पुलवामा त्रासदी और उसका चुनावी एडवांटेज
पुलवामा त्रासदी और उसका चुनावी एडवांटेज
लेखक : राजेंद्र शर्मा
NCG News desk :-
पुलवामा की त्रासदी का भूत, चार साल बाद एक बार फिर परेशान करने के लिए, मोदी सरकार के सामने आ खड़ा हुआ है। पुलवामा की त्रासदी और उसके साल भर बाद, जम्मू-कश्मीर के विभाजन, उसका दर्जा घटाए जाने तथा धारा-370 के पूरी तरह से इकतरफा तरीके से खत्म किए जाने के समय, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक के, हिंदी के एक…
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कांग्रेस पर बड़ा हमला, कहा, धारा 370 को फिर से लागू करना चाहती है कांग्रेस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कांग्रेस पर बड़ा हमला, कहा, धारा 370 को फिर से लागू करना चाहती है कांग्रेस
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PM Modi Gohana Sonipat Haryana: पीएम नरेंद्र मोदी ने आज 25 सितंबर को हरियाणा के सोनीपत जिले के गोहाना में चुनावी रैली को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस पर कई निशाने साधे और कहा कि कांग्रेस को वोट देने का मतलब बर्बादी के दरवाजे खोलना है। मोदी ने कांग्रेस पर धारा 370 वापस लागू कर सकने के आरोप लगाए।
गोहाना में पीएम मोदी ने कह कि भाजपा सरकार की वजह से संभव हो पाया है कि आज जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव…
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जम्मू कश्मीर में बीजेपी का घोषणा पत्र जारी, अमित शाह बोले - 370 अब कभी लौट नहीं सकता
बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर के लिए पार्टी का संकल्प पत्र जारी किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू में पार्टी के संकल्प पत्र ���ो जारी किया। संकल्प पत्र को जारी करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि मैंने नेशनल कांफ्रेंस का एजेंडा पढ़ा। इसमें गुमराह किया गया है। इसको कांग्रेस का भी समर्थन है। शाह ने कहा कि मैं साफ तौर पर कहना चाहता हूं कि अब जम्मू-कश्मीर में कभी भी धारा 370 नहीं…
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पाकिस्तान के साथ निर्बाध बातचीत का युग अब खत्म : जयशंकर
नई दिल्ली, 30 अगस्त 2024। दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पाकिस्तान पर कड़ा संदेश देते हुए कहा, पाकिस्तान के साथ निर्बाध बातचीत का युग अब समाप्त हो गया है। जहां तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है, धारा 370 हटने के बाद अब मुद्दा यह है कि हम पाकिस्तान के साथ किस प्रकार के रिश्ते पर विचार कर सकते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया, हम निष्क्रिय नहीं हैं, और चाहे घटनाएं…
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एक भारत अखंड भारत के प्रबल समर्थक थे डॉ मुख़र्जी - बीएल वर्मा
एक भारत अखंड भारत के प्रबल समर्थक थे डॉ मुख़र्जी - बीएल वर्मा
मथुरा। भाजपा द्वारा डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस को बलिदान पखवाडा के रूप में 23 जून से 6 जुलाई तक मनाया जा रहा है जिसके उपलक्ष्य में पार्टी द्वारा विभिन्न कार्यक्रम और अभियान आयोजित किए जा रहे हैं। गुरुवार को गोवर्धन रोड स्थित खंडेलवाल सेवा सदन में भाजपा महानगर द्वारा बलिदान पखवाड़ा पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। भाजपा महानगर अध्यक्ष घनश्याम लोधी की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी का मुख्य अतिथि भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा ने डॉ मुखर्जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा