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#गंगा और जमुना नदी
मंद-मंद मुस्कात मुसाफिर, है महबूब परेवा वो |
ब्रह्मा विष्णु महेश शेष से, सब देवनपति देवा वो |
अमृतकंद इन्द्री नहीं मोसर, अमी महारस मेवा वो |
कोटि सिद्ध परसिद्ध चरण में, जाकी कर ले सेवा वो |
तीरथ कोटि नदी सब चरणों, गंगा जमुना रेवा वो |
सबके घर दर आगे ठाढा, कोई ना जाने भेवा वो |
रिंचक सा प्रपंच भरया है, अवगत अलख अभेवा वो |
समर्थ दाता कबीर धनि है, और सकल है लेवा वो |
गरीबदास कूं सतगुरु मिलिया, भवसागर का खेवा वो ||
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esarkariresult · 1 year
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भारत की नदियाँ
भारत की नदियाँ
भारत का अपवाह तंत्र (भारत की नदियाँ) अपवाह तंत्र एक ऐसा नेटवर्क है जिसमें नदियां एक दूसरे से मिलकर जल के एक दिशीय प्रवाह का मार्ग बनाती हैं। किसी नदी में मिलने वाली सारी सहायक नदियां और उस नदी बेसिन के अन्य लक्षण मिलकर उस नदी का अपवाह तंत्र बनाते हैं। भारत का भूगोल :भारत का परिचय (Introduction to India) भारत के पर्वत व पहाड़िया (Indian Mountains and Hills) भारत के दर्रे (Important Maountain Passes of India) भारत की अपवाह तंत्र को मुख्यतः २ भागो में बांटा जा सकता है - 1) हिमालय का अपवाह तंत्र (नदी प्रणाली) 2) प्रायद्वीपीय का अपवाह तंत्र (नदी प्रणाली)
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Image Source: NCERT हिमालय का अपवाह तंत्र (नदी प्रणाली)- सिंधु नदी तंत्र -सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत के मानसरोवर झील (बोखार चाऊ ग्लेशियर) से हुआ है। -इसकी कुल लम्बाई 2880 km है। -इस नदी के दाये ओर प्रसिद्ध पर्यटक स्थल लेह स्थित है। -इसकी 5 प्रमुख सहायक नदियाँ है - 1.चेनाब नदी 2.झेलम नदी 3.रावी नदी 4.सतलुज नदी 5.व्यास नदी चेनाब नदी -चेनाब सिंधु नदी के सबसे बड़ी सहायक नदी है। -इस नदी का उद्गम हिमांचल प्रदेश के ख१२ लारा दर्रा (लाहुल में बाड़ालाचा ला दर्रे) से होता है। -इस नदी को हिमांचल प्रदेश में चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है क्योकि यह हिमांचल प्रदेश की दो नदियों (चंद्रा नदी और भागा नदी ) से मिलकर बानी है। झेलम नदी -इसका उद्गम वेरीनाग झील से होता है। - इसके किनारे श्रीनगर शहर स्थित है। रावी नदी -रावी नदी का उद्गम हिमांचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे से होता है। सतलुज नदी -इसका उद्गम तिब्बत के राक्षस ताल से होता है। व्यास नदी -इस नदी का उद्गम स्थान भी हिमांचल प्रदेश का रोहतांग दर्रा है। -व्यास नदी सतलुज नदी से हरिके (पंजाब ) नामक स्थान पर मिलती है। हरिके से ही भारत की सबसे लम्बी नहर -इंदिरा गाँधी नहर की शुरुआत होती है। गंगा नदी तंत्र -गंगा नदी उद्गम उत्तराखंड के उत्तरकाशी में स्थित गोमुख के गंगोत्री ग्लेशियर से हुआ है। -गंगा नदी भारत क�� सबसे लम्बी नदी है जिसकी लम्बाई 2525 km है। -गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा 2008 में मिला। -गंगा को बांग्लादेश में पद्मा के नाम से जाना जाता है। कानपुर शहर इस नदी के किनारे स्थित सबसे बड़ा शहर है। -इसकी प्रमुख सहायक नदी है - यमुना नदी कोसी नदी गोमती नदी दामोदर नदी घाघरा नदी गंडक नदी रामगंगा यमुना नदी -यमुना नदी गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। -इसका उद्गम उत्तराखंड के बंदरपूछ में स्थित यमनोत्री ग्लेशियर से होता है। -इसका प्राचीन नाम कालिंदी था। -दिल्ली शहर यमुना नदी के किनारे स्थित है। -इसकी प्रमुख सहायक नदी है - चम्बल नदी - इसका उद्गम जानपाव पर्वत (इंदौर ) से होता है। चम्बल यमुना से इटावा में मिलती है। बेतवा नदी - इसका उद्गम भोपाल से होता है। साँची शहर इसी नदी के किनारे स्थित है। बेतवा यमुना से हमीरपुर में मिलती है।           केन नदी - कोसी नदी - यह नदी मुख्य रूप से बिहार में बहती है। - इसे बिहार का शोक कहा जाता है। दामोदर नदी - यह नदी मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में बहती है। - इसे बंगाल का शोक कहा भी जाता है। - इसका उद्गम स्थान छोटा नागपुर का पठार है। -इसे जैविक मरुस्थल भी कहा जाता है। - यह आगे चलकर हुगली नदी से मिलती है। गोमती नदी -इसका उद्गम पीलीभीत में फुलहर झील (गोमत ताल ) से होता है। सोन नदी -इसका उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से होता है। ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र -ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत के मानसरोवर झील ( चेमायुंगडुंग ग्लेशियर ) से होता है। -ब्रह्मपुत्र को विभिन्न नामो से जाना जाता है- चीन में सांगपो अरुणाचल प्रदेश में दिहांग असम में ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में जमुना -विश्व का सबसे बड़ा नदीय द्वीप - मञ्जुली द्वीप ब्रह्मपुत्र नदी में असम में स्थित है। - इस नदी पर स्थित प्रमुख शहर है - डिब्रूगढ़ (असम ) व गुवाहाटी (असम ) -ब्रह्मपुत्र नदी की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है - देबांग सनकोसी सनसूरी मानस विश्व के सबसे बड़े डेल्टा - सुंदरवन डेल्टा का निर्माण गंगा व ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा किया जाता है। इसे सुंदरवन डेल्टा इसमें पाए जाने वाले सुंदरी वृक्ष के कारण कहा जाता है। प्रायद्वीपीय का अपवाह तंत्र (नदी प्रणाली)- नर्मदा नदी -नर्मदा का उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से होता है। -यह भ्रंश घाटी से होकर बहने वाली नदी है (विंध्य और सतपुड़ा के बीच) -यह मध्य प्रदेश (सबसे अधिक ),महाराष्ट्र ,गुजरात से होते हुए अरब सागर में जाकर गिरती है। अरब सागर में गिरने वाली सबसे बड़ी नदी है। -इसका प्रवाह पूर्व से पश्चिम की ओर है अर्थात यह पश्चिम की ओर बहने वाली नदी है। -जबलपुर शहर इस नदी के किनारे बसा एक प्रमुख शहर है। तापी नदी -तापी का उद्गम मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुल्ताई की पहाड़ियों से होता है। -यह भ्रंश घाटी से होकर बहने वाली नदी है ( सतपुड़ा और अजंता के बीच) -यह मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र (सबसे अधिक ) ,गुजरात से होते हुए अरब सागर में जाकर गिरती है। -इसका प्रवाह पूर्व से पश्चिम की ओर है अर्थात यह भी पश्चिम की ओर बहने वाली नदी है। -सूरत शहर इस नदी के किनारे बसा एक प्रमुख शहर है। गोदावरी नदी -गोदावरी नदी का उद्गम नासिक के त्रियम्बक पहाड़ी से होता है। -यह महाराष्ट्र (सबसे अधिक ) ,तेलंगाना , छत्तीसगढ़ ,आंध्र प्रदेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। -यह दक्षिण भारत / प्रायद्वीप भारत की सबसे लम्बी नदी है। -इसे अन्य नामो से भी जाना जाता है - दक्षिण गंगा और बूढ़ी गंगा -इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ है - पेनगंगा - गोदावरी की सबसे बड़ी सहायक नदी वर्धा नदी इंद्रावती नदी मंजरा नदी कृष्णा नदी -कृष्णा नदी का उद्गम महाराष्ट्र में महाबलेश्वर पहाड़ी से होता है। -यह महाराष्ट्र,कर्नाटक (सबसे अधिक ) ,तेलंगाना,आंध्र प्रदेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। -श्रीरंगपटनम (कर्नाटक ) शहर इसी नदी के किनारे स्थित है। -इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ है - तुंगभद्रा नदी - कृष्णा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। हम्पी शहर इसी नदी के किनारे है। डॉन भीमा पंचगंगा दूधगंगा मालप्रभा घाटप्रभा कावेरी नदी -कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक में ब्रह्मगिरि पहाड़ी से होता है। -यह कर्नाटक (सबसे अधिक ) और तमिलनाडु से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। -कावेरी को दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है। महानदी -महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ में रामपुर जिले के सिहाबा पहाड़ी से होता है। -यह छत्तीसगढ़ (सबसे अधिक ), मध्य प्रदेश और ओडिशा से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। -कटक शहर इसी नदी के किनारे स्थित है। माही नदी -यह नदी कर्क रेखा (२२ १/२ ०) को दो बार कटती है। लूनी नदी - राजस्थान में बहती है। स्वर्णरेखा नदी -इसका उद्गम झारखण्ड के छोटा नागपुर के पठार से होता है। -यह झारखण्ड ,पश्चिम बंगाल ,ओडिशा में बहती है। -जमशेदपुर शहर इसी नदी के किनारे स्थित है। Read the full article
