महिला दिवस: चाणक्य नीति के अनुसार इन कामों में पुरुषों से कई गुना आगे होती हैं महिलाएं
चैतन्य भारत न्यूज
आचार्य चाणक्य ने महिलाओं और पुरुषों के संबंधों के बारे में कई सारी बातें कही हैं। उन्होंने चाणक्य नीति में महिलाओं के बहुत से गुणों का भी वर्णन किया है। चाणक्य ने बताया है कि महिलाएं कई मामलों में पुरुषों से ज्यादा आगे रहती हैं। आइए जानते हैं वो कौन-कौन से गुण हैं जो आचार्य चाणक्य ने बताए हैं-
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स्त्रीणां दि्वगुण आहारो बुदि्धस्तासां चतुर्गुणा।
साहसं षड्गुणं चैव कामोष्टगुण उच्यते।।
चाणक्य नीति में लिखे हुए इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने महिलाओं के चार गुणों का वर्णन किया है। पहला गुण उन्होंने बताया कि 'स्त्रीणां दि्वगुण आहारो' अर्थात महिलाओं को ज्यादा ऊर्जा के लिए अधिक कैलोरी की जरूरत होती है। ऐसे में उन्हें अधिक मात्रा में खाना जरुरी होता है।
आचार्य चाणक्य ने महिलाओं के दूसरे गुण के बारे में बताया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा सुझबूझ वाली होती हैं। उनके अंदर पुरुषों से ज्यादा समझदारी होती है। अपने इसी गुण की वजह से महिलाएं जीवन में आने वाली सभी परेशानियों का सामना आसानी से कर लेती हैं और उनसे उबर जाती हैं।
आम धारणा है कि महिलाएं पुरुषों से मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं लेकिन आचार्य चाणक्य की इस मामले में बिलकुल विपरीत सोच है। उनका मानना है कि महिलाओं में पुरुषों से 6 गुना ज्यादा साहस होता है।
चाणक्य नीति के मुताबिक, महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक श्रृंगारिक और प्रेमी प्रकृति की होती हैं। उनमें 8 गुना ज्यादा काम भावना होती है।
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जानें 8 साल की लिसीप्रिया के बारे में, जिन्होंने महिला दिवस पर ठुकराया पीएम मोदी का सम्मान
चैतन्य भारत न्यूज
8 मार्च को दुनियाभर में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। इस दिन सभी देशों में कार्यक्रम आयोजित कर महिलाओं के अधिकारों पर बात की जाती है। साथ ही अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं का सम्मान भी किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर भारत सरकार ने कुछ ऐसी महिलाओं के नाम का जिक्र किया जो अलग-अलग मुद्दों पर काम करती हैं। इन्हीं महिलाओं में एक नाम था लिसीप्रिया कांगुजम। लेकिन उन्होंने पीएम मोदी का प्रस्ताव ठुकरा दिया।
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महिला दिवस पर भारत सरकार ने ट्वीटर पर लिखा था कि, 'लिसीप्रिया एक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। साल 2019 में उन्हें डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम चिल्ड्रेन अवॉर्ड, विश्व बाल शांति पुरस्कार और भारत शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। क्या आप उन जैसी किसी को जानते हैं? #SheInspiresUs हैशटैग के साथ हमें बताइए।'
Dear @narendramodi Ji,
Please don’t celebrate me if you are not going to listen my voice.
Thank you for selecting me amongst the inspiring women of the country under your initiative #SheInspiresUs. After thinking many times, I decided to turns down this honour. 🙏🏻
Jai Hind! pic.twitter.com/pjgi0TUdWa
— Licypriya Kangujam (@LicypriyaK) March 6, 2020
लिसीप्रिया ने भारत सरकार के इस ट्वीट के जवाब में शुक्रिया तो कहा लेकिन उन्होंने यह सम्मान स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उन्होंने लिखा कि, 'प्रिय नरेंद्र मोदी जी,अगर आप मेरी आवाज नहीं सुनेंगे तो कृपया मुझे सेलिब्रेट मत कीजिए। अपनी पहल #ShelnspiresUs के तहत मुझे कई प्रेरणादायी महिलाओं में शामिल करने के लिए शुक्रिया। कई बार सोचने के बाद मैंने यह सम्मान ठुकराने का फैसला किया है, जय हिंद!'
