पाकिस्तान: 'मेरा जिस्म, मेरी मर्जी' के नारे लगातार सड़कों पर उतरीं महिलाएं, कट्टरपंथियों ने फेंके जूते और पत्थर
चैतन्य भारत न्यूज
इस्लामाबाद. 8 मार्च को जहां दुनियाभर में 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' मनाया जा रहा था और महिलाओं के सम्मान में अनेकों कार्यक्रम आयोजित हो रहे थे, वहीं पाकिस्तान में इस दिन महिलाओं के साथ बर्बरता की खबर सामने आई है।
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BREAKING: Religious parties rally on the other side of the road started throwing bricks, sticks, and shoes at the #AuratMarch2020 in #Islamabad outside the press club, tried breaking the barrier formed by police in between. pic.twitter.com/Ij8dBMuMYr
— Usama Khilji (@UsamaKhilji) March 8, 2020
दरअसल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर पाकिस्तान के कई शहरों में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ 'औरत मार्च' निकाला गया। इस दौरान 'मेरा जिस्म, मेरी मर्जी' जैसे कई नारों से पाकिस्तान की सड़कें गूंज उठीं। इस मार्च का आयोजन 'हम औरतें' नाम के एक समूह ने किया था। महिलाओं ने ये मार्च अपने बुनियादी अधिकारों के लिए निकाला।
जानकारी के मुताबिक, जिन मुद्दों के खिलाफ यह मार्च निकाला उनमें ऑनर किलिंग्स, एसिड हमलों, महिलाओं की शिक्षा से इनकार करना और उत्पीड़न शामिल हैं। पुरुषों ने भी मार्च में भाग लिया और कहा कि वे महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने की दिशा में काम करेंगे। रैली में शामिल लोगों ने हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए मौलिक अधिकारों की मांग की। यह कुछ कट्टरपंथियों को रास नहीं आया। इन मुस्लिम कट्टरपंथियों ने औरत मार्च पर लाठी-डंडों, पत्थरों और जूतों से हमला कर दिया।
इस्लामाबाद के जिला उपायुक्त हमजा शफकात ने बताया कि जब महिलाओं ने 'औरत मार्च' निकाला तो पुरुषों ने भी समानांतर रैली निकाली। पुरुषों की रैली में स्थानीय आतंकी समूहों के सदस्य भी शामिल हुए थे। पुलिस ने बताया कि, कानून तोड़ने और हमले के आरोप में मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा।
कुछ कट्टरपंथियों ने औरत मार्च पर रोक लगाने की मांग को लेकर इस्लामाबाद हाई कोर्ट में याचिका भी दी दायर की थी। हालांकि कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी थी। औरत मार्च पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका को कोर्ट ने उचित नहीं माना था और इसे गैर-जरूरी करार दिया था।
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महिला दिवस: चाणक्य नीति के अनुसार इन कामों में पुरुषों से कई गुना आगे होती हैं महिलाएं
चैतन्य भारत न्यूज
आचार्य चाणक्य ने महिलाओं और पुरुषों के संबंधों के बारे में कई सारी बातें कही हैं। उन्होंने चाणक्य नीति में महिलाओं के बहुत से गुणों का भी वर्णन किया है। चाणक्य ने बताया है कि महिलाएं कई मामलों में पुरुषों से ज्यादा आगे रहती हैं। आइए जानते हैं वो कौन-कौन से गुण हैं जो आचार्य चाणक्य ने बताए हैं-
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स्त्रीणां दि्वगुण आहारो बुदि्धस्तासां चतुर्गुणा।
साहसं षड्गुणं चैव कामोष्टगुण उच्यते।।
चाणक्य नीति में लिखे हुए इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने महिलाओं के चार गुणों का वर्णन किया है। पहला गुण उन्होंने बताया कि 'स्त्रीणां दि्वगुण आहारो' अर्थात महिलाओं को ज्यादा ऊर्जा के लिए अधिक कैलोरी की जरूरत होती है। ऐसे में उन्हें अधिक मात्रा में खाना जरुरी होता है।
आचार्य चाणक्य ने महिलाओं के दूसरे गुण के बारे में बताया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा सुझबूझ वाली होती हैं। उनके अंदर पुरुषों से ज्यादा समझदारी होती है। अपने इसी गुण की वजह से महिलाएं जीवन में आने वाली सभी परेशानियों का सामना आसानी से कर लेती हैं और उनसे उबर जाती हैं।
आम धारणा है कि महिलाएं पुरुषों से मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं लेकिन आचार्य चाणक्य की इस मामले में बिलकुल विपरीत सोच है। उनका मानना है कि महिलाओं में पुरुषों से 6 गुना ज्यादा साहस होता है।
