गंगा सप्तमी का पवित्र उत्सव
गंगा सप्तमी का पवित्र उत्सव: धर्म, पर्यावरण और आध्यात्म का संगम
हिंदू संस्कृति में, शुभ नदियों को देवताओं का वास माना जाता है, और उनमें से गंगा नदी का स्थान सर्वोपरि है। वो जीवनदायिनी, मोक्षदायिनी और पापहरणी मानी जाती है, जिसके पवित्र जल में स्नान करके भक्त पाप धोते हैं और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होते हैं। गंगा नदी से जुड़े अनेक त्योहार और पर्व मनाए जाते हैं, जिनमें से गंगा सप्तमी का विशेष महत्व है।
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YouTube : https://youtu.be/_jGUXNqBBOk
लखनऊ, 25.09.2022 | "विश्व नदी दिवस 2022" के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ऑनलाइन कार्यक्रम "सुर - सरिता" गीतमाला का आयोजन ट्रस्ट के इंदिरा नगर कार्यालय 25/2G, सेक्टर 25 में किया गया | "सुर - सरिता" गीत माला कार्यक्रम का सीधा प्रसारण हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के फेसबुक लिंक https://www.facebook.com/HelpUEducationalAndCharitableTrust पर किया गया |
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित कार्यक्रम "सुर - सरिता" गीतमाला में सुश्री अल्पना मेहरोत्रा, गायिका, लखनऊ ने अपनी मधुर आवाज में नदियों पर लिखित गीतों के माध्यम से आमजन से नदियों का संरक्षण करने की अपील की | कार्यक्रम में सिंथेसाइज़र पर संजीव मेहरा व तबले पर मुकेश प्रसाद ने अल्पना मल्होत्रा जी का साथ दिया | कार्यक्रम का संचालन डॉ अलका निवेदन ने किया | कार्यक्रम की शुरुआत गंगा चैती गीत से हुई तथा उसके बाद मेरे राम जी उतरेंगे पार, नदी किनारे ना जइयो, हे गंगा मैया तोहरे पियरी चढाइयो, तरेगा तो वो ही, ओह रे ताल मिले, नदिया चले चले रे धारा, गंगा किनारे लगा मेला, राम तेरी गंगा मैली गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्षवर्धन अग्रवाल ने कहा कि "नदियां हमारे जीवन का अभिन्न अंग है | नदिया जीवनदायिनी है| प्राकृतिक रूप से बहुत सारे जीव, जंतु और प्राणी जल के लिए नदियों पर ही निर्भर हैं, लेकिन पर्यावरण में फैलता हुआ प्रदूषण नदियों के लिए अभिशाप बन गया है | सब को जीवन देने वाली नदियों का अस्तित्व खुद खतरे में है | कुछ नदियां अत्यधिक प्रदूषित हो चुकी है तो कुछ लुप्त होने की कगार पर है, ऐसे में नदियों का संरक्षण करना अति आवश्यक हो गया है | हर वर्ष सितंबर के आखिरी सप्ताह के रविवार को विश्व नदी दिवस मनाया जाता है | विश्व नदी दिवस पर कई देश, लाखों लोग और कई अंतरराष्ट्रीय संगठन नदियों के बचाव के लिए अपना योगदान करते हैं | आइए आज इस दिन हम सभी संकल्प ले कि हम नदियों को प्रदूषित नहीं करेंगे और उन्हें प्रदूषित होने से बचाएंगे |
डॉ रूपल अग्रवाल ने कहा कि "नदियाँ हमारी जीवन रेखा की तरह हैं, नदियां हमें जीवन देती हैं | उनके बिना मानव जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती | भारत सरकार द्वारा नदियों के संरक्षण तथा उन्हें प्रदूषित होने से बचाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं | भारतवर्ष के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें भी भारत सरकार की इस मुहिम में अपना साथ देना चाहिए और मानव जीवन में नदियों के महत्व को समझते हुए नदियों के संरक्षण में अपना योगदान देना चाहिए |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्षवर्धन अग्रवाल न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल तथा स्वयं सेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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चित्रकूट में सीवर लाइन के नाम पर सरकारी धन की हो रही बर्बादी
चित्रकूट। चित्रकूट नगर वासियों की मांग पर प्रदेश सरकार द्वारा जीवनदायिनी मंदाकिनी नदी को प्रदूषण से बचाने नगर में सीवर लाइन प्रोजेक्ट तैयार करवाकर उक्त कार्य ठेका कंपनी को दिया गया, एक कंपनी डिफाल्टर हो गई, अब दूसरी कंपनी ने जैसे ही काम शुरू किया तो कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार की बू चित्रकूट की सड़कों पर साफ झलकने लगी ! सीवर लाइन के जो भी पाइप डाले जा रहे हैं सीवर के दबाव को शायद सहन कर सकें, इसके…
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MP Politics: मध्यप्रदेश में अब किस प्राचीन स्थान का नाम बदलेगी सरकार, कृषि मंत्री ने की बड़ी घोषणा !!
