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rajmishra4656 · 2 years
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rajmishra4656 · 2 years
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Best Yoga and Meditation centre in Ranchi
Cureness offers wellness programs in Ranchi for all age group for all types of mental and physical problems. Our therapy is designed in such a way.
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rajmishra4656 · 2 years
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Wellness Programs in Ranchi
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rajmishra4656 · 2 years
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दो मिनट ॐ का जाप बदल देगा आपकी पूरी जिंदगी
ॐ ऐसा चमत्कारिक शब्द है जो कुछ ही दिनों में आपकी तमाम परेशानियों को खत्म करके आपके पूरे जीवन को बदलकर रख सकता है. लेकिन इसके जाप का लाभ लेने के लिए नियमों को जानना जरूरी है.
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rajmishra4656 · 2 years
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Ayurvedic Treatment of Sciatica
The most common disorder which affects the movement particularly in the most productive period of life is low back pain, out of which 40% of patients suffers from severe pain which comes under the umbrella of Sciatica-syndrome.
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rajmishra4656 · 2 years
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Cureness
Best Wellness Center in Ranchi | Best Neurotherapy in Ranchi
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rajmishra4656 · 2 years
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आयुर्वेद (Ayurveda)
आयुर्वेद की मूल अवधारणा
आयुर्वेद भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रणाली भारत में 5000 साल पहले उत्पन्न हुई थी। शब्द आयुर्वेद दो संस्कृत शब्दों ‘आयुष’ जिसका अर्थ जीवन है तथा ‘वेद’ जिसका अर्थ 'विज्ञान' है, से मिलकर बना है’ अतः इसका शाब्दिक अर्थ है 'जीवन का विज्ञान'। अन्य औषधीय प्रणालियों के विपरीत, आयुर्वेद रोगों के उपचार के बजाय स्वस्थ जीवनशैली पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। आयुर्वेद की मुख्य अवधारणा यह है कि वह उपचारित होने की प्रक्रिया को व्यक्तिगत बनाता है।
आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर चार मूल तत्वों से निर्मित है- दोष, धातु, मल और अग्नि। आयुर्वेद में शरीर की इन बुनियादी बातों का अत्यधिक महत्व है। इन्हें ‘मूल सिद्धांत’ या आयुर्वेदिक उपचार के बुनियादी सिद्धांत’ कहा जाता है।
दोष
दोषों के तीन महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं वात, पित्त और कफ, जो एक साथ अपचयी और उपचय चयापचय को विनियमित और नियंत्रित करते हैं। इन तीन दोषों का मुख्य कार्य है पूरे शरीर में पचे हुए खाद्य पदार्थों के प्रतिफल को ले जाना, जो शरीर के ऊतकों के निर्माण में मदद करता है। इन दोषों में कोई भी खराबी बीमारी का कारण बनती है।
धातु
जो शरीर को सम्बल देता है, उसके रूप में धातु को परिभाषित कर सकते हैं। शरीर में सात ऊतक प्रणालियां होती हैं। वे हैं रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा तथा शुक्र जो क्रमशः प्लाज्मा, रक्त, वसा ऊतक, अस्थि, अस्थि मज्जा और वीर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। धातुएं शरीर को केवल बुनियादी पोषण प्रदान करते हैं। और यह मस्तिष्क के विकास और संरचना में मदद करती है।
