Tumgik
#गैस महंगी
dainiksamachar · 7 months
Text
लोकसभा चुनाव के हाई फीवर मैच से पहले गौतम के रिटायर्ड हर्ट होने की 5 गंभीर वजह
नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही दिल्ली में बीजेपी का मजबूत प्लेयर रिटायर्ड हर्ट हो गया है। पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से बीजेपी सांसद ने अपनी राजनीतिक पारी से लगभग ब्रेक ले लिया है। गौतम गंभीर ने शनिवार को ट्वीट कर पार्टी से खुद को राजनीतिक कर्तव्यों से मुक्त करने की गुहार लगाई है। जेपी नड्डा को संबोधित करते हुए गंभीर ने ट्वीट में अपनी क्रिकेट प्रतिबद्धताओं का हवाला दिया है। माना जा रहा है कि यह गौतम गंभीर की राजनीति पारी का अंत है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस देश में होने वाले हाईफीवर चुनाव से पहले आखिर गौतम गंभीर क्यों रिटायर्ड हर्ट हो गए। जानते हैं इसके पीछे की कुछ वजहों पर। 1. टिकट कटने का अंदेशा दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी के बीच चुनावी गठबंधन हो चुका है। ऐसे में बीजेपी के पास इन दोनों दलों से मुकाबला करने के लिए नए सिरे रणनीति बनाने की जरूरत है। माना जा रहा है कि पार्टी इस बार पुराने चेहरों पर दांव लगाने के मूड में नहीं है। बीजेपीकी दिल्ली इकाई की चुनाव समिति ने दिल्ली की 7 लोकसभा सीट के लिए पार्टी नेतृत्व को 25-30 संभावित उम्मीदवारों की सूची सौंपी है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि कि नई दिल्ली लोकसभा सीट के लिए वर्तमान सांसद मीनाक्षी लेखी के अलावा विदेश मंत्री एस जयशंकर, आवास एवं शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी और दिवंगत नेता सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज के नाम संभावित प्रत्याशियों में शामिल हैं। इसके अलावा पार्टी अपने पुराने सांसदों को दोहराने के मूड में भी नहीं माना है। माना जा रहा है कि दिल्ली से तीन से चार सांसदों का पत्ता कट सकता है। गौतम गंभीर का नाम भी पत्ता कटने वाले सांसदों की लिस्ट में शामिल बताया जा रहा है। ऐसे में गंभीर को पहले ही इस बात का अंदेशा हो गया है या पार्टी सूत्रों से उन्हें इस बात के संकेत मिल गए हों। 2. क्रिकेट कमिटमेंट हो सकती है वजह सांसद बनने के बाद भी गौतम गंभीर ने क्रिकेट के साथ अपना रिश्ता बनाए रखा। बात चाहे आईपीएल की हो या फिर क्रिकेट कमेंटरी की या फिर क्रिकेट कोचिंग की। गंभीर अपने संसदीय क्षेत्र से अधिक खेल के मैदान या कमेंटरी बॉक्स में अधिक दिखाई देते रहे हैं। इस साल आईपीएल की तारीखों का ऐलान हो गया है। उसी समय दुनिया की सबसे महंगी क्रिकेट लीग आईपीएल का 22 मार्च से आयोजन भी हो रहा है। गंभीर इस बार आईपीएल में कोलकाता नाइटराइडर के मेंटॉर बनाए गए हैं। ऐसे में उन्हें पूरी तरह से अपनी इस भूमिका पर फोकस करना पड़ेगा। इससे पहले वह साल 2022 और 2023 में लखनऊ सुपर जाएंट्स टीम के मेंटॉर रह चुके हैं। ऐसे में यदि उन्हें लोकसभा का टिकट यदि मिल जाए तो वह चुनाव प्रचार करेंगे या फिर क्रिकेट के मैदान पर खिलड़ियों का मार्गदर्शन करेंगे। शायद राजनीति से रिटायर्ड हर्ट होने की यह भी एक बड़ी वजह हो सकती है। 3. तू-तू, मैं-मैं की राजनीति से किनारा गौतम गंभीर ने साल 2019 में पूर्वी दिल्ली से बड़े अंतर से चुनाव जीता था। गंभीर ने कांग्रेस के अरविंदर सिंह लवली के साथ ही आम आदमी पार्टी की नेता और मौजूदा मंत्री आतिशी को हराया था। गंभीर को अपने प्रतिद्वंदी से लगभग दो गुना वोट मिले थे। गंभीर ने कांग्रेस के लवली को लगभग 1.50 लाख मतों के अंतर से हराया था। वहीं, आप नेता आतिशी को महज 18 फीसदी मत मिले थे। चुनाव जीत के साथ ही गंभीर ने राजनेताओं की भाषा बोलना शुरू कर दिया था। गंभीर ने जीत के बाद ही अपने पहले ट्वीट में लिख था, न तो यह 'लवली' कवर ड्राइव है और न ही यह 'आतिशी' बल्लेबाजी है। यह सिर्फ भाजपा की 'गंभीर' विचारधारा है जिसका लोगों ने समर्थन किया है। इस जनादेश को पाने के लिए बीजेपी और दिल्ली बीजेपी टीम के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद। राजनीति में आने के बाद फिर चाहे दिल्ली में कूड़े के पहाड़ का मामला हो या कोरोना काल में ऑक्सीजन गैस सिलेंडर, दवाओं के मामले पर दिल्ली सरकार को घेरना। मुख्यमंत्री केजरीवाल से गंभीर की अदावत जग जाहिर है। हालांकि, गंभीर का मिजाज है कि वह तू-तू-मैं-मैं की राजनीति में नहीं पड़ना चाहते। ऐसे में वह इससे किनारा करना चाहते हों। राजनीति से हटने की यह भी एक वजह हो सकती है। 