MP Politics: मध्यप्रदेश की राजनीति में नाम बदलने का दौर लगातार जारी है। अब कृषि मंत्री कमल पटेल ने एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा की हंडिया का नाम बदलकर अब नाभिपट्टनम किया जाएगा।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले कई शहर के नाम बदले जा रहे हैं। अब इसी कड़ी में हरदा जिले की जीवनदायिनी, अर्थिक Or धार्मिक भाव को बढ़ाने वाली माँ नर्मदा की नाभि स्थल पर बसे हंडिया गाँव का नाम बदलने पर सरकार ने फैसला लेते हुए कहा कि जल्द ही हंडिया गाँव अब नाभिपट्टनम के नाम से जाना जाएगा।
हंडिया का नामकरण पर कृषि मंत्री ने क्या कहा ? (MP Politics)
MP Politics: मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा हरदा जिले की जीवनदायिनी नदी माँ के नाभिस्थल का नाम में बदलाव किया जाएगा। उनका कहना था कि प्राचीन इतिहास में हंडिया को नाभिपट्टनम ��े नाम से जाना जाता था।
उन्होंने कहा की अब हंडिया को नगर परिषद बनाया जाएगा तथा अब हंडिया को पवित्र नगरी के रूप में विकसित किया जाएगा, उम्मीद है कि चुनावी साल में हंडिया को नया नाम मिल सकता है।
ये भी पढ़े: भाजपा मध्यप्रदेश में हारी हुई सीटों पर इस बार ज्यादा दे रही है ध्यान
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कलश यात्रा के साथ शुरू हुआ 24 कुंडी गायत्री महा यज्ञ का शुभारंभ
कलश यात्रा के साथ शुरू हुआ 24 कुंडी गायत्री महा यज्ञ का शुभारंभ
कलश यात्रा का नगर में कई स्थानों पर हुआ भव्य स्वागत
युवराज सिंह चौहान-नगर गायत्री प्रज्ञा पीठ के तत्वाधान में मंगलवार 6 दिसंबर को नगर की जीवनदायिनी कंठाल नदी सोयत कला के तट पर स्थित मां गायत्री मंदिर से प्रातः 9 बजे कलश यात्रा का शुभारंभ हुआ
बैंड बाजों के साथ प्रारंभ हुई कलश यात्रा नगर के भावसार मोहल्ला चाणक्य ब्राह्मण मोहल्ला छतरी चौक माधव चौक बस स्टैंड होती हुई छतरी कॉलोनी में स्थित…
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क्या ऐसे पुनर्जीवित होंगी हमारी नदियां?
क्या ऐसे पुनर्जीवित होंगी हमारी नदियां?
देहरादून : प्राचीन काल से ही नदियों को जीवनदायिनी माना गया है। विश्व की कई बड़ी और प्राचीन सभ्यताएं जैसे मेसोपोटामिया, हरप्पा आदि नदियों के किनारे ही बसी थी। और इन्हीं नदियों की बदौलत ये प्राचीन सभ्यताएं फली और फूली। इसी क्रम में अब नाले का रूप ले चुकी रिस्पना नदी को एक बार फिर से पुनर्जीवित करने की कवायद शुरू की जा रही है। इसके लिए उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मिशन…
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मोरबी ब्रिज हादसे के चलते आज गुजरात में राजकीय शोक, जानिए क्यों कहते हैं मच्छु नदी?
