ब्रह्म साधना अनुत्तम (घटिया) है।
2. तीन ताप को श्री कृष्ण जी भी समाप्त नहीं कर सके। श्राप देना तीन ताप (दैविक ताप) में आता है। दुर्वासा के श्राप के शिकार स्वयं श्री कृष्ण सहित सर्व यादव भी हो गए।
3. श्री कृष्ण जी ने श्रापमुक्त होने के लिए यमुना में स्नान करने के लिए कहा, यह समाधान बताया था। उससे श्राप नाश तो हुआ नहीं, यादवों का नाश अवश्य हो गया। विचार करें:- जो अन्य सन्त या ब्राह्मण जो ऐसे स्नान या तीर्थ करने से संकट मुक्त करने की राय देते हैं, वे कितनी कारगर हैं? अर्थात् व्यर्थ हैं क्योंकि जब भगवान त्रिलोकी नाथ द्वारा बताए समाधान यमुना स्नान से कुछ लाभ नहीं हुआ तो अन्य टट्पँुजियों, ब्राह्मणों व गुरूओं द्वारा बताए स्नान आदि समाधान से कुछ होने वाला नहीं है।
4. पहले श्री कृष्ण जी ने दुर्वासा के श्राप से बचाव का तरीका बताया था। उस कढ़ाई को घिसाकर चूर्ण बनाकर प्रभास क्षेत्रा में यमुना नदी में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, बाँस भी रह गया, 56 करोड़ यादवों की बाँसुरी भी बज गई।
सज्जनो!
वर्तमान में बुद्धिमान मानव है, शिक्षित है। मेरे द्वारा (सन्त रामपाल दास द्वारा) बताए ज्ञान को शास्त्रों से मिलाओ, फिर भक्ति करके देखो, क्या कमाल होता है।
प्रसंग आगे चलाते हैं:-
1. तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति करना व्यर्थ सिद्ध हुआ।
2. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म की भक्ति स्वयं गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम बताई है। उसने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में उस परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। यह भी कहा है कि उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।
3. गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में संसार रूपी वृक्ष का वर्णन है तथा तत्वदर्शी सन्त की पहचान भी बताई है। संसार रूपी वृक्ष के सब हिस्से, जड़ें (मूल) कौन परमेश्वर है? तन��� कौन प्रभु है, डार कौन प्रभु है, शाखाऐं कौन-कौन देवता हैं? पात रूप संसार बताया है।
इसी अध्याय 15 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि:-
1. क्षर पुरूष (यह 21 ब्रह्माण्ड का प्रभु है):- इसे ब्रह्म, काल ब्रह्म, ज्योति निरंजन भी कहा जाता है। यह नाशवान है। हम इसके लोक में रह रहे हैं। हमें इसके लोक से मुक्त होना है तथा अपने परमात्मा कबीर जी के पास सत्यलोक में
जाना है।
2. अक्षर पुरूष:- यह 7 संख ब्रह्माण्डों का प्रभु है, यह भी नाशवान है। हमने इसके 7 संख ब्रह्माण्डों के क्षेत्रा से होकर सत्यलोक जाना है। इसलिए इसका टोल टैक्स देना है। बस इससे हमारा इतना ही काम है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि:-
उत्तमः पुरूषः तू अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः।
यः लोक त्रायम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।
सरलार्थ:- गीता अध्याय 15 श्लोक 16 ���ें कहे दो पुरूष, एक क्षर पुरूष दूसरा अक्षर पुरूष हैं। इन दोनों से अन्य है उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम, उसी को परमात्मा कहते हैं जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। (गीता अध्याय 15 श्लोक 17) गीता अध्याय 3 श्लोक 14.15 में भी स्पष्ट किया है कि सर्वगतम् ब्रह्म अर्थात् सर्वव्यापी परमात्मा, जो सचिदानन्द घन ब्रह्म है, उसे वासुदेव भी कहते हैं जिसके विषय में गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में कहा है। वही सदा यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिष्ठित है अर्थात् ईष्ट रूप में पूज्य है।
पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करो। इस प्रकार जीने की राह पर चलकर संसार में सुखी जीवन जीऐं तथा मोक्ष रूपी मंजिल को प्राप्त करें।
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जीने की राह
Jeene Ki Rah - Audio Book
जीने की राह | भूमिका
जीने की राह | दो शब्द
1. मानव जीवन की आम धारणा | जीने की राह