ने उपस्थित कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक प्र��र राष्ट्रवादी शिक्षाविद जन संघ के संस्थापक हम सबके प्रेरणा स्त्रोत और एक भारत अखंड भारत के प्रबल समर्थक थे। देश की अखंडता के लिए धारा 370 का पुरजोर विरोध किया। एक देश दो विधान नहीं चलेंगे का नारा दिया और अखंड भारत बनाने के लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर गये और वहीं पर उनकी षड्यंत्र के तहत हत्या कर दी गई। उनका बलिदान आज तक रहस्य एवं जाँच का विषय रहा है। उनके बलिदान के बाद राष्ट्रवादी लोगों का नारा रहा कि जहाँ बलिदान हुए मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक अखंड भारत के सपने को कश्मीर से धारा 370 को हटा कर पूरा किया। आज उनके मार्ग पर भाजपा की सरकार काम कर रही है। आज भारत पीओके को लेकर अखंड भारत बनाने के लिये तैयार है। महापौर विनोद अग्रवाल ने सम्बंधित करते हुए कहा कि आज भारत विश्व पटल पर आगे बढ़ रहा है। आज देश में चहुंमुखी तरफ़ विकास हो रहा है। आज देश विकसित भारत और विश्व गुरु बनने के लिए आगे बढ़ रहा है। महानगर अध्यक्ष घनश्याम लोधी ने कहा कि सभी कार्यकर्ताओं को उनके अनुसरण मार्ग पर चलकर राष्ट्रहित कार्यों में लगना होगा तभी डॉ मुख़र्जी के सपनों का भारत बनेगा। संगोष्ठी के संयोजक महानगर उपाध्यक्ष मुकेश खंडेलवाल ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर गोवर्धन विधायक मेघश्याम सिंह, ओबीसी मोर्चा क्षेत्रीय महामंत्री बबलू लोधी, क्षेत्रीय मंत्री विनोद चौधरी, पूर्व विधायक करिंदा सिंह, पूर्व महापौर मुकेश आर्यबंधु, चेतन स्वरूप पाराशर, डीएन गौतम, सांसद प्रतिनिधि जनार्दन शर्मा, महानगर महामंत्री प्रदीप गोस्वामी, राजू यादव, महानगर उपाध्यक्ष श्याम सिंघल, संजय शर्मा आदि मौजूद रहे। संगोष्ठी का संचालन महानगर महामंत्री सुनील चतुर्वेदी ने किया।
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jamshedpur rural bjp - जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जादूगोड़ा में मनी पुण्यतिथि, दी गई श्रद्धांजलि
जादूगोड़ा: जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जादूगोड़ा स्थित यूसिल कॉलोनी में उनकी पुण्यतिथि को बलिदान दिवस के रूप में मनाया गया. इधर इस मौके पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी गई. इस अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए भाजपा नेता मनोज प्रताप सिंह ने कहा की उनकी कुर्बानी की वजह से ही कश्मीर से धारा 370 हटना संभव हो सका.(नीचे भी पढ़े)
उनकी कुर्बानियों को देश कभी भुला…
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वैशाली समेत बिहार की सभी 40 सीटों का परिणाम चौकाने वाला | चुनावी विश्लेषण
वैशाली समेत बिहार की सभी 40 सीटों का परिणाम चौकाने वाला | चुनावी विश्लेषण
बिहार की सभी 40 सीटों के परिणामों का विश्लेषण पत्रकारों ने किया है, जो काफी चौकाने वाला है। एनडीए के कोर वोट में सेंधमारी, मोदी लहर, राम मंदिर और धारा 370 बनाम महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर गहन चर्चा। जातीय समीकरण और एंटी इनकंबेंसी बनाम प्रो इनकंबेंसी का प्रभाव क्या रहा? हॉट सीट जैसे पुर्णिया, शिवहर, वैशाली, सारण, समस्तीपुर, गया, और हाजीपुर में क्या परिणाम देखने को मिल सकते हैं? वैश्य,…
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IPC NOTES
IPC NOTES
धारा 1 - संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार
*धारा 1: भारतीय दंड संहिता का नाम और विस्तार** भारतीय दंड संहिता को संक्षेप में आईपीसी भी कहा जाता है।