मल
मल का अर्थ है- अपशिष्ट उत्पाद या गंदगी। यह शरीर की तिकड़ी यानी दोषों और धातु में तीसरा है। मल के तीन मुख्य प्रकार हैं, जैसे मल, मूत्र और पसीना। मल मुख्य रूप से शरीर के अपशिष्ट उत्पाद हैं इसलिए व्यक्ति का उचित स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए उनका शरीर से उचित उत्सर्जन आवश्यक है। मल के दो मुख्य पहलू हैं अर्थात मल एवं कित्त। मल शरीर के अपशिष्ट उत्पादों के बारे में है जबकि कित्त धातुओं के अपशिष्ट उत्पादों के बारे में सब कुछ है।
अग्नि
शरीर की चयापचय और पाचन गतिविधि के सभी प्रकार शरीर की जैविक आग की मदद से होती हैं जिसे अग्नि कहा जाता है। अग्नि को आहार नली, यकृत तथा ऊतक कोशिकाओं में मौजूद एंजाइम के रूप में कहा जा सकता है।
शारीरिक संरचना
आयुर्वेद में जीवन की कल्पना शरीर, इंद्रियों, मन और आत्मा के संघ के रूप में है। जीवित व्यक्ति तीन देहद्रव (वात, पित्त और कफ), सात बुनियादी ऊतकों (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) और शरीर के अपशिष्ट उत्पादों जैसे मल, मूत्र, और पसीने का एक समूह है। इस प्रकार कुल शारीरिक सांचे में देहद्रव, ऊतक और शरीर के अपशिष्ट उत्पाद शामिल हैं। इस शारीरिक सांचे और उसके घटकों की वृद्धि और क्षय भोजन के इर्द-गिर्द घूमती है जो देहद्रव, ऊतकों, और अपशिष्ट में संसाधित किया जाता है। भोजन अन्दर लेने, उसके पाचन, अवशोषण, आत्मसात करने तथा चयापचय का स्वास्थ्य और रोग में एक परस्पर क्रिया होती है जो मनोवैज्ञानिक तंत्र तथा जैव आग (अग्नि) से काफी हद तक प्रभावित होती हैं।
पंचमहाभूत
आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर सहित ब्रह्मांड में सभी वस्तुएं पांच मूल तत्वों (पंचमहाभूतों) अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और निर्वात (आकाश) से बने हैं। शारीरिक सांचे व उसके हिस्सों की आवश्यकताओं तथा विभिन्न संरचनाओं व कार्यों के लिए अलग-अलग अनुपात में इन तत्वों के एक संतुलित संघनन की जरूरत होती है। शारीरिक सांचे की वृद्धि और विकास उसके पोषण यानी भोजन पर निर्भर करते हैं। बदले में भोजन उपर्युक्त पांच तत्वों से बना होता है, जो जैव अग्नि की कार्रवाई के बाद शरीर में समान तत्वों को स्थानापन्न व पोषित करते हैं। शरीर के ऊतक संरचनात्मक होते हैं जबकि देहद्रव शारीरिक अस्तित्व हैं जो पंचमहाभूतों के विभिन्न क्रम परिवर्तन तथा संयोजन से व्युत्पन्न होते हैं।
स्वास्थ्य और रोग
स्वास्थ्य या रोग शरीर के सांचे के विभिन्न घटकों में परस्पर संतुलन के साथ स्वयं के संतुलित या असंतुलित अवस्था होने या न होने पर निर्भर करता है। आंतरिक और बाह्य कारक दोनों प्राकृतिक संतुलन को बिगाडकर रोग को जन्म दे सकते हैं। संतुलन की यह हानि अविवेकी आहार, अवांछनीय आदतों और स्वस्थ रहने के नियमों का पालन न करने से हो सकती है। मौसमी असामान्यताएं, अनुचित व्यायाम या इंद्रियों के गलत अनुप्रयोग तथा शरीर और मन की असंगत कार्यप्रणाली के परिणामस्वरूप भी मौजूदा सामान्य संतुलन में अशांति पैदा हों सकती है। उपचार में शामिल हैं आहार विनियमन, जीवन की दिनचर्या और व्यवहार में सुधार, दवाओं का प्रयोग तथा पंचकर्म और रसायन चिकित्सा अपनाकर शरीर-मन का संतुलन बहाल करना।
निदान