4. राजनीति का रंग नहीं चढ़ पाया गौतम गंभीर ने साल 2018 में क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। 2019 में गंभीर भले ही लोकसभा चुनाव जीत गए हों लेकिन उनपर राजनीतिक का रंग पूरी तरह से कभी नहीं चढ़ा। राजनेता बनने के बाद भी उनका अधिकतर समय खेल और खेल से जुड़ी गतिविधियों में ही बीतता था। गंभीर ने सांसद रहते हुए भी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली रिटायर्ड खिलाड़ियों की टी-20 लीग में बल्ला घुमाते दिखाई दिए। गंभीर का मिजाज राजनीति से बिल्कुल मेल नहीं खाता है। राजनीति में जिस तरह के कूटनीतिक और सोच समझ कर बयान देने पड़ते हैं गंभीर उसके बिल्कुल उलट दिखाई देते हैं।… http://dlvr.it/T3Vnl1
0 notes
vocaltv · 1 year
Text
बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई मोदी की देन- कांग्रेस
बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई मोदी की देन- कांग्रेस #chhattisgarhnews #bjp
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने देश में बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि महंगी गैस, महंगा तेल, थोक और खुदरा महंगाई आजादी के बाद सर्वोच्च शिखर पर है, स���र्फ सत्ता की भूख में मोदी सरकार आम जनता की कमर तोड़ रही है, फिर भी महंगाई से देशवासियों को लूटने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ रही है. पेट्रोल-डीजल 100 के पार, रसोई गैस 1100, खाने का तेल 200 के पार. आम जनता बेबस और लाचार है…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
stackumbrella1 · 2 years
Text
Gas Cylinder: कॉंग्रेस का बड़ा दावा- 2024 में अगर हमारी सरकार बनी, तो घरेलु गैस Cylinder का दाम 500 रुपये से अधिक नहीं होगा।
Tumblr media
Gas Cylinder: कॉंग्रेस प्रवक्ता और वरिष्ट नेता ने कहा जब हम ये काम राजस्थान में कर सकते हैं तो पूरे देश मे क्यूँ नहीं ? उन्होंने कहा कि हम प्रण लेते हैं कि 2024 में अगर हमारी सरकार बनी तो घरेलु गैस Cylinder की कीमत 500 रुपये से ज्यादा नहीं होगी।
होली से पहले घरेलु गैस Cylinder के दाम में वृद्धि को लेकर कॉंग्रेस ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा की 2024 में अगर सत्ता में आते हैं तो गैस Cylinder की कीमत 500 रुपये से कम होगी।
कॉंग्रेस प्रवक्ता गौरव बल्लभ ने बुधवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि मित्रकाल में बड़ी बेरहम हो गई है मोदी सरकार। रसोई गैस 1100 तो कमर्शियल गैस 2100 के पार, अपने मित्रों पर खूब बरसाये प्यार और देश की जनता करे महँगाई से हाहाकार।
Gas Cylinder: ‘मोदी सरकार ने ठीक होली से पहले दिया महँगाई का तोहफा’
Tumblr media
Gas Cylinder: गौरव बल्लभ ने तंज कसते हुए कहा कि केंद्र की मोदी सरकार ने जनता को होली के ठीक पहले महँगाई का तोहफा दिया है। पीएम मोदी नहीं चाहते की आम जनता होली पर अपनी रसोई में कुछ बनाए| वो ये भी नहीं चाहते की वो बाहर से कुछ खरीद सके।
उन्होंने कहा घरेलू सिलेंडर पर मोदी सरकार 5 प्रतिशत की GST भी लेती है, वहीं कमर्शियल सिलेंडर पर 18 प्रतिशत GST लेती है। गौरव वल्लभ ने कहा, “अगर आप बाहर से मिठाई लेंगे तो वो भी महंगी पड़ेगी ही क्योंकि कमर्शियल सिलेंडर पर भी GST 18 प्रतिशत है। तो मोदी जी चाहते हैं कि ना तो आप मीठा खाओ, ना नमकीन खाओ, ना दूध का सेवन करो, लेकिन कहो थैंक्यू मोदी जी।”
गैस CYLINDER 2014 के समय 500 के भीतर आता था, लेकिन अब उसकी कीमत 1100 रुपये तक पहुंच गयी है।\
Tumblr media
Gas Cylinder: गौरव वल्लभ ने सवाल किया कि रसोई गैस का सिलेंडर 2014 में जो 500 का आता था अब वो 1100 के पार कैसे पहुंच गया है ? पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा बनाई गई टेबल के मुताबिक 2004-2005 से लेकर 2013-2014 के बीच सिलेंडर पर सब्सिडी 2 लाख 14 हजार करोड़ रूपये दी जब केंद्र में कॉंग्रेस की सरकार थी।
कांग्रेस ने 10 साल में 2 लाख 14 हजार करोड़ सब्सिडी इसलिए दी ताकी रसोई गैस के दाम 500 के बाहर ना जा पाए। गौरव ने कहा कि उस समय जो गैस बाहर से हम मंगाते थे उस दौरान कीमतें आज से ज्यादा थी, लेकिन उसको हमने 500 के बाहर नहीं जाने दिया।
वहीं मोदी सरकार ने पिछले 9 सालों में 36 हजार 500 करोड़ रुपये सब्सिडी दी है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि जब सवाल पूछा जाता है तो कहते हैं कि सिलेंडर लो गैस भरवाओ उज्जवला योजना है लेकिन उज्जवला योजना में दूसरा सिलेंडर भरवाएं तो भरवाएं कैसे ?
