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#निष्ठा ध्वनि
nisthadhawani · 1 year
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Origin Of Shivling: कैसे हुई शिवलिंग की उतपत्ति ,जाने महामंडलेश्वर श्री स्वामी दयानन्द वेदपाठी जी महाराज के शब्दों में
Origin Of Shivling : जब यह स्थूल दृश्य जगत् उत्पन्न नहीं हुआ था, इसकी उत्पत्ति से पहले और प्रलय के अन्त में जब सत्-असत् जैसी कोई वस्तु नहीं थी यानी यह सत् (व्यक्त) है और यह असत् (अव्यक्त) हे ऐसा कोई व्यवहार नहीं हो सकता था, कोई कहने वाला या सुननेवाला अथवा कहने आदि का साधन नहीं था, उस समय में माया विशिष्ट आत्मा शिव से उत्पन्न अनन्त आकाश में मात्र घनीभूत अन्धकार ही था। उस समय में न शब्द था, न…
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trendingnews-100 · 6 months
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"गायत्री मंत्र: सही नियमों में शक्ति, 5 गलतियों से दूर करें राह।"
"गायत्री मंत्र: सही नियमों में शक्ति, 5 गलतियों से दूर करें राह।"
गायत्री मंत्र एक प्राचीन वेदिक मंत्र है जो सूर्य की पूजा, ज्ञान, और ऊर्जा की प्राप्ति के लिए जाना जाता है। इस मंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है जीवन को शक्तिशाली और संतुलित बनाना। हालांकि, इस मंत्र को जपते समय कुछ गलतियां की जा सकती हैं जो इसकी प्रभावशाली शक्ति को कम कर सकती हैं।
मंत्र की उच्चारणा में ध्वनि की गलतियां: गायत्री मंत्र को सही ढंग से उच्चारित करने के लिए ध्वनि को सही रीति से उत्तराधिकारी करना चाहिए।
मंत्र की अर्थव्याप्ति की अज्ञानता: गायत्री मंत्र के अर्थ को समझने के बिना उसका जप अधूरा हो जाता है। इसलिए, मंत्र का अर्थ समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गलत मंत्र जप: गायत्री मंत्र के जगह किसी अन्य मंत्र का जप करना उचित नहीं है। इससे मंत्र की शक्ति कम हो सकती है।
अनियमित जप: गायत्री मंत्र को नियमित और निरंतर जपना चाहिए। अनियमित जप से मंत्र की प्रभावशाली शक्ति कम हो सकती है।
अनधिकृत मंत्र जप: बिना गुरु की मार्गदर्शन के अनधिकृत मंत्र जपना भी गलत है। यह मंत्र के प्रभाव को नकारात्मक प्रभावित कर सकता है।
इन पांच गलतियों से बचकर और सही तरीके से गायत्री मंत्र का जप करके हम अपने जीवन को शक्तिशाली बना सकते हैं। मंत्र का नियमित और सही ढंग से जपने से हमें आत्मिक शांति, ज्ञान, और ऊर्जा की प्राप्ति होती है। इसलिए, गायत्री मंत्र के जप में ध्यान और निष्ठा से जाना चाहिए।
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upidtransformed · 7 months
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उत्तर प्रदेश में अपराध व अपराधियों के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस
उत्तर प्रदेश, जिसे आज भारत के विकास का केंद्र माना जा रहा है, कभी अपराधियों के वजह से अक्सर सम��चारों का विषय बनता रहता था। अपराध व अपराधियों खिलाफ कठोर कदम उठाने के लिए यूपी पुलिस ने ‘ज़ीरो टॉलरेन्स पॉलिसी यूपी’ को अपनाया है। यह पॉलिसी अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए, पब्लिक सेफटी और क्राइम प्रिवेंशन में महत्वपूर्ण योगदान दे रही रही है। अपरधियों को अब ‘यूपी में लॉ एनफोर्समेंट’ का डर सताने लगा है और अपराधों में लगातार गिरावट और पिछले 7 सालों में राज्य में एक भी साम्प्रदाइक दंगा न होना इस बात का पुख्ता प्रमाण है। अपराधी अब खुद सरेंडर करने लगे हैं।  
यूपी में लॉ एनफोर्समेंट को मजबूती देने और ‘ज़ीरो टॉलरेन्स पॉलिसी यूपी’ को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से पुलिस द्वारा 63055 अपराधियों के विरुद्ध गैंगस्टर अधिनियम और 836 अपराधियों के विरुद्ध एन.एस.ए. की कार्रवाई की गई है। इसके माध्यम से रु. 90 अरब 22 करोड़ 33 लाख की सम्पत्तियों का जब्तीकरण किया जा चुका है। माफिया और अपराधियों द्वारा अर्जित बेनामी और ग़ैरक़ानूनी संपत्तियों का भी जब्तीकरण किया जा रहा है, जिसमें 2819 करोड़ से अधिक की संपत्तियाँ शामिल हैं।
महिला सुरक्षा राज्य के विकास की एक अहम कड़ी है। महिला सुरक्षा के बिना कोई राज्य प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के खिलाफ भी जबरदस्त कार्रवाई देखने को मिली है। 487 अभियुक्तों को आजीवन कारावास, 1016 अभियुक्तों को 10 वर्ष से अधिक कारावास, और 3076 अभियुक्तों को 10 वर्ष से कम का कारावास दिया गया है।
यहाँ तक कि माफिया और उनके गैंग के सदस्यों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई का सिलसिला जारी है। पूरे प्रदेश में 77 माफियाओं और उनके सहयोगियों के खिलाफ कुल 340 अभियोग पंजीकृत किए जा चुके हैं, जिसमें से 90 की गिरफ्तारी, 61 के खिलाफ गुण्डा एक्ट, 35 के खिलाफ शस्त्र लाइसेंस, और 8 के खिलाफ एन.एस.ए. की कार्रवाई की गई है।
इससे न केवल अपराधियों को सज़ा मिल रही है, बल्कि क्राइम प्रिवेंशन के लिए पुलिस संरचना को भी मजबूती प्रदान हो रही है तथा अपराधियों के बीच कानून का डर व्याप्त हो रहा है। नए थानों की स्थापना, हर जिले में महिला थानों की स्थापना, महिला पुलिस की नियुक्ति, एण्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की शुरुआत, और साइबर क्राइम थानों का गठन यह सभी प्रमुख उपाय हैं जिनसे प्रदेश की सुरक्षा में सुधार किया जा रहा है। इस समय यूपी पुलिस द्वारा पॉक्सो एवं महिला संबंधी अपराधों के तहत 7276 अपराधियों को सजा दी दिलाई गई है। साथ ही साथ धार्मिक स्थलों से ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए भी कड़ी कार्रवाई देखने को मिली है।
इस प्रकार, उत्तर प्रदेश में अपराध और अपराधियों के खिलाफ ‘ज़ीरो टॉलरेन्स पॉलिसी यूपी’ लागू करने से न केवल अपराधों में कमी देखने को मिल रही है, बल्कि  पब्लिक सेफटी  की भावना भी मजबूत हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार के इन सख्त कदमों के परिणामस्वरुप न सिर्फ अपराध में कमी आएगी, बल्कि समाज भी एक सकारात्मक दिशा में अग्रसर होगा। यह यूपी पुलिस की एक बड़ी उपलब्धि है जो प्रदर्शित कर रही है कि एक सुरक्षित और सहयोगी समाज की दिशा में हमारे कदम आगे बढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश प्रशासन की कठोर कार्रवाइयों की इस श्रृंखला को देखते हुए जनता में भी ये भावना जागृत हो रही है कि शासन प्रशासन की निष्ठा और प्रतिबद्धता से अपराध और अपराधियों के खिलाफ ये लड़ाई उत्तर प्रदेश के उज्जवल भविष्य के निर्माण में अहम योगदान देगी।
Source: https://uptransformed2.blogspot.com/2024/02/blog-post.html
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krishnaansh · 3 years
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Mahabharat only for gud.