अहमदाबाद: गुजरात के में मच्छु नदी पर हादसे के दो दिन बीत चुके हैं, लेकिन इस हादसे का दर्द कम नहीं हो पा रहा है। गुजरात में आज राजकीय शोक है। सरकार की तरफ कोई समारोह और मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाएगा। तो वहीं गुजरात के सौराष्ट्र में इस हादसे की गूंज सर्वाधिक है। इसके पीछे मच्छु नदी पर बना केबल ब्रिज है। मच्छु नदी की बात करें तो यह गुजरात की अपनी नदी हैं जो राजकोट जिले में जसदण की पहाड़ियों से निकलती है और 130 किलोमीटर चल कर कच्छ के रण में मालिया के मिलती है।
नदी से मिलता है पानी
घड़ियों के कारोबार, टाइल्स और टाइल्स की डिजाइन को लेकर दुनियाभर में मोरबी का नाम है। मोरबी को द टाइल्स कैपिटल ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। यह शहर मच्छु नदी के किनारे पर बसा है। मोरबी के बिल्कुल पास से निकलने वाली यह नदी कई मायने में जीवनदायिनी के सामन है, लेकिन पुल हादसे से इसकी चर्चा गलत वजह से हो रही है। यह दूसरा मौका है जब मच्छु नदी शोक का कारण बनी है। 1979 में मच्छु-2 बांध टूटा था तो बड़ी त्रादसी हुई थी। इसमें बड़ी जनहानि हुई थी। मच्छु नदी का यह नाम क्यों पड़ा है? इसके पीछे भी एक कई कहानियां और किस्से जुड़े हुए हैं?
कैसे पड़ा नाम?
कहते हैं कि इस नदी के किनारे एक मगरमच्छ ने एक शख्स को जिंदा निगल लिया। की पूजा करके वह मगरमच्छ के पेट से बाहर आ गया। इस महापुरुष के दूसरे जन्म को मत्स्येन्द्रनाथ के नाम से जाना गया और वे हठयोगी के रूप में विख्यात हुए। मत्स्येन्द्रनाथ को अपने पुत्रों से बहुत लगाव था, उनके एक शिष्य ने उनके पुत्रों को नदी के किनारे मार डाला। इन दोनों पुत्रों ने तब नदी में मछली के रूप में अवतार लिया। इस प्रकार, मच्छ और मत्स्य से नदी को मच्छु के नाम से जाना जाने लगा।
राजा को लगा श्राप
एक पौराणिक कथा के अनुसार, मोरबी के राजा को एक महिला से प्यार हो गया। लेकिन महिला को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। राजा उसे परेशान कर रहा था, जिसके कारण एक दिन महिला ने मच्छु नदी में छलांग लगा दी और उसकी मृत्यु हो गई। लोककथाओं के अनुसार, इस महिला ने अपने प्राण त्यागने से पहले राजा को श्राप दिया था। महिला ने राजा के वंश के अंत और शहर के विनाश का श्राप दिया। राजा को यह श्राप झेलना पड़ा और उसके बाद उनके वंश का अंत हो गया। 1978 में, जब बांध बनकर तैयार हुआ, उसके बाद जियाजी के सातवें वंशज मयूरध्वज का यूरोप में किसी से झगड़ा हो गया और इस दौरान में उनकी मृत्यु हो गई।
130 किमी लंबी है नदी
सौराष्ट के बहने वाली मच्छु नदी राजकोट, मोरबी और सुरेंद्र नगर से होकर कच्छ के रण में जाकर खत्म होती है। 130 किलोमीटर लंबी इस नदी पर भौगोलिक स्थिति काफी उतार-चढ़ाव वाली है। इस नदी पर अभी दो मुख्य बांध है। इनमें पहला बांध वांकानेर शहर से 10 किलोमीटर दूर स्थित है इस बांध का निर्माण कार्य 1952 में शुरू हुआ और 1965 में पूरा हुआ था। तब इसके निर्माण पर करीब 60 लाख रुपये खर्च हुए थे। इसके बाद मच्छु-2 बांध बनाया गया। इसका काम 1960 में शुरू हुआ और साल 1978 में पूरा हुआ। इसके निर्माण पर 3.25 करोड़ रुपये खर्च हुए। यही बांध 1979 में टूटा था। http://dlvr.it/Sc4rDq
