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#पूजा_विधि
bhuvneshkumawat · 4 years
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#नवरात्रि_में_कलश_स्थपाना का है विशेष महत्व, जानिए सही #मुहूर्त और #पूजा_विधि कल से #शारदीय_नवरात्रि की शुरूआत हो रही है. इन नौ दिनों में भक्त मां को प्रसन्न करने की कोशिश करते है. नवरात्रि में देवी पूजन और नौ दिन के व्रत का बहुत महत्व है. इन नौ दिनों में भक्तों नियमों के साथ मां की पूजा करते हैं. इसबार अष्टमी और नवमी तिथि एक ही दिन पड़ेगी, जिसके कारण नवरात्र में देवी आराधना के लिए पूरे 9 दिन मिलेंगे. प्रतिपदा तिथि को माता के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री के साथ ही कलश स्थापना के लिए भी अति महत्त्वपूर्ण दिन होता है. कलश स्थापना या कोई भी शुभ कार्य शुभ समय एवं तिथि में किया जाना शुभ माना जाता है, इसलिए इस दिन कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त पर विचार किया जाना अत्यावश्यक है. नवरात्र के 9 दिनों में मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है और हर स्वरूप सौभाग्य का प्रतीक होता है. इन शुभ दिनों में मां की हर रोज पूजा की जाती है और ज्यादातर लोग 9 दिन का व्रत भी रखते हैं. वैसे तो मां को श्रद्धा भाव से लगाए गए हर भोग को ग्रहण करती हैं लेकिन नवरात्र के दिनों में मां के हर स्वरूप का अलग भोग लगता है. #कलश_स्था‍पना_की_तिथि_और_शुभ_मुहूर्त कलश स्था‍पना की तिथि: 17 अक्टूबर 2020 कलश स्था‍पना का शुभ मुहूर्त: 17 अक्टूबर 2020 को सुबह 06 बजकर 23 मिनट से 10 बजकर 12 मिनट तक। कुल अवधि: 03 घंटे 49 मिनट जानिए कैसे करें नवरात्रि पर कलश पूजन सभी प्राचीन ग्रंथों में पूजन के समय कलश स्थापना का विशेष महत्व बताया गया है. सभी मांगलिक कार्यों में कलश अनिवार्य पात्र है. दुर्गा पूजन में कलश की स्थापना करने के लिए कलश पर रोली से स्वास्तिक और त्रिशूल अंकित करना चाहिए और फिर कलश के गले पर मौली लपेट दें. जिस स्थान पर कलश स्थापित किया जाता है पहले उस स्थान पर रोली और कुमकुम से अष्टदल कमल बनाकर पृथ्वी का स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए- 👇🙏🙏 ओम भूरसि रस्यादितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धात्रीं। पृथिवीं यच्छ पृथिवी दृह पृथ्वीं माहिसीः।। ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्तिवन्दवः। पुनरूर्जानि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।। https://www.instagram.com/p/CGZ2T3ylUGW/?igshid=rp6ncr1cjq36
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vedicpanditji · 4 years
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#पद्मिनी_एकादशी पंचांग के अनुसार अधिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 26 सितंबर 2020 से हो रहा है. मान्यता है कि एकादशी व्रत की पूजा एकादशी की तिथि आरंभ होने से ही शुरू हो जाती है. एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. अधिक मास चल रहे हैं. अधिक मास भगवान विष्णु को समर्पित है. अधिक मास में भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते है. पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है. अधिक मास में पड़ने वाली एकादशी का व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि एकादशी का व्रत भी भगवान विष्णु को ही समर्पित है. #मुहूर्त एकादशी तिथि प्रारम्भ: 26 सितम्बर को शाम 06 बजकर 59 मिनट एकादशी तिथि समाप्त: 27 सितम्बर को शाम 07 बजकर 46 मिनट पद्मिनी एकादशी पारणा मुहूर्त: 28 सितंबर 2020 को प्रात: 06 बजकर 12 मिनट 41 सेकेंड से प्रात: 08 बजकर 36 मिनट 09 सेकेंड तक. #पूजा_विधि पद्मिनी एकादशी व्रत का आरंभ 27 सितंबर 