And also,
Dear politicians & political parties,
I don’t need appreciation for this. Instead ask your MPs to rise my voice at the ongoing Parliament session. Never attempt to use me for your political gains and propagandas. don’t appreciate it. I’m not in your favour.
— Licypriya Kangujam (@LicypriyaK) March 7, 2020
लिसीप्रिया ने अन्य ट्वीट में लिखा कि, 'प्रिय नेताओं और राजनीतिक पार्टियों, मुझे इसके लिए तारीफ नहीं चाहिए। इसके बजाय अपने सांसदों से कहिए कि मौजूदा संसद सत्र में मेरी आवाज़ उठाएं। मुझे अपने राजनीतिक लक्ष्य और प्रोपेगैंडा साधने के लिए कभी इस्तेमाल मत कीजिएगा। मैं आपके पक्ष में नहीं हूं।'
Dear brothers/ sisters/ Sir/ Madam,
Stop all propaganda to bully me. I’m not against anyone. I just wants system change, not climate change.
I don’t expect anything from anyone except I want our leaders to listen my voice.
I believe my rejection will helps to listen my voice.
— Licypriya Kangujam (@LicypriyaK) March 7, 2020
उन्होंने एक और ट्वीट में #ClimateCrisis हैशटैग के साथ लिखा कि, 'आपके सांसद न सिर्फ गूंगे बल्कि बहरे और अंधे भी हैं। ये पूरी असफलता है। अभी कार्रवाई कीजिए।'
Dear Media,
Stop calling me “Greta of India”. I am not doing my activism to looks like Greta Thunberg. Yes, she is one of our Inspiration & great influencer. We have common goal but I have my own identity, story. I began my movement since July 2018 even before Greta was started. pic.twitter.com/3UEqCVWYM8
— Licypriya Kangujam (@LicypriyaK) January 27, 2020
बता दें 8 वर्षीय लिसीप्रिया कंगुजम भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर से ताल्लुक रखती हैं। वह पर्यावरण के मुद्दे पर काफी सक्रिय हैं। लिसीप्रिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सांसदों से जलवायु परिवर्तन कानून बनाए जाने की मांग कर रही हैं।
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अपने इन खास गुणों के कारण हमेशा सफल होती हैं महिलाएं
चैतन्य भारत न्यूज
आपने ऐसी कई सफल महिलाओं को देखा होगा जिन्हें देखकर आपके मन भी विचार आया होगा कि आखिर ये महिलाएं दूसरी तमाम महिलाओं से अलग और इतना आगे कैसे पहुंच गईं। आज यानी कि अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे गुण जो सफल महिलाओं में होते हैं और जिनके जरिए वह कामयाबी की सीढी चढ़ती हैं।
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अपनी शक्ति पर फोकस करती हैं
सफलता की मंजिल हासिल करने वाली महिलाएं अपनी पर्सनैलिटी व टैलेंट के कमजोर व मजबूत पक्षों को भलीभांति जानती हैं। यह अपनी कमजोरियों को दूर करने की कोशिश करती हैं और मजबूती का भरपूर इस्तेमाल करती हैं। अपनी स्ट्रैंथ वाले फील्ड में दिलचस्पी लेकर यह करियर में सफलता हासिल करने में कामयाब हो जाती हैं।
आभार जताना जानती हैं
व्यवहार कुशल होने के कारण यह सहज ही लोगों का दिल जीत लेती हैं, इन्हें अपने बॉस, कलीग्स, क्लाइंट्स या किसी संभावित सहयोगी से दूसरी महिलाओं की तुलना में ज्यादा सहयोग मिल जाता है। किसी के द्वारा छोटे से छोटे सपोर्ट पर भी उसके प्रति आभार जताने व उसकी प्रशंसा करने की आदत इन्हीं धीरे-धीरे काफी ऊंचाइयों पर ले जाती हैं।
असफलता से घबराती नहीं
कामयाब महिलाओं की कामयाबी का सबसे बड़ा राज यहां है कि वे नाकामयाबी से घबराती नहीं है। इसलिए वे बेहिचक रिस्क लेकर नए काम शुरू कर देती है और अपने जुनून और जज्बे से उन्हें निभा भी लेती है। जबकि असफल लोग इसलिए असफल रह जाते कि वह डरकर कोई नया काम शुरू नहीं कर पाते इसलिए एक सामान्य जिंदगी जीते रह जाते हैं।
