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#पितृ दोष क्यों होता हैं
varanasi-city · 8 days
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Pitru Paksha (पितृपक्ष) , पितृ पक्ष में क्या करना चाहिए? , पितृ पक्ष में जल कैसे दिया जाता है?
Pitru Paksha : Tue, 17 Sept, 2024 – Wed, 2 Oct, 2024 पितृ पक्ष में क्या करना चाहिए? पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण और श्राद्धकर्म किए जाते हैं. इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. पितृपक्ष में शुभ कार्य वर्जित हैं. यदि आपका भी कोई शुभ कार्य बाकी रह गया है तो पितृपक्ष से पहले पूरा कर लें पितृ दोष क्यों होता है? ‘पितृ दोष’ शब्द का अर्थ पूर्वजों के नकारात्मक कर्म ऋण…
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parasparivaarorg · 7 days
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पारस: हिंदू धर्म में शंख का क्यों है इतना महत्व ?
पारस: हिंदू धर्म में शंख का महत्व
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
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इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी शंख के महत्व के बारे में बताते हैं कि जिस घर में शंख होता है, वहां हमेशा देवी लक्ष्मी का वास होता है। शंख की पवित्रता और शुद्धता को आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि इसे सभी देवताओं ने स्वयं अपने हाथों में धारण किया है।
सनातन धर्म या हिंदू धर्म में शंख का विशेष महत्व है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हिंदू धर्म में शंख को अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना गया है। क्योंकि सनातन परंपरा में जब भी कोई शुभ कार्य, पूजा पाठ, हवन आदि होता है तो शंख अवश्य बजाया जाता है। चलिये आज इस आर्टिकल में हम आपको शंख के महत्व और इसके लाभ के बारे में बताते हैं।
भगवान विष्णु को शंख अत्यंत प्रिय है
मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले 14 कीमती रत्नों से शंख की उत्पत्ति हुई थी। शंख समुद्र मंथन में से निकले 14 रत्नों में से एक है। भगवान विष्णु को शंख अत्यंत प्रिय है इसलिए भगवान श्री नारायण की पूजा में शंखनाद जरूर होता है। उत्तर पूर्व दिशा में शंख रखने से घर में खुशहाली आती है। भगवान विष्णु हमेशा अपने दाहिने हाथ में शंख पकड़े हुए दिखाई देते हैं। शंख हिंदू धर्म और धार्मिक परंपरा का एक अभिन्न अंग है। जब शंख बजाया जाता है तो ऐसा कहा जाता है कि इससे वातावरण की सारी नकारात्मकता दूर होती है और शंख की ध्वनि से वातावरण बुरे प्रभावों से मुक्त हो जाता है।
शंख सुख-समृद्धि और शुभता का कारक
पूजा पाठ या किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में शंख का उपयोग किया जाता है। शंख की ध्वनि जीवन में आशा का संचार करके बाधाओं को दूर करती है। पूजा करते समय शंख में रखा जल छिड़क कर स्थान की शुद्धि की जाती है। सनातन धर्म में किसी भी पूजा-पाठ के पहले और आखिरी में शंखनाद जरूर किया जाता है। पूजा-पाठ के साथ हर मांगलिक कार्यों के दौरान भी शंख बजाया जाता है। शंख को सुख-समृद्धि और शुभता का कारक माना गया है। शंख बजाए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
शंख के लाभ
शंख बजाने से हमारी सेहत भी अच्छी बनी रहती है।
हमारे फेफड़े मजबूत होते हैं और सांस लेने की समस्या दूर होती है।
नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और वातावरण शुद्ध होता है।
वास्तु शास्त्र में शंख का विशेष महत्व है।
शंख को घर में रखने से यश, उन्नति, कीर्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इससे आरोग्य वृद्धि, पुत्र प्राप्ति, पितृ दोष शांति, विवाह आदि की रुकावट भी दूर होती है।
शंखनाद से अद्भुत शौर्य और शक्ति का अनुभव होता है इसलिए योद्धाओं द्रारा इसका प्रयोग किया जाता था।
शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
महत्व
पूजा-पाठ में शंख का विशेष महत्व माना जाता है। शंख का प्रयोग वास्तु दोषों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। इसके साथ ही शंख बजाने का संबंध स्वास्थ्य से भी है। शंख की पूजा के बारे में महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि तीर्थों में जाकर दर्शन करने से जो शुभ फल प्राप्त होता है, वह शंख को घर में रखने और दर्शन करने मात्र से ही पूरा हो जाता है। धार्मिक कार्यों में शंख बजाना बहुत ही अच्छा माना जाता है।
माना जाता है कि देवताओं को शंख की आवाज बहुत पसंद होती है इसलिए शंख की आवाज से प्रसन्न होकर भगवान भक्तों की हर इच्छा को पूरी करते हैं। वास्तु के अनुसार शंख बजाने से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में पूजा में न केवल शंख का इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि शंख की भी पूजा की जाती है।
महंत पारस भाई जी ने बताया कि अथर्ववेद में शंख को पापों का नाश करने वाला, लंबी आयु का दाता और शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला बताया गया है।
महंत श्री पारस भाई जी बताते हैं कि शंख से घर में पॉजिटिव वाइब्स आती है। शंख से निकलने वाली ध्वनि से बीमारियों के कीटाणु खत्म होते हैं, जिससे आप स्वस्थ रहते हैं।
ध्वनि का प्रतीक माना जाता है शंख
शंख नाद ध्वनि का प्रतीक माना जाता है। शंख की ध्वनि आत्म नाद यानि आत्मा की आवाज की शिक्षा देती है। अध्यात्म में शंख ध्वनि, ओम ध्वनि के समान ही मानी गई है। शंख एकता, व्यवस्था और अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। शंख बजाने से घर की सभी बुराईयां नष्ट होती हैं और घर का वातावरण अच्छा ��हता है। शंख जीव को आत्मा से जुड़ने का ज्ञान देता है।
पूजा में क्यों जरूरी माना जाता है शंख?
