूजा का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन इसकी उत्पत्ति के बारे में कई अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह पूजा सूर्य देवता की आराधना से संबंधित है, जिसे हिंदू धर्म में 'आदि देवता' के रूप में पूजा जाता है। छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल में मानी जाती है, जब पांडवों ने सूर्य देवता की आराधना की थी। उस समय सूर्य देवता ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनका राज्य पुनः प्राप्त करने में मदद की थी। इसके बाद से यह पूजा विशेष रूप से पांडवों द्वारा की जाती थी, और समय के साथ यह पूजा विभिन्न समुदायों में लोकप्रिय हो गई। कुछ अन्य कथाओं के अनुसार, छठ पूजा का संबंध राजा कीर्तिवर्मा और उनकी पत्नी से भी जुड़ा हुआ है, जिन्होंने इस पूजा के माध्यम से अपने पुत्र को मृत्यु से बचाया। हालांकि, इसकी वास्तविक उत्पत्ति के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि यह पूजा सूर्य देवता की अनंत कृपा और उनकी ऊर्जा का प्रतीक है।
**छठ पूजा का महत्व**
छठ पूजा का महत्व शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता से जुड़ा हुआ है। इस पूजा में सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा की जाती है, जो जीवन के उत्थान और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इस पूजा का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत कल्याण है, बल्कि पूरे समाज के कल्याण की भी कामना की जाती है। यह पर्व एकता, भाईचारे, और समाज की समृद्धि को बढ़ावा देने वाला है। छठ पूजा के दौरान व्रति (व्रत रखने वाले) अपने जीवन में शुद्धता बनाए रखते हैं और कई प्रकार के मानसिक और शारीरिक संयम का पालन करते हैं। यह पूजा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व भी रखती है।
**छठ पूजा की तैयारी**
छठ पूजा की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। इस पूजा का सबसे अहम हिस्सा है 'व्रत'। जो लोग व्रत करते हैं, वे पूरे दिन उपवासी रहते हैं, और सन्नाटे में अपना समय बिताते हैं। यह पूजा पूरी तरह से शुद्धता और संयम पर आधारित है, इसलिए पूजा की तैयारी में ध्यान, स्वच्छता, और साधना का विशेष स्थान होता है। व्रति घर की सफाई करते हैं, और घर में कोई भी अशुद्धता या गंदगी नहीं रहने देते। इसके अलावा, पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे कि ठेकुआ (एक प्रकार की मिठाई), फल, गुड़, नारियल, दीपक, और पूजा की थाली तैयार की जाती है।
**छठ पूजा का व्रत और विधि**
छठ पूजा के मुख्य रूप से दो दिन होते हैं -
1. **पहला दिन - नहाय-खाय**:
इस दिन व्रति गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करके, शुद्ध होकर अपने घर लौटते हैं। इस दिन व्रति विशेष प्रकार का भोजन करते हैं, जिसे 'नहाय-खाय' कहा जाता है। यह भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है, जिसमें कद्दू-चिउड़ा, चावल, दाल और साग होते हैं। इस दिन का उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना और मानसिक रूप से पूजा के लिए तैयार होना होता है।
2. **दूसरा दिन - खट्टी-चढ़ाई**:
यह दिन व्रति के लिए विशेष रूप से कठिन होता है। इस दिन व्रति केवल फलाहार करते हैं और पूरे दिन उपवासी रहते हैं। वे सूर्य देवता की उपासना के लिए पवित्र जल में स्नान करते हैं और छठी मइया को सम्मानित करने के लिए पूजा करते हैं। इस दिन के अंत में व्रति ठेकुआ और अन्य पकवानों का प्रसाद छठी मइया को अर्पित करते हैं।
3. **तीसरा दिन - सूर्यास्त पूजा**:
यह दिन विशेष महत्व रखता है। सूर्यास्त के समय व्रति नदियों या तालाबों के किनारे खड़े होकर सूर्य देवता की पूजा करते हैं। इस दौरान व्रति पूरी तरह से ध्यान केंद्रित कर सूर्य देवता से अपनी इच्छाएं पूरी करने की कामना करते हैं। यह पूजा सूर्य देवता को अर्घ्य देने की प्रक्रिया में होती है, जिसमें जल में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य देवता की पू���ा के बाद व्रति ठेकुआ और अन्य पकवानों का प्रसाद सभी को वितरित करते हैं।
4. **चौथा दिन - सूर्योदय पूजा (अर्घ्य दान)**:
यह दिन पूजा का अंतिम दिन होता है। इस दिन सूर्योदय के समय व्रति सूर्य देवता को अर्घ्य प्रदान करते हैं। इस दिन के बाद व्रति का व्रत समाप्त होता है और वे प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस दिन के बाद व्रति का शरीर और मन पूरी तरह से शुद्ध हो जाता है, और वे अपने जीवन में शांति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
**छठ पूजा में पर्यावरण का महत्व**
छठ पूजा में प्रकृति और पर्यावरण का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इस पूजा के दौरान नदी, तालाब या जलाशयों में स्नान करना और सूर्य देवता की पूजा करना, यह प्रदूषण और जलवायु संरक्षण का संदेश देता है। व्रति जल में खड़े होकर न केवल सूर्य देवता की पूजा करते हैं, बल्कि वे जल की शुद्धता और इसके महत्व को भी समझते हैं। छठ पूजा के दौरान नदियों के किनारे साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।
**समाप्ति**
छठ पूजा न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन में संयम, शुद्धता, और आस्था को भी बढ़ावा देती है। सूर्य देवता की आराधना के माध्यम से हम अपने जीवन में समृद्धि, सुख और शांति की कामना करते हैं। यह पर्व समाज में भाईचारे, सहयोग और सामूहिकता की भावना को प्रगाढ़ करता है। जो लोग इस पूजा को श्रद्धा और विश्वास से करते हैं, उनका जीवन एक नई दिशा की ओर बढ़ता है, और वे हर कठिनाई को पार करने के लिए मानसिक रूप से सशक्त हो जाते हैं। इस प्रकार, छठ पूजा हमारे समाज में न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को संतुलित करने का एक माध्यम भी है।
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अष्टलक्ष्मी मंत्र जाप से होगी धन वर्षा
अष्टलक्ष्मी मंत्र: देवी लक्ष्मी के आठ स्वरूपों का महत्त्व
हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को समृद्धि, धन, सुख, और ऐश्वर्य की देवी माना जाता है। अष्टलक्ष्मी उन आठ स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो विभिन्न प्रकार की समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं। अष्टलक्ष्मी मंत्र का जप न केवल आर्थिक समृद्धि के लिए, बल्कि मानसिक शांति और समृद्धि के लिए भी अत्यंत प्रभावी है।
अष्टलक्ष्मी के स्वरूप:- अष्टलक्ष्मी का अर्थ है "आठ देवी लक्ष्मी,"
जो निम्नलिखित हैं: 1. धन लक्ष्मी: धन और ऐश्वर्य की देवी।
2. ध्यान लक्ष्मी: ध्यान और समर्पण की देवी।
3. वीर लक्ष्मी: साहस और बल की देवी।
4. सिद्धि लक्ष्मी: ज्ञान और सफलता की देवी।
5. श्री लक्ष्मी: सामर्थ्य और यश की देवी।
6. राज लक्ष्मी: शासन और सत्ता की देवी।
7. जल लक्ष्मी: जल से संबंधित समृद्धि की देवी।
8. संपत्ति लक्ष्मी: भौतिक संपत्ति की देवी। इन देवियों की उपासना करने से व्यक्ति को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
*अष्टलक्ष्मी मंत्र* अष्टलक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करने से व्यक्ति को सभी प्रकार की समृद्धि, धन, और मानसिक शांति मिलती है। इस मंत्र का सही उच्चारण और विधि का पालन करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
यहाँ पर अष्टलक्ष्मी मंत्र प्रस्तुत है: **ॐ ह्लीं श्रीं अष्टलक्ष्म्यै नमः।**
इस मंत्र का अर्थ है कि हम अष्टलक्ष्मी को साक्षात् अपने जीवन में आमंत्रित करते हैं, ताकि वे हमें समृद्धि और वैभव से भर दें।
मंत्र जाप की विधि:-
1. **स्थान का चयन**: पूजा के लिए एक पवित्र स्थान का चयन करें।
2. **स्वच्छता**: स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें।
3. **पूजा सामग्री**: चावल, फूल, दीपक, अगरबत्ती, और फल इत्यादि इकट्ठा करें।
4. **मंडल बनाना**: पूजा स्थान पर चावल से मंडल बनाएं और अष्टलक्ष्मी की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
5. **मंत्र का जाप**: ध्यानपूर्वक और श्रद्धा के साथ मंत्र का जाप करें। मंत्र का महत्व :- अष्टलक्ष्मी मंत्र का महत्व सिर्फ धन और समृद्धि में नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के मन को भी शांति और स्थिरता प्रदान करता है। इसका नियमित जाप करने से व्यक्ति में धैर्य, साहस, और सकारात्मक सोच का विकास होता है।
1. **धन की वृद्धि**: यह मंत्र धन की कमी को दूर करता है और आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाता है।
2. **सकारात्मकता**: मंत्र का जाप घर में सकारात्मकता का संचार करता है।
3. **सफलता की प्राप्ति**: जीवन में आने वाली बाधाओं को पार करने में मदद करता है। 4. **आध्यात्मिक विकास**: यह व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
अष्टलक्ष्मी की पूजा का महत्व: अष्टलक्ष्मी की पूजा का महत्व विशेष रूप से त्योहारों के दौरान बढ़ जाता है। विशेषकर दीवाली के समय, जब लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, तब अष्टलक्ष्मी मंत्र का जाप करके अपने घर में लक्ष्मी का वास सुनिश्चित किया जा सकता है।
पूजा के समय की विशेषताएँ: - **शुभ मुहूर्त**: पूजा का समय हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए। -
**विशेष सामग्री**: पूजा में तुलसी, चावल, और फल का विशेष महत्व है। -
**दीप जलाना**: पूजा के समय दीप जलाना अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अंधकार को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
अष्टलक्ष्मी के लाभ:
1. **धन लाभ**: इस मंत्र का जप करने से धन की प्राप्यता में वृद्धि होती है।
2. **सुख-शांति**: मानसिक तनाव कम होता है और व्यक्ति में स्थिरता आती है।
3. **समाज में प्रतिष्ठा**: व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा और मान-सम्मान प्राप्त होता है।
4. **व्यापार में लाभ**: व्यापारी वर्ग के लिए यह मंत्र अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होता है।
निष्कर्ष: अष्टलक्ष्मी मंत्र का जाप एक आध्यात्मिक साधन है, जो व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने में सहायक होता है। इस मंत्र का नियमित उच्चारण करने से न केवल आर्थिक लाभ होता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास भी होता है। इस मंत्र के माध्यम से आप न केवल देवी अष्टलक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को एक नई दिशा भी दे सकते हैं।
उपसंहार: अंत में, यह कहना उचित होगा कि अष्टलक्ष्मी मंत्र एक दिव्य साधन है, जो सभी प्रकार की समृद्धि, धन, और मानसिक शांति प्रदान करता है। इस मंत्र का जाप करते समय मन में श्रद्धा और विश्वास होना आवश्यक है, जिससे देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके।
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जिसने भी तेरा नाम लिया माँ
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नवरात्रि: डांडिया गीत और माता के भजन :-
नवरात्रि, भारत का एक प्रमुख त्योहार, विशेष रूप से हिंदू धर्म में माता दुर्गा की पूजा का समय है। यह नौ दिनों का पर्व, माता के विभिन्न रूपों की आराधना करने का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान, डांडिया और गरबा जैसे पारंपरिक नृत्य का आयोजन किया जाता है, जो न केवल धार्मिक भावना को जागृत करता है, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।
नवरात्रि का महत्व:- नवरात्रि का त्योहार देवी दुर्गा की शक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इसे विशेष रूप से पश्चिमी भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर, भक्तगण नौ दिनों तक उपवास रखते हैं, देवी की पूजा करते हैं, और सामूहिक नृत्य का आनंद लेते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिसमें माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल हैं।
डांडिया: एक सांस्कृतिक धरोहर -