चाणक्य नीति के मुताबिक, महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक श्रृंगारिक और प्रेमी प्रकृति की होती हैं। उनमें 8 गुना ज्यादा काम भावना होती है।
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महिला दिवस: इन 5 महिलाओं ने बदली भारतीय राजनीति की तस्वीर, नेतृत्व क्षमता को सभी हुए नतमस्तक
चैतन्य भारत न्यूज
आज के जमाने में महिलाएं हर मामले में पुरुषों की बराबरी पर हैं। वह घर से लेकर बाहर तक सभी बड़ी जिम्मेदारियां संभाल रही हैं। फिर चाहे वो अंतरिक्ष पर जाना हो या सेना में ही शामिल होकर देश की रक्षा करना हो। इन सब महिलाओं के साथ ही भारत की उन महान राजनीतिज्ञों को भी नहीं भूल सकते हैं जिन्होंने भारत के निर्माण के लिए अहम योगदान दिया है। महिला दिवस के मौके पर हम आपको भारत की उन पांच नेत्रियों के बारे में बता रहे हैं जिनकी नेतृत्व क्षमता ने सभी को नतमस्तक किया।
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू एक स्वंत्रता सेनानी, कवियत्री और भारत की पहली महिला गवर्नर थीं। उनका जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ था। देश को आजादी दिलाने में सरोजिनी नायडू ने अहम भूमिका निभाई थीं। उनका निधन 2 मार्च 1949 में हुआ था।
इंदिरा गांधी
देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वो पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें साल 1971 में भारत रत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इंदिरा गांधी को आयरन लेडी भी कहा जाता है.
एनी बेसेंट
साल 1917 में कोलकाता में एनी बेसेंट कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष चुनी गईं थीं। एनी बेसेंट मूल रूप से आयरलैंड की निवासी थीं। वह उन विदेशियों में शामिल थीं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। फिर उनकी रूचि थियोसॉफी में जागी और फिर वह साल 1875 में स्थापित किए गए थियोसॉफिकल सोसाइटी की लीडर बन गईं।
सुचेता कृपलानी
भारत के किसी राज्य की प्रथम महिला मुख्यमंत्री का गौरव पाने वाली सुचेता कृपलानी ( सुचेता मजूमदार ) ही थीं। वह एक स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। सुचेता कृपलानी ने 2 अक्टूबर 1963 को उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
विजयलक्ष्मी पंडित
विजयलक्ष्मी पंडित पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की छोटी बहन थीं। आजादी के बाद साल 1947 से 1949 तक रूस में राजदूत रह चुकी हैं। साल 1953 में विजयलक्ष्मी पंडित यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं थीं। विजयलक्ष्मी पंडित पहली महिला थीं जो यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं। फिर 1946 में संविधान सभा में चुनी गईं। उन्होंने औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी और बातें मनवाईं।
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Women's Day: जानें कब और कैसे हुई अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरूआत, बेहद खास है इस साल की थीम
चैतन्य भारत न्यूज
हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (international women's day) मनाया जाता है। इस दिन सभी देश चाहे वह विकसित हो या विकासशील मिलकर महिला अधिकारों की बात करते हैं। 8 मार्च को पूरी दुनिया की महिलाएं देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। आइए एक नजर डालते हैं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास पर।
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कब से हुई इसकी शुरुआत
साल 1908 में एक महिला मजदूर आंदोलन के कारण महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। इस दिन 15 हजार महिलाओं ने नौकरी के घंटे कम करने, अच्छा वेतन और अन्य कई अधिकारों की मांग को लेकर न्यूयॉर्क में प्रदर्शन किया था। इसके एक साल बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने इस दिन को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया। साल 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं का एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मलेन में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाने का सुझाव दिया गया और फिर यह दिन दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में लोकप्रिय होने लगा। 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मान्यता साल 1975 में मिली थी। संयुक्त राष्ट्र ने एक थीम के साथ इस दिन को मनाने की शुरूआत की थी।