* आईपीसी एक कानून है जो भारत में होने वाले अपराधों और उनके लिए सजा का प्रावधान करता है।
* आईपीसी 1 जनवरी, 1862 से पूरे भारत में लागू है, सिवाय जम्मू और कश्मीर के।
* जम्मू और कश्मीर में आईपीसी 31 अक्टूबर, 2019 से लागू हुई है, जब भारत सरकार ने वहां संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था।
* आईपीसी में कुल 511 धाराएं हैं, जो 23 अध्यायों में विभाजित हैं।
* आईपीसी की पहली धारा संहिता का नाम और विस्तार बताती है।*उदाहरण:** अगर कोई व्यक्ति किसी की हत्या करता है, तो उसे आईपीसी की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास या मौत की सजा हो सकती है।
* अगर कोई व्यक्ति किसी के साथ बलात्कार करता है, तो उसे आईपीसी की धारा 376 के तहत आजीवन कारावास या 10 साल तक की सजा हो सकती है।
* अगर कोई व्यक्ति किसी की जेब से पर्स चुराता है, तो उसे आईपीसी की धारा 379 के तहत 3 साल तक की सजा हो सकती है।*संबंधित कानून:** आईपीसी के अलावा, भारत में कई अन्य कानून हैं जो अपराधों और उनकी सजा का प्रावधान करते हैं।
* इन कानूनों में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), साक्ष्य अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और अन्य शामिल हैं।
* ये सभी कानून मिलकर भारत में अपराधों को नियंत्रित करने और अपराधियों को सजा देने का काम करते हैं।
धारा 2 - भारत के भीतर किए गए अपराधों का दण्ड
धारा 2, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) इस सिद्धांत को निर्धारित करती है कि किसी भी अपराध के लिए दंडित किए जाने के लिए, अपराध को भारत के भीतर किया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति भारत के बाहर अपराध करता है, तो उसे उस अपराध के लिए भारत में दंडित नहीं किया जा सकता है।धारा 2 में निम्नलिखित प्रमुख तत्व हैं:* अपराध भारत के भीतर किया जाना चाहिए।
* अपराधी को भारत के भीतर दोषी ठहराया जाना चाहिए।
* अपराधी को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित किया जाना चाहिए।धारा 2 के कुछ उदाहरण यहां दिए गए हैं:* अगर कोई व्यक्ति भारत में हत्या करता है, तो उसे भारत में हत्या के लिए दंडित किया जा सकता है।
* अगर कोई व्यक्ति भारत में चोरी करता है, तो उसे भारत में चोरी के लिए दंडित किया जा सकता है।
* अगर कोई व्यक्ति भारत में बलात्कार करता है, तो उसे भारत में बलात्कार के लिए दंडित किया जा सकता है।धारा 2 के अपवाद भी हैं। कुछ अपराध ऐसे हैं जिन्हें भारत के बाहर भी किया जा सकता है, लेकिन फिर भी भारत में दंडनीय हैं। इन अपराधों में शामिल हैं:* भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ना।
* भारत की सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास।
* भारत के राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री की हत्या।
* भारत में राजनयिक मिशन या वाणिज्य दूतावास पर हमला।धारा 2 भारतीय दंड संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो सुनिश्चित करता है कि भारत में केवल भारत के भीतर किए गए अपराधों के लिए ही दंडित किया जा सकता है।
धारा 3 - भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अफराधों का दण्ड
*धारा 3, भारतीय दंड संहिता: भारत से परे किए गए अपराधों का दंड**सादे शब्दों में:*धारा 3 IPC के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति भारत से बाहर कोई अपराध करता है, लेकिन उस अपराध पर भारतीय कानून के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, तो उस व्यक्ति पर उसी तरह से मुकदमा चलाया जाएगा जैसे कि उसने वह अपराध भारत में ही किया हो।*उदाहरण:** अगर कोई भारतीय नागरिक दूसरे देश में किसी भारतीय नागरिक की हत्या करता है, तो उस पर भारत में हत्या के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है।