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Ashok/02: "चम्पा चली गई" चम्पा गई या चली गई; किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। कोई छानबीन नहीं हुई किसी स्तर पर; जैसे चली गई चलो छुट्टी मिली। पर दैनिक जागरण में 4 दिन पहले छपे समाचार से लोगों को जानकारी हुई कि भागलपुर की चम्पा नदी विलुप्त हो गई। लोगों ने एक सामान्य समाचार की तरह चाय के प्याले के साथ पढ़ा। चाय खत्म, चम्पा खत्म। इसी तरह कुछ 3-4 दशक पहले असी चली गई, वरणा गई, काली गई। देश के अन्य जगहों पर कई नदियां चली गईं, विलुप्त हो गईं। इन नीरवाहिनी, जीवनदायिनी नदियों का विलुप्त होना दुर्भाग्यपूर्ण है, एक भयानक भविष्य की दस्तक है। नदियों के विलुप्त होने के पीछे मुख्य कारणों में अनियोजित और अनुशासनहीन विकास है, नदी के किनारों पर अनियंत्रित भवन निर्माण, नदियों में शहरों के सीवर और नालों का खुले रूप से अबाध गिरना जिसमें ज़हरीले केमिकल मिले रहते हैं। नदियों को बचाने के लिये इन कारकों पर प्रभावी और दृढ़ इक्षाशक्ति के साथ कार्यवाही करनी ही होगी कोई दूसरा विकल्प नहीं है। नदियों के किनारों पर अबाधित निर्माण रोकना होगा, सीवर और खुले नालों को रोकना होगा। एक सच्चा जनजागरण अभियान इसे वांछित मूर्त रूप दे सकता है।
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🙏🏻गंगे नमामि-नमामि गंगे🙏🏻
🚩माँ गँगा को चरण वंदन-नमन कर मित्र-बधुओं सहित गँगा दशहरा पर गँगा स्नान कर व विश्व शांति हेतु गँगा मैया से निवेदन किया📿।
🚩सनातन धर्म की रक्षक व राष्ट्र नदी,साम्ब सदाशिव जी की जटाओं से अवतरित-जीवनदायिनी माँ गंगा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस 'गंगा दशहरा' की समस्त सनातनी व कट्टर हिंदुओ को अनंत बधाई एवं शुभकामनाएं🙏🏻।
🚩माँ गंगा की कृपा सभी पर बनी रहे,सभी के जीवन में सुख,शांति और आरोग्यता का वास हो🙏🏻।
🌹हर-हर गंगे🌹
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उल्हास नदी संवर्धनासाठी एक पाऊल
उल्हास नदी संवर्धनासाठी एक पाऊल
उल्हास नदी संवर्धनासाठी एक पाऊल
शहराच्या मध्यवर्ती ठिकाणाहून वाहणारी उल्हास नदी कर्जत करीता जीवनदायिनी आहे. त्यामुळे तिचे सौंदर्य टिकवणे, तिचे संवर्धन करणे करणे गरजेचे आहे. याकरिता आमदार महेंद्र थोरवे यांच्या माध्यमातून नदी संवर्धन करीता एक पाऊल पुढे टाकले असून जेसीबी मशीनच्या माध्यमातून नदीमधील झाडेझुडपे काढण्यास सुरुवात केली आहे. उल्हास नदीमधील गाळ काढण्यात आल्यानंतर कर्जत शहराला पावसाळ्यात…
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अगर केन्द्र सरकार की बात मानी तो प्यासी रह जाएगी 13 जिलों के किसानों की भूमि
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) परियोजना को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना घोषित करने में कोई अड़चन नहीं है। पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की DPR को तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा ही वर्ष 2017 में केन्द्र सरकार के उपक्रम वेप्कोस लिमिटेड के माध्यम के तैयार करवाया गया था। वेप्कोस लिमिटेड जल सम्बधी परियोजनाओं के क्षेत्र की एक जानीमानी अंतरर्राष्ट्रीय कन्सलटेन्सी संस्था है। परियोजना की डी.पी.आर उस समय राजस्थान रिवर बेसिन ऑथिरिटी के चैयरमेन श्रीराम वेदिरे की देखरेख में बनाई गयी थी। वर्तमान में श्री श्रीराम वेदिरे केन्द्रीय जलशक्ति मंत्रालय में सलाहकार भी है। उनके मंत्रालय के सलाहकार के मार्गदर्शन में बनी इस DPR पर जलशक्ति मंत्री द्वारा सवाल उठाने का कोई औचित्य समझ नहीं आता है।
