संत रामपाल जी महाराज ने समाज में महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संगों में बताते हैं कि बेटा-बेटी में कोई अंतर नहीं है। अंतर हमारी सोच के कारण है।
राधे-राधे कोई मोक्ष मंत्र नहीं है। गीता जी के 700 श्लोकों में कहीं भी राधे-राधे मंत्र नहीं लिखा। बल्कि गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में सांकेतिक मंत्र "ॐ-तत्-सत्" का संकेत किया गया है जोकि जन्म-मृत्यु से मुक्ति पाने अर्थात् मोक्ष का मंत्र है। जिसे तत्वदर्शी संत ही बता सकता है।
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सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।
सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा।
NDTV, Republic Bharat, Hindustan Times जैसे अन्य जाने माने न्यूज़ चैनलों ने संत रामपाल जी को फ़र्ज़ी बाबा और स्वयंभू बाबा कहकर संबोधित किया है जोकि निहायती गलत है। इन न्यूज़ चैनलों को इसके लिए माफी माँगनी चाहिए ।
वेद में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मर चुके हुए साधक को भी जीवित करके 100 वर्ष तक जीने की शक्ति भी दे सकता है।संत रामपाल जी महाराज ऐसी ही सतभक्ति बताते हैं।
लंका फतह करने में बाधा बन रहे समुद्र के आगे असहाय हुए दशरथ पुत्र राम से भिन्न वह आदिराम/आदिपुरुष परमात्मा कौन है, जो त्रेतायुग में मुनींद्र ऋषि के रूप में उपस्थित थे एवं जिनकी कृपा से नल नील के हाथों समुद्र पर रखे गए पत्थर तैर पाए थे।
आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज को सन् 1727 में 10 वर्ष की आयु में गांव छुड़ानी के नला नामक स्थान पर कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। तत्वज्ञान से परिचित कराकर सतलोक दर्शन करवाकर साक्षी बनाया।