अगर 2024 में हमारी सरकार बनी तो गैस Cylinder की कीमत 500 रुपये से ज्यादा नहीं होगी|
Tumblr media
Gas Cylinder: गौरव बल्लभ ने कहा कि राजस्थान में कॉंग्रेस की सरकार है और गैस Cylinder 500 रुपये से कम में दे रही है। हमारी मांग है कि रसोई गैस की कीमत पूरे देश में 500 रुपये से कम होना चाहिए। अगर यह कीमत 500 रुपये से अधिक होगा तो ये GDP के लिए नुकसानदायक होगा।
ये भी पढ़े: Arvind Kejriwal ने कहा कि PM अति कर रहे जैसे इंदिरा गांधी ने की थी, सिसोदिया की गिरफ्तारी पर भड़के सीएम
0 notes
sirjitendrayadav · 2 years
Link
0 notes
marketingstrategy1 · 2 years
Text
'हमें राहत नहीं, बजट ने कम कर दी रसोई की महक':टैक्स में छूट से कामकाजी महिलाएं खुश, क्या बोलीं गृहणियां ? - We Are Not Relieved, The Budget Has Reduced The Smell Of The Kitchen': Working Women Are Happy With Tax Exempt
‘हमें राहत नहीं, बजट ने कम कर दी रसोई की महक’ – फोटो : अमर उजाला विस्तार आयकर में मिली छूट से आम जनता भले ही राहत महसूस कर रही हो लेकिन गृहणियां खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि  मोबाइल, साइकिल, खिलौने, कपड़े सस्ते होंगे, लेकिन ये सभी हर रोज के खर्चे में आने वाले उत्पाद नहीं है।   खाद्य सामग्रियां पहले से महंगी हैं। गैस के दाम कम होंगे, ऐसी उम्मीद थी। – पुष्पा सिंह, केराकतपुर घरेलू उपयोग की…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
Text
उत्तराखंड में बिजली होगी महंगी
उत्तराखंड में बिजली होगी महंगी
देहरादून : इनफ्लेशन के इस दौर में एक ओर तो महंगाई बढ़ती जा रही हैं लेकिन इस बढ़ती मेहंगाई बोझ आम जनता को झेलना पड़ता है। आपको बता दें की उत्तराखंड में बिजली के दाम एक बार फिर बढ़ा दिए गए। कोयला और गैस महंगी होने के कारण फ्यूल चार्ज एडजस्टमेंट के तहत बिजली दरों में औसत सात पैसे प्रति यूनिट का इजाफा हुआ है। अक्टूबर से लागू होंगी। उत्तराखंड में बिजली के दाम एक बार फिर बढ़ा दिए गए। कोयला और गैस महंगी…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
sabkuchgyan · 2 years
Text
कमर्शियल सिलेंडर 115 रु. सस्ती, अधिक महंगी हवाई यात्रा
कमर्शियल सिलेंडर 115 रु. सस्ती, अधिक महंगी हवाई यात्रा
आज यानी 1 नवंबर से देशभर में 3 बदलाव हुए हैं. अब कमर्शियल गैस सिलेंडर 115 रुपये सस्ता होगा। जेट ईंधन अधिक महंगा हो गया है, जिससे हवाई किराए में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा जी.एस.टी से जुड़े नियमों में भी बदलाव किया गया है पेट्रोल के दाम आज से 40 पैसे प्रति लीटर कम होने की उम्मीद थी लेकिन तेल कंपनियों ने कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया है. 1. कमर्शियल गैस सिलिंडर सस्ते तेल विपणन कंपनियों ने आज…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
countryinsidenews · 2 years
Text
अमेरिका में बोली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद सुदृढ़- वित्तीय घाटे को लेकर पूरी तरह सतर्क है मोदी सरकार- कोयले की पूर्ण होने वाली है वापसी
अमेरिका में बोली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद सुदृढ़- वित्तीय घाटे को लेकर पूरी तरह सतर्क है मोदी सरकार- कोयले की पूर्ण होने वाली है वापसी
धीरेन्द्र वर्मा की रिपोर्ट /अमेरिका में बोली देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद सुदृढ़- वित्तीय घाटे को लेकर पूरी तरह सतर्क है मोदी सरकार. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि रुपया नहीं फिसल रहा है  लेकिन डॉलर मजबूत हो रहा है. वित्त मंत्री ने कहा कि ऊर्जा संकट के बीच गैस बहुत महंगी होने के कारण कोयला एक बार फिर वापसी करने जा रहा है. पश्चिम दुनिया के देश फिर से…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
cinnewsnetwork · 2 years
Text
दिवाली से पहले महंगी हुई CNG
दिवाली से पहले महंगी हुई CNG
दिवाली से पहले आम आदमी को करारा झटका लगा है. नेचुरल गैस सीएनजी-पीएनजी दोनों के दाम शनिवार से बढ़ गए हैं. IGL ने जहां सीएनजी के दाम 3 रुपये प्रति किलो बढ़ा दिए हैं तो वहीं अब PNG के दाम में भी 3 रुपये की बढ़ोतरी हुई है. आज यानी शनिवार से सीएनजी-पीएनजी के बढ़े हुए नए रेट लागू हो गए हैं.राजधानी दिल्ली में सीएनजी का नए रेट के मुताबिक 75.61 रुपये से बढ़ाकर 78.61 रुपये कर दिए गए हैं. वहीं नोएडा, ग्रेटर…
View On WordPress
0 notes
avitaknews · 4 years
Text
पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के बाद अब CNG और PNG भी हुई महंगी, जानें दिल्ली एनसीआर का नया रेट
पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के बाद अब CNG और PNG भी हुई महंगी, जानें दिल्ली एनसीआर का नया रेट
पेट्रोल, डीजल और एलपीजी गैस के बाद अब सीएनजी भी महंगी हो गई है। इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (IGL) ने कहा है कि आज सुबह छह बजे से दिल्ली में सीएनजी अब आपको 42.70 रुपए की जगह 43.40 रुपए प्रति किलो मिलेगी। वहीं, पीएनजी की कीमत 28.41 रुपए मिलेगी। आपको बता  दें कि पीएनजी की कीमत में 0.91 रुपए की बढ़ोतरी हुई है। गाजियाबाद में अब पीएनजी 28.36 रुपए प्रति किलो मिलेगी। With effect from 6 am tomorrow, revised…
View On WordPress
0 notes
hashtagindiasocial · 4 years
Text
LPG Cylinder Price: फरवरी महीने के लिए रसोई गैस सिलेंडर की कीमत हुई जारी, जानें नए दाम
LPG Cylinder Price: फरवरी महीने के लिए रसोई गैस सिलेंडर की कीमत हुई जारी, जानें नए दाम
ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने फरवरी महीने की गैस की कीमत जारी कर दी है। कंपनियों ने फरवरी महीने में एलपीजी रसोई गैस और कमर्शियल सिलेंडर के दाम नहीं बढ़ाए हैं। कंपनियों ने बीते साल दिसंबर महीने… Source link
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
newshindiplus · 4 years
Text
पेट्रोल-डीजल के बाद सब्जियों के बढ़े दामों ने उड़ाए होश, 25% से ज्यादा महंगी
पेट्रोल-डीजल के बाद सब्जियों के बढ़े दामों ने उड़ाए होश, 25% से ज्यादा महंगी
[ad_1]
Tumblr media
सब्जियों के भाव जहां एक तरफ ग्राहकों को परेशान कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ दुकानदार भी अपनी लागत डूबने के डर से परेशान नजर आ रहे हैं. (सांकेतिक तस्वीर) कोरोना काल (COVID-19) में पेट्रोल और डीजल (Petrol and diesel) के भावों के बाद अब सब्जियों के…
View On WordPress
0 notes
sachin-tyagi · 3 years
Text
1860 में "खैबर पास" के पास तालिबानियों (अफगानियों) से भारतीय लडते हुए।आज तो अमेरिका/भारत दोहा में करार करते हैं तालिबान से।वैसे गैस महंगी हो गई?तालिबान नही भरवा के देगा,हां मीडिया को देता है।
Tumblr media
1 note · View note
nurtureoneslife · 5 years
Text
शरीर छोड़ने के बाद आत्मा का भटकना और दूसरे शरीर में प्रवेश करना
एक अंतिम प्रश्न और फिर हम ध्यान के लिए बैठेगें एक मित्र ने सुबह की चर्चा के बाद पूछा है कि क्या कुछ आत्माएं शरीर छोड़ने के बाद भटकती रह जाती हैं?