* अगर कोई विदेशी नागरिक भारत में किसी भारतीय नागरिक की चोरी करता है, तो उस पर भारत में चोरी के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है।
* अगर कोई भारतीय नागरिक दूसरे देश में किसी विदेशी नागरिक की हत्या करता है, और वह भारतीय नागरिक भारत वापस आ जाता है, तो उस पर भारत में हत्या के आरोप में मुकदमा चलाया जा सकता है।*संबंधित धाराएँ:** धारा 4 IPC: अपराध किस जगह किया गया, यह निर्धारित करने के लिए नियम।
* धारा 5 IPC: अपराध किस समय किया गया, यह निर्धारित करने के लिए नियम।
* धारा 6 IPC: अपराधी की मृत्यु हो जाने पर भी अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है।
* धारा 7 IPC: अपराध की साजिश रचने या भड़काने के लिए भी मुकदमा चलाया जा सकता है।*निष्कर्ष:*धारा 3 IPC यह सुनिश्चित करती है कि भारत से बाहर किए गए अपराधों के लिए भी अपराधियों को सजा दी जा सके। यह धारा भारत के नागरिकों और विदेशी नागरिकों दोनों पर समान रूप से लागू होती है।
धारा 4 - राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार
*धारा 4 आईपीसी - राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार*भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 4 भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करती है। इस धारा के अनुसार, यदि भारत का कोई नागरिक भारत के बाहर कोई अपराध करता है, या यदि भारत में पंजीकृत किसी जहाज या विमान पर कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो उस व्यक्ति पर आईपीसी के प्रावधान लागू होंगे और उसे भारत की अदालत में विचारण के लिए लाया जा सकता है।*उदाहरण:** यदि कोई भारतीय नागरिक विदेश में हत्या करता है, तो उसे भारत में हत्या के लिए विचारित और दोषी ठहराया जा सकता है।
* यदि कोई व्यक्ति भारत में पंजीकृत जहाज पर चोरी करता है, तो उसे भारत में चोरी के लिए विचारित और दोषी ठहराया जा सकता है।धारा 4 के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि "अपराध" शब्द के अंतर्गत भारत के बाहर किया गया ऐसा हर कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता तो आईपीसी के अधीन दंडनीय होता। इसका मतलब यह है कि धारा 4 केवल उन अपराधों पर लागू होती है जो आईपीसी के तहत दंडनीय हैं।*संबंधित धाराएँ:** आईपीसी की धारा 5: यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र नहीं होगा।
* आईपीसी की धारा 6: यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र होगा।
* आईपीसी की धारा 7: यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र नहीं होगा, भले ही धारा 6 के तहत भारतीय अदालतों को अधिकार क्षेत्र हो।धारा 4 भारतीय दंड संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारतीय नागरिकों और भारत में पंजीकृत जहाजों या विमानों पर अपराध करने वाले व्यक्तियों को दंडित किया जा सके।
धारा 5 - कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना
धारा 5, भारतीय दंड संहिता: भारत सरकार की सेवा के ऑफिसरों, सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सैनिकों को दंडित करने वाले विशेष कानूनधारा 5 कहती है कि इस अधिनियम (IPC) की कोई भी बात निम्नलिखित पर लागू नहीं होगी:- भारत सरकार की सेवा के अधिकारियों द्वारा विद्रोह और अभिजन को दंडित करने वाले किसी अधिनियम के प्रावधान