डांडिया, एक पारंपरिक गुजराती नृत्य है जो विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है। इसे छोटे-छोटे डंडों के साथ खेला जाता है, जहां लोग एक-दूसरे के साथ ताल मिलाते हैं। यह नृत्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। डांडिया की धुनों पर लोग देवी की आराधना करते हैं, और यह सांस्कृतिक एकता को भी दर्शाता है। डांडिया नृत्य के दौरान गाए जाने वाले गीत मुख्यतः माता की महिमा का गुणगान करते हैं। ये गीत भक्तों को ऊर्जा और उत्साह प्रदान करते हैं, और हर किसी को नृत्य में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं।
माता के भजन:
श्रद्धा और भक्ति का संगम - नवरात्रि के दौरान गाए जाने वाले माता के भजन भक्तों के हृदय में गहरी श्रद्धा और भक्ति की भावना जागृत करते हैं। ये भजन अक्सर देवी के विभिन्न रूपों की विशेषताओं का वर्णन करते हैं। माता के भजनों में भक्त अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं और माता से सहायता की प्रार्थना करते हैं।
कई प्रसिद्ध भजन इस दौरान गाए जाते हैं,
जैसे:
1. "जय माता Di" – यह भजन देवी की जयकारा है, जो भक्तों को एकजुट करता है।
2. "माता रानी की जय"– इस भजन में भक्त माता को नमन करते हैं और उनकी कृपा की कामना करते हैं।
3. "नवरात्रि में माँ का दरबार" – इस भजन में माता के दरबार की महिमा का बखान किया गया है।
इन भजनों की धुनें भक्तों के मन को छू जाती हैं और नवरात्रि के उत्सव का आनंद बढ़ाती हैं।
संगीत और नृत्य का संगम:- नवरात्रि में डांडिया और गरबा नृत्य का आयोजन होता है, जिसमें संगीत और नृत्य का अद्भुत संगम होता है। विभिन्न प्रकार के डांडिया गीतों की धुनें और बोल इस नृत्य को और भी रंगीन बना देते हैं। जैसे-जैसे रात बढ़ती है, भक्त जन उत्साह के साथ नृत्य करते हैं और माता की कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दौरान, लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर एक-दूसरे से मिलते हैं, और यह एक अनोखा अनुभव होता है। यह नृत्य न केवल उत्सव का हिस्सा है, बल्कि यह सामाजिक जुड़ाव और भाईचारे का प्रतीक भी है।
नवरात्रि का समापन :-
नवरात्रि का समापन विजयादशमी (दशहरा) के दिन होता है, जो रावण के दहन के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त माता की पूजा के साथ-साथ अपने जीवन में बुराईयों को समाप्त करने का संकल्प लेते हैं। विजयादशमी का पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में अच्छे और बुरे का संघर्ष हमेशा चलता रहता है, लेकिन अंततः सत्य की जीत होती है।
निष्कर्ष:- नवरात्रि का पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। डांडिया गीत और माता के भजन इस पर्व को और भी खास बनाते हैं। यह हमें न केवल माता की आराधना करने का अवसर प्रदान करते हैं, बल्कि हमें एकजुट होने और अपने परंपराओं को संरक्ष���त करने की प्रेरणा भी देते हैं। इस नवरात्रि, हम सब मिलकर माता के चरणों में श्रद्धा निवेदित करें और अपनी भक्ति के साथ इस उत्सव का आनंद लें। माता का आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे, यही प्रार्थना है।
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देश मेरे मुझे याद रखना
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी देशभक्ति: एक समर्पित नेतृत्व-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर एक विशेष स्थान रखता है। उनकी देशभक्ति, संजीवनी शक्ति और कड़ी मेहनत ने उन्हें न केवल एक प्रभावशाली नेता, बल्कि एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व भी बना दिया है। मोदी के नेतृत्व में भारत ने कई महत्वपूर्ण उन्नति और परिवर्तन देखे हैं, जो उनकी गहरी देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम की निशानी हैं। इस लेख में, हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति को विस्तृत रूप से समझेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे उनके प्रयासों ने भारत को एक नई दिशा दी है।
देशभक्ति का मूल मंत्र- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति उनकी राजनीति का मूल आधार है। उनका जीवन एक साधारण पृष्ठभूमि से शुरू हुआ, लेकिन उनकी सोच और दृष्टिकोण ने उन्हें देश की राजनीति के उच्चतम शिखर तक पहुंचाया। मोदी का यह मानना है कि एक नेता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी अपने देश की सेवा करना और उसके उत्थान में योगदान देना है। उन्होंने हमेशा देश की समस्याओं और चुनौतियों को प्राथमिकता दी है और उनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाए हैं।
स्वतंत्रता संग्राम की यादें- प्रधानमंत्री मोदी की देशभक्ति केवल उनके राजनीतिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है। उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम के योगदान की यादों को भी जीवंत करता है। वे अक्सर स्वतंत्रता सेनानियों और उनके बलिदानों की बात करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मोदी का यह मानना है कि स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की याद को संरक्षित रखना और उनके संघर्ष की महत्वता को समझाना हमारी जिम्मेदारी है।
प्रधानमंत्री मोदी और उनके प्रमुख योजनाएं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान कई योजनाएं और पहलें शुरू की गई हैं जो देशभक्ति के प्रतीक के रूप में देखी जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख योजनाएं निम्नलिखित हैं:
स्वच्छ भारत मिशन: इस योजना के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को स्वच्छ और स्वस्थ बनाने का लक्ष्य रखा। यह केवल एक सफाई अभियान नहीं था, बल्कि एक व्यापक सामाजिक आंदोलन था जो देशवासियों को अपने देश के प्रति जिम्मेदार और जागरूक बनाने का प्रयास था।
मेक इन इंडिया: इस पहल का उद्देश्य भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना है। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि आत्मनिर्भरता और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने से देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