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more-savi · 1 year
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Banaskatha mai Ghumane ki Jagah
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Banaskatha mai Ghumane ki Jagah
बन���सकांठा पालनपुर में घूमने के लिए कई दिलचस्प स्थान हैं। बनासकांठा जिला गुजरात के सबसे बड़े जिलों में से एक है। बनासकांठा नदी के किनारे स्थित जिले का नाम बनासकांठा नदी के नाम पर रखा गया है, जो इसके माध्यम से बहती है। बनासकांठा जिले का मुख्य आकर्षण अम्बाजी का मंदिर है। यह शहर गुजरात और राजस्थान की सीमा के पास स्थित है, इसलिए यह घूमने के लिए एक बेहतरीन जगह है। Jessore Sloth Bear Sanctuary, Banaskatha. जेस्सोर वन्यजीव अभयारण्य बनासकाठा जिले में एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह सनराइज पॉइंट, आवास सुविधाओं और शिविर सुविधाओं का एक सांस लेने वाला दृश्य प्रस्तुत करता है। कैम्प का ग्राउंड कॉटेज, डॉर्मिटरी रूम और कैंपिंग सुविधाएं प्रदान करता है। Shri Kedarnath Mahadev's Banaskantha Temple मंदिर तक कुल 300 सीढ़ियाँ जाती हैं, जो बनासकांठा जिले में जेस्सोर वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित है। इस मंदिर में एक शिवलिंग है जिसे गर्भगृह के अंदर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर पांडवों का निवास स्थान था, जिन्होंने प्राचीन काल में यहां भगवान शिव की पूजा की थी। गंगा जी कुंड और जमुना जी कुंड मंदिर के मैदान में दो साफ पानी के तालाब हैं। Shri Vishweshwar Mahadev Temple, Banaskantha मंदिर शिव को समर्पित है। महाशिवरात्रि और श्रावण सोमवार के दिन बड़ी संख्या में लोग यहां भगवान शिव की पूजा करने के लिए इकट्ठा होते हैं। Balram Palace, Banaskantha महल का निर्माण 1922 और 1936 के बीच पालनपुर के शाही परिवार द्वारा किया गया था, जो उस समय इसके मालिक थे। Ambaji Temple, Banaskantha यह मंदिर राजस्थान और गुजरात की सीमा के पास बनासकांठा जिले में स्थित है। बहुत से भक्त प्राचीन काल से ही इस मंदिर में देवी माँ को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती का हृदय यहां गिरा था, और उसकी रक्षा के लिए शक्तिपीठ का निर्माण किया गया था। यह एक शानदार संरचना है। Kamakshi Devi Temple at Banaskantha यह मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बनाया गया है और देवी कामाक्षी का सम्मान करता है, जो मंदिर की संरक्षक देवी हैं। Paniyari Falls, Banaskantha बनासकांठा जिले का एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण पानायारी जलप्रपात है। यह क्षेत्र घने जंगल से घिरा हुआ है और यहां केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता है। Hawai Pillar Banaskantha बनासकांठा में वायु स्तंभ के नाम से जाना जाने वाला एक ऐतिहासिक स्मारक है, जिसे 1824 में अंग्रेजों ने बनवाया था। इसका उद्देश्य क्षेत्र में वायुमंडलीय दबाव को मापना है। How to reach Banaskatha बनासकांठा कई तरीकों से पहुंचा जा सकता है। बनासकांठा से लगभग 174 किमी अहमदाबाद का सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। बनासकांठा जाने के लिए आप टैक्सी या बस ले सकते हैं। पालनपुर जंक्शन बनासकांठा जिले में एक अच्छी तरह से जुड़ा हुआ रेलवे स्टेशन है। अपने शहर से, पालनपुर जंक्शन के लिए ट्रेन लें, फिर टैक्सी या बस लें। बनासकांठा गुजरात और पड़ोसी राज्यों के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। अहमदाबाद, वडोदरा और सूरत जैसे शहरों से बस या टैक्सी द्वारा बनासकांठा पहुंचा जा सकता है। Delhi mai Ghumane layak Jagah Read the full article
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pradeshjagran · 5 years
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जब घर में घुसा बाढ़ का पानी, पति पत्नी करने लगे रोमांस...वायरल हो रही तस्वीर
जब घर में घुसा बाढ़ का पानी, पति पत्नी करने लगे रोमांस…वायरल हो रही तस्वीर
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में बाढ़ से लोगों का जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। गंगा और जमुना नदी का जलस्तर बढ़ने की वजह से लोगों के घरों में कई फीट तक पानी भर चुका है। परेशान लोग प्रशासन से सहायता मांग रहे हैं।
बड़े स्तर पर प्रयागराज में बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। NDRF की कई टीम लोंगों की मदद करने में जुटी हुई हैं।
तस्वीरों ने उड़ाए होश
प्रयागराज में…
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srbachchan · 6 years
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DAY 3844
Jalsa, Mumbai             Sept 26/27,  2018               Wed/Thu  12:54 AM
“ .... जीवन एक बहती हुई नदी है  । प्रयाग ( इलाहबाद , गंगा जमुना का संगम ), में गंगा-स्नान का आनंद लेने के लिए यह आवश्यक नहीं की पहले गंगोत्री , या हरिद्वार में डुबकी लगा ली जाए  । कहीं कहीं आपको पूर्वापर सम्बंध का अभाव खटक सकता है  ; पर इस कमी को आप अपनी थोड़ी-सी कल्पना से पूरा कर सकते हैं  ।”
“ मेरे बहुत से मित्रों ने  ‘ क्या भूलूँ क्य�� याद करूँ ‘ की प्रशंसा अतिशयोक्तियों  में की है । उनके प्रति आभार प्रकट करता हूँ । साथ ही मैं ये भी जानता हूँ , की जो कलाकार मित्रों की प्रशंसा का विश्वास करता है , वो विनाश के पथ पर है  । इसी लिए बाबा तुलसीदास ने उत्तम कृति का मापदण्ड ये रखा है कि  ‘ सहज बयर बिसराई रिपु , जो सुनि करहिं बखान ‘ । पर ये तो उस ज़माने में लिखा गया था जब लोग दुश्मन और दुश्मन के सृजन में अंतर कर सकते थे । दृष्टि - संकीर्णता के इस युग में उनके अविरोध अथवा मौन को उनका ‘बयान ‘ मान लेना होगा । शायद कुछ ग़लती कर रहा हूँ । विरोध का स्वर अभी मैंने नहीं सुना तो क्या ; मौन अवज्ञा का भी हो सकता है । उपेक्षा से बढ़कर अपमान भी कोई होता है ? “
Life is a flowing river  .. to enjoy the bathing in the Ganga at  Prayag, Allahabad, the city at the confluence of Ganga and Jamuna rivers, Sangam , it is not necessary to have bathed first at Gangotri, the mouth of the Ganga or Haridwaar, a religious city by the Ganga river considered sacred .. at times the  lack of the connect of what precedes and the following , can be disturbing .. but one can overcome this want or lack of, through a little bit of imagination ..