महिला दिवस 2020 की थीम
संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष महिला दिवस के लिए ''मैं जनरेशन इक्वेलिटी: महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही हूं'' (I am Generation Equality: Realizing Women’s Rights) थीम निर्धारित की है। इस थीम के जरिए संयुक्त राष्ट्र महिलाओं की पीढ़ी को जोड़ रहा है। वह यह सुनिश्चित करना चाह रहा है कि हर पीढ़ी की महिलाएं एक दूसरे को सशक्त करें। इस थीम का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त करना है।
कहां कैसे मनाया जाता है महिला दिवस
महिला दिवस हर देश में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। कहीं पर इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है तो कहीं इस दिन महिलाओं को छुट्टी दी जाती है। कुछ देशों में महिलाओं को फूल देकर सम्मानित किया जाता है। अमेरिका में यह महीना 'विमेन्स हिस्ट्री मंथ' के रूप में मनाया जाता है।
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महिला दिवस: इन 5 महिलाओं ने बदली भारतीय राजनीति की तस्वीर, नेतृत्व क्षमता को सभी हुए नतमस्तक
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आज के जमाने में महिलाएं हर मामले में पुरुषों की बराबरी पर हैं। वह घर से लेकर बाहर तक सभी बड़ी जिम्मेदारियां संभाल रही हैं। फिर चाहे वो अंतरिक्ष पर जाना हो या सेना में ही शामिल होकर देश की रक्षा करना हो। इन सब महिलाओं के साथ ही भारत की उन महान राजनीतिज्ञों को भी नहीं भूल सकते हैं जिन्होंने भारत के निर्माण के लिए अहम योगदान दिया है। महिला दिवस के मौके पर हम आपको भारत की उन पांच नेत्रियों के बारे में बता रहे हैं जिनकी नेतृत्व क्षमता ने सभी को नतमस्तक किया।
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू एक स्वंत्रता सेनानी, कवियत्री और भारत की पहली महिला गवर्नर थीं। उनका जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ था। देश को आजादी दिलाने में सरोजिनी नायडू ने अहम भूमिका निभाई थीं। उनका निधन 2 मार्च 1949 में हुआ था।
इंदिरा गांधी
देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वो पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें साल 1971 में भारत रत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इंदिरा गांधी को आयरन लेडी भी कहा जाता है.
एनी बेसेंट
साल 1917 में कोलकाता में एनी बेसेंट कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष चुनी गईं थीं। एनी बेसेंट मूल रूप से आयरलैंड की निवासी थीं। वह उन विदेशियों में शामिल थीं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। फिर उनकी रूचि थियोसॉफी में जागी और फिर वह साल 1875 में स्थापित किए गए थियोसॉफिकल सोसाइटी की लीडर बन गईं।
सुचेता कृपलानी
भारत के किसी राज्य की प्रथम महिला मुख्यमंत्री का गौरव पाने वाली सुचेता कृपलानी ( सुचेता मजूमदार ) ही थीं। वह एक स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। सुचेता कृपलानी ने 2 अक्टूबर 1963 को उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
विजयलक्ष्मी पंडित
विजयलक्ष्मी पंडित पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की छोटी बहन थीं। आजादी के बाद साल 1947 से 1949 तक रूस में राजदूत रह चुकी हैं। साल 1953 में विजयलक्ष्मी पंडित यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं थीं। विजयलक्ष्मी पंडित पहली महिला थीं जो यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं। फिर 1946 में संविधान सभा में चुनी गईं। उन्होंने औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी और बातें मनवाईं।
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