पूजा घर में दक्षिणावर्ती शंख रखना और बजाना अत्यंत शुभ माना जाता है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनि, पूजा या यज्ञ में शंख का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। शंख बजाने के बाद ही कोई भी पूजा सफल मानी जाती है। शंख बजाने से ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
सुबह-शाम शंख बजाने से आपका परिवार बुरी नजर से बचा रहता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि सभी समस्याओं और दोषों को दूर करती है। ऐसा माना जाता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां पर माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
शंख का पूजन कैसे करें
घर में नया शंख लाने के बाद उसे सबसे पहले किसी साफ बर्तन में रखकर अच्छी तरह से जल से साफ कर लें। इसके बाद शंख का गाय के कच्चे दूध और गंगाजल से अभिषेक करें। अब शंख को पोंछकर चंदन, पुष्प, धूप और दीप से पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का स्मरण करें और हाथ जोड़कर निवेदन करें कि वो हमारे घर में आयें और इस शंख में आकर वास करें।
महान ज्योतिष महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हर दिन इसी तरह शंख की सच्चे भाव से पूजा करने के बाद ही इसे बजायें। क्योंकि ऐसा करने पर आपको अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
दूर होती हैं कई बीमारियां
कहते हैं रोजाना शंख बजाने से हमारी मांसपेशियां मजबूत होती हैं। जिस कारण पेट, छाती और गर्दन से जुड़ी बीमारियां दूर होती हैं। साथ ही शंखनाद से श्वास लेने की क्षमता में वृद्धि होती है। शंख बजाने से सांस की समस्याएं भी खत्म होती हैं। सांस की प्रक्रिया सही तरीके से चलती है और फेफड़े स्वस्थ रहते हैं। इसके अलावा इससे थायराइड या बोलने संबंधित बीमारियों में राहत मिलती है।
जब हम शंख बजाते हैं तो तब हमारी मांसपेशियों में खिंचाव आता है जिसकी वजह से झुर्रियों की समस्या भी दूर होती है। शंख में कैल्शियम होता है। यदि आपको त्वचा से संबंधित कोई रोग है तो रात को शंख में पानी भरकर रख दें और फिर सुबह उस पानी से त्वचा पर मालिश करें। ऐसा करने पर त्वचा से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। शंख बजाने से हृदय रोग भी दूर होते हैं।
शंख बजाने से तनाव तो दूर होता ही है, साथ ही मन शांत रहता है। माना जाता है कि यदि आप प्रतिदिन शंख बजाते हैं तो दिल का दौरा पड़ने की संभावना काफी कम हो जाती है।
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astrorakesh1726 · 7 months
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विवाह से पूर्व कुंडली मिलान क्यों करना चाहिए?
विवाह से पहले कुंडली मिलान का महत्वपूर्ण कारण है कि यह विवाह के लिए दो व्यक्तियों के ज्योतिषीय संगठन और गुणों की मिलान करने का एक प्रकार होता है। वेदिक ज्योतिष में कुंडली मिलान के माध्यम से दोनों व्यक्तियों के जीवन में आने वाली संभावित समस्याओं को अनुमानित किया जा सकता है, जिससे उन्हें इसके लिए तैयार रहने का समय मिल सकता है।
कुंडली मिलान का कुछ मुख्य लाभ निम्नलिखित होते हैं:
दोषों की पहचान: कुंडली मिलान के माध्यम से दोनों व्यक्तियों के कुंडली में किसी भी दोष को पहचाना जा सकता है, जैसे कि मंगल दोष, कालसर्प दोष, पितृ दोष आदि।
गुण मिलान: कुंडली मिलान के माध्यम से व्यक्तियों के गुणों की मिलान की जा सकती है, जैसे कि विवाह के लिए कुंडली में मैचिंग गुणों की गणना की जा सकती है और इससे पता लग सकता है कि दोनों व्यक्तियों का विवाह समर्थ होगा या नहीं।
संयुक्त जीवन की योजना: कुंडली मिलान के माध्यम से दोनों व्यक्तियों के ग्रहों का संगठन और उनका प्रभाव जाना जा सकता है, जिससे वे अपने जीवन के लक्ष्य और मुख्य उद्देश्यों के बारे में सोच सकते हैं।
दांपत्य समर्थन: कुंडली मिलान के माध्यम से दोनों व्यक्तियों के बीच गुणस्थान की मिलान की जा सकती है और उन्हें जानकारी मिल सकती है कि वे एक-दूसरे का समर्थन कैसे कर सकते हैं और उनकी आपसी समझ कैसे बढ़ाई जा सकती है।
कुंडली मिलान का यह महत्वपूर्ण होने के बावजूद, यह ध्यान देने योग्य है कि कुंडली मिलान केवल एक दिशा देने वाला उपकरण है और विवाह का निर्णय केवल कुंडली मिलान पर ही निर्भर होता है । जिसके लिए आप कुंडली मिलान सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते है।
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astrovastukosh · 10 months
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🌞 आज का वैदिक हिन्दू पंचांग 🌞
👉दिनांक - 02 दिसम्बर 2023*
👉दिन - शनिवार*
👉विक्रम संव���् - 2080*
👉अयन - दक्षिणायन*
👉ऋतु - हेमंत*
👉मास - मार्गशीर्ष*
👉पक्ष - कृष्ण*
👉तिथि - पंचमी शाम 05:14 तक तत्पश्चात षष्ठी*
👉नक्षत्र - पुष्य शाम 06:54 तक तत्पश्चात अश्लेषा*
👉योग - ब्रह्म रात्रि 08:19 तक तत्पश्चात इन्द्र*
👉राहु काल - सुबह 09:47 से 11:08 तक*
👉सूर्योदय - 07:04*
👉सूर्यास्त - 05:54*
👉दिशा शूल - पूर्व*