Many of my friends have praised in most exaggerated manner, the first volume of my Autobiography  ‘kya bhoolun kya yaad karoon ‘ .. ( what to forget and what to remember - the opening lines of one of his famous poems ) I am grateful to them .. at the same time I also know that the artist that has faith in the praise from his friends, is on the path of destruction .. that is why the poet Tulsidas, the writer of Ramayan has given the measure of great writing or good creative effort as .. 
  ‘ सहज बयर बिसराई रिपु , जो सुनि करहिं बखान ‘ .. 
But this was written in those times when people were able to distinguish between an enemy and the enemy’s ‘srijan’, its creation , a created enemy , to be able to note a difference .. in todays world of myopic visions , one would have to accept the lack of disagreement, or its silence as their ‘bayan’, as there saying or statement, and believe it .. .. maybe I am making a mistake .. if I have not heard the voice of disagreement or an anti voice , silence can also mean a defiance ..  can not ignoring something, also be the biggest disrespect ..?
The words of my Father come from the foreword of his second volume of his Autobiography ‘needh ka nirmaan phir’ , the building of my nest again .. and one cannot but relish the observations of human meaning, feeling and psychological structures .. the theosophical studies that my Father undertook which led him to work on his PhD on WB Yeats, the Irish poet, a strong study of his in his writings on theosophic manners .. 
The strength of a writer and his vision are ever incomparable .. they see and sense much beyond most normal beings, which is why they are gifted specials .. to be able to spend time in their shadows, is learnings enough .. and it is never too late for learnings .. no matter its absence earlier ; no matter its presence in the present now ..
Of this I am certain .. those times spent with his, my Father’s, mind, shall ever remain an incomplete education .. there is so much, so much immensely more .. that, then, is inspirational enough to pursue his works and his writings .. it would be a dishonour not to do so ..
Its been a day of rest after long .. but the discomfort of excess, the monotony of idle ware , and the uncertainty of the next , pulsates within .. hopefully it shall be evaded by the morrow .. 
For then shall there be uniformity in form ..
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Amitabh Bachchan 
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abhay121996-blog · 3 years
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'यारलुंग जंगबो नदी पर हाइड्रोपॉवर स्टेशन : गलतफहमी द्विपक्षीय सहयोग के लिए हानिकारक है' Divya Sandesh
#Divyasandesh
'यारलुंग जंगबो नदी पर हाइड्रोपॉवर स्टेशन : गलतफहमी द्विपक्षीय सहयोग के लिए हानिकारक है'
बीजिंग| मैंने कई लेख लिखे हैं और मैं यह बताना चाहता हूं कि चीन और भारत के संबंधों में सबसे महत्वपूर्ण बात आपसी समझ और सहयोग है। हालांकि, दोनों देशों के संबंध अक्सर गलतफहमियों से गंभीर रूप से ग्रस्त हो जाते हैं। इस संबंध में, मीडिया की जिम्मेदारी अपरिहार्य है। उदाहरण के लिए, हाल ही में कुछ भारतीय मीडिया ने तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की यारलुंग जंगबो नदी पर चीन के जलविद्युत स्टेशन के निर्माण को बढ़ा-चढ़ाकर रिपोटिंग की और कहा कि यह बांध भारतीय निवासियों के हितों को नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए, भारत को चीन की बांध योजना का ²ढ़ता से विरोध करना चाहिए। हालांकि, जहां तक मुझे पता है कि चीन ने यारलुंग जंगबो नदी पर अब तक कोई बड़ा जलाशय नहीं बनाया है। यारलुंग जंगबो नदी चीन के छिंगहाई-तिब्बत पठार पर बहती है। वह तिब्बत की मिलिन काउंटी से गुजरकर हिमालय पर्वत के सबसे पूर्वी बिंदु पर स्थित नंगा बावा चोटी से दक्षिण की ओर बहने लगती है। यहां पर दुनिया की सबसे बड़ी घाटी यारलुंग जंगबो महा घाटी का आकार संपन्न है। फिर वह चीन-भारत सीमा की वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार कर दक्षिणी तिब्बत के भारत-नियंत्रित क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद असम प्रदेश में बहती है और यहां इसका नाम बदलकर ब्रह्मपुत्र नदी हो जाता है। बांग्लादेश में प्रवेश करने के बाद इसे जमुना नदी कहा जाता है और जहां वह गंगा नदी से मिलकर अंत में बंगाल की खाड़ी में बह जाती है।
यारलुंग जंग्बो नदी गंगा नदी की शाखा नहीं है। यारलुंग जंग्बो नदी की स्थितियां भारत की गंगा नदी की ही तरह हैं। अर्थात् वे अंतर्राष्ट्रीय जल नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी नदी है जिसका ऊपर भाग एक देश में, जबकि निचला भाग एक दूसरे देश में रहता है। निश्चय ही, ऐसी एक नदी पर जल संरक्षण सुविधाओं का निर्माण दूसरे देशों को अनिवार्य रूप से प्रभावित करेगा। उदाहरण के लिए, भारत ने गंगा नदी पर कुछ बांधों का निर्माण भी किया है, ताकि कोलकाता सहित उत्तरी भारत में अधिक पानी आ सके। विशेष रूप से शुष्क मौसम के दौरान, गंगा नदी के आधे पानी का अवरोधन भारत द्वारा किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप निचले भाग की ओर स्थित बांग्लादेश में बहने वाली नदी में पानी की कमी होती है। इस तरह के मुद्दों पर दोनों देशों के राजनयिक और हाइड्रोलॉजिकल विभागों के बीच परामर्श और सहयोग पर भरोसा करना चाहिए। और पड़ोसी देशों के बीच संबंधों का दोस्ताना माहौल भी अपरिहार्य है।
“जहां तक मुझे पता है, चीन ने अभी तक यारलुंग जंग्बो नदी पर केवल छोटी जल संरक्षण सुविधाओं का निर्माण किया है। दूसरे शब्दों में, चीन ने यारलुंग जंगबो नदी के पानी-बहाव को बाधित नहीं किया है। और पिछले साल सीमा संघर्ष से पहले, चीन और भारत के बीच सामान्य हाइड्रोलॉजिकल डेटा एक्सचेंज का संचालन किया जा रहा था। और अब तक, चीन की यारलुंग जंगबो नदी की निचली पहुंच पर पनबिजली स्टेशनों को बढ़ावा देने की कोई योजना नहीं है। हालांकि, यदि भारत के द्वारा सिंधु नदी और गंगा नदी की ऊ��री पहुंच पर बड़े बांध बनाने की स्थिति को देखते हैं, तो अपनी नदियों पर चीन के जल संरक्षण सुविधा निर्माण के बारे में कुछ भी अनुचित नहीं है।”
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यारलुंग जंगबो नदी की घाटी दुनिया में सबसे अमीर जलविद्युत संसाधनों वाला क्षेत्र माना जाता है। महा घाटी में सबसे ऊपर क्षेत्र से नदी की सतह तक ऊंचाई का अंतर दो हजार से अधिक मीटर है, जो इस क्षेत्र को दुनिया के सबसे प्रचूर जल विद्युत संसाधनों के साथ बनाता है। यहां 4 करोड़ किलोवाट क्षमता वाले जल विद्युत स्टेशन का निर्माण किया जा सकता है। यह उत्सर्जन में कमी और ‘कार्बन न्यूट्रल’ के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि, यारलुंग जंगबो नदी पर बड़े पैमाने वाले जल संरक्षण सुविधाओं के निर्माण के बारे में चीन हमेशा सतर्क रहा है। पड़ोसी देशों से संबंधित बुनियादी ढांचे के निर्माण के प्रति चीन हमेशा पड़ोसियों के साथ समृद्धि और मिलनसार संबंधों के सिद्धांतों का पालन करता रहा है। इसलिए, यारलुंग जंगबो बांध के सवाल पर संबंधित देशों के बीच पेशेवर संपर्क और वार्ता करना सबसे अच्छा है। दोस्ती और सहयोग गलतफहमियों की तुलना में कहीं बेहतर हैं। -आईएएनएस