डिजिटल इंडिया: इस योजना के अंतर्गत, मोदी सरकार ने डिजिटल प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया और सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन लाने का प्रयास किया। इसका उद्देश्य देश की प्रशासनिक प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी और सुलभ बनाना था।
जन धन योजना: इस योजना के तहत, प्रधानमंत्री मोदी ने गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों को वित्तीय समावेशन के लाभ प्रदान किए। इससे लाखों भारतीयों को बैंकिंग सेवाओं का लाभ मिला और देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती मिली।
आयुष्मान भारत: इस स्वास्थ्य योजना के तहत, मोदी सरकार ने लाखों गरीब परिवारों को मुफ्त चिकित्सा बीमा की सुविधा प्रदान की। यह योजना स्वास्थ्य देखभाल को हर भारतीय के लिए सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
देशभक्ति के प्रतीक- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति का प्रतीक उनके व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में देखने को मिलता है। वे अक्सर भारतीय सं��्कृति, परंपराओं और मूल्यों की बात करते हैं और इन्हें बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। मोदी ने कई बार देशवासियों को भारतीय संस्कृति के महत्व की याद दिलाई है और इसे संरक्षण करने का आह्वान किया है। उनकी सार्वजनिक भाषणों में भारतीय इतिहास, संस्कृति और गौरव के अंश हमेशा शामिल रहते हैं। वे राष्ट्रीय पर्वों और महापुरुषों के योगदान को सम्मानित करते हैं और उनके प्रयासों को जनमानस में प्रोत्साहित करते हैं। उनका यह दृष्टिकोण एक मजबूत देशभक्ति की भावना को दर्शाता है।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण- प्रधानमंत्री मोदी की देशभक्ति केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देखी जा सकती है। उन्होंने भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने और देश की आर्थिक और सामरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उनके नेतृत्व में भारत ने कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और वैश्विक साझेदारों के साथ महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए। मोदी ने अपने विदेश दौरों में भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रसार किया और भारत की महानता को विश्व स्तर पर प्रस्तुत किया। उनके इन प्रयासों से न केवल भारत की वैश्विक छवि को सकारात्मक दिशा मिली, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की महत्वता भी बढ़ी।
जनता के साथ जुड़ाव- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जनता के साथ सीधा जुड़ाव भी उनकी देशभक्ति ���ी एक महत्वपूर्ण विशेषता है। वे अक्सर जनता की समस्याओं और चिंताओं को सुनते हैं और उनके समाधान के लिए योजनाएं तैयार करते हैं। मोदी ने अपने प्रशासन के दौरान जनता के बीच में जाकर उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश की है और उनका समाधान करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। उनकी यह सक्रियता और जनसेवा की भावना जनता को प्रेरित करती है और देशभक्ति की एक नई भावना को जन्म देती है। मोदी का यह प्रयास है कि हर भारतीय को एक मजबूत और समृद्ध देश का हिस्सा बनने का मौका मिले।
निष्कर्ष- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति उनके जीवन और कार्यों का एक अभिन्न हिस्सा है। उनके नेतृत्व में भारत ने कई महत्वपूर्ण पहल और योजनाओं के माध्यम से देश के विकास और उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। मोदी की देशभक्ति केवल शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके कार्य और उनकी दृष्टि भी इस देशभक्ति को साकार करती है। उनकी योजनाएं, उनकी दृष्टि और उनकी जनसेवा की भावना ने उन्हें एक प्रेरणादायक नेता बना दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति भारत के भविष्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, और उनका नेतृत्व देश को एक नई दिशा और उद्देश्य प्रदान कर रहा है।
देश मेरे मुझे याद रखना - https://youtu.be/e_r9fXZVMvQ
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सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके - 108 बार जाप
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सर्वमंगल मंगल्ये मंत्र: एक अनूठी भक्ति यात्रा:- भारतीय संस्कृति में मंत्रों का विशेष महत्व है। हर मंत्र का विशेष अर्थ और प्रभाव होता है, जो व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक हो सकता है। उनमें से एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली मंत्र है "सर्वमंगल मंगल्ये" मंत्र। इस लेख में, हम इस मंत्र की उत्पत्ति, महत्व, और उपयोग पर विस्तार से चर्चा करेंगे। सर्वमंगल मंगल्ये मंत्र की उत्पत्ति: "सर्वमंगल मंगल्ये" मंत्र हिंदू धर्म के भक्ति साहित्य से जुड़ा हुआ है। यह मंत्र विशेष रूप से देवी भगवती के प्रति समर्पण और भक्तिपूर्ण भावनाओं को प्रकट करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र का संबंध मुख्य रूप से देवी लक्ष्मी से है, जो धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं।
मंत्र का पाठ: सर्वमंगल मंगल्ये मंत्र इस प्रकार है:
सर्वमंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते॥
मंत्र का अर्थ:
* सर्वमंगल मंगल्ये: जो सभी मंगलों की मंगलमयी हैं- *
शिवे: जो शुभ और कल्याणकारी हैं
* सर्वार्थसाधिके: जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं
* शरण्ये: जो आश्रय देने वाली हैं
* त्र्यम्बके: तीन नेत्रों वाली
* गौरी: जो गौरवर्ण वाली हैं
* नारायणि: नारायण की शक्ति
* नमोऽस्तु ते: तुम्हें नमन है इस प्रकार, इस मंत्र का अर्थ होता है कि "सभी मंगलों की मंगलमयी, शुभ और कल्याणकारी देवी, जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं, आश्रय देने वाली, तीन नेत्रों वाली, गौरवर्ण वाली, नारायण की शक्ति, तुम्हें मेरा नमस्कार है।
