जगहें
यहां आए नौ महीने पूरे हुए
बल्कि दस दिन ज्यादा
इतने में पनप सकता था एक जीवन
बदली जा सकती थी दुनिया
बच सकते थे बचे-खुचे जंगल
लिखी जा सकती थी एक कविता
या कोई उपन्यास, लंबी कहानी
पलट सकती थी सत्ताएं तानाशाहों की
मूर्त हो सकती थीं जिसके रास्ते
कुछ योजनाएं और थोड़ा बहुत लोकमंगल।
जगह बदलने से क्या बदल जाता है
जीवन भी और इतना कि पूर्ववर्ती जगहों
के अभाव में उपजे नए खालीपन से
घुल-मिल कर पुरानी एकरसताएं
नए भ्रम रचती हैं? क्या आदमी
वही रहता है और केवल धरा नचती है
दिशाएं ठगती हैं?
वैसे, हवा इधर बहुत तेज चलती है
लखपत के किले में जैसे हहराकर गोया
फंस गई हो ईंट-पत्थर के परकोटे में
भटकती हुई कहीं और से आकर
जबकि पौधे बदल ही रहे हैं अभी पेड़ों में
जिन पर बसना बोलना सीख रहे
पक्षी सहसा चहचहा उठते हैं भ्रमवश
आधी रात फ्लड लाइट को समझ कर सूरज
और सहसा नींद उचट जाती है
अब जाकर जाना मैंने इतने दिन बाद
ठीक पांच बजे तड़के यहां भी
कहीं से एक ट्रेन धड़धड़ाती हुई आती है।
जगहें कितनी ही बदलीं मैंने पर
बनी रही मेरी सुबहों में ट्रेन की आवाज
धरती पर अलहदा जगहों को जोड़ती होंगी
शायद कुछ ध्वनियां, छवियां, कोई राज
मसलन, नहीं होती जहां रेल की पटरी
बजती थी वहां भी सुबह एक सीटी
जैसे गाजीपुर या चौबेपुर में पांच बजे ठीक
जबकि इंदिरापुरम में हुआ करता था
और अब शहादरे में भी काफी करीब है
रेलवे स्टेशन तो बनी हुई है
पुरानी लीक।
एक बालकनी है यहां भी
बिलकुल वैसी ही
खड़ा होकर जहां बची हुई दुनिया से
आश्वस्त होना मेरा कायम है आदतन
एक शगल की तरह जब तब
एक मैदान है हरे घास वाला
जैसा वहां था
और उसमें खेलते बच्चे भी
और कभी कभार टहलती हुई औरतें बेढब
दिलाती हैं भरोसा कि हवा कितनी ही
हो जाए संगीन बनी रहेगी उसमें सांस
हम सब की किसी साझे उपक्रम की तरह
उसे कैद करने की साजिशें अपने
उत्कर्ष पर हों जब।
देशकाल में स्थिर यही कुछ छवियां हैं
कुछ ध्वनियां हैं
ट्रेन, बच्चे और औरतें
घास के मैदान, बालकनी और बढ़ते हुए पौधे
ये कहीं नहीं जाते
और हर कहीं चले आते हैं
हमारे साथ याद दिलाते
कि हमारे चले जाने के बाद भी
कायम रहती है हर जगह
एक भीतर और एक बाहर से
मिलकर ही बनती है हर जगह
और दोनों के ठीक बीचोबीच होने के
मुंडेर पर लटका आदमी कभी भीतर
तो कभी बाहर झांकते तलाशता है अर्थ
पाने और खोने के।
दो जगहों का फर्क जितना सच है
उतनी ही वास्तविक हैं खिड़कियां
भीत, परदे, मुंडेर और दीवारें
जिनसे बनती है जगहें और
जगहों को जाने वाले।
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Dalit homes set on fire: भूमि विवाद में 20 से अधिक दलितों के घर जलाए गए; मल्लिकार्जुन खड़गे, मायावती ने दी प्रतिक्रिया
शुरुआत में बताया गया था कि बुधवार रात की इस घटना में 80 से अधिक घर जलकर खाक हो गए, लेकिन बिहार पुलिस ने यह संख्या 21 बताई है।
बिहार के नवादा जिले में दलित बस्ती में कथित तौर पर जमीन विवाद को लेकर उपद्रवियों ने 20 से ज़्यादा घरों में आग लगा दी। पुलिस ने बताया कि मुख्य संदिग्ध समेत 15 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जबकि आरजेडी और कांग्रेस ने इस घटना को बिहार में व्याप्त “जंगल राज” का एक और सबूत…
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart85 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart86
"कबीर परमेश्वर द्वारा विभीषण तथा मंदोदरी को शरण में लेना"
परमेश्वर मुनिन्द्र जी अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील को शरण में लेने के उपरान्त श्री लंका में गए। वहाँ पर एक परम भक्त विचित्र चन्द्रविजय जी का सोलह सदस्यों का परिवार रहता था। वे भाट जाति में उत्पन्न पुण्यकर्मी प्राणी थे। परमेश्वर मुनिन्द्र (कविर्देव) जी का उपदेश सुन कर पूरे परिवार ने नाम दान प्राप्त किया। परम भक्त विचित्र चन्द्रविजय जी की पत्नी भक्तमति कर्मवती लंका के राजा रावण की रानी मन्दोदरी के पास नौकरी (सेवा) करती थी। रानी मंदोदरी को हँसी-मजाक अच्छे-मंदे चुटकुले सुना कर उसका मनोरंजन कराती थी। भक्त चन्द्रविजय, राजा रावण के पास दरबार में नौकरी (सेवा) करता था। राजा की बड़ाई के गाने सुना कर उसे प्रसन्न करता था। भक्त विचित्र चन्द्रविजय की पत्नी भक्तमति कर्मवती परमेश्वर से उपदेश प्राप्त करने के उपरान्त रानी मंदोदरी को प्रभु चर्चा जो सृष्टि रचना अपने सतगुरुदेव मुनिन्द्र जी से सुनी थी प्रतिदिन सुनाने लगी। भक्तमति मंदोदरी रानी को अति आनन्द आने लगा। कई-कई घण्टों तक प्रभु की सत कथा को भक्तमति कर्मवती सुनाती रहती तथा मंदोदरी की आँखों से आँसू बहते रहते। एक दिन रानी मंदोदरी ने कर्मवती से पूछा आपने यह ज्ञान किससे सुना? आप तो बहुत अनाप-शनाप बातें किया करती थी। इतना बदलाव परमात्मा तुल्य संत बिना नहीं हो सकता। तब कर्मवती ने बताया कि हमने एक परम संत से अभी-अभी उपदेश लिया है। रानी मंदोदरी ने संत के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त करते हुए कहा, आप के गुरु अब की बार आयें तो उन्हें हमारे घर बुला कर लाना। अपनी मालकिन का आदेश प्राप्त करके शीश झुकाकर सत्कार पूर्वक कहा कि जो आप की आज्ञा, आप की नौकरानी वही करेगी। मेरी एक विनती है, कहते हैं कि संत को आदेशपूर्वक नहीं बुलाना चाहिए। स्वयं जा कर दर्शन करना श्रेयकर होता है और जैसे आप की आज्ञा वैसा ही होगा। महारानी मंदोदरी ने कहा कि अब के आपके गुरुदेव जी आयें तो मुझे बताना मैं स्वयं उनके पास जाकर दर्शन करूंगी। परमेश्वर ने फिर श्री लंका में कृपा की। मंदोदरी रानी ने उपदेश प्राप्त किया। कुछ समय उपरान्त अपने प्रिय देवर भक्त विभीषण जी को उपदेश दिलाया। भक्तमति मंदोदरी उपदेश प्राप्त करके अहर्निश प्रभु स्मरण में लीन रहने लगी। अपने पति रावण क�� भी सतगुरु मुनिन्द्र जी से उपदेश प्राप्त करने की कई बार प्रार्थना की परन्तु रावण नहीं माना तथा कहा करता था कि मैंने परम शक्ति महेश्वर मृत्युंजय शिव जी की भक्ति की है। इसके तुल्य कोई शक्ति नहीं है। आपको किसी ने बहका लिया है।
कुछ ही समय उपरान्त वनवास प्राप्त श्री सीता जी का अपहरण करके रावण ने अपने नौ लखा बाग में कैद कर लिया। भक्तमति मंदोदरी के बार-बार प्रार्थना करने से भी रावण ने माता सीता जी को वापिस छोड़ कर आना स्वीकार नहीं किया। तब भक्तमति मंदोदरी जी ने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी से कहा महाराज जी, मेरे पति ने किसी की औरत का अपहरण कर लिया है। मुझ से सहन नहीं हो रहा है। वह उसे वापिस छोड़ कर आना किसी कीमत पर भी स्वीकार नहीं कर रहा है। आप दया करो मेरे प्रभु। आज तक जीवन में मैंने ऐसा दुःख नहीं देखा था।
परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने कहा कि बेटी मंदोदरी यह औरत कोई साधारण स्त्री नहीं है। श्री विष्णु जी को शापवश पृथ्वी पर आना पड़ा है, वे अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र रामचन्द्र नाम से जन्में हैं। इनको 14 वर्ष का वनवास प्राप्त है तथा लक्ष्मी जी स्वयं सीता रूप में इनकी पत्नी रूप में वनवास में श्री राम के साथ थी। उसे रावण एक साधु वेश बना कर धोखा देकर उठा लाया है। यह स्वयं लक्ष्मी ही सीता जी है। इसे शीघ्र वापिस करके क्षमा याचना करके अपने जीवन की भिक्षा याचना रावण करें तो इसी में इसका शुभ है। भक्तमति मंदोदरी के अनेकों बार प्रार्थना करने से रावण नहीं माना तथा कहा कि वे दो मसखरे जंगल में घूमने वाले मेरा क्या बिगाड सकते हैं। मेरे पास अनीगनत सेना है। मेरे एक लाख पुत्र तथा सवा लाख नाती हैं। मेरे पुत्र मेघनाद ने स्वर्ग राज इन्द्र को पराजित कर उसकी पुत्री से विवाह कर रखा है। तेतीस करोड़ देवताओं को हमने कैद कर रखा है। तू मुझे उन दो बेसहारा बन में बिचर रहे बनवासियों को भगवान बता कर डराना चाहती है। इस स्त्री को वापिस नहीं करूँगा। मंदोदरी ने भक्ति मार्ग का ज्ञान जो अपने पूज्य गुरुदेव से सुना था, रावण को बहुत समझाया। विभीषण ने भी अपने बड़े भाई को समझाया। रावण ने अपने भाई विभीषण को पीटा तथा कहा कि तू ज्यादा श्री रामचन्द्र का पक्षपात कर रहा है, उसी के पास चला जा।
एक दिन भक्तमति मंदोदरी ने अपने पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना की कि हे गुरुदेव मेरा सुहाग उजड़ रहा है। एक बार आप भी मेरे पति को समझा दो। यदि वह आप की बात को नहीं मानेगा तो मुझे विधवा होने का दुःख नहीं होगा।