2. सुख सागर की संक्षिप्त परिभाषा | जीने की राह
3. मार्कण्डेय ऋषि तथा अप्सरा का संवाद
4. आज भाई को फुरसत | जीने की राह
5. भक्ति न करने से हानि का अन्य विवरण | जीने की राह
6. भक्ति न करने से बहुत दुःख होगा | जीने की राह
7. भक्ति मार्ग पर यात्रा | जीने की राह
8. विवाह कैसे करें | जीने की राह
9. प्रेम प्रसंग कैसा होता है? | जीने की राह
10. भगवान शिव का अपनी पत्नी को त्यागना | जीने की राह
11. कृतघ्नी पुत्र | जीने की राह
12. बे-औलादो! सावधान | जीने की राह
13. विवाह में ज्ञानहीन नाचते हैं | जीने की राह
14. संतों की शिक्षा | जीने की राह
15. विवाह के पश्चात् की यात्रा | जीने की राह
16. विशेष मंथन | जीने की राह
17. चरित्रवान की कथा | जीने की राह
18. संगत का प्रभाव तथा विश्वास प्रभु का | जीने की राह
19. परमेश्वर कबीर जी द्वारा काशी शहर में भोजन-भण्डारा यानि लंगर (धर्म यज्ञ) की व्यवस्था करना | जीने की राह
20. एक अन्य करिश्मा जो उस भण्डारे में हुआ | जीने की राह
21. हरलाल जाट की कथा | जीने की राह
22. तम्बाकू सेवन करना महापाप है | जीने की राह
23. तम्बाकू की उत्पत्ति कथा | जीने की राह
24. तम्बाकू के विषय में अन्य विचार | जीने की राह
25. तम्बाकू से गधे-घोड़े भी घृणा करते हैं | जीने की राह
26. नशा करता है नाश | जीने की राह
27. माता-पिता की सेवा व आदर करना परम कर्तव्य | जीने की राह
28. पिता बच्चों की हर संभव गलती क्षमा कर देता है | जीने की राह
29. सत्संग से घर की कलह समाप्त होती है | जीने की राह
30. पुहलो बाई की नसीहत | जीने की राह
31. ‘सत्संग में जाने से बड़ी आपत्ति टल जाती है’ | जीने की राह
32. मीराबाई को विष से मारने की व्यर्थ कोशिश | जीने की राह
33. मीरा को सतगुरू शरण मिली | जीने की राह
34. चोर कभी धनी नहीं होता | जीने की राह
35. सांसारिक चीं-चूं में ही भक्ति करनी पड़ेगी | जीने की राह
36. अब भक्ति से क्या होगा? आयु तो थोड़ी-सी शेष है। | जीने की राह
37. चौधरी जीता जाट को ज्ञान हुआ | जीने की राह
38. वैश्या का उद्धार | जीने की राह
39. रंका-बंका की कथा | जीने की राह
40. कबीर जी द्वारा शिष्यों की परीक्षा लेना | जीने की राह
41. दीक्षा के पश्चात् | जीने की राह
42. एक लेवा एक देवा दूतं। कोई किसी का पिता न पूतं | जीने की राह
43. कथनी और करनी में अंतर घातक है | जीने की राह
44. सत्संग से मिली भक्ति की राह | जीने की राह
45. मनीराम कथा वाचक पंडित की करनी | जीने की राह
46. राजा परीक्षित का उद्धार | जीने की राह
47. पंडित की परिभाषा | जीने की राह
48. अध्याय अनुराग सागर का सारांश | जीने की राह
49. भक्त का स्वभाव कैसा हो? | जीने की राह
50. मन कैसे पाप-पुण्य करवाता है | जीने की राह
51. भक्त के 16 गुण (आभूषण) | जीने की राह
52. काल का जीव सतगुरू ज्ञान नहीं मानता | जीने की राह
53. हंस (भक्त) लक्षण | जीने की राह
54. भक्त परमार्थी होना चाहिए | जीने की राह
55. दीक्षा लेकर नाम का स्मरण करना अनिवार्य है | जीने की राह
56. दश मुकामी रेखता | जीने की राह
57. भक्त जती तथा सती होना चाहिए | जीने की राह
58. अध्याय "गरूड़ बोध" का सारांश | जीने की राह
59. अमृतवाणी गरूड़ बोध से | जीने की राह
60. अध्याय "हनुमान बोध" का सारांश | जीने की राह
61. कबीर परमेश्वर जी की काल से वार्ता | जीने की राह
62. काल निरंजन द्वारा कबीर जी से तीन युगों में कम जीव ले जाने का वचन लेना | जीने की राह
63. तेरह गाड़ी कागजों को लिखना | जीने की राह
64. कलयुग वर्तमान में कितना बीत चुका है | जीने की राह
65. गुरू बिन मोक्ष नही | जीने की राह
66. पूर्ण गुरू के वचन की शक्ति से भक्ति होती है | जीने की राह
67. वासुदेव की परिभाष | जीने की राह
68. भक्ति किस प्रभु की करनी चाहिए’’ गीता अनुसार | जीने की राह
69. पूजा तथा साधना में अंतर | जीने की राह
70. ऋषि दुर्वासा की कारगुजारी | जीने की राह
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संत रामपाल जी महाराज का अवतरण दिवस
6-7-8 सितंबर
विशाल भंडारा