" मंत्र का महत्व: "सर्वमंगल मंगल्ये" मंत्र की पूजा और जाप का विशेष महत्व है। यह मंत्र भक्तों को शांति, समृद्धि, और सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है। यह मंत्र देवी लक्ष्मी की पूजा का अभिन्न हिस्सा है और इसे विशेष अवसरों पर, जैसे कि लक्ष्मी पूजन, दीपावली, और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों पर पढ़ा जाता है।
1. शांति और सुख: इस मंत्र का जाप करने से मानसिक शांति और आत्मिक संतोष प्राप्त होता है। यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि लाने में मदद करता है।
2. संकटों से मुक्ति: इस मंत्र का नियमित जाप करने से जीवन में आ रही समस्याओं और संकटों से छुटकारा मिलता है। यह व्यक्ति को कष्टों से उबारने और समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता है।
3. सर्वश्रेष्ठता की प्राप्ति: इस मंत्र की भक्ति और जाप से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
मंत्र का जाप कैसे करें:
सर्वमंगल मंगल्ये मंत्र का जाप नियमित रूप से किया जाता है। यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं:
1. सुनिश्चित स्थान: जाप के लिए एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें, जहां आप बिना किसी विघ्न के ध्यान केंद्रित कर सकें।
2. सामग्री: मंत्र जाप के दौरान पूजा की सामग्री जैसे दीपक, फूल, और कपूर का उपयोग करें।
3. समय: सुबह और शाम के समय मंत्र जाप करने की आदत डालें, क्योंकि ये समय विशेष रूप से पूजा और ध्यान के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।
4. संघर्ष से मुक्ति: अपने हृदय को शुद्ध रखें और ईश्वर से सच्चे मन से प्रार्थना करें। मानसिक रूप से शांत और समर्पित रहें।
5. माला का उपयोग: जाप के लिए माला का उपयोग करने से मन को स्थिरता और एकाग्रता मिलती है।
समाप्ति और ध्यान: मंत्र जाप की समाप्ति के बाद, ध्यान और प्रार्थना में समय बिताएं। ईश्वर को धन्यवाद दें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। इस प्रकार, नियमित रूप से मंत्र जाप करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव होता है।
निष्कर्ष: "सर्वमंगल मंगल्ये" मंत्र एक शक्तिशाली साधना है जो व्यक्ति के जीवन को मंगलमयी और समृद्ध बना सकती है। इसकी प्रभावशाली शक्ति और धार्मिक महत्व इसे हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण प्रार्थनाओं में से एक बनाता है। इस मंत्र के जाप और पूजा से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में भी सकारात्मक बदलाव आते हैं। अंततः, इस मंत्र की नियमित साधना और भक्ति से आप अपने जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का अनुभव कर सकते हैं।
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कुबेर अष्टलक्ष्मी धनप्राप्ति मंत्र
कुबेर अष्ट लक्ष्मी मंत्र: समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए:-
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कुबेर अष्ट लक्ष्मी मंत्र हिन्दू धर्म में समृद्धि, ऐश्वर्य और धन के देवता कुबेर से संबंधित एक महत्वपूर्ण मंत्र है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति की वित्तीय स्थिति में सुधार होता है और जीवन में सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है। इस लेख में, हम कुबेर अष्ट लक्ष्मी मंत्र के महत्व, इसके लाभ और इसे सही तरीके से जपने की विधि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
कुबेर अष्ट लक्ष्मी मंत्र का महत्व:- कुबेर, धन और संपत्ति के देवता हैं। उन्हें ‘धन के देवता’ के रूप में पूजा जाता है और उनके आशीर्वाद से जीवन में वित्तीय स्थिरता और समृद्धि आती है। कुबेर के साथ अष्ट लक्ष्मी का संबंध बहुत महत्वपूर्ण ��ै। लक्ष्मी देवी के आठ रूप होते हैं, जिन्हें अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है।
ये आठ रूप हैं:
1. धन लक्ष्मी - धन और समृद्धि की देवी
2. वीर लक्ष्मी - विजय और सामर्थ्य की देवी
3. संतान लक्ष्मी - संतान सुख की देवी
4. आयुष्मान लक्ष्मी - दीर्घायु और स्वास्थ्य की देवी
5. सर्वभौम लक्ष्मी - समस्त विश्व की माता
6. राज लक्ष्मी - राजसी सुख और वैभव की देवी
7. जल लक्ष्मी - जल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की देवी
8. श्री लक्ष्मी - सामान्य लक्ष्मी, सौभाग्य और संपत्ति की देवी इन आठ रूपों की पूजा से व्यक्ति को समृद्धि, ऐश्वर्य, सुख-शांति और सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
कुबेर अष्ट लक्ष्मी मंत्र:- कुबेर अष्ट लक्ष्मी मंत्र के रूप में, यह मंत्र अष्ट लक्ष्मी के सभी रूपों को समर्पित है और कुबेर की पूजा का हिस्सा होता है।
यह मंत्र है:
"ॐ श्री कुबेराय नमः,
ॐ धन लक्ष्मी नमः,
ॐ वीर लक्ष्मी नमः,
ॐ संतान लक्ष्मी नमः,
ॐ आयुष्मान लक्ष्मी नमः,
ॐ सर्वभौम लक्ष्मी नमः,
ॐ राज लक्ष्मी नमः,
ॐ जल लक्ष्मी नमः,
ॐ श्री लक्ष्मी नमः।"
इस मंत्र का जाप करते समय, व्यक्ति को विशेष ध्यान और श्रद्धा के साथ प्रत्येक लक्ष्मी के नाम का उच्चारण करना चाहिए।
कुबेर अष्ट लक्ष्मी मंत्र के लाभ:-
1. धन और समृद्धि की प्राप्ति: यह मंत्र धन, संपत्ति और समृद्धि को आकर्षित करने में मदद करता है। यदि किसी को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, तो इस मंत्र का नियमित जाप लाभकारी हो सकता है।
2. वित्तीय स्थिरता: यह मंत्र वित्तीय स्थिरता और सुरक्षित भविष्य का आश्वासन प्रदान करता है। यह व्यक्ति को अपने आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है।
3. सुख और शांति: मंत्र का जाप मानसिक शांति और संतोष को बढ़ावा देता है। यह व्यक्ति की आंतरिक स्थिति को सुधारने में भी सहायक होता है।
4. स्वास्थ्य और दीर्घायु: आयुष्मान लक्ष्मी के गुणों के कारण, यह मंत्र स्वास्थ्य और दीर्घायु में भी सुधार कर सकता है।
5. परिवार में सुख-शांति: संतान लक्ष्मी की कृपा से परिवार में सुख और शांति बनी रहती है। यह मंत्र परिवारिक रिश्तों को मजबूत बनाने में भी सहायक है।
कुबेर अष्ट लक्ष्मी मंत्र का जाप कैसे करें?