अपनी वचन की बेटी मंदोदरी की प्रार्थना स्वीकार करके राजा रावण के दरबार के समक्ष खड़े होकर परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने द्वारपालों से राजा रावण से मिलने की प्रार्थना की। द्वारपालों ने कहा ऋषि जी इस समय हमारे राजा जी अपना दरबार लगाए हुए हैं। इस समय अन्दर का संदेश बाहर आ सकता है, बाहर का संदेश अन्दर नहीं जा सकता। हम विवश हैं। तब पूर्ण प्रभु अंतर्ध्यान हुए तथा राजा रावण के दरबार में प्रकट हो गए। रावण की दृष्टि ऋषि पर गई तो गरज कर पूछा कि इस ऋषि को मेरी आज्ञा बिना किसने अन्दर आने दिया है उन द्वारपालों को लाकर मेरे सामने कत्ल कर दो। तब परमेश्वर ने कहा राजन् आप के द्वारपालों ने स्पष्ट मना किया था। उन्हें पता नहीं कि मैं कैसे अन्दर आ गया। रावण ने पूछा कि तू अन्दर कैसे आया? तब पूर्ण प्रभु मुनिन्द्र वेश में अदृश होकर पुनर् प्रकट हो गए तथा कहा कि मैं ऐसे आ गया। रावण ने पूछा कि आने का कारण बताओ। तब प्रभु ने कहा कि आप योद्धा हो कर एक अबला का अपहरण कर लाए हो। यह आप की शान व शूरवीरता के विपरीत है। सीता कोई साधारण औरत नहीं है यह स्वयं लक्ष्मी जी का अवतार है। श्री रामचन्द्र जी जो इसके पति हैं वे स्वयं विष्णु हैं। इसे वापिस करके अपने जीवन की भिक्षा माँगो। इसी में आप का श्रेय है। इतना सुन कर तमोगुण (भगवान शिव) का उपासक रावण क्रोधित होकर नंगी तलवार लेकर सिंहासन से दहाड़ता हुआ कूदा तथा उस नादान प्राणी ने तलवार के अंधाधुंध सत्तर वार ऋषि जी को मारने के लिए किए। परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने एक झाडू की सर्सीक हाथ में पकड़ी हुई थी। उसको ढाल की तरह आगे कर दिया। रावण के सत्तर वार उस नाजुक सींक पर लगे। ऐसे आवाज हुई जैसे लोहे के खम्बे (पीलर) पर तलवार लग रही हो। सर्सीक टस से मस नहीं हुई। रावण को पसीने आ गए। फिर भी अपने अहंकारवश नहीं माना। यह तो जान लिया कि यह कोई साधारण ऋषि नहीं है। रावण ने अभिमान वश कहा कि मैंने आप की एक भी बात नहीं सुननी, आप जा सकते हैं। परमेश्वर अंतर्ध्यान हो गए तथा मंदोदरी को सर्व वृतान्त सुनाकर प्रस्थान किया। रानी मंदोदरी ने कहा गुरुदेव अब मुझे विधवा होने में कोई कष्ट नहीं होगा।
श्री रामचन्द्र व रावण का युद्ध हुआ। रावण का वध हुआ। जिस लंका के राज्य को रावण ने तमोगुण भगवान शिव की कठिन साधना करके, दस बार शीश न्यौछावर करके प्राप्त किया था। वह क्षणिक सुख भी रावण का चला गया तथा नरक का भागी हुआ। इसके विपरीत पूर्ण परमात्मा के सतनाम साधक विभीषण को बिना कठिन साधना किए पूर्ण प्रभु की सत्य साधना व कृपा से लंकादेश का राज्य भी प्राप्त हुआ। हजारों वर्षों तक विभीषण ने लंका का राज्य का सुख भोगा तथा प्रभु कृपा से राज्य में पूर्ण शान्ति रही। सभी राक्षस वृति के व्यक्ति विनाश को प्राप्त हो चुके थे। भक्तमति मंदोदरी तथा भक्त विभीषण तथा परम भक्त चन्द्रविजय जी के परिवार के पूरे सोलह सदस्य तथा अन्य जिन्होंने पूर्ण परमेश्वर का उपदेश प्राप्त करके आजीवन मर्यादावत् सतभक्ति की वे सर्व साधक यहाँ पृथ्वी पर भी सुखी रहे तथा अन्त समय में परमेश्वर के विमान में बैठ कर सतलोक (शाश्वतम् स्थानम्) में चले गए। इसीलिए पवित्र गीता अध्याय 7 मंत्र 12 से 15 में कहा है कि तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की साधना से मिलने वाली क्षणिक सुविधाओं के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे राक्षस स्वभाव वाले, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले मूर्ख मुझ (काल-ब्रह्म) को भी नहीं भजते ।
फिर गीता अध्याय 7 मंत्र 18 में गीता बोलने वाला (काल-ब्रह्म) प्रभु कह रहा है कि कोई एक उदार आत्मा मेरी (ब्रह्म की) ही साधना करता है क्योंकि उनको तत्त्वदर्शी संत नही मिला। वे भी नेक आत्माएँ मेरी (अनुत्तमाम्) अति अश्रेष्ठ (गतिम्) गति में आश्रित रह गए। वे भी पूर्ण मुक्त नहीं हैं। इसलिए पवित्र गीता अध्याय 18 मंत्र 62 में कहा है कि हे अर्जुन तू सर्व भाव से उस परमेश्वर (पूर्ण परमात्मा अर्थात् तत् ब्रह्म) की शरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सतलोक अर्थात् सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।
इसलिए पुण्यात्माओं से निवेदन है कि आज इस दासन् के भी दास (रामपाल दास) के पास पूर्ण परमात्मा प्राप्ति की वास्तविक विधि प्राप्त है। निःशुल्क उपदेश लेकर लाभ उठाएँ।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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युवक के प्राइवेट पार्ट में मिर्च पावर डालने वाली घटना पर भड़के तेजस्वी यादव, कहा, जातिवादियों को हमारा राज हमेशा जंगल राज दिखता है
Bihar News: बिहार के अररिया जिले में एक युवक के प्राइवेट पार्ट में मिर्च पाउडर डालने का वीडियो सामने आने के बाद से हंगामा मचा हुआ है। अब राज्य के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस खौफनाक हरकत का वीडियो शेयर कर विरोधियों पर निशाना साधा है। तेजस्वी यादव ने अपने एक्स हैंडल पर वीडियो शेयर करते हुए इसे बिहार में तालिबानी राज बताया है।
राजद नेता और राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने एक्स पर…
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शीर्षक: डायनासोर का उदय और पतन: पृथ्वी के विशाल शासक
परिचय: कल्पना कीजिए एक ऐसे संसार की जहाँ विशाल जीव स्वतंत्र रूप से घूमते थे, भूमि, आकाश और समुद्र पर शासन करते थे। लाखों वर्ष पहले, पृथ्वी पर शक्तिशाली डायनासोरों का प्रभुत्व था, जो अपनी अद्भुत विशालता, शक्ति और रहस्य के कारण हमारी कल्पनाओं को आकर्षित करते थे।
अध्याय 1: डायनासोर का प्रारंभिक युग कहानी त्रैसिक काल से शुरू होती है, लगभग 23 करोड़ साल पहले, जब पृथ्वी पर पहले डायनासोर दिखाई दिए। ये प्रारंभिक डायनासोर छोटे, फुर्तीले थे और अन्य प्रागैतिहासिक सरीसृपों के साथ रहते थे। ये एक नए युग के अग्रदूत थे, जो धीरे-धीरे उन विशाल जीवों में विकसित हो रहे थे, जो अगले 16 करोड़ वर्षों तक पृथ्वी पर राज करेंगे।
अध्याय 2: स्वर्णिम युग - जुरासिक काल समय के साथ, डायनासोर कई प्रजातियों में विकसित हो गए, जिनमें से प्रत्येक अपने वातावरण के लिए विशिष्ट रूप से अनुकूलित थी। जुरासिक काल डायनासोर का स्वर्णिम युग था, जहाँ लंबे गले वाले ब्रैकियोसॉरस, खतरनाक एलोसॉरस, और तेज़ वेलोसिरैप्टर जैसी प्रजातियाँ पृथ्वी पर घूमती थीं। यह घने जंगलों, विशाल रेगिस्तानों, और अंतहीन मैदानों का समय था, जहाँ सभी आकार और प्रकार के डायनासोर फल-फूल रहे थे।
अध्याय 3: क्रीटेशस काल के राजा क्रीटेशस काल ने और भी अधिक विविधता लाई, जहाँ सबसे प्रसिद्ध डायनासोर जैसे विशाल टायरानोसॉरस रेक्स, बख्तरबंद एंकिलोसॉरस, और सींग वाले ट्राइसिरैप्टरस दिखाई दिए। इस काल में फूलों वाले पौधों का उदय हुआ, जिसने परिदृश्य और कई शाकाहारी डायनासोरों के आहार को बदल दिया।
अध्याय 4: डायनासोर के युग में जीवन इन विशाल जीवों के लिए जीवन आसान नहीं था। कहानी डायनासोरों के दैनिक संघर्षों पर प्रकाश डालती है - शिकार और भोजन से लेकर शिकारियों से बचने और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा तक। हम उन विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों का अन्वेषण करते हैं, जिनमें वे रहते थे, जैसे घने जंगल, शुष्क रेगिस्तान, और कैसे उन्होंने इन कठिन वातावरणों में जीवित रहने के लिए अनुकूलन किया।
अध्याय 5: रहस्यमय विलुप्ति डायनासोरों का शासन लगभग 6.6 करोड़ साल पहले अचानक और नाटकीय रूप से समाप्त हो गया, जिसे क्रीटेशस-पेलोजीन विलुप्ति घटना के रूप में जाना जाता है। कहानी इस सामूहिक विलुप्ति के पीछे के प्रमुख सिद्धांतों पर चर्चा करती है, जिसमें उल्कापिंड के प्रभाव, ज्वालामुखी गतिविधि, और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। हम वैज्ञानिकों द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्यों और इस घटना का पृथ्वी के इतिहास पर पड़े प्रभाव की भी जांच करते हैं।
अध्याय 6: डायनासोर की विरासत हालांकि डायनासोर अब समाप्त हो चुके हैं, उनकी विरासत जीवित है। कहानी बताती है कि कैसे डायनासोर आधुनिक पक्षियों में विकसित हुए और उनके जीवाश्मों ने हमारे ग्रह के इतिहास में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की है। यह भी बताता है कि कैसे डायनासोर फिल्मों, किताबों, और वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से आज भी हमारी कल्पना को मंत्रमुग्ध करते हैं।
निष्कर्ष: अंतहीन आकर्षण कहानी इस बात पर विचार करते हुए समाप्त होती है कि डायनासोर हमें क्यों आकर्षित करते रहते हैं। उनकी विलुप्ति के लाखों साल बाद भी, वे पृथ्वी के प्राचीन अतीत के रहस्य और भव्यता का प्रतीक बने हुए हैं। उनकी कहानी हमारे ग्रह पर जीवन की निरंतर बदलती प्रकृति और आगे आने वाली असीम संभावनाओं की याद दिलाती है।
यह कहानी आपकी Quora ऑडियंस को डायनासोर के उदय और पतन की एक अद्भुत यात्रा पर ले जाएगी, उन्हें एक संपूर्ण और मनोरम कथा प्रदान करेगी। अगर आप इसमें कुछ जोड़ना या बदलना चाहते हैं, तो मुझे बताएं!