2020 से होगा. इस दिन सुबह स्नान करने के बाद पूजा स्थल पर बैठकर व्रत का संकल्प लें और पूजा आरंभ करें. एकादशी व्रत में विष्णु पुराण को पढ़ना और सुनना चाहिए. इस व्रत में रात्रि के समय भी भगवान विष्णु की पूजा का नियम है. इसलिए रात्रि में भजन और कीर्तन करना चाहिए. इस व्रत में हर प्रहर में भगवान की पूजा की जाती है. एकादशी व्रत का समापन यानि पारण भी नियम पूर्वक करना चाहिए तभी इस व्रत का पूर्ण लाभ और पुण्य प्राप्त होता है. #महत्व भगवान श्रीकृष्‍ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से पद्मिनी एकादशी के महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि मलमास के समय में लोगों को अनेक पुण्यों को प्रदान करने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति कीर्ति प्राप्त करता है और मृत्यु के बाद बैकुंठ को जाता है। बैकुंठ तो मनुष्‍यों के लिए भी दुर्लभ है। (at New Delhi) https://www.instagram.com/p/CFlXuIOgezj/?igshid=1bxmt9b713y49
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vedicpanditji · 4 years
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#अनंत_चतुर्दशी अनंत चतुर्दशी का व्रत 01 सितंबर दिन मंगलवार को है। यह व्रत हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होता है। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा होती है और अनंत चौदस की कथा सुनी जाती है। आज के दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा करने से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और कहा जाता है कि लगातार 14 वर्षों तक यह व्रत करने से व्यक्ति को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। #पूजा_मुहूर्त भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 31 अगस्त दिन सोमवार को सुबह 08 बजकर 49 मिनट से हो रहा है, जो 01 सितंबर को सुबह 09 बजकर 39 मिनट तक है। व्रत करने वाले व्यक्ति को सुबह में स्नान आदि से निव���त होकर पूजा कर लेनी चाहिए। #पूजा_विधि चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें और हाथ में जल लेकर अनंत चतुर्दशी व्रत एवं पूजा का संकल्प करें। व्रत का संकल्प लेने के लिए इस मंत्र 'ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये' का उच्चारण करें। इसके पश्चात पूजा स्थान को साफ कर लें। अब ए​क चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या कुश से बनी सात फणों वाली शेष स्वरुप भगवान अनन्त की मूर्ति स्थापित करें। अब मूर्ति के समक्ष अनंत सूत्र, जिसमें 14 गांठें लगी हों, उसे रखें। कच्चे सूत को हल्दी लगाकर अनंत सूत्र तैयार किया जाता है। अब आप आम पत्र, नैवेद्य, गंध, पुष्प, धूप, दीप आदि भगवान अनंत की पूजा करें। भगवान विष्णु को पंचामृत, पंजीरी, केला और मोदक प्रसाद में चढ़ाएं। पूजा के समय इस मंत्र को पढ़ें। नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर। नमस्ते सर्वनागेन्द्र नमस्ते पुरुषोत्तम।। इसके बाद अनंत चतुर्दशी की कथा सुनें। फिर कपूर या घी के दीपक से भगवान विष्णु की आरती करें। व्रत करने वाले व्यक्ति को बिना नमक वाले भोज्य पादार्थों का ही सेवन करना होता है। (at New Delhi) https://www.instagram.com/p/CElAiZVA-Dq/?igshid=1725pi56a68y6
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vedicpanditji · 4 years