👉ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:19 से 06:12 तक*
👉निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:03 से 12:56 तक*
👉व्रत पर्व विवरण -*
👉विशेष - पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥आरती में कपूर का उपयोग क्यों ?💥
👉सनातन संस्कृति में पुरातन काल से आरती में कपूर जलाने की परम्परा है । आरती के बाद आरती के ऊपर हाथ घुमाकर अपनी आँखों पर लगाते हैं, जिससे दृष्टी -इन्द्रिय सक्रिय हो जाती है । “आरती करते हैं तो कपूर जलाते हैं । कपूर वातावरण को शुद्ध करता है, पवित्र वातावरण की आभा पैदा करता है । घर में देव-दोष है, पितृ -दोष हैं, वास्तु -दोष हैं, भूत -पिशाच का दोष है या किसीको बुरे सपने आते हैं तो कपूर की ऊर्जा उन दोषों को नष्ट कर देती है ।*
👉बोलते हैं कि संध्या होती है तो दैत्य-राक्षस हमला करते हैं इसलिए शंख , घंट बजाना चाहिए, कपूर जलाना चाहिए, आरती-पूजा करनी चाहिए अर्थात संध्या के समय और सुबह के समय वातावरण में विशिष्ट एवं विभिन्न प्रकार के जीवाणु होते हैं जो श्वासोच्छवास के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करके हमारी जीवनरक्षक जीवनरक्षक कोशिकाओं से लड़ते हैं । तो देव-असुर संग्राम होता है, देव माने सात्त्विक कण और असुर माने तामसी कण । कपूर की सुगंधि से हानिकारक जीवाणु एवं विषाण रूपी राक्षस भाग जाते हैं ।*
👉वातावरण में जो अशुद्ध आभा है इससे तामसी अथवा निगुरे लोग जरा-जरा बात में खिन्न होते हैं, पीड़ित होते हैं लेकिन कपूर और आरती का उपयोग करनेवालों के घरों में ऐसे कीटाणुओं का, ऐसो हलकी आभा का प्रभाव नहीं टिक सकता है ।*
👉अत: घर में कभी-कभी कपूर जलाना चाहिए, गूगल का धूप करना चाहिए । कभी-कभी कपूर की १ – २ छोटी-छोटी गोली मसल के घर में छिटक देनी चाहिए । उसकी हवा से ऋणायान बनते हैं, जो हितकारी हैं । वर्तमान के माहौल में घर में दीया जलाना अथवा कपूर की कभी-कभी आरती कर लेना अच्छा है ।*
💥पुण्यदायी तिथियाँ व योग (भाग-२)💥
👉 24 दिसम्बर - प्रदोष व्रत*
👉 25 दिसम्बर - तुलसी पूजन दिवस, विश्वगुरु भारत कार्यक्रम (२५ दिसम्बर से १ जनवरी तक), महामना पं. मदनमोहन मालवीय जयंती (दि.अ.)*
👉 26 दिसम्बर - मार्गशीर्ष पूर्णिमा, श्री दत्तात्रेय जयंती, जोरमेला (पंजाब)*
👉 28 दिसम्बर - गुरुपुष्यामृत योग [रात्रि १-०५ (२९ दिसम्बर १-०५ AM) से २९ दिसम्बर सूर्योदय तक]*
👉 30 दिसम्बर - संकष्ट चतुर्थी (चन्द्रोदय : रात्रि ९-०६), श्री रमण महर्षि जयंती (दि.अ.)*
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nisthadhawani · 2 years
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pitra dosh | पितृ दोष क्या होता है ?
pitra dosh | पितृ दोष क्या होता है ?
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blogalien · 2 years
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Pitru Paksha Shradh I क्या आप जानते हो ? किसने शुरू कि श्राद्ध परंपरा
Pitru Paksha Shradh I क्या आप जानते हो ? किसने शुरू कि श्राद्ध परंपरा
Pitru Paksha Shradh :- क्या आप जानते हो ? श्राद्ध पक्ष की परंपरा कैसे शुरू हुई !   बहुत से लोगो को नहीं पता हैं की सबसे पहले किसने शरू किया था श्राद्ध ?  तो आएये जानते हैं के हमारे सनातन धर्म में Pitru Paksha Shradh यानि श्राद्ध पक्ष की ये परंपरा कब और कैसे शुरू हुई ! और फिर कैसे ये धीरे-धीरे सनातन धर्म के मानने वाले लोगों तक पहुंची !  महाभारत में भी पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबंध…
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#क्या पितरों को भोजन पहुंचता है#क्या श्राद्ध में मंदिर जाना चाहिए#घर में पितरों का स्थान कहां होना चाहिए#घर में पितृ दोष के लक्षण#घर में पितृ दोष के लक्षण और उपाय#पिंड दान कब करना चाहिए 2022#पितर कितने प्रकार के होते हैं#पितरों की तस्वीर किस दिशा में लगानी चाहिए#पितरों की पूजा कब करनी चाहिए#पितरों के गीत राजस्थानी#पितरों के दर्शन कैसे होते हैं#पितरों के रातिजगा के गीत#पितरों को किस दिशा में जल देना चाहिए#पितरों को जल देने का तरीका#पितृ दोष की पूजा कहां पर होती है#पितृ दोष क्यों होता है#पितृ दोष निवारण के सरल उपाय#पितृ दोष पूजा सामग्री#पितृ पक्ष में क्या नहीं करना चाहिए#पितृ पक्ष में पूजा करना चाहिए या नहीं#वार्षिक श्राद्ध कब करना चाहिए#शादी में पितरों के गीत#श्राद्ध का क्या महत्व हैं#श्राद्ध का महत्व#श्राद्ध कितने दिन के होते हैं#श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं
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vaidikmart · 3 years
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क्यों चमत्कारी है भादवे का घी Vaidikmart.com
भादवे के घी के लिए अति शीघ्र संपर्क करें। https://www.vaidikmart.com
नोट :-एडवांस बुकिंग पर ही भादवे का घी हमारे यहां से मिलेगा वैदिकमार्ट वैदिक बिलोने का घी 98796 99141
(भाद्रपद माह का गोघृत)? मरे हुए को जिंदा करने के अतिरिक्त, यह सब कुछ कर सकता है!
भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है।
इस वर्ष भाद्रपद माह 23अगस्त से 20 सितम्बर 2021 तक रहेगा
जिसे हम घास कहते हैं, वह वास्तव में अत्यंत दुर्लभ औषधियाँ हैं।
इनमें धामन जो कि गायों को अति प्रिय होता है, खेतों और मार्गों के किनारे उगा हुआ साफ सुथरा, ताकतवर चारा होता है।
सेवण एक और घास है जो गुच्छों के रूप में होता है। इसी प्रकार गंठिया भी एक ठोस खड़ है। मुरट, भूरट,बेकर, कण्टी, ग्रामणा, मखणी, कूरी, झेर्णीया,सनावड़ी, चिड़की का खेत, हाडे का खेत, लम्प, आदि वनस्पतियां इन दिनों पक कर लहलहाने लगती हैं।
यदि समय पर वर्षा हुई है तो पड़त भूमि पर रोहिणी नक्षत्र की तपत से संतृप्त उर्वरकों से ये घास ऐसे बढ़ती है मानो कोई विस्फोट हो रहा है।
इनमें विचरण करती गायें, पूंछ हिलाकर चरती रहती हैं। उनके सहारे सहारे सफेद बगुले भी इतराते हुए चलते हैं। यह बड़ा ही स्वर्गिक दृश्य होता है।
इन जड़ी बूटियों पर जब दो शुक्ल पक्ष गुजर जाते हैं तो चंद्रमा का अमृत इनमें समा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से इनकी गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है।कम से कम 2 कोस चलकर, घूमते हुए गायें इन्हें चरकर, शाम को आकर बैठ जाती है।रात भर जुगाली करती हैं।अमृत रस को अपने दुग्ध में परिवर्तित करती हैं।यह दूध भी अत्यंत गुणकारी होता है।इससे बने दही को जब मथा जाता है तो पीलापन लिए नवनीत निकलता है।एकत्रित मक्खन को गर्म करके, घी बनाया जाता है।
इसे ही #भादवेका घी कहते हैं। 
इसमें अतिशय पीलापन स्वणं रंग होता है। ढक्कन खोलते ही 100 मीटर दूर तक इसकी मादक सुगन्ध हवा में तैरने लगती है।
बस….मरे हुए को जिंदा करने के अतिरिक्त, यह सब कुछ कर सकता है!
विशेष: सभी गोघृत भोजन के रूप में सेवन हेतु 90 दिन के अंदर प्रयोग करें और उसके पश्चात जितना पुराना होगा इसकी महक बदलती रहेगी और उतनी ही तेज़ होती जाएगी।
एवं उत्तम औषधि के रूप में प्रयोग होगा परन्तु भोजन के रूप में सेवन हेतु प्रयोग नहीं होगा।
ज्यादा है तो खा लो, कम है तो नाक में चुपड़ लो।
हाथों में लगा है तो चेहरे पर मल दो।
बालों में लगा लो।
दूध में डालकर पी जाओ।
सब्जी या चूरमे के साथ जीम लो।
बुजुर्ग है तो घुटनों और तलुओं पर मालिश कर लो।
इसमें अलग से कुछ भी नहीं मिलाना।
सारी औषधियों का सर्वोत्तम सत्व तो आ गया!!
इस घी से हवन, देवपूजन और श्राद्ध करने से अखिल पर्यावरण, देवता और पितृ तृप्त हो जाते हैं।
कभी सारे मारवाड़ में इस घी की धाक थी।
इसका सेवन करने वाली विश्नोई महिला 5 वर्ष के उग्र सांड की पिछली टांग पकड़ लेती और वह चूं भी नहीं कर पाता था।
पुराने लोगो द्वारा वर्णित प्रत्यक्ष की घटना में एक व्यक्ति ने एक रुपये के सिक्के को मात्र उँगुली और अंगूठे से मोड़कर दोहरा कर दिया था!!
आधुनिक विज्ञान तो घी को वसा के रूप में परिभाषित करता है। उसे भैंस का घी भी वैसा ही नजर आता है।
वनस्पति घी, डालडा और चर्बी में भी अंतर नहीं पता उसे।
लेकिन पारखी लोग तो यह तक पता कर देते थे कि यह फलां गाय का घी है।
यही वह घी था जिसके कारण युवा जोड़े दिन भर कठोर परिश्रम करने के बाद, रात भर रतिक्रिया करने के बावजूद, बिलकुल नहीं थकते थे (वात्स्यायन)!
एक बकरे को आधा सेर घी पिलाने पर वह एक ही रात में 200 बकरियों को “हरी” कर देता था!!इसमें स्वर्ण की मात्रा इतनी रहती थी, जिससे सिर कटने पर भी धड़ लड़ते रहते थे!