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*यह राजा और उसका परिवार एक बार फिर से जंगल पर राज करेगा!*
*शाहरुख़ खान, आर्यन खान और अबराम खान पहली बार एक साथ आए हैं डिज्नी की बहुप्रतीक्षित पारिवारिक मनोरंजन फिल्म "मुफ़ासा: द लायन किंग" के हिंदी संस्करण में अपनी आवाज देने के लिए!*
*निर्देशक बैरी जेनकिंस की "मुफ़ासा: द लायन किंग" भारत में 20 दिसंबर 2024 को अंग्रेजी, हिंदी, तमिल और तेलुगु में रिलीज की जाएगी*
अब समय आ गया है जंगल के असली राजा मुफ़ासा: द लायन किंग की विरासत को जानने का, जिसे अब तक की सबसे बड़ी कास्टिंग के साथ हिंदी में पेश किया गया है, जिसमें *कोई और नहीं बल्कि दिग्गज शाहरुख खान और उनके बेटे आर्यन खान और अबराम हैं।* 2019 की ब्लॉकबस्टर लाइव-एक्शन द लॉयन किंग की सफलता के बाद, शाहरुख़ खान मुफ़ासा के रूप में वापस आ रहे हैं, दर्शकों को जंगल के असली राजा की उत्पत्ति में ले जाने के लिए। उनके साथ हैं उनके बच्चे, आर्यन के रूप में सिम्बा और अबराम के रूप में छोटे मुफ़ासा। इस साल की सबसे प्रतीक्षित रिलीज़, भव्य लाइव-एक्शन मुफ़ासा: द लायन किंग का हिंदी ट्रेलर जारी कर दिया गया है, जिसे भारतीय सिनेमा के बादशाह और उनके परिवार की गम्भीरता से समृद्ध किया गया है।
सवाना के दिल में इस अद्भुत यात्रा के लिए तैयार हो जाइए! इस साल की सबसे प्रत्याशित रिलीज़, दृश्यात्मक रूप से शानदार लाइव-एक्शन मुफ़ासा: द लायन किंग, का हिंदी ट्रेलर जारी हो गया है, जिसे भारतीय सिनेमा के किंग खान और उनके बच्चों की प्रभावशाली उपस्थिति से समृद्ध किया गया है।
इस सहयोग के बारे में बात करते हुए, *शाहरुख़ खान* कहते हैं, “मुफ़ासा की अद्वितीय विरासत है और वह जंगल के असली राजा के रूप में स्थापित हैं, जो अपने बेटे सिम्बा को अपनी समझ प्रदान करता है। एक पिता के रूप में उनसे गहराई से जुड़ता हूँ और फिल्म में मुफ़ासा की यात्रा से भी मेरा गहरा संबंध है। *‘मुफ़ासा: द लायन किंग’*, मुफ़ासा के बचपन से लेकर एक अद्भुत राजा बनने तक के जीवन को चित्रित करता है, और इस किरदार को फिर से निभाना असाधारण रहा है। यह मेरे लिए डिज्नी के साथ एक विशेष सहयोग है, खासकर इसलिए कि मेरे बेटे आर्यन और अबराम इस यात्रा का हिस्सा हैं और उनके साथ यह अनुभव साझा करना वास्तव में बहुत मायने रखता है।”
“उग्र मुफ़ासा सिर्फ एक काल्पनिक चरित्र नहीं है, वह एक ऐसी भावना का प्रतीक है जो पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है, और यही गुण हर कहानी में डिज़्नी लाने की कोशिश करता है। जब मुफ़ासा: द लायन किंग की घोषणा की गई थी, तो हम शाहरुख़ खान और आर्यन खान के अलावा किसी और को मुफ़ासा और सिम्बा के रूप में हमारी पारिवारिक मनोरंजन फिल्म में वापस नहीं देख सकते थे। अब, अबराम के कास्ट में शामिल होने के साथ, यह फिल्म हमारे लिए और भी खास बन गई है। हमारा प्रयास है कि लाखों भारतीय दर्शक इस अद्भुत कहानी को अपने परिवारों के साथ आनंद लें!” *डिज्नी स्टार के स्टूडियो हेड बिक्रम दुग्गल ने कहा।*
नए और प्रशंसकों के पसंदीदा पात्रों को जीवंत करते हुए और लाइव-एक्शन फिल्म निर्माण तकनीकों को फोटोरियल कंप्यूटर-जनरेटेड इमेजरी के साथ मिलाते हुए, "मुफ़ासा: द लायन किंग" का निर्देशन बैरी जेनकिंस द्वारा किया गया है।
फिल्म के बारे में: "मुफासा: द लायन किंग" में राफ़िकी को प्राइड लैंड्स के प्रिय राजा के अप्रत्याशित उदय की कहानी सुनाने के लिए शामिल किया गया है। यह फिल्म एक अनाथ शावक मुफ़ासा को प्रस्तुत करती है, ताका नामक एक सहानुभूतिपूर्ण शेर—जो एक शाही वंश का उत्तराधिकारी है—और उनके साथ एक असाधारण समूह उनकी विस्तृत यात्रा का परिचय कराती है।
निर्देशक - बैरी जेनकिंस; मूल गीत: लिन-मैनुअल मिरांडा
अंग्रेजी आवाज़ें:
आरोन पियरे मुफासा हैं, डोनाल्ड ग्लोवर सिम्बा हैं और ब्रेलिन रैंकिन्स यंग मुफासा हैं।
*मुफासा: द लायन किंग 20 दिसंबर, 2024 को अंग्रेजी, हिंदी, तमिल और तेलुगु में भारतीय सिनेमाघरों में आएगी।*
फिल्म के बारे में अधिक जानकारी के लिए कृपया फॉलो करें:
Insta - @disneyfilmsindia
X- @DisneyStudiosIN
YT - @WaltDisneyStudiosIndia
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Badmashi Shayari in Hindi | 101+ खतरनाक बदमाशी स्टेटस
दोस्तों, क्या आप हिंदी में Badmashi Shayari in Hindi की तलाश कर रहे हैं? अगर हां, तो आप सही जगह पर आए हैं। यहां, हम आकर्षक छवियों के साथ हिंदी में बदमाशी शायरी का बेहतरीन संग्रह प्रस्तुत करते हैं।.
हमें उम्मीद है कि आप सभी अच्छे हैं और भगवान श्री राम की कृपा से स्वस्थ हैं। हमारी शायरी संग्रह साइट पर आपका स्वागत है। आज के ऑनलाइन युग में, हर कोई अपनी प्रोफ़ाइल को अलग दिखाना चाहता है।.
इसलिए हम आपके लिए हिंदी में बदमाशी शायरी लेकर आए हैं। ये शायरी आपको अपनी ऑनलाइन प्रोफ़ाइल को वास्तव में आकर्षक बनाने के लिए सबसे अच्छे Attitude Status और शायरी खोजने में मदद करेंगी।.
इस युग में, यदि आप बहुत सरल हैं, तो आप किसी का ध्यान नहीं जा सकते हैं। हिंदी में हमारी Badmashi Shayari in Hindi आपको स्टाइलिश रहने और एक बयान देने में मदद करेगी।.
हमें विश्वास है कि आपको हमारी हिंदी में बदमाशी शायरी पसंद आएगी। यदि आपके पास कोई प्रश्न या सुझाव है, तो बेझिझक हमसे संपर्क करें। अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ इस बदमाशी स्टेटस को साझा करना न भूलें।.
हिंदी में हमारी बदमाशी Shayari पढ़ने का आनंद लें। आपका दिन मंगलमय हो। जय श्री राम!.
Badmashi Shayari In Hindi
अब ज़रा संभल के बात करना मुझसे, क्योंकि जो में था
मै रहा नहीं, और जो मैं हूँ वो तुम्हे पता नहीं!
किसी से जलना हमारी आदत नहीं हम खुद की
काबिलियत से लोगो को जलाते है!
सिर्फ जंगल छोड़ा है,
याद रखना शेर तो आज भी हम ही है!
कोई गैंग नहीं है मेरी पहचान, ऐसा है की हर गैंग
का आदमी इस चहरे को देख के सलाम ठोकता है!
मेरी औकात से ज्यादा बेटा मेरे नाम के चर्चे है और तेरी
उकात से ज्यादा तो मेरे सिगरेट के खर्चे है!
उनकी तो क्या इज्जत करना जिनकी
हरकत ही कुत्तो जैसी हो!
एक बात ना भूलना भाई,
किस्मत बदलेगी औकात नहीं!
जिन्हें आज तुम बदमाश मानते हो,
वो कभी चेले थे हमारे!
समझा दो उन समझदारो को की बदमाश की गली
मै आज भी दहशत हमारे नाम की ही है!