कुछ आत्माएं निश्चित ही शरीर छोड़ने के बाद एकदम से दूसरा शरीर ग्रहण नहीं कर पाती हैं। उसका कारण? उसका कारण है। और उसका कारण शायद आपने कभी न सोचा होगा कि यह कारण हो सकता है। दुनिया में अगर हम सारी आत्माओं को विभाजित करें, सारे व्यक्तित्वों को, तो वे तीन तरह के मालूम पड़ेंगे। एक तो अत्यंत निकृष्ट, अत्यंत हीन चित्त के लोग; एक अत्यंत उच्च, अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यंत पवित्र किस्म के लोग; और फिर बीच की एक भीड़ जो दोनों का तालमेल है, जो बुरे और भले को मेल —मिलाकर चलती है। जैसे कि अगर डमरू हम देखें, तो डमरू दोनों तरफ चौड़ा है और बीच में पतला होता है। डमरू को उलटा कर लें। दोनों तरफ पतला और बीच में चौड़ा हो जाए तो हम दुनिया की स्थिति समझ लेंगे। दोनों तरफ छोर और बीच में मोटा—डमरू उलटा। इन छोरों पर थोड़ी—सी आत्माएं हैं।
निकृष्टतम आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में और श्रेष्ठ आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में। बीच की आत्माओं को जरा भी देर नहीं लगती। यहां, मरे नहीं, वहां, नई यात्रा शुरू हो गई। उसके कारण हैं। उसका कारण यह है कि साधारण, मीडियाकर मध्य की जो आत्माएं हैं, उनके योग्य गर्भ सदा उपलब्ध रहते हैं।
मैं आपको कहना चाहूंगा कि जैसे ही आदमी मरता है, मरते ही उसके सामने सैकड़ों लोग संभोग करते हुए, सैकड़ों जोड़े दिखाई पड़ते हैं, मरते ही। और जिस जोड़े के प्रति वह आकर्षित हो जाता है वहां, वह गर्भ में प्रवेश कर जाता है। लेकिन बहुत श्रेष्ठ आत्माएं साधारण गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकतीं। उनके लिए असाधारण गर्भ की जरूरत है, जहॉं असाधारण संभावनाएं व्यक्तित्व की मिल सकें। तो श्रेष्ठ आत्माओं को रुक जाना पड़ता है। निकृष्ट आत्माओं को भी रुक जाना पडता है, क्योंकि उनके योग्य भी गर्भ नहीं मिलता। क्योंकि उनके योग्य मतलब अत्यंत अयोग्य गर्भ मिलना चाहिए वह भी साधारण नहीं।
श्रेष्ठ और निकृष्ट, दोनों को रुक जाना पड़ता है। साधारण जन एकदम जन्म ले लेता है, उसके लिए क���ई कठिनाई नहीं है। उसके लिए निरंतर बाजार में गर्भ उपलब्ध हैं। वह तत्काल किसी गर्भ के प्रति आकर्षित हो जाता है।
सुबह मैंने बारदो की बात की थी। बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी से यह भी कहा जाता है कि अभी तुझे सैकड़ों जोड़े भोग करते हुए, संभोग करते हुए दिखाई पड़ेंगे। तू जरा सोच कर, जरा रुक कर, जरा ठहर कर, गर्भ में प्रवेश करना। जल्दी मत करना, ठहर, थोड़ा ठहर! थोड़ा ठहर कर किसी गर्भ में जाना। एकदम मत चले जाना।
जैसे कोई आदमी बाजार में खरीदने गया है सामान। पहली दुकान पर ही प्रवेश कर जाता है। शो रूम में जो भी लटका हुआ दिखाई पड़ जाता है, वही आकर्षित कर लेता है। लेकिन बुद्धिमान ग्राहक दस दुकान भी देखता है। उलट—पुलट करता है, भाव—ताव करता है, खोज—बीन करता है, फिर निर्णय करता है। नासमझ जल्दी से पहले ही जो चीज उसकी आंख के सामने आ जाती है, वहीं चला जाता है।
तो बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी से कहा जाता है कि सावधान! जल्दी मत करना। जल्दी मत करना। खोजना, सोचना, विचारना, जल्दी मत करना। क्योंकि सैकड़ों लोग निरंतर संभोग में रत हैँ। सैकड़ों जोड़े उसे स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। और जो जोड़ा उसे आकर्षित कर लेता है, और वही जोड़ा उसे आकर्षित करता है जो उसके योग्य गर्भ देने के लिए क्षमतावान होता है।
तो श्रेष्ठ और निकृष्ट आत्माएं रुक जाती हैं। उनको प्रतीक्षा करनी पड़ती है कि जब उनके योग्य गर्भ मिले। निकृष्ट आत्माओं को उतना निकृष्ट गर्भ दिखाई नहीं पड़ता, जहां, वे अपनी संभावनाएं पूरी कर सकें। श्रेष्ठ आत्मा को भी नहीं दिखाई पड़ता।
निकृष्ट आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम प्रेत कहते हैं। और श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम देवता कहते हैं। देवता का अर्थ है, वे श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक गईं। और प्रेत का अर्थ है, भूत का अर्थ है, वे आत्माएं जो निकृष्ट होने के कारण रुक गईं। साधारण जन के लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध है। वह तत्काल मरा और प्रवेश कर जाता है। क्षण भर की भी देरी नहीं लगती। यहा समाप्त नहीं हुआ, और वहां, वह प्रवेश करने लगता है।
उन्होंने यह भी पूछा है कि ये जो आत्माएं रुक जाती हैं क्या वे किसी के शरीर में प्रवेश करके उसे परेशान भी कर सकती हैं?