सपोर्ट सिस्टम मजबूत रखती है
आपने देखा होगा कि आपके परिवार, हाउसिंग, सोसायटी या मोहल्ले की कुछ महिलाएं हर किसी के सुख-दुख में शरीक हो जाती हैं। हर कोई अपनी दुविधा में उनसे सलाह लेना पसंद करता है और किसी पारिवारिक विवाद में मध्यस्थता के लिए भी इन से निवेदन करता है। जाहिर है एक ऐसी महिलाएं जब खुद किसी तकलीफ में होती हैं या इन्हें किसी से मदद की जरूरत पड़ती है तो हर कोई इनकी मदद के लिए तैयार रहता है। इन्हें मानसिक आर्थिक या सामाजिक सपोर्ट आसानी से मिल जाता है इनकी सफलता का यहां भी एक प्रमुख कारण होता है।
मेहनती होती हैं
यह प्रमाणित तथ्य है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। मेहनत करने वालों को ही सफलता मिलती है। आप गौर करके देखें आपके आसपास जो भी सफल महिलाएं हैं उन्हें आप कभी खाली बैठे या गॉसिप करते नहीं देख पाएंगे। यह हर वक्त कोई ना कोई महत्व काम करती रहती हैं।
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आचार्य चाणक्य ने महिलाओं और पुरुषों के संबंधों के बारे में कई सारी बातें कही हैं। उन्होंने चाणक्य नीति में महिलाओं के बहुत से गुणों का भी वर्णन किया है। चाणक्य ने बताया है कि महिलाएं कई मामलों में पुरुषों से ज्यादा आगे रहती हैं। आइए जानते हैं वो कौन-कौन से गुण हैं जो आचार्य चाणक्य ने बताए हैं-
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स्त्रीणां दि्वगुण आहारो बुदि्धस्तासां चतुर्गुणा।
साहसं षड्गुणं चैव कामोष्टगुण उच्यते।।
चाणक्य नीति में लिखे हुए इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने महिलाओं के चार गुणों का वर्णन किया है। पहला गुण उन्होंने बताया कि 'स्त्रीणां दि्वगुण आहारो' अर्थात महिलाओं को ज्यादा ऊर्जा के लिए अधिक कैलोरी की जरूरत होती है। ऐसे में उन्हें अधिक मात्रा में खाना जरुरी होता है।
आचार्य चाणक्य ने महिलाओं के दूसरे गुण के बारे में बताया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा सुझबूझ वाली होती हैं। उनके अंदर पुरुषों से ज्यादा समझदारी होती है। अपने इसी गुण की वजह से महिलाएं जीवन में आने वाली सभी परेशानियों का सामना आसानी से कर लेती हैं और उनसे उबर जाती हैं।
आम धारणा है कि महिलाएं पुरुषों से मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं लेकिन आचार्य चाणक्य की इस मामले में बिलकुल विपरीत सोच है। उनका मानना है कि महिलाओं में पुरुषों से 6 गुना ज्यादा साहस होता है।
चाणक्य नीति के मुताबिक, महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक श्रृंगारिक और प्रेमी प्रकृति की होती हैं। उनमें 8 गुना ज्यादा काम भावना होती है।
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‘दुनिया की बेस्ट मां’ बना यह पिता, महिला दिवस पर किया जाएगा सम्मानित
चैतन्य भारत न्यूज
बेंगलुरु. 8 मार्च को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाएगा। इस अवसर पर बेंगलुरु में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा जिसमें पुणे के आदित्य तिवारी को 'बेस्ट मॉम' के अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। वेमपावर नाम के इस कार्यक्रम में आदित्य को अवॉर्ड ही नहीं दिया जाएगा बल्कि इसके साथ ही वह पैनल डिस्कशन का भी हिस्सा होंगे।
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आदित्य तिवारी ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित एक बच्चे को गोद लिया था, जिसके लिए उन्होंने एक लंबी कानूनी और सामाजिक लड़ाई लड़���। हालांकि, उनकी ममता के आगे सब हार गए। अब उन्हें ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पर देशभर की कई महिलाओं के साथ बेंगलुरु के एक इवेंट में World’s Best Mommy के टाइटल से सम्मानित किया जाएगा।