जनता तो ईश्वर परमात्मा भगवान देवता इंसान देवी औरत में ही फर्क नहीं कर पाई तो राम तो सिर्फ अवतार थे जबकि कृष्ण पूर्ण अवतार थे। राम ने निष्ठा चक्र दिया था जो राम राज्य का आधार है। कृष्ण ने सुदर्शन चलाया था वासुदेव गणतंत्र समाज की स्थापना हेतू।
अब राम राज्य और गणतंत्र समाज का मतलब तो किसी को पता ही नहीं
जबकि राम राज्य राजकीय व्यवस्था है व गणतंत्र inter state inter Nation management system है।
Ashonidhi guide.
*🌳 शस्त्र की महत्ता 🌳*
दधीचि ऋषि ने देश के हित में अपनी हड्डियों का दान कर दिया था !
🏹 उनकी हड्डियों से तीन धनुष बने- १. गांडीव, २. पिनाक और ३. सारंग !
🏹 जिसमे से गांडीव अर्जुन को मिला था जिसके बल पर अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीता !
🏹 सारंग से भगवान राम ने युद्ध किया था और रावण के अत्याचारी राज्य को ध्वस्त किया था !
🏹 और, पिनाक भगवान शिव जी के पास था जिसे तपस्या के माध्यम से खुश रावण ने शिव जी से मांग लिया था ! परन्तु , वह उसका भार लम्बे समय तक नहीं उठा पाने के कारण बीच रास्ते में जनकपुरी में छोड़ आया था !
इसी पिनाक की नित्य सेवा सीताजी किया करती थी ! पिनाक का भंजन करके ही भगवान राम ने सीता जी का वरण किया था !
ब्रह्मर्षि दधिची की हड्डियों से ही "एकघ्नी नामक वज्र" भी बना था , जो भगवान इन्द्र को प्राप्त हुआ था !
इस एकघ्नी वज्र को इन्द्र ने कर्ण की तपस्या से खुश होकर उन्होंने कर्ण को दे दिया था! इसी एकघ्नी से महाभारत के युद्ध में भीम का महाप्रतापी पुत्र घतोत्कक्ष कर्ण के हाथों मारा गया था ! और भी कई अश्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ था उनकी हड्डियों से !
लेकिन दधिची के इस अस्थि-दान का उद्देश्य क्या था...???
क्या उनका सन्देश यही था कि उनकी आने वाली पीढ़ी नपुंसकों और कायरों की भांति मुंह छुपा कर घर में बैठ जाए और शत्रु की खुशामद करे....??? नहीं..
कोई ऐसा काल नहीं है जब मनुष्य शस्त्रों से दूर रहा हो..
हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ से ले कर ऋषि-मुनियों तक का एक दम स्पष्ट सन्देश और आह्वान रहा है कि....
''हे सनातनी वीरो.शस्त्र उठाओ और अन्याय तथा अत्याचार के विरुद्ध युद्ध करो !''
बस आज भी सबके लिए यही एक मात्र सन्देश है !
राष्ट्र और धर्म रक्षा के लिए अंततः बस एक ही मार्ग है !
सशक्त बनो..!
*महाभारत का एक सार्थक प्रसंग जो अंतर्मन को छूता है .... !!*🙏🙏
महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फटे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे और वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी .... !
गिद्ध , कुत्ते , सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में *द्वापर का सबसे महान योद्धा* *"देवव्रत" (भीष्म पितामह)* शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था -- अकेला .... !
तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची , "प्रणाम पितामह" .... !!
भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी , बोले , " आओ देवकीनंदन .... ! स्वागत है तुम्हारा .... !!
मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था" .... !!
कृष्ण बोले , "क्या कहूँ पितामह ! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप" .... !
भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ?
उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .... !
कृष्ण चुप रहे .... !
भीष्म ने पुनः कहा , "कुछ पूछूँ केशव .... ?
बड़े अच्छे समय से आये हो .... !
सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !!
कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....!
एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न .... ?
कृष्ण ने बीच में ही टोका , "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ... मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...."
भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... ! बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! "
कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले .... " कहिये पितामह .... !"
भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?"
"किसकी ओर से पितामह .... ? पांडवों की ओर से .... ?"
" कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ? आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ? यह सब उचित था क्या .... ?"
इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... !
इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !!
उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन .... !!
मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !!
"अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ?
अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... !
मैं तो उत्तर तुम्हीं से पूछूंगा कृष्ण .... !"
"तो सुनिए पितामह .... !
कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... !
वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !"
"यह तुम कह रहे हो केशव .... ?
मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ....? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ..... ? "
*"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है .... !*
हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है .... !!
राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था .... !
हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह .... !!"
" नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो .... !"
" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह .... !
राम के युग में खलनायक भी ' रावण ' जैसा शिवभक्त होता था .... !!
तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण जैसे सन्त हुआ करते थे ..... ! तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे .... ! उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था .... !!
इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया .... ! किंतु मेरे युग के भाग में में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं .... !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह .... ! पाप का अंत आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो .... !!"
"तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव .... ?
क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा .... ?
और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ..... ??"
*" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह .... !*
*कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा .... !*
*वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा .... नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा .... !*
*जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह* .... !
तब महत्वपूर्ण होती है विजय , केवल विजय .... !
*भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह* ..... !!"
"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव .... ?
और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ..... ?"
*"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह .... !*
*ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ..... !*केवल मार्ग दर्शन करता है*
*सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है .... !*
आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न .... !
तो बताइए न पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ..... ?
सब पांडवों को ही करना पड़ा न .... ?
यही प्रकृति का संविधान है .... !
युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से .... ! यही परम सत्य है ..... !!"
भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे .... !
उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी .... !
उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है .... कल सम्भवतः चले जाना हो ... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण .... !"
*कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था* .... !
*जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ....।।* जय श्री श्याम जी🙏🙏
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वास्तविकता पर अधिक ध्यान
हर व्यक्ति को परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने की संभावना है, इसलिए सभी को समझना चाहिए कि परमेश्वर की कौन सी सेवा सबसे ज्यादा परमेश्वर के प्रयोजनों के अनुरूप है। अधिकांश लोगों को यह नहीं पता है कि परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है और उन्हें पता नहीं है कि क्यों परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि अधिकांश लोगों को परमेश्वर के कार्य की या परमेश्वर की प्रबंधन योजना के उद्देश्य की समझ नहीं है। वर्तमान तक, अधिकांश लोग अभी भी यह सोचते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करना स्वर्ग जाने और उनकी अपनी आत्माओं को बचाने के बारे में है। उनको अभी भी परमेश्वर में विश्वास करने के विशेष महत्व के बारे में कुछ पता नहींहै, और इसके अलावा, उन्हें परमेश्वर की प्रबंधन योजना में उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्य के बारे में कोई भी समझ नहीं है। अपने स्वयं के सभी प्रकार के कारणों के लिए, लोग परमेश्वर के कार्य में कोई रुचि नहीं लेते हैं और परमेश्वर के प्रयोजनों या परमेश्वर की प्रबंधन योजना के बारे में नहीं सोचते हैं। इस धारा के व्यक्तियों के रूप में, प्रत्येक व्यक्ति को यह जानना चाहिए कि परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना का उद्देश्य क्या है, वे तथ्य जो परमेश्वर ने पहले ही पूरे कर लिए हैं, परमेश्वर ने लोगों के इस समूह को क्यों चुना है, इसके लक्ष्य और महत्व क्या हैं, और परमेश्वर इस समूह में क्या प्राप्त करना चाहता है। महान लाल अजगर की भूमि में, परमेश्वर लोगों के एक ऐसे अप्रत्यक्ष समूह को बनाने में सक्षम हुआ है, और वह हर प्रकार से प्रयास करते हुए और पूर्णता देते हुए, अनगिनत वचन बोलते हुए, बहुत सारा कार्य और इतनी सेवारत वस्तुओं को भेजते हुए, अब तक कार्य करना जारी रखे हुए है। परमेश्वर द्वारा इतने विशाल कार्य को पूरा करने से, यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर के कार्य का महत्व कितना महान है। तुम लोग अभी तक इसे पूरी तरह से नहीं देख सकते हो। इसलिए, परमेश्वर ने जो कार्य तुम लोगों पर किया है उसे साधारण बात ना समझो; यह एक छोटी बात नहीं है। परमेश्वर ने आज तुम लोगों को जो कुछ दिखाया है, वही बस तुम लोगों के विचार करने और समझने के लिए पर्याप्त है। यदि तुम लोग अच्छी तरह से समझते हो तभी तुम लोग अधिक गहराई से अनुभव कर सकते हो और अपने जीवन में प्रगति कर सकते हो। लोग जो समझते हैं और अभी कर रहे हैं वास्तव में बहुत कम है और पूरी तरह से परमेश्वर के प्रयोजनों को संतुष्ट नहीं कर सकता है। यह मनुष्य की अपर्याप्तता है और अपने कर्तव्य को पूरा करने में विफलता है। यही कारण है कि जो परिणाम प्राप्त होना चाहिए था नहीं किया गया है। पवित्र आत्मा के पास इतने लोगों पर कार्य करने का कोई मार्ग नहीं है क्योंकि उनके पास परमेश्वर के कार्य की इतनी छिछली समझ है और वे परमेश्वर के घर के कार्य को कुछ मूल्यवान के रूप में नहीं मानते हैं। वे हमेशा बिना परिश्रम बस कार्य चलाने के लिए कार्य करते हैं, या नकल करते हैं उसकी जो अधिकांश लोग कर रहे हैं, या ��िर्फ लोगों को दिखाते हैं कि वे "कार्य कर रहे हैं।" आज, इस धारा में प्रत्येक व्यक्ति यह याद करेगा कि तुम लोगों ने जो कुछ किया है क्या वह उतना ही है जितना तुम लोग कर सकते थे, और क्या तुम लोगों ने अपना पूरा प्रयास किया है। लोगों ने अपने कर्तव्यों को बिल्कुल भी पूरा नहीं किया है। ऐसा नहीं है कि पवित्र आत्मा परमेश्वर का कार्य नहीं करता है, परन्तु यह कि लोग अपना कार्य नहीं करते हैं, जिससे पवित्र आत्मा के लिये अपना कार्य करना असंभव हो जाता है। परमेश्वर अपने वचनों को व्यक्त करना समाप्त कर चुका है, परन्तु वे साथ नहीं चले हैं और बहुत पीछे छूट गए हैं, हर कदम के साथ पास रहने में असमर्थ हैं, मेमने के नक्शे कदमों का अनुसरण करने में असमर्थ हैं। जिसका उन्हें पालन करना चाहिए उन्होंने उसका पालन नहीं किया है; जिसका उन्हें अभ्यास करना चाहिए था उन्होंने अभ्यास में नहीं डाला है; जो उन्हें प्रार्थना करनी चाहिए थी उन्होंने प्रार्थना नहीं की है; जिसको उन्हें छोड़ देना चाहिए था उन्होंने नहीं छोड़ा है। उन्होंने इन चीजों में से कुछ भी नहीं किया है। इसलिए, भोज में जाने की यह बात खाली है और इसका कोई वास्तविक अर्थ नहीं है। यह लोगों की अपनी कल्पना में है। यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में लोगों ने अपना कर्तव्य पूरी तरह से पालन नहीं किया है। सब कुछ परमेश्वर के स्वयं कहने और करने पर निर्भर है, जबकि लोगों का कार्य वास्तव में बहुत छोटा रहा है। वे सभी बेकार कचरा हैं जो परमेश्वर के साथ समन्वय करना नहीं जानते हैं। परमेश्वर ने सैकड़ों हज़ारों वचन कहे हैं, परन्तु लोगों ने उसको अभ्यास में नहीं डाला है, शरीर को त्यागने, विचारों को छोड़ने, सब बातों में आज्ञा का पालन करने, विवेक का विकास करने और साथ ही अंतर्दृष्टि प्राप्त करने से ले कर, अपने हृदय में लोगों की हैसियत को छोड़ने, अपने हृदय पर अधिकार करने वाली उन प्रतिमाओं को नष्ट करने, उन व्यक्तिगत इरादों के खिलाफ विद्रोह करने जो गलत हैं, अपनी भावनाओं के आधार पर कर्म नहीं करने, बिना पक्षपात के कार्य करने, परमेश्वर के हितों और दूसरों पर उनके प्रभाव के बारे में अधिक सोचने जब वे बोलें, परमेश्वर के कार्य को लाभ पहुँचाने वाली चीज़ें अधिक करने, अपने सभी कार्यों में परमेश्वर के घर को लाभान्वित करना ध्यान में रखने, अपनी भावनाओं को अपने व्यवहार को निर्धारित नहीं करने देने, अपने स्वयं के शरीर को संतुष्ट करने वाली वस्तुओं को छोड़ने, स्वार्थी पुरानी अवधारणाओं को दूर करने इत्यादि तक। लोग वास्तव में उन वचनों में से कुछ चीजों को समझते हैं जिनकी अपेक्षा परमेश्वर को उनसे है। परन्तु वे बिलकुल भी उन्हें अभ्यास में नहीं लाना चाहते हैं। और कैसे परमेश्वर उन पर कार्य और उन्हें स्थानांतरित कर सकता है? परमेश्वर की दृष्टि में विद्रोही परमेश्वर के वच���ों को लेकर उसकी प्रशंसा करने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं ? वे परमेश्वर के भोजन को खाने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं? मनुष्य की अंतरात्मा कहाँ है? उन्होंने अपने न्यूनतम कर्तव्यों को भी पूरा नहीं किया है जो उन्हें करना चाहिये था, इसलिए जो कुछ भी कर सकते हैं उसे करने की बात करना व्यर्थ है। क्या वे सपने देखने वाले नहीं हैं? अभ्यास के बिना वास्तविकता की कोई बात नहीं हो सकती है। यह सीधा-सा तथ्य है!