हाथ में खंजर ही नहीं आँखों में पानी भी चाहिए,
हमें दुश्मन भी थोड़ा बदमाश चाहिए!
यहाँ राज उसका चलता है जिसकी
हिम्मत उसकी ताकत से बड़ी है!
अगर भौकने से दम दिखाया ज़ाता,
तो आज कुत्ते भी शेर होते!
सुनो! अब भाड़ में जाओ तुम,
जिसका होना है हो जाओ तुम!
एक बात कहनी है दोगले
दम है तो रोक ले!
जिनकी नजरो में हम बुरे है,
वो अपनी आँखे डोनेट कर सकता है!
Badmashi Shayari 2 Line
पीठ पीछे कोई क्या भोंका है घंटा फर्क नहीं पड़ता,
सामने सालो का मुंह तक नहीं खुलता बस इतना ही काफी है!
जिगर वाले का डर से कोई वास्ता नहीं होता,
हम वहां भी कदम रखते है, जहां रास्ता नहीं होता!
खुदा सलामत रखे उन आँखों को,
इनमे आजकल हम चुभते बहुत है!
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारों का वरना,
तेरी औकात दिखाने का हुनर मै भी रखता हूँ!
आपसे कुछ कहना था पर बोला नहीं,
मेरी औकात तो यही है बस यही सच है!
उड़ने दो मिट्टी को आखिर कहाँ तक उड़ेगी,
हवाओं ने जब साथ छोड़ा तो जमीं पर ही गिरेगी!
दुनिया की भीड़ हो तुम्हे मुबारक,
हम अपना रास्ता खुद बनाते है!
खैरात में मिली हुई ख़ुशी हमें पसंद नहीं है,
क्योंकि हम गम में भी नवाब की तरह जीते है!
परख ना पाओगे ऐसी शख्सियत मेरी,
उन्ही के लिए बना हूँ जिनको है कदर मेरी!
शराफत की दुनिया का किस्सा ही ख़त्म,
अब जैसी दुनिया वैसे हम!
बन्दा खुद की नजर में सही होना चाहिए,
दुनिया तो भगवान से भी दुखी है!
लोग दिखावे के दीवाने है और हम है की
सच्चाई मुहँ पर बोल देते है!
हमारे जीने का तरिका थोड़ा अलग है,
हम उम्मीद पर नहीं अपनी जिद पर जीते है!
जित लो हर हम्हा बीत जाने से पहले,
लौट कर यादे आती है वक्त नहीं!
अब न ख़ुशी है, न ही कोई दर्द रुलाने वाला,
हम ने अपना लिया है हर रंग ज़माने वाला!
हर बात का साबुत माँगते हो,
प्यार करते हो तो फिर वकील क्यों बनते हो!
प्यार से बात की तो प्यार ही पाओगे,
अगर दुश्मनी मोल ली तो मारे जाओगे!
जहां से तुम्हारी बदमाशी ख़त्म हो जाती है,
वहा से हमारी बदमाशी शुरू होती है!
जितना मासूम चेहरा है जनाब,
उतनी ही खाराब खोपड़ी भी है!
हम जैसे सिरफिरे ही इतिहास रचते है,
समझदार तो केवल इतिहास पढ़ते है!
चाहने वाले हजार है मेरे ये दो चार
दुश्मनों से फर्क नहीं पड़ता मुझे!
औकात क्या होती है हम बताएंगे,
ज़रा वक्त आने दो सब को नचाएंगे!
न ही गाडी है न ही बुलेट और न ही कोई हथियार है,
सीने में मेरा जिगरा और दुसरे मेरे जिगरी यार है!
मेरी बदमाशी मेरी निशानी है,
आओ कभी हवेली पे अगर कोई परेशानी है!
हमारा शौक तो तलवार रखने का है,
बन्दुक के ��िए तो बच्चे भी जिद करते है!
क्या कहाँ मेरा खौफ नहीं,
नशे में हो या जीने का शौक नहीं!
बड़े मतलबी निकले सभी,
जिनको यार बना के रखा था कभी!
राज तो हमारा हर जगह पे है, पसंद करने वालो के दिल में
और नापसंद करने वालों के दिमाग में!
हथियार तो बस शौक के लिए रखे है,
वरना खौफ फैलाने के लिए हमारा नाम ही काफी है!
डूब जाए आसानी से मै वो कश्ती नहीं,
मिटा सको तुम मुझे ये बात तुम्हारे बस की नहीं!
Badmashi Shayari Hindi
मौत से कह दो जब भी आए शराफत से आए,
हमारी अदालत में गुरुर दिखाने वालो को इंसाफ नहीं मिलता!
हमारी खामोशी की वजह मेरे माँ बाप है लाडले,
वरना जिगरा तो हम तुझे तेरे घर से उठाने का रखते है!
वो जिगर जिगर नहीं जिसमे दम नही,
अगर बेटा बदमाश तू है तो शरीफ हम नहीं!
कुछ सही तो कुछ खराब कहते है,
लोग हमें बिगड़ा हुआ नवाब कहते है!
अगर लड़ना हो तो मैदान में आना,
तलवार भी तेरी और गर्दन भी!
मौत आ जाए साली, पर जो नसीब में ना
हो उस पर दिल कभी ना आए!
मै अपने घर वालो की नहीं सुनता,
और तुम्हे लगता है मै तुम्हारी सुनूंगा!
जहां से तेरी बदमाशी ख़त्म होती है,
वहा से मेरी नवाबी शुरू होती है!
मै आदत नहीं शौक रखता हूँ,
अच्छे अच्छे को ब्लोक रखता हूँ!
पापा की परछाई, माँ का हीरो, दोस्तों की शान,
गर्लफ्रेंड की जान यही तो है हमारी पहचान!
बदमाशी तो बच्चे दिखाते है,
हम तो लोगो को उनकी औकात दिखाते है!
उखाड़ लो जो उखाड़ सकते हो,
घंटा फर्क नहीं पड़ता!
दो कौड़ी के लोग एक कौड़ी की औकात,
अब ये लेंगे पंगा अपने बाप के साथ!
खेलना और खिलाना दोनों आता है इसल��ए
खेल ज़रा सोच समझ के ��ेलना मेरे साथ!
अपुन की हर दुश्मन से जंग है,
ऐसे ही थोड़ी अपनी बदमाशी दबंग है!
Attitude Badmashi Shayari
जो चाहिए वो मेहनत से कमाऊँगा,
मेरी माँ ने किसी की तरक्की पर जलना नहीं सिखाया!
सिरफिरा लड़का हूँ मै जरुरत पड़ने
पर हर किसी से भीड़ सकता हूँ!
सब लोग कहते है छोरा बड़ी अकड़ मे रहता है,
मेरे भाई बहुत मेहनत की है इस अकड़ को लाने में!
हाथ में खंजर ही नहीं आँखों में पानी भी चाहिए
हमें दुश्मन भी थोड़ा बदमाश चाहिए!
छिप कर वार करने वाले कायर होते है,
हम बदमाश है कायर नहीं!
तेरी यादो की बदमाशी
नींद को आँखों तक नहीं आने देती!
हमारी शराफत का फायदा उठाना बंद कर दो,
जिस दिन हम बदमाश हो गए क़यामत आ जायेगी!
बेटा माहौल का क्या है,
साला जब चाहे तब बदल देंगे!
हम बस वहा तक शरीफ है, जहां तक सामने
वाला अपनी औकात ना भूले!
कोई फर्क नहीं पड़ता हमें अब,
आप बदल जाओ या भाड़ में जाओ!
Badmashi Shayari Dosti
सुन बे लौंडे हम से पंगा और भरी
महफ़िल में दंगा दोनों खतरनाक है!
शेर खुद अपनी ताकत से राजा कहलाता है,
जंगल मै कभी चुनाव नहीं होते!
अभी तो हम बदले है साहब,
बदले तो अभी बाकी है!
हम अपना Attitude तो वक्त आने पर दिखाएंगे,
शहर तू खरीद, उस पर राज करके हम दिखाएँगे!
अभी उड़ने दो उन कबुतरो को जब हम आएँगे,
तो आसमान खुद ब खुद खाली हो जाएगा!
तुम्हारा Attitude तुम्हारे बाप को दिखाना इस बादशाह
को शिकार करना पसंद है शिकारी बनना नहीं!
अंदाज थोड़ा लग रखता हूँ शायद
इसलिए मै लोगो को गलत लगता हूँ!
लोग मेरी पीठ पीछे क्या कहते है इससे मुझे फर्क नहीं
पड़ता क्योंकि मै चुनोतियों से लड़ता हूँ सोच से नहीं!
अखबार वाला भी हजार बार सोच कर ये खबर
छापता है क्योंकि तेरे भाई से तो सारा शहर कापता है!
जितना शरीफ बनोगे दुनिया उतना सताएगी,
हरामी बनके जिओ दुनिया सलाम ठोक के जाएगी!
इनकार है जिन्हें आज मुझसे मेरा वक्त देखकर,
मै खुद को इतना काबिल बनाउंगा मिलेंगे मुझसे वक्त लेकर!
मेरी शराफत को तुम बुझदिली का नाम मत दो,
क्योंकि दबे ने जब तक घोड़ा तब तक बन्दुक भी खिलौना ही होता है!
नाम और पहचान चाहे छोटी हो पर
अपने दम पर होनी चाहिए!
लौट कर आया हूँ हिसाब कर के जाउंगा,
हर एक को उसकी औकात दिखा कर जाउंगा!
जब सामने वाला अपनी औकात भूल जाता है,
फिर में भी सराफत छोड़ देता हूँ!
Badmashi Status Shayari
बतमीजी दिखाने वाले को
मै झेलता नहीं सीधे पेलता हूँ!
हमसे दुश्मनी करोगे तो बेटा
अकाल मृत्यु मरोगे!
मौज मस्ती अपना काम है, जो इसे आवारगी
समझे उसे दूर से ही राम-राम है!
मत करो छेड़छाड़ मेरी ख़ामोशी से,
तुम पर बहुत भारी पडेगा!
जब दुश्मन पत्थर मारे तो उसका जवाब फुल से दो,
बस याद रखना की फुल उसकी कबर पर होना चाहिए!
तेरी अकड़ मै कुछ इस तरह से तोदुंगा,
यकीन मान कही का नहीं छोडूंगा!
ना पेशी होगी, न गवाह होगा,
अब जो भी हमसे उलझेगा बस सीधा तबाह होगा!