बता दें, आदित्य ने अपने बेटे को सिंगल पैरेंट के रूप में गोद लिया था। वह 22 महीने के अवनीश को अडॉप्ट करने के बाद सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर देशभर में स्पेशल बच्चों के पेरेंट्स को काउंसिलिंग देने और मोटिवेट करने के काम में जुट गए। आदित्य ने बताया, ‘दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मम्मियों’ में से एक के रूप में सम्मानित होने पर खुश हूं और मैं दूसरों के साथ स्पेशल बच्चे को संभालने का अपना अनुभव बांटना चाहता हूं।'
साल 2016 में अवनीश को लिया था गोद
आदित्य ने साल 2016 में अवनीश गोद लिया था, जो डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है। हालांकि, उसे अपना बेटा बनाने में आदित्य को ���क लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। दरअसल उस वक्त कोई भी अविवाहित व्यक्ति तभी बच्चे को गोद ले सकता था जब उसकी उम्र 30 वर्ष या उससे ज्यादा हो। आदित्य तब 25 वर्ष के थे। यानि कानूनन उन्हें बच्चा गोद नहीं मिल सकता था, पर आदित्य पीछे हटने वालों में से नहीं थे। उन्होंने इस नियम के खिलाफ न्यायिक लड़ाई लड़ी। करीब डेढ़ साल के संघर्ष के बाद वह अवनीश को घर लाने में सफल हुए। हालांकि, इस फैसले के कारण उन्हें पारिवारिक व सामाजिक विरोध भी सहना पड़ा।
22 राज्यों में रह चुके हैं दोनों बाप-बेटे
बाप-बेटे की यह जोड़ी 22 राज्यों में रह चुकी है। जहां उन्होंने लगभग 400 जगहों पर मीटिंग्स, वर्कशॉप्स, टॉक्स और कॉन्फ्रेंस कीं। आदित्य ने बताया कि ‘हम दुनियाभर के 10,000 पेरेंट्स से जुड़ें। साथ ही, हमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बुलाया गया, जहां intellectual disabilities के साथ जन्में बच्चों को संभालने पर बोलना था।
क्या है डाउन सिंड्रोम
डाउन सिंड्रोम एक अनुवांशिक विकार है जिसके कारण बच्चों के दिमाग का विकास देरी से होता है। यह तब होता है जब असामान्य सेल विभाजन के कारण क्रोमोसोम 21 की अतिरिक्त प्रति उत्पन्न होती है। बच्चों में सीखने की अक्षमता का यह सबसे आम कारण होता है। जिससे बच्चों की सिखने की क्षमता कम हो जाती है इसके परिणामस्वरूप हृदय और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार जैसे चिकित्सीय असामान्यताएं भी हो सकती हैं। डाउन सिंड्रोम एक आजीवन विकार है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन बेहतर इलाज से निपटा जा सकते हैं।
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महिला दिवस: इन 5 महिलाओं ने बदली भारतीय राजनीति की तस्वीर, नेतृत्व क्षमता को सभी हुए नतमस्तक
चैतन्य भारत न्यूज
आज के जमाने में महिलाएं हर मामले में पुरुषों की बराबरी पर हैं। वह घर से लेकर बाहर तक सभी बड़ी जिम्मेदारियां संभाल रही हैं। फिर चाहे वो अंतरिक्ष पर जाना हो या सेना में ही शामिल होकर देश की रक्षा करना हो। इन सब महिलाओं के साथ ही भारत की उन महान राजनीतिज्ञों को भी नहीं भूल सकते हैं जिन्होंने भारत के निर्माण के लिए अहम योगदान दिया है। महिला दिवस के मौके पर हम आपको भारत की उन पांच नेत्रियों के बारे में बता रहे हैं जिनकी नेतृत्व क्षमता ने सभी को नतमस्तक किया।
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू एक स्वंत्रता सेनानी, कवियत्री और भारत की पहली महिला गवर्नर थीं। उनका जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ था। देश को आजादी दिलाने में सरोजिनी नायडू ने अहम भूमिका निभाई थीं। उनका निधन 2 मार्च 1949 में हुआ था।
इंदिरा गांधी
देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वो पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें साल 1971 में भारत रत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इंदिरा गांधी को आयरन लेडी भी कहा जाता है.