तुम लोगों को अब और अधिक यथार्थवादी पाठ का अध्ययन करना चाहिए। उस उच्च ध्वनि वाली, खाली बात की कोई आवश्यकता नहीं है जिसकी लोग प्रशंसा करते हैं। जब ज्ञान के बारे में बात करने की बात आती है, तो प्रत्येक व्यक्ति अगले से बढ़कर है, लेकिन अभी भी उनके पास अभ्यास करने का रास्ता नहीं है। कितने लोगों ने किसी भी चीज का अभ्यास किया है? कितने लोगों ने वास्तविक पाठ सीखे हैं? वास्तविकता के बारे में कौन सहभागिता कर सकता है? परमेश्वर के वचनों के ज्ञान की बात करने में सक्षम होना तेरा वास्तविक कद के बराबर होना नहीं है। यह केवल यह दिखाता है कि तू जन्म से चतुर और प्रतिभाशाली था। यह अभी भी व्यर्थ है अगर तू मार्ग नहीं दिखा सकता, और तू बस बेकार कचरा है! यदि तू अभ्यास करने के लिए एक वास्तविक पथ के बारे में कुछ भी नहीं कह सकता है तो क्या तू बहानेबाज़ी नहीं कर रहा है? यदि तू अपने वास्तविक अनुभव दूसरों को नहीं दे सकता है, जिससे उन्हें सबक का पाठ या अभ्यास का मार्ग मिल सके, तो क्या तू जालसाज़ी नहीं कर रहा है? क्या तू सिर्फ नकली नहीं है? तेरा क्या मूल्य है? ऐसा व्यक्ति केवल "समाजवाद के सिद्धांत का आविष्कारक" की भूमिका अदा कर सकता है, "समाजवाद को लाने वाले योगदानकर्ता" की नहीं। वास्तविकता के बिना होना सच्चाई के बिना होना है। वास्तविकता के बिना होना निकम्मा होना है। वास्तविकता के बिना होना चलता फिरता मृत होना है। वास्तविकता के बिना होना संदर्भ के तौर पर मूल्यविहीन "मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारक" होना है। मैं हर व्यक्ति से अनुरोध करता हूँ सिद्धांत की बात छोड़ कर कुछ वास्तविक चीज़ के बारे में बात करें, कुछ असली और ठोस बात, कुछ "आधुनिक कला" का अध्ययन करें, कुछ यथार्थवादी चीज़ के बारे में बोलें, कुछ वास्तविकता का योगदान करें और कुछ निष्ठा की भावना रखें। बोलते समय वास्तविकता का सामना करें और लोगों को खुश करने के लिए या अपने बारे में अलग तरीके से सोच लाने के लिए अवास्तविक और अतिरंजित बातें ना करें। उसका मूल्य क्या है? अपने आप के लिए लोगों में उत्साह पैदा करने का क्या औचित्य है? अपने भाषण में "कलात्मक" बनें, अपने आचरण में निष्पक्ष रहें, अपने कार्य में उचित रहें, लोगों को संबोधित करने में यथार्थवादी रहो, हर कार्य में परमेश्वर के घर को लाभान्वित करने में ध्यान रखें, अपनी अंतरात्मा को अपनी भावनाओं को निर्देशित करने दें, दया के बदले नफरत न करें, या दयालुता की एवज़ में कृतघ्न न हों, और एक ढोंगी ना बनें, ऐसा न हो कि तुम "बुरा प्रभाव" बन जाओ। जब तुम लोग परमेश्वर के वचन को खाते हो और पीते हो, तो उन्हें वास्तविकता के साथ जोड़ो, और जब तुम संवाद करते हो, यथार्थवादी चीज़ों के बारे में और अधिक बोलो और दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास न करो -परमेश्वर उसके विरुद्ध है। अधिक धैर्यवान और सहिष्णु रहो, अधिक स्वीकार करने का अभ्यास करो, लोगों के साथ उदार और खुले रहो, और "उदारवादी व्यक्ति की भावना" से सीखो।[क] जब तुम्हारे पास ऐसे विचार होते हैं जो अच्छे नहीं हैं, तो शरीर को त्याग करने का अधिक अभ्यास करो। जब तुम कार्य कर रहे हो, तो यथार्थवादी पथों के बारे में अधिक बोलो और बहुत घमंडी ना बनो नहीं तो यह लोगों की पहुंच से परे हो जायेगा। कम आनंद, अधिक योगदान-समर्पण की अपनी निस्वार्थ भावना दिखाओ। परमेश्वर के प्रयोजनों के प्रति अधिक ध्यान रखो, अपने विवेक की अधिक सुनो, और अधिक ध्यान रखो और यह ना भूलो कि हर दिन तुम लोगों के लिए चिंतित होकर परमेश्वर कैसे तुम लोगों को डांटता है। "पुराने पंचांग" को अधिक बार पढ़ो। अधिक प्रार्थना करो और अधिक सहभागिता करो। इतना अव्यवस्थित हो कर ना चलो, बल्कि अधिक समझ का प्रदर्शन करो और कुछ अंतर्दृष्टि प्राप्त करो। जब पाप का हाथ फैले तो, इसे वापस खींचो और इसे इतना विस्तार न करने दो। यह किसी कार्य का नहीं है! जो तुमको परमेश्वर से मिलता है वह शाप के अलावा कुछ भी नहीं है; सावधान रहो। अपने हृदय को दूसरों पर दया करने दो और हमेशा हाथों में हथियारों से नहीं मारो। दूसरों की सहायता करने की भावना रखते हुए अधिक दो और जीवन के बारे में और अधिक बात करो। अधिक करो और कम बोलो। खोज और विश्लेषण में कम और अभ्यास में अधिक ध्यान दो। पवित्र आत्मा द्वारा अधिक प्रेरित हो, और अपनी पूर्णता के लिए परमेश्वर को अधिक अवसर दो। अधिक मानव तत्वों को समाप्त करो - अब भी कार्य करने के बहुत सारे मानवीय तरीके हैं। सतही आचरण और व्यवहार अभी भी घृणास्पद हैं। उनको और अधिक समाप्त करो। तुम लोगों की मानसिक स्थिति अभी भी घृणास्पद है। उसे और अधिक सही करो। तुम्हारे हृदय में लोगों ने जो स्थिति बना ली है, वह अब भी बहुत अधिक है। परमेश्वर को अधिक प्रतिष्ठा दो और इतना अनुचित ना बनो। "मंदिर" पहले परमेश्वर की जगह है और उस पर लोगों द्वारा कब्ज़ा नहीं किया जाना चाहिए। संक्षेप में, धार्मिकता पर अधिक ध्यान दो और भावनाओं पर कम, और शरीर को समाप्त करना सबसे अच्छा है; वास्तविकता के बारे में अधिक बात करो और ज्ञान के बारे में कम, और चुप रहना सर्वोत्तम है; अभ्यास के पथ के बारे में और अधिक बोलो और बेकार की बात कम करो, और अब से शुरू करके अभ्यास शुरू करना सबसे अच्छा है।