- किसी विशेष या स्थानीय कानून के प्रावधानइसका मतलब यह है कि अगर कोई भारत सरकार का अधिकारी है, सैनिक है, नौसेना का सदस्य है, या वायु सेना का सदस्य है, और वह विद्रोह या अभिजन में शामिल है, तो उसे इस अधिनियम के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, उसे उस कानून के तहत दंडित किया जाएगा जो विशेष रूप से भारत सरकार के अधिकारियों, सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सेना के सदस्यों को दंडित करने के लिए बनाया गया है।उदाहरण के लिए, अगर कोई सैनिक विद्रोह में शामिल है, तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, उसे सैन्य कानून के तहत दंडित किया जाएगा।इसी प्रकार, अगर कोई नौसेना का सदस्य अभिजन में शामिल है, तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, उसे नौसेना कानून के तहत दंडित किया जाएगा।धारा 5 यह सुनिश्चित करती है कि भारत सरकार के अधिकारियों, सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सेना के सदस्यों को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा, जब तक कि वे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध नहीं करते हैं।
धारा 6 - संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना
*धारा 6: परिभाषाओं के अपवाद** यह धारा कहती है कि इस संहिता में हर अपराध की परिभाषा, हर दंड उपबंध और हर ऐसी परिभाषा या दंड उपबंध का हर दृष्टांत, "साधारण अपवाद" शीर्षक वाले अध्याय में शामिल अपवादों के अधीन समझा जाएगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दंड उपबंध या दृष्टांत में दोहराया न गया हो।* *उदाहरण:*
* इस संहिता की वे धाराएं, जिनमें अपराधों की परिभाषाएं शामिल हैं, यह स्पष्ट नहीं करती हैं कि सात वर्ष से कम आयु का बच्चा ऐसे अपराध नहीं कर सकता, लेकिन परिभाषाओं को उस साधारण अपवाद के अधीन समझा जाता है जिसमें यह प्रावधान है कि कोई भी काम, जो सात वर्ष से कम आयु के बच्चे द्वारा किया जाता है, अपराध नहीं है।
* क, एक पुलिस अधिकारी, बिना वारंट के, य को पकड़ लेता है, जिसने हत्या की है। यहां क सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि वह य को पकड़ने के लिए कानून द्वारा बाध्य था, और इसलिए यह मामला उस सामान्य अपवाद के अंतर्गत आता है, जिसमें यह प्रावधान है कि "कोई भी काम अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो उसे करने के लिए कानून द्वारा बाध्य है।"* यह धारा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि अपराध की परिभाषाओं और दंड उपबंधों की व्याख्या करते समय अदालतें "साधारण अपवाद" को ध्यान में रखें। यह यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि अपराधों की परिभाषाओं और दंड उपबंधों की व्याख्या उचित और न्यायसंगत तरीके से की जाए।
धारा 7 - एक बार स्पष्टीकॄत पद का भाव
*धारा 7 का सरल अर्थ:*धारा 7 के अनुसार, यदि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में किसी शब्द को परिभाषित किया गया है, तो उस शब्द को पूरे आईपीसी में उसी अर्थ में इस्तेमाल किया जाएगा। यह सुनिश्चित करता है कि आईपीसी में इस्तेमाल किए गए शब्दों का मतलब स्पष्ट और सुसंगत हो।*उदाहरण:** धारा 299 में "अपवित्रता" शब्द को परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, अपवित्रता का मतलब है "कोई भी शब्द, इशारा या कृत्य जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है।" इसलिए, आईपीसी में हर जगह "अपवित्रता" शब्द का इस्तेमाल इसी अर्थ में किया जाएगा।
* धारा 300 में "हत्या" शब्द को परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, हत्या का मतलब है "किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनना।" इसलिए, आईपीसी में हर जगह "हत्या" शब्द का इस्तेमाल इसी अर्थ में किया जाएगा।*संबंधित धाराएँ:** धारा 3: यह धारा "कारण" शब्द को परिभाषित करती है।