बाड़मेर जिले के गूंगा गांव में घी की मंडी थी। वहाँ सारे मरुस्थल का अतिरिक्त घी बिकने आता था जिसके परिवहन का कार्य बाळदिये भाट करते थे।
वे अपने करपृष्ठ पर एक बूंद घी लगा कर सूंघ कर उसका परीक्षण कर दिया करते थे।
इसे घड़ों में या घोड़े के चर्म से बने विशाल मर्तबानों में इकट्ठा किया जाता था जिन्हें “दबी” कहते थे।
घी की गुणवत्ता तब और बढ़ जाती, यदि गाय पैदल चलते हुए स्वयं गौचर में चरती थी, तालाब का पानी पीती, जिसमें प्रचुर विटामिन डी होता है और मिट्टी के बर्तनों में बिलौना किया जाता हो।
अतः यह आवश्यक है की इस महीने के घृत को प्रतिदिन जंगल या गोचर में कम से कम 5 किलोमीटर तक चलने वाली गाय के दूध से वैदिक विधि से
या तो स्वयं घर पर बनाये या किसी विश्वासपात्र व्यक्ति से ही ले जिस से इसके गुणों का पूरा लाभ मिल सके और यदि इसे कई वर्षो तक संजो कर औषधि बनाना है तो इसका शुद्ध विधि और भादवे के महीने में बना होना और भी आवश्यक है।
यही कारण था की इस महीने के घी का गोपालको को अच्छा दाम मिलता था या कहे की यह महीना उनकी और उनकी गाय के दिवाली का महीना होता है जिसका वह साल भर राह देखते है।
वही गायें, वही भादवा और वही घास आज भी है। इस महान रहस्य को जानते हुए भी यदि यह व्यवस्था भंग हो गई तो किसे दोष दें।
जो इस अमृत का उपभोग कर रहे हैं वे निश्चय ही भाग्यशाली हैं। यदि घी शुद्ध है तो जिस किसी भी भाव से मिले, अवश्य ले लें।  यदि भादवे का घी नहीं मिले तो गौमूत्र सेवन करें। वह भी गुणकारी है। और हमारे देश के कई ऋषि इस घी को कांच की बंडी या चीनी माटी की बंडी मैं भरकर 3 फुट जमीन में गाड़ देते थे और कई वर्षों बाद इसे निकालते थे और उससे कई दुर्लभ औषधियां बनती थी जिससे अनगिनत रोगों का नाश होता था कहीं टूटी हुई हड्डियां फिर से जुड़ जाती थी।
10 वर्ष बाद निकालें गए घी को पतला या जीरन कहा जाता था। भादवे के घृत से पंचगव्य घृत पंचगव्य नस्य बनाने से अधिक लाभ मिलता है भादवे के घृत के लिए अति शीघ्र संपर्क करें 98796 99141 वैदिकमार्ट। डिसा गुजरात
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imsaki07 · 3 years
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पितृ पक्ष शुरू : जानिए पितृ दोष क्यों, कैसे तथा कब होता है... #news4
पितृ पक्ष शुरू : जानिए पितृ दोष क्यों, कैसे तथा कब होता है… #news4
मनुष्य अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव का अनुभव करता है। लेकिन कुछ कष्ट एवं अभाव ऐसे होते हैं जिन्हें सहन करना असंभव हो जाता है। तमाम उपायों में एक है पितृ शांति। पितृ दोष क्यों, कैसे तथा कब होता है आइए जानते हैं… (1) पितरों का विधिवत् संस्कार, श्राद्ध न होना। (2) पितरों की विस्मृति या अपमान। (3) धर्म विरुद्ध आचरण। (4) वृक्ष, फल लदे, पीपल, वट इत्यादि कटवाना। (5) नाग की हत्या करना, कराना या उसकी…
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chaitanyabharatnews · 3 years
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अखंड सौभाग्य प्राप्ति के लिए करें हरियाली अमावस्या व्रत, जानिए इसके नियम, महत्व और पूजा-विधि
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चैतन्य भारत न्यूज भगवान शिव के प्रिय मास सावन में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस बार 8 अगस्त को हरियाली अमावस्या है। हिंदू धर्म में हरियाली अमावस्या का काफी महत्व होता है। इस दिन माता पार्वती की विशेष रूप से पूजा की जाती है। माना जाता है जो भक्त सच्चे मन से माता पार्वती की आराधना करता है उसके जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। नारद पुराण के मुताबिक, सावन मास की अमावस्या को पितृ श्राद्ध, दान, देव पूजा एवं वृक्षारोपण आदि शुभ कार्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
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हरियाली अमावस्या पर कुंवारी लड़कियां व्रत रखती हैं जिससे उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति हो सके। वहीं, सुहागिन महिलाओं का सुहाग हमेशा बना रहता है। इसी कारण से विवाहित स्त्री और अविवाहित कन्या दोनों व्रत रखकर मां पार्वती का पूजन करती हैं। मान्यता है कि, जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष, पितृ दोष और शनि का प्रकोप है वे हरियाली अमावस्या के दिन शिवलिंग का जलाभिषेक, पंचामृत या रुद्राभिषेक करके सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हो जाते हैं। हरियाली अमावस्या की पूजा-विधि इस दिन दोपहर 12 बजे से पहले पीपल के पेड़ की 21 बार परिक्रमा करके शिवलिंग का जलाभिषेक करें। पूजा के दौरान तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएं। आज के दिन ब्राह्माणों और जरूरतमंद लोगों को अपनी हिसाब से दान पुण्य करें।
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हरियाली अमावस्या के नियम हरियाली अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ईष्टदेव का ध्यान करना चाहिए। स्नान दान के लिए अमावस्या बहुत ही सौभाग्यशाली तिथि मानी जाती है। हरियाली अमावस्या पर अपने पितरों की शांति के लिए हवन आदि करवाने का विशेष महत्व है। हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का महत्व हरियाली अमावस्या के दिन पेड़-पौधे जरुर लगाने चाहिए। दरअसल कहा जाता है कि वृक्षों में देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए इस दिन पौधा लगाना शुभ माना गया है। ये भी पढ़े... 125 साल बाद सावन सोमवार के दिन बना नाग पंचमी का शुभ योग, कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए करें ये उपाय जानिए क्यों सावन में की जाती है शिव की पूजा, इस महीने भूलकर भी न करें ये गलतियां भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है केदारनाथ धाम, जानिए इस ज्योतिर्लिंग का इतिहास और महत्व   Read the full article
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।। पितृगण कौन हैं ? घर के पितृ नाराज होने के
लक्षण और उपाय क्या हैं ।।
आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृदोष शांति के सरल उपाय। पितृ या पितृगण कौन हैं? आपकी जिज्ञासा को शांत करती विस्तृत प्रस्तुति।
पितृगण हमारे पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है, क्योंकि उन्होंने कोई-न-कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है। मनुष्य लोक से ऊपर पितृलोक है, पितृलोक के ऊपर सूर्यलोक है एवं इससे भी ऊपर स्वर्गलोक है।
आत्मा जब अपने शरीर को त्यागकर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृलोक में जाती है, जहां हमारे पूर्वज मिलते हैं। अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं कि इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया। इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्यलोक की तरफ बढ़ती है।
वहां से आगे यदि और अधिक पुण्य हैं तो आत्मा सूर्यलोक को पार कर स्वर्गलोक की तरफ चली जाती है, लेकिन करोड़ों में एकआध आत्मा ही ऐसी होती है, जो परमात्मा में समाहित होती है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। मनुष्य लोक एवं पितृलोक में बहुत सारी आत्माएं पुन: अपनी इच्छा व मोहवश अपने कुल में जन्म लेती हैं।
पितृदोष क्या होता है?
हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग न तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और न ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं, न ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दु:खी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं जिसे 'पितृदोष' कहा जाता है।
पितृदोष एक अदृश्य बाधा है। यह बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है। पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं, जैसे आपके आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गई गलती से, श्राद्ध आदि कर्म न करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
इसके अलावा मानसिक अवसाद, व्यापार में नुकसान, परिश्रम के अनुसार फल न मिलना, विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं, करियर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितृदोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, ��ोचर, दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते और कितना भी पूजा-पाठ व देवी-देवताओं की अर्चना की जाए, उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।
पितृदोष दो प्रकार से प्रभावित करता है : -
1. अधोगति वाले पितरों के कारण
2. उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण
अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किए गए गलत आचरण की अतृप्त इच्छाएं, जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर, विवाहादि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय, परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं, परिवारजनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।
उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यत: पितृदोष उत्पन्न नहीं करते, परंतु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वे पितृदोष उत्पन्न करते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है। फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों न किए जाएं, कितने भी पूजा-पाठ क्यों न किए जाएं, उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृदोष निवारण के लिए सबसे पहले यह जानना ज़रूरी होता है कि किस ग्रह के कारण और किस प्रकार का पितृदोष उत्पन्न हो रहा है?
जन्म पत्रिका और पितृदोष जन्म पत्रिका में लग्न, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृदोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चंद्रमा, गुरु, शनि और राहू केतु की स्थितियों से पितृदोष का विचार किया जाता है। इनमें से भी गुरु, शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृदोष में महत्वपूर्ण होती है। इनमें सूर्य से पिता या पितामह, चंद्रमा से माता या मातामह, मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।
अधिकांश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से चूं‍कि गुरु, शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृदोष उत्पन्न होता है इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ-साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी, सातमुखी और आठमुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले तो पितृदोष का निवारण शीघ्र हो जाता है। पितृदोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है।
पितरों के नाराज होने के लक्षण : -
खाने में से बाल निकलना
बदबू या दुर्गंध : कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है।
पूर्वजों का स्वप्न में बार-बार आना
शुभ कार्य में अड़चन : शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।
घर के किसी एक सदस्य का कुंआरा रह जाना
मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना
संतान न होना
पितृदोष की शांति के 10 उपाय : -
1. पिंडदान, सर्पपूजा, ब्राह्मण को गौदान, कन्यादान, कुआं, बावड़ी, तालाब आदि बनवाना, मंदिर प्रांगण में पीपल, बड़ (बरगद) आदि देववृक्ष लगवाना एवं विष्णु मंत्रों का जाप आदि करना...
2. वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र, स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों न हो, वह शांत हो जाती है। अगर नित्य पठन संभव न हो तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए।
वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृदोष है, उस पितृदोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है।
3. भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठकर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की 1 माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृदोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है। मंत्र जाप प्रात: या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं।
मंत्र : 'ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।'
4. अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रतापूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा, घी एवं 1 रोटी गाय को खिलाने से पितृदोष शांत होता है।
5. अपने माता-पिता व बुजुर्गों का सम्मान, सभी स्त्री कुल का आदर-सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।
6. पितृदोषजनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए 'हरिवंश पुराण' का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।
7. प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दरकाण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।
8. सूर्य साक्षात पिता है अत: ताम्बे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल फूल, लाल चंदन का चूरा, रोली आदि डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य देकर 11 बार 'ॐ घृणि सूर्याय नम:' मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।
9. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध, चीनी, सफेद कपड़ा, दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
10. पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें। अगर 108 परिक्रमा लगाई जाए तो पितृदोष अवश्य दूर होगा।
।। श्री स्नेहा माता जी ।।
SHIVSHAKTI VISHAV KA ADHAR
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supermamaworld · 4 years