परमेश्वर की लोगों से अपेक्षाएं बहुत बुलंद नहीं हैं। यदि लोग थोड़ा प्रयास करते हैं तो वे "उत्तीर्ण होने योग्य श्रेणी" प्राप्त कर सकेंगे। असल में, सत्य का अभ्यास करने के मुकाबले सत्य को समझना, जानना और स्वीकार करना अधिक जटिल है; सत्य को जानना और स्वीकार करना सत्य का अभ्यास करने के बाद आता है। यह पवित्र आत्मा के कार्य का चरण और तरीका है। तुम इसका पालन कैसे नहीं कर सकते हो? क्या तुम अपने तरीके से चीजें कर के पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर सकोगे? क्या परमेश्वर तुम्हारी इच्छा के आधार पर कार्य करता है, या तुम्हारे परमेश्वर के वचनों से तुलना किए जाने के बाद? यह व्यर्थ है अगर तुम इसे स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते हो। ऐसा क्यों है कि अधिकांश लोगों ने परमेश्वर के वचनों को पढ़ने में काफी मेहनत की है लेकिन उनके पास केवल ज्ञान है और बाद में किसी वास्तविक पथ के बारे में कुछ नहीं कह पाते हैं? क्या तुम्हे लगता है कि ज्ञान होने का अर्थ सत्य का होना है? क्या यह एक उलझा हुआ दृष्टिकोण नहीं है? तुम उतना ज्ञान बोलने में सक्षम हो जितना कि समुद्र तट पर रेत है, फिर भी इसमें कोई वास्तविक पथ नहीं है। इस में, क्या तुम लोगों को मूर्ख नहीं बना रहे हो? क्या तुम सिर्फ बड़ी बड़ी बातें नहीं कर रहे हो? इस तरह से कार्य करना लोगों के लिए हानिकारक है! जितना ऊँचा सिद्धांत, उतना ही यह वास्तविकता से रहित है, और उतना अधिक लोगों को वास्तविकता में ले जाने में असमर्थ है; जितना ऊँचा सिद्धांत, उतना अधिक तुमसे परमेश्वर की उपेक्षा और उनका विरोध करवाता है। सबसे महान सिद्धांतों को अनमोल खजाने की तरह न समझो; वे घातक हैं, और किसी कार्य के नहीं है! हो सकता है कि कुछ लोग सबसे महान सिद्धांतों की ��ात करने में सक्षम हों- लेकिन ऐसे सिद्धांतों में वास्तविकता कुछ भी नहीं है, क्योंकि इन लोगों ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से अनुभव नहीं किया है, और इस प्रकार उनके पास अभ्यास करने का कोई मार्ग नहीं है। ऐसे लोग मनुष्य को सही मार्ग पर ले जाने में असमर्थ हैं, और केवल लोगों को पथभ्रष्ट करेंगे। क्या यह लोगों के लिए हानिकारक नहीं है? कम से कम, तुमको वर्तमान परेशानियों को हल करने और लोगों को प्रवेश प्राप्त करने देने में सक्षम होना होगा; केवल यह भक्ति के रूप में मायने रखता है, और उसके बाद ही तुम परमेश्वर के लिए कार्य करने के लिए योग्य होगे। हमेशा भव्य, कल्पित शब्दों में बात न करो, और लोगों को बाध्य न करो और उन्हें अपनी अनुचित प्रथाओं के साथ अपना आज्ञापालन न करवाओ। ऐसा करने से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, और यह केवल लोगों के भ्रम को बढ़ा सकता है। लोगों का इस तरह से नेतृत्व करने से कई तरह के नियम पैदा हो जायेंगे, जिससे लोग तुमसे घृणा करेंगे। यह मनुष्य की कमी है, और यह वास्तव में असहनीय है। इसलिए, अब मौजूद समस्याओं के बारे में अधिक बात करो। अन्य लोगों के अनुभवों को निजी संपत्ति न समझो और दूसरों को इसकी सराहना करने के लिए बाहर लाओ। तुमको व्यक्तिगत तरीके से कोई मार्ग खोजना होगा। प्रत्येक व्यक्ति को इसी चीज़ का अभ्यास करना चाहिए।
यदि तुम जो कहते हो वह लोगों को चलने का पथ दे सकता है, तो यह तुम्हारे पास वास्तविकता होने के बराबर है। तुम चाहे जो भीकहो, तुमको लोगों को अभ्यास में लाना होगा और उन सभी को मार्ग देना होगा जिसका वे अनुसरण कर सकें। यह केवल इसे ऐसा बनाने के बारे में नहीं है कि लोगों को ज्ञान हो, लेकिन अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि, यह चलने के लिए मार्ग हो। लोगों के परमेश्वर में विश्वास करने के लिए, उन्हें उस मार्ग पर चलना होगा जिस पर उन्हें परमेश्वर का कार्य ले जाता है। अर्थात्, परमेश्वर में विश्वास करने की प्रक्रिया वह पथ चलने की प्रक्रिया है जिस पर पवित्र आत्मा तुमको ले जाता है। तदनुसार, तुम्हारेपास एक ऐसा मार्ग होना चाहिए, जिस पर तुम चल सको चाहे कुछ भी हो, और तुम्हे परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने के मार्ग पर चलना होगा। इसे बहुत लंबा नाखींचो, और बहुत अधिक लिप्त न हो। यदि तुम बिना रुकावट के उस मार्ग पर चलते हो जिस पर परमेश्वर ले जाता है, तभी तुम पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त कर सकते हो और प्रवेश का मार्ग प्राप्त कर सकते हो। केवल यह परमेश्वर के प्रयोजनों के साथ ठीक बैठता है और मनुष्य के कर्तव्य को पूरा करने के मायने रखता है। इस धारा के व्यक्तियों के रूप में, प्रत्येक व्यक्ति को अपना कर्तव्य ठीक से पूरा करना चाहिए, वह अधिक करना चाहिए जो लोगों को करना चाहिए, और जानबूझकर कार्य नहीं करना चाहिए। कार्य करने वाले लोगों को अपने शब्दों को स्पष्ट करना चाहिए, अनुसरण करने वाले लोगों को कठिनाइयों का सामना करने और आज्ञापालन करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए, और प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्थान पर रहना चाहिए और कतार से बाहर नहीं जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में स्पष्ट होना चाहिए कि उसे कैसे अभ्यास करना चाहिए और किस कार्य को पूरा करना चाहिए। उस मार्ग पर चलो जिस पर पवित्र आत्मा ले जाता है; पथभ्रष्ट न हो या झूठ न बोलो। तुम लोगों को आज के कार्य को स्पष्ट रूप से देखना होगा। आज की कार्य पद्धति में प्रवेश करने का तुम लोगों को अभ्यास करना चाहिए। यह पहली चीज़ है जहाँ तुम लोगों को प्रवेश करना होगा। अन्य बातों पर और अधिक शब्दों को बर्बाद ना करो। आज परमेश्वर के घर का कार्य करना तुम लोगों की ज़िम्मेदारी है, आज की कार्यप्रणाली में प्रवेश करना तुम लोगों का कर्तव्य है, और आज के सत्य का अभ्यास करना तुम लोगों का भार है।
पाद टिप्पणी :
a. प्रधान मंत्री की भावना: एक प्राचीन चीनी कहावत एक व्यक्ति का विवरण जो व्यापक विचारधारा वाला है और उदार है।
                      से: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-वचन देह में प्रकट होता है
सम्बन्धित सामग्री: सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना
सभी के द्वारा अपना कार्य करने के बारे में
वास्तविकता को कैसे जानें
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gaurav184-blog · 6 years
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Dakshin ka Dashgreev Part 2
राक्षस एवं यक्षों का युद्ध एवं वैतरणी नदी का शाप
माल्यवान, सुमाली एवं माली ने प्रभु गंगाधार को प्रसन्न कर कई प्रकार के अस्त्र शस्त्र व वरदान प्राप्त कर लिये। तीनों भाईयों ने आपस में मंत्रणा करके एक सहमति से विश्व के सर्वश्रेष्ठ शिल्पकार एवं अभियंता विश्वकर्मा को बुलावा भेजा।