* धारा 5: यह धारा "सद्भावना" शब्द को परिभाषित करती है।
* धारा 6: यह धारा "बाध्यता" शब्द को परिभाषित करती है।*भारतीय दंड संहिता और भारतीय आपराधिक कानून में धारा 7 का महत्व:*धारा 7 आईपीसी में इस्तेमाल किए गए शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करती है। यह सुनिश्चित करता है कि आईपीसी को लागू करते समय कोई भ्रम या अनिश्चितता न हो। यह न्यायाधीशों और वकीलों को आईपीसी को सही ढंग से समझने और लागू करने में मदद करता है।धारा 7 आईपीसी की एक महत्वपूर्ण धारा है जो आईपीसी में इस्तेमाल किए गए शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करती है। यह सुनिश्चित करता है कि आईपीसी को लागू करते समय कोई भ्रम या अनिश्चितता न हो। यह न्यायाधीशों और वकीलों को आईपीसी को सही ढंग से समझने और लागू करने में मदद करता है।
धारा 8 - लिंग
धारा 8, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), लिंग-तटस्थ भाषा के उपयोग पर लागू होती है। यह निर्दिष्ट करता है कि जहां किसी व्यक्ति के लिंग को शामिल करने वाला शब्द या वाक्यांश का उपयोग किया जाता है, वहाँ यह दोनों लिंगों के व्यक्तियों पर लागू होगा।*उदाहरण के लिए:*- धारा 300, आईपीसी, "हत्या" को परिभाषित करता है। यदि यह धारा "पुरुष" शब्द का उपयोग करती, तो यह केवल पुरुषों के खिलाफ हत्या के लिए लागू होती। हालाँकि, धारा 8 के कारण, यह धारा महिलाओं के खिलाफ हत्या के लिए भी लागू होती है।
- धारा 376, आईपीसी, "बलात्कार" को परिभाषित करता है। यदि यह धारा "पुरुष" शब्द का उपयोग करती, तो यह केवल पुरुषों द्वारा बलात्कार के लिए लागू होती। हालाँकि, धारा 8 के कारण, यह धारा महिलाओं द्वारा बलात्कार के लिए भी लागू होती है।धारा 8 का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए भी किया जाता है कि आईपीसी में निहित विभिन्न अपराधों के दंड दोनों लिंगों के व्यक्तियों के लिए समान हैं। उदाहरण के लिए, धारा 302, आईपीसी, "हत्या" के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान करती है। यह दंड पुरुषों और महिलाओं दोनों पर समान रूप से लागू होता है।धारा 8 यह सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि आईपीसी लिंग-निरपेक्ष हो और यह पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार करता हो। यह लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
धारा 9 - वचन
धारा 9: एकवचन और बहुवचनभारतीय दंड संहिता की धारा 9 एक व्याख्यात्मक प्रावधान है जो इस बात का मार्गदर्शन करती है कि जब तक संदर्भ से अन्यथा स्पष्ट न हो, एकवचन वाचक शब्दों में बहुवचन भी शामिल है और बहुवचन वाचक शब्दों में एकवचन भी शामिल है। दूसरे शब्दों में, जब कोई कानून एकवचन या बहुवचन शब्द का उपयोग करता है, तो उसका आशय है कि उस शब्द में दोनों संख्याएँ शामिल हैं, जब तक कि कानून के विशिष्ट शब्दांकन या संदर्भ से यह स्पष्ट न हो कि केवल एक संख्या का उल्लेख किया गया है।उदाहरण के लिए, यदि कोई कानून कहता है कि "कोई व्यक्ति जो चोरी करता है उसे कारावास से दंडित किया जाएगा," तो इसका मतलब है कि एक व्यक्ति जो एक वस्तु चुराता है या एक व्यक्ति जो कई वस्तुओं की चोरी करता है, दोनों को कारावास से दंडित किया जाएगा। इसी तरह, यदि कोई कानून कहता है कि "कोई व्यक्ति जो हत्या करता है उसे मौत की सजा दी जाएगी," तो इसका मतलब है कि एक व्यक्ति जो एक व्यक्ति की हत्या करता है या एक व्यक्ति जो कई व्यक्तियों की हत्या करता है, दोनों को मौत की सजा दी जाएगी।