कुंडली में शनि, मन में मनी और हम से
दुश्मनी तीनो हानिकारक है!
बड़ी से बड़ी हस्ती मिट गई मुझे झुकाने में बेटा,
तू तो कोशिश भी मत करना तेरी उम्रे गुजर जायेगी मुझे गिराने में!
किसी बात का घमंड नहीं है बस
दोगलो में बैठना पसंद नहीं है!
डार्लिंग हम डर से नहीं,
सबकुछ कर के बैठे है!
तारीफ़ करो या बदनामी करो लेकिन
सालो मुहँ पर करो!
मुकाम वो चाहिए की जिस दिन हारू उस दिन
जितने वाले से ज्यादा चर्चे मेरी हार के हो!
हम उस मैदान के खिलाड़ी है जिसमे
तुम सिर्फ ताली बजा सकते हो!
खून में उबाल आज भी खानदानी है,
दुनिया हमारे शौक की नहीं Attitude की दीवानी है!
Badmashi Shayari In English
Wo Jigar Jigar Nahi Jis Mai Dum Nahi,
Or Sun Ladke Agar Tu Badmash Hai To Shareef Hum Bhi Nahi!
Sahi Waqt Par Karwa Denge Hadon Ka Ehsas,
Kuch Talaab Khud Ko Samundar Samajh Baithe Hai!
Jinke Maa Baap Hamein Bura Kehte Hai,
Unhone Shayad Farishte Ko Paida Kiya Hai!
Aaram Se Baith Kar Dekh Raha Hun,
Kal Ke Bachche Baap Ban Rahe Hai!
Bahot Khudgarz Banda Hoon Khushi Ho Ya Gum,
Kisi Ko Mehsoos Hone Nahi Deta!
Khud Se Kabhi Nahi Hara,
To Ye Duniya Kya Harayegi Mujhe!
Kaash Ki Hame Bhi Ye Kahtaa,
Daro Nahi Main Hun Na Tumhre Saath!
Jo Zahir Ho Jaye Wo Dard Kaisa,
Or Jo Samaj Na Sake Wo Hamdard Kaisa?
Raasto Ki Parwah Karooge Toh,
Manzil Bur Maan Jaayegi!
Ye Rabb Kabhi Girne Naa Dena
Na Kisi Ke Kadmo Me Na Kisi Ki Nazaro Me!
Chal Tu Apna Hunar Azma Kar Dekh,
Nikal Diya Dil Se Ab Jagah Bana Kar Dekh!
Waqt Aane Do Beta Jawaab Bhi Denge,
Hisaab Bhi Lenge Or Keh Ke Lenge!
Zindagi Apani Hai To Jine Kaa
Andaj Bhi Apna Hi Gona Chahie!
Chamache Kabhi Vafadar Nahi Hote Our,
Vafadar Kisi Ke Chamche Nahi Hote!
Tabaahi Ka Dour Hai Sahib,
Shanti Ki Ummid Hamse Naa Rakhiye!
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart-1
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart-2
"सनातनी पूजा का अंत"
गीता अध्याय 4 श्लोक 1-2 में स्पष्ट किया है कि हे अर्जुन! यह योग यानि गीता वाला अर्थात् चारों वेदों वाला ज्ञान मैंने सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र मनु से कहा । मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकू को कहा। इसके पश्चात् यह ज्ञान कुछ राज ऋषियों ने समझा । उसके पश्चात यह ज्ञान (नष्टः) नष्ट हो गया यानि लुप्त हो गया ।
जैन संस्कृति कोष नामक पुस्तक में पृष्ठ 175-177 पर कहा है कि :- तीर्थंकर ऋषभदेव की जीवन घटनाएँ: तीर्थकर ऋषभदेव अंतिम कुलकर नाभिराज के पुत्र थे। उनकी माता मरूदेवी थी। वे इक्ष्वाकूवंशी नाभिराज अयोध्या के एक लोकप्रिय राजा थे। तरूण होने पर नाभिराज ने ऋषभदेव का विवाह सुनंदा और सुमंगला से कर दिया। सुनंदा ने तेजस्वी पुत्र बाहुबली और पुत्री सुंदरी को जन्म दिया और सुमंगला ने भरत सहित 99 पुत्र और ब्राह्मी पुत्री को जन्म दिया।
समय आने पर ऋषभदेव ने भरत को अयोध्या का बाहुबली को तक्षशिला का और शेष युवराजों को उनकी योग्यतानुसार राज्य सौंपकर संसार त्याग दिया और दीक्षा लेकर साधना में लीन हो गये। साधना काल में पाणि पात्री ऋषभदेव एक वर्ष तक निराहार रहे। बाद में बाहुबली के पौत्र श्रेयांस कुमार ने इक्षुरस देकर उनकी इस निराहार-वृत्ति को तोड़ा। लगातार एक हजार वर्ष तक तपस्या करने वाले मुनि ऋषभदेव ने अंत में केवलज्ञान प्राप्त किया और धर्मदेशना प्रारंभ की। प्रथम धर्मदेशना भरत के पुत्र मरीचि को दी जो बाद में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर महावीर वर्धमान बने।
* पवित्र गीता में क्या कहा है? कृपया पढ़ें व विचार करें।
गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में कहा है कि हे अर्जुन! यह योग यानि भक्ति / साधना न तो बिल्कुल न खाने वाले की सिद्ध होती है, न अधिक खाने वाले की, न अधिक सोने वाले की, न अधिक जागने वाले की सिद्ध होती है।
ध्यान देने योग्य :- श्री ऋषभदेव जी ने गीता ज्ञान यानि वेदों, शास्त्रों में बताई साधना के विपरीत शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण अपनी इच्छा से किया जिससे कोई लाभ नहीं हुआ, न होना था ।
अन्य प्रमाण :- गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6 में इस प्रकार कहा है : जो मनुष्य शास्त्रविधि रहित यानि शास्त्रविधि को त्यागकर केवल मन कल्पित घोर तप को तपते हैं, वे शरीर में प्राणियों व कमल चक्रों में विराजमान शक्तियों को तथा हृदय में स्थित मुझको भी कश करने वाले हैं उन अज्ञानियों को तू आसुर स्वभाव के जान ।
उपरोक्त गीता शास्त्र के उल्लेख से स्पष्ट हो जाता है कि इक्ष्वाकू वंशी नाभि राज तक यानि सत्ययुग में लगभग एक लाख वर्ष तक वेदों यानि गीता वाले ज्ञानानुसार पूजा की जाती थी उसके पुत्र ऋषभदेव जी से शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण प्रारंभ हुआ। सनातनी पूजा का अंत हुआ। श्री ऋषभदेव जी की पूजा यानि घोर तप करना वेदोक्त साधना नहीं है। इसलिए ऋषभदेव जी की भक्ति शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण था जिससे उनका जीवन ���ष्ट हो गया था। मोक्ष नहीं हुआ। प्रमाण श्रीमद्भागवत सुधा सागर (सुख सागर) पुराण में इस प्रकार है :-
एक समय ऋषभदेव जी मुख में पत्थर का टुकड़ा लेकर नग्नावस्था में वन में घूम रहे थे। जंगल में आग लग गई। उस दावानल में ऋषभदेव जी जलकर मर गए। (यह पौराणिक कथा है।) क्या यह गति यानि मुक्ति हो गई? उसी समय से यह शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण सब ऋषिजन करने लगे। प्रमाण के लिए किसी भी पुराण को पढ़ो। लिखा है कि उस ऋषि ने इतने वर्ष घोर तप किया, उसने इतने वर्ष तप किया आदि। फिर वे शास्त्रविधि विरुद्ध साधक ऋषिजन अपना-अपना अनुभव जो शास्त्र विरुद्ध साधना से हुआ, उसका कथन करने लगे। अन्य ऋषिजन एक-दूसरे की सुनकर आगे उन्हीं शास्त्रों के विपरीत ज्ञान को सुनाने लगे जिनसे अठारह पुराण बन गए। पुराण ऋषियों के अनुभव की देन हैं जिनमें सारा का सारा ज्ञान वेदों व गीता के विपरीत है। [श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शंकर जी ने भी घोर तप किया जो गीता शास्त्र के विपरीत मनमानी साधना है । ]
वर्तमान में सनातन धर्म का नाम वैदिक धर्म तथा हिन्दू धर्म भी प्रसिद्ध है। आदि शंकराचार्य जी ने देवी-देवताओं की पूजा का विधान बताया और पुराणों के ज्ञान को सनातन धर्म यानि हिन्दू धर्म में दृढ़ता के साथ प्रवेश कर दिया।
गीता अध्याय 4 श्लोक 1-2 को फिर पढ़ते हैं जिनमें गीता ज्ञान दाता ने अर्जुन से कहा है कि मैंने इस योग को यानि गीता वाले वेद ज्ञान को ( क्योंकि श्रीमद्भगवत गीता चारों वेदों का सार है यानि संक्षिप्त रूप है। इस तथ्य को पूरा हिन्दू समाज मानता है ।) सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत यानि मनु से कहा, और मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकू से कहा । (गीता अध्याय 4 श्लोक 1 )
हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परंपरा से प्राप्त इस योग को यानि गीता उर्फ वेद ज्ञान को राज ऋषियों ने जाना। किंतु उसके बाद वह योग (वेद ज्ञान ) बहुत समय से इस पृथ्वी लोक में नष्ट हो गया यानि लुप्त हो गया । (गीता अध्याय 4 श्लोक 2)
[ ध्यान दें तो श्लोक 2 के मूल पाठ में "नष्टः " शब्द है जिसका अर्थ नष्ट हो गया सटीक अर्थ है ] राजा नाभी राज तक सत्ययुग लगभग एक लाख वर्ष व्यतीत हो गया था। गीता का ज्ञान द्वापर के अंत में यानि कलयुग से लगभग 100 वर्ष पहले बोला गया था। गणित की रीति से नाभी राज के बाद यह गीता का ज्ञान 37 लाख 87 हजार 900 वर्ष बाद बोला गया। इस दौरान सब ऋषियों ने वेदों के विपरीत साधना की, जिसका प्रमाण तथा परिणाम 18 पुराण है। पुराणों में कोई भी साधना गीता यानि वेदों के अनुसार नहीं है। यहाँ केवल दो शब्द लिख रहा हूँ ताकि बुद्धिमान संकेत समझें । विस्तार से इस पुस्तक में आगे लिखा है।