माल्यवान-  विश्व के सर्वश्रेष्ठ शिल्पकार मानकर हम भाईयों ने आपको यहाँ बुला लिया है। आप शीघ्र ही एक ऐसे भवन का निर्माण करें जो सभी रूप से विश्व का सबसे सुन्दर एवं अजेय दुर्ग हो।
अभियंता विश्वकर्मा द्वारा शीघ्र ही एक नगर का निर्माण कर दिया गया जो चारों ओर से कई फुट गहरी खाई से सुरक्षित था समुद्र से घिरा जिसकी कई मीटर ऊँची दीवारें विशुद्ध सोने से बनायी गयी थीं। नगर में कई प्रकार के उपवनों का निर्माण भी किया गया जो ताड़, चीड़, पीपल, बरगद, गूलर आदि वृक्षों से सुशोभित था। अलग-अलग प्रकार के पुष्पों काी वाटिका नगर को और रमणीय बना रही थी। दुर्ग निर्माण पूरा होने पर माल्यवान, सुमाली एवं माली तीनों भाइयों ने इसका निरीक्षण यिका। वे तीनों नगर की रमणीयता को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुये एवं विश्वकर्मा को कई प्रकार के रत्न आ��ूषणों से सुशोभित कररके वापस भेज दिया।
माल्यवान-  भ्राता सुमाली यह नगर तो अत्यन्त रमणीय और सुरक्षित लग रहा है, परन्तु मुझे पितामह प्रहेती के अनुयायी और वंशज यक्ष अर्थात देवता जाति के लोकपालों पर मुझे हमेशा ही संदेह बना रहता है। वे हमेशा से ही नयी-नयी युक्तियों से हमारे द्वारा बनाये गये
सम्भ्रान्त भवनों और विलासिता की वस्तुओं को छीनने का प्र��त्न करते रहे हैं।
सुमाली-    बात तो आपकी सच ही है भ्राता परन्तु अब ऐसा न होगा मैंने ये निश्चय कर लिया है कि शीघ्र ही हम यक्षों के नगर अमरावती पर आक्रमण करके उन्हें अपने अधीन कर लेंगे।
माली-     मैं आप सभी से पूर्ण रूप से सहमत हूँ।
माल्यवान-  तो तय रहा, आज से एक मास के भीतर ही हमारी सेना वैतरणी नदी के पार बसे अमरावती नगर पर आक्रमण करेगी। योजना बनाने हेतु सेनापति प्रहस्त को बुलावा भेज दें।
(कुछ समय पश्चात सेनापति प्रहस्त का आगमन)
सुमाली-    सेनापति प्रहस्त हमने यक्षों को जीत लेने का निश्चय किया है और इसी विषय पर हम तुमको सेना संचालन का कार्यभार सौंप रहे हैं। जाओ और सभी सामंतों को इकट्ठा करो और आक्रमण की नीति तैयार करो।
(प्रहस्त जो सभी राक्षसों में सबसे कुटिल परन्तु कुशल रणनीतिज्ञ
था उसने उत्तर दिया।)
प्रहस्त-     ये तो महाराज ने उचित निर्णय लिया है। अगर राक्षस राज जीवनदान का अभय प्रदान करें तो मैं एक सुझाव देना चाहूँगा।
सुमाली-    प्रहस्त तुम्हें जीवन दान के अभय की क्या आवश्यकता तुम और
तुम्हारे सुझाव सदा राक्षस जाति के लिये स्वस्थकर ही रहे हैं निर्भय होकर कहो।
प्रहस्त-     कलान्तर में वर्षा ऋतु जोरों पर है और अमरावती पर आक्रमण हतु हमें वैतरणी नदी को पार करना ही होगा। वर्षा के कारण
वैतरणी का जल प्रवाह तेज व उच्च है हमंे दो मास तक इंतजार करना चाहिये। इसी बीच मैं अपने गुप्तचर विभाग के प्रमुख शुक तथा शंकु दोनांे भाइयों को अमरावती रवाना किये देता हूँ जो देवताओं की सारी जानकारी लाकर हमंे दे दें फिर उसी आंकलन पर हम योजना निर्माण करेंगे।
(प्रहस्त ने एक ही सांस में अपना प्रयोजन नपे तुले शब्दों में कह सुनाया)
माली-     सुन्दर! अति सुन्दर भ्राताओं प्रहस्त की सलाह उत्तम है हमें इसका ही अनुसरण करना चाहिये।
सुमाली-    प्रहस्त हम सभी भाइयों का विचार मत एक समान है। तुम निश्चय ही एक कुशल सेनापति और रणनीतिज्ञ हो। निसंदेह!
माली-     अब जाओ आर अपने गुप्तचरों काो रवाना करो।
(प्रहस्त का खेमा, स्वयं प्रहस्त चाँदी की नक्काशीदार कुर्सी पर विराजमान है। उसके सिंहासन के निकट पंक्तिदार चार नीम की कुर्सियाँ लगी हैं। फर्श सफेद काले पत्थरों से जड़ी सुन्दर और चमकदार है।
(शुक और शंकु का प्रवेश)
शुक-      सेनापति प्रहस्त के चरणों में शुक का प्रणाम।
प्रहस्त-     आइये शुक! आपके और मान्यवर शंकु के हेतु राक्षस राज माली का संदेश है।
शुक-      अहो भाग्य! कहें महानुभाव प्रहसत ये तुच्छ क्या सोवा कर सकता है राक्षस राज की?
प्रहस्त-     अपने आप को तुच्छ न कहें मान्यवर शुक आप तो राक्षस जाति के ही नहीं अपितु सारे ब्रह्माण्ड में सर्वश्रेष्ठ गुप्तचर विभाग के प्रणेता हैं। मुझे आज भी स्मरण है, आपकी कला से प्रभावित होकर देवराज इन्द्र ने आपको अपनी सेना में सम्मिलित होने का न्योता भेजा था। परन्तु आप दोनों ने उसे ठुकरा दिया।
शंकु-      सत्य है सेनापति! हम जन्म से राक्षस हैं और हमारी पूर्ण निष्ठा
राक्षस समाज के प्रति की उत्तरदायी है। तो भला निष्ठा के आगे
धन एवं अन्य प्रलोभनों की क्या आवश्यकता।
प्रहस्त-     सत्य वचन।
शुक-      हमें हमारा कार्य सौंपें सेनाति प्रहस्त। जिसके करके हम राक्षस
भ्राताओं को हर्षित कर सकें।
प्रहस्त-     आप दोनों ही भाई अपने उच्च कोटि के गुप्तचरों के साथ अमरावती नगर जाकर वहाँ के सारे भेदों को जानकर हम तक पहुँचायें। वर्षा ऋतु समाप्त होने के पश्चात राक्षस राज अमरावती पर विजय पाने हेतु आक्रमण करेंगे।
शुक-      अत्यन्त उच्च विचार हैं यक्षों के लोकपालों द्वारा राक्षस जाति से
किये गये समय-समय पर छल कपट का यही सही और उत्तम दण्ड है।
(लंका नगरी का मंत्रणा कक्ष विशाल और सुन्दर तीन स्वर्ण
सिंहासन पर विराजमान क्रमशः माली सुमाली एवं माल्यवान चार चाँदी के सिंहासन पर विचार मग्न सेनापति प्रहस्त मंत्री सुपाश्र्व, दण्ड, ध्म्राक्ष विराजमान हैं शेष्ज्ञ आम और नीम के बने सिंहासनों पर राक्षस जाति के बाईस सामंतों ने आसन ग्रहण कर रखा है।)
माल्यवान-  भ्राता सुमाली जैसा की हमें ज्ञात हुआ है कि भगवान शिव के आशीर्वाद से मनुष्यों द्वारा किये गये दान धर्म और यज्ञों का प्रताप यक्षों को प्राप्त होता है। यही कारण है कि वे अत्यन्त बलशाली होते जा रहे हैं।
सुमाली-    सत्य वचन भ्राता मैंने इस विषय पर काफी विचार और मंथन
किया है। स्वयं मैं और सेनापति प्रहस्त इस निर्णय पर पहुँचे हैं कि इन दो माह में हम अपने वायु विमानों की एक टुकड़ी बनाकर क्षेत्र में होने वाले सभी यज्ञों एवं अनुष्ठानों को नष्ट कर देंगे और धर्म यज्ञों में लीन सभी मानव गंधर्व एवं अन्य जातियों का वध कर देंगे। इस कार्य हेतु सेनापति प्रहस्त के नेतृत्व में