अवतरण दिवसब्रह्म साधना अनुत्तम (घटिया) है।
2. तीन ताप को श्री कृष्ण जी भी समाप्त नहीं कर सके। श्राप देना तीन ताप (दैविक ताप) में आता है। दुर्वासा के श्राप के शिकार स्वयं श्री कृष्ण सहित सर्व यादव भी हो गए।
3. श्री कृष्ण जी ने श्रापमुक्त होने के लिए यमुना में स्नान करने के लिए कहा, यह समाधान बताया था। उससे श्राप नाश तो हुआ नहीं, यादवों का नाश अवश्य हो गया। विचार करें:- जो अन्य सन्त या ब्राह्मण जो ऐसे स्नान या तीर्थ करने से संकट मुक्त करने की राय देते हैं, वे कितनी कारगर हैं? अर्थात् व्यर्थ हैं क्योंकि जब भगवान त्रिलोकी नाथ द्वारा बताए समाधान यमुना स्नान से कुछ लाभ नहीं हुआ तो अन्य टट्पँुजियों, ब्राह्मणों व गुरूओं द्वारा बताए स्नान आदि समाधान से कुछ होने वाला नहीं है।
4. पहले श्री कृष्ण जी ने दुर्वासा के श्राप से बचाव का तरीका बताया था। उस कढ़ाई को घिसाकर चूर्ण बनाकर प्रभास क्षेत्रा में यमुना नदी में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, बाँस भी रह गया, 56 करोड़ यादवों की बाँसुरी भी बज गई।
सज्जनो!
वर्तमान में बुद्धिमान मानव है, शिक्षित है। मेरे द्वारा (सन्त रामपाल दास द्वारा) बताए ज्ञान को शास्त्रों से मिलाओ, फिर भक्ति करके देखो, क्या कमाल होता है।
प्रसंग आगे चलाते हैं:-
1. तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति करना व्यर्थ सिद्ध हुआ।
2. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म की भक्ति स्वयं गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम बताई है। उसने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में उस परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। यह भी कहा है कि उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।
3. गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में संसार रूपी वृक्ष का वर्णन है तथा तत्वदर्शी सन्त की पहचान भी बताई है। संसार रूपी वृक्ष के सब हिस्से, जड़ें (मूल) कौन परमेश्वर है? तना कौन प्रभु है, डार कौन प्रभु है, शाखाऐं कौन-कौन देवता हैं? पात रूप संसार बताया है।
इसी अध्याय 15 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि:-
1. क्षर पुरूष (यह 21 ब्रह्माण्ड का प्रभु है):- इसे ब्रह्म, काल ब्रह्म, ज्योति निरंजन भी कहा जाता है। यह नाशवान है। हम इसके लोक में रह रहे हैं। हमें इसके लोक से मुक्त होना है तथा अपने परमात्मा कबीर जी के पास सत्यलोक में
जाना है।
2. अक्षर पुरूष:- यह 7 संख ब्रह्माण्डों का प्रभु है, यह भी नाशवान है। हमने इसके 7 संख ब्रह्माण्डों के क्षेत्रा से होकर सत्यलोक जाना है। इसलिए इसका टोल टैक्स देना है। बस इससे हमारा इतना ही काम है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि:-
उत्तमः पुरूषः तू अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः।
यः लोक त्रायम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।
सरलार्थ:- गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहे दो पुरूष, एक क्षर पुरूष दूसरा अक्षर पुरूष हैं। इन दोनों से अन्य है उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम, उसी को परमात्मा कहते हैं जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। (गीता अध्याय 15 श्लोक 17) गीता अध्याय 3 श्लोक 14.15 में भी स्पष्ट किया है कि सर्वगतम् ब्रह्म अर्थात् सर्वव्यापी परमात्मा, जो सचिदानन्द घन ब्रह्म है, उसे वासुदेव भी कहते हैं जिसके विषय में गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में कहा है। वही सदा यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिष्ठित है अर्थात् ईष्ट रूप में पूज्य है।
पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करो। इस प्रकार जीने की राह पर चलकर संसार में सुखी जीवन जीऐं तथा मोक्ष रूपी मंजिल को प्राप्त करें।
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जीने की राह
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जीने की राह | भूमिका