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imran1-blog1 · 5 years
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टिहरी में 2010 लोगों ने हिमालय बचाने की शपथ लेकर मुहिम को कमर कसी टिहरी। जिले में हिमालय बचाओ, पॉलीथिन हटाओ अभियान की शुरूआत की गई। पहले दिन पूरे जिले में 2010 लोगों ने हिमालय बचाओ अभियान के तहत हिमालय की रक्षा व इसे बचाने की शपथ ली। शपथ लेने वालों ने माना कि हिमालय बचाने को आगे आने की जरूरत है। हिमालय के लिए निरंतर घातक बन रह पॉलीथिन को जड़ से मिटाने की मुहिम में भी जुटना जरूरी है। शपथ लेने वाले संगठनों से हिन्दुस्तान के हिमालय बचाओ अभियान को साथ लेकर मुहिम को आगे बढ़ाने की बात भी रखी। जिला भाजपा कार्यालय में टिहरी विधायक धन सिंह नेगी ने पचास भाजपा कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को हिमालय बचाने की शपथ दिलाई। उन्होंने अभियान की प्रशंसा करते हुए कहा कि निरंतर चलाये जा रहे इस अभियान से लोगों में जागरूकता बढ़ी है। अभियान को आत्मसात करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण आज की बड़ी जरूरत है। इसके लिए लोग गीला व सूखा कूड़ा निस्तारण में अपनी भागदारी सुनिश्चित करें। पॉलीथिन का प्रयोग न करें। वातावरण को स्वस्थ बनाने के लिए समय-समय पर पौधरोपण कर वृक्षों के संरक्षण को आगे आयें। भाजपाइयों में बेबी असवाल, कुसुम चौहान, विक्रम कठैत, विनोद रतूड़ी, रवि सेमवाल, विजय कठैत, अबरार अहमद, गोपी राम चमोली, भूपेंद्र चौहान, राकेश लवली, जगवीर रावत, उर्मिला राणा, विकास चमोली आदि ने कहा की सरकार प्रदेश सरकार भी पर्यावरण को लेकर चिंतित होकर कई अभियान चला रही है। हिन्दुस्तान के इस अभियान से प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण को बल मिला है। नई टिहरी के संस्कृत महाविद्यालय में प्राध्यापक शक्ति प्रसाद उनियाल ने 30 छात्रों को स्टाफ सहित शपथ दिलाई। उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि हिमालय का संरक्षण बेहद जरूरी है। इसके लिए हिमालय की तहलटी में रहने वाले लोगों को तत्परता से आगे आना होगा। ताकि हिमालय में मंडरा से पर्यावरण प्रदूषण के खतरे से निपटा जा सके। बौराड़ी में अवस्थित संत निरंकारी मिशन आश्रम में के उन्मूलन को जरूरी है। इस मौके पर मिशन के प्रमुख संपत लाल शाह सहित मिशन से जुड़े राजीव उनियाल, नीलम नेगी, सुंदर सिंह नेगी, मुसड़ी लाल, रमेश चंद्र, नीलम रावत, शमा देवी, अनीता रावत, उर्मिला भंडारी, सुमित्रा, विशा पंवार, अंजलि तोपवाल, रामलाल आदि ने मौके पर कहा कि हिंदुस्तान के हिमालय बचाओ अभियान को समर्थन करते हैं। इस मुहिम का आगे बढ़ाने का काम करेंगे। देवप्रयाग में 50 तीर्थ पुरोहितों ने ली शपथ तीर्थनगरी देवप्रयाग में पावन अलकनंदा भागीरथी संगम स्थल पर 50 तीर्थपुरोहितों व तीर्थवासियों ने हिमालय बचाने व पॉलीथिन हटाओ की शपथ ली। शपथ दिलाते हुये प़ं जयप्रकाश जोशी ने हिमालय बचाओ अभियान को आज के दौर की जरूरत बताते हुये कहा कि बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को यदि दूर करना है, तो हिमालय बचाओ अभियान से जुडऩा ही होगा। हिन्दुस्तान के हिमालय बचाओ को अहम बताते हुए तीर्थपुरोहितों ने कहा कि हिमालय के बिना राष्ट्रीय नदी गंगा का भी अस्तित्व मिट जाएगा। तीर्थपुरोहितों ने कहा कि गंगा तीर्थ देवप्रयाग में आनेवाले तीर्थयात्रियो को हिमालय का पर्यावरण बचाने व पॉलीथिन का उपयोग न करने का आग्रह किया जाएगा। तीर्थपुरोहित समाज पूरे देश में हिमालय बचाने का संदेश पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस मौके पर धनेश तिवाडी, कैलाश जोशी, प्रमोद भट्ट, सुरेश टोडरिया, दिनेश प्रयागवाल,जमुना प्रसाद डबराल,विजय ध्यानी ,संतोष भट्ट, भास्कर कोटियाल,डा़ उदय सिंह आदि उपस्थित थे। नरेंद्र नगर में 200 निरंकारी मिशन के लोगों ने ली शपथनिरंकारी मिशन नर���ंद्र नगर में संत निरंकारी सत्संग भवन पर 200 लोगों ने शपथ ली। निरंकारी महात्माओं को हिमालय बचाओ, पॉलीथिन हटाओ की शपथ दिलाते हुये मिशन के प्रमुख कल्याण सिंह नेगी ने कहा पर्यावरण संरक्षण प्रत्येक की जरूरत है। शपथ को जीवन में उताकर हिमालय के संरक्षण पर काम करें। इस मौके पर रमेश असवाल ,दीपक नेगी, अमित राणा, सतपाल रावत, राजेंद्र सिंह राणा, नीलम राणमें निरंकारी भवन में हिमालय बचाओ प्रतिज्ञा 700 लोगों ने ली। शपथ दिलाते हुये प्रमुख कुंदन सिंह रावत ने कहा कि हिमालय मानव के अभिन्न अंग है। मानव जाति व जीवों को बचाये रखने के लिए पर्यावरण संरक्षण अहम है और पर्यावरण संरक्षण हिमालय के संरक्षण के बिना अधूरा है। इस मौके पर दिलवर सिंह पंवार, अनूप सिंह पुंडीर, विजय चंद रमोला, हर्षमणी डोभाल, अजय रावत, सुशीला रावत, लक्ष्मी रमेाला आदि मौजूद रहे। चमियाला में 400 ने संत निरकारी आश्रम में ली शपथ घनसाली के चमियाला में स्थित संत निरंकारी मिशन समागम में पहुंचे 400 लोगों हिमालय बचाने की प्रतिज्ञा ली। उन्होंने हिंदुस्तान की पहल को समाज व मानव के लिए बेहतर बताते हुये कहा कि पर्यावरण संरक्षण को जीवन का हिस्सा बना लिया जाना चाहिए। लंबगांव में डेढ़ सौ ने ली हिमालय बचाने की शपथ हिंदुस्तान हिमालय बचाओ अभियान के तहत धननिरंकार से जुड़े लोगों ने हिमालय बचाओ, पॉलीथिन हटाओ की शपथ ली। धन निरंकार भवन लबगांव में मुखी देवी सिंह पवार ने 150 लोगों को शपथ दिलाई। उन्होंने कहा कि हिमालय जल, जंगल, जमीन, जन, जंतु, का जीवन निर्भर करता है। इसकी रक्षा के लिए सभी लोगों को दायित्व की भावना से आगे आना चाहिए। सिरताज सिंह सजवाण व धूम सिंह रागड़ ने कहा कि हिमालय का अस्तित्व बचाने के लिए बंजर पड़ी भूमियों पर वृक्षारोपण करने के साथ ही पॉलिथीन को समूल नष्ट करने का काम होना चाहिए। इस मौके पर सुमेर सिंह रावत, कमल प्रकाश, ओमपाल सिंह बिष्ट, खुशपाल राणा ,विजेंद्र सिंह राणा, मदन सिंह सजवाण ,मानवेंद्र शाह, जमुना देवी ,मुन्नी देवी ,उषा, रजनी, नत्थी सिंह पवार, विनोद, आदि लोगों ने शपथ ली। थत्युड़ में 20 बच्चों ने शपथ थत्युड़ के ग्राम परोड़ी पंचायत भवन प्रांगण में गांव के 20 बच्चों ने हिमालय बचाओ की शपथ ली। इस मौके पर ग्रामीणों व बच्चों को पालीथीन का प्रयोग न करने को प्रेरित किया गया।
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rana2hinditech · 7 years
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05 River Map of India भारत की नदियाँ, भारत की प्रमुख नदियों की सूची
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aapnugujarat1 · 5 years
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परिसीमन बाद में, पहले धारा 370 हटाइयेजी, 303 सीटें है अब डर काहेका..?
लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा की नइ सरकार बन गई, अमितभाइ शाह नये गृहमंत्री बने है। एक के बाद एक मंत्रीगण और राज्यपाल उनसे मिलने पहुंच रहे है। जम्मु-कश्मिर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक भी शाह से मिले। कश्मिर के बारे में विशेष बैठक भी हुई और खबर आई की कश्मिर राज्य का नये सिरे से परीसीमन किया जायेंगा। बाद में कहा गया की नहीं…नहीं…ऐसी कोइ बात नहीं। सुरक्षा को लेकर बात चल रही है। नई सरकार के पास अपना खुद का 303 सीटोंवाला जनादेश है। कीसे के समर्थन की जरूरत नहीं। ���ीसी से पूछने जाने की भी आवश्यक्ता नहीं। और शाहजीने चुनाव में जोर-शोर से वादा किया था की जैसे ही मोदीजी के नेतृत्व में नई सरकार बनती है कश्मिर की धारा-370 तुरन्त दूर कर दी जायेंगी। देशने भाजपा को मोदीजी के नाम पर और काम पर 303 सीटों वाला प्रचंड बहुमत दिया है ताकि वे जल्द से जल्द वादे पर काम शरू करें। इसलिये कश्मिर को भारत से अलग करनेवाली धारा-370 तुरन्त दूर करें। परिसीमन तो बाद में हो सकता है। लेकिन सब से अहम मुद्दा 370 का है। जिसके लिये देशवासीयों ने मोदी-शाह पर भरोसा कर के भारी जनादेश दिया है। नोर्थ ब्लोक और साउथ ब्लोक से खबरें आ रही है की कश्मिर राज्य के विधानसभा क्षेत्रो का नये सिरे से सीमांकन या परिसीमन करने की बात चल रही है। परिसीमन भी करें इसमें कीसी को कोइ हर्जा नहीं। लेकिन परिसीमन के बहाने धारा-370 को फिर एक कोने में न रख दी जाय ये भी देखना होंगा। परिसीमन करना कोइ लंबी या बडी बात नहीं। परिसीमन आयोग की रचना कर के ये काम किया जा सकता है। ये प्रसाशनिक काम है। कश्मिर के लिये जो सब से बडा मुदेदा है वह धारा 370 हटाना है। 2014 में भाजपा ने वादा किया था। 2019 तक पांच साल में इस पर कुछ नहीं हुवा और 2019 के चुनाव में फिर से वादा किया की ऐसी मजबूत सरकार बनावो की जो कडे से कडा फैंसला ले सके। लिजिये, मतदाताओं ने आप के मन की बात सुनी और 370 का कडा फैंसला लेने के लिये जनादेश दिया तब अब उस पर भी कुछ कार्यवाई हो और देश को लगे की ये सरकार नोटबंदी जैसे कडे निर्णय के साथ धारा 370 दूर करने का कडा निर्णय भी कर सकती है…! चुनाव के वायदे सिर्फ वायदे ही नहीं होते उसे वास्विक अमलीजामा पहनाया जा सकता है ऐसा लोगों को लगना भी चाहिये। माना की बीतें पांच 370 के लिये मन नही माना लेकिन पीडीपी से अलग होने के बाद और कश्मिर की ताजा स्थिति को देखते हुये उसे भारत के साथ मिलाने के लिये 370 दूर करना ही होगा। भाजपा के शिर्ष नेता श्यामाप्रसाद मुखर्जीने कश्मिर के लिये ही अपना बलिदान दिया था। जहां हुये शहिद श्यामाप्रसादजी वह कश्मिर हमारा है…ईस तरह का नारा भी भाजपा ने दिया है बरसों से। श्यामाप्रसादजी को सच्ची श्रध्धांजंलि यही है की 370 मिटा दी जाय और भारत के लोग भी कश्मिर में रह सके, कारोबार कर सके, रोजगार कर सके ताकि जेसे दूध के ग्लास में शक्कर घूलमिल जाती है वैसे ही कश्मिर भी भारत के साथ एक हो जायेगा। कश्मिर के लोग भी कन्याकुमारी तक जा कर रह सकेंगे और कारोबार कर सकेंगे। परिसीमन की चोली के पीछे छीपी धारा 370 को बाहर लाकर लोकसभा में तो मोदीजी सरकार प्रस्ताव ला सकती है। 303 वाला इतना तो कर सकता है। एक बार लोकसभा में 370 हटाने का प्रस्ताव आये ताकी पत्ता चले की प्रतिपक्ष में कौन कहां खडा है…! जेलम नदी का पानी भी इन्तेजार में है की कब 370 हटें और वह भी गंगा-जमुना से जा मिले…! Read the full article
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jmyusuf · 5 years
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विकास के पैमाने पर कहां खड़े हैं पूर्वांचल के मुस्लिम?