आयुर्वेद में निदान हमेशा रोगी में समग्र रूप से किया जाता है। चिकित्सक रोगी की आंतरिक शारीरिक विशेषताओं और मानसिक स्वभाव को सावधानी से नोट करता है। वह अन्य कारकों, जैसे प्रभावित शारीरिक ऊतक, देहद्रव, जिस स्थान पर रोग स्थित है, रोगी का प्रतिरोध और जीवन शक्ति, उसकी दैनिक दिनचर्या, आहार की आदतों, नैदानिक स्थितियों की गंभीरता, पाचन की स्थिति और उसकी व्यक्तिगत, सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिति के विवरण का भी अध्ययन करता है। निदान में निम्नलिखित परीक्षण भी शामिल हैं:
सामान्य शारीरिक परीक्षण
- नाड़ी परीक्षण
- मूत्र परीक्षण
- मल परीक्षण
- जीभ और आंखों का परीक्षण
- स्पर्श और श्रवण कार्यों सहित त्वचा और कान त्वचा का परीक्षण
उपचार
बुनियादी चिकित्सकीय दृष्टिकोण है, कि सही इलाज एकमात्र वही होता है जो स्वास्थ्य प्रदान करता है, और जो व्यक्ति हमें स्वस्थ बनाता है केवल वही सबसे अच्छा चिकित्सक है। यह आयुर्वेद के प्रमुख उद्देश्यों का सारांश दर्शाता है अर्थात स्वास्थ्य का रखरखाव और उसे बढ़ावा देना, रोग का बचाव और बीमारी का इलाज।
रोग के उपचार में शामिल हैं पंचकर्म प्रक्रियाओं द्वारा शारीरिक सांचे या उसके घटकों में से किसी के भी असंतुलन के कारकों से बचना और शारीरिक संतुलन बहाल करने तथा भविष्य में रोग की पुनरावृत्ति को कम करने के लिए शरीर तंत्र को मजबूत बनाने हेतु दवाओं, उपयुक्त आहार, गतिविधि का उपयोग करना।
आम तौर पर इलाज के उपायों में शामिल होते हैं दवाएं, विशिष्ट आहार और गतिविधियों की निर्धारित दिनचर्या। इन तीन उपायों का प्रयोग दो तरीकों से किया जाता है। उपचार के एक दृष्टिकोण में तीन उपाय रोग के मूल कारकों और रोग की विभिन्न अभिव्यक्तियों का प्रतिकार करते हैं। दूसरे दृष्टिकोण में दवा, आहार, और गतिविधि के यही तीन उपाय रोग के मूल कारकों तथा रोग प्रक्रिया के समान प्रभाव डालने पर लक्षित होते हैं। चिकित्सकीय दृष्टिकोण के इन दो प्रकारों को क्रमशः विपरीत व विपरीतार्थकारी उपचार के रूप में जाना जाता है।
उपचार के सफल संचालन के लिए चार चीजें आवश्यक हैं। ये हैं:
- चिकित्सक
- दवाई
- नर्सिंग कार्मिक
- रोगी
महत्व के क्रम में चिकित्सक पहले आता है। उसके पास तकनीकी कौशल, वैज्ञानिक ज्ञान, पवित्रता और मानव के बारे में समझ होनी चाहिए। चिकित्सक को अपने ज्ञान का उपयोग विनम्रता, बुद्धिमत्ता के साथ और मानवता की सेवा में करना चाहिए। महत्व के क्रम में आगे आते हैं भोजन और दवाएं। ये उच्च गुणवत्ता वाले होने चाहिए, जिनका विस्तृत अनुप्रयोग हो तथा अनुमोदित प्रक्रियाओं के अनुसार उगाई व प्रसंस्कृत किया जाना चाहिए और पर्याप्त रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। हर सफल उपचार के तीसरे घटक के रूप में नर्सिंग कर्मियों की भूमिका है जिन्हें नर्सिंग का अच्छा ज्ञान होना चाहिए, अपनी कला के कौशल को जानते हों और स्नेही, सहानुभूतिपूर्ण, बुद्धिमान, साफ और स्वच्छ तथा संसाधनयुक्त होना चाहिए। चौथा घटक रोगी स्वयं होता है जिसने चिकित्सक के निर्देश का पालन करने के लिए सहयोगपूर्ण और आज्ञाकारी होना चाहिए, बीमारियों का वर्णन करने में सक्षम होना चाहिए तथा उपचार के लिए जो भी आवश्यक हो, प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए।
आयुर्वेद ने घटनाओं के चरणों और उनके घटित होने का बहुत विस्तृत विश्लेषणात्मक विवरण विकसित किया है क्योंकि रोग के कारक उसकी अंतिम अभिव्यक्ति से पहले शुरू हो जाते हैं। यह इस प्रणाली को अव्यक्त लक्षण स्पष्ट होने से बहुत पहले रोग की संभव शुरुआत जानने का एक अतिरिक्त लाभ देता है। यह चिकित्सा की इस पद्धति को अग्रिम में उचित और प्रभावी कदम उठाक�� रोगजनन में आगे की प्रगति को रोकने के लिए रोग पर शुरुआत के प्रारंभिक चरण में अंकुश लगाने हेतु उपयुक्त उपचारात्मक कदम उठाने के द्वारा इसकी निवारक भूमिका को बढ़ाता है।
