सतगुरू की महिमा करने के लिए यदि सातों समुद्रों की स्याही करूँ और कलम बनाऊँ सर्व वृक्षों की तथा पूरी पृथ्वी जितना कागज बना लूं तो भी सतगुरु की महिमा नहीं लिखी जा सकती।
द्वापरयुग में परमेश्वर कबीर जी करुणामय नाम से प्रकट हुए थे। उस समय राजा चंद्रविजय और उनकी पत्नी रानी इन्द्रमती को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी सतलोक से आकर मिले थे।}
जैन धर्म में व्रत, उपवास मुख्य तौर किया जाता है। जबकि गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत करने के लिए मना किया गया है। वहीं विचार करें परमात्मा हम सभी का पिता है तो क्या एक पिता अपने बच्चों को भूखा देख खुश हो सकता है।
इसलिए मोक्ष दायक भक्ति विधि जानने के लिए पढ़िये 'हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता वेद पुराण'
कबीर साहेब जी कहते हैं कि हमारे ऊपर सद्गुरु की महान कृपा हुई कि उन्होंने हमें सत्य ज्ञान का उपदेश दिया और हमने उसको हृदय से ग्रहण कर लिया। पहले हम कांच के समान असत्य को ही धारण किए हुए थे, परन्तु अब सत्य के कारण स्वर्ण के समान हो गए हैं।
माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिये उनके मूल मंत्र का जाप करना अनिवार्य होता है जिसकी जानकारी इस धरती पर पूर्ण संत प्रदान करता है। पूर्ण संत यानी तत्वदर्शी संत जो भक्ति विधि और मर्यादाएं बताता है ।
माता दुर्गा को खुश करने के लिए माता का प्रत्येक भक्त नवरात्रि व्रत रखता है। लेकिन क्या भूखे बच्चों को देखकर कभी मां खुश हो सकती है? गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में प्रमाण है कि व्रत नहीं करना चाहिए।
जिस समय वह निर्धारित समय आएगा। उस समय स्त्री-पुरूष उच्च विचारों तथा शुद्ध आचरण के होकर कपट, व्यर्थ की चतुराई त्यागकर मेरी (कबीर जी की) शरण ग्रहण करेंगे।
श्रीमद देवी भागवत पुराण के स्कंद 7, पृष्ठ 562 में देवी द्वारा हिमालय राजा को ज्ञान उपदेश में दुर्गा जी ने स्वयं किसी और भगवान की पूजा करने को कहा है। जानिए कौन है वह परमात्मा ?
510 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी 18 लाख लोगों के लिए भोजन भंडारा सतलोक से लाये तथा प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक मोहर दी। इसी को "दिव्य धर्म यज्ञ दिवस" के रूप में मनाया जा रहा है।