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किन वजहों से लगता है पितृ दोष और क्या है इसकी शांति के उपाय! भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी जातक की जन्मकुंडली में सूर्य और राहू जिस भी भाव में बैठते हैं, उस भाव के सभी फल नष्ट कर देता हैं और इन दोनों ग्रहों के योग और दृष्टि पात से व्यक्ति की कुंडली में एक ऐसा दोष उत्पन्न होता है जो कि व्यक्ति के सभी सुखों को छीन अनेक दु:��ों को एक साथ देने की क्षमता रखता है। इस दोष को पितृदोष के नाम से जाना जाता है। अगर आप भी अपनी कुंडली में मौजूद दोष आदि और उनसे बचाव के विषय में जानना चाहते हैं तो हमारे भृगु ज्योतिष अनुसन्धान संस्थान के विशेषज्ञों ज्योतिषियों से प्रश्न पूछकर उनसे उचित परामर्श लें और अपनी समस्याओं का हल जानें। ज्योतिष के अनुसार पितृदोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। जन्मपत्री में यदि सूर्य पर शनि और राहु-केतु की दृष्टि या युति के द्वारा प्रभाव हो, तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। ऐसी स्थिति में जातक के सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक उन्नति में अनेक बाधाएं उत्पन्न होती हैं। अपनी व्यक्तिगत बृहत् कुंडली की मदद से आप जान सकते हैं कि आपके जीवन में कौन से शुभ और अशुभ योग हैं। क्यों लगता है पितृदोष ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माना गया है कि परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्माननीय लोगों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध न करने से, उनका वार्षिक श्राद्ध न करने से पितरों का दोष लगता है। इसके फलस्वरूप पितृदोष के कारण परिवार में अशांति, वंशवृद्धि में रुकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख-सुविधाएं होते हुए भी मन असंतुष्ट रहना आदि हो सकता है। जन्म कुंडली में पितृदोष कब और कैसे? ज्योतिष और पुराणों मे भी पितृदोष के संबंध में अलग-अलग धारणा दिए गए हैं, लेकिन यह दोष हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा है। जब तक इस दोष का निवारण नहीं कर लिया जाए, यह दोष खत्म नहीं होता है। यह दोष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है यानि यदि पिता की कुंडली में पितृदोष है और उसने इसकी शांति नहीं कराई है, तो संतान की कुंडली में भी यह दोष देखा जाता है। जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के बाद सही तरीके से उसका अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो, तो मान्यता है उनकी आत्मा घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के (at पितरेश्वर हनुमान) https://www.instagram.com/p/CCpgHQignKK/?igshid=cnljriaxlo6a
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kisansatta · 4 years
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काले तिल के चमत्कारिक टोटके, मिलती है परेशानियों से मुक्ति
काले तिल की पूजा में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। कई विशेष अनुष्ठानों और पूजा में तिल का जरूर उपयोग किया जाता है। आपको बता दे ज्योतिष काले तिल का प्रयोग करने से बहुत सारे उपाय बताएं है जो की जीवन में आने वाली समस्या से छुटकारा मिल सके। तो आपको बताते है तिल से जुड़े उपाय के बारे में-
अगर आपके घर में कलह का वातावरण रहता है तो दूध में तिल मिलाकर पीपल के पेड़ पर अर्पित करें, जल को चढ़ाते समय ॐ भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से घर में शांति का माहौल बनेगा। आपसी संबंध मधुर होंगे। 
हर शनिवार काले तिल, काली उड़द को काले कपड़े में बांधकर किसी गरीब व्यक्ति को दान करें। इस उपाय से पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं।
आपने हाथ में एक मुट्ठी काला तिल लेकर घर से निकलें। मार्ग में जहां भी कुत्ता दिखाई दे उस कुत्ते के सामने वह तिल डाल दें और आगे बढ़ जाए। यदि वह काले तिल कुत्ता खाता हुआ दिखाई दे तो यह समझना चाहिए कि कैसा भी कठिन कार्य क्यों न हो, उसमें सफलता प्राप्त होगी।
तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें थोड़े से तिल डालकर प्रतिदिन शिवलिंग पर चढ़ाए। जल चढ़ाते समय ॐ भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करें, रोजाना ऐसा करने से आर्थिक स्थिति ठीक होती है, अगर नौकरी में कोई बाधा आ रही है तो वह भी दूर होती है।
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए भी तिल का उपयोग किया जाता है, अगर आप पर साढ़े साती या शनि की ढैय्या चल रही है, तो हर शनिवार के दिन काले तिल बहते जल में प्रवाहित करें, तिल का दान करें। इसे करने से शनि के साथ राहु केतु की दशा से भी राहत मिलती है। पितृ दोष दूर होता है।   अगर संतान प्राप्ति में शनि बाधक हो तो काला तिल जमीन में दबा दे एवं लोहे की कील, चाक़ू, शनि मंदिर में दान करे।
अक्सर छोटे बच्चों को नजर लग जाती है जिसके कारण वे रोना शुरु कर देते हैं। कभी-कभी तो दूध भी उलटने लगते हैं नजर उतारने के लिए एक नींबू को बीच से काटकर उसके एक भाग पर तिल लगाकर काले धागे से बांध दें, और उल्टी तरफ से नींबू करके सात बार ऊपर से उतारकर नींबू को कहीं दूर स्थान पर फेंक दें। नजर दोष दूर होगा और बच्चा जल्द ही स्वस्थ हो जाएगा।
अगर आप आर्थिक तंगी से जूझ रहें हैं, तो किसी जरुरतमंद को साबुत उड़द और काले तिल एक कपड़े में बांधकर दान करें। इससे आपके घर की आर्थिक स्थिति ठीक होगी और जीवन में तरक्की मिलेगी। पैसों को लेकर चल रही समस्या दूर होगी।
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aryamavastu · 5 years
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Pitru Paksha 2019: पितृ पक्ष शुरू, यहां जानिए श्राद्ध की तिथियां
पितृ पक्ष (Pitru Paksha) 13 सितंबर से शुरू हो चुका है, जो कि 28 सितंबर तक चलेगा
Pitru Paksha 2019: पितृ पक्ष आज से शुरू, जानिए तिथि, श्राद्ध के नियम, विधि, कथा और महत्‍व
श्राद्ध की तिथियां 13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध 14 सितंबर- प्रतिपदा 15 सितंबर-  द्वितीया 16 सितंबर- तृतीया 17 सितंबर- चतुर्थी 18 सितंबर- पंचमी, महा भरणी 19 सितंबर- षष्ठी 20 सितंबर- सप्तमी 21 सितंबर- अष्टमी 22 सितंबर- नवमी 23 सितंबर- दशमी 24 सितंबर- एकादशी 25 सितंबर- द्वादशी 26 सितंबर- त्रयोदशी 27 सितंबर- चतुर्दशी 28 सितंबर- सर्वपित्र अमावस्या
क्यों कहते हैं कनागत
 अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के समय सूर्य कन्या राशि में स्थित होता है। सूर्य के कन्यागत होने से ही इन 16 दिनों को कनागत कहते हैं।
श्राद्ध क्या है
 पितरों के प्रति तर्पण अर्थात जलदान पिंडदान पिंड के रूप में पितरों को समर्पित किया गया भोजन ही श्राद्ध कहलाता है।
पितृ दोष प्रबल हो तो यह भी करें उपाय
यदि कुंडली में प्रबल पितृ दोष हो इन सोलह दिनों में तीन बार एक उपाय करिए। सोलह बताशे लीजिए। उन पर दही रखिए और पीपल के वृक्ष पर रख आइये। इससे पितृ दोष में राहत मिलेगी। यह उपाय पितृ पक्ष में तीन बार करना है।
Pitru Paksha 2019: Pitru Paksha begins, know the dates of Shraddha here
 Pitru Paksha has started from 13 September, which will run till 28 September
Shraddha dates
September 13 - Purnima Shradh
14 September - Pratipada
15 September - 2nd
16 September - Tritiya
September 17 - Chaturthi
September 18 - Panchami, Maha Bharani
September 19 - Shashthi
September 20 - Saptami
September 21 - Ashtami
September 22 - November
September 23 - Dashami
September 24 - Ekadashi
25 September - Dwadashi
26 September - Trayodashi
27 September - Chaturdashi
September 28 - All-round Amavasyascope, take a remedy thrice in these sixteen days. Take sixteen points. Put curd on them and place them on peepal tree. This will give relief in Pitra dosha. This remedy is to be done thrice in Pitru Paksha.