एनी बेसेंट
साल 1917 में कोलकाता में एनी बेसेंट कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष चुनी गईं थीं। एनी बेसेंट मूल रूप से आयरलैंड की निवासी थीं। वह उन विदेशियों में शामिल थीं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। फिर उनकी रूचि थियोसॉफी में जागी और फिर वह साल 1875 में स्थापित किए गए थियोसॉफिकल सोसाइटी की लीडर बन गईं।
सुचेता कृपलानी
भारत के किसी राज्य की प्रथम महिला मुख्यमंत्री का गौरव पाने वाली सुचेता कृपलानी ( सुचेता मजूमदार ) ही थीं। वह एक स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। सुचेता कृपलानी ने 2 अक्टूबर 1963 को उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
विजयलक्ष्मी पंडित
विजयलक्ष्मी पंडित पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की छोटी बहन थीं। आजादी के बाद साल 1947 से 1949 तक रूस में राजदूत रह चुकी हैं। साल 1953 में विजयलक्ष्मी पंडित यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं थीं। विजयलक्ष्मी पंडित पहली महिला थीं जो यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं। फिर 1946 में संविधान सभा में चुनी गईं। उन्होंने औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी और बातें मनवाईं।
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महिला दिवस पर राष्ट्रपति कोविंद और पीएम मोदी ने नारी शक्ति को किया सलाम, ट्वीट कर कही यह बात
चैतन्य भारत न्यूज
नई दिल्ली. दुनियाभर में आज यानी 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) मनाया जा रहा है। इस खास मौके पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं को बधाई दी है।
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President Kovind:On #InternationalWomensDay greetings &best wishes to women in India&across our planet.Let us reaffirm our pledge to ensure safety&respect for women,so that they can move forward unhindered according to their wish in direction of fulfilling their hopes&aspirations pic.twitter.com/8SwlTCnQlG
— ANI (@ANI) March 8, 2020
राष्ट्रपति कोविंद ने लिखा कि, 'आइए हम महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने का संकल्प लें, ताकि वे अपनी आशाओं और अकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपनी इच्छा के अनुसार बिना रुके आगे बढ़ सकें।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं को बधाई देते हुए कहा कि, 'हम नारी शक्ति की भावना और उपलब्धियों को सलाम करते हैं। जैसा कि मैंने कुछ दिन पहले ही कहा था, मैं वैसा ही कर रहा हूं। आज दिनभर समय-समय पर सात महिलाएंं मेरा सोशल मीडिया अकाउंट संभालेंगी और अपने जीवन से जुड़े यादगार लम्हों को शेयर करेंगी।'
Greetings on International Women’s Day! We salute the spirit and accomplishments of our Nari Shakti.
As I’d said a few days ago, I’m signing off. Through the day, seven women achievers will share their life journeys and perhaps interact with you through my social media accounts.