धारा 9 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कानून स्पष्ट और संक्षिप्त हों, और यह कि कानूनी प्रक्रिया में अनावश्यक देरी या भ्रम से बचा जाए। धारा 9 यह सुनिश्चित करने में भी मदद करती है कि कानून भेदभावपूर्ण न हो, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि कानून उन व्यक्तियों पर भी लागू होते हैं जो एकवचन या बहुवचन शब्दों का उपयोग करते हैं।धारा 9 भारतीय दंड संहिता की कई अन्य धाराओं से संबंधित है, जिसमें धारा 10 (शब्दों के अर्थ) और धारा 11 (अनुपातिक व्याख्या) शामिल हैं। धारा 10 शब्दों और वाक्यांशों के अर्थों को परिभाषित करती है, जबकि धारा 11 यह निर्दिष्ट करती है कि कानूनों की व्याख्या एक उचित और आनुपातिक तरीके से की जानी चाहिए। इन धाराओं को एक साथ पढ़ने से, यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय दंड संहिता का उद्देश्य स्पष्ट और निष्पक्ष कानून बनाना है जो सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं।
धारा 10 - “पुरुष”। “स्त्री”
*धारा 10: पुरुष और स्त्री की परिभाषा** *पुरुष:* यह शब्द किसी भी उम्र के मानव नर को संदर्भित करता है। यह शब्द व्यापक है और इसमें लड़के और वयस्क पुरुष दोनों शामिल हैं।
* *स्त्री:* यह शब्द किसी भी उम्र की मानव नारी को संदर्भित करता है। यह शब्द भी व्यापक है और इसमें लड़कियाँ और वयस्क महिलाएँ दोनों शामिल हैं।धारा 10 भारतीय दंड संहिता की व्याख्यात्मक धाराओं में से एक है। यह धारा भारतीय दंड संहिता में प्रयुक्त शब्दों "पुरुष" और "स्त्री" को परिभाषित करती है। ये परिभाषाएँ भारतीय दंड संहिता में अपराधों की परिभाषा और व्याख्या करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।उदाहरण के लिए, धारा 302 भारतीय दंड संहिता में हत्या के अपराध को परिभाषित करती है। यह धारा कहती है कि "जो कोई भी किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध, किसी ऐसे कृत्य से मृत्यु का कारण बनता है जो मृत्यु का कारण बनने की संभावना है, वह हत्या का दोषी होगा"। इस धारा में "व्यक्ति" शब्द का प्रयोग किया गया है। यह शब्द धारा 10 के अनुसार "किसी भी उम्र का मानव नर या मानव नारी" को संदर्भित करता है। इसलिए, धारा 302 भारतीय दंड संहिता के तहत हत्या का अपराध किसी भी व्यक्ति की हत्या के लिए किया जा सकता है, चाहे वह व्यक्ति पुरुष हो या महिला, बालक हो या वयस्क।धारा 10 भारतीय दंड संहिता की एक महत्वपूर्ण धारा है। यह धारा भारतीय दंड संहिता में प्रयुक्त शब्दों "पुरुष" और "स्त्री" को परिभाषित करती है। ये परिभाषाएँ भारतीय दंड संहिता में अपराधों की परिभाषा और व्याख्या करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
धारा 11 - व्यक्ति
धारा 11 भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की व्याख्या:1. "व्यक्ति" की परिभाषा:
- धारा 11 के अनुसार, "व्यक्ति" शब्द में कोई भी कंपनी, एसोसिएशन या व्यक्ति निकाय शामिल है, चाहे वह निगमित हो या नहीं।
- इसका मतलब यह है कि कानून की नजर में, न सिर्फ इंसान, बल्कि कंपनियां, संगठन और अन्य संस्थाएं भी "व्यक्ति" के दायरे में आती हैं।2. उदाहरण:
- एक कंपनी जो पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करती है, उसे आईपीसी के प्रावधानों के तहत दंडित किया जा सकता है।
- एक एसोसिएशन जो लोगों के बीच झगड़े या हिंसा को बढ़ावा देती है, उसे आईपीसी के तहत अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- एक व्यक्ति निकाय जो धोखाधड़ी या जालसाजी में शामिल है, उसे आईपीसी के तहत दंडित किया जा सकता है।3. प्रासंगिक तथ्य:
- धारा 11 आईपीसी में एक महत्वपूर्ण परिभाषा खंड है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि "व्यक्ति" शब्द का उपयोग पूरे आईपीसी में किस अर्थ में किया जाएगा।