प्रमाण गीता के विपरीत साधना का :- गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा है कि जो पित्तर पूजता है, पित्तरों को प्राप्त होगा यानि पित्तर बनेगा । भूत पूजने वाला भूतों को प्राप्त होगा यानि भूत बनेगा। देवताओं को पूजने वाला, देवताओं को प्राप्त होगा यानि देवताओं के पास जाएगा। मेरा भक्त मुझे प्राप्त होगा।
यदि पवित्र हिन्दू धर्म की पूजाओं पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि लगभग पूरा हिन्दू समाज पित्तर पूजा, भूत पूजा, देवी-देवताओं की पूजा करता है जो शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण होने से गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार व्यर्थ प्रयत्न है।
सनातनी पूजा का पुनः उत्थान में (लेखक) तथा 90% मेरे अनुयाई हिन्दू हैं। हमने शास्त्रविधि रहित साधना त्याग दी है। शास्त्रों को अच्छी तरह पढ़ा व समझा है। उसके पश्चात् शास्त्रोक्त साधना प्रारंभ की है जो सर्व शास्त्रों से प्रमाणित है। वह इस प्रकार है :- गीता अध्याय 4 श्लोक 34 को भी पढ़ें जिसमें कहा है कि उस ज्ञान को (सूक्ष्मवेद वाले ज्ञान को) तू तत्त्वदर्शी संतों के पास जाकर प्राप्त कर । विचारणीय विषय यह है कि तत्त्वज्ञान गीता में नहीं है। यदि होता तो गीता ज्ञान देने वाला यह नहीं कहता कि तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी संतों से जान । तत्त्वदर्शी संत के अभाव में मानव समाज मनमाना आचरण करके अपना मानव जीवन नष्ट कर रहा है। जब गीता अध्याय 4 श्लोक 34 वाला तत्त्वदर्शी संत मिल जाता है, वह सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान बताता है जिसको सुन-समझकर बुद्धिमान अपनी साधना शास्त्रों के अनुसार करता है जीवन धन्य कर लेता है। एक धर्म (मानव धर्म) बन जाता है।
संत गरीबदास जी {गाँव छुडानी, जिला झज्जर हरियाणा (भारत)} ने अपनी अमृतवाणी में कहा है कि :-
गरीब, ऐसा निर्मल नाम है, निर्मल करे शरीर । और ज्ञान मंडलीक है, चकवै ज्ञान कबीर ।।
अर्थात् संत गरीबदास जी ने कहा है कि सच्चा नाम ऐसा कारगर है जो आत्मा को निर्मल कर देता है। अध्यात्म ज्ञान शरीर के कष्ट भी दूर करता है। कबीर साहेब का अध्यात्म ज्ञान (चकवै) चक्रवर्ती (All rounder) है। अन्य ज्ञान (मंडलीक) क्षेत्रीय यानि लोक वेद है।
संत गरीबदास जी को दस वर्ष की आयु में परमात्मा सर्वोपरि लोक सनातन परम धाम यानि सत्यलोक से आकर गाँव-छुडानी, जिला-झज्जर, हरियाणा में मिले थे। उनकी आत्मा को ऊपर ले गए जहाँ परमात्मा रहता है। प्रमाण :- ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 54 मंत्र 3 में कहा है कि परमेश्वर सबसे ऊपर के लोक में विराजमान है । :-
प्रमाण के लिए देखें यह फोटोकॉपी इस मंत्र की जिसका अनुवाद आर्यसमाज के अनुवादकों ने किया है। इसके प्रकाशक तिलकराज आर्य अध्यक्ष, आर्य प्रकाशन 04. कुण्डेवालान, अजमेरी गेट, दिल्ली हैं तथा मुद्रक अजय प्रिन्टर्स, शाहदरा दिल्ली है :- ( प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 54 मन्त्र 3)
अयं विनिविष्ठ॒ति पुनानोर्वोपरि
सोमों दुबो न सूर्यः ॥ ३॥
पदार्थ : - ( सूर्य न ) सूर्य के समान जगत्प्रेरक (अयम् ) यह परमात्मा ( सोमः देवः ) सौम्य स्वभाव वाला और जगत्प्रकाशक है और (विश्वानि, पुनानः ) सब लोकों को पवित्र करता हुआ ( भुवनोपरि तिष्ठति) सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के ऊर्ध्वं भाव में भी वर्तमान है || ३ ||
विवेचन :- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3 की फोटोकापी में आप देखें, इसका अनुवाद आर्यसमाज के विद्वानों ने किया है। उनके अनुवाद में भी स्पष्ट है कि वह परमात्मा (भुवनोपरि ) सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के ऊर्ध्व अर्थात् ऊपर ( तिष्ठति) विराजमान है, ऊपर बैठा है।
इसका यथार्थ अनुवाद इस प्रकार है :-
(अयम्) यह (सोमः देव) चन्द्रमा जैसा शीतल अमर परमेश्वर (सूर्य) सूर्य के (न) समान (विश्वानि ) सर्व को ( पुनानः) पवित्र करता हुआ (भुवनोपरि) सर्व ब्रह्माण्डों के ऊर्ध्व अर्थात् ऊपर ( तिष्ठति ) बैठा है।
भावार्थ:- जैसे सूर्य ऊपर है और अपना प्रकाश तथा उष्णता से सर्व को लाभ दे रहा है। इसी प्रकार यह अमर परमेश्वर जिसका ऊपर के मंत्र में वर्णन किया है, सर्व ब्रह्माण्डों के ऊपर बैठा है।
कबीर परमेश्वर जी ने संत गरीबदास जी को उसी परमेश्वर ने ऊपर ले जाकर पुनः पृथ्वी पर छोड़ा था। उनको मृतक जानकर अंतिम संस्कार के लिए चिता पर रख दिया था। अचानक जीवित हो गया। फिर 51 वर्ष जीवित रहे (कुल 61 वर्ष जीवित रहे) उनको परमात्मा ने सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान (तत्त्वज्ञान यानि सूक्ष्मवेद) बताया। उनका ज्ञान योग खोल दिया। उसके पश्चात् संत गरीबदास जी ने बताया कि कुल का मालिक एक है। वह परम अक्षर ब्रह्म यानि सत्यपुरूष है। विश्व के सब प्राणी उसी के बच्चे हैं। वर्तमान के धर्मगुरूओं ने धर्म की दीवारें भ्रम के कारण खड़ी कर रखी हैं।
गरीब, वही मुहम्मद वही महादेव, वही आदम वहीं ब्रह्मा । गरीबदास दूसरा कोई नहीं, देख आपने घरमा ।।
अर्थात् संत गरीबदास जी ने कहा है कि हजरत मुहम्मद जी शिव लोक से आई आत्मा थे। इसलिए मुसलमान धर्म का प्रवर्तक भी परमात्मा शिव की खास आत्मा है। बाबा आदम के विषय में कहा जाता है कि ये ब्रह्मा जी के लोक से नीचे आए थे। इसलिए ब्रह्मा जी व आदम जी का मूल निवास स्थान एक ही है। यदि मेरी बात पर विश्वास नहीं होता है तो अपने घर यानि शरीर रूपी महल में मेरी बताई साधना करके देखो, आपकी दिव्य दृष्टि खुल जाएगी। फिर आपको विश्वास हो जाएगा कि विश्व के सर्व मानव एक परम पिता की संतान हैं।
विचार करो :- मुसलमान धर्म की शुरूआत (Starting) हजरत ईशा जी के जन्म से लगभग 450 वर्ष पश्चात् हुई।
आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी से 508 वर्ष पूर्व हुआ जिसने सनातन धर्म (पंथ) को हिन्दू नाम भी दिया मूर्ति पूजा, देवी-देवताओं की पूजा पर आधारित किया। सनातन धर्म सत्ययुग से चला आ रहा है। इसलिए हजरत ईशा जी, हजरत मूसा जी, हजरत आदम जी तथा हजरत मुहम्मद जी के जीव पहले सनातनी थे। इसलिए विश्व के सब प्राणी एक परमात्मा के बच्चे हैं। एक परमेश्वर के अंश है।
मेरा ( रामपाल दास का) विचार यह है कि :-
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा ।। अध्यात्म ज्ञान-विज्ञान से सिद्ध करता हूँ कि विश्व के प्राणी एक परमात्मा
के बच्चे हैं जो उस अपने पिता के पास जाने के लिए इच्छुक हैं। उसी के पास जाने के लिए भिन्न-भिन्न भक्ति के उपाय कर रहे हैं। अब संत
गरीबदास जी की वाणी के आधार से विश्व के मानव की एकता को जानते हैं संत गरीबदास जी की उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि विश्व के सब मानव (स्त्री-पुरूष) के शरीर की संरचना एक समान है। प्रत्येक मानव ( स्त्री-पुरूष) के शरीर में कमल दल यानि कमल चक्र बने हैं। मानव शरीर में ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। मोक्ष प्राप्ति यानि उस लोक में जाने का एक ही मार्ग है, जिसमें परमात्मा (परम अक्षर ब्रह्म) निवास करता है। वह स्थान वह परमपद है जिसके विषय में गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णन है। कहा है कि :- तत्त्वज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् "परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए, जहाँ जाने के पश्चात साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। जिस परमेश्वर से संसार रूप वृक्ष की प्रवृति विस्तार को प्राप्त हुई है यानि जिसने सृष्टि की उत्पत्ति की है। जो सबका धारण-पोषण करने वाला है, उसकी भक्ति करो।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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लालु एक नहीं है, हजारों लाखों लालुएं है.
मित्रों मुझे लालू यादव का वो दौर याद है..!
अखबारों में भी बिहार की खबरें छपती थी और खबरें पढ़कर इतना आश्चर्य होता था कि क्या इस देश में सुप्रीम कोर्ट है ?
हाई कोर्ट है ?
सेना है पुलिस है ?
या पूरा का पूरा जंगल राज ही है ?
शिल्पी जैन हत्याकांड आप लोग गूगल पर सर्च करिये..!
शिल्पी जैन के कपड़ों पर मिले सीमेन के डीएनए को बदल दिया गया और बलात्कारी कौन था उसे बिल्डिंग के कई लोगों ने देखा था..!