1. सही समय: मंत्र का जाप सूर्योदय के समय या रात्रि को शांति से करें। विशेषत: शुक्रवार और लक्ष्मी पूजा के दिन इस मंत्र का जाप अधिक फलदायी माना जाता है।
2. स्वच्छता: जाप के समय स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर और एक शांत स्थान पर बैठकर मंत्र का जाप करें।
3. माला का उपयोग: मंत्र का जाप जाप माला (108 दानों वाली माला) के साथ करें। प्रत्येक दाने पर एक बार मंत्र का जाप करें और पूरी माला पूरी करें।
4. ध्यान और श्रद्धा: मंत्र का जाप करते समय कुबेर और अष्ट लक्ष्मी के ध्यान में रहें। अपने मन में विश्वास और श्रद्धा बनाए रखें।
5. सच्ची निष्ठा: जाप करते समय निष्ठा और समर्पण का भाव रखें। मन को एकाग्र करके, मंत्र के अर्थ और प्रभाव को समझते हुए जाप करें।
निष्कर्ष:-
कुबेर अष्ट लक्ष्मी मंत्र, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए एक प्रभावी साधन है। इसके नियमित जाप से व्यक्ति की वित्तीय स्थिति में सुधार होता है और जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव होता है। सही तरीके से इस मंत्र का जाप करने से, व्यक्ति को जीवन की सभी सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं और आर्थिक समस्याएँ दूर होती हैं। यह मंत्र न केवल धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए है, बल्कि यह मानसिक शांति और परिवारिक सुख के लिए भी लाभकारी होता है। इसलिए, इसे नियमित रूप से जपकर अपनी जीवन की परिस्थितियों में सुधार लाया जा सकता है।
इस मंत्र का जाप आप इस वीडियो के माध्यम से कर सकते हैं : https://www.youtube.com/watch?v=Zx4MKU-cZZo&t=271s
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ॐ गं गणपतये नमो नमः - 108 बार सुनें गणेश मंत्र:
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गणेश मंत्र: भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव:-
गणेश, जिसे हम विनायक, गणपति, या बुद्धि के देवता के रूप में भी जानते हैं, भारतीय पंथों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भगवान गणेश का सम्मान न केवल उनकी उपस्थिति के लिए किया जाता है, बल्कि उनके गुण, जैसे कि बुद्धिमत्ता, समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक के रूप में भी किया जाता है। गणेश मंत्र, जिसे हम गणेश के विभिन्न नामों और रूपों से संबोधित करते हैं, भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न अंग हैं।
गणेश मंत्र की महत्ता:- गणेश मंत्र भारतीय धार्मिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मंत्रों के जाप से व्यक्ति का मन शांत होता है, आत्मबल और आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है। गणेश मंत्रों का जाप न केवल धार्मिक अनुष्ठानों में, बल्कि व्यक्तिगत जीवन की समस्याओं को दूर करने के लिए भी किया जाता है। ये मंत्र विशेष रूप से मन की शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए उपयोग किए जाते हैं।
प्रमुख गणेश मंत्र:-
1. गणेश गायत्री मंत्र: "ॐ गणेशाय विद्महे, वक्रतुंडाय धीमहि, तन्नो दंति प्रचोदयात्।"
इस मंत्र में भगवान गणेश की विशेषताओं की पूजा की जाती है। यह मंत्र शक्ति, बुद्धि, और समृद्धि का प्रतीक है। इसे नियमित रूप से जाप करने से मानसिक स्थिति में स्थिरता और दृढ़ता आती है।
2. गणेश अस्तक्शर मंत्र: "ॐ गण गणपतये नमः।"
यह मंत्र गणेश जी की संपूर्ण पूजा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह संक्षिप्त मंत्र पवित्रता और धार्मिक अनुष्ठान में खास स्थान रखता है। इस मंत्र के जाप से कार्यों में बाधाएं दूर होती हैं और सफलता प्राप्त होती है।
3. गणेश पंचाक्षर मंत्र: "ॐ विघ्नेश्वराय नमः।"
यह मंत्र भगवान गणेश के विनाशक और विघ्नहर्ता स्वरूप की पूजा करता है। इसे विशेष रूप से तब जाप किया जाता है जब जीवन में बाधाओं और समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
4. गणेश श्रीसुक्तम: "ॐ शुक्लांबरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्। प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।"
यह मंत्र गणेश जी के सौम्य और पवित्र स्वरूप की पूजा करता है। इसका जाप विशेष रूप से तब किया जाता है जब किसी बड़े कार्य या आयोजन की शुरुआत हो रही हो। गणेश मंत्र का जाप कैसे करें गणेश मंत्र का जाप करने के लिए कुछ सरल विधियाँ हैं, जिनका पालन करके आप अधिक प्रभावी परिणाम प्राप्त कर सकते हैं:
सही समय और स्थान:
1.गणेश मंत्र का जाप सुबह-सुबह सूर��� उगने से पहले या शाम को सूरज डूबने के बाद किया जाता है। शांत और पवित्र स्थान पर जाप करना अधिक प्रभावी होता है।
2. सच्चे मन से जाप: मंत्र का जाप करते समय ध्यान लगाना और मन को एकाग्र करना आवश्यक होता है। सच्चे मन से और श्रद्धा के साथ जाप करने से मानसिक शांति और सुख-समृद्धि मिलती है।
3. माला का उपयोग: मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष या चंदन की माला का उपयोग किया जा सकता है। एक माला में 108 बीड्स होते हैं, जो जाप की प्रक्रिया को सुगम और संगठित बनाते हैं।
4. शुद्धता और स्वच्छता: जाप के समय शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। स्वच्छ वस्त्र पहनना और शुद्ध विचारों के साथ मंत्र का जाप करना चाहिए।
गणेश मंत्र का विज्ञान:- गणेश मंत्र का जाप केवल धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है। मंत्र जाप से होने वाली ध्वनि तरंगें और मानसिक स्थिति में सुधार को लेकर कई वैज्ञानिक शोध हुए हैं। मंत्रों का उच्चारण करने से मानसिक तनाव कम होता है और ऊर्जा का संचार बढ़ता है। इससे शरीर और मन को ताजगी और स्फूर्ति मिलती है।