- धारा 11 में "व्यक्ति" की परिभाषा "वैधानिक व्यक्ति" की अवधारणा से संबंधित है। वैधानिक व्यक्ति वे संस्थाएं या संगठन हैं जिन्हें कानून ने एक कानूनी इकाई के रूप में मान्यता दी है।
- "व्यक्ति" की परिभाषा आईपीसी में अपराधों के लिए जिम्मेदारी को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।4. अन्य संबंधित धाराएँ:
- आईपीसी की धारा 12 "अपराध" की परिभाषा प्रदान करती है और धारा 13 "अवरोध" की परिभाषा प्रदान करती है। ये धाराएँ आईपीसी में अपराधों की अवधारणा को समझने के लिए आवश्यक हैं।
- आईपीसी की धारा 34 "सामान्य इरादा" की अवधारणा को परिभाषित करती है, जबकि धारा 35 "अप्रत्यक्ष उत्तरदायित्व" की अवधारणा को परिभाषित करती है। ये धाराएँ आईपीसी में अपराधों के लिए जिम्मेदारी को समझने के लिए आवश्यक हैं।निष्कर्ष:
धारा 11 आईपीसी में एक महत्वपूर्ण परिभाषा खंड है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि "व्यक्ति" शब्द का उपयोग पूरे आईपीसी में किस अर्थ में किया जाएगा। "व्यक्ति" की परिभाषा आईपीसी में अपराधों के लिए जिम्मेदारी को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
धारा 12 - लोक
*धारा 12: लोक**सरल शब्दों में व्याख्या:** "लोक" शब्द का अर्थ है एक बड़ा समूह या लोगों का समुदाय।
* यह एक अपराध को परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह तय करता है कि क्या कोई कार्रवाई एक अपराध है या नहीं।
* यह निर्धारित करने के लिए कि कोई कार्रवाई "सार्वजनिक" है या नहीं, अदालतें निम्नलिखित कारकों पर विचार करेंगी:* क्या कार्रवाई एक सार्वजनिक स्थान पर हुई थी।
* क्या कार्रवाई कई लोगों द्वारा देखी गई थी।
* क्या कार्रवाई सामाजिक शांति या व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती है।*उदाहरण:** यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक पार्क में नग्न दौड़ता है, तो यह एक सार्वजनिक अपराध माना जाएगा क्योंकि यह एक सार्वजनिक स्थान पर हुआ था और इसे कई लोगों ने देखा था।
* यदि कोई व्यक्ति अपने घर में नग्न दौड़ता है, तो इसे सार्वजनिक अपराध नहीं माना जाएगा क्योंकि यह एक सार्वजनिक स्थान पर नहीं हुआ था और इसे किसी ने नहीं देखा था।*संबंधित धाराएँ:** धारा 11: "अपराध" की परिभाषा देता है।
* धारा 23: "सहमति" की परिभाषा देता है।
* धारा 29: "आवश्यकता" की परिभाषा देता है।
* धारा 30: "उकसावे" की परिभाषा देता है।*निष्कर्ष:*धारा 12 यह परिभाषित करती है कि "लोक" शब्द का अर्थ क्या है और यह किसी अपराध को परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण है। अदालतें यह निर्धारित करने के लिए कई कारकों पर विचार करेंगी कि कोई कार्रवाई "सार्वजनिक" है या नहीं, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या कार्रवाई सार्वजनिक स्थान पर हुई थी, क्या इसे कई लोगों ने देखा था, और क्या यह सामाजिक शांति या व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती है।
धारा 13 - “क्वीन” की परिभाषा
*धारा 13 का सरलीकृत स्पष्टीकरण*धारा 13 को भारतीय दंड संहिता, 1860 के विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा निरस्त कर दिया गया है। इस धारा में "क्वीन" शब्द को परिभाषित किया गया था, जो कि ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की संप्रभु थी। निरस्तीकरण के बाद, धारा 13 अब भारतीय दंड संहिता का हिस्सा नहीं है। इसलिए, इस धारा के बारे में विस्तार से चर्चा करना और उदाहरण देना प्रासंगिक नहीं है।
धारा 14 - सरकार का सेवक
*धारा 14: सरकार का सेवक (Government
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