— Narendra Modi (@narendramodi) March 8, 2020
गौरतलब है कि सोमवार को पीएम मोदी ने ट्वीट कर बताया था कि वह सोशल मीडिया छोड़ने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने लिखा था कि, 'इस रविवार को मैं अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब छोड़ने पर विचार कर रहा हूं। आपको इस बारे में जानकारी दूंगा।'
फिर मंगलवार को उन्होंने एक और ट्वीट कर कहा था कि, 'इस महिला दिवस पर, मैं अपने सोशल मीडिया अकाउंट ऐसी महिलाओं को सौंपे दूंगा जिनका जीवन और कार्य हमें प्रेरित करते हैं। इससे उन्हें लोगों को प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।'
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Women's Day: जानें कब और कैसे हुई अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरूआत, बेहद खास है इस साल की थीम
चैतन्य भारत न्यूज
हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (international women's day) मनाया जाता है। इस दिन सभी देश चाहे वह विकसित हो या विकासशील मिलकर महिला अधिकारों की बात करते हैं। 8 मार्च को पूरी दुनिया की महिलाएं देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। आइए एक नजर डालते हैं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास पर।
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कब से हुई इसकी शुरुआत
साल 1908 में एक महिला मजदूर आंदोलन के कारण महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। इस दिन 15 हजार महिलाओं ने नौकरी के घंटे कम करने, अच्छा वेतन और अन्य कई अधिकारों की मांग को लेकर न्यूयॉर्क में प्रदर्शन किया था। इसके एक साल बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने इस दिन को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया। साल 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं का एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मलेन में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाने का सुझाव दिया गया और फिर यह दिन दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में लोकप्रिय होने लगा। 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मान्यता साल 1975 में मिली थी। संयुक्त राष्ट्र ने एक थीम के साथ इस दिन को मनाने की शुरूआत की थी।
महिला दिवस 2020 की थीम
संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष महिला दिवस के लिए ''मैं जनरेशन इक्वेलिटी: महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही हूं'' (I am Generation Equality: Realizing Women’s Rights) थीम निर्धारित की है। इस थीम के जरिए संयुक्त राष्ट्र महिलाओं की पीढ़ी को जोड़ रहा है। वह यह सुनिश्चित करना चाह रहा है कि हर पीढ़ी की महिलाएं एक दूसरे को सशक्त करें। इस थीम का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त करना है।
कहां कैसे मनाया जाता है महिला दिवस
महिला दिवस हर देश में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। कहीं पर इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है तो कहीं इस दिन महिलाओं को छुट्टी दी जाती है। कुछ देशों में महिलाओं को फूल देकर सम्मानित किया जाता है। अमेरिका में यह महीना 'विमेन्स हिस्ट्री मंथ' के रूप में मनाया जाता है।
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महिला दिवस: दूसरों के घरों में काम करने वाली महिला बन गई एक मशहूर लेखिका, संघर्ष की कहानी ने बनाया स्टार
चैतन्य भारत न्यूज
हमारे आसपास कई ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं जो साधारण होते हुए भी असाधारण बन जाते हैं। ऐसे लोग दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत के दम पर अपने सपनों को हकीकत में बदल देते हैं। ऐसी ही कहानी है Ïदूसरों घर में काम करने वाली बाई बेबी हलदर की, जिन्होने पूरी लगन से अपनी जिंदगी को बदल दिया। लोग आज उन्हें मशहूर लेखिका के तौर पर जानते हैं। कई मुश्किलों का सामना करते हुए भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी अब तक चार सफल किताबें छप चुकी हैं।