'मेरी एक आंख गंगा मेरी एक आंख जमुना, मेरा दिल ख़ुद एक संगम जिसे पूजना हो आए.' नज़ीर बनारसी के इस शेर में ख़ूबसूरत अहसास है उत्तर प्रदेश के पूर्वांचली शहरों के मिज़ाज का. लेकिन इधर कुछ बरसों में ऐसा क्या हुआ है कि इस गंगा-जमुनी तहज़ीब के संगम की एक लहर को अलहदगी का अहसास होने लगा है. क्यों उस लहर को महसूस होने लगा है कि उसे संगम से जुदा करके नदी के किनारों पर धकेलने की कोशिश की जा रही है. इस बदलती तस्वीर और अहसास के पीछे वजह सिर्फ़ और सिर्फ़ सियासत को माना जा रहा है. ऐसी सियासत जिसने धर्म के साथ घुल कर उससे आध्यात्मिकता छीन कर समाज में सांप्रदायिकता का रंग घोल दिया है. सियासत के इसी रंग को समझने के लिये हमने रुख़ किया उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की इन मुस्लिम बस्तियों का. यहां के रहने वाले 2019 के आम चुनाव के आख़िरी तीन चरणों में अपना वोट डालने जा रहे हैं. लेकिन क्या इन मुस्लिम मतदाताओं का वोट उनके मर्ज़ी के उम्मीदवार को संसद भेज पाएगा? क्या इन मतदाताओं के वोट के अधिकार में इतनी ताक़त है, जो इनकी मांगों को पूरा करवा सके? और क्या है इनकी मांगें? कुछ इन्हीं सवालों के साथ हमने पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाताओं से बातचीत की. पूर्वांचल में लोकसभा की 29 सीटे हैं. जिनमें अमेठी, फ़ैज़ाबाद, सुल्तानपुर, गोंडा, कैसरगंज, श्रावस्ती, बहराइच, इलाहाबाद, फूलपुर, प्रतापगढ़, मछलीशहर, जौनपुर, अंबेडकर नगर, बस्ती, डोमरियागंज, मिर्ज़ापुर, वाराणसी, चंदौली, बलिया, ग़ाज़ीपुर, सलेमपुर, घोसी, आज़मगढ़, बांसगांव, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, लालगंज और संत कबीर नगर शामिल हैं. 2014 के आम चुनाव में पूर्वांचल की 29 सीटों में 27 बीजेपी के खाते में गईं. दो सीटों में अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जीते तो आज़मगढ़ से समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की. जंग इस बार भी पूर्वांचल में दिलचस्प है. यहां की चार सीटों पर देश भर की ख़ास निगाह रहेगी. वाराणसी से ख़ुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उम्मीदवार हैं. अमेठी से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं और आज़मगढ़ से समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव मैदान में हैं. इन तीन सीटों के अलावा गोरखपुर की सीट भी नज़रों में इसलिये भी होगी क्योंकि ये सीट 1991 से बीजेपी के पास रही है. लगातार 6 बार ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां से चुनाव जीतते आए हैं. लेकिन उनके मुख्यमंत्री पद संभालते ही ये सीट साल 2018 के उपचुनाव में बीजेपी के हाथ से निकल कर समाजवादी पार्टी के खाते में चली गई. देखना ये है कि बीजेपी गोरखपुर सीट फिर हासिल कर पाती है या नहीं. या योगी आदित्यनाथ ब्रैंड की राजनीति को इस बार फिर हार का मुंह देखना पड़ेगा. योगी आदित्यनाथ अल्पसंख्यकों को लेकर किये गए अपने कमेंट्स के लिये भी विवादों में रहे हैं. उनकी ध्रुवीकरण की राजनीति बीजेपी के नारे सबका साथ सबका विकास को महज़ एक जुमले में तब्दील करती नज़र आती है. इससे लोकतंत्र में जश्न माना जाने वाला चुनाव. जंग सी तल्खियों में बदल जाता है. सच तो ये है कि इस चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ के एक मुस्लिम उम्मीदवार को बाबर की औलाद पुकराने पर चुनाव आयोग ने जवाब तलब किया है. और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाता सबका साथ सबका विकास में क्या ख़ुद को भी साथ पाते हैं. सच तो ये है कि ध्रुवीकरण की राजनीति ने समाज को बांट के रख दिया है. वो भी अलग अलग वोट बैंक की सूरत में. देश की सियासत का ये वो पहलू है, जो सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को कहीं किनारे कर देता है. और चुनाव मुद्दों नहीं जातीय समीकरण पर जीतने की कोशिश होती है. पूर्वांचल में मुस्लिम मतदाताओं के लिये भी मुद्दा बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा और कृषि संकट है. साथ ही बनारस से लेकर भदोही. मऊ से लेकर आज़मगढ़, मिर्ज़ापुर, चंदौली तक बहुत बड़ी तादाद में मुस्लिम बुनकर हैं. इनके आर्थिक हालात दिन ब दिन ख़स्ता होते जा रहे हैं. ख़ास तौर से नोटबंदी के बाद. लेकिन राजनीति की कसौटी पर बंटते समाज में मुस्लिम मतदाता का वोट आर्थिक सुरक्षा से ज़्यादा अपनी ख़ुद की सुरक्षा के लिये जाता है. सच तो ये है कि पूर्वांचल की ज़यादातर लोकसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद बहुत ज़्यादा नहीं है. तो आइये इस नज़रिये से पड़ताल करते हैं, पूर्वांचल के अलग अलग संसदीय क्षेत्र का. सोशल मीडिया पर किसी ने अपने दर्द को कुछ इस तरह बयां किया कि तमाम टीस इन चंद लफ्ज़ों में उभर कर आ गई. आज़मगढ़ का जो मुसलमान 2014 तक आतंकी होने के दाग से जूझ रहा था. वो अब नई दिक्कत से सुलग रहा है. ये नई दिक्कत है राष्ट्रवाद की. जिसके नाम पर मुसलमानों पर बिना पूछे ही लांछन लगा दिया जाता है. आज़मगढ़ में एक बड़ी पुरानी और मशहूर कहावत है. भल मरल, भल पीलूवा पड़ल. इस भोजपुरी कहावत का मतलब है. किसी काम को करने के बाद फौरन उसका नतीजा भी आ जाना. ज़ाहिर है जो तोहमत आज़मगढ़ पर लगा दी गई है, उसे मिटने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ही. और आज़मगढिया लोग इस तोहमत का बदला अपने मत को इस्तेमाल कर ले रहे हैं. 2014 में जब यूपी की तमाम सीटें मोदी के तूफान में बह रही थीं. तब भी यहां कमल नहीं खिल पाया और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने 63 हज़ार वोटों से बीजेपी के रमाकांत यादव को हरा��ा. हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अगर मुलायम सिंह यादव को 36 फीसदी वोट और बीजेपी के रमाकांत यादव को 29 फीसदी वोट मिले तो बीएसपी के उम्मीदवार शाह आलम भी 28 फीसदी वोट बटोरने में कामयाब रहे. अगर एसपी और बीएसपी के वोट प्रतिशत को मिला लें तो 64 फीसदी होते हैं. जो बीजेपी उम्मीदवार के मुकाबले 35 फीसदी ज़्यादा है. और अब तो मोदी की लहर भी वैसी नहीं रही. जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 16 फीसदी मुसलमानों के अलावा 35 फीसदी यादव जबकि करीब 2.5 लाख शाक्य वोटर हैं. यही वजह है कि यहां इस बार भी समाजवादी पार्टी को जीत की पूरी उम्मीद है. ये पूर्वांचल है साहब. यहां हर ढहाई कोस पर ज़बान ही नहीं बदलती. बल्कि इलाके का माईं बाप भी बदल जाता है. आज़मगढ़ से निकलेंगे तो चंद किलोमीटर में मऊ शुरू हो जाएगा. जो घोसी लोकसभा क्षेत्र में आता है. यहां मुख्तार अंसारी के आदमकद पोस्टर आपको बिना बोले ये समझा देंगे कि संभलकर चलना है. क्योंकि ये मुख्तार का इलाका है. यहां हिंदू मुसलमान समीकरण नहीं चलता. यहां सिर्फ मुख्तार का हुक्म चलता है. पिछले 3 दशक से भी ज़्यादा वक्त से यहां के अकेले विधायक हैं मुख्तार अंसारी. पिछले लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो यहां की घोसी लोकसभा सीट से जीतता भी वही है जिस पर अंसारी का हाथ होता है. कहते हैं इस बार सपा-बसपा गठबंधन का समीकरण बदला हुआ नज़र आ रहा है. ये सीट बीएसपी के खाते में आई है जिसने अतुल राय को यहां से उतारा है. खबर है कि अतुल राय को मुख्तार अंसारी का साथ मिल गया है. जो इस बार हरिनारायण राजभर का मुकाबला करेंगे. आज़ादी के बाद पहली बार इस सीट से कोई बीजेपी कैंडिडेट जीता था. वरना यहां डीएमवाई यानी दलित, मुसलमान, यादव का झुकाव समाजवादी और बीएसपी की तरफ ही रहता है. कांग्रेस भी यहां आखिरी बार साल 1991 में चुनाव जीती थी. इस बार गठबंधन मुस्लिमों और अपने परंपरागत वोट बैंक को गोलबंद कर रहा है. मुस्लिम वोट पूर्वांचल के लिए कितना अहम है. इसका अहसास बीएसपी और एसपी के नेता बार बार करा रहे हैं. घोसी सीट की तरह पूर्वांचल की गाज़ीपुर सीट पर भी अंसारी का दबदबा है. ये सीट भी गबंधन के तहत बीएसपी के हिस्से में आई है, जिसने यहां से मुख्तार अंसारी के भाई अफज़ाल अंसारी को चुनावी मैदान में उतारा है. यहां मुख्तार अंसारी के दबदबे के अलावा गठबंधन सीट होने के नाते 10 फीसदी मुसलमानों और दलित यादव वोट मिलकर बीजेपी नेता मनोज सिन्हा का खेल बिगाड़ सकते हैं. गाज़ीपुर सीट के बाद बारी आती है चंदौली लोकसभा सीट की. जहां मुसलमानों की आबादी करीब 11 फीसदी है. और यहां भी कहा जा रहा है कि मुसलमान जिधर झुकेगा जीत उसी की होगी. हालांकि बीजेपी के महेंद्र नाथ पांडे के मुकाबले में यहां समाजवादी पार्टी ने डॉ संजय चौहान को टिकट दिया गया है. इन्ही दोनों के बीच मुख्य मुकाबला है जबकि पिछली बार के सांसद बीजेपी नेता महेंद्रनाथ पांडे की बात करें तो वो सिर्फ इसलिए जीते क्योंकि करीब 4 लाख 60 हज़ार वोट एसपी और बीएसपी कैंडिडेट में बंट गए. इसलिए जीत बीजेपी के हिस्से में आ गई. हालांकि इस बार मामला अलग है क्योंकि एसपी-बीएसपी इस बार यहां से एक साथ मिलकर दम लगा रहे हैं. यहां का 11 फीसदी मुसलमान भी इस बार एसपी कैंडिडेट डॉ संजय चौहान के साथ नज़र आ रहा है. चंदौली की सीमा से लगी हुई मौजूदा वक्त में देश की सबसे वीवीआईपी लोकसभा सीट है वाराणसी. प्रियंका गांधी ने काशी से लड़ने की इच्छा जताकर यहां के चुनाव में तड़का लगा दिया था. फिर मोदी के सामने समाजवादी पार्टी ने पूर्व बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव को उतारा. मगर उनकी उम्मीदवारी भी कैंसिल कर दी गई. तो गठबंधन की शालिनी यादव को टिकट दिया गया. वहीं कांग्रेस ने 2014 के अपने पुराने उम्मीदवार अजय राय को ही मैदान में उतारा है. मगर काशी में अब मोदी का मुकाबला गठबंधन या कांग्रेस से नहीं बल्कि निर्दलीय उम्मीदवार अतीक अहमद से है. जो भौकाल राजा भैय्या का कुंडा में है. मुख्तार अंसारी का गाज़ीपुर में है. वही भौकाल इलाहाबाद से लेकर बनारस तक अतीक अहमद का है. जो इस बार जेल से ही मोदी को चुनाती दे रहे हैं. बनारस में ऐसी ही एक कोशिश मुख्तार अंसारी भी 2009 में कर चुके हैं. जब वो महज़ 17 हज़ार वोटों से डॉ मुरली मनोहर जोशी से मैदान हार गए थे. जबकि तब एसपी, कांग्रेस और अपना दल ने मिलकर करीब ढाई लाख वोट झटक लिए थे. मौजूदा वक्त में तेज बहादुर की दावेदारी खत्म होने के बाद अतीक अहमद ही मोदी के मुख्य प्रतिद्वंदी माने जा रहे हैं. जो 3 लाख मुस्लिमों, करीब दो लाख यादवों और एक लाख दलितों से वोटों की उम्मीद लगाए बैठें हैं. ये कुल वोट 6 लाख होते हैं जबकि मोदी को पिछली दफा 5 लाख 81 हज़ार वोट मिले थे. हालांकि बनारस में कोई उलटफेर हो ऐसा मुमकिन नजर नहीं आता. पूर्वांचल के नक्शे पर बनारस के आसपास की बाकी सीटों मसलन बदोही, मछलीशहर, लालगंज, बलिया, रॉबर्ट्सगंज, सलेमपुर और जौनपुर जैसी सीटें हैं. जहां मुस्लिम या तो 10 फीसदी से कम हैं या उससे थोड़ा सा ज़्यादा. मगर गठबंधन की वजह से यहां उभरे एमवाईडी यानी मुसलमान. यादव और दलित कंबिनेशन कमाल करने की फिराक में है. जबकि पूर्वांचल के बाकी इलाकों में श्रावस्ती, संत कबीर नगर, अंबेडकर नगर, सुल्तानपुर, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया और प्रतापगढ में मुसलमान निर्णायक भूमिका में हैं. मगर इन तमाम ज़िलों में एक अनकही रज़ामंदी इस बात की है कि मुसलमान मिलकर उसी कैंडीडेट को वोट करेगा जो बीजेपी को हराने की हैसियत रखता हो. अब आइये बनारस के बाद पूर्वांचल की दो अहम सीट का गणित समझते हैं. सबसे पहले बात योगी के गढ़ गोरखपुर की जहां 1989 से लेकर 2017 तक पहले महंत अवैद्यनाथ और फिर योगी आदित्यनाथ जीतते आए हैं. मगर साल 2018 में एसपी-बीएसपी गठबंधन की यही प्रयोगशाला बनी. जिसने करीब 30 साल बाद बीजेपी से ये सीट हथिया ली. मुसलमान यहा��� महज़ 9 फीसदी हैं, मगर उनके वोट किस्मत बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं. आपके मन में सवाल उठ सकता है कि अब तक तो योगी को कोई हरा नहीं सका था तो फिर मुसलमान वोटों की अहमियत क्या. मगर आपको बता दें कि यहां वोट बीजेपी को नहीं बल्कि गोरखनाथ मठ के ऊपर पड़ता है. और योगी की गोरखपुर के मुसलमानों के बीच पैठ भी है. मगर पिछले साल हुए चुनाव ने ये साबित कर दिया कि वोट ना बंटें तो योगी को भी हराया जा सकता है. वाराणसी और गोरखपुर के बाद पूर्वांचल की सबसे अहम सीट इलाहाबाद है. वाराणसी से चुनाव लड़ने से पहले 96 से लेकर 99 तक डॉ मुरली मनोहर जोशी यहां से लगातार तीन चुनावों में जीते मगर 2004 में रेवती रमन सिंह ने उनसे ये सीट छीन ली. मगर 2014 की मोदी लहर में उन्हें भी ये सीट गंवानी पड़ी. इस बार बीजेपी को अपनी सीट बचानी है. हालांकि मुमकिन है कि उसे कुंभ के सफल आयोजन का फायदा मिले. कांग्रेस से बीजेपी में गईं और पिलहाल यूपी में मंत्री रीता बहुगुणा जोशी यहां से उम्मीदवार हैं. जातीय समीकरण की बात करें तो सवा लाख यादव, 2 लाख मुस्लिम, और ढाई लाख दलित वोट है यहां. इलाहाबाद की बात हो और फूलपुर की बात ना हो तो सियासत बुरा मान जाएगी. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की लोकसभा सीट. जहां सत्तर साल के इतिहास में एक से एक दिग्गजों ने अपनी किस्मत आज़माई है. एसपी और बीएसपी के गठबंधन की प्रयोगशाला में ये सीट भी शामिल थी. जिसने केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद ये सीट बीजेपी से छीन ली. इस बार यहां बीजेपी और गठबंधन के अलावा कांग्रेस भी मुकाबले में हैं. इस सीट का जातीय समीकरण बताता है कि यहां का ढाई लाख मुस्लिम वोटर जिसकी तरफ भी एक एकमुश्त होकर चला गए जीत उसी की होगी. ज़्यादातर पूर्वांचल संसदीय क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता 9 से 20 फीसदी के आसपास हैं. सबसे ज़्यादा 40 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता बहराइच में है. लेकिन यहां से भी बीजेपी की सावित्री बाई फुले चुनाव जीती थीं. जो इस बार फिर बहराइच से ही कांग्रेस के टिकट पर क़िस्मत आज़मा रही हैं. तो एक सच्चाई ये है कि मुस्लिम मतदाता अपने दम पर नहीं लेकिन एमवाईडी कॉम्बिनेशन का हिस्सा बन कर चुनावी नतीजों पर असर डाल सकते हैं. मुस्लिम, यादव, दलित जिन चुनावी क्षेत्रों में 60 फ़ीसदी से ज़्यादा है, वो हैं आज़मगढ़, घोसी, डुमरियागंज, जौनपुर, अंबेडकर नगर, भदोही. 50 से 60 परसेंट एमवाईडी अमेठी में है और 40 से 50 प्रतिशत वाराणसी में.