ध्म्राक्ष, दण्ड एवं सुपाश्र्व इनका साथ देंगे।
माली-     उत्तम सेनापति आप जल्द ही प्रस्थान करें और अपने काार्य को जल्द समाप्त कर वापस लौटें।
(प्रहस्त ने सभा में विराजमान तीनों राक्षस राज को प्रणाम किया
एवं ध्म्राक्ष, दण्ड, सुपाश्र्व के साथ सभा छोड़कर चला गया।)
प्रहस्त ने ध्म्राक्ष के साथ मिलकर उत्तरी छोर सम्भाला दण्डक ने पूर्वी और सुपाश्र्व ने पश्चिमी चारों महारथियों ने अपने खड़क, तलवार और बाणों की शक्ति से मानव एवं समस्त धर्म कार्य में लीन जातियों का विनाश एवं समस्त धर्म कार्य मंे लीन जातियों का विनाश एवं प्रताड़ित करना प्रारम्भ कर दिया। यज्ञों को नष्ट किया जाने लगा यज्ञशालाओं में रक्त, विश आदि डालकर उन्हें अपवित्र कर दिया गया। जो ऋषि मुनियों ने राक्षस राज के निर्णय को नहं माना उनको अत्यन्त पीड़ा भुगतनी पड़ी। वृक्षों पर मानव, गंधर्व, नाग, किन्नर जाति के प्राणियों का सर धड़ से अलग कर लटका दिया गया।
चीड़, ताड़ सागौन के वृक्षों पर लटकती लाशों को देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि वट वृक्ष की अनगिनत शाखायें प्रस्फुटित हो गयी हों। यज्ञशालायें सूनी हो गयी, वातावरण सड़ी लाशों से दुर्गन्धित हो उठा। पर्यावरण मंत्रोचारण की
ध्वनि से विरक्त हो गया। ये विभस्त दृश्यों को वर्णन शीघ्र ही अमरावती नगर
में भी पहुँचा।
(अमरावती नगर पूर्व में वैतरणी नदी के तट पर बसा रमणीय नगर जो तीनों ओर से बीस योजन गहरी खाईयों से सुरिक्षत और मेरु पर्वत से घिरा। मानो दुर्ग की दीवारों का कार्य स्वयं मेरु पर्वत ने ही सम्भाला हो। चारों ओर वृक्ष वनों का समूह अनेक रमणीय एवं सुन्दर पुष्प वाटिकायें जो वातावरण को सदैव सुगंधित रखती हैं। दिन के समय सूर्य की किरणों मंे नगर स्वर्ण के समान चमकता है, और रात्रि के समय चंद्रमा की रोशनी उसे चाँदी के समान
श्वेत व धवल सा प्रतीत करती है। हर तरफ अप्सराओं व सुन्दर नृत्य, गीत,
वादन उसे सदैव प्रसन्नचित होने पर बाध्य किये रहता है। ऐसे सुन्दर नगर के राजा इन्द्र अपने सभी लोकपाल, सूर्य, वायु, वरुण, अग्नि के साथ सुशोभित होते हैं एवं मानव कल्याण में सदैव प्रयासरत रहते हैं। पर सर्वविदित है अत्यन्त विलासिता देव हो या मनुष्य सभी को अपने कर्तव्य से विमुख कर देती है ऐसा ही कुछ देव (यक्ष) राजा इन्द्र के साथ हुआ। वो विलासिता में डूबे ये भूल गये कि देवी अदिति के पुत्र प्रहेती को भगवान शिव ने वरदान में यह कहा था कि तुम और तुम्हारे द्वारा गठित लोकपालों की गद्दी पर बैठने वाले सारे प्राणियों की शक्ति का प्रमुख स्त्री यज्ञों एवं धर्माचरण पर प्रयोग होने वाले मंत्रोचारण के द्वारा ही वृद्धीवत रहेंगे।)
(यक्ष गुप्तचर शंख का सभा में प्रवेश)
शंख-      देवों के राजा इन्द्र को प्रणाम।
इन्द्र-      क्या बात है शंख तुम कुछ व्यथित दिखाई पड़ते हो। तुम्हें महादेव का वास्ता जो व्यथा है उसे निर्भीक होकर वर्णन करो।
शंख-      देवराज क्षमा चाहता हूँ, परन्तु आज अपनी विलासिता से पूर्ण इस जीवन शैली में कुछ इस तरह मग्न है कि संसारिक घटनाओं पर आपका ध्यान ही नहीं जाता।
इन्द्र-      क्या बकते हो शंख? शायद तुम्हारी मृत्यु निकट है जो इस तरह के कटु वचनों का प्रयोग करते हो।
शंख-      क्षमा चाहता हूँ। परन्तु कटु होने पर भी वचन सत्य है प्रभु।
राक्षस भ्राताओं ने पूरे ब्रह्माण्ड में अपने मंत्रियों द्वारा उत्पात मचा रखा है। यज्ञों को नष्ट कर दिया गया है। पूजा आदि पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। मंत्रोचरण से प्राप्त होने वाली कंपन
शक्तियों से हमें दूर कर दिया गया है।
(इन्द्र सहित सभी यक्षों के मुख पर चिंता की लकीरें उभरने लगीं)
इन्द्र-      पितामह हेती के वंशजों का ऐसा व्यवहार। पर क्यों क्या चाहते हैं वो ऐसा कर के।
(सभा में उपस्थित सभी यक्षों (देवों) से बुद्धिमान सूर्य को माजरा समझने में ज्यादा समय नहीं लगा।)
सूर्य-      आक्रमण! वे तीनों उपद्रवी भाई अमरावती पर आक्रमण कर हमें जीत लेना चाहते हैं।
इन्द्र-      कदापि नहीं यह सम्भव नहीं हम उनसे शक्ति में कहीं अधिक हैं और संख्या में भी।
सूर्य-      क्षमा करें देवराज। राक्षसों की संख्या ठीक उसी प्रकार बढ़ती है
जिस प्रकार जल में पड़े घोंघों की संख्या। माता पार्वती ने अपने
वात्सल्य रूप में उन्हें वरदान दिया है कि राक्षस कन्यायें शीघ्र ही गर्भधारण करेंगी एवं उनके पुत्र शीघ्र ही अपनी माता की आयु के बराबर हो जायेंगे।
वरुण-     सत्य ही कहते हैं सूर्य जहाँ तक मुझे ज्ञान है माली, सुमाली और
माल्यवान एवं महादेव की कृपा से वरदानी हैं। माया में प्रवीण और बाहुबल में सहस्त्र गजों के झुण्ड पर भी भारी और उनके पुत्र भी स्वयं उनके समान ही हैं।
इन्द्र-      उनके पुत्र! उनके पुत्रों के विषय में क्या ज्ञान रखते हैं आप
वरुण देव मुझे वर्णनित करें।
वरुण-     हे देवराज इन्द्र नर्मदा नाम की एक गंधर्वी जो गंधर्व प्रजाति की पुत्रवधु है उनकी तीन कन्यायें सुन्दरी, केतुमति, वसुदा का विवाह क्रमशः माल्यवान, सुमाली और माली से विगत दो वर्ष पहले उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था। माल्यवान और सुन्दरी के
द्वारा विरुपाक्ष, ब्रजमुष्ठी, दुर्मुख, सुप्तध्र, यज्ञकोप, मत्त एवं उन्मत्त का जन्म हुआ। सुमाली और केतुमति के द्वारा प्रहस्त जो स्वयं राक्षसों का सेनापति बल मंे सुमाली के भी कई गुना अधिक, रणनीतियों में सम्पन्न हैं, अकम्पन विकट कालिका मुख, ध्म्राक्ष, दण्ड, सुपाश्र्व, संहृदी, प्रधस, भास्कर्ण एवं राका, पुष्पोकटा, कैकसी एवं कुम्भीनसी नामक पुत्र पुत्रियों का जन्म हुआ। माली और वसुदा द्वारा अनल अनिल, हर और सम्पाती का जन्म हुआ। तीनों राक्षस राज के पुत्र अत्यन्त बलशाली एवं माया युद्ध में निपुण हैं।