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बेबी हलदर की कहानी
बेबी हलदर नाम की 41 वर्षीय महिला कभी एक साधारण सी कामवाली बाई हुआ करती थीं लेकिन आज वो एक जानी ��ानी लेखिका हैं और गुडगा��व में काम करती हैं। 13 साल की उम्र में उनकी शादी एक बड़े उम्र के आदमी से कर दी गई, 20 साल की उम्र तक उनके तीन बच्चे हो चुके थे।
उन्होंने अंतत: प्रताड़ना से भरी अपनी शादी से बाहर आने का फैसला किया और तीन बच्चों के साथ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पहुंचीं। वहां उन्हें मुंशी प्रेमचंद के नाती प्रबोध कुमार श्रीवास्तव के यहां काम मिला। श्रीवास्तव ने उन्हें लाइब्रेरी की साफ-सफाई के दौरान धूल फांकती महाश्वेता देवी और तसलीमा नसरीन की किताबों को अक्सर उलटते-पुलटते देखा।
जब भी वो प्रबोध के घर साफ-सफाई किया करती तो बुक के शेल्फ को देखने लगतीं। बंगाली किताबों को खोलकर पढ़ने लगतीं। उन्होंने बेबी को बांग्लादेशी ऑथर तसलीमा नसरीन की किताब दी और पढ़ने को कहा। पूरी किताब पढ़ने के बाद प्रबोध ने उनको खाली नोटबुक दी और अपनी कहानी लिखने को कहा। नतीजा रहा कि 2003 में उनकी आत्मकथा आलो-आंधारि का अंग्रेजी अनुवाद 'ए लाइफ लेस ऑर्डिनरी' नाम से प्रकाशित हुआ।
किताब इतनी पसंद की गई कि उसका 14 भाषाओं में अनुवाद हुआ। बेबी हल्दर साहित्य जगत का चर्चित नाम बन गईं। वे बुक टूर पर फ्रांस, जर्मनी और हांगकांग गईं। बाद में उनकी कुछ और किताबें- इशत रूपांतर, घोरे फेरार पथ भी आईं। बेबी प्रोफेसर प्रबोध कुमार के घर पिछले 16 सालों से काम कर रही हैं और प्रबोध कुमार ही उनके मेंटर व अनुवादक हैं।
बेबी की मानें तो एक लेखिका के रुप में उनका दूसरा जन्म हुआ है और उनकी लिखी हुई कहानी लोगों के दिलों को स्पर्श करती है। अब बेबी की यही ख्वाहिश है कि वो अपनी किताबों से कमाए हुए पैसों से कोलकाता में एक घर बना सकें। यहां वे एनजीओ 'अपने आप विमेंस वर्ल्ड' से जुड़ गईं। वे अब सोनागाछी जैसे क्षेत्रों में यौनकर्मियों के बच्चों को पढ़ाती हैं।
बेबी कहती है कि, 'मैं उन्हें बांग्ला और हिंदी सिखाती हूं। कभी-कभी बच्चों की माएं भी साथ आती हैं। वे अपनी पीड़ा, अपनी कहानियां सुनाती हैं और अक्सर हमसे सलाह और मार्गदर्शन मांगती हैं। हम उन्हें सशक्त बनाने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं।'
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चैतन्य भारत न्यूज
आज के जमाने में महिलाएं हर मामले में पुरुषों की बराबरी पर हैं। वह घर से लेकर बाहर तक सभी बड़ी जिम्मेदारियां संभाल रही हैं। फिर चाहे वो अंतरिक्ष पर जाना हो या सेना में ही शामिल होकर देश की रक्षा करना हो। इन सब महिलाओं के साथ ही भारत की उन महान राजनीतिज्ञों को भी नहीं भूल सकते हैं जिन्होंने भारत के निर्माण के लिए अहम योगदान दिया है। महिला दिवस के मौके पर हम आपको भारत की उन पांच नेत्रियों के बारे में बता रहे हैं जिनकी नेतृत्व क्षमता ने सभी को नतमस्तक किया।
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू एक स्वंत्रता सेनानी, कवियत्री और भारत की पहली महिला गवर्नर थीं। उनका जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ था। देश को आजादी दिलाने में सरोजिनी नायडू ने अहम भूमिका निभाई थीं। उनका निधन 2 मार्च 1949 में हुआ था।
इंदिरा गांधी
देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वो पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें साल 1971 में भारत रत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इंदिरा गांधी को आयरन लेडी भी कहा जाता है.