गणेश मंत्र और समृद्धि:- गणेश मंत्र का जाप विशेष रूप से समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है। भगवान गणेश को धन और ऐश्वर्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। आर्थिक समृद्धि के लिए गणेश मंत्र का नियमित जाप करने से वित्तीय समस्याओं का समाधान होता है और व्यवसायिक सफलता की संभावना बढ़ती है।
निष्कर्ष:- गणेश मंत्र भारतीय ध��र्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में एक अमूल्य धरोहर हैं। ये मंत्र केवल धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि जीवन की विभिन्न समस्याओं और चिंताओं से छुटकारा पाने के लिए एक आध्यात्मिक साधन भी हैं। गणेश मंत्रों का जाप मानसिक शांति, समृद्धि, और बुद्धि की प्राप्ति के लिए एक प्रभावी उपाय है। इन मंत्रों के प्रति श्रद्धा और भक्ति से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं। इस प्रकार, गणेश मंत्र न केवल धार्मिक साधना का हिस्सा हैं, बल्कि जीवन की विविध समस्याओं और चुनौतियों से निपटने का एक शक्तिशाली साधन भी हैं। भगवान गणेश की उपासना से प्राप्त शांति और समृद्धि का अनुभव हर व्यक्ति के जीवन को सुंदर और सुखमय बना सकता है।
"गणेश जी को खुश करने के लिए करें इस मंत्र का जाप" - https://youtu.be/E6v5nRcfyUA
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बनेंगे सभी बिगड़े काम 108 बार सुनिए गायत्री मंत्र
108 गायत्री मंत्र: आध्यात्मिक शक्ति और इसका महत्व गायत्री मंत्र भारतीय धार्मिक परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मंत्र है। यह मंत्र वेदों से उत्पन्न हुआ है और इसे विश्व की एक श्रेष्ठ प्रार्थना माना जाता है। गायत्री मंत्र का जप और पाठ करने से आध्यात्मिक शक्ति, शांति, और मानसिक स्फूर्ति मिलती है। खासकर, 108 गायत्री मंत्र का जप एक विशेष आध्यात्मिक साधना का हिस्सा है। इस लेख में हम 108 गायत्री मंत्र के महत्व, इसके लाभ और इसके जाप की विधि पर चर्चा करेंगे। आप मंत्र को यहाँ से सुन सकते है - https://www.youtube.com/watch?v=uhInXLYZUCI&t=16s
गायत्री मंत्र की उत्पत्ति और महत्व गायत्री मंत्र का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। यह मंत्र सूर्य देवता को समर्पित होता है और इसे 'गायत्री' नाम से जाना जाता है। गायत्री मंत्र है: https://www.youtube.com/watch?v=uhInXLYZUCI&t=16s
"ॐ भूर् भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्"
इस मंत्र का अर्थ है: "हम उस दिव्य ब्रह्म को ध्यान करते हैं, जो समस्त संसार के उत्पत्ति, पालन और संहार का स्रोत है। वह हमें ज्ञान और तत्त्व की प्राप्ति प्रदान करे।" गायत्री मंत्र को विशेष रूप से एक आदर्श प्रार्थना के रूप में देखा जाता है, जो मानसिक शांति, धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। 108 गायत्री मंत्र का महत्व हिंदू परंपरा में 108 एक पवित्र संख्या मानी जाती है। यह संख्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश (त्रिदेव) के त्रैतीय गुणों को दर्शाती है। 108 गायत्री मंत्र का जप इस संख्या के महत्व को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करने से विभिन्न आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं,
जैसे: https://www.youtube.com/watch?v=uhInXLYZUCI&t=16s
1. आध्यात्मिक जागरूकता: 108 गायत्री मंत्र का जाप करने से व्यक्ति की आत्मा और चेतना को जागरूक किया जाता है। यह साधक को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
2. मानसिक शांति: इस मंत्र के नियमित जप से मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है। यह ध्यान और ध्यान केंद्रित करने में सहायक होता है।
3. पापों से मुक्ति: 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करने से जीवन में आए पाप और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह व्यक्ति के कर्मों को शुद्ध करता है और उसे एक नई दिशा प्रदान करता है।
4. स्वास्थ्य लाभ: मंत्र जाप के दौरान श्वास-प्रश्वास की नियमितता से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है।
5. 108 गायत्री मंत्र जाप की विधि - https://www.youtube.com/watch?v=uhInXLYZUCI&t=16s
1. साधना की तैयारी: सबसे पहले, एक स्वच्छ और शांत स्थान पर बैठें। साधना के लिए एक आसन पर बैठना उचित होता है। आसन के रूप में आसन, साधारण चटाई या रुई का बिछौना प्रयोग कर सकते हैं।
2. पवित्रता: अपने हाथों और शरीर को साफ करें। ध्यान रखें कि साधना के समय शरीर और मन दोनों शुद्ध हों।
3. गायत्री मंत्र की संकल्पना: सबसे पहले गायत्री मंत्र का ध्यान करें और संकल्प लें कि आप 108 बार इस मंत्र का जाप करेंगे।
4. माला का उपयोग: 108 दानों वाली माला (रूद्राक्ष, तुलसी, या किसी अन्य शुभ माला) का उपयोग करें। एक दाना एक जाप को दर्शाता है।
5. मंत्र जाप: प्रत्येक दाने पर गायत्री मंत्र का जाप करें। मंत्र को उच्च स्वर में, या मन ही मन जाप किया जा सकता है।
6. अर्चना और समाप्ति: जाप के बाद, भगवान की पूजा करें और मानसिक शांति की प्रार्थना करें। अपनी साधना को पूर्ण मानें और धन्यवाद अर्पित करें। निष्कर्ष 108 गायत्री मंत्र का जाप एक शक्ति और शांति का स्रोत है। यह साधना न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाती है। इस प्रकार की साधना से व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत होता है और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। गायत्री मंत्र के इस विशेष जाप के माध्यम से, हम अपने जीवन को एक नई दिशा प्रदान कर सकते हैं और आध्यात्मिक शांति की ओर बढ़ सकते हैं।