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पितृ पक्ष में पशु-पक्षियों का क्यों है इतना महत्व?
ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में हमारे पितर धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं. ये पितृ पशु पक्षियों के माध्यम से हमारे निकट आते हैं. जिन जीवों तथा पशु पक्षियों के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं वो हैं - गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी.
इन पांच जीवों का ही चुनाव क्यों किया गया है-
कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है ,चींटी अग्नि तत्व का, कौवा वायु तत्व का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं. इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं. केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं. इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है. मात्र गाय को चारा खिलने और सेवा करने से पितरों को तृप्ति मिलती है साथ ही श्राद्ध कर्म सम्पूर्ण होता है.
गाय की सेवा से पितरों का आशीर्वाद-
पितृ पक्ष में गाय की सेवा से पितरों को मुक्ति मोक्ष मिलता है. साथ ही अगर गाय को चारा खिलाया जाय तो वह ब्राह्मण भोज के बराबर होता है. पितृ पक्ष में अगर पञ्च गव्य का प्रयोग किया जाय, तो पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है. साथ ही गौदान करने से हर तरह के ऋण और कर्म से मुक्ति मिल सकती है.
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imsaki07 · 4 years
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लाल किताब : कुंडली में नहीं है पितृदोष फिर क्यों हैं परेशान, जानिए ...
परंपरागत फलित ज्योतिष में कुंडली में गुरु और सूर्यआदि की स्थिति मानकर ही पितृदोष माना जाता है, परंतु लेकिन लाल किताब में कुंडली के अनुसार तो पितृदोष होता ही है और इसके और भी कई कारण होते है। यदि आपको लगता है कि आपकी कुंडली में पितृ दोष या कालसर्प दोष नहीं है फिर भी आप उसी तरह परेशान क्यों है जिस तरह की पितृदोष की कुंडली वाले रहते हैं तो जानिए लाल किताब अनुसार कुछ खास कारण। 1. पितृ ऋण और दोष कई…
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chaitanyabharatnews · 4 years
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अखंड सौभाग्य प्राप्ति के लिए करें हरियाली अमावस्या व्रत, जानिए इसके नियम, महत्व और पूजा-विधि
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चैतन्य भारत न्यूज भगवान शिव के प्रिय मास सावन में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस बार 20 जुलाई को हरियाली अमावस्या है। हिंदू धर्म में हरियाली अमावस्या का काफी महत्व होता है। इस दिन माता पार्वती की विशेष रूप से पूजा की जाती है। माना जाता है जो भक्त सच्चे मन से माता पार्वती की आराधना करता है उसके जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। नारद पुराण के मुताबिक, सावन मास की अमावस्या को पितृ श्राद्ध, दान, देव पूजा एवं वृक्षारोपण आदि शुभ कार्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
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हरियाली अमावस्या पर कुंवारी लड़कियां व्रत रखती हैं जिससे उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति हो सके। वहीं, सुहागिन महिलाओं का सुहाग हमेशा बना रहता है। इसी कारण से विवाहित स्त्री और अविवाहित कन्या दोनों व्रत रखकर मां पार्वती का पूजन करती हैं। मान्यता है कि, जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष, पितृ दोष और शनि का प्रकोप है वे हरियाली अमावस्या के दिन शिवलिंग का जलाभिषेक, पंचामृत या रुद्राभिषेक करके सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हो जाते हैं। हरियाली अमावस्या की पूजा-विधि इस दिन दोपहर 12 बजे से पहले पीपल के पेड़ की 21 बार परिक्रमा करके शिवलिंग का जलाभिषेक करें। पूजा के दौरान तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएं। आज के दिन ब्राह्माणों और जरूरतमंद लोगों को अपनी हिसाब से दान पुण्य करें।
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हरियाली अमावस्या के नियम हरियाली अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ईष्टदेव का ध्यान करना चाहिए। स्नान दान के लिए अमावस्या बहुत ही सौभाग्यशाली तिथि मानी जाती है। हरियाली अमावस्या पर अपने पितरों की शांति के लिए हवन आदि करवाने का विशेष महत्व है। हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का महत्व हरियाली अमावस्या के दिन पेड़-पौधे जरुर लगाने चाहिए। दरअसल कहा जाता है कि वृक्षों में देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए इस दिन पौधा लगाना शुभ माना गया है। ये भी पढ़े... 125 साल बाद सावन सोमवार के दिन बना नाग पंचमी का शुभ योग, कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए करें ये उपाय जानिए क्यों सावन में की जाती है शिव की पूजा, इस महीने भूलकर भी न करें ये गलतियां भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है केदारनाथ धाम, जानिए इस ज्योतिर्लिंग का इतिहास और महत्व   Read the full article
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