कई लोगों…
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रावती नाम की एक नगरी में सुकेतुमान नामक राजा राज करते थे।
राजा सुकेतुमान बहुत ही कुशल, दानी और बहादुर राजा थे. जिससे उनकी प्रजा बहुत ही खुश और संतुष्ट थी।राजा प्रजा के हित में कार्य किया करते थे और कोशिश करते थे कि प्रजा में कोई व्यक्ति दुखी न हो।
लेकिन इतने पुण्य कार्य करने के बाद भी राजा हमेशा चिंतित रहता था. क्योंकि उसके कोई संतान नहीं थी और शास्त्रों के अनुसार संतान न होने पर व्यक्ति अपने पितरों का ऋण नहीं उतार पाता।
इसलिए राजा दिन-रात इसी सोच में रहता था कि मेरा पिंडदान कौन करेगा और मेरे मरने के बाद पितरों का ऋण कैसे उतरेगा।
इसी सोच-विचार में राजा के दिन कट रहे थे. एक दिन राज घूमते हुए जंगल में पहुंचे जहां ऋषि तपस्या कर रहे थे. राजा ने ऋषि को दंडवत प्रणाम किया तो ऋषि ने उनका चेहरा देखकर चिंता को समझ लिया. फिर पूछा कि राजा आप चिंतित क्यों हैं?
फिर राजा ने ऋषि के सामने अपनी सारी व्यथा कह दी और कहा कि मेरे दुखों को दूर करने का कोई हल बताएं. ताकि मुझे संतान प्राप्ति हो और पितरों का ऋण उतार सके।
ऋषि ने राजा की सारी व्यथा सुनी और कहा कि पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन "पुत्रदा एकादशी" का व्रत करें. यह व्रत करने से आपकी संतान प्राप्ति की कामना पूरी होगी।
राजा ने ऋषि को प्रणाम किया और महल की ओर चल दिया. फिर पौष पुत्रदा एकादशी के दिन राजा व उनकी पत्नी दोनों ने यह व्रत रखा. जिसके बाद उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई।
इसलिए कहा जाता है कि पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से संतान सुख प्राप्त होता है।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart25
पुराण शास्त्र हैं या नहीं ?
इस गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में स्पष्ट किया है कि जिन साधकों की आस्था रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी में अति दृढ है तथा जिनका ज्ञान लोक वेद (दंत कथा) के आधार से इस त्रिगुणमयी माया के द्वारा हरा जा चुका है। वे इन्हीं तीनों प्रधान देवताओं व अन्य देवताओं की भक्ति पर दृढ़ हैं। इनसे ऊपर मुझे (गीता ज्ञान दाता को) नहीं भजते। ऐसे व्यक्ति राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच (नराधमाः) दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं। ये मुझको (गीता ज्ञान देने वाले काल ब्रह्म को) नहीं भजते।
प्रश्न 13 अब हिन्दू साहेबान कहेंगे कि पुराणों में श्राद्ध करना, कर्मकाण्ड करना बताया है। तीर्थों पर जाना पुण्य बताया है। ऋषियों ने तप किए। क्या उनको भी हम गलत मानें? श्री ब्रह्मा जी ने, श्री भक्तोंका पुनर्जन्म नहीं होता।*) विष्णु जी तथा शिव जी ने भी तप किए। क्या वे भी गलत करते रहे हैं?
उत्तर : ऊपर श्रीमद्भगवत गीता से स्पष्ट कर दिया है कि जो घोर तप करते हैं, वे मूर्ख हैं, पापाचारी क्रूरकर्मी हैं, चाहे कोई ऋषि हो या अन्य। उनको वेदों का क-ख का भी ज्ञान नहीं था, सामान्य हिन्दू को तो होगा कहाँ से? गीता में तीर्थों पर जाना कहीं नहीं लिखा है। इसलिए तीर्थ भ्रमण गलत है। शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण है जो गीता में व्यर्थ कहा है।
प्रश्न 14 : क्या पुराण शास्त्र नहीं है?
उत्तर :- पुराणों का ज्ञान ऋषियों का अपना अनुभव है। वेद व गीता प्रभुदत्त (God Given) ज्ञान है जो सत्य है। ऋषियों ने वेदों को पढ़ा। लेकिन ठीक से नहीं समझा। जिस कारण से लोकवेद (एक-दूसरे से सुने ज्ञान के) के आधार से साधना की। कुछ ज्ञान वेदों से लिया यानि ओम् (ॐ) नाम का जाप यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 15 से लिया। तप करने का ज्ञान ब्रह्मा जी से लिया। खिचड़ी ज्ञान के अनुसार साधना करके सिद्धियाँ प्राप्त करके किसी को श्राप, किसी को आशीर्वाद देकर जीवन नष्ट कर गए। गीता में कहा है कि जो मनमाना आचरण यानि शास्त्रविधि त्यागकर साधना करते हैं। उनको कोई लाभ नहीं होता। जो घोर तप को तपते हैं, वे राक्षस स्वभाव के हैं। प्रमाण के लिए : एक बार पांडव वनवास में थे। दुर्योधन के कहने से दुर्वासा ऋषि अठासी हजार ऋषियों को लेकर पाण्डवों के यहाँ गया। मन में दोष लेकर गया था कि पांडव मेरी मन इच्छा अनुसार भोजन करवा नहीं पाएँगे। मैं उनको श्राप दे दूँगा। वे नष्ट हो जाएँगे। क्या यह नेक व्यक्ति का कर्म है? दुष्टात्मा ऐसा करता है। > विचार करो : दुर्वासा महान तपस्वी था। उस घोर तप करने वाले पापाचारी नराधम ने क्या जुल्म करने की ठानी। दुःखियों को और दुःखी करने के उद्देश्य से गया। क्या ये राक्षसी कर्म नहीं थ��? क्या यह क्रूरकर्मी नराधम नहीं था?
इसी दुर्वासा ऋषि ने बच्चों के मजाक करने से क्रोधवश यादवों को श्राप दे दिया। गलती तीन-चार बच्चों ने (प्रद्यूमन पुत्र श्री कृष्ण आदि ने) की, श्राप पूरे यादव कुल का नाश होने का दे दिया। दुर्वासा के श्राप से 56 करोड़ (छप्पन करोड़) यादव आपस में लड़कर मर गए। श्री कृष्ण जी भी मारे गए। क्या ये राक्षसी कर्म दुर्वासा का नहीं था?
* अन्य कर्म पुराण की रचना करने वाले ऋषियों के सुनो :- वशिष्ठ ऋषि ने एक राजा को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। वह राक्षस बनकर दुःखी हुआ। वशिष्ठ ऋषि ने एक अन्य राजा को इसलिए मरने का श्राप दे दिया जिसने ऋषि वशिष्ठ से यज्ञ अनुष्ठान न करवाकर अन्य से करवा लिया। उस राजा ने वशिष्ठ ऋषि को मरने का श्राप दे दिया। दोनों की मृत्यु हो गई।
हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
वशिष्ठ जी का पुनः जन्म इस प्रकार हुआ जो पुराण कथा है :- दो ऋषि जंगल में तप कर रहे थे। एक अप्सरा स्वर्ग से आई। बहुत सुंदर थी। उसे देखने मात्र से दोनों ऋषियों का वीर्य संखलन (वीर्यपात) हो गया। दोनों ने बारी-बारी जाकर कुटिया में रखे खाली घड़े में वीर्य छोड़ दिया। उससे एक तो वशिष्ठ ऋषि वाली आत्मा का पुनर्जन्म हुआ। नाम वशिष्ठ ही रखा गया। दूसरे का कुंभज ऋषि नाम रखा जो अगस्त ऋषि कहलाया।
विश्वामित्र ऋषि के कर्म : राज त्यागकर जंगल में गया। घोर तप किया। सिद्धियाँ प्राप्त की। वशिष्ठ ऋषि ने उसे राज ऋषि कहा। उससे क्षुब्ध (क्रोधित) होकर वशिष्ठ जी के सौ पुत्रों को मार दिया। जब वशिष्ठ ऋषि ने उसे ब्रह्म-ऋषि कहा तो खुश हुआ क्योंकि विश्वामित्र राज ऋषि कहने से अपना अपमान मानता था। ब्रह्म ऋषि कहलाना चाहता था।
विचार करो! क्या ये राक्षसी कर्म नहीं हैं? ऐसे-ऐसे ऋषियों की रचनाएँ हैं अठारह पुराण।
एक समय ऋषि विश्वामित्र जंगल में कुटिया में बैठा था। एक मैनका नामक उर्वशी स्वर्ग से आकर कुटी के पास घूम रही थी। विश्वामित्र उस पर आसक्त हो गया। पति-पत्नी व्यवहार किया। एक कन्या का जन्म हुआ। नाम शकुन्तला रखा। कन्या छः महीने की हुई तो उर्वशी स्वर्ग में चली गई। बोली मेरा काम हो गया। तेरी औकात का पता करने इन्द्र ने भेजी थी, वह देख ली। कहते हैं विश्वामित्र उस कन्या को कन्व ऋषि की कुटिया के सामने रखकर फिर से गहरे जंगल में तप करने गया। कन्व ऋषि ने उस कन्या को पाल-पोषकर राजा दुष्यंत से विवाह किया।
> विचार करो : विश्वामित्र पहले उसी गहरे जंगल में घोर तप करके आया ही था। आते ही वशिष्ठ जी के पुत्र मार डाले। उर्वशी से उलझ गया। नाश करवाकर फिर डले ढोने गया। फिर क्या वह गीता पढ़कर गया था। उसी लोक वेद के अनुसार शास्त्रविधि रहित मनमाना आचरण किया। फिर विश्वामित्र ऋषि ने राजा हरिशचन्द्र से छल करके राज्य लिया। राजा हरिशचन्द्र, उनकी पत्नी तारावती तथा पुत्र रोहतास के साथ अत्याचार किए।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart13
प्रश्न 6 :- पुराण कैसे बने?