इसकी भी संभावना है। क्योंकि वे आत्माएं, जिनको शरीर नहीं मिलता है, शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं। निकृष्ट आत्माएं शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं। श्रेष्ठ आत्माएं शरीर के बिना अत्यंत प्रफुल्लित हो जाती हैं। यह फर्क ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि श्रेष्ठ आत्मा शरीर को निरंतर ही किसी न किसी रूप में बंधन अनुभव करती है और चाहती है कि इतनी हलकी हो जाए कि शरीर का बोझ भी न रह जाए। अंततः वह शरीर से भी मुक्त हो जाना चाहती है, क्योंकि शरीर भी एक कारागृह मालूम होता है। अंततः उसे लगता है कि शरीर भी कुछ ऐसे काम करवा लेता है, जो न करने योग्य ��ैं। इसलिए वह शरीर के लिए बहुत मोहग्रस्त नहीं होता। निकृष्ट आत्मा शरीर के बिना एक क्षण भी नहीं जी सकती। क्योंकि उसका सारा रस, सारा सुख, शरीर से ही बंधा होता है।
शरीर के बिना कुछ आनंद लिये जा सकते हैं। जैसे समझें, एक विचारक है। तो विचारक का जो आनंद है, वह शरीर के बिना भी उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि विचार का शरीर से कोई संबंध नहीं है। तो अगर एक विचारक की आत्मा भटक जाए, शरीर न मिले, तो उस आत्मा को शरीर लेने की कोई तीव्रता नहीं होती, क्योंकि विचार का आनंद तब भी लिया जा सकता है। लेकिन समझो कि एक भोजन करने में रस लेने वाला आदमी है, तो शरीर के बिना भोजन करने का रस असंभव है। तो उसके प्राण बड़े छटपटाने लगते हैं कि वह कैसे प्रवेश कर जाए। और उसके योग्य गर्भ न मिलता हो, तो वह किसी कमजोर आत्मा में—कमजोर आत्मा से मतलब है ऐसी आत्मा, जो अपने शरीर की मालिक नहीं है—उस शरीर में वह प्रवेश कर सकता है, किसी कमजोर आत्मा की भय की स्थिति में।
और ध्यान रहे, भय का एक बहुत गहरा अर्थ है। भय का अर्थ है जो सिकोड़ दे। जब आप भयभीत होते हैं, तब आप सिकुड़ जाते हैं। जब आप प्रफुल्लित होते हैं, तो आप फैल जाते हैं। जब कोई व्यक्ति भयभीत होता है, तो उसकी आत्मा सिकुड जाती है और उसके शरीर में बहुत जगह छूट जाती है, जहां, कोई दूसरी आत्मा प्रवेश कर सकती है। एक नहीं, बहुत आत्माएं भी एकदम से प्रवेश कर सकती हैं। इसलिए भय की स्थिति में कोई आत्मा किसी शरीर में प्रवेश कर सकती है। और करने का कुल कारण इतना होता है कि उसके जो रस हैं, वे शरीर से बंधे हैं। वह दूसरे के शरीर में प्रवेश करके रस लेने की कोशिश करती है। इसकी पूरी संभावना है, इसके पूरे तथ्य हैं, इसकी पूरी वास्तविकता है। इसका यह मतलब हुआ कि एक तो भयभीत व्यक्ति हमेशा खतरे में है। जो भयभीत है, उसे खतरा हो सकता है। क्योंकि वह सिकुड़ी हुई हालत में होता है। वह अपने मकान में, अपने घर के एक कमरे में रहता है, बाकी कमरे उसके खाली पड़े रहते हैं। बाकी कमरों में दूसरे लोग मेहमान बन सकते हैं।
कभी—कभी श्रेष्ठ आत्माएं भी शरीर में प्रवेश करती हैं, कभी—कभी। लेकिन उनका प्रवेश बहुत दूसरे कारणों से होता है। कुछ कृत्य हैं करुणा के, जो शरीर के बिना नहीं किए जा सकते। जैसे समझें कि एक घर में आग लगी है और कोई उस घर को आग से बचाने को नहीं जा रहा है। भीड़ बाहर घिरी खड़ी है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि आग में बढ़ जाए। और तब अचानक एक आदमी बढ़ जाता है और वह आदमी बाद में बताता है कि मुझे समझ में नहीं आया कि मैं किस ताकत के प्रभाव में बढ़ गया। मेरी तो हिम्मत न थी। वह बढ़ जाता है और आग बुझाने लगता है और आग बुझा लेता है। और किसी को बचा कर बाहर निकल आता है। और वह आदमी खुद कहता है कि ऐसा लगता है कि मेरे हाथ की बात नहीं है यह, किसी और ने मुझसे यह करवा लिया है। ऐसी किसी घडी में जहां, कि किसी शुभ कार्य के लिए आदमी हिम्मत न जुटा पाता हो, कोई श्रेष्ठ आत्मा भी प्रवेश कर सकती है। लेकिन ये घटनाएं कम होती हैं।
निकृष्ट आत्मा निरंतर शरीर के लिए आतुर रहती है। उसके सारे रस उनसे बंधे हैं। और यह बात भी ध्यान में रख लेनी चाहिए कि मध्य की आत्माओं के लिए कोई बाधा नहीं है, उनके लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध हैं।