उपचार के प्रकार
रोग के उपचार को मोटे तौर पर इस तरह वर्गीकृत किया जा सकता है
- शोधन चिकित्सा (शुद्धीकरण उपचार)
शोधन उपचार दैहिक और मानसिक रोगों के प्रेरक कारकों को हटाने पर केन्द्रित होता है। प्रक्रिया में आंतरिक और बाह्य शुद्धि शामिल हैं। सामान्य उपचारों में शामिल हैं पंचकर्म (दवाओं से उत्प्रेरित वमन, विरेचन, तेल एनीमा, काढ़ा एनीमा और नाक से दवाएं देना), पूर्व-पंचकर्म प्रक्रियाएं (बाहरी और आंतरिक तेलोपचार और प्रेरित पसीना)। पंचकर्म उपचार चयापचय प्रबंधन पर केंद्रित होता है। यह चिकित्सकीय लाभ प्रदान करने के अलावा ज़रूरी परिशोधक प्रभाव प्रदान करता है। यह उपचार स्नायविक विकारों, पेशीय-कंकाल की बीमारी की स्थिति, कुछ नाड़ी या तंत्रिका-संवहनी स्थितियों, सांस की बीमारियों, चयापचय और अपक्षयी विकारों में विशेष रूप से उपयोगी है।
- शमन चिकित्सा (प्रशामक ट्रीटमेंट)
शमन चिकित्सा में बिगड़े देहद्रव (दोषों) का दमन शामिल है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा बिगड़े देहद्रव अन्य देहद्रव में असंतुलन पैदा किए बिना सामान्य स्थिति में लौट आता है, शमन के ��ूप में जानी जाती है। यह उपचार भूखवर्धकों, पाचकों, व्यायाम, और धूप तथा ताज़ी हवा लेने आदि द्वारा हासिल होता है। उपचार के इस रूप में, पैलिएटिव तथा नींद की औषधि का उपयोग किया जाता है।
- पथ्य व्यवस्था (आहार तथा क्रियाकलापों का सुझाव)
पथ्य व्यवस्था में आहार, गतिविधि, संकेत व भावनात्मक स्थिति के सूचक व प्रतिसूचक शामिल हैं। इसे उपचारात्मक उपायों के प्रभाव को बढ़ाने और विकारी प्रक्रियाओं में बाधा डालने की दृष्टि से किया जाता है। आहार सम्बन्धी किए जाने व न किए जाने वाली बातों पर ऊतकों की शक्ति को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अग्नि को प्रोत्साहित करने और पाचन के अनुकूलन तथा भोजन के आत्मसात करने पर बल दिया जाता है।
- निदान परिवर्जन (रोग उत्पन्न करने वाले और उसे बढ़ावा देने वाले कारकों से बचना)
निदान परिवर्जन रोगी के आहार और जीवन शैली में ज्ञात रोग कारकों से बचना है। इसमें रोग के बाहर उभारने या बढ़ाने वाले कारकों से बचना भी शामिल है।
- सत्ववजय (मनोचिकित्सा)
सत्ववजय मुख्य रूप से मानसिक गड़बड़ी के क्षेत्र के साथ संबंधित है। इसमें दिमाग को अपूर्ण वस्तुओं के निरोध तथा साहस, स्मृति और एकाग्रता विकसित करना शामिल है। आयुर्वेद में मनोविज्ञान और मनोरोग विज्ञान का अध्ययन बड़े पैमाने पर विकसित किया गया है और मानसिक विकारों के उपचार में दृष्टिकोणों की एक विस्तृत शृंखला है।
- रसायन चिकित्सा (रोग प्रतिरोधक शक्ति के उत्प्रेरकों और कायाकल्प दवाओं का उपयोग)
रसायन चिकित्सा शक्ति और जीवन शक्ति को बढ़ावा देने से संबंधित है। इस उपचार के लाभों को शरीर के सांचे की अखंडता, स्मृति को बढ़ावा, बुद्धि, रोग के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता, युवावस्था का संरक्षण, चमक, रंग और शरीर व इंद्रियों की इष्टतम शक्ति के रखरखाव को बढ़ावा देने का श्रेय दिया जाता है। शरीर के ऊतकों के समय पूर्व ह्रास से बचाव और एक व्यक्ति की कुल स्वास्थ्य सामग्री को बढ़ावा देने में रसायन चिकित्सा भूमिका निभाती है।