जीने की राह | दो शब्द
1. मानव जीवन की आम धारणा | जीने की राह
2. सुख सागर की संक्षिप्त परिभाषा | जीने की राह
3. मार्कण्डेय ऋषि तथा अप्सरा का संवाद
4. आज भाई को फुरसत | जीने की राह
5. भक्ति न करने से हानि का अन्य विवरण | जीने की राह
6. भक्ति न करने से बहुत दुःख होगा | जीने की राह
7. भक्ति मार्ग पर यात्रा | जीने की राह
8. विवाह कैसे करें | जीने की राह
9. प्रेम प्रसंग कैसा होता है? | जीने की राह
10. भगवान शिव का अपनी पत्नी को त्यागना | जीने की राह
11. कृतघ्नी पुत्र | जीने की राह
12. बे-औलादो! सावधान | जीने की राह
13. विवाह में ज्ञानहीन नाचते हैं | जीने की राह
14. संतों की शिक्षा | जीने की राह
15. विवाह के पश्चात् की यात्रा | जीने की राह
16. विशेष मंथन | जीने की राह
17. चरित्रवान की कथा | जीने की राह
18. संगत का प्रभाव तथा विश्वास प्रभु का | जीने की राह
19. परमेश्वर कबीर जी द्वारा काशी शहर में भोजन-भण्डारा यानि लंगर (धर्म यज्ञ) की व्यवस्था करना | जीने की राह
20. एक अन्य करिश्मा जो उस भण्डारे में हुआ | जीने की राह
21. हरलाल जाट की कथा | जीने की राह
22. तम्बाकू सेवन करना महापाप है | जीने की राह
23. तम्बाकू की उत्पत्ति कथा | जीने की राह
24. तम्बाकू के विषय में अन्य विचार | जीने की राह
25. तम्बाकू से गधे-घोड़े भी घृणा करते हैं | जीने की राह
26. नशा करता है नाश | जीने की राह
27. माता-पिता की सेवा व आदर करना परम कर्तव्य | जीने की राह
28. पिता बच्चों की हर संभव गलती क्षमा कर देता है | जीने की राह
29. सत्संग से घर की कलह समाप्त होती है | जीने की राह
30. पुहलो बाई की नसीहत | जीने की राह
31. ‘सत्संग में जाने से बड़ी आपत्ति टल जाती है’ | जीने की राह
32. मीराबाई को विष से मारने की व्यर्थ कोशिश | जीने की राह
33. मीरा को सतगुरू शरण मिली | जीने की राह
34. चोर कभी धनी नहीं होता | जीने की राह
35. सांसारिक चीं-चूं में ही भक्ति करनी पड़ेगी | जीने की राह
36. अब भक्ति से क्या होगा? आयु तो थोड़ी-सी शेष है। | जीने की राह
37. चौधरी जीता जाट को ज्ञान हुआ | जीने की राह
38. वैश्या का उद्धार | जीने की राह
39. रंका-बंका की कथा | जीने की राह
40. कबीर जी द्वारा शिष्यों की परीक्षा लेना | जीने की राह
41. दीक्षा के पश्चात् | जीने की राह
42. एक लेवा एक देवा दूतं। कोई किसी का पिता न पूतं | जीने की राह
43. कथनी और करनी में अंतर घातक है | जीने की राह
44. सत्संग से मिली भक्ति की राह | जीने की राह
45. मनीराम कथा वाचक पंडित की करनी | जीने की राह
46. राजा परीक्षित का उद्धार | जीने की राह
47. पंडित की परिभाषा | जीने की राह
48. अध्याय अनुराग सागर का सारांश | जीने की राह
49. भक्त का स्वभाव कैसा हो? | जीने की राह
50. मन कैसे पाप-पुण्य करवाता है | जीने की राह
51. भक्त के 16 गुण (आभूषण) | जीने की राह
52. काल का जीव सतगुरू ज्ञान नहीं मानता | जीने की राह
53. हंस (भक्त) लक्षण | जीने की राह
54. भक्त परमार्थी होना चाहिए | जीने की राह
55. दीक्षा लेकर नाम का स्मरण करना अनिवार्य है | जीने की राह
56. दश मुकामी रेखता | जीने की राह
57. भक्त जती तथा सती होना चाहिए | जीने की राह
58. अध्याय "गरूड़ बोध" का सारांश | जीने की राह
59. अमृतवाणी गरूड़ बोध से | जीने की राह
60. अध्याय "हनुमान बोध" का सारांश | जीने की राह
61. कबीर परमेश्वर जी की काल से वार्ता | जीने की राह
62. काल निरंजन द्वारा कबीर जी से तीन युगों में कम जीव ले जाने का वचन लेना | जीने की राह
63. तेरह गाड़ी कागजों को लिखना | जीने की राह
64. कलयुग वर्तमान में कितना बीत चुका है | जीने की राह
65. गुरू बिन मोक्ष नही | जीने की राह
66. पूर्ण गुरू के वचन की शक्ति से भक्ति होती है | जीने की राह
67. वासुदेव की परिभाष | जीने की राह
68. भक्ति किस प्रभु की करनी चाहिए’’ गीता अनुसार | जीने की राह
69. पूजा तथा साधना में अंतर | जीने की राह
70. ऋषि दुर्वासा की कारगुजारी | जीने की राह
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