इसीलिए श्रेष्ठ आत्मायें कभी—कभी सैकड़ों वर्षों के बाद ही पैदा हो पाती हैं। और यह भी जानकर हैरानी होगी कि जब श्रेष्ठ आत्माएं पैदा होती हैं, तो करीब—करीब पूरी पृथ्वी पर श्रेष्ठ आत्माएं एक साथ पैदा हो जाती हैं। जैसे कि बुद्ध और महावीर भारत में पैदा हुए आज से पच्चीस सौ वर्ष पहले। बुद्ध, महावीर दोनों बिहार में पैदा हुए। और उसी समय बिहार में छह और अदभुत विचारक थे। उनका नाम शेष नहीं रह सका, क्योंकि उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए। और कोई कारण न था, वे बुद्ध और महावीर की ही हैसियत के लोग थे। लेकिन उन्होंने बड़े हिम्मत का प्रयोग किया। उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए। उनमें एक आदमी था प्रबुद्ध कात्यायन, एक आदमी था अजित केसकंबल, एक था संजय विलट्ठीपुत्र, एक था मक्सली गोशाल, और लोग थे। उस समय ठीक बिहार में एक साथ आठ आदमी एक ही प्रतिभा के, एक ही क्षमता के पैदा हो गए। और सिर्फ बिहार में, एक छोटे — से इलाके में सारी दुनिया के। ये आठों आत्माएं बहुत देर से प्रतीक्षारत थीं। और मौका मिल सका तो एकदम से भी मिल गया।
और अक्सर ऐसा होता है कि एक श्रृंखला होती है अच्छे की भी और बुरे की भी। उसी समय यूनान में सुकरात पैदा हुआ थोड़े समय के बाद, अरस्तू पैदा हुआ, प्लेटो पैदा हुआ। उसी समय चीन में कंक्यूशियस पैदा हुआ, लाओत्से पैदा हुआ, मेन्शियस पैदा हुआ, च्चांगत्से पैदा हुआ। उसी समय सारी दुनिया के कोने —कोने में कुछ अदभुत लोग एकद�� से पैदा हुए। सारी पृथ्वी कुछ अदभुत लोगों से भर गई।
ऐसा प्रतीत होता है कि ये सारे लोग प्रतीक्षारत थे, प्रतीक्षारत थीं उनकी आत्माएं और एक मौका आया और गर्भ उपलब्ध हो सके। और जब गर्भ उपलब्ध होने का मौका आता है, तो बहुत से गर्भ एक साथ उपलब्ध हो जाते हैं। जैसे कि फूल खिलता है एक। फूल का मौसम आया है, एक फूल खिला और आप पाते हैं कि दूसरा खिला और तीसरा खिला। फूल प्रतीक्षा कर रहे थे और खिल गए। सुबह हुई, सूरज निकलने की प्रतीक्षा थी और कुछ फूल खिलने शुरू हुए। कलियां टूटी, इधर फूल खिला उधर फूल निकला। रात भर से फूल प्रतीक्षा कर रहे थे, सूरज निकला और फूल खिल गए।
ठीक ऐसा ही निकृष्ट आत्माओं के लिए भी होता है। जब पृथ्वी पर उनके लिए योग्य वातावरण मिलता है, तो एक साथ एक श्रृंखला में वे पैदा हो जाते हैं। जैसे हमारे इस युग में भी हिटलर और स्टैलिन और माओ जैसे लोग एकदम से पैदा हुए। एकदम से ऐसे खतरनाक लोग पैदा हुए, जिनको हजारों साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ी होगी। क्योंकि स्टैलिन या हिटलर या माओ जैसे आदमियों को भी जल्दी पैदा नहीं किया जा सकता। अकेले स्टैलिन ने रूस में कोई साठ लाख लोगों की हत्या की—अकेले एक आदमी ने। और हिटलर ने —अकेले एक आदमी नें—कोई एक करोड़ लोगों की हत्या की।
हिटलर ने हत्या के ऐसे साधन ईजाद किए, जैसे पृथ्वी पर कभी किसी ने नहीं किए। हिटलर ने इतनी सामूहिक हत्या की, जैसी कभी किसी आदमी ने नहीं की। तैमूरलंग और चंगेजखां सब बचकाने सिद्ध हो गए। हिटलर ने गैस चेंबर्स बनाए। उसने कहा, एक—एक आदमी को मारना तो बहुत महंगा है। एक—एक आदमी को मारो, तो गोली बहुत महंगी पड़ती है। एक—एक आदमी को मारना महंगा है, एक—एक आदमी को कब्र में दफनाना महंगा है। एक—एक आदमी की लाश को उठाकर गांव के बाहर फेंकना बहुत महंगा है। तो कलेक्टिव मर्डर, सामूहिक हत्या कैसे की जाए! लेकिन सामूहिक हत्या भी करने के उपाय हैं। अभी अहमदाबाद में कर दी या कहीं और कर दी, लेकिन ये बहुत महंगे उपाय हैं। एक—एक आदमी को मारो, बहुत तकलीफ होती है, बहुत परेशानी होती है, और बहुत देर भी लगती है। ऐसे एक —एक को मारोगे, तो काम ही नहीं चल सकता। इधर एक मारो, उधर एक पैदा हो जाता है। ऐसे मारने से कोई फायदा नहीं होता।
हिटलर ने गैस चेंबर बनाए। एक—एक चेंबर में पांच—पांच हजार लोगों को इकट्ठा खड़ा करके बिजली का बटन दबाकर एकदम से वाष्पीभूत किया जा सकता है। बस, पांच हजार लोग खड़े किए, बटन दबा और वे गए। एकदम गए और इसके बाद हाल खाली। वे गैस बन गए। इतनी तेज चारों तरफ से बिजली गई कि वे गैस हो गए। न उनकी कब्र बनानी पड़ी, न उनको कहीं मार कर खून गिराना पड़ा।
खून—जून गिराने का हिटलर पर कोई नहीं लगा सकता जुर्म। अगर पुरानी किताबों से भगवान चलता होगा, तो हिटलर को बिलकुल निर्दोष पाएगा। उसने खून किसी का गिराया ही नहीं, किसी की छाती में उसने छुरा मारा नहीं, उसने ऐसी तरकीब निकाली जिसका कहीं वर्णन ही नहीं था। उसने बिलकुल नई तरकीब निकाली, गैस चेंबर। जिसमें आदमी को खड़ा करो, बिजली की गर्मी तेज करो, एकदम वाष्पीभूत हो जाए, एकदम हवा हो जाए, बात खतम हो गई। उस आदमी का फिर नामोल्लेख भी खोजना मुश्किल है, हड्डी खोजना भी मुश्किल है, उस आदमी की चमड़ी खोजना मुश्किल है। वह गया। पहली दफा हिटलर ने इस तरह आदमी उड़ाए जैसे पानी को गर्म करके भाप बनाया जाता है। पानी कहां, गया, पता लगाना मुश्किल है। ऐसे सब खो गए आदमी। ऐसे गैस चेंबर बनाकर उसने एक करोड़ आदमियों को अंदाजन गैस चेंबर में उड़ा दिया।