- आहार और आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद में चिकित्सा के रूप में आहार के विनियमन का बड़ा महत्व है। ऐसा इसलिए है कि इसमें मानव शरीर को भोजन के उत्पाद के रूप में समझा जाता है। एक व्यक्ति के मानसिक और आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ उसका स्वभाव उसके द्वारा लिए गए भोजन की गुणवत्ता से प्रभावित होता है। मानव शरीर में भोजन पहले कैल या रस में तब्दील हो जाता है और फिर आगे की प्रक्रियाओं से उसका रक्त, मांसपेशी, वसा, अस्थि, अस्थि-मज्जा, प्रजनन तत्वों और ओजस में रूपांतरण शामिल है। इस प्रकार, भोजन सभी चयापचय परिवर्तनों और जीवन की गतिविधियों के लिए बुनियादी है। भोजन में पोषक तत्वों की कमी या भोजन का अनुचित परिवर्तन विभिन्न किस्म की बीमारी की स्थितियों में परिणत होता है
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rajmishra4656 · 2 years
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rajmishra4656 · 2 years
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rajmishra4656 · 2 years
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rajmishra4656 · 2 years
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rajmishra4656 · 2 years
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HEALTH AND SERVICES
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rajmishra4656 · 2 years
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The celebration of Lohri marks the finish of winter and the appearance of a hotter climate. This gather celebration of Punjab is praised with extraordinary excitement consistently. On Lohri, families meet up to light huge fires, trade gifts, and eat happy food. Food varieties like jaggery, gachak, and rewri are key to Lohri, as are peanuts, popcorn, and til. This year, Lohri will be praised on Thursday, January 13, 2022. While Lohri is essentially a Punjabi celebration, it is commended by many individuals the nation over who light huge fires and dance to invite longer days after the colder time of year solstice.Call for an appointment: +91 7545950000 / 1800 - 532 - 1801 / 06513501544Visit us : www.curestaglobal.com / www.curepathlab.com / www.cureness360.com#lohri2022  #lohrispecial #lohri #festival #india #sankranti #lohricelebration #makarsankranti #indianfestival #winter #curepathlab #cureness360 #curestaglobal #curevax #curemeds #Ranchi
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rajmishra4656 · 2 years
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Best wishes to all the people of Ranchi on the occasion of Makar Sankranti  stay safe, healthy & Happy Makar Sankranti. Call for an appointment: +91 7545950000 / 1800 - 532 - 1801 / 06513501544Visit us : www.curestaglobal.com / www.curepathlab.com / www.cureness360.com#makarsankrati #makarsankranti2022 #kitefestival #sankranti2022 #cureness360 #curepathlab #curevax #curemeds
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rajmishra4656 · 2 years
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rajmishra4656 · 2 years
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rajmishra4656 · 2 years
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