उत्तर :- कृपया ध्यान दें! यह वेद ज्ञान यानि जो गीता में बताया गया है। सत्ययुग के प्रारंभ में यानि लगभग एक लाख वर्ष सत्ययुग बीत जाने के बाद ही समाप्त हो गया था।
प्रमाण :- "जैन संस्कृति कोष" नामक पुस्तक जिसके लेखक हैं :- प्रोफेसर भागचन्द्र जैन भास्कर, सन्मति प्राच्य शोध संस्थान, नागपुर कला एवं धर्म शोध संस्थान, वाराणसी। प्रकाशक डॉ प्रेमशंकर द्विवेदी, डॉ भागचन्द्र जैन भास्कर के पृष्ठ 176 पर लिखा है कि इक्ष्वाकू के वंश में राजा नाभी राज हुए, उनके पुत्र ऋषभ देव जी हुए जो अयोध्या के राजा थे। ऋषभदेव राज त्यागकर एक वर्ष तक निराहार रहे यानि कुछ नहीं खाया। फिर जंगल में चले गए, एक हजार वर्ष तक घोर तप किया जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर हुए। इसके पश्चात् धर्मदेशना (नाम-दीक्षा) देने लगे। प्रथम धर्मदेशना (दीक्षा) अपने पौत्र (भरत के पुत्र) मरीचि को दी। इसी मरीचि को वैदिक धर्म का प्रवर्तक माना जाता है। यही आत्मा आगे चलकर जैन धर्म का 24वां तीर्थकर महाबीर जैन बना। जिस साधना को श्री ऋषभदेव जी करते थे, वही साधना अपने प्रथम शिष्य मरीचि को दी।
आगे पढ़ोगे मरीचि यानि महाबीर जैन की दुर्गति का प्रमाण। इससे स्पष्ट है कि मनु के पुत्र इक्ष्वाकू, इक्ष्वाकू के परपौत्र नाभी राज, नाभी राज के पुत्र ऋषभ देव। ऋषभ देव जी ने सब ���ाधना वेद विरूद्ध की यानि वेद ज्ञान की कमी स्पष्ट है। गीता चारों वेदों का सार है। गीता अध्याय 17 श्लोक 1-6 में घोर तप को मनमाना शास्त्र विरुद्ध साधना कहा है। ऐसे व्यक्तियों को जो मन कल्पित घोर तप को तपते हैं, असुर स्वभाव के जान। उनको घोर नरक में डाला जाता है। फिर और नीची योनियों भूत-पित्तर की, पशु-पक्षियों की योनि में जाता है।
गीता अध्याय 17 श्लोक 5: जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित (केवल मनमाना जो वेदों व गीता शास्त्रों में नहीं कहा है, उस) घोर तप को तपते हैं तथा दंभ और अहंकार से युक्त कामना, आसक्ति बल के अभिमान से भी युक्त हैं। गीता अध्याय 17 श्लोक 6 :- शरीर रूप से स्थित भूत समुदाय को शरीर में असँख्यों सूक्ष्म जीव हैं, उन प्राणियों को और अन्तःकरण में स्थित मुझको कृश करने वाले यानि अधिक कष्ट देने वाले हैं। उन अज्ञानियों को तू आसूर (राक्षस) स्वभाव वाले जान।
ऋषियों ने मनमाना आचरण तथा कुछ वेद के आधार से ओम् का जाप किया तथा हठ योग, घोर तप किया, समाधियाँ लगाई। अपनी-अपनी साधना का अनुभव बताना शुरू किया। शिष्य बनाने लगे। उनको जो ज्ञान ब्रह्मा जी से सुना था, वह तथा कुछ अपना अनुभव हुआ, उसको मिलाकर पुराणों की रचना की। जो महाभारत युद्ध के बाद व्यास जी ने चारों वेदों, अठारह पुराणों वाला ज्ञान, महाभारत ग्रन्थ, जिसमें श्रीमद्भगवत गीता भी लिखी है तथा श्रीमद्भागवत यानि सुधा सागर (जो राजा परीक्षित को ऋषि सुखदेव ने सात दिन कथा सुनाई थी, वह ज्ञान श्रीमद्भागवत नाम से जाना जाता है) इन सबको लिपिबद्ध किया (कागज पर लिखा)। जो आज आपके कर कमलों में हैं।
विशेष :- ऋषियों ने एक-दूसरे से सुना ज्ञान बताया, जिससे पवित्र पुराणों की रचना हुई। इसका प्रमाण आप देखें व पढ़ेंगे इसी पुस्तक के पृष्ठ 192 पर जहाँ शिव महापुराण की विद्यवेश्वर संहिता के अध्याय 12 श्लोक 1-54 की फोटोकॉपी लगी है। वक्ता ऋषि सूत जी हैं जो व्यास ऋषि का शिष्य है। कहा है कि मैंने जैसा व्यास जी से सुना, वैसा कहता हूँ। इससे सिद्ध है कि पुराणों का ज्ञान लोक वेद है, कहा-सुना यानि दंत कथा है।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart12 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart13
प्रश्न 6 :- पुराण कैसे बने?
उत्तर :- कृपया ध्यान दें! यह वेद ज्ञान यानि जो गीता में बताया गया है। सत्ययुग के प्रारंभ में यानि लगभग एक लाख वर्ष सत्ययुग बीत जाने के बाद ही समाप्त हो गया था।
प्रमाण :- "जैन संस्कृति कोष" नामक पुस्तक जिसके लेखक हैं :- प्रोफेसर भागचन्द्र जैन भास्कर, सन्मति प्राच्य शोध संस्थान, नागपुर कला एवं धर्म शोध संस्थान, वाराणसी। प्रकाशक डॉ प्रेमशंकर द्विवेदी, डॉ भागचन्द्र जैन भास्कर के पृष्ठ 176 पर लिखा है कि इक्ष्वाकू के वंश में राजा नाभी राज हुए, उनके पुत्र ऋषभ देव जी हुए जो अयोध्या के राजा थे। ऋषभदेव राज त्यागकर एक वर्ष तक निराहार रहे यानि कुछ नहीं खाया। फिर जंगल में चले गए, एक हजार वर्ष तक घोर तप किया जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर हुए। इसके पश्चात् धर्मदेशना (नाम-दीक्षा) देने लगे। प्रथम धर्मदेशना (दीक्षा) अपने पौत्र (भरत के पुत्र) मरीचि को दी। इसी मरीचि को वैदिक धर्म का प्रवर्तक माना जाता है। यही आत्मा आगे चलकर जैन धर्म का 24वां तीर्थकर महाबीर जैन बना। जिस साधना को श्री ऋषभदेव जी करते थे, वही साधना अपने प्रथम शिष्य मरीचि को दी।
आगे पढ़ोगे मरीचि यानि महाबीर जैन की दुर्गति का प्रमाण। इससे स्पष्ट है कि मनु के पुत्र इक्ष्वाकू, इक्ष्वाकू के परपौत्र नाभी राज, नाभी राज के पुत्र ऋषभ देव। ऋषभ देव जी ने सब साधना वेद विरूद्ध की यानि वेद ज्ञान की कमी स्पष्ट है। गीता चारों वेदों का सार है। गीता अध्याय 17 श्लोक 1-6 में घोर तप को मनमाना शास्त्र विरुद्ध साधना कहा है। ऐसे व्यक्तियों को जो मन कल्पित घोर तप को तपते हैं, असुर स्वभाव के जान। उनको घोर नरक में डाला जाता है। फिर और नीची योनियों भूत-पित्तर की, पशु-पक्षियों की योनि में जाता है।
गीता अध्याय 17 श्लोक 5: जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित (केवल मनमाना जो वेदों व गीता शास्त्रों में नहीं कहा है, उस) घोर तप को तपते हैं तथा दंभ और अहंकार से युक्त कामना, आसक्ति बल के अभिमान से भी युक्त हैं। गीता अध्याय 17 श्लोक 6 :- शरीर रूप से स्थित भूत समुदाय को शरीर में असँख्यों सूक्ष्म जीव हैं, उन प्राणियों को और अन्तःकरण में स्थित मुझको कृश करने वाले यानि अधिक कष्ट देने वाले हैं। उन अज्ञानियों को तू आस��र (राक्षस) स्वभाव वाले जान।
ऋषियों ने मनमाना आचरण तथा कुछ वेद के आधार से ओम् का जाप किया तथा हठ योग, घोर तप किया, समाधियाँ लगाई। अपनी-अपनी साधना का अनुभव बताना शुरू किया। शिष्य बनाने लगे। उनको जो ज्ञान ब्रह्मा जी से सुना था, वह तथा कुछ अपना अनुभव हुआ, उसको मिलाकर पुराणों की रचना की। जो महाभारत युद्ध के बाद व्यास जी ने चारों वेदों, अठारह पुराणों वाला ज्ञान, महाभारत ग्रन्थ, जिसमें श्रीमद्भगवत गीता भी लिखी है तथा श्रीमद्भागवत यानि सुधा सागर (जो राजा परीक्षित को ऋषि सुखदेव ने सात दिन कथा सुनाई थी, वह ज्ञान श्रीमद्भागवत नाम से जाना जाता है) इन सबको लिपिबद्ध किया (कागज पर लिखा)। जो आज आपके कर कमलों में हैं।
विशेष :- ऋषियों ने एक-दूसरे से सुना ज्ञान बताया, जिससे पवित्र पुराणों की रचना हुई। इसका प्रमाण आप देखें व पढ़ेंगे इसी पुस्तक के पृष्ठ 192 पर जहाँ शिव महापुराण की विद्यवेश्वर संहिता के अध्याय 12 श्लोक 1-54 की फोटोकॉपी लगी है। वक्ता ऋषि सूत जी हैं जो व्यास ऋषि का शिष्य है। कहा है कि मैंने जैसा व्यास जी से सुना, वैसा कहता हूँ। इससे सिद्ध है कि पुराणों का ज्ञान लोक वेद है, कहा-सुना यानि दंत कथा है।
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शहर सतना में जंगल विभाग के कर्मचारियों का गुण्डा राज कायम तो क्या समूचे जिले का वन विभाग भ्रष्टाचार में संलिप्त है इस लिए पत्रकार को उठाया गया❓
पुलिस अधीक्षक के संज्ञान में पहुंचा मामला ,,,क्या जल्द हो सकती है बड़ी कार्यवाही
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Jamshedpur rural bjp attack : हेमंत राज में अब राज्य के जंगलों में हाथी भी सुरक्षित नहीं, चाकुलिया के बिरदह में ग्रामसभा के दौरान बोले डॉ गोस्वामी
चाकुलिया : भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिनेशानंद गोस्वामी ने कहा है कि जल, जंगल, जमीन और जानवर की सुरक्षा की प्रतिबद्धता जताकर सत्ता में आई राज्य की गठबंधन सरकार के राज में अब जंगलों में हाथी भी सुरक्षित नहीं हैं. चाकुलिया के जंगलों में 2 दिनों में 2 हाथियों की मौत ने सरकार और वन विभाग के वन्य प्राणियों के संरक्षण के दावे की कलई खोल दी है. हाथियों की मौत पर वन विभाग अब बिजली विभाग को…
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