ऐसे आदमी को जल्दी गर्भ मिलना बड़ा मुश्किल है। और अच्छा ही है कि नहीं मिलता। नहीं तो बहुत कठिनाई हो जाए। अब हिटलर को बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ेगी फिर। बहुत समय लग सकता है हिटलर को दोबारा वापस लौटने के लिए। बहुत कठिन है मामला। क्योंकि इतना निकृष्ट गर्भ अब फिर से उपलब्ध हो। और गर्भ उपलब्ध होने का मतलब क्या है? गर्भ उपलब्ध होने का मतलब है, मां और पिता, उस मां और पिता की लंबी श्रृंखला दुष्टता का पोषण कर रही है—लंबी श्रृंखला। एकाध जीवन में कोई आदमी इतनी दुष्टता पैदा नहीं कर सकता है कि उसका गर्भ हिटलर के योग्य हो जाए। एक आदमी कितनी दुष्टता करेगा? एक आदमी कितनी हत्याएं करेगा? हिटलर जैसा बेटा पैदा करने के लिए, हिटलर जैसा बेटा किसी को अपना मां—बाप चुने इसके लिए सैकड़ों, हजारों, लाखों वर्षों की लंबी कठोरता की परंपरा ही कारगर हो सकती है। यानी सैकड़ों, हजारों वर्ष तक कोई आदमी बूचड़खाने में काम करते ही रहे हों, तब नस्ल इस योग्य हो पाएगी, वीर्याणु इस योग्य हो पाएगा कि हिटलर जैसा बेटा उसे पसंद करे और उसमें प्रवेश करे।
ठीक वैसा ही भली आत्मा के लिए भी है। लेकिन सामान्य आत्मा के लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए रोज गर्भ उपलब्ध हैं। क्योंकि उसकी इतनी भीड़ है और उसके लिए चारों तरफ इतने गर्भ तैयार हैं और उसकी कोई विशेष मांगें भी नहीं हैं। उसकी मांगें बड़ी साधारण हैं। वही खाने की, पीने की, पैसा कमाने की, काम— भोग की, इज्जत की, आदर की, पद की, मिनिस्टर हो जाने की, इस तरह की सामान्य इच्छाएं हैं। इस तरह की इच्छाओं वाला गर्भ कहीं भी मिल सकता है, क्योंकि इतनी साधारण कामनाएं हैं कि सभी की हैं। हर मां —बाप ऐसे बेटे को चुनाव के लिए अवसर दे सकता है। लेकिन अब किसी आदमी को एक करोड़ आदमी मारने हैं, किसी आदमी को ऐसी पवित्रता से जीना है कि उसके पैर का दबाव भी पृथ्वी पर न पड़े, और किसी आदमी को इतने प्रेम से जीना है कि उसका प्रेम भी किसी को कष्ट न दे पाए, उसका प्रेम भी किसी के लिए बोझिल न हो जाए, तो फिर ऐसी आत्माओं के लिए तो प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
ओशो
मैं मृत्यु सिखाता हूँ
प्रवचन - 5
2 notes · View notes
merikheti · 2 years
Text
Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज
Tumblr media
जीरो बजट खेती की दीवानी क्यों हुई दुनिया? नुकसान के बाद दुनिया लाभ देख हैरान ! नीति आयोग ने किया गुणगान
भूमण्डलीय ऊष्मीकरण या आम भाषा में ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) से हासिल नतीजों के कारण पर्यावरण संरक्षण (Environmental protection), संतुलन व संवर्धन के प्रति संवेदनशील हुई दुनिया में नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए देश नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी प्राकृतिक खेती का रुख कर रहे हैं।
प्राकृतिक खेती क्या है? इसमें क्या करना पड़ता है? क्या प्राकृतिक खेती बहुत महंगी है? जानिये इन सवालों के जवाब।
खेत और किसान की जरूरत
इसके लिए यह समझना होगा कि, किसी खेत या किसान के लिए सबसे अधिक जरूरी चीज क्या है? उत्तर है खुराक और स्वास्थ्य देखभाल।मतलब, यदि किसी खेत के लिए जरूरी खुराक यानी उसके पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री का प्रबंध प्राकृतिक तरीके से किया जाए, तो उसे ही प्राकृतिक खेती (Natural Farming) कहते हैं।
प्राकृतिक खेती क्या है?
प्राकृतिक खेती, प्रकृति के द्वारा स्वयं के विस्तार के लिए किए जाने वाले प्रबंधों का मानवीय अध्ययन है। इसमें कृषि विज्ञान ने किसानी में उन तरीकों कोे अपनाना श्रेष्यकर समझा है, जिसे प्रकृति खुद अपने संवर्धन के लिए करती है।
प्राकृतिक खेती में किसी रासायनिक पदार्धों के अमानक प्रयोग के बजाए, प्रकृति आधारित संवर्धन के तरीके अपनाए जाते हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली, प्राकृतिक खेती का वह तरीका है, जिसकी मदद से प्रकृति के साथ, प्राकृतिक तरीके से खेती किसानी कर किसान कृषि आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है।ये भी पढ़ें: केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!