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ohwoh-blog · 7 years
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जिस देश में गंगा बहती है
हाल फिलहाल में आप लोगो ने पढ़ा ही होगा कि न्यूजीलैंड में उनकी अदालत ने उनकी एक नदी "व्हांगानुई " को एक मानव का दर्ज़ा दिया है | इसका मतलब यह कि यह नदी न्यू जीलैंड में एक इंसान है जिसके कुछ कर्त्तव्य है और अधिकार भी | उसके कुछ दिनों बाद आशानुरूप भारतीय अदालत ने भी गंगा और यमुना नदियो को भी मानव का दर्जा दे दिया , जिसके अपने कुछ कानूनी अधिकार होंगे| आशानुरूप मैंने इसलिए लिखा क्योंकि हम भारतीयों को अंग्रेज़ो की नक़ल करने में मज़ा ही अलग आता है, जैसे योग की उत्पत्ति यही हुई लेकिन हमने अपनाया तब, जब वो बाहर से योगा बन के आया| अदालत के इन दोनों नदियो को मानव का दर्जा तो आज दिया लेकिन कह करते हुए वो भूल गयी कि भारतीय सभ्यता में तो इन नदियो को माँ का दर्जा सदियो से दे रखा है.| भारतीय परिपेक्ष्य में बात बाद में पहले न्यू जीलैंड वाले मामले को ज़रा विस्तार से देखते है| व्हांगानुई नदी के पास माओरी नाम की आदिवासी रहते है , जो 100 साल के ऊपर से यह केस लड़ रहे है | उनका मानना है की बाकी जनता “उनकी नदी” कि उस तरह से रखरखाव नहीं करती जैसे उन्हें करना चाहिए | बात आती है “उनकी नदी” से मतलब, .यह आदिवासी जनजाति पहाड़ो , नदियो , पेड़ो को अपने जैसा ही मानती है, जैसा की अमूमन सारी आदिवासी जनजातीय मानती है | इस जनजाति में एक कहावत है “को अउ ते एव. को ते एव को अउ”, जिसका मतलब होता है " मैं नदी हु, नदी मैं हु"| अंततः बरसो की लड़ाई के बाद अदालत ने मान ही लिया की व्हांगानुई को एक इंसान की तरह ही रख रखाव की ज़रूरत है| अब बात करते है भारतीय परिपेक्ष्य में, यहाँ भी सब बात वही नदियां दूषित हो रखी है, धीरे धीरे सारी नदियां नालों में बदलती जा रही है | दिल्ली में यमुना का हाल सब देख ही रहे है बस नाले बनने की कसर ही बाकी है | गंगा का भी कोई बहुत अच्छा हाल नहीं है , जहाँ जहाँ से गुजरती है हर जगह का कूड़ा करकट, औद्योगिक कूड़ा सब उसमे मिल जाता है | जबकि कानून के मुताबिक किसी भी तरीके का कूड़ा करकट नदी में फेंकने से पहले उसका उचित उपचार किया जाना चाहिए जिससे वो नदी के पानी को प्रदूषित न कर सके, लेकिन हम हिंदुस्तानी नियम कानून मानते तो यह हाल होता | खैर छोड़िए, मुद्दे पर आते है | प्रधानमंत्री जी ने भी स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया हुआ है, गंगा की सफाई के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम चलाया हुआ है , अभी हाल ही में निर्वाचित उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री जी ने भी गोमती रिवरफ्रण्ट कार्यक्रम को लेकर सख्ती दिखाई है | लेकिन सवाल वही क्या यह सब बहुत है ? क्या सरकार के करने के ही चीज़े होंगी? क्या आम जनता की कोई जवाबदेही नहीं ? मैंने 1 2 लोगो के मुंह से सुना हुआ है जो सड़क पर कूड़ा फेंकते है यह कह के सड़कों पर सफाई नहीं है और मैं स्वच्छ भारत सेस दे रहा हु तो पैसे तो वसूलूंगा ही, नदियो में कूड़ा डालते है | अगर यही सब चलता रहा तो हो लिया स्वच्छ भारत और हो ली स्वच्छ नदिया | कल को यही लोग बाढ़ आने पर अदालतों में पहुच जायेंगे कि अब गंगा, जमुना इंसान है तो हमारे नुक्सान का हर्जाना इनसे दिलवाया जाए | अब समय आ गया है हमें प्रकृति से छेड़छाड़ बंद करनी चाहिए, उसे प्रदूषित करना बंद करना चाहिए | क्योंकि प्रकृति खुश तो लह लहाते खेत खलिहान और रुष्ट तो केदारनाथ त्रासदी को लोग अभी भूले नहीं है | अब भी समय है हमें चेतना चाहिए वरना प्रकृति का क्या है जो मानो तो गंगा माँ है. ना मानो तो बहता पानी |
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chhattisgarhrider · 4 years
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रायपुर से धमतरी होते हुए 140 किलो मीटर पर नगरी-सिहावा है, यहाँ रामायण कालीन सप्त ॠषियों के प्रसिद्ध आश्रम हैं। सिहावा मेंं सप्त ऋषियों के आश्रम विभिन्न पहाडिय़ों मेंं बने हुये हैं। उनमेंं मुचकुंद आश्रम, अगस्त्य आश्रम, अंगिरा आश्रम, श्रृंगि ऋषि, कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम एवं गौतम ऋषि आश्रम आदि ऋषियों का आश्रम है। श्री राम ने अपने वनवास के समय दण्डाकारण्य मेेंं स्थित आश्रम मेंं जाकर यहां बसे ऋषियों से भेंट कर सिहावा मेंं ठहर कर कुछ समय व्यतीत किया। सिहावा महानदी का उद्गम स्थल है। नगरी से आगे चल कर लगभग 10 किलोमीटर पर भीतररास नामक ग्राम है। वहीं पर श्रृंगि पर्वत से महानदी निकली है। कर्णेश्वर महादेव मंदिर, गणेश घाट, हिरंगी हाथी खोट का आश्रम, दंतेश्वरी की गुफा, अमृत कुंड और महामाई मंदिर उल्लेखनीय पवित्र स्थल हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यहीं से महानदी का उद्गम होता है। सिहावा पर्वत छत्तीसगढ़ राज्य के धमतरी जिले के नगरी नगरी विकास खंड के अंतर्गत आता है जहां से महानदी का उद्गम एक कमंडल से हुआ माना जाता है उस पर्वत ने ऋषि मुनि के कमंडल जब लुढ़क कर गिर गया तो वहां से जल की धारा प्रवाहित होने लगी जो महानदी के रूप में विख्यात है ऐसा माना जाता है महानदी पर्वत के शीर्ष से भाग से प्रवाहित होकर पहाड़ के आंतरिक भागों से होती हुई नीचे धरातल पर गणेश घाट से निकलती है इस पर्वत के एक और शीतला मंदिर स्थित है और दूसरी और गणेश जी का गणेश मंदिर स्थित है जो कि बहुत ही प्रसिद्ध है सिहावा की सप्त ऋषियों की इस तपोभूमि के इस पवित्र आश्रम के जीर्णोद्धार व देखभाल की आवश्यकता है। ये पुरातन मान्यताओं के अनुसार सप्ता ऋषियों में सबसे वरिष्ठ अंगिरा ऋषि को माना जाता है। प्राचीन काल में यही उनकी तपोभूमि थी। इस पर्वत को श्रीखंड पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं में अंगिरा ऋषि की तप की महिमा का विवरण मिलता है। आश्रम के पुजारी मुकेश महाराज के अनुसार प्राचीनकाल में एक समय अंगिरा ऋषि अपने आश्रम में कठोर तपस्या में लीन थे। वे अग्नि से भी अधिक तेजस्वी बनना चाहते थे। अपनी कठिन तपस्या से महामुनि अंगिरा संपूर्ण संसार को प्रकाशित करने लगे। आज पर्वत शिखर पर स्थित एक छोटी सी गुफा मे अंगिरा ऋषि की मूर्ति विराजमान है। कहते हैं कि पुरातन मूर्ति जर्जर होकर खंडित हो चुकी थी। छत्तीसगढ़ में महानदी गंगा की तरह वंदनीय है। यही वजह है कि राजिम में जब सोंढूर और पैरी नदी इससे जुड़ती हैं तो इसका धार्मिक महत्व प्रयाग (गंगा,जमुना, सरस्वती के संगम स्थल) की तरह बढ़ जाता है। #sihawa #sihawaparvat #cgrider (at Sihawa, Chhattīsgarh, India) https://www.instagram.com/p/CACE81ZDz3l/?igshid=1p26ztszsrjew
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