इस परियोजना से संबधित सभी मापदंड केन्द्रीय जल आयोग की गाइडलाइंस के अनुरूप ही रखे गये थे। केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री द्वारा प्रस्तावित मापदण्ड परिवर्तन से पूर्वी राजस्थान के किसानों को सिंचाई का पानी उपलब्ध नहीं हो पाएगा। पूर्वी राजस्थान में 2 लाख हैक्टेयर क���षेत्र ��ें मिलने वाली सिंचाई सुविधा से किसानों को वंचित नहीं किया जा सकता है। अगर केन्द्र सरकार की बात मानी तो पूर्वी राजस्थान का हाल बुन्देलखण्ड जैसा हो जाएगा और 13 जिलों के किसानों की भूमि प्यासी रह जाएगी। राजस्थान एक मरुस्थलीय प्रदेश है जहां बारिश भी कम होती है एवं एक भी बारहमासी नदी नहीं है। ऐसे में राजस्थान की तुलना किसी दूसरे राज्य से करना न्यायोचित नहीं है।
जलशक्ति मंत्री ने मध्यप्रदेश के आपत्ति के संबंध में भी बैठक उपरांत टिप्पणी की है। इस संबंध में तथ्य है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान इंटरस्टेट कंट्रोल बोर्ड जिसके अध्यक्ष बारी-बारी से 1-1 वर्ष के लिए दोनों प्रदेश के मुख्यमंत्री होते हैं। 2005 में इस बोर्ड की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि राज्य किसी परियोजना के लिए अपने राज्य के कैचमेंट क्षेत्र से प्राप्त पानी और दूसरे राज्यों के कैचमेंट से प्राप्त पानी का 10% उपयोग में ले सकते हैं। इस निर्णय के अनुसार ही ERCP की DPR तैयार की गई थी। संभवत: राजनीतिक कारणों से ही जलशक्ति मंत्री इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि विरोध का कोई तकनीकी कारण तो नहीं है।
केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री ने गुरूवार 28 अप्रैल, 2022 को जयपुर में जल जीवन मिशन के लिए बैठक बुलाई, जिसमें प्रदेश के सभी सांसदों को बुलाया गया था। मैंने इस बैठक से पूर्व सभी सांसदों से अपील कर कहा था कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP)के 13 जिलों के 10 सांसदों की ओर जनता आशा भरी नजरों से देख रही है। प्रधानमंत्री द्वारा स्वयं इसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा देने का आश्वासन अजमेर व जयपुर में दो बार दिया था। इसके बावजूद 13 जिलों की इस जीवनदायिनी परियोजना को अभी तक राष्ट्रीय परियोजना नहीं बनाया गया। इस पूर्व निर्धारित बैठक में भी 8 भाजपा सांसदों का अनुपस्थित रहना दर्शाता है कि भाजपा के सांसद ERCP और जल जीवन मिशन को लेकर कितने गंभीर हैं।
राजस्थान राज्य के लिए यह परियोजना अति महत्वपूर्ण है। जिससे राज्य के 13 जिलों में पेयजल, सिंचाई, उद्योगों हेतु जल की आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। इसके महत्व को देखते हुए राज्य सरकार इसकी क्रियान्विति हेतु कटिबद्ध है। परियोजना के नवनेरा बैराज एवं ईसरदा बांध पर हमारी राज्य सरकार द्वारा लगभग 1000 करोड़ रूपये खर्च भी किये जा चुके हैं एवं इस वर्ष बजट में 9600 करोड़ की लागत से नवनेरा-गलवा-बीसलपुर-ईसरदा लिंक योजना, रामगढ़ एवं महलपुर बैराज के कार्य आरम्भ करने की घोषणा की गई, जो कि राज्य की वित्तीय स्थिति को देखते हुए एक बड़ा कमिटमेन्ट है। राज्य को पूर्ण आशा है कि भारत सरकार इसमें सकारात्मक सोच के साथ राज्य सरकार को वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवायेगी जिससे इस परियोजना का कार्य समयबद्ध तरीके से पूर्ण किया जा सके।
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CG News: इंद्रवती नदी पर पुल निर्माण को लेकर हज़ारों ग्रामीणों ने किया विरोध प्रदर्शन CG News: बस्तर की जीवनदायिनी कही जाने ...