प्राकृतिक संसाधनों के प्रति देशों की सभ्यता का प्रमाण तय करने वाले नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन अलार्म, के कारण देशों और उनसे जुड़े किसानों को कृषि के तरीकों में बदलाव करना होगा। COP26 summit, Glasgow, में भारत ने 2070 तक, अपने नेट ज़ीरो एमिशन को शून्य करने का वादा किया है।
इसी प्रयास के तहत भारत में केंद्र एवं राज्य सरकार, इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रही हैं। प्राकृतिक खेती में सिंचाई, सलाह, संसाधन के प्रबंध के लिए किसानों को प्रोत्साहन योजनाओं के जरिए लाभान्वित किया जा रहा है।ये भी पढ़ें: प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अब यूपी में होगा बोर्ड का गठन
प्राकृतिक खेती के लाभ
प्राकृतिक खेती के लाभों की यदि बात करें, तो इसमें घरेलू संसाधनों से आवश्यक पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री तैयार की जा सकती है।
किसान इस प्रकृति के साथ वाली किसानी की विधि से कृषि उत्पादन लागत में भारी कटौती कर कृषि उपज से होने वाली साधारण आय को अच्छी-खासी रिटर्न में तब्दील कर सकते हैं। प्राकृतिक खेती से खेत में उर्वरक और अन्य रसायनों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
प्राकृतिक खेती की जरूरत
एफएओ 2017, खाद्य और कृषि का भविष्य – रुझान और चुनौतियां शीर्षक आधारित रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग (NITI Aayog) ने मानवीय जीवन क्रम से जुड़े कुछ अनुमान, पूर्वानुमान प्रस्तुत किए हैं।
नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक लगभग 10 अरब तक हो जाने का पूर्वानुमान है। मामूली आर्थिक विकास की स्थिति में, इससे कृषि मांग में वर्ष 2013 की मांग की तुलना में 50% तक की वृद्धि होगी।
नीति आयोग ने खाद्य उत्पादन विस्तार और आर्थिक विकास से प्राकृतिक पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई है।
बीते कुछ सालों में वन आच्छादन और जैव विविधता में आई उल्लेखनीय कमी पर भी आयोग चिंतित है।
रिपोर्ट के अनुसार, उच्च इनपुट, संसाधन प्रधान खेती रीति के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, पानी की कमी, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस का उच्च स्तरीय उत्सर्जन होने से पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है।
वर्तमान में बेमौसम पड़ रही तेज गर्मी, सूखा, बाढ़, आंधी-तूफान जैसी व्याथियों के समाधान के लिए कृषि-पारिस्थितिकी, कृषि-वानिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और संरक्षण कृषि जैसे ‘समग्र’ दृष्टिकोणों पर देश, सरकार एवं किसानों को मिलकर काम करना होगा।
खेती किसानी की दिशा में अब एक समन्वित परिवर्तनकारी प्रक्रिया को अपनाने की जरूरत है।
भविष्य की पीढ़ियों का ख्याल
हमें स्वयं के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों का भी यदि ख्याल रखना है, धरती पर यदि भविष्य की पीढ़ी के लिए जीवन की गुंजाइश शेष छोड़ना है तो इसके लिए प्राकृतिक खेती ही सर्वश्रेष्ठ विचार होगा।ये भी पढ़ें: देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था
यह वह विधि है, जिसमें कृषि-पारिस्थितिकी के उपयोग के परिणामस्वरूप भावी पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बगैर, बेहतर पैदावार हासिल होती है। एफएओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए तमाम सहयोगी योजनाएं जारी की हैं।
प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लाभों को 9 भागों में रखा जा सकता है :
1. उपज में सुधार 2. रासायनिक आदान अनुप्रयोग उन्मूलन 3. उत्पादन की कम लागत से आय में वृद्धि 4. बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चितिकरण 5. पानी की कम खपत 6. पर्यावरण संरक्षण 7. मृदा स्वास्थ्य संरक्षण एवं बहाली 8. पशुधन स्थिरता 9.रोजगार सृजन
नो केमिकल फार्मिंग
प्राकृतिक खेती को रासायनमुक्त खेती भी कहा जाता है। इसमें केवल प्राकृतिक आदानों का उपयोग किया जाता है। कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र पर आधारित, यह एक विविध कृषि प्रणाली है। इसमें फसलों, पेड़ों और पशुधन एकीकृत रूप से कृषि कार्य में प्रयुक्त होते हैं। इस समन्वित एकीकरण से कार्यात्मक जैव विविधता के सर्वोत्तम उपयोग में किसान को मदद मिलती है।ये भी पढ़ें: प्राकृतिक खेती ही सबसे श्रेयस्कर : ‘सूरत मॉडल’
प्रकृति आधारित विधि
अपने उद्भव से मौजूद प्रकृति संवर्धन की वह विधि है जिसे मानव ने बाद में पहचान कर अपनी सुविधा के हिसाब से प्राकृतिक खेती का नाम दिया। कृषि की इस प्राचीन पद्धति में भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जाता है।
प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग वर्जित है। जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में अपनाया जाता है।
एक तरह से चींटी, चीटे, केंचुए जैसे जीव इस खेती की सफलता का मुख्य आधार होते हैं। जिस तरह प्रकृति बगैर मशीन, फावड़े के अपना संवर्धन करती है ठीक उसी युक्ति का प्रयोग प्राकृतिक खेती में किया जाता है।
ये चार सिद्धांत प्राकृतिक खेती के आधार
प्राकृतिक कृषि के सीधे-साधे चार सिद्धांत हैं, जो किसी को भी आसानी से समझ में आ सकते हैं।
ये चार सिद्धांत हैं:
हल का उपयोग नहीं, खेत पर जुताई-निंदाई नहीं, बिलकुल प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की तरह की जाने वाली इस खेती में जुताई, निराई की जरूरत नहीं होती।
किसी तरह का कोई रासायनिक उर्वरक या फिर पहले से तैयार की हुई खाद का उपयोग नहीं
हल या शाक को नुकसान पहुंचाने वाले किसी औजार द्वारा कोई निंदाई, गुड़ाई नहीं
रसायनों पर तो किसी तरह की कोई निर्भरता बिलकुल नहीं।
जीरो बजट खेती
अब जिस खेती में निराई गुड़ाई की जरूरत न हो, तो उसे जीरो बजट की खेती ही कहा जा सकता है। प्राकृतिक खेती को ही जीरो बजट खेती भी कहा जाता है।
प्राकृतिक खेती में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों को लाभकारी बनाने के तरीके निहित हैं। किसी बाहरी कृत्रिम तरीके से निर्मित रासायनिक उत्पाद का उपयोग प्राकृतिक खेती में वर्जित है। जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती में गाय के गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग कर भूमि की उर्वरता बढ़ाई जाती है।
शून्य उत्पादन लागत की प्राकृतिक खेती पद्धति के लिए अलग से कोई इनपुट खरीदना जरूरी नहीं है। जापानियों द्वारा प्रकाश में लाई गई इस विधि की खेती में पारंपरिक तरीकों के विपरीत केवल 10 प्रतिशत पानी की दरकार होती है।
source Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज
0 notes
hindimaster · 2 years
Text
Congress Protest Against Electricity Price Allegations Against CM Kejriwal Ann
Congress Protest Against Electricity Price Allegations Against CM Kejriwal Ann
Congress Protest Against Arvind Kejriwal: देश की राजधानी दिल्ली में बिजली वितरण कंपनियों की तरफ से उपभोक्ताओं पर लगाए जाने वाले ‘बिजली खरीद समायोजन लागत’ (PPAC) में चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिस वजह से बिजली महंगी हुई है. बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMS) ने कोयले और गैस जैसे ईंधन के महंगे होने के चलते ये बढ़ोतरी की है. बिजली के बढ़े दामों को लेकर कांग्रेस ने अब आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है.…
View On WordPress
0 notes