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#परिवर्तिनी_एकादशी एकादशी का व्रत कल 29 अगस्त दिन शनिवार को रखा जाएगा. यह व्रत भगवान विष्णु के भक्त यानी वैष्णव रखते हैं. भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन 4 महीनों के लिए सो जाते हैं. देवउठनी एकादशी पर उठते हैं. माना जाता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सोते हुए करवट बदलते हैं. स्थान में परिवर्तन होने के कारण ही इस एकादशी को परिवर्तिनी नाम दिया गया है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है, इसलिए ही उनके भक्त इस दिन व्रत कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं. #शुभ_मुहूर्त एकादशी तिथि आरंभ 28 अगस्त दिन शुक्रवार की सुबह 08 बजकर 38 मिनट पर एकादशी तिथि समाप्त 29 अगस्त दिन शनिवार की सुबह 08 बजकर 17 मिनट पर पारण का समय 30 अगस्त दिन रविवार की सुबह 05 बजकर 58 मिनट से 08 बजकर 21 मिनट तक #पूजा_विधि इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, इसके बाद साफ कपड़े पहनें. जिस स्थान पर पूजा करनी है उस स्थान की सफाई करें. फिर गंगाजल डालकर पूजन स्थल को पवित्र करें. इसके बाद एक चौकी लें और उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं. भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा उस पर विराजित करें. दीपक जलाएं और प्रतिमा पर कुमकुम या चंदन का तिलक लगाएं. हाथ जोड़कर भगवान विष्णु का ध्यान करें. प्रतिमा पर तुलसी के पत्ते और पीले फूल अर्पित करें. फिर विष्णु चालीसा, विष्णु स्तोत्र और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. इस दिन भगवान विष्णु के मंत्रों या नाम का जाप अवश्य करें. इसके बाद विष्णु जी की आरती करें. उनसे पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगें. किसी पीले फल या मिठाई का भोग लगाएं. (at New Delhi) https://www.instagram.com/p/CEaucwDgZJh/?igshid=poxj9feqyof9
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vedicpanditji · 4 years
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#शुभ_मुहूर्त: एकादशी तिथि आरंभ- 16 जून 2020 को सुबह 05 बजकर 40 मिनट से एकादशी तिथि समाप्ति- 17 जून 2020 को सुबह 07 बजकर 50 मिनट तक पारण का समय- 18 जून 2020 को सुबह 05 बजकर 28 मिनट से 08 बजकर 14 मिनट तक #पूजा_विधि इस व्रत की शुरुआत ���शमी तिथि से हो जाती है। इस दिन व्रती को लहसुन, प्याज और तामसी भोजन का परित्याग कर देना चाहिए। निशाकाल में भूमि पर शयन करना चाहिए। एकादशी को ब्रह्म बेला में उठकर सर्वप्रथम अपने आराध्य देव को स्मरण और प्रणाम करना चाहिए। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात, आमचन कर व्रत संकल्प लें। अब भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा, फल, फूल, दूध, दही, पंचामृत, कुमकुम, तांदुल, धूप-दीप आदि से करें। दिनभर उपवास रखें। व्रती चाहे तो दिन में एक फल और एक बार पानी ग्रहण कर सकते हैं। शाम में आरती-प्रार्थना के बाद फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें। #व्रत_विधि एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें। शौचादि से निवृत्त होकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर में साफ-सफाई करें। भगवान विष्णु जी की प्रतिमा को गंगा जल से नहलाएं। अब दीपक जलाकर उनका स्मरण करें। भगवान विष्णु की पूजा में उनकी स्तुति करें। पूजा में तुलसी के पत्तों का भी प्रयोग करें। पूजा के अंत में विष्णु आरती करें। शाम को भी भगवान विष्णु जी के समक्ष दीपक जलाकर उनकी आराधना करें। इस समय विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। अगले दिन यानि द्वादशी के समय शुद्ध होकर व्रत पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें। सबसे पहले भगवान विष्णु जी को भोग लगाएं। भोग में अपनी इच्छानुसार कुछ मीठा भी शामिल करें। लोगों में प्रसाद बांटें और ब्राह्मणों को भोजन कर कराकर उन्हें दान-दक्षिणा दें। (at New Delhi) https://www.instagram.com/p/CBgHzX1AS55/?igshid=5edls8qygph0
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