सूर्य-      और जहाँ तक मुझे ज्ञात है राक्षसों के गुप्तचर प्रमुख शुक एवं शंकु ने अमरावती में प्रवेश कर सारी जानकारी संग्रह करान शुरू भी कर दिया होगा।
इन्द्र-      ये तो निश्चय ही शंका और चिंता का विषय है सूर्य आप नगर मेुं उन घुसपैठियों को खोज निकालें।
(सूर्य उठकर चले जाते हैं)
इन्द्र-      शंख तुम तुरन्त ही अपने चतुर अनुचरों के साथ मिलकर पता लगाओ की राक्षस राजों की क्या रणनीतियां हैं।
(शंख भी आज्ञा पाकर तुरन्त चला जाता है)
इन्द्र-      वरुण, आप शीघ्र अतिशीघ्र सेना को तैयार करें और महल की सुरक्षा व्यवस्थाओं को ठीक प्रकार से जांच लें राक्षसों द्वारा वैतरणी नदी को पार कर ही हम पर आक्रमण करना होगा। यही
एक रास्ता है जो हम पर चढ़ाई करने हेतु उपयुक्त रहेगा। मैं
गुरुवर ब्रहस्पति से इस विषय पर चिंतन करने उनके आश्रम पर प्रस्थान करता हूँ।
(शुक एवं शंकु का राक्षस महल में प्रवेश)
माली, सुमाली एवं माल्यवान सभा में विराजमान है बायें तरफ
प्रहस्त, सुपाश्र्व, विराजमान हैं गहन मंथन का दौर है।
शुक-      राक्षस राज को सेवक शुक का प्रणाम।
माली-     (प्रसन्नतापूर्वक) आओ शुक तुम्हारा आगमन सदैव हमारे लिये धूप से जलती धरा पर होने वाली वर्षा की तरह सुखद होता है। क्या समाचार लाये हो?
रावण भाग १ लिंक : https://watherwood.blogspot.com/2018/11/blog-post.html
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nisthadhawani · 2 years
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भैरव का वाहन कुत्ता क्यों | bhairav ka vahan
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nisthadhawani · 2 years
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Dakshinakali Sadhna | दक्षिणा काली की साधना
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upidtransformed · 7 months
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उत्तर प्रदेश में अपराध व अपराधियों के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस
उत्तर प्रदेश, जिसे आज भारत के विकास का केंद्र माना जा रहा है, कभी अपराधियों के वजह से अक्सर समाचारों का विषय बनता रहता था। अपराध व अपराधियों खिलाफ कठोर कदम उठाने के लिए यूपी पुलिस ने ‘ज़ीरो टॉलरेन्स पॉलिसी यूपी’ को अपनाया है। यह पॉलिसी अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए, पब्लिक सेफटी और क्राइम प्रिवेंशन में महत्वपूर्ण योगदान दे रही रही है। अपरधियों को अब ‘यूपी में लॉ एनफोर्समेंट’ का डर सताने लगा है और अपराधों में लगातार गिरावट और पिछले 7 सालों में राज्य में एक भी साम्प्रदाइक दंगा न होना इस बात का पुख्ता प्रमाण है। अपराधी अब खुद सरेंडर करने लगे हैं।  
यूपी में लॉ एनफोर्समेंट को मजबूती देने और ‘ज़ीरो टॉलरेन्स पॉलिसी यूपी’ को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से पुलिस द्वारा 63055 अपराधियों के विरुद्ध गैंगस्टर अधिनियम और 836 अपराधियों के विरुद्ध एन.एस.ए. की कार्रवाई की गई है। इसके माध्यम से रु. 90 अरब 22 करोड़ 33 लाख की सम्पत्तियों का जब्तीकरण किया जा चुका है। माफिया और अपराधियों द्वारा अर्जित बेनामी और ग़ैरक़ानूनी संपत्तियों का भी जब्तीकरण किया जा रहा है, जिसमें 2819 करोड़ से अधिक की संपत्तियाँ शामिल हैं।
महिला सुरक्षा राज्य के विकास की एक अहम कड़ी है। महिला सुरक्षा के बिना कोई राज्य प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के खिलाफ भी जबरदस्त कार्रवाई देखने को मिली है। 487 अभियुक्तों को आजीवन कारावास, 1016 अभियुक्तों को 10 वर्ष से अधिक कारावास, और 3076 अभियुक्तों को 10 वर्ष से कम का कारावास दिया गया है।
यहाँ तक कि माफिया और उनके गैंग के सदस्यों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई का सिलसिला जारी है। पूरे प्रदेश में 77 माफियाओं और उनके सहयोगियों के खिलाफ कुल 340 अभियोग पंजीकृत किए जा चुके हैं, जिसमें से 90 की गिरफ्तारी, 61 के खिलाफ गुण्डा एक्ट, 35 के खिलाफ शस्त्र लाइसेंस, और 8 के खिलाफ एन.एस.ए. की कार्रवाई की गई है।
इससे न केवल अपराधियों को सज़ा मिल रही है, बल्कि क्राइम प्रिवेंशन के लिए पुलिस संरचना को भी मजबूती प्रदान हो रही है तथा अपराधियों के बीच कानून का डर व्याप्त हो रहा है। नए थानों की स्थापना, हर जिले में महिला थानों की स्थापना, महिला पुलिस की नियुक्ति, एण्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की शुरुआत, और साइबर क्राइम थानों का गठन यह सभी प्रमुख उपाय हैं जिनसे प्रदेश की सुरक्षा में सुधार किया जा रहा है। इस समय यूपी पुलिस द्वारा पॉक्सो एवं महिला संबंधी अपराधों के तहत 7276 अपराधियों को सजा दी दिलाई गई है। साथ ही साथ धार्मिक स्थलों से ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए भी कड़ी कार्रवाई देखने को मिली है।
इस प्रकार, उत्तर प्रदेश में अपराध और अपराधियों के खिलाफ ‘ज़ीरो टॉलरेन्स पॉलिसी यूपी’ लागू करने से न केवल अपराधों में कमी देखने को मिल रही है, बल्कि  पब्लिक सेफटी  की भावना भी मजबूत हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार के इन सख्त कदमों के परिणामस्वरुप न सिर्फ अपराध में कमी आएगी, बल्कि समाज भी एक सकारात्मक दिशा में अग्रसर होगा। यह यूपी पुलिस की एक बड़ी उपलब्धि है जो प्रदर्शित कर रही है कि एक सुरक्षित और सहयोगी समाज की दिशा में ह��ारे कदम आगे बढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश प्रशासन की कठोर कार्रवाइयों की इस श्रृंखला को देखते हुए जनता में भी ये भावना जागृत हो रही है कि शासन प्रशासन की निष्ठा और प्रतिबद्धता से अपराध और अपराधियों के खिलाफ ये लड़ाई उत्तर प्रदेश के उज्जवल भविष्य के निर्माण में अहम योगदान देगी।
Source: https://upidtransformed.blogspot.com/2024/02/blog-post.html
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nisthadhawani · 3 years
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