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झुकेही में टमस महोत्सव आजविशाल भंडारा व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का होगा भव्य आयोजन
सतना। विन्ध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नदियों में से एक जिसे टमस नदी के नाम से जाना जाता है, टमस नदी का उदगम स्थल मैहर तहसील के अमदरा सर्किल के झुकेही के समीप तमाकुण्ड से माना जाता है, टमस नदी दो राज्यो को जोड़ती है, टमस झुकेही से निकलकर 264 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए उत्तरप्रदेश के सिरसा जिले में गंगा नदी से मिलती है, रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब प्रभु श्री राम, माता सीता और भाई…
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Narmada Jayanti 2022: कब है नर्मदा जयंती, जानिए महत्व, कथा, मंत्र एवं परिक्रमा का रहस्य #news4
नर्मदा जयंती (narmda jayanti 2022) माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। नर्मदा भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। इसका वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। धार्मिक ग्रंथों में यह तिथि को नर्मदा जयंती के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। नर्मदा जीवनदायिनी मां है। यह पूरी दुनिया की अकेली रहस्यमयी नदी है। चारों वेद इसकी महिमा का गान करते हैं। इस बार मां नर्मदा की…
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झारखंड की सोना उगलने वाली नदी, जिसका आज तक रहस्य नही सुलझा पाये वैज्ञानिक!
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झारखंड की सोना उगलने वाली नदी, जिसका आज तक रहस्य नही सुलझा पाये वैज्ञानिक!
दोस्तों भारत देश का झारखंड राज्य अपनी आदिवासी संस्कृति और खनिज संपदा के लिए मशहूर है। सुदूर तक फैले जंगल यहां के जनजातियों के लिए जीवनदायिनी के बराबर हैं। वहीं, इस राज्य को कई अनसुलझे रहस्यों का गढ़ भी माना जाता है। यहां उपस्थित खंडहर और घने वनों के साथ-साथ यहां की नदियों ने भी अपने भीतर कई गहरे राज समेटे हुए हैं।
यह नदी वर्षों से रहस्यमयी तरीके से सोना उगलने का काम करती है, जिस कार��� इस नदी का नाम स्वर्णरेखा नदी पड़ा है। इसकी लम्बाई 474 किमी है। यह नदी पश्चिम बंगाल, झारखंड और उड़ीसा में बहती है तथा इसका उद्गम स्थल रांची से 16 किलोमीटर दूर है। जानकर हैरानी होगी कि इस नदी से निकलने वाले रेत में सोने के कण पाए जाते हैं, जिसके वजह से यहां आसपास पाई जानेवाली जनजातियां यहां सोना निकालने का कार्य करती है। यह नदी अपनी इस विशेषता के कारण भू-वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय रही है। रिसर्च कर चुके कई वैज्ञानिकों का यह कहना है कि यह नदी चट्टानों से होकर गुजरती है, जिसके वजह से इसमें सोने के कण आ जाते हैं। हालांकि यह बात कितनी आने सच है इसकी जानकारी अभी तक किसी को नहीं लगी है।
स्वर्णरेखा नदी से सोना निकलने की बात पर अभी तक कई भिन्न-भिन्न मत प्रस्तुत किए जा चुके हैं। उन मतों में से एक मत यह है कि ‘करकरी नदी’, जो इस स्वर्णरेखा नदी की सहायक नदी है, उसके वजह से इस नदी में सोने के कण आते हैं, क्योंकि इसी के जैसे सोने के कण करकरी नदी में भी पाए आते हैं लेकिन इस तथ्य की पुष्टि भी पूरे तरीके से नहीं हो पाई है। इसके साथ ही करकरी नदी में सोने के कण कहां से आते हैं, इस सवाल का भी अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।