एनी बेसेंट
साल 1917 में कोलकाता में एनी बेसेंट कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष चुनी गईं थीं। एनी बेसेंट मूल रूप से आयरलैंड की निवासी थीं। वह उन विदेशियों में शामिल थीं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। फिर उनकी रूचि थियोसॉफी में जागी और फिर वह साल 1875 में स्थापित किए गए थियोसॉफिकल सोसाइटी की लीडर बन गईं।
सुचेता कृपलानी
भारत के किसी राज्य की प्रथम महिला मुख्यमंत्री का गौरव पाने वाली सुचेता कृपलानी ( सुचेता मजूमदार ) ही थीं। वह एक स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। सुचेता कृपलानी ने 2 अक्टूबर 1963 को उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
विजयलक्ष्मी पंडित
विजयलक्ष्मी पंडित पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की छोटी बहन थीं। आजादी के बाद साल 1947 से 1949 तक रूस में राजदूत रह चुकी हैं। साल 1953 में विजयलक्ष्मी पंडित यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं थीं। विजयलक्ष्मी पंडित पहली महिला थीं जो यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं। फिर 1946 में संविधान सभा में चुनी गईं। उन्होंने औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी और बातें मनवाईं।
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‘दुनिया की बेस्ट मां’ बना यह पिता, महिला दिवस पर किया जाएगा सम्मानित
चैतन्य भारत न्यूज
बेंगलुरु. 8 मार्च को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाएगा। इस अवसर पर बेंगलुरु में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा जिसमें पुणे के आदित्य तिवारी को 'बेस्ट मॉम' के अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। वेमपावर नाम के इस कार्यक्रम में आदित्य को अवॉर्ड ही नहीं दिया जाएगा बल्कि इसके साथ ही वह पैनल डिस्कशन का भी हिस्सा होंगे।
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आदित्य तिवारी ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित एक बच्चे को गोद लिया था, जिसके लिए उन्होंने एक लंबी कानूनी और सामाजिक लड़ाई लड़ी। हालांकि, उनकी ममता के आगे सब हार गए। अब उन्हें ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पर देशभर की कई महिलाओं के साथ बेंगलुरु के एक इवेंट में World’s Best Mommy के टाइटल से सम्मानित किया जाएगा।
बता दें, आदित्य ने अपने बेटे को सिंगल पैरेंट के रूप में गोद लिया था। वह 22 महीने के अवनीश को अडॉप्ट करने के बाद सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर देशभर में स्पेशल बच्चों के पेरेंट्स को काउंसिलिंग देने और मोटिवेट करने के काम में जुट गए। आदित्य ने बताया, ‘दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मम्मियों’ में से एक के रूप में सम्मानित होने पर खुश हूं और मैं दूसरों के साथ स्पेशल बच्चे को संभालने का अपना अनुभव बांटना चाहता हूं।'
साल 2016 में अवनीश को लिया था गोद
आदित्य ने साल 2016 में अवनीश गोद लिया था, जो डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है। हालांकि, उसे अपना बेटा बनाने में आदित्य को एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। दरअसल उस वक्त कोई भी अविवाहित व्यक्ति तभी बच्चे को गोद ले सकता था जब उसकी उम्र 30 वर्ष या उससे ज्यादा हो। आदित्य तब 25 वर्ष के थे। यानि कानूनन उन्हें बच्चा गोद नहीं मिल सकता था, पर आदित्य पीछे हटने वालों में से नहीं थे। उन्होंने इस नियम के खिलाफ न्यायिक लड़ाई लड़ी। करीब डेढ़ साल के संघर्ष के बाद वह अवनीश को घर लाने में सफल हुए। हालांकि, इस फैसले के कारण उन्हें पारिवारिक व सामाजिक विरोध भी सहना पड़ा।
22 राज्यों में रह चुके हैं दोनों बाप-बेटे
बाप-बेटे की यह जोड़ी 22 राज्यों में रह चुकी है। जहां उन्होंने लगभग 400 जगहों पर मीटिंग्स, वर्कशॉप्स, टॉक्स और कॉन्फ्रेंस कीं। आदित्य ने बताया कि ‘हम दुनियाभर के 10,000 पेरेंट्स से जुड़ें। साथ ही, हमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बुलाया गया, जहां intellectual disabilities के साथ जन्में बच्चों को संभालने पर बोलना था।
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