बनेंगे सभी बिगड़े काम 108 बार सुनिए गायत्री मंत्र - https://www.youtube.com/watch?v=uhInXLYZUCI&t=16s
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तीज का त्योहार
तीज महोत्सव: भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण पर्व परिचय तीज महोत्सव भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो मुख्यतः महिलाओं के लिए समर्पित है। यह त्योहार हर साल सावन मास की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है और इसे खासतौर पर हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भारतीय समाज में न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। तीज का पर्व पतियों की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख-शांति की कामना के साथ मनाया जाता है। आइए, इस लेख में तीज महोत्सव की महत्ता, इसकी परंपराएँ, और इसके आयोजन की विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
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तीज महोत्सव की धार्मिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तीज महोत्सव का धार्मिक महत्व भारतीय हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा है। यह पर्व देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन देवी पार्वती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उन्हें अपना पति बनाया। इस तरह, तीज महोत्सव का एक महत्वपूर्ण पहलू पत्नी के रूप में पति की लंबी उम्र की कामना करना है। इसके अलावा, यह पर्व समृद्धि, खुशहाली और पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती का प्रतीक भी है। तीज की तैयारी और आयोजन तीज महोत्सव की तैयारी एक सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाती है। महिलाएँ इस अवसर को खास बनाने के लिए अपने घरों को सजाने, विशेष पकवान तैयार करने और अपनी सुंदरता को बढ़ाने के लिए तरह-तरह की तैयारियाँ करती हैं। https://www.youtube.com/watch?v=SpMxs6Tb-0k
1. सज्जा और तैयारी: महिलाएँ इस दिन को विशेष बनाने के लिए अपने घरों को हरे-भरे पौधों, रंग-बिरंगे फूलों, और दीपों से सजाती हैं। घर के आंगन और आचार्य को विशेष रूप से सजाया जाता है। गांवों में विशेष रूप से झूले और रंग-बिरंगे झंडे भी लगाए जाते हैं। 2. व्रत और पूजा: तीज के दिन महिलाएँ उपवासी रहती हैं और पूरे दिन उपवासी रहकर देवी पार्वती की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान वे विशेष मंत्रों और भजनों का उच्चारण करती हैं। महिलाएँ व्रत के नियमों का पालन करते हुए दिनभर केवल फल-फूल का सेवन करती हैं। इस दिन विशेष पूजा के लिए कुमकुम, चंदन, फूल, और मिठाइयाँ तैयार की जाती हैं। 3. आहार और पकवान: तीज के पर्व पर विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें खासतौर पर दही वड़ा, पकोड़ी, खीर, और मिठाई शामिल होती हैं। इन पकवानों का स्वाद और उनका रंग-रूप इस त्योहार की सुंदरता को बढ़ाता है। महिलाएँ इन्हें एक-दूसरे के साथ बाँटती हैं और इस अवसर को खुशियों से भर देती हैं। तीज महोत्सव की सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ https://www.youtube.com/watch?v=SpMxs6Tb-0k
1. झूला झूलना: तीज के दिन गांवों और शहरों में महिलाएँ विशेष झूलों का आनंद लेती हैं। ये झूले आमतौर पर रंग-बिरंगे कपड़े और फूलों से सजाए जाते हैं। झूला झूलने का आयोजन न केवल मनोरंजन के लिए होता है, बल्कि यह सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है। 2. गीत और नृत्य: तीज महोत्सव के दौरान महिलाएँ पारंपरिक गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। ये गीत खासतौर पर इस त्योहार से जुड़े हुए होते हैं और इनमें पति-पत्नी के रिश्ते, परिवार की खुशहाली, और देवी पार्वती की पूजा का वर्णन होता है। नृत्य और गीत इस पर्व के उल्लास को और बढ़ाते हैं। 3. विवाह और पारिवारिक संबंध: तीज का पर्व परिवारिक एकता और रिश्तों की मजबूती को प्रोत्साहित करता है। इस दिन महिलाएँ अपने परिवार के साथ समय बिताती हैं, एक-दूसरे के साथ सहयोग करती हैं और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करती हैं। यह अवसर परिवार की खुशहाली और एकता को संजोने का भी है। तीज के आधुनिक स्वरूप और बदलाव समय के साथ-साथ तीज महोत्सव का स्वरूप भी बदल गया है। आधुनिक जीवनशैली और व्यस्त दिनचर्या के कारण, कई लोग इस पर्व को पारंपरिक तरीके से नहीं मना पाते। हालांकि, इस पर्व की मुख्य भावनाएँ और धार्मिक महत्व आज भी समान हैं। शहरों में तीज के आयोजन में कई बदलाव हुए हैं, जैसे कि पारंपरिक झूलों की जगह रंग-बिरंगे कृत्रिम झूले और आधुनिक सजावट का प्रचलन हुआ है। इसके बावजूद, तीज की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता आज भी वैसी की वैसी ही बनी हुई है। https://www.youtube.com/watch?v=SpMxs6Tb-0k
निष्कर्ष तीज महोत्सव भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो केवल धार्मिक मान्यता के साथ नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व पतियों की लंबी उम्र, वैवाहिक संबंधों की मजबूती, और परिवार की खुशहाली की कामना के साथ मनाया जाता है। इसकी परंपराएँ, पूजा विधियाँ, और उत्सव की विशेषताएँ इसे एक अद्वितीय और समृद्ध पर्व बनाती हैं। तीज का पर्व भारतीय समाज में एकता, भाईचारे और खुशियों को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो सदियों से हमारे सांस्कृतिक ताने-बाने का हिस्सा रहा है।
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