सोना उगलने के वजह से यह नदी आदिवासियों के लिए आय का स्त्रोत भी है। यहां के सथानीय निवासी सुबह से शाम तक रेत को छानकर सोने से अलग करते दिखाई देते हैं। इस काम में उनका पूरा परिवार शामिल रहता है। झारखंड का तमाड़ और सारंड क्षेत्र नदी से सोना निकालने के लिए जाना जाता है। नदी से सोना निकालने का कार्य इन आदिवासियों के जीवन का एक अंग बन चुका है। इस कार्य में धैर्य की बहुत आवश्यकता होती है, क्योंकि कभी-कभी सोने के एक भी कण हाथ नहीं लगते हैं। मानसून के मौसम में नदी का बहाव तेज होने की वजह से इस दौरान सोना निकालने का काम नहीं होता है। वहीं मानसून का महीना छोड़कर सालों भर यहां काम चलते रहता है।
स्वर्णरेखा नदी से निकलने वाले सोने के कण बहुत छोटे होने के कारण एक व्यक्ति एक माह में महज 60 से 80 किलो ही सोने के कण निकाल पाता है, जबकि कभी-कभी यह संख्या घटकर 20 से 25 किलो भी हो जाती है। कहा जाता है कि सोने के एक कण की कीमत 100 रुपए होती है, जबकि बाजार में इसका भाव 300 रुपये से भी अधिक होता है। आदिवासियों के साथ काम करने वाले लालची सुनार और दलाल के वजह से इन्हें उनकी मेहनत की कमाई का बहुत कम हिस्सा ही मिल पाता है। जानकारी के अभाव के कारण स्थानीय लोग बहुत कम कीमत पर वहां के स्थानीय सुनारों को सोने के कण बेच देते हैं।
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राहत: गंगा की रौद्र लहरें शान्त, जलस्तर घटने लगा, प्रभावित क्षेत्र में जन जीवन बेहाल Divya Sandesh
#Divyasandesh
राहत: गंगा की रौद्र लहरें शान्त, जलस्तर घटने लगा, प्रभावित क्षेत्र में जन जीवन बेहाल
वाराणसी। जीवनदायिनी सदानीरा गंगा की रौद्र लहरें अब शान्त हो गई है। लगातार बढ़ने के बाद लहरें अब दो सेंटीमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से घट रही है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के नागरिकों के साथ जिला प्रशासन ने भी अब राहत की सांस ली है। शुक्रवार सुबह सात बजे तक गंगा का जलस्तर 72.28 मीटर दर्ज किया गया। जलस्तर गुरूवार दोपहर बाद से ठहर गया।
इसके बाद एक सेंटीमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से जलस्तर घटने लगा। अभी भी गंगा की लहरे खतरे के निशान से उपर बह रही है। गंगा में सामान्य जलस्तर 66.599 मीटर है। वाराणसी के साथ मिर्जापुर, भदोही और चंदौली में भी जलस्तर घटाव पर है। केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार गाजीपुर और बलिया में गंगा फिलहाल स्थिर हैं।
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गंगा में आई बाढ़ के चलते तटवर्ती क्षेत्र के लोगों की मुश्किले भी बढ़ती जा रही है। प्रभावित क्षेत्र में लोगों को अपना मकान गिरने की आशंका भी सता रही है। गंगा के सभी 84 घाटों का सम्पर्क टूट गया है। दशाश्वमेध और शीतलाघाट,सामनेघाट,नगवा,मारूति नगर आदि इलाकों में बाढ़ से लोगों की परेशानी बढ़ गई है। लोगों का काम धाम ठप है। जीवन भी ठहर सा गया है। लोगों को बाढ़ का पानी उतरने के बाद कीचड़ और गंदगी के साथ संक्रामक रोग का भय भी सताने लगा है। वरूणा नदी के तटवर्ती क्षेत्र में भी यहीं हाल हैं। लोग बाढ़ उतरने का इंतजार कर रहे है।
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सलारपुर, रसूलगढ़, पुलकोहना, दनियालपुर, सरैयां, शैलपुत्री, नक्खीघाट, हुकुलगंज, चौकाघाट, वरुणा पुल, इमिलिया घाट आदि मोहल्ले में बाढ़ पीड़ित लोग उंचे स्थानों के साथ राहत शिविरों में शरण लिए हुए है। राहत शिविर में रह रहे लोगों की मदद में जिला प्रशासन के अफसर लगे हुए हैं। लोग अब बाढ़ उतरने का इंतजार कर रहे है।
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